Public Program

New Delhi (भारत)

1993-03-22 Public Program, New Delhi, 68'
Download video - mkv format (standard quality): Download video - mpg format (full quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: View on Youku: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1993-03-22 Public Program Hindi Delhi NITL, 101'
Download video - mkv format (standard quality): Download video - mpg format (full quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Sarvajanik Karyakram 22nd March 1993 Date : Place Delhi : Public Program Type

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

सहजयोग का ज्ञान सूक्ष्मज्ञान है और सूक्ष्मज्ञान को प्राप्त करने कास्प पे दोड़ते रहते हैं। आज ये विचार आया। कल ये विचार के लिये, हमें भी सूक्ष्म होना है। ये सूक्ष्मता क्या है कि हमें आत्मा स्वरुप होना चाहिये। आत्मा से ही हम इस सूक्ष्म ज्ञान को समझ चढ़ती है तो क्या होता है कि विचार कुछ लम्बा हो जाता है। सकते हैं। क्योंकि आत्मा का अपना प्रकाश हैं और वो प्रकाश इन दोनों विचारों के बीच में जो स्थान है उसे विलम्ब कहते हैं। जब हमारे ऊपर प्रगटित होता है तो उस आत्मा के प्रकाश में इस विलम्ब स्थिति में आप आ जाते हैं और विलम्ब की स्थिति ही हम इस सूक्ष्मज्ञान को जानते हैं ये हमारे ही अन्दर की आत्मा जो बहुत संकीर्ण होती है वो बढ़ जाती है। ये हो वर्तमान है। है। ये परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे ही अन्दर आत्मा स्वरुप है और कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा शक्ति आदि शक्ति का से सतर्क है, बेसुध अवस्था में नहीं जाते। आप सुप्ता अवस्था में प्रतिबिम्ब है। कुण्डलिनी साढ़े तीन वलयों में है जिन्हें कुण्डल नहीं जाते। जरुरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं। लेकिन कोई कहते हैं इसलिये उसका नाम कुण्डलिनी है। कुण्डलिनी जब विचार आपके अंदर नहीं आता। बस सब चौज देखना मात्र बनता उठतो है तो ये साढ़े तीन कुण्डल पूरे के पूरे नहीं उठते। जैसे है। इसे साक्षो स्वरूप कहा गया है तो आप देखते मात्र हैं। उसका कि रस्सी में बहुत से धागे बंधे रहते हैं उसी प्रकार इस कुण्डलिनी कोई भी असर आप पे नहीं आता। उसकी क्रिया, प्रतिक्रिया कुछ में भी बहुत से धागे हैं। उनमें से कुछ धागे ऊपर उठते हैं और नहीं आता। आप पूरी तरह से उस चीज को देखते हैं। ये निर्विचार आपके तालू, संस्कृत में तालव्यय, का छेदन करती हुई ये समाधि की पहली स्थिति है। इस स्थिति को पहले बनाना होगा। कुण्डलिनी सूक्ष्म शक्ति में पहुंच जाती हैं जो चराचर में फैली हुई हैं। जब इस सूक्ष्म शक्ति में इसका योग हो जाता है। तो आत्मा का जो पीठ है वो यहां सिर है सारे चक्रों के पीठ सब सिर में है। ये कहां मिलता है। ये कितने पैसे का है कौन सी दुकान से है। सारे चक्र हमारे अन्दर हैं। तो ये जो कुण्डलिनी शक्ति आपके खरीदा। ये सब विचार सर को खाएंगे। दूसरे अगर ये मेरा है तो अन्दर जो जागृत हो गई इसके ज्यादा से ज्यादा धागे ऊपर उठने और भी सिरदर्द, ये खराब न हो जाए। इसका बीमा