Shri Vishnumaya Puja

Ashram Everbeek, Everbeek (Belgium)

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आज एक विशेष अवसर है विष्णुमाया पूजा करने का, क्योंकि उन्होंने घर में आगमन किया, 

हमें उनकी पूजा करनी है।  

पहले हमें जानना चाहिए कि विष्णुमाया कौन हैं। यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देवी महामात्य में उन्हें सिर्फ देवी के अवतार के रूप में वर्णित किया गया है: “विष्णुमाया इति शब्दिता”, 

उन्हें विष्णुमाया कहा गया है

लेकिन अब हम देखें कि वह हैं कौन? 

आखिर यह विष्णुमाया कौन हैं?

तो विष्णुमाया काली हैं, हम कह सकते हैं, और महाकाली की पुत्री हैं। 

वह इस धरती पर आयीं और अनेकानेक असुर और राक्षसों का वध किया, संतों को उनकी आक्रामकता से बचाने के लिए, 

और वो हमेशा इसी प्रकार कार्य करती हैं जिस से दुनिया की सभी नकारात्मकता नष्ट हो सके।

वह इस पर शीघ्रता से कार्य करती हैं, मुझे कहना चाहिए, और वह जानती हैं कि नकारात्मकता कहां है और वह उस नकारात्मकता को अतिशीघ्र जला देने की कोशिश करती हैं।

अब उत्पत्ति कुछ इस प्रकार है कि यह विष्णुमाया महाकाली की पुत्री थीं, जिन्हें स्वयं महाकाली द्वारा रचित किया गया था, इन राक्षसों से लड़ने के लिए, लेकिन साथ ही इस कार्य हेतु उन्हें विशेष शस्त्र भी दिए गए थे।

लेकिन श्री कृष्ण के काल में वह श्री कृष्ण की बहन के रूप में पैदा हुई थीं,

और उनके मामा द्वारा श्री कृष्ण के मारे जाने के बजाये, जैसे आपने कहानी पढ़ी है, उनको बदल दिया गया था, 

वह वास्तव में यशोदा की पुत्री थीं, जिन्हें श्री कृष्णा से बदल दिया गया था । 

और यह कन्या, छोटी कन्या की श्री कृष्ण के मामा द्वारा हत्या कर गई, जिसने आकाश में विद्युत् का रूप लिया और घोषणा की, कि “श्री कृष्ण पहले ही अवतार ले चुके हैं, और आपका भाग्य उनके  हाथों में है और वह आपको मारने आ रहे हैं ,” उन्होंने कंस को बताया । तो ये विष्णुमाया हैं।  

उन्होंने पुनः श्री कृष्ण के काल में जन्म लिया जब वह द्वारका के  राजा थे , और उन्होंने विवाह किया,  मैं कहूँगी पांच पांडवों से। क्योंकि वह द्रौपदी थीं ।

इसका एक महत्व है, कि ये ही हैं जो पांच तत्वों को जोड़ती हैं।  और ये पांचों पांडव उन पांच तत्वों के प्रतिनिधि थे और इसलिए वह उन्हें एक पत्नी के रूप में प्राप्त हुईं।  

क्योंकि वो ही हैं, जो इस भौतिक ब्रह्मांड को बनाने वाले सभी पांच तत्वों को जोड़ती हैं।

अतः हमारे पास श्री कृष्ण से जुड़ने के लिए एक सम्बन्ध स्थापित हुआ, 

और श्री कृष्ण, जैसा कि आप जानते हैं, उन्हें अपनी बहन के तरह मानते थे 

अब एक बार जब आप जानते हैं कि कौरवों ने साड़ी खींचकर द्रौपदी का अपमान करने की कोशिश की,

तो वह श्री कृष्ण थे जिन्होंने उनकी मदद की क्योंकि वह उनकी बहन थीं और एक शक्तिशाली महिला थीं। 

वो ही महाभारत के लिए भी जिम्मेदार थीं। वो वही हैं सबके समक्ष लायीं, वो ही हैं जिन्होंने बताया : “आप को इन  पांडवों से लड़ना होगा।” 

उन्होंने उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि : “आपको कौरवों से लड़ना होगा और इस तरह से कि उन्हें न केवल हराया जाना चाहिए बल्कि उन्हें नष्ट कर दिया जाना चाहिए।”

क्योंकि स्त्री की पवित्रता बहुत महत्वपूर्ण है और भारत में जो कोई भी महिला की पवित्रता का हनन करने की कोशिश करता है उसे शापित होना है, उसे नष्ट होना है।

और यह महाभारत का एक बहुत बड़ा संदेश था कि सिर्फ इसलिए कि उनका इतना अपमान किया गया, सभी युद्ध हुए और वो सभी नष्ट हो गए।

तो यह विष्णुमाया की कहानी है। लेकिन अब जब सभी देवी देवता आदिशक्ति में निहित हैं, वह आपकी बाईं विशुद्धि पर हैं, प्रतिबिम्बित होती हुई। और बाईं विशुद्धि बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें अपने अहंकार की समस्यायें हैं । 

और आपको वास्तव में किसी के द्वारा यह याद दिलाने की आवश्यकता है कि हमें दूसरों पर अत्याचार करने के लिए यह अहंकार नहीं होना चाहिए। 

अतः यह चेतावनी हमारे अंत:करण से आती है या जहाँ कहीं से भी, 

आप कह सकते हैं,

हमारे पालनपोषण से, और हमारी बाईं विशुद्धि में अपराध भावना के रूप में बस जाती है।

साथ ही, जैसा कि आप जानते हैं, कैथोलिक चर्च और ये सभी लोग,

हर धर्म यह कह कर शुरुआत करता है कि “आप एक पापी हैं” और यह सब आपके विशुद्ध चक्र के बाईं ओर स्थापित हो जाता है। 

तो वहाँ अपराध बोध है । अब अपराध बोध है, तो वह है, वो नीचे बैठी हैं।

यह अपराधबोध जब आपस टकराते हैं जैसे आकाश में दो बादल,

तो विष्णुमाया आपको ज्वलन का एहसास दिलाती हैं, वह वहां भूतों को जलाती हैं,

वह हमारे अपराध को जलाती हैं, और वह हमारे अपने बारे में अपनी शंकाओं को अपने प्रकाश से दूर करती हैं।

लेकिन सहज योग की शुरुआत में, जैसा कि आपने देखा है, 

जब कुंडलिनी ऊपर उठती है तो आप सदैव बाईं ओर महसूस करते हैं, 

अत्यंत स्पष्ट रूप से, दर्द या कभी-कभी जलन। 

और कभी-कभी लोग कहते हैं, “माँ, मैं यहाँ जलन क्यों महसूस कर रहा हूँ जब कुण्डलिनी उठ रही है?” 

