Guru Puja: Gurus who belong to the collective

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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गुरु पूजा, काबेला लंक (इटली), 04 जुलाई 1993.

आज हम गुरु पूजा करने जा रहे हैं।

वैसे मैं आपकी गुरु हूं। परंतु मुझे कभी-कभी लगता है कि एक गुरु की धारणा मुझसे अलग है। आम तौर पर, एक गुरु बहुत ही सख्त व्यक्ति होता है और किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रखता है।

यहां तक ​​कि, उदाहरण के लिए संगीत: भारत में संगीत सिखाने वाले गुरु हैं; इसलिए, सभी नियमों का पूर्ण रूप से पालन किया जाना चाहिए। मैं इन महान संगीतकार, रविशंकर के बारे में जानती हूं। हम मैहर गए थे जहां वह आए थे और उनके गुरु, अलाउद्दीन खान साहब मेरे पिता का बहुत सम्मान करते थे। तो, उन्होंने उनसे पूछा, “तुम कुछ क्यों नहीं बजाते?” तब उन्होंने उस समय उन्हें कुछ भी नहीं बताया। तब उन्होंने यहां एक बड़ी सूजन दिखायी। उन्होंने कहा, “सर, क्या आप इसे देख पा रहे हैं?” उन्होंने कहा, “क्या?” “मेरा अपना तानपुरा उन्होंने मेरे सिर पर तोड़ दिया, क्योंकि मैं सुर से थोड़ा बाहर था।”

अन्यथा, वह बहुत अच्छे आदमी थे, मेरे विचार में; मैं अलाउद्दीन खान साहब को जानती थी  परंतु जब  यह सीखने की बात आयी, तो यह एक परंपरा है जो मुझे लगता है, कि आपको सभी प्रकार के नियमो को छात्रों के सामने रखना होगा, परंतु फिर भी छात्र गुरु से चिपके रहेंगे। वे हर समय देखभाल करते हैं। वे गुरु के लिए परेशान हैं, उन्हें यह चीज़ चाहिए, वह दौड़ेंगे, यदि वह ऐसा चाहते हैं, तो वह करेंगे।

एक गुरु शिष्य की विभिन्न प्रकार से परीक्षाएँ लेता है। जैसे शिवाजी के गुरु ने उनसे पूछा कि, “मैं एक बाघिन का दूध पीना चाहता हूं” तो, उन्होंने कहा, “ठीक है। यदि मेरे गुरु ने यह कहा है, तो यह उनकी खोज है। ” इसलिए, वह जंगल में गए और उन्होंने एक बाघिन को वहां बैठे देखा। वह अपने शावकों को दूध पहले ही पिला चुकी थी, इसलिए वह बाघिन के सामने झुक गए और उन्होंने कहा, “देखिए, मेरे गुरु को आपका दूध चाहिए। क्या आप कृपा करके मेरे गुरु के लिए कुछ दूध देंगी। ” और बाघिन ने इसे समझ लिया। वह खड़ी हुई और उन्होंने गुरु के लिए बाघिन का दूध निकाला।

तो, इसमें, कोई गुरु की आज्ञाकारिता देख सकता है, कोई असंभव चीज़ों को भी प्राप्त कर सकता है। दूसरी बार जब उनके गुरु ने कहा कि उनके पैर में एक बड़ा फोड़ा हो गया है और यह ठीक है और जो कोई भी इसे चूसेगा उसे मेरा शिष्य बनना होगा और मेरा शिष्य, जब वह इसे चूसेगा, तो मैं ठीक हो जाऊंगा। अब, हर कोई इस प्रकार से एक चीज़ के लिए अनिच्छुक था। शिवाजी महाराज ने कहा, “निःसंदेह मैं इसे चूसूंगा।” वह नीचे झुके और उन्होंने उसे चूसना आरंभ कर दिया, उस पट्टी के उपर से जो जो वहां थी! और वह एक आम था।

तो दो- तीन प्रकार के परीक्षण हर समय किए जाते हैं, शिष्यों के।

सबसे पहले, वे आपकी कितनी आज्ञा मानते हैं। परंतु, जैसा कि आप सभी को साक्षात्कार मिला है, और आप अपने स्वयं के गुरु हैं, मैं इस नियम को आप पर नहीं डालती हूं। मैं इसे आपकी स्वतंत्रता पर छोड़ती हूं। मैं आपको पूरी ईमानदारी से बताती हूं, हर संभव तरीके से, जो मैं समझती हूं आपके लिए अच्छा है, परंतु मैं विवश नहीं करती हूं, जैसे ये गुरु करते थे। मेरा तात्पर्य है, वे मारपीट करते थे, वे उन्हें एक कुएँ पर लटका देते थे। वे बहुत सख्त थे,अपने शिष्य के साथ। और मुझे इसका अनुभव हुआ है। वे कभी मुस्कुराते नहीं थे। हंसने का तो प्रश्न ही नहीं! और कभी भी किसी प्रकार की दयालुता की कमजोरी नहीं दिखाते, शिष्यों के लिए। यह आध्यात्मिक गुरु के बारे में है जो मैं आपको बता रही हूं। परंतु जो लोग अपना उत्थान चाहते थे, अपना साक्षात्कार चाहते थे, वे उन सभी प्रकार की यातनाओं से गुजरेंगे के लिए सज्ज रहते थे, जो वह उन पर डालते थे।

