Shri Buddha Puja, You must become desireless

(Belgium)

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Shri Buddha Puja, “You must become desireless”. Deinze (Belgium), 4 August 1991.

4 अगस्त 1991, बेल्जियम आज, हम यहाँ बुद्ध की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं| जैसा कि आप जानते हैं कि बुद्ध एक राजा के पुत्र थे| और एक दिन वे एक बहुत ही गरीब आदमी, दुबले आदमी, बहुत ही उदास आदमी, को सड़क पर चलते हुए देख कर चकित रह गए | और वे उसे लेकर बहुत दुखी हुए| फिर उन्होंने एक आदमी देखा, जो कि बहुत बीमार था और मरने वाला था| फिर उन्होंने एक मृतक आदमी देखा और लोग उसे शमशान ले जा रहे थे| इस सबने उन्हें अत्यधिक व्याकुल कर दिया और वे इसके बारे में सोचने लगे और मनुष्यों में इन सब घटनाओं का क्या कारण है, खोजने लगे| सर्वप्रथम, वे इतने दयनीय या बीमार क्यों हो जाते हैं, या, वे इतनी कष्टपूर्ण तरीके से क्यों मृत्यु को प्राप्त होते हैं?

अपनी खोज में उन्हें कारण मिल गया| वे पूरे विश्व में गोल-गोल घूमे, मुझे कहना चाहिए, मेरा मतलब है; उन्होंने उपनिषद पढ़े, उन्होंने पढ़े, बहुत से गुरुओं के पास गए, आध्यात्मिक शिक्षा के बहुत से स्थानों पर गए, बनारस, सब जगह वे गए| और अंततः, वे बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे, जब अचानक आदिशक्ति ने उनकी कुण्डलिनी जागृत की और उन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ| तब उन्हें बोध हुआ कि इन सबका कारण ‘इच्छा’ है| सहज योग में, अब हम समझ गए हैं कि बाकि सभी इच्छाएँ शुद्ध इच्छाएँ नहीं हैं| सर्वप्रथम, जो भी इच्छाएँ पूरी हुई हैं, हम उनसे संतुष्ट नहीं हुए हैं, पहली चीज़ | और दूसरी, इन सभी इच्छाओं की प्रतिक्रिया होती है | वास्तव में शुद्ध इच्छा क्या है? आप सब जानते हैं, कि यह कुण्डलिनी है| कुण्डलिनी शुद्ध इच्छा की शक्ति है, जो आपकी आत्मा बनने की शुद्ध इच्छा को पूरा करती है, बुद्ध बनने की, प्रकाशित होने की| बुद्ध का मतलब है, व्यक्ति जो कि प्रकाशित है| अतः गौतम, बुद्ध बन गए, जैसे आप लोग अब सहज योगी बन गएँ हैं| लेकिन, क्योंकि वे इन सभी प्रकार की तपस्याओं से निकले, जो कुछ भी उन्होंने सीखा, वह उनका अंग-प्रत्यंग बन गया, लेकिन सहज योग में ये सब सहज है| इसलिए हम हमेशा निष्कर्ष निकालते हैं कि यह, आखिरकार, सहज ही तो है|” और जब हम कुछ करने की कोशिश करते हैं, हम हमेशा कहते हैं,”ओह! यह तो सहजता से हो जायेगा| सब ठीक है, माँ हमारे लिए सब कुछ कर देंगीं|” सहज योग में यह सामान्य दोष है| अतः मेरे सामने एक प्रश्न था, कि आपको उस लम्बी प्रक्रिया से निकालूँ या आपको आत्म-साक्षात्कार दूं| क्योंकि, इस भ्रान्ति के समय में, इतना समय नहीं हो सकता था कि आपको उन सब प्रक्रियाओं से निकाला जाये, जिनसे बुद्ध निकले थे और वे केवल एक व्यक्ति थे| मुझे उसमें आप सबको डालना पड़ता| वह अत्यधिक कठिन हो सकता था| मुझे नहीं पता, कितने इसे सहन कर पाते और जारी रख पाते| अधिकतर तो आधे रास्ते में ही छोड़ जाते, या शायद एक चौथाई रास्ते में ही| इसलिए यह सहज तरीके से किया गया| आपको बरगद के पेड़ के नीचे नहीं बैठना पड़ा| अंततः आपको आपका आत्म-साक्षात्कार मिल गया| आपकी कुण्डलिनी जागृत कर दी गयी और आपको अपना प्रकाश मिल गया| लेकिन वह प्रकाश जो बुद्ध में स्थापित हुआ था, वह हम में स्थापित नहीं हुआ है, क्योंकि हमारे चक्र उतने निर्मल नहीं थे जैसे कि उन्होंने अपने चक्रों को निर्मल किया था| जब हमें आत्म-साक्षात्कार मिला तब, हमारे वही शरीर था, वही दिमाग था और वही प्रवृत्ति थी| जैसे हम पहले ईश्वर के महल को देख रहे थे, अभी तक भी हम उसी प्रकार ईश्वर के महल को देख रहें हैं| लेकिन आप महल के अन्दर प्रवेश कर चुके हैं और आपको खिड़की से बाहर देखना होगा| यह आप भूल