Shri Mahalakshmi Puja

(भारत)

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Shri Mahalakshmi Puja Date 31st December 1993 : Place Kalwe Type Puja Speech Language Hindi

आज फिर दुनिया में आये हर एक प्रकार के संघर्ष हम लोगों के सामने हैं। और उन संघर्षों को देखते हुये हम लोग ये सोचने लग जाते हैं, कि क्या ये सृष्टि और ये मानव जाति का पूर्णतया सर्वनाश हो जायेगा ? ऐसा विचार | करते हैं। और ये विचार आना बिल्कुल ही सहज है। क्योंकि हम चारों तरफ देख रहे हैं कि हर तरह की आपत्तियाँ आ रही है। आपके महाराष्ट्र में ही इतना बड़ा भूकम्प हो गया। लोग उस भूकम्प से भी काफ़ी घबरा गये। पर तीन साल लगातार मैं पुणे में पब्लिक मिटिंग में कहती रही, कि गणेश जी के सामने जा के शराब पीते हैं और ये गंदे डान्स करते हैं और बहुत बेहुदे तरीके से उनके सामने पेश आते हैं। पर गणपति ये बहत जाज्वल्य देवता है, बहुत जाज्वल्यवान। और उनको ऐसी गलत चीजें चलती नहीं । पता नहीं इतने साल उन्होंने कैसे टॉलरेट किया? और मैंने साफ़ कहा था, कि ऐसा करोगे तो महाराष्ट्र में भूकम्प आयेगा। भूकम्प शब्द मैंने कहा था। लेकिन कोई सुनता थोड़ी ही है। वो डिस्को वगैरा क्या गंदी चीजें हैं, वो ले कर के वहाँ डान्स करते हैं। शराब तो इतनी महाराष्ट्र में आ गयी कि इसकी कोई हद नहीं। अब दो तरह की जनता अब मैं देख रही हूँ, एक शराबी, बिल्कुल म्लेंछ और दुसरी शुद्ध, पवित्र ऐसी सहज कम्युनिटी। अगर आपको बच्चों को बचाना है और उनको एक शुद्ध वातावरण देना है, तो उनको जितना हो सके सहज में उतारो और आप भी सहज में उतरिये। सहज की अनेक उपलब्धियाँ हैं। इसके बारे में मैं आपको क्या बताऊँ, लेकिन आप आश्चर्य करेंगे कि हर रोज मेरे पास कम से कम १० -१२ पत्र आते हैं, जिसमें वो लिखते हैं, कि किस कदर उनकी जो परेशानियाँ थी वो साफ़ हो गयीं | जो तकलीफें थीं वो ठीक हो गयीं | कैसे उनके बच्चे हो गये। कैसे अॅक्सिडेंट में मरते मरते बच गये। हर एक तरह की बातें लिख कर भेजते हैं। अब एक नहीं, दो नहीं, आप सोचिये की रोज के दस-बारह खत आते हैं, और तीस दिन तक चलता ही रहता है लगातार। अब मैंने कहा कि ये तो मुसीबत है। जैसा है उसके बारे में कैसे बतायें? लेकिन ये भी सोचना चाहिये, कि सहजयोगियों को जो आज लाभ हुआ है, वो औरों को भी होना चाहिये। और ही इस में प्राप्त करें, और ही इस में आ जायें । अब ये होता है कि, हमारे यहाँ कुछ लोग आये थे, जो कि बहुत ही ज्यादा जड़वादी हैं। और उन में बहुत सारी खराबियाँ हैं। अब धीरे धीरे एक एक को कर के हमने कहा, अच्छा अब आप चले जाईये, ये कर लीजिये। कोई व्यवस्था ऐसी हो जायें, जिससे सहजयोग का जो कुछ भी, ऐसे तो कोई ….. नहीं है, पर जो भी कुछ उन लोगों ने ये समाज तैय्यार किया है उसको देख कर के लोग कहेंगे कि, ये कौन आ गये ? ये तो कोई देवदत दिखायी देते हैं, ऐसी सब को उम्मीद है। लेकिन अब भी अगर आप अपनी जो पुरानी आदतें हैं, उनको नहीं छोड़ेंगे और इस तरह से बर्ताव करते रहेंगे, कि जैसे आम दुनिया के लोग करते हैं। तो आप पे किसी को विश्वास नहीं होगा। अब सब से बड़ी चीज़ जो हमारे ऊपर छा रही है वो है जड़वाद, मटेरियलिजम्। वो आ रहा है परदेस से । परदेसी लोगों को क्या मिला है? जा के पूछिये। इतने बेवकूफ़ लोग हैं। महा बेवकूफ़ हैं वो। वो जो पैसा कमाते हैं, ন

उसका करते क्या है? पहले जमाने में जब हम लोग यंग थे तो हम लोगों ने देखा, कि जिसके पास पैसा होता था, वो कोई न कोई सार्वजनिक कार्य में लग जाता था। कोई न कोई सार्वजनिक कार्य, चाहे मंदिर बना ले और चाहे फॅक्टरी बना लें। चाहे स्कूल बना लें। सार्वजनिक कार्य में हमेशा होते थे । तो आज का जो अपना यहाँ पूजन है वो असल में लक्ष्मी का पूजन मानते हैं। लक्ष्मी का पूजन कैसे होना चाहिये? इस मामले में लोगों को पता नहीं, कि जब हम लक्ष्मी को चाहते हैं, तो उसके साथ साथ क्या चीजें चाहिये। इसलिये आज का पूजन लक्ष्मी पूजन है। और इस फॅक्टरी में लक्ष्मी पूजन हो रहा है, बड़ी अच्छी बात है। सब से तो पहले लक्ष्मी जी के आगमन के बारे में कितनी बार बताया। फिर मैं बताऊंगी, लक्ष्मी में पहले सब से पहली चीज़ ये है, कि उसका जो रूप बनाया हुआ है, वो ऐसा है कि जिससे बहुत सीखना है। पहले तो ये कि, जब लक्ष्मी स्वरूप देखा जाये, कि उसके अन्दर , पहले उनके दो हाथों में कमल का होना देखा जाता है | वो भी गुलाबी रंग के कमल। वो स्वयं गुलाबी या सफ़ेद रंग के वस्त्र पहने हो । गुलाबी रंग का मतलब है, प्रेम और सफ़ेद का मतलब है वैराग। तो अधिकतर गुलाबी में होती हैं। एकाध बार मैंने देखा है, एक फोटो में, कि उनको सफ़ेद भी पहना दिया है। पर अधिकतर गुलाबी वस्त्र पहने होती हैं। इसका मतलब ये है, कि लक्ष्मी जी जो हैं ये प्यार है। और जो इन्सान प्यार करता है उसी को लक्ष्मी प्राप्त होनी चाहिये। और दूसरों के हाथ में जायेगी तो लक्ष्मी अलक्ष्मी हो जायेगी। तो उनके हाथ में जो कमल के फूल हैं वो भी गुलाबी हैं। और इस कमल के फूल की विशेषता ये है, कि इसके अन्दर वो काटने वाला भूंगा, कि जिसने कितनों को काटा होगा, वो भी अगर आ जाये, तो उसका आतिथ्य करते हैं। उसको अपने यहाँ रखते हैं। और पंखुड़ियाँ जब बंद हो जाती हैं, तो बहुत सम्भल के उसको बंद करते है, जिससे तकलीफ़ न हो। वो रातभर वहाँ सोता है। तो पहली चीज़ ये है, कि कमल का फूल अत्यंत सुन्दर होता है। लक्ष्मी जी के कमल के पुष्प में जो खुशी होती है, जो सुन्दरता है, एक आतिथ्य के लिए आमंत्रण है, वो चीज़ एक रईस आदमी में होनी जरूरी है । ये बात हमने राजेश से की थी। मैंने कहा, इतने सारे आये हैं, ४०० -५००, और उनमें से कुछ लोग ज्यादा नहीं रहना चाहते तुम यहाँ क्यों रख रहे हो? इतना पैसा खचा क्यों करोगे? दो-चार दिन और रहना चाहते हैं तो? तो कहने हैं, तो लगे, ‘माँ, अभी सब यहाँ व्यवस्था हो गयी। रहने दीजिये, क्या हो गया ? हम लोग बड़े खुश हो जायेंगे | ‘ ‘अरे भाई, इतना पैसा खर्चा हो रहा है, कुछ उसको तो सोचो।’ ‘नहीं, नहीं, माँ । बड़ी खुशी की बात है। ये लोग आ गये।’ मैंने कहा, ‘ठीक है, तुम्हें रखना है तो रखो, पर खर्चा बहुत हो रहा है। मुझे अच्छा नहीं लगता। तुम लोग बेकार में खर्चा कर रहे हो।’ ‘नहीं नहीं, बेकार में नहीं। इससे हमें बड़ा आनन्द आयेगा ।’ ये लक्ष्मीपति का लक्षण है। लक्ष्मीपति होता है, उसके अन्दर आनन्द आना चाहिये । मेहमान हमारे घर आयें, खायें, पीयें । नहीं तो लक्ष्मी का उपयोग क्या ? आप अपने ऊपर वो नोटे लगाकर तो नहीं घूमते नां! जैसे किसी गधे को नोट लगा दो और वो लक्ष्मीपती हो जायें । हे पहला लक्षण है, कि आप अत्यंत प्रेम से चाहते हैं, कि लोग आयें और हमारे लक्ष्मी तत्त्व में समायें, और उस में मज़ा उठायें । ये बड़ी भारी चीज़ है। ऐसा सागर भी होना चाहिये। और तभी लक्ष्मी ठहरती है। नहीं तो लक्ष्मी तो भाग जायेगी। जैसे कोई आदमी है बड़ा कंजूस, उसके किसी तरह से पैसे निकल ही जायेंगे| हमने बहुत लाइफ़ में ऐसे लोग देखे, बड़े कंजूस, महाकंजूस। और इतनी बेवकूफ़ी में आये, और अभी जो अपने यहाँ