कराया नहीं। चाहिएं। तो सबसे पहला अनुभव जो आपको प्राप्त होता है वह है निर्विचारिता। निर्विचार समाधि। समाधि को अंग्रेजी में शक्ति में आदमी ये सब सोचता नहीं, देखता मात्र है और देखता Awareness (बोध) भी कहते हैं। समाधि अर्थात समा-गयो बुद्धि। तो इस योग में इस नये आयाम में, इस नई धारणा में इस उसने इसमें जो कुछ भी सौन्दर्य डाला, जो उसने अपने हृदय का ब्रहम चैतन्य में जब बुद्धि समाती है तो इसे समाधि कहते हैं लेकिन समाधि सर्वप्रथम आपको निर्विचार समाधि के रुप में प्राप्त होगी। है तो सारा आनन्द निर्गुण में ही आपके अन्दर उतरने लग जायेगा हठात आप देखेंगे आप निर्विचार हो गए। अब जब हम विचार और ऊपर से नीचे तक आपको ठंडा करता हुआ चला जाएगा। करते हैं तो हम या तो आगे का विचार करते हैं भविष्य का या तो इसका जो बनाना है जिसने बनाया है, इसका जिसने सृजन तो पीछे का यानि भूत का। लेकिन आज अभी इस वक्त वर्तमान किया उसका भी कार्य पूर्ण हुआ और हमारे लिये भी इतनी बड़ी है। वर्तमान में हम खड़े नहीं हो सकते और जब तक हम वर्तमान बात हो गई कि बगैर सोचे-समझे हमने इसका आनन्द पूरे रुप में नहीं रहेंगे तब तक हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो नहीं सकती। क्योंकि जो पीछा (गत) था वो तो खत्म हो गया और आगे का ये आपको शांति प्रदान करती है। निर्विचार समाधि आपको शांति तो अभी है हो नहीं। पता नहीं क्या है। तो वर्तमान ही असलियत है। पर इसमें बुद्धि ठहर नहीं सकती। इसमें मन ठहर नहीं सकता। जब आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है तो आपकी सृजन तो ये विचार लहरों जैसे उठते हैं। र गिरते हैं। पूरे समय हम शक्ति भी बढ़ जाती है। ये हमारा हुआ या नहीं हुआ इससे कोई इसी आंदोलन में कूदते रहते हैं कभी इसके शिखर पे, इसके फर्क नहीं पड़ा। और बढ़ी हुई सृजन शक्ति से आप अनेक विधि आया तो परसों ये विचार आया। लेकिन जब कुण्डलिनो आपको इसलिये आप निर्विचार हो जाते हैं। लेकिन समाधि माने पूरी तरह अब जैसे यहां पर एक बड़ा सुन्दर सा गलीचा बिछा हुआ है। अगर मैं विचार में हूं तो मैं ये सोचती रहंगी कि ये कितना सुन्दर अब कैसे होगा, क्या होगा। ये मानवीय दिमाग है। लेकिन दैविक क्या है कि इसका सौन्दर्य क्या है। जिस कलाकार ने इसे बनाया आनन्द इस सौन्दर्य से प्रगटित किया है, उसको दिखाया है, दर्शाया में उठा लिया। इस प्रकार आप निविचार समाधि में उतर गए। प्रदान करती है और आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती जाती है। ন

कार्य कर सकते हैं। हठात उसमें कोई महनत नहीं। खूब काम कर रहा है। इस्तमाल करते-करते इसमें संकीर्णता Spontaneous सहज। जैसे एक साहब हैं, जो बड़े गणितज्ञ थे और उनको भाषा में कोई खास दुखल नहीं था। भाषा कोई जाएगी या फिर ये टूट जाएंगे। दूटते ही आपका सम्बन्ध जो जानते नहीं थे। वो सहज में आए और कविताएं बनाने लग गए। आपके सम्पूर्णता से है, आपके मस्तिष्क से वो टूट गया। फिर हिन्दी में भी और उर्दू में भी, मराठी में भी, अंग्रेजी में भी कविता हो गये आप अलग। एकाकी हो गए। इसे कहते हैं Melignmant करने लगे। तो ये कोई चेष्टा नहीं है। ये आप ही के अन्दर छिपी हुई एक शक्ति