Shri Raj Rajeshwari Puja Date 21st January 1994 : Place Hyderabad Type Puja Speech
[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]
आज हम श्री राज राजेश्वरी की पूजा करने वाले हैं। और आपके चक्र ठीक से बैठने लग जाते हैं। जब चक्र खासकर दक्षिण में देवी का स्वरूप अनेक तरह से माना आपके ठीक हो जाते हैं तभी कण्डलिनी जागृत होती है। जाता है। उसका कारण यहां पर आदिशंकराचार्य जैसे इसलिए पहले आप वैष्णव बनते हैं, उसके बाद आप शक्ति अनेक देवीभक्त हो गए हैं। और उन्होंने शाक्त धर्म की बनते हैं। इस प्रकार से दोनों चीजें एक ही हैं। स्थापना की अर्थात शक्ति का धर्म दो तरह के धर्म एक साथ चल पड़े। रामानजाचार्य ने वैष्णव धर्म की स्थापना की उसमें से राज राजेश्वरी को बहुत ज्यादा माना जाता है। और दो तरह के धर्मों पर लोग बढ़ते-बढ़ते अलग हो गये। अब देखा जाए तो लक्ष्मी जो है वो वैष्णव पथ पर है विष्णु के असल में जो वैष्णव है उसका कार्य महालक्ष्मी का है और प्रथ पर। विष्ण की पत्नी है और इसलिए ये लक्ष्मी का एक महालक्ष्मी के जो अनेक स्वरूप हैं उनको अपने में स्वरूप बताया गया है जो कि शक्ति का ही स्वरूप है। राज आत्मसात करना है। जैसे की धर्म की स्थापना करना और राजेश्वरी का मतलब है कि जब कण्डलिनी नाभि में आ मध्यमार्ग में रहना। न तो बाएं में जाना न दाये में जाना जाती है जहां पर उसे लक्ष्मी का स्वरूप प्राप्त होता है। ऐसा मध्य मार्ग में रहना। इन्हीं को वैष्णव कहते हैं। फिर आगे कहें या लक्ष्मी का परिणाम उस पर आता है। या जब ये चलकर वैष्णव धर्म गुजरात आदि सब देशों में सहस्रार। वैष्णव मार्ग से जब आप गुजरते हैं, कण्डलिनी के आप अन्त में सहस्रार में पहुँच गये। लेकिन सहस्त्रार में आरोपण है। गह लक्ष्मी है, राज लक्ष्मी है। इस तरह से किन्तु दक्षिण में देवी के अनेक स्वरूप माने गये हैं और कण्डलिनी नाभि चक्र में आती है। सो लक्ष्मी स्वरूप ये किस तो प्रकार की होती है? इस पर अनेक तरह की लक्ष्मियों का द्वार पर सदाशिव का स्थान है। सो वैष्णव धर्म अनेक लक्ष्मियों हैं। पर ये लक्ष्मी तभी उन स्वरूपों को ब्रह्मरन्ध करने से आप अन्त में पहुंच जाते हैं सदाशिव के पास जो कि प्राप्त करती है जब इसमें कण्डलिनी की शक्ति आ जाती शक्ति धर्म का ही अंग है। लेकिन ये समझना चाहिए कि है। कण्डलिनी के शक्ति के मिलन से ही ये स्वरूप आता है। कण्डलिनी शक्ति है और कुण्डली शक्ति मध्य मार्ग से ही इसलिए राज राजेश्वरी, कण्डलिनी की शक्ति नाभि पर गुजरती है। तो दोनों को अलग कैसे किया जा सकता है। आने पर जो स्वरूप धारण करती है उसी को लोग राज शक्ति का जो मार्ग है वो भी मध्य मार्ग है। दोनों एक साथ राजेश्वरी मानते हैं। या कहा जाए आदि शक्ति का स्वरूप बंधी हुई चीजों को अलग-अलग कर दिया गया। उसकी नाभि चक्र में जो होता है उसे राज राजेश्वरी कहते हैं। अब वजह ये कि कण्डलिनी का उत्थान उन दिनों में होता नहीं जिस इन्सान के नाभि चक्र में राज राजेश्वरी की स्थापना हो था । महाराष्ट्र में कोल्हापुर में महालक्ष्मी