कुछ गुरु, जो कुछ शिष्यों को पसंद नहीं करते थे, वे उनसे कहते थे, “ठीक है, तुम अब हर समय अपने एक पैर पर खड़े रहो” तो, वे सारस की तरह एक पैर पर खड़े हैं। एक ओर, वे कहेंगे कि “आप अपने सिर पर खड़े रहें!” । जिस तरह से वे अपने शिष्यों के साथ व्यवहार करते थे, वह मेरे लिए बहुत कठिन था। मैं ऐसा नहीं कर सकती। हर समय करुणा मेरी आँखों में आँसू बन जाती है; मुझे यह असंभव लगता है। मैं इसे मात्र एक प्रकार से कह सकती हूं, कभी-कभी, इसे इस प्रकार से कह सकती हूं, जो थोड़ा डांट जैसा लगता है। परंतु माँ बनना और गुरु बनना सबसे कठिन काम है।

मुझे नहीं पता कि पहले क्या आता है। परंतु, बिल्कुल, हर माँ चाहती है कि उसका बच्चा अच्छा हो और देवी माँ चाहतीं हैं कि उनका बच्चा एक पवित्र इंसान बने। पहली चीज़ पवित्रता है। अब उसके लिए, आप किसी को कैसे विवश कर सकते हैं? मात्र एक चीज़ जो आपको समझाती हैं वह यह है – कि यदि आप पवित्र नहीं हो जाते हैं, तो आप अपने उत्थान को कैसे प्राप्त करेंगे? हमें पवित्र होना है। किसी व्यक्ति को पवित्र बनाने के लिए कोई क्या अनुशासन लगा सकता है? आप क्या विवश कर सकते हैं? आप किस बात के लिए क्रोधित हो सकते हैं? एक मात्र तरीका, जिसका मैं सामान्य रूप से प्रयोग करती हूं, वह क्षमा करना है। हो सकता है कि क्षमा सबसे विशिष्ट गुण है, मुझे लगता है, लोगों को सिखाने के लिए। जब वे जानते हैं कि उन्होंने गलत किया है और वे इसे स्वीकार करते हैं तो आपको क्षमा करना होगा।

जैसे, बुद्ध के जीवन में, एक व्यक्ति था जो उन्हें दुर्वचन कह रहा था, बिना समझे और जब वह अपने दूर्वचन बोल चुका था और बुद्ध चले गए थे, तो लोगों ने उससे कहा, “क्या तुम जानते हो कि तुम किसके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे? यह भगवान बुद्ध थे! ” उसे बहुत डर लगने लगा। उसने कहा, “वह कहाँ गए हैं?” “वह दूसरे गाँव गए है।” इसलिए, वह दूसरे गाँव गया और उसने कहा, “श्रीमन, मुझे अपने कथन पर खेद है। कृप्या मुझे क्षमा कर दें। यह सब गलत है और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। आप जिस प्रकार चाहें मुझे दंड दे सकते हैं। भगवान बुद्ध ने कहा, “तुमने ऐसा कब किया?” उसने कहा, “कल।” उन्होंने कहा, “मैं कल को नहीं जानता। मैं केवल आज को जानता हूं। ” आप देखें, यहां तक कि  आप इन चीज़ों को बताते हैं। कि कोई भी व्यक्ति कितना अच्छा अनुभव करता है, है ना?

तो, आपकी महानता, आपकी श्रेष्ठता, निश्चित रूप से लोगों को प्रभावित करेगी। यह लड़ाई से, झगड़ने से, कठोर बातें कहने से, काम करने वाला नहीं है।

साथ ही, गुरु बहुत नियंत्रित करते थे बच्चों को, शिष्यों को। पूर्ण नियंत्रण। आपको चार बजे उठना होगा, ध्यान के लिए बैठना होगा। यदि आप नहीं उठते हैं, तो वे मारपीट करते हैं! मैं यह समझ नहीं सकती। सहज योग बहुत अलग है, अन्य सभी गुरुओं से, क्योंकि हम प्रेम की शक्ति में विश्वास करते हैं। प्यार की शक्ति आपको सिखाती है, कि कैसे क्षमाशील बने। यह आपको श्रेष्ठ बनाता है। यह आपको बहुत संतुलित बनाता है।

इसलिए, भवसागर के लिए जो गुरु थे, उन्होंने मनुष्यों में धर्म की स्थापना करने के लिए: पहली बात यह है कि उन्हें स्वयं को संतुलित करना पड़ा, सभी व्यावहारिक चीज़ों के विपरीत, जैसा कि वे इसे कहते हैं। उन्हें लगता है कि यह व्यावहारिक नहीं है। परंतु उन्होंने कहा, “नहीं! हमारे लिए, यह उच्च, अच्छा और महत्वपूर्ण है। ” इसलिए, वे लोगों को संतुलित करेंगे क्योंकि उनके पास प्रेम की यह शक्ति थी। ये सभी आदि गुरु और उनके अवतार, यदि आप उन्हें देखते हैं, तो वे सदैव संतुलन रखते थे और सदैव परमात्मा के प्रेम की प्रशंसा करते थे।

जब हम साक्षात्कार के बारे में बात करते हैं, तो हमें सबसे पहले यह जानना होगा कि हमें स्वयं के साथ धैर्य रखना है। मुझे पता है कि कुछ लोगों को इतना अच्छा नहीं लगता है, कुछ लोगों को अभी भी बीमारियां है, कुछ लोगों को कभी-कभी चैतन्य लहरियां भी अनुभव नहीं होती हैं।

अपने आप से धैर्य रखें! जब आप अपने स्वयं के गुरु बन जाते हैं, पहली बात, जैसा कि गुरु ने अपने शिष्य के साथ धैर्य रखा है, आपको स्वयं के साथ धैर्य रखना चाहिए। उस धैर्य में, आप सीखेंगे कि आप सहन कर सकते हैं, इतनी सारी चीज़ें बिना किसी परेशानी के। वे कहते हैं, एक व्यक्ति, जो असंतोषी हो जाता है, “ओह, यह अच्छा नहीं है। वह अच्छा नहीं है, “क्योंकि उनमें स्वयं में धैर्य नहीं है। यदि आपके पास स्वयं में धैर्य है, तो आप सब कुछ स्वीकार करेंगे।

