श्री बुद्ध पूजा
बार्सिलो(स्पेन) 20 मई,1989
आज हम यहां बुद्ध की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं।
भगवान बुद्ध, जैसा कि आप जानते हैं, गौतम, जो एक राज परिवार में पैदा हुए थे, और फिर, वह एक तपस्वी बन गए, क्योंकि वह तीन प्रकार की समस्याओं को देखकर बहुत आहत हुए, जिनसे मानव पीड़ित है। और वह निष्कर्ष पर आया कि, ये तीनों प्रकार की समस्याएं इस कारण हैं क्योंकि हमारी इच्छाएं हैं। तो उन्होंने कहा कि, “यदि आप इच्छा रहित हो जाते हैं, तो आपके लिए कोई समस्या नहीं होगी।”
इसलिए उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उन्होंने उपनिषदों का अध्ययन किया, उन्होंने सभी प्रकार की चीजों का अध्ययन किया। वह कई संतों और कई लोगों के पास गए और उन्हें उनका बोध नहीं मिला। वास्तव में वह एक अवतार थे। अवतार को भी एक अलग तरीके से प्राप्ति के बिंदु तक पहुंचना होता है: जैसे पूरी क्षमता को खोलना होता है। लेकिन अवतार में ज़बरदस्त क्षमता होती है, और जो दरवाज़े के बाहर की ओर खुलने पर खुद को अभिव्यक्त करती है। बुद्ध ने महसूस किया कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या उसका अहंकार है। अपने अहंकार में वह चरम सीमा तक जाता है: एक छोर से दूसरे छोर तक। और इसलिए उन्होंने हमारे लिए पूर्णतया पिंगला नाड़ी पर काम किया, और इसे नियंत्रित करने के लिए, स्वयं को हमारे अहंकार पर तैनात किया।
यदि आप आज्ञा चक्र को देखते हैं, यदि केंद्र में ईसा मसीह है, तो आपके पास बाईं ओर बुद्ध हैं, और दाईं ओर महावीर हैं। उन सभी को लॉर्ड्स कहा जाता है, क्योंकि वे इन तीन क्षेत्रों के शासक हैं।
अब आज्ञा का यह क्षेत्र तप का क्षेत्र है, तपस्या का है। क्योंकि उन्होंने हमारे लिए तपस्या की है, हमें कोई तपस्या नहीं करनी है: इसका मतलब है कि उन्होंने हमारे लिए वह सब कुछ किया है जो संभव है। सहज योगियों को कोई तपस्या करने की ज़रूरत नहीं है, वे एक अच्छी चैतन्यमय जगह में हैं। उन्हें जंगलों में नहीं जाना है, ना ही समाज से दूर भागना है और ना ही खुद को एक ऐसी जगह पर छुपाना है जहां बिच्छू, सांप, और बाघ हो सकते हैं, जीवन के लिए कोई भी ख़तरा हो सकता है। इसलिए तपस्या की भूमिका खत्म हो चुकी है और बुद्ध के जीवनकाल में भी – जब वे जीवित थे, हर समय उन्होंने कहा, “कोई तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। कोई तपस्या करने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं है।” यदि आप बुद्ध, उनकी प्रारंभिक शिक्षाऐं पढ़ते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि उन्होंने कहा कि कोई तपस्या नहीं होनी चाहिए। वह स्वयं तपस्या से गुज़रे। लेकिन वह समय था, समयाचार, वह समय था, जहाँ उन्हें ऐसे लोगों की ज़रूरत थी, जो उनके विचारों के प्रचार के लिए बाहर जाएँ, इसलिए उनमें से अधिकांश ने एक तरह का जीवन अपना लिया, लेकिन उन्होंने कभी किसी तपस्या में विश्वास नहीं किया।
इसके अलावा, वह शाकाहारी नहीं थे। वह मर गये क्योंकि एक बार वह एक गांव में गये थे और वह भूखे थे और उन्होंने एक शिकारी, जिन्हें हम किरात कहते हैं से पूछा, कि, “मैं अब खाना चाहूंगा और मुझे अपने काम के लिए जाना है।”
उसने कहा कि, “आज सुबह मैंने एक जंगली सूअर को मार दिया है, लेकिन इसमें कुछ समय लगना चाहिए अन्यथा यह बहुत गर्म रक्त है।”
उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं है।”
[यह] बहुत महत्वपूर्ण है | राइट साइड (दायाँ भाग) –
एक जंगली सूअर का लाल मांस इसे ठंडा किए बिना उन्होने उसे खा लिया और वह उसी के साथ मर गये। वे जो कुछ भी करते है उसका एक अर्थ होता है।
जैसा कि हम मसीह के जीवन में अर्थ पाते हैं, हम बुद्ध में भी अर्थ तलाश पाते हैं। यही कारण है कि बौद्ध लोग शाकाहारी बन गए। क्योंकि बुद्ध उस गर्म मांस को खाने से मर गए, वे शाकाहारी बन गए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर किसी को शाकाहारी बनना है। जिनको अहंकार है, उनको शाकाहारी होना बेहतर है। राइट साइड लोग शाकाहारी भोजन के साथ बेहतर होते हैं, और बाईं ओर के लोगों को अधिक प्रोटीन खाना चाहिए, जो हम अच्छी तरह से जानते हैं।
इसलिए उन्होंने अपने साथियों को बहुत प्रेम और करुणा के तरीके से चलाने का प्रयास किया था। लेकिन उनके संदेश का स्वर क्या था, इसे समझा जाना चाहिए। एक लड़का था जो उनके पास आया था और उनसे पूछा था कि,
“सर, क्या आप मुझे बुद्धत्व की दीक्षा देंगे?” यह उस समय ’ism’ नहीं था।
“क्या तुम मुझे दीक्षा दोगे?”
उन्होंने कहा, “मेरे बच्चे, केवल ब्राह्मणों को ही दीक्षित किया जा सकता है,” जिसका अर्थ है सत्यार्थी आत्मा। “तुम्हारा जन्म क्या है?”
उन्होंने कहा, “सर, मैं अपने जन्म को नहीं जानता,”
इसलिए अपनी माँ के पास गया और पूछा, “ माँ मेरा जन्म, क्या है?” मेरे पिता कौन थे? ”
उसने कहा, “मेरे बच्चे, मैं बहुत ग़रीब महिला थी और मुझे नहीं पता था कि मेरा जीवनयापन कैसे हो, इसलिए मेरे पास कई स्वामी थे, मैं रहती थी और मुझे नहीं पता कि आपका पिता कौन है।”
“आप मेरे पिता को नहीं जानते?”
उसने कहा, नहीं।” इसलिए वह भगवान बुद्ध के पास गया |
उन्होंने पूछा, “अब, तुम्हारा पिता कौन है, और तुम्हारी जाति क्या है?”