है। उसने जब आपको छूलिया तो अनायास, सहज जैसे कोई धागा हम मोती में पिरोते हैं उसी तरह से धीरे -धीरे हो में आप सृजन करने लगे। ऐसे अनेक तरह के कवि हमारे वो हर एक चक्र में वायां, दायां दोनों में गुजरते हुए और सौधे यहां हो गए। अनेक तरह के कलाकार हो गए। अपने हिन्दुस्तान यहां से निकल जातो है। उससे वो चक्र जो हैं वो फिर से प्लावित के बहुत बड़े-बड़े लोग, माने हुए कलाकार सहज के ही माध्यम हो जाते हैं। पुष्ट हो जाते हैं। प्लावित होने पर उनके अंदर शक्ति से हुए हैं। कलाकार अमजद अली साहब हैं अल्लाहरक्खा के लड़के हैं। देबू चौधरी साहब हैं, और न जाने कितने ही लोग से भी हो जाता है और परम चैतन्य से भी हो जाता है। एक बार हैं जिनको कि सहजयोग से फायदा हुआ। और वो कहते हैं कि ये संबंध पूरी तरह से हो जाए उसके बाद कोई बोमार नहीं पड़ आपके सामने बैठने से ही हमारा हाथ एकदम से चलने लग जाता है। समझ में नहीं आता। जो राग कभी बजाया नहीं वो भी हम ऐसे बहुत से हैं। सब बौमार नहीं आते हैं सहजयोग में। ऐसे भी बजात हैं। इस तरह से बहुत से लोगों को इसका एक अजीब तरह का फायदा हुआ जो बहुत साल गुरुओं के पास मेहनत करने से भी नहीं हुआ। उनकी जो शक्ति थी वो जागृत हो गई। सृजन शक्ति आशो्वाद मिल जाता है ऐसे ही उनकी प्रगति ज्यादा जोरों से होती उस सृजन शक्ति के भरोसे, न जाने वो कहां से कहां पहुंच गए। है और उसके बाद उनको कोई भी बोमारी नहीं होती। हमारे यहां तो आपके अन्दर की सृजन शक्ति बहुत बढ़ जाती है। अब कल चक्रों पे जब हम बात करेंगे तब आपको बताएंगे कि हर एक चक्र में, कौन-कौन सी शक्तियां हैं और जो आपको प्राप्त होती हो जाए वो हमारे पास आते हैं। सो आप ही डाक्टर बन जाते हैं। आप जानते हैं कि यहां पर डाक्टरों का एक सम्मेलन हुआ हैं। आप डाक्टर बन जाते हैं खुद आप अपनी बीमारी समझते था जिसमें आप लोग भी काफी आए थे और कुछ लोग नहीं हैं। क्यॉंकि जब कुण्डलिनी सहस्रार को भेदती है तो अपने आप भी आए थे। ये बात सच है कि कुण्डलिनो के जागरण से आपकी महसूस होतो है ठंड़ी-ठंडी हवा। और ये सात चक्र हैं इन चक्रों तन्दरुस्ती बिल्कुल ठीक हो जातो है। अधिकतर लोगों की ठीक हो जाती है। अब बिल्कुल ही मरने को आप हुए तो भगवान कहता है कि इस बार मरने दो, फिर जन्म ले लेंगे कोई बात नहीं। और से इस चक्र को ठीक करना है आप अपने भी चक्र ठोक करिये कुछ-कुछ लोग इतने बेकार होते हैं कि भगवान सोचते हैं कि और दूसरों के भी ठोक करिये। इससे पहले तो आपको अपने ऐसे बैंकार लोगों को क्या फायदा है ठीक करने से क्योंकि ये तो वो दोप हैं जो कभी जलेंगे ही नहीं तो उनको ठीक करने से होंगे और इसी को हम कैहते हैं अपना ज्ञान। स्वयं का ज्ञान। जब फायदा क्या ? लेकिन अधिकतर लोग हर तरह की बीमारी से अपने चक्रों के बारे में आपने सब कुछ जान लिया तब फिर आप ठीक हो जाते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है। यानि कैंसर, बहत अपनी तन्दरुस्ती अच्छी रख सकते हैं । दूसरे किसी के चक्रों को लोगों का ठोक हुआ है। और ऐसी हालत में ठोक हुआ है कि गर आपने जान लिया तो आप दूसरों की भी तन्दरुस्ती अच्छी डाक्टरों ने घोषित कर दिया कि आठ दिन में मर जायंग। अब