दो-चार स्कॅम ह्ये उसमें सब कंजूस लोगों ने पैसे लगाये थे। वो ऐसे ही ले के जायेंगे जहाँ गलत होता है, जहाँ पैसा बनाये । दूसरी बात ये है, कि जब किसी के पास पैसा आ जाता है, वो कंजूस होगा तो बिल्कुल भिखारी के जैसे रहेगा। उसके यहाँ दो कम्बल भी मिलना मुश्किल। और इतना पैसा जुटा के जायेगा, और जब मरेगा तो उसके बच्चे आपस में लड़ मर के पैसे उड़ाते रहेंगे। जहाँ बाप कंजूस होगा तो बच्चे उसके पैसे उड़ाते रहेंगे। हर तरह की आफ़त होती है। अगर आप के पास लक्ष्मी आये और आप के गुण न हो कि उसे स्वीकार्य करें, उसकी शोभा रखें । अगर आपने लक्ष्मी की शोभा नहीं रखी , तो लक्ष्मी ऐसे बहक जाती है कि पूछिये मत। आप किसी भी गरीब आदमी को सौ रुपये दे के देखिये । वो गुत्ते पे जायेगा शराब पीने। उसको कभी अच्छी बात नहीं सूझेगी। चलो कोई अच्छा करें । कोई अच्छी बात करें। कोई देवी- देवताओं की बात करें। धर्म की बात करें। या कोई धर्म के बारे में लिखें। या कोई लेखक हो उसकी बात करें। ये सब नहीं आयेगा । तो हर तरह के गलत काम की तरफ़ लक्ष्मी की दौड़ हो जाती है। उसका कारण है, कि लक्ष्मी महामाया है। जिसको भेजा है वो गलत रस्ते पे जा रहा है। पहले गलत रस्ते पे जाने का ज्यादा अंदेशा है, बजाय इसके की अच्छे मार्ग पे जायें । तो लक्ष्मी के लिखा गया है, कि वो एक हाथ से दान देती है। अब दान किस को देना है वो भी देखना चाहिये । सत्पात्री दान होना चाहिये। नहीं तो किसी दुष्ट गुरु को आप दान देंगे। वो दस लोगों को खराब करेगा । सत्पात्र में दान देना है। जो लक्ष्मीपति होता है, वो कभी किसी से पैसा ही नहीं लेता है, कि भाई, तू इतना पैसा मुझे दे। नहीं तो ऐसा कर। ऐसा नहीं करता। हाँ, जो उसका हक है, वो लेगा बस्। बेवजह नहीं लेगा। तो उसके अन्दर दान की शक्ति होनी चाहिये और इस फॅक्टरी के लिये खास कर मैंने राजेश से बताया, कि इसको सबको फॅमिली समझ के इसको तुम बढ़ाओ। जिसको जो देना है, देना चाहिये, जिसका हक है, वो मिलना चाहिये । तो दान जा है, वो बहुत जरूरी चीज़ है। पर वो दान कहाँ कर रहे हैं, ये देखना चाहिये। बेकार चीज़ों में दान करना आप सब से बड़ी गलती समझें। क्योंकि उस में गलत चीजें जो हैं वो बढ़ेगी, इतना आप पैसा गलत लोगों को देने से। हरे रामा वालों का किसी ने दान नहीं देना है। अब उसका क्या कर रहे हैं? वो सब को हरे रामा बनाने में लगे हैं। कहीं नाच रहे हैं, कहीं कुछ। सब के थ्रोट खराब हो रहे हैं। किसी को कॅन्सर हो गया। पहले सोच लेना चाहिये, कि किसको आप दान दें। जिससे कोई अच्छा काम हो, ऐसे ही जगह दान देना चाहिये। पहले पता लगाना चाहिये, कि कौन सी संस्था ठीक कार्य कर रही है, उसकी व्यवस्था क्या है। अब ये भूकम्प के लिये हमने भी बहुत पैसा दिया है। लंडन में, और इधर लोगों ने दिया और वो कह रहे हैं, कि भूकम्प के लोग तो जैसे के वैसे ही हैं। वो पैसा गया कहाँ? जो भूकम्प में दान दिया, वो भी पता नहीं भूकम्प में हडप हुआ कि क्या! ऐसे हालात में हमेशा सोच के देना चाहिये, जहाँ दे रहे हैं। जहाँ दे रहे हैं उस स्थान को देखना चाहिये, कि उसका इस्तमाल कैसे हो रहा है? वो कैसे इस्तमाल हो रहा है? उसका क्या उपयोग हो रहा है? उसको किस तरह से खर्च कर रहे हैं? उनकी कमिटी में कौन से लोग हैं? ऐसे ही लोगों को दान देना चाहिये। ऐसे आदमी को अच्छा भी नहीं लगेगा, कि कोई आदमी भूखा बैठा है और आप आराम से खा रहे हैं। खाना जायेगा ही नहीं आपको। तो दान का मतलब ये होता है, कि जो अपनी खुशियाँ हैं, उसको बाँटिये। जो कुछ हमको मिला है उसको

बाँट लेना चाहिये। और दूसरी उनकी एक और बात है कि वो सब को आश्रय देते हैं। आश्रय, सब अपने आश्रित लोग हैं। जो अपने यहाँ काम करते हैं, जिनसे हमारी सब चीज़ें चलती हैं। इन सब चीज़ों को आश्रय देना । वो भी आश्रय देते समय उस का सौजन्य होना चाहिये । आपके घर में नौकर-चाकर हैं, या खेतों में काम करने वाले आपके लोग हैं, फॅक्टरी में काम करने वाले हैं, जहाँ भी हैं। उन सब का मान रख के, उनको आश्रय देना । आश्रय का मतलब पैसा देना ही नहीं। लेकिन उसको मान से रखना है। और मान बहुत बड़ी चीज़ है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि उनको अगर आप मान दे दें तो बहुत खुश हो जाते हैं। हमारे पति, आप जानते हैं, कि शिपिंग कॉर्पोरेशन में थे और बंगाल के जो यूनियन वाले थे, वो जरा सता रहे थे। मैंने कहा, ‘कुछ नहीं। तुम उनसे कह दो, कि मैंने उनको ब्रेकफास्ट के लिये बुलाया है।’ उनको ब्रेकफास्ट के लिये बुला लिया। मैंने खुद अपने हाथ से खाना वगैरा बना कर दिया। उस दिन से उनकी अकल ही ठीक हो गयी। खाने ने जादू कर दिया की क्या! बिल्कुल ठीक हो गये। फिर उन्होंने जिद की कि हमारी जो बिल्डींग है, उसका उद्घाटन माताजी करेंगी। कहाँ है माताजी? उनको बुलाईये, उन्हीं से करायेंगे। वो भाभीजी कहते थे । अब उसी में उनको मान हो गया| उनके जो सेक्रेटरी साहब थे, उन्होंने कहा कि, माँ, जब आप आयेंगी यहाँ, तो एक कप चाय जरूर मेरे यहाँ पीना। मैंने भी उनके घर जा कर एक कप चाय पी ली। कुछ मिठाई वगैरा दे दी। सब कहने लगे कि बंगाली लगती है। बहुत खुश हो गये। उस दिन से उनका भी झगड़ा खत्म। तो किसी को मान देने से झगड़े खत्म हो जाते हैं। उसको लगता है, कि इतना बड़ा मान किया तो मैं कैसे अपमान करूँ? तो एक तरीका जितने का है कि उस आदमी को मान दीजिये। आर्टिफिशिअली नहीं, रिअली, मन से मान देना चाहिये। सन्मान करना चाहिये। ये खास चीज़ आप समझ लीजिये। कोई भी व्यवहार में मान देना। अब जैसे आपको पता है, कि महाराष्ट्र में इसलिये तो लोगों को बिजनेस नहीं आया । क्योंकि ये लोग फड़ाफड़ा बोलने लगते हैं। अब जैसे पुणे में लोग हैं। पूछा एक महाराष्ट्रियन्स से की, ‘भाई, तुम्हारे पास चंदेरी साड़ी है? कौन सी चाहिये?’ कहा, ‘गुलाबी रंग की है?’ ‘नहीं है। जाओ, चलो, आगे चलो।’ कह दिया, महाराष्ट्रियन लोगों ने । ये क्या बिजनेस है? दूसरा उधर सिंधी बैठा था। उसने कहा, ‘माताजी आओ, बहनजी आओ।’ सारे रिश्ते लगा कर बुलाया। मैंने कहा, ‘तुम्हारे पास चंदेरी हैं?’ कहने लगा, ‘हाँ, है। बैठो तो सही । चाय पीओ, पान खाओ, फलाना।’ ‘मैं पान नहीं खाती।’ ‘अच्छा, चलो, क्या करती हैं? ये लो, वो लो।’ एक घंटा बिठाया। और उनके पास न तो चंदेरी साड़ी थी, कुछ नहीं था। चार-पाँच उनके सूट… ले कर मैं बाहर निकली। इनसे पीछा छूटा। समझे ना आप! और अगर मारवाडी होगा वो तो आपके गले में घंटी लगा देगा तब आप निकलेंगे वहाँ से। इससे सोचना ये चाहिये, कि मनुष्य का अपमान करने से, उसको ऐसी वैसी बातें सुनाने से, आपका बिजनेस, लक्ष्मी कैसे चलेगी? लक्ष्मी तो बिल्कुल प्यार है। और जो आदमी प्यार से बात करेगा , आओ जी, बैठो जी, खाओ जी। ये वो। ये रोज का अनुभव है। ये रोज का अनुभव है। हमारे यहाँ लखनऊ में एक हलवाई साहब हैं। बहुत उनका नाम है, रामभरोसे। वो बहुत ही मशहूर हलवाई हैं वहाँ। जैसे मैं, लड़की ससुराल जानी थी तो मैंने कहा कि मिठाई खरीदें। ‘ आओ, आओ, बैठो , बैठो। ये वो। अरे, | ये फलानी चीज़ आपने खायी नहीं।’ मुझे लेना भी नहीं था। जबरदस्ती चौदह किलो मिठाई मेरे साथ बाँध दी। मैंने

