Quawwali – Baba Zaheer

पुणे (भारत)

1994-01-28 Quawwali Program Baba Zaheer Pratishthan NITL-RAW, 182'
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Talk

आपको चैतन्य कहाँ महसूस होता है? ऐसे ही सूफ़ी हो जाए गुणगान हो जाए
कवाल हो जाय
मशरूफ हो जाए| तो सारे दूर
 हम 
 मन चैतन्य को तो इनके गाने के मध्यम से फेला सकते है| 
बहुत आसान है इन्होंने इनके भाई लोग है  मे पता नही भाई नाम | मैं अपना सूफ़ी नाम बता देता हूँ!
आप बता दो! 

(कव्वाल अपना नाम श्रीमताजी को बताते हुए|)

तो आप सब लोगो का बहुत
 बहुत धन्यवाद की आप लोग आए और इसको क़्वाली को सुनने के लिए मैं चाहती हूँ की और भी लोग सहज योगी आ गये होते तो अच्छा होता| पर शायद यह जगह थोड़ी दूर
 हो इसलिये इस वजह से नही आ पाए हो  ….बहरहाल इस तरह की चीज़े अगर हमारी यहाँ धीरे धीरे फैल जाए तो सहज की जो धारा है वो ओर भी सहज हो जाए | 
अच्छा, दिल्ली मे भी अंदर तीन साल पहले वहाँ मुस्लिम लोग बैठ ते है| तो वहाँ हुँने ग्राउंड मैं सबके रहने  की व्यवस्था की तो पोलीस के लोगो ने हमे
 वहाँ खबर की वहाँ मुसलमान लोग रहते है और वो आप पे बॉम्ब 
छोड़ेंगे मैने कहाँ मेरे पे कोई बॉम्ब नही छोड़ने वाला आप चिंता मत करो, मैने कहाँ कौन है वो मुसलमान| कहने लगे निज़ामुद्दीन साब, निज़ामुद्दीन साब एक बहुत बड़े औलिया उनके एक शिष्य थे| आप ने सुना होगा उनका नाम उनकी इतनी सुंदर कविताए हैं जो की शृंगारिक रूप से लिखी है पर परमातमा पे | वो फिर वो लोग मैने कहाँ अरे मैनेउनकी कब्र पर सबसे पहले उनके ऊपर चादर चढ़ाई थी तब तो कोई वहाँ जाता भी नही था  १९५० मे या १९४७ मे सब लोग हैरान हो गयी की अरे आप ने तब चादर चढ़ाई थी मैने कहाँ अरे हा मैने तब चादर चड्ढाई थी| तो तब सब फॉरिनर्स वाहा चादर लेके गये ओर उसपे चादर चड़ाई, तो वो फिर मेरे लिए चादर लेके आए ओर वाहा क़ावाली सुनाई तो उसके बाद मैने कहा अक्चा अब सब ठीक है आप वहाँ आके सब सहज योगियो को आके क़ावल्ली सुनाए | फिर वो ओर उन्होने सुनाया ओर पहली बार ३००० लोग थे ओर सब लोग एकांत से सुनते रहे बहुत काम्ल थे इसी तरह से आशा आप लोग भी क़ावल्ली पसंद करेंगे | धन्यवाद|