वो जिंदा बैठे हैं आठ-आठ, नौ-नौ साल बाद। ये कैसे हुआ। आप कहेंगे ये सब कैसे हुआ ये समझने को बात है कि ये कैसे है, ये हिन्दू है, ये ईसाई है। यह नहीं कहते। आप यह नहीं कहते हुआ। हमारा शारीरिक, मानसिक, भौतिक सारा अस्तित्व हो कि ये अग्रेज हैं कि ये हिन्दुस्तानी हैं या कोई और। आप यह चक्रों पर है। वो ही हमारे मूलतः शक्ति दायक स्रोत है मान लो नहीं कहते कि इसके बाल सफेद हैं कि काले हैं। कि इसने सूट आपके चक्र खूब काम कर रहे हैं, आपका अनुकम्पी नाड़ी तंत्र आ गई। चक्रों में संकीर्णता आते हो या तो इनकी शक्ति खत्म हो । कैंसर आपके अन्दर हो गया। अब कुण्डलिनी क्या करती है आ जाती है। एक साथ जुड़ जाने के साथ उनका संबंध मस्तिष्क, सकता। अगर काई सहजयोगी है, तो उसको कोई बीमारी नहीं। लोग हैं जो बिल्कुल स्वस्थ हैं। ये तो बढ़िया लोग होते हैं। क्योंकि जैसे ही वो पार हो जाते हैं जैसे ही उनको कुण्डलिनो का से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि पहले हमें जुकाम भी होता बहुत था तो डाक्टर के पास जाते थे और अब किसी को अगर कैंसर पर आप जानते हैं कि आपका कौन सा चक्र खराब है और दूसरों का कौन सा चक्र खराब है। अगर आप समझ लें कि किस तरह चक्र हो महसूस ही नहीं होते थे। अब आपको अपने चक्र महसूस रख सकते हैं। और अब आप बात चक्रों की करते हैं। आपकी भाषा चक्रों को होती है। आप यह नहीं कहते कि ये मुसलमान 1 पहना है कि कुर्ता-पाजामा पहना है यह नहीं कहते। ये सब बाह्य

सहजयोग में राजकारण नहीं चलता। ऐसे शुद्ध बनो। जब तक मन शुद्ध नहीं हुआ तब तक क्या फायदा है। धर्म कर्म करने से कोई फायदा नहीं। एक दम शुद्ध मन हो गया। शुद्ध मन से सिवाय अनुकंपा के कुछ और नहीं बहता । सबके लिये दिल बहने लगता है। दिल इतना बड़ा हो जाता है किसके लिये क्या करें ? उसके अव परमात्मा को पैसा-वैसा समझ में नहीं आता। ये बैंक लिया क्या करें? अब यह सोचे कि यहां इतने अंग्रेज बैटठे हैं। एक जमाने में इनके बाप-दादा, ये तो नहीं, यहां पर राज करते थे। से है ही नहीं। कैसे हो सकता है। बताइये। अरजोब सी ये संस्थाएं काफी दुष्टता को उन्होंने। आज जब ये अंग्रेज आते हैं आपके हैं। कुछ समझ में नहीं आती मेरे भी। तो इसके लिये आप बंदई में या दिल्ली के एयरपोर्ट पर तो आपकी जमोन को चूमते पैसा-वैसा नहीं दे सकते। यह तो जीवन्त क्रिया है। आप अपने हैं, नमस्कार करते हैं। कहते हैं कि योग- भूमि है। ये इन्होंने जाना पैट को कितना पैसा देते हैं कि वो पचन करते हैं आपके खाने क्योंकि इनके पास वो सूक्ष्म ज्ञान है। अब पूछिये कि ये निजामुद्दीन साहब वास्तव में औलिया थे कि नहीं? एक सवाल पूछियेगा। काम करते हैं । इसी प्रकार इसके लिये पैसा मांगने वाले को समझ फौरन हाथ मैं लहरियां शुरू हो जायेंगो। नानक साहब आदि गुरू थे या नहीं? पूछिये देखिये ऐसे हाथ करके पूछिये कोई सा भी सवाल। परमात्मा है कि नहीं, पूछिये। जो सच्चो बात होगी वो आपको लहरियां देगी, अगर झूठ बात होगी तो गर्मो देगी, कुछ अपने दिमाग से यह बात निकाल दोजिए कि आप भगवान के कुछ में तो थोड़े फफोले भी हो जायंगे। आपमें सामूहिक चेतना नाम पर पैसा दे सकते हैं। हां ठीक है यह मंडप