Makar Sankranti Puja

पुणे (भारत)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Makar Sankranti Puja 14th January 1996 Date: Place Pune Type Puja Speech Language Hindi, English and Marathi

आज हम लोग यहाँ संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा करने के लिये एकत्रित हुए है। अपने देश में सूर्य की पूजा बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं और सूर्य को अर्ध्य देना एक प्रथा जरूरी समझी जाती है और विदेशों में भी सूर्य का बड़ा महत्त्व है। उनके ज्योतिष शास्त्र आदि सब सूर्य पर ही निर्भर है । अब संक्रांत में ये होता है, कि चौदह तारीख को, आज सूर्य अपनी कक्षा छोड़ के उत्तर दिशा में आता है और इसलिये लोग संक्रांत को बहुत ज्यादा मानते हैं। लेकिन इस पृथ्वी गति से पहले २२ दिसंबर से १४ तारीख तक बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। बहुत ही ज्यादा लोगों को तकलीफ़े होती हैं। जुकाम होता है और हर तरह की शारीरिक पीड़ा भी होती है। उसके बाद उसको संक्रमण काल कहते हैं। जरूरत से ज्यादा ठंडक हो जाता है। उस ठंड के कारण अनेक उपद्रव शुरू हो जाते हैं। पर इस ठंड का भी एक उपयोग होता है। वो ये कि जो किटाणू या तरह तरह की चीज़ें अपने देश में इधर-उधर घूम कर और सब को परेशान करते हैं, वो इस ठंड की वजह से अपनी अपनी जगह चले जाते हैं, बहुत से नष्ट हो जाते हैं। बहुत से लोग मर जाते हैं। मतलब ये कि जिसे हम कह सकते हैं, कि जो सारे हमारे ऊपर पॅरासाइट्स है वो सब खत्म हो जाते हैं। तो ये भी अत्यावश्यक चीज़ हैं, कि हमारे यहाँ इस कदर ठंड पड़नी चाहिये जिससे हिन्दुस्तान की जो इस तरह की चीज़ें हैं वो खत्म हो जाती हैं। लेकिन संक्रांत का बहुत महत्त्व जो माना जाता है, वो ये है कि संक्रांत की ठंड में लोगों को अपना इस तरह से ……(अस्पष्ट) होना चाहिये। असल में हमारी जो कुछ भी प्रथाऐँ हैं, जो कुछ भी जिस चीज को हम मानते हैं कि जरूरी है, उसको हमने कर्मकाण्ड बना लेने से ही लोग उससे तंग आ गये। अर्थ है। लेकिन अगर सब का एक शास्त्रीय दृष्टि से विचार किया जाए, तो इन सब चीज़ों में एक बहुत बड़ा इस वक्त तिल और गुड़ दिया जाता है। वो भी समझने की चीज़़ है। तिल एक स्निग्ध चीज़ है। और बिल्कुल उस वक्त ठंड में हम लोग, हमारी त्वचारयें और सब कुछ एकदम, बहुत ज्यादा कहना चाहिये, की सूख जाती है और उस सूखी हुई त्वचा की स्निग्धता के लिये तिल, इसलिये वो जब आप लेते हैं, उस तिल की स्निग्धता हमारे अन्दर आती है। जो लोग इस तरह से सूख जाते हैं उनमें और बहुत सी चीज़ों का समावेश होता है। जैसे कि हमारे अन्दर जो जीन्स हैं, उसके अन्दर जो तीन विशेष चीज़ें हैं, उसमें से फॉस्फरस जो चीज़ हैं, वो बड़ी बात हैं। ये फॉस्फरस जो हैं इसमें जब किसी तरह से सूखापन आ जाता है, आपके पेशिओं में, आपके सेल में, तो पानी सूख जाने से उसके अन्दर का फॉस्फरस जो है, प्रस्फुटित होता है और उसके कारण ये बहुत स्फोटक स्वभाव हो जाता है। माने ऐसे आदमी को बड़ा गुस्सा आता है, और छोटे छोटे चीज़ों के लिये तुनकमिज़ाज होता है और बिगड़ता है। इसलिये कोई ऐसी स्निग्ध चीज़ लेनी चाहिये, जिससे उस स्निग्धता के कारण आपके अन्दर की जो शुष्कता है, जो ड्रायनेस है वो खत्म हो जाती है । और उसी के साथ में लोग गुड़ देते हैं या चीनी देते हैं । इससे आपके लिवर की, यकृत की जो गर्मी हैं, वो