क्योंकि ये विष्णुमाया हैं, वह बुराइओं को जलाने की कोशिश कर रही हैं।  

यह उनकी अनेक क्षमताओं में से एक है, उनमें से कुछ को जलाने के लिए। 

जैसा कि हम कह सकते हैं, जल तत्व विलीन कर सकता है, और बर्फ आपको आराम देती है, 

लेकिन विष्णुमाया विद्युत् की भांति एक तत्व है, जो वास्तव में आपकी नकारात्मकताओं को जलाकर आपको उचित दशा में लाती है।

बहुत आश्चर्य की बात है कि विष्णुमाया की यह शक्ति बायें भाग से है और इसके बावजूद इसके अन्दर वो अग्नि निहित है की वो जला सकती है, मैं कहूँगी, बायें भाग की नकारात्मकता और भूत बाधाओं को। 

अब हम देखते हैं कि हम इन बाएँ भाग के भूतों को कैसे विकसित करते हैं, यह बहुत दिलचस्प है, 

क्योंकि हम विष्णुमाया के साथ कार्य कर रहे हैं, हमें उसके साथ सहयोग करना चाहिए और हमारे ऊपर और अधिक दर्द नहीं होना चाहिए।

यह हमारे लिए आता है, विशेष रूप से पश्चिम में, मेरा मतलब है कि भारत में मुझे नहीं लगता कि कोई भी किसी भी बात के लिए दोषी महसूस करता है।

यह कुछ अत्यंत आश्चर्यजनक है, मैंने कभी किसी भारतीय को अपराधबोध में नहीं देखा। 

इसका कारण यह है कि, यदि भारत में उन्होंने कोई गलती की है -इसी प्रकार से, आप जानते हैं, तो संस्कृति ऐसी है कि यह बुरा आचरण है, वह  बुरा आचरण है, इस प्रकार। 

अब यदि कोई गलती से कुछ कर दे, तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ दुर्भाव रख सकता है, 

लेकिन वह कभी भी दोषी महसूस नहीं करेगा कि, “मैंने उस व्यक्ति को चोट पहुंचाई है,” या “मैंने कुछ गलत कहा है,” या “मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था “, 

क्योंकि पूरी संस्कृति में “सॉरी” और “थैंक्यू” जैसा कुछ नहीं है। 

यह विचित्र भारतीय संस्कृति है। “सॉरी” कहने जैसा कुछ नहीं है और बहुत “धन्यवाद” भी वो नहीं कहते हैं। और हर समय कहते रहें , “थैंक्यू “, और “गुड मौर्निंग “, “गुड इवनिंग “, मेरा मतलब है कि हर समय, यह हमारे लिए ज्यादातर एक कृत्रिम स्वभाव की तरह है।

महाराष्ट्र में भी, महिलाएं देवी या भगवान या अवतार या मंदिरों को छोड़कर कभी भी “नमस्ते” नहीं कहती हैं। 

वे कभी किसी पुरुष से यह नहीं कहेंगीं, “नमस्कार” – बस ऐसे ही या वे बस मुस्कुरा सकती हैं, बस। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें केवल ईश्वर को ही नमन करना है। 

हम सबको “सुप्रभात”, सबको “शुभ संध्या” क्यों कहें? 

हमें केवल परमात्मा को ही “सुप्रभात ” कहना चाहिए। 

आप देखते हैं कि यह स्थिति है, यह जिस तरह से यह किया जा रहा है।

अब अगर आपने कुछ भी गलत किया है, पूर्व में कहिए, मेरा तात्पर्य भारत से है, 

जैसे कि – यदि आपने कुछ ऐसा किया है, जो आपको नहीं करना चाहिए था। 

तो इससे निपटने के उनके पास केवल दो तरीके हैं, या तो वे इसे स्वीकार करेंगे और उस व्यक्ति के पास जाएंगे, कि “मैंने यह गलत किया है, अब तुम मेरा गला काट सकते हो, जो तुम्हें पसंद है वह करो। 

आप मुझे जो भी सजा देंगे मैं करने को तैयार हूं।” यह पहली बात है, वे इसे स्वीकार करेंगे,

“यदि आपको लगता है कि मैंने गलत किया है तो आप मुझे तुरंत थप्पड़ मार सकते हैं, मैं थप्पड़ खा सकता हूं।”

मान लीजिए कि आप अपने पिता से कुछ अशिष्ट कह दिया है । यह कहना गलत है, क्योंकि वह बड़े हैं । 

यदि किसी बुजुर्ग का अपमान किया गया है तो यह गलत है, तो आप जा कर उस व्यक्ति के पैर छूकर कहेंगे, “मुझे क्षमा करें, मैंने यह कहा है और मुझे आशा है कि आप मुझे क्षमा करेंगे।”

तो दूसरा व्यक्ति उसके बाद कहता है, “मैंने तुम्हें माफ कर दिया।”

मैं एक उदाहरण दूँगी । हम रूस में थे और दो व्यक्तियों के बीच थोड़ी समस्या शुरू हो गई। एक बहुत छोटा था और एक बहुत वरिष्ठ सहज योगी था। तो मैं आप को प्रतिक्रिया बता रही हूं कि यह कैसी थी ।

तो बड़े वाले ने आकर रात के दो बजे शिकायत की कि इस आदमी ने कहा है कि, “तुम नहीं जानते कि मैं क्या कर सकता हूं।” 

मैंने कहा, “सच में। ये बात, उसे आपसे ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी। ” 

तो मैंने उस व्यक्ति को फोन किया, लगभग 2:30 बजे उसे जगाया।  मैंने कहा, “तुमने उनसे ऐसा क्यों कहा? आपको नहीं कहना चाहिए था। वह आपसे बड़े  है, आप ऐसा नहीं कह सकते।” 

उन्होंने कहा कि, माँ, उन्होंने मुझसे ऐसे बात की जैसे कि वह अपने नौकर से बात करते हैं । उसने मुझसे उस तरह से बात नहीं की जिस तरह से उसे मुझसे बात करनी चाहिए थी, इसलिए मैंने यह कहा।”

लेकिन मैंने कहा, “इसके बावजूद कि आप अपने बुजुर्गों से ऐसा नहीं कह सकते। आप ऐसा नहीं कह सकते।”

“हाँ, निश्चित रूप से, मुझे पता है कि मैंने एक गलती की है और वास्तव में मुझे नींद  आ रही थी, मैं जागा नहीं था, मुझे नींद  आ रही थी, मैं सोच रहा था कि कल सुबह मैं जाऊं और उनसे माफी माँगूँ और इसे समाप्त करूँ।” मैंने कहा, “अभी।” तुरंत वह उठ गया और पैरों को पकड़ लिया और उसने कहा, “अब मुझे माफ कर दीजिये, क्योंकि आप बड़े हैं ।” उन्होंने कहा, “मैं सहमत हूं, लेकिन  मेरी भी गलती थी इसलिए आप भी मुझे माफ कर दीजिये ।” समाप्त !

और पश्चिम में, पहले, यह इतना बुरा भी नहीं था। उन्हें क्या करना होता था, मान लीजिये दो पुरुषों के बीच झगड़ा हो गया, वो अपनी मुक्केबाजी का उपयोग करेंगे, एक दूसरे को अच्छे से मारेंगे, और हर कोई एक दूसरे को मारेगा। समाप्त। 

आजकल आप किसी को मुक्का नहीं मार सकते, आप माफी नहीं मांग सकते, और यह अत्यधिक प्रतिष्ठा की बात है, ये, वो, इन सभी कृत्रिम चीजों ने आपको अपराध बोध दिया है क्योंकि आप को ऐसा करना ही है।

यदि कोई – यह स्वाभाविक है – यदि किसी ने भी आपको कुछ भी कहा है, तो आप बस उसके पास जाएंगे और मुक्का मार के उसको कहेंगे  “आपने मुझसे ऐसे क्यों कहा?” और वह आपको वापस मुक्का मार  देगा और समाप्त हो जाएगा। एक बहुत ही सामान्य शैली थी, आप इन सभी पुरानी अमेरिकी फिल्मों  में देख सकते हैं, मैंने इसे हर समय देखा है।

<भारतीय संगीतकार इस तरफ आ सकते हैं।>

लेकिन यह अपराधबोध का कारोबार बनावटीपन के कारण आया है। मैं सोचती था, “वे हर चीज के लिए दोषी क्यों महसूस करते हैं?”