कहा, ‘अब ये प्लेन से जायेगी कैसे ? प्लेन छूटा है की नहीं ।’ कहने लगे, ‘बैठो, प्लेन छूटा की नहीं, अभी मैं फोन करता हूँ।’ मिठायी ली उन्होंने मुझे पकडवा दी। उनकी बड़ी चलती है। उनका इतना नाम है। लोग जा के घंटो बैठे हैं। तो कोई कहता है, ‘माताजी बैठी हैं। हम तो दो घंटे बैठे हैं। ये खिला रहा है, वो खिला रहा है। ये, वो।’ और अपने कारीगरों को डाँटता हैं, कि ‘अरे, कितनी देर से बैठे हैं। उनको जाने का है ।’ अभी तक खिला ही रहा है वो । और इतने प्यार से वो करता है, ‘अच्छा ये देखिये , इसको इधर से तोड़ के देखिये।’ तो मनुष्य को लगता है कि भाई इसके प्यार का अपमान कैसे करें? तो सब से बड़ी चीज़ है लक्ष्मी तत्त्व में प्यार! जहाँ प्यार नहीं होता लक्ष्मी भाग जायेगी। कोई हजबंड है समझ लीजिये, बहुत रईस है अपने को समझते हैं। अपनी बीवी को पैसा न दे। थोड़े दिन में ऐसी गदा उस पे आती है, कि सब पैसा खत्म| तो इस प्रकार लक्ष्मी तत्त्व को बहुत प्रॅक्टिकल चीज़ समझिये| बहुत प्रॅक्टिकल| ये मटेरियलिजम नहीं है। ये प्यार है। प्यार और मटेरियलिजम में बड़ा ही अंतर है। मटेरियलिजम में अपने लिये पैसा कमाता मनुष्य है। अपने लिये कमाता है। अपने घर में रहता है। उसका एक लाइफ स्टाइल हो जाता है। वो बेवकूफ़ी है भाई! किसी ने कुछ निकाल लिया वही लाइफ स्टाइल हो गया। किसी ने कोई फॅशन निकाली वही फॅशन हो गयी | जैसे अपने यहाँ आजकल मैंने सुना कि लड़कियाँ हैं, बस शीशे के सामने ही बैठी रहती हैं। मैंने कहा, शीशे के सामने क्यों बैठी रहती हैं? सजाती रहती हैं अपने को, ये, वो। अब किसी ने निकाल लिया, कि मुँह पे ये चीज़ बनाने से अच्छा होगा, वो चीज़ बनाने से अच्छा होगा। तो बैठी है घंटों! बैठी है अपना टाइम बर्बाद करने। तो इनका तो लाइफ स्टाइल और भी खराब है। उनको बच्चे भी नहीं चाहिये। औरतें कहती हैं कि, ‘हमें तो मेकअप का भी पैसा नहीं देते। इसलिये हमें बच्चे नहीं चाहिये। हमारी सजावट को पैसा नहीं, इसलिये हमें बच्चे नहीं चाहिये।’ हिन्दुस्तान में औरतें जो हैं, वो जेवर जरूर बनवाती हैं। जेवर बनवाना जरूरी भी है। क्योंकि कल कोई आफ़त आ जायें तो वही जेवर काम आयेंगे । पर कोई औरत ऐसा नहीं कहती हिन्दुस्तान में की, भाई , बच्चे नहीं मुझे चाहिये क्योंकि मैं जेवर नहीं बनवा सकती। बच्चे जेवर वगैरे, दुनिया से भी बड़ी चीज़ है, आज तक भारतवर्ष में, आज तक। अब आगे का पता नहीं। वहाँ तो बच्चों का इन्शुरन्स नहीं करते, मुझे किसी ने बताया। क्योंकि बच्चे माँ-बाप को मार डालेंगे। वो बच्चे मार डालेंगे, पैसा ले लेंगे, इसलिये वहाँ इन्शुरन्स ही नहीं । ये कौनसा लक्ष्मी तत्त्व है ? हमारे यहाँ जैसे एक रिवाज है, था, मतलब है अभी, ऐसी आशा है, कि अभी है। तो क्या रिवाज है ? कि बच्चों के लिये करो, बच्चों के लिये करो । ये मिनिस्टर लोग भी पैसा खाते हैं, बच्चों के लिये ही खाते हैं । मतलब ये की अति है। मेरे बच्चे की शादी करानी है, मुझे इतना पैसा दो, ये दो, वो दो| उसके लिये पैसा खाते रहते हैं । बच्चों के लिये। वो भी बड़ा स्वार्थीपन है, कि बच्चों के लिये खाते हैं । पर सब से बड़ी बात बच्चों को पाने की है, कि उनको प्यार दो। उसका इसकी बड़ी घबराहट होती है, कि कहीं माँ से मेरा प्यार न छूटे। ये आप लोगों का भी हाल है हमारे साथ, कि कहीं माँ हमसे नाराज नहीं हो जायें। ये इतनी प्यार की महिमा है। तो लक्ष्मी तत्त्व जो है वो प्यार है। और ये मटेरियलिजम जो है, ये प्यार को काटता है। बीवी है, वो सोचती हैं, कि कैसे मैं डिवोर्स लूँ? क्या करू? कैसे मैं ठिकाने लगाऊँ? हजबंड सोचता है, कि बीवि का पैसा कैसा मैं मारूँ ? प्यार की कोई बात ही नहीं सोचता है। सब पैसे ही पैसे की बात सोचते हैं। सब पैसा ओरिएंटेड लोग हैं। उनको ये चाहिये, की ये शादी से क्या