जाते हैं| और हालांकि अब हम पर्वतशिखर पर बैठें हैं सारी भीड़-भाड़ और सारे आवागमन से दूर, तब भी आप जैसे ही एक कार देखतें हैं, आप डर जाते हैं| आप नहीं जानते कि आप पर्वत के शिखर पर बैठें हैं, जहाँ आपकी माँ ने आपको भली-भांति बिठाया है| और उसी प्रकार आप व्यवहार करने की कोशिश करते हैं| जब मुझे सहज योगियों के समाचार मिलते हैं, तो मैं काफी हैरान रह जाती हूँ कि वे नहीं जानते कि वे अब एक आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति हैं| इसीलिए बुद्ध ने निरिच्छ्ता की बात की| यह बिना आत्म-साक्षात्कार के संभव नहीं है, यहाँ तक कि मैंने पाया कि आत्म-साक्षात्कार के बाद भी कठिन है| किसी प्रकार की एक सूक्ष्म इच्छा जीवित रहती है और जहाँ आपको कार्य करना होता है, वहां आप कार्य नहीं करते, कहते हुए कि हमारा अहंकार बढ़ जायेगा|” अतः जहाँ भी हमारी सुविधा होती है,हम उसके अनुसार कार्य करते हैं, जहाँ भी सुविधा होती है, हम उसके अनुसार कार्य करते हैं| इस सम्पूर्ण परिस्थिति का एक ही हल है, जो मैंने स्वयं ढूँढा था, यह था: कि यह एक सामूहिक घटना है| एक व्यक्ति जो अकेला है, कभी भी अपने अहंकार से नहीं उबर सकता| व्यक्तिवादी पुरुष अपने अहंकार से कभी भी ऊपर नहीं उठ सकता| जो अकेले, अलग से रहता है, जो प्रत्येक वस्तु का अकेले, व्यक्तिगत रूप से मज़ा उठाना चाहता है, वह कभी भी अपने अहंकार से ऊपर नहीं उठ सकता, क्योंकि आप उन सभी तपस्याओं से नहीं निकले हैं| अन्यथा, यदि आप एक व्यक्ति-विशेष हैं, तो अच्छा होगा कि आप इन सभी तपस्याओं से निकलें और फिर वापिस आयें| अतः इसका हल ये है कि हम सामूहिकता में अपने सारे चक्रों को साफ़ करें, अपने जीवन को स्वच्छ करें और यह अहंकार की समस्या का हल था| पहले जैसे, सबको व्यक्तिगत रूप से कार्य करना होता था| उदाहरण के तौर पर, उन्हें हिमालय पर जाना होता था, कोई गुरु बनाना पड़ता था, तब वह गुरु उसे त्याग देता था| फिर वह दूसरे गुरु के पास जाता था, तब वहां कार्य करता था, फिर वह उसे त्याग देता था| फिर वह दूसरी बार जन्म लेता था; दुबारा उसे त्याग दिया जाता था| अंततः, अगर एक गुरु उसे स्वीकार कर लेता था, तो ठीक है, बहुत अच्छा है| उसे पीटा जाता है, उसे यातना दी जाती है, उससे सभी प्रकार का दुर्व्यवहार किया जाता है, ऊपर से उल्टा लटकाया जाता है और तब आखिरकार, अगर कोई गुरु एक व्यक्ति के निकट पहुँचता है, तो वह उसे आत्म-साक्षात्कार देता है| यह परिस्थिति थी! लेकिन सहज योग में, दरवाज़ा खुला है, कोई भी अन्दर आ सकता है, कोई भी! अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करें| क्योंकि मुझे सामूहिकता पर विश्वास है, यह सामूहिक जीवन निश्चित रूप से आपको वह देगा जो बुद्ध को अपने व्यक्तिगत प्रयासों से मिला था| लेकिन हम वहां भी असफल हो जाते हैं कि हम नहीं जानते कि हमें कैसे सामूहिक होना है| व्यक्तिवाद हमेशा हमारे चारों तरफ छाया रहता है| हम हर प्रकार से व्यक्ति-विशेष के बारे में सोचते हैं| जहाँ भी सामूहिकता ने कार्य किया है, वहां सहज योग पनपा है; और जहाँ भी इसने कार्य नहीं किया है, वहीँ समस्याएँ आईं हैं| इसलिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हमें अपने-आप को देखना चाहिए, और अपने-आप देखना चाहिए और देखना चाहिए कि हम कितने सामूहिक हैं| क्या आप सामूहिकता का आनंद उठाते हैं या नहीं? क्या आप सामूहिकता को उद्देश्य बनाते हैं या नहीं? जैसे ही मैं इस कबैला के स्थान, जो आपने देखा हुआ है, के बारे में सोचती थी, और मैं सोचती थी कि मैं वहां एक छोटा सा आश्रम बनाऊँगी, नदी के किनारे, आपके लिए| तुरंत ही लोगों ने कहा, माँ, क्या यह ठीक होगा अगर हम यहाँ अपने घर खरीद लें?” तुरंत ही| फिर क्या उद्देश्य रह गया? और फिर वे मुझे फोन करेंगे, माँ, कृप्या मेरे घर भोजन के लिए आइये| कृप्या