Shri Fatima Puja

Saint-George (Switzerland)

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श्री फ़ातिमा पूजा, स्विट्ज़रलैंड, सेंट जॉर्ज, 14 अगस्त 1988 

आज हम पूजा करने जा रहें हैं, फ़ातिमा बी की, जो प्रतीक थी गृहलक्ष्मी का, और इसीलिए हम पूजा करने जा रहे हैं, हमारे अंदर स्थित गृहलक्ष्मी तत्व की। जैसे एक गृहिणी को हर कार्य पूर्ण करना होता है, सब कुछ घर परिवार में और फिर ही वह स्नान के लिए जाती है, उसी प्रकार आज सुबह हमें भी बहुत सारे कार्य करने थे और फिर ही हम आ सके आपकी पूजा के लिए क्योंकि आज घर की गृहिणी के बहुत से कार्य थे। तो हमें उन्हें पूर्ण करना था एक अच्छी गृहिणी की तरह। 

अब, गृहलक्ष्मी का तत्व परमात्मा द्वारा निर्मित और विकसित किया गया है। यह मनुष्य की रचना नहीं है और जैसे आप जानते हैं कि यह विद्यमान है, बायीं नाभि में। यह गृहलक्ष्मी ही हैं जो प्रस्तुत हुई हैं फ़ातिमा के जीवन में, जो कि मोहम्मद साहब की बेटी थी। अब वह सदैव जन्म लेती हैं, एक गुरु से संबंध में, जो कि कौमार्य का है, पवित्रता का है। तो वह एक बहन के रूप में आती हैं या फिर वह एक बेटी के रूप में आती हैं। अब फ़ातिमा के जीवन की सुंदरता यह थी कि, मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात, हमेशा की ही तरह कट्टरपंथी लोग थे, जिन्होंने सोचा कि वे धर्म को अपने हाथों में ले सकते हैं और इसे एक अत्यंत ही कट्टर वस्तु बना सकते हैं। और ध्यान उस कदर नहीं दिया गया व्यक्ति के उत्थान पर। 

यहाँ तक कि मोहम्मद साहब ने अपने दामाद का कई प्रकार से वर्णन किया है।

और वह ही एकमात्र थे या फिर एक और अवतरण थे श्री ब्रह्मदेव के, जो इस पृथ्वी पर आए थे। अली इस पृथ्वी पर आए, वे श्री ब्रह्मदेव के अवतरण थे और उनके दूसरे अवतरण थे सोपानदेव, जिसे, आप पुणे जाकर, वहाँ सोपानदेव के मंदिर को देख सकते हैं।

श्री माताजी – यह गिरता है इस भार के साथ। 

तो हमारे पास अली और उनकी पत्नी फ़ातिमा हैं, जो अवतरित हुए बायीं नाभि के तत्व पर। वह अपने घर में ही रहीं, अपनी घर-गृहस्थी में, और उन्होंने पालन किया, जिसे आप क्या कहते हैं एक प्रकार का पर्दा या नकाब जैसे वे कहते हैं, अपने चेहरे को ढकने के लिए। यह एक प्रतीक है कि एक स्त्री जो एक गृहिणी है, उसे अपने सतीत्व की रक्षा करनी होती है अपने चेहरे को ढक कर क्योंकि वह एक सुंदर स्त्री थी और वह एक ऐसे देश में जन्मी थी जो कि बहुत बहुत हिंसक था और उन पर निश्चित आक्रमण हो सकता था यदि वह उस प्रकार से न रह रहीं होती। 

जैसा कि आप जानते हैं कि, क्राइस्ट के समय में, जबकि “मेरी” महालक्ष्मी का अवतरण थी, उन्हें बहुत ही सशक्त व्यक्तित्व का होना था और क्राइस्ट नहीं चाहते थे कि किसी को भी यह ज्ञात हो कि वह क्या हैं। लेकिन हालांकि वह घर में थी, पर वह शक्ति थी, उन्होंने अपने बेटों को अनुमति दी या वास्तव में आदेश दिया उन कट्टरपंथियों से लड़ने का, जो प्रयत्न कर रहे थे उनके पति की सत्ता को अस्वीकार करने का। और आप जानते हैं कि हसन और हुसैन, वे वहाँ मारे गए। यह बहुत ही अद्भुत बात है कि किस प्रकार से श्री सीता के महालक्ष्मी तत्व ने विष्णुमाया का रूप लिया, सिर्फ गृहलक्ष्मी के सुंदर तत्त्व को स्थापित करने के लिए। अब वह अत्यंत ही शक्तिशाली थी, इसमें कोई संदेह नहीं और उन्हें यह ज्ञात था कि उनके बच्चे मारे जाएँगे। लेकिन ये लोग कभी नहीं मारे जा सकते, इनकी कभी-भी मृत्यु नहीं होती और न ही उन्हें कुछ सहना पड़ता हैं। यह एक नाटक है जो इन्हें करना पड़ता है लोगों को यह दर्शाने के लिए कि वे कितने मूर्ख हैं। इसके परिणामस्वरूप, एक और व्यवस्था प्रारम्भ हुई जहाँ वे संतों का सम्मान करते थे, जैसे की भारत में शिया लोग औलिया का सम्मान करते हैं और हम उन्हें कह सकते हैं वे साक्षात्कारी लोग थे जैसे निज़ामुद्दीन साहब। फिर हमारे वहाँ “चिश्ती” हैं। हमारे वहाँ, अजमेर में, हज़रत चिश्ती हैं। इन सभी महान संतों का सम्मान किया जाता है, शियाओं द्वारा। लेकिन फिर भी वे धार्मिक कट्टरता की सीमा को पार न कर सके। तो इसलिए वे भी अत्यंत कट्टर बन गए। 

सर्वप्रथम वे नहीं देखेंगे किसी अन्य धर्म को जिनमें संत होते हैं। वे उन संतों का सम्मान नहीं करेंगे जो अन्य धर्म से संबंधित हैं। और यहाँ तक कि, हमारे वहाँ एक बहुत महान संत हैं जैसे साई नाथ शिर्डी के, जो कि मुसलमान थे प्रारम्भ में, और यह कहा जाता है कि फ़ातिमा स्वयं उन्हें लेकर आई थी एक बालक के रूप में अपनी गोद में और उन्हें एक महिला को दे दिया। हम इसे नकारते नहीं है, जहाँ तक की हिंदूओं का संबंध है, उनकी साधुता को, लेकिन मुसलमान यह स्वीकार नहीं करते हैं। 

एक और हैं जिन्हें हाज़ी मलांग कहा जाता हैं, जो की बंबई के काफी समीप है, जो कि एक साक्षात्कारी आत्मा थे। वे भी समझ गए थे, शियाओं की कट्टरता को। “शिया”, शिया शब्द सिया से आया है, यूपी में सीता को सिया कहा जाता है। सिताजी को “सिया” कहा जाता है। वे भी यह समझ न सके की और भी संत हैं जो की तथाकथित मुसलमान नहीं हैं, लेकिन वे संत हैं। तो वे इससे बाहर न आ सके। तो एक और हैं जिन्हें हाज़ी मलांग कहा जाता है जिन्हें हिंदूओं द्वारा पूजा जाता है। कुछ मुसलमान भी वहाँ जाते हैं, कोई संदेह नहीं। और ये हाज़ी मलांग काफ़ी चिन्तित थे शियाओं की कट्टरता को लेकर, तो उन्होंने कुछ हिंदूओं को नियुक्त किया अपनी आराधना हेतु, बस इसे प्रति संतुलित करने के लिए। उन्होंने हर प्रकार की चीज़ें की। 

इस प्रकार के बहुत से संत हैं। हम भोपाल गए थे। एक और अन्य महान संत हैं जिन्हें वहाँ दफनाया गया है। लेकिन उनके सभी शिष्य सिर्फ उस स्थान से होने वाली कमाई पर निर्भर रहते थे, जो कि बहुत ही गलत है। यहाँ तक की हज़रत निज़ामुद्दीन में वैसे ही चीज़ें हैं जैसे हिंदु किया करते हैं। वे सभी पैसा बनाते हैं। हमारा मतलब है कि यह एक प्रकार का व्यावसायिक कार्य है। तो इन संत की मृत्यु हो गयी और उन्हें वहाँ दफ़नाया गया। ऐसे बहुत से लोग थे जो उसपर निर्भर हैं। जब हम वहाँ गए, हमने बस, उनसे ऐसे ही पूछा कि, “आपका धर्म क्या है?”। तो उन्होंने कहा, “हम मुसलमान हैं”। हमने कहा, “उन संत का क्या धर्म है जिनकी मृत्यु हुई थी? ”। उन्होंने कहा, “संतों का कोई धर्म नहीं होता”। तो हमने कहा, “फिर आप धर्म को क्यों मानना चाहते हो? आप उनके धर्म को क्यों नहीं मानते?” उनका कोई भी धर्म नहीं हैं। यहाँ तक संस्कृत में भी यह कहा गया है कि, सन्यासी का कोई भी धर्म नहीं होता। वे धर्मातीत हैं, वे धर्म से परे जा चुके हैं। 