होगा? ये बच्चों से क्या होगा? इससे क्या लाभ होगा ? ये होगा? और प्यार जो है, वो इस जड़ को, इस मॅटर को कैसे इस्तमाल करता है? जैसे कि आपको मुझ से प्यार है। पर आप कर क्या सकते हैं? कुछ नहीं। नमस्ते कर लिया। फूल दे दिये। फिर मन नहीं माना, में आपके लिये एक साड़ी लाया। हमेशा के लिये एक ही बस, एक ले लीजिये कृपया। ‘अरे भाई, मेरे पास इतनी साड़ियाँ हैं। तुम क्यों लाये?’ ‘नहीं, माँ, बड़े इससे लाये हैं, लिये लाये हैं।’ इतना ज्यादा करेंगे कि दे दो बाबा, साड़ी दे दो । चलो, कभी कुछ तो कभी कुछ। ‘माँ, आपके लिये आपके ये खास अपने हाथ से बून के लायें हैं शॉल।’ अरे बाबा, मेरे पास इतनी शॉल्स हैं। शॉलों से में भर गयी। पर हमने तो अपने हाथ से बुनी है। हमने अपने हाथ से एम्ब्रॉयडरी की है। इतने प्यार से.., कैसे मना करें? मेरे आँखों में आँसू आते हैं। ले ही लेती हूँ। करूँ क्या? अभी मैं इनसे कहती थी, की एक घर बनाया, अभी दूसरा घर बनाना पड़ेगा। उस घर को मैंने गोडाऊन बना दिया है। अब किसी को बोलेंगे नहीं, तो वो इतने दुःखी हो जायेंगे| रोते ही जायेंगे, कि माँ ने लिया ही नहीं, माँ ने लिया ही नहीं। भाई, अब क्या करना ले कर के? प्यार बाँटने के लिये ये मॅटर है। अब जैसे ये फूल लगा लिये, ऊपर से ये छत लगा लिया है, ये सजावट कर ली। किसी की भी जरूरत नहीं। ऐसे भी सब हो सकता था। पर अपना प्यार कैसे दिखायें माँ को। कोई हमारे यहाँ उत्सव होता है, कोई भी चीज़ होती है, तो हम लोग उसमें अपना प्यार जताने के लिये न जाने क्या क्या चीज़ें करते रहते हैं। मैं पोलंड गयी थी। तीन-चार बार गयी हैँ। कोई भी चीज़ खरीदती हूँ तो वहाँ की औरतें कहती हैं, हाँ, लोकल है, बहुत बढ़िया हैं। मैंने कहा, ‘क्यों, भाई? क्या किया मैंने?’ कहने लगी, ‘आप हमेशा दूसरों के लिये खरीदती हैं, अपने लिये कुछ खरीदती ही नहीं।’ मैंने कहा, ‘मेरे पास बहुत पड़ा है। वही बेच डालो। बहुत ज्यादा है।’ इस तरह से समझा जाता है, कि दान बहुत बड़ी चीज़ है। हमने अपने जीवन में ऐसे ऐसे लोग देखे हैं, कि जो लोग बहत दानी थे। एक रावबहादुर श्रीलक्ष्मीनारायण कर के थे। शायद वो मारवाडी थे। बहुत रईस आदमी थे । तो उन्होंने एक लड़की को पाला था। तो कुछ लालची लोगों ने ये सोचा कि इस लड़की की शादी करा रहे हैं। पहुँच गये। तो इन्होंने बता दिया, मैंने सारा पैसा मेरी युनिवर्सिटी को दिया है। इस लड़की की मैं सर्वसाधारण शादी करने वाला हूँ। भाग गये वहाँ से (लोग) । कोई उस लड़की से शादी करने के लिये तैय्यार नहीं। वो सुंदर थी, बहुत गुणी थी । उसको बहुत सारी चीज़ें आती थी। पर नहीं। ‘इनकी लड़की से हम शादी करने आये थें। ये तो हम को कुछ पैसा नहीं देने वाले।’ उन्होंने कहा, ‘जिनको पैसे के लिये इससे शादी करनी है, उससे मैं शादी नहीं कराने वाला हूँ।’ इस प्रकार ये .में रईस जो मटेरियलिजम है आज पूरी तरह से जखड़ रहा है। इन लोगों से सीखना ये है, कि किस मटेरिलियजम के। वो खोपड़ी में चला गया, उससे सारी गंदगी, सारी बुराईयाँ, सब चीजें आ गयी । पैसा आया। अब अमेरिका गये थे। एक उससे बड़ा पैसे वाला आदमी है। आप आये, अच्छा हुआ। मेरे घर में चलो। मैंने कहा, अच्छा भाई, उसके घर गये। तो कहने लगा, ‘हमारा जो बाथरूम है, उसमें जरा बच के रहिये। मैंने कहा, क्यों? ‘उसमें सब सॉफ्ट बटन्स है।’ ‘अच्छा!’ ‘क्या होता है?’ कहने लगे, ‘आपने गलत बटन दबा दिया तो आप सीधे स्विमिंग पूल में चले जायेंगे।’ ये तो बड़ा कठिन है। मैंने कहा, ‘मुझे ऐसे बाथरूम में नहीं जाना। कोई सीधा साधा नहीं है तुम्हारे पास?’ तो कहने लगे , ‘नहीं, नहीं, ये बहत अच्छा है। मैंने इतना रुपया खर्च किया है इस पर। ये मेरी युनिक डिस्कव्हरी है।’ मैंने कहा, ‘भैय्या, तुम्हारी डिस्कव्हरी तुम्हारे पास रखो। मुझे ऐसे बाथरूम की

आदत नहीं। कोई सीधा-साधा बाल्टीवाला बाथरूम हो वहाँ पे भेज दो मुझे।’ दूसरे फिर कहने लगे, ‘मेरा बेड एक स्पेशल है।’ मैंने कहा, ‘क्या?’ ‘ये बटन दबाओ तो आपका सर ऊपर हो जायेगा। ये बटन दबाओ तो पैर ऊपर हो अरे, मैंने इतना रूपया खर्च कर के आपके लिये बेड बनाया।’ ‘मेरे लिये नहीं । मुझे आप जमीन पे दीजिये सीधे सीधे । मैं जमीन पे सो जाती हूँ। चाहे तो कारपेट बिछा दो। मैं नहीं ऐसे पलंग पे सोने वाली, जिस पे सर ऊपर होता है, पैर जायेंगे।’ ‘मुझ को ऐसा पलंग नहीं चाहिये। मैं आराम से सोना चाहती हूँ। हाथ पैर ऊपर कर के क्या…. ऊपर होता है। मेरे हाथ-पैर एकदम क्या बेकाबू हो गये हैं क्या? भले कोई और चीज़ का इस्तमाल करो।’ कहने लगे, मेरे बेड एकदम सॉफ्ट है, बस ये छोटा सा बटन।’ देख के मैंने कहा, ‘मैं जा रही हूँ, इस घर में मैं नहीं रहने वाली।’ तो मोटर में कहता है कि, ‘इसके सारे लॉक्स अलग से लगाये हैं।’ मैंने कहा, ‘क्या?’ कहने लगे, ‘उल्टे लगे हैं। अगर खोलना है तो उल्टी तरफ से खोलना ।’ मैंने कहा, ‘कोई अगर फँस गया तो फँस गया। उसको क्या मालूम तुम्हारा दिमाग उल्टा है।’ उसके लिये हजारो रुपये खर्च कर के उसने उल्टे वाले लॉक्स लगाये। अब उसका इम्प्रेशन पड़ने की बजाय मैं भागी। मैंने कहा, नमस्कार! यहाँ कोई नॉर्मल जगह हो वहाँ ले चलो। इसी प्रकार उनका पैसा कहीं न कहीं जाता है। अब दिखाते फिरते हैं, हमारा ये अलग है। मैंने कहा, ‘भाई, लॉक को अलग करने की क्या जरूरत है।’ एक जैसे लॉक रखो। इसमें शान दिखानी क्या जरूरत? ‘ये मैंने स्पेशल बनवाया। इसमें ये डिवाइस है, उसमें ये डिवाइस है।’ और अन्दर चोरी करने के लिये कुछ नहीं तुम्हारे पास। ये पलंग, ये कौन उठा के ले जायेगा? पागल होगा वही ले जायेगा। कहने लगे, ‘माँ, मैंने बहुत ऐसा ऐसा रुपया खर्च किया है। इन्व्हेस्टमेंट किया है। मेरे पास कोई खास पैसा नहीं तो चोर काहे को आयेगा ?’ मैंने कहा, ‘ठीक है, कौन चूराने आयेगा ? पागल भी नहीं आयेगा तुम्हारे घर।’ कारण ये कि सारा पैसा फालतू चीज़ों में खर्च करते हैं। तो वो जो लक्ष्मी त्त्व का जो विज्डम है, वो होना चाहिये। भाई , जहाँ खर्च करना है, वहाँ तैय्यार है और जहाँ नहीं खर्च करना वहाँ नहीं करें। इसमें कंजूसी की कोई बात नहीं। आज एक शरदचंद्र जी की एक बात याद आयी। शरदचंद्र को दुनिया में सबसे बड़ा लेखक समझते हैं। इस से बढ़ के लेखक मैंने देखा नहीं। और हिन्दुस्तानी चरित्र को जैसा उसने रचा है, ऐसा तो कोई रच भी नहीं सकता। क्योंकि ये हिन्दुस्तानी चरित्र भी जबरदस्त है, तो उन्होंने बहुत सुन्दरता से बनाया। एक ऐसा रचा था, कुछ बच्चे थे। वो लायब्ररी वरगैरे बनाने का बहाना कर के पैसे कमा रहे थे। वो एक आदमी के पास गंगा पार कर के गये। उनसे कहा की, हम लायब्ररी बना रहे हैं, हमें डोनेशन दीजिये, दान दीजिये। तो उन्होंने कहा, ‘अच्छा, तुम्हें दान चाहिये! मैं सोचता हूँ। बिठा दिया। इतने में एक विधवा स्त्री अपने भाई को ले कर आयीं | कहने लगी कि, ‘दस-बारह साल पहले मेरे पति ने आपके पास पैसे रखे थे, पाँच सौ रुपये। वो उसके बाद मर गये और हमें पता है कि वो आपके पास पाँच सौ रुपये रखे है। तो आप पता कर लीजिये । ‘ कहने लगे, ‘अच्छा!’ अपने मुन्शी से कहा, ‘भाई , पता लगाओ। १० १२ साल पहले पता लगाओ किसी ने पाँच सौ रुपये मेरे पास रखे थे ।’ और उन बच्चों को चवन्नी दी और कहा, ‘जाओ। चवन्नी बहुत है तुम्हारे लिये।’ उनको बड़ा गुस्सा आया, कि चवन्नी हमें दी। फिर उन्होंन पूरा पता लगाया, कि उस औरत का पैसा वहाँ रखा हआ है कि नहीं। रखा था तो उस पर ब्याज जोड़ के इन लड़कों के सामने उनको दिया। तब उनको समझा, कि इन्होंने पाँच सौ रूपये के हजारो रुपये बना कर दिये, और.

