Easter Puja: You Have To Grow Vertically

Eastbourne (England)

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1990-04-22 ईस्टरपूजा प्रवचन : आपको उर्ध्व दिशा में उत्थान करना है। ब्रिटेन,डीपी

आज हम यहाँ पूजा करने जा रहें हैं, ईसा मसीह के पुनरुत्थान की।

और साथ ही उन्हें धन्यवाद देना है,  हमें प्रदान करने के लिए ,एक संत का आदर्श जीवन , जिसे कार्य करना है ,संपूर्ण विश्व  के कल्याण लिए ।

हम ईसा मसीह की बात करते हैं ।हम श्री गणेश   भजन का गायन करते हैं । हम कहते हैं कि हम उनको मानते हैं । विशेष रूप से सहजयोगियों को लगता है कि उनके सभी भाइयों में वे  सबसे बड़े  हैं  ।और एक प्रबल  , समर्पण मैं पातीं हूँ, विशेष रूप से पाश्चात्य सहज योगियों में, ईसा मसीह के लिए । कारण कि शायद हो सकता है कि उनका जन्म ईसाई धर्म में हुआ हो ।अथवा हो सकता है कि उन्होंने  ईसा मसीह के जीवन को पाया हो ,एक बहुत  विशेष प्रकार का  । परंतु उन्हें उस से कहीं अधिक होना है सहज योग के लिए , और आप सहज योगियों के लिए ।

बहुत से लोग अनेक देवी-देवताओं को मानते हैं । जैसे कुछ लोग श्री कृष्ण को मानतें  हैं, कुछ लोग श्री राम को , कुछ लोग बुद्ध को , कुछ लोग महावीर को एवं कुछ लोग ईसा मसीह को। पूरी दुनिया में, वे अवश्य विश्वास करतें हैं, किसी उच्चतर अस्तित्व में । परंतु शुरुआत मे यह विश्वास बिना योग के  होता है ।और बन जाता है एक प्रकार का,  मिथक  कि वे सोचते हैं कि ,ईसा मसीह उनके अपने  हैं, राम उनके अपने हैं ,या श्री कृष्ण उनके अपने  हैं। कि  वे इन सभी देवी-देवताओं के वाहक हैं, क्योंकि उन्होंने   विश्वास करके  अनुगृहीत किया है । और इस प्रकार अधिकतर मान्यताएँ अस्तित्व में आईं हैं।

और, यद्यपि कि वे ईसा मसीह में गहन आस्था रखतें हैं, ये सभी मान्यताएँ विफल हो गईं। कारण कि जब वे ईसा-मसीह को मानने लगे  तो उनका विश्वास था कि, ईसा मसीह के माध्यम से वे  अपने चेक को भुना सकतें हैं । यह एक बैंक की तरह था । आप परमात्मा से प्रार्थना करतें हैं , “आप मुझे  ठीक कर दीजिए  ।” ठीक है। फिर, “ मेरी मां को ठीक कर दीजिए । मेरे पिता को ठीक कर दीजिए ।मेरी बहन को ठीक कर दीजिए ।मुझे इतना धन दे  दीजिए।मुझे इतनी संपदा दे दीजिए । या स्वास्थ्य या कुछ भी।” यह सोचकर कि चूँकि  हम ईसा मसीह में आस्था रखतें हैं, वे इतने  अनुग्रहीत हैं , कि उन्हें इसके बदले में कुछ चुकाना  होगा ।उन्हें  हमारी देखभाल करनी होगी ।और यह कि  हम उनके आशीर्वादों को प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

फिर वे चर्च, मंदिर, मस्जिद, क्लब बनाते हैं ,यह मान कर कि अब ,हम ईसा मसीह के आत्मीय जन हैं । यह सारा समूह एक  बहुत विशेषरूप से चयनित  है । अथवा, हम राम के आत्मीय जन  हैं, या कृष्ण के   या उनके समान किसी अन्य   के । और जिस किसी से भी वे संबंध रखतें हों ।वे जिसके वे आत्मीय जन हैं, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं ।  ईसा मसीह ने कहा है, “तुम मुझे ईसा, ईसा पुकारते रहोगे , मैं  पहचानूँगा नहीं।”  यह उन लोगों के लिए एक बड़ी चेतावनी है जो कहते हैं, “हम ईसा मसीह को मानते हैं ।”