पहला तो दिखावटीपन है, पहला कारण है। क्योंकि आप किसी को जाकर यह नहीं कह सकते हैं, “ओह, मुझे खेद है कि मैंने यह कहा है और कृपया मुझे क्षमा करें,” और दूसरा व्यक्ति भी क्षमा नहीं कर सकता है। 

तो, यह दिखावटीपन और बातचीत नहीं होने के कारण है। कोई बातचीत नहीं है। मेरा मतलब है कि भारत जैसे देश में लोग लड़ेंगे और अगली बार, आप उन्हें एक-दूसरे से गले मिलते देखेंगे। यह बहुत लंबे समय तक नहीं रहता है।

लेकिन अगर कुछ है, तो परिवारों के बीच एक बहुत बड़ी समस्या है या बहुत पुरानी लड़ाई है, तो वे इसे जारी रखेंगे। 

वो उस व्यक्ति से बात नहीं करेंगे, वो अपनी दूरी बनाए रखेंगे, वो इसे हर समय बनाए रखेंगे। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। 

सतही तौर पर, वे सभी से मिलेंगे। सतही तौर पर, वे सभी से बात करेंगे, लेकिन उनके अंदर ही अंदर अपराधबोध है।

तो इस ऊपरी दिखावे के कारण क्या हुआ कि हम इस बाईं विशुद्धि से ग्रस्त हैं। और तब विष्णुमाया क्रोधित हो जाती हैं। 

इस कारण पश्चिम में अधिकांश लोगों में, मैंने देखा है, बायीं विशुद्धि है, और आप लोगों से मेरी विशुद्धि भी पकड़ी गयी है। यह इस तरह है ।

तो यह कुछ भी नहीं है, यह कृत्रिम है, यह काल्पनिक है, और दोषी महसूस करने के लिए कुछ भी नहीं है। आखिरकार अगर आपने कुछ भी गलत किया भी है तो आप जेल में होते। आप यहां बैठे हैं, तो आप कैसे दोषी हो सकते हैं?

तो इस अपराधबोध कारोबार ने सहज योग में हमारी प्रगति को काफी नष्ट कर दिया है, मुझे पता है। तो सर्वप्रथम, अपने अहंकार को कैसे दूर करें ये समस्या है। 

अहंकार है, और जब आप अपने अहंकार को देखते हैं और आप यह नहीं कह पाते कि आप अहंकारी हैं, तो आपको इसका परिणाम एक बाईं विशुद्धी की समस्या के रूप में देखना होगा।

तो पहली बात, आपको यह देखना है कि आपके अन्दर अहंकार है। ठीक है, फिर आप दर्पण के सामने खड़े होते हैं, अपने आप को अपने प्रतिबिंब से अलग करते हैं और अपने प्रतिबिंब से बात करना शुरू करते हैं: “अब आपको अपने आप में अहंकार होने का क्या मतलब है? आप सहज योगी हैं, आपके पास अहंकार का कोई काम नहीं है”। 

लेकिन अगर आपके अन्दर अपराध बोध है, तो आप कभी नहीं देखे पायेंगे कि आपको अहंकार है। आप सिर्फ अपराध-बोध ही महसूस करेंगे लेकिन कभी यह नहीं देख पाएंगे कि आपको अहंकार है। 

और इस तरह अहंकार बना रहता है और बाईं विशुद्धी भी बनी रहती  है। दोनों चीजों पर आसानी से विजय पायी जा सकती है यदि आप खुद का सामना करें , बस खुद को देखें। 

“यह मेरे अहंकार से है? हाँ। मुझे अहंकार क्यों होना चाहिए? “

अब सहजयोग द्वारा अपने अन्दर के सभी असंतुलनों को हटाने के तरीके उपलब्ध हैं। यह कठिन नहीं है। और हटा भी दिए गए हैं। तो आप दाएं भाग को जानते हैं, बायें भाग को, यह इतना सरल है। सहज योग मात्र आपकी उंगलियों और हाथों की गति है, बस इतना ही। यह कोई ऐसी क्रिया नहीं है, जहां वे आपका खून निकालते हैं, आपकी जीभ निकालते हैं, आपकी आँखें निकालते हैं और फिर घोषणा करते हैं कि आप स्वस्थ हैं। यहाँ ऐसा नहीं है। यहाँ सिर्फ, आप इसे महसूस कर सकते हैं, कि आप ठीक हैं, आप संतुलन में हैं। एक बार जब वह संतुलन स्थापित हो जाता है तो विष्णुमाया के साथ कोई समस्या नहीं होती है।

तो यह विष्णुमाया जो एक समय श्री कृष्ण की बहन थीं और बाद में द्रौपदी के रूप में आयीं, और वह आज भी इस प्रकाश में विद्यमान हैं, और आपकी बाईं विशुद्धि में।

लेकिन लोग यह नहीं देखना चाहते हैं कि उनके साथ क्या समस्या है। यह एक बड़ी समस्या है।

यॉर्क की तरह, उनके पास एक चर्च था, जहां डरहम का एक बिशप, बेकार आदमी, उसने घोषणा की कि ईसा मसीह एक साधारण आदमी थे और वह एक समलैंगिक हो सकते थे।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं, ऐसा कहने के लिए, मेरा मतलब है, यहां तक कि सुनने के लिए भी बहुत ज्यादा है! और हमें कुछ प्रयोग करने चाहिए, हमें कुछ खोजों के माध्यम से पता लगाना चाहिए।

क्या आप ऐसी निराशाजनक बात की कल्पना कर सकते हैं जो उसे चर्च में कहनी चाहिए?

इसलिए जब सारी बात औपचारिक थी, तो उन्होंने यह कहा, तब कैंटरबरी के हमारे आर्कबिशप, जो एक और ऐसे  हैं, इस व्यक्ति  की नई खोज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें यॉर्क के एक चर्च में सम्मानित किया। 

और फिर इस बात के बाद जब पूरा काम समाप्त होने वाला था या कुछ और हो रहा है, उन्होंने देखा कि चर्च के चारों ओर विद्युत् घूमती प्रतीत रही है। 

जब सभी लोग बाहर आ गए तो यह बिजली पूरी तरह से उस चीज पर गिर गई और निचले हिस्से को छोड़कर पूरे चर्च को नष्ट कर दिया। अब यह देखने के बजाय कि उन्होंने जो किया वह गलत था, उन्होंने कहा कि: “देखो, ईश्वर की कृपा देखो, और हमारी आस्था की कृपा है कि चर्च का निचला हिस्सा नहीं जला”। ऐसी व्याख्या दी जाती है ! तो फिर स्पष्टीकरण आया।

मैंने देखा है ये यहाँ बहुत आम बात है, क्योंकि यहाँ मन बहुत समझदार है: “मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैंने इस तरह सोचा था, मैंने वैसे सोचा था।”

हमेशा हर चीज के लिए एक स्पष्टीकरण होता है कि आपने क्या गलत किया। “मैंने ऐसा सोचा था।” लेकिन आपने ऐसा क्यों सोचा, यह वह बिंदु है जिसे कोई नहीं देखना चाहता।

