Birthday Puja: Introspection

New Delhi (भारत)

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जन्मदिवस पूजा

दिल्ली,

१९ मार्च, १९८९ 

सहजयोग के काम में व्यस्त न जाने कैसे समय बीत जाता है। अब करिबन अठारह साल से सहजयोग कर रहे हैं और उसकी प्रगती अब काफी हो रही है। आपने देखा किस तरह से इसकी प्रगती बढ़ रही है। अब जन्मदिन के दिन अब हमारे तो आपकी सबकी स्तुति करनी चाहिए और सब अच्छा ही कहना चाहिए। लेकिन एक ही बात मुझे जो समझ में आती है, जो कहनी चाहिए वो है कि अपनी गहराई को बढ़ाना है। अपनी गहराई को बढ़ाना बहुत जरुरी है और ये गहराई हमारे अन्दर है, कहीं ढूँढने नहीं जाना है, अपने ही अन्दर बस, ये गहराई है। लेकिन जब हम गहराई को बढ़ाते हैं तो ये देखना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। इसको पहले जान लेना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। और उसे जानने के लिए एक तरीका है, सहज सरल तरीका है कि अपनी ओर दृष्टि करें। जैसे कि हमारा व्यवहार कैसा है?  हम क्या करते हैं?  हम किस तरह से अपने मन में विचार लाते हैं?  हमारे तौर-तरीके कैसे हैं?  हम अपने को कहाँ तक सीमित रखते हैं। 

जैसे शुरुआत में जब दिल्ली में काम शुरू किया तो लोगों के तो अन्दाज ही और थे।  मैं तो एकदम सकुचा गयी थी, क्योंकि उस वक्त किसी को कुछ मालूम ही नहीं था पूजा के बारे में। सब प्लास्टिक के डिब्बियों में सामान-वामान लेकर के सब लोग पहुँचे तो मेरी तो हालात ही खराब हो गयी। मैंने कहा कि अब तो इनका क्या होगा, बिचारों का। ये तो अज्ञानी हैं, इनको तो कुछ पता ही नहीं है। प्लास्टिक में कुमकुम लेकर आ गए हैं। और घर का ही लोटा उठा लायें हैं पैर धोने के लिए, तो बड़ी घबराहट हुई मुझे। मैं तो एकदम, मेरा सारा बदन  ही एकदम सकुचा गया। मैं रोके हुए थी सबको कि भई ठण्डे रहो सभी, नहीं तो हनुमानजी कहीं बिगड़ न जाए। बस कहीं गणेशजी का गुस्सा शुरु हो गया तो न जाने क्या दिल्ली वालों का हाल होगा! मेरे समझ में नहीं आया कि कैसे कहूँ कि भई प्लास्टिक से पूजा नहीं होती है। जिस घर में चोरी हुई, जिस घर में पूजा हुई। उसके वहाँ पर कुछ-कुछ चीजें रखी हुई थी, बिचारे महोदय बड़े अच्छे थे, उन्होंने हमें जगह दी, उनकी चीज़ें ही गायब गयी। पूजा के बाद सब लोग कुछ-कुछ उठाकर चल दिये, तो इससे शुरुआत हुई। उसके बाद उन्होंने कहा कि साहब मैं तो अपने यहाँ तो नहीं दे सकता हूँ, आपको चाहिए तो आप हमारे कम्पाऊण्ड में कर लीजिए पूजा। लेकिन कम्पाऊण्ड से वो घर में न आयें। पानी-वानी का सब बाहर इन्तजाम है।  तो मुझे तो जरा वैसे लगा, ये तो बड़ा अपमान है किसी तरह से। इस प्रकार यहाँ सहजयोग शुरु हुआ। और उस वक्त दुनिया भर के बीमार लोग, हमारे पास। मेरे तो सबेरे से शाम तक हाथ दुःख जाते थे। और सबको यही फिकर मेरा लड़का ठीक नहीं है, मेरी लड़की ठीक नहीं है। मेरा तो बाप ठीक नहीं है, मेरी तो माँ ठीक नहीं है।  दुनिया भर के मरीज़ खड़े कर दिये। सबेरे से शाम तक यही काम! तो इसके बाद हमारे भाईसाहब के घर में शुरु हुआ। वहाँ भी यही, मेरी तो जान खा जाये कि मेरे इसको ये हो गया, मेरे इसको वो हो गया, इसे तो देखना ही चाहिए, ऐसे कैसे नहीं आप नहीं देख रहे हैं, ये नहीं, वो नहीं । अब चार बज जाएं मुझे खाने को नहीं मिला तो भी वो जान को लग जाए। उसके बाद टैलिफोन पे टैलिफोन, टैलिफोन पे टैलिफोन कि नहीं मुझे तो माताजी से बात करनी ही है। जैसे कोई सबका एकदम मेरे ऊपर अधिकार ही है, पूरी तरह से। तो उसके बाद जो फॉरिनर्स आने शुरु हुए तो उसमें भी बड़ी हालत खराब कर दी हमारी, यहाँ। एक तो बीमारी से मैं बिल्कुल तंग आ गयी थी | जिसको देखो तो ये मिनस्टर आ रहा है, तो वो मिनस्टर आ रहा है, ये आ रहा है। सब लोग समझते हैं कि हम बड़े महत्वपूर्ण हैं, हमारे बच्चे बड़े महत्वपूर्ण हैं, हमारे रिश्तेदार बहुत महत्वपूर्ण हैं। और यहाँ तक कि अस्पताल में तक की विजीट करवायें (अस्पष्ट)….. मैंने कहा यहाँ सहजयोग कैसे होगा ये लोग तो इतने उथले लोग हैं कि इनको तो और कुछ सूझता ही नहीं, इतनी जबरदस्त। 

