Shri Mahalakshmi Puja: Keep your Mahalakshmi principle intact

Barcelona, Can Mas-casa de colónies (Spain)

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श्री महालक्ष्मी पूजा – अपना महालक्ष्मी तत्व बनाए रखें 

बार्सेलोना, कैन मास-कैंप हाउस (स्पेन), सितंबर १२, १९९२ 

आज हम यहाँ महालक्ष्मी पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। महालक्ष्मी तत्व हमारे अंदर एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। जब देशों में, परिवारों में, या व्यक्तिगत जीवन में, हम देखते हैं – (श्री माताजी ने स्पॅनिश में अनुवाद करने के लिए कहा)…

ये महालक्ष्मी तत्व हमारे उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। ये तत्व हमारे अंदर है, पर ये तब तक जागृत नही होता जब तक हम एक परिस्थिती को प्राप्त ना कर लें (और) जहाँ हमें लगता है कि हम अब तक अपने जीवन से संतुष्ट नही हैं। जैसे अब  पश्चिमी देशों में अब आप पर लक्ष्मी तत्व की कृपा रही, इस अर्थ में कि समृद्धि है, लोग ठीक हैं, सबके के पास भोजन है, और दैनंदिनी जीवन में सब पर्याप्त है। पर वो देश जो गरीबी से त्रस्त हैं या जिनकी स्थिति बहुत खराब है, जैसे आप कह सकते हैं कि यूगोस्लाविया इन दिनों बहुत बुरी स्थिति में है, या सोमालिया, जो बहुत ही गरीब है, और इनकी कोई आध्यात्मिक पृष्ठभूमि भी नही है – तो उनके लिए इस जीवन का अर्थ केवल किसी तरह से जीवित बचे रहने में ही है। जीवन उनके लिए संकट से भरा हुआ है, और जीवन का अस्तित्व बनाए रखने में भी उन्हें संकट है। पर संपन्न देशों में ऐसा होता है, कि लोगों को यह लगने लगता है कि अब हमारे पास धन है, जीवन की सारी सुविधा है, पर तो भी ये हमें जीवन का आनंद नहीं दे रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जहाँ आध्यात्म की पृष्ठभूमि शुरुआत से रही है, वो एक योग-भूमि है, और लोग जानते हैं कि हमें उत्थान प्राप्त करना है – वही हमें प्राप्त करना है। आपको किसी भारतीय को ये नही बताना पड़ता कि तुम्हारे जीवन का ध्येय क्या है। वो कहेगा मुझे अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है। वे निर्धनता या तथाकथित वस्तुओं के आभाव का बुरा नही मानेंगे क्योंकि उनके लिए वो इतना महत्वपूर्ण नही है। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है मोक्ष की प्राप्ति, उनको उनका आत्म-साक्षात्कार मिलना ही चाहिए यही सबसे महत्वपूर्ण है। भारत देश एक समय बहुत धनी था, और इतने लोगों ने उस पर आक्रमण किया इसलिए वो गरीब हो गया। पर उस सब के बावजूद भी उन्होंने परवाह नही की, कि जो चला गया वो चला गया, सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि उनका आत्मा अभी भी बरक़रार है, और उसी को उन्हें ढूँढना है, आत्मा को। पर देखिये राजकारणी हर जगह ही अजीब होते हैं, और आपको किसी भी देश का मूल्यांकन उसकी सरकार से नही पर वहां के सामान्य लोगों से करना चाहिए। 

सो विज्ञान के माध्यम से नई बातें जानने की तीव्र इच्छा, दूसरे देशों पे आक्रमण कर के उन पर हावी होना, ये सब पश्चिमी देशों में रहा। जैसे कोलंबस अमेरिका गया, वहां इतने लोगों को मार डाला, स्पॅनिश लोगों ने इतने लोगों को मार डाला। पर कुछ सालों बाद लोग सोचने लगे, “इस सब का क्या उपयोग हुआ, और हमें क्या मिला? हमारे पास खाने के लिए खाना है, कपडे हैं, घर हैं, विज्ञान है, पर कुछ भी पूर्ण नही है”। और तब मूलभूत सिद्धांत प्रश्न करता है, “मै इस पृथ्वी पर क्यों हूँ? क्या केवल इसलिए कि जन्म लेकर, कुछ पैसे बनाकर फिर मर जाऊं”? जब इस प्रकार के प्रश्न लोगों के मन में आने लगते हैं, तब ये महालक्ष्मी तत्व जागृत होता है और खोज शुरू होती है – और तब वे साधक बन जाते हैं। 