लेकिन जैसा की हर अवतरण के साथ हुआ है, यहाँ तक शिया लोगों में यह हुआ है, सुन्नियों में, हिंदूओं में, मुसलमानों में, सब के साथ, कि वे कट्टर समुदाय बनाते हैं। अब कट्टरता स्वयं पूर्णतया धर्म के विरोध में है, आपके अंदर स्थित अन्तर जात धर्म के विरोध में क्योंकि यह विष का निर्माण करती है। यह विषैली चीज़ है। यह आपको दूसरों से नफ़रत करवाती है। जब आप दूसरों से नफ़रत करने लगते हैं तब यह आपके अंदर एक भयानक विष की तरह प्रतिक्रिया करती है जो कि सब कुछ खा जाती जो भी आप में सुंदरता है। किसी से भी नफ़रत करना सबसे घटिया चीज़ है जो कि मनुष्य कर सकता है, लेकिन वे यह कर सकते हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं जो वे चाहे। जानवर किसी से नफ़रत नहीं करते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? उन्हें नहीं पता कि किस प्रकार से नफ़रत की जाती हैं। वे किसी को डंसते हैं क्योंकि यह उनका स्वभाव है। वे किसी को काटते हैं क्योंकि यह उनका स्वभाव है। वे कभी किसी से नफ़रत नहीं करते हैं। वे किसी को भले ही पसंद न करते हो लेकिन यह नफ़रत, जो कि एक विष है, यह मानवीय धारणा और मानवीय समावेश की विशेषता है। केवल मनुष्य ही नफ़रत कर सकता है। और यह भयावह वस्तु नफ़रत, यहाँ तक कि मुसलमानों में भी स्थित हो गयी जो नहीं थी। इस करबला का निर्माण नफ़रत के लिए नहीं हुआ था, बल्कि प्रेम के लिए। सब कुछ जो प्रेम के लिए किया गया था वह नफ़रत में परिवर्तित हो गया, प्रत्येक धर्म में। अब इन सब में सबसे बुरी बात यह है कि, एक हिस्सा जो नफ़रत करता है वह सोचता है कि दूसरा हिस्सा सबसे बुरा है, और दूसरा हिस्सा सोचता है कि पहला हिस्सा सबसे सब से बुरा है। किस नियम, कानून या तर्क के तहत वे यह निश्चित करते हैं यह उनका देखना है। तो वे साथ इकट्ठे हो जाते हैं इस प्रकार से। 

जबकि यह तत्व गृहलक्ष्मी का, विशेष रूप से निर्मित किया गया था इस नफ़रत पर काबू पाने के लिए, नफ़रत कहलाने वाले इस नीरस पदार्थ को नियंत्रित करने के लिए। निकालने के लिये, लोगों के मस्तिष्क से, नफ़रत, इस गृहलक्ष्मी तत्व का निर्माण किया गया था। कैसे? एक परिवार में जब आपकी घर गृहस्थी हो, इस गृहलक्ष्मी तत्व को नफ़रत को नियंत्रित करना होगा, बच्चों के मध्य, पति और बच्चों के मध्य। लेकिन यदि वह स्वयं अपनी नफ़रत का आनंद उठाती हो तो फिर वह किस प्रकार इस पर नियंत्रण कर पाएगी? वह इस शांति का स्त्रोत है जो नफ़रत को नियंत्रित करती है। 

अब भारत में हमारे वहाँ संयुक्त परिवार होते हैं, आपके वहाँ भी रिश्ते होते हैं जैसे अंकल, आंटी यह, वह। लेकिन गृहिणी का कार्य है शांत करना, शांत करना लोगों की सभी प्रकार की कठोरता को जो कि टकराव उत्पन्न करती है। 

अब एक आदमी को एक गृहिणी की पूजा करनी चाहिए। कहा भी गया है ऐसा, ‘यत्र नार्या पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता’, ‘जहाँ भी गृहिणी का सम्मान किया जाता है, वहाँ ही परमात्मा भी निवास करते हैं’। हमारे देश में, हमें कहना होगा कि इसका श्रेय अवश्य गृहिणियों को जाना चाहिए क्योंकि हम अर्थशास्त्र के लिए कोई अच्छे नहीं हैं, न राजनीति, प्रशासन के लिए- निराशाजनक। निकम्मे। आदमी लोग व्यर्थ हैं। उन्हें कोई भी घर गृहस्थी का कार्य नहीं पता या और कुछ। औरतों ने इसे स्वयं तक रखा है, लेकिन हमारा समाज अव्वल दर्जे का है, यह कायम होता है घर की महिला द्वारा।   

इसलिए आदमी को गृहिणी का सम्मान करना चाहिए, यह बहुत ही आवश्यक है। यदि वह अपनी गृहिणी का सम्मान नहीं करता है, तो कोई संभावना नहीं है गृहलक्ष्मी तत्व के कायम रहने की। यह एक प्रकार से संरक्षण जैसा है गृहिणी के तत्व का। 

लेकिन कुछ पुरुष, हमारा मतलब उनमें बहुत से यह सोचते हैं कि यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है अपनी पत्नियों से दुर्व्यवहार करना, उन्हें प्रताड़ित करना, उन्हें तमाम प्रकार की बातें कहना, क्रोधित होना, यदि वह एक अच्छी महिला है तो। लेकिन यदि वह तंग करने वाली है, यदि वह एक भूत है, तो वे नियंत्रित हो जाएँगे, पूर्णतया नियंत्रित। यदि पत्नी एक भूत है तो पति हमेशा ही एक प्रकार से उसे प्रसन्न करने का प्रयास करता है और उससे अत्यंत ही नम्र रहता है। उसे पता है की वह एक भूत ही है, हालांकि, सतर्क रहना चाहिए। नहीं पता किस समय भूत आ जाए एक सांप की तरह आप पर। और यदि वह जानती है कि किस प्रकार से सताना है या बहस करनी है, तब भी वे भयभीत हो जाते है। कोई प्रेम नहीं है, उनमें कोई प्रेम या सम्मान नहीं है एक दूसरे के प्रति लेकिन उनमें एक विस्मय या भय है। और वे ऐसी महिलाओं से भयभीत होते हैं। अब कुछ महिलाएँ सोचती हैं कि यदि वे इश्कबाज बन जाए तो पतियों पर बेहतर नियंत्रण किया जा सकता है। पर अपने मूल तत्वों को वे गवा देती हैं। मूल शक्ति जो उनके पास हैं, वे गवा देती हैं और वे समस्याओं से घिर जाती हैं। 

तो सबसे मूल तत्व एक गृहलक्ष्मी के लिये है सम्मान करना अपने सतीत्व का, सम्मान करना अपने सतीत्व का, बाह्य व अंतर में। यह उसकी दृढ़ता है। निश्चय ही बहुत से पुरुष इसका फ़ायदा उठाते हैं। यदि पत्नी अधीन या आज्ञाकारी हो, तो वे इसे सुनिश्चित करते हैं कि वे बस पत्नी पर शासन करें, बायें और दायें। ठीक है।  

लेकिन इस महिला, एक गृहिणी को जानना होगा वे किसी के अधीन नहीं। वह कर्तव्य परायण है स्वयं की धर्मपरायणता के प्रति, अपनी स्वयं की नैतिकता के प्रति, अपने स्वयं के गुणों के प्रति। यदि अगर पति मूर्ख है, तो ठीक है, वह मूर्ख है एक बच्चे के भांति, समाप्त। लेकिन एक पति को यह जानना होगा कि उसे सम्मान करना चाहिए, अन्यथा वह खो गया है, वह बर्बाद है, वह किसी काम का नहीं। पहली बात तो यह है कि उसे यह अवश्य देखना होगा की स्त्री का घर में गृहलक्ष्मी के जैसे सम्मान होना चाहिए। तभी आशीर्वाद मिलता है। 

लेकिन किसी भी प्रकार से उसे उसका अपमान या उसके साथ कठोरता और ऊंची आवाज़ या उसे कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। लेकिन पत्नी को भी ऐसा होना चाहिए कि उसका सम्मान किया जा सके। हमने कितनी ही मर्तबा कहा है, आपकी पत्नी हावी हो रही है, उसे दो तमाचे दे दीजिये मुख पर, बेशक, निःसंदेह। उसे हावी नहीं होना चाहिए, उसे दूसरों की सभी हावी होने वाली ताकतों को हटाना चाहिए। वह शांति का स्त्रोत है, वह आनंद का स्त्रोत है, वह शांति प्रस्थापक है। यदि वह ही समस्याओं को उत्पन्न करने वाली हो, तो आप उसे तमाचा दे सकते है अच्छे से, उसे उसके रूप में लाये, यह ठीक है। 

