Public Program Day 1

(भारत)

1991-12-11 Public Program, Hyderabad, India (Hindi), 61'
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Public Program [Hindi]. Hyderabad, Andhra Pradesh (India), 11 December 1991.

सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार।

हम जब सत्य की बात कहते हैं तो यह पहले ही जान लेना चाहिए कि सत्य अपनी जगह अटल और अटूट है। उसे हम बदल नहीं सकते उसे हम अपने दिमाग से परिवर्तित नहीं कर सकते और उसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सबसे तो दुख की बात यह है कि इस मानव चेतना से हम जान भी नहीं सकते कि सत्य क्या है। हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि परमेश्वर ने यह इतनी सृष्टि सुंदर बनाई है, इतने सुंदर पेड़ हैं, फूल है, फल है, हमारा हृदय स्पंदित होता है यह सारी जीवित क्रिया कैसे होती है। हम कभी विचार भी नहीं करते यह हमारी आंख है देखिए कितना सुंदर कैमरा है। हम कभी विचार भी नहीं करते कि यह इतना सुंदर कैमरा, इतना बारीक, इतना नाजुक, किसने बनाया है और कैसे बनाया है। हम तो इसको मान लेते हैं, बस है हमारी आंख है, लेकिन यह आपके पास आई कैसे, इसके बनाने वाली कौन सी शक्ति है। यही शक्ति है जिससे कि पतंजलि योग में ऋतंभरा प्रज्ञा कहा गया है और उसे परम चैतन्य, ब्रह्मचैतन्य, रूह, ऑल परवेडिंग पॉवर ऑफ़ गोड्स लव कहते हैं।

यह सब उसी एक शक्ति के नाम है, वही जीवंत शक्ति सभी कार्य करती है। उसी ने हमें अमीबा से इंसान बना दिया लेकिन अब हमें यह जानना चाहिए कि अगर इंसान बनाना है, आखिरी कार्य था तो इंसान तो परिपूर्ण नहीं है, संपूर्ण नहीं है, उसमें बहुत खोट है, अभी बहुत कमियां है। बहुत समझ में कमी है ज्ञान में भी कमी है, एक दूसरे को पहचानने की भी हमारे अंदर कोई शक्ति नहीं ,इसी से हम लड़ झगड़ते रहते हैं। सारे संसार की अशांति इसीलिए है कि मनुष्य सत्य को नहीं जानता क्योंकि सत्य एकमेव है, अब्सोल्यूट है। एक बार सत्य को जानने के बाद सब लोग एक ही जैसी भाषा बोलने लग जाते है। देखिए संतो में कभी झगड़ा नहीं होता। नामदेव का आपने नाम सुना होगा वह एक दर्जी थे और एक दिन गोरा कुम्हार को मिलने गए। वह कुम्हार था और अपने पैर से वह मिट्टी रौंद रहा था। उसको देखते ही नामदेव ने कहा, मराठी में कहा है कि,”निर्गुणाचे भेटी आलो सगुना संगे।” मैं तो निर्गुण की भेंट करने आया था, तो वो तो तुम्हारे अंदर सगुन है। ऐसी भाषा सिर्फ संत ही संतो से कर सकते हैं। इंसान तो आपस में लड़ते रहते हैं, एक दूसरों का बुरा ही सोचते रहते हैं, एक दूसरों को दुख ही देते रहते हैं और कोई अच्छा इंसान हो तो उसको सता सता कर मार डालते हैं। यह जो हमारे अंदर एक बड़ी भारी न्यूनता है खोट है, वो क्यों है अगर परमात्मा एक है और उन्होंने सब को इंसान बनाया है तो यह बात क्यो है। बात क्यों इसका कारण है, परमात्मा ने हमें पूरी स्वतंत्रता दे दी, तुम्हें जो करना है करो, चाहे तुम बुरे कर्म करो और चाहे अच्छे करो उसके फल भोगो और उससे तुम समझ जाओगे कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है। कोई आदमी कहेगा इसमें क्या बुरा है कि आप किसी का खून करो फिर आप जेल में जाओ, कोई कहेगा शराब पीने में क्या बुराई है, फिर आप बीमार हो जाओ। कोई सा भी गलत काम करने से उसका परिणाम यहीं पर भोगना पड़ जाता है। अगर यहां नहीं भोगना पड़ा तो रात्रि में निद्रा भी नहीं आती है। मनुष्य मचलता ही रहेगा जब वह गलत काम करेगा किसी को दुष्ट वचन कहने से ही मनुष्य का जी अंदर से खराब जाता है कि मैंने क्यों कहा। इसका मतलब है कि परमात्मा ने उसके अंदर सद्सद्विवेक बुद्धि दे दी है कि वो समझ ले कि बुरा काम है तो भी वो बुरा काम करता है।