सो ये तत्व किसी के ऊपर ज़बरदस्ती लादा नही जा सकता। ये एक सहज रूप से प्रकट होने लगता है। जब आप ये खोजने का प्रयत्न करते हैं कि इसके परे क्या है, आख़िरकार, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? क्योंकि आप अपना सम्मान करने लगते हैं। और आप अपने आसपास ऐसे लोग देखते हैं जो जीवन के भोग-विलास में लिप्त हैं पर उनमें कुछ भी आनंदपूर्ण नही है। तो इस तरह की चीज़ जिसे आप अपना माहौल कह सकते हैं, आपका राष्ट्रीय जीवन, पारिवारिक जीवन, सब कुछ आपको प्रश्न देने लगते हैं। ये सारे प्रश्न आपको उत्तर ढूंढने के लिए प्रेरित करते हैं। फिर आप पुस्तकें पढ़ने लगते हैं, आप किसी से सुनते हैं कि आप कहीं से आध्यात्मिक प्रशिक्षण ले सकते हैं तो आप वहां जाते हैं, मतलब आप उन चीज़ों की तरफ झुक जाते हैं। 

अब पश्चिम में आप देखें तो सबसे बड़ी समस्या थी ईसाई धर्म की। क्योंकि ईसाई धर्म, जो ईसा ने लोगों को दिया उसे पॉल ने पूरी तरह से घुमा दिया, और उसे अपने लिए एक अच्छा मंच मिल गया, वो एक नौकरशाह (bureaucrat) था इसलिए मंच पे कूदना चाहता था। वो इसा का शिष्य नही था, और ईसा से कभी भी नही मिला था, और उसने सोचा कि ईसा का सबसे कमज़ोर शिष्य पीटर है। ईसा ने कहा है, “एक शैतान तुम पे कब्ज़ा कर लेगा”। तो उसने (पॉल ने) बाइबिल को बदला और उसमे उसने ये डाल दिया कि ईसा ने पीटर को बताया, ये बिलकुल झूठी बात है, कि “तुम तुम्हारा चर्च बनाओगे”। इस प्रकार से ईसाई धर्म शुरू हुआ, और उसने इतनी मिलावटें की, जैसे वो नही चाहता था कि ईसा की माता (मैडोना) या आदि-माँ का कोई उल्लेख किया जाए।  

सो इस महालक्ष्मी तत्व के साथ जब लोग ईसाई धर्म में गए और पाया कि वो निरर्थक है, उन्हें कोई उत्तर नही मिले, उन्हें पता नही था कि आदिशक्ति (holy ghost) कौन है। इस हद तक कि, हाल ही में मेरे पढ़ने में आया, कि एक पोप था जिससे पूछा गया कि “मान लीजिये आपने किसी की मृत्यु के बाद उसे संत बना दिया, तो क्या आपके संत बनाते ही उसे दिव्यत्व महसूस होगा, उसकी कब्र में”? तो इस पोप ने कहा, “हाँ, अवश्य, हम जैसे ही उसे चर्च में संत बनाएंगे उसे कब्र में महसूस होगा”। बाद में जब एक दूसरा पोप आया तो उसने कहा, “नही-नही ये सच नही है। तुमने उसे संत बना भी दिया तो भी उसे अंतिम न्याय (last judgement) की प्रतीक्षा करनी होगी और उस समय ये सारे मुर्दे बाहर आएंगे, और तब उन्हें दिव्यत्व महसूस होगा”। (सब लोग हँसे)। उस समय तक कब्रों में केवल हड्डियाँ ही बची होंगी। तो उन्होंने पुनर्जन्म की धारणा को भी स्वीकार नही किया। 

सब से बुरी है मूल पाप (ओरिजिनल सिन – original sin) की धारणा। पिछली पूजा में, नवरात्री पूजा में मैंने उन्हें इस ओरिजिनल सिन के विषय में बताया। मुझे पता नही आप में से कितने लोग उस पूजा में थे। (ज़्हेवियर: केवल एक व्यक्ति, माँ, फ़ऱनॅण्डो)

तो मै आप लोगों को बताती हूँ कि सच में क्या हुआ। सारे पशुओं को “पशु” कहते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के पूर्ण वश (पाश) में रहते हैं और उन्हें कोई भान नही होता। तो पिता परमेश्वर का विचार था कि ऐसे मनुष्य बनाएँ जो पशुओं जैसे ना दिखें पर वो पूर्णतः उनके वश में हों। क्योंकि, देखिये, अपने बच्चों को स्वातंत्र्य देना एक सरदर्द होता है। पर आदि-माँ को लगा ये ठीक नही है, बच्चों को ज्ञान मिलना चाहिए। तो वे सांप बनीं और उनसे कहा कि तुम ज्ञान का फल खाओ। अगर उन्होंने नही कहा होता, तो हम पशुओं की तरह होते। उससे (ज्ञान का फल खाने से) मनुष्यों को उनका स्वातंत्र्य मिला। बेशक उन्होंने गलतियां की। उन्होंने अपने निर्णयों में गलतियां की, कोई बात नही, पर वे सभी उनका आत्म-साक्षात्कार पा सकते हैं। 

