Shri Krishna Puja: Ascending beyond the Vishuddhi, The Viraata State

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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                       श्री कृष्ण पूजा                                                                            

                         विशुद्धि से आगे उत्थान,  विराट अवस्था 

 कबैला लिगरे (इटली), 16 अगस्त 1992।

आज हमने श्री कृष्ण की पूजा करने का फैसला किया है। हमने कई बार इस पूजा को किया है और श्री कृष्ण के अवतरण का सार समझा है, जो छह हजार साल पहले था। और अब, उनकी जो अभिव्यक्ति थी, जिसे वह स्थापित करना चाहते थे उसे इस कलियुग में किया जाना था। वैसे भी, यह कलियुग सतयुग के एक नए दायरे में जा रहा है, लेकिन बीच में कृत युग है जहाँ यह ब्रह्मचैतन्य , या हम कह सकते हैं कि ईश्वर के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति, कार्य करने जा रही है। इस समय, श्री कृष्ण की शक्तियों के साथ क्या होने वाला है – यह हमें देखना है।

श्री कृष्ण, जैसा कि मैंने आपको बताया, वह कूटनीति के भी अवतार थे। इसलिए वह चारों ओर बहुत सारी भूमिकाएँ निभाते है, और अंततः वह असत्य और झूठ को सामने लाते है; लेकिन ऐसा करने में वह लोगों का आंकलन भी करते है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि श्रीकृष्ण की कूटनीति की शक्तियां इस समय प्रकट होनी थीं, जब यह अंतिम निर्णय है। इसलिए अब हमने पहले जो कुछ भी गलत किया है, जो भी कर्म अज्ञान में किए गए हैं, या शायद जानबूझकर, उन सभी को वापस भुगतान किया जाएगा। उन पुण्यों को जो आपने पिछले जन्मों में या इस जीवन में किया है,  को भी पुरस्कृत किया जाएगा। यह सब श्री कृष्ण के सामूहिकता के सिद्धांतों के माध्यम से किया जाता है, जहां वह सामूहिक रूप से स्थिति को देखते हैं।

उदाहरण के लिए, जैसा कि मैंने पिछली बार भी आपको बताया था कि कोलंबस सौभाग्य से अमेरिका गया था; सौभाग्य से, इसलिए हम बच गए, अन्यथा हम यहां नहीं होते। और फिर ये स्पेनिश लोग, बुलफाइटर्स, वे गए और गरीब, निहत्थे लोगों से लड़ना शुरू कर दिया, जो उस जमीन के बहुत ही साधारण मालिक थे। लेकिन उन्होंने जाकर उन जमीनों पर कब्जा कर लिया, और उनमें से हर एक को मार डाला। इसलिए अमेरिका में आप उन मे से किसी को भी नहीं देख पाते हैं, बेशक, लेकिन यहां तक ​​कि दक्षिण अमेरिका में आपको कोलंबिया या बोलीविया जाना होगा, बड़ी ऊंचाइयों पर, वहां कुछ आदिवासियों को देखने के लिए; अन्यथा उनमें से अधिकांश समाप्त हो गए हैं।

इसलिए अब कलियुग में इन सभी बीमारियों ने उभरना शुरू कर दिया है। लेकिन सबसे अच्छा हिस्सा नशा है। ये ड्रग्स आपकी जानकारी के लिए बोलीविया में और कोलंबिया में बनाई गई हैं। आप ने उन्हें वहां धकेला, इसलिए अब आपके पास ड्रग्स हैं और बहुत अच्छी तरह से आप उनका बहुत स्वागत कर रहे हैं। लोग उनकी मदद करने के लिए निकारागुआ गए और इन सभी भयानक ड्रग्स को वाशिंगटन वापस ले आए; और हर संभ्रांत समाज में वे सिर्फ इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि सबसे अच्छी ड्रग कौन सी है, बिक्री कहां है और उन्हें कहां से ड्रग खरीदनी चाहिए। तो अब पूरे अमेरिका की दिलचस्पी है कि वे कितनी ड्रग आयात कर सकते हैं, और खुद को मारकर खुद को नष्ट कर सकते हैं। तो यह विनाश अंदर से शुरू हो गया है।

उसके बाद, जब मैं वहां गयी, तो मैंने उनसे कहा कि वे इन फ्रायडियन प्रथाओं में लिप्त न हों, बल्कि नैतिकता रखें, अन्यथा आपको समस्या होगी। तो उन्हें पहले एड्स था, दूसरे अब युप्पी की बीमारी, और सभी तरह की गुप्त बीमारियाँ। दस लोगों में से कम से कम एक व्यक्ति होगा जो उससे पीड़ित है, और बीस लोगों में से कम से कम एक व्यक्ति होगा जो सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित होना चाहिए। क्योंकि उन्होंने हर व्यक्ति, हर दूसरे देश को नर्वस कर दिया था, इसलिए अब उन्हें सिजोफ्रेनिया हो रहा है।

इस तरह हम इंग्लैंड में भी देख सकते हैं। अब इंग्लैंड से वे व्यापारियों, सामान्य व्यापारियों के रूप में भारत आए और हमें पूरी तरह से लूट लिया, बेशक, हम पर तीन सौ वर्षों तक शासन किया – जैसा कि मैं कहती हूं, यह उनके लिए ज्यादा ही आतिथ्य हुआ था  – और फिर वे हमें तीन टुकड़ों में बाँट कर छोड़ गए। और अब उनके अपने देश में समस्याएं, सभी प्रकार की हैं। सबसे पहले कोई भी खुद को अंग्रेज नहीं कहना चाहता; वे सभी खुद को वेल्श या स्कॉट्स या विशेष रूप से आयरिश कहते हैं। और लंदन में हमेशा हर समय एक बम का डर रहता है, और हमारे पहले कार्यक्रम के लिए भी बम का डर था। तो आप कल्पना कर सकते हैं इन अंग्रेजों की जिन्होंने हमें विभाजित करने की कोशिश की, वे स्वचालित रूप से आपस में विभाजित हैं, और अब एक दूसरे से लड़ रहे हैं। लेकिन अन्य समस्याएं भी हैं जैसे एड्स और अनैतिक जीवन, सब कुछ उसी तरह।

वैसा ही फ्रेंच के साथ भी। फ्रांसीसी ने अपनी शराब को सभी जगह बेचने की कोशिश की, और हर जगह अपनी भयानक बाथरूम संस्कृति लाए। अब वे खुद इससे पीड़ित हैं। उदाहरण के लिए, अधिकांश समय वे नशे में रहते हैं और उन्होंने सभी मर्यादाएं खो दी हैं, मेरा मतलब है कि उनके दिमाग में कोई संवेदना नहीं बची है। जैसे, एक गृहिणी एक वेश्या हो सकती है – कानून द्वारा अनुमति है। ऐसी तमाम बातें हो रही हैं। अब वे भुगत रहे हैं, और सबसे खराब वाला भुगतान वे कर रहे हैं, ये सभी देश जो स्वयं का कोई पार नहीं सोचते हैं, वहां मंदी है। यह श्री कृष्ण की शक्ति भी है, क्योंकि वह कुबेर हैं। वह वही है जो धन की शक्ति है उसने इन सभी देशों को बहुत सारी संपत्ति दी, और अब वे नहीं समझ पाते हैं कि, खुद के साथ क्या करना है। हम इन पचास वर्षों में देख सकते हैं कि कितनी चीजें हुई हैं, लेकिन विशेष रूप से ये बीस वर्ष वास्तव में उल्लेखनीय रहे हैं। पूरी दुनिया में आप यह पता लगा सकते हैं कि किसी तरह का पूरा बदलाव हुआ है, या कोई खुलासा। यहाँ तक कि, इटली में भी आप हर दिन देखते हैं कि, यह वेटिकन यहां उजागर हुआ है, या कुछ माफिया कनेक्शन हैं, या यह आप क्या कहते हैं, सरकार के लोग उजागर होते हैं। मैं कुछ नहीं कर रही हूं, मैं बस यहीं बैठी हूँ, लेकिन यह इस तरह से काम कर रहा है। जब से मैं यहां आयी हूं मुझे नहीं पता कि कितने लोग जेल गए हैं, भगवान जानता है।

(मुझे नहीं पता कि क्या वह मेरा गले के लिए चूसने वाली टिकिया नहीं लायी है। मैंने सुबह जल्दी नहाया था, इसलिए थोड़ा सा … यह है, श्री कृष्ण मुझे भरने की कोशिश कर रहे हैं!)

