‘आप सभी देवदूत हैं’: श्री हनुमान पूजा, मार्गेट, केंट, (यूके), 23 अप्रैल 1989
आज का यह दिवस बहुत ही आनंदमय है, और सम्पूर्ण वातावरण इससे उत्साहित लग रहा है, जैसे कि देवदूत गा रहें हों । और श्री हनुमान की यही विशेषता थी कि वे एक देवदूत थे । देवदूत, देवदूतों की भांति ही जन्म लेते हैं । वे देवदूत हैं, और वे मनुष्य नहीं हैं । वे दैवीय गुणों के साथ जन्म लेते हैं । लेकिन अब, आप सब मानव से देवदूत बन गए हैं । यह सहज योग की एक बहुत महान उपलब्धि है । देवदूतों के साथ जन्म लेने वाली शक्तियां, बचपन से ही उनमें देखी जा सकती हैं।
सर्वप्रथम, वे असत्य, झूठ से भयभीत नहीं होते हैं, वे इस बात की चिंता नहीं करते हैं कि लोग उनसे क्या कहेंगे, और वे जीवन में क्या खों देंगे । उनके लिए सत्य ही उनका जीवन है, सत्य उनके लिए प्राण है, और अन्यत्र कुछ भी उनके लिए महत्व नहीं रखता है । यह एक देवदूत का पहला महान गुण है । सत्य की प्रस्थापना व संरक्षण के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं और उन लोगो की रक्षा करने के लिए जो सत्य पर स्थित है । तो इस प्रकार से विशाल संख्या में देवदूत हमारे चहुं ओर व्याप्त हैं।
तो इस प्रकार से बायें ओर हमारे अंदर गण हैं, तथा दाहिनी तरफ देवदूत स्थित हैं। और इसका अनुवाद संस्कृत भाषा या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में देवदूत के रूप में है – जिसका अर्थ है कि वे परमात्मा के दूत हैं । तो अब आप भी वही हैं, अब आप सभी देवदूत बन गए हैं । बात सिर्फ यह है कि आप इससे अवगत नहीं हैं कि अब आप देवदूत हैं, जबकि वे अपने बचपन से ही अवगत हैं। यदि आप यह जान जाएं कि आप देवदूत हैं, तो आपके सभी गुण रोशन होने लगेंगे और आप चकित होंगे कि सत्य के साथ किसी भी कीमत पर खड़े होने के गुण की कितनी सरलता से आपके लिए व्यवस्था कर दी गई है, क्योंकि आपको यह अधिकार दिया गया है, आपको यह विशेष आशीर्वाद प्राप्त है, परमात्मा से विशेष संरक्षण, कि यदि आप सत्य के साथ खड़े हैं, और यदि आप सच्चे लोगों के लिए खड़े हैं, और यदि आप सत्य पर स्थित हैं, तो आपकी रक्षा के लिए सभी प्रकार की सहायता की जाएगी ।
देवदूत इस बात से भली भांति परिचित हैं, वे इसके प्रति आश्वश्त हैं, वे निश्चित हैं, इसके प्रति निश्चित हैं, लेकिन आप नहीं । अब भी आप कई बार सोचते हैं, “शायद हो, शायद न हो”।” यही चलता रहता है । लेकिन आप मुझ पर यकीन करिए आप सब देवदूत हैं। आपके पास सभी शक्तियाँ हैं, और कितने ही अधिकार आपको प्राप्त हैं । मनुष्य आप पर हावी नहीं हो सकते, यही एक देवदूत की विशेषता है, संतों की नहीं । संतों को छला जा सकता है, उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है, उन्हें परेशान किया जा सकता है । अवतरणों के साथ भी यह हो सकता है। अवतरण इसे स्वीकार कर लेते हैं, वे स्वयं के साथ इस प्रकार की तमाम यातनाओं को होने देते हैं ताकि वे अपने जीवनकाल में एक घटना का निर्माण कर सकें ताकि वे स्वयं को एक प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त कर सकें । यदि कोई रावण ही न होता तो कोई रामायण भी न होती । यदि कोई कंस ही न होता, तो कोई श्री कृष्ण भी न होते ।इस प्रकार अवतरण समस्याओं को अपने ऊपर लेते हैं और बुराई से लड़ते हैं ।इस वजह से कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि वे कष्ट उठा रहें हैं, लेकिन वे कोई कष्ट नहीं उठाते।
लेकिन देवदूत इनसे विशेष हैं, वे स्वयं कोई समस्या नहीं लेते, वे तो सिर्फ उनका समाधान कर देते हैं । यदि संतों और अवतरणों को कोई समस्या आती है, तो ये देवदूत ही होते हैं जो इसका समाधान करते हैं। और कई बार तो उनसे कहना पड़ता है कि आप अभी आप रहने दें, हम अभी इस पर कार्य कर रहें हैं, जब हम आप से कहें तब ही आप कुछ करें । वे तो द्वार पर तत्पर खड़ें हैं, अत्यंत ही आतुर। आप उन पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकते हैं।