निकल जाती है। ये बहत ही शास्त्रीय चीज़ हैं। इस कारण व्यक्ति जब ठंडा होता है तब आपको स्निग्ध चीजें खानी चाहिये। और इसके अलावा आपको मीठा खाना चाहिये। पर मीठा माने क्या ? शुद्ध जिसको कहते हैं, चीनी या गुड़ जिससे आपके अन्दर आपकी जो गर्मियाँ हैं वो शोषित हो जाएगी। अब कितना शास्त्रीय स्वरूप हैं। यही चीज़ परदेस में अगर लोग करें जहाँ बहुत ठंड पड़ती है, और इस तरह का अपना खाना-पीना ठीक करेंगे तो उनकी जो बहुत आततायी प्रवृत्तियाँ हैं, जो अँग्रेसिवनेस है वो खत्म हो जाएगा । और जिस वक्त ये देते हैं, महाराष्ट्र में तो लोग कहते हैं, तील और गुड़ लो, मीठा मीठा बोलो। क्योंकि जो मनुष्य तापसी है और तपस्विता में बैठे हुए हैं वो लोग क्रोधी ज्यादा होते हैं और उस क्रोध के कारण कभी कभी बड़े भारी उत्पात हो सकते हैं। लोग ऐसे लोगों से डरते जरूर हैं, लेकिन उनके प्रति खास श्रद्धा नहीं। उस वक्त ये कहा जाता है, कि अब तील और गुड़ ले के मीठे बोलिये। अब एक बात हैं, कि स्निग्ध चीज़ अगर आपने ज्यादा ली तो उसके कारण आपका लीवर खराब हो जाएगा । इसलिये उसका उत्तर हैं कि आप उसके साथ गुड़ खाईये। इससे वो दोनों चीज़ आपस में संतुलित हो जाए । अब ये सूर्य का जो प्रताप हैं, वो समझने की बहुत जरूरत हैं। जिन देशों में सूर्य इतना होता नहीं, वो सूर्य को बहुत ऊँची किस्म की चीज़़ मानते हैं। और सूर्य में बैठ कर के अपनी कांति ठीक करते हैं। और घण्टों सूर्य के पीछे दौड़ते रहते हैं। जर्मन्स तो अब साउथ अफ्रिका चले गये। मुझे लगता है, थोड़े ही दिन में अपने गणपतिपूले में आ कर रहेंगे। पर यहाँ की जो गर्मी हैं, वो इस कदर ज्यादा है। उस गम्मी के साथ हम लोगों को किस तरह से चलना चाहिए, इन्हें नहीं पता। सब से बड़ी बात ये है, कि सहजयोगियों को समझना चाहिए कि हमारे अन्दर जब बहुत ज्यादा राइट साइड़ हो जाती है और जब हम बहुत तपस्वी हो जाते हैं, सोचते हैं कि हमने ये काम किया, हमने वो काम किया, ऐसा किया, वैसा किया, तो संतुलन टूट जाता है। और संतुलन टूट जाने से मनुष्य जो है, वो गर्म हो जाता है। जब आपको लगा की आप सहजयोग के लिये कुछ काम कर रहे हैं, उसी वक्त आप छोड़ दें तो अच्छा है। क्योंकि ये धारणा रखना भी कि, हम बहुत काम कर रहे हैं, और कोई नहीं कर रहा है। ये धारणा बहुत गलत है। आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं। करने वाले तो परमेश्वर हैं और परम चैतन्य सारे कार्य करते हैं। तब आपका ये सोचना कि मैंने ये कार्य किया, मैंने वो कार्य किया, और दूसरों ने कोई कार्य नहीं किया ये सोचना बड़ी गलतफ़हमी है। बहुत बड़ी अपने बारे में कल्पना कर लेना, जिससे आप में सिर्फ अहंभाव बढ़ता है, हंकार बढ़ता है। मैंने ये कार्य किया, मैंने वो कार्य किया ! जब सहजयोग में आप आयें, तो आप कार्य करने वाले कौन हये! आप तो विराट के अंग-प्रत्यंग हो गये। जब आप, एक बूंद सागर में मिल जाए, इस तरह से उसमें गये हैं, तब सागर ही घूल आपको चलायेगा । और उसी की शक्ति से, परम चैतन्य की शक्ति से ही सारे कार्य घटित होगे। पर जब तक आप ये सोचेंगे कि, मैं ये कार्य कर रहा हूँ, मैं वो कार्य कर रहा हूँ, तब तक परम चैतन्य कहता है, अच्छा चलो। जैसे मराठी में रामदास स्वामी ने कहा, अल्पधारिष्ट। माने, चलो, करो तुम। लेकिन ये बात नहीं। इसका मतलब ये भी नहीं, कि आप हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाएं और कहें कि हाँ भाई, ये तो सब परम चैतन्य है। ये मैं भावना की बात कर रही हूँ। कोई भी कार्य है, आपको करना है। और जितना बन सकता है, वो आपको करना है। उसी ओर आपका ध्यान होना चाहिये। वो चीज़ आपको पूरी तरह से पूरी करनी है। लेकिन ये जान लेना चाहिये, कि इसकी जो शक्ति हैं, वो परम चैतन्य की बह रही है। आपकी नहीं बह रही है। इससे आपका जो अहंकार है, वो दब जायें। इस | अहंकार के कारण संसार में कितनी परेशानियाँ हैं। कोई हद ही नहीं।

अब तो यहाँ, हम लोग कहते हैं, कि हमारा राजकारण ठीक नहीं। इस राजकारण के पीछे में भी एक बड़ा भारी अहंकार है, कि हम तो कोई ऐसे हैं, कि हमें ना तो कोई कायदा पकड़ सकता है, हम कोई गलत काम करते हैं, चाहे किसी को मार ड़ाले, चाहे किसी को कुछ करें, हमारा कोई कुछ भी बुरा नहीं कर सकता। इस तरह की जो भावनायें आ जाती है, ये अहंकार कहलाती है। अब एक तरह से अहंकार मनुष्य में अनेक चीज़ों से आता है। पर खास कर के आज कल की जो जड़वादिता है, जिसे लोग कहते हैं, कि हर एक चीज़ मटेरिलियज्म की ओर दौड़ेगी। उससे भी, मटेरिलिज्म की ओर लोग दौड़ते हैं, उनका अहंकार बहुत बढ़ता है। अहंकार बढ़ते बढ़ते ऐसे हो जाता है, कि इतने अँधे हो जाते हैं, कि ये भी नहीं देखते, कि कितना गलत काम कर रहे हैं। हम कितना शोषण कर रहे हैं। ऐसी ऐसी चीज़ों की माँग रखते हैं, जो हमारा अधिकार नहीं। ऐसी अनधिकार चेष्टा करते जाएंगे और उस अनधिकार चेष्टा से हम दुनियाभर के भ्रष्टाचार को भी अपना लेते हैं और कभी सोचते नहीं, कि ये गलत काम हैं। इस प्रकार हमारे यहाँ जो राजकारण आज चल रहा है, उसकी जो तकलीफ़ें हैं, उसकी जो परेशानियाँ हैं, उसको ठीक करने के लिये भी सूर्य की बहुत आवश्यकता है। सूर्य क्या करता है? सूर्य जो है, सब चीज़ प्रकाश में लाता है। उसका कार्य है, कि अंध:कार को दूर कर के और सब चीज़ को प्रकाशित करना। ये सूर्य का कार्य है। सूर्य भी एक पंचमहाभूतों के है। और उसमें से वो अपने तेज़ से, अपने तेज़ के साथ ये प्रगट कर देता है, कि कौन कैसा है! आज जो हम के परम ….. (अस्पष्ट) उतरें हैं तो ये कार्य परम चैतन्य सूर्य के द्वारा करें। कि सब को वो एक्स्पोज करें, सबको वो प्रगटित करें | ये लोग कैसे हैं? वो लोग कैसे हैं? हर तरह के लोग प्रगटित होते जाएंगे। अगर सूर्य की किरणें परम चैतन्य उपयोग में न लायें, इसका इस्तमाल न करें, तो आप समझ लीजिये, कि अंध:कार छाएगा। और इस अंध:कार में लोग बहते जाएंगे । कलियुग की यही विशेषता हैं, कि कलियूग में लोगों को ये भूल ही दिया था, कि सूर्य की रोशनी सब दूर आती है और सब कोने कोने में भी घूस सकती है। ये भूलने की वजह से कलियूग में इस तरह के लोग पैदा हये हैं। जैसे कोई साँप हैं, कोई बिच्छू हैं, तो कोई भेड़ियाँ हैं, जो कि अँधेरे में ही कार्य करते हैं और सब चीज़ अँधेरे में, सिक्रसी में रखते हैं । और इस तरह के लोग पनपने से सारे देश की हानी होती हैं। इतना ही नहीं सारे विश्व की हानी होती है। अभी अगर आप सहजयोगी हैं, आपने सहज में ज्ञान को प्राप्त किया हैं, तो उसमें आप देख सकते हैं, कि संसार में कोई भी देश में, ऐसा कोई पुरूष नहीं रहा है, कि जिसे हम कह सकते कि ये आदमी ठीक है। सब लोग कुछ न कुछ बेवकुफ़ी के काम करते रहते हैं। इस कदर बेवकुफ़ी के काम करते हैं, कि बड़ा आश्चर्य होता है। ये इस तरह से क्यों हो गये और क्या कर रहे हैं? जैसे कोई हैं, माने हुये, न्यूझीलंड के एक प्राइम मिनिस्टर थे। लेकिन सहज जैसे उनमें प्रगल्भता नहीं है । मॅच्यूरिटी नहीं आयी। बड़े अच्छे थे, भाषण अच्छा देते थे। काम अच्छे किये। पर बेवकुफ़ी ये कि अपने सेक्रेटरी से शादी कर ली। ये सब बेवकुफ़ियाँ इसलिये आती हैं, कि कलियूग में अंध:कार है। इस अंध:कार में मनुष्य बहुत सारे गलत काम करने लगता है और इस कलियूग में ये जानना चाहिये, कि सूर्य हर जगह अपने प्रकाश में इन सब को खोल देगा। सब को सामने ले आएगा। और जो जो लोग गलत काम कर रहे हैं, वो सामने प्रगटित होंगे। इसलिये सहजयोगियों को अपना जीवन अत्यंत पारदर्शक रखना चाहिए। ऐसा रखना चाहिए, कि जिससे अन्दर, बाहर कोई भी शक न हो। बहुत जरूरी हैं। क्योंकि सब से ज्यादा सूर्य जो हैं वो सहजयोगियों के पीछे लग | जाएगा।

सहजयोगियों को अधिकार नहीं है, कि जैसा चाहे वैसा बर्ताव करें। सूर्य उनके पीछे लग जाएगा। क्योंकि सूर्य की मदद से ही आपने जैसे प्राप्त किया है। आप जानते हैं, कि सूर्य का स्थान आज्ञा चक्र पे हैं। आज्ञा चक्र सब कुछ जानता हैं। वो देखता हैं, कि ये किस तरह से अपने अहंकार में फँस रहा है या अपने ऊपर जो कुसंस्कार हैं उसमें फँस रहा है। उसको अपनी ओर नज़र करने की जरूरत नहीं। साफ़ साफ़ उसको दिखायी देता हैं, कि वो कैसे गलत | रास्ते पे चला जा रहा है, कैसे बहका चला जा रहा है। और उस सूर्य को, उस आज्ञा चक्र के सूर्य को जब आपने पूरी तरह से खोल दिया, तो उसके प्रकाश में आप संसार की कितनी ही बातें देख सकते हैं, जो आपके लिये विनाशकारी है और जो आपकी समर्थक हैं। प्रकाश, यही प्रकाश, जिसे आत्मा का प्रकाश कहना चाहिये। जिसके दो अंग हैं। एक तो इसका अंग हैं, चंद्रमा, जो कि श्रीगणेश स्वरूप हैं। इसका दूसरा अंग जो हैं, वो है इसामसीह। इस तरह से दो तरह के इसके अंग हैं। और जब आप सूर्य का आवाहन करते हैं, जब सूर्य को आप बुलाते हैं, तो सूर्य के जितने गुण हैं, वो सारे प्रगटित हो सकते हैं, क्योंकि आप सहजयोगी हैं। पर अगर आप अपने जीवन प्रणाली, अपने जीवन का ध्येय सूर्य के जैसा प्रकाशित, सुंदर और अनुपम न बनायें तो आपका सहजयोग में आना बिल्कुल व्यर्थ हैं। जो लोग सहजयोग में आयें हैं उनको प्रकाश सूर्य का मिला हुआ है और उनको इसी तरह अपने जीवन को प्रकाशित करना चाहिये। आप जानते हैं, कि सहजयोग में आने के बाद आपके आँख में ज्योत दिखायी देगी। चमक सी आएगी । ये जो ज्योत आपके अन्दर आ जाती है, ये ज्योत इसकी द्योतक हैं, इसकी प्रतीक रूप हैं, कि आप में आत्मा का आप अपने को भी देख सकते हैं, दूसरों को भी देख सकते हैं। अपने भी चक्र देख प्रकाश आ गया। उस प्रकाश में सकते हैं और दूसरों को भी चक्र देख सकते हैं। पर अगर आप सहज में पूरी तरह से उतरे नहीं और उसका आपने पूरा लाभ नहीं उठाया तो ये दोनों ही क्रियायें बहुत मंद पड़ जाती है। ना तो आप अपनी गलतियाँ देख सकते हो ना दूसरों की और जब आप अपनी गलती देखते हैं तो फिर आप अपना अहंकार भी देखते हैं, अपना अहंभाव भी देखते हैं, अपना क्रोध भी देखते हैं। हालांकि ये सारी चीज़ें जो हैं आप जानते हैं कि राइट साइड से आती है और सूर्य की गति से आती हैं । पर फिर आप देखते हैं, कि सूर्य किस तरह से अपना संतुलन खोजता है। जहाँ सूर्य ज्यादा होगा वहाँ पेड़ बहुत होंगे। वहाँ पेड हरे-भरे, ऐसे पेड़ की जिससे पेड़ के नीचे में उनको सूर्य का ताप न लगे। ये सूर्य का कायदा। जहाँ सूर्य नहीं होगा वहाँ पेड़ भी नहीं होगे। वहाँ बर्फ है। इस प्रकार देखिये कितना संतुलन सूर्य सम्भालता है। और अनेक तरह के, जैसे कि जो देश बहुत उष्ण देश है, गर्म देश हैं, वहाँ के जो जानवर होते हैं, तो उनके ऊपर में बाल नहीं होते। उनको बाल नहीं होते। जहाँ ठंड होती, वहाँ बाल नहीं होते। ये सब प्रकृति किस तरह से उसकी नियति | बदलती है। क्योंकि जो लोग ठंडे देश में रहते हैं उनको जरूरी है, कि ऊनी कपड़े मिलें । ऐसे जानवर होने चाहिये, कि उनको बहुत ऊन (वूल) दें । इसलिये आप देखिये, कि जहाँ जहाँ ठंडा हैं, वहाँ जानवरों में बहुत ज्यादा सूर्य की अनुपस्थिती में वहाँ पर इतना ज्यादा विपूल ऊन आदि होता है और वो पहनते भी हैं। अब जिस पे सूर्य की कृपा हो जायें, वो आदमी बहत तेजस्वी होता है। जैसे शिवाजी महाराज थें। राणा प्रताप थें। अपने देश में, और भी देश में ऐसे तेजस्वी लोग हैं। ये सूर्य की कृपा से होता है। क्योंकि सूर्य जो हैं, वो उनके आज्ञा चक्र में रहने से उनमें एक तो

अपने प्रती जागरूकता आती है। शिवाजी महाराज एक तरफ़ समझ लीजिये, कि मुसलमानों से लड़ रहे थे उस जमाने में। उस जमाने में जो शत्रू थे उनसे भीड़ जाते थे। उसी तरह वो अत्यंत स्वाभिमानी होते हुये भी अत्यंत नम्र थें। नम्रता भी उनमें थी और नम्रता के साथ साथ वो अपनी माँ को बहुत ऊँची चीज़ मानते थें। वो देवी को मानते थे। और अपने गुरू रामदास स्वामी को मानते थे और कम से कम २१ ऐसे लोगों को मानते थे जो बड़े बड़े संत साधु थे । ये सारी उनकी तेजस्विता जो थी उससे दिखायी देता है, कि जब आदमी तेजस्विता में उतरता है, उससे वो किसी को भस्म नहीं करता । किसी पे क्रोधित नहीं होता। उसमें बड़ा संतुलन हो जाता है और उस संतुलन में वो ऐसे करता है, कि जब वो किसी के साथ कोई भी बात हो जायें या कुछ हो तो उससे जरूर वो समझायेगा, बतायेगा लेकिन इस तरह से बतायेगा कि जिस तरह से वो आदमी समझ जायें, कि हाँ, ये मेरी गलती थी। मुझे ऐसे करना नहीं चाहिये। क्योंकि सूर्य की विशेषता मैंने आपसे बतायी थी| ये हमारे अन्दर बहुत संतुलन देता है। जैसे पृथ्वी तत्त्व को संतुलन देता है, सब चीज़़ को संतुलन देता है। और अगर सूर्य न हों, सूर्य की गति न हों, न तो वर्षा होगी, न ही ऋतू आएंगे और न ही जो हमें अलग-अलग सूर्य के कारण उगने वाले फूल आदि और हर तरह की वनस्पतियाँ दिखायी देती हैं, कुछ भी नहीं दिखायी देगी। पृथ्वी का सारा जो कुछ भी पृष्ठभाग है, वो ऐसा हो जाएगा जैसे विरान, इस तरह से हो जाएगा। ये सूर्य की अनेक कृपायें हैं । और खास कर अपने देश में सूर्य की विशेष कृपा हैं। इस सूर्य की कृपा इतनी हैं, कि हम लोग इसको समझते नहीं। लेकिन एक बात समझनी चाहिये, कि इसमें एक ऊर्जा भी है। उस ऊर्जा को हम इस्तमाल करना नहीं चाहते। मुझे आश्चर्य हुआ, कि ऑस्ट्रेलिया में ऊर्जा पर कितना कार्य हो रहा है, जहाँ पर इतनी सूर्य की किरणें आती नहीं । इस देश में जहाँ इतना सूर्य हैं, यहाँ अगर हम इस ऊर्जा का काम ठीक से शुरू कर दें तो हमारे बाकि प्रश्न जो हैं वो ठीक हो जाएंगे। इस सूर्य की ऊर्जा से न जानें हम क्या क्या कर सकते हैं। लेकिन हमने एक बार कोशिश की कि अपने गवन्मेंट से कुछ कहें, कि हमें सूर्य की ऊर्जा से कुछ काम करना हैं। तो उन्होंने लाखों रूपये का खर्चा बताया। तो हमने कहा, ये तो भाई, ठीक नहीं। इससे अच्छा दूसरा कोई काम करें। पर इस पर अगर लोग ध्यान दें, कि सूर्य की ऊर्जा से हमारे कार्य ठीक हो सकते हैं। तो हमारे बहुत से प्रश्न जिसके लिये हमें इतना पैसा खर्च करना पड़ता है और इतनी परेशानी उठानी पड़ती हैं, वो आसानी से ही एकदम ठीक हो जाएगी। जैसे कि सूर्य की जो किरणें हैं, उसकी जो ऊर्जा हैं, उसकी जो शक्ति हैं, उसको हम संचित कर लें तो उससे हम अनेक कार्य कर सकते हैं। अब सहजयोगियों को चाहिये इस ओर ध्यान दें । जिस ओर अभी प्रगति नहीं हुई हैं, वो आप कर सकते हैं । और सूर्य विशेष कर आपको मदद करेगा। क्योंकि आप सहजयोगी हैं और परम चैतन्य जो हैं वो आपकी मदद करेगा । इसका किस तरह आपको उपयोग करना है? किस तरह इसको इस्तमाल करना है? अब सब से बड़ी बात ये है, कि इस सूर्य के कारण मनुष्य कार्यरत हैं। कार्यान्वित हैं। जब सूर्य चला जाता हैं तो मनुष्य शांत सो जाता है। पर जब | सूर्य आता है, तो उसका कार्य शुरू होता है और वो मेहनत करने लगता है। पर आश्चर्य की बात हैं, कि जहाँ जहाँ, जिस देश में सूर्य हैं, बहुत ज्यादा, वो देश जो हैं वो आलसी हैं और जिस देश में बहुत कम हैं वहाँ लोग भडकाऊ हैं। इसका कारण ये हैं, कि यहाँ बहुत सूर्य होता है, वहाँ मनुष्य श्रांत हो जाता है, थक जाता है। बड़ी जल्दी उसको थकान आ जाती है। तो फिर राइट साइड आ गयी फिर । लेकिन मैंने देखा विदेश में जहाँ सूर्य बहुत कम हैं, वहाँ

लोग मेहनत इसलिये करते हैं क्योंकि कितनी भी मेहनत करें, उनको पसीना नहीं आता। उनको थकान नहीं आती। इतनी ठंडी वहाँ की सारी शक्ति हैं, कि उनको उस वातावरण में कितना भी काम करने से कुछ परेशानी नहीं। पर हमको ये कहना चाहिये, कि परदेस के जो सहजयोगी हैं, ये इस कदर तन्मय और इतने सात्त्विक और बहुत तपस्वी हैं। मैंने कहा था, कि आप लोग सबेरे चार बजे अगर उठ कर नहायें, तो चार बजे सूर्य की किरण बहुत शांत और सुन्दर होती है। इनके आश्रमों में सब लोग चार बजे उठते हैं। नहा-धो कर के ध्यान करते हैं। लेकिन वो बात हिन्दुस्तान में नहीं। हिन्दुस्तान के लोगों में चार बजे उठना माने महापाप। चार बजे कैसे उठेंगे? और न ही हिन्दुस्तान के लोगों में वो चीज़ हैं जो इन लोगों में मैंने देखी है। इनका पिंड ही नहीं है। खास कर के हमारे महाराष्ट्र में तो बहुत ही बूरा हाल है। महाराष्ट्रीयन लोग जो हैं वो सहजयोग के कितने लायक हैं पता नहीं। क्योंकि इनकी जो अन्दर की शक्ति हैं, वो कम हैं। जिनमें भक्ति होती हैं वो इन्सान सबेरे चार बजे क्या किसी वक्त भी उठ सकता है, किसी वक्त भी मेहनत कर सकता है। किसी वक्त भी अपने उत्थान के लिये तन्मय हो सकता है। आश्चर्य की बात | है, कि इस महाराष्ट्र में इतने संत-साधू हो गये। बचपन से हम लोग यही सीखते आयें हैं, कि आपको अपना मोक्ष प्राप्त करना चाहिये । अपने को अपना परम चैतन्य मिलना चाहिये और सहज में सब कुछ प्राप्त करना चाहिये। ये सारी चीजें बचपन से आपको मालूम हैं। यहाँ बहुत काम किया हैं। यहाँ पर नाथ पंथी थे उन्होंने बहुत कार्य किया हुआ हैं। पर ये सब होते हुये भी महाराष्ट्र के जो लोग हैं, वो एक अजीब तरह के बन गयें। समझ में नहीं आता, वो कहते हैं, कि यहाँ की राजवट ठीक नहीं थी, यहाँ का राजकारण ठीक नहीं था। इसलिये हम लोग ऐसे बेकार हैं। पर ये जो एक वजह मेरे ख्याल से ये भी हैं कि महाराष्ट्र के लोग ये सोचते हैं कि हम तो सब जानते हैं। हम को सब कुछ मालूम है। बुद्धि से बढ़ के जानना है। हम तो सब जानते हैं। यहाँ के लोगों को क्या मालूम! बाकि के लोगों को क्या मालूम! अब दिल्लीवालों को दत्तात्रेय क्या ये नहीं मालूम! वो क्या करेंगे! आपको दत्तात्रेय मालूम हैं। उनकी कहानी मालूम हैं। सब कुछ मालूम हैं। लेकिन आप दत्तात्रेय नहीं बन सकते। बहुत ज्यादा मालूमात होने से आप उस पहाड़ पर बैठे हुये हैं, कि जिसमें कोई ज्ञान ही नहीं। अब ज्ञान के पहाड़ पर बैठ कर के और आप कहते हैं कि ये तो अविद्या हैं। ये सारी जानकारी अविद्या हैं। उसकी कोई जरूरत नहीं सहजयोगियों को। अब परदेस के सहजयोगियों को देखिये इन्होंने कभी ये विद्या सीखी नहीं । उनको कुछ मालूम भी नहीं था । मुझे तो आश्चर्य होता है, कि उत्तर हिन्दुस्तान में लोगों को कुण्डलिनी मालूम नहीं थी। वो तो कुण्डली और कुण्डलिनी को एक समझते थे