तो यह गृहलक्ष्मी तत्व पारस्परिक है। यह केवल पत्नी या पति पर निर्भर नहीं करता बल्कि दोनों पर ही। तो इसलिए यदि आप अपनी पत्नी को कष्ट दे रहे हैं, तो आपकी बायीं नाभि कभी भी सुधर नहीं सकती। और यदि आप एक बुरी पत्नी है तो आपकी बायीं नाभि कभी सुधर नहीं सकती। 

अब पश्चिम में महिलाओं के साथ यह समस्या हैं कि उन्हें यह एहसास नहीं हैं कि उनकी क्या शक्ति हैं। एक अस्सी बरस की महिला भी एक दुल्हन की तरह दिखना चाहती है। वह अपने गौरव को महसूस नहीं कर पाती और ना ही आनंद उठा पाती है, अपने भीतर के गौरव का, वह रानी है घर की। लेकिन वह एक घटिया, बचकानी, जवान तुच्छ लड़की की तरह बर्ताव करना चाहती है। वह अपने गौरव को नहीं समझती, वह बहुत अधिक बाते करेंगी, वह इस प्रकार से पेश आएंगी, जो कि एक गृहिणी के लिए उपयुक्त नहीं है। जैसे कि वे अपने हाथों को निकालकर इस प्रकार से बात करेंगी जैसे मछली पकड़ने वाली करती हैं जब वे अपनी मछली किसी को बेचती हैं और जब उन्हें झगड़ना होता हैं। और वे कभी चिल्लाएंगी, वे चिल्लाती भी हैं, मतलब हमने सुना कि वे चिल्लाती हैं और कभी तो वे अपने पतियों को पीटती भी हैं, यह तो हद है। 

वे शुरुवात हमेशा अपनी तुलना अपने पतियों से करने से करेंगी। जैसे, मैं एक बहुत ही अमीर पिता की पुत्री हूँ, मैं ऐसे और इस परिवार से हूँ, मेरे पति एक बहुत ही निम्न परिवार से है, उनके पास कोई पैसा नहीं है, कुछ भी नहीं, वह पढ़े-लिखे नहीं है, तो इसलिए उसके साथ बुरा व्यवहार करो। उन के साथ ऐसा व्यवहार करो जिसमें कोई सम्मान नहीं। ऐसी महिला अपनी सभी शक्तियों को गवा देगी। साथ ही वह स्वयं को दोषी समझेगी, उसे अपराध बोध होगा क्योंकि, सर्वप्रथम किसी को भी अधिकार नहीं किसी को भी तुच्छ समझने का चाहे कोई भी हो , विशेषकर सहजयोग में। फिर, अपने पति को तुच्छ समझना, यह तो एक प्रकार से अविश्वसनीय है। हो सकता है कि वह सहजयोगी न हो। कोई बात नहीं। हो सकता है वह ठीक न हो, लेकिन अपने व्यवहार से, अपनी क्षमता से, सभी चीजों द्वारा आप उसे बचा सकते हो। लेकिन आप स्वयं को क्यों गवा रहे हो, दूसरों पर प्रभुत्व जमाकर, दूसरों को दबाकर, अपने पति को एक किस्म का कुएँ का मेंढक बनाकर। उसे बोलकर, “ओह, हम दोनों आखिरकार, हमें आनंद लेना चाहिए। हमारा एक अलग से घर होना चाहिए, कोई भी घर में नहीं आना चाहिए”। यहाँ तक कि एक चूहा भी घर में प्रवेश नहीं करेगा। यहाँ तक यह कहना कि,“ ओह, यह मेरे बच्चे हैं, मेरा पति, मैं”, एकदम प्रतिकूल है सहजयोग के, यह नकारात्मक सोच है। यह एकदम निरर्थक बात है, वे किसी भी सहजयोगी या किसी भी सहजयोगिनी जैसे नहीं दिखाई देते। 

ऐसी सभी किस्म की स्वार्थपरता, ऐसी सभी किस्म की एकांतता सहजयोग के विरोध में है। 

लेकिन एक गृहिणी कुछ इस तरह है कि, ‘ओह, तो मुझे कितना भोजन तैयार करना चाहिए?” मान लीजिये, “पचास लोग आ रहे हो”।  

तो पति कहता है“ लेकिन दस ही आ रहे हैं। तुम पचास लोगों के लिए क्यों बनाना चाहती हो ?” 

“लेकिन शायद वे ज्यादा खाना चाहते हो”। “लेकिन फिर तुम्हें पचास प्लेट क्यों चाहिए?” 

“शायद वे अपने साथ अपने मित्रों को भी ले आए।” तो वह अपनी उदारता के लिए सोचती है। वह अपनी उदारता का आनंद उठाती है। हम बहुत से ऐसों को जानते है। हालांकि वे यहाँ तक कि सहयोगिनी भी नहीं हैं। 

वे कहेंगी “क्या आप आएंगी भाभी, क्या आप भोजन के लिए आएंगी?” 

“ओह मैं नहीं आ रही हूँ; आप बहुत सारी चीज़ें बना देती हो, नहीं आ रही।”

“नहीं, नहीं मैं कुछ ही चीज़ें बनाऊँगी लेकिन आप कृपया आ जाइए”। 

फिर वह तुरंत ही सोचना प्रारम्भ कर देती है, “कौन सी सब्जियाँ बाज़ार में उपलब्ध हैं? मुझे क्या लाना चाहिए? क्या सबसे बढ़िया है?”

हमारा मतलब है, हम उनकी गुरु नहीं हैं, हम उनकी माँ नहीं हैं, हम बस एक संबंधी हैं, लेकिन वे अपने प्रेम को भोजन के माध्यम से अभिव्यक्त करना चाहती हैं, वे अन्न प्रदाता हैं– अन्न धा । वे अन्नपूर्णा हैं और यही एक गुण, यह उदारता यदि औरत में नहीं है तो वह एक सहयोगिनी नहीं है, किसी भी प्रकार से। यह हम से जान लीजिये। पति भले ही थोड़ा बहुत कंजूस हो, कोई बात नहीं, लेकिन पत्नी को अत्यंत उदार होना होगा और कई बार तो वह चुपचाप पैसे दे देती है, अपने बच्चों को नहीं लेकिन दूसरों को। ऐसी सुंदर महिलाओं को सहजयोग में होना ही चाहिए  लेकिन हमें अत्यंत खेद होता है, कई बार जब आक्रमण औरत की तरफ से होता है सहजयोगी की, पुरुष की तरफ से नहीं, हम पर। हम स्वयं भी एक महिला है, हम स्तब्ध रह जाते है कि महिला इस प्रकार से हम पर आक्रमण कर रही है, किस लिए? 

सहजयोग में किसी भी प्रकार का कोई प्रभुत्व नहीं है। लेकिन ये तथाकथित दासत्व या प्रभुत्व के विचार आपके पास मौजूद गलत धारणाओं से आते हैं, अपने स्वयं के गौरव को लेकर, अपनी खुद की समझ को लेकर। आप स्वयं से परिचित नहीं हो। आपको नहीं पता कि आप एक रानी हो, कोई भी आप पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता। कौन एक ऐसी महिला पर प्रभुत्व जमा सकता है , जो घर परिवार पर शासन करती हो। मान लीजिये यदि पति कहे, “मुझे यह रंग पसंद नहीं है ।” ठीक है, इसे कुछ समय के लिए रहने दीजिये। फिर कोई आएगा और कहेगा, “क्या बढ़िया रंग है”। फिर वह कहेगा, “आह, बहुत ही बढ़िया रंग है, ओह, इसे मत बदलना”। 

एक औरत को अवश्य समझना चाहिए पुरुष को। उनके पास बड़ी आँखें हैं। वे सूक्ष्मदर्शी नहीं हैं । वे सभी चीजों को बड़े तरीके से देखते हैं, आप देखिएगा। तो आज वे कुछ कहेंगे, कल वे इसके विषय में भूल जाएँगे और उनके पास अति सूक्ष्म आँखें नहीं हैं। वे बहुत ऊपर हैं इन सब बातों से। वे इन सब बातों से ऊपर हैं। आपको यह अवश्य समझना चाहिए। लेकिन यदि वह घोड़े पर सवार होगा, “मुझे भी अवश्य सवार होना है घोड़े पर और नीचे गिरना है। यदि वह स्कीइंग के लिए जाएगा – मैं भी जाऊँगी स्कीइंग के लिए। यदि वह मसल्स (मांसपेशी) बनाता है – मैं भी अवश्य मांसपेशी बनाऊँगी।” यह इस स्तर तक पहुँच चुका है। मतलब महिलाएँ इस पृथ्वी पर बिलकुल वैसी नहीं दिखेंगी। आपको नहीं पता होगा कि यह किस प्रकार की महिलाएँ है बड़ी-बड़ी मांसपेशियों के साथ, बिना किसी दाड़ी मूँछ के। तो इस प्रकार के मूर्खता पूर्ण विचार है हमारे। लेकिन किसी भी प्रकार की कोई अधीनता नहीं है। आप आधीन है स्वयं के गौरव के प्रति, अपनी स्वयं की पवित्रता के प्रति, अपने स्वयं के सम्मान के प्रति और सबसे ऊपर अपनी नैतिकता के प्रति क्योंकि आप उसके कार्य प्रभारी हो। वह आदमी जो कार्य प्रभारी है उसे उस पक्ष को देखना होता है। कितने झगड़े आप करते हो। आप किस प्रकार से झगड़ालू हो सकते हैं जब आप से यह अपेक्षित हो शांति प्रस्थापक बनना। मान लीजिये हम दो शांति दूत किसी देश में भेज रहे है शांति प्रस्थापन के लिए और वे एक दूसरे का गला काट दे, तो आप इसे क्या कहेंगे?   