अत:, यदि आप किसी से  जुड़े बिना उसको भी मानते हैं, तो इसका कोई औचित्य नहीं है। यह  बस किसी  मिथ्यापूर्ण , रूमानी विचार की भाँति है,  कि जिस दूसरे व्यक्ति को  आप मानते हैं, उसका आपके साथ एक विशेष संबंध है । अत: यह धारणा कि मैं  किसी में आस्था रखता हूँ, अथवा यह अनुमान कि मैं किसी में आस्था रखता हूँ । चूँकि मैं किसी में आस्था रखता हूँ, मुझे पूरा  अधिकार है, उन सभी अनुकंपा को पाने का जिनकी मैं याचना करता हूँ, एक मिथक है, जैसा कि आप ने सहज योग में आने  के बाद अनुभव किया होगा।

परन्तु जब आप एक सहज योगी बन जाते हैं, तब आप जुड़ जातें हैं उन सभी के साथ तथा ईसा मसीह के साथ । परंतु यह योग पुनः , सूक्ष्म रूप से, वही शैली है। उदाहरण के लिए, हम  प्रयास क्या करते हैं  कि पुन: माँगते हैं, कि यह  किया जाना चाहिए, वह किया जाना चाहिए । मेरा आज्ञा पकड़ गया है । माँ ! कृपया इसे स्वच्छ कर दीजिए  । या  मुझे सिरदर्द हो गया है। इसलिए कृपया इसे ठीक कर दीजिए ।

चूँकि आप सहज योग में विश्वास रखते हैं, आप अपेक्षा करते हैं कि सहज योग, कृतज्ञता महसूस करे  कि  देखिए अब वे मुझ में आस्था रखते हैं,यह इतना महान अनुग्रह है।  अतः सहज योग को मेरे लिए अवश्य कुछ करना चाहिए ।यह महत्वपूर्ण नहीं है कि  आप सहज योग के लिए क्या  कुछ करते हैं । केवल चूँकि  आप सहज योग में आस्था रखते हैं, चूँकि सहज योग ने आपको आत्म साक्षात्कार दिया है, इसलिए सहज योग हर तरह से बाध्य  है ,कि यह  आपकी देखभाल करे । मैं सहज योग में अभी भी हूँ, मैं क्यों पीड़ित रहूँ? मैं सहज योग में हूँ, क्यों मेरी माँ बिल्कुल ठीक  न  रहें ? मैं सहज योग में हूँ , जैसे कि एक प्रकार की संस्था है,  जहां आपने पैसे या कुछ अन्य भुगतान किया है । और   आपको सभी प्रकार के  प्रतिफल मिलने चाहिए ।

परंतु अब, आइए देखते हैं कि,  सहज योग के बाद हमारी मनोवृति कैसी होनी चाहिए जो कि समझदारी पूर्ण हो? प्रथमत: यह है कि अब मैं एक सहज योगी हूं ।और अब मैं ईसा मसीह से जुड़ा हुआ हूँ । अतः मेरा क्या उत्तरदायित्व है? ईसा मसीह ने पूरे विश्व के लिए अपने को उत्तरदायी समझा ।  देवी पुराण में उनका  वर्णन , संपूर्ण ब्रह्मांड के आधार के रूप में  है । जैसे ही आप ईसा मसीह के साथ जुड़ते हैं, संपूर्ण प्रवृत्ति को बदलना होगा ।

अतः ईसा मसीह के साथ जुड़े होने का अर्थ है कि, ईसा मसीह के कौन से गुण आपने स्वयं में ग्रहण किये हैं? यह न्यूनतम से न्यूनतम है । आपने उनके जीवन से क्या प्राप्त किया?  क्या यह कि उन्होंने लोगों का उपचार कर पूरी तरह से   ठीक किया है, इसलिए आपका भी उपचार होना चाहिए। उन्होंने लोगों को आँखें दीं, तो आपको भी अपनी आंखें वापस मिलनी चाहिए।

(अलग से)  : आपको आपत्ति न हो तो कृपया इसे हटा दीजिए ।

अथवा क्या ऐसा है कि उनका जीवन, जिसे आपने प्रतिष्ठापित किया है, आपको भी कुछ ऐसा बना दे ,जिसे प्रतिष्ठापित किया जा सके, जिसका सम्मान किया जा सके । जिसे ईसा मसीह के जीवन का प्रतिबिंब कहा जा सके।