मेरे छोटे से घर पर थोड़ी चाय के लिए आइये|” मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है| अतः, सहज योग में जब तक कि आप वास्तव में, हर प्रकार से सामूहिक नहीं बन जाते, आपका उत्थान नहीं हो सकता और आप अपने आप को साफ़ नहीं कर सकते, आप अपने आप को स्वच्छ नहीं कर सकते| यह तथ्य उन्होंने नहीं कहा था, लेकिन एक तरीके से उन्होंने कहा भी था| क्योंकि उन्होंने कहा था,बुद्धं शरणं गच्छामि|” प्रथम, मैं अपने आप को मेरे आत्म-साक्षात्कार के प्रति समर्पित करता हूँ| फिर उन्होंने कहा,धम्मं शरणं गच्छामि|” अर्थात जो धर्म मुझे में हैं, मैं अपने आप को उस धर्म के प्रति समर्पित करता हूँ| वह आध्यात्मिकता है| और तीसरा उन्होंने कहा, संघं शरणं गच्छामि|” संघ का मतलब है सामूहिकता, मैं अपने आप को सामूहिकता के प्रति समर्पित करता हूँ| लेकिन उस समय उन्हें नहीं पता था कि सबको एक साथ कैसे आत्म-साक्षात्कार देना है| इसलिए उन्होंने शिष्यों को पकड़ा, जिनको अपने सिर मुन्डाने पड़ते थे, चाहे तुम एक रानी हो या एक राजा; जिन्हें केवल एक कपडा पहनना होता था, चाहे तुम एक आदमी हो या एक औरत; जिनके पास एक बड़े कमरे में सोने के लिए केवल एक चटाई ही होनी चाहिए| कोई पति या पत्नी नहीं, कोई शादी नहीं, कुछ भी नहीं| और उन्हें अपने भोजन के लिए गाँव में भिक्षा मांगनी होती थी और गुरु को भोजन कराना होता था और उन्हें अपने आप को भी वही भोजन खाना होता था, चाहे वह पर्याप्त हो या नहीं| ऐसा सहज योग में नहीं है| सहज योग में शुरू से ही सब कुछ आनंददायक है और सहज योग में यह अपेक्षित है कि आप सब पूर्णतः आनंदमय लोग हों| वह तो ऐसा है ही| लेकिन अगर आप नहीं जानते कि सामूहिकता के आनंद का मज़ा कैसे उठाना है, तो आपका उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि कोई और रास्ता नहीं है| दूसरी तपस्या क्या है? कुछ लोगों के लिए तो सामूहिकता ही एक तपस्या है, जब तक कि वे इसका आनंद उठाना नहीं शुरू करते| और वे बड़े ही दुखदायी होते हैं,यह अच्छा नहीं है,” बहुत ही आलोचनात्मक| उनमें से कुछ आश्रम में रहते हैं और सारे समय प्रत्येक चीज़ की आलोचना करते रहते हैं| यह अच्छा नहीं है| मुझे यह पसंद नहीं है, मुझे वह पसंद नहीं है|” इसलिए यहाँ, अपनी सम्पूर्ण चेतना में, मेरा मतलब है, आप सम्मोहित नहीं किये जा सकते| अगर आप सम्मोहित है तो आप जैसे भी पसंद करते है, रह सकते हैं| लेकिन सम्पूर्ण चेतना में और पूरी समझ के साथ हमें सामूहिक होना है| हमारी सफाई के लिए यह एक समाधान है| हम ऐसा कह सकते हैं: मान लीजिये मेरे हाथ गंदे हैं, इसलिए मैं एक नल के पास जाती हूँ और पाती हूँ कि एक बूँद गिर रही है, अतः मैं नहीं धो सकती| इसलिए मैं दूसरी जगह पर जाती हूँ, वहां कोई पानी नहीं है| तीसरी जगह पर मैं पाती हूँ कि कुछ भी उपलब्ध नहीं है| अंततः, मैं ऐसे स्थान पर पहुँचती हूँ, जहाँ मुझे थोडा पानी मिलता है| तब मैं अपने आप को पूरा अच्छी तरह से साफ़ करती हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि मुझे यह कहीं और नहीं मिलेगा| लेकिन सहज योग में, आप सामूहिकता के पानी में डूबे हुए हैं| अगर आप इस सामूहिकता का आनंद उठाते हैं और उसमें तैर सकते हैं, तब कोई समस्या नहीं है| जैसा कि आप जानते हैं कि बुद्ध हमारी दाईं तरफ कार्य करते हैं, हमारे आज्ञा पर| उनके जैसा देवता का दाईं तरफ कार्य करना, यह बड़ा आश्चर्यजनक है| सर्वप्रथम उन्होंने कहा, दाईं तरफ के लिए, आपको निर्लिप्त, निरिच्छ होना चाहिए| मेरा मतलब है, अगर उन्हें कोई इच्छा नहीं होगी, और अगर उनके पास इसमें से कुछ कमाने का कोई तरीका नहीं होगा, तो कोई भी कार्य नहीं करेगा, मेरा मतलब है, साधारणतया ऐसा ही होता है| लेकिन आपको बिना इच्छा के कार्य करना होगा| तभी दायीं तरफ पर विजय प्राप्त की जा सकती है| कितना सांकेतिक है!