फिर उसके बाद हमारे भाईसाहब के यहाँ हमारा प्रोग्राम शुरू हुआ। तो वहाँ कुछ उन्होंने बिगड़ना शुरु किया कि तुम लोग सारे स्वार्थी हो, सिर्फ हमारी बहन को इसलिए सताते हो कि बस इसकी बीमारी ठीक करे, उसकी बीमारी ठीक करे। बड़े  स्वार्थी हो, तुम लोग क्या करने वाले हो सहजयोग के लिए। यहाँ एक रहने के लिए तक उनको जगह नहीं, कुछ नहीं,  कुछ नहीं। अपने पैसों से आती हैं बिचारी। सबको भगाया, जितने बीमार थे उन सबको भगाना शुरु किया कि खबरदार अगर कोई बीमारी की बात करे तो उसको नहीं छोडूँगा मैं! जब उन्होंने ये शुरु कर दिया तब संख्या बहुत कम हो गयी, लेकिन कायदे से लोग थोड़े शुरु हो गये। उसके बाद यहाँ परदेसी लोग आयें और शादियाँ-वादियाँ की हमने। तो वो परदेसी लोगों से भी वो ‘तुम हमको फारेन एक्सचेंज दे दो, इतना पैसा हमको दे दो। फिर नहीं तो इसमें ऐसा ठीक हो जाएगा कि हम आ रहे हैं विलायत। हमारे रहने का इन्तजाम कर दो।’ साथ में सारा इन्तजाम काम कराया। फिर मुझसे इतना खाने-पीने का पैसा लिया कि मेरा तो दिवाला ही बज गया। साथ में सारा ही बैंक बैलन्स ही खाली हो गया। फिर मैंने कहा कि अब मैं यहाँ दिल्ली ही नहीं आने वाली हूँ क्योंकि इनसे तो हम एक रूपया भी नहीं ले सकते थे। और जितना खर्चा हुआ कि मैं तो बिल्कुल तंग आ गयी। कि हम लोग यहाँ पर इन दिनों में मैं बात कर रही हूँ आपको इयर (year) ७४-७५, ७४ में आये थे, ७७ से ७९ सब बैंक खाली हो गया,  मैंने कहा करें क्या?  तो जैसे कि पहले ये कि बीमारियाँ ठीक करो, बड़े ये लो लेवल के लोग थे। जो सबकी बिमारियाँ ठीक कराने में लगे रहते थे। इसका मतलब है कि इनको परम का मतलब ही नहीं मालूम है। परम पद में आना ही नहीं चाहते है। जिनकी बीमारियाँ ठीक करनी है उनको अगर कहें कि आप फोटो ले लीजिए (अस्पष्ट)….. और वो तो फोटो लेंगे ही नहीं, वो तो मानते ही नहीं सहजयोग को। तो फिर क्यों उनके लिए परेशान कर रहे हो माँ को।  फिर उससे प्रेशर और करने का कि वो वाइस प्रेसिडन्ट साहब मिलने को आ रहे हैं। मैं तो तंग आ गयी मैंने कहा बाबा फारेनर्स को यहाँ लाने के लिए पैसे नहीं हैं और फिर कुछ और चीज़ शुरु करें। फिर सहजयोगियों की खोपड़ी में कुछ आया और उन्होंने कहा कि अच्छा माँ ये लोग थोड़े बहुत आ जाएं और हमारे घरों में रहें। और उनका जो पैसा बचेगा तो हमको वो पैसे दे देंगे हम दे देंगे, आश्रमों में। हालांकि महाराष्ट्र से यहाँ लोगों के पास पैसे ज़्यादा है। यहाँ सबके पास मोटरें हैं । महाराष्ट्र में एक मोटर मिलना मुश्किल है। एक भी किसी के पास में अॅम्बॅसिडर मोटर नहीं है कि जो मैं उनके मोटर में जाऊं, ये हालत है। लेकिन पैसे की ऐसी तकलीफ कभी किसी को नहीं हुई। यहाँ इतने कंजूस लोग हैं कि मैं तो हैरान हो गयी हूँ कि ये मोटरों में घूमते हैं । सब कुछ चाहिए, जेवर के जेवर, औरतों के कपड़े देखिए, आदमीओं के कपड़े देखिए सब बहुत बढ़िया, लेकिन वहाँ ये बात नहीं कि ये परमात्मा का कार्य है।

तो जिस वक्त हमने काम शुरु किया, तो सब कोई रुपया लाकर देने लगा। मैंने कहा कि ‘नहीं, अभी तो हमने कुछ बनाया नहीं है, ट्रस्ट-वस्ट तो अभी बनाया नहीं। जब ट्रस्ट बनायेंगे तब रुपया देना। हमने कहा कि आपको रुकना होगा, तब तक आप अपना पैसा अपने पास रखिये।  और जिस वक्त हमने कहा ट्रस्ट बन गया, ऐसा कोई भी नहीं था जिसने हजार रुपये से कम दिया हो, ऐसा कोई भी नहीं था। उसी वक्त हजार, दो हजार, चार हजार, पाँच हजार, जिसको जो मिला, जो उन्होंने एकट्ठा किया वो उन्होंने ला कर दिया।  पैसे की तो मुझे कोई जरुरत नहीं है, आप जानते हैं कि सारा पैसा कार्य के लिए ही होना है। उस वक्त हमें यहाँ बड़ी अच्छी जमीन मिल रही थी। काश! हम उस वक्त खरीद लेतें, पर हमने सोचा कि दिल्ली वालों के पैसे से ही होना चाहिए, और दिल्ली वाले करें। अब महाराष्ट्र में जो रुपया एकठ्ठा हुआ उससे जमीने खरीदीं गईं। और सब जगह हमने जमिने खरीद कर रखी हैं। और यहाँ भी जो रुपया बाद में दिया है वो सारा महाराष्ट्र से ही आया हुआ है। इसका मतलब ये नहीं कि आप रुपया बहुत खर्च करें। आप इतने फैशन करते हैं, यहाँ दिल्ली की औरतें बड़ी फेशनेबल हैं। रोज उनको साड़ियाँ चाहिए, कपड़े चाहिए। और अगर किसी को आप नायलॉन की साड़ी दें तो कहते हैं कि हम तो पहनते नहीं, हम तो शिफॉन पहनते हैं। अगर आप इतने रईस हैं तो एकाद कभी कुछ रुपये सहजयोग के लिए तो देना चाहिए। हमने तो बहुत कुछ रुपया दिया है, सहजयोग के लिए। अभी मेरे हजबंड से तो मेरा झगड़ा हो गया था इस बात को लेकर एक बार। वो कहने लगे कि, ‘भई अच्छे से तुमने मेरे बैंक ही पूरी खाली करवा दी। दूसरे गुरु लोग तो बैंक भरते हैं, तुम तो मेरी बैंक खाली करवा दी।’ तो भई ये शर्म की बात है, बहुत शर्म की बात है कि आप लोगों की तरफ से ऐसा मुझे करना पड़ता है। आदमी लोग भी यहाँ कितना खर्चा करते हैं, मैंने देखा है कि मोटर होनी चाहिए, टेलिविजन होना चाहिए। महाराष्ट्र में कितने लोगों के पास टेलिविजन है?  ये होना चाहिए, वो होना चाहिए, पर सहजयोग के लिए पैसा नहीं है। और करीबन पहले प्लाट में, उस जमाने में हमारे पास साढ़े चार लाख रुपये एकठ्ठा हये थे, उस जमाने में।  तब कितने सहजयोगी थे, और वो लोग आप से बहुत गरीब थे पैसों के मामले में। कोई बड़े पोजिशन में नहीं है। 