उसने कहा, “सर, मेरी कोई जाति नहीं है, क्योंकि मेरी माँ ने मुझे बताया था कि उनके बहुत से स्वामी हैं और वह नहीं जानती कि मैं कहाँ पैदा हुआ हूँ, इसलिए मैं अपने पिता को नहीं जानता।”
तो बुद्ध ने उसे गले लगा लिया, उन्होंने कहा, “तुम ब्राह्मण हो, क्योंकि तुमने सच कहा है।”
तो उसके जीवन का सार सत्य है।
पहले हमें खुद के प्रति ईमानदार होना होगा। और मुझे लगता है कि कुछ लोगों को खुद के प्रति ईमानदार होना बहुत मुश्किल लगता है। वे सच्चाई से बचना जानते हैं। उन्हें पता है कि कैसे इस से बचना है। इससे बाहर निकलने के लिए, वे कुछ तर्क देंगे, या वे कुछ स्पष्टीकरण देंगे। आप किसको स्पष्टीकरण दे रहे हैं – केवल खुद को! आपकी आत्मा आपके भीतर निवास कर रही है, जो आपके ध्यान में प्रबुद्ध है और अब [आप] किसको समझा रहे हैं? अपनी आत्मा को? इसलिए ईसा मसीह का यह संदेश हो सकता है कि हमें स्वयं को पुनः जीवित करना होगा। लेकिन कैसे पुनरुत्थान हो? कि पहली बात आपको अपने आप से बहुत ईमानदार होना चाहिए है। सबसे पहले और महत्वपूर्ण बात यह है कि आपकी जाति एक ब्राह्मण है, आप ब्रह्म को जानते हैं, आप सर्वव्यापी-शक्ति को जानते हैं, आपने इसे महसूस किया है। आप असली ब्राह्मण हैं, और असली ब्राह्मण होने के नाते, आपको संयमी होना होगा। मेरा मतलब है, भारत में, उदाहरणार्थ हम एक ब्राह्मण को ले, वे असली ब्राह्मण नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन पैदा एक ब्राह्मण परिवार में हुए हैं, या हो सकता है कि उनके पूर्वज ब्राह्मण रहे हों, या ऐसा कुछ हुआ हो, वे खुद को ब्राह्मण कहते हैं, ठीक है। तो उनकी क्या विशेषता है? सभी ब्राह्मण सुबह चार बजे वे जागेंगे। इस प्रकार आप एक ब्राह्मण को पहचान सकते हैं । मैं भी उस तरह से ब्राह्मण हूं। फिर वे स्नान करेंगे, खुद को पूरी तरह से साफ करेंगे और प्रार्थना या पूजा या शायद ध्यान के लिए बैठेंगे। इस प्रकार आप ब्राह्मण को पहचान सकते हैं | हालांकि वे ब्राह्मण नहीं हैं, लेकिन परंपरा है।
जबकि भारत में जिन्हें एक शूद्र कहा जाता है, परंपरा में: नौ बजे उठेगा, गंदे कपड़े पहने, मुंह में हाथ डालें, एक भद्दा, गन्दगी से घिरा हुआ व्यक्ति होगा। वह गंदगी की गंध को महसूस भी नहीं कर सकता, क्योंकि वे परंपरागत रूप से उस तरह का काम करते रहे हैं। वे नहीं करते| अब हमें पता चले हैं कई ब्राह्मण, जो वास्तव में शूद्र परिवारों में पैदा हुए हैं। तो वास्तव में शूद्र परिवारों में, जैसे, यह जन्म से नहीं, बल्कि उनकी योग्यता से, उनकी जाति से, वे ब्राह्मण हैं। लेकिन पारंपरिक रूप से यह उनके समाज में स्वीकार किया जाता है। उनके बाल बिखरे हो जाएंगे। आप तुरंत पहचान कर सकते हैं, बालों में कोई तेल नहीं, पहले बिंदु। बालों में कोई तेल नहीं, बाल सभी अव्यवस्थित हैं। दूसरे, वे सेक्स जीवन के बारे में परेशान नहीं होते हैं, और राक्षसी हैं, वह केवल राक्षस होते है, जो महिलाओं में रुचि रखते हैं, महिलाओं को देखते हैं, वग़ैरा और, मुझे कहने के लिए खेद है यह सब, वास्तव में, पुराणों के अनुसार, राक्षसों के लक्षण है ।
क्योंकि जब समुद्र का मंथन हुआ था, [समुद्र] मंथन हुआ था, और अमृत बाहर निकला था, अमृत समुद्र से निकला था, तब श्री विष्णु ने राक्षसों की कमज़ोरी जानी थी। उन्होंने (राक्षसों ने) बल पूर्वक अमृत का कुम्भ ले लिया था, क्योंकि वे अधिक शक्तिशाली, अधिक अहंकारी थे, वे चालाक हो सकते थे, इसलिए वे देवों के सामने कामयाब रहे और दूर ले गए, और वे इसे पीने ही वाले थे। तो श्री विष्णु को राक्षसों की कमज़ोरी पता थी, इसलिए उन्होंने एक महिला की तरह कपड़े पहने, मोहिनी, उन्होंने खुद को मोहिनी कहा। मोहिनी का अर्थ है आकर्षक, जो अपनी पोशाक, आकृति, इस तरह की बकवास से आपको आकर्षित करती है। और तुरंत ही सभी राक्षस उसके लिए गिर गए, मेरा मतलब है उनके लिए ! तुरंत, मेरा मतलब है कि आप देवों और राक्षसों के बीच आसानी से भेद कर सकते हैं।
लेकिन कहते हैं कि यूनान में, उन्होंने देवों को ही राक्षस बना दिया, समस्या हल करदी!
और जैसे ही उन्हें पता चला कि उनमें से एक ने कुछ अमृत ले लिया है, जैसाकि पौराणिक कथाओं में कहा गया है, वह गयी और खिलखिलायी और एक राक्षस के रूप में, उसने महिला का घूरना पसंद किया, किसी ने उस पर मुस्कुराया, या गुदगुदाया| फिर घमंड से सोचा कि “सुंदर महिला आ रही है और मुझे गुदगुदी कर रही है, ओह्ह।” (हँसी) वह जितना मूर्ख था, उसे इतना गुदगुदी महसूस हुई कि उसने उल्टी कर दी। और वे कहते हैं कि लहसुन उस अमृत से पैदा हुआ था, मेरा मतलब है, पौराणिक रूप से ऐसा कहा गया है।
इसलिए जब मैं सहज योग में लोगों को देखती हूं, जो खुद के प्रति ईमानदार नहीं है, पहली बात उन्हें पता होना चाहिए – अहंकार एक बहुत ही चालाक चीज है, लेकिन यह आपको दूसरे अहंकार का ग़ुलाम भी बनाता है। अब देखें, उदाहरण के लिए, एक महिला इन सौंदर्य दुकानों में जाती है, खुद को तैयार करती है, इनको पहनती है, ऐसे ही सब करती है, मुझे नहीं पता कि वे क्या करती हैं, लेकिन वे तीन, चार घंटे के बाद इससे बाहर आती हैं और मुझे तो वो पहले जैसी ही दिखती हैं , (हँसी) मुझे नहीं पता कि वे कितने पैसे खाली करती हैं। लेकिन यह कुछ आश्चर्यजनक है कि इस बार बाल अलग तरीके से कटे हुए हैं।
तो आप पूछते हैं, “आपने इसे अब इस तरह क्यों काटा?”