आप ही हैं वह जिन्हें सभी चीजों को शांत करना होगा, आप ही हैं जिसे ऐसे प्रेम की अभिव्यक्ति करनी होगी, ऐसी मधुर चीज़ों की, कि परिवार आप में शांति महसूस कर सके, सुरक्षित आप में, क्योंकि आप माँ है। 

परिवार को आपके साथ सुरक्षित महसूस करना चाहिए और यह प्रेम ही आपकी शक्ति है। यह आपकी ही शक्ति है कि आप प्रेम प्रदान कर सकती हैं और प्रेम प्रदान कर आप पाएँगे की आप सदा स्वयं को ही समृद्ध कर रहे हैं। आप कल्पना करें कि हम क्या उपहार देते है तुलना में जो हमें प्राप्त होते हैं, हमें नहीं पता, हमें एक दूसरा घर बनाना पड़ेगा। हम उनसे कहते है कि, “हमें व्यक्तिगत उपहार न दे। हम कोई भी व्यक्तिगत उपहार स्वीकार नहीं करेंगे। ”अब इसके बावजूद भी, हमें नहीं पता, सिर्फ प्रेम के साथ यदि हमें कुछ मिलता है, आत्मीयता के साथ, यह प्रेम, आप जानते हैं, स्वयं प्रकटित होता है और आपके पास वापस आता है, किसी काव्य की तरह, कि आप कई बार चकित रह जाते हैं। 

हम आपको एक सरल उदाहरण देंगे अपने स्वयं के जीवन का जो आपको यह बताएगा की प्रेम किस प्रकार कार्य कर सकता है। 

हम एक गृहिणी थे शुरुवात करने के लिये और समाप्ति में, हमें लगता है। और जब हम एक बार दिल्ली में थे, हमारी बेटी जन्म लेने वाली थी, तो हम उसके लिए कुछ बुन रहे थे, बाहर लॉन में बैठकर जब तीन लोग घर में आ गए, एक महिला और दो आदमी और वे आए और बोले, “देखिये अब हम गृहिणी है, मैं एक गृहिणी हूँ और ये दो, इनमें से एक मेरे पति है और वह मेरे पति के मित्र है और वह मुसलमान है और हम आपके पास आश्रय के लिए आए हैं क्योंकि हम शरणार्थी हैं।” हमने उनकी ओर देखा, वे हमें बहुत ही भले लगे, वे एकदम ठीक थे। हमने कहा, “ठीक है कृपया आप हमारे घर में ठहर जाइए”। तो हमने उन्हें बाहर का कमरा दे दिया जिसमें एक किचन और एक बाथरूम था [असपष्ट ] और उन सज्जन के लिए, हमने कहा , “एक और खाली कमरा है, आप वहाँ रह सकते है, और पति-पत्नी यहाँ रह सकते है”। 

शाम को हमारे भाई आये। उन्होंने अपनी आवाज़ में ज़ोर से बोलना शुरू कर दिया, उन्होंने कहा , “यह क्या है? आप इन लोगों को नहीं जानते हो, ये चोर भी हो सकते हैं, वह यह हो सकते हैं, वे यह कर सकते हैं ….[असपष्ट] फिर हमारे पति आते है, और वह भी उनके साथ शामिल हो जाते है क्योंकि, आप देखेंगे, वे मित्र थे। उन्होंने उनको बताया। सभी पुरुष एक जैसे, आप देखेंगे, तो उन्होंने कहा, “आप देखिये, ये समझती नहीं है, इन्होंने इन तीन लोगों को यहाँ रखा है। भगवान जाने, ये कौन हैं, यह कह रहे है कि ये शरणार्थी हैं, यह सब। वह नहीं जानती है, यह एक मुसलमान है, यह एक हिंदु है। भगवान जाने, उसके दो पति हो, एक पति ”इस प्रकार की तमाम बाते उन्होंने कही। अगली सुबह वे भूल गए इस बारे में। हमने कहा, “ठीक है, उन्हें यहाँ एक रात के लिए रहने दे। क्या अब ठीक है? हम उन्हें आज बाहर नहीं निकाल सकते, एक रात ”। अगली सुबह वे भूल गए कि वे वहाँ रह रहे थे। यह हुए न आदमियों जैसे। पहले दिन इस कदर विस्फोटक, इस कदर विस्फोटक, हमने कहा, “ठीक है, एक रात। अब ज़ोर से मत बोलना। उन्हें पीड़ा महसूस होगी। इसलिए उन्हें एक रात रहने दे, वे शांत हो जाएँगे”। 

अगली सुबह वे अपने काम के लिये चले गए। उनके पास बिलकुल भी वक्त नहीं है। यह बस , आप देखिएगा, बस सप्ताहांत में ही वे घर के कार्यों में सक्रिय होंगे, नहीं तो वे निष्क्रिय रहेंगे। तो वे चले गए। हुआ ऐसा कि ये लोग हमारे साथ एक महीने तक रहे। फिर इन महिला को नौकरी मिल गयी और वह चली गयी अपने पति और इन मुसलमान के साथ। लेकिन इन सब के बीच दिल्ली में बहुत बड़ा दंगा हुआ, बहुत ही बड़ा दंगा क्योंकि बहुत से हिंदूओं और सिखों को पंजाब में मार दिया गया था। इसका असर दिल्ली में हुआ और उन्होंने यहाँ सभी मुसलमानों को मारना प्रारम्भ कर दिया।                                

तो तीन चार सिख लोग और एक या फिर दो हिन्दू हमारे घर आए और कहने लगे, “हमें बताया गया है आपके साथ यहाँ एक मुसलमान रह रहा है”। हमने कहा, “नहीं, हमारे यहाँ कैसे हो सकता है?” वे बोले, “यहाँ एक मुसलमान है। हमें उसे मारना होगा।” हमने कहा “देखिये हमने इतना बड़ा टीका लगाया हुआ है, क्या आप विश्वास कर सकते है कि हमारे घर में एक मुसलमान होगा?” उन्हें लगा की हम वास्तव में कोई असली कट्टर हिन्दू होंगे, आप देखिएगा। तो उन्होंने हम पर विश्वास कर लिया। हमने कहा, “अब देखिये, यदि आपको हमारे घर में जाना है, आपको हमारे मृत शरीर के ऊपर से जाना होगा क्योंकि हम आपको इसकी अनुमति नहीं देंगे”। तो वे काफ़ी भयभीत हो गए। वे चले गए। तो इन सज्जन ने हमारी बाते सुन ली और वे आये और बोले, “मैं आश्चर्यचकित हूँ। आप किस प्रकार अपने जीवन को जोखिम में डाल सकते हो?” हमने कहा, “ऐसा कुछ नहीं कुछ नहीं”। उनका जीवन बच गया।

अब यह सज्जन, यह मुस्लिम सज्जन, एक मशहूर कवि साहिर लुधियानवी बन गए, और यह महिला एक मशहूर कलाकार बन गयी, उनका नाम क्या है? … 

वह जो माँ का अभिनय करती है? हाँ, सचदेव, अचला सचदेव। हमें पता था कि वे बहुत बड़े कलाकार बन गए हैं और यह सब। लेकिन हमने किसी को भी इसके बारे में नहीं बताया। हमने कहा “यदि मान लीजिये उन्हें पता चल गया, हम बंबई मैं है, तो वे बस पागल हो जाएँगे हमारे लिए”, और हमने कहा “हमारे पास इन सब के लिए कोई समय नहीं है”। 

तो, हमने एक फिल्म सेंटर शुरू किया युवा लोगों के लिए, उन्हें कुछ बढ़िया फिल्में देने के लिए। लेकिन यह सब बाद में चलकर एक तमाशे में तबदील हो गया। उन्होंने कभी मेरी बात नहीं सुनी, लेकिन यह जो कुछ भी था। तो उन्होंने कहा, “हमें इन अचला सचदेव को माँ के किरदार के लिए लेना चाहिए”। 