बनाया इसका जागृत हो जाती है। उसके कारण आपके अंदर जो अनुकंपा है पैसा दो। ठीक है आप हवाई जहाज से आये हैं इसका पैसा दो। वो बहने लग जाती है तीसरी चीज जो होती है उसमें आपको ये सब भौतिक चौजों का पैसा दे सकते हैं। लेकिन परमात्मा के केवल सत्य पता होता है। पूर्ण सत्य। ये क्या होता है। जैसे मैने कार्य का आप पैसा नहीं दे सकते । तो ये जो आपके अंदर कहा कि पता करिये। जेल से छूटने के बाद कोई अपराधो गेरुए आतरिकता से एक चौज आ जाती है इसे कहते हैं सामूहिक कपड़े पहन कर यदि आपके सामने खड़े हो गये तो हो गये साधू चेतना। माने दूसरों के प्रति चेतित होते हैं। आपको महसूस होता बाबा। कुछ जादू मंतर किया कुछ ये वो किया। लोग हो गये पागल है इनका ये चक्र पकड़ा है। अब एकदम अंदर से ऐसी अनुकंपा उनके पीछे। हाथ ऐसे करके पूछिये फलाने ये गुरू हमारे हैं ये आयेगी कि चल भई इसको ठोक कर। दो चार सहयोगियों को सच्चे हैं कि झुठे। फौरन आपको पता हो जायगा। अगर 10 फोन करके, सब लग जायेंगे उसके पीछे। अरे भई कुछ तुमने साक्षात्कारी बच्चों को आंखों पर पट्टी बांध कर उनसे पूछिये कि अपना रक्षण किया है। कुछ अपनी ओर नजर की या लग गये। बेटेइस आदमी को क्या तकलोफ है सब एक ही ऊंगली दिखायेंगे। इतनी अनुकंपा बहती है लोगों को कि कुछ पूछो मत। मुझे फोन सब चोज आपको हाथ पर हो पता चलेगी। रोग निदान करने पर फोन करेंगे कि मां फलांना बड़ा बीमार है। अरे भई वो को जरुूरत नहीं। एक साहब बोस्टन गये थे कहने लगे निदान सहजयोगो है क्या। नहीं-नहीं मां वो है तो नहीं पर अच्छा आदमी करते-करते में मर गया। पैसे के पैसे लग गये। इन्होंने तो मेरी है, शरीफ है बेचारा, अच्छा आदमी है, आप जरा चित्त दोजिये। अंतरडियां निकाल करके निदान किया। यहां बाहर ही से आप उसको ठीक करना है। ऐसी अनुकंपा बहती है अनुकंपा में निदान कर लँगे कि किसकी क्या तकलीफ है। च्या शिकायत लड़ाई-झगड़े का क्या सवाल उठता है। अभी में मजार पर गई है। और घबडाने की कोई बात नहीं क्योंकि ये ठीक सब ठीक थी निजामुद्दोन साहब के। वो भी बहुत बड़े औलिया थे। हम मानते हो सकता है। शारीरिक ही नहीं, मानसिक, बौद्धिक और सबसे बड़ी बात है आध्यात्मिक। गलत-गलत गुरूओं के यहां गये। को भी पूजा करते हैं। मोहम्मद साहब को भी हम पूजा करते हमारे तलवार साहब से पूछिये वो बतायेंगे किस्से गुरुओं के। कैसे हैं। दोनों एक हो चौज हैं। आप समझेों या न समझें। बेकार में चक्करों में डालते हैं। और इन्सान बहकता हो रहता है। अब तो लड़ाई-झगड़ा कर रहे हो असल में सब एक ही हैं। बहरहाल हमने उनको मान लिया। अरे भई क्यों माना? उन्होंने तुमको क्या वहां भी मुझे आश्चर्य हुआ। वहां भी राजकारण चल रहा है । अरे दिया? हम तो माँ हैं हम तो पूछेंगे कि बेटे तुमको तुम्हारे गुरु ने भई जिसके दरवाजे बैठे हो वहां राजकारण क्या कर रहे हो । दिया क्या ? क्यों माना तुमने उनको? कुछ तुमको दिया है। और के आडंबर हैं। आप सिर्फ यह कहते हैं कि मां इसके ये चक्र गडबड़ हैं। आप सिर्फ चक्रों की बात करते हैं। कौन सा चक्र खराब है उसकी आप बात करते हैं। उसी तरफ आप का चित्त जाता है। उस चक्र को कैसे ठीक करना है वो आप सीख लौजिये । हो गया काम खत्म। और पैसा। सिरदर्द। ये मनुष्य ने बनाया है। इसका सम्बन्ध भगवान को! या इस हाथ को कितना आप रुपया देते हैं जो आपका सारा लोजिए इससे बढ़कर पाखंडी कोई नहीं। एक तो भगवान का काम करते हैं और ऊपर से पैसा लेते हैं। ये भगवान का काम नहीं कर सकते क्योंकि भगवान को तो पैसा समझ में नहीं आता। भी बहुत हैं उनको। हम सबको मानते हैं। हम गुरू नानक साहब द