का मन्दिर है जहां गयी. माने गहलक्ष्मी हो गयी बाईं ओर में तो दायी और में वो 1 जागृत अवस्था में है। वहां बैठकर के लोग गाते हैं- राज राजेश्वरी हो गई। राज्यलक्ष्मी की जो अन्तिम स्थिति है। उदय-उदय अम्बे। अम्बा तो शक्ति है। कण्डलिनी को अम्बा वो राज राजेश्वरी की है। अब ये राज राजेश्वरी की स्थिति कहते हैं। तो उस महालक्ष्मी मन्दिर में बैठकर के वो गाते हैं में एक सहजयेगी को कैसे होना चाहिए। इसमें लक्ष्मी का तो कि शक्ति तू जागृत हो। उनको यह नहीं पता कि वो क्यों आश्शीवाद आना ही है। जब ऐसे मनुष्य पर कुण्डलिनी गाते हैं। तो वैष्णव व अपना मार्ग बनाते हैं। रास्ता बनाते जागरण के बाद लक्ष्मी का आश्शीवाद आ गया, और आना हैं, पथ बनाते हैं। और जब वो पथ बन जाता है तब उससे ही है जितने भी सहजयोगी हैं उन पर लक्ष्मी का आश्शीवाद कण्डलिनी का जागरण होता है। सहजयोग में हम लोग भी यही करते हैं। जब आप लोग मेरी ओर ऐसे हाथ करके अन अपेक्षित और नहीं भी बढ़ने पर ऐसे इन्सान की तबीयत बैठते हैं तो आपके सातों चक्र धीरे-धीरे ठीक होते हैं मानो आप वैष्णव बनते जा रहे हैं। आप चरम से मध्य में आ जाते हैं। आ गया है। और कभी-कभी लक्ष्मी काफी बढ़ सकती है। एक राजाओं जैसी हो जाती है। जब तक आपकी तबीयत ि ন र
वैसी होती नहीं तब तक समझना चाहिए कि कण्डलिनी तो राजा तबियत सहजयोगी हो जाते हैं। उसके रहन-सहन अभी नाभि में ही घुम रही है। तबीयत बदल जाती है। में भी एक राजा तबियत होती है। वो फटे कपड़े पहन कर सहज योग में आने के बाद जो सबसे बड़ा चमत्कार होता है के नहीं घूमते जैसे कि हरे रामा वाले लोग हैं। श्री राम का कि मनुष्य की तबीयत बदल जाती है। उसका स्वभाव बदल जाता है। जो आदमी अलक्ष्मी से भरा है, जिसके अन्दर हैं और उनकी प्रजा बनकर भिखारी बनकर घूमते हैं। किसी लक्ष्मी दिखाई नहीं देती, माने ये के बहुत से रईस लोग भी भी तरह से उनको तो कृष्ण का तत्व ही पता नहीं है। लेकिन होते हैं लेकिन वो कंजुस होते हैं तो उनको कोई लक्ष्मी पति सहजयोगियों को पता होना चाहिए कि आपकी तबियत के नहीं कह सकता। उनमें लक्ष्मी का कोई स्वरूप भी दिखाई अनुसार परम चैतन्य आपकी स्थिति बनाएगा। जो आदमी नहीं देता, भिखारी जैसे रहते हैं हर समय पैसे के लिए रोते हैं हमेशा पैसे के लिए रोता रहेगा उसकी हालत हमेशा वैसी किसी के लिए दो पैसा निकालना उनके लिए मुश्किल है । ही रहेगी । ऐसे जो कंजूस लोग होते हैं उनको कहना चाहिए कि उनके देखता रहेगा कि मैं किस तरह से पैसा बनाऊं, यहां तक अन्दर अभी कुण्डलिनी का जागरण ही नहीं हुआ। कंजूसी सहजयोग में आकर लोग चाहते हैं कि सहजयोग में पैसा के मारे मरे जाते हैं। इतने कंजूस होते हैं इतना पैसे के बारे बनाएं ये तो बिल्कुल ही गये गुजरे लोग हैं।