Shri Adi Shakti Puja

कोलकाता (भारत)

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Shri Adi Shakti Puja, 9th April 1990, Kolkata

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahiri

कलकल्ता की आप लोगों की पूरगति देखकर बडा आनन्द आया। और में जानती हैं कि इस शहर में अनेक लोग बड़े गहन साधक हैं। उनको अभी मालू म नहीं है कि ऐसा समय आ गया है जहाँ बो जिसे रखोजते हैं, को उसे पा लें। आप लोगों को उनके तक पहुँचा चाहिए, और ऐसे लोगों की सोज बीन रखनी चाहिए जो लोग सत्य को खोज रहे हैं। इसलिप आवश्यक है कि हम लोग अपना किस्तार चारों तरफ करें। अपना [भी जीवन परिवर्तत करना चाहिए। अपने अपनी भी शवती बढ़ानी चाहिए। लेकिन उसी के साथ हमे जीवन को भी एक अटूट योगी जैसे प्रज्जलित करना चाहिए जिसे लोग देखकर के पहचानेंगे कि ये कोई बिशेष क्यवित है। ध्यान धारणा करना बहुत ज़रूरी है। कलकत्ता एक बड़ा व्यस्त शहर है और इसकी व्वस्तता में मनुष्य डूब जाता है। उसको समय कम मिलता है। ये जो समय हम अपने हाथ में बाँधे हैं, ये समय सिर्फ अपने उत्धान के लिए और अपने अ्दर पुगति के लिए है। हमें अगर अन्दर अपने को पूरी तरह से जान लेना है तो आवश्यक है कि हमें थोडी समय उसके लिएट रोज ध्यान धारणा करना है। शाम के कात और सुबह चोड़ी देर। उनमें जो करते हैं और जो नहीं करते, उनमें बहुत अन्तर आ जाता है। विशेषकर जो लोग बाहयता बहुत कार्य कर रहे हैं, सहजयोग के लिए वहुत महनत कर रहे है और इधर उधर जाते हैं, लोगों से बात चीत करते हैं. लेक्चर देते हैं, समझाते हैं। उनकी जो रूहानी शवरती है, जो देतरी शवित है, वो धीरे धीरें कम होती जाती है। इसलिए और भी आवश्यक है कि ऐसे लोग ध्यान धारणा आवश्य करें।

Original Transcript : Hindi सोने से पहले आप धोड़ी देर घ्यान कर लें। सवैरे नहाने के बाद यही काफी है। लेकिन जब घ्यान होता है तो कैसे पहचाना जायेगा कि आपका ध्यान ठीक हुआ। ध्यान करते वक्त, आपको निर्विचारिता पहले उस ववत उसको “ये नही” “ये नही” या” नैति” “नैति” इस तरह से अपने विचारों सथापित करनी चाहिए। को यापस कर देना चाहिए। करते करते पहले श्वास लेने से आप देखगे कि जपमें निविचारिता आ जाएगी। आथति फोटो सामने रखना चाहिए। और उसके सामने दीप जलाके, पैर पानी में रखके बैठना चांहिए जिस 12 ववत निर्विचारिता आ जाए, और दोनो हाथ में चैतन्य बहना शुरू हो तो आप पैर पौछकर के जमीन पर ध्यान में बैठ जाएँ। ध्यान में वैठकर के और उसकी गहनता को आप जाने। फिर विचार आना शुरू हो जाए तो उसे फिर कहना कि “ये नही” “ये नही”। या “क्षमा” क्षमा”। तमा गब्द बहुत जहरी है। उस शत्रद से भी आपके विचार रूक सकते हैं। जब शान्ती नहीं रही तो आपकी अन्दूणी प्रगती किस प्रकार हो सकती है। जैसे की भूचाल आ रहा हो, तो मूचाल में किसी वृक्ष की प्रगति नहीं हो सकती । तो उस यवत मनुष्य पक विचारों के भूजाल में होता है तब उसकी प्रगति होना असम्भव है। इसलिए आवश्यक है कि उस फैसा हुआ वक्त वो अपने को श्त स्थित कर ले। उसके लिए भी एक दो मन्त्र हैं जिससे. आपके अन्दर शा्ती पहले प्रस्थापित्त हों। धीरे धीरे आप को आश्चर्य होगा कि ये सब