आप जहां भी हैं, आप स्वयं के साथ हैं, क्योंकि आप साक्षात्कारी आत्मा हैं। इसलिए, आप निराश नहीं होंगे, आप क्रोधित नहीं होंगे और साथ ही, आप बड़बड़ाएंगे और परेशान नहीं होंगे, क्योंकि आप स्वयं में आनंद ले रहे हैं। भले ही यहां एक गद्दा हो, ठीक है। अगर वह नहीं है, तो आप घास पर सो सकते हैं। यदि घास नहीं है, तो आप पत्थर पर सो सकते हैं। और आपको सोने की आवश्यकता भी नहीं है, पिछली रात की तरह। कोई अंतर नहीं पड़ता, जो भी हो।

पहली बात मैं लोगों के बारे में जान रही हूं, उनके पास स्वयं में कोई धैर्य नहीं है। सबसे पहले, सम्भवतः, क्योंकि वे जड़वादी हैं। उदाहरण स्वरूप यदि आपके पास बाईं विशुद्धी है, तो किसी भी तरह से आप एक कैथोलिक या टीएम या कुछ और हैं – तो हर समय आप स्वयं पर दया करना आरंभ कर देते हैं, अपने दुखों और परेशानियों का कोई अंत नहीं सोचते हैं और सदैव स्वयं की निंदा करने का प्रयास करते हैं। आप एक साक्षात्कारी-आत्मा हैं और आपके पास स्वयं की निंदा करने के लिए कोई कारण नहीं है – कोई कारण नहीं। जैसे एक व्यक्ति जो डूब रहा है, बचा लिया गया है, किनारे पर आ गया है, अब पूरी तरह से ठीक हो गया है, उसे अपना दूसरा जीवन मिल गया है, और वहां वह अभी भी अपनी पीड़ा व्यक्त करने का प्रयास कर रहा है, जैसे कि वह डूब रहा है। इसलिए, आपको स्वयं को जगाना होगा: “नहीं, नहीं! अब मैं वहां और नहीं हूं। मैं समाप्त कर रहा हूँ। अब वह चला गया। मैं अलग हूँ। वह कोई और था। मैं वही व्यक्ति नहीं हूं। ” यह आपको अपने आप को बहुत स्पष्ट रूप से बताना है, कि, “मैं स्वयं की निंदा करने वाला नहीं हूं।”

आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना आपका अधिकार था। आपको यह मिला। और फिर आप इसका आनंद नहीं ले सकते क्योंकि आपके पास ये जड़तव हैं। विशेष रूप से पश्चिम में दुखी होना बहुत प्रचलित है। ऐसे लोगों दुखी हैं जिनके पास कोई दुख नहीं है! इसलिए, ऐसे लोग जिनके पास अतीत के काल्पनिक दुख हैं, जो वास्तविकता में मौजूद नहीं हैं, उनके पास वास्तविकता का आनंद नहीं हो सकता है। वे नहीं कर सकते।

तो, सहज योगी के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि उसे आनंद में होना चाहिए, अपने हृदय में। यह एक महासागर की तरह है। यह एक ऐसे महासागर की तरह है जो हर समय आपको रोमांच प्रदान करता है। यहां तक कि इस महासागर की छोटी-छोटी बूंदें, जब वे आपके अस्तित्व में छलकती हैं, तो यह बहुत सुखद होता है। अनुभव केवल अनुभव किया जा सकता है। यह सब आपके भीतर प्रतीक्षा कर रहा है। और ऐसा व्यक्ति दूसरों को भी आनंदित करता है। वह किसी दूसरे व्यक्ति को दुखी नहीं देख सकता, परेशानी में। वह स्वयं आनंद से भरा है और चारों ओर आनंद फैलाता है।

आप छोटी-छोटी चीज़ों से आनंद प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि आपके पास महासागर है और एक छोटी सी चीज़ जो समुद्र में गिरती है, बहुत सुंदर लहरों का निर्माण करती है; वे तटों को छूती हैं, केवल आपके अपने अस्तित्व को ही नहीं, दूसरों के भी। बहुत, बहुत छोटी चीज़ें आपको बहुत प्रसन्न करती हैं, और यह कि आप हर समय मात्र एक सर्फिंग की तरह होते हैं, जैसा कि वे इन दिनों कहते हैं, इस प्यार की सुन्दर झील या सुन्दर महासागर पर।

प्रेम आनंद देने वाला है। यह सांसारिक प्रेम नहीं है, यह ईश्वरीय प्रेम है। तो, सहज योगियों के रूप में और गुरुओं के रूप में, हमें स्वयं से प्रेम करना होगा और अपने स्वयं के मूल्य को समझना होगा। मुझे लगता है कि सहज योगियों ने अभी तक उनके मूल्य को नहीं समझा है। इस संसार में कितने लोग साक्षात्कार दे सकते हैं? कुंडलिनी के बारे में कितने जानते हैं?  हर समय लोगों का पुनरुत्थान होते हुए कितनों ने देखा है? आपको इतना शक्तिशाली बनाया गया है कि लोगों को देखकर भी आप साक्षात्कार दे सकते हैं।

साधारण प्रेम में, सांसारिक प्रेम में, लोगों में भय होता है। वे डरते हैं कि उनका प्रिय विदा हो सकता है या बीमार हो सकता है, ऐसा हो सकता है और वे हर समय भय के आधीन हो सकते हैं; आनंद का प्रतिरोध करते हैं । परंतु, आपके लिए, आप अपने स्वयं के साथ हैं और आप हमेशा सुरक्षित रहते हैं। यदि आपका ध्यान खराब हो रहा है, एक सेकंड के लिए भी, तो आपको तुरंत पता चल जाता है कि आप गलत जा रहे हैं। आप अपनी स्वयं से रक्षा करें!

