Talk to Sahaja Yogis, Value Systems Ganapatipule (भारत)

हिन्दी (Hindi) अभी जो मैने बातचीत की थी उसका सारांश ये है की जब हम मनुष्यता के रूप से अपनी ज़िंदगी बसर करते है तब हमारे अंदर मनुष्यता नहीं रह जाती हम सिर्फ़ अपनी संपदा के बारे में सोचतें हैं और मनुष्यता की जो संपदा है उसे नही सोचतें हैं | जिस वक़्त हम सहज योग में उतर आते है तभी हमारे में पहली मर्तबा वो समर्थता आ जाती है की हम मनुष्यता को अपनाएँ | मनुष्यता से बढ़कर और कोई सी भी चीज़ नहीं ये हमारे समझ में आ जाती है और समझ में आने का मतलब है की वो हमारे जीवन में ही उतरने लग जाती है | जब तक हम मनुष्यता के रूप को और उसके मधुर स्वाद को चखतें नहीं तब तक मनुष्य अपने ही एक आवरण में, अपने ही एक सीमित जीवन में ही आनंदित रहता है, लेकिन जितने भी संसार में बड़े-बड़े लोग हो गये हैं, जिनके नाम हैं और जिनको हमलोग आज भी पूज्‍यनीय मानते हैं ये सब मनुष्यता के ही भोक्ते थे और उसी का आनंद इन्होने उठाया | सहज योग के बाद आप भी इसका आनंद उठा सकते हैं, क्यूँकी इसके बाद आप आत्मा स्वरूप हो जाते हैं, और आत्मा जो है ये सार्वजनिक है, ये अपने में ही सीमित नही है, ये सर्वजन्य में, सारी सृष्टि में सब  दूर इस तरह से अगोचर है, लेकिन हमेशा विचरण करते रहता है और उसका जो एक प्रभाव है हमारे अंदर वो सबसे बड़ा ये है की हमें भी उसी में आनंद आता Read More …