प्रयास करने की जरूरत पडेगी नहीं। काप एकदम निर्विवार हो जाएँगे किसी भी सुन्दर बस्तु या कलात्मिक कस्तु को देखते ही आप पकदम निर्विचार हो जाएँगे। भाप धीरे चीरे ये आदत बढ़ती जाएगी और जैसे जैसे बढ़ेगी ऐसे ऐसे आपकी अन्दूरणी प्रगति होती जाएगी। आप एक दालान में आ गए लेकिन और दालान में भी आपको जाना है और पहचानना है अपने को। इसलिए आवश्यक है कि ध्यान धारणा सेसे गहनता में उतरें। उसकी पह चान ये है कि जब आप ध्यान घारणा से उठेँगे आपका मन नही चाहेगा कि उठे। धोड़ी देर आप फिर उसी ध्यान में लगे रहेंगे। आपको ऐसा लगेगा कि आपको बड़ा आन्द आ रहा है। एक दम से आप नहीं उठ सकते। गर ध्यान धारणा के बाद आप अपना चित्त किसी और चीज की ओर ले जा सकते हो, जैसे खाना खाना है, या सोना है , या बाहर जाना है, तो समझना चाहिए कि ध्यान नही लगा। क्यांक घ्यान से छुटना ज़रा सा कठन होता है। इस तरह से धीरे तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा धीरे आपकी अन्दर प्रगत होती जाएगी और जब आप बाहय में कार्य करेंगे कि आपकी शक्ति क्िन्न नही होती, उल्टीं बढ़ती जाती है। ऐसा देखा गया है कि जो फोरन पार होने के बाद ही दुसरों को जागृति देना चाहते हैं और फिर उनमें पकड़ आ जाते हैं। असल में पकड़ होते नही हैं। जैसे की किसी बैरोमीटर में या किसी यंत्र में आप जान सकते हैं कि यहाँ घुओ निकल रहा है, कि यहा प्रकाश हो रहा है। उसी पकार आप मी अपने अन्वर सब कुछ जान सकते हैं। एक तरह का निज्यज स्वभाव आ जाना चाहिए माने कि निराग आना चाहिए। फिर आपको पकड़ नहीं आएगी। आप कितने भी लोगों पे हाथ चलाँ कितनों को भी जागृति दें, कुछ भी कार्य करें । कितनी भी बिमारियां ठीक करे, आपके अन्दर उसका कोई असर नहीं आएगा। पर ये दशा आए बगैर ही अगर आप लोगों पर हाथ लगाने लगे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। 3

Original Transcript : Hindi है कि आप तोग पार हो मए हैं, आप बहुत ऊँची स्थिती में ज गए हैं। बड़ी कठिनाई टूसरी बात ये से ये बात होती है। तो आपको पसे लोग मिलेंगे जो अभी अभी सहज योग में आए है बो समझ लेना चाहिए कि अभी आएँ है। और उनसे कोई भी आकमक वात नही करनी चाहिए। अपने प्रेम से, बड़े जतन से, सम्भाल करके, हो सके तो कुछ सिवलाने पिलाने की भी उ्यवस्था करिये। जिससे वो लोग आपको इतना भयंकर न सम वयकि साधु-सन्त लोग तो हाथ में इंडा ही लेके बैठते हैं। उस पकार नहीं होना चाहिए। उन्हें ये महसूस हो जाए कि सारे अपने भाई बहन हैं। उससे ही वो लोग जम सकते हैं। और अधिवतर मैंने देखा है कि एक आद लोग पैसे आ जाते सहजयोग में, जो लोगों को बहुत ज्यादा डिसिप्लीन सिवाते हैं। यहाँ हैं नहीं खड़े हो, ऐसा नहीं करना है ्वास सहज योग में डिसिप्लीन कोई नहीं हैं। क्यूकि आपकी आत्मा इतनी प्रकाशवान कहै कि उसके प्रकाश में धीरे धीरे स्वयं ही आप अपने को देखते हैं। और फिर घीरे घीरे आप अपने ऊपर हँसने लग जाते हैं। जैसे आपने अपनी प्रगति को प्राप्त किया, धीरे धीरे वो लोग भी अपनी प्रगति को प्राप्त कर लेंगे। ये प्रकाश आपके उ्यवहार पे भी पड़ता है भौर दूसरों के व्यवहार पर मी। सहज योग में साक्षी स्वरूप प्राप्त