बहुत से लोग ऐसे हैं कहते हैं कि मां हम छोड़ना चाहते हैं, ड्रगस, लेकिन हम से छूटता नहीं है क्योंकि वो समर्थ नहीं है। उनमें वो शक्ति नहीं है की जो बुरी चीज है उसे हम छोड़ दे। ये जो हमारे अंदर दोष है कि हमारे अंदर शक्ति ही नहीं है कि जो हम चाहते हैं, जिसे हम आदर्श समझते हैं, वो हम कर नहीं पाते। उसका कारण यह है कि अभी हमें थोड़ा सा और परिवर्तित होकर के आत्मा स्वरुप होना चाहिए क्योंकि आत्मा जो है वही शुद्ध है, आत्मा जो है वही सर्वव्यापी है और आत्मा जो है वही सारा ज्ञान का सागर है।आत्मा से ही आनंद उद्भव होता है। सुख और दुख तो अहंकार की प्रणाली है आज सुख हुआ तो कल दुख ,कल दुख हुआ तो आज सुख लेकिन आनंद एक ऐसी चीज है कि वो एकमेव आनंद मात्र है। उसमें सुख और दुख ऐसे एक रूपया में जैसे दो बाजू होती है वैसे नहीं होती, एकमेव चीज जो है वो है आनंद और उस आनंद के सागर में तभी आप डूब सकते हैं जब आप आत्मा स्वरुप हो जाए। बड़े-बड़े हमारे यहां साइंटिस्ट हो गए उन्होंने बड़े बड़े खोज की बहुत-बहुत खोज हुई ,उस खोज में बहुत सी चीजें पता लगाई। अंत में बनाया क्या तो एटम बम जिससे सभी ख़त्म हो जाएं। एक अगर बटन दबा दिया जाए तो सारी दुनिया ही उड़ जाए, ये कोई अकल की बात है, ये कोई समझ की बात है, ये कोई विस्डम की बात है लेकिन बनाए अंत में जाके पहुंचती चीज वही है जहां सर्वनाश हो, कुछ भी चीज बनाते हैं अंत में वह सर्वनाश की ओर जाता है। लेकिन जब आप आत्मा स्वरूप हो जाते हैं तो आप मे सामूहिकता आ जाती है। माने ये की जब कुंडलिनी आपकी जागृत होकर के और ब्रह्मरंध्र को छेदती है, तो आपका संबंध ये चारों तरफ फैली हुई इस परम चैतन्य की शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करता है। इस कुंडलिनी में जैसे इस, इस यंत्र में ये एक कनेक्शन है, इसको लगाए बगैर ये यंत्र पूरी तरह से चल नहीं सकता। उसी प्रकार यह कनेक्शन लगाए बगैर मनुष्य का कोई अर्थ निकलता ही निकलता नहीं है। जब ये कनेक्शन लग जाता है तब कितनी बातें हो सकती है उसे सोचिए, एक तो यह कुंडलिनी जो है ये शुद्ध इच्छा है बाकी जितनी भी इच्छाएं हैं अशुद्ध है। आज मन किया कि चलो हम एक जमीन खरीद लें फिर एक घर बांध ले, फिर हम एक मोटर ख़रीद लें मन तृप्त ही नहीं होता। जिस चीज के लिए दौड़ते हैं जिस को पाने के लिए मेहनत करते हैं, वो जब सामने आकर खड़ी हुई, लगे दूसरी चीज में उसका आनंद ही नहीं उठाया दूसरी चीज़ में लग जाते हैं क्योंकि ये सारी इच्छाएं शुद्ध नहीं है, अशुद्ध हैै। शुद्ध इच्छा हमारे अंदर चाहे मानो चाहे नहीं मानो एक ही है, इसके बारे में आप जानिए चाहे नहीं जानिए उसके लिए आप सतर्क हो ना हो एक ही इच्छा आपके अंदर है कि हमारी एकाकारिता इस शक्ति के साथ हो जाए और ये शक्ति परमात्मा के प्रेम की शक्ति हैं, सो ये सोचती भी है ये सब चीजो को बनाती है सबको इकट्ठा लाती है सबको कोऑर्डिनेट करती है, समग्र करती है और सबसे अधिक तो ये प्यार करती है। तो जब शुद्ध इच्छा हमारे अंदर जागृत होती और जब यह छः चक्रो मैं से षठ चक्र छेदन ,ऐसा कहा गया है शास्त्रों में ये गुजरती है और ब्रह्मरंध्र को भेद देती है तो कितने कार्य हो जाते हैं एक साथ वो आश्चर्यजनक है। अभी आप लोगों के सामने ये परदेस के लोग आए हैं, करीबन सभी लोग शराब पीते थे वहां, वहां शराब ना पीना माने लोग समझते ही नहीं, आप शराब नहीं पीते माने आप पागल तो नहीं है। उनके यहां तो शराब पीना माने ऐसा है जैसे पानी पीने जैसा, सभी लोग शराब पीते थे। बहुत से लोग इन में से ड्रग्स लेते थे, बहुत से लोगों को अनेक बीमारियां भी थी; ये आश्चर्य की बात है कि जिस दिन कुंडलिनी का जागरण हो गया हटा-हट सब छोड़ के खड़े हो गए सब कुछ छूट गया।