हम भारतीय भी कष्ट उठा रहे हैं, क्योंकि हमारे पिछले कर्म – जैसे हमारे पास जाति व्यवस्था थी। इसलिए अब भारत में जाति व्यवस्था हमारे लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है, जो हमारे लिए सबसे बड़ा कैंसर है। उस तरह, हर जगह ये बीस साल या इक्कीस साल रहे हैं … (मुझे पता नहीं है, क्योंकि सुबह भी मुझ पर प्रतिक्रिया …) तो इस तरह से हर देश में, आप धीरे-धीरे देखेंगे, हर देश को जैसे भी उन्होंने कर्म किये हैं उनके परिणामों का सामना करना होगा।

साथ ही श्री कृष्ण की अपनी ही शैली थी तो वे कभी भी जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं कर सकते थे। वह स्वयं एक ऐसी जाति में पैदा हुए थे, जो कि एक , जिसे आप कहते हैं कि एक दूधवालों की जाति है, और फिर वह निश्चित रूप से एक राजा बन गये; लेकिन शुरूआत में, वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह रहते थे। वह गायों को बाहर ले जाते थे, उनकी देखभाल करते थे और उन्हें घर लाते थे। अब यदि आप उनका जीवन देखते हैं तो आप पाएंगे कि वह बिल्कुल मानवीय है, जिस तरह से वह अपनी माँ को चिढ़ाते थे, अन्य महिलाओं को तंग करते थे। यह सब बेहद मानवीय और बच्चों जैसा है, और बेहद प्यारा है। लेकिन इसके पीछे भी एक बड़ा महत्व था। उदाहरण के लिए, श्री राधा – जैसा कि आप जानते हैं, वह महालक्ष्मी थीं – और महालक्ष्मी के रूप में वह अपने पैर डालती थीं, यमुना नदी में स्नान करती थीं, और महिलाएँ उसी नदी से जल लेती थीं, अपने सिर पर घड़े ले जाती थीं। अब श्री कृष्ण उनकी कुंडलिनी उठाना चाहते थे, इसलिए वह उन्हें पीछे से मारते थे ताकि पानी उनकी पीठ पर गिर जाए, और उस चैतन्यित जल से उनकी कुंडलिनी चढ़ेगी। यह उनकी बचकानी चाल थी, लेकिन इसका एक मतलब था।

एक और, जब हम उसे रास में देखते हैं – “रा” का अर्थ है ऊर्जा। राधा: “रा” “ऊर्जा” है, “धा” का अर्थ है “वह जो इसे धारण करता है” – इसलिए यह राधाजी हैं जिनके पास ऊर्जा थी। “सा” का अर्थ है “साथ”, इसलिए जब वे रास खेलते थे, तो ऊर्जा के साथ खेलने के अलावा कुछ नहीं था। और यह कि इस तरह वह गोप और गोपियों का सामूहिक जागरण करना चाहते थे, और उन्होंने यह किया। लेकिन फिर उन्हें यह छोड़ कर कंस से लड़ना पड़ा। अपने जीवनकाल में, एक बच्चे या बड़े होने के रूप में, उन्होंने सभी प्रकार की शैतानो और पूतना जैसे महिला शैतानों को दंडित वगैरह किया। उन्होंने यह सब किया और इस कलियुग में भी वे सक्रिय हैं। हमने देखा है कि कैसे धीरे-धीरे उन्होने एक-एक करके इतने सारे झूठे गुरु खत्म कर दिए हैं; कोई जो खुद को श्री कृष्ण कहता है, कोई ऐसा जो खुद को भगवान कहता है, कुछ और, कुछ और। उन्होने उन सभी को समाप्त कर दिया, उन्हें अच्छी तरह से उजागर कर दिया, और अब लड़ाई के लिए हमारे सामने बहुत कम लोग छोड़े गए हैं। वे खुद ही कांप रहे हैं और वे हमसे काफी भयभीत हैं, क्योंकि हम सच्चाई पर खड़े हैं।

तो अब, जब हमें श्री कृष्ण के बारे में सोचना है जो हमारे विशुद्ध चक्र में निवास कर रहे हैं। कई लोगों को बायीं विशुद्धि की यह समस्या है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम बहुत अधिक सामाजिक लोगों की तरह हैं। अब पश्चिमी समाज में, सामाजिक व्यवस्था इतनी अड़ियल है कि कोई भी उसके साथ गिर सकता है, या इसका आदी हो सकता है; अब शायद संस्कृति विरोधी विद्रोह, की वजह से बेहतर स्थिति है। लेकिन अन्यथा अगर आप एक चम्मच भी यहाँ से वहाँ रख दें तो, तो आप समाप्त हो गए हैं। यदि आप अपने भोजन की शुरुआत फिश नाइफ से नहीं, बल्कि साधारण नाइफ से करते हैं, तो आप समाप्त कर चुके हैं, आप ठीक शिष्ट नहीं हैं। और इन फ्रांसीसीयों ने शराब के बारे में एक बड़े विज्ञान का उपयोग करके और भी बदतर बना दिया है। इस शराब के लिए यह गिलास है, उस शराब के लिए वह गिलास है, और वह सब। इसलिए पूरे सामूहिकता को इतना कठोर संस्कारी बना दिया गया। यह भारत की तुलना में बहुत अधिक कठोर है। मुझे लगता था कि भारतीय सामूहिकता कुछ कठोर परिस्थितियों के कारण काफी कठोर है, लेकिन पश्चिम में आने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि इन लोगों के दिमाग में एक ऐसी जड़ता है, जिसे आप दूर नहीं कर सकते – जैसे आप कह सकते हैं, कैथोलिक  चर्च, या जहाँ भी यह है। लेकिन जब फ्रायड जैसे किसी व्यक्ति की बात आती है, जो बिल्कुल शैतान था, तो वे बस इन सभी जड़ताओं को छोड़ देते हैं और उसे अपना लेते हैं। मैं ऐसे किसी भी देश को नहीं समझ पाती जहाँ इतना प्रबल कैथोलिक चर्च है, वे कैसे फ्रायड का अनुसरण कर रहे हैं।

तो पहले जो यह सामूहिक कठोरता थी, क्योंकि शायद श्री राम एक बहुत ही नियमानुसार चलने वाले व्यक्ति थे, उनके कारण शायद सामूहिक कठोरता भारत में रही होगी। लेकिन पश्चिम में यह सब मानसिक है, बिलकुल मानसिक है। यदि आप इस तरह के बाल बनाते हैं तो आप बिलकुल सही हैं, यदि आप तेल लगाते हैं तो आप बिल्कुल लंपट हैं: सभी प्रकार के अज़ीब  विचार दिए गए थे और लोगों ने ऐसा करना शुरू कर दिया था। अगर आप तेल नहीं डालेंगे तो आप गंजे हो जाएंगे। यदि आप गंजे हो जाते हैं, तो उनके पास उनके विग का व्यवसाय होगा। तो पूरी बात धन-उन्मुख थी, और सब कुछ इस तरह तय किया गया था कि आपको ऐसा करना पड़ा ताकि वे अपनी चीजें बेच सकें। इंग्लैंड में, जैसा कि आप जानते हैं, टेलकोट है: यदि आपको रानी को मिलना है तो आपको टेलकोट पहनना होगा। मुझे नहीं पता कि आपको रानी को देखने के लिए टेलकोट क्यों पहनना होता है, लेकिन यह अनिवार्य है, और यदि आप नहीं पहनते हैं तो आपको मिलने की अनुमति नहीं है। इसलिए उन्हें ये टेलकोट वगैरह को एक दूकान से उधार लेना होगा , जो तंग भी हो सकती है, जो ढीली हो सकती है, और मुझे हर कोई चार्ली चैपलिन जैसा दिखता है! वे सीधे चल भी नहीं पाते |

तो पश्चिम में जो इस तरह की मूर्खतापूर्ण कठोरता आई है उसने वहां लोगों को वास्तव में बहुत कमजोर दिल का बना दिया है। यहां लोग इतने घबराए हुए हैं। यदि आप किसी महिला से कहते हैं कि “मैं आने वाली हूँ और तुम्हारे साथ भोजन करुँगी, तो वह एकदम ढह जाएगी।” भगवान जाने कि वह क्या सोचती है, मेरा मतलब है, यह लोगों की राय की परवाह है, या उसकी खुद की जड़ता है। लेकिन एक भारतीय, एक गृहिणी, यदि आप उसे बताते हैं कि आप आने वाले हैं, तो वह सबसे प्रसन्न व्यक्ति होगी। वह बहुत खुश होगी कि आप डिनर के लिए उसके घर आ रहे हैं। लेकिन यहां, यदि आप ऐसा भी कहें​​कि, “मैं शाम को आ कर और आप से मिलना चाहूंगा,” वे कहेंगे, “ठीक है, पब में आओ।” क्योंकि वे इतने कमजोर हृदय के हैं, वे अपने बारे में सुनिश्चित नहीं हैं; और मुझे लगता है, शायद यह पश्चिम में बनाये गये मानदंडों से आया है।