इनसे गए बीते तो में सोचते हैं कि उनका जिगर भी खराब हा सकता है। कोई भी नहीं है। एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से उनकी शक्ल बिल्कुल भिखारियों जैसी लगेगी। लक्ष्मी को पृछा कि सबसे गए बीते लोग कौन हैं तो उन्होंने कहा कि प्राप्त करना ही कार्य नहीं है कण्डलिनी का। जो लक्ष्मी का जो भगवान के मन्दिर में आकर लोगों से भीख मांगते हैं। स्वरूप है उसको अपने अन्दर उतारना ही कण्डलिनी का कार्य है। तो राज राजेश्वरी जिसको मानते हैं, जो ये इसी प्रकार सहजयोग में भी ऐसे लोग हैं, बहुत ही कम हैं पर कुण्डलिनी की शक्ति है जो आपके अन्दर लक्ष्मी पति का हैं, जो सोचते हैं कि सहजयोग में आकर हम किसी बात से स्वरूप उतारती है, वो राजेश्वरी है। इसका मतलब ये नहीं पैसा बनाएं। हमें कुछ लोगों ने बताया कि गणपति पुणे में कि आपके पास खुब रुपया पैसा आ जाएगा, पर दानत्व, जैसे कि आप कोई राजा हैं। राज राजेश्वरी का मतलब है साहब जरूर हैं जो हमसे पुछ कर लाए और उन्होंने बेचा । कि आप राजा तबियत हो गये अपने तो राजा लोग भी और जो कुछ भी उनको मनाफा हुआ वो उन्होंने सहजयोग महाभिखारी होते हैं। और कंजूस. होते हैं झूठे होते हैं पैसा को दे दिया। मैं ये कहती हूँ कि ये भी नहीं करना चाहिए। खाते हैं सब काम करते हैं। लेकिन यहां तो शुद्ध स्वरूप कि बात हो रही है। जो राज राजेश्वरी का पुजारी है, जिसने है। उन्हें साड़ियां मिल जाती हैं। पर जो आदमी सहजयोग उसे प्राप्त कर लिया उसके इतने गुण होते हैं कि शायद में आकर सिर्फ पैसा कमाना चाहता है वो तो ऐसा है कि आज मैं इस भाषण में न बता सकं। लेकिन सबसे बड़ी वो उसको तो सहजयोगी कहना ही नहीं चाहिए। आप समझ चीज है कि ये होती है कि उसके अन्दर दानत्व,उदारता आ जाती है। उदार हो जाता है क्योंकि वो जानता है की मैं शक्ति से मनष्य पैसा हो या नहीं हो कोई आपके अन्दर डर, राज राजेश्वरी कि शक्ति से प्लावित हैं। मझे पैसे कि या किसी चीज की दरकार ही नहीं रहने वाली तो क्यों न मजा उठा लूं। क्यों न लोगों को चीज देने से मजा उठा लूं। पहले रहंगा मेरे लिए वहीं समृद्धि है । वही मैं सब कुछ चीज प्राप्त जब कोई राजा लोग खुश होते थे तो अपने पास की सबसे कर सकता हूँ। और वो एक बहुत ही आलीशान तरीके से कीमती चीज उठा कर दे देते थे। जिस आदमी में उदारता नहीं है, दानत्व नहीं है, उसका अर्थ अभी अधूरा ही पड़ा हुआ है। सबसे पहली चीज तो ये कि कोई राजा किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो गरीब हो जाए और उसकी सारी सम्पति लुट जाए तो भी वो किसी से जाकर भीख नहीं मांगता। वो मर जाएगा पर भीख नहीं मांगेगा। नाम लेते हैं श्री कृष्ण का नाम लेते हैं और कृष्ण स्वयं कुबेर जो इन्सान हर समय पैसे को तोलता रहेगा और जब भगवान बैठे हैं तो लोगो से भीख काहे को मांगते हैं। कुछ लोग सामान लेकर आए थे उसे बेच रहे थे। एक पर वो कहते हैं कि हमारी वजह से लोगों को सहलियत होती ही नहीं सकते कि राज राजेश्वरी की शक्ति क्या है। उसकी अभाव की भावना ही नहीं रहती कि मुझे कोई अभाव है। पुर्ण लोग होते हैं। मुझे क्या जरूरत है। मैं क्यों डरू? मैं जहाँ अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उसकी तबियत एक बहुत ही भव्य, महान इन्सान के जैसे होती है। उसको देने में ही मजा आता है लेने में नहीं। कोई आदमी रईस होगा तो अपने घर में कोई गरीब होगा तो अपने लिए। पर अगर वो सहजयोगी है चाहे वो अमीर है या गरीब उसके लिए वो सर आँखों पर। पूरी तरह से उसकी मदद करने को तैयार रहता