हमने कहा, “ठीक है, लेकिन उन्हें मत बताना की हमने कहा है, हमारा इस सबसे कुछ लेना देना नहीं है”। तो इसे सालों गुजर गए होंगे, हमें लगता है लगभग बारह साल या इतना ही कुछ। तो वे गए और उससे कहा। तो वह बतंगड़ बना रही थी एक अभिनेत्री की तरह। “नहीं, नहीं आप मुझे कितना मेहनताना देने वाले है? मैं मुफ्त में अभिनय नहीं कर सकती। हर कोई फिर मुफ्त के लिए ही कहेगा। तो फिर मैं आपको कैसे मुफ्त में कह सकती हूँ। आपको मुझे साड़ियाँ देनी पड़ेंगी। आपको मुझे इतना पैसा देना होगा। यह सब”। तो उन्होंने कहा ,“ठीक है मुहूरत पर तो आइये कम से कम। मुहूरत पर आइये, शुरुवात में”। बड़ा मुहूरत वह होता है जहाँ आप इसे शुरू करते है। 

तो वह आ गयी और हम भी वही थे। तो उन्होंने हमारी ओर देखा और बस, आपको पता है, उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उन्होंने मुझे बारह वर्षों के बाद देखा है। अश्रुओं से उनकी आंखें सूजने लग गयी, पूरी तरह, वह कुछ बोल न सकी। बस वह आई और मेरी बाँहों में गिर पड़ी और उन्होंने कहा, “आप कहा थी आखिर? इतने दिनों से मैं आपको खोजने का प्रयास कर रही थी”। और फिर उन्होंने बताना शुरू किया मुझे और सब को। फिर साहिर लुधियानवी भी वही थे और उन्होंने कहा, “यह महिला यहाँ कैसे है?” तो उन्होंने कहा “यह इन्हीं का कार्य है”। “हे भगवान, आपने हमें क्यों नहीं बताया? आप देखिये, हम अपना जीवन दे देंगे इनके लिए”। और वे सभी चकित थे, कि ये किस प्रकार बदल गए। “कोई पैसा, कुछ नहीं, मैं पैसा देने जा रहा हूँ इस कार्य के लिए। कोई कुछ नहीं करेगा”। 

अब देखिये, हम एक गृहिणी थे, सिर्फ एक साधारण सी गृहिणी। हमारे पास ऐसे कोई बहुत से अधिकार नहीं है अपने पति की संपत्ति पर या कुछ और पर और हमारे भाई दूसरे वर्चस्व व्यक्ति, दोनों साथ मिलकर बस हमें मार ही देना चाहते थे उस रात, अपने गुस्से और क्रोध के साथ। हमने उन्हें शांत कर दिया। और फिर आपको पता है, जब हमने अपने पति को बताया और अपने भाई को, तो वे हैरान रह गए। हमने कहा, “वे यह ही है जो अब ऐसे बन गए है और इस बदलाव को देखिये, कितना वे …”। और वे बोले, “और नहीं, अब हम किसी भी चैरिटी संस्था को ना नहीं कहेंगे। और यह आखिरी गलती है जो हमने की होगी”। और सम्पूर्ण विचार… कमाने का पैसों का बस धड़ाम से गिर गया। और इन्होंने बहुत सी फिल्मों में काम किया हैं चैरिटी के लिए और यह लुधियानवी इन्होंने भी बहुत कुछ लिखा है चैरिटी के लिए। 

तो एक औरत एक आदमी को परोपकारी व्यक्तित्व का बना सकती है क्योंकि वह स्वयं ही परोपकारी है। उसके पास बहुत सी सुंदर, वह एक कलाकार है। और वह अपने चारों ओर सुंदरता का सृजन कर सकती है, अपने घर गृहस्थी में, अपने परिवार में अपने समाज में। सभी जगह। लेकिन कोई भी महिला पुरुषों की तरह लड़ना नहीं चाहती है। वे संस्था बनाएगी। वे … उसे क्या कहते है …. क्या बनाते है लेबर लोग… हाँ… संघ…संघ। वे संघ बनाना पसंद करेंगे ताकि वे लड़ सके अपने अधिकारों के लिए। 

हम सहमत है कि कुछ आदमी अत्यंत ही क्रूर रहे हैं, कुछ कानून भी अत्यंत क्रूर रहे हैं, यह चीज़, वह चीज़ और यह की उन्हें यह बताया जाना चाहिए। लेकिन यह कोई तरीका नहीं है। एक दूसरा रास्ता है इन आदमियों को सुधारने का, जो औरत को नष्ट करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि औरत की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि “गण” उनके साथ हैं और श्री गणपति उनके साथ हैं। वे कभी भी आदमी का साथ नहीं देंगे यदि व पवित्र है और वे अपने शरीर का प्रदर्शन करने का प्रयत्न नहीं करती है और न ही अपनी सुंदरता का दिखावा करती है और न इससे किसी किस्म की पूंजी बनाने का। 

ऐसी महिला अत्यंत ही शक्तिशाली होती है, अत्यंत शक्तिशाली, और वे अपनी वीरता का प्रदर्शन करती है जब किसी पर बन आती है, जैसे हमारे वहाँ झांसी की रानी है। वे एक सामान्य गृहिणी थी। वे अंग्रेजों से लड़ी। अंग्रेज़ भी उनकी वीरता को देखकर चकित थे और उन्होंने कहा की हमें  झाँसी तो मिल गयी, ठीक है, लेकिन यश तो झाँसी की रानी का ही है। इस प्रकार के बहुत से है , हमारे वहाँ नूरजहाँ हुई है, अहिल्या बाई हुई है। हमारे वहाँ भारत में ऐसी बहुत सी महान महिलाएँ हुई हैं, इन ..[असपष्ट].. के कारण। पद्मिनी हमारे वहाँ हुई है, चाँद बीबी। ऐसी बहुत सी महिलाएँ हुई हैं जिनका हम वर्णन कर सकते हैं जो बहुत ही महान महिलाएँ थी और जो गृहिणी थी। 

तो औरत के गुण इस तरह से है कि जैसे धरती माँ की संभावित शक्ति या किसी भी ऊर्जा का क्षमता। जैसी विद्युत की अपनी संभावित ऊर्जा होती है कहीं ओर। आप यहाँ इन लाइटों को देख रहें हैं कोई फर्क नहीं पड़ता इससे कि एक लाइट है या दो लाइट हैं, लेकिन क्षमता महत्वपूर्ण है। तो इसलिए आपको समझना होगा की हम क्षमता हैं और अपनी इस क्षमता को संरक्षित रखने के लिए हमारे अंदर गरिमा होनी चाहिए, सम्मान होना चाहिए, नैतिकता होनी चाहिए।   

अब आदमी को औरत का अवश्य सम्मान करना चाहिए यदि वे इन जैसी ही है। अब आदमी एक और बेवकूफ़ वस्तु है, क्योंकि वे ऐसी महिला का सम्मान नहीं करेंगे जो उन्हें प्रेम करती हैं ,जो पतिव्रता हैं, जो अच्छी हैं, जो चाहती हैं कि वे सामूहिक बने, जो चाहती हैं कि वे प्रदान करें, वे परोपकारी बने, जो चाहती हैं कि सहजयोग का प्रसार हो और वह जो चाहती है कि उसका पति प्रसन्न व आनंद में रहे और यह कि वह भी सहजयोग में आए। बजाय इसके कि वे किसी हास्यास्पद मूर्ख महिला के पीछे भागे। क्या रखा है इतना आकर्षित होने में किसी भूत बाधित महिला के प्रति, अवश्य ही कोई भूत होंगे उनके अंदर, हमें नहीं पता, जिस प्रकार से वे उनकी ओर आकर्षित होते हैं। आदमियों की इन सभी अभद्रता के परिणामस्वरूप औरतें बहुत ही असुरक्षित हो गयी हैं और वे असुरक्षित महसूस करती हैं। इसके परिणामस्वरूप आदमी कष्ट उठाता है और औरत कष्ट उठाती है। एक आदमी जो अपनी पत्नी की उपेक्षा करता है और इस प्रकार से बर्ताव करता है उसे इसके फलस्वरूप ब्लड कैंसर होगा। और जो महिला इस प्रकार से बर्ताव करती है, इस तरीके से और यदि वह अपने पति को प्रताड़ित करती है, तो उसे अवश्य अस्थमा होगा या बहुत ही गंभीर किस्म का सिरोसिस, मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो सकता है, या लकवा मार सकता है, या सम्पूर्ण शरीर का निर्जलीकरण हो सकता है। 

