Shri Mahavira Puja: Hell Exists

Barcelona (Spain)

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1990-0617 Shri Mahavira Puja,Spain

आज पहली बार महावीर पूजा हो रही है | महावीर का त्याग अत्यन्त विकट प्रकार का था | उनका जन्म एक ऐसे समय पर हुआ जब ब्राह्मणवाद ने अत्यन्त भ्रष्ट, स्वेच्छाचारी तथा उच्छुंखल रूप धारण कर लिया था |

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पश्चात लोग अत्यन्त गम्भीर, तंग दिल तथा औपचारिक हो गये थे। आत्मसक्षात्कार के अभाव में वे सदा एक अवतरण की नकल का प्रयत्न अति की सीमा तक करने लगे। इन बंधनों को समाप्त करने के लिये श्री राम पुन: श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए । अपने कार्यकलापों के उदाहरण से

श्री कृष्ण ने यह प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया कि जीवन एक लीला (खेल) मात्र है | शुद्ध हृदय से यदि व्यक्ति जीवन लीला करता है तो कुछ भी बुरा नही हो सकता | श्री कृष्ण के पश्चात लोग अति लम्पट, स्वेच्छाचारी और व्यभिचारग्रस्त हो गए | लोगों को इस तरह के उग्र आचरण के बन्धनों से मुक्त करने के लिए इस समय भगवान बुद्ध तथा महावीर ने जन्म लिया।

श्री महावीर एक राजा थे जिन्होंने अपने परिवार, राज्य तथा सम्पदा का त्याग कर सनन्‍्यास ले लिया | उनके अनुयायीयों को भी इसी प्रकार का त्याग करने को कहा गया । उन्हें अपना सिर मुंडवाना पड़ता था, नंगे पैर चलना पड़ता था | वे केवल तीन जोड़े कपड़े रख सकते थे | सूर्यास्त से पूर्व उन्हें खाना खा लेना पड़ता था| केवल पांच घंटे सोने की उन्हें आज्ञा थी और हर समय ध्यान में रह कर आत्म उत्थान में प्रयत्तशील होना होता था | पशु वध और मांस भक्षण उनके लिए वर्जित था क्योंकि उस समय के लोग मांस भक्षण के कारण अति आक्रमक हो गये थे ।

श्री महावीर सेंट माइकेल का अवतार थे। सेंट माइकेल ईड़ा-नाड़ी पर निवास करते है तथा मूलाधार से सहस्रार तक इस नाड़ी की देखभाल करते है । वामपक्षी होने के कारण श्री महावीर ने लोगों को दुश्कार्य न करने की चेतावनी देने के लिए नर्क का वर्णन बहुत ही स्पष्ट रूप में किया है | उन्होंने लोगों को कर्मकाण्ड से बचाने के लिए परमात्मा के निराकार तत्त्व के विषय में बताया । इतने कठिन नियमों के कारण व्यक्ति के लिए आत्म साक्षात्कार का उम्मीदवार होना भी दुष्कर कार्य हो गया ।

श्री महावीर के अनुयायीयों ने जेन मत चलाया । जैन का उद्गम ““जना” अर्थात “ज्ञान प्राप्ति” से है। मोजज की तरह श्री महावीर के भी कठोर नियम थे । जैसा प्राय: होता है उनके सिद्धांतों को भी अति की अवस्था तक ले जाया गया । भारत में आजकल एक प्रथा है झोपड़ी में किसी ब्राह्मण के पास बहुत से खटमल छोड़ दिए जाते है। खटमल जब ब्राह्मण के रक्त से अपना पेट भर लेते है तो जैनी लोग उसे बहुत साधन देते है । शाकाहार तथा संयम के विषय में कट्टर होते हुए भी वे धन लोलूप है | वे एक मच्छर को तो नही मररेंगे परन्तु थोड़े से रूपयों के लिए किसी व्यकित् का रक्तपान करने से नही चूकेंगे । एक अति से दूसरी अति की गर्त में गिरने वाले मनुष्यों को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए सदा अवतरण हुए हे । धर्मानुयाइयों के मध्य में स्थित न होने के कारण सभी धर्म हास्यास्पद प्रतीत होते है।

श्री महावीर के सन्‍्यासियों की भाँति यदि सहजयोग को आरम्भ किया गया होता तो कितने लोग सहजयोग में आए होते ? एक सन्‍्यासी का अपनी पत्नी, बच्चों तथा धन-सम्पत्ती से कोई सरोकार नही होता था | उसे थोड़ा सा काना देकर अनुसरण करने की कठोर आज्ञा दी जाती थी।