सो ये आदिशक्ति की उस इच्छा का चरम बिंदु है कि लोगों को उनका आत्म-साक्षात्कार मिलना चाहिए और उन्हें सब कुछ पता चलना चाहिए। इसी प्रकार आप सब अब सहज योगी हैं। पर अगर ये आपके मस्तिष्क में नही आया होता कि ईसाई धर्म में या किसी और धर्म में कई प्रश्नों के कोई उत्तर नही हैं तो आपने महालक्ष्मी तत्व को नही अपनाया होता। और ये महालक्ष्मी तत्व जो आपमें प्रकट होना शुरू हुआ, तो आप सत्य को ढूंढने लगे। 

ये तत्व पिछले पचास वर्षों में बहुत सक्रिय रहा, और एक नवीन युग शुरू हुआ, जो कि कलियुग और अब ये कृत-युग, माने ये सर्वव्यापी परमेश्वरी प्रेम की शक्ति – जो आदि-माँ की शक्ति है – वो सक्रिय हो गई, उसके साथ ही साथ कई लोग इस बात के प्रति जागरूक हो गए कि उन्हें खोजना है। सो ये कृत-युग प्रारंभ हो गया है और ये कई ऐसी चीज़े कर रहा है जो पहले किसी भी अवतार में नही की गई थी। प्रथम ये कि इस समय सभी को उनके कर्म-फल मिलेंगे, माने ये के उन्होंने जो भी कुछ ग़लत किया है उसका उन्हें मूल्य चुकाना होगा। केवल आत्म-साक्षात्कार से ही कर्म-फलों का अंत किया जा सकता है। और सामूहिक के भी कर्म-फल होते हैं। उदाहरण के लिए, बहुत सारे अमेरिकन लोगों ने वहां के बेचारे मूल-निवासियों को मार डाला जो कि साधे और गरीब लोग थे। उन्होंने ज़ुल्म और अत्याचार से उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया। गोरी चमड़ी वाले अँग्लो-सॅक्झन (anglo-saxon) और स्पॅनिश लोगों की बंदूकों से वो लड़ नही पाए। सो उसके परिणाम-स्वरूप, उन में से कुछ लोग पहाड़ों के ऊपर भाग गए, जैसे बोलीविया और बाकी जगहें और वहां छिप गए। तो बोलीविया में उन्होंने इस मादक ड्रग का अविष्कार किया (कोकेन) और ये ड्रग अब अमेरिका आ रही है और लोग मर रहे हैं। उनके किये पापों का उन्हें फल भुगतना होगा। अमेरिकन लोगों को ये ड्रग्स इतनी क्यों पसंद हैं? वो इतनी इन ड्रग्स की तस्करी क्यों कर रहे हैं और ये बोलीविया से क्यों आ रही हैं? क्योंकि वो अपने पापों का फल भुगत रहे हैं। और ये ड्रग्स मुख्यतः स्पेन आती हैं, पहले स्पेन आती हैं और यहाँ से उनका वितरण होता है। तो इस तरह सारे कर्मों के फल भुगतने पड़ते हैं चाहे वो वैयक्तिक हो या सामूहिक। अब जैसे भारतीय, तीन सौ साल ये अंग्रेज़ हमारे देश में रहे। ये बिना किसी वीज़ा या बिना किसी चीज़ के आए, पर अगर कोई भारतीय वहां बिना वीज़ा के जाए तो उसे गिरफ़्तार कर लेते हैं। और उन्होंने हमारे देश को तीन भागों में बाँट दिया। पर अब उनका देश चार हिस्सों में बंट गया है। रोज़ाना वहां बम का डर होता है, उनको समझ नही आ रहा कि इन चार देशों की कैसे व्यवस्था करे जो कहते हैं कि “हम अंग्रेज़ नही हैं”। तो भुगतना पड़ेगा। बहुत आश्चर्य की बात है कि जो लोग (अंग्रेज़) भारत आए वो बहुत बहुत असंवेदनशील लोग थे, क्योंकि उन्होंने कभी भी आध्यात्म के बारे में जानने का प्रयत्न नही किया। कोई बात नही, अब सामना करना होगा। 