अगर आपको लगता है, “मैंने ऐसा क्यों सोचा?” तो यह आपके अहंकार के दबाव से एक पलायन है जिसने दूसरों को नुकसान पहुंचाया है या कुछ देवताओं को भी नुकसान पहुंचाया है। यह सिर्फ एक स्पष्टीकरण है, और लोग छटपटा कर बाहर आते हैं ।

वास्तव में मिस्टर वाल्डहाइम जैसे बहुत सारे पैंतरेबाज  देखे जाते हैं, वो इन सब से बाहर निकल आते हैं – उन्होंने जो भी समस्याएं पैदा की हैं, वे सभी बुरे काम जो उन्होंने किए हैं, मेरा मतलब है, किसी न किसी तरह से, वे जानते हैं कि उन्हें कैसे बाहर निकलना है ।

क्योंकि इस पद्धति को उन्होंने विकसित किया है, बस कुछ ऐसा कहना है जो किसी न किसी तरह से उन्हें बाहर भागने की थोड़ी क्षमता देगा। लेकिन वो इसका सामना नहीं करना चाहते हैं।

इसलिए अब, हमें यह समझना होगा कि हमें इसका सामना करना चाहिए। और मुझे पता है कि सहज योगी भी कहते हैं कि कुछ निश्चित हैं, जिन्हें आप अब तक उन्हें बताते हैं: “क्या, ये सब क्यों बताओ? “

” मैंने सोचा “

” लेकिन आपने क्यों सोचा?” आपको चैतन्य देखना था । आप विचारों के स्तर पर नहीं हैं, अब आप चैतन्य के  स्तर पर हैं। क्यों नहीं अपनी चैतन्य अभिज्ञता का उपयोग करें?

“मैंने सोचा” । एक बार यह “मैंने सोचा था” आपके चित्त में आ जाए तो ये कुछ काल्पनिक चीज़ों की तरफ होता है। वास्तविकता यह है कि आपने एक गलती की है, ठीक है मान लीजिये कि यह गलती है, और इसे सही किया जाना है।

अब एक कार को लीजिये, अब एक कार है। यदि कार ख़राब है या कुछ गड़बड़ है, तो कार नहीं सोचती, “मैंने सोचा था”, सोचती है? और हम भी यह नहीं सोचते कि कार ने सोचा था, कभी नहीं। हम जो करते हैं, वह कार को सही करने के लिए है, समाप्त ! 

अगर हमें कार चलानी है तो हम कार को सही करते हैं।

इसी प्रकार, यह मन जो कहता है “मुझे लगा” , इसके विपरीत उसे स्वयं को ठीक करना चाहिए। 

तो “मुझे लगा” का यह वाक्य सहज योगियों की भाषा से बाहर होना चाहिए। इसलिए हम नहीं सोचते हैं, आप जानते हैं, हम निर्विचार समाधि में हैं।

और तब चीजें कार्यान्वित होती हैं, ठीक से। जब आप सोचने लगते हैं कि: “मुझे लगता है कि मैं जिम्मेदार हूँ” सब समाप्त! 

जब आप सोचने लगते हैं: “मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँ, यह सब परमात्मा ने किया है, मैं किसी भी चीज़ के लिए ज़िम्मेदार नहीं हूँ”। 

अगर कुछ गलती हो गई तो यह परमात्मा की गलती है, उन्हें अपनी बाईं विशुद्धि देखने दो। 

“लेकिन मैंने कुछ गलत नहीं किया है”। लेकिन जब मैं कहता हूं “मैंने सोचा था” का मतलब है कि मैं जिम्मेदारी लेता हूं और मैं अपनी समस्याओं को स्वयं पैदा करता हूं। इसलिए निर्णय लेने के लिए आपको निर्विचार समाधि की स्थिति में होना चाहिए।

कई बार मुझे ये सब कुछ मेरे आस-पास एक नाटक की तरह दिखाई देता है। मैं चुप रहती  हूं। मैं कहती  हूं: “सब ठीक है, सब ठीक है, सब लोग ठीक हैं ।” मैं सर्वसम्मति लेती  हूं। लेकिन जो कुछ भी होना है वह परमात्मा की इच्छा के अनुसार होता है।

लेकिन यह अब लोगों को आश्चर्यचकित नहीं करता है, जैसे एक समय किया करता था, क्योंकि यह लोगों को सही करता है, यह उपयोगी है, यह परिणाम प्राप्त करता है।

अंतत: अब उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि माँ जो भी निर्णय लेती हैं वह सबसे अच्छा होता है। लेकिन मैं निर्णय नहीं लेती हूँ, वास्तव में, स्पष्ट रूप से, मैं कुछ भी नहीं करती हूँ। 

लेकिन मैं इसे इतनी स्पष्टता से, इतने स्पष्ट रूप से देखती हूं कि यह सही काम है, इसलिए गलत काम क्यों करना चाहिए?

इस प्रकार आपको स्वयं को विकसित करना होगा, विशुद्धी की इस समस्या पर काबू पाने के लिए । लेकिन विष्णुमाया की पूजा होनी चाहिए, वास्तव में हर दिन स्मरण होना चाहिए, क्योंकि पश्चिम में यह एक आम विफलता है। अब अगर आपका विष्णुमाया तत्व खराब है, आपसे नाराज है, तब क्या होता है? आप दोष के बाद दोष, दोष के बाद दोष, दोष के बाद दोष जोड़ते चले जाते हैं ।  लेकिन यदि आप हर समय सतर्क हैं और अपने विष्णुमाया को पूर्ण  रखते हैं, तब क्या होता है? तब वह आपकी देखभाल करती हैं , वह किसी अपराध बोध को आने की अनुमति नहीं देती हैं । और तब आपकी आत्मा का आनंद परम होता है।

अपराध बोध के साथ, इसमें एक गहरा निशान आ जाता है। आप देखिये, आप कहते हैं: “ओह, मैं बहुत खुश हूँ माँ, खुश, बहुत खुश, आनंदित हूँ ” और अचानक क्या हुआ? “ओह, मैंने वह गलत किया।”

मैंने लोगों को छोटी चीजों के लिए परेशान होते देखा है, मेरा मतलब है कि निश्चित रूप से मेरा एक और जीवन भी है, एक बहुत ही परिष्कृत दुनिया। 

एक सज्जन ठीक से खा रहे थे, और अचानक, “उह!” “क्या हुआ?” “ओह, मुझे उस व्यक्ति को टेलीफोन करना चाहिए था और मैंने टेलीफोन नहीं किया।”

“लेकिन अभी आप अपना खाना खाईये, अभी । आप उसके बारे में चिंतित क्यों हैं? ”

“नहीं, मुझे करना चाहिए था।” “लेकिन किसी भी सूरत में क्या हो जाएगा? आपने अभी फ़ोन नहीं किया तो नहीं किया है। 

कोई बात नहीं, अब बेहतर है आप अपना भोजन कर लें और फिर टेलीफोन।” और तब उसे पता चलता है कि वो आदमी वहां था ही नहीं, और उसको वो कभी नहीं मिल पाता। 

इसलिए ये सभी चीजें हमारे जीवन में एक तरह के मानक बना चुकी हैं और ये बहुत ही कृत्रिम मानक हैं। अब मैं वहां होने वाली थी, इस समय में, मैं वहाँ नहीं हूँ, तो क्या? 