जैसे ही आपको कुछ शारीरिक समस्या होती है, आप इसे अनुभव कर सकते हैं। आप जानते हैं कि अपने आप को कैसे ठीक किया जाए। पर फिर, आपको संतुलन रखना होगा। यदि आप संतुलन से दूर हैं, तो आप चैतन्य लहरियों का अनुभव भी नहीं करते हैं, आपको यह भी अनुभव नहीं होता है कि आपके साथ क्या गलत है, आप नहीं जानते कि आप किस दिशा में बढ़ रहे हैं, चाहे आप नष्ट हो रहे हों। और यह संतुलन सभी सहज योगियों द्वारा स्थापित किया जाना है।

ये असंतुलन हमारे पास आते हैं क्योंकि हम अभी भी अपने अतीत के बारे में सोचते हैं या कदाचित अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं। हमें इन चीज़ों की चिंता है। तो चिंता करने की क्या बात है? जब सभी स्वर्गदूत और सभी गण आपके लिए काम कर रहे हों, आपको बस आदेश करना है, बस!

परंतु ऐसा होता है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति को राजा बना दिया जाता है और उसे एक सिंहासन पर बिठा दिया जाता है, परंतु इससे पहले वह एक भिखारी था, इसलिए जो कोई भी उसके सामने झुकने के लिए आता है, वह कहता है, “ठीक है। मुझे एक पाउंड दो। ” आपको यह जानना होगा कि आप सभी साक्षात्कारी आत्मा हैं और आपके भीतर सभी शक्तियाँ हैं। मात्र एक चीज़ जो बहुत महत्वपूर्ण है वह है संतुलन।

सहज योग में भी लोग असंतुलन में आ जाते हैं। कैसे? जैसे मैंने उन लोगों को देखा है। उदाहरण के लिए जो, इन सांसारिक नियमों से डरते हैं। वे नहीं जानते कि उनके चारों ओर इतनी शक्तिशाली ऊर्जा है। कुछ भी आपको रोक नहीं सकता। कुछ भी आपको बंदी नहीं बना सकता। कोई भी दोष नहीं ढूंढ सकता। परंतु जब आप संदेह करना आरंभ करते हैं, जैसे कल का संदेह, जब आप कहते हैं, “परंतु …” “परंतु …”। जब आप मानव निर्मित नियमों के बारे में सोचना आरंभ करते हैं, तो परमात्मा के नियम विफल हो जाते हैं। अन्यथा, कोई भी आपको दंडित नहीं कर सकता है, कोई भी आपको बंदी नहीं बना सकता है, कोई भी आपको कुछ भी नहीं कर सकता है। आप पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं।

तो, मुख्य अंतर गुरु की पुरानी शैली और गुरु की आधुनिक शैली के बीच यह है, कि पुराने गुरु कहते थे, “आपको पीड़ित होना चाहिए।” ठीक है, आपको बंधन में होना बहुत अच्छा है। यदि वे आपको विष देते हैं, तो विष लो। यदि वे आपको थप्पड़ मारना चाहते हैं तो आप थप्पड़ खाएं। वे जो भी करना चाहते हैं, आपको स्वीकार करना चाहिए, आपके दुखों के कारण। सहज योग में नहीं, क्योंकि आपकी माँ यहाँ बैठी हैं। किसी की हिम्मत नहीं आपको छूने की! कोई आपको क्षति नहीं पहुंचा सकता। मेरे कहने पर आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। कोई भी आपको क्षति नहीं पहुंचा सकता, परंतु आपके अंदर वह विश्वास होना चाहिए। गुरु के रूप में आदिशक्ति किसी के पास नहीं थी! आदिशक्ति, जिसके पास संसार की सभी शक्तियां हैं। तो कौन आपको क्षति पहुंचा सकता है? आपको कौन प्रताड़ित कर सकता है? आपको कौन परेशान कर सकता है? अपने आप को छोड़कर, यदि आप स्वयं को यातना देना चाहते हैं तो कोई भी आपकी सहायता नहीं कर सकता है।

तो, अन्य गुरुओ के इस शिष्य और आप के बीच सबसे बड़ा अंतर है – आपको कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा। आप कष्ट उठाने के लिए नहीं हैं और यहां तक ​​कि आप देखें, यदि कोई व्यक्ति है जिसमें कुछ नकारात्मकता है, वह व्यक्ति, कुछ सहज योगी अभी भी बेकार की चीज़ों  मैं उलझे रहते हैं, वे इसके लिए कुछ नहीं कर पाते, वें  गलत गुरु के पास गए थे या कुछ और। तो, वे एक दुर्घटना के शिकार होंगे, शायद वे कुछ भयानक का सामना कर सकते हैं। परंतु अचानक वे पाएंगे कि वे इससे बाहर निकल आएंगे। कदाचित नकारात्मकता किसी और की, किसी सम्बन्धी की, किसी भाई, बहन या शायद राष्ट्र की परंतु आप इससे बाहर निकलेंगे।