आइए हम उनके जीवन को देखते हैं।उन्होंने किस प्रकार का जीवन व्यतीत किया । हम बाइबल पढ़ते हैं। देखिए कि  हम हर जगह बाइबल लेकर जाते हैं ।और यहां तक कि मैंने होटल  में भी  बाइबल  देखा ।माने कि , यह एक चीज़ हो ।जैसे एक साबुन रखा जाता है ,वैसे  बाइबल  । निसंदेह, मैंने इसे पढ़ा है । मैं नहीं जानती कि कितने लोग इसे पढ़ते  हैं ।लेकिन , यह  नहीं होता है  कि ,  आपको सहज योगी कहा जाए , यदि उनके संबंध  से ,आपने उन का कोई एक भी गुण धारण नहीं किया है ।उदाहरण के लिए,अभी यह मुख्य स्रोत से जुड़ा हुआ है। इसलिए आपको इसके माध्यम से बिजली मिल रही है । यह  मुख्य स्रोत को बिजली  देता नहीं है, बल्कि यह  प्राप्त करता है ।अत: आपको  उनसे कुछ प्राप्त करना है । और आपको  जो  प्राप्त करना है, वह है  उनमें विद्यमान गुण ।आप कह सकते हैं, “चूँकि ,श्री माता जी ! वे दैवीय विभूति  थे। वे परमात्मा के पुत्र थे ।”  परंतु वे अपनी मां के भी एक बेटे  थे। और आप भी अपनी मां के बेटे हैं ।

अतः हमारे चरित्र का   साधारणपन , यह  नहीं कह सकता कि हम ईसा मसीह से जुड़े हैं ,क्योंकि ईसा मसीह की कोई भी ऊर्जा आप में प्रवाहित नहीं हो रही है ।जब ईसा मसीह की ऊर्जा आपके माध्यम से बहती है,  आप इसे अभिव्यक्त करते हैं । जैसे कि कल वे भद्र पुरुष बजा रहे थे। और मैं समझतीं हूँ कि सरस्वती की शक्ति उनमें बहने लगी थी ।और कितनी सुंदरता पूर्वक उन्होंने बजाया । वे अपनी उंगलियों को नियंत्रित नहीं कर पाए । यह सब यहां घटित हो रहा है ।मैं नहीं जानतीं कि कैसे ।  

अत: यदि आप उनके सम्पूर्ण जीवन को देखें , तो वे एक ऐसे व्यक्ति थे ,जिन्हें सदैव संसार  के हित के बारे में  परवाह रहती थी । कितनी स्पष्टता से वे गए तथा पुजारियों से बात की ।और उनसे कहा, कि आप मुझे नहीं समझते हैं क्योंकि आप मूढ़ हैं । उन्होंने उनको बताया कि वे अपने परमपिता को जानते हैं तथा उनके  परमपिता उन्हें जानते हैं ।परंतु आप मुझे नहीं जानते हैं, न ही आप अपने परमपिता को जानते हैं ।इतने खुलकर, मुखर होकर वे बातें कर रहे थे । उन्हें डर नहीं था कि वे कारागार चले जाएँगे । उन्हें  डर नहीं था कि ऐसी बात कहकर, दूसरों के अहंकार को ठेस पहुँचाएँगे ,क्योंकि वे मिथ्या अभिमानी नहीं थे । वे   ऐसा कुछ नहीं कर रहे थे जो सत्य से परे  हो । वे सत्य वचन बोल रहे थे तथा सत्य  में इतनी क्षमता होती है कि, स्वयं को आपके व्यक्तित्व के माध्यम से अभिव्यक्त कर सके ।

परंतु क्या हम सच में स्वयं में विश्वास रखते हैं? क्या हम सच  में विश्वास करते हैं कि हम सहज योगी हैं, कि क्या हम  लोगों से बात कर सकते हैं जिस तरह ईसा मसीह उनसे बात कर सके ?

बारह साल की बहुत अल्प आयु में,  वे  पुजारियों से जाकर बात कर सकते थे।कितना साहस ! उन्हें कोई आवश्यकता नहीं थी । उन्हें सच  में शादी कर लेनी चाहिए थी जिस तरह  सहज योगी करते हैं। और अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ अच्छी प्रकार बस जाते। क्योंकि  सहज योगियों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द दिखता है विवाह , तथा उनके बच्चे । उन्होंने कभी विवाह नहीं किया । वे इतने उत्कृष्ट थे, कि वे अपना समय  इन बातों में गँवाना नहीं  चाहते थे । और उनकी मृत्यु इतनी कम उम्र में  हो गयी ।वे जानते थे कि उन्हें मरना ही होगा ।

इसलिए उनके जीवन में, आप देखिए,कि वे एक लौकिक व्यक्तित्व नहीं थे । लौकिक नहीं थे । साधारण नहीं थे । मेरा तात्पर्य है जब उन्होंने बात किया  इतने आत्म विश्वास के साथ , इतने सत्य के  ज्ञान के साथ कि लोगों ने  उन पर विश्वास किया, विश्वास करना ही पड़ा। वे बाध्य हो गए। यह शक्ति आपमें भी है।और आप भी ऐसा कर सकते हैं । परंतु जिस प्रकार से उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग किया, हम क्यों नहीं उपयोग कर सकते? क्योंकि हम इसके बारे में गंभीर  नहीं हैं ।हमारा चित्त किसी अन्य विषय पर है, जो अत्यंत तुच्छ है, जो अर्थहीन है ।