हम को चवन्नी पकड़वा दी, तो ये आदमी समझ गया है कि हम कितने गहरे पानी में हैं। और उस औरत को इतना पैसा दिया। ये नहीं कहता तो कौन इसको पकड़ने वाला था? कुछ पेपर्स नहीं, कुछ नहीं। उसका कोई प्रूफ नहीं था। कायदे से तो कुछ नहीं था। लेकिन उन्होंने सारा पता लगा के, कितना हुआ , क्या हुआ? और सब कुछ कर के उसका पैसा वापस किया। ये लोग चक्कर में आये कि ये क्या चरित्र है देखो, कि पाँच सौ के लिये हजारो रुपये उस औरत को दे के और हम को चवन्नी पकड़वा दी। सब नीचे गर्दन कर के चले गये। ये शरदचंद्र जी की लीला है, पर मेरे ऊपर उसका इतना मार्मिक असर हुआ, कि जो अच्छी बात है, जो धार्मिक बात है, जो लक्ष्मी तत्त्व की बात है, वो करना चाहिये। लड़के, चोर-उचक्के उठ के चले आये कि लाओ, हम को पैसे दे दो। उनको पैसा देना तो अपात्र में दान है। लेकिन जिसका है, जिसका ड्यू है, उसको देना चाहिये। हमारे पास भी अगर किसी का पैसा हो ना, तो पूरी समय वो बातें दिमाग में आते ही रहती हैं, उसका पैसा देना है, पैसा देना है। दूसरा भूल भी गया होगा, लेकिन किसी के दो रुपये भी मेरे पास रह गये तो वो मिलने ही वाले हैं आपको| कहते हैं कि, ‘चलो, हो गया, दे देंगे पैसा।’ ‘नहीं, नहीं, जब तक उसको पैसा नहीं देंगे कुछ नहीं।’ ऐसे सहजयोगियों का होना चाहिये। एक तो किसी से उधार मत लो। लेना हो तो पहले ….. (अस्पष्ट) से पूछो, और जैसे उधार लो उसके बाद वो वापस करो। लक्ष्मी तत्त्व में उधारी बहुत खराब है। और लेना ही पड़ता है कभी कभी समझ लीजिये। तो एक-एक पैसा उसका | बहुत जरूरी है, नहीं तो ये जो लक्ष्मी तत्त्व है, ये खराब होता है। बहुत से लोगों को ये भी छुड़ा देना चाहिये। ये आदत है, कि कुछ हुआ आधा रुपया रोक लिया। बहुत गलत बात है। कभी नहीं रोकना है। काम पूरा होने पर पूरा पैसा दे देना चाहिये। एक तरह की ये अपने व्यक्तित्त्व की इमानदारी है। कम से कम इतना सहजयोगियो में आना चाहिये। अपने व्यक्तित्त्व की ईमानदारी है, किसी का पैसा लिया है वो वापस कर देना है। दूसरा, दान के बारे में भी ये अपने को ये नहीं सोचना है, कि मैंने तुझे इतना दान दिया, मैंने तुझे इतना पैसा दिया। ये सोचा तो आपका दान हो गया व्यर्थ। अपने पिता का एक किस्सा सुनाये, कि हर संडे को उनकी आदत थी, कि कम्बल, टॉवेल, नहीं तो चद्दरे चीज़ें बाँटते थे। बहुत से लोग आते थे लगातार और ये दिये जा रहे हैं, दिये जा रहे हैं। तो लोगों ने पूछा कि, ‘भाई, ये क्या कर रहे हैं आप? लोग दो-दो, तीन-तीन चीजें ले जा रहे हैं, आप आँख नीचे कर के दे रहे हैं।’ ‘देखो भाई, देने वाला देता है और मैं बीच में खड़ा हूँ। उसको क्या है? जो देने वाला है, वही देते हैं। दो चीज़ लें, चाहे तीन चीज़ लें, जो लेना है वो ले जायें। उसमें मैं क्या करू ? मैं तो देने ही को लाया हूँ। ये तो लेने वालों को देखना चाहिये, कि देना क्या है और किस किस को देना है? मैं तो आँख नीचे खड़ा कर के इसलिये खड़ा हूँ, कि सब लोग मुझे ही धन्यवाद दे रहे हैं! मेरी तो आँख नहीं उठती। ऐसे ऐसे बड़े लोग मैंने देखे। मैंने तो अभी, कल परसों किस्सा सुनाया, कि हमारे घर में सब दरवाजें खुले रहते हैं हमेशा। जब तक मेरी शादी हुई घर के सारे दरवाजे खुले रहे । फादर कहते थे , कि अपने यहाँ से कौन चोरी कर के ले जायेगा ? एक सिर्फ चोरी हुई, कि एक आदमी आया और ग्रामोफोन उठा के ले गया। फादर सबेरे उठ के कहते हैं कि, ‘अरे, बड़े दुःख की बात है, सिर्फ ग्रामोफोन ले कर गया। उसके पास रेकॉर्ड नहीं है । कैसे बजायेगा? वो कहाँ से पैसे लायेगा रेकॉर्ड के लिये?’ उनको बड़ा दुःख हुआ। तो माँ ने तंग आ कर कहा कि, ‘पेपर में दे दो। भैय्या रेकॉर्ड रखा है। आ के रेकॉर्ड ले के जाओ।’ कहने लगे, ‘हम तो ग्रामोफोन कल खरीद ही सकते हैं, पर ये रेकॉर्ड वो कहाँ से खरीदेगा ?’

माने चोर की पर्वा, कि वो रेकॉर्ड क्यों नहीं ले गया? अब वो बजायेगा क्या? कोई संगीत का शौकिन है, जो ग्रामोफोन ले गया। तो बजायेगा क्या? बाकायदा, मतलब उनको यही लगा रहा कि अगर वो आ जायें तो उसको रेकॉर्ड दे देना है। पर वो आया ही नहीं कभी। और उनको ये लगा रहा कि बेचारा कैसे बजाता होगा ? इस तरह के लोग हमने देखे हैं दुनिया में। बहुत। और कभी उनको पैसे की दिक्कत नहीं। कभी नहीं। कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। कभी कोई परेशानी नहीं हुई। कुछ नहीं हुआ। तो कहने लगे, ‘मेरी अभी तबियत ठीक इलेक्शन में उनको खड़ा होने के लिये वल्लभभाई पटेल ने लिखा। नहीं। मैं नहीं खड़ा होऊंगा।’ उन्होंने तीन हजार रुपये भेजे थे। इन्होंने वापिस किये। कहा, ‘अगर तीन हजार रुपये दे कर के मुझे जीतना है तो मुझे नहीं चाहिये। अॅडवर्टाइजमेंट नहीं करना है, कुछ नहीं करना। मैं ऐसे ही खड़ा रहूँगा।’ वो खड़े हो गये। वो तो जीत तो गये ही, पर उनके विरोध के जो लोग थे उन बेचारों के सारे जामिन के जो पैसे थे वो सारे जब्तहये। तो जिन्होंने इतना देश का कार्य किया है, जिन्होंने इतना नाम कमाया है, जिन्होंने सब की सेवा करी, उनको रुपया-पैसा खर्चा करने की जरूरत क्या ? लक्ष्मी तत्त्व ही नहीं हैं न उनके अन्दर। अगर असलियत नहीं है। अभी, आज कल के ये जो आये हये हैं इलेक्शन वाले लोग, इनके पास है क्या ? इनके पास कोई सेवाभाव है, कोई बडप्पन है, कुछ है? नहीं। आ गये टूटपूंजे, अपने दस लाख लगायेंगे तो पच्चीस लाख कमायेंगे। लगाने की जरूरत इसलिये हैं, कि आपकी अपनी कोई किमत ही नहीं है । समझ लीजिये कल मैं इलेक्शन में खड़ी हो गयी तो मुझे एक कौड़ी लगाने की जरूरत नहीं । है नां ये बात! तो ये जो लोग हैं ऐसे, जिन्होंने सेवा नहीं की, कुछ नहीं, उनको वोट ही नहीं देना चाहिये और पूछना चाहिये कि , ‘तुमने कौन सा सोशल वर्क किया है?’ क्या काम किया है? तुम को क्यों दिया गया? जब लक्ष्मी तत्व अपने देश में असलियत में उतरेगा, तो हम सारे दोषों से ऊँचा उठ सकते हैं। इस मामले में हम जरूर कहेंगे, कि रशिया के लोग बड़े ध्येयवादी हैं। ध्येय है। अभी एक लड़की आयी थी। उसे संगीत सीखना था । मैंने कहा, तुम्हारी यहाँ शादी करा देते हैं। कहती हैं, ‘नहीं माँ, मैं इसके लिये कोई कन्व्हिनियन्स नहीं ढूंढ़ना चाहती हूँ। मुझे स्कॉलरशिप मिल जायेगी, तो मैं यहाँ रहँगी, और नहीं मिलेगी तो रशिया चली जाऊँगी। शादी का कन्व्हिनियन्स ले के मुझे नहीं सीखना है संगीत।’ उसकी संगीत सीखने की आराधना सुन के मैं दंग हो गयी, कि ये रशिया की लड़की मुझे बता रही है, कितने दिन से जो सुनने के लिये मैं लालायित हूँ, कि ये आराधना है। इस आराधना के लिये मैं शादी का कन्व्हिनियन्स नहीं लेने वाली हूँ। छोटी सी, अठारह साल की लड़की, उसने ऐसी बात कही । ऐसे इन लोगों में कहाँ से ये ध्येयवाद आया ? क्योंकि वहाँ मटैरियलिज्म है ही नहीं । वहाँ की गवर्नमेंट ने कहा कि, ‘तुम्हारे जो जो फ्लैट है हम तुमको दे देते हैं। तुम अपने पझेशन ले लो। तुम्हें उसको सम्भालना होगा।’ उनकी पझेशन का क्या अर्थ है? क्या मिलता है? पझेशन में रखने से क्या मिलेगा ? हमें नहीं चाहिये। तुम ही सम्भालो। हमारे बस का नहीं। कोई चीज़ मेरी है ये सोचना ही मटैरियलिज्म है। उन लोगों को देख के मैं हैरान हूँ, कि किसी भी चीज़ की उनको परवाह नहीं। मैंने कहा कि, ‘देखो तुम्हारे यहाँ इतना बड़ा हो रहा है, पूर हो रहा है। कैसे होगा तुम लोगों का?’ कहने लगे, ‘माँ, हम तो भगवान के दरबार में आ गये हैं न! अब काहे का हमें…..। क्या काम है? छोड़िये। इस गवर्नमेंट को मरने दीजिये। चाहे कुछ होने दीजिये। हम से कोई मतलब नहीं। ‘ मैंने कहा, क्या इस कम्युनिजम में ये