सहज योग में यह एक बहुत ही उल्लेखनीय बात है कि ऐसे लोग हैं जिन्हें पकड़ आ जाती हैं: “माँ, मेरा हृदय पकड़ रहा है। मेरी यह पकड़ है। वह पकड़ रहा है। ” परंतु एक बार जब वे साक्षात्कार देना चाहते हैं, तो बस, कुंडलिनी चलती है।

आप जो कुछ भी हो सकते हैं, जो भी आपकी समस्याएं हो सकती हैं, परंतु आप अपना हाथ बढ़ाते हैं और कुंडलिनी चलती है। मेरा तात्पर्य है, कोई भी उपकरण जो खराब हो गया है – जैसे की, मान लीजिए यह पंखा खराब हो गया है, यह काम नहीं करेगा परंतु सहज योगी नहीं, वे कार्यान्वित करते हैं। निःसंदेह, यदि वे सहज योग का अभ्यास नहीं करते हैं या यदि वे दूसरों को साक्षात्कार नहीं देते हैं, तो, निश्चित रूप से, यह बेकार हो सकता है। मान लें कि आप अपनी कार का प्रयोग नहीं करते हैं, मान लीजिए वह बहुत अच्छी है और आप इसका प्रयोग नहीं करते हैं, यह बेकार हो जाती है।

तो, आपको देना होगा। आपको साक्षात्कार देना होगा, आप सभी को, चाहे वह महिला हो या पुरुष, आप जिस भी देश से हों। आपको साक्षात्कार देना होगा। आपको इस ऊर्जा को जाने और काम करने देना होगा, अन्यथा यह घुट जाएगी। मैंने कई सहज योगियों को देखा है जिन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है, वे आपके लिए बहुत अच्छे हैं। माँ, “हम आपकी घर पर पूजा करते हैं।” वे पीड़ित होते हैं, गठिया से भी या अन्य प्रकार की चीज़ों से, कभी-कभी उन्हें  गर्दन का दर्द होगा, या उन्हें कोशिका रोग हो सकता है या सभी प्रकार की चीज़ें उन्हें हो सकती हैं!

इसलिए, आपको अपनी ऊर्जा का प्रयोग दूसरों को साक्षात्कार देने के लिए करना है। यह ठीक है, नियमों में, यदि आप नहीं समझते हैं, तो आपको क्षमा कर दिया गया है। कुछ भी आप भोलेपन या अज्ञानता में करते हैं, माफ कर दिया गया है। परंतु जानबूझकर, अगर आप कुछ करना चाहते हैं, तो मैं परिणामों को नहीं जानती, क्योंकि आप जिस क्षेत्र में सुरक्षित हैं, परंतु अगर आप उस क्षेत्र से बाहर निकलना चाहते हैं, तो सभी पक्षों में भयानक नकारात्मक शक्तियां काम कर रही हैं और आप उस में कैद हैं। यह सहज योग की गलती नहीं है।

सहज योगियों या सहज योग में दोष खोजने की एक और गलती है जो हम कभी-कभी करते हैं। मान लीजिए कि एक गुरु के साथ दस शिष्य हैं – बहुत अच्छे उत्कृष्ट गुरु – यदि वे उनमें से किसी एक के बारे में शिकायत करते हैं, तत्क्षण गुरु कहेंगे, “आप बाहर निकलो!” उनके पास एक-दूसरे की शिकायत करने का कोई कारण नहीं है। इसके विपरीत, जैसे यह हाथ दर्द कर रहा है, तब यह हाथ मस्तिष्क से शिकायत नहीं करता है, परंतु इसे शांत करने का प्रयास करता है।

तो, सहज योगी गुरु हैं जो सामूहिकता से जुड़े हैं। वे एक समूह में चलते हैं, जैसा कि ज्ञानेश्वर द्वारा वर्णित है। आप अब प्रबुद्ध जंगल की तरह आगे बढ़ते हैं, जो कुछ भी देता है जो लोगो को पसंद है, वह पाना चाहते हैं- कल्पतरु। और वह कहता है, “आप महासागरों की तरह चलते हैं और परमात्मा के बारे में बात करते हैं।” यह एक अकेला आदमी नहीं है जो खड़ा और कुछ कह रहा है। हमने कल नाटक में देखा कि कैसे एक अकेले आदमी को कष्ट उठाना पड़ा। परंतु आप एक समूह में हैं, और आप सभी एक समूह में आगे बढ़ते हैं, एक साथ, एक समझ के साथ। ऐसा शक्तिशाली समूह है। ज्ञानेश्वर के अनुसार, वे लोगों के लिए अमृत लाते हैं।

परंतु सामूहिकता की यह शक्ति जो किसी व्यक्ति को अनुभव होती है। वह व्यक्ति की पहली परख है। जो लोग सामूहिक नहीं हो सकते, वे अभी तक सहज योगी नहीं हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि उन्होंने मेरी सेवा की है, उन्होंने मेरी देखभाल की है, वे मेरी पूजा करते हैं या कुछ ऐसा करते हैं, जिससे उन्हें अधिकार है, दूसरों को डांटने, दूसरों पर गुस्सा करने, उन पर चिल्लाने, उन्हें काम करने के लिए बोलने, सभी तरह के काम करने। यह ऐसा नहीँ है। आप सहज योगी हैं जब आप पूर्णतया सामूहिक होते हैं, अन्यथा आप सहज योगी नहीं  हैं जब आप सामूहिक नहीं हैं। यह इतना सरल है कि अहंकार, अहंकार की जड़ताएं या अतीत की जड़ताएं आपको दूसरों से दूर रख सकती हैं और यहां दिव्य से कोई संबंध नहीं बचा है। जो लोग सामूहिक नहीं हैं उनका दिव्य से कोई संबंध नहीं है।