“यह एक फैशन है।”
इसका मतलब है कि आपके पास अपने विचार नहीं हैं। आपकी अपनी अवधारणा नहीं है। जो भी फैशन है, आप बस वैसा करते हो | आप यह भी नहीं समझते कि यह आपके लिए अच्छा है या नहीं।
तो अहंकार हावी हो जाता है। माना कि एक उद्यमी है, कहते हैं, बहुत चालाक और चालाक, किसी भी और से अधिक, माना। ऐसे कई हैं, बिल्कुल। अब वह कहता है कि, “आप अपने सिर पर एक मुरब्बे का डिब्बा रख सकते हैं और अपने बालों को इस तरह बाँध सकते हैं और आप बहुत अच्छे लगेंगे”, और वह बहुत सारे विज्ञापन डालता है – उसके सभी मुरब्बे के डिब्बे बिक सकते हैं! बिना सोचे-समझे वे मुरब्बे के डिब्बे का इस्तेमाल करेंगी। मतलब आपका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है। अहंकार क्या है? अहंकार ने आपको एक व्यक्तित्व, एक चरित्र, एक स्वभाव देना चाहिए। और जब आप उन्हें देखते हैं तो आप उनमें भेद नहीं कर सकते हैं – जैसे कि आप जानते है, सिक्ख लोग, क्योंकि आप एक सिक्ख और दूसरे सिक्ख में पहचान भेद नहीं कर पाते हैं ,क्योंकि वे सभी दाढ़ी और मूँछें रखते हैं। आप महिलाओं को एक से दूसरे में पहचान नहीं पाते हैं, क्योंकि हर किसी की हेयर स्टाइल एक जैसी होती है, कपड़े का स्टाइल, सब कुछ एक जैसा होता है, क्योंकि यह एक फैशन है। फैशन किसने शुरू किया है? कुछ बहुत चालाक साथी [जो] पैसा कमाना चाहते हैं!
भारत में, हमें एक तरह का… हम इसे टोकनी कहते हैं, एक तरह की टोकरी है, छोटी छोटी टोकरी है; और अचानक यह ग़ायब हो गयी बाजार से। हमें नहीं पता था कि यह कहां गयी है, मेरा मतलब है कि यह जानना असंभव है! तुम इसमें क्या कर सकते हो ? यह एक बहुत ही साधारण वस्तु है। यह सब अमेरिका की घटना है। “क्यों?”,
“महिलाएं अपने बालों के लिए उनका उपयोग कर रही हैं।”
मैंने कहा, “कैसे? वे अपने बालों के साथ क्या करते हैं? ”
“नहीं नहीं नहीं नहीं। आजकल देखें, वे अपने सिर में कोई तेल नहीं डालते है, इसलिए वे सभी गंजे हो गए हैं। ” यदि आप तेल नहीं लगाते हैं, तो आप गंजे हो जाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। मैं आपको अभी बता रही हूं, आप गंजे हो जाएंगे। इसलिए हम कट्टर लोग हैं, हम तेल नहीं डाल सकते हैं, आप जानते हैं। लेकिन फिर हम अपने आप गंजे हो जाते हैं, आप किसी भी बुद्ध संगठन में शामिल हो सकते हैं, अच्छी तरह से, आपको बाल नहीं मुंडवाने है! तो वे कहते हैं कि, “हम अब गंजे हो गए हैं, इसलिए हमें कुछ करना होगा।” इसलिए उन्होंने उन टोकरियों को रखा और उनके ऊपर, उसे क्या कहते हैं, विग आप कहेंगे। आश्चर्यजनक!
“लेकिन क्यों, आप इसे अपने सिर पर क्यों नहीं डालते हैं?”
“नहीं, आपके बाल फूले हुए होना चाहिए, आप देखें! किस लिए?
”लेकिन वह फैशन है।”
एक दिन, एक महिला मुझसे बात कर रही थी, उसकी टोकरी नीचे गिर गई और नीचे विग भी आ गई, (श्री माताजी हंसते हुए) और इस तरह मैंने यह जाना। (हँसी)
तो क्या है – यह समझना है कि अगर आपको स्वाभिमान है, तो आप का अपना व्यक्तित्व, चरित्र, समझ, विशेषता और अपना स्वभाव होना चाहिए। जो की नहीं है। बुद्ध ने क्या किया? उन्होंने कहा: आप हर चीज से मुक्ति ले लो सब कुछ, अपने बाल, यहां तक कि अपनी पलकें,जो कुछ भी, मुंडा जा सकता है, हाथ, पैर, सब कुछ, मुंडा। सोचिए अगर आप बुद्धत्व का पालन कर रहे होते, तो हमारे साथ क्या हुआ होता। (श्री माताजी हँसते हुए) और उन्होंने कहा, “ठीक है बस एक कषाय पहनो।” मतलब भगवा वस्त्र। “केसरिया कपड़े पहनें, और सब कुछ मुंडा हो,” और महिलाएं केवल दो कपड़े पहन सकती हैं, ज्यादा से ज्यादा एक ब्लाउज और एक साड़ी, , कोई पेटीकोट, कुछ भी नहीं। चाहे आप रानी हैं, या आप एक स्वीपर हैं। उन सभी को एक जैसे दिखना चाहिए – इसलिए अब फैशन की कोई बात नहीं। लेकिन ‘बौद्ध’ जो भी आप सोच सकें उन सबसे बड़े फैशनपरस्त लोग हैं।
यदि आप जापान जाते हैं, और उनके फैशन देखते हैं, तो आप पागल हो जाएंगे, वे बहुत कृत्रिम हैं। मुझे नहीं पता कि बुद्धत्व कहां चला गया, जहां बुद्ध हमेशा ऐसे लोगों की प्रशंसा करते थे जो स्वाभाविक थे। सारा बुद्धत्व इस तरह बियाबान में खो जाता है। एक और बात राइट साइड लोगों को एक और समस्या है, क्योंकि यदि आप बहुत अधिक राइट साइड हो जाते हैं तो आप बाईं ओर की उपेक्षा करते हैं, अपने मूलाधार की उपेक्षा करते हैं, क्योंकि आप देखते हैं, “क्या गलत है, क्या गलत है?” जब तक की आपको एड्स ना हो जाए, तब तक कुछ भी गलत नहीं था, अब कुछ गलत है। जब तक आपको कैंसर न हो, “धूम्रपान में क्या गलत है, क्या गलत है?” मेरा मतलब है कि वे भारत में भी विज्ञापन करते हैं, अगर आप अपने हाथ में सिगार या हाथ में सिगरेट रखते हैं तो आप बहुत अच्छे लगते हैं; आप चिमनी की तरह दिखते हैं, लेकिन ठीक है। (श्री माताजी हँसते-हँसते)
इसलिए वे ये सब बातें कहकर आपके अहंकार को सहलाते हैं और आप वैसा करने लगते हैं, और उस काम को करने में आप भूल जाते हैं कि आप मूर्ख हैं!
यह मुझ से जान लो की, हम अपनी सारी सुंदरता खो देने जा रहे हैं यदि हम इन चालाक लोगों की सुनते हैं जो उद्यमी हैं। हमारे पास मोनालिसा थी, इन दिनों आप उसे कहीं भी नहीं पाते हैं। तुम्हारे पास मच्छर हैं, भयानक! उन्हें लगता है कि वे बहुत सुंदर हैं, [लेकिन] वे कोई चैतन्य की अनुभूति नहीं देती हैं। सौंदर्य शास्त्र के किसी भी कोण से, वे सुंदर नहीं हैं। और जब तक वे चालीस साल के हो जाते हैं, तब तक वे कम से कम अस्सी साल के दिखते हैं|
तो, क्या हुआ कि हम अपने अहंकार के हाथों में खेल रहे हैं और हमारा मूलाधार खो गया है। मूलाधार ब्रेक है, ब्रेक की तरह है। दाईं ओर एक्सलरटर है और बाईं ओर मूलाधार है जो ब्रेक है – लेकिन “ गलत क्या है?”