साधारणतया, दायीं प्रकृति के लोग अत्यधिक पतले होते हैं, लेकिन बुद्ध बहुत मोटे हैं| साधारणतया, दायीं प्रकृति के लोग अत्यधिक गंभीर होते हैं, बहुत गंभीर, अगर आप उनको गुदगुदी भी करेंगे तो वे हँसेंगे भी नहीं | लेकिन बुद्ध हमेशा ही अपने दोनों हाथ इस तरह करके, हँसते रहते हैं, स्वयं का आनंद उठाते हुए| फर्क देखिये! अतः, जब आप बिना किसी इच्छा के कार्य करते हैं, केवल तभी, यह स्थिति प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें कि आप हर समय हँसते रहेंगे| लेकिन जो यह महसूस करते हैं कि वे यह कार्य कर रहे हैं, किसी इच्छा के साथ मेरा मतलब है, कुछ अत्यंत निम्न श्रेणी के लोग होते हैं, जो पैसा कमाना चाहते हैं, कुछ, ये, वो, मूर्खतापूर्ण चीज़ें जो चल रही हैं, लेकिन यह और भी सूक्ष्मतर होता जाता है और सूक्ष्म, और सूक्ष्म| जैसे-जैसे आप सूक्ष्म होते जाते हैं, इच्छाएं भी सूक्ष्मतर होती जाती हैं और सूक्ष्म, और सूक्ष्म| और अगर आप सावधान नहीं होते, तो ये एकदम से ऊपर आ जाती हैं| अतः, उन्हें ही दायीं तरफ स्थान दिया गया है, बायीं तरफ जाते हुए| उन्होंने ही कहा था कि 00:18:40:09 00:18:46:20आपको निरिच्छ होना होगा,” दायीं तरफ पर| कितना फर्क है! ख़ास तौर से पश्चिम में, मैंने देखा है कि लोग थोड़ा सा करेंगे,हुह” | उन्होंने क्या किया है?मैंने वह चम्मच उठाया है|” और चम्मच के साथ वे बैठ जाते हैं| और वे मुझे देख कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं कि मैं थकी नहीं हूँ| लेकिन मैं कुछ भी नहीं करती हूँ| मेरा मतलब है, मेरी कोई इच्छाएं नहीं हैं| वास्तव में मैं कभी भी, कुछ नहीं करती हूँ; मैं बिल्कुल निष्क्रिया हूँ,मैं बिल्कुल भी, कुछ नहीं कर रही हूँ| अतः, जब आप वह यन्त्र बन जाते हैं, समर्पित यन्त्र, जब आप जानते हैं कि आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं, तब दायीं तरफ पर आप काबू पा लेते हैं| आप कैसे प्रवीणता प्राप्त करते हैं? आप कुछ भी नहीं करते हैं, ठीक है? आप किसी दुकान पर जाते हैं और आपको बड़ा इनाम मिल जाता है, बिना कुछ करे ही| आप किसी चीज़ की इच्छा नहीं करते और अचानक ही आप पाते हैं, ऐसा जो आपने कभी सोचा भी नहीं था, आप के सामने है वहां, वहीँ बैठा है, आपके लिए उपलब्ध है, बस उसे ले लो| इसलिए कुछ पाने की इच्छा के साथ जब आप कोई कार्य करते हैं, तो उसकी भी प्रतिक्रिया होती है| हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है| परन्तु बिना इच्छा के क्रिया करने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हो सकती, क्योंकि पहले से कोई इच्छा है ही नहीं| मान लीजिये, मान लीजिये, मैं कहीं जाते हुए मार्ग भटक जाती हूँ| तो मैं कभी भी उस बारे में परेशान नहीं होती क्योंकि शायद मुझे वहां होना ही था मान लीजिये कि मैं चाहती हूँ, एक तरह का, मुझे कुछ खरीदना है जैसे कि एक किला, इस तरह मान लीजिये| अतः लोगोंदेखिये मुझे खरीदना ज़रूरी है, यह अलग है, इच्छा करने से| मेरा मतलब है, यह अचानक ही मेरी जान पर आ पड़ा, मैंने बस कहा किमुझे इटली में रहना होगा, तो घर तो खरीदना ही पड़ेगा,” उन्होंने मुझे एक किला दिखाया, जो कि अंततः सही नहीं निकला| कोई बात नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता| फिर दूसरा, लोगों को उससे लगाव हो गया| आपको किसी भी कीमत पर इसे खरीदना ही होगा,” इसको | हालाँकि मुझे वो स्थान इतना पसंद नहीं था, पर मैंने कहा, ठीक है, इन सब की इच्छा पूरी हो जानी चाहिए|” पर कुछ ऐसा हुआ कि वो बात वहीँ जड़ से ख़त्म हो गयी| और