है। सहजयोग में ऐसे भी लोग हैं जो असहज लोगों के लिए बहुत करते हैं। पर अगर सहजयोगी कोई गरीब आ जाए तो बहुत शान से रह रहे हैं। पता हुआ कि वो अपने यहां उसको बैठने के लिए कर्सी भी नहीं देते। वो बाह्य के आडम्बरों को देखकर के बहुत से लोग महत्व करते हैं। ये और पता भी नहीं हुआ कि वह वायसराय थे। और कोई बड़े महान हैं। इनके पास इतनी मोटरें हैं। ये बड़े भारी यहां के मशहूर एक्टर हैं, डाक्टर हैं या आक्कीटिक्ट हैं। बहत बड़े इतनी नम्रता से उन्होंने बात की, किसी चीज की जरूरत हो आदमी हैं। ये जो बाह्य कि उपाधियां हैं, उसका महत्व करते हैं। पर कोई अगर ये सोचता है कि ये जो शक्ति का संचय इसके अन्दर है। इतनी चैतन्य कि लहरें इसमें से बह रही? यहां के लोग अक्खड़ हैं ये बो सब बातें कहीं रही हैं। ये कौन औलिया है? उसको राज तबियत कहते हैं। हिन्दुस्तान के जैसे नहीं है, धार्मिक नहीं है। इतनी सारी बातें अपने देश में भी ऐसे बहुत से लोग हो गए हैं। शिवाजी करने के बाद भी उन्होंने ये नहीं बताया कि वो यहां महाराज का उदाहरण खासकर सोचने में आता है। स्वयं तो वो थे ही आत्मक्षात्कारी और आदर्शपुरुष पर उनका सन्तों के प्रति जो व्यवहार था वो अत्यन्त सुन्दर और नम्र थे। उनके पास उनके गुरू रामदास एक दिन आए और उन्हें सचिव हो जाए तो उसकी खोपड़ी खराब हो जाती है। इस बाहर से ललकारा। शिवाजी महाराज ने एक चिट्टी लिखकर उनकी झोली में डाल दी। में लिखा था कि गुरू जी मैंने अपना सारा साम्राज्य, सत्ता आपकी झोली में डाल दी। उस चिट्टी को पढ़कर गुरु रामदास हंसे, हंसकर उन्होंने कहा बेटे हँम तो सन्यासी चाहिए। अक्खड़पना आता है किसलिए? अक्खडपना हैं, हम क्या तुम्हारे साम्रज्य लेकर करेंगे? तुम तो राजा हो और तुम्हारा कर्तव्य है लेकिन हां अगर तम सोचते हो कि डाट सकता है, झाड़ सकता हूँ। और अगर बो कुछ पढ़ा इस साम्राज्य को भक्ति से चलाएं तो इसका झंडा जो है, जो लिखा या कोई बड़ी नौकरी में हो, कुछ हो, बड़े बाप का हम छाती पहनते हैं, उस रंग का त्रिकोणी झंडा बना लो। उस झंडे से लोग जान जाएंगे कि तुम भी एक सन्यासी भाव से राज कर रहे हो। उसके प्रति कोई खिचाव लगाव तमको जो परिपूर्ण हैं इन्सान वो अल्यन्त नम्र होता है। सादगी होती नहीं है। तुम हो राजा लेकिन उसको तुम जानते नहीं हो तुम राजा हो। जो लोग अपने ही मैं राजा हूं, पागल जैसे कहते फिरते हैं फलाना हूं वो होते नहीं हैं और जो होते. तरह का व्यक्तित्व आप प्राप्त करते हैं कि सब आपका नाम है वो कभी कहते भी नहीं। ऐसे बहुत से लोग आपको सुनत ही भाग खड़े होते हैं। एक तो भिखारी जैसे होते हैं। दिखाई देंगे। एक बार हम लन्दन में सफर करे रहे थे। हो राया मेरे को ऐसा हो गया। मेरे पास पैसे नहीं है मरे पास हमारे साथ एक साहब बुजुर्ग बैठे हुए थ बात करने लगे ये नहीं है। मुझे ये चाहिए। एक भिखारी जैसे और दूसरे गये वहां आपस में