अब आप समझ गए हैं कि सामूहिकता क्या है। मेरे लिए सबसे आश्चर्य की बात यह है कि, आपको साक्षात्कार देने से, मुझे आपसे  सूक्ष्म से सुक्ष्म चीजों के बारे में बात करना बहुत सरल लगता है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी गुरु इन सब चीज़ों के बारे में बात कर सकता था – संभव नहीं है। यह उनके मस्तिष्क में नहीं जाएगा। यह बहुत सूक्ष्म है। आप सूक्ष्म हो गए हैं और सूक्ष्मता की अपनी सुंदरता है: अभिव्यक्ति में, बात करने में, दूसरों के साथ व्यवहार करने में, समझने में। यह बहुत मधुर और सुंदर है। सामूहिक भावना कुछ ऐसी है जैसे मिट्टी का एक छोटा कण सोचता है कि यह एक पर्वत है; जैसे एक बूंद सागर बन रही है। परंतु अगर वहाँ एक बूंद जो कहती है, “नहीं, नहीं, नहीं!” मैं सामूहिक नहीं हो सकती। मैं किनारे पर रहती हूं। ” ठीक है, धूप इसे सुखा देगी।, “परंतु, माँ, मैं आपकी पूजा करता हूं, मैं ऐसा करता हूं। मैं वैसा करता हूँ!” इस सबके साथ, यदि आप सामूहिकता में विकास नहीं करते हैं, तो बेहतर है कि मेरी पूजा न करें।

उसके लिए, एक गुरु को सामूहिकता के साथ कैसे कार्य करना चाहिए? सहज योग में किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि आप कुछ पदानुक्रम या उच्च व्यक्तित्व वाले हैं। यदि आप ऐसा समझना शुरू कर देते हैं, तो उस बिंदु पर, आपको पता होना चाहिए कि आप पर किसी का कब्जा है। शरीर में सबसे ऊंचा क्या है? कुछ भी तो नहीं! सब कुछ एक जैसा ही है। इसी प्रकार यह यहां है। इसका उपयोग अपने उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।

और कभी-कभी क्रूरता करने वाले लोग अकल्पनीय होते है। इस प्रकार की संतुष्टि कैसे हो सकती है? यदि आप सहज योगी हैं। मुझे नहीं पता, वे ऐसा कहते हैं, कि गुरु मारते थे और वे सभी प्रकार के काम करते थे।  वे भूत होंगे, नहीं। और बहुत गुस्से वाले गुरु। आप क्रोधित नहीं हो सकते, आप नहीं हो सकते। क्रोध का अर्थ है असंतुलन।

आप लगाव रखते हैं, जैसे कि अपने परिवार से, आप इस तरह की बातें करना शुरू करते हैं परंतु और नहीं। किसी भी चीज़ के प्रति लगाव दिखता है कि आपमें कोई संतुलन नहीं है। जो संतुलन में रहते हैं उन्हें निर्लिप्त होना होगा। अन्यथा आपको किसी से लगाव हो जाता है, “यह मेरी बेटी है। यह मेरा बेटा है। यह यह है, “तो आप सच्चाई नहीं देखते हैं। इसलिए, किसी भी प्रकार का लगाव, यदि आपको लगता है, तो जान लें कि आप संतुलन में नहीं हैं।

इसके अतिरिक्त, मैंने देखा है कि लोगों को एक प्रकार का अभिमान हो जाता है, अभिमान कि हम सहज योगी हैं। हम पूरी दुनिया को बचाने के लिए सहज योगी बन गए हैं। यह ऐसा है जैसे मैं कई सरकारी कर्मचारियों को देखती हूं जो सोचते हैं कि स्वयं का कोई अंत नहीं है। वे लोगों के सेवक हैं। उन्हें ‘अधिकारी’ कहा जा सकता है, परंतु सेवा करने के लिए अधिकारी। उसी तरह, हम परमेश्वर की सेवा करने के लिए इस संसार में हैं। और आपकी सेवा का उद्देश्य संसार को बचाना है, लोगों को बचाना है। परंतु यदि आप अभिमानी है, झूठा अभिमान, तो आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? जिस प्रकार से आप बात करेंगे, जिस प्रकार से आप व्यवहार करेंगे, कोई भी आपके पास नहीं आएगा।

आप किसी अन्य व्यक्ति से ईर्ष्या नहीं कर सकते – नहीं कर सकते – क्योंकि ईर्ष्या का अर्थ है कि आप अपने आप को वास्तव में हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं नहीं जानती कि इतनी अधिक ईर्ष्या क्यों है। मैं देख रही हूं कि लोगों को ईर्ष्या हो रही है, परंतु मुझे नहीं पता कि यह वास्तव में ईर्ष्या क्या है। यह एक हास्यप्रद है, है ना? यह कदाचित जानवरों के साम्राज्य से आ रहा होगा, मुझे नहीं पता। क्योंकि ईर्ष्या होने के लिए क्या है? मेरा तात्पर्य है, आप साक्षात्कारी आत्मा हैं, आप किसी से ईर्ष्या कैसे कर सकते हैं? जैसे, मान लीजिए, आप एक हीरा हैं और दूसरा भी एक हीरा है, बहुत अच्छा है। दोनों को एक साथ रखने से और भी शानदार हो जाएगा।

अब, मान लीजिए कोई व्यक्ति निकम्मा है और आप बहुत अच्छे हैं, तो उस आदमी से जलन महसूस करने की कोई बात नहीं है जो अच्छा नहीं है; या यह भी कि जो अच्छा है, जलन महसूस करने से, आपका क्या लाभ है? यदि आपको लगता है कि वह सज्जन अच्छा है या वह महिला अच्छी है, तो बेहतर है कि वह क्या कर रही है, उसका अनुसरण करने का प्रयास करें: वह कैसे अच्छी है, उसे यह अच्छाई कैसे मिली है। अध्ययन करना उचित है।