क्योंकि बाई नाभि अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, यदि बाई नाभि को अति व्यस्त कर दिया गया, जैसे कि आप भागे जा रहे हैं, कूदे जा रहे हैं और अति व्यस्तता के कारण तो बाई नाभि अति व्यस्त हो जाती है और आप ब्लड कैंसर विकसित कर लेते है। हमने हमेशा देखा है की जो महिलाएँ दुबली पतली हैं उनके पति घबराएँ हुए रहते है, क्यों? क्योंकि पत्नी हर समय उसे दौड़ाती रहती है ऊपर और नीचे। “यह करो, वह करो, तुम मेरे लिए यह वस्तु नहीं लेकर आए? मैंने तुम्हें कोका-कोला लाने को कहा था तुम वह लेकर नहीं आए? तुमने यह नहीं किया! ”जैसे वह ही गुनहगार है हर समय। और आदमी हर समय उछलते रहता है, उछलता है। इस उछल कूद से वह कुछ न कुछ पाता है और वह (औरत) अपने अत्याचारों के लिए कुछ न कुछ पाती है।   

कोई प्रेम नहीं है, कोई आनंद नहीं है, कोई प्रसन्नता नहीं है। यह तथाकथित शारीरिक आकृति का पागलपन, जो कि अब घट रहा है, शुक्र है परमात्मा का, जो कि अब अमरीका से आ रहा है, यह घट रहा है। यह आकृति को लेकर पागलपन आपको हास्यास्पद बनाता है। औरत को एक स्थिर महिला बनना चाहिए। उन्हें गृहस्थ बनना चाहिए, यह कि ‘वह जो घर गृहस्थी में स्थित हो जाती है’, अपनी घर गृहस्थी से संतुष्ट रहती है। यदि वह हर समय दौड़ती ही रहे, वह घर में रहना नहीं चाहती है, तो वह एक गृहिणी नहीं है, लेकिन वह एक नौकरानी है। एक कहावत है कि एक महिला थी जो कि एक नौकरानी थी, और फिर वह एक गृहिणी बना दी गयी लेकिन वह अपना दौड़ना फिरना न बंद कर पायी क्योंकि वह एक नौकरानी थी। वह घर-गृहस्थी में स्थिर नहीं हो सकती है। 

अब घर गृहस्थी किसके लिए है, यह ना ही सिर्फ उसके लिए है, नहीं, न उसके पति के लिए है , नहीं, न बच्चों के लिए है बल्कि दूसरों के स्वागत के लिए है। जैसे धरती माँ ने आपके लिए यह इतनी सारी सुंदर वस्तु बिखेर देती है कि आप आए और बैठे और आनंद ले सके। लेकिन एक बहुत ही सामान्य बात, जो कि सहजयोग में भी है, कि हम देखते है कि लोग विवाह के बाद पूरी तरह से एक दूसरे में लीन हो जाते हैं और सहजयोग को खो देते हैं। फिर उनके बच्चे भुगतते हैं। उनके बच्चे नख़रेबाज़, हास्यास्पद, अवज्ञाकारी, अत्याचारी बन जाते हैं। उन्हें कुछ शारीरिक समस्याएँ भी होती हैं– यह एक दंड है। यह नहीं कि हमने दंड दिया है, लेकिन यह आपका स्वयं का स्वभाव है जो दंड देता है। जैसे कि आप अपना हाथ यदि आग में डाल दे, यह जल जाएगा। मतलब की कौन दंड दे रहा? आप स्वयं खुद को दंड दे रहे हैं! फिर बच्चे हास्यास्पद बन जाते हैं। सिर्फ अपने परिवार के लिए, सिर्फ अपने खाने के लिए, सिर्फ अपनी घर गृहस्थी के लिए, यह स्वार्थपरता, यदि यह रेंगकर आदमी तक पहुँच गयी, तब परमात्मा ही बचाए उस परिवार को। यदि यह एक महिला है, तो ठीक है, कम से कम थोड़ा सा ही लेकिन यदि आदमी है तो यह बेकार है, कि मेरे पास एक घर हो, मेरे पास एक नौकरी हो, कि मैं अपने बच्चों की देखभाल करूँ, यह मेरे परिवार के लिए है। 

हमारा परिवार एक आदमी एक औरत का नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व हमारा परिवार है। हम सिर्फ स्वयं से नहीं हैं, और यदि आप स्वच्छंद हो जाए, और यदि आप अलग हो जाए, हम आपको एक बात अवश्य कहेंगे और आज आपको चेतावनी दे रहे है कि जो लोग स्वयं को अलग करने का प्रयास करेंगे, एक दिन आएगा जब उन्हें भयावह रोग हो जाएंगे, सहजयोग को दोष मत दीजिएगा। सहजयोग का स्वयं एक बहुत ही सुंदर जगत है परमात्मा के साम्राज्य का। लेकिन परमात्मा के साम्राज्य में, आपको सामूहिक होना होगा। लेकिन एक बुरी पत्नी समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है क्योंकि वह ….. और समस्या उत्पन्न करेगी तथा वह लोगों का एक समूह बनाएगी, औरतों का एक समूह, वह डोलती हुई जाएगी अपने भूतों के साथ सभी तक। और या शायद वह अपनी शिक्षा को लेकर बहुत ही सतर्क है या अपने पद को लेकर सचेत है या अपने पैसे को लेकर और यह सब। फिर वह प्रयास करेगी अपने पति को अलग थलक रखने का। ऐसे लोगों को क़ीमत अदा करनी पड़ेगी जो भी उन्होंने किया हैं, उसकी। नहीं, इसलिए कि यह दंड परमात्मा ने दिया है। 

तो गृहलक्ष्मी तत्व सहजयोग में अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे लोग जिन्हें सहजयोग में आने के बाद समस्याएँ आई हैं, उनमें से ज़्यादातर ने अपने गृहलक्ष्मी तत्व की उपेक्षा की है। क्योंकि यदि गृहलक्ष्मी गड़बड़ा जाए तो मध्य हृदय पकड़ जाता है। वे महिलाएँ जिन्होंने ऐसी चालाकियाँ की हैं , उन्हें यह सब तुरंत त्याग देना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही अशोभनीय है। कोई भी ऐसी महिला का सम्मान नहीं करेगा। यह एकदम सच है, नेता की पत्नियों और नेता के साथ। 

एक लीडर की पत्नी या नेतृत्व न्यूनतम से न्यूनतम है न्यूनतम है, इस तथाकथित पद का, बहुत ही तुच्छ। जो आपने प्राप्त किया है वह इससे कहीं अधिक ऊपर है। यदि आप एक संत से कहे राजा बनने के लिए। तो वह कहेगा, क्या? तुम सागर को एक लोटे में डालना चाहते हो? यह न्यूनतम से न्यूनतम है। यह निम्नतम का भी निम्नतम है। जो यह सोचते है कि उनका जीवन एक सेवा है वे भी एक प्रकार के मूर्ख लोग हैं। उनका जीवन आनंद है, सेवा नहीं। लेकिन यह सेवा अपने आप में आनंद है। लेकिन यदि आप सिर्फ सेवा तक ही रहे, “ओह, मैं त्याग कर रहा हूँ, यह मेरी तपस्या है!” समाप्त! फिर आप एक तपस्वी जैसे हो जाते है, फली की डाल के जैसे दुबले पतले। आप का इस्तेमाल क्रास में भी किया जा सकता है! 

तो, सहजयोग में यह आनंद है, लेकिन जब तक आपके पास वह तत्व न हो आनंद का प्रत्येक चीज़ में, यह आनंद नहीं हो सकता है। यदि आप गन्ने में से उसका तत्व ही निकाल दे और जिसे आप क्या कहते है गन्ने का बांस, फिर क्या बचा? उसी प्रकार, सभी तथाकथित ये सर्विस और सेवा और तपस्या और यह सब इनमें कोई भी मिठास नहीं है, समाप्त! तो इन सभी का तत्व है मिठास और यह औरत द्वारा उत्पन्न होती है। लेकिन वे अत्यंत ही कठोर हैं। “इसे खराब मत करो, इसे अच्छे से रखो, वह अच्छे से रखो”। पति इस प्रकार से घर आता है कि जैसे वह कोई अपराधी हो, आपको पता है। उसे चाइना बाज़ार में किसी एक बैल के जैसे होना पड़ता है, उसे होना ही पड़ता है। यह एक प्रकार से बढ़िया बात है। यह अच्छा है, कि कैसे वह कुछ भी नहीं जानता है, यह आपके लिए और भी बढ़िया है। लेकिन उसे हर समय दास बनाए रखना, “यह करो! तुमने मेरे लिए यह नहीं किया! मेरे लिए यह करो!”, यह गृहिणी का कार्य नहीं है। उसका कार्य धरती माँ के जैसे है। क्या वह कोई शिकायत करती है? कुछ नहीं। वह आपको सब कुछ प्रदान करती हैं, इतना कुछ, आश्रय देती हैं [असपष्ट]। कितना गौरव, क्या शक्तियाँ उनके पास हैं। वह किसी की क्या परवाह करेगी कि उसे कोई कुछ दे रहा है? आप चकित रह जाएँगे यदि में आज आपको बताऊँ, कि आज तक, कि कल तक, मैंने कभी भी अपने पति से अपने लिए कुछ भी खरीदने के लिए नहीं कहा। पहली बार हमने अपने लिए उनसे एक कैमरा खरीदने के लिए कहा, और आप परिणाम देख सकते हैं, शाम को उन्होंने क्या कहा था। सबसे कम अपेक्षित। जीवन काल में कभी नहीं। वे कहा करते कि, “आपको मुझे अवश्य बताना चाहिए कि आपको क्या चाहिए”। पहली बार, हमने कुछ कहा और देखिये उसका प्रभाव। क्योंकि हमने कभी भी उनसे नहीं कहा! 