महाराष्ट्र में तो आप जानते हैं कि वहाँ पर सारे जितने भी बड़ी-बड़ी जगह है वो सब मारवाडी लोगों हैं, गुजराती लोग हैं और सिंधी।  इन्होंने सारा बिजनेस ले लिया है। आपको एक भी सहजयोगी वहाँ बिजनेस वाला नहीं मिलेगा। और कितने कर्मठ लोग हैं, कैसे काम करते हैं आपने देखा। कितने, वहाँ भी तो बहुत से प्रोफेशनलस लोग हैं पर आप किसी को भी पाईयेगा नहीं घमण्डीपना में। तो इस तरह से सहजयोग यहाँ शुरु हुआ तो मैं बहुत घबरा गयी थी कि यहाँ सहजयोग कैसे चलेगा । यहाँ के लोग तो अपने में ही हैं, सेल्फिश हैं। अपनी ही बात करते हैं, अपने स्वार्थ में ही रहते हैं। इनको क्या परमात्मा मिलेगा?  पर धीरे-धीरे ऐसा आपकी माँ का प्यार है कि उस प्यार में लोग बदलते गये, और बहुत बदल गये।  मुझे तो देखकर बड़ी खुशी हुई कि अब बहुत, आप लोगों में अन्तर आ गया है। तो भी, मैं ये कहूँगी कि एक जमाना था जिस वक्त कि गांधीजी खड़े हुए, उन्होंने कहा कि देश का काम करना है। देश भर का ही काम था कोई बड़े मनुष्यता का काम नहीं था, सारे यूनिवर्स का काम नहीं था दुनिया भर का काम नहीं था, कुछ नहीं। हमें याद है हमारी अम्मा ने घर के जितने भी सोने के जेवर थे, गिन के सारे उनको दे दिये। उनके दो-चार जो ट्रेडिशनल पुराने बड़े- बड़े जेवर थे, वो छोड़ के बाकी सब दे दिये। हम लोगों ने भी हमारी जो चुड़ियाँ थी अपनी चुड़ियाँ उतार के उनको दे दी। हमारी मदर ने भी और ऐसे बहुत औरतों किये हैं। और भी बहुतों ने ऐसे काम किये हैं। लेकिन उन्होंने ऐसी कौन सी बड़ी भारी ऐसी बात की थी……कोई आपके  जैसे ट्रांसफॉर्मेशन नहीं किया था कोई ऐसे खास चीज़ नहीं की थी। (अस्पष्ट…) आप लोगों का सबका भला हो गया है सहजयोग में आकर। सबके हालात ठीक हो गये है, सब कुछ ठीक हो गया है, तन्दुरुस्तियाँ ठीक हो गयी है। लेकिन सहजयोग के लिए लोग पैसा नहीं निकालते हैं। अगर आज पैसा होता तो ये जगह भी अच्छे से बना सकते थे हम लोग। अब ये अटके पड़े हुए हैं कि माँ, पैसा दो, पैसा नहीं है अब, माँ, आप पैसा दो, पैसा दो। हमने कहा ठीक है तो आज तो ये ग्यारह हजार रूपये हम दे रहे हैं टोकन की तरह से, लेकिन आगे भी भेजेंगे। लेकिन आगे भी भेजेंगे, लेकिन आप लोगों को खुद सोचना चाहिए कि ये हमारा आश्रम है, इसके लिए हमें कुछ देना चाहिए। और इससे हमें कितने लाभ हुए हैं। सहजयोग से हमने कितना प्राप्त किया है। अब दूसरी बात ये है कि इससे एक और कैटेगरी जो एक हमारे अन्दर जो है उसे देखना चाहिए। अब जब हम अपने अन्दर देखते हैं कि हम कंजुसी कर रहे हैं, जान बचा रहे हैं, कुछ काम कोई बताता है, तो कोई हाजिर ही नहीं होता है। तो हमें सोचना चाहिए कि हमारे अन्दर गहराई ही नहीं है। हम कंजुसी कर रहे हैं, हममें गहराई ही नहीं है। आगे चलना चाहिए, हम अपने रिश्तेदारों की बीमारी के लिए हम माँ को परेशान कर रहे हैं। ये बहुत ही लो टाइप के सहजयोगी हैं।  इसमें गहराई नहीं है, माँ को परेशान कर रहे हैं। अरे, अगर माँ से तुम्हारा सम्बन्ध ठीक हो जाए तो कुछ कहने की जरुरत ही नहीं है। वैसे भी रिश्तेदारी ठीक हो जाती है। ऐसे भी लोग हैं जिनके बारे में उन्होंने सिर्फ बताया कि फलाने साहब न्यूयॉर्क में बीमार हैं और फौरन ठीक हो गये। ऐसे भी लोग हैं, लेकिन आपमें गहराई कम है। और जब आपमें गहराई कम हो जाती है तो ये सब होता है। फिर सहजयोग में पैसे कमाने का भी लोग विचार करते हैं। ये भी बड़ी गन्दी चीज़ है और बहुत लो कर देता है आपको। इसमें कुछ हो, कि किताब बिक जाये, फलाना हो जाए, ठिकाना हो जाए, ये सब गलत बात है। सहजयोग सत्ता के लिए नहीं है, पैसे के लिए नहीं है, ये आपके रिश्तेदारों के लिए नहीं है। ये आपके हित के लिए है। आपको अपना ही हित साधना है और परम पद प्राप्त करना है। और जब तक हम इसका निश्चय नहीं कर लेते हैं कि हमें परम पद प्राप्त करना है और बाकी चीज़ें व्यर्थ हैं। फैमिली के झगड़े, लड़कों के झगड़े, मियाँ-बिवी के झगड़े ये सब मुझे कहने की बाते नहीं होती हैं। (अस्पष्ट…) उससे पाने की वो है परम पद की स्थिति, कि जब आप अपने आप ही आप ही इसको सॉल्व कर सकते हैं। लेकिन उस परम पद को पहले प्राप्त करना है अब सबसे बड़ा उसमें भी एक दोष आ जाता है। जैसे कि आप लोगों से बात करने का यही एक अच्छा मौका है, जहाँ मैं आपको बता सकती हूँ (अस्पष्ट…) कि अहंकार उसको देखते रहना चाहिए। कि हमें किस चीज़ का अहंकार है, किस चीज़ को हम महत्वपूर्ण समझते हैं । 

बहुत सी चीज़ हम सोचते हैं कि बहुत जरुरी है और हमें करना चाहिए। अपने विचारों को देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम किस चीज़ को इतनी महत्वपूर्ण चीज़ समझते हैं। हम कौन सी बात को सोचते हैं कि ये हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है, उसी को तोलना चाहिए। कोई -कोई लोग ऐसे भी हैं वो कहते हैं कि हमारे लिए तो बहत महत्वपूर्ण ये है कि माँ कि परम पद को प्राप्त करें और कुछ नहीं। बस हो गया ऐसे लोग तो ठीक है, उनको तो कुछ कहने की जरूरत नहीं है। बाकी तो सब होते ही रहता है, नौकरी-चाकरी, खाना-पिना और दुनिया भर की चीजें।