ठीक है! हम सहज योगी हैं।तो हम क्या सोचते हैं? पहली चीज़ हम सोचेंगे, “अभी , आज एक पूजा है ।हमें क्या पहनना चाहिए?”  फिर, “मैंने अभी तक अपने कपडे इस्त्री नहीं किये हैं ।” अथवा  “मेरी साड़ी ठीक नहीं है । मेरे लिए यह  ढंग की होनी चाहिए  ।” और  “कैसे तैयार होना है।”  ये सारी तुच्छ बातें सबसे पहले हमारे घर, हमारे मस्तिष्क में आती हैं । अथवा सुबह, जब आप अपने आश्रमों में या कहीं भी उठतें  हैं । आप क्या सोचते है? यदि ईसा मसीह होते, वे कहते, “मैं अभी भी सो रहा हूँ? मुझे ध्यान करना है । मुझे परमात्मा के साथ एकाकार होना है ।” वे  यह नहीं कहते, “नहीं, नहीं, परमात्मा देखभाल करेगें । सब ठीक है । परमात्मा मेरे लिए ध्यान कर लेगें!”  आखिरकार, परम चैतन्य ।उन्हें ध्यान करना है । हम ध्यान क्यों करें? हम सब सहज योगी हैं ।   सब कुछ सहज है।तो परमात्मा  हमारे लिए ध्यान कर लें ।  हम सुबह नहीं उठ सकते । यह कठिन है । हम नहीं कर सकते ।आप जानिए ।कदापि  नहीं कर सकते ।  पर तब  आप एक सहज योगी नहीं हो सकते ।आप  को सभी देवी-देवताओं के साथ जुड़ना  है ।  केवल ईसा मसीह से ही नहीं । और यहाँ पर आप ध्यान करने के लिए अपना  बिस्तर  भी  नहीं छोड़ सकते । जबकि सभी देवता पहले से ही वहां उपस्थित हैं ।आपके उठने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।बस इतना ही । और वे समझ नहीं पाते हैं कि इन सहज योगियों को क्या हो रहा है । वे इतने निम्न स्तर के  कैसे हो सकते हैं? आख़िरकार , माँ ने उन्हें अवश्य आत्म साक्षात्कार दिया होगा, यह समझ कर कि वे कुछ महान लोग हैं । उन्हें आत्म साक्षात्कार कैसे मिल गया ? वे इतने साधारण हैं, इतने  लौकिक हैं , इतने बेकार  हैं ।” 

सभी देवी-देवता आश्चर्य करने लगे  हैं, “माँ ने उन्हें आत्म साक्षात्कार क्यों दिया?” कारण कि जो व्यक्ति अपने ध्यान का आनंद नहीं ले सकता, वह सहज योगी नहीं हो सकता है । एक सहज योगी होने की यह  पहली पहचान है, कि वह ध्यान करने के समय की आतुरता से  प्रतीक्षा करता है  । यही वह समय है जब आप सच में परमात्मा से जुड़े होते हैं । और आप अत्यधिक आनंदमय होते हैं।और जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं उसमें लीन हो जाती हूं । इससे बाहर आना  बहुत कठिन लगता है । मेरा अभिप्राय है, आज मेरे साथ ऐसा ही हुआ ।पहले  सोच रही थी कि मुझे इस पूजा में भाग लेने  के लिए संघर्ष करना होगा । मुझे इसे कार्यान्वित करना होगा । मैं नहीं जानती कि मैं इस ध्यानस्थ अवस्था से कैसे बाहर निकलूँगी | 

परंतु इतने सारे लोगों को अचंभित कर देता  है ।  

( अलग से बोलते हुए ) वह मेरे गले के लिए कुछ लाया था।

लोग कैसे ध्यान कर रहे हैं | विशेष रूप से कई  सारे भारतीयों ने मुझे यह बात बताई। यह बहुत आश्चर्य की बात है, कि उन्हें ध्यान करना है  और  वे तुरंत उठ जाते हैं  ।कैसा केक? कैसी चीज़ें ? आपने क्या पकाया है?” वग़ैरह वग़ैरह | उनमें  ध्यान की सुषुप्ति नहीं है। और बस,वे झट  भोजन के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं | यह कैसे हो सकता है? इस प्रकार से  आप अपनी नींद से बाहर नहीं निकल सकते हैं । उसी प्रकार एक सहज योगी अपने ध्यानस्थ अवस्था से बाहर नहीं निकल सकता ।यह इतना आनंदमय है | आप वहां बने रहना चाहते हैं |

अतः एक संकेत  कि आप अभी तक सहज योग के आस-पास भी नहीं हैं, यह है कि यदि आप अपने ध्यान का आनंद नहीं ले पातें हैं |

मेरा अभिप्राय है, कल्पना कीजिए कि ,यदि आप एक टेलीविजन कार्यक्रम या किसी भी चीज़ का सुख लेते हैं, तो आपको इसे देखना होगा ।है ना? आप  बिल्कुल नहीं कह सकते, “ठीक है, मैं  अभी सो रहा हूँ । और मैं टेलीविजन का सुख ले रहा हूँ।” | अत: आपको इसके प्रति जागृत होना होगा | परंतु वह जागृति आप के अंदर  है ।और वहां आप अपना योग देखते हैं |

यह एक आनन्द है जिसे  मैं सच में  वर्णन नहीं कर सकती । उसके लिए केवल एक ही शब्द है, निरानंद ।  अर्थात् यह बस “निरा “ जिसका अर्थ है “  आनन्द मात्र” , “संपूर्ण आनंद” | और कौन इस आनंद को किस हेतु त्यागना चाहेगा ?  एक केक के लिए या एक चाय या कुछ चीज़ के  लिए? मेरा अभिप्राय है, थोड़ा इसके बारे में सोचिए । यह आनन्द इतना गहन है, इतना प्रचण्ड ,इतना सुंदर ।मुझे नहीं मालूम कि और क्या कहूँ | आपने अमृत का स्वाद नहीं चखा है । अन्यथा आप कहते , जैसे कि ,अमृत आपकी जीभ पर टपक रहा है | इसका स्वाद इसी भाँति है | 

परंतु मैं क्या देखती हूँ कि हमने गहनता को स्पर्श नहीं किया  है ,जो हमारे अंदर ही विद्यमान है | आप सभी में वह गहनता है। ऐसा नहीं है कि आप में नहीं  है | मैंने आपको आत्म साक्षात्कार इसलिए नहीं दिया है ,क्योंकि आप बस यहाँ वहाँ  हैं । बल्कि यह आपके अंदर वह गहनता है | उस गहराई के कारण आप  विशेष लोग हैं । परंतु  आपने इसे स्पर्श नहीं किया है|

यह दर्शाता है कि आपने इसे स्पर्श नहीं किया है | मान लीजिए कि यह पानी से भरा हुआ एक कुआँ है। परंतु आप अभी भी बीच में कहीं झूल रहे हैं।आपने अभी तक उस गहराई को स्पर्श नहीं किया है | कारण कि एक बार  आप उस में उतरते हैं, आप पूरी तरह से सराबोर हो जाते हैं ।और खो जाते हैं | परंतु यदि  यह स्थिति नहीं है, यह दर्शाता  है कि आप अभी भी कहीं बीच में झूल रहे हैं ।और किसी भी समय  ख़ाली हाथ ऊपर आ  सकते हैं |

इसलिए आपको स्वयं को परखना होगा | आप के लिए यह समय ईसा मसीह के साथ आपके जुड़ाव को  परखने करने का है ।उन्होंने अपने पुनरुत्थान को प्राप्त किया, जिसके द्वारा हमें अपने पुनरुत्थान को प्राप्त करना है | परंतु हमने क्या किया है ,उस पुनरुत्थान को प्राप्त करने के लिए जो उन्होंने प्राप्त कर लिया है? उन्होंने प्रबलता से एक जीवन यापन किया जो  सम्पूर्ण त्याग एवं  सम्पूर्ण एकाग्रता  का  था , एकमेव लक्ष्य की ओर  केंद्रित , कि उन्हें पुनरुत्थान प्राप्त करना है | अन्य कुछ भी उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं था | सारा चित्त एक बात पर था, कि मुझे इस पुनरुत्थान को प्राप्त करना है | मुझे सूली पर चढ़ना है एवं मुझे पुनर्जीवित होना है, क्योंकि पूरी दुनिया को पुनर्जीवित होना है |

परंतु सहज योगी, मैं नहीं जानती कि कितने इसी भाँति सोचते हैं, कितने सोचते हैं कि समर्पण की आवश्यकता है | और इसकी सबसे अच्छी बात है,  कि यह अति आनंददायक है | प्रत्येक कदम जो आप आगे बढ़ाते हैं ,  अति आनंददायक है | उस कुएं में यह डूबना ,अत्यधिक  आनंददायक है | यह कष्टदायक नहीं है |  स्वयं को सूली पर चढ़ाना नहीं है । सूली को उठा कर चलने की आवश्यकता नहीं है | उन्होंने यह आप के लिए कर दिया है | तो आप क्या त्याग करते हैं?  यह है आपका आलस्य ।

जब अहंकार के संतुष्टि की बात आती है ,तो लोग अतिसक्रिय हो जाते हैं | तब वे गोलियों  की भाँति होते हैं | और जब उनके शारीरिक आराम के  संतुष्टि की बात आती है, वे बन जाते हैं, मैं नहीं जानती | हमारे यहाँ कुंभकर्ण नामक एक राक्षस था, जो छह महीने तक सोता रहता था ।और छह महीने तक  जागता रहता था | परंतु यहां मैं देखती हूँ कि लोग बारह महीने तक सोते रहतें हैं ।आप उन्हें क्या कहतें हैं?

तब  वे कहते हैं, “माँ, हम जगे नहीं रह सकते।” क्यों? क्योंकि आप ध्यान नहीं कर रहे हैं ।आप ईसा मसीह के साथ एकाकार नहीं हैं । तब  वे उनकी आज्ञा को नियंत्रित करते हैं | आप उस आज्ञा के साथ सो नहीं सकते | यदि उनके आशीर्वाद आज्ञा  पर हैं , आप सो नहीं सकते | आप विश्वास नहीं करेंगे कि थोड़ी सी भी रोशनी में , विशेष रूप से कृत्रिम प्रकाश में  , मैं सो नहीं सकती । क्योंकि ईसा मसीह अभी भी जग रहे हैं। और मुझे जगते रहना होगा | 

इसलिए आपको इस तथ्य के प्रति जागृत होना होगा कि हम सहज योगी हैं | हमारा विशेष उत्तरदायित्व है ,जहां तक हमारा जुड़ाव ईसा मसीह के साथ है। हमारा मुख्य उत्तरदायित्व है निरंतर गहनता से यह सोचते रहना   कि , हम मानव की बेहतरी  के लिए क्या कर सकते हैं? और हम इसके बारे में क्या कर रहे हैं? 

पहले मैं कहती थी कि आप को प्राप्त दैवीय अनुकंपा  हेतु कृतज्ञ होइए ।क्योंकि लोगों को समझाने का यह सर्वोत्तम ढंग था कि ,सहज योग में दैवीय अनुकंपा मिलती  हैं | अब मैं कहूंगी , “अपने कर्मों की गणना करो”।| सहज योग के लिए आपने क्या किया है? सहज योग ने आपके लिए इतना कुछ किया है |

यह कहना कि परम चैतन्य देखभाल करेगा, पूर्णतया बकवास है । यदि परम चैतन्य सब कुछ कर सकता,   वह मानव का सृजन क्यों करता ? एक आदम और हव्वा पर्याप्त थे | आपको यह करना होगा | जब तक आप  गहन  नहीं होते,  यह  पहल नहीं कर सकता। यह नि:सहाय  है | केवल आप के माध्यम से ही यह कार्यान्वित होने वाला है |

अब यदि कोई उपकरण नही हैं। बिजली काम नहीं कर सकती। क्या यह कर सकती है ? अब आपको कहना चाहिए, “बिजली को स्वयं ही मेरे सम्मुख आना चाहिए तथा सब कुछ करना चाहिए!” आपके पास साधन होना ही चाहिए एवं आप ही  साधन हैं ।और यदि आप यह नहीं करना चाहते हैं, तो परम चैतन्य  कैसे यह कर सकता है? यह कुछ ऐसा ही होगा  कि कहा जाए जैसे  मैंने आपको बताया था, कि बिजली ही   कार्य करे , हमारे पास कोई उपकरण नहीं होगा ।क्या मैं इसे कार्यान्वित कर सकती हूँ? क्या आप इसे कार्यान्वित कर सकते हैं?

अत: परम चैतन्य की अपनी शैली है | यह केवल तभी कार्य कर सकता है जब आप लोग इसे कार्यान्वित करना चाहते हैं | यह एक ऊर्जा है एवं  आप साधन हैं | परंतु यह साधन अधिक व्यस्त है नौकरी में, परिवार में ,मुझे नहीं पता सभी  प्रकार की निरर्थक चीज़ो में  |  

अब मान लीजिये  यह उपकरण  जो मेरे व्याख्यान के लिए निमित्त है, भूल जाता है कि यह क्या है। और रसोई घर की  एक कड़छी की भाँति  व्यवहार करता है, क्योंकि इसे   भोजन का चाव है, उदाहरण के लिए मान लीजिए । तो इस बेकार के  साधन को बनाने का क्या औचित्य है? जो इसे करना है यह  वह नहीं करता है | यह नहीं जानता कि इसे किस लिए बनाया गया है| इसका बिल्कुल कोई प्रयोजन नहीं है | यह एक बहुत ही बेकार की वस्तु है |

इसलिए मुझे लगता है कि एक प्रकार की जड़ता है ।एक प्रकार की बहुत ही सूक्ष्म अकर्मण्यता कार्यान्वित है । जैसे यह कि , हम   अपना काम  कर चुके | अब युवा लोग इसे करें | आप परिपक्व  हैं। और परिपक्व लोगों को कार्य करना है।हमने अपना  भरसक  प्रयास किया है। आपने अब तक   किया ही क्या  है?

अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है | और किसी न किसी तरह से,मुझे नहीं मालूम , हमें उस क्षेत्र को  स्पर्श करना होगा , जहां कल वाले वादक जैसे लोग रहतें  हैं ।वह परमात्मा का कार्य नहीं कर रहें है | वह एक कलाकार है ।और वह पूर्णता प्राप्त करने के लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं | उसे उतनी ही  धन राशि मिलेगी चाहे वह पारंगत हो या न हो । परंतु  वह घर में अभ्यास कर रहे हैं ।वह इसे सुन रहे हैं।वह इसमें  सुधार लाने की चेष्टा कर रहे हैं ।हर पल  इसे कार्यान्वित कर रहे हैं ताकि ,उनका  प्रदर्शन उत्कृष्ट हो | अत: वह  उत्कृष्टता की साधना कर रहे हैं ।

सहज योग में साधारणपन का कोई स्थान नहीं है | केवल उत्कृष्टता के माध्यम से ही आप आनंद लेंगे  | केवल उत्कृष्टता के माध्यम से ही आप सच में सहज योगी बनेंगे |

अन्यथा, आप सिरदर्द हो सकते हैं,मेरे लिए और अपने लिए ।आप सहज योगियों के लिए एक सिरदर्द होंगे | अत्यधिक पिछड़े हुए , विनाशकारी तत्व। मैं कहूँगी कि एक  वह  व्यक्ति  जो सतर्क नहीं है | आपको जागरूक होना होगा। जागरूक अपने उत्तरदायित्वों के प्रति।

अभी तक , मैं कहती आ रही हूँ कि अभी भी तैयारी चल रही है । उन्हें स्वयं को सुधारना होगा । उन्हें अपने आप को स्वच्छ करना होगा । अभी भी उन्हें  कार्यान्वित करना होगा ,उनके संस्कार , यह अहंकार | परंतु अब, बीस साल बीत चुके हैं। और संभल कर  रहिए । ध्यान रहे कि इक्कीसवाँ साल, एक बहुत बड़ी छलाँग  लगाने वाला है | मैं आपको बारंबार और बारंबार चेतावनी दे रही हूं | और आपको बहुत कड़ा परिश्रम करना होगा स्वयं के उर्ध्वगामी प्रगति के लिए ,   जो कि आपके   क्षैतिजिक  प्रगति के  संतुलन में हो।

मेरा यह  प्रवचन मनोरंजन या अन्य चीज़ के लिए नहीं है। बल्कि इसे  आपके हृदय  में  , आपके मस्तिष्क में, आपके अस्तित्व  में जाना चाहिए , क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है | और आपको इसे व्यर्थ नहीं जाने देना है।  आपको हरदम यही सोचना है कि आप एक सहज योगी हैं ।और आपको मालूम होना चाहिए कि आपको सहज योग में  क्या करना है तथा इसे कैसे प्राप्त करें ।

आपको संतुष्ट नहीं होना चाहिए ,जब तक आप उस उत्कृष्टता को प्राप्त नहीं कर लेतें  हैं।| आज यह बहुत महत्वपूर्ण , निर्णायक विषय ,  मैं आपको बताना चाहती थी क्योंकि आज,  ईस्टर  दिवस  है जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, आत्मा के विकास या प्रगति के लिए । कारण कि हम कभी भी सहस्त्रार पर नहीं पहुँच सकते थे, यदि आज्ञा  अवरुद्ध होता |

ईसा मसीह कह सकते थे, “ठीक है ।परम चैतन्य यह कार्य करें । परम चैतन्य  स्वयं  सूली पर लटक जाएं | मैं यह क्यों करूँ?” उन्हें यह करना था तथा वे माध्यम थे एवं  उन्होंने यह किया  |