तो इसलिए ऐसी महिला को आत्म संतुष्ट होना चाहिए, स्वयं में संतुष्ट क्योंकि उसे प्रदान करना है। ऐसा व्यक्ति जिसे प्रदान करना हो, वह किस प्रकार मांग कर सकती है? उसे प्रेम प्रदान करना है क्योंकि वह स्वयं प्रेम है। उसे सभी सेवाएँ देनी है, उसे सभी संपत्ति देनी है, उसे शांत रहना होगा। क्या जिम्मेदारी है, हम आपको बता रहे है, क्या जिम्मेदारी है! एक प्रधानमंत्री से भी अधिक, किसी राजा से भी अधिक या किसी अन्य से कहीं अधिक है एक महिला की ज़िम्मेदारी और उसे इस पर गर्व करना चाहिए, कि “ऐसी ज़िम्मेदारी मुझ पर आई है”।   

एक गृहिणी की कहीं अधिक ज़िम्मेदारी है एक सहजयोग के अगुवा से। लेकिन अगुवा की पत्नियाँ भयावह हो सकती हैं क्योंकि वे सोचती हैं कि वे लीडर बन गयी हैं। मतलब यह निम्नतम का भी निम्नतम है। 

मतलब यह ऐसा है कि, हमने कहा, सागर एक छोटे से लोटे में समा जाए। और उनका व्यवहार इस कदर हास्यास्पद और बेहूदा हो जाता हैं कि हम हैरान रह जाते हैं। हमारा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ हमारे वहाँ सौ लोग एक साथ रहा करते थे और वे सभी हमें पसंद करते थे। यदि हम लखनऊ में कहीं चले जाए, तो वे सभी हमसे मिलने आयेंगे लेकिन यदि हमारे पति जाये, कोई उनसे मिलने नहीं आएगा। वह हमेशा शिकायत करते है। वह संबंधी है, हम कोई संबंधी नहीं है और वे आते हैं, और हमसे मिलते है, उनसे नहीं। यदि हमने उन्हें प्रेम प्रदान नहीं किया होता, यदि हमने उन्हें वह सब प्रदान न किया होता जो उन्हें चाहिए था तो वे हमारे पास नहीं आते। 

तो वे संरक्षक हैं, संरक्षक दूसरों के। उन्हें स्वयं के लिए वस्तुएँ संरक्षित नहीं करनी चाहिए। और हमारे साथ बहुत सी मूर्ख महिलाएँ हैं, हम आपको बताएंगे, बहुत सी मूर्ख महिलाएँ – हम उन्हें बुद्धू कहते है हिन्दी में, बुद्धू – क्योंकि वे नहीं जानती हैं कि उन्हें क्या शक्तियाँ प्राप्त हैं। उन्हें नहीं पता कि उनकी क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं। हम एक उदाहरण है उनके समक्ष। 

और यह सबसे बड़ी समस्या है हमारे साथ कि व्यावहारिकता में हमें लगता है, साठ प्रतिशत लीडर्स की भयानक पत्नियाँ हैं। हम अवश्य कहेंगे, भयानक। और सहजयोग ‘ढप’ हो जाता है इनके साथ। वे एक आश्रम में नहीं रह सकते, उनका अपना भोजन होगा, पति को अवश्य देखना होगा कि उन्होंने भोजन कर लिया हैं। लेकिन ये हैं जिन्हें सब को खिलाना हैं, सभी का ध्यान रखा जाना चाहिए और अंत में इन्हें खाना चाहिए। सभी को बिस्तर मिल गया हैं, उन्हें देखना चाहिए कि सभी अब सो रहे हैं, उन्हें सभी बच्चों को ढकना चाहिए, सब कुछ, फिर ही उन्हें सोना चाहिए। लेकिन अब, वे बैठ जायेंगी, वे छोटी माताजी बन चुकी हैं या बड़ी माताजी सी। “मुझे यह वस्तु लाकर दो, मुझे वह लाकर दो, सिर्फ यह करो, वह करो”। उन्हें नहीं पता कि कैसे भोजन बनाना है, उनमें से ज़्यादातर।  

प्रत्येक लीडर की पत्नी को भोजन बनाना चाहिए और सीखना चाहिए भोजन बनाना। यह अनिवार्य है अब। उन्हें भोजन बनाना होगा। और दिल से। वे सक्षम होने चाहिए भोजन बनाने में और देना चाहिए प्रेम से दूसरों को। यह न्यूनतम है अन्नपूर्णा का। और पति को भी दोष नहीं निकालने चाहिए उनमें। शुरुवात में वे गलतियाँ कर सकती हैं तो उन्हें प्रोत्साहित करें। प्रोत्साहित करें उनके गुणों को, प्रोत्साहित करें उनकी अच्छाइओं को, प्रोत्साहित करें उनकी खूबियों को। 

और हमने देखा है, कुछ बहुत ही बढ़िया महिलाओं को जो बहुत ही सक्रिय जीवन जी रही हैं सहजयोग में। विवाह के पश्चात वे खो जाती हैं। पति भी होने को सहजयोगी है – खो गए। कभी कभार वे दिखेंगे, कभी यदि हम वहाँ हो तो वे आएंगे, अन्यथा वे वहाँ नहीं होंगे। आज हम आरनौड से पूछ रहे थे, उसने हमें बताया कि उनके जैसे और भी बहुत सारे यहाँ हैं। इसका अर्थ है कि जरूर कुछ गड़बड़ी है पतियों के साथ क्योंकि विवाह से पूर्व वे बढ़िया थी।  

तो यह कितना महत्वपूर्ण है, गृहलक्ष्मी तत्व हमारे अंदर, ताकि हम एकसाथ रह सके, ताकि हम एकसाथ विकसित हो सके। उस घनिष्ठता को महसूस करने में, हर समय उस एकाकारिता को जो हमारे अंदर स्थित है। तो कल, जैसे की हमने आपसे कहा था, कि हम आपको बताएंगे राग के विषय में जो हमारे पास है। रा मतलब शक्ति, संस्कृत भाषा में ‘ग, गेयती’ अर्थात ‘जो भेदन करता है’, ‘जो सब में चला जाता है’, यह अलौकिक है, आकाशीय गुण। आप कुछ भी आकाश में डालिए, आप उसे कहीं भी प्राप्त कर सकते है। 