उसी प्रकार, अब हमें अपने वैयक्तिक कर्मों के भी फल भुगतने होंगे। अब देखिये एड्स की बीमारी आ रही है, माना जाता है अमेरिका में करीब पैंसठ फीसदी लोग बिलकुल परेशान हैं। आप देखिये इतने तलाक हो जाते हैं, और जिस प्रकार से समाज तहस-नहस हो गया है, स्त्रियां इतनी अजीब हो गई हैं। ये बहुत दुःख की बात है की इतने सुन्दर लोगों ने एक हानिकारक जीवन(शैली) को अपना लिया है। वे विनाश को स्वीकार कर रहे हैं। उन्हें कोई बताता नही, पर वे जब देखते हैं कि खुद को नष्ट करने का ये सबसे अच्छा तरीका है, तो वे उसे स्वीकार कर लेते हैं। अगर किसी को कुछ पैसे मिल जाएं तो वो तुरंत शराबखाने चला जाएगा, या फिर वो ड्रग्स खरीदेगा, या वो ड्रग्स का व्यवसाय शुरू कर देगा। सो वे पूरे समय ये सोचते हैं कि शरीर को नष्ट किस प्रकार से करें। वे धूम्रपान, शराब, ड्रग्स या ऐसी सब विनाशकारी वस्तुओं को अपनाएंगे। स्पेन में पहले, माने अब भी, वे एक सांड को मारते हैं। पर अब वो अपने आप को मार रहे हैं, ऐसी बेकार की चीज़ों को स्वीकार कर के और बेकार की चीज़ों के पीछे भाग के वो अपने आप को मार रहे हैं। अनैतिक जीवन स्वीकार कर के वे नष्ट कर रहे हैं अपने ही बच्चों को, अपने ही परिवार को, अपनी ही पत्नी को। तो वो क्यों इन विनाशकारी चीज़ों को स्वीकार कर रहे हैं? वे देखते हैं कि कोई शराबखाने (पब) जाता है, और बाहर आ कर गिर जाता है, पर फिर भी वो जाते हैं, और उसके जैसा बनने के लिए पैसे देते हैं कि आप भी बाहर आ कर गिर जाओ। वे इतना भी नही सोचते कि इस मूर्खता के लिए हम पैसे दे रहे हैं!

तो ये एक प्रकार की प्रतिक्रिया है मै कहूँगी, कर्म-फल हैं, कि जो भी पाप उन्होंने किये हैं वे उनके पास आ रहे हैं। उन्होंने दूसरे देशों को नष्ट करने की कोशिश की, तो अब वे खुद ही को नष्ट कर रहे हैं। जैसे मै चीन गई, और प्रधान मंत्री की पत्नी के पास बैठी थी, उसने मुझ से पूछा, “अंग्रेज़ों का क्या, वे कैसे हैं?” तो मैंने कहा, “वो ठीक हैं”, “पर ड्रग्स का क्या” उसने कहा। मैने कहा, “वो बहुत ज़्यादा है क्योंकि दक्षिण लंडन में बारह साल के ऐसे दो हज़ार बच्चे हैं जो ड्रग्स ले रहे हैं” उस समय। तो उसने कहा, “मै काफ़ी खुश हूँ, अच्छा हुआ, क्योंकि उन्होंने हमें अफ़ीम के नशे में डाला था, अब उन्हीं को सारी ड्रग ले कर अच्छे से सो जाने दो”। और ये, सच बताएं तो, ये अति-क्रियाशील अंग्रेज़ अब बहुत ही सुस्त और अव्यवस्थित हो गए हैं। 

तो जब आप ये सब देखते हैं तो आप ये सोचने लगते हैं कि “नही, मुझे इस समाज का भाग नही बनना, ये कुछ अजीब ही है”। तब फिर आप विरुद्ध-संस्कृति (anti-culture) अपना लेते हैं, जैसा हिप्पीयों  ने किया, पर वो सब बहुत सतही था, वो बस दूसरों पे हावी होने का एक तरीका था। उन्होंने कहा की वे आदिम (primitive) हैं, आदिम बन रहे थे पर उनके मस्तिष्क तो आधुनिक थे। 

तब फिर हमें समझ आ जाता है कि इस प्रकार का पाखंड किसी काम का नही। क्योंकि कुछ भी आप प्रयोग करें, कुछ भी स्वीकार करें, पर जब तक वो आनंद आप के अंदर आया नही तब तक आप अभी भी खोज ही रहे हैं। 

तो वैसे ही, आप यहाँ इस लिए हैं क्योंकि महालक्ष्मी तत्व जागृत हो गया, और इसलिए भी की आप सहज योगी हैं और इसलिए आपमें शक्तियां हैं कि आप दूसरों की कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं, दूसरों को आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं, दूसरों को ठीक कर सकते हैं, और आपको आत्मबोध मिल गया। आपको खुद के चक्रों के बारे में भी सब पता है। 