इसीलिए बुद्ध ने ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया, ब्रह्मचर्य, क्योंकि यदि आप दायीं ओर बहुत अधिक जाते हैं, तो अब कई जटिलताएँ हैं। मैं उन्हें कई लोगों के लिए सुनती हूं कि जो लोग अति सक्रिय हैं वे बच्चे पैदा नहीं कर सकते। सबसे पहले, “ गलत क्या है?” फिर, पूर्ण रुखापन – उनके बच्चे नहीं हो सकते। और अगर संयोग से उनको बच्चे हैं भी तो वे केवल राक्षस हो सकते हैं।
तो बहुत अधिक तपस्या आपको बहुत अधिक दायें तरफ जा सकती है। इसलिए बुद्ध ने कहा, “कोई तप की जरूरत नहीं है।” उन्होंने यह कहा, हालांकि उनके आसपास के लोग, जिनकी वे देखभाल करते थे, उन के बारे में उन्होंने सुनिश्चित किया की वो लोग ब्रह्मचारी हों| और उन्होंने ही उन लोगों को संतुलन दिया और उन्हें व्यवस्थित किया। तो एक बार जब आप दाईं ओर से कार्यान्वित होने लगते हैं, तो आप अंततः स्वतः: ही बंद गोभी की तरह हो जाते हैं| आप बच्चे पैदा नहीं कर सकते, आप लंबे समय तक जी नहीं सकते। जैसे कहें, कोकीन लेना। आप की गति बहुत तेज़ हो जाती है। और आपको वास्तव में …ऐसे लोगों के साथ रहना बहुत मुश्किल है, बहुत मुश्किल है। क्योंकि वे एक जेट की गति से चलते हैं और मैं एक हाथी की गति से। मैं सिर्फ उन्हें देखती हूं कि वह जा रहा है, आ रहा है, जा रहा है, आ रहा है। (हँसी) मैं नहीं जानती कि कैसे संबंधित हों। तो इस अहंकार को रोकने के लिए हमें बुद्ध की पूजा करनी होगी, बुद्ध की पूजा करनी होगी।
लेकिन पहला सिद्धांत आपकी पवित्रता का सम्मान करना है। बुद्ध का सम्मान करने का अर्थ है अपनी पवित्रता का सम्मान करना। आपको अपनी पत्नी को छोड़ना नहीं होगा जैसी भी आप को मिली हैं : जब तक और जहाँ तक वे भयानक न हों। आपको अपने पतियों को छोड़ना नहीं पड़ेगा। वे सभी बिना पत्नियों के थे। बुद्ध की एक पत्नी थी, उन्होंने उसे त्याग दिया, महावीर की कोई पत्नी नहीं थी, क्राइस्ट की कभी शादी नहीं हुई थी। लेकिन निस्संदेह सहज योग में आप शादी करते हैं, आपके बच्चे हैं। और जैसा कि हम कह रहे थे, कि अहंकार के साथ, हम एक तरह से, बहुत हद तक स्वयं में लिप्त हो जाते हैं।
तो हम कह सकते हैं कि इस दुनिया में तीन तरह के लोग हैं। पहले जो दूसरों के बारे में परेशान नहीं हैं।
तो बुद्ध का पहला संदेश खुद के प्रति ईमानदारी है। और पहला क्षेत्र जहाँ ईमानदारी को देखना है वह आपकी पवित्रता में है। आप शादी कर सकते हैं, आपकी पत्नी हो सकती है, आपके पति हो सकते हैं, आपके बच्चे हो सकते हैं।
तो यह अहंकार, जो पहले था, एक प्रकार का व्यक्ति बनाता है, वह व्यक्ति जो सिर्फ स्वयं में लिप्त होता है: उसकी महत्वाकांक्षा, उसकी परियोजनाएं, उसकी नौकरियों, ज्यादा से ज्यादा उसकी पत्नी, या उसके बच्चे, उसका घर, उसकी कार, शायद उसका घोड़ा, शायद अधिक से अधिक उसका कुत्ता (हँसी)! यदि वह विस्तार कर सकता है। अन्यथा, यदि आप ऐसे व्यक्ति को मान लो बताते हैं कि, “मैं कुछ हद तक किसी के बारे में चिंतित हूँ,” वह व्यक्ति मुझे कहेगा, “देखिए, आपने अपना कर्तव्य निभाया है। अब अगर वह व्यक्ति ऐसा नहीं करना चाहता है, तो आपको क्यों चिंता करनी चाहिए, आपको खुश होना चाहिए।” “लेकिन मैं कैसे खुश रह सकता हूं? मैं आपके जैसा नहीं हूं।” और ऐसा व्यक्ति यह भी कहेगा कि, “यह मेरा घर है इसलिए मुझे किसी और के बारे में चिंता क्यों करनी चाहिए जिसके पास कोई घर नहीं है? यह ‘मेरा’ कमरा है। यह ‘मेरा’ क़ालीन है।” कोई भी ‘मेरे’ घर में आता है “ओह वहाँ बैठो, उसे वहाँ रखो!” “ऐसा भयानक रूप से कठोर व्यक्ति। “मेरा और मेरा, मेरा और मेरा” – काम करता जाता है। और यह अहंकार तब फैलता है, अधिक से अधिक और अधिक से अधिक, और फिर – “मैं एक विचारधारा में विश्वास करता हूं!” जैसा हिटलर ने किया था। वह कुछ यहूदियों से आहत हुआ होगा, हो सकता है। इसलिए उस चोट के साथ वह पूरी तरह से अपने अहंकार की एक बड़ी भयानक क़ैद में था और वह हर यहूदी को मारना चाहता था!
तो इस तरह का एक व्यक्ति जो खुद में ही लिप्त है, “मैं, मैं, मेरा” और “मैं सबसे अच्छा हूं।” “हर कोई मूर्ख बैवकुफ है, मैं सबसे बुद्धिमान हूं। मैं सबसे चतुर हूँ, मुझे सब कुछ पता है। ” एक कहावत की तरह: “मैं सड़क से आ रहा था और मैंने एक डकैत को देखा, इसलिए मैं पेड़ तक दौड़ा और छिप गया। मैं कितना महान व्यक्ति हूं। फिर डकैत आए और उन्होंने मुझे धमकी दी, इसलिए मैंने उन्हें सब कुछ दे दिया। मैं कितना महान व्यक्ति हूं। तभी डकैत आए और उन्होंने मेरी पत्नी को भगा लिया। मैं कितना महान व्यक्ति हूं।” स्व प्रमाण पत्र! और वह बहुत खुश है। ऐसे व्यक्ति से हर कोई थक जाता है, ऐसे व्यक्ति से हर कोई दुखी है, कोई भी ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करता है। यदि ऐसा कोई व्यक्ति इस तरफ से आ रहा है, तो उनमें से अधिकांश भाग जाएंगे, “ओह, वह आ रहा है!”
भारत में उस तरह के कुछ लोग हमारे यहाँ हैं, हर शहर में, जाने-माने, हर कोई उन्हें जानता है। तो अब, सुबह, लोग एक बगीचे में टहलने के लिए बाहर जाते हैं और वे इस तरह के एक व्यक्ति को उस तरफ से आते देखते हैं। “ओह! भगवान आज हमें अपना भोजन नहीं मिलेगा|” मैंने बोला क्यूँ?” “हम आज जिस बहुत ही अशुभ व्यक्ति से मिले, वह यह है।” लेकिन वह बहुत … वह इस तरह से चल रहा है कि, “गलत क्या है?” ऐसे व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता है। आप सोच सकते हैं कि आपका कोई पार नहीं है [लेकिन] कोई भी आपको पसंद नहीं करता है। हर देश और देशों में [ऐसे] लोग हैं, यह ऐसी सामूहिक बकवास है।
कभी-कभी, जब आप देखते हैं कि अमेरिका में इन्हीं स्पेनिश लोगों द्वारा कितने लोगों की हत्या की गई, कई स्पेनिश आज सहज योगी हैं, तो मुझे विश्वास नहीं हो सकता कि आप उन्ही स्पेनिश के बच्चे हैं, मेरा मतलब है कि आप इतने अलग हैं! बहुत खूबसूरत।
तो आखिर ऐसा क्या था जिसने उन्हें इतना क्रूर बना दिया? वह अहंकार, उस अहंकार ने उन्हें ऐसा बना दिया, कि वे यह नहीं देख सके कि, “ जिन्हें हम मार रहे हैं वो भी मानव हैं।” “हमने उनके देश पर अतिक्रमण किया है, हम यहां हैं, हम उन्हें मार रहे हैं, हमें वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है।” ऐसा ही पुर्तगालियों के साथ भी: वे सभी ब्राजील में बस गए, जबकि वे पुर्तगाल के हैं,पुर्तगाल में वहां केवल 5% लोग बचे हैं। वे उस पुर्तगाल के बारे में परेशान नहीं हैं जो बहुत ग़रीब है। स्पैनिश जो लोग अमेरिका में बस गए उनके साथ भी वही बात है, “तो क्या? हमने अपना अमेरिका अर्जित कर लिया है। हम यहां हैं, हमने यह किया है, हमने वह किया है, हमने इतने लोगों को मार दिया है। वर्तमान स्पेन वासियों ने किसी को नहीं मारा है, इसलिए हम उन स्पैनिश लोगों की देखभाल क्यों करें? ” और इस तरह उनके अहंकार ने इस तरह के विनाश को सामने लाया।
जब मैं पहली बार कोलंबिया गयी थी, तो मुझे नहीं पता था कि, एक सज्जन मेरे बारे में जानते थे। उसने मुझसे पूछा, “माँ, क्या तुम वही हो जो एक आध्यात्मिक नेता के रूप में जानी जाती है?” मैंने कहा, “हाँ, मैं हूँ, तो क्या?” उसने मुझसे मुलाकात की एक पार्टी में। मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने मुझे ‘माँ’ कहा। तो उन्होंने कहा, “क्या आप हमारे देश को ऐसा आशीर्वाद दे सकती हैं, जिससे हम इन अमेरिकियों को परास्त कर सकें। प्रकृति से ही कुछ होने दो। हमारे पास गेहूं है, हम यहां गेहूं का उत्पादन करते हैं और ये लोग इसे इतनी कम कीमत पर खरीदना चाहते हैं कि हम अपने परिवारों का पालन भी नहीं कर सकते। यह इतना कम मूल्य है कि हम वास्तव में आर्थिक रूप से ऐसा नहीं कर सकते हैं। हम खुद भूखे रहते हैं और उन्हें ये गेहूं बेचते हैं।” तो अब, कोलंबिया में, कोलंबिया के बस्ती शहर, बोगोटा, जो अब सबसे अधिक विकसित हो गया है। वे सभी प्रथम श्रेणी से यात्रा करते हैं, और अमेरिकी कोकीन ले रहे हैं और उनके पैर धो रहे हैं। यह अहंकार का प्रतिफल है। आपको लाभांश का भुगतान करना होगा, आपको अपने अहंकार के लिए भुगतान करना होगा, और बहुत गंभीर रूप से। अपने अहंकार के साथ कोई भी चालाकी की कोशिश करो, यह आप तक लौट कर आता है बुमरेंग की तरह। बेशक सहज योग में यह सबसे खराब तरीके से होता है, सबसे खराब, मैं किसी को अहंकार के घोड़े की सवारी करते हुए देखकर भयभीत हो जाती हूं।
मुझे दूसरे प्रकार के लोगों जो यहां है का भी उल्लेख करना चाहिए, जो लेफ्ट साइड हैं। वे हमेशा शिकायत करते हैं, “मुझे सिरदर्द हो गया है, मुझे यहाँ दर्द हो रहा है, मुझे वहाँ दर्द हो रहा है, मुझे यह हो गया है।” सभी तरह की बीमारियाँ उन्हें होंगी। जैसे मैंने जेरोम की एक पुस्तक पढ़ी, वह एक साथी ने पढ़ी … मुझे आशा है कि आप लोग जल्दी में नहीं होंगे। (हँसी) तो उन्होंने वर्णन किया कि
– एक व्यक्ति एक डॉक्टर के पास गया, और
उसने कहा, “सर, मुझे मटेरिया मेडिका में वर्णित सभी बीमारियाँ हैं, एक को छोड़कर, जो कि गृहिणी के घुटने के लिए है।” (हँसी)
उन्होंने कहा, “यह कैसे है कि वो आपको नहीं है?”
व्यक्ति ने कहा, “क्योंकि मैं एक गृहिणी नहीं हूं।” तो
उन्होंने कहा, “आपको ये सभी बीमारियाँ कैसे हुईं और आप कैसे जानते हैं?”
व्यक्ति कहा, “क्योंकि मैं मटेरिया मेडिका पढ़ता हूं और मैंने पाया कि मुझे ये सभी बीमारियां हैं।”
तो उन्होंने कहा, “ठीक है, मैं आपको एक दवा दूँगा लेकिन अभी आप इसे नहीं लेंगे, आपको यहाँ से लगभग पाँच मील दूर जाना होगा और वहाँ आप इसे ले जा सकते हैं।” तो उसने दवा ली, एक कागज़ के टुकड़े में। वह वहां गया और उसने एक के बाद एक इसे खोला और उसे कोई दवा नहीं मिली, लेकिन आखिरी कागज़ था, उस पर लिखा था, “तुम मूर्ख हो, मटेरिया मेडिका मत पढ़ो ! आप को कोई बीमारी भी नहीं है! ” (हँसी)
इसलिए दूसरी तरह के लोग, शिकायत करने वाले हैं, और वे वास्तव में धृष्ट हैं, कभी-कभी वे बहुत दुखदायी होते हैं, मुझे नहीं पता। यदि कभी आप ग़लती से पूछ लें “आप कैसे हो ?” – तो चीजों की एक सूची है। (हँसी) “हे भगवान, मैंने इस व्यक्ति से ऐसा क्यों कहा?” चीजों की यह सूची, आप जानते हैं, एक के बाद एक। “यह हुआ, आज सुबह, यह हुआ, शाम यह हुआ, यह हुआ।” उनके साथ सब होता है। “और भोजन बहुत बुरा था, और उन्होंने मुझे बहुत बुरा व्यवहार किया, और सहज योगी इतने बुरे थे, और वे मुझे वहां नहीं ले गए, और उन्होंने मुझे इतना परेशान किया, और मैं अकेला रह गया, किसी ने भी मेरी चिंता नहीं की। और वे मेरे लिए बहुत क्रूर हैं, और यह नेता मेरे लिए बहुत कठोर है। वह मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता है और यह, कृपया इस नेता को हटा दें और उसने ऐसा किया और उसने … ““ उसने क्या किया? “उसने मुझे पानी लेने की अनुमति नहीं दी।” “एह? वह आपको पानी लेने की अनुमति क्यों नहीं देगा? ” कुछ इस तरह बेवकूफी कि बात वे आपको बताएँगे।
कभी-कभी मुझे लगता है – वे महान संत कहां खो गए? जो की तीसरे प्रकार के लोग थे जो अपनी परवाह नहीं करते थे, और जो इसमें लिप्त नहीं थे, लेकिन वे दूसरों के लिए थे, जो दूसरों के बारे में परेशान थे की, दूसरे व्यक्ति को क्या परेशानी थी। “हमारे नेता को क्या परेशानी है? मैं नेता के प्रति कैसा व्यवहार कर रहा हूं? मैं उस के लिए क्या कर रहा हूँ? क्या मैं उसकी कोई मदद कर रहा हूँ? क्या मैंने किसी को आत्मसाक्षात्कार दिया है? क्या मैंने उसे ठीक से कोई पैसा दिया है? क्या मैं समझदार हूं, या मैं उसे हर समय परेशान करता हूं और फिर मैं मां से शिकायत करता रहता हूं?
“ये लोग कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। एक अति संतुष्ट है, दूसरा कभी संतुष्ट नहीं होता है। और जो मध्य में है वह अपनी संतुष्टि के लिए कम से कम परेशान है, वह सिर्फ दूसरों की संतुष्टि देखना चाहता है। और यही बुद्ध के जीवन से समझा जाना चाहिए, वह कैसे थे और उनका सम्मान कैसे किया जाए।
तो आज जो लोग बुद्ध की पूजा कर रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उनका सत्य का संदेश, (जिसे हम अपने राइट साइड तथा,अपने ध्यान के माध्यम से जानते हैं) सबसे पहले स्वयं पर लागू करना चाहिए।
लोग मुझे बताएँगे, “माँ, उसके चैतन्य ठीक नहीं है, इस घर में कोई अच्छे चैतन्य नहीं है, उसमें कोई अच्छा चैतन्य नहीं है”, और वह व्यक्ति खुद मेरे सामने कांप रहा है, आप जानते हैं – इस तरह।
और मैंने कहा, “आपके स्वयं के चैतन्य का क्या ?”
“ओह, मुझे तो बहुत मिल रहे हैं|” लेकिन मुझे बहुत कुछ हो भी रहा है, इसलिए कृपया! सहज योगियों के साथ समस्या कभी-कभी यह होती है कि जो वे जानते हैं उसका महत्व नहीं जानते हैं, वे जागरूक नहीं हैं। अगर उनका अहंकार सही था, उस अहंकार का सार है अहम-भाव, वह है, “मैं सहज योगी हूँ।” “मैं सहज योगी हूं।” अब इसके साथ ईमानदारी रखें। “ईमानदारी से, मैं सहज योगी हूं और मैं एक धर्म का अनुयायी हूं, जो एक सार्वभौमिक धर्म है, जो स्वयं मेरे अंदर सहज रूप से निर्मित है। इसके बारे में कोई डांवाडोल बात नहीं है,मेरा अनुभव है, और मैं इसे पूरी तरह से मानता हूं, और सहज रूप से मेरे भीतर है।” यही अहम भाव है। मैं नहीं जानती कि यह अंग्रेजी भाषा में क्या है, यह आई-नेस ’,-आई-नेस’ हो सकता है। फिर, “मैं अब इस धरती पर हूं, यह जीवन ईश्वर के काम के लिए है। और इसके लिए मुझे एक पवित्र व्यक्ति बनना होगा, क्योंकि मैं विश्व निर्मला धर्म से संबंधित हूं। मुझे शुद्ध होना है, मुझे ध्यान एवं ,हर तरह से अपने आप को देखने के माध्यम से अपनी पवित्रता हासिल करनी है। मुझे शुद्ध इंसान बनना है। और अगर मैं सहज योगी हूं, अगर मैं उस सर्व-प्रेम की शक्ति के साथ एकजुट हूं, तो मुझे उस प्रेम और करुणा को दूसरों को देने का माध्यम होना चाहिए| मेरे पास अन्य चीजों के लिए समय नहीं है। अन्य चीजों का कोई मूल्य नहीं है। मेरा ध्यान शुद्ध होना है। मेरा जीवन शुद्ध होना है। ”“मैं एक बात कहता हूं, दूसरी बात करता हूँ । मैं सुबह से शाम तक खुद को धोखा देता हूं, फिर मेरे पास कोई n आई-नेस ’नहीं है, मेरा कोई स्वाभिमान नहीं है।”
“अगर यह मुफ्त में संभव है, तो क्यों नहीं?जैसे, अगर माँ का घर है, तो चलो और वहाँ कुछ अच्छा समय बिताओ। आखिरकार यह निर्मला हाउस है, इसलिए हम कुछ मुफ्त पा सकते हैं।कोई स्वाभिमान नहीं है । “मेरा मतलब है,यदि संभव हो तो हम कुछ पैसे बचाने के लिए, इधर-उधर करते है ।” स्वाभिमान नहीं है ।ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं उस तरह का जानती हूं। मान लें कि हम गणपतिपुले में दो दिन के लिए आते हैं, तो पूछेंगे “माँ, क्या आप हमसे एक दिन के लिए पैसा लेंगे?” यह बहुत आम बात है। फिर कौन अदा करेगा? “मुझे अपने भोजन के लिए, मेरे रहने के लिए तो कम से कम भुगतान करना होगा। मुझे भुगतान करना है।“
“यह बुद्ध के समय की तरह नहीं है जब उन्हें अपना पूरा राज्य छोड़ना पड़ा। सब कुछ धर्म के लिए । हर पैसा, वो सब कुछ जो उनके पास था, यहाँ तक कि उनके बाल भी, मुझे लगता है। धर्म का सब कुछ। और अभी बिल्कुल ख़ालीपन से आओ। न बच्चे, न पत्नी, न पिता, कुछ भी नहीं! वह बुद्धत्व था, वह बुद्ध की शैली थी। उनके इस तरह के शिष्य थे और वे हजारों में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मीलों पैदल चलते थे। यह सब देखने पर लोगों पर इसका कितना प्रभाव पड़ता है।
आज की पूजा बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुझे लगता है कि पश्चिमी देश अपने अहंकार के कारण कमजोर हो गए हैं, और उन्हें बुद्ध की बहुत आवश्यकता है, और वे इस तथाकथित बुद्धवाद को बहुत पसंद करते हैं, क्योंकि आप देखते हैं, वे तब उस छलावे के पीछे छिप सकते हैं। “हम बोद्ध हैं, आप देखिए।” वे अफगानिस्तान के बारे में चिंता करेंगे और वे लामा के बारे में चिंता करेंगे। वे अन्य सभी लोगों के बारे में चिंता करेंगे, क्योंकि, “ देखिए, हम बोद्ध हैं।” लेकिन इसमें कोई सत्य नहीं है, कोई सत्य नहीं है।
सहज योगियों को उस सत्य, उस समर्पण को स्थापित करना होगा। तो बुद्ध ने कहा है,”बुद्धम् शरणम् गच्छामि।” मैं उन सभी को नमन करता हूं, जो प्रकाशित आत्मा हैं।”धम्मम शरणम् गच्छामि।” मैं अपने धर्म के लिए खुद को समर्पित करता हूं। वह विश्व निर्मला धर्म है। और फिर अंत में, “संघम शरणम् गच्छामि।” मैं सामूहिकता को नमन करता हूं। इन तीन चीजों में उन्होने तीनों प्रकार के लोगों की समस्याओं को हल किया है, यदि आप ऐसा देखते हैं। पहला है बुद्धम, जो एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा है। सभी आत्मसाक्षात्कारी आत्माओं का सम्मान किया जाना है, समर्पण किया जाना है। मुझे लगता है कि सहज योगी अकारण ही दूसरे सहज योगी के बारे में बहुत निम्न तरीके से बात करते है। कोई सम्मान नहीं! बुद्धम् शरणम् गच्छामि। मैं सभी बुद्धों के सामने समर्पण करता हूं। अब मेरी गिनती में वे केवल आठ हैं, लेकिन हमारे पास बहुत सारे हैं – सभी बुद्ध यहां बैठे हैं! जिन्होंने जाना है, वे जो ज्ञानी हैं, जो ‘विद’ हैं, विद्यावान, मेरे सामने बैठे हैं। इसलिए मैं उनके सामने समर्पण कर देता हूं, जैसा कि वे कहते हैं, “बुद्धम् शरणम् गच्छामि।” आपको हर सहज योगी का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह काली जाति से हो या सफेद जाति या नीली जाति से, चाहे वह स्पेन से हो या इटली से या भारत से, या किसी अन्य स्थान से, चाहे वह यहूदी धर्म से हो या इस्लामी धर्म से हो, या कोई भी धर्म, चाहे वह एक वैध बच्चा हो या नाजायज। चाहे वह अभिजात वर्ग से आता हो या एक अमीर या शाही परिवार से, या सबसे ग़रीब से ग़रीब हो। उसके पास पैसा है या नहीं। चाहे वह अस्वस्थ हो या स्वस्थ, चाहे उसका बहुत बुरा अतीत रहा हो। सारा अतीत भूल जाना है। वे सभी बुद्ध हैं और सभी बोद्धों और उनकी इच्छाओं के प्रति सम्मान और समर्पण होना चाहिए।
मेरा मतलब है, मैं हमेशा आपकी इच्छाओं के प्रति समर्पण करती हूं, मैं अब इतनी इच्छाहीन हो गयी हूं कि मुझे आपको बताना होगा कि बेहतर है आप इच्छा रखें, अन्यथा मैं अनुपयोगी हूं क्योंकि, मेरी कोई इच्छा नहीं है। मानो मेरी इच्छा की शक्ति आपके सिर में चली गई है और मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है। इसलिए आपको इच्छा करनी होगी। फिर “धम्मम शरणम् गच्छामि” बहुत महत्वपूर्ण है। आपने विश्व निर्मला धर्म के लिए क्या किया है? विश्व निर्मला धर्म के कार्य के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, चाहे वह धन हो, चाहे वह आपका घर हो, कोई भी धरोहर हो, चाहे वह श्रम हो, किसी भी प्रकार का श्रम हो।
मैं देखती हूं कि कुछ लोग हर तरह का काम करेंगे, और कुछ लोग चाहे जो हो कभी भी नहीं करेंगे। तो हमें वास्तव में होना चाहिए| इसलिए हमारे पास कम करने वालों की एक सूची होना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक दिन सभी नेताओं को सफाई करना होगा। दूसरे दिन सभी महिलाओं को सफाई अथवा अन्य कुछ करना चाहिए, ताकि जब आपको यह पता चले कि एक दूसरे का सम्मान कैसे करना है। इसके अलावा जब आप कुछ करना शुरू करते हैं तो आपको वास्तव में सम्मान मिलता है। आलोचना करना बहुत आसान है, दूसरों की आलोचना करना बहुत आसान है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो दो पंक्तियाँ नहीं लिख सकते हैं, शेक्सपियर की आलोचना कर सकते हैं, तुकाराम की आलोचना कर सकते हैं, ज्ञानेश्वर की आलोचना कर सकते हैं। कविता की दो पंक्तियाँ आप नहीं लिख सकते, आप क्या आलोचना कर रहे हैं? वे एक रंग से भी चित्रकारी नहीं कर सकते, इस या उस बात की आलोचना कर रहे हैं। मेरा मतलब है, कैसे आप किसी की आलोचना कर सकते हैं?
जिसने किसी को कोई आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया, कुछ नहीं किया, नेताओं की आलोचना कर रहे हैं, अरे बाबा, उन्होंने इतने सारे लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिलाया है। आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? कृपया उस व्यक्ति की तरह थोड़ा काम करें, तो आप आलोचना कर सकते हैं। सब कुछ आलोचना के माध्यम से किया जाता है। मुझे लगता है कि आलोचना वह चीज है, जिससे हम खुद का बुरा करते है, क्योंकि आलोचना, केवल, बहुत ही नकारात्मक अहंकार लाती है। कोई अहं भाव नहीं है, कोई “आई-नेस” नहीं है। ठीक है। उन्होंने इतनी सुंदर कविता लिखी हैं। मैं भी लिखूंगा नहीं! “उन्होंने लिखा है, लेकिन कुछ तो है, यह सही नहीं है।” बाबा आप पहले दो वाक्य ऐसे लिखिए! “माँ, उनकी अंग्रेजी सब ठीक है, लेकिन फिर भी”, लेकिन आपकी अंग्रेजी के बारे में क्या? या आपका स्पेनिश? क्या आप स्पेनिश भाषा जानते हैं, नहीं। फिर? अगर वह अंग्रेजी नहीं जानता है तो आपको आलोचना क्यों करनी चाहिए? इसलिए आलोचना के क़िस्से ने सभी कलाओं को मार दिया है, जैसा कि मैंने आपको बताया है, सब कुछ मार दिया है, हमारी सारी रचनात्मकता को मार दिया है, हमारे व्यक्तित्व को मार दिया है, हम सभी समय कांप रहे हैं। रेम्ब्रांट की तरह या माइकल एंजेलो, या बार्बिनी की तरह कोई भी बनने नहीं जा रहा है। क्योंकि आप हर चीज की करते है बस – आलोचना!
ऑस्ट्रेलिया में, उन्होंने एक बहुत ही सुंदर बनाया, मुझे कहना होगा, एक बहुत ही प्यारी चीज जो उन्होंने बनाई थी, एक इमारत जैसे कि पाल वाला जहाज़ हो, उनके ओपेरा के लिए। यहां तक कि, आज तक भी वे इसकी आलोचना कर रहे हैं, और जब भी उन्हें ऑस्ट्रेलिया की कोई तस्वीर देनी होती है, वे उस तस्वीर को देते हैं!