ऐसे ही बात करते हैं। लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान में आना होगा। मध्य में आए बगैर आप राज राजेश्वरी की बारे में ये वो। तो जाकर देखा बड़ा भाआरी आलीशान मकान, वायसराय थे। लेकिन उन्होंने कहा नहीं अपनी जबान से वायसराय से मिल भी नहीं सकता था पहले जमाने में और तो बताइए। और जो मुझे महत्व दिया मुझे इतना क्यों महत्व दे रहे हैं। कोई परेशानी तो नहीं हो मैंने सोचा कि वायसराय रह चुके हैं और इतनी उनको श्रद्धा है। हिन्दुस्तान के बारे में है। और इतने प्रेम से हिन्दुस्तानियों की बातें बता रहे थे। अपने यहां तो अगर कोई मन्त्री का 1 तरह लोगों के दिमागों में थोड़ा सा भी कुछ मिलने पर खोपड़ी खराब हो जाती है और ये लक्षण राजाओं का नहीं है। राजाओं कि पहली चीज है कि अत्यन्त नम्रता होनी उस चिट्ठी आता है कि वो सोचता है कि इतना पैसे वाला हूं मैं सब को है बेटा है तो बहुत ही अक्खड़ता चढ़ जाती है। उससे तो आप बात ही नहीं कर सकते। अधजल गंगरी छलकत जाए परिपूर्ण नहीं हैं आप झूठा घमंड झूठा गुस्सा और एक अजीब कि मैरे को ऐसा हो गया मेरे बाप को ऐसा हो गया, उनको ऐसा आते हैं वो चिल्लाते हुए तो पहले वैष्णव बनना होगा, मध्य के बारे में बहुत कुछ पूछा, ये कैसे हैं, वो कैसे हैं, तो मैंने कहा आप हिन्दुस्तान में आओ। मैं भारत में इतने साल शक्ति को प्राप्त नहीं कर सकते। आपके अन्दर की शक्ति चल डी नहीं सकती। जैसे कि प्लास्टिक के पेड़ को पानी डालने से फायदा क्या होगा। इसी तरह इन लोगों में एक तरह का कौन थे क्या थे। उसके बाद वो उतर कर चले गये हम भी उतर कर चले गये। उसके बाद एक दिन हम और हमारे पति जा रहे थे तो उनसे मुलाकात हुई ट्रेन में। तो उन्होंने कहा हमारे घर आइये हम लोग बातें करेंगे हिन्दस्तान के है। दूसरों की चीजों का लालच करने वाले बहुत ही आडम्बर एक तरह का झूठा तमाशा। मनुष्य में लालच एक बहुत गंदी चीज है, अनहोनी चीज
गए-गुज़रे लोग होते हैं। और सहजयोगियों के लिए तो बड़ी परेशानी की बात है। एक तरफ तो वो सहजयोगी हैं और बन्धत्व में आ जाते हैं अब कितनी बड़ा काम है ये राज दूसरी तरफ लालच।मगर के मुँह में उनका पैर है तो वे नाव राजेश्वरी का कि वो सबके बारे में विचार करती है जैसे एक में कैसे आएंगे? मजा उठाना जब आ जाए और उसका आनन्द लेना, उसका समाधान लेना, जैसे शवरी के बेर उनकी परेशानियों को दर करेगी। वो बैठ कर ये तो नहीं खाकर श्रीराम इतने सन्तुष्ट हो गये उस चीज को जब गिनेगी की जेवरात कितने हैं, हीरे कितने हैं। वो ये देखेगी आप समझने लग जाएंगे तब कहना है कि आप राज कि मेरी प्रजा में कितने लोग परेशान हैं। छोटी से छोटी राजेश्वरी की शक्ति से प्लबित हैं। पोषित है। प्रेम से अगर चीज उनको क्या चाहिए। इसी तरह आपकी भी तबीयत हो कोई छोटी सी चीज, अब कोई छोटी सी चीज ही दे दे कोई जानी चाहिए। जब तक हम अपने से उठकर विश्व में सुपारी ही दे दे। और मैं सुपारी खाती नहीं हूं तो भी जरूर खाऊंगी। और खाना चाहिए। क्योंकि उससे दूसरा आदमी पूजारी कैसे हो सकते हैं और विश्व