पर हमें ये अवश्य समझना चाहिए कि अपना महालक्ष्मी तत्व कैसे बनाये रखें। पहली बात ये है कि हमें हमारा साक्षात्कार इतनी आसानी से मिला कि हम उसका महत्व नही समझते कि वो कितना अद्भुत और गौरवान्वित करने वाला है। पर मान लीजिये मैने आप से कहा होता कि आप हिमालय पर जाइये, एक महीना उपवास करिये, फिर मर जाइये, और अगले जन्म में आइये, तो हो सकता है आप को सब ठीक लगा होता! पर मेरी पद्धति तो थी कि पहले इनका महालक्ष्मी तत्व थोड़ा सा प्रकाशित कर दिया जाए, और उस थोड़े से प्रकाश में ही ये देख लेंगे की इनमें क्या दोष हैं। मुझे उन्हें बताने की ज़रूरत नही, वे खुद ही देख लेंगे। 

सो ये महालक्ष्मी तत्व जो हमारे अंदर ही है, सुषुम्ना नाड़ी में, इसने दिखा दिया कि आपके अंदर क्या ग़लत है, क्योंकि आप जान जाते हैं की आपके कौनसे चक्र में समस्या है और फिर आपको वो अच्छा नही लगता और आप चाहते हैं कि वो ठीक हो जाए। अगर मै किसी से कहूं कि “तुम्हारा आज्ञा पकड़ रहा है,” मेरा कहने का अर्थ है कि अहंकार है, पर मै उस तरह से नही कहती, मै बस ये कहती हूँ कि “तुम्हारा आज्ञा पकड़ रहा है”। तुरंत वो व्यक्ति कहेगा, “हाँ माँ, मै जनता हूँ, मेरा आज्ञा बहुत बुरा है”। 

सो इस ज्ञान के साथ आप अपना मध्य मार्ग खुला रख सकते हैं। उसके लिए संतुलन में रहना आवश्यक है, संतुलन का अर्थ है किसी भी अति में न जाना। जैसे, जो भी कुछ आपका अतीत रहा होगा, आप में से कुछ लोगों की रुचि खेल-कूद (sports) में बहुत अधिक रही होगी या खाने में। तो अब सहज योग के प्रादुर्भाव से, आप अपने को देख सकते हैं कि आप कहाँ ग़लत जा रहे हैं और उसे सही करने के लिए क्या करना चाहिए। 

ऐसे बहुत थोड़े सिद्धांत हैं जो आपको सहज योग में स्वीकार करने होते हैं। उनमें से एक है सब को क्षमा करना, क्योंकि क्षमा आज्ञा चक्र के बहुत महत्वपूर्ण या निर्णायक बिंदु पर होती है। अब अगर आप क्षमा ना करें तो कुण्डलिनी जागृत नही होगी, ये आपने देखा है। तो आपकी कुण्डलिनी खुद ही आपके चक्रों की सारी समस्याओं का निदान करती है। 

तो ये कितना बड़ा आशीर्वाद है कि हम अपने बारे में जानते हैं, और हम जानते हैं कि खुद को ठीक कैसे करना है। ये एक बहुत बड़ी अंतर्दृष्टि हमें मिल जाती है और इस प्रकार हम आत्मावलोकन (introspection) शुरू करते हैं। और हम इस बात से संकोच नही करते कि हमें खुद को देखना है, हमारे अंदर क्या समस्या है, हम उससे शरमाते नही हैं। क्योंकि इस महालक्ष्मी तत्व के साथ आप अपने आत्मा की स्थिति में चढ़ आये हैं जो केवल देखता है, जो जानता है, और जब आप केवल देखते हैं तो आप समझते हैं कि क्या ग़लत है तथा आप कैसे उसमे सहायता कर सकते हैं। आप दूसरे लोगों को भी समझते हैं। दूसरों की समस्याओं से अपने को पृथक तथा अबाधित रखने के लिए आप जानते हैं खुद की रक्षा कैसे करना है। पर तो भी मै कहूँगी कि अहंकार सहज योगी का बहुत बड़ा शत्रु है। ये समझ लेना चाहिए कि अगर हम अपने अहंकार से मुक्त नही हो सकते तो हम कभी भी सहस्त्रार में उठ नही सकते। तो अपने ध्यान और समर्पण से आप अपनी कुण्डलिनी को उत्थान के मध्य मार्ग में रख सकते हैं। आपको निगरानी रखनी है, बहुत जागरूक रहना है, कि मेरे अंदर क्या कमी है, क्या ऐसे (कु)संस्कार हैं?