मुझे वास्तव में सबसे ज़्यादा मजा आता है जब सहज योगी आरंभ करते हैं, अन्य सहज योगियों के बारे में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना। “माँ, वह ऐसा है। माँ, वह ऐसी ही है। ” इसलिए, वे दूसरों की अच्छाई देखते हैं। वे दूसरों की महानता देखते हैं, दूसरों का बड़प्पन देखते हैं। और जब आप वह देखना आरंभ कर देते हैं, तो आप बनने लगते हैं।

यदि आप ईर्ष्या महसूस करते हैं – मेरा तात्पर्य है, मुझे नहीं पता कि यह किस प्रकार की बात है, जैसा कि मैंने आपको बताया – परंतु आप स्वयं की स्थायी रूप से निंदा कर रहे हैं। आज आपको किसी से ईर्ष्या हो रही है क्योंकि उसके बाल काले हैं। आपको किसी से ईर्ष्या होती है क्योंकि उसके सफेद बाल हैं। आप किसी से ईर्ष्या कर रहे हैं क्योंकि उसे लंबी नाक मिली है, किसी को ईर्ष्या हो रही है क्योंकि उसे छोटी नाक मिली है।

श्री माताजी किसी से बात करते हुए: “क्या हो रहा है? क्या हुआ? हा?”

‘योगी’: माँ …।

श्री माताजी: क्या आप सहज योगी हैं?

‘योगी’: हां

श्री माताजी: आप सहज योगी हैं? फिर आपको नियम पता है। मुझे बोलने दो। ठीक है? आप मुझसे बाद में पूछ सकते हैं।

यह तरीका नहीं है। यह यहां संसद नहीं है। मुझे पता है। मुझे पता है कि मैं किसी भी अनुशासन के लिए बाधित नहीं करती, परंतु यह आत्म-अनुशासन होना चाहिए। आपको आत्म-अनुशासित होना चाहिए। मैं अभी बोल रही हूं। मेरी बात सुनो। कदाचित मैं अपने भाषण में आपको उत्तर दे सकती हूं।

इसलिए, आपस में संबंध के बीच ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं है। नहीं हो सकता। क्योंकि यह आपके आनन्द को समाप्त कर देता है। अब, जैसा कि मैंने आपको बताया, कि, आप अपने भय से छुटकारा पा लेते हैं, आप अपनी ईर्ष्या से छुटकारा पा लेते हैं, आप अपने अभिमान से छुटकारा पा लेते हैं, झूठे और आप अपनी अधीरता से भी छुटकारा पा लेते हैं। आपमें धैर्य होना चाहिए।

यह गुरु की एक और शैली है जिसमें धैर्य है, अत्यधिक धैर्य। क्रोधित होने की कोई बात नहीं, परेशान होने की कोई बात नहीं। और धीरे-धीरे, आप देखेंगे, लोगों को बताए बिना, वे स्वयं को अनुशासित करेंगे। आपको स्वयं को अनुशासित करना है।

सहज योग की प्रणाली में, हमारे पास इतने अधिक शिष्य कभी नहीं थे। कल्पना करें, श्री ज्ञानेश्वर तक, केवल एक शिष्य था। और उनमें से कुछ का कभी कोई शिष्य नहीं था, जैसे विलियम ब्लेक, मुझे नहीं लगता कि उनका कोई शिष्य था। शायद, उन्होंने सोचा होगा कि कोई भी इस स्तर तक नहीं आ सकता है या समझ सकता है। उनमें से बहुतों का कोई शिष्य नहीं था। साईं नाथ का कोई शिष्य नहीं था। वे इस पृथ्वी पर आए, या कदाचित वे सोच रहे होंगे, “बेकार लोग! शिष्यों के होने का क्या लाभ? ”

परंतु, आपके लिए, यह इतना महान है कि हम अब इतने अधिक एक साथ हैं, इतने अधिक। हम एक दूसरे को समझते हैं। हम एक दुसरे को जानते हे। हम कुंडलिनी के बारे में सब जानते हैं और हम हर चीज़ के बारे में जागृति हैं। हम जानते हैं कि इस संसार में क्या हो रहा है। हम मात्र हिमालय की एक गुफा में नहीं बैठे हैं और बस हम परमात्मा का नाम ले रहे हैं – नहीं! हम संसार में हैं। हम संसार से भाग नहीं रहे हैं। हम इस संसार में हैं। हम हर दिन सामना कर रहे हैं, हर समस्या से जो भी है। परंतु हम वास्तविकता में हैं, और वे अज्ञान में हैं। इसलिए हम जानते हैं, हम समाधान जानते हैं, हम समस्या को जानते हैं और हम इसे हल कर सकते हैं।

अब, आपको अपनी शक्तियों के साथ प्रयोग करना होगा, निश्चित रूप से विनम्रता के साथ। कि मुझे कुछ लोगों को चेतावनी देनी है। आप देखते हैं, वे मात्र घोड़े पर बैठते हैं, तुरंत मैं कहती हूं कि, सबसे पहले, आपको पता होना चाहिए, आप ज्ञान का भंडार हैं, ज्ञान का पूर्ण भंडार है, हर चीज के बारे में बैंकों के अतिरिक्त, मैं कहूंगी कि, वह मेरे लिए एक समस्या है!

