Shri Ganesha Puja, Les Diablerets (Switzerland), 8 August 1989.
आज आप सब यहां मेरी श्रीगणेश रूप में पूजा के लिये आये हैं। हम प्रत्येक पूजा से पहले श्रीगणेश का गुणगान करते आये हैं। हमारे अंदर श्रीगणेश के लिये बहुत अधिक सम्मान है क्योंकि हमने देखा है कि जब तक अबोधिता के प्रतीक श्रीगणेश को हम अपने अंदर जागृत नहीं करते तब तक हम परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। परमात्मा के साम्राज्य में बने रहने के लिये और श्रीगणेश के आशीर्वादों का आनंद उठाने के लिये भी हमारे अंदर अबोधिता का होना अत्यंत आवश्यक है। अतः हम उनकी प्रशंसा करते हैं और वे अत्यंत सरलता से प्रसन्न भी हो जाते हैं। सहजयोग में आने से पहले हमने जो कुछ गलत कार्य किये हों उनको वे पूर्णतया क्षमा कर देते हैं क्योंकि वे चिरबालक हैं।
आपने बच्चों को देखा है, जब आप उन्हें थप्पड़ लगा देते हैं …. उनसे नाराज हो जाते हैं लेकिन वे इसको तुरंत भूल जाते हैं। वे केवल आपके प्रेम को याद रखते हैं और जो कुछ भी बुरा आपने उनके साथ किया है उसे वे याद नहीं रखते। जब तक वे बड़े नहीं हो जाते तब तक वे अपने साथ घटी हुई बुरी बातों को याद नहीं रखते। जबसे बच्चा माँ की कोख से जन्म लेता है उसे याद ही नहीं रहता कि उसके साथ क्या क्या हुआ है लेकिन धीरे-धीरे उसकी याददाश्त कार्यान्वित होने लगती है तो वह चीजों को अपने अंदर याद करने लगता है। परंतु प्रारंभ में उसे उसके साथ घटी हुई अच्छी बातें ही याद रहती हैं। हम अपने बाल्यकाल में घटी हुई घटनाओं पर विचार करना प्रारंभ कर देते हैं कि हमारे साथ क्या-क्या अच्छा और क्या-क्या बुरा घटा है। जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो हमें अपने साथ घटी हुई सारी बुरी बातें याद आने लगती हैं। किन-किन कष्टों से होकर हम गुजरे हैं हम उनके बारे में बढ़ा चढाकर बताने लगते हैं।
लेकिन गणेश तत्व अत्यंत सूक्ष्म होता है … सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होता है और ये सभी में विद्यमान होता है। यह पदार्थ में भी चैतन्यरूप में होता है। ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो बिना चैतन्य के हो। इसमें वह चैतन्य होता है जो अस्तित्व के सभी अणु परमाणुओं में भी विद्यमान होता है। श्रीगणेश वह सबसे पहले देवता हैं जिनको पदार्थ में स्थापित किया गया। परिणामस्वरूप हम देखते हैं कि वह सूर्य में …… चांद में… सारे ब्रह्मांड में… सारी सृष्टि में अस्तित्व में रहते हैं… वह मानव मात्र में भी विद्यमान रहते हैं। केवल मानव के अंदर अपनी अबोधिता को छुपाने की क्षमता होती है। अन्यथा पशु अबोध होते हैं… मानव मात्र को तो स्वतंत्रता होती है कि यदि वे चाहें तो अपनी अबोधिता को छुपा सकते हैं। वे श्रीगणेश के लिये अपने दरवाजे बंद कर देते हैं और कहते हैं कि श्रीगणेश तो हैं ही नहीं। वे उनको नकार देते हैं और इसीलिये हम देखते हैं कि मनुष्य श्रीगणेश के अस्तित्व को नकारते हुये कई भयावह कार्य करता है।
परंतु वह कार्य करते हैं …… वह इस प्रकार से कार्य करते हैं कि वह हमारे गलत कार्यों को हमें दिखा देते हैं। यदि आप ऐसे कार्य करें जो गणेश को पसंद नहीं हैं तो एक हद तक वो हमें माफ करते हैं और फिर किसी रोग के रूप में और महिलाओं में किन्हीं मानसिक रोगों के रूप में प्रकट होते हैं। वह प्रकृति में भी समस्यायें खड़ी कर देते हैं। प्राकृतिक आपदायें भी श्रीगणेश के प्रकोप से आती हैं। जब लोग सामूहिक रूप से कोई गलत कार्य या गलत व्यवहार करते हैं तो प्राकृतिक आपदायें उन्हें सबक सिखाती हैं। उनका सार यह है कि यद्यपि वह प्रत्येक चीज में विद्यमान रहते हैं फिर भी यदि वह चाहें तो उनके अंदर समस्त संसार का विनाश करने की क्षमता भी है। श्री गणेश की हमारी कल्पना किसी अत्यंत छोटी वस्तु के रूप में है। हम समझते हैं कि वह अत्यंत छोटे से मूषक की सवारी करते हैं तो उनको भी अत्यंत छोटा ही होना चाहिये। वह जितने छोटे हैं उतने ही विशाल भी हैं। अपनी विवेक बुद्धि के कारण वह सारे देवताओं से भी महान हैं। वह विवेक देने वाले भी हैं। वही हमें सिखाते भी हैं। वह हमारे गुरू भी हैं… बल्कि महागुरू हैं क्योंकि वही हमें बताते हैं कि हमें किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिये। यदि आप उनसे परे जाने का प्रयास करते हैं और गलत व्यवहार करते हैं तो आपकी माँ भी आपकी सहायता नहीं कर सकती है क्योंकि वह जानती है कि जो लोग श्रीगणेश जी के परे जाने का प्रयास करते हैं वे उनकी माँ का भी सम्मान नहीं कर सकते हैं। वह अपनी माँ का सम्मान करने की पराकाष्ठा हैं। वे किसी अन्य देवी देवता को नहीं जानते हैं। वह सदाशिव को भी नहीं जानते हैं… किसी अन्य को नहीं जानते हैं बस अपनी माँ के अलावा अन्य किसी को भी नहीं जानते हैं। वह केवल अपनी माँ का ही सम्मान करते हैं। वही भक्ति की शक्ति हैं और अपनी माँ के प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित हैं। इसीलिये वह सभी देवों में से सबसे शक्तिशाली देव हैं। और कोई भी उनकी शक्तियों से पार नहीं पा सकता है।
हमको समझना है कि बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं श्रीगणेश भी उनके अंदर विकसित होते जाते हैं। लेकिन चूंकि वे मानव हैं अतः वे भी श्रीगणेश के परे जाने लगते हैं। अतः माता पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों की देखभाल एकदम अनासक्त होकर करें और देखें कि उनके अंदर श्रीगणेश स्थापित हो सकें। किसी बच्चे के अंदर श्रीगणेश के होने का पहला संकेत है विवेक का होना। यदि किसी बच्चे में विवेक नहीं है … यदि वह परेशान करता है या उसका व्यवहार ठीक नहीं है तो इसका अर्थ है कि उसके अंदर के श्रीगणेश पर आक्रमण हो रहा है। आजकल के आधुनिक समय में बच्चों पर इस प्रकार के आक्रमण बढ़ रहे हैं। और लोगों को समझ ही नहीं आ रहा है कि उनको बच्चों के साथ किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिये।