उन्हें दूसरी जगह खरीदना पड़ा, जो वो खरीदना नहीं चाहते थे| और मैं इस बारे में बहुत खुश थी क्योंकि मैंने किसी भी चीज़ की इच्छा नहीं की थी, और यह सबसे अच्छा निकला| और इसका कारण यह है कि मेरे साथ वही होता है, जो सर्वोत्तम होता है| इसलिए जो भी मेरे साथ होता है, मैं जानती हूँ कि वह सर्वोत्तम है, वह सब मेरे अच्छे के लिए है और सहज योग के अच्छे के लिए भी है| अब कोई सहज योग की निंदा करता है, तो ये बहुत, बहुत ही अच्छी बात है, बहुत बढ़िया| जैसे कि एक बार भारत में, सर्वप्रथम, एक कोई पत्रिका थी, जिसमें रजनीश ने किसी को गुमराह कर के, मेरी निंदा के लिए काम में लिया| लेकिन उस स्त्री ने मेरी कुछ तस्वीरें भी चुरा लीं थी और वो तस्वीरें भी जा कर उन्हें दे दीं, और मेरे परिवार में सभी लोग बहुत नाराज़ थे, मेरे भाई, मेरे पति, वे उस पत्रिका पर मुक़दमा करना चाहते थे| मैंने कहा,मुझे पत्रिका पर मुकदमा करने का या ऐसा कोई विचार ठीक नहीं लग रहा है|” तो जब हमारा दिल्ली में पहला कार्यक्रम हुआ, वहां इतनी भीड़ थी कि मैं अपनी गाड़ी तक अन्दर नहीं ले जा सकी| अतः मुझे, मेरा मतलब है, बाहर तक भी भरा हुआ था, और उन्हें हॉल के बाहर भी लाउडस्पीकर लगाने पड़े| और मैंने लोगों से पूछा कि वे यहाँ कैसे आये? उन्होंने कहा,”हमने आपकी तस्वीरें उस पत्रिका में देखीं थीं, और हम बहुत ही प्रभावित हुए|” उन्होंने कुछ भी नहीं पढ़ा था, एक शब्द भी नहीं और वे सब वहां थे| उसमें से एक हर्ष है और वहां से कितने ही लोग आयें हैं, सिर्फ तस्वीर देख कर| तो अगर उसने तस्वीरें चुराईं थीं,यह हमारे अच्छे के लिए ही था, और यहमेरा मतलब है कि साधारणतया हमें इसके लिए बहुत पैसे देने पड़ते, जबकि बिना कोई पैसे दिए ही यह वहां प्रकाशित हो गया था| और तब ये लोग, आप जानते हैं, मेरे परिवार वाले लोग, उन्होंने देखा कि यह पत्रिका छ महीनों के लिए बंद हो गयी थी, और उन्हें बहुत अधिक नुक्सान उठाना पड़ा था| पर मैंने ऐसी भी इच्छा नहीं की थी | जब आप किसी भी चीज़ की इच्छा नहीं रखते, तब आप प्रसंन रहते हैं क्योंकि आप कभी निराश नहीं होते और आप कभी घबराते नहीं हैं| अतः निरिच्छ होने का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ अजीब से या साधू या कुछ उस तरह से बन जाएँ, लेकिन यह है कि आप किसी भी चीज़ की अपेक्षा न करें| “अगर मैं ऐसा करता हूँ तो ऐसा होगा, अगर मैं ऐसा करता हूँ तो वैसा होगा” चिंता करने की ज़रुरत नहीं है, आप जैसा करना चाहते हैं, वैसा करें| एक चीज़ का ज्ञान आपको होना चाहिए कि आपके साथ कभी भी कुछ बुरा नहीं हो सकता और यदि कुछ बुरा हो रहा है तो आपके साथ कुछ गड़बड़ है| मैं आपको एक और चीज़ बताती हूँ| इस बार, पहली बार, मैं थोड़ा सा गिर गयी, थोड़ा सा, ज्यादा नहीं| तो उन्होंने कहा, आप घर से बिलकुल भी बाहर नहीं जा सकतीं आप घर से बाहर नहीं जा सकतीं क्योंकि बारिश हो रही है, और आपको जोड़ों का दर्द विकसित हो जाएगा|” मुझे कभी-भी ऐसा कुछ नहीं हो सकता, पर कोई बात नहीं| तो मुझे घर में ही रहना पड़ा और उस दौरान मैंने यह किताब लिखी| अच्छा हुआ कि मैं गिर गयी| वरना ये लोग कहते,यहाँ आओ, वहां आओ|” मेरा सारा परिवार वहां छुट्टियों के लिए आया हुआ था| शुक्र है ईश्वर् का कि मुझे यह चार-पांच दिन मिल गए और मैं यह किताब लिख पायी| इसलिए हर बुराई में हमें अच्छाई देखनी चाहिए| अगर कहीं कुछ बुरा हो, तो उस पर मुस्कुरा दें और यह जानें कि यह आपके अच्छे के लिए है, जिससे कि आप कुछ नया खोज सकें, कुछ बेहतर ढूंढ सकें| पर यह संस्कार कितना मज़बूत है! तभी मैं कहती हूँ”सामूहिकता में रहें|” उदाहरण के लिए, हमारे यहाँ भारतीय हैं, हमारे यहाँ फ्रांस के लोग हैं, हमारे यहाँ यह है, वह है और सब है| सबके सभी संस्कार उनके चारों और अभी भी हैं| भारतीय लोग जहां भी जाएँ, उनके लिए भारतीय भोजन ही होना चाहिए| यह बहुत ही कठिन परिस्थिति है| उस लिहाज़ से आप लोग बेहतर हैं, आप हर तरीके का खा लेते हैं यहाँ तक कि आप बेस्वाद भारतीय खाना भी खा लेते हैं| मुझे खुद भी भारतीय खाना ज्यादा पसंद नहीं है, क्योंकि यह ख़ास पौष्टिक नहीं होता| यह काफी स्वादपूर्ण होता है, पर पौष्टिक नहीं| पर जैसा भी खाना हो आपको खाने में फर्क नहीं पड़ता, यह बात आपकी बहुत अच्छी है| पर आपकी अलग इच्छाएं हैं, कुछ अलग, जो आप अच्छी तरह से जानते हैं, मुझे आपको बताने की कोई आवश्यकता नहीं है| जैसे, मैंने औरतों से कहा था कि अपने साथ बहुत सारी साज-सज्जा की चीज़ें और भारी चीज़ें ना लायें| पर जब भी वे आतीं हैं, तो उनके बड़े-बड़े बक्से उठाते हुए आदमी लोगों के हाथ टूट जाते हैं| अब मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आप ऐसे तरीके से रहें जोकि सुन्दर व उपयुक्त नहीं है, लेकिन उसके लिए कम से कम सामान लायें | नहीं तो, अगुआ के साथ एक प्रतिस्पर्धा रहती है, हमेशा, कोई ना कोई ऐसा होगा ही| पर पश्चिम में मैंने ऐसा देखा है कि खाने के लिए ना सही परन्तु घर के लिए ऐसा होता है, भारत में भी| अगर आप एक भारतीय स्त्री से विवाह करते हैं या किसी ग्रीक स्त्री से, ग्रीक पत्नी भी अपने पति को अपने ही पास रखने की कोशिश करेगी, यह एक आम बात है, मैंने यह देखा है| वे कुछ-कुछ भारतीय स्त्रियों जैसी ही हैं, और वे अपने पति का उत्थान नष्ट कर देंगी और अपना भी| यह सत्य है| और बहुत ही हावी हो जाती हैं| भारतीय नारी हावी नहीं होंगी, परन्तु वे अपने पति को वश में करने की कोशिश करेंगी, अपना खुद का दूसरा घर बनाने के लिए| पर वे यह नहीं जानतीं भारतीय सामूहिकता को नहीं जानते, वे बहुत ही अपने में रहते हैं| पर अब सहज योग से, वे अवश्य ही, धीरे धीरे सब के साथ मिल के रहना सीख रहें हैं| इसके अलावा, कुछ लोग अपनी संस्कृति के अनुसार कुछ अलग होते ही हैं, तो वे अपनी ही संस्कृति से चिपके रहते हैं| बेशक, किसी भी संस्कृति की अच्छाइयों को हमें अपनाना चाहिए, क्योंकि, सहज योग में सभी संस्कृतियों की अच्छाइयों का समावेश है| लेकिन कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं जहाँ हम अपने संस्कारों के कारण गलतियां करते ही हैं| और इसीलिए, उसी समय के दौरान एक और महान अवतरण, महावीर का हुआ, जिन्होंने यह बताया कि ऐसे लोगों के लिए क्या सज़ा है, जो अपने ही संस्कारों में लिप्त हैं| मेरा मतलब है, उन्होंने बहुत ही भयानक सज़ाओं के बारे में बताया है| ऐसे लोगों के साथ क्या होगा अगर उनमें संस्कार हैं, उनका अंत कहाँ होगा और उनकी कैसी स्थिति होगी, वे किस प्रकार के नरक में जायेंगे, इसका भी वर्णन किया गया है| भयानक चीज़ें| बेशक आज मैं आपको उसके बारे में नहीं बताऊंगी| लेकिन एक बात जो उनमें और उनके सभी समकालीन; जैसे बुद्ध,कबीर और बाकी सब लोगों में समान थी; एक बात जो समान थी वह यह कि वे कबीर इतना नहीं, जितना कि बुद्ध कि यह बेहतर है कि हम ईश्वर के बारे में बात ही ना करें परन्तु अमूर्त के बारे में बात करें, निराकार के बारे में| क्योंकि उन दिनों की सबसे बुरी बात थी कि एक बार उन्होंने किसी देव या अन्य वस्तु की पूजा आरम्भ कर दी, तो वे पूरी तरह उसके गुलाम बन जाते थे| जैसे कि मोहम्मद साहब ने भी ऐसा ही कहा हैउन्होंने