मुझे वहां होना चाहिए था, लेकिन अगर आप वहां नहीं हैं तो इसके बारे में बुरा मानने का क्या लाभ? मुझे उस जगह पहुंचना चाहिए था। 

आप आश्चर्यचकित होंगे, विमान इंतजार करेंगे, आदमी इंतजार करेगा, सब कुछ वहीं होगा चाहें आप आठ घंटे बाद ही पहुंचें। यह सब इस तरह से होगा।

लेकिन पहले आपको इस सर्व-व्यापी शक्ति , विष्णुमाया, के साथ सामंजस्य में होना चाहिए। 

यदि आप उनके साथ मिल गए हैं, उनके साथ समायोजित हो गए हैं, तो आप कभी लड़ेंगे नहीं, यह सब आपके सामने है। 

यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि याद रखें कि अब आप परमात्मा के राज्य में प्रवेश कर चुके हैं, बस इसको परखें!

लेकिन इसके विपरीत आप सारे समय अपने मानवीय अज्ञान का उपयोग करते हैं, और फिर आप धोखा खा जाते हैं।

यह जानने की कोशिश करें कि आप प्रबुद्ध जन हैं, कि आप अब कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। लेकिन जब तक कि आप अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं करते तब तक क्या लाभ?

यह किसी भिखारी की तरह है – आप उसे सिंहासन पर बिठाते हैं। और जब लोग उसके पास आते हैं, तो वह भीख माँगता है: “जो कुछ भी मिले ठीक है।” “लेकिन बाबा आपको राजा बनाया गया है, आप भीख क्यों मांग रहे हैं?”

इसलिए दोषी महसूस नहीं करना हमारा धर्म है। दोषी महसूस नहीं करना है । हमें इसका सामना करना चाहिए। यदि हमने  कोई गलती की है तो हमें यह खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए कि हमने यह गलती की है, जाकर उस व्यक्ति को बताएं, कुछ काम करें या उसे सुधारें, या उसमें भाग लें, ना कि एक पोटली बनाकर उसे विशुद्धि में रख लें ।

पश्चिम में यह एक बहुत बड़ी समस्या है और मुझे आश्चर्य हुआ कि यह बहुत बढ़ रही है और उन्हें बहुत गर्व है, “ओह, मैं कितना दोषी हूं!”  बेहतर है, जेल जाओ।

आपके सभी सुखद स्वभाव, आपके सभी आनंदमय स्वभाव इस अपराध बोध से बर्बाद  हो जाते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। न तो यह आपकी मदद कर सकता है और न ही यह किसी और की मदद कर सकता है। 

मैं आपको इतनी ईमानदारी के साथ बता रही हूं, क्योंकि मुझे पता है कि यह निश्चित रूप से शुरुआत में, सभी सहज योगी जिन्हें मैं पश्चिम में मिली थी, उनमें यह अपराध बोध था।

इसके अलावा कैथोलिकवाद एक और है। आपको कैथोलिक चर्च में कबूल करना होता है।

लेकिन मैंने प्रोटेस्टेंट लोगों में बहुत बुरा अपराध बोध देखा है। प्रोटेस्टेंट भी कम नहीं हैं। लेकिन भारत में आप किसी भी कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट को ले लें – वहाँ कोई भी दोषी नहीं है।

जैसा कि मैंने आपको दूसरे दिन एक कहानी सुनाई थी, मेरी पोती ने मुझसे पूछा, “दादी, आपको क्या लगता है कि मैं कोई पाप कर रही हूं?” मैंने कहा, “क्या?” “मैंने कोई पाप नहीं किया, लेकिन क्या आप मुझे बता सकती हैं यदि मैं कोई पाप कर रही हूं?” 

मैंने कहा, “मैं तुम में कोई पाप नहीं देखती ।” उसने कहा, “लेकिन आप जानती हैं हमारे स्कूल में उन्होंने मुझसे मेरे पापों को कबूल करने के लिए कहा – तो मुझे क्या स्वीकार करना चाहिए?”  

मैंने कहा, “तुम क्या कहोगी?” “ओह, केवल एक चीज कि मैंने दो आइस-क्रीम खाए।” तो मैंने कहा, “तो जाओ और उन्हें बताओ।” 

तो यह इस प्रकार मूर्खतापूर्ण है। यदि आप वास्तव में  देखते हैं तो यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण है और यह मूर्खता सहज योगियों को नहीं अपनानी चाहिए। स्वयं को खुश रखें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

और कभी-कभी मैं गलतियाँ करती हूँ। अचानक एकदम से, मुझे नहीं पता कि मैं क्यों, एरिस्टोटल  या  टॉलस्टॉय से क्यों उलझती  हूं? 

मुझे नहीं पता कि टॉल्सटॉय मेरे दिमाग में क्यों आये, हालांकि मुझे नहीं लगता कि टॉल्स्टॉय कहीं भी एरिस्टोटल  के बराबर थे या एरिस्टोटल  किसी भी तरह से बराबर थे । लेकिन मैंने गलती की और मैं सोच रही हूँ, “क्यों, ऐसा क्यों था?”

फिर भी यह बहुत महत्वपूर्ण है। इन लोगों को भी, आप देखते हैं, जब उनका वर्णन किया जाता है – आप देखते हैं कि एरिस्टोटल का टॉल्स्टॉय पर बिल्कुल भी कोई प्रभाव नहीं था, यह तथ्य है। उनका कोई प्रभाव नहीं था। एरिस्टोटल राजनीतिज्ञ और वो सब कुछ थे, और उन्होंने सम्पूर्ण  दर्शनशास्त्र  एक तरफ सरका दिया। अब यहाँ टॉलस्टॉय हैं, जिन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि एक व्यक्ति कैसे अपना पुनर्जीवन कर सकता  है।

मुझे नहीं पता कि आपने उन्हें पढ़ा है या नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि वह उन दिनों के महान लेखकों में से एक हैं। और उस दिन ही मैं उन दोनों की तुलना कर रहा थी और मैंने कहा: “इस व्यक्ति को देखो, वह एरिस्टोटल  से बिल्कुल अलग हैं, बिल्कुल, एक ही वस्तु के दो छोर हैं हम कह सकते हैं, और यह कैसे हुआ कि उन्होनें एरिस्टोटल को कभी नहीं पढ़ा ? वह इतने विद्वान व्यक्ति थे, उन्होंने एरिस्टोटल  को कभी नहीं पढ़ा। ” तब मुझे बस लगा कि यह एक रूसी दिमाग है, और रूसी दिमाग बेहद आत्मविश्लेषी है और एरिस्टोटल में यह आत्मविश्लेषण नहीं था, अपने सिर से धागे की तरह बुनकर सब कुछ निकाल रहे थे, और लोगों को इस राजनीति की पूरी तरह से दूसरी राह  पर डाल रहे थे।

प्लेटो भी एक तरह से उनसे भी बदतर थे, लेकिन ये कुछ और थे।

इसलिए सुकरात समाप्त हो गए और एरिस्टोटल सब कुछ बन गए।

लेकिन क्योंकि मैं दोनों को उनकी खूबियों के आधार पर आंक रही हूं, कि यह टॉल्सटॉय क्यों हैं ? क्योंकि टॉलस्टॉय जन्म से आत्मसाक्षात्कारी थे।

इसलिए उन्होंने जीवन को बहुत अलग तरीके से देखा। अगर आपने अन्ना कारेनिना पढ़ी है तो उन्होंने इस महिला को दिखाया है, अन्ना कारेनिना, एक अन्य पुरुष के साथ, जबकि वह एक शादीशुदा महिला थी और उसका पति बहुत सहनशील था, बहुत मेहनत करता था और वह उसे पर्याप्त समय नहीं दे पाता था, तो उसने सोचा उसे रोमांटिक होने का अधिकार है।

और फिर अंत में वो साबित करते हैं कि वह कभी खुश नहीं थी। लेकिन उसका पति बहुत शांत, बहुत क्षमाशील था, लेकिन वह कभी खुश नहीं थी और आखिरकार उसे आत्महत्या करनी पड़ी। 

मेरा मतलब है कि ये पुराने लेखक हैं, इस तरह से लिखते थे – विशेष रूप से वो जो आत्मसाक्षात्कारी थे।  लेकिन अगर आप किसी आधुनिक लेखक को यही कहानी देते हैं तो वह दिखाएगा कि पति ने आत्महत्या की, पत्नी ने नहीं।

और यही अब हम आधुनिक समय में हैं और हम ऐसे ही हैं, कि हम गलती न होते हुए भी स्वयं को दोषी मानते हैं। यहाँ एक पत्नी दूसरे आदमी की ओर जा रही है और आदमी को लगता है कि मैं दोषी हूँ क्योंकि मैं इतना आकर्षक नहीं हूँ, इसीलिए वह दूसरे आदमी के साथ जा रही  है और उसने आत्महत्या कर ली। ऐसा नहीं है।  यह पत्नी है जो गलत है – पुरुष नहीं।

तो इसलिए हमारी विकृत सोच के कारण भी अपराधबोध या त्रुटियों का एक व्यक्ति द्वारा दूसरे पर प्रभाव होता है।

मैंने कुछ पुरुषों को देखा है जो अपनी पत्नियों के सामने एकदम जड़ हैं – विशेष रूप से अमेरिका में। बस जड़ ! मैंने कहा: “आप ऐसे जड़ क्यों हैं?” तो वे कहते हैं, “माँ, आप देखिये कि यह हमारा अपराधबोध था – जिस प्रकार हमने महिलाओं का दमन किया।” “लेकिन आप अपनी महिलाओं को आपको दबाने की इजाजत क्यों देते हैं? यह भी गलत है। ”

इसलिए वे अपनी महिलाओं को उन्हें दबाने की अनुमति देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पूर्वजों ने महिलाओं को दबा दिया था। 

मेरा मतलब है, एक ही काम करना, मेरा मतलब है, आप अपने आप को असंतुलित कर रहे हैं। क्योंकि आप दोषी महसूस करते हैं। 

किसके लिए? अपने पुरखों के लिए। मेरा मतलब है कि वे मर चुके हैं और चले गए हैं – आप अलग हैं।

इस प्रकार हम खुद को दोषी मानने की कोशिश करते हैं, यह एक फैशन है, आप जानते हैं, जैसे कि हास्यापद तरीके से कपड़े पहनना। हर समय यह पता लगाने की कोशिश करना कि हमने क्या गलत किया है, यह  ठेठ पश्चिमी दिमाग है।

और फिर आप अपने समपूर्ण जीवन को दुखद दिखाते हैं। आप लोग खुश कैसे हो सकते हैं?

हर समय आप अपने आप को दोष देना शुरू करते हैं, अपने आप को नीचे रखते हुए । इन सभी सिद्धांतों और उन सभी चीजों के बारे में जो आपके पास आए हैं, सिर्फ आपको दुखी बनाया है, बिना जेल गए आप जेल में हैं।

अब यह मैं आपको वेशभूषाओं के बारे में बता रहा थी । छह इंच की स्कर्ट आ गई है। अब लड़कियों को दोषी लगता है अगर वे छह इंच नहीं पहनती हैं।  वास्तव में इसे पहनना गलत है – लेकिन वे दोषी महसूस करती  हैं कि उन्होंने नहीं पहना है। क्योंकि ये हास्यप्रद मानक हैं, जिन्हें हमने बनाया है कि व्यापारी वर्ग  जो कुछ भी निकालते हैं, हमें वह एक  गुलाम की तरह ले लेना चाहिए। तुरंत हमें अपने सभी कपड़े फेंकना शुरू कर देना चाहिए, नई शैली, दूसरी शैली अपना लेनी चाहिए। यह पेरिस में है कि जो कुछ आता है हर किसी को पहनना चाहिए।

इसके विपरीत यदि भारत में कोई भी ऐसी शरारत करता है, तो हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे। “दफा हो जाओ! हमें यह सब बकवास नहीं चाहिए।”

तो इसके द्वारा हम उन सभी परंपराओं को खत्म कर देते हैं जो हमें इस स्तर तक ले गई हैं। हमारी सभी परंपराएं जो हम खो देते हैं – क्योंकि ये व्यापारी  हम पर कार्य कर रहे हैं, हम उनके हाथों में खेल रहे हैं और ये सभी लोग हर दिन अपने कपड़े बना रहे हैं, सभी प्रकार के सिद्धांत हर तरफ से आ रहे हैं, हम स्वीकार करना शुरू कर देते हैं। यदि हम स्वीकार नहीं करते हैं तो हम दोषी महसूस करते हैं।

यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि लोग तुच्छ चीजें कैसे स्वीकार करते हैं।

मेरा बहुत ही दर्दनाक अनुभव रहा है जब मैं एक बार अमेरिका गयी  थी और वहाँ एक आठ साल की एक छोटी बच्ची थी और उसने कहा, “वह ड्रग्स लेता है,” माँ।

मैंने कहा, “सच में?” मुझे बहुत धक्का लगा, मैंने बच्चे को अपने दिल से लगा लिया और मैंने कहा, “आप ड्रग्स क्यों लेते हैं?” उसने मुझे देखा। उसने कहा, “मेरी मां ने मुझे कभी इस तरह गले नहीं लगाया।” मैंने उससे पूछा, “तुम अपने बच्चे को गले क्यों नहीं लगातीं?” 

उसने कहा, “क्योंकि मेरे अन्दर अपराध बोध आ जाएगा।” मैंने कहा, “कैसे?” “फ्रायड के अनुसार यह एक अपराध बोध होगा।” अब फ्रायड तय कर रहा है कि अपने बच्चे को गले लगाना अपराध है, इसलिए आप अपराध बोध का विकास करते हैं।

तो यह आपके अन्दर यह अपराधबोध कहाँ से आ रहा है? यह इन किताबों से है जो आप पढ़ रहे हैं, ये बेकार लोग जो आपका मार्गदर्शन कर रहे हैं, उनका कोई चरित्र नहीं है, उन्हें कोई संवेदना नहीं है, उन्हें वास्तविकता का कोई पता नहीं है और यही आप बाइबल के रूप में स्वीकार करते हैं? तब स्वाभाविक रूप से आप दोषी होंगे।

अगर एक पार्टी में थोड़ी कॉफी गिर जाती है, तो “हे भगवान् !” फिर मुझे लगता है कि आप एक अपराधी से भी बदतर हैं। या फिर, किसी का कालीन खराब हो गया है तब तो बिलकुल, मेरा मतलब है, आपको तुरंत जेल जाना चाहिए।