तो ये महालक्ष्मी तत्व जो आपके उत्थान के लिए है, इसका उपयोग मुख्यतः उत्थान के लिए करना चाहिए। इस बात को आत्मसात कर लेना चाहिए कि हम अपना महालक्ष्मी तत्व जागृत रखेंगे। क्योंकि यही तत्व आपको सत्य तक और पूर्णत्व तक ले आया है और यदि आप सच में आगे बढ़ना चाहते हैं, सच में यदि आप अपने उत्थान में बढ़ना चाहते हैं तो याद रखिये कि सबसे महत्वपूर्ण है अपने महालक्ष्मी तत्व की देखभाल करना। जब आप ये जान जाते हैं कि आपके लिए महालक्ष्मी तत्व ही सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है, तो आप बाकी सब बातों को गौण समझते हैं। तब आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है महालक्ष्मी (तत्व)। फिर आप हमेशा अपने चक्र शुद्ध रखने का प्रयत्न करते हैं, आप अच्छी तरह से ध्यान करते हैं, आप कुण्डलिनी को चढ़ा कर तालु में रखते हैं, और अपने बारे में सदा जागरूक/सावधान रहते हैं। अपने बारे में इस प्रकार की समझ के साथ आप स्वयं अपने को आदर्श (perfect) बना सकते हैं। कोई आवश्यकता नही कि आप कुछ छोड़ें या परिवार से दूर भागें, कुछ नही। पर आप को खुद को विकसित करना होगा अपने आध्यात्म और करुणा में कि जो भी आप करना चाहते हैं, उसमे कोई बाधा ना आए। 

महालक्ष्मी तत्त्व में हमें कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। इन सावधानियों में से एक है कि जब आप सहज योग में आते हैं तो आपको यह नही सोचना चाहिए कि, “मै लीडर (को-ऑर्डिनेटर) क्यों ना बन जाऊँ,” या, “मुझे कुछ महान क्यों नहीं बनना चाहिए?” फिर यह प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है और आपको महालक्ष्मी तत्व से गिराकर सत्ता के खेल में ले जाया जाता है।

तो ये विकास, ये आंतरिक शक्ति, जब प्रकट होने लगती है तो आपको अपने बारे में कोई संदेह नहीं रहता, आपको किसी भी चीज़ के बारे में कोई संदेह नहीं रहता। तो आप चेतना की ऐसी शुद्ध स्थिति में पहुंच जाते हैं जहां कुछ भी आपकी चेतना को खराब नही कर सकता। और आप हर विषय में इतने अधिकृत हो जाते हैं, आप इतने गतिशील और अधिकृत हो जाते हैं कि आप जो भी करते हैं या कहते हैं, लोग उससे प्रभावित होते हैं।

तो महालक्ष्मी के सभी तत्वों को पूरी तरह से, अच्छे से समझ लेना चाहिए। एक बार जब आपका महालक्ष्मी तत्व ठीक हो जाता है, तो परिवार में या आपकी मंडली में हर कोई महसूस करता है कि ये कुछ अलग व्यक्तित्व है। आपके सारे हाव-भाव, आपका सारा व्यवहार, सब कुछ अपने आप बदल जाता है। मैं कुछ नहीं बताती, ये बस अपने आप बदल जाते हैं। और फिर आपका व्यक्तित्व ऐसा हो जाता है जो सहज योग के बहुत अनुकूल है। मेरे कहने का अर्थ है कि आप उन चीजों को चुनें जो आपके सहज जीवन के लिए अनुकूल हो। 

सो ये महालक्ष्मी तत्व वो है, जो आपको उत्थान देता है और (जिसके कारण) कुण्डलिनी ऊपर बनी रहती है। लेकिन जब कुण्डलिनी फिर से नीचे आ जाए तो आपको समझना चाहिए कि आपके महालक्ष्मी तत्व में कुछ दोष आ गया, इसलिए वह नीचे आ रही है।

सामूहिक होने से अवश्य आपकी सहायता होती है, सभी पूजाओं से आपको सहायता होती है, पर आपकी पूर्ण समझदारी बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह आपके अंदर बहुत ही सूक्ष्म शरीर है। यह किसी छोटी सी बात से भी विचलित (डिस्टर्ब) हो सकता है। जब मैं कुछ लोगों से मिलती हूं तो मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे छोटी चीज़े उनके बीच आ गई (व्यवधान), जैसे उनके पिता के कोई गुरु होना या कोई बहुत छोटी सी बात, और वह खराब कर देती है… जैसे आपकी आंख में अगर कोई छोटी सी चीज़ भी चली जाए, तो आप कुछ देख नही सकते। यह बहुत सूक्ष्म बात है. इसलिए आपको सतर्क रहना होगा: “क्यों, मेरा चैतन्य (वायब्रेशन्स्) ठीक क्यों नही हैं? मुझे आज्ञा या नाभी (पकड़) क्यों महसूस हो रहे हैं? क्यों?” और तर्क से आपको पता करना चाहिए कि क्या समस्या है। मेरा मतलब है, कि ये महालक्ष्मी तत्व आपके भले के लिए, आपके आनंद के लिए, आपके सम्पूर्ण परिवर्तन के लिए, इस सब के लिए है। परन्तु कुछ छोटी कमी रह गई है जिसके कारण आप निर्विकल्प स्थिति में नही जा पा रहे हैं। 