भारत में भी हमारे यहाँ ये बहुत सारे कर्मकांड थे जो बहुत गंभीर थे। जैसे हमारे पास लोग थे, जैनी जो अपने बालों को अपने हाथों से खींच कर उखाड़ते हैं। माना जाता है की वे किसी भी चाकू या किसी भी कैंची या किसी भी नाइयों का उपयोग नहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्हें अपने बालों को खुद उखाड़ना होता था। तो उनकी दाढ़ी से, उनके अंगो से, वे हमेशा बाल उखाड़ते थे। यह इतनी भयानक जड़ता में चला गया कि वे कहते हैं कि यदि आप सांस भी लेते हैं तो भी आप जीव हिंसा कर सकते हैं। इसलिए वे अपने मुंह के सामने किसी तरह का कपड़ा डालते हैं, और ऐसी सभी तरह की बकवास करते।

उस समय श्री कृष्ण आए। उनके अपने चचेरे भाई तीर्थंकर थे, आपको आश्चर्य होगा, नेमिनाथ। वह एक तीर्थंकर बन गया,  और इस बात ने श्री कृष्ण को इस बारे में सोचने के लिए मजबूर किया कि, हमारे पास इस तरह के मूर्खतापूर्ण कर्मकांड है। जैसे महिलाएं सुबह उठ कर, उनकी नींद में वे जाएंगी, थोड़ा पानी तुलसी में डालेंगी, इस चीज को करेंगी, वह चीज इधर-उधर डालेंगी। और छूत और अछूत भी; और आप इस से पानी नहीं ले सकते हैं, आप इसे नहीं खा सकते हैं, आप इस तरह से आना जाना नहीं कर सकते हैं – सभी प्रकार के प्रतिबंध, समय, सब कुछ। यह मुहूर्त अच्छा नहीं है, वह मुहूर्त अच्छा नहीं है, आपको यह नहीं करना चाहिए,  आपको वैसा नहीं करना चाहिए, इस हद तक कि हमारे देश का पूरा स्वतंत्रता आंदोलन भी इन कर्मकांडों के दायरे में था।

मेरे एक भतीजे थे जो अपने काम के लिए बॉम्बे आते थे। जब भी वे लखनऊ जाते, सिर मुंडा के आते। मैंने कहा, “क्या बात है?”

उन्होंने कहा, “हमारे परिवार में कई लोग हैं जो बूढ़े हैं, और जब वे मर जाते हैं तो हमें अपना सिर मुंडवाना पड़ता है।”

इसलिए हर बार जब वे वहां गए तो किसी की मृत्यु हो गई, इसलिए वे मुंडे सिर के साथ आए। इस तरह के भयानक अनुष्ठान मौजूद थे, और अब भी दक्षिण भारत में बहुत सारे अनुष्ठान हैं, भयानक कर्मकांड हैं, और वे इससे बाहर नहीं निकल सकते हैं, वे भयभीत हैं कि, अगर वे इससे बाहर निकलते हैं तो वे पापी हो सकते हैं, या वे नरक में जाएंगे। तो, भारतीय जड़ताएँ थी, जहाँ तक कठोरता का सम्बन्ध है ये धर्म के लिए थी, ताकि वे इस तरह ठीक से सब कुछ कर लें कि,  ऐसा किए बिना हम पकड़ा ना जाये। इसलिए सुबह जल्दी उठना और अनुष्ठान करना, बस बिना यह सोचे कि वे क्या कर रहे हैं। लेकिन पश्चिम में जीवनशैली और कुछ नहीं बस अडियल रवैया ही पूरी जीवनशैली है; कहीं भी स्वतंत्रता नहीं है। और फिर इन का हिप्पियों और अन्य लोगों, और उन सभी द्वारा विद्रोह किया गया, और उन्होंने इस के विरोध में लड़ा, और यह बात एक अन्य चरम सीमा तक चली गई। इसलिए एक अति से दूसरी अति पर वे चले गए।

अब, श्री कृष्ण के अवतरण ने इसे कैसे बदल दिया। जब श्री कृष्ण इस पृथ्वी पर आए, तो उन्होंने कहा कि यह सब एक लीला है, यह केवल एक नाटक है। चूँकि आप इसमें शामिल हैं इसलिए, आप यह नाटक नहीं देख पाते। लेकिन अगर आप उन्नत होते हैं – यदि आप पानी में हैं, तो आप पानी से डरते हैं, लेकिन अगर आप नाव में बैठ जाते हैं, तो आप पानी देख सकते हैं, और यदि आप तैरना जानते है तो आप उन लोगों को भी बचा सकते हैं जो पानी में हैं। इसलिए वह कहते हैं कि यदि आप साक्षी अवस्था विकसित कर लेते हैं, तो साक्षी स्वरूप, यदि आप उस अवस्था को विकसित करते हैं, तो आप पूरी चीज को एक नाटक के रूप में देखते हैं। कुछ भी आपको प्रभावित नहीं करता है। कुछ भी नहीं है, आप किसी भी चीज़ के बारे में परवाह नहीं करते हैं, आप  समस्या को ऊपर से देखते हैं; आप हैं, और आप समस्या को देखते हैं, और चूँकि आप इससे बाहर हैं, आप समस्या को हल कर सकते हैं। यह उनका महान अवतरण था, मैं कहूंगी कि, उत्थान की ओर पहला कदम यह सिखाया है कि,  आपको एक साक्षी बनना है। तुम्हें साक्षी बनना है।

अब सहज योग में देखते हैं। सहज योग में विभिन्न क्षेत्रों से, विभिन्न संस्कृतियों से, विभिन्न प्रकार के लोग आते हैं, क्योंकि दरवाजा सभी के लिए खुला है। अब अगर कोई भारतीय आता है, तो वह हर समय दूसरों के बारे में चौकस रहेगा, और कहेगा कि “माँ, यह आदमी ऐसा नहीं कर रहा है, यह आदमी वैसा नहीं कर रहा है। उसे जलक्रिया करनी चाहिए थी। ” वह हर समय दूसरों के दोष ढूंढेगा, यह कहते हुए कि यह आदमी ऐसा नहीं कर रहा है, और आप जानते हैं।

लेकिन पश्चिम में वे स्वयं के दोष खोजने लगते हैं। और मुझे पत्र मिलते हैं, कभी-कभी दस से बारह पृष्ठ, कबूल करते हुए कि, उन्होंने क्या गलत किया है। यह जानने के लिए कौन इच्छुक है, आपने कौन से गलत काम किए हैं? मेरा मतलब है, अगर कोई कमल पैदा हुआ है, तो कोई नहीं जानना चाहता है कि तालाब के अंदर कितनी गंदी चीजें हैं।

जैसे शुरुआत में भारत में कोई सहज योगी, आत्मसाक्षात्कार नहीं देता था| कोई किसी को छूता भी नहीं था। हुआ यूं कि मेरी गाड़ी फेल हो गई और मैं दो घंटे लेट हो गयी, सौभाग्य से, और एक बड़ी बैठक थी और उन्हें नहीं पता था कि क्या करें, इसलिए उन्होंने लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना शुरू कर दिया। और तब उन्हें एहसास हुआ कि वे बोध दे सकते हैं; अन्यथा वे किसी को नहीं छूते थे। अब आप जानते हैं कि आप क्या कर सकते हैं। आप यह भी जानते हैं कि आप जो कहते हैं वही होता है। जो आप चाहते हैं वह आपको मिल सकता है। कोशिश कोशिश कोशिश! लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप हमेशा आधे-अधूरे रहेंगे। अपनी शक्तियों का अनुभव लें, देखें कि आप कितने गतिशील हैं। इसके बारे में औपचारिकता में ना पड़े, बस इसे पूरी तरह से उपयोग करें, और आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपके पास कितनी शक्तियां हैं।

किसी ने मुझसे कहा कि “माँ, आपने गुइडो को सिद्धि दी है।” मैंने आप सभी को सिद्धि दी है। मैं कभी भेदभाव नहीं करती; लेकिन बस ऐसा है कि, वह बहुत बहादुर है, उसने इसे हर तरह से इस्तेमाल किया। वह हर तरह से इस का उपयोग करता है। यदि आप अपनी सिद्धियों का उपयोग नहीं करते हैं, तो मैं क्या कर सकती हूँ? मैंने आपको सभी सिद्धियाँ दी हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है, इसलिए प्रयास करें।

जैसे शुरुआत में बाबा मामा ने मुझसे कहा कि “मैं कैसे कोई कविता लिख सकता हूँ? मुझे लिखने का मन करता है लेकिन मैं डरा हुआ हूं, क्योंकि मैं निबंध भी नहीं लिख सकता था।” आप देखिये, मैं अपने सभी भाइयों के लिए निबंध लिखती थी, जब वे पढ़ रहे थे। मैं भाषाओं में बहुत अच्छी थी। लेकिन जैसा उसने कहा, और अब उसे देखो!