तो, आपके पास प्रक्षेपण होना चाहिए, ज्ञान के उस स्रोत की ओर। उदाहरण के लिए, सहज भाषा में हर चीज़ की व्याख्या की जा सकती है – सब कुछ। आप देखें कि यह पंडाल वहां खड़ा है क्योंकि इसके सहारे खड़ा है। सहज योग की तरह – हमें अपने धर्म का समर्थन है। बहुत ही साधारण सी बात। हर जगह आप पाएंगे, सहज योग की तुलना हर चीज़ के साथ मिलेगी जो आप देखते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह दोहरी प्रसन्नता देगा।

एक दिन मैं वापस आ रही थी और हवाई अड्डे में, यह था, मुझे पसीना आ रहा था, बहुत अधिक पसीना। और सहज योगी जो मेरे साथ थे, उन्होंने कहा, “माँ, आप इस जगह की सारी गर्मी, नकारात्मकता को सोख रहीं हैं।” यह एक सच्चाई थी। परंतु केवल एक सहज योगी ही देख सकता है। सब लोग ठीक प्रकार से बैठे थे। मैं ही अपने आपको पंखा कर रही थी! हर कोई इतना आराम से था, मुझ से ठंडक अनुभव कर रहा था और मैं अपने आप को पंखा कर रही थी!

एक दिन ऐसा हुआ, मैं एक दुकान में जा रही थी और सभी ऑस्ट्रेलिया के सहज योगी मेरे पीछे चल रहे थे, एक चीनी दुकान में। मुझे नहीं पता कि ये चीनी क्या करते हैं। ऊपर चढ़ कर मुझे बहुत गर्मी और थकावट अनुभव हो रही थी। मैं बस अपने आप को शांत करने का प्रयास कर रही थी। और वे कह रहे थे, “माँ, आपसे इतनी ठंडक आ रही है!” मैंने कहा, “बहुत अच्छा! बस मैं एक हूँ जो सभी गर्मी को सोख कर रही हूं और आप सभी को ठंडक दे रहीं हूं। ” परंतु यही मेरा कार्य है, सभी से पूरी गर्मी लेना और इसे कुछ शीतल और सुखदायक में बदलना। जब लोग चीखते हैं, चिल्लाते हैं, यह-वह, शांति से, शांत रहो और उन्हें सुनो तत्पश्चात आप उन पर पूरी तरह से पानी डाल सकते हैं और पूरी गर्मी दूर हो सकती है। तो, यह अवशोषण बहुत महत्वपूर्ण है, अवशोषण से डरना नहीं है। परंतु, इसके लिए मैं कहूंगी कि आपको ध्यान रखना चाहिए और देखभाल, जैसा कि आप जानते हैं, एक बहुत ही सरल बात है, यह कवच, यह बंधन जिसे आपको लेना है।

इस सब के लिए, मैंने जो कुछ भी कहा है, एक गुरु मंत्र है, यह याद रखने के लिए कि हम सहज योगी हैं। बस यह याद रखना। हम सहज योगी हैं। और एक बार जब आप जानते हैं कि आप सहज योगी हैं, तो यह प्रक्षेपण आरंभ हो जाएगा। विलियम ब्लेक के साथ क्या हुआ? यदि आप देखते हैं, तो उसने अपनी कल्पना का प्रक्षेपण करना आरंभ कर दिया और वह ज्ञान के बिंदु पर पहुंच गए।

इसलिए, जो कुछ भी आप देखते हैं, आप जो कुछ भी करते हैं, या अन्य कर रहे हैं, उसे सहज योग के साथ जोड़ने और प्रक्षेपण करने का प्रयास करें, तो आप भी प्यार के महासागर तक पहुंच जाएंगे। एक बार जब आपके पास वह है, तो क्या है? कौन आपको परेशान कर सकता है? आपको कौन सता सकता है? कोई आपके लिए कुछ भी कठिन कैसे बना सकता है? क्योंकि आप महासागर में बैठे हैं, कोई व्यक्ति कहीं बाहर बैठा है – वह कैसे महासागर में आकर आपको परेशान कर सकता है?

इसलिए, यह याद रखना है कि आप सहज योगी हैं। सुबह-शाम बन्धन लें। यह इतना सरल है। यहां तक ​​कि माइक पर यह कहना मुझे मूर्खता पूर्ण लगता है। परंतु मुझे कहना होगा क्योंकि लोग भूल जाते हैं। आप भूल जाते हैं कि आप साक्षात्कारी आत्माएं हैं। कम से कम अपने आप को बचाने के लिए अपनी चैतन्य लहरियों की जागरूकता का उपयोग करें! क्योंकि नकारात्मकता आपके साथ बैठी है। तो इस बारे में बहुत सावधान रहें, यह याद रखने के लिए कि, “मैं एक सहज योगी हूं।”

एक बार जब आप यह कहते हैं,  पता चल जाएगा कि आपको कैसा व्यवहार करना है, नियम क्या है, तो आपको पता चल जाएगा कि आपको किस अनुशासन का पालन करना है, आपको पता चल जाएगा कि कैसे दूसरों से प्यार करना है, सब कुछ। यही सार है।

आज से पहले कितने सहज योगी थे? बेचारे, इन सभी गुरुओं को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। आपको कोई कष्ट नहीं उठाना, किसी तरह के दुख में नहीं जाना है, अब और नहीं। परंतु यह मत भूलो कि तुम सहज योगी हो, इसीलिए, इससे आपको स्वयं पर पूर्ण विश्वास होगा और आप पूरी तरह से सुरक्षित हो जाएंगे।

उस स्थिति को स्थापित करने का प्रयास करें कि आप सहज योगी हैं।

इस प्रकार, आप अपने और दूसरों के गुरु बन जाते हैं।

परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें।