Shri Rajalakshmi Puja

New Delhi (भारत)

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4-12-1994 Shri Rajlaxmi Puja, Delhi

आज हम राजलक्ष्मी की पूजा करने जा रहे हैं,

मतलब वह देवी जो राजाओं पर शासन करती है। आज यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मूल रूप से कुछ गलत हो रहा है हमारी राजनीतिक व्यवस्थाओं की 

कार्यप्रणाली में और क्यों लोगों ने अपनी न्याय, निष्पक्ष व्यवहार

और परोपकार की भावना को खो दिया है।

हम कहाँ गलत हो गए हैं कि ये सब खो रहा है?

ये केवल भारत में नहीं, ये केवल जापान या इंग्लैंड में नहीं

या किसी अन्य स्थान पर, जहाँ हमें लगता है कि लोकतंत्र है।

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी देशों ने,

यहां तक ​​कि जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता पायी है, उन देशों का अनुसरण करना शुरू किया जो बहुत ही उच्च और पराक्रमी और बहुत शक्तिशाली माने जाते थे

जैसे कि अमरीका, जैसे कि रूस, जैसे कि चीन, इंग्लैंड –

सोचे समझे बिना कि वे अपने उस लक्ष्य को पाने में कितना सफल हुए हैं जो उन्हें प्राप्त करने थे। जैसा भी हो, इंग्लैंड जैसे देश में,

आप देखते है यह राज-तंत्र, किस ढंग से यह काम करता है,

आश्चर्य चकित कर देता है, बिल्कुल चौंका देता है ।

जिस तरह से उन्होंने अपने मंत्रियों के प्रति आचरण किया, जैसे क्रॉमवेल,

आपको ऐसा लगता है जैसे कोई आदिम लोग कुछ प्रबंधन करने का प्रयत्न कर  रहे हैं। और राजा लोग इतने क्रूर, रानियाँ इतनी क्रूर, इतने चरित्रहीन, इतने अविश्वसनीय। उनमें कोई चरित्र नहीं था राजा और रानी बनने का।

अपने राजलक्ष्मी सिद्धांत के प्रति कोई समर्पण नहीं था ।

फिर, निसंदेह , ये स्वतंत्र हो गए, 

और अभी भी मैं ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें देख पाती हूँ जो वे कर रहे हैं।

यहां तक ​​कि फ्रांस में राष्ट्रपति की एक रखैल है, वे पैसे के पीछे भागते हैं, थोड़े से पैसे के लिए यहाँ वहाँ। ऐसे लोग प्रत्येक देश में हैं जो वास्तव में बहुत, बहुत निम्न स्तर के हैं और वे लोक-कल्याण की देखरेख का प्रयत्न कर रहे हैं।

इसी तरह यदि आप समुराई के इतिहास को पढ़ें और जापान के उन सभी लोगों के बारे में, तो आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उन्हें लगता था कि वे बड़े महान है,

उनका अपनी जनता से कोई संबंध नहीं था और जिस तरह से वे व्यवहार करते थे।

फिर आप साम्यवादी देशों में जाते हैं तो वहां भी ऐसी ही स्थिति है। वहाँ भी जो लोग सत्ता में आए बिलकुल निरंकुश शासकों की तरह बन गए। 

फिर हमारे यहाँ दूसरी ओर मिस्टर हिटलर आए थे,

जो स्वयं को बड़ा महान समझते थे।

स्पेन, जैसा कि आप जानते हैं फ्रेंको द्वारा बर्बाद किया गया था।

कोई समझ नहीं सकता कि कैसे बिना किसी चरित्र के ये लोग,

बिना किसी भी उच्चतर गुणों के शेष लोगों की तुलना में,

वे उनकी भलाई की देखरेख कैसे कर सकते हैं।

यह असंभव है!

मुझे कहना चाहिए कि हमारे अपने देश में हमारे कई महान राजा हुए, बहुत महान,

क्योंकि हमारी विरासत महान है

और हमारे यहाँ संत थे जो वास्तव में राजाओं पर शासन करते थे।

जैसे शिवाजी के एक गुरु थे जो एक महान संत थे, सभी।

जनक के एक गुरु थे।

सबके एक गुरु होते थे।

यहां तक ​​कि श्री राम के एक गुरु थे।

लेकिन वे असली गुरु थे!

वे ऐसे लोग थे जो वास्तव में संतों का जीवन व्यतीत करते थे,

वे वास्तविक संत थे, अंदर से, बाहर से।

और लोगों ने भी उन राजाओं को स्वीकार किया जिनकी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि थी।

जो आध्यात्मिक लोगों का सम्मान करते थे।

अतः, इस देश की पूरी प्रवृत्ति बहुत ,बहुत ही पृथक थी 

कुछ समय पहले तक।

मैं नहीं जानती कि जब अंग्रेज आए, तो उन्हें क्या हो गया।

अधिकांश लोगों को पसंद नहीं था

जिस प्रकार से अंग्रेज रहते थे, उनकी शैली, उनकी पद्धति,

वे पसंद नहीं करते थे।

लेकिन विभिन्न राज्यों के ये राजा और रानियाँ, उन्हें लगने लगा 

कि वे बड़े परिष्कृत लोग हैं

और हमें उनकी संस्कृति को अपनाना चाहिए।

और उनमें बहुत सी ये रानियाँ, आधुनिक ,

जो धूम्रपान करती हैं, जो शराब पीती हैं, मुझे बताती हैं कि ये उन्हें उनकी गवर्नेस द्वारा सिखाया गया। 

जो या तो स्वीडन या इंग्लैंड से या ऑस्ट्रेलिया से आई थीं ।

और इन्होंने इन चीजों को सीख लिया।

निस्संदेह पुरुषों ने भी सोचा कि हम बहुत पिछड़े हुए हैं, आप देखिये,

यह विचार उन्हें उन्होंने दिए, “आप बहुत पिछड़े हुए लोग हैं,

आपको नहीं पता धूम्रपान कैसे करते हैं, आपको नहीं पता कि शराब कैसे पीते हैं,

आपके यहाँ बॉलरूम नृत्य नहीं होता ” ऐसा, वैसा।

यहां तक ​​कि हमारी सेना भी इससे भ्रष्ट हो गई।

सेना में अभी भी सभी अंग्रेजी शैली में चल रहा है।

मुझे नहीं पता कि वे इसे कब छोड़ेंगे।

उन्हें हमारे अपने देश के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं।

उन्हें इंग्लैंड के बारे में जानकारी होगी,

और आप उनसे इंग्लैंड के बारे में कुछ भी पूछिए, वे जानते हैं।

पूरी शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों के माध्यम से आई है,

लेकिन सब कुछ इंग्लैंड और पश्चिमी जीवन के बारे में था, अपेक्षाकृत भारतीय जीवन के विषय में।

किसी ने भी भारतीय चीजों की परवाह नहीं की, आप देखिये।

यहाँ तक कि चिकित्सा में भी यही बात हुई।

कोई भी किसी वैद्य या किसी और की बात नहीं सुनना चाहते थे।

उन्होंने सोचा “ओह, ये निरथर्क आदिम लोग हैं, पिछड़े हुए!”

अतः यह एक देश, जहाँ वास्तव में, मुझे कहना चाहिए, 

जहाँ राजनीति में आध्यात्मिकता का शासन था, इस तरह से वह भी समाप्त हो गया।

स्वतंत्रता से पहले इस देश में, मुझे याद है,

हमें अंग्रेजों से लड़ना था,

और क्या देशभक्ति थी लोगों के मन में उस समय ।

मुझे याद है कि एक बार हम एक हॉकी मैच देखने गए थे,

और मेरे पिता हमेशा उस पर (गाड़ी) राष्ट्रीय ध्वज लगाते थे, 

उस समय यह राष्ट्रीय नहीं कांग्रेस का झंडा था, कार में।

तो सैनिक आए। उन्होंने कहा, “इस झंडे को उतारो!”

तो मेरा ड्राइवर गाड़ी से उतर गया, उसने कहा,

“तुम पहले मेरा गला काटो और फिर यह झंडा उतार लो।”

हम सभी बच्चे उसके साथ मिल गए और वे चौंक गए, वापस चले गए।

ऐसा उत्साह, ऐसी देश-भक्ति उस समय थी,

जब हम इन लोगों से लड़ रहे थे।

लेकिन उन्होंने हमें विभाजित कर दिया और हमारे लिए एक समस्या उत्पन्न कर दी।

और आप जानते हैं, इससे पहले कि हम अपनी स्वतंत्रता के किसी लाभ का आनंद लेते, हम लड़ने लगे, हम विभाजित हो गये।

मुझे नहीं पता इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए ।

यदि हमने इस विभाजन को स्वीकार नहीं किया होता तो  

कोई समस्या नहीं हुई होती।

लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया।

अब, बेचारे बांग्लादेशी, इतने इतने अधिक दरिद्र हैं।

अगर वे भारत के साथ एक होते, तो वे बहुत बेहतर होते।

और पाकिस्तान क्या है?

वह केवल एक खोखला स्थान है, आप जानते हैं,

कोई उधयोग नहीं, कुछ भी नहीं।

इसलिए वे हर समय कश्मीर के बारे में बात करते हैं, कश्मीर

उनके पास और कुछ नहीं है!

उनके अपने देश में लोग झगड़ रहे हैं, ऐसा, वैसा, लेकिन वहां कोई विकास नहीं है।

अब उन्होंने भारत को ही काट कर अलग किया।

अब यहाँ, ये सब घटित होने के बाद, आप जानते हैं, कोई भी युद्ध,

कोई भी इस तरह के संकट, तुरंत हमारी जीवन मूल्य प्रणाली को परिवर्तित कर देते हैं।

ऐसा नहीं है कि पश्चिम में कोई नीति-प्रणाली नहीं थी, वहाँ भी थी,

लेकिन युद्ध ने उन्हें पूर्ण रूप से बदल दिया उसी प्रकार भारत में भी हुआ।

राजनीतिज्ञ, जिन्होंने इस लड़ाई में अपने जीवन का बलिदान दिया,

या वे लोग जो किसी अच्छे काम के लिए अडिग हुए, उन्हें कोई आदर्श रूप में नहीं माना जाता था।

और लोगों ने यू-टर्न ले लिया, वे पूर्ण रूप से बदल गए,

और वे बहुत ही आत्म-केंद्रित बन गए,

केवल अपने निजी मामलों के बारे में चिंतित थे, अपने परिवार,

या हो सकता है धन एकत्रित करने और धन को 

यहां से स्विट्जरलैंड स्थानांतरित करने के लिए।

मेरा मतलब है ऐसा कुछ… यानि मैं आपको बता रही हूँ कि मैंने अपना जीवन

उन लोगों के साथ व्यतीत किया है जो लड़ रहे थे, स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे।

मेरा तात्पर्य है कि वे ऐसी बातों के बारे में सोच भी नहीं सकते थे।

मैं अपने पिता को जानती हूँ, मैं अपनी मां को जानती हूँ, मैं उनके मित्रों को,

मैं बहुत से लोगों को जानती हूँ जो हमारे परिवार में आया करते थे,

बहुत से सिख़ और बहुत से अन्य लोग, मुसलमान भी।

वे सोच भी नहीं सकते थे किसी तरह का पैसा लेने के बारे में,

मेरा मतलब है कि इसे बिलकुल ही नीच-स्तर की बात मानते थे।

किस लिए लें?

क्या आवशकता है?

यदि आप अपने हृदय में संतुष्ट हैं जिस की आपको इच्छा थी, आपको मिल गया,

आपको अपनी स्वतंत्रता मिल गई है, अब सब समाप्त हो गया।

लेकिन कैसे ये लोग, जो पूर्णतया निचले स्तर पर थे,

जिन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया,

जिन्होंने देश के लिए कोई बलिदान नहीं दिया,

एकदम ऊपर शिखर पर आ गए और सभी अच्छे लोग नीचे चले गए।

यदि आप शिवाजी का इतिहास पढ़ें,

या राणा प्रताप, या उनमें से किसी और का, शालिवाहन, किसी का भी,

तो आपको आश्चर्य होगा कि कैसे वे शक्ति की पूजा करते थे।

सभी क्षत्रिय शक्ति की पूजा किया करते थे,

और वे एक सीमा तक जाते थे और उससे परे नहीं।

उस सीमा तक जहाँ तक धर्म था।

वह इतिहास मैं आपको फिर से नहीं बता सकती ।

लेकिन सूक्ष्म तरीके से, आप महसूस कर सकते है कि

इस विभाजन ने अचानक लोगों की मनोवृत्ति को बदल दिया,

अथवा मुझे कहना चाहिए कि जो लोग बहुत निम्न स्तर के थे, वे ऊपर आ गए।

मुझे याद है कि मैं उस समय यहाँ थी, विभाजन के समय,

और मैं विवाहित थी और तीन लोग मेरे पास आए।

मैं बाहर बगीचे में बैठी हुई थी,

अपनी संतान के लिए कुछ बुनाई कर रही थी क्योंकि मैं गर्भवती थी।

तो वे आए, और उन्होंने मेरी ओर देखा और उन्होंने कहा,

“क्या हमें आपके घर में एक कमरा मिल सकता है?”

मैंने कहा, “क्यों नहीं, मेरे पास है।

ये मेरे पिताजी का बहुत बड़ा घर है।

मैं आपको दे दूँगी।”

उन्होंने कहा, “हमें एक या दो महीने के लिए चाहिए।

हम शरणार्थी हैं। ”

मैंने कहा “ठीक है, और इसमें एक द्वार बाहर है,

आपको हमें परेशान करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और इसमें एक रसोई घर साथ में है और एक बाथरूम भी साथ में है।

आप जो चाहें कर सकते हैं। ”

बस मैंने दे दिया।

शाम को मेरा भाई आया, बड़ा भाई, और मेरे पति

और वे दोनों मित्र थे और उसने बस मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया ।

वे लोग दूसरे कमरे में थे।

“आपका क्या मतलब है ऐसे लोगों को रखने का?

कौन हैं वे ?

वे क्या करेंगे?” और ऐसा और वैसा।

मैंने कहा,”वे क्या करेंगे?”

“वे मुझ से कुछ चुरा सकते हैं!”

“ऐसा क्या रखा है इस घर में चोरी करने के लिए?

वे शरणार्थी हैं, मुझे अच्छे लोग लगे।

मैंने उन्हें चैतन्य लहरियों के कारण स्वीकार किया है, वे ठीक हैं। “

“नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं। बेहतर है उन्हें बाहर निकाल दो!”

मैंने कहा, देखो इन लोगों को “बिना उनसे बात किए, बिना उन्हें जाने, 

अचानक आप उन्हें निकल जाने के लिए कह रहे हैं,

केवल इसलिए क्योंकि वे शरणार्थी हैं।”

तब मुझे अनुभूति हुई कि इस देश में एक नई लहर शुरू हो गई थी,

कि एक व्यक्ति का सम्मान नहीं होता यदि उसके पास पैसा नहीं है,

आप पर भरोसा नहीं किया जाता अगर आपके पास पैसा नहीं है।

वास्तव में इसके विपरीत होता है,

जिनके पास धन होता है, बेहतर है आप उन पर कभी भरोसा न करें।

और जिनके पास धन नहीं है, वे इस देश में कहीं अधिक ईमानदार लोग होते हैं 

उन लोगों की तुलना में जिनके पास धन है,

जो व्यावहारिक रूप से सभी धोखेबाज़ होते हैं।

तो यह इस तरह घटित हुआ। और मैंने कहा,

“नहीं, वे यहीं रहने वाले हैं!”

मैंने दृढ़ता से कहा।

मैंने कहा, “यह घर मेरे पिता ने मुझे दिया है

और वे यहीं रहने वाले हैं।”

बेचारे, वे एक महीने तक रुके बहुत ही,

मेरे विचार में, अवश्य ही बहुत शर्मिंदा हुए होंगे।

और जब वे वहाँ थे, इतने सारे सिक्ख़ लोग,

उस समय यह एक बड़ा संगठन था – सिख़ और आर.एस.एस. एक ही थे,

और वे मेरे घर आए और कहा,

“हमने सुना है कि एक मुस्लमान आपके यहाँ रह रहा है।”

उनमें एक मुसलमान था।

“और हम उस मुसलमान को मार देंगे।”

मैंने कहा, “आपको ऐसा क्यों लगता है कि यहाँ एक मुसलमान है?”

“हमारे पास सूचना है।”

मैंने कहा, “गलत, इस घर में यहाँ कोई मुसलमान नहीं है, इस घर में ।”

मैंने उससे झूठ बोला।

तो उन्होंने कहा, “हम आप पर कैसे विश्वास करें?”

मैंने कहा, “देखो, मैंने यह (बिंदी) लगा रखी है।

मैं एक हिंदू महिला हूँ।

मैं अपने घर में एक मुसलमान को कैसे रख सकती हूँ?

हम सब उनसे डरते हैं, और इस तरह का कोई भी व्यक्ति यहाँ नहीं है।”

जैसे तैसे उन्होंने मुझ पर विश्वास कर लिया।

मैंने बिलकुल झूठ बोला, लेकिन उन्होंने मुझ पर विश्वास कर लिया।

वे बहुत सारी तलवारों को लेकर आए थे, खून से लिपटी हुई ।

लेकिन मैं डरी नहीं और मैंने उन्हें बड़ी दृढ़ता से बताया।

कोई अन्य मेरे स्थान पर होता तो कह देता,

“ठीक है, ठीक है यहाँ एक है आप उसे ले जा सकते हैं।”

फिर ये तीनों लोग, जो वहां थे, मेरा घर छोड़ कर चले गए

और उनमें से एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेत्री है,

और दूसरा एक बहुत प्रसिद्ध कवि है

और अन्य दूसरा एक बहुत, बहुत अधिक प्रसिद्ध लेखक है।

और ऐसा हुआ कि

वे (एक धर्मार्थ संगठन) एक फिल्म बनाना चाहते थे युवा लोगों के बारे में 

और मैं उसकी अध्यक्षा थी, उसकी उप-अध्यक्षा 

और वे इस अभिनेत्री को बुलाना चाहते थे।

मैंने कहा, “उसे मेरा नाम मत बताना।”

क्योंकि मेरा उससे संपर्क पूरी तरह टूट चुका था।

और मैंने बस कहा कि, जाने दो, वे जहां भी हों, उन्हें वहाँ रहने दो।

इसके बारे में किसी तरह की… मैंने कभी कोई पूछताछ आदि नहीं की।

“उन्हें मेरा नाम मत बताना।”

उन्होंने कहा, “क्यों?”

मैंने कहा, “किसी कारण से आप उसे बस मेरा नाम नहीं बताना,

अन्यथा ‘हाँ’ कहने के लिए विवश हो जाएगी, जो मैं नहीं चाहती।”

तो जब वे उसके पास गए और उससे पूछा, 

उसने कहा, “मुझे एक साड़ी मिलनी चाहिए, मुझे एक चप्पल मिलनी चाहिए, 

मुझे मैच करता हुआ एक पर्स मिलना चाहिए, मुझे यह मिलना चाहिए,

ये सब आपको भुगतान करना होगा, और इसके अलावा इतना पैसा आपको देना पड़ेगा। ”

उन्होंने कहा, “हमारा ‘धर्मार्थ’ है।”

उसने कहा, “जो कुछ भी हो।”

मैंने कहा, “ठीक है, जो कुछ भी वह मांगती है, उसे दे दो।”

फिर मैं उद्घाटन समारोह के लिए गई और उसने मुझे देखा

और वह अपने आप को रोक नहीं पायी, उसके आँसू बहने लगे।

बस आकर मेरे पैरों पर गिर पड़ी।

उसने कहा, “आप इतने लंबे समय के बाद यहां कैसे हैं?”

तो उन्होंने कहा, “ये ही हैं जो इस फिल्म को बना रही हैं।”

“क्या?

वे यह फिल्म बना रही हैं? आपने मुझे क्यों नहीं बताया?

हे भगवान, हे भगवान। ”

वह अपने आप को रोक नहीं पा रही थी, वह रोती जा रही थी, रो रही थी, रो रही थी, रो रही थी।

मैंने कहा, “अब कोई बात नहीं।”

उसने कहा, “आप मुझसे पैसे ले लो।

मैं फिल्म के पूरे निर्माण का भुगतान करूंगी।

आप इन महिला को नहीं जानते।

आप इन को नहीं जानते।

इन्होंने मेरे लिए जो किया है, कोई भी नहीं करेगा इन्होंने जो किया है।”

वह बोली, “इन्होने हमें कभी कुछ बताया नहीं, हम कैसे जान पाते?”

ऐसा परिवर्तन कि उसने तुरंत अपने पति को फ़ोन किया,

और उस महान कवि को फोन किया, वे सभी भागते हुए आए और वे सभी …

बस एक छोटा सी अच्छी चेष्टा प्रशासन की,

कि वह मेरा घर था, जो मुझे मेरे पिता ने दिया था,

उस समय निस्संदेह मेरे पति और मेरे भाई

को नहीं पता था कि लोगों पर कैसे भरोसा किया जाए।

लेकिन मैंने उन पर भरोसा किया, पूरी तरह से।

वे कह रहे थे, “वे तुम्हारा गला काट देंगे।”

“क्यों?

वे मेरा गला क्यों काटेंगे?

किस लिए?”

वे हर प्रकार की विचित्र बातें सोच रहे थे।

और सबसे बुरी बात मुझे महसूस हुई

वे डर गए क्योंकि उनके पास पैसा नहीं था।

यही शुरुआत होती है पतन की, मैं सोचती हूँ।

हमारे देश में पैसे के लिए यह संघर्ष इसके बाद शुरू हुआ।

पैसे के बिना लोगों को बहुत कष्ट उठाना पड़ा।

गरीब लोग बुरा नहीं मानते क्योंकि उन्हें इसकी आदत होती है।

उनके पास जो भी पैसा होता है? वे उससे खाना खाते हैं और सो जाते हैं।

यहाँ लोग इतने ज्यादा भी, बहुत अधिक गरीब नहीं थे जितने वर्तमान में हैं

लेकिन वे गरीब लोग थे इसमें कोई संदेह नहीं।

लेकिन उस पल जो मुझे एहसास हुआ,

कि जिन लोगों के पास कोई पद या कोई सत्ता या अन्य कुछ और होता है,

वे वास्तव में अन्य सभी से भयभीत रहते हैं।

यही हमारे पतन की शुरुआत है।

हम भयभीत हो गए थे।

जो लोग प्रभारी थे वे भयभीत हो गए

कि मैं अपनी कुर्सी खो सकता हूँ , या मैं अपना पैसा खो सकता हूँ, मैं अपनी सत्ता खो सकता हूँ।

उस डर ने पूर्णतया विक्षिप्त बनाये रखा।

मान लीजिए कि मेरे पास पैसे नहीं रहे?

तो क्या?

क्या होगा?

ये सब विचार उस विभाजन के बाद उभरने लगे, मुझे लगा कि ऐसा सभी जगह है

हालाँकि मैं आपको बताती हूँ, कि मेरे बचपन में,

मेरे पिता कभी घर को ताला नहीं लगाते थे,यह एक बहुत बड़ा घर था,

वे कभी ताला नहीं लगाते थे।

और हमारे पास एक बहुत ही सुंदर ग्रामोफोन था, 

जिसके साथ एक भोंपू के आकार का कुछ था।

और एक दिन एक चोर आया और उसने उसे चुरा लिया।

तो अगले दिन हमें पता चला, मेरे पिताजी ने कहा,

“बेचारा, वह संगीत का शौकीन था, इसलिए वह ले गया कोई बात नहीं,

लेकिन उसने रिकॉर्ड नहीं लिये, अब वह क्या इस्तेमाल करेगा,

उसके पास रिकॉर्ड होने चाहिए।”

तो मेरी माँ उन्हें चिढ़ाने लगी,

“ठीक है, अब आप विज्ञापन दे दो ।

जिसने हमारा ग्रामोफोन चुराया

है, आकर रिकॉर्ड ले जाये वे उसके लिए उपलब्ध है। ”

ये इतना स्वाभाविक है, आप जानते हैं।

उन्हें यही महसूस हुआ कि हमारे पास आखिरकार पैसा है,

इस व्यक्ति के पास पैसा नहीं है

और वह संगीत को सुनना चाहता है, आप देखिये।

तो मेरे पिता ने कहा, ‘ठीक है’।

यद्यपि वे एक अपराधिक वकील थे।

मेरे पिता कानून बहुत अच्छी तरह से जानते थे।

वे एक अज्ञानी मूर्ख व्यक्ति नहीं थे,

लेकिन वे समझ नहीं सके कि, यह व्यक्ति सिर्फ ग्रामोफ़ोन ले गया  

बिना रिकॉर्ड के।

उन्होंने कहा,

“उसे अवश्य मिला नहीं होगा, आप देखिये, इसे उधर ही रखा था, इत्यादि ।”

मेरी माँ ने कहा, “बेहतर होगा आप इसका विज्ञापन दें।”

वे एक राजनीतिज्ञ भी थे,

तो उस समय, राजनीतिज्ञों के भीतर यह भावना थी

कि कैसे इन लोगों का जीवन-स्तर बढ़ाया जाए

जिनके पास वह सब नहीं है जो हमारे पास हैं।

सभी लोग जिनके पास पैसा था, बड़े पैमाने पर दान करते थे बहुत सारी चीजों के लिए।

मेरा मतलब है कि मेरे यहाँ (शहर में) एक रायबहादुर लक्ष्मीनारायण थे,

उन्होंने अपना सारा धन, सब कुछ, एक बड़े विश्वविद्यालय को दान कर दिया था।

उन दिनों होने वाले अधिकांश क्रियाकलाप

दान देने वाले लोगों द्वारा सम्पन्न होते थे।

मेरा मतलब है, उन्होंने कभी नहीं सोचा कि हमारे बच्चों के पास इतना अधिक धन होना चाहिए

करोड़ों, और करोडो, और करोड़ों रुपये।

उन्होंने ऐसा कभी नहीं सोचा था।

उनके पास जो भी सीमित धन था, वे दान में देना चाहते थे

और दूसरों के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे।

इसलिए जब राजलक्ष्मी, लक्ष्मी जो जिम्मेदार होतीं है

लोगों के हित की देखभाल के लिए,

जब वे कार्य करतीं है तो लोग सोचते हैं कि उन्होंने किया है,

वे ऐसा सोचते भी नहीं हैं, वे स्वतः ही ऐसा करते हैं,

कि वे वहाँ परोपकार के लिए हैं।

उन्हें स्वयं अपने को बताने की आवश्यकता नहीं होती,

बस उन्हें एहसास होता है कि ये उनका ही कार्य है, यही है

जो उन्हें करना चाहिए, कि लोगों की देखभाल करें,

उनको बेहतर जीवन स्तर पर लाने के लिए।

वे यही सोचते हैं, वे एक पार्टी की राजनीति की तरह नहीं सोचते,

कौन ऊँचा उठ रहा है, किसको मारना है, ऐसा कुछ भी नहीं!

लक्ष्मी देवी के प्रभाव के अंतर्गत,

जो कि राजनीति पक्ष पर शासन करतीं है हम कह सकते हैं, साम्राज्य इत्यादि

  • सर्वप्रथम उदारता है, पहली बात उदारता है।

उदाहरण के लिए, महावीर ध्यान कर रहे थे और निकलते समय उनका कपड़ा 

– उनका शरीर एक कपड़े से ढँका था, धोती और उन्होंने स्वयं अपने को ढँका हुआ था।

और कपड़े का ऊपरी हिस्सा अचानक झाड़ियों में फंस गया।

तो उन्होंने उसे काट कर अलग किया और आधे कपड़े में बाहर निकल कर आए  

यह उनके अपने महल में हुआ था।

तो श्री कृष्ण उनकी परीक्षा लेना चाहते थे।

उन्होंने कहा, “देखिये, मेरे पास कपड़े नहीं हैं, मैं बिल्कुल नग्न हूं।”

वे उनके सामने एक भिखारी की तरह आये थे।

“आपके पास यह है, आप मुझे यह कपड़ा क्यों नहीं दे देते?

आप अपने महल में जा सकते हैं और अपनी पोशाक पहन सकते हैं। ”

उन्होंने कहा, “ठीक है।”

उन्होंने इसे निकाला और उन्हें दे दिया।

और फिर उन्होंने कुछ पत्ते इत्यादि लेकर, स्वयं को ढका,

अपने महल में गए और कपड़े पहन लिए।

लेकिन अब ये जैन लोग, आप जानते हैं, वे उनकी इतनी बड़ी मूर्ति बनाते हैं,

पूर्णतया उनको अपमानित करते है, 

सभी प्रकार के निरर्थक निजी अंगों को विस्तार में दिखा कर।

यही बात है, जहाँ देवी की कोई पूजा नहीं होती।

देवी श्री शोभा हैं!

वही हैं जो आपको सुसज्जित करतीं हैं।

वे एक माँ है।

वही आपको आभूषणों से सुसज्जित करतीं हैं,

वही आपको सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित करतीं है, वे आपकी माँ है।

वही करतीं हैं!

जैसे राजा जनक, वे राजा थे

इसलिए उन्हें आभूषण पहनने होते थे, उन्हें सुंदर वस्त्र पहनने होते थे,

उन्हें सब कुछ करना होता था।

और जब नचिकेता उनके पास गए

तो वह अत्यंत अचम्भित थे कि मेरे गुरु ने उसे इस राजा के पास क्यों भेजा है

जो सभी तरह के कपड़े पहने हुए है और यह और वह

और उनका एक बड़ा समारोह भी था नृत्य और यह कुछ।

उसने कहा, “वे एक संत नहीं है फिर मेरे गुरु उनके पैर क्यों छूते है?

वे एक राजा है। ”

निसंदेह, राजा जनक जानते थे कि वह क्या सोच रहा है ।

उन्होंने कहा, “आप यहाँ क्यों आए हो, नचिकेता?”

उसने कहा, “मैं अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए यहाँ आया हूँ”

उन्होंने कहा, “आप मेरा सारा साम्राज्य ले सकते हैं

लेकिन आपको आत्म-साक्षात्कार देना सरल नहीं है।”

उसने कहा, “ठीक है, आप जैसा कहोगे मैं करूँगा।”

तो उन्होंने उसके सिर पर एक बड़ी तलवार रखी और उसे सोने के लिए कहा।

वह बिलकुल सो नहीं सका।

फिर वे स्नान कर रहे थे,

उन्होंने कहा, “आओ और नदी में स्नान करो।”

लोगों ने आकर बताया कि वहाँ आग लग गयी है और सभी लोग भाग रहे हैं

और राजा जनक ध्यानमग्न थे,

वे बिलकुल चुपचाप बैठे हुए थे।

नचिकेता थोड़ा विचलित हुए।

फिर वे बोले, “आग यहाँ आ रही है

और ये सारे कपड़े जलने वाले हैं।”

तो नचिकेता भाग कर बाहर निकल आए अपनी चीजों को बचाने के लिए, अभी भी वे ध्यान कर रहे थे।

फिर वे बाहर आए। और नचिकेता ने पाया

कि वहाँ कुछ भी जला नहीं था। वहीं था।

ये केवल लोगों का एक भ्रम था।

वह आश्चर्यचकित हुआ।

तब उसे बोध हुआ कि उसमें क्या कमी है,

कि वह परमात्मा की शक्ति पर ही संदेह कर रहा था।

वे जो जनक थे, जो एक राजा थे,

वे अपनी सत्ता के बारे में परेशान नहीं थे, ये सब क्या है?

क्योंकि वे वर्तमान में हैं, तो यह आपको करना ही होगा।

क्योंकि मैं विवाहित हूँ, मुझे मंगलसूत्र पहनना होगा।

तो यह परम्परा के लिए है, परंपरागत शैली के लिए,

लेकिन आंतरिक रूप में वे एक सन्यासी थे, एक बहुत उच्च… उच्च स्तर की धर्मशीलता।

जब ऐसी बात होती है कि आपको कोई पद मिलता है,

कोई अधिकार, यहाँ तक कि सहज योग में भी मुझे आश्चर्य होता है।

अगर कोई अगुवा बन जाता है, तो मुझे नहीं पता उसे क्या हो जाता है।

यह एक मिथ्या है।

सहज योग में नेतृत्व जैसा कुछ भी नहीं है, ऐसा कुछ भी नहीं है।

यह केवल एक मिथ्या है।

लेकिन अचानक लोग कूदने लगते हैं।

ये अहंकार है जिसे सिर पर चढ़ाया जाता है।

लेकिन इस अहंकार को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है यदि आप राजलक्ष्मी की पूजा करें।

वे ही संतुलन देती हैं।

पहली बात, वे हाथी पर सवारी करती हैं।

एक महिला के लिए हाथी पर चढ़ना सरल नहीं होता,

मैंने ऐसा किया है, यह सरल नहीं है।

निडरता से, 

और वे सीधा बैठती हैं, 

पूर्ण संतुलित के मनोभाव के साथ।

और उनके आशीर्वाद अद्भुत हैं।

पहला आशीर्वाद आपको मिलता है गरिमा को आत्मसात करने का।

एक राजा की गरिमा, एक रानी की गरिमा।

आप एक रानी हैं, इसलिए आप साधारण गलियों की महिलाओं की तरह व्यवहार नहीं कर सकतीं ।

उनके आशीर्वाद से, सबसे पहले, आपको ये गरिमा प्राप्त होती है।

वह गरिमा प्रेम से भरी है दूसरों के प्रति प्रेम।

वह व्यक्तित्व अन्य कुछ नहीं केवल दूसरों के लिए प्रेम और हित प्रसारित करता है,

और कुछ नहीं।

वे जहां भी देखती हैं, प्रत्येक कटाक्ष में लोगों को आशीर्वादित्त करतीं हैं।

वे कोई अपेक्षा नहीं रखती हैं।

वे एक रानी है, आप रानी को क्या दे सकते हैं?

वे हर प्रकार से सबसे उच्चतम है,

आप उन्हें क्या दे सकते हैं?

ये, ये सभी राजनेता और 

इन सभी देशों के ये सभी तथाकथित राष्ट्रपति भिखारी हैं।

हर समय मुझे यह दे दो, मुझे यह दे दो,

जैसे लालची लोग चारों ओर घूम रहे हैं, वे भिखारी हैं!

वे ऐसे लोग नहीं हैं जो शासन कर सकते हैं।

चीजों के पीछे लालायित हैं।

तो पहली बात वह संकेत यह है कि ऐसे व्यक्ति के पास एक ऐसा व्यक्तित्व होता है

जो केवल लोगों को आशीर्वाद देता है, उनके हित के बारे में सोचता है,

जो प्रत्येक व्यक्ति का संरक्षण करता है जो भी उसके संपर्क में आए।

ये देवी का एक आशीर्वाद है।

अब देवी का दूसरा आशीर्वाद यह है 

कि आप का एक प्रकार का स्वभाव विकसित हो जाता है,

जो बहुत गरिमापूर्ण है, लेकिन साथ में बहुत विनोदपूर्ण

और सूझबूझ वाला, कि अन्य लोग कैसे व्यवहार करते हैं।

एक कहानी है एक राजा की जो एक घोड़े पर जा रहा था,

और उसकी भेंट एक शराबी से हुई।

तो आप कह सकते हैं कि

हमारे इन शराबी की तुलना हमारे राजनेताओं से की जा सकती है।

तो शराबी रुक गया।

उसने कहा, “मैं आपका घोड़ा खरीदना चाहता हूँ।”

लोगों ने कहा, “क्या आप जानते हो कि वे कौन हैं?”

“हाँ, मुझे पता है कि वह एक राजा है।

ठीक है।

तो क्या? मैं उसका घोड़ा खरीदना चाहता हूँ। ”

उन्होंने कहा, “ठीक है, आज नहीं, कल हम आपको यह घोड़ा बेचेंगे।”

अतः चला गया।

अगले दिन उसे बुलाया गया।

तो वह हाथ जोड़कर आया, झुक कर प्रणाम किया।

उसने कहा, “क्या, तुम ही थे जो मेरे घोड़ा खरीदने वाले थे, 

अब तुम्हें क्या हो गया है? मैं इसे तुम्हें बेचना चाहता हूँ।”

उसने कहा, “साहिब, जो खरीदना चाहता था वह मर चुका है।

मैं एक सामान्य व्यक्ति हूँ। ”

ऐसा व्यक्तित्व, ऐसा ठोस व्यक्तित्व, मुझे कहना चाहिए,

कि कोई भी क्रोधित हो जाता 

कहता कि, “इस व्यक्ति को मारो!

उसे बाहर फेंक दो! वह मुझसे इस तरह बात

कर रहा है, ऐसा व्यवहार कर रहा है। ”

राजा ने जो कहा वह उल्लेखनीय था।

क्योंकि वे जानते थे कि वह नशे में है, 

वे जानते थे कि वह अपने होश में नहीं है,

इसलिए वह ऐसा बोल रहा है।

उससे नाराज नहीं हुए।

उन्होंने कहा, “ठीक है, कल आ जाना, मैं तुम्हें घोड़ा बेच दूंगा।”

ऐसा तभी संभव है जब आपके भीतर यह राजलक्ष्मी का प्रदुभाव हो।

अन्यथा आप ऐसा आचरण कभी नहीं करेंगे।

अब, आज कल के राजनीतिज्ञ के बारे में क्या, कहीं भी? 

वे लोगों को गोली भी मार देते हैं, वे लोगों की हत्या करते हैं,

उन्हें बंदी बनाते हैं, वे उन्हें मुसीबत में डालते हैं, मेरा अभिप्राय है वे सभी तरह के काम कर रहे हैं।

ऐसे लोगों को कोई अधिकार नहीं है किसी व्यक्ति को अपराधी कहने का!

लेकिन हम स्वीकार करते हैं!

जैसा कि हम हिंदी में कहते हैं, “आज कल का ज़माना ही ऐसा है ।”

हम इसे स्वीकार करते हैं – ऐसे सभी लोगों को,अपने शासक के रूप में।

फिर राजलक्ष्मी वे हैं जो धर्म पर खड़ी होती हैं।

वे धर्म पर खड़ी है।

अगर कोई अधर्मी हो तो उस व्यक्ति को वे आशीर्वाद नहीं देंगी।

अधर्मी को बाहर निकालना होगा।

लेकिन अगर वह ऐसा नहीं है, तो वे उस व्यक्ति की रक्षा करने के लिए सब कुछ करेंगी।

लेकिन यदि उसको पता चलता है कि वह अधर्मी है, तो वह नहीं बचाया जाएगा।

यह एक प्रकार का दैवीय विवेक उसके पास होना चाहिए

कि किसके प्रति दयालु होना चाहिए और किस को दंडित करना चाहिए।

वह दिव्य विवेक एक व्यक्ति में होना चाहिए,

अन्यथा आप उन दस लोगों के हाथों की कठपुतली बन सकते हो

जो आपके आसपास हैं, आपको कुछ सीख दे रहे हैं, कुछ कार्य कर रहे हैं।

एक दिन मैं अपनी माँ के जन्मस्थान नंदगाँव में थी,

और वहाँ एक सज्जन थे जिन्होंने हमारे एक योगी को बहुत प्रभावित कर दिया था।

मैं बस चुप रही।

वह एक बड़ा राजनीतिज्ञ था और उसने मुझसे कहा,

“हमें ऐसा करना होगा, और हमें करना होगा।”

मैंने कहा, “ठीक है, ठीक है, ठीक है।”

फिर विश्वविद्यालय से तीन, चार प्रोफेसर मुझे बताने के लिए आए,

“माँ, वह एक राजनेता हैं, बहुत सावधान रहें।

वह एक बहुत बुरा आदमी है, आप उसके बारे में सावधान रहें। ”

मैंने कहा, “तुम उसके बारे में क्या जानते हो?”

उन्होंने कहा, “वह एक राजनेता हैं।”

मैंने कहा, “यहाँ बहुत सारे लोग राजनेता हैं।”

“लेकिन वह एक अच्छा आदमी नहीं है।”

“लेकिन आपका क्या अभिप्राय है?” मैंने कहा,

“अब तुम बैठ जाओ और मैं तुम्हें बताती हूँ।

यह आदमी एक ब्राह्मण की पत्नी के साथ भागा हुआ है।

वह स्वयं एक ब्राह्मण नहीं है और ये बच्चा उसको इससे हुआ है

और उसने लोगों को कितना धोखा दिया है सब कुछ मैं जानती हूँ। “

वे आश्चर्यचकित हो गए।

“मां, आप जानते हो?”

“निसंदेह।

मुझे सब पता है!”

“फिर आपने उसे अपने समीप आने की अनुमति क्यों दी?”

“क्या आपको सोचते है कि वह मेरे करीब है?”

मैंने कहा, “दुःख की बात है कि आप गलत समझ रहे हैं।

लेकिन अच्छा हुआ कि वह मेरे पास आया है

क्योंकि वह लोगों को बहुत परेशान कर रहा था और मैं उसे सुधारूंगी। “

जबकि कुछ लोगों ने सोचा था कि वह एक बड़ी उपलब्धि है जो हमें मिली है,

और उनमें से कुछ लोग मुझे यह बताने के लिए आए कि इस आदमी से सावधान रहें

बिना यह जाने कि वह क्या था।

इस तरह का दिव्य विवेक अवश्य होना चाहिए।

यदि किसी राजा के पास वह दिव्य विवेक नहीं है

तो वह अच्छे लोगों को दंड दे सकता है और वह बुरे लोगों की मदद कर सकता है।

लेकिन यह दैव्य विवेक लुप्त  हो जाता है जब आप आत्मकेंद्रित हो जाते हैं।

यह मुख्य बिन्दु है, एक पूर्ण निर्लिप्तता

अपनी सत्ता के बारे में होनी चाहिए।

पूर्ण अनासक्ति।

राजलक्ष्मी किसी चीज की देखभाल क्यों करें?

उन्हें क्या मिलता है?

लेकिन अब कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक व्यक्ति को बहुत सिर पर चढ़ाते है,

ऐसा, ऐसा और वैसा, और फिर वे महसूस करेंगे

“आह, हम सबसे महान हैं!”

वे केवल सिर पर चढ़ाते जाते है, चढ़ाते जाते है, चढ़ाते जाते है,

राजनेता के अहंकार को, और वह सोचने लगता है कि वह एक बहुत बड़ा आदमी है,

फिर चुनाव में उसे समझ नहीं आता कि वह ज़मीन पर क्यों आ गया।

तो इस आत्म-गौरव, आत्म-ज्ञान से, आप जान जाते हैं कि आप क्या हैं।

आप चाहे कुछ भी मुझे बताइए, आप चाहे कुछ भी मुझे कहें,

मैं सुनूंगी, “ठीक है, ठीक है, ठीक है”,

लेकिन मैं किसी बात को बड़ी महान बात के रूप में स्वीकार नहीं करती।

क्योंकि अगर मैं वैसी हूं, तो इसमें महानता की क्या बात है?

अब मान लीजिये कि ये एक दीपक है यहाँ।

तो क्या यह महान है, या महान नहीं है?

यह एक दीपक है।

तो अगर मैं आदि शक्ति हूँ तो मैं आदि शक्ति हूँ, तो इसमें क्या?

अगर आप एक राजा हैं तो आप एक राजा हैं, तो इसमें क्या?

मेरा मतलब है कि यदि आप एक पाखण्डी हैं तो आप अपना अहंकार महसूस कर सकते हैं।

लेकिन यदि आप वास्तव में एक राजा हैं तो आप इसे महसूस नहीं करेंगे।

यदि आप देवी की प्रतिष्ठा में हैं

तो केवल यही एक चीज है जिसका आप आनंद लेते हैं।

शेष बाकी कुछ भी नहीं है।

चाहे आपके पास हीरें हों या आपके पास चांदी हो

या आपके पास कुछ और हो, इसका कोई अंतर नहीं पड़ता।

अब लोग कैसे शास्त्रों का दुरुपयोग करते हैं, ये भी देखना चाहिए।

यह कि राजलक्ष्मी हाथी पर विराजती हैं, ठीक है,

इसलिए उनके पास सभी बड़ी कारें होनी चाहिए, आप देखिए।

वे हाथी पर विराजमान हैं क्योंकि हाथी सबसे ऊँचा जानवर है!

बहुत दयालु है, बहुत क्षमाशील है और उसके पास एक प्रचण्ड स्मरण शक्ति है।

इसलिए वे हाथी पर बैठती हैं।

वे वहां झूठा प्रदर्शन करने के लिए नहीं विराजती है।

बल्कि वे वहाँ बैठी हैं, चारों ओर देखने के लिए कि क्या घटित हो रहा है, अवलोकन,

वे चारों ओर अवलोकना कर सकतीं हैं कि क्या हो रहा है, एक उच्च स्थान पर रह कर।

इसलिए एक राजा को एक ऊंचे आसन पर बिठाया जाता है।

लेकिन इसका उद्देश्य दिखावा करना नहीं होता।

परंतु उद्देश्य यह है

कि उस अवस्था में वह दूसरों को बेहतर देख सकता है,

वे दूसरों पर दृष्टि रख सकता है।

यदि किसी को उच्च पद प्राप्त होता है

तो वे सोचते हैं कि वे उस पद के मालिक हैं।

ये सब इसलिए होता है क्योंकि यह मस्तिष्क उल्टा-पुल्टा हो गया है, मेरे विचार में ।

ये कैसे हो सकता है,

तार्किक रूप से?

अब यदि आप हैं —-  ये सिंहासन दिया जाता है, ठीक है, तो इस सिंहासन के साथ

मैं यहाँ पर बैठी हूं, लेकिन यह सिंहासन मुझे कुछ नहीं दे सकता,

मैं इस सिंहासन को कुछ दे सकती हूँ।

राजा को यह सोचना चाहिए कि वह इन सभी चीजों पर उपकार कर रहा है कि वह

उन पर बैठा है, क्योंकि वह एक राजा है।

इसके विपरीत वह सोचता है कि ये सभी चीजें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उसमें स्वयं कुछ कमी है, अथवा क्या है?

और इसलिए जब वे शासन करने के लिए आते हैं तो

वे ऐसी चीजें इकट्ठी करने लगते हैं जो पूर्णतया अर्थहीन हैं,

उनके घरों, मकानों को इन सभी को, अनेक वस्तुओं को अव्यवसिथ्त ढंग से भर देते हैं, जो व्यर्थ है।

उनकी सारी गरिमा, सब कुछ, स्वयं अपने आप में उन पर एक सजावट है

और यह दर्शाने के लिए कि वे राजा हैं।

निस्संदेह उन्हें एक मुकुट दिया जाता है,

उन्हें एक बड़ा हार दिया जाता है, उन्हें यहाँ कुछ पहनना होता है

क्योंकि वे राजा हैं।

लेकिन वास्तव में ये सब उनकी सज्जा नहीं हैं

बल्कि ये वस्तुएँ सुसजिज्त हो जाती है एक राजा के द्वारा।

उदाहरण के लिए, आप गली से किसी दुबले पतले इंसान को ले आते हैं,

आधा-भूखा, जो कि एक भिखारी है कहिए, उदाहरण के लिए,

और उसे वे आभूषण पहना देते हो और एक राजा के सभी परिधान,

उसे एक मंच पर बिठा दो। शायद सब हँसने लगेंगे।

कोई भी यह नहीं सोचेगा कि – किसी संयोग से वह एक राजा है,

क्योंकि उसके पास वह गरिमा नहीं है, वह चेहरा नहीं है,

उसके पास वह शरीर नहीं है, उसके पास वह मस्तिष्क नहीं है,

उसके पास वह सदबुद्धि नहीं है।

तो वह एक राजा कैसे है?

जैसे, एक राजा था जिसने चेष्टा की थी मोतियों से अपने जूते बनाने की ।

लेकिन, वह बहुत मूर्ख दिखाई देता है, आपको पता है

इसलिए जब मैंने उन मोतियों को देखा, मैंने कहा,

“ऐसा केवल यही व्यक्ति है जो इस प्रकार सोच सकता है!”

इतना मूर्ख, वह देखने में लग रहा था।

और इतना यकीन था उसके जूतों पर मोती लगाने के बारे में।

तो इन दिनों ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो ये सभी मूर्ख लोग कर रहे हैं।

ऐसे बड़े, बड़े कार्टून सामने आ रहे हैं,

और आप स्वयं देख सकते हैं कि वे कैसे मूर्खतापूर्ण ढंग से जीवन जी रहे हैं।

मेरे लिए यह एक बहुत बड़ा अंतर है जो मैं आपको बता रही हूं।

इतना अधिक अंतर।

उनके लिए ये सभी चीजें इतनी महत्वपूर्ण हैं,

कि अगर उनके पास नहीं हैं, तो वे इसे खरीदेंगे और धारण कर लेंगे।

मैं एक सज्जन को जानती हूँ जो हमारे कार्यक्रम में एक फूलमाला के साथ आए थे,

मेरा मतलब हमारे यहाँ खाने पर। मैंने उनसे पूछा, “आप यह फूलमाला लिए हुए क्यों हैं?”

“देखिए, आखिरकार आप देखिए, मुझे माला पहनाई गई थी, इसलिए मैं यह माला रखे हुए हूँ।”

हमें नहीं पता था कि करें क्या!

हम भारतीय कभी भी फूलमाला नहीं पहनेंगे,

सबसे पहली बात, कोई भी आपको देता है, वे इसे रख देंगे, देवताओं के अतिरिक्त

वे इसे तुरंत निकाल देंगे।

एक अन्य महिला जो मुझसे मिलने आई थी और उसने बताया,

“मैं इन भारतीयों को नहीं समझ पाती।

मैंने एक फूलमाला खरीदी। मैंने उसे अपने गले में डाल लिया,

तो वे सभी सड़क पर मुझे देखकर हँस रहे थे।”

अब भारतीयों को यह समझ में आता है, कितना सूक्ष्म है यह अब देखिए,

कि आप माला नहीं पहन सकते, आप भगवान नहीं हैं।

आप एक माला खरीदकर और उसे अपने गले में डालकर और बाहर घूम नहीं सकते।

स्वाभाविक रूप से आप वैसे ही होगें।

इसलिए जो व्यक्ति स्वाभाविक रूप से एक राजा होता है उसे राजलक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

फिर वे क्या करती है?

ऐसे व्यक्ति के लिए वे क्या करती हैं?

वें ऐसा करती हैं, सबसे पहले

उसका नाम उन लोगों के दिलों पर लिखा जाता हैं, जिन पर वह शासन करता है।

वें स्वयं अपने हाथ से इसे लिखती हैं।

वे लोग उसे बहुत प्रेम करते हैं, 

वे उसकी प्रशंसा करते हैं और वे उसके गुणों को अपने भीतर आत्मसात करने का प्रयास करते हैं।

अन्य आशीर्वाद राजलक्ष्मी का यह है

कि वे एक विशेष प्रकार का शरीर प्रदान करती है,

जिसका एक गुणांक होता है, जो चैतन्य उत्पन्न करता है।

वे लोग कोई बड़े स्वार्थी नहीं होंगे

कि अपने बारे में एक बड़ा विज्ञापन करते हों,

अपने विषय में बातें करते हों, ऐसा, वैसा।

लेकिन वे जैसे हैं, जहां कहीं भी है, वे दिखते हैं।

हमारे समय में भी हमारे यहाँ कई ऐसे लोग थे।

हो सकता है कि लोगों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, हो सकता है कि वे अब कहीं भी नहीं हैं,

कुछ नए छोकरे अधिक कूदते हुए दिख रहे हैं।

लेकिन जो भी नाम लोगों के दिल में लिखा जाता है,

वे लोग हैं जो इन राजलक्ष्मी से आशीर्वादित हैं।

इसलिए एक राजनीतिज्ञ को यह समझना होगा

कि उसे पैसा नहीं बनाना है,

उसे अपने बारे में बड़ा प्रदर्शन करने की ज़रुरत नहीं है।

उसे ऐसा कुछ भी करने की ज़रुरत नहीं है,

जैसे अवैध तरीके से देश का धन लूट कर ले जाना।

उसे दूसरों की हत्या करने की ज़रुरत नहीं है, जो उसका विरोध करते हैं,

उसे चिल्लाने की आवश्यकता नहीं है उन लोगों पर जो उन्हें परेशान करते हैं।

लेकिन उसे क्या करना है?

उसको याद रखना है कि 

“मैं यहाँ एक अच्छा प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति बनने के लिए हूँ।”

उसे उस यश की चिंता करनी चाहिए जो वह अपनी मृत्यु के बाद छोड़ कर जाएगा ।

उसे यह देखना चाहिए कि उसकी प्रतिष्ठा सुरक्षित है।

उदाहरण के लिए, श्री राम को देखें जो हितकारी राजा थे, इसमें कोई संदेह नहीं है।

लेकिन उनकी अपनी पत्नी पर जब किसी ने आपत्ति की, कि

 “वे रावण के साथ रह चुकी हैं और वे पवित्र कैसे हो सकती हैं?”

वे जानते थे कि वे पवित्र हैं, फिर भी उन्होंने निर्णय किया कि वे उन्हें जाने के लिए कहेगें,

क्योंकि इस नाटक को बनाये रखने के लिए, एक राजा की पूर्ण छवि बनाये रखने के लिए,

और उन्होने उन्हें दूर भेज दिया।

लेकिन आजकल आप पाएँगे कि किसी का भाई अमरीका में नौकरी करता है,

बहन वहाँ नौकरी करती है और उसने बनाया है, उसके चाचा ने एक बड़ा घर बनाया और उसकी पत्नी ने इतना अधिक धन एकत्रित कर लिया है। यह सब चल रहा है।

सभी उस व्यक्ति के बारे में इस तरह से बात करेंगे, कि वह केवल धन-उन्मुख है,

वह बस निरर्थक चीजों पर पैसा खर्च करता है, और वह बस हमारा शोषण कर रहा है।

प्रत्येक व्यक्ति चर्चा करेगा, लेकिन कोई भी उसे मुँह पर नहीं बताएगा।

तो आपको जिस बारे में चिंता करने की आवश्यकता है वह है- पूर्णतया दोषरहित प्रतिष्ठा।

आजकल यह एक और अन्य विषय है-

प्रत्येक राजनीतिज्ञ के पास अवश्य

तीन-चार रखैल होनी चाहिए अन्यथा वह राजनेता नहीं है।

जैसे हमारे यहाँ नवाब थे, हमारे यहाँ लखनऊ में एक नवाब थे, 

जिनकी 165 पत्नियां थीं।

उसने सोचा कि यदि उसके पास 165 नहीं हों, तो

लोग उसे नवाब के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।

तो यह एक अन्य हीन भावना है

कि आपके आसपास कुछ महिलाएं होनी चाहिए

ताकि लोग कहें कि कितना प्रभावशाली व्यक्ति है वह!

अब वे दिन चले गए हैं, अब सतयुग शुरू हो गया है।

सत्य युग में, मैं आपको आश्वासन देती हूँ, कि जो भी व्यक्ति राजलक्ष्मी से आशीर्वादित नहीं है

उसे जेल जाना पड़ेगा या उसे अपनी कुर्सी को छोड़ना होगा,

ठुकरा दिया जाएगा या जैसा कि वे कहते हैं 

“दोहरी मृत्यु को पायेगा व्यर्थ ही धूल में मिल जाएगा ।”

ऐसा ही होना होगा।

वे सभी अनावृत होंगे, चाहे कोई भी युक्तियाँ वे अपना लें।

और उनको बनावटी रूप से शासक बनने का परिणाम मिलेगा।

लेकिन एक सच्चाई ही ऐसा संकेत है, कि आशीर्वाद की रानी,

राजलक्ष्मी देवी, उस व्यक्ति में निवास कर रही है।

सतयुग में ऐसा घटित होगा, मुझे विश्वास है।

लेकिन, यहाँ तक कि सहज योग में भी मैंने पाया कि लोग कभी-कभी राजनीति करते हैं,

मैं अचंभित थी!

लोग सोचते है कि राजनीति का अर्थ है समूह में रहना,

समूह बनाना, यहाँ की बातें वहाँ बताना, वहाँ की यहाँ।

यह दर्शाता है कि आप में सामूहिकता की कमी है।

एक व्यक्ति जो सहज योगी है, सभी को एक साथ जोड़ने की कोशिश करेगा,

क्योंकि सामूहिकता में ही शक्ति निहित है।

सामूहिकता को किसी भी बात के लिए तोड़ना 

बहुत संकटपूर्ण है उस व्यक्ति के लिए भी और साथ में दूसरों के लिए भी ।

तो अब आप परमेश्वर के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं,

आप अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के दरबार में बैठे हैं।

यहाँ, निश्चित रूप से, दरबारियों के रूप में आपको अच्छी तरह से तैयार होना चाहिए,

ठीक प्रकार बैठना चाहिए, अपना आसन ग्रहण करना चाहिए।

आपको व्यवस्थित रहना चाहिए

और निष्कपट, क्योंकि आप सहज योगी हैं।

आप सामान्य लोग नहीं हैं।

आप विशिष्ट लोग हैं।

इस संसार में कितने लोग सहज योगी बनने जा रहे हैं?

आप विशेष लोग हैं,

इसलिए अपने आप को राजलक्ष्मी के ऐसे सुंदर यंत्र बनाने का प्रयास करें

कि लोग, जब वे आपको देखें, तो वे आपको वोट दे देंगे,  

और कल आप इस संसार पर राज करेंगे।

मैं नहीं चाहती कि आप राजनीति से बाहर आ जाए या राजनीति में चले जाएँ, 

लेकिन आपको सबसे पहले राजलक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना होगा,

और उसके बाद ही आपको समझना चाहिए

कि हमारे देश में क्या दोष है, हमें क्या करना है,

क्या उद्देश्य है, हम राजनीतिज्ञ क्यों बनना चाहते हैं,

हमें क्या करना है? हमारे पास योजनाएं होनी चाहिए। आपकी परियोजना क्या है?

ये सारी चीजें अब आपका ध्यान स्वयं अपने से बाह्य की ओर ले जाएँगी।

जैसे, उस दिन मुझे एक पत्र मिला ये कहते हुए 

“मेरे पिता बीमार हैं और मेरी माँ बीमार है फिर मेरा बेटा बीमार है,

और ऐसा और वैसा और वैसा और वैसा।”

ऐसे लोग अधिक कुछ नहीं कर सकते।

जब भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू हुई

तो हमने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, अपने माता-पिता को त्याग दिया, सब कुछ त्याग दिया,

हम लोग उम्र में बहुत छोटे थे।

इसलिए अब आपको यह जानना है

कि यदि आपको वास्तव में राजनीति में उतरना है

तो आपको राजलक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना है।

और इसके लिए आपको अपना निर्माण करना है,

उस गरिमा के साथ, उस भावना के साथ।

मैं आपको अपने हृदय से आशीर्वाद देती हूँ कि प्रत्येक देश में ऐसे

लोग आगे बढ़कर आएंगे।

परमात्मा आपको आशीर्वादित करे।