मैंने उससे कहा, “तुम आगे बढ़ो और जो कुछ भी लिखो वह लिखो।”

उन्होंने कहा, “मैं कुछ गलत लिख सकता हूं।”

“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।” इसे लिखो।” उसी तरह, कोई किसी चीज़ को चित्रित करना चाहता है, किसी को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि वे कैसे या किसी चीज़ की आलोचना करेंगे – बस पेंट करो । अगर आप गाना चाहते हैं, तो बस गाएं। यदि आप कुछ भी करना चाहते हैं, कोई भी अभिव्यक्ति करना चाहते हैं, तो बस उसे साहसपूर्वक करें। बड़े पैमाने पर जाओ। आप स्वयं आश्चर्यचकित होंगे कि कैसे आपने यह उपलब्धि पायी है और आप इसे कैसे कर रहे हैं। इसने कई कलाकारों के साथ काम किया है, आप जानते हैं। उस दिन देबू ने आपको अपने बारे में बताया, और भी कई लोग आपको बता सकते हैं कि उनके साथ ऐसा हुआ है।

तो अब पहली बात यह जानना है कि आपके पास शक्तियाँ हैं। अब उन पर विश्वास करो। स्वयं पर विश्वास रखें। यदि आप को बायीं विशुद्धि की समस्या है, तो यह विष्णुमाया काम नहीं करेंगी। लेकिन विष्णुमाया की तरह बनो। बस इस दोष भाव को छोड़ दो।कहो कि, “नहीं, मैं एक सहजयोगी हूँ। मैं एक सामान्य व्यक्ति नहीं हूं। ”

लोग कभी-कभी मुझसे बात करते हैं और मैं कहती हूं, “क्या आप जानते हैं कि आप क्या हैं?”

“क्या,माँ?”

“आप एक सहज योगी हैं।”

“ओह! मैं भूल गया।”

“अब जाओ और करो।”

और इस बायीं विशुद्धि की दूसरी शैली यह है कि, जिसे किसी व्यक्ति को समझना चाहिए, कि यह स्पष्टीकरण देने का प्रयास करता है। जैसा कि मैंने आपको कई बार बताया, आप किसी व्यक्ति को टेलीफोन मिलाने के लिए किसी को कहते हैं। तो, पहले वे कहेंगे, “हो सकता है वह वहां न हो, माता जी।”

“बाबा, आप टेलीफोन करो तो! पहले पता करो कि वह वहां है या नहीं।

लेकिन वे नहीं करेंगे। वे बस टालेंगे, और वह दूसरी बात है। विष्णुमाया कभी नहीं टालती, वह तो तुमने देखा ही है। एक बार जब उसे चमकना होता है तो वह चमकती है, चाहे वह कहीं भी हो, जो कुछ भी हो। तो उसी तरह हमें भी वैसा ही बनना है। हमें यह जानना होगा कि हम विशेष लोग हैं, हम चुने गए हैं, हम देवदूत हैं और हमने परमेश्वर के राज्य में प्रवेश किया है, और यह सब काम करेगा। सहज योग बेकार लोगों के लिए नहीं है।

जैसा कि मैंने आपको बताया, मराठी में तुकाराम ने कहा है, “एड़िया गबाल्याचे कम नवे।” यह कम -अक्ल और ढीले-ढाले लोगों के बस का काम नहीं है| इसका मतलब यह किसी ऐसे लोगों के लिए है, इसके लिए वैसी गुणवत्ता चाहिए होती है। आपको चरित्रवान लोगों की जरूरत है। मैं जानती हूं कि ऐसे कई नहीं हो सकते हैं, लेकिन भगवान के दायरे में कई लोगों के लिए, इन सभी बेकार लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। यह केवल कुछ खास के लिए है। ये सीटें आरक्षित हैं और आपको अपना बोध अब मिल गया है, किसी तरह। तो अब यह समझने की कोशिश करें कि इस विष्णुमाया सिद्धांत को व्यक्त करना होगा और प्रकट करना होगा, और आप स्वयं आत्मनिरीक्षण करें, “मैंने ऐसा किया है या नहीं?” डरो मत जैसाकि कुछ लोग कहते हैं कि “लेकिन हमारा अहंकार ऊपर आ जाएगा।” कोई बात नहीं आपको अपना अहंकार भी दिखाई देगा। यह श्रीकृष्ण के नाटक का दूसरा भाग है कि इस कृतयुग में तुम अपने अहंकार को देख पाते हो।

एक महिला थी जो कुछ महाराष्ट्रीयन महिलाओं के प्रति बहुत दयालु नहीं थी। तो मैंने उससे कहा, “तुम्हें दायीं बाजु पर ग्रसित हो।” उसने विश्वास नहीं किया। वह मुझे रोम में मिलने आयी थी, और वह दाहिनी ओर, पूरी तरह से नीचे गिर गई। तब उसे एहसास हुआ कि उसका दाहिना हिस्सा बिलकुल ठीक नहीं था। अब तो यह जानने के लिए कि, क्या आपको एक दायें या एक बायीं बाजू की तकलीफ है, बहुत अच्छी विधि है, ध्यान की है।

अब तीसरी स्थिति यह है कि जो कुछ भी आपके साथ गलत है उसे आपको स्वीकार करना चाहिए। यदि आप स्वीकार नहीं करते हैं, तो आपने स्वयं पर दया नहीं की है। यह इसका मुख्य भाग है कि, आपको स्वीकार करना चाहिए कि, “हां, यह मेरे साथ कुछ गलत है। मैं इस हिस्से में गया हूं मैं गलत हूं, मेरी विशुद्धि का, या उस हिस्से में मैं गलत हूं। इसलिए अब मुझे सुधार करना होगा।”

अब, दायीं विशुद्धि,- लोग हमेशा मुझे ठीक करने की कोशिश करेंगे। मैँ यह देख चुकी हूँ। यह उनके लिए बहुत आसान है। अगर मैं कुछ भी कहूं तो उत्तर देंगे, पहला शब्द “नहीं” । विभिन्न प्रकार के  “नहीं” हैं। कभी-कभी, “नहीं!” कभी-कभी यह “नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं!” वे मेरा विरोध करेंगे या अपने विचार रखने की कोशिश करेंगे, और तब फिर, उन्हें पता चलेगा कि यह गलत था; उन्हें यह नहीं कहना चाहिए था।

उदाहरण के लिए, अगर मैं कहूं, “मैंने इन चीजों को यहां पड़े हुए देखा है।”

वे बोले, “नहीं।”

मैंने कहा, “मैंने अपनी आंखों से देखा और एक बार जब मैं कुछ देख लेती हूं, तो आप जानते हैं, यह दर्ज हो जाता है, यह वहां है।”

“नहीं न।”

मैं कहती हूं, “ठीक है, बस पता लगाने की कोशिश करो।”

“यह वहां है! ऐसा कैसे कि, हम नहीं देख पाए? “

मैंने कहा, “क्योंकि तुम्हारी आँखों पर तुम्हारा ‘नहीं’ लिखा था, मुझे लगता है, तुम कुछ भी नहीं देख सके।”

और फिर वे अपने कान खींच लेंगे – वह सबसे अच्छा है। लेकिन अगर आप देखते हैं कि, “मेरी यह आदत है चीज़ों के लिए ‘नहीं’ कहने की ।” तो सबसे पहले मैं भी तुम्हारी परीक्षा लेती हूँ। मान लीजिए कि मैं कहती हूं, “अभी रात के नौ बजे हैं”, आप बस “हां” कहें, देखते हैं क्या होता है। देखने की कोशिश करो। आप देखते हैं, मैं आपकी कई बार इस तरह की परीक्षा करती हूं और फिर मैं देखती हूं कि कुछ लोग, अगर मैं ऐसा कहती हूं, “ठीक है, अगर ऐसा है, तो अगर माँ ने कहा है, तो यह ऐसा है।” और फिर यह बहुत अच्छी तरह से उनकी श्रद्धा को बनाना शुरू कर देता है। मैं उन्हें स्पष्ट रूप से देख सकती हूं कि वे वास्तविक श्रद्धा के दायरे में कैसे आ रहे हैं, और जब मैं कुछ बेतुका कहती हूं तो वे सिर्फ मुस्कुराएंगे। वे जानते हैं, “यह माँ है बस हमारी परीक्षा ले रही है”, आप देखिए, इसलिए वे बस मुस्कुराते हैं। वे कुछ नहीं करेंगे, लेकिन वे बस मुस्कुराएंगे। और फिर अगर ऐसा है और अगर वे नहीं जानते हैं, तो वे कहेंगे, “हाँ, यह होना चाहिए। माँ ने ऐसा किया होगा या कहा होगा।”