होता है। साक्षी स्वरूप तत्व में आप किसी चीज की ओर देखते मात्र हैं उसके बारे में सोचते ही नहीं। कोई भी आपके अन्दर उसकी ( रिमैक्शन प्रतिकिया नहीं आनी चाहिए। तो निरंजन देखना चाहिए। माने किसी चीज़् की ओर देखकर के उससे कोई सी मी प्रतिकया न हो। बगैर किसी प्रतिक्रिया के उसे देखना मात्र, ये सबसे नड़ा आनन्द दाई चे्ठा है। उसके प्रति कोई लालसा नहीं होती। जैसे कि एक गली चा है। अगर उसके बारे में विचार ही आते रकें कि अगर ये मेरा है तो जल न जाए। खराब न हो जाए। गर दूसरे का है तो कितने का है, कहाँ से लिया। तो इन विचारों के कारण उसका आनन्द तो आपको मिला ही नहीं। तो जैसे निर्विचारीता पे आने पर जैसे कि एक सरोवर एक वम शा्त, उसमें एक भी लहर न हो, न तरंग हो, ऐसे शा्त मन में सरोवर में, जिसके चारों तरफ बना हुआ सुन्दर निसर्ग है वो उसमें पूरी की पूरी प्रतिबिम्बित हो और दिखाई दे, ऐसा ही आपका मन हो जाता है। एक बार एक साधक हमारे पैरो में आए और एक दम से उनकी कृण्डलीनी जागृत हो गई। दूसरे कमरे में जो लोग बैठे थे वो अ्दर आ गए क्यूकि उनको एक दम से महसूस हो गया कि माँ के साथ जो है उसमें से जो चैतन्य की तहरीयाँ बहे रही थी वो उन्हें महसूस हो गई। उन्होंने उसे गले से लगा लिया जब कि वो उसे जानते तक नहीं थे। और सब आल्लाहदित हो गए। इसी प्रकार जब आप दूसरे सहज योगीयाँ से मिलेंगे तो आपको ऐसा अनुभव होगा कि जैसे “मैं मुझ से ही मिल रहा हैं। ” नामदेव जब गोरा कुंभार से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं तो यहाँ निर्गुण देखने आाया धा, वो तो सारा निर्गुण साकार हो गया। इस तरह की समझ वे सुझबूझ एक स्त को एक दूसरे सन्त के ही लिए हो सकती है। आज तक तो मनुष्य दूवैष, ईर्धा, इ सी में रहता है। लेकिन जब सहजयोगी हो जाता है तो उसक दूसरा सहजयोगी ऐसा लगता है कि मैंने जो निर्गुण को जाना था वो ये सगुण में खड़ा हुआ ये निर्गुण है। इस प्रकार आप सी प्रेम जो है क ये बड़ा सूक्ष्म ,बड़ा गहन, और बड़ा आनन्द -दायी हो जाता है। 4

Original Transcript : Hindi हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम बडे ही सूक्ष्म जर बड़े ही मज़बूत धागे से बन्धे हूए हैं और आपसी प्रेम इस से बढ़कर आान्द की कोई चीज है ही नहीं। अब बहुत से लोगों में ये बात होती है कि मेरा तड़का, मेरी बहन, मेरा भाई, मेरा घर। ये जो ममत्व है ये मी काटना है इस ममत्व को किन्कूल ही कम कर देना चाहिए। और इसके छूटते ही आपमें बहुत ही ज्यादा आनन्द आ जापगा। “मेरे” की मावना जो है ये अपने को आत्मा से दूर करता है। मैं कौन हूँ? में आत्मा हँ। और जो कहे कि ये मेरी आत्मा है तो फिर वो सहज योगी नहीं। आत्मा अपनी जगह अकेला खडा हुआ है । इसका मेरा कोई नही है। इसका तो सिर्फ परमेश्वर सें ही रिश्ता है। और आपसे भी पेसा रिश्ता है जैसे वकि एक पेड़ के अन्दर बहता हुआ रस है। जो सब को रस देता है पर किसी में चिपकता नहीं है। मेरा- पन प्रेम की हत्या है। आप एक बूंद मात्र से सागर बन जाएँगे। इसी अमयादिता में ही आतन्द है क्यीकि आप समुद्र के साथ उठते हैं मीर गिरते है । इसी तरह से मनुष्य वर्लमान में आ सकता है। जब