तो राग, वह ऊर्जा है जो आकाश में जाती है और आपकी आत्मा को स्पर्श करती है। वह राग है। और यह राग, हम कहेंगे किसी प्रकार से गृहिणी के समान है। उदाहरण के लिए यदि आप एक सैन्य बैंड के साथ खड़े हो तो आप तंग हो जाइएगा, “लेफ्ट राइट, लेफ्ट राइट, लेफ्ट राइट”। लेकिन एक सुंदर धुन वह एक मधुर चीज़ है, मधुर गीत। और यह मधुर धुन स्वयं में संकेत है सुंदरता का। जिस प्रकार से एक गृहिणी अपने घर को सजाती है, वह हर किसी को शांति प्रदान करती है, उन्हें प्रसन्न रखती है। फिर वह हर किसी की देखभाल करती है। हर किसी को पता है कि वह वहाँ खड़ी है। कल्पना करें, आधुनिक तरीका होगा कि आप कुछ लोगों को बुलाती है अपने बच्चे के जन्मदिन के केक के लिए और आप उस केक को सबसे पहले काटती है क्योंकि आप गृहिणी है। यह कैसा दिखेगा? यह कितना बेतुका है, हम आपको बता रहे है। जिस प्रकार से गृहिणी हमेशा आगे आ जाती है हर किसी से पहले। उन्हें पीछे होना चाहिए क्योंकि उन्हें देखरेख करनी हैं। उन सब का ध्यान रखिए, और यही एक राग भी होता है। यह आपकी सभी दुर्बलताओं का ध्यान रखता है। मान लीजिए कि एक व्यक्ति बहुत ही उदास और परेशान है, दफ्तर से आता से, बैठ जाता है, और एक राग चलाता है। यह आपको शांत कर देगा । यह आपको स्थिर कर देता है। जैसे लोग घर आते हैं, पाँच दिनों के लिए, ऐसे रहते हैं, हमें नहीं पता, क्या कहना चाहिए, यहाँ तक की होटल भी नहीं और एक टेंट जैसी किसी चीज़ में रहते हैं और छठे दिन वे बाहर होंगे समुद्र में या वे होटल में जाकर रहेंगे। कोई भी घर में रहना नहीं चाहता है क्योंकि कोई भी गृहलक्ष्मी तत्व नहीं है उन दोनों के मध्य। लेकिन राग को चाहिए की आप बैठ जाए, शांत हो जाए। जब तक कि आप शांत न हो जाए, तब तक आप राग का आनंद नहीं उठा सकते। कल्पना करें कोई राग सुन रहा है जब वह कूद है। तो इसलिए आपको शांत स्थिर हो जाना चाहिए और यह शांति स्थिरता लाना ही एक महिला का कार्य है जो कि एक गृहिणी है और आदमी को कार्य करना है, शांत स्थिर हो जाना है। जैसे कि मैंने आपको कई बार बताया है कि किस प्रकार आपकी बाई नाभि गड़बड़ा जाती है, इस आधुनिक समय में और भी अधिक, और कई बच्चे भी जन्म लेते हैं ऐसी औरतों से जो अति व्यस्त हैं। क्या यह पत्नी है, सामान्यतः भारत में आप देखेंगे कि पहले ही पति जग जाता है, स्नान करता है, हर समय उसकी पत्नी उसके साथ नहीं होगी। वह उसके लिए भोजन बना रही होगी, वह बच्चों की देखभाल कर रही होगी। हर समय पति से ही चिपके रहना बोरियत का संकेत है। पति उब जाता है, पत्नी उब जाती है, और फिर उनका तलाक हो जाता है। तो इसलिए अन्य रुचियाँ भी अवश्य होनी चाहिए जैसे बच्चों की देखभाल करना, घर गृहस्थी, सहजयोग, इस प्रकार की और चीज़ें। फिर वह स्नान के पश्चात आता है, वह बैठेगा, जमीन पर बैठता है, भारत में। अब हम मेज़ पर बैठ रहे है, ठीक है, कम से कम मेज़ पर तो बैठिए, मेज़ पर नहीं, लेकिन कुर्सियों पर। फिर वह उसे उस समय यह नहीं कहती कि, “तुमने यह ऐसे क्यों किया?” या “वह औरत झगड़ रही थी ”  या मैं एक दूसरी औरत से मिली थी और वह मुझे बता रही थी कि तुम यह और तुम वह हो”। नहीं ! वह कहेगी,“ वह अपना भोजन कर ले”। इसलिए भारत में यदि पति को अपना गुस्सा दिखाना हो तो वह घर में खाना नहीं खाएगा या वह अपने नीचे पहनने के वस्त्र स्वयं धोएगा। तो इस प्रकार से वह अपना क्रोध प्रकट करते हैं। तो फिर वह पंखा करती है धीरे से पति को और उसे सुंदर बाते बताती हैं, आप देखेंगे, “आज आपको क्या पता है? मेरा बेटा जगकर और यह बोला, मैं अपने पिता से बहुत प्रेम करता हूँ”। वह कहेगा “वास्तव में? ” “हाँ, हाँ। उसने कहा, उसने ऐसा कहा”। और पति जानता भी है कि वह झूठ बोल रहीं है, लेकिन आप देखिएगा कि सभी अच्छी बाते आपको पता है और “मुझे लगता है बेहतर होगा कि अब आपकी माँ काफी बेहतर हो, मुझे लगता है कि मुझे जाना चाहिए और आपकी माँ की देखभाल करनी चाहिए। और आपकी बहन आ रही है। तो मुझे लगता है कि आप उसके लिए साड़ी खरीद रहे है”। ऐसी सभी अच्छी अच्छी बाते वह उससे करती है। तो वह अपना भोजन करता है बढ़िया से, फिर जाकर हाथ धोता है और एक बैल गाड़ी में चला जाता है, कार में नहीं जहाँ हर समय जाम लगा रहता है। ठीक है, अब बैल गाड़ी समाप्त हो चुकी हैं, पंखा समाप्त हो चुका है। आपको काफी तेज़ होना पड़ता है। जीवन अब तेज़ हो चुका है। इन सब तेज़ चीज़ में, जैसे मैंने आपको पहले भी बताया है कि, पहिये की परिधि पर आपके पास गति है लेकिन धुरी पर यह नहीं है। तो इसलिए सहजयोगियों को धुरी पर होना चाहिए, और इसलिए पति और पत्नी, रथ के बाए और दाहिने हिस्से को धुरी पर होना होगा और बायाँ बायाँ ही है और दाहिना दाहिना ही है।  

अब महिला हमेशा ज्यादा समय लेती है तैयार होने में। हम नहीं, हम कम लेते है अपने पति से, बहुत ही कम अपने पति से, लेकिन सामान्यतः। तो, यह उनकी आदत है। इसे भूल जाइए। अब महिलाओं की स्वयं की आदतें हैं। वे महिला हैं। महिला, महिला ही रहेंगी, पुरुष, पुरुष ही रहेंगे। आदमी अवश्य ही अपनी घड़ियों को दस मर्तबा देखेंगे। महिलाएँ हो सकता है कि इसे एक बार देखे या फिर उनकी घड़ियाँ खो गयी हो या फिर खराब हो गयी हो यदि वे वास्तव में महिला हैं। वे कूदती नहीं हैं पुरुषों की तरह, वे भिन्न प्रकार की हैं। लेकिन वे महिला हैं और आप पुरुष हैं, और परमात्मा ने आदमी और औरत को बनाया है। यदि एक उभय लिंगी को बनाना होता, तो वे उभय लिंगी बनाते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया । तो इसलिए आपको स्वीकार करना चाहिए जिस लिंग में आपका जन्म हुआ है, पूरी शोभा व सुंदरता और गरिमा के साथ, दोनों को। और आपको यह पता होना चाहिए कि यह महिलाओं का दल है!

अब भारत में इस प्रकार की चीज़ें हैं, आपको पता है, हमारा विवाह हुआ था एक परिवार में, बहुत ही रुणिवादी जहाँ वे अपने चेहरे तक को ढंकते थे और यह सब। तो, एक दिन, एक कलेक्टर, जो कि हमारे पति के मित्र थे, तो उन्होंने हमारे बड़े भाई साहब से कहा, क्यों न हमारे मित्र की पत्नी आकर और हमसे मिल ले। तो उन्होंने कहा, “बेशक ! बेशक ! ”तो सिर्फ उनके लिए यह आसान बनाने के लिए उन्होंने दफ्तर से छुट्टी ली और किसी दूसरे शहर में गायब हो गए और अपनी पत्नी से कहा कि, “देखो वे चली गयी है और ये अब कलेक्टर है”। देखिये , कितना सुंदर है यह। कितना सुंदर था यह, और हमने कभी महसूस नहीं किया कि वे हम पर हावी हो रहे क्योंकि आखिरकार यह उस परिवार की व्यवस्था थी। ठीक है, यह ठीक है। लेकिन इसके लिए आपको क्या चाहिए शुद्ध बुद्धि। यदि पति मंदबुद्धि है तो वह अपनी पत्नी को नीचा दिखाएगा। यदि पत्नी मंदबुद्धि है तो वह अपने पति को नीचा दिखाएगी। यदि महिला बहुत ही अकलबीर है, बढ़िया से बात करती है और आपको पता है कि वह जानती है कि किस प्रकार से बातचीत करनी है और लोगों को प्रभावित करना है इसका यह बिलकुल अर्थ नहीं कि वह बहुत ही बुद्धिवान है। हम उस व्यक्ति को सबसे बुद्धिवान कहेंगे जो उदारता, उत्थान और अंतिम लक्ष्य को देखता है। ऐसा व्यक्ति सबसे संवेदनशील होता है, सबसे बुद्धिवान होता है। बाकी सभी बुद्धिमत्ता अविद्या है, व्यर्थ है। अब, इस विषय पर हमें लगता है कि हम एक किताब लिख सकते है, तो, बेहतर है कि इसे किताब के लिए ही छोड़ दिया जाए, और आज हम सब पूजा करें। 

परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। कोई प्रश्न ? 

इसका अर्थ है, हम कुछ और धन खर्च करेंगे? हमें नहीं पता, कोई संभावना नहीं! हमें नहीं पता कि कब खर्च करेंगे। हमें खर्च करना पसंद है, हमारा मतलब है कि सभी को खर्च करना चाहिए। इसी के लिए तो पैसा है। दूसरों को अवश्य देना चाहिए, आप देखिये। वस्तु क्यों है यहाँ। वस्तु प्रदान करने के लिए है दूसरों को। बस आनंद ले दूसरों को देने में। कितना आनंदमय है, कुछ प्रदान करना दूसरों को।