तो आपकी परीक्षा का समय है। आपको खुद को परखना होगा। जैसा कि मोहम्मद साहब ने कहा है कि आपके हाथ बोलेंगे और वे आपके खिलाफ गवाही देंगे। तो, आपके हाथों पर आपको पता चल जाएगा। अब ये हाथ श्रीकृष्ण की कृपा हैं। वे उसी विशुद्धि चक्र से बाहर प्रकट होते हैं, और जैसा कि आप जानते हैं कि श्रोणि तंत्रिकाएं pelvic nerves उस पर काम करती हैं। और दो चक्र हैं,एक ललिता दूसरे श्री चक्र, इन दोनों कन्धों की तरफ; यह भी  श्रीकृष्ण के हाथों में खेलते हैं। इन हाथों से हम वायब्रेशन महसूस कर सकते हैं। अब यदि आपकी दाईं विशुद्धि बहुत जकड़ी हुई है तो आप महसूस नहीं कर सकते हैं, यदि आपकी बाईं विशुद्धि बहुत जकड़ी है तो आप महसूस नहीं कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ है। आपको मिला है। आप सिर्फ अपने हाथों पर काम करें।

अब अपने हाथों को संवेदी बनाने के लिए, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप उनका उपयोग व्यर्थ की चीजों के लिए नहीं करें। यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपके पास विशेष हाथ हैं। ये हाथ वही हैं जिनके माध्यम से आप सामूहिकता फैलाते हैं। अब उदाहरण के लिए, इटली उदाहरण, यह: यहाँ लोग जब बात करते हैं, तो वे हाथ हिलाते चले जाते हैं … वे कुछ भी नहीं जानते हैं कि वे क्या कह रहे हैं, वे केवल अपने स्वयं के, अपने सभी हाव-भाव को जानते हैं, और बस वे खुद ही इसको समझा सकते हैं। ऐसे एक व्यक्ति के लिए जो उन्हें नहीं जानता, वे हर समय ऐसे ही, ऐसे ही करते  रहेंगे। इसलिए इसे कम किया जाना चाहिए। हर समय अपने हाथों का इस तरह अधिक हिला कर उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है, इस तरह, उस तरह। थोड़ा सा ठीक है फिर भी,  हाथों का उपयोग करते समय भी यह शिष्ट होना चाहिए, इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए, यह बहुत सांकेतिक और उपयोगी होना चाहिए। सिर्फ हाथों का प्रदर्शन उचित नहीं है। यह किसी तरह का एक सिद्धांत है, मुझे बताया गया था, कि आप अपने हाव-भाव अपने हाथों में लेकर बात करें। हिटलर जैसे लोगों के लिए सब ठीक है, लेकिन हमारे लिए नहीं। हमारे लिए,  हमें शिष्ट होना चाहिए। हमें, जब भी हमें कहना हो – उदाहरण के लिए, आप किसी को कुछ बताना चाहते हैं, तो ऐसा तर्ज़नी दिखा कर कहना नहीं चाहिए कि “यह करो।” यह श्री कृष्ण की उंगली है, आप इसे इस तरह उपयोग नहीं कर सकते। उन्हें (श्री कृष्ण को)करने दो, मतलब हर बात को सपोर्ट करना। यह बेहतर लगता है।

इन हाथों का उपयोग सामूहिकता के लिए किया जाना है। देखें, हम कहते हैं “नमस्ते” जब हम दूसरों से मिलते हैं। हजारों लोगों को हम “नमस्ते” कह सकते हैं। लेकिन मैं हाथ मिलाने के अभिवादन को पसंद नहीं करती हूँ, क्योंकि यह अच्छा नहीं है। हाथ मिलाने से कोई सामूहिकता नहीं बनती। इसके विपरीत, आपको सभी प्रकार की पिन और सुई की चुभन और सभी प्रकार की समस्याएं दूसरों से मिल सकती हैं। लेकिन जब आप लोगों से बात भी करते हैं, तो इन हाथों से ही आप उन्हें महसूस कर सकते हैं; इन हाथों से ही तुम अपने बच्चों की देखभाल कर सकते हो;  आप अपनी कोमलता, अपनी मिठास, इन हाथों से ही और मुंह से भी प्रदर्शित कर सकते हैं – जो निश्चित रूप से विशुद्धि का एक हिस्सा है, वह अलग है – लेकिन विशेष रूप से हाथ। आपके हाव-भाव और हर चीज में बहुत ही हार्दिक भावनाएं होनी चाहिए, और तभी इन हाव-भाव का कुछ अर्थ होता है।

अब जैसा कि आप जानते हैं सहज योग में आप एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं और आपस में वायब्रेशन बहने लगते है। और आप अपने धड़कनों पर तबला भी सुन सकते हैं, ताकि पता चले कि वे संचार हैं। तो ये हाथ, जो वास्तव में सामूहिकता की शुरुआत है – सबसे महत्वपूर्ण हैं, मैं कहूंगी कि सबसे महत्वपूर्ण चीजें हाथ हैं, जो आपकी सामूहिकता के लिए कार्य करती हैं। जहां तक ​​आपका संबंध है, आपके पीछे कई अन्य देवदूत और अन्य गण खड़े हैं। वे भी, जब भी आप कुछ संवाद करना चाहते हैं, तो वे आपकी मदद करते हैं, वे आपका काम भी बहुत अच्छे से करते हैं। तो जो कुछ भी आपके हाथ में या आपके हाथ से व्यक्त किया जाता है, वे तुरंत उठा लेते हैं।

जैसा कि आप जानते हैं कि विशुद्धि में सोलह पंखुड़ियाँ होती हैं, और सभी कान, नाक, कंठ, आँखें, सभी इसी द्वारा निर्देशित होते हैं। इसके अलावा इस विशुद्धि का उप-चक्र भी यही है, हंसा चक्र है। तो हमारे पास देखने के लिए ये आंखें हैं, संवाद करने के लिए आंखें हैं। शुद्ध आंखें शुद्ध प्रेम, पवित्रता का संचार करती हैं। पवित्र आँखों से आप लोगों को शुद्ध कर सकते हैं, पवित्र आँखों से आप दूसरों की मदद कर सकते हैं, शांति ला सकते हैं। आँखों की शुद्धि विशुद्धि और आज्ञा के माध्यम से होती है|

यहां दोनों चीजों को काम करना पड़ता है। नाक बहुत महत्वपूर्ण है। नाक को शुद्ध होना चाहिए, इस अर्थ में कि जो कुछ भी बुरी तरह से बदबूदार है उसे त्यागने में आपको सक्षम होना चाहिए, और जो भी सुगंधित है उसे स्वीकार करने में सक्षम होना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि नाक श्री कृष्ण की विशेषता है, मैं कहूंगी कि वे कुबेर हैं, और कुबेर ने देवी को नाक दी है। कुछ लोगों को सिर्फ अस्वीकृति दिखाने के लिए अपनी नाक सिकोड़ने की बुरी आदत होती है या ऐसा ही कुछ करते रहते हैं। यह बहुत गलत है, क्योंकि तब तुम अपना अपमान कर रहे हो, तुम अपनी कुबेर शक्ति का अपमान कर रहे हो। इसलिए आपको अपनी नाक को गरिमापूर्ण तरीके से रखना होगा। यह एक गरिमामय नाक होना चाहिए। इसका उपयोग कुछ ऐसा करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जो गरिमा विहीन है, या जो अवमानना ​​व्यक्त करता है।