उदाहरण के लिए, एक बार जब आप निर्विकल्प में स्थित हो जाते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि आप एक बॅरोमीटर (दबाव मापने का यंत्र) की तरह हैं और यदि आप (चक्र) पकड़ रहे हैं तो ये (यंत्र) आपको केवल जानकारी दे रहा है, और अब आप इसके बारे में संदेह नही करते हैं। और आपके लिए पूर्ण समय चैतन्य (वायब्रेशन्स्) का प्रवाह सबसे महत्वपूर्ण बात यह हो जाती है। ये ऐसी स्थिति है जिसे मै कहती हूँ कि आप निर्विकल्प में हैं, जहां आपके अंदर खुद के विषय में, सहज योग के विषय  में, और सहज योग के ज्ञान के विषय में कोई संदेह नही होता। कुछ लोगों में ये उत्थान बहुत तेजी से होता है, और वे इसे बनाये रखते हैं, उन्होंने इसे बरकरार रखा है, लेकिन कुछ लोगों में यह बहुत धीमा होता है, वे छोटी-छोटी बातो से विचलित हो जाते हैं। जैसे मान लें किसी सहज योगी ने बैंक में पैसे रखे, और मुद्रा में गिरावट हुई – तो वो ऐसे हो गया जैसे धरती गिर गई, या भगवान जाने क्या हो गया — तो ऐसे समय उसे ये समझ जाना चाहिए कि “नही, अब तक मै सहज योगी नही बना, मै निर्विकल्प में नही हूँ,” क्योकि ऐसा व्यक्ति (जो निर्विकल्प में है) बस हसेगा कि “इसमें कुछ तो बात होगी, अवश्य ही मै पैसे के खेल में था, और ये सब निरर्थक चीज़े कर रहा था, इसीलिए।” ये ऐसे सहज योगी का लक्षण है जो निर्विकल्प स्थिति में है, और ये बात सब जानते हैं। आपको प्रमाणपत्र मांगने की ज़रूरत नही है; हर कोई जानता है। उस स्थिति में आप पाते हैं कि सब कुछ ठीक से कार्यान्वित हो जाता है। इतने चमत्कार होते हैं कि आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि कैसे सब कार्यान्वित हो रहा हैं। और ये चमत्कार आपके साथ घटित होते रहते हैं और फिर आप सोचने लगते हैं कि “देखो, अब मुझे किसी बात की चिंता क्यों करनी चाहिए जब मेरे लिए सब कुछ परमात्मा की शक्ति कर रही है, मुझे क्यों चिंता करनी चाहिए?” आप सही समय पर सही व्यक्ति से मिलते हैं और सही चीजें होती हैं। लेकिन जब आप भूल जाते हैं कि आप एक सहज योगी हैं, और आप लड़ते रहते हैं, बुरी बातें कहते हैं, सामूहिकता के साथ सामंजस्य नही बैठा पाते हैं, हर तरह की व्यर्थता, तो इसका अर्थ है आप जानते नही है कि अपने महालक्ष्मी तत्व को कैसे संभालना है। तो महालक्ष्मी का तत्व यह है कि आप बहुत शालीन हैं, क्षमाशील हैं, आप विचलित नही होते, और दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर होते हैं, दूसरों का हित करने से आप थकते नही, और बदले में कोई प्रतिफल नही मांगते। आप अपनी घड़ियां नही देखते, समय आपके कदमों में होता है, आप समय से परे चले जाते हैं, गुणों से परे हो जाते हैं, आप एक ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व बन जाते हैं जो न केवल अपने को बल्कि सभी को आनंद देता है। 

अब अपने आसपास इस सुंदर प्रकृति को देखें, यह इतनी सुंदर है कि मैं हर समय ध्यानस्थ हो रही हूँ, ये इतनी आनंददायक है। यदि आप उस आनंद को देख और आत्मसात कर सकते हैं जो प्रकृति में है, यह एक चित्र की तरह है, सुंदर, तो आप अपने महालक्ष्मी तत्व का पोषण कर रहे हैं। छोटी-छोटी चीज़ों में आपको सौंदर्य और आनंद देखना चाहिए। दूसरे क्या कर रहे हैं, उसकी छोटी-छोटी चीज़ों में आपको आनंद ढूंढना चाहिए। एक प्रकार का सुंदर मस्तिष्क जो कि मानो आनंद का सृजन कर रहा हो। जब मै यहां आई और ये देखा (निसर्ग के मध्य में पूजा पंडाल), देखने मात्र से मुझे बहुत आनंद हुआ, ना जाने क्यों। एक बार हम पलिटाणा नाम की जगह गए, वहां पहुँचने के लिए पहाड़ी पर मीलों चढ़ना पड़ा था, और मेरे दामाद और बेटी बिलकुल थक कर चूर हो गए थे। और वहां कई संगमरमर के मंदिर थे, बिल्कुल खाली, वे वहीं लेट गये। पर मैंने देखा वहां सुंदर हाथी बनाये हुए थे, हरेक हाथी की पूंछ अलग तरह से थी, तो मैने कहा कि “देखो, क्या सुंदर काम किया है, हर हाथी की पूंछ अलग तरह से मुड़ी हुई है।” तो मेरे दामाद ने कहा, “मम्मी, हम थक कर मर गये हैं, आपको ये हाथी कहाँ दिखाई दे रहे हैं?” तो ये अंतर है। कि आपको कभी थकान महसूस नही होती। हर पत्ते में, घाँस के हर तिनके में, आकाश में, चारों ओर आपको आनंद महसूस होता है, और जब आप अकेले होते हैं, तब आप स्वतः आनंद में होते हैं। आप कभी बोर (ऊबते नही) नही होते, और आप किसी को बोर नही करते।  