तुमने जाना कैसे कि वो असली हैं या नकली। रुपया पे रुपया चढ़ा रहे हैं। कितना बताया कितना समझाया बहुत नाराज होते थे लोग मेरे से। ठिकाने पर आये। तो उस वक्त आपको केवल सत्य पता होता है। आप आदमी को देखकर बता सकते हैं कि कौन से गुरू से चला आ रहा है। क्योंकि हरेक गुरू ने कोई न कोई एक चक्र पर काम किया होता है। आप फौरन बता सकते हैं कि ये कौन से गुरू से चला आ रहा है। और ऐसे ये गुरू भागते देखती हूं शराब के खिलाफ इतना लिखा हुआ। इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लोग शराब पोते-पीते भी वही इश्तिहार बोलते रहते हैं। फिर हमारे यहां जो आजकल आधुनिक तरह की संस्कृति आ रही है इससे बहुत बचकर रहना चाहिए। इन लोगों की तो वहां बेचारों की खोपड़ी खराब कर दी है। सत्यानाश कर दिया। इनके घर-द्वार छूट गये एक-एक औरत आठ बार शादी करतो हैं तो एक-एक आदमी नौ बार शादी करता है। ना घर और इनके शिष्य भी क्योंकि सत्य को झेलनना बहुत कठिन बात । है इन लोगों के लिए। अब इसमें आप अपने होी गुरू हो जाते हैं । कुछ बच भी गये हैं वो एडस से मर रहे हैं । उससे बच गये तो जो बड़े-बड़े महान गुरूओं ने कार्य किया है वो सबसे बड़ा यह वहां और पचासों बीमारियां आ गई। अब एक नई बीमारी आई है कि हमारे अन्दर ऐसी शक्ति बसा दी है कि हम अपने गुरू है। जो लोग बहुत काम करते हैं इनका जो चेतन मस्तिष्क है वही हो सकते हैं। आप खुद ही अपने को बताते हैं कि भाई देख ये नहीं काम करता और वो हकवल हैं जैसे कि कोई बड़ी भारी रास्ता ठोक नहीं इधर मत चल, इधर चल। वो सत्य विवेक बुद्धि मछली या सांप हो इस तरह से उनको कंधे पर लादकर घुमाते जो कहती है वो सत्य विवेक बुद्धि हो जाती है। असत्य रह हो हैं दिमाग चलता है । बाको कुछ नहीं हाथ नहीं चल सकते, पैर नहीं जाता। अपने आप ही आप छोड़ देते हैं। मैं किसी से कुछ नहीं चल सकते, शरीर नहीं चला सकते। ये भी मैनें बताया था नहीं कहती। ये नहीं कहती कि शराब मत पियो। कुछ नहीं कहती कि होने वाला है। एडस भी बताया था। पर सब बड़े गुस्से होगये क्योंकि दिल्ली में अगर ऐसा कहो तो आधे लोग उठ कर चले थे। अब जब हो गया है तो बैठे हुए हैं। और गंदी-गंदो जगह जायेंगे। सब जाति के लोग शराब पीते हैं। हालांकि मना है सब दिमाग जाना और गंदी-गंदी बात सोचना। अपने बच्चों की भलाई पीते हैं। लेकिन सहजयेग में आने के बाद मैं कहती हूं कि जाओ नहों सोचते कि बच्चों का क्या होगा। अब सिनेमा में भी यही है। शराब की दुकान पर। कोई शराबी दिखाई दिया तो दूसरा रास्ता उसमें भी यह कुछ अच्छी बातें सिखाते नहीं। कम से कम काट लेंगे। और शराब की दुकान देखो तो अपना घर हटाकर हिन्दुस्तानो फिल्मों में यह नहीं दिखाते कि कोई बुरा आदमी हीरो दूसरी जगह चले जायेँगे। क्योंकि अंदर प्रकाश आ गया ना। हो गया है। वहां तो बुरा आदमी ही हीरो होता है। पर तो भी अपनी बाहर कुछ नहीं। सब ड्रग्स छूट गये, शराबें छूट गई वो सारा जो फिल्मों में भी ये कितनी गंदी-गंदी बातें सिखाते हैं बच्चों को। क्लब जीवन था ये वो था जिससे कि मनुष्य का सर्वनाश होता मार-पीट ये वो। अरे जब बच्चों को मार-पीट सिखाओगे तो है सब छूट गया। ये सारे कार्य सर्वनाश को ओर ले जाते हैं। लेकिन शांति कहां से रहेगी देश में। इस प्रकार एक तरह से हमारे ऊपर न जाने मनुष्य ऐसा क्यों करता है। लंदन में हम रहते थे कि देखा एक इंसान बड़े जोरों से चला जा रहा है मोटर लिये। पता नहीं इसको काहे की जल्दी हो रही है? रुककर देखा कि कहां जा गये उसी तरह से जवाब देने लग गये। इसी तरह से उनका रहा है तो एक पब के सामने खड़े हैं। दो चार अंदर से आकर नीचे गिरे हुए थे रास्ते पर बेहोश और ये उसी के लिये दौडे चले गये चोरी-छिपे और वहां बदमाशी कर रहे हैं। इस तरफ सतर्क आ रहे हैं कि मैं क्यौं नहीं बेहोश हुआ। अक्ल मारी जाती है ना, होना पड़ेंगा। जो बच्चे एक बार सहजयोग में आ गये उधर जिसको मत (बुद्धि) मारना कहते हैं बिल्कुल अक्ल मारी जाती मुड़कर भी नहीं देखते।उनको अच्छा ही नहीं लगता। उसका शौक है। और चाहे वो सिख हो चाहे वो मुसलमान हो, चाहे वो ईसाई ही नहीं चढ़ता। आपके सामने ऐसे बहुत से बच्चे आयेंगे आप हो बड़ी शान से अपनी बार दिखाते हैं, बार, घर के अंदर और देखियेगा। सहजयोग में आप खुश हो जायेँगे। इन सब चीजों से वहीं सबके फोटो अंदर बाहर एक हो जानो ये अपने आप हो हो जाता है। मुझे हमीं अपने गुरू हो जायें। उस गुरूतत्व से आप समझ जायेंगे कि कहने की जरुरत हो नहीं है। आप अपने ही गुरु हो जाते हैं। आप अपने ही आप ठीक हो जाते हैं मुझे कहने की कोई जरुरत ही लिये क्या अच्छा है। आपके घर वालों के लिये क्या अच्छा है। नहीं। आज मैने कह दिया इसका मतलब नहीं कि आप छोड़छाड आपके रिश्तेदारों के लिये क्या अच्छा है। इस देश के लिये क्या के भागिए। यह सब गंदी आदतें छूट जायेंगी। अब मैं इश्तिहार अच्छा है। उसी ओर आप बढ़ें। इस प्रकार सहजयोग में आने से आक्रमण आ रहा है। एक नये तरह का इन विदेशियों का। इधर आप जरुर ध्यान दीजिये। अपने बच्चे भी वैसे कपड़े पहनने लग की रहन-सहन भी हो रहा है और डिस्को-विस्को में जाने लग लगे हुए हैं। ये धर्म नहीं है। अपने को बचाना है। अब बचाने के लिये एक ही मार्ग है कि आपके लिये भलाई क्या है, अच्छाई क्या। आपकी फैमिली के

आपमें वो सुक्ष्मता आ जायेगी। और वह सुक्ष्म शक्ति जो कि सारे ही जोवन्त कार्य करती है। हम सोचते भी नहीं कि दिल क्यों धड़कता है। अनहद कह दिया अनहद है। पर कौन अनहद है। कौन अनहद है ये दिल को चलाने वाला? कौन है जिसने इन्सान को बना दिया ? और किसलिये बनाया है ? यह सारा कुछ मतलब आपको सहजयोग में मिल जाता है। और अब आप जानते हैं कि आपके जीवन का अर्थ क्या है। क्यों आप डस संसार में आये। क्यों आपने मनुष्य रुप धारण किया। इस वक्त आप समझते हैं कि आप कितने गौरवशाली हैं और कितने विशेष हैं । अब समझ लीजिये कि अगर कोई आप देहात में टेलोविजन ले जाइये और कहिये कि इसमें हर तरह का ड्रामा, हर तरह की चीज आयेगी। वो कहँगे कि क्या बकवास कर रह हो ये तो डिब्बा पड़ा हुआ है। डब्बा। ऐसे हम भी अपने को एक डब्बा समझते हैं। ये बात नहीं। बहुत बढ़िया तरीके से बनाया गया है ये डब्बा। इसमें सूक्ष्म तार ऐसे गिने हैं। उन्हें कोई छू नहीं सका अभी तक। वही सूक्ष्म तार छेड़ने की बात है। पर जैसे ही आप इस टेलीविजन का कनैक्शन लगा दौजिये वो हैरान कि अरे वाह ये क्या चीज है। ऐसे ही आप लोग भी हैं और आप अपने को जानिये और जानने के बाद आप समझ जायेंगे कि आप क्या हैं। बगैर अपने को जाने हुए चाहे आप सांचे कि आप लाट साहब हैं ता वा भी गलत है। और चाहे आप के मरुस्थल में जाकर वहां काम किया। साइबेरिया में भी सहजयोग चलाया बड़े आश्चर्य की बात है कि ये लोग कैसे साइबेरिया गये । पिछलो मर्तंबा जब में रूस गई तो एयरपोर्ट पर हजारों लोग थे। तो जब सामने आये तो मैने कहा कि ये कहां से आये। साइबेरिया से। कहने लगे कि माँ 50 आदमी आये हैं साइबेरिया से। साइबेरिया में लोगों को सजा देने के लिये भेजते थे जैसे अन्डेमान-निकोबार। हां अन्डेमान-निकोबार में भी सहजयोग चल पड़ा है। आपको आश्चर्य होगा कि जहां यह बीज चला जाता है उस आदमी को चैन हो नहीं पड़ता सहजयोग दिए बिना। अकेले कैसे रहें । माँ हम तो अकेले हो गये यहां कैसे सहजयोग करें। सहजयोगी बनाओ सहजयोगी। और हिम्मत को बात है। इस पर बस अहंकार नहीं आना चाहिए। हिम्मत होनी चाहिए। हर आदमी हजारों आदमियों को पार कर सकता है। अब हमारी उम्र हो गई आप जानते हैं लेकिन कोई ह्ज नहीं। आप लोग तो हैं। आप लोग तो हमारा कार्य करेंगे ही। और हमें पूर्ण आशा है कि सहजयोग दुनिया की रंगत ही बदल दंगा। आज न जाने क्यों मुझे दुनिया हो अलग नज़र आ रही है। कुछ फर्क ही नजर आ रहा है। न जाने क्यों? क्या हो गया है सब कुछ अलग हो अलग दिखाई दे रहा है। और बड़ी शांति सौो लग रही है अंदर में। हो सकता है कि वाकई में सतयुग का ऊषा काल आ गया है उसकी प्रभात आ गई है। सार ही धर्म, उसके संस्थापक एक हो पेड़ पर पैदा हुए फूल थे मैन कहा। लेकिन हमने ये फूल तोड़ लिय हैं और लड़ रहे हैं कि ये हमारा है हमारा है। सहज के सागर में सारे हो समा जाते हैं और सबको की हम पूजते हैं। समोभाव नहीं है समश्रद्धा भी नहीं कहना चाहिए पर पृूजा सबकी होती है। ये हुए बगैर हम लोग वा नहीं जान सकत कि हम सब एक हैं। कोई फर्क नहीं, हमारे में । आशा है कि जो नये लोग आये हए हैं और वे सूक्ष्म तार जैसे के तैसे रक्खे हुए सोचे कि आप कुछ नहीं तो वा भी गलत है। पहल अपने को जान लीजिए। और जब जाना जाता है तो दिया भी जाता है। जब तक दोपक में प्रकाश नहों होता, उसका जलाया जाता है और जब वो जल जाता है तो वो सबको प्रकाश देता है क्योंकि ये इसका कार्य है। इसी प्रकार एक दोप से अनेक दोप जलाने को जो बात है, उसका साक्षात सहजयोग है। इसमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हांने पहले मुझे देखा भी नहीं और जागृत हो गये। कैसे ? एक सहजयोगी गये उन्होंने किया। और प्रदेश में यह काम बड़े जोरों से हो रहा है। रूस में लोग आप आश्चर्य करेंगे कि साइबेरिया श ह हैं सहजयोग को प्रणात्नियां सौख लंग। कल भी मैं चक्रों पर बात करुंगी। एक-एक विषय पर बातचीत होगी। परमात्मा आपको आर्शीवादित करें।