तो आपके दांत बहुत महत्वपूर्ण हैं। आपके बत्तीस दांत हैं, देखिए, कृष्ण की सोलह शक्तियां दो में विभाजित हैं, आप बत्तीस कह सकते हैं। ये आपके दोनों तरफ के दांत हैं। दाहिना पक्ष ऊपर और नीचे बायां पक्ष है। यह एक ऐसी चीज है जिसकी हम पश्चिम में बहुत उपेक्षा करते हैं, मुझे कहना होगा। भारत में यह नहीं है। हम इसकी बहुत अधिक उपेक्षा करते हैं, और इस बात का हमें ध्यान रखना है। उपेक्षा का कारण यह है कि, मैं कहूंगी, आलस्य है, अवश्य ही आलस्य है, लेकिन कम से कम दो या तीन बार आपको अपने दांतों को ब्रश करना होगा। महत्वपूर्ण है, कि मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण ब्रश को बदलना है। इसके अलावा आपको अपने मसूड़ों को मालिश करने के लिए मक्खन, या नमक और तेल का उपयोग करना होगा। अगर आप अपने मसूड़ों को ठीक से मालिश करेंगे तो आपको कभी भी दांतों और मसूड़ों की समस्या नहीं होगी। इसके अलावा, हर बार शाम को आपको अपने दांतों को फिर से ब्रश करना चाहिए। मैंने कई लोगों को देखा है जो कार्यक्रम में शाम को मेरे पास आते हैं, उनके मुंह से ऐसी भयानक गंध निकलती है। ऐसा नहीं है कि यह एक बीमारी है, लेकिन बात यह है कि उन्होंने अपने दांत साफ नहीं किए हैं। ऐसे भी लोग हैं जो अपने दाँत ब्रश तक नहीं करते हैं और नाश्ता करना शुरू कर देते हैं। मुझे नहीं पता, मुझे लगता है, यह अलग ही सिद्धांत शुरू हुआ था,  कि आप अपना खाना बिना ब्रश किए खा सकते हैं। दांत बहुत महत्वपूर्ण हैं, और उनकी देखभाल करनी चाहिए। यह आपके विशुद्धि के सभी गुण दांतों पर निर्भर करते है। इसलिए दांतों की सही तरीके से देखभाल करनी चाहिए, और दांतों को कभी भी भींचना नहीं चाहिए और कभी भी दांतों के माध्यम से गुस्सा प्रकट नहीं करना चाहिए। यह बहुत बुरी आदत है। यह भी अभिव्यक्ति का एक बुरा तरीका है जो मैंने देखा है कि, अगर उन्हें कुछ पसंद नहीं आता है, तो वे ऐसे भाव दांतों से प्रकट करके चले जाते हैं। यह बहुत गलत बात है। इस तरह के हावभाव से बचना चाहिए, और यह आपके दांतों के लिए बहुत खतरनाक है। तो आज का व्याख्यान अधिकतर चिकित्सा सम्बन्धी हुआ है, मुझे कहना होगा।

आध्यात्मिक रूप से संपन्न व्यक्ति के पास एक ऐसी अभिव्यक्ति होती है जो कभी आक्रामक नहीं हो सकती। वह दिखने में खुबसूरत नहीं भी हो सकता है, बहुत आकर्षक व्यक्तित्व का नहीं भी हो सकता है, लेकिन चेहरे पर अभिव्यक्ति बिल्कुल संत वाली होती है। यह भी श्री कृष्ण की ही कृपा है। मैंने लोगों को आत्मसाक्षात्कार के एक साल बाद देखा है, और मुझे आश्चर्य हुआ कि उनके चेहरे कैसे बदल गए, कि मैं उन्हें पहचान नहीं पायी कि, वे कौन थे। सब कुछ बिल्कुल नम्र, कोमल, शांतिपूर्ण और बहुत आनंदमय हो जाता है। श्री कृष्ण के सभी गुणों को आपके चेहरे पर व्यक्त किया जा सकता है। कभी-कभी देखने में आप नटखट हो सकते हैं। चेहरे पर कितने ही भाव आ जाते हैं, जो आपको एक बहुत ही प्यारा एहसास देते हैं।

लेकिन कुछ लोगों को हर समय दर्पण में देखने की आदत होती है, जो कि बहुत गलत है, क्योंकि यह आपको एक प्रकार का अजीब सा अहंकार देता है। अपने चेहरे को देखने से बेहतर है कि श्रीकृष्ण का फोटो देखें, ताकि आपका चेहरा श्रीकृष्ण जैसा हो जाए। इसके बजाय आप हर समय आईने में देखना शुरू करते हैं। आप का क्या बनेंगे, ईश्वर ही जानता है, क्योंकि हो सकता है अगर आप अपने अतीत में जाते हैं, तो ईश्वर ही जानता है कि आप क्या बनेंगे। इसलिए मैं मनोचिकित्सकों की भी शुक्रगुजार हूं कि उन्हें आत्म- मुग्धता पसंद नहीं है। बल्कि हर समय अपना चेहरा आईने में देखना बहुत खतरनाक है, बहुत खतरनाक है। यह एक बहुत ही अजीब व्यक्तित्व का निर्माण करता है, कि आप अपने आप से कहना शुरू करते हैं, “ओह, मैं नेपोलियन हूँ।” तो आप नेपोलियन बन जाते हैं, और नेपोलियन की तरह व्यवहार करने लगते हैं। अगले दिन आप एक नेपोलियन को बाथरूम से बाहर निकलते हुए पाते हैं!

इसलिए व्यक्ति को अपने स्वयं के बजाय अपने अंदर स्थित स्व, जो आपकी आत्मा है के प्रति सावधानी पूर्वक अधिक चित्त और महत्व देना होगा। और अगर आप उस तरफ ध्यान दें तो ये सब चीजें इतने खूबसूरत तरीके से घटित होंगी। साथ ही बालों की देखभाल श्री कृष्ण करते हैं। अब आप देखिए, आप जानते हैं कि वह मक्खन जैसी किसी भी चीज़ के बहुत शौकीन है, इसलिए आपको मक्खन या तेल या अपने बालों में कुछ लगाना होगा। यदि आप इसे नहीं डालते हैं तो आप गंजे हो जाएंगे। क्या कर सकते हैं – मेरा मतलब है कि आखिर यह एक कर्म फल है। अगर आप तेल नहीं डालेंगे तो आप गंजे हो जाएंगे। तो तेल डालना पड़ता है, और पश्चिम में पहले हमेशा तेल डाला जाता था। मैं ये सभी पुरानी फिल्में वगैरह देखती हूं, वे सभी तेल लगे लोग हैं। लेकिन अब निश्चित रूप से, यदि आप दिन में तेल नहीं डालना चाहते हैं तो आप इसे धो सकते हैं, लेकिन सप्ताह में कम से कम एक बार आपको अपने सिर पर तेल लगाना चाहिए।

श्री कृष्ण के सितारे शनि हैं। वे कहते हैं कि अगर वह किसी के पीछे पड़ जाए तो कोई नहीं बचा सकता। यदि श्री कृष्ण किसी के पीछे पड़ जाते हैं, तो फिर किसी को बचाया भी नहीं जा सकता है।

इसी तरह अगर शनि किसी के पीछे पड़ जाए तो वह व्यक्ति समाप्त हो जाता है, तो हम कहते हैं कि यह कुछ समय के लिए होता है, यह आपके पीछे सात साल होता है, या कभी-कभी ढाई साल आप के पीछे पड़ता है| तो यह श्रीकृष्ण का शनि है, यह हमारे भीतर एक गुण है कि, मान लीजिए कोई हमें परेशान करता है या कुछ करता है, तो हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। अब यह श्री कृष्ण नीति, यह, हम कह सकते हैं, श्री कृष्ण का स्वभाव इस पर काम करेगा। यह इस सर्वव्यापी शक्ति को सूचित करेगा, और इसके माध्यम से यह पुरुष या यह महिला, या यह पार्टी या यह संगठन जो हमें परेशान करने की कोशिश कर रहा है, शिकार हो जाएगा, जबकि हम कुछ भी नहीं कर बस बैठे रहेंगे। उनका तब तक पीछा किया जाएगा जब तक कि, वे समुद्र में कूद नहीं जाते। स्वचालित रूप से यह होगा। लेकिन आपको यह जानना होगा कि आपके पास श्री कृष्ण की शक्तियाँ हैं, जिनके द्वारा यदि वह किसी के पीछे पड़ जाते हैं, तो उसे कोई नहीं बचा सकता है। वह हर तरफ नाटक खेलने वाले अंतिम व्यक्ति है, लेकिन वह माफ नहीं करते है। वह क्षमा में विश्वास नहीं करते। वह कहते है, “अब, आपने यह काफी कर लिया था।” वह खुद को लटकाने (सज़ा देने )के पहले एक बड़ी, बड़ी लंबी ढील देते है, लेकिन वह कभी माफ नहीं करते। एक बात निश्चित है, वह कभी क्षमा नहीं करते। जैसा कि आपने महाभारत में घटनाओं में उनका न्याय देखा होगा, आप देखते हैं, वह क्षमा नहीं करते है। वह कहते है, “आपको भुगतान करना होगा। आपको इसके लिए भुगतान करना होगा।” सिवाय तब, जब तुम पार हो। यदि आप सहज योगी बन जाते हैं, यदि आपने विशुद्धि का पारगमन कर लिया है, तो वह आपके साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकते है। लेकिन अगर आपने नहीं किया है, अगर कोई उत्थान नहीं है तो आपको बचाया नहीं जा सकता है, तो आपको उससे बचाया नहीं जा सकता है।