अत: सहज योग केवल शोषकों के लिए नहीं है।यदि आप  सहज योग का केवल शोषण करने के लिए प्रयास करते हैं, तो आपका भी शोषण किया जाएगा । परंतु यह आनंद के दोहन के लिए है |  यह केवल तभी संभव है जब आप प्रगति करते हैं, आप अपनी गहराई को स्पर्श करतें हैं | यदि आपमें पर्याप्त  गहनता  नहीं हैं, आप अधर  में लटके रहेंगे जैसा कि मैंने बताया था| और इसे ही कार्यान्वित किया जाना है ।यही पता लगाया जाना है । आप इसे कितने उत्तम ढंग से  कर सकते हैं ? आप लोगों तक कितना अधिक पहुंच सकते हैं ?  आप कितने लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकतें हैं ? आप कितने लोगों की सुधार हेतु मदद करने जा रहें हैं उनके स्वास्थ्य में , उनकी मानसिक दशा में ? और तब , आप सहज योग के बारे में कितनी बातचीत करने जा रहे हैं ?

तो यह कार्यान्वित करने जा रहा है कि जिसे मैं कहतीं हूँ, सामूहिक उत्थान,  मानव जाति का ।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करे !

ईसा मसीह से जुड़ना ही ,अपने ध्यान का आनंद लेना है।| 

ठीक है | अत:, पूजा एक अन्य चीज़ है जो ,मैं जानती हूँ, यह आपकी बहुत सहायता करती है। मुझे कहना चाहिए,यह आपको निश्चित रूप से  अग्रसर करती  है। परंतु आप इसे सँभाल कर नहीं  रखतें हैं | इसे सँभाल कर नहीं रखतें हैं । तो फिर इसका क्या औचित्य है? अतः आपको इसे सँभाल कर भी रखना है ।सँभालने की शक्ति होनी चाहिए | यह तभी संभव है यदि आपने, अपनी गहराई को स्पर्श किया हो, जो आपमें है |

मैं आप सभी के पास वापस आकर बहुत प्रसन्न  हूं | मैं आप सभी को बहुत याद करती थी | मैं यात्रा कर रही हूँ एवं बहुत कड़ा परिश्रम कर रही हूँ | मैं नहीं जानती कि क्या मैं  कड़ा परिश्रम करती हूँ | मैं इसके बारे में नहीं सोचती हूँ । कभी नहीं |

अतः एक बार जब आप जान जाते हैं कि आपको क्या  होना है, तो आप कार्य नहीं करते हैं, यह केवल  कार्यान्वित हो जाता है | तब आपको नहीं लगता कि आप कार्य कर रहे हैं | यह एक सूक्ष्म बात है जिसे आपको समझना है,  कि सब कुछ कार्यान्वित होता है । और एक ढंग से आप कार्य करते हैं ।  तथा यह कार्यान्वित होता है, परंतु आप कार्य नहीं करते हैं | जैसे कि सूर्य चमकता है । यदि आप सूर्य से पूछें , “ बेचारे सूर्य, आपको   इतना कड़ा परिश्रम करना पड़ता  है !” उन्होंने कहा, “ कब?  वह  कब किया?” तब आप  कहतें  हैं , “आपको सुबह उदय होना पड़ता है,तत्पश्चात् आपको करना होता है ..।” ना,ना , ना, ना, ! मैं तो बस  स्वयं अपने साथ था, और कुछ नहीं | मैं स्वयं अपने  साथ था। मैं स्वयं आनंद ले रहा था | मैंने कब कार्य किया?”

जब तक आप स्वयं के साथ होते हैं ,आपके  ऊबने का प्रश्न ही नहीं है ।  आपके थकने का कोई प्रश्न ही   नहीं है।कुछ भी नहीं ।आप स्वयं अपने साथ हैं । बस हो गया !

परंतु जब तक आप के अंदर यह घटित नहीं होता है,  तो ये समस्याएँ सामने आती हीं  हैं | और इसलिए कृपया, कृपया, पुनः मैं कहूंगी, अपने आत्म-साक्षात्कार का महत्व समझें ।अपने आत्म साक्षात्कार का महत्व समझें ।अपने जीवन का महत्व  समझें ।

आप सभी बहुत अनमोल लोग हैं। और आप ही हैं जो चुने गयें  हैं |

मैं आशा करती हूं कि आप सभी सहस्त्रार दिवस पर आएं ,बहुत ही गहन ध्यान की अवस्था में ।अन्यथा अचानक मुझे सहस्त्रार पूजा करते हुए ऐसे लोग मिलेंगे ,  जिन सभी के  सहस्त्रार बाधित होंगे । 

परमात्मा आप सभी को  आशीर्वादित करें !