और इतने सुंदर हो गए ;आप जानते हैं पहले जमाने में जब यहां अंग्रेज थे उनको एक भी अक्षर हिंदी का सिखाना मुश्किल था। एक वाक्य उनको समझाना मुश्किल अगर उनसे कहना कि दरवाजा खोल दे तो उनसे कहना पड़ता था देअर वाज ए कोल्ड डे, नहीं तो उनकी खोपड़ी में नहीं घुसती थी हिंदी भाषा। बहुत कठिन लोग थे वो लोग। संस्कृत में आदि शंकराचार्य के सारे मंत्र बोल रहे हैं अपने बच्चे नहीं बोल सकते ये, कहां से हुआ, आपके कुचिपुड़ी नृत्य हुआ, फिर उसके बाद में आपका संगीत साउथ इंडिया का संगीत, तो नार्थ इंडिया वाले नहीं समझते, नार्थ इंडिया का साउथ इंडिया वाले नहीं समझते। ये लोग दोनों ही संगीत में मजा उठा रहे हैं। ऐसी विश्वव्यापी शक्ति इनके अंदर आ गई है जो सारे विश्व का मिलन साध्य कर रही है क्योंकि इनके सारे ही चक्र जागृत हो गए। इन चक्रों से ही हम अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं जिससे हमारा शारीरिक मानसिक बौद्धिक और आध्यात्मिक कार्य होता है। वो सारे के सारे चक्रों को कुंडलिनी जागृत करके और प्लावित करती है,नरिश करती है और उस शक्ति के कारण हम लोग एकदम परिवर्तित हो जाते हैं और अव्याहथ जब ये शक्ति ऊपर से नीचे चलती है, पूरे समय जब इस शक्ति का हमारे अंदर आंदोलन होते रहता है। तब फिर थकने की कौन सी बात, तब बीमार पड़ने की कौन सी बात क्योंकि जब यही चक्र जो है मूलतः यही चक्र अगर हमारे शारीरिक, मानसिक ,बौद्धिक और आध्यात्मिक उन्नति करते हैं और अगर यही चक्र पूरी तरह से प्लावित हो जाए तो हमारे आगे प्रश्न क्या रहेगा। फिर प्रश्न हो जाता है कि औरों को कैसे ऐसा किया जाए, हमें तो सब कुछ मिल गया अब हम दूसरों को कैसे दें। अब ये कितने कितने दूर देशों से आए हैं, हैदराबाद के लोगों से मिलने ये सर्वव्यापी प्रकृति जो है, वो अंदर जागृत हो जाती है जिसे हम सामूहिक चेतना कहते हैं। तो जब कुंडलिनी का जागरण हो जाता है और जब वो हमारे तालू में छेदन करती है तो ये स्थान सदाशिव का है लेकिन उसका प्रतिबिंब हमारे हृदय में आत्मा स्वरुप हृदय में है क्योंकि ये सदा शिव के चरण जिसे की हम गॉड अलमाटी कह सकते हैं, ये कुंडलिनी छू लेती है तो आत्मा जागृत होकर के; आत्मा वैसे तो जागृत है ही किंतु हमारे चित्त में नहीं है, वो हमारे चित्त में आ जाता है। चित्त प्रकाशित हो जाने से अंधेरे में मनुष्य कैसे भी चलता है, कैसे भी रहता है, उस प्रकाश में वो समर्थ हो जाता है और उस प्रकाश में सब चीजें अपने आप छूट जाती हैं। समझ लीजिए आप एकअपने हाथ में सांप लेकर खड़े हैं और अंधेरा, किसी ने कहा कि तुम्हारे हाथ में सांप है इसे छोड़ दो तो ज़िद्दी आदमी कहेगा ये साँप नहीं ये तो डोर है। अरे भाई छोड़ दो, नहीं डोर ही है जैसे ही लाइट आ जाएगी फट से छोड़ देगा, ना उसको कुछ बताना तो नहीं पड़ता ऐसे ही ये जितनी हमारे षड्रिपु है, ये ऐसे भाग जाते हैं उनका अंत ही हो जाता है।

अब सब लोग ये कहते हैं कि मां ये कुंडलिनी का जागरण तो बड़ा कठिन होता था। अरे भई हजारों वर्ष पहले की बात कब वृक्ष बहुत बढ़ गया है बाहर आपका समाज बढ़ गया, आप के लोग बढ़ गए सारा सिविलाइज़ेशन बढ़ गया,तो क्या इसकी जड़ें नहीं बढ़ेगी। इसकी जड़े भी बढ़ गई और जड़े बढ़कर के इसका स्त्रोत्र बढ़ गया। स्तोत्र से ही ये ज्ञान आया है और इस ज्ञान से ही ये जो आपका सृष्टि का जो कुछ भी विकास हुआ है वो नरिश हो जाएगा वो प्लावित हो जाएगा। नहीं तो सब जगह यही कह रहे हैं कि अब तो डिस्ट्रक्शन आने वाला है,ये डराने की भी बात है डिस्ट्रक्शन आ नहीं सकता जिस परमात्मा ने इस सृष्टि को बनाया है वो इसको कभी भी नष्ट नहीं होने देगा, कितना भी इंसान मूर्खता करें। इसलिए सहज का प्रादुर्भाव जो हुआ है वो ये है कि इसके प्रादुर्भाव से ये नष्ट होने वाला समाज ये नष्ट होने वाले व्यक्ति ये नष्ट होने वाले देश और ये नष्ट होने वाला विश्व सारा संभल जाएगा और एक नए तरह के लोग जागृत होंगे जिन्हें कि हम संत कहते हैं। पर संत का मतलब ये नहीं कि आप घर द्वार छोड़कर भाग जाओ, अपनी जिम्मेदारियां छोड़कर भाग जाओ, अपने बाल बच्चों को छोड़कर भाग जाओ, कुछ भागने की जरूरत नहीं है,आप अपने ही अंदर संत हो जाते हैं। अब डॉक्टर साहब ने बता ही दिया की तंदुरुस्ती ठीक हो जाती है तबीयत ठीक हो जाती है पर तबीयत ठीक होना ही सब कुछ नहीं है, अगर तबीयत ठीक भी हो गई तो आगे क्या शांति तो नहीं मिली, आशीर्वाद तो नहीं मिला ये सारी ही चीजें संपूर्णतया टोटैलिटी में आपको मिल जाती हैं और आप इसके अधिकारी हैं ये सोचना कि इतनी कठिन बात इतनी सरल कैसे हैं,मैं एक मिसाल के तौर पर बताती हूं की अगर समझ लीजिए एक टेलीविजन का आप सेट ले जाएं, किसी गांव में जिन्होंने कभी बिजली भी नहीं देखी और उनसे कहे कि साहब इसके अंदर सारे दुनिया के चित्र आएंगे तो लोग कहेंगे, क्यों बेकार बातें करते हो, ये डब्बे में कहां से आएंगे ऐसे सब के चित्र लेकिन जब उसको मेंस में आप लगा देंगे तो वो कितना अभिनव है, कितना सुंदर है ,कितना गौरवपूर्ण है, ये दिखाई देगा कि नहीं इसी प्रकार आप भी इंसान जो बने हैं बिल्कुल उच्चतर स्थिति में है। उत्तम स्थिति में है अब बस थोड़ा सा ही प्रवास और है जहां पर कि आपका कुंडलिनी का जागरण करना है और आपको वो स्थिति देनी है जिससे हम कहते हैं की आत्मबोध; आत्मा का बोध होते ही ना की आप अपने ही बारे में जानते हैं, पर दूसरों के बारे में भी जान जाते हैं। सबसे पहले आपके अंदर ऐसा लगेगा जैसे ठंडी ठंडी हवा आ रही है, हाथ में और सर में से भी लगेगा ठंडी हवा आ रही है ,तालू में से यही जो आपको हाथ में लग रहा है पहला अनुभव, पहली मर्तबा, आप इस परम चैतन्य को जान रहे हैं महसूस कर रहे हैं, उसका आपको ज्ञान हो रहा है इससे पहले आपने इसे जाना नहीं था। उसके बाद दूसरी स्थिति आती है जिसमें आप निर्विकल्प हो जाते हैं, जब आप इसको इस्तेमाल करने लग जाते हैं आपको आश्चर्य होता है आप अपने हाथ से कुंडलिनी दूसरों की जगा रहे हैं, लोगों को ठीक कर रहे हैं और आनंद में मग्न है। धीरे धीरे बिल्कुल आप निश्चिंत होकर के अनेक शक्तियों को प्राप्त कर लेते हैं और फिर आप निश्चिंत हो जाते हैं।आप में कोई विकल्प नहीं रह जाता, कोई शंका नहीं रह जाती, आप निर्विकल्प में उतर जाते हैं; बहुत आसानी से और उसके बाद आप लोगों को देने लगते हैं। पहले जब तक दीप में प्रकाश नहीं होता उसे जलाया जाता है और जब दीप में प्रकाश आ जाता है तो फिर वो सबको प्रकाश देता है। एक दीप से अनेक दीप जल सकते हैं, इसी प्रकार सहज योग बहुत जोरों में फैल रहा है, पता नहीं इन लोगों ने बताया कि नहीं, की रशिया जैसी जगह जहां उन्होंने परमात्मा का नाम भी नहीं सुना हो, वहां पर एक एक प्रोग्राम में 16-16 हजार लोग आते हैं और एक एक गांव में कहीं-कहीं 22000 लोग सहयोगी है, पक्के पहुंचे हुए। सो ये देश अपना जो संतो की भूमि है, जो योगभूमि है, जहां पर लोग इतना धर्म का कार्य कर गए ये लोग तो सोचते हैं आप लोग माहाभाग; जो ऐसी महान देश में आप पैदा हुए है लेकिन हम जानते नहीं की हमारे क्या भाग्य हैं।1 दिन ऐसा आएगा कि इस आध्यात्मिक शक्ति के बल पर सारा संसार आपके चरणो में आ सकता है लेकिन पहले अपनी शक्ति को समझिए, जब तक आपने इस शक्ति को समझा नहीं तब तक आपकी कोई विशेषता नहीं है। बेकार चीजों में उन लोगों से आपको कुछ भी कंपटीशन करने की जरूरत नहीं है, कोई सी भी प्रतियोगिता की जरूरत नहीं है। सिर्फ आप अपनी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाइए, सारा संसार भारत वर्ष को जानेगा के एक बहुत ऊंचा आध्यात्मिक स्तर का एक देश है और सारा संसार यहां आपके पास आएगा; आज ही आए हुए हैं इतने लोग, इनको क्या जरूरत थी अपने अच्छे अच्छे घर छोड़ कर के यहां अपने देश में घूम रहे हैं और इनको कुछ महसूस भी नहीं होता। मैंने कहा आपको कोई यहां तकलीफ तो नहीं होती,नहीं नहीं मां यहां तो आत्मा में बड़ा ही आराम है, इतना आत्मा का आराम तो हमको अपने देश में नहीं मिलता। यहां लोग कितने अच्छे हैं और ये जाना ही नहीं चाहते अपने देश की महत्वता हमने किसी को बताई ही नहीं और जतलाया नहीं कि हम लोग क्या है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हैदराबाद में जहां पर की अनेक लोगों का संगम हुआ है, काफी अलग-अलग तरह के लोग यहां पर है और यह सब एक मिलाजुला यहां का समाज है। इस समाज में दिमाग भी लोगों के खुल जाते हैं, तो आशा है कि यहां पर बहुत जोरों में सहज योग प्रस्थापित होगा और 1 दिन इस हैदराबाद से ही काफी लोग बाहर जा कर के और सहज योग का प्रचार करेंगे।आप सबको अनंत आशीर्वाद।

साधक: माताजी इसके ऊपर हम सीरियल क्यों नहीं बना सकते? प्रचार के लिए।

श्री माताजी: अरे बेटा एक बात सुनो सब बनेगा धीरे-धीरे सब बनता है सीरियल भी बना लेना, लेकिन एक बात है, अब देखो इस हैदराबाद में कितने लोग हैं, उसमें से कितने लोग आए हैं। जिसका नसीब होएगा वही तो आएगा। तुम 17 सीरियल बनाओ,नहीं तो कुछ भी नसीब की बात है, समझने की बात है, अभी सब से कहा कि पैर मत छुओ, मैं चल रही हूं, फट से पैर पकड़ोगे तो गिर जाऊंगी; वो तक तो लोग समझते नहीं, फड़ाक से पैर में एकदम पकड़ लिया। अब मैं गिरने ही वाली थी, जब इतनी भी समझ नहीं तो सीरियल क्या सर में घुसेगा। मैं ये कह रही हूं अब धीरे-धीरे जब आप थोड़े यहां लोग जागृत हो जाए,तब आप सीरियल बनाओ तो उसका मजा उठा लेंगे लोग, मजा उठा लेंगे लेकिन नहीं तो क्रिटिसिज्म पहले शुरू।

साधक: आपने कहा तो बनाऊंगा।

श्री माताजी: अच्छा खुश रहो जीते रहो तुमको अनंत आशीर्वाद है; पर टेलीविजन वाले दिखाएं तब।

साधक: हम लेंगे माताजी परमिशन।

श्री माताजी: अच्छा देखो वहां सारे परदेस में, सारे टेलीविजन पर हमारे भाषण हुए हैं सिवाय अपने देश में, अब मेरी समझ में नहीं आता कि क्या करेंI सारी दुनिया में हुए हैं,ऐसा कोई देश नहीं जहां हम गए और उन लोगों ने हमें टेलीविजन पर बड़े अदब से बुलाया, इंग्लैंड में तक, लेकिन अपने देश में नहीं, तो अब हम लोग एक बात और भी होती है कि लोगों के मन में बहुत से प्रश्न होते हैं। तो आप लोग जो कुछ आपके प्रश्न हैं उसे आप लिख कर के और कृपया कल आप लेते आइएगा मैं सबके आपको जवाब दे दूंगी। यहां रख दीजिए कल जवाब दे दूगी कल दीजिएगा जाने से पहले लिखकर रख जाइए अभी नहीं; प्रश्नों के बारे में एक बात है कि जो प्रश्न परसनल है,उनकी बात छोड़िए पर जो और प्रश्न है कि मैंने यह किताब पढ़ी थी उसमें ऐसा था वो गुरु ने ऐसा कहा और फलाने में ऐसा लिखा है और ढीकाने में,के भई लिखकर चले गए वो अब नहीं है अब मैं बैठी हूं मुझसे पूछो जब जिंदा होता है कोई तब उसको कोई नहीं पूछेगा बाद में उसके मंदिर बनाएंगे फलाना बनाएंगे क्योंकि वो अब जिंदा नहीं है ना और जिंदा जो गुरु बैठा रहेगा वो तो कहेगा की बेटे तू ये क्या कर रहा है, तो जिंदा को नहीं मानना चाहिए ये खास प्रिंसिपल है इंसान का की कोई जिंदा हो तो उसको नहीं मानो मरने के बाद;क्योंकि जिंदा हो सकता है की वो कहे की भई ये ऐसे नहीं करना चाहिए वेसे नहीं करना चाहिए उसको जेब में रख सकते हैं तभी होना चाहिए।अब रही बात सवाल जवाब सो मैं काफी होशियार हूं क्योंकि अब 21 साल से ये धंधा कर रही हूं और सारे देशों में ये सवाल पूछने की बीमारी है सो काफी होशियार हूं मैं लेकिन मैंने अगर आपका जवाब दे भी दिया तो भी ये ना जानिए की आप पार हो ही जाएंगे गारंटी होगी ये एक जीवंत क्रिया है, इससे आप समझिए कि एक अगर छोटा सा बीज है उसको आपने जमीन में छोड़ दिया तो ये पृथ्वी ने उसको जन्म दे दिया अब उसके लिए आप कुछ सवाल पूछो मंत्र पढ़ो कुछ करो किसी से नहीं होता वो स्पोंटेनियस माने सहज होता है और वही बात है सहज ‘स’ माने आपके साथ और ‘ज’ माने पैदा हुआ।ऐसा ये योग का साधन आप हर एक का जन्मसिद्ध अधिकार है इसे आप सब प्राप्त करें और यह कभी मत सोचिए की मुझसे नहीं होगा और मैं कैसे हो सकता हूं तो अब हम लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करेंगे इसी क्षण लेकिन शुद्ध इच्छा होनी चाहिए जिनको शुद्ध इच्छा नहीं है उन पर जबरदस्ती नहीं हो सकती और जिनको आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए हो वो कृपया चले जाएं तो अच्छा है। दूसरों को देखना ठीक बात नहीं है शिष्टता के नाते वो चले जाए लेकिन जिनको आत्मसाक्षात्कार चाहिए वो बैठे; कोई तकलीफ नहीं होती कोई परेशानी नहीं होती कोई भय शंका ना रखें अब इसके लिए आपके ऊपर तीन कंडीशन है।

पहला तो ये कि आपको पूरा आत्मविश्वास होना चाहिए कि आपको आत्मसाक्षात्कार मिल ही जाएगा अपने अोर पूरा विश्वास होना चाहिए दूसरा ये कि मैं दोषी हूं, मैं पापी हूं, मैं खराब हूं, मतलब दुनियाभर के लोग पढ़ाते भी रहते हैं बताते रहते हैं आप पापी है पापी है तुम पाप कर रहे हो, मेरे को पैसे दो तुम्हारे पाप मैं धो दूंगा,ऐसे भी बहुत से लोग हैं खुद ही पाप कर रहे हैं दूसरों के पैसे लेकर वो क्या पाप धोएंगे कोई पापी नहीं है मां की नजर में कभी कोई पापी नहीं होता हां राक्षस है दुष्ट है लेकिन कोई पापी नहीं है तो ये सोचना है कि भटके हुए लोग हैं अंधेरे में बैठे हैं अज्ञान में बैठे हैं लेकिन कोई भी संसार में पापी नहीं है। तो दूसरी बात है कि मैं दोषी हूं मैं गिल्टी हूं ऐसे पहले ही से सोच कर बैठोगे तो कुंडलिनी चढ़ेगी नहीं यहां पर एक चक्र है लेफ्ट साइड में ये पकड़ जाता है और जो लोग ऐसा सोचते हैं उनका ये चक्र हमेशा पकड़ता है और आपको पता है इस चक्र को पकड़ने से कितनी खराब बीमारियां हो जाती है एक तो एनजाइना की बीमारी हो जाती है और स्पॉन्डिलाइटिस की बीमारी हो जाती है और तीसरी जो बात है कि हमारे अंदर जो कुछ भी संस्थाएं कार्य करती हैं ऑर्गन कार्य करते हैं वही आलसी हो जाते हैं, लेथार्जिक हो जाते हैं इसलिए कृपया कोई भी अपने को दोषी ना समझे आपसे मैंने पहले ही कहा की आपको अपना गौरव जानना है आप गौरवशाली हैं अपने प्रति एक तरह का मान रखना चाहिए और एक प्रसन्नचित होकर बैठे न की अपने को बुरा भला कह कर के तीसरी जो शर्त है वो ये, के आप सबको एक साथ माफ कर दे अब सब लोग कहेंगे कि सबको माफ करना बहुत कठिन है ये तो बहुत ही कठिन है बहुत से लोग कहते हैं खासकर विलायत मे लोग कहते हैं,कि माफ करना कठिन है अब भई जरा सोचिए आप माफ करते हैं या नहीं करते करते क्या हो कुछ भी नहीं करते जरा विचार करें सिर्फ दिमागी जमा खर्च है की हम माफ नहीं कर सकते लेकिन उसका परिणाम क्या की हम गलत लोगों के हाथों में खेल रहे हैं,जिन्होंने हमें सताया हमें छला वो तो आराम से कूद रहे हैं और हम अपने को छल रहे हैं कि हम उनको माफ नहीं कर सकते रात दिन उनको याद कर करके दुख पा रहे हैं। एक साथ सबको माफ करो ऐसे लोगों को याद भी करने की जरूरत नहीं है सबको एक साथ आप माफ कर दीजिए एक साथ देखिए कितना हल्कापन आ जाएगा सिर में;ये तीसरी शर्त अब आपके लिए एक छोटी सी विनती है मुझे कि ऐसे भी आप जमीन पर बैठे हैं तो बहुत ही अच्छा है लेकिन तो भी जूते उतार लें तो अच्छा रहेगा।

उन्होंने कहा था अंग्रेजी में भी बात करिए अब अंग्रेजी बोल बोल के मैं थक गई हूं तो मैंने कहा कि आज हिंदी में ही बात करूंगी आप लोग हिंदी तो समझते हैं अंग्रेजी में क्या बात करें अंग्रेजी भाषा तो इतनी गड़बड़ है की आत्मा को भी स्पिरिट बोलेंगे, शराब को भी स्पिरिट और भूत को भी स्पिरिट अध्यात्म मे कैसे अंग्रेजी बोली जाए मैं कोशिश करती हूं पर पहले ही बता देती हूं इन लोगों से भइया तुम्हारी भाषा गड़बड़ है। तीन विरोधी चीजों के लिए एक ही शब्द। सो अब आपको जूते वूते उतार लें आराम से जो लोग कुर्सियों पर बैठे हैं वो भी जूते उतार के दोनों पैर अलग करें जो जमीन पर बैठे हैं वो सबसे ठीक है अब मेरी तीन शर्ते याद रखें वो भूलनी नहीं अब सबसे पहले आपको हम दिखाएंगे कि किस तरह से आप अपनी ही कुंडलिनी आज जागृत करेंगे किस तरह से अब ये आपको दिखा देंगे और हम भी आपको बता रहे हैं कि अपना लेफ्ट हैंड जो है, लेफ्ट हैंड उसको हमारी ओर करें अब लेफ्ट हैंड में लेफ्ट साइड में जो शक्ति है वो इच्छाशक्ति है पावर ऑफ डिजायर इच्छा शक्ति जब आपने ऐसे हाथ कर दिया तो आपने यह कह दिया है कि हमें इच्छा है की मां हमें आत्मसाक्षात्कार मिले इसको पूरी समय ऐसा रखें और राइट हैंड जो है यह क्रिया शक्ति है इसी से हम अपने चक्रों को ठीक करेंगे तो सबसे पहले राइट हैंड हम अपने हृदय पर रखेंगे मैंने आपसे बताया हृदय में आत्मा का प्रतिबिंब है। उसके बाद हम अपना हाथ पेट के ऊपरी हिस्से में रखेंगे सब काम हम लेफ्ट साइड में कर रहे हैं ये हमारे गुरु का स्थान है; माने बड़े-बड़े जो सद्गुरु हो गए उन्होंने हमारे लिए यह चक्र बनाया हुआ है और इसकी जागृति से आप अपने गुरु हो जाते हैं। फिर अपना हाथ पेट के निचले हिस्से में रखें लेफ्ट हैंड साइड में, फिर यही हाथ ऊपर ले जाएं, फिर से लेफ्ट हैंड साइड में अपने पेट के ऊपरी हिस्से में रखें, फिर से हृदय पर रखें अब ये हाथ अपनी गर्दन और अपना कंधा इसके बीच के कोण में ऊपर रखें कोण में जहां तक पीछे जा सकता है और गर्दन को राइट साइड में मोड़ ले, मैंने आपसे अभी बताया कि यह चक्र पकड़ने से क्या बीमारियां हो जाती हैं अब अपने हाथ को राइट हैंड को पूरी तरह से आड़ा इस तरह से अपने माथे पर रख ले, कपाल पर और पूरी तरह से गर्दन नीचे झुका ले, ये चक्र हमें सबको एक साथ माफ करने के लिए है। अब अपना राइट हैंड सर के पीछे के हिस्से में डालें और सर को पीछे की ओर मोड़ दे जहां तक मोड़ सकते हैं। इस जगह अपने को दोषी न ठहराते हुए अपनी गलतियां ना गिनते हुए अपने ही समाधान के लिए आपको कहना चाहिए की हे, परम चैतन्य हमसे कोई गलती हुई तो क्षमा करो; ये बाद में होगा अभी आप जान लीजिए ये चक्र इसी कार्य के लिए है अब अपना हाथ पूरी तरह से फैला दीजिए और हथेली के बीच का हिस्सा बराबर आपके सर के तालू के ऊपर रखा जाए और उसे पूरी तरह से दबाने के लिए उंगलियां बाहर की ओर खींच ले बहुत जरूरी है, तालू पर रखा जाए और उंगलियां बाहर की ओर पूरी तरह खींचलें और सर को पूरी तरह से नीचे झुका लें अब आप अपने हाथ को पूरा दबाव डालकर के इस तरह से घुमाएं कि आपके सर की जो स्कैल्प है चमड़ी है वो घूमेगी घड़ी के कांटे जैसी उस दिशा सिर घुमाइए जैसे घड़ी के कांटे घूमते हैं 7 मर्तबा; हो गया; इतना ही बस करना है। अब आपके पास चश्मा वश्मा हो तो निकाल लीजिए क्योंकि अब आंखें बंद करनी है और पेट पर अगर कुछ चीज तंग हो या गर्दन में तो उसे भी जरा कम कर ले और सब लोग इसे करें, पूरी तरह से, फिर से मैं कहूंगी की प्रसन्नचित हो जाएं। अब आप आंखें बंद कर लें कोई भी आंख ना खोले आंख बंद कर ले और अपना हाथ हृदय पर रखें,अब एक प्रश्न आप अपने मन में मेरे लिए पूछे मुझे आप श्री माताजी कहे या चाहे मां कहें आप प्रश्न पूछिए मां क्या मैं आत्मा हूं? तीन बार प्रश्न पूछे ये बड़ा मूलभूत प्रश्न है अब आप ये जान लीजिए कि अगर आप आत्मा हो गए तो आप अपने गुरु भी हो जाते हैं, क्योंकि आत्मा के प्रकाश में आप अपने ही गुरु हो जाते हैं इसलिए आप कृपया अपना राइट हैंड पेट के ऊपरी हिस्से में रखें लेफ्ट हैंड साइड पर उंगलियों से दबा लें इस गुरु तत्व को; अब यहां दूसरा प्रश्न मुझसे करें, मां क्या मैं स्वयं का गुरु हूं? मां क्या मैं अपना ही गुरु हूं? क्या मैं अपना ही मास्टर हूं? ये सवाल आप मुझसे तीन बार पूछिए अपने मन मे अब आप अपना राइट हैंड पेट के निचले हिस्से में लेफ्ट हैंड साइड में रखें और यह जान लीजिए कि मैं आप की स्वतंत्रता का पूर्ण आदर करती हूं और आप पर मैं जबर्दस्ती शुद्ध विद्या लाद नहीं सकती, जो शुद्ध विद्या इस चक्र से आपको पूरा ज्ञान कराएगी परमात्मा की शक्ति का, इसलिए आपको यहां कहना होगा 6 मर्तबा ,क्योंकि इस चक्र मे 6 पंखुड़ियां है अपने हृदय में आपको मांगना होगा, श्री माताजी मुझे आप शुद्ध विद्या दीजिए अब आप अपना हाथ जरा जोर से दबाइए जैसे ही आप शुद्ध विद्या मांगते हैं वैसे ही कुंडलिनी का जागरण शुरू हो गया लेकिन उसके लिए ऊपर के जो चक्र हैं उन्हें हमे खोल देना होगा। आप अपना राइट हैंड उठा कर के पेट के ऊपरी हिस्से में लेफ्ट साइड में रखें और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आत्मविश्वास से ही चक्र खुलेंगे पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आप कहें श्री माता जी मैं स्वयं का गुरु हूं पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहिए 10 मर्तबा 10 बार कहिए टेन टाइमस| आपसे मैंने पहले ही बताया कि आप आत्मा है आप इस शरीर, बुद्धि, मन, अहंकार आदि उपाधि नहीं किंतु आप शुद्ध आत्मा है अब अपना राइट हैंड आप ह्रदय पर रखें और पूर्ण विश्वास के साथ आप 12 मर्तबा कहिए, श्री माताजी मैं शुद्ध आत्मा हूं, श्री माता जी मैं शुद्ध आत्मा हूं, अपनी अपनी भाषा में कहिए जिस भाषा में कहना चाहे 12 मर्तबा कहिए अब एक बार फिर से कहूंगी आप दोषी नहीं हैं पापी नहीं है आप अपने को न्यूनता में ना उतारे आप मानव है और गौरवशाली हैं। चारो तरफ फैला हुआ परमात्मा का ये प्यार ये समुद्र है क्षमा का आप कोई ऐसी गलती नहीं कर सकते की जो इस समुद्र में पूरी तरह नष्ट ना हो जाए इसलिए आप अपने ही को क्षमा करें और अपना राइट हैंड अपना कंधा और अपनी गर्दन इसके बीचो-बीच रखें और अपनी गर्दन राइट साइड को पूरी तरह से मोड़ दे यहां पर आपको 16 मर्तबा कहना होगा, श्री माताजी मैं बिल्कुल दोषी नहीं हूं, मैं निर्दोष हूं 16 मर्तबा कहिए पूर्ण विश्वास के साथ कहिए।

मैं कहती हूं की आप निर्दोष है फिर से यही कहना है की आप किसी को क्षमा करें या ना करें कुछ नहीं करते पर अगर आप क्षमा नहीं करते हैं तो आप गलत हाथों में खेलते हैं, इसलिए आप सबको एक साथ क्षमा करें अपना हाथ राइट हैंड अपने माथे पर अपने कपाल पर आड़ा रखे दबाएं दोनों साइड में नीचे गर्दन झुका लें और यहां पर पूर्ण आत्मविश्वास से कहें श्री माताजी मैंने सबको एक साथ क्षमा कर दिया, मैंने सब को एक साथ क्षमा कर दिया है, कितनी बार कहने की बात नहीं है ह्रदय से कहना होगा मां मैंने सबको एक साथ क्षमा कर दिया। अब राइट हैंड को पीछे ले आए और अपना सर पीछे की ओर झुका ले इस जगह अपने समाधान के लिए अपनी गलतियां ना गिनते हुए अपने को दोषी ना ठहराते हुए अपने ही समाधान के लिए आपको कहना होगा हृदय के साथ, हे परम चैतन्य हमारे हाथ से अगर कोई गलती हुई हो जाने अनजाने तो कृपया माफ कर दीजिए, ये भी हृदय से कहें कितने बार कहने की बात नहीं अब आखरी चक्र बहुत महत्वपूर्ण है, लेफ्ट हैंड हमारे और रखे दोनों पैर अलग रखें जो नीचे बैठे हैं वो आराम से बैठे रहे हैं लेकिन अब अपने हाथों को पसार लें हथेली को पूरी तरह से खींच ले और उसके बीचो-बीच जो जगह है उसको आप बराबर अपने तालू पर जो की आपके बचपन में एक बहुत स्निग्ध सी हड्डी थी उस पर रखें और अपनी गर्दन झुका ले पूरी तरह से अपनी उंगलियों को पूरी तरह से खींचे हैं बाहर की ओर इससे पूरा दबाव आपके स्कैल्प पर आपके सर की चमड़ी पर पड़े, अब ये जान लीजिए कि मैं आपकी स्वतंत्रता को मानती हूं और मैं आप पर आत्मसाक्षात्कार लाद नहीं सकती आपको मांगना होगा अब कृपया इस हाथ को आप 7 मर्तबा धीरे क्लॉक वाइज, माने घड़ी के काटे की तरह धीरे-धीरे घुमाएं और कहे 7 मर्तबा श्री माताजी मुझे आप कृपया आत्मसाक्षात्कार दीजिए,मुझे आत्मबोध दीजिए, श्री माताजी मुझे आप आत्मबोध दीजिए 7 मर्तबा कहें। अब धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलिये अब दोनों हाथ मेरी ओर करें इस तरह से और मेरी ओर देखें और निर्विचार हो जाइए, विचार मत करिए अब राइट हैंड थोड़ा आगे करके अपना सर झुका कर देखें के आप के तालू में से ठंडी या गरम-गरम कुछ हवा आ रही है क्या सर के ऊपर हाथ रखे उसको छुए नहीं दूर से देखें किसी-किसी को बहुत दूर तक आती है हवा।

साधक: गरम हवा आ रही है।

श्री माताजी: आ रही है ठंडी हवा, देखिए सर में से आ रही है,राइट हैंड मेरी ओर करिए राइट हैंड,राइट हैंड मेरी ओर करिए, लेफ्ट हैंड से देखें पहले राइट हैंड करें मेरी ओर अब लेफ्ट हैंड से देखें राइट हैंड मेरी ओर करें, लेफ्ट हैंड से देखिए आ रही है, अच्छा;अब लेफ्ट हैंड मेरी ओर करें अब गर्दन झुका कर देखें राइट हैंड से आ रही है क्या, देखिए सब आ रही है। एक सवाल पूछे की, श्री माताजी क्या यही परम चैतन्य है यही क्या परमात्मा की प्रेम शक्ति है, तीन बार कोई सा भी एक प्रश्न करें ऊपर गर्दन करके आकाश की ओर देखिए;नीचे ले लीजिए हाथ, ऐसे रखें हाथ जिन लोगों के तालू से या हाथ में उंगलियों में ठंडी या गर्म हवा आ रही हो वो सब लोग हाथ ऊपर करें; पूरा हैदराबाद ही पार हो गया सबको आपको नमस्कार सब संतो को नमस्कार अनंत आशीर्वाद है, मेरे और ठंडी हवा आ रही है देखो बिल्कुल एक पत्ता नहीं हिल रहा है लेकिन ठंडी हवा आ रही है तुम लोगों से बड़े संत साधु बैठे हैं हैदराबाद में अनंत आशीर्वाद है, सबको अनंत आशीर्वाद है। कल सब लोग आए और सब अपने रिश्तेदारों को बुलाएं इससे बढ़कर और कोई चीज देने की नहीं है इस दुनिया में और अब मौज से घर पर जाएं इस पर तर्क वितर्क ना करें तर्क वितर्क की बात नहीं है मन से परे बुद्धि से परे; जैसे ही आप इस पर शंका कुशंका करेंगे आपके हाथ के छूट जाएंगे; निर्विचार में;सबको मेरा अनंत आशीर्वाद है अब पैर छूने की बात नहीं करना अपने यहां बीमारी है सबको पैर छूने की मिनिस्टर लोगों के पैर छूते रहते हैं इसके पैर छूते रहते हैं दुनिया भर के पैर छूते हैं नहीं अब बात ये है कि पैर छूने में जब तुमको मैं कुछ खास दे दूंगी तब पैर छूना ऐसे ही क्यों छू रहे हो पैर जब तुम निर्विकल्प में हो जाओगे तब पैर छूना अभी तो शुरुआत हुई है बेटे समझ गए ना; सो खुश रहो जीते रहो।