इसी तरह फ्रांस में उन्होंने मैरी एंटोनेट को मार डाला और अगर आपको वहाँ जाना है और कुछ भी देखना है तो आपको उसके महल को ही देखना होगा! यदि आप एक विशेषज्ञ और गुरु हैं तो भी आलोचना ठीक है। ठीक है, एक मास्टर का अधिकार है, निश्चित रूप से। लेकिन आप, आपको उस कला के बारे में थोड़ी भी जानकारी नहीं है, आप आलोचना कैसे कर सकते हैं? तो यह जो अहंकार का चित्रण है| तुम बुद्ध के जीवन में देख सकते हो, जो प्रकाश था, जो आत्मज्ञान था, जो करुणा था, जो ज्ञान था, जो आनंद था। आप देखें, उन्होंने कभी किसी की आलोचना अपने जीवन में नहीं की। उन्होंने इसे मेरे लिए छोड़ दिया, सभी भूतों और राक्षसों और शैतानों की आलोचना करने का यह भयानक काम। उन्होंने सिर्फ एक आसान रास्ता चुना। दीवार से क्यों भिड़ें? इसे अकेला छोड़ दो। काश मैं ऐसा कर पाती लेकिन नहीं कर सकी। मैंने कोशिश की है। पहले तीन साल मैंने कोशिश की, लेकिन बस आप असहाय होते हो, आपको बस इससे लड़ना होगा। लेकिन आप एक दूसरे की आलोचना नहीं करें। मैं खुद को बहुत आहत महसूस करती हूं, जैसे कि मेरा एक हाथ दूसरे की आलोचना कर रहा है।
मैं कई दिनों तक बुद्ध के बारे में बात कर सकती हूं। इसका कोई अंत नहीं है वह वही है जिसने हमें अपने जीवन के माध्यम से बहुत सारी सुंदर चीजें सिखाई हैं, और अगर आपको वास्तव में अपने भीतर उनकी आत्मा को आत्मसात करना है, तो हमें उस निर्लिप्तता को अपने अंदर रखना होगा |
जैसा कि प्रत्येक धर्म उसके ही अनुयायियों द्वारा बर्बाद किया जाता है, बुद्ध, जिन्होंने कहा: पूजा मत करो – यहां तक कि भगवान की बात भी मत करो। उन्होंने कहा कि भगवान की बात मत करो, बस आत्म-साक्षात्कार की बात करो। पहले उन्हें आत्म-साक्षात्कार पाने दो और कुछ भी पूजा न करें। उन्होंने कहा, “बस पूजा मत करो,” क्योंकि वह जानता था कि पूजा करने योग्य कुछ भी नहीं है। लेकिन उन्हें स्तूप मिल गए हैं और वे इसकी पूजा करते हैं और वे पूजा करते हैं और यही पूजा करते हैं। इसका कोई अंत नहीं है |
उन्होंने कहा, “ये बुद्ध के दाँत हैं।” मेरा मतलब है, तुम बुद्ध के दाँत कैसे रख सकते हो? जब बुद्ध की मृत्यु हुई, तो आपका मतलब है कि उन्होंने अपने दाँत निकाले या क्या? और यह बुद्ध के दाँत हैं जिनकी वे पूजा कर रहे हैं। कोई चैतन्य उसमे नहीं है, मैंने इसे देखा, यह कुछ भी नहीं था। मैं बाल, या नाखून मान भी सकती हूं, लेकिन उनके दाँत हर जगह पूजे जा रहे हैं!
मुझे पता है कि मेरे सहज योगी सहज योग को ज्यादा खराब नहीं कर सकते। यदि वे करते हैं, तो वे अपना चैतन्य खो देंगे। तो उस पर सावधान रहें! लेकिन अहंकार के कारण, मैंने लोगों को देखा है कि वे अपने चैतन्य खो देते हैं| वे कहेंगे, “नहीं, मैं ठीक हूँ, ओह, मुझे चैतन्य मिल रहे हैं, मैं ठीक हूँ!” और यहाँ इतना बड़ा … अपने आप को मूर्ख बनाने का काम, यह अहंकार का काम है, इसलिए सावधान रहें, “मैं ठीक हूँ, मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं है।”
आज के महान अवसर पर, उनके ज़माने के खतरनाक समय के बारे में विचार करें और किस तरीके से उन्होंने हमारे लिए सहज योग की रचना की | हम उनकी करुणा, उनके परिश्रम, उनके समर्पण, उनके त्याग, उन सभी के प्रकाश में स्नान कर रहे हैं। सत्य हमें सुंदर बनाने जा रहा है।
भगवान आपका भला करे!
क्या आपको बहुत गर्मी लग रही है? ठीक है? आप अपने हाथों को मेरे पास रख सकते हैं, यह एयर कंडीशनर काम कर रहा है। (हँसी) मैं वास्तव में यहाँ बर्फीला महसूस कर रही हूँ। मैं इन सभी खूबसूरत चीजों के बारे में सोच रही हूं जो आपने मुझे दी हैं। बुद्ध के पास ऐसे कभी नहीं थे। उसके पास कभी कोई सुख-सुविधा नहीं थी।
इसलिए अब हमें यह दिखाना होगा कि हम योग्य हैं। यही वह शब्द है, जिसका वह उपयोग करते है, अरिहंत, सुयोग्य। क्या आप योग्य, सहज योग के योग्य हैं? हमें सहज योग के योग्य बनना होगा। अरिहंत शब्द है। पूजा शुरू करें? क्या अब हम पूजा करें?
बुद्ध के बारे में बात करना, इसने मुझे पूरी तरह से ठंडा कर दिया है। एकदम बरफ! बर्फ!
पूजा करते समय अपने हाथों को इस तरह रखें। और आपको पूजा के दौरान अपनी आँखें बंद नहीं करनी हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। और अपने सिर नीचे भी नहीं करने चाहिए, क्योंकि आप सभी सहज योगी हैं। वास्तव में बहुत ठंडा लग रहा है, मुझे नहीं पता, तुम लोगों के बारे में क्या? गर्मी लग रही है?
योगी: नहीं।
श्री माताजी: यह अच्छा है। मैंने बदलने की कोशिश की। कभी-कभी मैं इसे ज़्यादा कर देती हूं, मुझे लगता है। मैंने इसे 21 बार किया। ठीक है। तो पूजा स्पेनिश लोगों के साथ शुरू होनी चाहिए। जोस, साथ आओ, लेकिन आपकी कोई पत्नी नहीं है, लेकिन, ठीक है, कोई बात नहीं है।
गर्म होना है, एह? मेरे पैर बिल्कुल खत्म हो गए हैं। सब ठीक है। इसे यहां लाएं और पानी डालें। कैसे मैनेज करोगे? नहीं। यह बेहतर है। यह अच्छा है … आपके पास … है। बच्चों के बारे में क्या … वे अब बड़े हो गए हैं, क्या वे नहीं हैं? इसलिए हमें सभी देशों के सभी नेताओं को लाना है। या फिर, हर देश से एक। सब ठीक है, साथ चलो,सिद्धार्थ, आप बिलकुल ठीक हैं? कोई दर्द नहीं, कुछ नहीं … आज हम सिद्धार्थ का जन्मदिन मना रहे हैं।
प. पु. श्री माताजी निर्मला देवी