पर अगर आपका महालक्ष्मी तत्व ठीक नही है, तो ऐसे लोग बहुत मुश्किल होते हैं। मुझे दुःख होता है, हमे उन्हें सहज योग छोड़ने के लिए कहना पड़ता है। मुझे अच्छा नही लगता, पर क्या कर सकते हैं। 

तो कृपया ध्यान रखें कि हमें अपने महालक्ष्मी तत्व का पोषण करना है जिसने आपको खोज दी है, जिसने आपका आत्म-साक्षात्कार सामने लाया है, क्योंकि महालक्ष्मी के मार्ग से ही कुण्डलिनी चढ़ती है। कोल्हापुर में महालक्ष्मी के मंदिर में मैंने उनसे पूछा, “आप अंबा का जोगवा का गीत क्यों गा रहे हैं?” वे समझे नही, वे नही जानते थे। आप समझ सकते हैं कि आपके महालक्ष्मी मन्दिर में (सुषुम्ना/ब्रम्हनाड़ी में) ही अम्बा कुण्डलिनी उठती है। तो आपका महालक्ष्मी मंदिर केवल आप तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड है। यदि आप हर चीज़ के उस महालक्ष्मी तत्व के सार में प्रवेश कर सकते हैं, तो पूरी चीज़ आनंद के सिवाय और कुछ नही है।

आज मै बहुत प्रसन्न हूँ कि स्पेन में हम महालक्ष्मी तत्व की पूजा कर रहे है जिससे लोग अब अपना चित्त भौतिकता से हटाकर आध्यात्म की ओर लगाएंगे। जैसे अब हर आदमी के पास एक कार है और तो भी वो दूसरी कार चाहता है, और फिर चाहता है कि एक और कार हो, और अब उन्हें रखने के लिए भी जगह नही है। उन्हें उनके सर पर ही रखना होगा। सो ये चीज़ें कभी भी आनंद प्रदायक नही होती हैं। आप अर्थशास्त्र का सिद्धांत जानते ही हैं, कि ये कभी आनंद प्रदायक नही होती हैं, कभी तृप्त करने वाली नही होती हैं। इसलिए हम आध्यात्म की ओर मुड़ते हैं जहाँ हमें पूर्ण संतोष मिलता हैं। सब कुछ आनंद से स्पंदित है, पर यदि आपका महालक्ष्मी या सुषुम्ना रूपी वाद्य यदि स्पष्ट नही है, यदि ह्रदय स्वच्छ नही है, तो संगीत नही हो सकता। जैसा कि आप जानते हैं, कि इससे ही आपको अपनी सृजनशीलता, और सब कुछ मिलता है, आपका काव्य, धार्मिकता, शांति, सब कुछ सुषुम्ना के मध्य मार्ग से ही मिलता है। 

तो ये महत्वपूर्ण है की महालक्ष्मी इस पृथ्वी पर पहले सीताजी के रूप में आईं, फिर राधा के रूप में, फिर मदर मेरी के रूप में, और वो आपको मातृत्व का आनंद देती हैं, आपकी माँ जो कि महालक्ष्मी है, आपकी रक्षा करती है, आपका पोषण करती है, और आपसे प्यार करती है। और अंततः मस्तिष्क में वे विराटांगना बन जाती हैं। विराटांगना उन्हें कहते हैं माने विराट की शक्ति। महालक्ष्मी तत्व के विषय में मै इतना कुछ कह सकती हूँ, पर मुझे लगता है आज के लिए इतना पर्याप्त है। मुझे आशा है कि आप इस पर ध्यान करेंगे और अपने महालक्ष्मी तत्व का विस्तार करते जायेंगे। 

परमात्मा आपको आशीर्वादित करें!