वे कहते हैं कि एक बार मोहम्मद गज़नी हमारे देश को लूटने आए – मेरा मतलब है, यह गाँव के लोगों की कहानी है। और वहाँ उसने हमारा एक बड़ा मंदिर सोमनाथ लूट लिया, जिसमें बहुत सारा सोना, आभूषण, सब कुछ था। तो ये जो ब्राह्मण लोग थे, तुम देखो, इन सभी लोगों से पैसे ले रहे थे और उन्हें लूट रहे थे, और उन्हें मंदिर में डाल कर उनका इस्तेमाल कर रहे थे, और बाकी लोग बहुत गरीब थे। तो यह उनमें एक तरह की प्रतिक्रिया थी, और कहानी जो वे इस तरह बताते हैं: तो यह मोहम्मद गज़नी ने सोमनाथ को लूटा, महादेव का मंदिर है। अब महादेव को कभी किसी आभूषण या किसी चीज की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन इन ब्राह्मणों ने यह सब वहां रख दिया था। तो हनुमान ने देखा कि महादेव मंदिर से बाहर निकल कर भाग रहे हैं, इसलिए हनुमान उनके पीछे दौड़े। फिर एक बिंदु पर महादेव बैठ गए, और हनुमान भी आ गए।

उन्होंने कहा, “आप देवताओं के देवता हैं। क्यों भाग रहे हो? आप किससे डरते हो?”

उन्होंने कहा, “आप इस मोहम्मद गजनी को नहीं जानते हैं?” 

उन्होंने कहा, “नहीं, मुझे नहीं पता।”

“ठीक है, एक पेड़ के पीछे छिप जाओ।”

वे एक पेड़ के पीछे छिप गए। तो यह मोहम्मद गजनी आया और बैठ गया – यह मैं लोक कथा बता रही हूं,  ग्रामीण लोग बताते हैं – उस पेड़ के नीचे बैठ गए। और महादेव ने हनुमान की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा, “यह भयानक,  श्री कृष्ण है, अगर वह किसी के पीछे पड़ जाए, तो किसे बचाया जा सकता है? मेरी नाक के नीचे ये ब्राह्मण पैसा बना रहे थे और वह सब, इसे सोमनाथ मंदिर में रख रहे थे, जो नहीं करना था। मैं कुछ नहीं कर सका था, इसलिए वह आया, और मेरे पीछे इस व्यक्ति से तो मैं भी नहीं बच सकता हूँ, इसलिए मैं मंदिर से भाग रहा हूं। तो यह ग्रामीणों द्वारा दी गई कहानी है, लेकिन जो यह दर्शाती है कि यदि श्री कृष्ण किसी के पीछे पड़े हों, तो कोई भी उस व्यक्ति को नहीं बचा सकता है, उसे भागना होगा; क्योंकि उनके पास इतनी सारी तरकीबें और इतनी शैलियाँ हैं कि आप उनसे बाहर नहीं निकल सकते। वह अपने दिमाग का कई तरह से उपयोग करेंगे, और वह उस व्यक्ति को ठीक करेंगे जो आपको परेशान करने की कोशिश कर रहा है।

तो आपको श्री कृष्ण की शक्तियों में पूर्ण श्रद्धा होना चाहिए जो आपके भीतर है, जो अभी जागरूक हो रही है। और यह भी कि अगर आप इससे पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं, तो वह परेशान नहीं करेंगे ; लेकिन अगर आपको बायीं विशुद्धि की समस्या है तो वह आपको परेशान करेंगे, जरूर। यदि आपको बायीं विशुद्धी है तो, श्री कृष्ण आप को निश्चित रूप से परेशान करेंगे, और सावधान रहें। तो अभी अपनी बायें विशुद्धि से छुटकारा पायें। यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि तब श्री कृष्ण आपकी परीक्षा लेंगे और आपको इतना दुखी करेंगे कि आपको पता नहीं चलेगा कि क्यों। “माँ, तुम देखो, मैंने यह किया, मैंने यह पूजा की, मैंने यह किया, चलो अब देखते हैं, मेरे परिवार में यही स्थिति है। यह ऐसा हुआ था।”

“ठीक है, क्या आप कैथोलिक हैं?”

“हाँ।”

“दोषी महसूस करते हो?”

“हाँ।”

“तो लो।”

मैं क्या कर सकती हूं? श्री कृष्ण को किसी के द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। वह जो कुछ भी उचित समझते है वह करते है और माँ की तुलना में वह वास्तव में बहुत अधिक दंडित करने वाले है, मैं आपको बता सकती हूं। ऐसा कहते हैं कि वह देवी अति रौद्रा है, अति सौम्या: वह वह है जो बहुत सख्त है और बहुत, बहुत नरम, लेकिन एक बिंदु तक। वह (श्री कृष्ण) नहीं है। कोई उन्हें समझा नहीं सकता। एक बार जब आप उसके नियंत्रण में आ जाते हैं, तो यह वह सुनिश्चित करेंगे कि, आपको दाएँ, बाएँ, दाएँ  किया जाता है, किसी भी तरह से वह आपको ठीक कर देंगे। तो एक बात यह है, कि आपको यह सुनिश्चित होना चाहिए कि आपके पास आपका विशुद्धि चक्र ठीक होना चाहिए, सबसे पहले, और दूसरों पर भी श्रीकृष्ण के गुण अभिव्यक्त करना चाहिए। तब, आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। वह आपकी, हर चीज की देखभाल करेंगे, और इसे ठीक करेंगे। लेकिन बायीं विशुद्धि पश्चिम की बीमारी है। मैं भी आप सभी से इतना महसूस करती हूं कि मुझे कभी-कभी भारत भाग जाने का मन करता है, क्योंकि भारत में कोई भी दोषी महसूस नहीं करता है। वे दोषी महसूस करने में विश्वास नहीं करते। “वहां क्या है? हमने किसी की हत्या थोड़े ही की है। हम क्यों दोषी महसूस करें?”

यहाँ सभी के साथ यह एक बीमारी है, “मैं दोषी महसूस करता हूँ।” मुझे नहीं पता कि इस विचार को किसने पेश किया है, शायद यह कैथोलिक चर्च, लेकिन यह बहुत आगे तक चला गया।

तो हम विराट की बात पर आते हैं, जो यहाँ (कपाल के उपरी हिस्से की तरफ इशारा )है उससे पहले हमें हंसा चक्र को पार करना होगा; इसके बिना आप विराट बिंदु तक नहीं पहुंच सकते। तो हंसा जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, विवेक है, दिव्य विवेक है, जो आपके भीतर होना चाहिए। एक बार जब आप इसे विकसित कर लेते हैं, तो आप गलतियाँ नहीं करते हैं। आप कभी भी गलती नहीं करते हैं – इस अर्थ में गलतियाँ कि आप उन चीजों को नहीं करते हैं जो फिर से आप पर ही वापस से धकेल दी जाती हैं या जिसके लिए आपको भुगतना पड़ता है। यह सिर्फ एक बहुत ही सीधा जीवन है। “यह तो है? यह तो है।” इस विवेक से आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसकी पूरी समझ आती है। और यदि वह स्थापित हो जाता है, तो विवेक स्थापित हो जाता है। कई सहज योगियों में, मुझे कहना होगा, विवेक उनके बाएं विशुद्धि की समस्या के साथ भी आया है। भले ही उन्हें बायीं विशुद्धि की समस्या हो लेकिन फिर भी उनके पास यह विवेक है, वे जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। उस दिव्य विवेक से पहली बात यह होती है कि लोग आपसे प्रभावित हो जाते हैं। यह वास्तविक सामूहिकता है, यह सामूहिकता को प्रभावित करती है। एक व्यक्ति जिसके पास दिव्य विवेक है, लोग तुरंत उस व्यक्ति के विवेक को देखते हैं और सोचते हैं, “अब देखिए, इस आदमी को, वह ऐसा कैसे हो सकता है? वह उम्र में बहुत छोटा है, वह कैसे हो सकता है? वह इतना छोटा बच्चा है, वह कैसे हो सकता है?”