निर्मल धर्म कोई बाहर खुश हो जाएगा। उसे क्या पता कि मैं सुपारी नहीं खाती। माने ऐसा है कि कोई सी भी चीज वस्तु संसार की जो भी ऐसे तो हैं नहीं। ये तो अन्दर का प्रकाश है और इस प्रकाश इसमें जैसे शीशे में आप पारा लगा दें, साधारण, सर्व में मनुष्य भव्य व्यक्ति बन कर निकल आता है। बो ये साधारण शीशा, जो पारदर्शी है, उसमें अगर पारा लगा दें नहीं सोचता कि मुझे क्या चाहिए क्या करना हैं। वो ये तो शीशा बन जाता है। इससे आप अपनी शक्ल देख सकते सोचता है मैं औरों के लिए क्या कर सकता हूँ। अभी तो मैं हैं। कोई सी भी वस्तु में आप प्रेम जड़ दे वो वस्तु इतनी सुन्दर हो जाती है फिर ये मन करता है ये किसे दें? जैसे दिया और तो मैं कर ही नहीं पाया। ऐसा जब वो सोचने लग बाजार जाएंगे तो मन करेगा हां ये उन के लिए ठीक है जाता है तब सोचना चाहिए कि उसके अन्दर राज राजेश्वरी अपने लिए क्या ठीक है ये विचार ही नहीं आना चाहिए। की शक्ति कद रही है। वो कौंध रही हैं, परेशान कर रही है इसका अगर विचार छूट जाए कि मैं क्या पसंद करती हूं मुझे कि तु करता क्या है? तेरे पास इतनी शक्ति है, तू देता क्यों क्यों चाहिए तो खो गये। इसका मतलब ये है सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आयी नहीं है अगर से नहीं। अब आज देखिये कि फोन आया रशिया से तो मुझे सर्वव्यापी शक्ति आपके अन्दर आ गयी तो आप बहुत देर हो गयी। रास्ते में मैंने पृछा कि भई कहां बैठे हैं सब लोग सौम्य हो जाएंगे और जान लेंगे कि किसे किस चीज की तो कहने लगे खुले में । तो मैंने कहा अरे, भई कोई छत बत जरूरत है। जैसे आप कहीं गये और देखा कि सुन्दर सा दीप नहीं लगाया तमने। तो उनकको मालम नहीं था कहने लगा है उनके घर मैं गयी थी उनके पास दीप नहीं था। उनके लिए माँ ये ठंडी-ठंडी हवा तो बह रही है। तो मैंने कहा होना तो ये दीप ले लेना चाहिए। सबकी जरूरतें समझ में आने लग चाहिए। मझे अपने सिर पर छत औरों पर नहीं तो मुझे अच्छा जाती हैं जब अपनी जरूरतें कुछ नहीं रहती सबकी नहीं लगेगा। तो कहने लगे ऐसा ही है आपके ऊपर छत तकलीफें याद आ जाती हैं। कोई बीमार है, किसी चीज औरों पर नहीं तो मैंने कहा ये गलत बात है। जब देखा मैंने की जरूरत है, किसी के पास एक टेपरिकार्डर नहीं है वो मेरा सबके सर पर छत है तो मुझे बड़ा अच्छा लगा। इसी प्रकार भाषण सुनना चाहते हैं। सब पता हो जाता है और उसको छिंदवाड़े में बड़ी गर्मी हो गयी थी और सब लोग खुले में बैठे वो चीज दे दें तो कहेगा मां ये आप को पता कैसे। पता नहीं थे परे समय मझे यही फिकर लगी रही कि ये क्या हो रहा कैसे लग जाता है। इसलिए प्यार को ज्ञान कहते हैं ज्ञान ही है। सब लोग बता रहे थे मां हमको तो ठंड लग रही थी शुद्ध प्रेम है। क्योंकि आप किसी के साथ भी शुद्ध प्रेम करते हैं आपको उसके प्रति सारा ज्ञान आ जाता है। वो चाहे फिर वही राज राजेश्वरी की शक्ति सब जगह सबका हित करती महामाया हो आप जान सकते हैं।