मैं चाहती हूँ कि दिल्ली वाले इस तरह से पूरी तरह से आज निश्चय कर लें कि माँ के जन्मदिन के दिन।  अब हमारी भी उम्र अब जानते हैं ६६ साल की हो गई है, काफी उम्र हो गई है। और एक क्षण भी हमारा बेकार नहीं गया है, एक क्षण भी।  हर समय मेहनत करते रहते हैं इतनी हमने मेहनत की है। वो हम नहीं चाहते कि आप लोग करें, बिल्कुल भी नहीं करने की जरुरत है। आप को करने की जरुरत नहीं है। हम आपके लिए मेहनत करने के लिए तैयार हैं सिर्फ आप अपने अन्दर अपने को तौलते रहिए कि मैं क्या कर रहा हूँ?  मैंने सहजयोग के लिए क्या किया है?  जिसकी वजह से कि मैं आज ऐसा अभी तक पहुँच नहीं पाया। सहजयोग के लिए मैं क्या कर रहा हूँ?  माँ के लिए नहीं, सहजयोग के लिए। बहुत से लोग हैं मुझे रुपये दे देंगे, जमीने देते हैं, उससे क्या फायदा है! वो तो सिर्फ मैं सहजयोग को ही दे देती हूँ, छोड़ती थोड़ी हूँ। बेहरहाल वो भी एक चीज़ है अगर ऐसा कोई दे तो वो सहजयोग के लिए दे सकते हैं। ठीक है आप प्यार के स्वरूप जन्मदिन में कुछ दे, तो वो मुझे स्वीकार्य है। कोई बात नहीं है। लेकिन मेरे लिए कुछ खास जरूरत नहीं है किसी चीज़ की है नहीं । मैं तो हरदम लड़ती रहती हूँ कि जितना हो कम से कम खर्चा करो, कम से कम खर्चा करो । इसलिए कि रुपया कुछ बचे और वो आप लोग इसे सहजयोग पर खर्च करें।  क्योंकि सहजयोग में आप जानते हैं कि हमारे पास कोई और तरीका है नहीं। हम तो ऐसे-वैसे लोगों से तो कभी रुपये लेते भी नहीं कि कहीं भीक मांगने जाते हैं या किसीसे कहते हैं कि आप हमें रुपया-पैसा दे दें। सो, मेरी यही विनती है आप लोगों से कि आपको अपने को तौलना चाहिए कि हम कहाँ तक हैं?  और हम क्या चाहते हैं? 

तो सहजयोग में जब तक आपका चित्त पूरी तरह से परमात्मा की ओर न लगा रहेगा और सब ऐसी-वैसी चीज़ों में लगा रहेगा तो आप या तो पैसे बनाने के बारे में सोचेंगे। या फिर उसकी बात सोचेंगे, नौकरी की सोचेंगे, धन्दे की सोचेंगे। तो जो असल चीज़ है वो नहीं मिलने वाली है। और असल चीज़ मिलते ही सब चीज़ ठीक हो जाती है, ये ऐसी कुछ विशेष चीज़ है। और जब तक ये निगेटिवीटी बनी रहेगी तब तक काम बनने वाला ही नहीं है। अभी आज की ही बात बताएं, आज चाबी नहीं खुल रही थी तब मैंने कहा कि आज चाबी किसने बन्द की थी। तो कहा ‘इन्होंने’ की । तो मैंने कहा इनको जरा बाहर भेजो दो मिनट। और उनके बाहर जाते ही साथ चाबी खुल गयी थी। आपका कोई काम बन ही नहीं सकता, जब निगेटिव होंगे तो कोई काम बन नहीं सकता। लेकिन अगर आप इस स्थिति पर आ जाए, आपके सारे काम अपने आप बन जाते हैं। और वो इतने सुन्दर बनते हैं कि कभी-कभी आपको लगता है कि ‘माँ मैं ये नहीं चाह रहा था फिर ये क्यों हो गया।’  और आप फिर बाद में कहते है कि अच्छा हुआ यही हुआ और छूट गया झंझट से। इस प्रकार सहजयोग की एक किमया है, अपनी एक उसका चमत्कार है कि जो चीज़ सामने आती है वो स्वीकार्य करना चाहिए। और अन्त में आप ये कहेंगे कि यही मेरे लिए हितकारी था, यही अच्छा था। उसको प्रेम से स्वीकार्य करना चाहिए और तौलते जाना चाहिए अपने को। 

जैसे जीवन में जैसे सहजयोग में आगे बढ़ेंगे तो आपको पता होगा कि इसके बड़े ही आशीर्वाद हैं, इतने अनन्त आशीर्वाद हैं क्योंकि सारे देवी – देवता सब आपके साथ लग जाएंगे। आप जहाँ जा रहे हैं, आपके साथ आगे-पीछे दौड रहे हैं। कोई आपको सता नहीं सकता, आपको कोई छल नहीं सकता, आपको कोई परेशान नहीं कर सकता।  आप पर कोई केस नहीं कर सकता, कुछ नहीं हो सकता। बिल्कुल आप पूरी तरह से, एकदम से ही आप सुरक्षित हैं। कोई आपको तकलीफ नहीं दे सकता। जो आपको तकलीफ देगा तो उसको बहुत तकलीफ होगा ये भी आप देख लीजिए । फिर हर तरह से आपकी हालत ठीक हो जाएंगी, माली हालत ठीक हो जाएंगी, आपकी तंदुरुस्ती ठीक हो जाएगी। ये ठीक हो जाएगा, वो ठीक हो जाएगा। लेकिन ये भी एक प्रलोभन है हमारे लिए, एक प्रलोभन है । जैसे कि हम जा रहे है और हमको अगर प्लेन पकड़ना है । रास्ते में कुछ भी मदारी का खेल हो रहा है, ये हो रहा है, वो हो रहा है लेकिन उससे हमें क्या मतलब है। हमको तो प्लेन पकड़ना है। तो फिर इस प्रलोभन में फिर आप भटके, तो गये। तो अब लोगों को मैंने देखा है कि सहजयोग में आते ही लोगों को बड़े पैसे मिल जाते हैं और फिर भटक गये। भटक गये तो उसके बाद कैन्सर हो गया, फिर वापस आये मेरे पास। मैं छोड़ कर चला गया था सहजयोग। बिजनेस में चला गया था, बहुत काम था  मुझे, ऐसा था, वैसा था।  सबसे पहली जो चीज़ है अपना मन जो है सहजयोग में लगाए रखे। हरेक प्रोग्राम जो भी हैं उसे अटेन्ड करनी चाहिए, हर कलेक्टिविटी में आना चाहिए। हर पूजा में जहाँ भी होता है आना चाहिए। पूरा चित्त इसमें देना चाहिए, पूरा समर्पण इसमें करना चाहिए। बाकी चीज़ें परमात्मा सब सम्भाल लेता है। आप तो जानते हैं कि आपकी माँ को बिल्कुल पैसे का समझता नहीं है, बैंक का समझता नहीं है। अब जो लोग मेरे साथ रहते हैं वो भी कहते हैं कि माँ का ये क्या हाल है। अगर दो बार अगर बताये तो तीसरी बार ….अस्पष्ट…  अपने आप. मेरी कुछ समझ में नहीं आता है कि ये है क्या बला! क्योंकि ये आजकल के कायदे-कानून,  ये वो मैं कुछ जानती नहीं। पर ऐसे देखा जाए तो मैं कायदे में बहुत होशियार हूँ। जो पॉईंट मैं निकालती हूँ वो बड़े-बड़े लॉयर बोलते हैं कि आपको ये पॉईंट कैसे सूझा। क्योंकि इसी में सूक्ष्मता है, मनुष्य में एकदम बराबर इस जगह पर । जैसे हरेक चीज़ सस्ती मिल जाए, ये कैसे मिल जाती है?  हरेक चीज़ बढ़िया मिल जाए। ये कैसे मिल जाती है?  अभी आज ही के दिन इन लोगों ने पूछा कि वहाँ कौनसी चाबी लगेगी?  और मैंने कहा कि ये चाबी लगेगी और वो लग गयी। वो गुच्छा ले आये, मैंने तो वो चाबी कभी देखी ही नहीं थी। वो कहने लगे कि माँ कौनसी चाबी लगेगी?  और मैंने कहा, ‘ये चाबी लगेगी।’ और वो चाबी लग गयी। अब कहो कि माँ कैसे जानती हैं? क्योंकि सूक्ष्म है। हम सूक्ष्म में बैठे है। चित्त हमारा सूक्ष्म में ही है। और बाह्य में हम सब कहेंगे कि ये भी करना है, वो भी करना है, फलाना है, ठिकाना है। तो इस प्रलोभन में आना नहीं है। एक बस आनन्द में रहो, प्रलोभन में नहीं। उसका आनन्द तो आप उठा ही नहीं सकते आप प्रलोभन में आये, तो गये। धीरे-धीरे आप खिसकते ही जाएंगे, खिसकते जाएंगे।   तो मैं आज इतने सालों बाद इस बात को मैं कह रही हूँ आपसे और दोहरा भी रही हूँ कि दिल्ली का शुरु का आना और आज मेंबहुत अन्तर हो गया है। पर इससे भी बहुत ज़्यादा परिवर्तन होना चाहिए। और दिल खोलकर के मनुष्य को देना चाहिए। जैसे अब आप लोगों को सोचना चाहिए और बहुत से लोग कहते हैं कि ‘माँ मैं तो सोच तो रही थी कि इतना रुपया दे दूँ। फिर मैंने सोचा कि लड़की के लिए एक जेवर ही बना लूँ।’ ‘अच्छा ठीक ही किया भई।’ तो बूरा तो नहीं किया, नहीं-नहीं बहुत अच्छा किया। आपने भी अपने सारे जेवर बैंक में रखे हैं। लड़की भी वो सारे जेवर बैंक में रखेगी। और उसकी भी लड़की होगी तो वो भी बैंक में रखेगी। सारा बैंक ही को पैसा देना है। उससे अच्छा कोई चीज़ बना दो तो सबका हित होगा, कलेक्टिविटी में आनन्द आएगा। तो इस तरह की चीज़ों में प्रलोभन होना चाहिए। अब सबसे जो बड़ा सूक्ष्म प्रलोभन जो सहजयोग में है कि मैं करता हूँ। मैंने आश्रम की जमीन ले ली है। मैंने आश्रम बना दिया। और मेरी वजह से, या मैंने इतना रुपया इकठ्ठा कर दिया है। या मैंने इसको ठीक कर दिया है, मैं, मैं, मैं….. ये बड़ा ही सूक्ष्म प्रलोभन होता है।  मैं ही ऑर्गनाइजर हूँ, मैं ही लीड़र हूँ, मैं ही बड़ा आदमी हूँ। ये इस चक्कर से बिल्कुल बचना चाहिए। मैंने ये किया, मैंने वो किया, ऐसा विचार आये तो आपको सोचना चाहिए कि आप ऊँची सीढ़ी पर पहुँचे हैं और इस उँची सीढ़ी से जब आप गिरेंगे तो थड़ाम् से आप नीचे आएंगे। ये ‘मैं’, ‘मेरा’ छुड़ा लीजिए। 

अभी देहरादून में एक लेडी मिली थी। उनके बच्चे आयें तो उनका हाथ एकदम गरम, फूल दिये तो एकदम गरम। तो मैंने कहा कि ‘आप कर क्या रहे हैं?’  तो कहने लगे, मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। और फिर बताने लगी कि माँ, आपने स्पाँडिलाइटिस मेरा ठीक किया। डाइबिटिज मेरा ठीक किया, फलाना मेरा कर किया, नौकरी मेरी कर दी।  मेरा ये हो गया। तो आप गरम क्यों हैं?  नहीं माँ, मैं तो ये चाह रही थी कि मैं आपके यहाँ एक सेंटर  चलाऊँ, पर ये लोग परमिशन नहीं दे रहे हैं, पर मैं चला रही हूँ।’ मैंने कहा, ‘इसलिए आप गरम हैं, आप छोड़िए इसे। जिस लायक आप हैं उस लायक आप रहिए, आप ठीक होने के लायक हैं। आप ठीक होईये, अभी आप सेंटर चलाने के लायक नहीं है।  तो ये बात समझनी चाहिए, हमको अपने को जज़ करना चाहिए। ये जो लास्ट जजमेंट है न, ये जो टाइम जो आया है पुनरुत्थान का ये लास्ट जजमेंट है। इसमें हमको ही अपना जजमेंट करना है कि हम कहाँ हैं? हम कैसे हैं? हमारा चित्त कहाँ दौड़ता है?   हम किसे देखते रहते हैं?    कहाँ हमारे विचार जा रहे हैं? अपने चित्त की ओर नज़र रखें, ? इस वक्त हम क्या सोच रहे हैं?  कहाँ जा रहा है हमारा चित्त?  हमारा लक्ष्य कहां है?   हम क्या सोच रहे हैं?  इस पर बहुत सुन्दर लिखा हुआ है, नामदेव ने। जो कि आपके ग्रन्थ साहब में भी एक है कि एक पतंग उड रही है और एक लड़का पतंग उड़ा रहा है। इसे उससे बात करता है, मज़ाक करता है, पर नज़र उसकी पतंग पर है। बहुत सी औरते हैं वो सर पे घड़े रख के चल रही हैं। हँस रही हैं, और आपस में मज़ाक कर रही है, ठिठोली कर रही हैं पर नज़र उनकी सर पे है। एक औरत है, अपने बच्चे को कमर पर ले कर के और घर झाड़ रही है, (अष्पष्ट) रही है पानी भर रही है, सब काम कर रही है और बच्चा कमर पे है। ध्यान उसका कमर पे है। हमारा ध्यान कहाँ है?  उससे और भी प्रश्न खड़े हो जाएंगे कि माँ से हमें मिलने नहीं दिया। हम माँ से मिलना चाहते हैं हम तो आयें इस काम के लिए हैं पर माँ से मिलने नहीं दिया। बहुत गलत बात है ये। माँ को तो प्रसन्न रखना चाहिए। अगर आपके लिए कोई ऐसा करे तो आपको अच्छा लगेगा?  और ये दिल्ली में सबसे ज़्यादा बीमारी है, माँ से मिलने की। ये एक अहंकार का स्वरूप है। और मिलने नहीं दिया तो रोने बैठ गये या चीखना शुरु कर दिया। ये बड़ी बारीक-बारीक चीज़ों को सोचना चाहिए। जैसे मेरा बर्थ डे हो रहा है, ऐसे ही आप लोगों का भी बर्थ डे होता है। जिस दिन आपने अपना रियलाइझेशन लिया, वो आपका बर्थ डे है। 