तो यह ईश्वरीय विवेक, जो यहाँ, हंसा चक्र की विशेषता है, जब यह प्रकट होना शुरू होता है तो स्वचालित रूप से आप प्रभावित करते हैं, स्वचालित रूप से आप सामूहिकता को प्रभावित करते हैं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है जो किसी व्यक्ति को जानना चाहिए। आत्मनिरीक्षण करते समय, आप बस देखते हैं कि आपने दिव्य विवेक का यह गुण विकसित किया है या नहीं। उदाहरण के लिए, बहुत से लोग हैं, जब वे कार्यक्रम में आते हैं, तो वे आते हैं और मुझे बताते हैं, “माँ, किसी सहज योगी ने मुझे बताया कि, ‘तुम्हारे अंदर भूत है’। क्या मुझ में कोई भूत है?”

मैंने कहा, “बिल्कुल नहीं। आप में कोई भूत कैसे हो सकता है? ” हो भी सकता है कि, वह ग्रसित हो, लेकिन उसे अभी बताने में उचित विवेक नहीं है, बल्कि उसे दूर करने में है।

तो दिव्य विवेक आपको पूरी समझ देता है कि दूसरे व्यक्तित्व को संभालने का तरीका क्या है, सामूहिकता को संभालने का तरीका क्या है, दूसरों से कैसे बात करें, उन पर सही चीजों का प्रभाव कैसे डालें। यह बहुत सारी दिशाओं में एक बहुत ही विस्तृत अभिव्यक्ति है। यदि आपके पास कोई दैवीय विवेक नहीं है, तो आप वह बोलना शुरू करेंगे जो आपको नहीं बोलना चाहिए, आप उस समय कहना शुरू करेंगे जब आपको नहीं कहना चाहिए। मेरा मतलब है, आपको किसी भी दिशा का भान नहीं रहेगा। अतः ईश्वरीय विवेक का होना बहुत आवश्यक है, जिसके लिए आप जानते हैं कि शारीरिक रूप से और साथ ही मानसिक रूप से भी आध्यात्मिक रूप से हंसा चक्र को ठीक रखना चाहिए। मेरे हंसा में – हमने एक पूजा की थी जहां मैंने इसके बारे में बात की थी।

आखिरी है विराट: यही वह अवस्था है जहां आपको पहुंचना है। विराट यहाँ सामने है [आज्ञा के ठीक ऊपर], जैसा कि आप जानते हैं। और मैं आश्चर्यचकित रह गयी जब मैं नेपाल गयी, जो वहां शिव का मंदिर है: शिव की पूजा करने के बावजूद वे सभी यहां [आज्ञा के ठीक ऊपर] कुमकुम लगा रहे थे। तो मैंने सोचा कि वे नहीं जानते कि वे क्यों लगा रहे हैं, क्योंकि अगर आप शिव की पूजा करते हैं तो भी आपको यहां [आज्ञा के ठीक ऊपर] विराट की पूजा करनी चाहिए। वे इसे यहाँ [आज्ञा पर] नहीं लगाते हैं, बल्कि यहाँ [आज्ञा के ठीक ऊपर]। चूँकि वे शत-प्रतिशत केवल शिव उपासक हैं, तो वे इसे यहाँ [आज्ञा के ऊपर] क्यों लगाते हैं? क्योंकि जो कोई जानता था, जो ज्ञानी थे, उन्होंने उन्हें बताया है कि यह विराट का स्थान है।

एक बार जब आप विराट में आ जाते हैं, तो आपके अलग होने या अलगाव करने के सभी विचार दूर हो जाते हैं। आपके पास अपने जाति, गाँव या अपने शहर की, राष्ट्रीयता के कोई और विचार शेष नहीं रहते हैं। उस अवस्था में आप किसी स्थान के नहीं होते। आप हर जगह से संबंधित होते हैं, और आप हर जगह से संबंधित नहीं भी होते हैं। ऐसी स्थिति तब आती है जब आप किसी विशेष भोजन के पीछे लालायित नहीं रहते हैं, आप किसी विशेष प्रकार के लोगों को ही पसंद नहीं कर रहे होते हैं, आप किसी भी परिस्थिति में, किसी भी परिवार में, किसी भी तरह के लोगों में खुद को समायोजित कर सकते हैं। आप शराबी के साथ रह सकते हैं। मेरा मतलब है कि मैं शराबी के साथ रही हूँ – “रही हूँ ” से तात्पर्य है कि,  मैंने कम से कम ऐसे कई सारे लोगों से हाथ मिलाया है। आप किसी भी तरह के व्यक्ति के साथ हो सकते हैं। कुछ भी आपको परेशान नहीं करता क्योंकि आप विराट अवस्था में हैं; क्योंकि सब कुछ विराट द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, और आपको कुछ भी महसूस नहीं होता है। व्यक्ति किसी भी प्रकार का हो, आप इस की परवाह नहीं करते हैं। विराट को भुगतना है, आपको नहीं, और यही वह सबसे अच्छी अवस्था है जहां मैं चाहती हूं कि आप सभी पहुंचें, और बिल्कुल स्वतंत्र हो जाएं। कुछ भी आपको आकर्षित नहीं कर सकता है, कुछ भी आपको प्रभावित नहीं कर सकता है, कुछ भी आपको विचलित नहीं कर सकता है, लेकिन आप अपने आत्म-सम्मान और अपने बारे में समझ पर खड़े हैं, कि आप एक सहज योगी हैं और आप इस शक्ति से जुड़े हुए हैं, और आप ईश्वर के साम्राज्य के एक नागरिक हैं।

विराट अवस्था में इसके बारे में कोई संदेह शेष नहीं रहता है, बेशक, क्योंकि आप पूरी तरह से पूर्ण के अंग-प्रत्यंग बन गए हैं, और आप कहीं भी प्रभावित कर सकते हैं। यदि इस उंगली में चोट लगी है, तो यह दूसरी उंगली इसे महसूस कर सकती है। उसी तरह ऐसा व्यक्ति हर जगह महसूस किया जाता है, और न केवल वह, बल्कि वह व्यक्ति हर जगह प्रभावी हो सकता है। विराट तक पहुंचने की उस अवस्था के लिए, किसी को प्रयास करना चाहिए कि, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, “या नेति नेति वचनैह निर्गमा अवोचू “। आपको यह कहते जाना होगा कि, “यह मेरी बहन नहीं है। यह मेरा भाई नहीं है। वे सब मेरे भाई हैं। वे सभी मेरी बहनें हैं। मैं उन्हें अपनी बहनों और भाइयों की तरह ही प्यार करता हूं। यह मेरा परिवार नहीं है। पूरा सहज योग मेरा परिवार है।” सरे चित्त की गति इसी प्रकार की होना चाहिए। “यह केवल मेरा नहीं है, यह हर किसी का है यह सभी का है। सबका अधिकार है। ” उस तरह की चीज, जब यह व्यक्ति से विकसित होने लगती है, जिसे हम संस्कृत में “वेष्टी से समष्टि ” कहते हैं, वे कहते हैं “वेष्टी से समष्टि “, व्यक्तिगत से सामूहिकता की तरफ। और तब ऐसा व्यक्तित्व किसी भी तरह के सामूहिक कार्य के लिए सबसे प्रभावी होता है।

मुझे लगता है कि आज के लिए आपको विशुद्ध चक्र के बारे में जानना पर्याप्त है। मेरा मतलब है, मैंने इसके बारे में हजारों और हजारों बार बात की है, और अब यह उन पक्षों में से एक है जो मैं कहना चाहती थी, क्योंकि मुझे लगता है कि अभी भी ऐसे लोग हैं जो यह नहीं समझते हैं कि उन्हें विशुद्धि से ऊपर उठना होगा। अन्यथा, यदि वे विशुद्धि के आगे उत्थान नहीं करते हैं तो वे कभी भी उचित सहजयोगी नहीं हो सकते, वे हमेशा अधपके रहेंगे। अतः हमें विशुद्धि से ऊपर, विवेक भाग तक उत्थान का प्रयास करना चाहिए। फिर उस अवस्था को पाकर हम सहज योग पर कभी संदेह नहीं कर सकते, कभी संदेह नहीं कर सकते, और इस तरह हमारे पास संदेह रहित निर्विकल्प जागरूकता आ सकती है।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करें!

ठीक है। उस तरह श्री कृष्ण पूजा बहुत छोटी है, इतनी लंबी बात नहीं।