एक सहजयोगी के सर्व प्रथम साक्षात्कार दिया जाता है तथा उसकी कुण्डलिनी उठायी जाती है । बिना किसी शुद्धिकरण या कर्मकाण्ड के उसका स्वागत किया जाता है | उसे नर्क के विषय में कुछ नही बताया जाता | केवल आत्मसाक्षात्कार द्वारा ही वह पूर्णतया निर्लिप्त तथा बुद्धिमान बन सकता है। परन्तु आज भी सहजयोगियों में निर्लिप्तता का अभाव है | सहजयोग में विवाह करवाकर लोग खो से जाते है । वे या तो एक दूसरे के प्रति लिप्त हो जाते है या साधारण पश्चिमी लोगों की तरह परस्पर झगड़कर तलाक की बात करने लगते है।

सहजयोगी ये नही समझते कि सहजयोग के लिए उनका विवाह हआ है । जिस सागर से निकल कर वह नाव पर सवार हुए थे उसी सागर में वे अब भी गिर रहे है । उदाहरण के रूप में साक्षात्कार से पूर्व तो व्यक्ति फिल्म देखने का, फुटबाल खेलने का या पिकनिक आदि का शौकीन हो सकता है परन्तु वे तो साक्षात्कार के उपरान्त भी इन्ही के दीवाने बने रहते है । इन चीजों से लिप्सा का अर्थ तो यह है कि ऐसे मनुष्य ने अभी तक आनन्द की गहनता का स्पर्श भी नही किया | “एक बार जब आप उस गहन आनन्द का स्पर्श कर लेते है तो किसी अन्य वस्तु की चिन्ता आप नही करते । पूर्णतया आत्मकेन्द्रित होकर स्वानन्द में आप डूब जाते है।

“नर्क के विषय में बता कर मैं तुम्हें भयभीत करूँ या नही – मेरी समझ में नही आता । परन्तु श्री महावीर की यह ऐसी पूजा है जिसे में अब तक टालती रही हूँ ।” यहाँ तक कि उनके शिष्यों को भी केवल एक सफेद धोती पहननी पड़ती थी, नंगे पांव चलना पड़ता था तथा प्रात: चार बजे उठना होता था।’” अब सहजयोग में इसके बिलकुल विपरीत है। आप परस्पर संगति का तथा संगीत का आनन्द लेते हे। सहजयोग आप के लिए केवल आनन्द मात्र ही है। परन्तु अन्तर-निहित आनन्द के स्पर्श के बिना आपका उत्थान नही हो सकता | अपने अन्तस के आनन्द स्पर्श के पश्चात आप शेष सभी वस्तुओं का आनन्द लीजिए ।

श्री महावीर के विषय में एक किस्सा है | ध्यान अवस्था में एक दिन उनकी धोती एक झाड़ी में उलझ गयी । परिणामत: उन्हें आधी धोती फाड़ कर वही छोड़नी पड़ी | शेष आधी धोती में जब वे चले तो भिखारी के वेष में श्री कृष्ण उन्हें छोड़ने के लिए आ पहुंचे | श्री महावीर ने दया वश अपनी आधी धोती भी उस भिखारी को दे दी तथा स्वयं पत्तों से शरीर को ढांप कर वस्त्र पहनने के लिए अपने घर वापिस चले गये । परन्तु आज उनके कुछ मिथ्या अनुयायी इस वृतान्त की आड़ में भारत के गाँवो में निर्वत्न होकर घूमते फिरते है । “मुझे विश्वास है कि आप सब उस निम्नावस्था तक न जाकर भी स्वानुशासन अवश्य सीखोगे | इसके बिना पूर्ण ज्ञान, प्रेम तथा आनन्द की गहनता तक नही पहुंच सकते |

“निसंदेह आपको श्री महावीर की सीमा तक जाने की आवश्यकता नही हैं क्योंकि आपके सौभाग्यवश मैने आपको आत्मस॒क्षात्कार प्रदान किया है । फिर भी भौतिक वस्तुओं की ओर न लौटिए |” “अपने प्रयोग के प्रति में आश्वस्त हूँ कि आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद शनै शनै लोग निर्लिप्त हो जाएंगे ।’” इस निर्लिप्तता को प्राप्त करने में सभी लोग सहयोग दे | माया के सागर से निकलने की आवश्यकता है ताकि सहजयोग भी कहीं दूसरे धर्मों की तरह बनकर न रह जाए | किसी को भी यह बताने की आवश्यकता नही कि वह क्या करें | केवल गहनता का स्पर्श आवश्यक है जिससे कि व्यक्ति अन्तस से त्यागी बन जाये ।

“’सहजयोग इन सभी पैगम्बरों तथा अवतरणों का एकीकरण है ।’” सहजयोग की विश्वभर में प्रगति के लिए सहजयोगियों को सच्चा तथा निकष्पट बनना है और अपने कार्य कलापों का ज्ञान प्राप्त करना है । कोई भी महावीर पूजा क्यों नही हुई ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हर सहजयोगी को यह टेप सुनना चाहिए। “परमात्मा आपको धन्य करें |”