पर शुद्ध प्रेम होना चाहिए। है हित से भी ज्यादा कहना चाहिए कि सबको आराम देती शुद्ध प्रेम से सारा ज्ञान आपको मिल जाएगा। कोई सा ज्ञान है। सुख, आनन्द प्रदान करती है। और वो शक्ति आपके हो किसी भी प्रकार का अगर आप शुद्ध प्रेम की दृष्टि से देखते हैं। तो जब आपकी जागृति हो जाती है तो आप विश्व राजा की रानी है तो वो प्रजा की तकलीफें है उन्हें देखेगी. व्यापक नहीं होते हैं तब तक आप विश्व निर्मल धर्म के का तो है नहीं कि जैसे हम हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं। कम ही हूं। मां मैंने सौ आदमियों को आत्मसाक्षात्कार नहीं इसको? पैसे से कोई तोल नहीं सकता। किसी भी चीज कि वो अन्दर से। इतने धूप में बैठे-बैठे लोगों को ठंड लग रही थी। अन्दर भी है। उसको आप चाहें तो कहां से कहां पहुंचा सकते हैं। एक पैसे से भी जो काम हो सकता है वो हजारों
मान नहीं होगा। कोई कार्य वहां ठीक से हो ही नही सकता। कारण स्त्री जब शक्ति है। अगर समझ लीजिए इसमें (माइक) अगर बिजली नहीं होगी तो मेरा बोलना बेकार है। इतनी बड़ी भारी चीज यहां लाकर रख दी और ये किसी काम की नहीं इसमें अगर बिजली नहीं है तो। अगर घर की स्त्री को आप इस तरह से दबाएंगे और उसका मान नहीं रखेंगे तो शक्ति आपके अन्दर दौड़ नहीं सकती। सबसे बड़ा दोष है। कल क्या कभी भी नहीं हुआ मुझे ऐसे कार्यक्रम के बाद कि दायां हृदय इतने जोर से पकड़ गया। मैं तो सोचती थी ये चीजे उत्तरी भारत में ज्यादा हैं पर दक्षिण भारत में और भी ज्यादा हैं। हिन्दूुस्तानियों में दोष है कि नारी की शक्ति का मान नहीं रखते। सबसे बड़ा दोष है। इधर देखें तो देवी की पूजा करेंगे। कन्या रूप में मानेंगे। सब रूप में मानेगे पर गृहलक्ष्मी के रूप में नहीं मानेंगे। इसलिए आज रूपयो से नहीं हो सकता। लेकिन देने की शक्ति महान होनी चाहिए । फिर से कहूंगी कि विद्र के घर जाकर श्रीकृष्ण ने साग खाया लेकिन द््योधन का मेवा नहीं खाया। इन सब चीजों में बड़ा भारी संकेत है। वो ये कि प्रेम से भरी चीज उसका दाम किसी भी चीज से तोल नहीं सकते। सो वैष्णवों को चाहिए कि अपने लक्ष्मी तत्व को साफ करें और उसके लिए मेरी जरूरतें कुछ नहीं है सारी जरूरतें दूसरों कि हैं, इसलिए मैं सहजयोग में आया हूं, ऐसे विचार लाइये। कंल आपको आश्चर्य होगाकि कार्यक्रम के बाद इतने लोग आए। मुझे बड़ा आनन्दआया। पर एकदम मेरा दायां हृदय पकड़ गया, बुरी तरह से। मेरी समझ में नहीं आया कि यहां दायां हृदय इतनी बुरी तरह से क्यों पकड़ रहा है। ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ। ये वही शक्ति है जिसने संकेत दिया। फिर मैंने पूछा कि यहां गृहलक्ष्मियों का क्या हाल है। हैदराबाद में लोग गृहलक्ष्मी से किस तरह से व्यवहार करते हैं। तो पता हुआ कि बहुत ही बुरी तरह से व्यवहार करते हैं उनकी कोई इज्जत ही नहीं करते। और हर समय झाड़ते झाड़ते रहते हैं। पुरुष को कोई अधिकार नहीं है कि नारी का रहते हैं। माँ की इज्जत करते हैं पर बीबी की नहीं करते, कहते हैं मुस्लिम प्रभाव आया हुआ है। पता नहीं है औरत की इज्जत करने के लिए कितना बताया गया है करान में, वो नहीं करते। बेवकफी है। उसमें जितनी इज्जत् औरत की है और कहीं है ही नहीं। तब मुझे समझ में आया कि जहां स्त्री की पूजा होती है, यत्र नार्या पूजयन्ते तन्त्र रमन्ते देवताः । जहां स्त्री की इज्जत नहीं होगी वहा पर कभी देवताओं का वास हो नहीं सकता। निःसन्देह कहना चाहिए कि अगर आपने अपनी पत्नी की पूर्णतः इज्जत की तो बच्चे भी आपकी इज्जत करेंगे और वो एक दूसरे की इज्जत करेंगे। ये निश्चित बात है। पर अगर स्त्री स्वयं ही पूजनीय दुनिया में बो मेरा क्या आदर करेंगे? इसलिए आप सबसे न हो और वो इस तरह के कार्य करती है जो पूजनीय नहीं है तो फिर उसको ठीक करना चाहिए। लेकिन अगर वो अच्छी औरत है और वो बच्चों को संभालती है, घर को प्रेम से लिए बहुत जरूरी है। उसी तरह स्त्री को भी सहज में उतर रखती है ऐसी औरत की इज्जत घर में ही नहीं समाज में भी होनी चाहिए। आप सोचिए कि मेरा दायां हृदय पकड़ गया और मैं आधे घंटे तक तड़पती रही। वो तड़पन जो आप अपनी पल्नियों को देते हो वो मेरे अन्दर आ गयी। अब हा लोग आए हैं मुझे बिल्कल उम्मीद नहीं थी। अब सहज ि साफ-साफ बता रहे हैं कि अगर आप सहजयोगी हैं तो अपनी स्त्री के प्रति आदर युक्त रहें। खुले आम मैंने सुना कि आप अपमान करे। किसी भी वजह से मेरे विचार से एक ये चीज ठीक हो जाए तो राज राजेश्वरी की शक्तियां हो जागृत जाएंगी। पूरी तरह से समझ लेना चाहिए कि पति पत्नियां एक ही रथ के दो चक्के हैं। एक बायां और एक दायां। बायां दायें में नहीं जा सकता, दायां बायें में नहीं जा सकता। पर दोनों का स्थान जरूरी है। दोनों एक जैसे ही हैं पर स्थान अलग-अलग हैं। इनका मतलब कोई ऊंचा नीचा नहीं हो। सकता। अगर रथ ऊंचा नीचा हो जाए तो आगे जाएगा ही नहीं। गोल-गोल घूमता रहेगा। बच्चे भी आपसे यही सीखेंगे। जो बच्चे मां का आदर नहीं करते वो क्या सीखेंगे? विनती है कि आप घर की नारी का अपमान नहीं करें। उसे किसी तरह से नीचा नहीं दिखाएं। उसकी शक्ति आपके कर अपनी शक्ति को सम्हाल लेना चाहिए। और शक्ति में उतर जाना चाहिए। आप इतने लोग पूजा में आए हैं और सारे भारतवर्ष से सकता है कि स्त्री इतना ज्यादा सहजयोग नहीं समझती हो बुद्धि से, पर हृदय से समझती हैं। स्त्रियां हृदय से चीज को समझती हैं, और पुरूष मस्तिष्क से समझता है। लेकिन हृदय से समझना भी बहुत बड़ी चीज है। और स्त्री को हमेशा शक्ति स्वरूपा माना गया है। जिस घर में स्त्री का वास्तव में ही समग्र हो रहा है और इतने प्यार से ये सब चीजें हो रही हैं, हर जगह जब भी देखती हूँ लगता है सहज जोरों में फैल रहा है। पर एक ही बात को जान लेना चाहिए कि हम कितने गहरे उतरें। ये जरूरी है। तादाद बहुत हो जाए गिनती बढ़ जाने से कुछ फायदा नहीं होगा। जब तक
नहीं उतरेंगे, आपके अन्दर सहजयोग के मूल्य श्रेष्ठता नहीं आएगी। आप अगर राज राजेश्वरी को मानते हैं तो उसकी शक्ति का प्रादर्भाव, अभिव्यक्त आपके अन्दर होनी चाहिए। गहनता के बिना तो ऐसा हुआ जैसे एक चोला बदलकर आपने दूसरा पहन लिया। अन्दर कुछ भी नहीं। ये अन्दरूनी शक्ति हैं, ये शक्ति आपके व्यवहार में, बातचीत में दिखनी चाहिए । हमारा अनन्त आशीर्वाद