ममत्व छूट जाता है तो आप के ऊन्दर एक वहुत बड़ा ऑनदोलन हो जाता है जिससे आप अत्यन्त शकि्तिशाली हो जाते हैं। और वही शव्ति कार्यान्वित और वोडी सामूहिकता में बहुत बड़ा कार्य करने वाली है और सारे संसार का उच्दार भी उसी शकती होती है। के दूवारा हो सकता है। सहजयोग में भी पक नया दौर आज शुरू हो रहा है वो ये एक नया दौर शुरू हो रहा है। दौर है कि अब हम एक बड़े ही आंदोलन में आ गए जहां हमें आपने प्रश्न नहीं रहे। पर सबके प्रश्न हमारे पृश्न हो गए। सारे संसार के वृश्न: हमारे हो गए। इसके लिए एक प्रबलता चाहिए, एक बढ़पन चाहिए। एक ऊँचाई चाहिए जिससे की आप सारे प्रश्नों को ठीक से देख सकें और उसका हाल दे सें। इसकी जिम्मेदारी सब आप लोगों पर है। सारे सहजयोगियों की ज़िम्मेदारी बहुत ज्यादा है। यही नहीं कि आप लोंग सहजयोग से लाभ उठायें, उसका फायदा उठाएं, उसमें रजें । ये सबके घर घर में पहुँचना है। और सबको ये आनन्द देना है । अगर ये कार्य करते क्वत आप लागों ने किसी तरह से कमज़ोरी दिखाई या किसी तरह से ढिलाई की तो आप उसके लिए ज़िम्मेदार हो जाएँगे, और ये बात बहुत गलत हो जाएगी। इसलिप सहजयोग में पनपे हुए तोगों को चाहिए कि वृक्ष की तरह खड़े हो जाएं। कलाकल्ते में सारे हिन्दुख्धान का मरम फँसा हुआ है। इसलिए ज़रूरी है कि आप लोग खड़े हो जाएँ और आगे बढ़े और अपनी प्रगति करें। औरों की प्रगीत करें और एक अपने व्यक्तिस्वर को विशाल बनाएँ। जब भी आपके अन्दर विचार आए कि मेरा बेटा ऐसा है, मेरा घर ऐसा है। तो ऐसे “मेरे” विचार को दूर रखों। तभी आप विशाल हो जाएँगे और पेसे विशाल लोगों की इस नये अंन्दोलन में ज़रूरत है। और उसकी तैयारीयां पूरी होनी चाहिये। और इस सात में में आशा है ये साल आप सबको बडा मुबारक हो। बड़ा विशेष साल हैं ये। चाहती हैं कि इस कलकत्ते में बहुत से लोग सजहयोग में आँगे। उनको सम्भाल के प्यार से, आदर से, समझा 5

Original Transcript : Hindi कर के। कभी कभी आकृमक होते हैं। कभी कमी गलत बार्तें मी कहते हैं। यहां सब किसी न किसी जाता में फसे है। में तो न उनको इर, न उनका कोई गुरु, एक दम कोरा कागज़ ( सफ़ प्लेट ) होता है रूस उास तरह के लोग थे। बहुत आसानी से सबको पार करा। यहाँ तो ऐसा है कि न इधार का न उधर का। में इस इस गुरू का, मैं उस गुरु का हैँ। आप अपने नहीं तो इसलिए वहुत समझा बुझाकर बात करनी चाहिए। फिर यहाँ और भी बिमारी ये है, कि गुरु के दर्शन करने जाना। गुरु का काम है बोध, दर्शन देना नही| लोगों में जागृति करना। जब तक वो कोई ज्ञान ही नहीं देते तो वो गुरु कैसे बने। गुरू का मतलब है ज्ञान देने वाले। ज्ञान माने आपके नसो में आप जाने कि ये चैतन्य क्या है। ये जब तक नहीं दिया तो ऐसे चीजों में फैस जाना भी एक तरह से अपने को नष्ट करना है। आप लोग सब बहुत बड़े साधक थे, और इसी प्रकार आप अनेक लोगों को मभी इसका वरदान दें, और उनको सुखी करें। हमारे अन्दर जो कुछ मी घटिया है बो हमारा अपना है, बो यष्टि में भी है, समीध्ट में भी है। सामूुहिय में भी कुछ कमीरयाँ हैं। उन सब कमीयों को देखना चाहिए। हिन्दयूमुसलसान इसाई या अनत्यधर्मों के लोग यही बताएँगे कि कितनी लोज की, इन धर्मों में पर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। इसलिप, क्युंकि ये सब मनुष्य के बनाये हुए धर्म है। जिन्होंने घर्म बनाये थे वो नहीं रहे। अब आप लोगों को जो धरम बनाना है वो असली भर्म है। उसमें नकलीयत विलफुल नहीं होनी चाहिए। अगर मनुष्य ने घर्म बनाया है तो वो गलत होगा ही क्यूकि मनुष्य को अभी परमात्मा का सम्बन्ध हुआ ही नहीं। उन्होंने तो अव्छे भले धर्मों को गलत रस्ते पर डाल दिया। लेकिन अब आप लोगों को जो धर्म बनाना है, जो विश्व धर्म बनाना है उसमें किसी नरह की मनुष्य की जो गलतीरया है, बो नहीं आनी चहि ए। क्यूंकि ये देवीक है और आप लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है। तो इमानदारी के साथ इसको ऐसा बनाना चाहिए कि जो शुध्व हो। अन्दूणी धर्म हो।। इसी प्रकार हर आदमी जब देखेगा कि हमने इसमें जो पाया है जो सत्य पाया है। फिर पेसा होगा कि जिस धर्म के आप पहले थे उस घर्म का सतत हमने यहीं पाया है, ये जो है ये हमारे अन्दर जागृत हो गया है आप किसी भी मनुष्य के बनाये हुए धर्म का पालन करें, आप कोई भी पापकर्म कर सकले हैं। लेकिन सहजयोग में आने के बाद आप बाके में घार्मिक ही हो जाते हैं। आप सबका मला ही कर सकते हैं। पर जो लोग नए आते हैं उनके साथ चर्चा करते हो सकता समय बहुत स्बल कर बात करना क्यूकि है उनको महसूस हो कि उनके ऊपर आकरमण हो रहा है। तो बहुत सम्भाल कर उन्हें समझना है कि धर्म हमारे अन्दर जागृत होना चाहिए। जैसे इस मसीह ने कहा है कि आपकी अँख निरंजन होनी चाहिए यर किसी किश्चन की अाँख निरंजन है क्या? इसी प्रकार इन महान लोगों ने बहुत बड़ी बड़ी बार्तें करीं। लेकिन बौ होता ही नहीं। उससे उल्टी बात होती है। तो इसको धीरे धीरे समझाना चाहिए क्युकि ये ऊन्येरे से प्रकाश में आ रहे हैं। उन्हें अनुभव देते हुए, उन्हें इस गलत फ़हमी से निकाल लेना है और उनको धर्म में स्थित

Original Transcript : Hindi करना पड़ेगा। घर्म की चारणा उनके अन्दर होनी चाहिए। जो जिस जगह से भी आा जाए उन सबको स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि इनमे से बहुत से लोग पसे हैं जो वाके सत्य को लोज रहे हैं। सत्य के मार्ग पर चलने वालोको ही परमात्मा मिल सकते हैं। ज्योत का कार्य क्या है। ज्योत नब तक जला रहे तब सब काम होता है। उत्तका कार्य होता है प्रकाश देना। जिस प्रकाश को आपने प्राप्त किया है बो ही आापको सबको देना चाहिप और पूर्ण आत्मविश्यास के साथ। कोई घबरानेकी बात नहीं। छोटे बटचे बड़े आत्मविश्यासी लोग होते हैं। और बो किसी की परवाह नहीं करते। उनको जो ठीक लगता है बो कहते हैं । लेकिन जय हम लोग बडे हो जाते हैं तो दिमाग में और चीजें भारी रकहती है, अहुत से संस्कार हो जाते हैं जिनसे निवलत है। तो सिर्फ मुश्किल डोता ये बात समझ लेनी चाहिये कि हमें एक बहुत सुद्रा बुझ के साथ, समझवारीके साथ पया प्रगत्भता के साथ मॅच्यूरिटी के साथ बढ़पन के साथ सबसे उ्यबहार करना चाहिए सबसे प्यार दिनाना चाहिए क्युंकि थे प्यार ही की शकती है और इसी को प्राप्त करना है। से ही सारी क्शंकित्ा गिकली है। महानगली, गहाल्षमी, थीषत से ही सारी क्षंत्रत्या निकली है। महाकाली महालकषी, महासरस्वती ये पहली पूजा है आदि याकित की । आदि महास्तरख्यती पविलयाँ फिर’ उन्हीं में ही समाप्ित होती और ये ही उ बकलयाँ फिर जदि ्वित] के रिवाव ये कार्य ही नहीं सकता। कीरण कि सारे अकों में उनका प्रमुत्व है। और बौही हैं, जी कि ह्वर तरह के बरकी के तापसी सम्बन्ध की सम्मातती हैं, जिसे त्रमा संयोग कहते हैं। ीहर सुक्ष् से सृक्म नात्तको जावती है। नैसे की फिसी भी वेसें अबतरण की वेले बो पूर्ण है और हमारा जो उत्त्पान इन्हॉ्यूशन) हुआ है, उुसते हर पक सीड़ी पर (माइल- टोन) बने पड़े हुए हैं। लैकिन सन्या परक ही प्रकार का कार्य धा। फैरसे वैदी का कार्य घा कुष्टीं का तंहार करना और मव्तं को चंचाना। इसीलप श्री कृष्णने लीता रचाई। ये सम तीगा है। इसने इतनी गभीरता हसमें इतती ग्भीरता की कोई बात्त नहीं है। श्री कुष्ण ने माधुयं को तैकरके सबको जीता या तोर उन्होंने पैसा] कर्म किया कि हैमारी जो भातियाँ धी, उसे घुमा कर के [चोड़ी मिठास डाल कर के अपने भीत को कह वेते थे। यक और उसके बाछ महाबीर जी , चुध्ध इत्यादी का भी मम्भीर अवतरण रका । ृष्य इत्यादी का भी गर्भार अवत , च षड्डा छुवर उनका शबतरण रहा। रण रक्ता। मौर गरम्भीरता हसे उन्होंने आत्मवर्शन की ही चात की। भ्र सम्यक्षान एता हसै ऊन्कों की किर बहुत गर्भीर गभीर बात्त करी। क्षते गाष | चीने ही गई और बर्लसाधार लौग इसकी ण गम्मीर और नहीं आाप। जो आप नो बेवार गर्भीरता में चले राष| औौर गपने रोज के जीवन को बड़ा ही कंठिन ब्ा विया। क्यूकि न चुध्द ने सहा था, न महावीर ने। तक्षात्कार नही होता जन मानव जाती में जबर तक आतम र , तत तक उ्का इयादा वेर तक सीमा अतना कठिन है। इसा मसीहके बाव सर माधारण लौग आघ। तो उन्तौने फिर पाल के फकतने हे जो धा की रचना कतने हे जो धर्ग की भाघ । तो उच्हींने फिर पोल रचता करी , उके बजह से सारी गडबडीर्या होगई। इस प्रकार हर भर्म में गडबड़ीयों कोती गई, और इसलिप

Original Transcript : Hindi घर्म बड़ा कठिन और अगम्य सा बन गया है और फिर आधुनिक कात में बहुत से लोगोंने भी कुष्डतीनी के बारे में गलत कह दिया। अब प्रश्न ये धा कि मनुष्य को किस तरह से बताया जाय कि परमात्मा है, सत्य है,वो आत्मा स्वरूप हैं। इसलिए फिर आदि शक्ति का अवतरण जरूरी है। आदि शवित ही ये कार्य कर सफती है। बो सब च्ी मानुव का कार्य जानती है। और उसे मानव जाती में आकर के, जेस। अवतरण लेना पड़ा। जिससे वो समझे कि इनके अन्दर क्या क्या दोष हैं। और फिर बो दोष निकालने के लिए क्या करना चाहिए। कुण्डलीनी का जाग्रण इन दोषों के रहते हुए भी कैसे हो जाए। कैसे बम्ह नाईी में से कुण्डतीनी की जाग्रण कर दी जाए, जिससे मनुष्य इसको प्राप्त कर ले। पहले इसको धोड़े प्रकाश से देखे। देखते देखते स्वयं ही समझ जाए कि उसकी अपनी ही और दृष्टी करके, देख के, उसको वो शक्ति आ जाए कि उसे ठीक कर लै। ये कार्य ऐसा वा कि जिसमें सभी देवी देवताओं का, सभी अवतरणों का और सभी महा पुरुषমা का और सबका ही आना जस्ूरी था। उसी शरीर में धारणा कर कर के और इस संसार में अवतरण आना धा। और इसलिए ये अवतरण हुआ है ूकि सारे संसार का उत्थान होना है। जिस परमात्मा ने ये सृष्टि बनाई है, जिसने ये सारा संसार रचा है, वो कभी नहीं चाहेंगे कि ये संसार मनुष्य के हा्थो बरबाद हो। और इसलिए ये कार्य अत्यन्त विशाल है। ये नहीं हो सकता कि आप (कॉस) सूली पे चढ जाएँ ये नहीं हो सकता कि हम मनन मे बातें करते जाएँ इस पर मनुष्य को बढ़ना होगा, वनाना होगा। काफी मेहनत का काम है। पर ये सिर्फ माँ ही कर सकती है। माँ की ही शक्ती जो इसे कर सकती है। और उसमें व्यार सहनशीलता और सूझबूझ न हो तो वो कर ही नहीं सकती। इसलिए इस अवतरण की बड़ी महत्ता है। सपूजा करें और इसको पाने पर सब कुछ हो ही जाता है, क्योक आप जानते हैं कि आदि शक्ति की जो महामाया स्वरूपनी प्रकृति है उसमें एक बड़ा भारी कारणह कि, गर यो महामाया न हो, तो आप उसको कभी जान ही नहीं सकते। वास्तविक में जब तक महामाया स्वरूप है तभी तक आप मेरे नज़दीक आ सकते हैं। नहीं तो आ नहीं सकते । आप सोचेंगे ये तो शक्ति है, इनके पास कैसे जाएँ। इनके पैर कैसे छूए इनसे बात कैसे करें। तो ये महामाया स्वरूप लेने से ही ये चीज़ बहुत सौम्य हो गई है। और इस सौम्यता के कारण ही आज हम सब पक हो गए हैं। और ये भी बहुत जरूरी या कि इस महा माया स्वरूप में ही हम रहे, और आप लोग उसे प्राप्त करते रहें और सो न जाएँ। जैसे समुद्र में खो गए। जैसे कबीर ने कहा “जब मस्त हुए फिर क्या बोले”। आप सबको जागृत रहना है और सबको देना है मैं आपको खोने ड़ी नहीं दूँगी। इस आनन्द में पूरी तरह से विवोध होके, कोई नहीं खो सकता है इस आनन्द को बँटे बगैर आपको चैन ही नहीं आने ढूगी। इस तरह की चीज होगी तभी आप लोग समझेंगे कि आपको क्या कार्य करना जागृती है। तो आपका भी कार्य साधु संतो से पक तरह से अधिक है कि साधु संतों ने किसी को (रताईजेन ) नही दिया था। हा उन्हें उपदेश दिया, उन्हें समझाया। आप का कार्य ये है आप सबको जागृती दें। और उनको आत्म साक्षात्कारी बनाएँ और सारे संसार का आय अत्यान प्राप्त करें । बहुत महत्वपूर्ण और दिय कार्य है। और 8.

Original Transcript : Hindi इस कार्य के लिए आदि शषित का आना [ज़रूरी धा और उस आदि शक्ति के आगमन से ही ये कार्य शुरू हइं गया है और बहुत अवछे से हो रहा है आशा [है आप लोग समझेंगे और बहुत से ऐसे फोटो आ रहें हैं, जे चमत्कारी हैं। पर ये फोटो दूसरे लोगों को दिखाना नहीं चाहिए। क्यूकि उनको विश्वास ही नहीं होगा। औ ये भी फोटो परम चैतन्य वना रहा है, वो भी एक साधारण कैमरा से जिसमें कोई शक्ति नहीं है। और अग इतना प्रकाश मेरे सिर में है तो वो किसी को दिलखाई क्यूँ नहीं देता ? सिर्फ वो कैमरा में क्यूँ आ गया ? आ लोगों के लिए में लो महा माया ही हूँ। कैमरा के लिए शायद नहीं हूं। कैमरा के अन्दर की जो अणु रेणु । यो मुझे जानते हैं। आपको परमात्मा ने स्वतंत्रता दी है। इन जड बस्तुओं को स्वतंत्रता नहीं। वो तो परमात्मा के ही आज़ञा से बलते हैं, और पशु भी उन्ही की आज्ञा में रहते हैं। उस स्वतंत्रता में किसी भी तरह की बाधा न आए, इसीलिए महामाया स्थरूप है। आपके जैसे हम हैं। हमारा सारा व्यवहार भी आप के जैसे है । आशा है कि आदि शक्ति की आज की पूजा आप लोगों को समापन्न हों। मेरा आनन्त आशी्वाद – 9.