मिसाल के तौर पर, श्री हनुमान, आप उन्हें देवदूत के रूप में जानतें हैं, उन्हें महान सिद्धियाँ, महान शक्तियाँ प्राप्त हैं और यह उनका अधिकार है कि वे इनका उपयोग करें और वे इनके प्रति अत्यंत ही जागरूक हैं। वे सभी कार्य अत्यंत ही रोचकता से करते हैं, अपनी शक्तियों का उपयोग भी बड़ी रोचकता से । जैसे उन्होनें पूरी लंका का दहन कर दिया और फिर वे उस पर हंसते हैं और फिर अपनी पूंछ को लंबा कर उसे वे बहुत राक्षसों के गर्दनों में डाल देते हैं और इस प्रकार वे उनके साथ केवल खेल रहे थे और फिर उन्हें साथ में लेकर हवा में उड़ जाते हैं और वे सब हवा में कलाबाजी खाते ।
तो देवदूतों में विनोदप्रियता भी है, क्योंकि वे आश्वश्त हैं, वे पूर्णरूप से जागरूक हैं, पूर्णतया अपने व्यक्तित्व, अपनी शक्तियों व स्वयं से अवगत हैं। यहां सहजयोगी भी कई बार यह समझ नहीं पाते कि मेंने आपको देवदूत बना दिया है, मैंने आपको संत नहीं बनाया बल्कि देवदूत बना दिया है, और आप सदैव संरक्षित रहेंगे ।हम तो केवल देवदूतों का सृजन कर सकते हैं, हम संतों का सृजन नहीं कर सकते।
संत तो केवल स्वयं के प्रयास से बनते हैं । प्रयास-रहित सृजन जैसे श्री गणेश, जैसे श्री कार्तिकेय, जैसे श्री हनुमान- उसी प्रकार से आप सभी का भी सृजन किया गया है । इसलिए यह समझने का प्रयत्न करें कि मैं आपके विषय में जो आपसे बता रही हूं, वह सत्य है । जबकि आप सभी संत जन हैं सब प्रकार के कुसंस्कार आपके माध्यम से कार्यान्वित हैं, और आप यह नहीं जानते हैं कि किस प्रकार स्वयं के पंखों को फैलाया जाए। फिर भी कई बार मुझे लगता है कि पुनर्जन्म हो चुका है और वे सब पंख सहित देवदूत बन चुके हैं, लेकिन नन्हें पक्षियों की तरह आपको अभी यह सीखना बाकी है कि किस प्रकार से उड़ना है । लेकिन आपको सहजयोग में आपको प्राप्त हुए अनुभवों के माध्यम से अपने आत्मविश्वास को हासिल करना होगा।
जैसे कल आप गा रहे थे – हर दिन के चमत्कार, आपके आसपास हो रहे चमत्कार । यह देवदूतों का ही कार्य है और वे आपको यही समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि, “आप हममे से ही एक हैं, सिर्फ हमारे साथ शामिल हो जायें”।” तो आज हमारे सम्मुख यहां बहुत सारे देवदूत विराजमान हैं, और हम क्यों न इस सम्पूर्ण विश्व को परिवर्तित करने के विषय में सोचें? एक और चीज़ जो आपमें है, इन देवदूतों से भिन्न, क्योंकि ये देवदूत कुंडलिनी को जागृत नहीं कर सकतें, वे ऐसा नहीं कर सकते और वे इसे लेकर चिंतित भी नहीं हैं। वे यहाँ पर तमाम प्रकार के दुष्ट लोगों का संहार करने, उनका नाश और उन्हें आपके चारों ओर से हटाने के लिए यहाँ हैं । परंतु वे परिवर्तित नहीं कर सकते, देवदूत परिवर्तित नहीं कर सकते। इस प्रकार आपका परमात्मा के साम्राज्य में उनसे कहीं अधिक अधिकार है- क्योंकि आप लोगों की कुंडलिनी को जागृत कर सकते हैं और आप आत्म साक्षात्कार प्रदान कर सकते हैं।
लेकिन मानवीय कुसंस्कार चिपके हुए हैं। मिसाल के तौर पर, मैंने एक अंगूठी किसी दिन पहनी हुई थी, तो मेरी बेटी ने मुझे यह कहकर चिढ़ाना शुरू कर दिया-““अब आप अपनी इसी उंगली को हर समय दिखाएं ताकि लोग आपकी इस अंगूठी को देख पाएं।” तो इस सांसारिक मानव जीवन में हमारे पास जो कुछ भी है, चाहे संपत्ति हो या सत्ता, आप देखिएगा जैसे कोई आदमी है जो किसी पद पर आसीन है, तो आप फ़ौरन ही उसके नाक और होठों के हाव भाव से यह मालूम कर सकते हैं । लेकिन जो शक्तियां आपके अधिकार में हैं; आप उन्हें प्रकट करने से, उनके विषय में चर्चा करने से, उन्हें प्रयोग करने से घबराते हैं ।
आप कल्पना करें, इतने सारे देवदूतों से तो सम्पूर्ण इंग्लैंड को चंद क्षणों में ही साक्षात्कार पा लेना चाहिए । लेकिन अब भी हम यही सीखने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हम क्या हैं ।श्री हनुमान के साथ कोई समस्या नहीं थी क्योंकि उन्हें बाल्यकाल से ही यह ज्ञात था कि वे एक देवदूत हैं और उन्हें एक देवदूत का कार्य करना है । क्योंकि हम सभी मनुष्य रूप में जन्में हैं और अब हम देवदूत बन चुके हैं, अन्य देवदूतों की भांति हम क्रियाशील होने में कठिनाई महसूस करते हैं । यहाँ तक कि आपका एक विचार, सामूहिक विचार, यहा तक कि आपका स्वयं का विचार भी शक्तिशाली है और आपका चित्त अत्यंत शक्तिशाली है । परंतु इस भय के कारण, या फिर आप कह सकते हैं कि इन कुसंस्कारों या आपके साथ अब भी चिपके हुए इस अहंकार के कारण, आप अब भी गलत चीजों में फंसे हुए हैं और इसलिए यह शक्ति, यह गतिशीलता प्रकट नहीं हो पाती ।
हम किसी को भी दोष दे सकते हैं, जैसे किन्हीं देशों में हम आलस्य को, तो किन्हीं देशों में अहंकार को, परंतु अब आप अपने इन देशों के बंधनों से पूर्णतया मुक्त हो चुके हैं, अब आपने परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश पा लिया है । अब आप एक ऐसे देश में हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है, कोई बन्दिशें नहीं है । लेकिन अब भी आप में जो ये कुसंस्कार मौजूद हैं, उनसे आपको परेशान होने की कोई भी आवश्यकता नहीं है, ना ही आपको मायूस होने या अपने कार्य से विमुख होने की ।
आप श्री हनुमान की सैंट गैबरियल के रूप में कल्पना करें, उन्हे जाकर मारिया को यह बताना था कि एक बालक जो कि अवतरण है, सबका रक्षक आपसे जन्म लेने वाला है । वे एक कुँवारी युवती थी । ऐसी खबर देना जो उस समय के संस्कारों को देखते हुए भयावह थी, उन्होने यह खबर दी। “मुझें यह कार्य करना है और मैं इसे करूंगा। यदि यही आदेश है, तो मैं इसे करूंगा।” क्योंकि उन्हें यह ज्ञात है कि, आदेश को पूर्ण करना ही उनका स्वभाव है, और यह उनमें अन्तर्जात है, और वे इस पर संदेह भी नहीं करेंगे। वे इंतज़ार नहीं करेंगे, जैसे ही उन्हें कहा जाता है वे इसे कर देते हैं ।
हमारे अंदर भी एक विशेष समझ होनी चाहिए, कि हम भी अंदर से विकसित हो रहे हैं । लेकिन यदि हम इसे प्रकट नहीं करेंगे, अपने गुणों को प्रकटित नहीं करेंगे, और यदि हम इसे अपने जीवन मेँ अभिव्यक्त नहीं करेंगे, हमारे कर्मों मेँ, हमारे उद्देश्यों मेँ, हमारे जीवन के अर्थ मेँ, तो सहजयोग फैल नहीं पाएगा । ना ही ये आपकी कोई विशेष सहायता कर पाएगा।
आप जिस किसी भी प्रकार का कार्य कर रहें हों उसमें इससे कोई समस्या नहीं आएगी। मुझे समस्या है, आपको नहीं । आपको समस्याओं का सामना नहीं करना है। आप किसी से भी जाकर बात कर सकते हैं , जिसे भी आप बात करना चाहें । मैं कहूंगी कि वे आपको आनंदपूर्वक सुनेंगे । परंतु यदि वे नहीं सुनते तो भी वे आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। वे आपको कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकते। आपको यह बहुत ही विशेष संरक्षण प्राप्त है, वे आपके कार्य को बाधित नहीं कर सकते।
सहजयोग मेँ केवल आ जाना ही सबकुछ पा लेना नहीं है, हमने क्या प्राप्त किया है । देखिये- लोग कहते हैं कि “हमने सहजयोग के लिए बहुत कुछ किया है और सहजयोग ने हमे क्या प्रदान किया ?”इसने आपको आत्म साक्षात्कार प्रदान किया है । इसने आपको देवदूत की पदवी प्रदान की है । मेरा मतलब है कि आप चाहे कुछ भी करके देख लीजिये, लेकिन क्या आप देवदूत के पद को प्राप्त कर सकतें हैं? आप नहीं पा सकते । सहजयोग ने आपको यह पद प्रदान किया है, तो इससे अधिक अब और आप क्या चाहते हैं । यह इससे पहले कभी भी संभव नहीं था, आप मेरा विश्वास करें, यह असंभव कार्य था ।
यदि यह किसी भी प्रकार से संभव होता तो संत ज्ञानेश्वर इतनी कम उम्र में ही समाधि न लेते और कबीर ये न कहते कि, “हे परमात्मा, कैसे समझाऊँ, सब जग अंधा।”
तो आपके अंदर वह सूक्ष्म शक्ति है कि आप लोगों की कुंडलिनी पर कार्य कर सकते हैं, बिना उन्हें यह ज्ञात हुए । परंतु जब आप ध्यान में बैठते हैं, आपको स्वयं यह स्वीकार करना होगा कि, ““मैं एक देवदूत हूँ, और एक देवदूत होने के नाते मुझे अन्यत्र कोई लगाव नहीं हैं, सिवाय परमात्मा के कार्य के।” ”
बहुत सी आसक्तियां हैं। सहजयोग में अब भी लोगों में बहुत सी आसक्तियां हैं -जैसे कि अब वे विवाहित हैं, तो अब उन्हें अपनी पत्नियों से आसक्ति हो गई है, पत्नियों से आसक्ति के कारण बहुत से अब अपनी स्थिति से गिर गए हैं। अब उन्हें अपने बच्चों से आसक्ति है और यदि उन्हे अपने बच्चों से आसक्ति होगी तो बहुत से अपनी स्थिति से गिर जाएंगें। जैसे मैंने आपको कल भी यह बताया था कि सम्पूर्ण विश्व के सहजयोगियों के बच्चे आप ही के बच्चे हैं । आप उन सभी बच्चों के माता-पिता हो, ये नहीं कि आपके बच्चे को नींद आ रही हो तो आप उसे ही ढकेंगे; नहीं आप सभी बच्चों को ढकेंगे। आपको उन सभी बच्चों का ध्यान रखना होगा जो वहाँ नीचे सो रहे हैं । क्या आप यह सोच सकते हैं कि अगर श्री हनुमान यहां उपस्थित हों और जब सभी बच्चें सो रहे हों और वे केवल एक ही बच्चे के शरीर को ढकें । क्योंकि वे सम्पूर्ण जगत के हैं । इसलिए आपको प्रत्येक बच्चे को समान रूप से प्रेम करना होगा, ध्यान रखना होगा ।
इसके बाद अन्य प्रकार की आसक्तियां हैं, जैसे सम्पदा, पद-प्रतिष्ठा, नौकरी । मेरे पास तो कोई नहीं है इसलिए मुझे इनके विषय में नहीं पता। सिवाय इसके, जब मैं आपको इतने प्रेमपूर्वक स्टेशन पर आते हुए देखती हूं -, तब सम्पूर्ण हृदय एक विशाल सागर समान बन जाता है, मुझे लगता है मानो एक बड़ी सी लहर उठ रही हो और मैं उसे देखती हूं। और जब मुझे आपसे विदा लेनी होती है तो पुनः यह घटने लगती है- पीछे जाते हुए सागर की भांति। यह कुछ इस प्रकार से है कि आप चाँद को देख रहें हैं, और सागर चाँद के सौन्दर्य पर, चाँद के आनंद पर, चाँद के प्रेम पर प्रतिक्रिया करना प्रारम्भ कर देता है। फिर मैं इस प्रेम को देखती हूं ;वह प्रेम जिसे आप एक घोंसलें में देखते हैं जहां एक पंछी अपने नन्हें बच्चों को खिला रहा है । फिर आप इस प्रेम को आकाश में देखते हैं, फिर आप इस प्रेम को अपने हृदय में देखते हैं, और एक ही बात जिसका आप वर्णन कर पाते हैं- वह भाव का जहां आपके अंदर स्थित आनंद का अद्भुत महासागर मात्र बहे जा रहा है ।
आसक्तियां आपको उस सागर का आनंद उठाने का सामर्थ्य प्रदान नहीं करतीं। यदि आप तट पर खड़े हैं, तो आप किस प्रकार से सागर का आनंद उठा पाएंगे । आपको इसमें कूदना होगा । परंतु आपने अपना लंगरगाह विभिन्न चीजों में डाल रखा है, इसलिए आप इसमें कूद नहीं पाते। और आप इस कदर सुरक्षित हैं । आप जानते हैं कि किस प्रकार से तैरना है, आप जानतें हैं कि किस प्रकार से एक शार्क को मारना है, आपकी एक नज़र भी पर्याप्त है। क्योंकि आप जागरूक नहीं हैं , इसलिए यह सक्रिय नहीं है , निश्चितः यही बात है ।
हमने ऐसे लोगों को देखा है, जो जीवन में एक छोटा सा ओहदा प्राप्त कर, उसकी शेख़ी बखारनें लगते हैं। मैं इस फलां फलां व्यक्ति से मिला, उस फलां फलां व्यक्ति से मिला, और फिर यह हुआ, और फिर वह हुआ -आपको ऐसे व्यक्ति पर हंसने का मन होता है । परंतु आपको सहजयोग प्राप्त हुआ है, जिससे आप विकसित हुए हैं, आप पोषित हुए हैं, आप बहुत महान बन गए हैं।
इन सबके साथ ही हमें श्री हनुमान का अनुसरण करना होगा । उन्हें लगा कि यह सूर्य तो बहुत ही अहंकारी है, लोगों को जलाने का प्रयास करता है । कई बार तो बहुत अधिक ऊष्मा होती है, और सूर्य के उपासक भी बहुत अहंकारी हैं । उनमें बहुत अधिक अहंकार है । यदि आप उनकी भाषा में किसी भी शब्द का गलत उच्चारण करते हैं, या उनके रिवाजों में, जैसे आपने काँटा (फोर्क) गलत हाथ में पकड़ लिया, तो समझियें समाप्त- आप पूरी दुनिया में सबसे बेकार व्यक्ति हैं , जिसने सबसे महानतम् अपराध किया है । ऐसे सभी छोटे, मूर्खतापूर्ण विचार, बहुत ही विकृत अहं के परिणामस्वरूप आते हैं । अहं बहुत ही विकृत हो जाता है जब आप ये सोचना शुरू कर देते हैं आपसे बढ़कर कोई है ही नहीं! “मैं ही सबकुछ हूँ और मैं सबकुछ जानता हूँ” ”और ““यह रिवाज़ अच्छा है” या ““वह कालीन सबसे अच्छा है।” मैं, मैं, मुझें यह पसंद नहीं; अच्छा, आप कौन हैं ? आपसे किसने यह पूछा कि आप इसे पसंद करें या ना पसंद करें ? “मुझे यह पसंद नहीं है, मुझें वह पसंद नहीं है।
वहीं दूसरी ओर अहंकारग्रस्त सदैव दास भी बनते हैं-कुछ विशेष नियम-कायदों को मानने वाले देशों में, जो अहंकार के आज्ञापत्र हैं, जाने के पश्चात मैं अवश्य कहूंगी; जैसे कि एक कलाकार उदाहरण के लिए…. एक कलाकार स्वयं के आनंद के लिए किसी चीज़ का सृजन करता है । परंतु सभी लोगों द्वारा उसकी आलोचना होना अत्यावश्यक है । आलोचना इस प्रकार से कि, ““मुझें यह पसंद नहीं, यह रंग अच्छा नहीं है, वह भी नहीं ।” और आपके पास यह सब करने के लिए पेशेवर हैं; उन्हें यह तक मालूम नहीं होगा कि किस प्रकार से एक पेंसिल से एक लाइन खींचे -चित्रकारी तो रहने ही दीजिये, किंतु ही वे कहेंगे- “मेरे विचार में, यह,…यह….” आप देखिये। उन्होने इस पर किताबें बना दी हैं, शोध प्रबंध व सिद्धान्त । मेरा मतलब है कला का संबंध आपके हृदय से है, आपके मस्तिष्क से नहीं । इस प्रकार से आपने कितने ही कलाकारों को नष्ट कर दिया है। और हर व्यक्ति जो चित्रकारी करता है उसे यह सोचना पड़ता है कि लोग इसके विषय में क्या कहेंगे ? लेकिन उसके परिणामस्वरूप बगैर सूक्ष्म अभिव्यक्ति की अत्यंत ही बेतुकी चीज उन्नत होती है जिसकी आज प्रशंसा की जाती है।
इसका कारण यह है कि हमारे अहंकार ने हमारे प्रत्येक शुद्ध सहज विचार के जीवंत विकास का, हमारी कला का और हमारे जीवन का दमन कर दिया है। मुझे लगता है कि यह उन सभी मलिनताओं और पारिस्थितिक समस्याओं से भी बुरा है जिनकी हम चर्चा करते रहते हैं। यह मानव मस्तिष्क है जिसने इन घुटनदेह क्षेत्रों का निर्माण किया है जहां कोई कुछ भी अभिव्यक्त नहीं कर सकता है और जिसका अहंकार सबसे बड़ा होता है वह सब पर हावी हो जाता है । “यह पुस्तक फलां फलां व्यक्ति द्वारा लिखी गई है ।”” आप उस व्यक्ति से मिलेंगे तो आपको ऐसा लगेगा की आप समुन्द्र में छ्लांग लगा दें। इस प्रकार प्रत्येक लिखी हुई चीज़ बाइबल नहीं है और ज़्यादातर जो लिखतें भी हैं, उनसे आप तभी मिलें जब आपके हाथ में एक डंडा हो।
इसलिए जो कुछ भी अभिव्यक्त किया जाता है, आप देखें – जैसे कि एक पोशाक में या फिर अपने बच्चों के साथ आपके संबंध में, आपके अध्यापक के साथ आपके संबंध में, किसी के साथ भी आपके संबंध में ; उसे ऐसा ही होना होगा, ऐसा और ऐसा ही। आप अनेक बार धन्यवाद कहें , अनेक बार क्षमा मांगे। इसलिए हम इन कृत्रिम अभिव्यक्तियों द्वारा इस कदर नियंत्रित हैं कि मुझे लगता है कि कुछ समय पश्चात किसी भी कला का सृजन नहीं हो पाएगा। उनमें कोई उत्साह-उल्लास नहीं है- उनमें नहीं है, वे भयभीत हैं।
मुझे नहीं पता कि आपने इस बात पर गौर किया है कि नहीं, पर जो लोग किसी संग्रहालय को देखने जाते हैं या फिर किसी भी प्रदर्शनी को देखने जाते हैं या कुछ:वे सोचते हैं कि वे सब तो महान हैं, कोई दैवी-व्यक्तित्व कि वे हर किसी को परख सकते हैं ।
इस आज्ञा के माध्यम से ही हम राय बनाते हैं, इसे ही श्री हनुमान एक बार में ही पूरा ही खा जाना चाहते थे। यह इस आज्ञा की गति है जो दायीं तरफ जाती है और फिर बायीं तरफ, आप देखियेगा जो हमारे इस तथाकथित, मूर्खतापूर्ण अहंकारी व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करती है। यही वह एक चीज़ है जिसे उन्होनें नियंत्रित करने का प्रयत्न किया था और उसे वे खा गए थे, जिस प्रकार से मैं भूतों को खाती हूं। शायद वे उसी प्रकार सूर्य को खा रहे थे। परंतु एक देवदूत के लिए यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आपके अंदर अहंकार नहीं हो।
ऐसे कुछ सहजयोगी हैं जो यह कहते हैं कि, माँ, मैं सहजयोग में बहुत कार्य नहीं करना चाहता क्योंकि इससे मुझे अहंकार हो जाएगा।’- बहुत से। ‘मैं नहीं चाहता कि मेरा अहंकार स्वयं को अभिव्यक्त करे ’। परंतु आप क्यों चाहते हैं कि आपका अहंकार नष्ट हो जाए, किस बात के लिए ? सहज योग के कार्य के लिए, क्या ऐसा नहीं है ? यह कैसा दुष्चक्र है कि हम यह कहते हैं कि हम स्वयं को पीछे रखना चाहते हैं ताकि हमारा अहंकार विकसित न हो सके । आप सिर्फ़ स्वयं के विषय में सोच रहें हैं , सहजयोग का क्या ? तो आजकल का चलन है कि , “ओह, बेहतर है सुरक्षित ओर रहा जाये ।’’ क्योंकि उन्होने कुछ ऐसे लोगों को देखा बहुत अधिक अहंकारी थे, जो सहजयोग को लेकर बहुत ही उत्साहपपूर्ण थे, जो दिखावा करने का प्रयास करते थे – उन्हे तो गिरना था ही। तो ऐसा मुझे लगता है कि सहजयोग में, एक अलग चलन शुरू हो चला है- “बेहतर है सुरक्षित ओर रहा जाए ।’’ आप देखें । इन दो के मध्य तो सहजयोग लुप्त हो जाएगा।
इस प्रकार यदि आप यह जानते हैं कि आप एक देवदूत हैं, तो आपमें कोई अहंकार नहीं होगा। जो कोई भी जानता है उसे पता है कि आपका स्वभाव ही है कुछ करने का। जैसे आज सुबह मेरे पति मेरी प्रशंसा करते हुए कह रहे थे “यह तुम ही हो जिसने यह सब किया है।”
मैंने कहा, “ मैंने नहीं, मैंने कुछ नहीं किया।”
उन्होनें कहा, “तुम कैसे कह सकती है हो कि तुमने नहीं किया ?’’
“क्योंकि”, मैंने कहा, “यह अंतर्जात रूप से उनमें निर्मित है । एक बीज़, यदि उसे धरती माँ में बो दिया जाए, तो वह अंकुरित होता है । उसी तरह से, इनके अंदर भी जन्मजात रूप से इनकी कुंडलिनियाँ निर्मित हैं जो अंकुरित होती हैं । तो किस प्रकार से यह मैंने किया ?”
“लेकिन”, उन्होनें कहा, “लेकिन यह तो धरती माँ ने किया है ।”
मैंने कहा, “नहीं, यह तो धरती माँ का गुण है जो उनमें निर्मित है, उसने यह किया है। ”
तो फिर वे बोले, “फिर यह सब किसने किया है ?”
तो मैंने कहा, “यह आदिशक्ति ने किया है- सहमत हैं ।”
लेकिन, सहजयोग आदिशक्ति द्वारा नहीं किया जाता है। उन्होने सबके अंदर इन शक्तियों का सृजन किया है जो क्रियान्वित होती है, लेकिन सहजयोग नहीं । सहजयोग जन्मजात गुणों के फलस्वरूप कार्य करता है जो धरती माँ और एक बीज़ के अंदर है । तो मैं यहाँ पर हूं …. आदिशक्ति के रूप में नहीं । मैं यहाँ पर उनकी माँ के रूप में हैं, उनकी पावनी माँ के स्वरूप में और एक पावनी माँ के रूप में मैंने उनका मार्गदर्शन किया है ।” आप कह सकते हैं कि मैं धरती माँ सम हूं जो बीज़ को अंकुरित करती है- तो फिर एक अन्य निर्लिप्तता आपके अंदर आ सकती है, कि आपके अंदर ये आपकी शक्तियाँ हैं जिन्हें आपकी कुंडलिनी के अंतर्जात स्वरूप द्वारा मात्र आलोकित किया गया है और आप स्वयं समर्थ हैं। और ये सारी शक्तियाँ जो आपके अंदर हैं, मैंने तो केवल यह बताया है कि यह आपके अंदर हैं । एक दर्पण की तरह आप स्वयं इसे देखते हैं । मैं बस आपको यह बता रही हूं कि, “आप यह हैं, स्वयं इसे देखियें ”। तो मैं किस प्रकार से इसका कोई भी श्रेय ले सकती हूं?
तो आपमें निर्लिप्तता भी हो कि आप समझें कि हमारे पास जो ये शक्तियाँ हैं वह सहजयोग के लिए हैं। जैसें माँ के पास सहजयोग का कार्य करने के लिए शक्तियाँ हैं, हमारे पास भी सहजयोग का कार्य करने के लिए शक्तियाँ हैं । और जिस प्रकार से वे कार्य करती हैं, हमे भी कार्य करना होगा । लेकिन एक प्रकार की लिप्सा है कि “माँ सारा कार्य कर रही हैं, हम क्या कर सकते हैं?” नहीं, आपको यह करना होगा । यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनासक्ति है, जिसे मैं बताने का प्रयास कर रही हूं कि आपको यह स्वयं करना होगा। यह नहीं कि माँ यह करेंगी – आखिरकार, माँ ही सारा कार्य कर रही हैं । यह सही है, एक तरीके से यह सही है, लेकिन आप वह साधन है । विद्युत धारा यहाँ सारा कार्य कर रही है, पर इस यंत्र को तो कार्य करना होगा।
इस प्रकार स्त्रोत तो है किंतु यंत्र को ही कार्य करना होता है। और श्री हनुमान की तरह, आप भी माध्यम हैं, और आपको कर्म करना होगा, आपको कार्य करना होगा । अत्यंत ही गतिशीलता के साथ हमें यह प्राप्त करना होगा । श्री हनुमान की दूसरी महान विशेषता यह थी कि वे अत्यंत सतर्क थे और वे समय के परे थे । जब आप सूर्य को खा जाएं तो फिर समय कहाँ है? वे समय के परे थे । इसके कारण, वे जो भी कुछ जो थे, अत्यंत ही शीघ्रता से। उदाहरण के लिए, जैसे अब हम सहजयोग पर एक किताब तैयार कर रहे हैं । पिछले सोलह वर्षों से यह चल रहा है। ““यह हो रहा है, माँ, यह हो रहा है।” फिर हम कुछ ऐसी व्यवस्था करने का प्रयास कर रहे हैं जहां बीमार लोगों का रिकॉर्ड रखा जा सके जो सहज योग से ठीक हुए हैं। ““वह हो रहा है, बहुत बढ़िया, हो रहा है, हो रहा है !”
फिर, हम रूस जा रहें हैं सहजयोग फैलाने के लिए- ““हाँ, हो रहा है”।” सभी शैतान वहाँ पहुँच चुके हैं लेकिन देवदूत अभी इसकी तैयारी में ही लगे हैं। बड़ें धैर्यवान, बहुत ही धैर्यवान देवदूत । तो श्री हनुमान की एक विशेषता यह थी कि वे एक तेज व्यक्ति थे । वह किसी से भी पहले कार्य को पूर्ण कर देंगे । वे पछाड़ देते हैं।
यह ठीक है, ट्रेफेलगार में युद्ध लड़ना और जीतना और नेपोलियन को हराना, लेकिन धर्म के क्षेत्र में और सहजयोग के क्षेत्र में, मैं पाती हूं कि लोग समय के महत्व को नहीं समझ पाते । हम देर करने में माहिर हैं, और हमें देर करने की आदत है ।“ठीक है, मैं टेलीफ़ोन कर लूँगा । मैं ढूंढ लूँगा और यह हो जाएगा ”।” यह हमारे अंदर सबसे बड़े दोषों में एक है, जिसे हमें श्री हनुमान से सीखना होगा- राम संदेश भेजना चाहते थे, तो उन्होनें अपनी अंगूठी श्री हनुमान के साथ भेज दी । श्री राम उतनी तेजी से यह नहीं कर सकते थे, तो श्री हनुमान गये और इसे पूर्ण करके आए ।
फिर श्रीराम को यह संजीवनी चाहिए थी, एक प्रकार की औषधि । तो एक विशेष पर्वत से लाने के लिए उन्होनें इन्हें भेजा । वे बोले, ““अब इसे खोजने में इतना समय क्यों व्यर्थ किया जाए? बेहतर है कि इसे पूरा ही ले जाया जाए।” ” तो वे समूचे पर्वत को ही उठा लाये। बेहतर है कि इसे शीघ्रता से किया जाए, तुरंत; इसे करने का यही समय है”।
लेकिन, “अगले वर्ष हम इसे देख लेंगे। माँ, ऐसा है, गणपतिपुले के पश्चात, हम इसे देखेंगें । हम चर्चा करेंगे और फिर हम तर्क-वितर्क करेंगे”, और ये वो सब । एक बात है उनके चरित्र की, जो आपको जाननी चाहिए आज जब हम श्री हनुमान की पूजा कर रहें हैं, तो हमारे अंदर भी यह तीक्ष्ण-बुद्धि होनी चाहिए । इसे अभी ही पूरा करना है । हम इसे और नहीं टाल सकते । पहले ही हम बहुत देरी कर चुके हैं। मैंने उन लड़कियों को देखा है जब वे फ्रॉक पहने हुए थीं, छोटी सी लड़कियां अब बढ़ी होकर युवतियां हो गयी हैं, विवाहित होने को हैं । तो मुझे लगता है अपने पूरे जीवन में, मैं अब सिर्फ सहजयोगियों का विवाह ही करवाती रहूगीं।
यदि आपको परिणाम देखने हैं तो आपको तेज़ मनुष्य बनना होगा । विलंब करके दूसरी चीजों से स्वयं को संतुष्ट न करें । लेकिन सकारात्मक चीज़ें, हम कौन सी कर रहें हैं ? जैसे यह सुंदर है कि बच्चे अब बढ़े हो चुके हैं, उन्होनें इतना सुंदर ड्रामा, नाटक किया, इन सभी का हमने आज बहुत आनंद लिया । यह सभी के आनंद के लिए बहुत ही बढ़िया था, लेकिन हमारा कार्य भी है, हमे उसे करना होगा । हमे अपना कार्य करना होगा ।
तो चित्त कार्य पर होना चाहिए और यह कि, हम इसके लिए क्या कर रहें हैं? मुझे प्रसन्नता हुई जब अमरीका से विडियो फिल्म बनाने का एक सुझाव आया और वैसे ही और चीजों का । और फिर इसमें बाधाएँ हैं कि “ हम कैसे धन प्राप्त करेंगे, क्या होगा ? आप बस इसे शुरू करें, आपको यह मिल जाएगा । आपके पास शक्तियाँ हैं । सबकुछ बढ़िया से व्यवस्थित हो जाएगा, आप बस इसे करना प्रारम्भ करें। लेकिन यदि आप मनुष्यों की तरह व्यवहार करेंगे- पहले सोचेंगे, फिर योजना बनाएँगे और फिर उसे रद्द कर देंगे – इससे काम नहीं बनने वाला है।
जबकि श्री हनुमान पिंगला नाड़ी पर हर समय दौड़ रहें हैं, वे करते ये हैं कि वे हमारी सभी योजनाओं को खराब कर देते हैं क्योंकि उनके स्थान पर हम पिंगला पर दौड़ते हैं । तो वे कहते हैं, “ ठीक है, आप इस दौड़ रहें हैं, तो मैं आपको ठीक कर दूंगा।” तो वे हमारी सभी योजनाओं में हर समय गतिरोध उत्पन्न कर देते हैं । तो इस प्रकार हमारी सभी योजनाएँ असफल हो जाती हैं । हम समय को लेकर सतर्क रहते हैं, व्यर्थ की चीजों को लेकर, लेकिन हम सहजयोग में हमारी प्रगति के समय को लेकर सतर्क नहीं हैं ।
हमारे पास अवश्य ही लक्ष्य होने चाहियें, हमारे पास एक निश्चित समय होना चाहिए, “ ठीक है, इस समय में हमें यह प्राप्त करना है”, लेकिन इसे थोड़ी शीघ्रता से किया जाये तो बढ़िया रहेगा । बाकी सभी चीजों को संभाल लिया जाएगा, लेकिन यह आपका कार्य है, कोई भी इसे करने वाला नहीं है ।
कोई भी इसे नहीं करने वाला, यह आपका कार्य है । मेरा मतलब है कि आप कोई ट्रेन नहीं चलाने जा रहे, आप कोई हवाई जहाज़ नहीं उड़ाने जा रहे, और आपको कोई प्रशासन नहीं चलाना है और यह मूर्खतापूर्ण राजनीति । लेकिन आपको सहजयोग करना होगा, आपको इसे फैलाना होगा, आपको इसे उस स्तर पर पहुंचाना होगा, जहां लोग इसे देख पाएं।
अब अठारह वर्ष बीत चुके हैं, और यह उन्नीसवाँ वर्ष है । तो आज यह श्री हनुमान की पूजा का प्रथम दिवस है । मैं अवश्य कहूंगी कि आपको साहस करना होगा । आपको बिना किसी भय के सामूहिकता में, वैयक्तिक रूप में साहस करना ही होगा, यह भूल जाएं कि क्या परिणाम होगा। मेरा मतलब है कि आप जेल नहीं जाएंगे, आपको क्रूसित नहीं किया जाएगा, यह विश्वास रखें । मतलब, यदि आप अपनी नौकरी गवां देते हैं तो आप दूसरी प्राप्त कर सकते हैं और यदि आपको नौकरी प्राप्त नहीं होती तो आपको निर्वाह दान मिल जाएगा- ठीक है। तो इसलिए आपको इन सब व्यर्थ की बातों की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जिनकी मनुष्य चिंता करते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी वे अपने कार्य को पूर्ण करते हैं, वे अपने कार्यों को करते हैं, और वे किस कदर इसमें बधें हुए हैं, मैं हैरान हूं। मैंने अपने परिवार में यह देखा है, वे किस प्रकार बधें हैं। उन्हें यह कार्य करना है, उन्हें सुबह उठना है, यह करना है, वह करना है ।
लेकिन आप जागरूक नहीं हैं कि आप देवदूत हैं और यह आपका कार्य है। आपको यह करना है और इसके अलावा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। मुझे उम्मीद है कि आज की इस पूजा से, इसके जोश से, वह साहसपूर्ण प्रकृति आपकी पिंगला को चैतन्यित करेगी, और आप इसे लेकर बिना अहंकार के, बहुत विनम्रता से -जैसे श्री हनुमान थे, आप कार्य करेंगें ।
श्री हनुमान, आप कल्पना करें, सीताजी ने उन्हें सोने का एक बड़े बड़े मनके वाला एक सुंदर हार पहनने के लिए दिया। और उन्होनें एक एक करके उन सब मनकों को तोड़ दिया । उन्होने कहा, ““इसमे तो श्रीराम कहीं भी नहीं हैं, मैं इस सोने से क्या करूंगा ?”
तो उन्होने (श्री सीता जी ने) पूछा- “श्री राम कहाँ हैं?”
उन्होनें अपना हृदय खोल दिया और उसे दिखाया, “देखिये, श्रीराम यहाँ हैं ।” ”
यदि श्रीराम वहाँ हैं तो आपमें अहंकार नहीं हो सकता । तो इस प्रकार इतनी अधिक गतिशीलता और इतनी अधिक विनम्रता, कैसा मिश्रण था यह ! और इसे ही आपने मात्र अभिव्यक्त करना है । जितना अधिक आप कार्य करेंगे, जितना अधिक आप स्वयं को व्यक्त कारेंगे, आप पाएंगे कि विनम्रता ही एकमात्र चीज़ है जो मदद करती है। आज्ञाकारिता ही एकमात्र चीज़ है जो आपके कार्यों को पूर्ण करने में सहायक है और आप विनम्र और भी विनम्र बनते जाएंगे । लेकिन यदि आप यह सोचते हैं कि, ““ओह यह मैं कर रहा हूँ”- तो समाप्त । लेकिन यदि आप यह जानतें हैं कि यह परमात्मा द्वारा किया जा रहा है- ““परमचैतन्य ही सबकुछ कर रहा है, मैं तो बस एक माध्यम हूँ ”-तो विनम्रता आएगी और आप एक प्रभावी माध्यम बनेंगे ।
मुझे आशा है कि आज इस देश में यह अत्यंत आवश्यक था और बहुत ही समयानुकूल भी था । यह सब देवदूतों द्वारा सुनियोजित था कि हम इस पूजा को यहाँ करें । लेकिन यह आप सबके कल्याण के लिए है । आपको वास्तव में जाना होगा और इन मीडिया के लोगों से मिलना होगा, आप जाएँ और इन मंत्रियों से मिलें, जाएँ और मिलें जैसे वेल्स के प्रिंस से मिलें, जाएँ और दूसरे व्यक्ति से मिलें, उनसे मुलाक़ात करें, समितियाँ बनाएँ, देखे आप क्या कर सकतें हैं । अपना दिमाग इसमें लगाएँ “कि- “हमें क्या करना हैं ”।”
परंतु यहाँ तो केवल- ““मेरी माँ बीमार है, मेरा बेटा बीमार है, मेरा यह बीमार है, मेरा मित्र बीमार है, मेरा……..’’, अब भी इसी के साथ चले जा रहें हैं । यदि आप परमात्मा का कार्य करना प्रारंभ दें तो आपकी सभी परेशानियों को संभाल लिया जाता है। आपको किसी बात को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है- बस संभाल लिया जाएगा। परंतु यह स्वयं का प्रचार नहीं है, यह नहीं है। यह तो सामूहिकता का प्रचार है।
मैं आशा करती हूं कि आज आपने, स्वयं के सूक्ष्म पक्ष को समझ लिया होगा जो वहाँ विद्यमान है, जो प्रदर्शित हो रहा है, जिसे मैं स्पष्ट रूप से देख सकती हूं तथा आप, आप सभी अपने ध्यान में उसके प्रति जागरूक हो जाएंगे जो आपके भीतर है। यह सबसे महानतम बात है जो परमात्मा को प्रसन्न करेगी, और परमात्मा आपकी पूर्ण रूप से देखभाल करेंगे। उसी विश्वास के साथ जो देवदूतों में है, जैसे श्री हनुमान में है –आपको भी आगे बढ़ना होगा और इसे क्रियान्वित करना होगा।
परमात्मा आप सभी को आशीर्वादित करें ।
मुझे अहंकार के विषय में यह कहना है -जो वास्तव में पश्चिम में एक समस्या है, भारत के लोगों की तुलना में, वहां के लोगों में इतना अधिक अहंकार क्यों है । एक बात यह है- जैसे कि हमने आपको कई बार बताया है- दाहिना पक्ष एक एक्सलरेटर जैसा है । और बायाँ पक्ष एक ब्रेक जैसा है । तो यदि मूलाधार नियंत्रण में न हो, यदि ब्रेक ठीक न हो, तो स्वाभाविक है कि एक्सलरेटर को नियंत्रित नहीं किया जा सकता । तो मूलतः हमारे मूलाधार को पुनः सही करना होगा और ठीक करना होगा । आपको इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी । यदि आपका ब्रेक स्थापित हो गया तो फिर आप सहजयोग का चाहे कोई भी कार्य कर रहे हों, आप अहंकार के चक्कर में नहीं पड़ेंगे और अहंकार आपको कभी नियंत्रित नहीं कर पाएगा ।
तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर पश्चिम में जहां पवित्रता तथा मंगलमयता का विचार वास्तव में भयावह रूप से नष्ट हो चुका है। तो यह किसी भी देवदूत कि शक्ति है और इसे पूर्णरूप से हमारे अंदर स्थापित करना होगा, और फिर वह शक्ति कार्यान्वित होगी, जो आपको विवेक प्रदान करती है, जो आपको अहंकार रहित बनाती है । मैं हम आशा करती हूं कि यह दोनों ही चीजें हमारे अंदर इस प्रकार से क्रियान्वित हों जिससे हम वास्तव में पूर्णतया आत्मविश्वस्त, साक्षात्कारी जीव बनें जाएं, जिन्हें मैं आधुनिक समय के देवदूत कहती हूं।