मटैरियलिजम से ऊपर उठ गया। कम से कम ७०% फीसदी लोग बिल्कुल मटैरियलिजम से ऊपर हैं। कोई परवाह नहीं। ये इनकी सेवा देख के मैं हैरान हूँ। वहाँ छोटा सा घर लिया है मैंने। आ के रहते हैं। ‘कहाँ रहते है ?’ पूछा। तो इन लोगों के वहाँ छोटे छोटे से कमरे होते हैं। बिल्कुल छोटे छोटे। वहाँ रहते हैं। हम अपना खाना ले के आते हैं। और सबेरे करीबन पाँच बजे सब को बुला कर के और वो जमीन जहाँ हम रहते हैं नं, वहाँ पे सब (अस्पष्ट)। कमाल के लोग! ये मटैरियलिजम ने हमें खराब किया । चार साड़ियाँ बहुत हैं उनके लिये| और मेरे लिये, उनका रहता है, कि साड़ी देनी है । मैंने कहा, ‘भैय्या, मेरे पास बहुत साड़ियाँ हैं। क्यों मुझे साड़ियाँ वरगैरा देते हो तुम? रहने दो।’ ‘नहीं माँ, हम लोगों का मन करता है, कि आपको साड़ी दें।’ ऐसे मोहब्बती लोग । ऐसे लोग है दुनिया में अभी भी। क्योंकि ये मटैरियलिजम का चक्कर नहीं आया है। हम लोग कोई अमेरिकन नहीं, जो हाथ रखते हैं नं सर पे। वहाँ एडस् हो गये हैं, वहाँ लोग मर रहे हैं। सब कुछ है। पर कुछ पूछिये ही नहीं, जो हालत वहाँ है। अभी सब किताबे मैं लिखने वाली हूँ, कि तमाशा क्या है? इसके पीछे मत लगो। समाधान रहे। सहजयोग के लिये समाधान रहे। और समाधान में रह कर के आप एहसास करें, कि हमें जो मिला है, बहत है। इसी आनंद में रहें, फिर अनेक चीज़ मिलती है। धनसंपत्ती तो मिलती है सहजयोग में, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन 6. समाधानी होना चाहिये। लेकिन कुछ भी मिले तो भी फायदा क्या है, आपको समाधान ही नहीं? इसलिये हमें समझना चाहिये, कि आज लक्ष्मी जी के प्रिन्सीपल पे हम बैठे हैं। अब दूसरी बात ये है, कि लक्ष्मी जी खड़ी हैं एक कमल पर। कमल कितना हलका फूल होता है। माने, वो किसी पे दबाव नहीं डालती। अब वो किसी के पास पैसा होगा, वो तो यहाँ पर ऐसे चलता है, कि बगैर मूँछ के उसकी मूँछ दिखायी देती है। वो अपने को पता नहीं क्या समझता है! जहाँ भी जायें इतना रौब झाड़ेगा, कि पता नहीं कि इसको क्या मिल गया है! ये कौन से स्पेशल भगवान के यहाँ से आया हुआ है? हर जगह जायेंगे तो बतायेंगे , कि मेरा ये है, मेरा वो है । मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ। स्पेशलिस्ट ! कहने मे भी शर्म होनी चाहिये ! कोई शर्म | नहीं। मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ। यहाँ तक कि सरकारी नौकरों में बहुत ये बात है। मैं फलाना हूँ, मैं तमका हूँ। मेरी समझ में नही आता। उनकी बीवियाँ उनसे ज्यादा। अगर एक कलेक्टर के चपरासी की बीवी हो तो वो कलेक्टर से ज्यादा अपने को कमिशनर समझेगी। रह चुकी हूँ मैं इन लोगों के साथ में। इन लोगों में कोई भी तरह का ये विचार नहीं है, कि आज हम यहाँ बैठे हैं, कल हम वहाँ जायेंगे। कुछ विचार नहीं। और इतने घमंडी, इतने घमंडी लोग। और अब तो ये हो गया, कि कभी हमने सोचा भी नहीं था, कि कलेक्टर पैसा खाता है। डेप्युटी कलेक्टर नहीं, कोई भी नहीं। चपरासी लोग एक-दो रुपया ले लेते हैं। मेरी समझ में नहीं आता है, कि आजकल ये हो गया है, कि सभी लोग पैसा खा रहे हैं। और उनके तरीके हैं, इतना रुपया जरूर देना चाहिये। इतना रुपया नहीं मिला तो बस्! ये हालत है। हालत ये हो जाने का कारण ये है, कि मनुष्य के लिये पैसा देवता हो गया। जैसा भी हो। जिस तरह से मिला होगा। मुझे कहना ये है, कि जब पैसा ही सब से महत्त्वपूर्ण बात होती है, और लक्ष्मी तत्त्व महत्त्वपूर्ण नहीं रह जाता तो मनुष्य क्या करता है? वो कल अपनी बीवी बच्चों को बेच सकता है। किया ही है। फारेन में यही है। हर एक | औरत अपने शरीर को बेचने के लिये तैय्यार है। सब लोग बेचने के लिये तैय्यार है। हर चीज़ बेचने के लिये तैय्यार

है। उनको ना ही कोई आबरू है, ना ही इज्जत है, ना ही इनका कोई विचार है, कि मेरी पत्नी है, मेरी बच्ची है, मेरी लड़की है। उनको कोई ऑब्जेक्शन नहीं। लंडन में मैंने देखा था टेलिविजन पर, एक लड़की सोलह साल की थी और वो … (अस्पष्ट) जा कर। उसके माँ-बाप का इंटरव्ह्यू हुआ, तो उन्होंने कहा, हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है । आपको क्यों ऑब्जेक्शन है? हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है । अब बेटी के बारे में अगर माँ-बाप ही ऑब्जेक्शन नहीं करेंगे तो कौन करेगा? ये पेड़, पौधे करेंगे । गवर्नमेंट तो नहीं करती है। तुम्हे जो करना है वो करो । जैसे भी रहना है रहो। जैसे करना है करो। हमको बस वोट दो बस्! सब गलत-सलत तरह की चीजें अलाऊ करता है। तो बस हमको कोई मतलब नहीं। उनका प्राइवेट अफेअर है और हमको फेस करना पड़ता है। इससे गवन्मेंट को पैसा मिलता है। सब कुछ मिलता है। आप अगर लंडन में किसी गाँव में चले जायेंगे या शहर में। दूसरे शहर में या किसी भी गाँव में इंग्लंड के चले जायें, सब से अच्छा घर जो होगा वो शराबखाना होगा। सब से अच्छा घर। उसका नाम पब ! और अमेरिका से लोग स्पेशल आते हैं, पब देखने के लिये। ऐसे ऐसे विचित्र पब वहाँ हैं। हम लोग कभी अगर जायेंगे भी न, ऐसे इनको क्या कहा जायें, इनकी अकल को क्या कहा जायें, कि एक देवी जी आयीं अमेरिका से। वो हमें बताने लगी, क्योंकि हमारे दूसरे भी संबंध हैं न कि, ‘आपने यहाँ के पब देखें ?’ मैंने कहा, ‘नहीं, मैंने तो नहीं देखे ।’ कहने लगी, ‘अरे, यहाँ का एक खास पब है, उसे देखिये। उसका नाम है हार्विस्ट क्लब।’ मैंने कहा, ‘अच्छा, उसकी क्या विशेषता है?’ कहने लगी, ‘वहाँ एक आदमी मर गया, तो छह महिने तक पता ही नहीं चला। उसकी सब बदबू फैल गयी और वहाँ मकड़ी के जाले हो गये। वो शरीर तो उन्होंने सम्भाल के जाले वहाँ हैं और बदबू भी है । और बड़ा एक्सपेन्सिव्ह है वो ।’ मैंने कहा, ‘अच्छा!’ ऐसे गंदे लोगों को किसी गंदे नाली में डाल दीजिये तो और भी पैसा देंगे। मुझे बता रही है और कहने लगी कि, ‘दो बच्चे हैं मेरे छोटे छोटे, एक हटा लिया, पर पूरे मकड़ी के आठ का एक बारह का। मैं दोनों को शराब देती हूँ। क्योंकि उनको सब फ्रीडम देना चाहिये।’ मैंने कहा, ‘अच्छा! और एक साल में क्या गड़बड़ हो गयी। दो बच्चों का बर्थ डे था, उसने सब को शराब वगैरा दी होगी, औरों को और वो भूल गये और पता नहीं कहाँ आग लग गयी। उनके यहाँ सब मर गये। चारों के चारों मर गये। जब खबर आयी, तो मैंने कहा, हे भगवान ! ये तो इनके शौक हैं और आप समझ सकते हैं इनके शौक। या हिन्दुस्तान में ऐसे जहाँ आदमी मर गया और उसकी बदबू आ रही है, जहाँ मकड़ी के जाले लगे हैं। उसे ज्यादा पैसे दे के जायेगा । समझ में नहीं आता है मुझे खोपड़ी कैसे चलती है। और वहाँ पहले से अपॉइन्टमेंट लेना पड़ता है। सर्वसाधारण नहीं जा सकते। जिस प्रकार से इन लोगों से हमारा इतना संबंध आ गया है, कि मैं सोचती हूँ कि हमको जरूरी समझना थे चाहिये। अभी एक साहब मर गये, समझ लीजिये, तो मैंने कहा, ‘मैं तो नहीं जाऊंगी। काले कपड़े मेरे पास नहीं।’ वो लोग कहते हैं, रोना नहीं चाहिये। मर गया है, तो कुछ नहीं। तो जाते ही पहले शॅम्पेन वहाँ । साहब तो पीते नहीं थे | सबको शॅम्पेन दी। किस सिलसिले में? भाई, खुशियों में आप शॉम्पेन उडाईये। समझ में नहीं आता, कोई मर गया तो भी शॅम्पेन, क्रिसमस हो तो भी शॉम्पेन, हर एक चीज़ में शम्पेन! तो उन्होंने कहा कि, वो इसलिये की थँकफुल इज टू गॉड, शॅम्पेन। इनका मुँह बड़ा उतरा था, अच्छा आदमी था बहुत। कॅन्सर से मर गया| कहने लगे, क्या आपकी तबियत ठीक नहीं है? ऐसी कैसी शकल हो गयी? और सब बड़े खुश। फिर उनको सिमेट्री में ले गये। कहने लगे, नाइस ….हाऊस! साहब की समझ में नहीं आया। मैं इधर मरा जा रहा हूँ, इनको कुछ हो ही नहीं रहा है। फिर इन्होंने कहा की, ‘मेरी तबियत वाकई में खराब है। मैं तो जा रहा हूँ।’ वो वहीं से वापस चले आये। आ के, | नहा धो के बैठ गये। कहने लगे, ‘ये क्या लोग होते हैं? समझ में नहीं आता।’ बड़े बड़े आदमी, बड़े पैसे वाले अपनी मोटरों में गये वहाँ, जा कर के लंच खा के आये। लंच स्पेशल होटल में अरेंज किया था उन्होंने। कोई मर गया तो लंच खाओ। ऐसे पागल लोगों के साथ हम बहुत रहे। सोचते हैं, कि इन लोगों को किसी से प्यार नहीं है। और न ही कोई धर्म। उसका कारण है, यही (अस्पष्ट)। अपने भी देश में जिनके पास पैसा है, वो भी लोग इस ओर जा रहे हैं । इसलिये अपने को समझना चाहिये। हम सहजयोगी है । हमको इन सबको खींचना है । जो लोग इस कदर के व्यवहारी लोग हैं उनको सबसे पहले । अब आपके बच्चे डिस्को में जाते हैं। जाने की क्या जरूरत है? अजीब अजीब कपड़े पहनते हैं, क्या जरूरत है?कान में बाली लटकेंगे, चोटियाँ बनायेंगे लड़के। वहाँ पर मैंने सोचा कि, थोड़ी सी चूड़ियाँ ले जायें बड़ी बड़ी। क्योंकि ….. । खरीदने की थी तो कहने लगे कि, ‘आजकल तो है ही नहीं बड़ी चूड़ियाँ।’ मैंने कहा, ‘क्यों भाई? कहने लगे, ‘सब अमेरिका जा रही है । वहाँ के आदमियों को शौक हुआ है, चूड़ियाँ पहनें।’ हमने कहा, हमारे घर किसी आदमी को चूड़ियाँ दें, तो बड़ा वो जायें। अगर सभ्यता नहीं आ सकती, मनुष्य सभ्य नहीं हो सकता, तो उस लक्ष्मी तत्त्व को कोई अर्थ नहीं। सभ्यता होनी चाहिये। यही मनुष्य का सब से बड़ा अलंकार है। सभ्यता होनी चाहिये। सभ्यता में बहुत बात है। अपनी सारी संस्कृति ही सभ्यता से बनी है। हजारों वर्षों से हमारे अन्दर ये सभ्यता भरी गयी है। इन लोगों को आया नहीं। कोई भी बात इतनी सट् से कह देते हैं, कि पैरों तले जमीन खिसक जायें । कभी सुनी ही नहीं ऐसी बातें, फट् से। कोई शर्म नहीं आती। किसी बात की शर्म नहीं। इतने बेशर्म लोग हैं, तो सभ्यता होनी चाहिये। और इस भारतवर्ष की सभ्यता मशहर है। ये हमारे अन्दर हजारों वर्षों से ऋषि- मुनिओं की कृपा से आयी हुई है। और इस सभ्यता को छोड़ना नहीं चाहिये। अब औरतें सिगरेट पी रही हैं, औरतें शराब पी रही हैं। औरतों में सभ्यता नहीं रही तो आदमियों में कहाँ से आयेगी ! आदमियों को औरतों से ही सीखना होता है सब । ये सारी बेशर्मी हम लोगों को नहीं चाहिये। हमारे भारतवर्ष की जो संस्कृति है उसे सारी दुनिया में फैलाने का विचार है। फैल रही है। लेकिन सहजयोगियों को चाहिये कायदे से रहे । यहाँ के जो सहजयोगी हैं, कायदे से, भारतीय तरीके से रहे। और इन लोगों से कोई भी तरह का संबंध न रखें । जिसमें बेशर्मियाँ उठानी पड़े। शुरू शुरू में शादियाँ हुयी थी गणपतिपुले में, शादियाँ तय ही हुई थी। मैंने कहा, यहाँ रह रहे हो , शर्मोहया से रहो। आप किसी गार्डन में जाईये, कहीं जाईये, बैठे है वहाँ । कोई शर्म नहीं। कोई कहने वाला नहीं। और कभी कभी तो ऐसे अनुभव आते हैं, कि बाबा रे भैय्या, दुनिया में इन लोगों को शर्म ही नहीं। लक्ष्मी त्त्व में अगर श्मोहया नहीं तो फिर उससे बढ़ के गंदी चीज़ तो कोई और हो ही नहीं सकती। क्योंकि पैसा है, और पैसा लगाया बेशर्मी में। तो फिर क्या? मनुष्य की कौन सी चीज़ रह जायेगी। जानवर से भी बदतर हो जायेगा। अब वही बात हो गयी है। आप लोगों को बच के रहने की जरूरत है। समझ के रहना है, अपने दायरे से। उन पे इसका बड़ा असर रहेगा।

आपसे वो मिलने आये यहाँ पर। आप को मानते हैं। सोचते हैं, कि भारतवर्ष में आप पैदा हये हैं, यही आपका | पूर्वजन्म का बड़ा भारी पुण्य है। और अब आप उसी पुण्य के सहारे आप धार्मिक हैं और ये अधार्मिक। अब अगर आप लोगों में कोई ऐसा दोष आ जाये, तो फिर बड़ी गड़बड़ है। जिस प्रकार कभी कोई सहजयोगी आये, तो सुना कि उनसे खाने-पीने के जबरदस्ती ज्यादा पैसे लिये गये किसी से कुछ चुरा लिया। ये सब चीजें अगर सहजयोग में आ जाये, तो हमारी बड़ी बदनामी हो जायेगी। ये एक तरह से बड़ी घिनौनी चीज़ है । मुझ को बड़ी घिन चढ़ती है इससे। कितनी लो लेवल बात है। उन लोगों में जो बातें हैं वो … वैसे कभी बातें न करें| आपकी चीज़े नहीं चुरायेंगे, कुछ नहीं। लेकिन आप में शमोहया होनी चाहिये। क्योंकि आप इस भारत वर्ष में पैदा हये हैं। हम महाराष्ट्र में जानते हैं, यहाँ नौकरानियाँ हैं। कभी एक पैसा नहीं लेती, जेवर नहीं, कुछ नहीं। उनके लिये ईमानदारी बहुत बड़ी चीज़ है। गरीब लोग हैं। अब तो महाराष्ट्र में सब से बड़ी गंदी बात चल रही है, शराब पीना। मैंने जिंदगी में कभी शराब नहीं देखी थी पहले। जब से इंग्लंड से आयी हूँ, देख रही हूँ, हर एक आदमी शराब पी रहा है। आप देहात में जाईये तो देखिये खटमल आ के गिर जाते हैं, वैसे ही वो मेरे सामने आ के गिर गये। शराब, शराब, शराब हर दिन। जहाँ भी आपको शराब दिखायी दे, आप उसको मना ही करें। किसी तरह से उसे रोकिये । संघटना करिये। उसमें ये कहिये कि महाराष्ट्ट्र में शराब बंद होनी चाहिये। जैसे फॅक्टरीज में आप ज्यादा पैसा देने लग गये तो शराब पीना शुरू कर देंगे, पहली बात। जो आदमी शराब पीता है उसकी बीबी को पैसे दो या उनकी औरतों को तैय्यार करो। वो बेचारी बहुत नुकसान में आती है, बहुत तकलीफ़ में आती है। शराब आपको फौरन ऐसी जगह ले जायेगा, कि वहाँ आपको कभी पैसा पूरा पड़ ही नहीं सकता। तो इस महाराष्ट्र के लिये खास चीज़ है, आप शराब की बंदी करे। मैंने कहा जितना महाराष्ट्र में लोग शराब पीते हैं, कहीं नहीं। किसी भी देहात में, लखनौ वगैरा में देखा है, यू.पी. में, कोई नहीं। धार्मिक लोग हैं , यहाँ तो एकदम अधर्म आ गया। इतनी शराब कोई भी नहीं पीता । नोएडा में इतने विदेश से लोग आते हैं। और गाजियाबाद है,फरिदाबाद है, इस साइड के सब आते हैं, ये सब पैसे वाले लोग हैं, इनके पास काफ़ी पैसा है। शराब कोई नहीं पीता, कोई भी नहीं पीता। बड़ा आश्चर्य हुआ। वहाँ एक बार प्रोग्रॅम किया था, वहाँ शेरे में । कहने लगे, ‘आपका प्रोसेशन निकालना है।’ मिरवणूक। मैंने कहा, ‘क्यों ?’ कहने लगे, ‘नहीं निकालना है।’ बड़े मुश्किल से मान गयी, चलो, ठीक है। तो जीप वगैरा तैय्यार की, सजा के। एक घर है वहाँ किसी का। उनके घर से निकाली। चलो इस पे। मैंने सोचा, अब चलो भी, इतना कह रहे है तो जायें। हम गये। उसमें बहुत से लोग आये। सारे गाँव के लोग आये। शाम को लौटते वक्त हम जब पहुँचे तो देखते हैं कि वहाँ पर गाडी कुछ खराब हो गयी। उसी घर के सामने जहाँ ये सब शुरु किया था। मैंने कहा, जरा पता करो। उसे कहना फोन वरगैरा करो । गाडी मंगवाओ। कुछ करो। तो दो-चार सहजयोगी गये देखने वहाँ तो वो तो सब पच्चीस आदमी शराब पी कर धुत् पड़े हैं वहाँ । किस से कहे। सब धुत् पड़े हैं। प्रोसेशन निकालने के लिये तो बहुत ये कर रहे थे कि प्रोसेशन निकालो, प्रोसेशन निकालो और वही पच्चीस आदमी धुतु पड़े हैं वहाँ। इस महाराष्ट्र में कुछ नहीं हो सकता। इससे अच्छा है नॉर्थ में चलो। इसलिये अब मैंने नॉर्थ में चीज़ें शुरू कर दी। यहाँ के लोग गाँव में इतनी शराब पीते हैं। वहाँ क्या सहजयोग चलेगा। शराब पीते हैं और फिर लड़ाकूपन करते हैं। हर समय लड़ते रहते हैं। शराब पी के आदमी और क्या करें ? यही लड़ता है। यहाँ लड़ाते बहत हैं। तो पहले तो ये की शराब

कम करनी चाहिये यहाँ । गणपति के सामने शराब पी के आये तो आपको अधिकार है, कि दो-चार चाटें लगाओ| उसको निकालो वहाँ से। जो उस गणपति के सामने शराब पी के आया। अब दो-चार चारटें नहीं, एक ही चाटे में ठीक हो जायेगा वो। शक्ति का चाटा होगा वो। दूसरी खराब आदत यहाँ है वो है तंबाकू। तंबाकू तो लक्ष्मी जी के एकदम विरोध में बैठती है। क्योंकि कृष्ण को पसंद नहीं। जो आदमी तंबाकू यहाँ खाते हैं, वो जानते नहीं के वो अपने श्रोट का क्या हाल कर रहे हैं? उनको वि केन्सर ऑफ थ्रोट हो गया है। पहले मुझे ये नहीं समझ में आता था, कि महाराष्ट्र मे इतना गरीबो में भी क्यों कॅन्सर होता है? सब तंबाकू खा कर के और हरि विठ्ठल कर के वो जाते है पंढरपूर। वो श्रीकृष्ण का स्थान है। ‘पांडुरंग, पांडुरंग’ कर के मुँह में तंबाकू। अरे वो पांडूरंग क्या करेगा तुम्हारा हमारा? पूरे तंबाकू ले के आये हो। और नहीं तो बीडी, सिगरेट। बीडी तो बहुत ज्यादा| ये सब आदतें सहज से छूट जाती हैं। तो औरतों को ठीक करो । देहात की औरतें जो हैं वो बेचारी अब भी बची हुई हैं। वो कहती हैं कि हमारे हजबंड्स को ठीक होना चाहिये। उनकी संघटना बनाओ और उनके थ्रू आप ठीक कर सकते हैं। नारायणगाव एक जगह है, वहाँ सब सहजयोगी जो है वो औरतें हैं। मैंने कहा, आदमी लोग क्यों नहीं? तो कहते हैं, उन्हें तो पान खाना है, शराब पीना है। ये सब चीजें लक्ष्मी तत्त्व के विरोध में हैं। क्योंकि एक बार कहते हैं कि बोटल घर में आयीं कि लक्ष्मी भागी वहाँ से। कितने घर, कितनी फॅमिलीज तबाह हो गयी। शराब के कारण। लेकिन तुम लोगों को अकल नहीं आती, उसको क्या करें? लक्ष्मी तत्त्व के लिये अत्यंत शुद्ध आचरण होना चाहिये। गणेश जी ठीक नहीं। जहाँ गणेश जी ठीक नहीं वहाँ पर क्या काम भी नहीं । हो सकता है? कुछ तो महाराष्ट्रियन्स तो गणेश जी को मानते हैं। लेकिन ये नहीं जानते की गणेश जी के साथ साथ क्या क्या चीज़ें बतायीं। उनकी पूजा करने के लिये कैसा चरित्र होना चाहिये? सब से तो भयंकर वही देवता तो है। अगर बिगड़ गये न, तो सब की गर्दने ठीक करेंगे। इसलिये बहुत भक्तिभाव से, बहुत नम्रतापूर्वक हर एक ने लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिये। और जब हम लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं तो साथ में गणेश बैठते हैं । क्यों ? क्योंकि गणेश जी के बगैर लक्ष्मी जी का कोई रूप ही नहीं बनता । इसलिये आप समझ लीजिये कि अगर आपकी नैतिकता ठीक नहीं है, चरित्र ठीक नहीं, तो आप कहीं भी, कितना भी पैसा कमाये, उससे सर्वनाश ही होना है। चाहे आपका होगा, चाहे आपके बच्चों का होगा। इसलिये गणेश तत्त्व को बहुत महत्त्वपूर्ण समझ कर अपने अन्दर बसाना चाहिये और कायदे से रहना चाहिये। आज लक्ष्मी तत्त्व पर बहुत विशद रूप से मैंने बताया। पर इसमें जो बात बतायी हैं वो बहुत प्रॅक्टिकल है। उसमें आप देखे की जो घरो में पैसा कमा के आज ये हाल है, तो आप समझ जायेंगे कि हम जो कह रहे है वो ठीक है या नहीं। ज्यादा से ज्यादा ३०-४० साल तक चलता है, उसके बाद ऐसा सर्वनाश होता है। समझ में नहीं आता है, सब कहाँ नष्ट हो गया है। आज हिंदी में इसलिये बताया कि आप सब लोग इस बात को समझें।