Shri Adi Kundalini Puja, Pure Love
आज हम यहां आदि-कुंडलिनी और आपकी अपनी कुंडलिनी, दोनों की पूजा करने के लिये एकत्र हुये हैं क्योंकि आपकी कुंडलिनी आदि कुंडलिनी का ही प्रतिबिंब है। हम कुंडलिनी के विषय में बहुत कुछ समझ चुके हैं और हम यह भी जानते हैं कि कुंडलिनी के जागृत होने से ….. इसके उत्थान से हम चेतना की अथाह ऊंचाइयों को छू चुके हैं। ऐसा नहीं है कि हम मात्र चेतना के उच्च क्षेत्रों तक उठे हैं ….. इसने हमें कई शक्तियां भी प्रदान की हैं ….. आध्यात्मिकता के इतिहास में पहले कभी भी लोगों के पास कुंडलिनी को जागृत करने की शक्ति नहीं थी। जैसे ही उनकी कुंडलिनी जागृत होती थी वैसे ही वे या तो दांये या बांये की ओर चले जाते थे और शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास किया करते थे और ऐसी शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करते थे जो लोगों के हित के लिये नहीं होती थीं। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भविष्य में जब बुद्ध का पुनर्जन्म होगा …. तो मात्रयात् के रूप में होगा … अर्थात तीन माताओं की शक्तियां जिसमें निहित होंगी ……. जब वह इस धरती पर आयंगी उस समय इन शक्तियों को लोगों के हित के लिये उपयोग किया जायेगा। यह एक प्रतीकात्मक बात है …… लोगों के हित के लिये न कि केवल सहजयोगियों के लिये। जब तक कि जो बुद्ध अर्थात आत्मसाक्षात्कारी हैं …. कुंडलिनी के विज्ञान के विषय में नहीं जान जाते तब तक ये कैसे संभव है? जिन लोगों को कुंडलिनी का थोड़ा बहुत ज्ञान था …. उन्होंने इसके बारे में इधर-उधर से या धर्म ग्रंथों में पढ़ा और उन्होंने इसका दुरूपयोग करना प्रारंभ कर दिया और वे सब तांत्रिक बन बैठे। लेकिन तंत्र जैसा कि आप सभी जानते हैं कुंडलिनी का तंत्र है और यंत्र स्वयं कुंडलिनी है …. एक मशीन है। आज मैं सोचती हूं कि हम कुंडलिनी के विषय में बहुत कुछ जानते हैं … कैसे ये विभन्न केंद्रों से होकर गुजरती है ….. कैसे ये उठती है ये सब हम जानते हैं, हमें ये पता लगाने के लिये प्रयास करना चाहिये कि हम अपनी कुंडलिनी को किस प्रकार से पोषित कर सकते हैं …….. ये जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो आप लोगों और साक्षात्कार प्राप्त किये हुये अन्य लोगों में एक बड़ा अंतर है। सबसे बड़ा अंतर ये है कि आपने ये शक्ति, सहज अर्थात सरलता से ही प्राप्त कर ली है। अऩ्य लोंगों को हिमालय पर जाना पड़ा था… कई दिनों तक ठंडी हवा में खड़ा रहना पड़ा ……. उनमें से कई मर गये, गुफाओं में रहे, कभी फल खाये तो कभी कुछ भी नहीं खाया। यहां तक कि बुद्ध के समय में भी साधकों को केवल एक कपड़ा पहनकर और गांवों में भिक्षावृत्ति करके और किसी तरह से खाना बनाकर और खाकर जीवित रहना पड़ा था। चाहे ठंडा हो या गरम, आराम हो या तकलीफ लेकिन फिर भी उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त हुआ। इसके विपरीत उन्होंने … बुद्ध ने उनको सिखाया कि आपको जीवन के आरामों के बिना ही रहना सीखना चाहिये। लेकिन उन लोगों को आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त हुआ और न ही वे कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का कार्य कर पाये। अतः अंतर बहुत बड़ा है, जिस तरह से आपको आत्मसाक्षात्कार मिला … जिस तरह से आपकी कुंडलिनी को अत्यंत सहज ढंग से जागृत किया गया है और जिस प्रकार से आपके अंदर अनेकों शक्तियों का प्राकट्य हुआ है। उदा0 के लिये आप लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं … दूसरों को ठीक कर सकते हैं … अन्य लोगों के वाइब्रेशन्स का अनुभव कर सकते हैं …. हमारे कुछ ऐसे सहजयोगी ऐसे हैं जो वर्षा, सूर्य और चांद को नियंत्रित कर सकते हैं। कुछ सहजयोगियों के पास जबरदस्त प्रार्थना शक्ति है। मात्र प्रार्थना करने से उन्होंने कई लोगों की जान बचाई है। ये शक्तियां उस समय के कई ऋषि मुनियों के पास भी थीं लेकिन उनकी ये शक्तियां प्रेम और करूणा पर आधारित नहीं थीं। ये आप लोगों का विशेष कृपा है क्योंकि आपको लोगों के हित के लिये कार्य करना है। उनका क्षेत्र मात्र स्वयं को बचाना और दूसरों को नष्ट करना था। अतः उन्होंने श्राप देने की शक्तियां विकसित कर लीं थीं और वे लोगों को श्राप दे सकते थे। आपके पास ये शक्ति नहीं है, आप किसी को भी शाप नहीं दे सकते। मैंने बहुत अच्छी तरह से इस शक्ति को खत्म कर दिया है। मैं स्वयं भी किसी को श्राप नहीं दे सकती हूं …. देना चांहू तो मैं दे सकती हूं पर मैं कभी भी किसी को श्राप नहीं देती क्योंकि हमारा आधार प्रेम, करूणा और कोमलता का है। पुराने जमाने के संत अत्यंत गरम स्वभाव के थे …. उनमें से अधिकांश … अत्यधिक गरम स्वभाव के थे। यदि वे गैर आत्मसाक्षात्कारी लोगों या उन लोगों के बारे में बात करते थे तो कई बार वे अत्यंत कर्कश भाषा का भी प्रयोग करते थे। ये बहुत ही अजीब था जिस प्रकार से वे समाज के साथ नाराज रहते थे … जिस प्रकार से वे उनका वर्णन करते थे। लेकिन उनमें से कुछ ने तो समाज का परित्याग नहीं किया था और नहीं किसी को बुरा भला कहा था परंतु वे स्वयं में ही संतुष्ट थे। उन्होंने उन आशार्वादों के बारे में लिखा जो उन्हें प्राप्त हो रहे थे। लेकिन आप एक नये ही आयाम में हैं और आपको अपनी शक्तियों का प्रयोग लोगों के हित के लिये करना है। आपकी कुंडलिनी भी जागृत कर दी गई है ….. ये भी आपकी माँ के प्रेम और करूणा के कारण ही संभव हो सका है। अतः अबकी बार ….कहना चाहिये कि आपकी कुंडलिनी तभी पोषित की जायेगी जब आपके अंदर प्रेम और शुद्ध करूणा की भावना आयेगी।
पहले मैंने निर्मला या शुद्ध शब्द का प्रयोग किया जो मेरा नाम भी है। इसका अर्थ है कि आपको सबसे पहले अबोध होना चाहिये। यदि आप अबोध नहीं हैं तो आपको कुछ समस्यायें हो सकती हैं … हो सकता है आपकी वासना से संबंधित समस्यायें हों….. हो सकता है कि आपका प्रेम किसी व्यक्ति विशेष के लिये हो। कुंडलिनी ऐसी नहीं होती … वह उठती है……सभी चक्रों तक जाती है लेकिन किसी भी चक्र से लिप्त नहीं होती। वह प्रत्येक चक्र का उपचार करती जाती है. … उसे पोषित करती है और उसे केवल अपने उत्थान की चिंता होती है। इसी प्रकार से एक सहजयोगी को भी ऐसे किसी भी संबंध से लिप्त नहीं होना चाहिये। ऐसा होना संभव है ……. आपको बुद्ध के शिष्य नहीं बनना है। उदा0 के लिये जैसा कि मैं आपको हमेशा बताती हूं कि पेड़ का रस उसके विभिन्न भागों में जाकर वापस लौटकर आ जाता है। अतः कुंडलिनी के मार्ग को खुला रखा जाना चाहिये तभी आपकी कुंडलिनी सरलता से इसमें से होकर गुजर सकती है। लेकिन ये मार्ग बंद भी हो सकता है यदि आप किसी चीज में अत्यंधिक लिप्त हो जांय क्योंकि ऐसे भी लोग हैं जो प्रारंभ में अपने माता-पिता से लिप्त हो सकते हैं …. ठीक है परंतु प्रारंभ में। मैं जानती हूं कि पहले पहल जो सहजयोग में आते हैं वे कहते हैं कि माँ मेरे पिता की बहन का पति या कोई और बीमार है तो कृपया आप उसे ठीक कर दीजिये। ये बहुत ही आम बात है। वे लंबे-लंबे पत्र लिखेंगे और अपनी रिश्तेदारी बतायेंगे और मैं बिल्कुल भूल जाती हूं कि ये कौन है। बिना नाम लिखे हुये ही वे अपने सभी सगे संबंधियों के बारे में बतायेंगे। परंतु ये सभी बनावटी रिश्तेदारियां हैं। कल को यदि आप पर कोई विपत्ति आती है तो इन रिश्तेदारियों का कोई अर्थ नहीं है। इसके ठीक विपरीत वे इसका फायदा उठायेंगे। आप अपने इन रिश्तेदारों पर निर्भर नहीं हो सकते हैं। आप अपने इन रिश्तों पर निर्भर नहीं हो सकते हैं, किस परिवार में आपका जन्म हुआ था … किस धर्म में आप पैदा हुये थे क्योंकि अब आप सार्वभौमिक व्यक्ति हैं। अतः आपका इन बनावटी रिश्तों से अब बिल्कुल भी संबंध नहीं हैं बल्कि अब आप एक दूसरे से अपने आध्यात्मिक संबंध से जुड़े हैं। जब तक आप इस बात को अपने अंदर स्थापित नहीं कर लेते हैं तब तक …. लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि आप अपने पति को छोड़ दें, पत्नी को छोड़ दें … बच्चों को छोड़ दें … ऐसा कुछ भी नहीं करना है लेकिन इसका अर्थ है कि यदि हमें अपनी कंडीशनिंग को छोड़ना है तो हमें इन सभी चीजों को भी छोड़ना होगा। हमारे अंदर ये कई प्रकार की कंडीशनिंग हैं। यदि कोई अच्छी कंडीशनिंग है तो हमें उन्हें भी छोड़ना होगा इस मायने में कि वे कंडीशनिंग नहीं हैं लेकिन हमें उन पर स्वामित्व प्राप्त करना है। उदा0 के लिये भारतीय लोगों की एक कंडीशनिंग है कि वे सुबह उठकर स्नान कर लेते हैं। मैं भी ऐसा ही किया करती थी। लेकिन इंग्लैंड में ऐसा करना मुमकिन नहीं है। आपके स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव पड़ेगा। यदि आप इंग्लैंड में ऐसा करते हैं तो आपकी खैर नहीं है। आपको वहां पर रात को नहाना पड़ता है नहीं तो नहाना ही छोड़ना पड़ेगा। आपको स्वयं को बदलना पड़ता है। लेकिन यदि आपकी वह कंडीशनिंग है तो आपको काफी दुख होगा कि अरे मैं तो नहाई या नहाया ही नहीं….. अब मैं सो भी नहीं सकता या सकती हूं …… मुझे कुछ अच्छा नहीं लगेगा … मैं तो बिल्कुल भी सामान्य नहीं हूं। ये एक अच्छी कंडीशनिंग है पर ये आपको गुलाम बना रही है। चाहे ये अच्छी हो या बुरी ….. लेकिन अगर ये कंडीशनिंग है तो आपको इसे देखने का स्पष्ट रूप से प्रयास करना चाहिये कि ये एक कंडीशनिंग है। लेकिन इसका अर्थ कतई ये नहीं है कि आपको विपरीत दिशा में जाना है …… कि भई अब मैं कभी भी नहाऊंगा ही नहीं। ये तरीका भी ठीक नहीं है। इसको इस तरह से सोचें कि यदि मुझको सुबह के समय नहाना माफिर नहीं आता है तो मुझे शाम के समय नहाना चाहिये और कभी-कभार यदि नहीं भी नहा पाया तो भी ठीक है। स्नान मुझे नियंत्रित नहीं कर सकता है … मैं स्नान को नियंत्रित करूंगा। आपको कोई नियंत्रित नहीं कर सकता है तभी हमारी कुंडलिनी गति करती है क्योंकि आपको पूरी स्वतंत्रता है। यदि आप पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं है तो आपकी कुंडलिनी गति नहीं करती है। हमारे अंदर हमारे परिवार की भी कंडीशनिंग होती हैं….. हमारे धर्म की … हमारे देश की। जहां तक संभव हो इसको स्पष्ट रूप से देखा जाना चाहिये कि ये कंडीशनिंग हमें हमारे परिवार से मिली है। यदि आप इसाई परिवार में पैदा हुये हैं तो आप ईसा से अधिक आसक्त होंगे। लेकिन आपने ईसा को तो देखा ही नहीं है। आपको तो मालूम ही नहीं है वे थे भी या नहीं …. ये बाइबिल सही है या गलत लेकिन फिर भी आप बाइबिल से आसक्त होंगे। अगर आप हिंदू हैं तो आप गीता से या वेदों से प्रेम करते होंगे। इससे असंतुलन पैदा होता है क्योंकि हमें सभी धर्मों के प्रति ……. सभी धर्मग्रंथो के प्रति आदर व प्रेम दर्शाना चाहिये। यही एक संत की निशानी है। अतः इस कंडीशनिंग को जाना चाहिये। आपने किस देश में जन्म लिया है … ये भी एक कंडीशनिंग है जिससे हमें लड़ना है। ये अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैं विभिन्न देशों की कंडीशनिंग का ब्यौरा नहीं देना चाहती हूं लेकिन आप अच्छी तरह से जानते हैं। आत्मसाक्षात्कार के बाद जब आप अपने समाज से भी ऊंचे उठ जाते हैं तो आप समझने लगते हैं और आप इसका ब्यौरा भी दे सकते हैं। मुझे इन सभी देशों की मूर्खता के बारे में उन लोगों से पता चला है जो उन देशों के रहने वाले हैं। उदा0 के लिये एक फ्रेंच व्यक्ति कहेगा कि माँ ये एकदम से फ्रेंच दिमाग है वह फ्रेंच है। या एक हिंदू कहेगा कि ये एकदम हिंदू आदमी है … वो ऐसा ही करेगा। तब आपको समझ में आ जाता है कि आप एक सार्वभौमिक व्यक्ति हैं और आप सार्वभौमिक व्यक्ति की तरह से रह रहे हैं। एक बार जब आप सार्वभौमिक व्यक्ति बन जाते हैं तब भी आपको मालूम हो जाता है कि त्वचा के रंग से संसार में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता और तब आप किसी के रंग से घृणा नहीं करते हैं जो आपसे काला है या गोरा है। आपके लिये ये दोनों ही तरह से ठीक है। ऐसा नहीं है कि गोरे ही कालों से घृणा करते हैं बल्कि काले भी गोरों से घृणा करते हैं। वे ये भी जानते हैं कि वे सभी बिल्कुल गलत हैं। यदि आप एक धर्मांध को दूसरे धर्म के बारे में पूछें तो वह उत्तर देगा कि यह धर्म तो एकदम बेकार है और उसका धर्म एकदम अच्छा है। इसका अर्थ है कि वे सभी सबसे बुरे धर्म हैं … यही एक आम राय है। प्रत्येक सबसे बुरा है ….. सभी धर्मांध सबसे बुरे हैं। अगर आप आम सहमति बनायें तो कोई नहीं कहेगा कि मेरा धर्म ठीक है और दूसरे का भी ठीक ही है। कोई भी ये नहीं कहेगा। यदि आप एक इंग्लिश व्यक्ति से पूछेंगे तो वह कहेगा कि माँ ये तो एकदम इंग्लिश स्वभाव है आप इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। इंग्लिश लोग एकदम से नाराज हो जाते हैं यदि दूसरा इंग्लिश व्यक्ति उनसे दुर्व्यवहार करे तो या मुझसे गंदा व्यवहार करे तो। लेकिन मैं बिल्कुल भी नाराज नहीं होती हूं क्योंकि वे तो अंधे है या अज्ञान हैं। अतः सार्वभौमिक व्यक्ति के रूप में करूणा आपके अंदर से बहनी चाहिये कि परमात्मा की कृपा से आप सचमुच एक ऊंची अवस्था में पंहुच गये हैं। आपको इसका प्रमाणपत्र ही नहीं मिला है बल्कि आप तो आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं …… इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप साक्षात आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं हैं। अतः आपको परमात्मा से प्रमाणपत्र प्राप्त है कि आप साक्षात्कारी हैं तो स्वाभाविक रूप से आपको अपनी प्रत्येक चीज में बदलाव लाना चाहिये। स्वयं को टाइपिफाइ न करें, नहीं जिस चीज को आप छोड़ चुके हैं उस चीज से अपनी पहचान न बनायें। उदा0 के लिये आप अंडे से पक्षी बन चुके हैं। पक्षी कभी भी स्वयं की अंडे से अपनी पहचान नहीं बनाते हैं और एक स्थान पर नहीं रहते हैं … वे उड़ते रहते हैं। वे अब पक्षी बन चुके हैं … अंडे नहीं रह गये हैं। ठीक इसी प्रकार से हमें भी अपनी स्थिति को स्वीकार करना है। ये पूरी तरह से बदल जाता है … पूरी तरह से। एक बार जब आप अपने अंतर में अपने जीवन का उद्देश्य जान जाते हैं …. बाह्य रूप से नहीं कि ये बात मैं कह रही हूं या ये एक मानसिक प्रक्रिया है तो लेकिन आपको अपने अंतस में आपको दायित्व लेना होगा कि आपको ये जन्म आत्मसाक्षात्कार को फैलाने और पूरे संसार को मोक्ष दिलवाने के लिये प्राप्त हुआ है। बार जब आप ये बात समझ जाते हैं तो स्वयमेव ही आप दायित्व लेने लगते हैं और आपकी कुंडलिनी उठ जायेगी। मैं कई ऐसे लोगों को जानती हूं जो कहते थे कि माँ हम स्टेज पर बोल ही नहीं सकते हैं ……. हमें स्टेज का भय है। लेकिन आज वे भाषण देने लगे हैं और अब मुझे उनको रोकना पड़ता है। कई ऐसे हैं जो कहते थे कि माँ हम कवितायें नहीं लिख सकते हैं … या माँ हम गाना नहीं गा सकते हैं। मैं एक लड़की के बारे में जानती हूं जो बहुत बेसुरा गाती थी और लोगों को उसे कहना पड़ता था कि तुम पीछे रहकर गाया करो और आज वही लड़की अपने ग्रुप में सबसे आगे रहकर गाती है। तो ये सारी सुंदर चीजें घटित होने लगती हैं और आपको इन्हें स्वीकार करना चाहिये कि आपको ये प्राप्त हुई हैं। आपको अपने सभी भयों को छोड़ देना चाहिये। हमारे अंदर अनेकों प्रकार के भय हैं। ये सभी बांयी नाड़ी की चीजें हैं जैसा कि आपने कल देखा… कि बांयी नाड़ी प्रधान लोगों को क्या करना चाहिये। लेकिन बांयी नाड़ी प्रधान लोगों को मालूम होना चाहिये कि अब वह प्रकाशित आत्मा है और कोई उन्हें छू भी नहीं सकता है … नुकसान पंहुचाना तो दूर की बात है। किसी भी संत को कष्ट नहीं पंहुचाया जायेगा। जो भी आपको कष्ट पंहुचायेगा उसे बड़े ही दिलचस्प तरीके से खत्म कर दिया जायेगा …. मजाक ही मजाक में खत्म कर दिया जायेगा। आप इस पर हंसेंगे और देखेंगे कि किस प्रकार से चीजें कार्यान्वित हो रही हैं। जैसे कि संस्कृत में एक कहावत है विनाश काले विपरीत बुद्धि … जिसका अर्थ है कि उनका विनाश उन्हीं की करतूतों से होगा। वे मूर्खों की तरह से व्यवहार करेंगे। प्रत्येक स्तर पर आप देखेंगे कि अपनी मूर्खता से वे अपना ही बुरा कर रहे हैं। आपको इस चीज की चिंता नहीं करनी है। इसीलिये आपके अंदर विनाशकारी शक्तियों की आवश्यकता नहीं है। ये कार्य परमात्मा की शक्तियों के द्वारा किया जायेगा …. आपको इसको छोड़ देना पड़ेगा। आप केवल ऐसे लोगों को क्षमा करने का कार्य करें। जैसे ही आप उन्हें क्षमा करते हैं तो आपका दायित्व समाप्त हो जाता है और कुंडलिनी उठने लगती है। आपको किसी भी प्रकार की दुर्भावना अपने मन में नहीं रखनी है … उनके प्रति कुछ भी बुरा नहीं सोचना है। केवल ऐसी बातों पर हंस देना है क्योंकि वे लोग मूर्ख हैं। जब हम एक मूर्ख व्यक्ति को देखते हैं तो हम क्या करते हैं? हम उसकी उपस्थिति में भले ही न हंसें लेकिन फिर भी हम हंसते हैं कि वह व्यक्ति मूर्ख है। वे मूर्ख लोग हैं और आप उन्हें मूर्खता करते हुये देखते रहते हैं। देखिये ये सहजयोग का हंसी मजाक है …. आपको हंसी मजाक भी करना चाहिये न।
किसी भी मनुष्य से डरने की आपको जरूरत नहीं है …. और न किसी भी संगठन से। आपको केवल एक बात याद रखनी है कि आप आत्मसाक्षात्कारी आत्मायें हैं। आपने सत्य देखा है। आप प्रकाश में खड़े हैं इसीलिये वे आपका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने ऐसा दूसरों के साथ भी किया …. सभी ने बहुत सारे कष्ट उठाये। लेकिन अब आपको कोई भी कष्ट नहीं पंहुचायेगा आप बस इसका आनंद उठाते जाइये… बस इतनी सी बात समझ जाइये और आपको कोई भी परेशान नहीं करेगा। आपको कोई छू भी नहीं सकता है …… ऐसे लोग तो आपको सिर्फ हंसाने के लिये यहां आये हैं। यदि आप ऐसी सोच रखेंगे तो आपका डर और बांयी ओर की सभी बाधायें दूर हो जायेंगी। ये बाधायें क्या हैं …… और भूत क्या हैं …… और ये तांत्रिक क्या हैं? कुछ भी नहीं। आप अत्यंत शक्तिशाली हैं। आपकी दृष्टिमात्र से वे अपने सिर के बल नाचने लगेंगे। जब तक आप डरे हुये हैं आपकी कुंडलिनी उठेगी ही नहीं क्योंकि कायर लोगों की कुंडलिनी जागृत ही नहीं होती। वह कायरों की सहायता ही नहीं करती है। यदि आप कायर हैं तो वो कहती है कि लोग अंधेरे में कहीं आने जाने में डरते हैं कि कोई हम पर आक्रमण कर देगा लेकिन एक सच्चा सहजयोगी बिल्कुल नहीं डरता है क्योंकि उसे मालूम है कि उसके साथ गण हैं …. और देवदूत भी हैं। इसलिये कोई भी उसे छू भी नहीं सकता है और यदि कोई प्रयास करे तो ये गण उस व्यक्ति को मजा चखा देंगे। आप बस देखते जाइये। अतः आपकी बांयी नाड़ी की बाधायें और आपका डर भाग जाना चाहिये। एक बार जब आपका डर चला जाता है तो आपकी चालाकियां, शैतानियां और ईर्ष्यायें सब भाग जायेंगी और तभी आपकी कुंडलिनी अच्छी तरह से उठ पायेगी। कुंडलिनी के उठने के लिये दूसरी समस्या आपका अहंकार है जो अत्यंत भयंकर है खासकर उन लोगों में जो ईसा के अनुयायी हैं …. या जो गौतम बुद्ध को मानते हैं क्योंकि वे ईसा के और बुद्ध के विरोध में हैं। वह व्यक्ति जिसने क्रॉस पर लटकने से पहले कहा था कि हे ईश्वर इन्हें माफ कर दो क्योंकि इन्हें मालूम ही नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं? यदि आप उनके भक्त हैं तो फिर आप किस प्रकार से अहंकार ग्रसित हो सकते हैं? माफ करना भी एकदम त्वरित होना चाहिये ….. हृदय से। आपके अंदर से क्रोध की तरंगे नहीं बहनी चाहिये क्योंकि आप अत्यंत शक्तिशाली हैं। आपका कोई क्या बिगाड़ सकता है। लेकिन यदि आपका आज्ञा पकड़ रहा है तो आप स्वयं ही को हानि पंहुचा रहे हैं। यदि आप खुद को हानि पंहुचाना चाहते हैं तो फिर कोई कुछ नहीं कर सकता है।
क्रोध लिवर से आता है और आपकी आज्ञा में बैठ जाता है और इसको ठीक से देखा जाना चाहिये। ये बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर आकर के आपकी कुंडलिनी रूक जाती है … खासकर से पश्चिम में क्योंकि यहां की संस्कृति ही कुछ ऐसी है कि इसने दो प्रकार की समस्यायें खड़ी कर दी हैं। पहली तो लालच है …. जितना अधिक लालच आपके अंदर होगा उतना ही ये मशीनें चलेंगी और आप प्लास्टिक की चीजें बनाने लगेंगे और फिर बाद में इनसे निपटने के लिये पर्यावरण की बातें करेंगे। स्पेन में मैंने देखा कि वहां पर तीन या चार कार बनाने की फैक्टरियां हैं और वहां पर इतनी कारें हैं कि आप सड़क पर आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। किसी भी कार्यक्रम में जाने के लिये आपको दो घंटे पहले निकलना पड़ता है जबकि रास्ता सिर्फ पंद्रह मिनट का होता है। फ्रांस में कुछ और ही है … पेरिस में यदि आपको कहीं जाना हो तो आपको सुबह चार बजे घर से चलना पड़ता है नहीं तो आप उस जगह पंहुच ही नहीं सकते हैं। इसी तरह से मिलान में है … रोम में है स्विटजरलैंड में तो स्थिति सबसे खराब है … इसका तो नाम भी अत्यंत खतरनाक है क्योंकि वे काले धन को सफेद करते हैं। इस लालच के नाम पर वे हर तरह का पाप करते हैं। उनके लिये कुछ भी पाप नहीं है। किसी का पैसा आराम से निकाल लेना … उसे वहां रख लेना, गरीब देशों से पैसा झपट लेना और उसे रख लेना, उन्हें लगता ही नहीं कि वे कुछ गलत कर रहे हैं। वे इन चीजों के प्रति अत्यधिक असंवेदनशील बन चुके हैं। अतः इस लालच की …… चीजों को हड़पने की प्रवृत्ति जो पश्चिम में है और जिसे बहुत बड़ा गुण समझा जाता है … इसे भी भली भांति देखना चाहिये। प्राचीन समय में यूरोपियन लोग इस पैसे से कला का सृजन करते थे … कलाकारों का सृजन होता था … उनको सहायता दी जाती थी। हमारे देश में भी कलाकारों को राजाओं द्वारा सहायता दी जाती थी। आजकल तो इसका सवाल ही पैदा नहीं होता। कोई भी सरकार कलाकारों को सहयोग नहीं देना चाहती है। क्या आप जानते हैं कि मोजार्ट को महारानी ने स्वयं बुलाया था कि वह उनके सामने बजाये या अपनी कला का प्रदर्शन करे।। उस समय सरकारें न केवल टैक्स वसूलती थीं बल्कि कलाकारों, संगीतकारों, पेंटरों और सृजनात्मक कार्य करने वालों को सहयोग भी करती थीं। फ्रांस में आप देख सकते हैं कि वहां की महारानी ने किस प्रकार से कलात्मक चीजों का संग्रह किया और कलाकारों को कलात्मक चीजों का सृजन करने के लिये प्रोत्साहित किया …… इस काम के लिये पैसे भी खर्च किये लेकिन बाद में लोगों ने उन्हें मार दिया। उनको मार कर इन्होंने वहां की कला की भी हत्या कर दी। आज फैंच लोग वहीं कर रहे हैं जिसकी उन्होंने कभी निंदा की थी। अतः चीजों को प्राप्त करने की प्रवृत्ति को कलात्मक चीजों के सृजन के लिये उपयोग किया जाना चाहिये। उऩ्हें प्लास्टिक का सृजन नहीं करना चाहिये अन्यथा कल को हमें पाल्स्टिक की कलात्मक चीजें खरीदनी पडेंगी। हस्तनिर्मित चीजें … या गहन संगीत, शास्त्रीय संगीत, परमात्मा का संगीत न कि सस्ता संगीत जो आपको पागल बना दे और आप लालच और वासना से ओतप्रोत हो जांय। ये आपकी संस्कृति की समस्यायें हैं जिससे आपको एक प्रकार का अहंकार हो जाता है। मेरा मतलब है यहां यदि आपके पास रोल्सरॉयस कार है तो आपसे कोई भी बात नहीं कर सकता है …… उनका मस्तिष्क उनके हैट से बाहर निकलकर फूल जाता है। यहां तक कि रोल्सरॉयस कार चलाने वाला ड्राइवर जिसकी वो कार है भी नहीं वो भी इसे चलाते समय सिरफिरा हो जाता है। उसकी चाल ही बदल जाती है … वह अजीब तरीके से चलने लगता है .. अलग तरीके से बातें करने लगता है। आपको इस प्रवृत्ति से इतना अहंकार हो जाता है कि पूछिये मत। यदि आप किसी के घर जाते हैं तो … जैसे मैं एक भारतीय के घर गई …. वे सरदार थे जो गुरू नानक के अनुयायी थे जिसमें शराब पीना मना है। जैसे ही हम उनके घर गये उन्होंने हमें अपना पब दिखाया … हे परमात्मा … मैंने कहा और मैं चार कदम पीछे हट गई … उन्होंने कहा मेरा पब्ब देखिये और उन्होंने वहां से सोडा निकालने वाली चीज दिखाई कि किस प्रकार से इसमें से सोडा निकाला जाता है। वो बोल भी नहीं पा रहा था। जब हमने उसे बताया कि हम पीते नहीं हैं तो उसने सोचा कि हम दुनिया के सबसे बड़े पापी हैं कि हम शराब ही नहीं पीते। यह प्रवृत्ति अब बहुत ही सस्ती, अश्लील और अनैतिक होती जा रही है। दिखावा करने की आदत इतनी अधिक है कि आप हैरान हो जाते हैं। जैसे एक बार एक अमेरिकन महिला मेरे पास आई और कहने लगी कि मिसेज श्रीवास्तव आपने इंग्लैंड में कितने पब देखे हैं। मैंने कहा कि एक भी नहीं। वह कहने लगी कि फिर तो आपने कुछ भी नहीं देखा है यहां। यहां तो गांवों के हर अच्छे घर में… हर झोपड़ी में पब हैं। मैंने यूं ही उसको कह दिया कि बाहर से तो मैंने देखे हैं … मैंने सोचा कि वह कलाकार है ….. वह कहने लगी नहीं.. नहीं क्या आप जानती हैं कि लंदन में सबसे अच्छा पब कौन सा है? और उसने मुझे पूरी एक लिस्ट बता दी। मैंने कहा कि कौन सा सबसे अच्छा है तो उसने एक पब जिसका नाम हर्मिट्स पब है का नाम बताया। मैंने कहा कि ये कैसा है तो उसने बताया कि उस घर में जो आदमी रहा करता था वो मर गया और किसी को पता ही नहीं चला कि वो मर गया है। महीनों तक वहां कोई नहीं गया और वहां पर दुर्गंध आने लगी … वहां पर जाले लग गये। उन्होंने उसके मृत शरीर को वहां से हटाया लेकिन वो दुर्गंध आज तक वहां पर है। सारे मकड़ी के जाले भी वहीं हैं … बस आपको सावधानी बरतनी पड़ती है कि वो जाले टूटें नहीं। और यही यहां का सबसे अच्छा पब है जिसके लिये आपको काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। उसने गर्व से बताया कि मैंने ये पब देखा है। अब आप बताइये कि ये अहंकार की प्रवृत्ति कहां जाकर खत्म होगी। सड़ी गली चीजों में, दुर्गंध में या फरमेंटिंग में। इसको खत्म होना होगा क्योंकि अहंकार की प्रतिक्रिया बीच में आ जाती है और आप सड़ी गली चीजों को पसंद करने लगते हैं। जैसे फ्रांस की चीज़ … इसे कभी न खायें। मैं आपको बता रही हूं कि आपकी उंगलियां जलने लगेंगी … गला जलने लगेगा … पेट जलने लगेगा। ये बहुत ज्यादा सड़ी हुई होती है और जितनी ज्यादा ये सड़ती है उतनी ही पसंद की जाती है। इसी तरह से शराब भी सड़े हुये अंगूरों से बनाई जाती है … आप इसे पी ही नहीं सकते हैं। इसमें सड़े हुये कॉर्क की गंध होती है। मैंने किसी से पूछा कि इसकी गंध कैसी है तो उसने कहा कि बहुत अच्छी है। मैंने पूछा कि क्या इसकी गंध सड़े हुये कॉर्क जैसी है तो उसने कहा कि मैंने कभी सड़े हुये कॉर्क की गंध नहीं सूंघी। मैंने कहा इसीलिये यदि आपने कॉरक् की गंध सूंघी होती तो कभी भी इसे नहीं पीते … और न सड़ी हुई चीजों को। क्या आपको मालूम है कि चीज़ किस प्रकार से बनाई जाने लगी। एक बार वहां बहुत बर्फ पड़ी और एक गुफा में दूध पड़ा रह गया। बर्फ के कारण सभी उस दूध को भूल गये कि वहां दूध पड़ा है। जब गर्मियां आईं तो दूध सड़ चुका था …. बहुत सड़ चुका था। 12 वर्षों के बाद कोई जब वहां गया तो उसने इसे देखा। उसने कहा चलो आज मैंने कुछ भी नहीं खाया तो चलो इसे ही खा लेता हूं और उसने वो दूध पी या खा लिया और उसे चीज नाम दिया। भारत में चीज उस चीज को कहा जाता है जो थोड़ा विशेष होती है …… संगीत में भी वे इसे किसी विशेष कंपोजिशन के लिये प्रयोग करते हैं। लेकिन यहां पर चीज़ सड़ा हुआ वो दूध है जिसे कोई भी जानवर या मनुष्य भी नहीं खा पायेगा। इसमें कीड़े भी पड़ जाते हैं। स्वीडन में और हॉलैंड में इसके साथ कीड़े भी सर्व किये जाते हैं। ये सच बात है … कि वे केवल चीज ही नहीं बल्कि कीड़े भी खाते हैं। देखिये हम अपने लालच में कहां तक आ पंहुचे हैं। शराब को सौ साल पुरानी होना चाहिये … प्रमाणीकृत … वो सबसे अच्छी समझी जाती है। इतनी सड़ी हुई चीजें हम खाते हैं जिसमें से दुर्गंध आती है। एक बार तो मैं बहुत ही आश्चर्यचकित हो गई कि वे लोग बाथरूम जाकर हाथ भी नहीं धोते हैं। हमें तो दुर्गंध आती है पर उऩ्हें कुछ भी अनुभव नहीं होता क्योंकि वे चीज़ जैसी दुर्गंधयुक्त चीज खाते हैं। यदि आप उन्हें गटर में भी डाल दें तो भी उन्हें दुर्गंध नहीं आयेगी उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है। यहां तक कि यदि वे नरक में भी जांय तो उन्हें कुछ भी अनुभव नहीं होगा क्योंकि उन्हें उस दुर्गंध की आदत हो जाती है। कभी फैंच समाज को इलीट कहा जाता था और वे अत्यंत कूटनीतिक थे। उनका खाना शराब से बना होता था … सब कुछ शराब से बना और इस राजनयिक समाज ने सब पर राज किया। लेकिन उन्हें पता ही नहीं चलता था कि उनकी संस्कृति बस खाने पीने की ही थी और कुछ नहीं। बाद में कुछ राजनीति शुरू हो गई लेकिन ये खाने पीने की आदतें इस सीमा तक चली गईं कि आज वे राजनयिक क्षेत्र से ही बाहर चले गये हैं। उन्हें कोई भी पसंद नहीं करता है क्योंकि उनकी खाने पीने की आदतें ठीक नहीं हैं। कोई भी फ्रेंच डिप्लोमेंट अगर कहीं है तो लोग कहेंगे कि क्या वो फ्रेंच है … उसे मीटिंग में मत बुलाओ …. नहीं तो वो अपनी ही बातें करेगा। अब यह इलीटनेस अमेरिका शिफ्ट हो चुकी है। और ये इलीट अब ड्रग्स लेने लगे हैं। आखिरकार ये क्या है। ड्रग भी इसी एक्वीजिशन इंसटिंक्ट की ही खोज है। पता नहीं लोग कोलंबियन या अन्य लोगों को क्यों दोष देते हैं? वे इससे पैसा बना रहे हैं … ठीक है सभी पैसा बना रहे हैं लेकिन वे अमेरिका को पैसा दे रहे हैं। अमेरिका आज एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट में मुख्य है। और उनको मिल क्या रहा है? मैं उनके समाज में रही हूं वे केवल ड्रग्स की बात करते हैं। वे न केवल ड्रग्स की बात करते हैं बल्कि वे तो इसकी शॉपिंग करते हैं। उन सबको पता है कि ड्रग्स कहां मिलती हैं …. ये तथाकथित एंबेसेडर और बाकी लोग और उनकी पत्नियां भी। अब उनकी रेस सीधी सादी हो चुकी है … अब उनकी पत्नियां पहले की तरह से कपड़े नहीं पहनती हैं। मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं होगा अगर वे होली पैंट्स में ही आ जांय। तो अब ये एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट ड्रग्स पर जाकर खत्म हो गई है …… और अगर यहां नहीं तो फिर झूठे गुरूओं पर क्योंकि उनके अंदर कोई विवेक नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत। देखिये कदम दर कदम यह सड़ी हुई अवस्था में जा पंहुचा है …… पश्चिम का यह अहंकार। ये तो पहला बिंदु है …… ये एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट जो आपके अंदर है। इसमें यदि किसी की पत्नी खूबसूरत है तो हर पुरूष का अधिकार है कि वह उसे देखे। यदि कोई पुरूष खूबसूरत है तो हरेक स्त्री का अधिकार है कि वह उसे देखे … अपने पति को नहीं बल्कि दूसरे पुरूष को। मैं तो कभी भी समझ नहीं पाई कि इसका क्या फायदा है कि आप अपने पति को नहीं बल्कि किसी और पुरूष को देखें जो आपका पति नहीं है? यह एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट अब अनैतिक जीवन की ओर चली गई है … अनैतिक समाज और अब उनमें अपनी उम्र का लिहाज भी नहीं रह गया है। एक नब्बे साल की महिला अपने अठारह साल के पौत्र से प्रेम प्रसंग चला रही है …. जरा सोचिये तो … कितनी बड़ी मूर्खता है …. कितनी बड़ी बेवकूफी। ये कैसे संभव हो सकता है जब तक कि हमारी मनोभावना विकृत न हो? अब तो कला भी विकृत हो चुकी है क्योंकि पश्चिमी समाज का श्राप ये है कि उनमें किसी प्रकार की मर्यादा नहीं रह गई है। कुंडलिनी अपनी मर्यादा में ही उठती है और आपकी मर्यादायें वापस ले आती है … ये आपको मर्यादाओं में रखती है। आप मनुष्य हैं … आप पशुओं की तरह से मत रहे … पशुओं से भी बदतर। आपको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। परमात्मा ने आपका सृजन महामानव बनने के लिये किया है। तो ये इस प्रकार से कार्यान्वित होता है। आप इसके बारे में सोच सकते हैं कि ये प्रवृत्ति कहां तक जाती है। पश्चिम की दूसरी बुरी एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट ये है कि वे सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं… दूसरों को कुचलना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि दूसरे देशों को कुचलना उनका अधिकार है। उन्होंने हमारे देश पर भी 300 वर्षों तक शासन किया। क्यों? उन्होंने क्यों हमारे देश पर शासन किया। हम लोग खराब लोग नहीं हैं कि वे हम पर शासन करते । उन्होंने सोने के लिये …… हीरे मोती के लिये हम पर आधिपत्य जमाया। हमारे पास बहुत सारी चीजें थीं जो एकदम भौतिक थीं और इन्हीं के लिये उन्होंने हम पर राज किया। वे भारत से आध्यात्मिकता नहीं ले गये। फ्रेंच लोगों ने आक्रमण किया …. उन्होंने हमेशा आक्रमण किये। जापानी लोग भी उनका अनुसरण कर रहे हैं। बाद में ये एक विनाशकारी बल के रूप में पूरे समाज में फैल जाता है। आप देख सकते हैं कि प्रत्येक दिन युद्ध चल रहा है … ये इसके साथ युद्ध कर रहा है वो उसके साथ युद्ध कर रहा है। उन्हें ये चाहिये …. वो चाहिये। यह आक्रमण अब विकासशील देशों में फैल रहा है …. तीसरे विश्व में भी … ये बीमारी अच्छी तरह से फैल रही है। लेकिन कुंडलिनी किस प्रकार से इस एक्वीजिशन को खत्म कर देती है। कैसे? आपको आनंदित करके। आप प्रत्येक चीज का आनंद लेते हैं। आप एक जंगल में बैठे हैं … आप कठिनाइयों के बावजूद भी उसका आनंद उठाते हैं क्योंकि आप अपनी आत्मा का आनंद चाहते हैं क्योंकि यह आपको आनंद प्रदान करती है। अंततः आपको सभी चीजों से आनंद ही प्राप्त होना चाहिये। आप सोचते हैं कि एक्वीजिशन से आपको आनंद प्राप्त होता है पर होता नहीं है। लेकिन कुंडलिनी जागरण से आपको आनंद प्राप्त होता है और आपको फिर किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं रहती है …. आप कुछ भी नहीं मांगते हैं … बस आनंदमग्न रहते हैं। आप आनंद की संपत्ति हैं। संस्कृत में कहा जाता है आत्मन्येव आत्मने अश्रुता … जिसका अर्थ है आत्मा अपनी ही आत्मा से संतुष्ट रहती है। अतः आपको छोटी-छोटी चीजों में ही आनंद ढूंढना चाहिये और आपको इसे देखते रहना चाहिये …. पूरे ब्रह्मांड को आनंद में देखना चाहिये। जब मैं यात्रा करती हूं तो पूछती हूं कि ये कौन सा पेड़ है? माँ हम नहीं जानते। मैं कहती हूं आप इतने वर्षों से यहां रह रहे हैं और फिर भी नहीं जानते हैं। वे कहते हैं माँ हम पेड़ों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। मैं कहती हूं कि ये फूल कौन सा है … माँ हम नहीं जानते हैं। अरे आप कर क्या रहे हैं … आप कर क्या रहे थे … आपको मालूम नहीं है कि ये पेड़ कौन सा है…. आप हर रोज इन्हें देखते हैं और फिर भी आपको मालूम नहीं है कि ये कौन सा पेड़ है। लेकिन अगर आप उनसे पूछे कि ये शराब कहां मिलती है तो उन्हें इसकी पूरी जानकारी होगी। वे बतायेंगे कि माँ इस जगह पर सबसे अच्छी शराब बनती है। मैं कहती हूं कि अच्छा मैं देखती हूं और अगले साल वहां फर्मेंटेशन ही नहीं होता। यही एक्वीजिशन इंस्टिंक्ट राजनैतिक संपदा बन जाती है कि आप जाकर दूसरे देशों पर आक्रमण करें …… लोगों को कुचलें और सभी प्रकार की वे चीजें करें जो मारक होती हैं। मनुष्य की पूरी प्रवृत्ति ही बदल जाती है। वे सोचते हैं कि वे ही भगवान हैं …… वे किसी से भी घृणा कर सकते हैं … किसी को भी दबा सकते हैं … वे किसी पर भी अपने दंभ का प्रदर्शन कर सकते हैं। हम कुछ भी मांग सकते हैं … हम किसी की भी पत्नी को उठा सकते हैं … किसी का भी बच्चा उठा सकते हैं … कुछ भी उठा सकते हैं … अपने बच्चों को भी मार सकते हैं। इसके फलस्वरूप प्रेम नष्ट हो जाता है … करूणा का तो प्रश्न ही नहीं उठता … न प्रेम न करूणा और इसके साथ ही आपके अंदर मैं … मेरी.. मेरा की भावना भी विकसित हो जाती है। ये मेरा बच्चा है ….. ये मेरा देश है। आप जानते हैं कि यूगोस्लाविया में वे क्या कर रहे हैं। मुझे नहीं मालूम इस देश को ये नाम किसने दिया …. युगो …… का अर्थ है योग । ये योग वाले लोग हैं और ये अपने आप से ही लड़ रहे हैं। ये भी इसी मूल से आया है कि ये मेरा है … मेरा देश है। क्यों … ये किस प्रकार से आपका देश है। आप एक पत्ता भी नहीं बना सकते हैं तो आप हैं कौन? आप तो कीचड़ भी नहीं बना सकते हैं … क्या बना सकते हैं तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि ये आपका देश है? किसकी हिम्मत है … ये सब परमात्मा का है … उसने ही इसका सृजन किया है या आप कह सकते हैं कि आदिशक्ति ने इसका सृजन किया है। आपने नहीं किया है। कैसे आप कह सकते हैं कि ये आपका है … और आपको ही इसे रखना चाहिये। मैं और मेरा का अत्यंत गहरा भाव पैदा हो जाता है …. ऐसा ही सहजयोगी भी करते हैं … मेरा बच्चा …. जो पहला श्राप है … मेरा बच्चा…. मेरी पत्नी ….. मेरा परिवार और ये चलता ही जाता है।
इससे हृदय संकुचित होता चला जाता है। विशाल हृदय वाले व्यक्ति के लिये पूरा संसार ही ब्रह्मांड है …… सब कुछ हमारे ही अंदर है …. सब कुछ हमारा ही है। जब आपके अंदर इस प्रकार की भावना आ जाती है तो कुंडलिनी खटाक से ऊपर उठ जाती है क्योंकि सहस्त्रार ही हृदय चक्र है। यदि आपका हृदय विशाल है तो सहस्त्रार के पकड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता। सहस्त्रार को खुला रखने के लिये आपको अपने अंदर विवेक पैदा करना होगा कि कोई भी मेरा नहीं है ….. सब कुछ तो परमात्मा का है। मेरा कौन है? जो कुछ भी परमात्मा चाहता है उसे वही करने दीजिये। इन छोटी-मोटी बातों से बाहर निकल जाइये। मुझे कहना चाहिये … मैंने देखा है कि सहजयोगी भी ऐसा करते हैं। वे अपने परिवारों तक ही सीमित हैं। मेरे बच्चे को साक्षात्कार मिल गया है पर मेरे भाई को नहीं … मेरे इसको नहीं मिला … उसको नहीं मिला। जब उनको साक्षात्कार प्राप्त होता है तो फिर मेरा बेटा … मेरा भाई…. मेरी बहन आदि। ये मैं की भावना जानी चाहिये। जो अत्यंत सूक्ष्म चीज है और इसीलिये सहस्त्रार पकड़ता है। सभी आपके हैं क्योंकि सहजयोगियों की कुंडलिनी प्रेम से …… शुद्ध प्रेम से बनी है। शुद्ध प्रेम की शुद्ध इच्छा होती है कि सभी को एक समान रूप से प्रेम करो। जब भी आप कहते हैं कि ये बड़ा कठिन कार्य है … इसका अर्थ है कि आप सहजयोग नहीं कर रहे हैं। अपने हृदय को विशाल बनाइये ……. कभी भी आपको नहीं लगेगा कि आप कहीं खो गये हैं। जब मैं इंग्लैंड से जा रही थी तो मेरा हृदय दुखी था पर अब मैं फिर से यहां आ गई हूं ये देखने के लिये कि मेरे बच्चे मेरा इंतजार कर रहे हैं तो मेरा हृदय फिर से ठीक हो गया है। ये मेरा है…..मेरा है इस कंडीशनिंग से छुटकारा पाइये । पहले पश्चिम में लोग अपने परिवारों का खयाल नहीं रखते थे … वे दस बार तलाक देते थे और फिर इसका विज्ञापन देते थे कि मेरा दस बार तलाक हो चुका है। अब वे तलाक तो नहीं देते पर अब अपने परिवारों के साथ वे इतने जुड़ चुके हैं …. अपने पतियों और पत्नियों से…. एकदम गोंद की तरह जुड़ चुके हैं। कई बार तो मैं हैरान हो जाती हूं कि इनको इस तरह से बनाने के लिये मैंने ये क्या कर दिया है? अतः इन बिंदुओं को देखा जाना महत्वपूर्ण है। अंततः हृदय ही सहस्त्रार है …. या आप कह सकते हैं ब्रह्मरंध्र, इसके बाद हम हृदय पर आ सकते हैं। इस पर बहस न करें … वाद विवाद न करें … न इसे मानसिक रूप से किताबों या कहीं से भी कार्यान्वित करने का प्रयास करें …. बल्कि यदि आप इसे अपने हृदय के माध्यम से कार्यान्वित करेंगे तभी आप समझ सकेंगे कि किसी को प्रेम करने से अधिक कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। सर्वोच्च चीज तो सभी को समान रूप से प्रेम करना है। निःसंदेह किसी व्यक्ति को प्रेम से आप कुछ भी कह सकते हैं। अभी उस दिन किसी सहजयोगिनी से मुझे कुछ कहना था तो मेरे पति कहने लगे कि उसको मत कहो … वो तुम्हारी दुश्मन बन जायेगी। मैंने कहा कोई बात नहीं …उसे मेरी दुश्मन बन जाने दीजिये। उसे ये बताना मेरा कर्तव्य है कि वह गलत है वर्ना मैं उसकी दुश्मन बन जाऊंगी कि मैंने उसे ये बात क्यों नहीं बताई और अब उसको परेशान होना पड़ रहा है। इससे आपको विवेक प्राप्त होता है …. और प्रेम ही सत्य है। अतः ये कुंडलिनी जो और कुछ नहीं बल्कि एक नदी के समान है या कल जैसा उन्होंने बताया कि निर्वाज है …. जो किसी प्रकार का हरजाना स्वीकार नहीं करती है। उस शुद्ध प्रेम की नदी जिसने हमें इतने प्रेम, दया और कोमलता से जागृत किया है …. हमें उस शक्ति का अपने अंदर उपयोग करना चाहिये ताकि हम भी उसी की तरह से बन सकें। उसने हमें पूरे विश्व को मुक्ति देने के लिये दिया है … न कि केवल अपने लिये। अतः सभी को आत्मसाक्षात्कार देना चाहिये वर्ना कुंडलिनी वापस बैठ जायेगी। सहजयोग के बारे में बातें करें। सहजयोग पार्टटाइम के लिये नहीं है…….. और न ही कोई छोटा मुद्दा है … आपके साथ इसको हमेशा होना चाहिये। जहां कहां भी आपको इसके बारे में बताने का अवसर मिलता हो इसके बारे में बताये ……. और आत्मसाक्षात्कार दें अन्यथा इसका कोई फायदा नहीं है।
परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।