निराकार की बात की थी| परन्तु इन दोनों ने तो इससे भी आगे की बात की है और उन्होंने कहा, कोई ईश्वर है ही नहीं, हम ईश्वर की बात अभी ना ही करें तो बेहतर होगा, इससे अच्छा है कि आप अपना आत्म साक्षात्कार पाएं|” मैंने भी शुरुआत में यही किया था| मैंने कहा,आप अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करें|” क्योंकि यह तो कोई भी शुरू कर सकता है,”मैं ईश्वर हूँ|” इसीलिए उन्होंने कभी-भी ईश्वर की बात नहीं की, कभी भी नहीं, और उन्होंने हर समय यही कहा,”कोई ईश्वर नहीं हैं, तुम खुद ही उसका स्वरुपहो” | उन्होंने इसका निषेध किया इसलिए उन्हें निरीश्वर कहा जाता हैं | निरीश्वरवाद इसमें विश्वास नहीं करतावे दोनों ईश्वर में नहीं, परन्तु आत्म साक्षात्कार में विश्वास करते थे | वे जानते थे कि मुझे आना है और आपको इसके बारे में बताना है | इसलिए बुद्ध ने भविष्य के बुद्ध की बात की है, जो मैत्रेय है | ‘मै’ अर्थात माँ, जो तीन रूपों में है: महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती | किसी भी बौद्ध से अगर आप मैत्रेय के बारे में प्रश्न पूछने के लिए कहें तो उसी समय उसे आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा | इसलिए उन्होंनेमैत्रेय की बात की क्योंकि वे जानते थे कि जब मैत्रेय आयेगीं, उन्हें लोगों को इश्वर के बारे में बताना पड़ेगा| उनके अनुसार लोगों ने वो अवस्था नहीं प्राप्त की थी कि आप उनसे ईश्वर की बातकर सकें | इसलिए उन्होंने कहा कि कोई ईश्वर नहीं है, केवल आत्म-साक्षात्कार पर जोर देने के लिए, आत्मज्ञान, स्वयं के बारे में ज्ञान, आत्म-साक्षात्कार | और पहले के बौद्ध, जैसा कि मुझे बताया गया है, बेशक वे भिक्षुक थे, वे सन्यासी थे, परन्तु उन्हें आदिशक्ति की चैतन्य लहरियों की अनुभूति थी | मुझे लगता है, बिल्कुल ईसाई ग्नोस्टिक (ज्ञेयवादी)जैसे, किन्तु वेकुछ ही लोग थे | वे आप की तरह बहुत अधिक नहीं थे, परन्तु स्तर में वे बहुत ऊँचे थे | क्योंकि वे सब उस कठिन तपस्या से निकले थे| इसलिए वे स्तर में बहुत ऊँचे थे, और क्योंकि उनके तथा दूसरों के स्तर में इतना ज़्यादा अंतर था कि वे दूसरों को प्रभावित नहीं कर पाए, और इसलिए मुझे कहना चाहिए कि वे ख़त्म हो गए| पर फिर भी हमारे पास ज़ेन, जहाँ विद्दितामा जो बुद्ध के एक और शिष्य थे, जो आगे गए | और ताओ, ये दो हैं जो, बुद्ध के सहज योग के बारे में आदर्शों को प्रकट करते हैं | ताओ और कुछ नहीं, केवल सहज योग है | ताओ का अर्थ है कैसे, ये कैसे कार्य करती है| और ज़ेन प्रणाली, ज़ेन का अर्थ है ध्यान | इसलिए वे भी कुण्डलिनी जागरण में विश्वास करते थे | उस समय वे किसी की रीड की हड्डी पर चोट नहीं करते थे | किन्तु बाद में उन्होंने लोगों को ध्यान में उतारने के लिए छड़ी से उनकी रीड की हड्डी पर चोट करना शुरू कर दिया | इसलिए ताओ तथा ज़ेन दोनों एक ही बौद्ध धर्म की शाखाएं हैं | मुझे कहना चाहिए कि वे वास्तव में ही हैं, उनके उत्थान के लिए, बिना ईश्वर की बात किये, लेकिन एक ही लक्ष्य थे, बुद्ध बनना, लेकिन वे भी धीरे धीरे ख़त्म हो गए| मैं ज़ेन के प्रधान से मिली, जो मेरे पास इलाज के लिए आया था| मैंने उससे पूछा, मैंने कहा, आप मुखिया कैसे हो सकते हैं, आप तो कश्यप भी नहीं हैं?” कश्यप वो होता है, जो आत्म-साक्षात्कारी होता है | उसने मुझे बतायामेरे सामने स्वीकार किया कि शुरू से अंत तक, उनके केवल 26 कश्यप थे | और केवल छठी शताब्दी के बाद ही इसकी शुरुआत हुई थी, और वे कुछ ही थे और यह ख़त्म हो गया है | इसका यह अर्थ है कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि आप सब आत्म-साक्षात्कारी हैं | इसलिए हमारी सामूहिकता ही हमारा वट वृक्ष है | सामूहिकता के साथ एक होने के लिए हमें खुद को सूक्ष्म बनाना पड़ेगा| और जो बहुत ही आनंददायक है, बहुत सुन्दर है जो ऐसा नहीं कर सकते वो सहज योग मेंउन्नति नहीं कर सकते, वे खुद एक समस्या हैं, और समस्या उत्पन्न करते हैं | और सबको परेशान करते हैं | उनका चित स्थिर नहीं है और कोई नहीं जानता कि उनकी क्या स्थिति है | इसलिए बुद्ध का सन्देश निः संदेह अपने अहंकार को बढ़ने नहीं देना है | पर आप यह कैसे करेंगे सबसे पहले जो भी आप करते हैं, आपको कहना है, मैं इसे नहीं कर रहा हूँ | यह माँ हैं, जो इसे कर रहींहैं | या ईश्वर हैं, जो इसे कर रहा है,मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ |” पर अगर आप यह सोचते हैं कि आप सहज योग के लिए कुछ कार्य कर रहें हैं, तो अच्छा होगा कि आप करना छोड़ दें | पर आपको कहना चाहिये, नहीं यह मेरे लिए आया था| मैं केवलमैंने कुछ नहीं किया| मैं केवल वहां उपस्थित था | बस!” तब आपने बहुत कुछ पा लिया है| और दूसरी चीज़ इच्छा की है, किसी भी वस्तु की इच्छा, छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी वस्तु की या चाहे अपने बच्चों से प्यार,अपनी पत्नी से प्यार करने की, यह, “मैं, मेरा” वे सब; यह सब इच्छाएं, अगर वे पूरी नहीं होती हैं तो आप निराश हो जाते हैं | तब आपको जान लेना चाहिये कि आपके साथ कुछ समस्या है | लेकिन अगर आपको सामूहिकता के अर्थ की समझ है तो आप बहुत जल्दी उन्नति कर सकते हैं | मैं यह कहूंगी कि भारतीय काफी धार्मिक हैं एक तरीके से अनुशासित लोग हैं, परन्तु उनमें सामूहिकता की कमी होती है | अगर वे सामूहिक हो जाएँ, तो बहुत जल्दी प्रगति कर सकते हैं | एक ही देश है, जो मुझे लगता है कि काफी अच्छा है, वह है रूस क्योंकि साम्यवाद के कारण वहां के लोग सामूहिक और इच्छा रहित हैं | क्योंकि उनकी सारी इच्छाएं साम्यवादी धारणाओं से पूर्ण हो जाती थी| उनकी कोई भी पसंद बाकी नहीं रह गयी थी और वे बहुत सामूहिक भी थे | एक तरह से साम्यवाद सरकार की बजाये, लोगों के लिए ज्यादा अनुकूल रहा | जबकि दूसरी तरफ लोकतंत्र, सरकार के लिए पैसा बनाने के लिए बहुत अनुकूल रहा किन्तु, जनता के लिए ये कष्ट दायक रहा | अतः हम ऐसे लोग हैं जो सामूहिकता के बारे में नहीं जान सके | इसलिए मैं कहूंगी कि निःसंदेहपश्चिम में सामूहिकता जल्दी फैलती है, बहुत जल्दी, किन्तु निरिच्छता,निरिच्छता कम है| इसलिए यह इस तरह है जैसे, किसी के पास दांत हैं और किसी के पास भोजन है, ऐसा ही कुछ है| अगर हम खुद को देख सकें, जैसे कि हम हैं और समझने की कोशिश करें कि तो हम पायेगें कि हमारी या तो ये समस्या है या वो समस्या है | अगर आप बस कैसे भी इस एक-तरफा समस्या को निष्प्रभावित कर सकें, तो आप वहां होंगे| क्योंकि अगर आप एक समस्या सुलझा लेते हैं तो आप दूसरी पर चले जायेंगे और उलझते जायेगें | पर बस आप मध्य में स्थित हो जाइये और अपने आप देखें, मेरी क्या इच्छाएं हैं?” उन्हें एक-एक करके गिनिये | मेरा कहने का अर्थ है कि अगर मुझे सोचना पड़े,मेरी क्या इच्छाएं हैं,” मैं निर्विचार हो जाऊंगी, वास्तव में,मेरी स्थिति बड़ी खराब है| अगर मुझे यह सोचना हो,मैं अब किसकी इच्छा करूँ,”तो मैं निर्विचार हो जाऊंगी | कभी कभी मैं कहती थी कि मैं अहंकार विकसित करूंगी| मैं यह नहीं जानती कि कहाँ से शुरुआत करूँ | कुछ अहम् तो होना चाहिये, आखिर सब में होता है, तो मुझ में क्यों नहीं मैं नहीं जानती कि इसकी शुरुआत कैसे करूँ |