अधिकतर सतही चीजों पर इन मानकों को बनाया जाता है, बहुत ही सतही व्यवहारों पर इन मानकों को बनाया जाता है और फिर आप दोषी महसूस करना शुरू कर देते हैं।

आप दोषी महसूस नहीं करते हैं कि आप एक नस्लवादी हैं, आप उन चीजों के बारे में दोषी महसूस नहीं करते हैं जिनके बारे में आपको दोषी महसूस करना चाहिए । 

कि आप लोगों पर आक्रामण  करते हैं – अमेरिका में हजारों और हजारों लोग मारे गए, वहां लाखों लोग – किसी को भी इसके बारे में दोषी नहीं लगता है। 

या आप पूरी दुनिया पर हावी हो गए – किसी को भी इसके बारे में दोषी नहीं लगता। आप उन चीजों के बारे में दोषी महसूस करते हैं जो बेहद ऊपरी हैं।

लेकिन सहज योगियों के लिए, वे इतने गहरे, इतने गहरे हैं कि अगर उन्हें वास्तव में किसी भी चीज के बारे में बुरा महसूस करना है, तो मुझे यह पता लगाना होगा कि अब उन्हें क्या बुरा महसूस करना है।

तो मुझे एक सरल उपाय पता चला है अगर आपको बुरा लगता है तो कृपया अपने कान खींचे, समाप्त! या यदि आप दोषी महसूस करते हैं तो अपने कान खींच लें और विशुद्धी में सब ठीक हो जाएगा। 

यह एक बहुत ही सरल विधि है बस अपने कानों को इस तरह खींचो, समाप्त हो गया! लेकिन कभी-कभी मैं लोगों को देखती हूँ मेरे सामने इस प्रकार चलते हुए, फिर मुझे लगता है कि अब मैंने उनके साथ क्या किया है? 

नृत्य करते हुए भी वे ऐसा ही करेंगे। यह अति है।

मेरे लिए ये देखना थोड़ा अधिक हो जाता है कि लोग क्या महसूस कर रहे हैं। तो मेरा मतलब है, सहज योग में किसी भी चीज़ के बारे में ऐसा सख्त नियम नहीं है।

मेरा मतलब है कि आप बिल्कुल स्वतंत्र लोग हैं और आपको पूरी स्वतंत्रता का उपयोग करना होगा, पूर्णतः । आप कुछ सख्त नियमों द्वारा निर्देशित होने के लिए नहीं हैं कि हर समय आप अपने कानों को इस तरह खींचते रहें।

अपने अपराध भाव की इस निरर्थकता को दूर करने के लिए मैंने कहा, “ठीक है आप अपने कान खींच सकते हैं।” और हर बार मैं लोगों को सिर्फ अपने कान खींचते हुए देखती हूं।

कल एक लड़की ने बड़ी बाली पहनी हुई थी और वह अपने कानों की बालियां खींच रही थी, आप देखिए, मैं काफी चिंतित थी की कहीं ये ।।।  

सहज योग केवल एक खेल है, बस एक आनंद है, यह इस तरह का सख्त नियम कानून नहीं है जैसा कि आप देख रहे हैं। क्योंकि आप अब स्वाभाविक रूप से धार्मिक हो गए हैं, आपको देखने के लिए आत्मा मिल गई है। आप क्या गलतियाँ कर सकते हैं?

लेकिन जहां आपको सावधान रहना है वहां आप नहीं हैं। उदाहरण के लिए, मैं कहती हूं कि बाहर जाने से पहले कृपया बंधन ले लें। यह कवच है, हम इसे कवच कहते हैं। अंग्रेजी में कवच के लिए कोई शब्द है क्या ?

सहज योगी: संरक्षण

श्री माताजी: हम्म ?

सहज योगी: संरक्षण, रक्षा।

यह कुछ हद तक, संरक्षण काल्पनिक है, लेकिन यह एक माँ का संरक्षण एक ठोस वस्तु है, आप देखें, कवच। तो आप कवच ले लें । कवच को आप कुछ ऐसा कह सकते हैं, जिसे लोग पहनते हैं, हम-

सहज योगी: कवच

श्री माताजी: कवच, अंदर, आप उस तरह की चीज को देखते हैं, कवच है। इसलिए आप बाहर जाने या किसी से बात करने से पहले उसे जरूर लें। ये आप नहीं करते।

फिर मुझे लगता है कि वहाँ, मैंने कहा: “आप कहाँ से आ रहे हैं?”

“ओह माँ, मैं अपने किसी को देखने गया था- मैं एक कब्रिस्तान में गया था।”

मैंने कहा: “किस लिए?”

“किसी की मृत्यु हुई थी तो मैं वहाँ गया।”

“तो आपने अपना कवच लिया था ?”

“नहीं।”

और आप यहाँ सर पर सभी भूतों  को नाचते हुए देख सकते हैं।

तो बात ये है कि आप कहाँ हैं – और फिर आप अपने कान खींचते हैं, इसका क्या उपयोग है? यह सिर्फ एक साधारण क्रिया है, जब आप बाहर जा रहे हों तो अपना कवच ले लें। 

यह बहुत आसान है, मेरा मतलब है, सहज योग में हमें भयानक कृत्य करने की ज़रूरत नहीं है जो लोग करते हैं, कुछ भी नहीं। बस सुबह आप बंधन ले लें जब आप बाहर जा रहे हों, और यदि कोई व्यक्ति तर्क-वितर्क कर रहा है, तो बस एक बंधन दें। 

कुछ भी, छोटा सा बंधन ही इतनी सारी चीजों को कार्यान्वित सकता है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमने परमेश्वर के राज्य में प्रवेश किया है और सभी संत, देवदूत और गण आपकी मदद के लिए हैं।

अब आपको स्वयं पर विश्वास करना होगा। मैं आपको कैसे बताऊं कि अब आप खुद पर विश्वास करें? इसलिए दोषी महसूस करने की यह मानवीय निरर्थकता हर सहज योगी से गायब हो जानी चाहिए। इसलिए आज हम विष्णुमाया पूजा कर रहे हैं।

अब आप देखते हैं – उदाहरण के लिए विष्णुमाया ने इस घर में प्रवेश किया, क्योंकि यह एक जीर्ण, पुराना घर है और यह एक शराब की भठ्ठी थी। हवन को बाहर करना गलत था क्योंकि उन्हें इसको अंदर करना चाहिए था। इसके बारे में दोषी महसूस करने के लिए नहीं; लेकिन फिर, मुझे लगता है कि वो भी । लेकिन यह गलत था।

तो विष्णुमाया ने देखा कि आपसे एक गलती हो गई है, वह खुद आयीं  और सब कुछ स्वच्छ कर दिया। उन्होंने नहीं सोचा था कि आपको दोषी महसूस करना चाहिए, उन्होंने सोचा, “ये बच्चे हैं, अभी भी इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि अन्दर कितने भूत हैं। बेहतर है मैं जाऊं और काम करूं। ” 

और उन्होंने ये साफ़ कर दिया। बस ये ही, इसके बारे में दोषी महसूस करने के लिए कुछ भी नहीं है। वह स्वाभाविक रूप से आपसे बेहतर जानती हैं, इसलिए उन्होंने काम कर दिया है ।

तो, सहज योगी उस व्यक्ति की तरह नहीं है जो ऐसा दिखता है जैसे कि उसके परिवार में किसी की मृत्यु हो गई है। जैसे बहुत गंभीर रूप में, वह मुस्कुरा नहीं सकता है, भले ही आप उसे गुदगुदी करें वो नहीं मुस्कुराएगा, आप देखिये, वह इन सब से कितना “ऊपर” है, उस प्रकार का व्यक्ति वह नहीं है। वह हमेशा आनंद और प्रेम और समझ और दोस्ती से प्रफुल्लित रहते हैं । वह हर चीज़ का आनंद लेता है, यही कारण है कि वह सहज योगी है।

यदि आप कभी दोषी महसूस करते हैं – अब निश्चित रूप से अपने कानों को बेहतर ढंग से खींच लें, कि मैं बंद  नहीं करूंगी, क्योंकि तब यह बहुत अधिक हो सकता है बायीं विशुद्धि के अंदर। 

लेकिन कभी भी दोषी महसूस करें आप कहते हैं: “मैं दोषी क्यों महसूस कर रहा हूं?” बस आत्मनिरीक्षण करें। 

और ये ही एरिस्टोटल और टॉल्स्टॉय के बीच का अंतर है। और कल मुझे एहसास हुआ कि एरिस्टोटल  के बदले मैंने टॉलस्टॉय के बारे में क्यों सोचा।

अब हमारे विष्णुमाया सिद्धांत को हमेशा बहुत सतर्क रखना है क्योंकि यह हमें कई तरह से मदद करता है। सर्वप्रथम, यह हमें आपके दिल के सन्देश आपके मस्तिष्क तक भेजने में मदद करता है। ये ही वो है जिस से हम एकाकार होते हैं। हमारे हृदय और मस्तिष्क की एकाकारिता विष्णुमाया तत्व से अधिक है बजाये दायीं विशुद्धि के। 

दाईं ओर विशुद्धि सामूहिकता का निर्माण कर सकती है, एक-दूसरे के साथ सामंजस्य पैदा कर सकती है, लेकिन बाईं ओर, यह आपको अपने ह्रदय और मस्तिष्क के बीच पूर्ण एकाकारिता रखने में मदद करती है।

यदि वहाँ कोई अपराधबोध है, तो आप सिर्फ इसके बारे में सोचते हैं और इसका विश्लेषण करते हैं, इसका मतलब है कि आपके दिल और दिमाग के बीच संघर्ष है, है ना? आसान सी बात । यदि ये एकीकृत हो जाए तो आप दोषी नहीं महसूस करेंगे। और यही कारण है कि ये सभी कृत्रिम सिद्धांत जो आए हैं, ये सभी काल्पनिक  दर्शनशास्त्र  जिन्हें आपने पढ़ा है और यह सब, आप इसे भूल जाईये । 

आप सहज योगी हैं और आपने परमात्मा के राज्य में प्रवेश किया है – आनंद लें! बस आपको इतना ही करना है। लेकिन आपको आनंद की उस अवस्था और समझ तक आना होगा की आप सर्वोपरि हैं। 

यहां तक कि आप भी यह नहीं कह सकते हैं कि: “आपको बुद्ध की तरह होना चाहिए जो चुपचाप बैठे हैं।” ऐसा कुछ नहीं। बुद्ध चुपचाप तब बैठते  थे, जब वह  ध्यान में होते थे। अन्यथा आपने सभी बच्चों के साथ स्थूल बुद्ध और हँसते हुए बुद्ध को देखा है। 

अर्थात अहंकार को खुद पर हंसना चाहिए। और इस प्रकार से इस अपराधबोध की मलिनता नहीं होगी। बस अपने आप पर हंसें । “मैंने ऐसा कैसे किया!” खुद पर हंसना स्वयं को समझने का एक बहुत अच्छा तरीका है। 

यह जानने की कोशिश करें: “मैं क्या बकवास करता हूँ? मैं कैसे व्यवहार करता हूं? ”

जैसे की एक महिला है, वह हमेशा हर चीज के लिए खुद को जिम्मेदार महसूस करती है। नहीं। मैं उसे “गोवर्धनधारी” कहती  हूं, अर्थात वो जिसने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ में ले लिया है, इस प्रकार, वह सोचती है कि वो हर चीज के लिए जिम्मेदार है।

और मैं उसे उसकी सारी जिम्मेदारियों से चकमा देकर से दूर करने की कोशिश करती हूं, बस उसे यह समझाने के लिए कि वह जिम्मेदार नहीं है। 

और जब उसे लगता है कि वह ज़िम्मेदार है, तो वह हर समय इस अपराधबोध को अपने अन्दर संचित करती जाती है। 

क्योंकि पहले वह ज़िम्मेदार नहीं है और दूसरी ओर वो ज़िम्मेदार है, वह निश्चित रूप से कुछ गलतियाँ करने जा रही है और फिर वह गलतियों की ज़िम्मेदारी स्वयं ले कर दोषी महसूस करने वाली है। 

तब विष्णुमाया क्रोधित हो जाती हैं, और अगर वह क्रोधित हो जाएँ तो आपको बाईं ओर की समस्या होती है।

और बायाँ भाग इतना महत्वपूर्ण है कि यह दिखता नहीं है, यह खुद को व्यक्त नहीं करता है लेकिन यह आपके लिए कष्दायक है। 

बायाँ भाग आपका अपना है, यह आपके लिए कष्दायक है, आपके लिए तकलीफदेह है।

अगर अहंकार होता है तो दूसरे लोग परेशान होते हैं लेकिन अगर बाईं ओर कुछ है, तो आपको बुरा लगता है। तो किसी भी चीज के लिए बुरा मत मानें । 

मेरा मतलब है, कुछ लोगों को बुरा लगता है क्योंकि उन्हें पूजा के लिए देर हो गयी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यही समय है जब आपको आना था। कुछ लोगों को लगता है कि वे पूजा के लिए कुछ नहीं ला सके, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

मैं कभी नहीं कहती : “आप यह नहीं लाए, आपने ऐसा नहीं किया।” मैंने पूजा के बारे में कभी कुछ नहीं कहा, कभी भी – एक बार भी नहीं। 

“आपने यह गलत किया, या आपको यह गलत नहीं करना चाहिए था, यह करना चाहिए था।”

धीरे-धीरे आप सभी सीख गए हैं। आपको बताने की क्या जरूरत थी ? अन्यथा आपके सब के सिर में इस अपराधबोध का एक और बड़ा कुआं होता। 

तो आपको सीखना होगा, आपको पहले कभी भी पूजा नहीं मालूम थी, आप नहीं जानते कि पूजा का क्या अर्थ है, आप उस तरह का कुछ भी नहीं जानते हैं, यह कैसे आपकी मदद करती  है। 

तो, जो कुछ भी किया गया था, आपका उत्थान हो रहा है, आखिरकार बच्चे जब बड़े होते हैं तो वो गलतियाँ करेंगे ही । मेरा कार्य सिर्फ आपकी रक्षा करना है और जो मैं कर रही  हूं।

लेकिन अब दोषी महसूस करके खुद को नष्ट करने की कोशिश न करें । इसी कारण हम आज विष्णुमाया की पूजा कर रहे हैं। वह काली हैं,  जो श्री कृष्ण की बहन हैं और जो द्रौपदी थीं। वह वो हैं जो सदैव हमारी सुरक्षा के लिए हैं, और हमें यह बताने के लिए कि हमें बिल्कुल भी स्वयं को दोषी नहीं मानना चाहिए और जीवन का आनंद लेना चाहिए।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करें।