मैं तो अनादि हूँ, मेरी तो हजारों वर्षं की उम्र है। बहुत सी पुरानी उम्र है, मेरी तो कोई नयी तो उमर है नहीं। आप तो मेरा बर्थ डे मना रहे हैं। आप लोगों का बर्थ डे होना चाहिए कि जिन्होंने जन्म लिया, सहजयोगी बन कर के जो आज घूम रहे हैं। जो सहजयोगी हैं जिन्होंने नया जन्म लिया है, एक नये स्वरूप में आये हुए हैं। आपके बर्थ डे होना चाहिए, मेरी क्या आप मना रहे हैं। कैसे ये देखिए कि मैं तो अनादि हूँ, मेरा क्या बर्थ डे मना रहे है?  मैं चाहती हूँ कि आप लोगों का बर्थ डे मनाया जाय। और हर बर्थ डे में मनुष्य बढ़ते जाता है न, घटता तो नहीं है। ऐसा भी कभी आपने देखा है कि मनुष्य बढ़कर के और छोटा सा बच्चा दूध पीता हो जाए?   पर सहजयोग में ऐसा होता है। अच्छे भले दिखते हैं, नज़र आते हैं, और एकदम से पता नहीं क्या खोपडी उल्टी बैठ जाती है। कहने लगे वो गये कि वो ऑफ हो गए है। मैंने कहा, ऑफ हो गये हैं?  मैंने कहा, मर गये हैं क्या?  नहीं-नहीं, सहजयोग से चले गये हैं, फिसल गये हैं। और इतनी कठिन डगर नहीं है। बहुत आसान है, सहजयोग में बढ़ना बहुत  आसान है, हर घड़ी। अब आपको यही अपने से देखना है कि हम किस लेवल के हैं?  आपको तो मुझे कुछ कहने की भी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, आप बस सोच लें काम हो जायेगा। कहने की भी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, मिलने की जरूरत क्या है! माँ को तो हृदय में ही बसा लिया है। जब जरा गर्दन झुका ली, देख लिया। मिलने की भी कौन सी जरुरत है। मिलो, फिर माँ की जान खाओ फिर ऐसा है,  उसमें वैसा है फलाना है ढिकाना है। इससे प्रसन्न होंगी क्या?  इससे डेटीस (deities) कभी प्रसन्न नहीं होंगी। अपनी जगह आप सोचिये कि अगर हमारे साथ कोई ऐसा करेगा क्या हमें अच्छा लगेगा।  और यही तरीका अगर आप अपनी तरफ आजमाते हैं, अपने को देखते हैं, (अष्पष्ट) अच्छा मिस्टर तो आपका आज क्या हाल है? शीशे के सामने खड़े होकर क्या हाल है?  क्या हाल है? आज आप यही सोचिये खूब चल रहे हैं, आप सहज योगी हैं, पता होना चाहिए।  हम सहज योगी हैं उसकी इज्जत के अनुसार चलिए, तरीके के साथ चलिए।  तब आप देखियेगा कि आपकी जो विशालता इतनी बढ़ जाएगी।  इतनी बढ़ जाएगी कि कोई सा भी प्रॉब्लेम ही नहीं आ सकता वो एकदम साफ कर देगी। ये आप ही की विशालता है। आपको मेरी विशालता को इस्तेमाल की कोई जरुरत ही नहीं है, आप अपनी ही विशालता का उपयोग करे। ऐसे अभी हैं सहजयोग  में जो भी ऐसे लोग हैं जो महज कहने से ही सब मामला बन जाता है। ऐसे लोग हैं, ये नहीं कि नहीं हैं।  लेकिन  तोड़ताड़ करके सब कुछ ख़तम करके और इसमें गहरे उतरना चाहिए। अब तो आप लोगों से मुलाकात गणपतीपूले में होगी। और एक-एक जन्मदिवस मुझे याद आता है। जिस तरह से आप लोगों ने इतने प्रेम से इसे मनाया है और सुन्दर सजाया है। और यही कि आज ये आखरी दिन है मैं चली जाऊंगी। और फिर इतने दिन बाद मुलाकात होगी यहाँ। लेकिन मैं चाहती हूँ कि जिस वक्त मेरी मुलाकात हो तो आप लोग एकदम स्वच्छ, सुन्दर, अनुपम एक बढ़े हुए पेड़ के जैसे, जिसे मैं बड़े गर्व से देख सकूँ कि ‘ये मेरे बच्चे हैं,’ मुझे गर्व होना चाहिए। मानो मैंने बच्चों से कुछ बात कह दी और इन्होंने ठान लिया और करके दिखा दिया। लेकिन यहाँ मैं सुनती हूँ कि बहुत कम लोग इस तरह के हैं। अधिकतर लोग तो ऐसे ही हैं कि जो आयें, अपना फायदा किया और चल दिये। फिर सोचते नहीं कि भाई तुम कैसे कर रहे हो और क्या?  ऐसा नहीं होना चाहिए। 

अगले साल भी यहाँ जन्मदिन हो, ऐसी मेरी बड़ी इच्छा है। लेकिन उस वक्त मैं देखूँ यहाँ पे एक से एक पेड़ खड़े हुए हैं। हर एक आदमी कम से कम सौ आदमियों को तो आसानी से सहजयोग दे सकता है। अब जैसे, अपने घर में रिवाज है, यहाँ है कि नहीं तो पता नहीं हम लोग जैसे गौरी पूजन होता है तो महाराष्ट्र में है कि तो बुलाई जाती हैं, औरतें, उनको हल्दी-कुमकुम देते हैं।  तो अब ये लोग क्या करते हैं कि बुलाती हैं , ये हमारा ही फोटो रखेंगी, हमारा ही पूजन करके और फ्रेन्डस को, सबको बुलाकर के उनको देते हैं। । तो फ्रेन्ड सर्कल में हर जगह आपकी दोस्ती है, पहचान है, रिश्तेदारी है सबसे बात करिए। देखिए इसमें कैसे लोग ठीक हो गये हैं। देखिए इसमें कैसे फायदे हो रहे हैं। कम से कम सौ में से तो आपको पचास आदमी तो मिल ही जाएंगे। शादियों में जाएंगे, बहुत जरुरी है शादी में जाना। बहुत से लोग हैं कि, हम नहीं आ सकते, ‘माँ पूजा में, हमें शादी में जाना है।’ और शादी में जाकर आपने किसको जोड़ा। एक भी आपका कोई बना सगा। वहाँ तो यही हुआ कि तुमने क्या कपड़े पहने थे, उसने क्या पहने थे। मैंने जो बताई थी ‘बिना बात की बात।’ ऐसी शादी में जाके आपने कौन सा लाभ उठाया?  और सब दुश्मनी है आपके साथ। तो यहाँ अपने असली रिश्तेदार हैं, जो हम सारी विश्व की रिश्तेदारी है वो आज यहाँ बैठे हैं। सारा विश्व आज सब जगह, आपको पता होगा फ्रान्स में सारे यूरोप के लोगों ने आज सेमिनार किया है, हमारे बर्थ डे का।  पाँच-छः रोज का आज वहॉं पर हो रहा है, सेमिनार हो रहा है इस इस वक्त में खबर भेजी है।  माँ, हमने अठारह तारीख से हमने शुरु कर दिया है आपके बर्थ डे का और सब एकट्ठे हुए हैं। और वहीं से,  अब मेरा सब जगह जाना नहीं होता। पहले जाते थे, पहले ग्रीस गये वहाँ जा करके सहजयोग बिठाया। बाद में फिनलैण्ड गये वहाँ सहजयोग बिठाया। अब टर्की गये हैं वहाँ बिठाया। जो देश छूट गया है वहाँ जाकर पहले सहजयोग पहले फिट करते हैं और खुद जाते हैं | यहाँ तो गणपती जैसे सब बैठे हैं, कोई हिलता ही नहीं। यहाँ से नोएडा तक गए यही नसीब समझ लो। मैंने सोचा नोएडा कोई दूर ही जगह है लेकिन देखा तो यहीं पे रखी हुई है। चलो नोएडा में तो ऐसे लोग मिल गये हैं कि उन्होंने जिन्होंने खींच लिया है आप लोगों को, इतने आकर्षक लोग हैं। पर उससे जरा आगे जाईये, धीरे-धीरे ये चीज़ फैलेगी, लेकिन जोर से भी फैल सकती है। फैलाना बहत जरुरी है और टाइम बहुत कम है। और लोग देखिए अपने को कैसे फैलाये बैठे हुए हैं, हर जगह। किस तरह से काम कर रहे हैं और हम लोग हैं कि कुछ नहीं कहते हैं। और लोग हैं जो अपने गुरु का बखान करते रहते हैं हर समय । उनके गुरु एकदम चोर, उनसे सारा रुपया लूट लिया और बिल्कुल हालत खराब कर दी, ये होता है। तो आज मुक्ति है, आप जो चाहे मेरे बारे में कहना चाहे कह सकते हैं। जो सहजयोग के बारे में कहना चाहते हैं कह सकते हैं। 

पहले कहा था आदिशक्ति मत कहो, पर अब कहने में अब कोई हर्ज नहीं है, इसकी सिद्धता है हमारे पास में। खैर आप  पहचानेंगे कैसे?  पहचानने के तरीके हैं आपके पास! हमने पहचान लिया। अपने चैतन्य को पाया है, चैतन्य को सवाल पूछने से आप जान सकते हैं। तो सबसे बताना होगा, अपने सब दोस्तों से बताना होगा। अपने सब पहचान वालों से बताना होगा। सबसे बताना होगा, आपके रिश्तेदार हैं, रिश्तेदारी एक-एक इंसान की कम से कम हजार आदमी होंगे। उनको चिठ्ठियाँ लिखो, उनको खबर करो, सबको। जितने भी रिश्तेदार आप शादी में बुलाते हैं उन सबकी लिस्ट बनायें और सब के पास चिट्ठी भेजो कि सहज से ऐसे-ऐसे लाभ हुआ है, इससे ये फायदे हुए है और ये करना चाहिए। इससे आप उनका हित ही चाहते हैं। अपने घर में डिनर में बुलाने से, बेकार का खर्चा करते हो। उससे फायदा क्या बाद में जाकर के तो आपकी बुराई करेंगे और आप उनकी बुराई करेंगे। आप कहेंगे कि उन्होंने बहुत खा लिया और वो कहेंगे कि इन्होंने तो खाने को ही नहीं दिया। ऐसे लोगों को रास्ते पर लाना चाहिए या नहीं। आप जानते हैं, ये नहीं कि आप नहीं जानते और सहजयोग में आने से तो और साफ आप देखते हैं। सब चीज़ को आप साफ देखते हैं। फिर ऐसे लोगों को कहना चाहिए कि साब, ये बात है। अब तो हमारी जिंदगी बदल गयी है और आप भी बदल लीजिए, अच्छा है, ये सब बेकार है।  कहने में कोई हर्ज नहीं है और इस तरह से सहजयोग बहुत जोर से बढ़ सकता है। 

आज के दिन जाना मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि आज अच्छा उत्सव का दिन है। आज ही बढ़िया सा प्रोग्राम होगा, पर वहाँ भी लोग बैठे होंगे हजारों, वहाँ भी जन्मदिन है।  और एक भावना से यहाँ से जाइये तो दूसरी भावना वहाँ शुरु हो जाती है।  और इसी तरह से दिन कट गये हैं हमारे, बड़े आनन्द से, सुख से दिन कट गये हैं। कोई तकलीफ नहीं हुई, ना ही कभी सोचा, कभी नहीं सोचा कि कैसे चल रहे हैं, क्या हो रहा है?  रोज रात को दो-चार बजे से पहले तो सोते नहीं है, और दिन भर मेहनत चलती है। मैं तो नहीं चाहती कि आप लोग इतनी मेहनत करें। लेकिन सहजयोग आपको चाहिए, मुझे नहीं, ये जान लेना चाहिए। माँ इसलिए सोचती है कि आपको मिलना चाहिए, देना चाहिए इसलिए मैं आपको सहजयोग दे रही हूँ। लेकिन आपको मिलना चाहिए, आपकी चीज़ है। 

आपको प्राप्त करना है, ऐसा समझ लेने से आप समझ जाएंगे कि मेरे जीवन का इतना ही एक अर्थ है।  एक इतना ही अर्थ है कि मेरे जीवन के कारण आपका कुण्डलिनी का जागरण हो गया। और आप ऐसी स्थिति में आ गये कि जिससे आप दूसरों का जागरण कर सके और जिससे सारी दुनिया बदल जाए। तो इस जीवन का अर्थ कोई बहुत मैं बड़ा लगाती नहीं हूँ। अगर आप लोग नहीं होते तो मेरे जीवन का कोई अर्थ ही नहीं होता। क्योंकि आप लोग हैं और आपके बच्चे हैं। ये काम तो बढ़ता ही जायेगा और बहुत से लोग पार होते जाएंगे। लेकिन मेरे जीवन में ही अगर कुछ विशेष चीजें हो जाए तो उससे जरूर संतोष लगेगा कि अपने ही जीवन में कोई चीज़ प्राप्त कर ली है। इसलिए जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है आप लोगों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है कि माँ के सामने हमें दिखाना है कि हमने क्या-क्या चीज पायी और किस तरह से हमने सहजयोग को बढ़ाया है। सबसे बड़ी चीज़ ये है कि माँ के सामने हम कौन सा कमाल दिखा रहे हैं सहजयोग का, वो दिखाना चाहिए। जैसे नोएडा का देखा, बड़ी खुशी हुई। इसी प्रकार कोई मुश्किल नहीं है। आप हरियाना की तरफ चले जाईये, उधर यु.पी. की तरफ चले जाईये। यही दिखाना है माँ को, माँ हमने यहाँ एक सेंटर खोल दिया है। माँ हमने वहाँ एक सेंटर दिया है। (अष्पष्ट)   बस इसी से मुझे हो गया है सन्तोष, और मुझे कुछ नहीं चाहिए। एक फूलों की मुझे लालच है और वो भी आपने इतना अती कर दिया है कि अब तो नहीं चाहिए, वो भी छूट गया है। अब यही है कि कहाँ-कहाँ आपने बगीचे बनाये हैं, कहाँ-कहाँ उद्यान खड़े किये है, कहाँ-कहाँ चमन खड़े किये है, वही बस सुनने का है। जैसे हो जाये, पहले तो जब सहजयोगी नहीं थे तो फूलों को देखते थे।  लेकिन अब आप लोग आ गये हैं तो फूलों को कौन देखेगा। लेकिन अब आपको ऐसे ही बगीचे हर जगह चलाने हैं। और कोई-कोई लोग इतने अच्छे हैं कि जहाँ बिजनेस होता है, जहाँ ट्रान्सफर होता है,  जहाँ जिससे सम्बन्ध आता है।  फिर वे चाहे जापान जाए, चाहे अमेरिका जाए वहाँ जाकर वो बताते रहते हैं सहजयोग के बारे में, छोड़ते नहीं है। सहजयोग उनके लिए जीवन हो गया है। और जब तक ये आपका जीवन नहीं होता है आप इसको पूरी तरह से पा नहीं सकते। ये हमारे लिए जीवन है। बाकी सब चीज़ें तो चलती रहती है। वो कोई महत्वपूर्ण नहीं है। 

तो आज के दिन मैं आप सबको क्या कहूँ। मैं आपको धन्यवाद भी नहीं दे सकती कि मेरा बर्थ डे मनाया गया है। सिर्फ यही कहना है कि आप भी अपना बर्थ डे मनायें और बढ़ते जाएं। बढ़़ते-बढ़़ते एक काल में मैं ऐसा देखूँ कि दिल्ली के सहजयोगी बहुत ऊँचे पद पे चले गये हैं। दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण जगह है। आप जानते हैं कि दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ सहजयोग का लाभ होना और सहजयोगियों का एक विशेष स्वरूप आना जरुरी है, नितांत जरुरी है। सारी दुनिया दिल्ली को देख रही है। तो दिल्ली के लोगों में एक विशेष प्रगति होनी चाहिए और बढ़ना चाहिए। और कोशिश करनी चाहिए कि अब जैसे अपने यहाँ ज्यादा हिन्दी बोलने वाले लोग हैं।  उसी प्रकार और भी लोग यहाँ पर हैं जैसे यहाँ साऊथ इंडियन्स हैं उनको अप्रोच करना चाहिए। उनसे बात करनी चाहिए और बहुत कुछ काम हो सकता है। इस पर मैं चाहूँगी कि हर आदमी रोज लिखे कि आज हमने कितनों को सहजयोग दिया है। ये बच्चों को जरा सम्भालिये शैतानी कर रहे हैं।  ये पता करना चाहिए कि हमने कितना आज काम किया है?  किसको दिया है?  फिर अपने बारे में सोचना चाहिए कि हम रात-दिन क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारी जब माँ है इतनी शक्तीशाली तो क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारे दिमाग में क्या चलते रहता है। जब भी आप फिक्र करियेगा तो कोई काम नहीं होगा। जिस वक्त आपने मेरे ऊपर पूरा छोड़ दिया उस वक्त ही तो सारा काम होगा। जब आप कहते हैं कि ‘हम ही बीच में कुछ लगाते हैं आधा।’ तो अच्छा लो तुम्ही लगाओ आधा। पूरी तरह से छोड़ना आना चाहिए। और पूरी तरह आप तब ही छोड़ सकोगे जब आप इस दशा में आएंगे, नहीं तो छोड़ ही नहीं सकते। अब कहने के लिए इतना ही है कि अब आप लोग जान ही गये हैं कि हम कौन है?  छिपाने की कोई बात ही नहीं रह गयी। और उसकी सिद्धता भी हो गयी है अनेक तरह से। लेकिन उसका एहसास अभी नहीं है।  अगर अहसास हो तो किसकी फिक्र, किस चीज़ की है फिक्र?  आदिशक्ति किसके सामने बैठी हैं, बाते कर रही हैं? ऐसा कभी हुआ है क्या?  सारे इतिहास में कहीं ऐसा है, कहीं भी नहीं। और आप जानते हैं कि हम आदिशक्ति हैं। अभी आप हमारे बेटे हैं, आपको कैसे होना चाहिए! जैसे हमारा नाम है वैसे ही आपको होना है। यही आशीर्वाद है कि सब लोग समझदारी से काम लेंगे। सहजयोग आपके लिए जीवन है और उसको अपने अन्दर पूरी तरह से उतारें। और उसके प्रकाश में आप भी प्रकाशित हों और दूसरों को भी प्रकाशित करें। यही हमारा आशीर्वाद है ।