आइये अब जरा और आगे जाकर देखें कि श्रीगणेश किस प्रकार से कार्य करते हैं। जैसा कि मैंने आपको बताया कि उनका अस्तित्व सूक्ष्म से सूक्ष्मतर चीजों में है परंतु आपको उन्हें जागृत करना होगा। उदा0 के लिये आपने चैतन्यित जल देखा है … इसका अर्थ क्या है…… चैतन्यित जल अर्थात जिस जल में गणेश तत्व जागृत कर दिया गया हो तो जब ये जल आपके पेट में व आपकी आंखों में जाता है या जहां-जहां भी आप इस जल का प्रयोग करते हैं वहां-वहां यह कार्यान्वित होने लगता है। आपने देखा कि किस प्रकार से कृषि के चमत्कार हमारे यहां हुये हैं जिनको देखकर लोग अचंभित हो गये हैं लेकिन ये अत्यंत सरल है। एक बार जब आप किसी बीज में गणेश तत्व को जागृत कर देते हैं तो पैदावार दस या कई बार तो सौ गुना अधिक होती है। यहां तक कि धरती माँ भी जिसे हम कई बार जड़ मानकर चलते हैं .. उसे भी चैतन्यित किया जा सकता है। माना आप सहजयोगी लोग धरती पर नंगे पांव चलें तो धरती माँ भी चैतन्यित हो उठती है। ऐसी धरती माँ पेड़ों पर, घास पर, फूलों पर और सभी चीजों पर कार्य करेगी।
सहजयोगी लोग मुझे बताते ही रहते हैं कि उनके आश्रम के सभी फूल सामान्य से अधिक बड़े आकार के व अत्यंत सुगंधित होते हैं। पहले लंदन या इंग्लैंड में डेजी के फूलों में बिल्कुल भी सुगंध नहीं होती थी और उनका आकार भी छोटा होता था परंतु अब उनका आकार काफी बड़ा हो गया है और इनको आप कहीं भी देख सकते हैं… कितने सुगंधित और बड़े आकार के डेजी के फूल। यह एक चमत्कार है। पहली बार जब मैंने किसी से कहा कि डेजी के फूलों में सुगंध होती है तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन जब उन्होंने स्वयं इनकी सुगंध देखी तो उन्हें आश्चर्य हुआ।
इसी प्रकार गणेश तत्व भी समझता है….. सोचता है … व्यवस्था करता है और यदि जागृत किया जाय तो कार्यान्वित भी होता है। यदि ऐसा नहीं है तो गणेश तत्व सो रहा है। तो यह कार्य करता है। जैसे कि एक छोटा बीज जब अंकुरित होता है। अंकुर के सिरे पर एक छोटी सी कोशिका होती है जिसमें श्रीगणेश तत्व होता है जो जागृत होता है। इसको मालूम होता है कि किस प्रकार से धरती के अंदर जाना है… किस प्रकार से किसी पत्थर के चारों ओर लिपटना है और किस प्रकार से धरती में घुसना है और किस प्रकार से जल के स्त्रोत तक पंहुचना है। लेकिन इसके अंदर केवल इतना ही ज्ञान होता है कि कहां तक जाना है अपने पोषण के लिये कितनी दूर तक जाना है और भौतिक स्तर पर किसी वृक्ष को कितना बड़ा होने देना है।
गणेश तत्व आज्ञा पर आकर काफी सूक्ष्म हो जाता है। आज्ञा पर यह समझता है कि अब यह आध्यात्मिक आयाम पर है। जो गणेश तत्व एक छोटे से अंकुर पर कार्यान्वित हो रहा था वही अब आध्यात्मिकता के लिये कार्य करता है। इसीलिये लोग ध्यान करते समय अपनी आंखे बंद कर लेते हैं क्योंकि वे उस समय कुंडलिनी की ध्यान की प्रक्रिया में केवल श्रीगणेश को कार्य करते हुये देखना चाहते हैं। ध्यान की प्रक्रिया में जब हम अपनी आंखे बंद करते हैं तो यह कार्य करता है परंतु जब हम सोते रहते हैं या स्वप्न देखते हैं तो आप देखेंगे कि पूरे समय हमारी आंखे गतिमान रहती हैं। यह गणेश तत्व हमारे चित्त द्वारा कार्य करता है। यदि आपका चित्त एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाता रहता है तो हमारा गणेश तत्व प्रभावित होने लगता है खासकर जब हम पूरा समय पुरूषों को देखने लगते हैं… या महिलाओं को देखने लगते हैं तो उस अवस्था में भी हमारा गणेश तत्व अत्यंत प्रभावित होता है। ऐसे लोगों का आज्ञा एकदम खराब हो जाता है और वे अपने उत्थान को भी प्राप्त नहीं हो पाते हैं।