इस महाराष्ट्र में बात क्या है, कि लोगों को अब इनके अन्दर, मराठी में जिसे कहते हैं, पिंड ही नहीं होता है। सहज का पिंड होता है। मैं हैरान हूँ, कि उत्तर हिन्दुस्तान के लोग जिन्होंने कभी कुण्डलिनी की बात नहीं सुनी वो कितने आसानी से सहजयोग में उतर गये और इतने गहरे उतरे हैं। इतनी उनमें भक्ति है । तो ये क्या बात ले कर बैठे। महाराष्ट्रीयन लोगों में ये सहजयोगी-सहजयोगिनिओं को, खास कर के युवा शक्ति से मैं बात करने वाली हूँ। तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है, कि इस महाराष्ट्र में जहाँ श्रीराम भी अपने पैर से चले। उन्होंने अपने जूते उतार दिये इस पवित्र भूमी में, जहाँ अष्टविनायक का राज्य है, जहाँ महाविनायक आपके गणपतिपूले में बैठे हुये हैं। जहाँ पर तीन देवियों का पूरी तरह बात नहीं। क्यों इस तरह से अभी इनमें गलत चीज़ें आयीं और कल मैंने बुलाया है

से माना हुआ स्वयंभू स्वरूप हैं और चौथी आदिशक्ति का भी स्वरूप इसी महाराषष्ट्र में हैं। इसी महाराष्ट्र में हम भी पैदा हये। ये होते हुये भी महाराष्ट्रीयन लोगों में ये बात क्यों है? बहत कर्मकांडों की वजह से या अपने बारे में बहुत अहंकार, अहंभाव, मराठी में जिसको कहते हैं शिष्टपणा वो आ गया है। इसलिये जो गहराई चाहिये वो नहीं है। वो उच्छृंखल और बहुत ही ज्यादा औपरोधिक जिसे कहते हैं, ऊपर ऊपर हैं। बड़े दुःख की बात हैं। कभी कभी लगता हैं, इतना संतों ने जहाँ काम किया, इस भूमि से चैतन्य की लहरियाँ उभरती हैं, उस भूमि पर जहाँ हम पैदा हये हैं अभी हम समझ नहीं रहे हैं, कि हमारी आगे क्या प्रगति हो सकती हैं! जैसे कोई घास उग के खत्म हो जाती हैं, उसी प्रकार सहजयोगी अगर ऊपर आ कर खत्म हो जायें तो न जानें कब भूलोग जागृत हो। खास कर के यहाँ की लड़कियों ने मुझे इस तरह से परेशान कर दिया हैं, शादी कर के, कि मैं तो तंग आ गयी हूँ। इससे अच्छी तो नॉर्थ की लड़कियाँ। वो कभी परेशान नहीं करती। तंग नहीं करती। यहाँ की लड़कियों ने मुझे बहुत तंग किया। मुझे आश्चर्य होता है, कि इस तरह की ये लड़कियाँ आयी कहाँ से! महाराष्ट्र में तो हम लोग जब छोटे थे तो जानते नहीं थे, कि मँह की सजावट क्या होती है? कभी हमने देखा नहीं था। जो कपड़े माँ-बाप ने दिये वही पहनते थे । सीधे साधे तरिके से रहना। और आजकल मैं देखती हूँ, यहाँ की लड़कियाँ, सहजयोगिनी भी मूँह को रंगते बैठती हैं, सुबह-शाम तक उनको वही धंधा रहता है। सिनेमा का जितना असर यहाँ की सहजयोगिनियों पे आया उतना नॉर्थ इंडिया में नहीं। बड़ा आश्चर्य है! स्वयं आश्चर्यचकित हूँ । ये कैसे हो गया, यहाँ की लड़कियों पर सिनेमा का असर है तो उन पर भी असर होना चाहिये। नहीं सहजयोग में नहीं। हम तो हमेशा सादे, खादी के कपड़े पहनते थे। जब छोटे थे। और इतना सजाना, जैसे कोई सिनेमा अॅक्ट्रेस बन के घूमना। इन सब का पहले विचार ही नहीं होता। लड़कियाँ कभी नहीं पहनती थी। वैसे पंजाब में भी है। जब तक लड़कियों की शादी नहीं होती थी, सब सादगी से रहती है। शादी होने के बाद वो सब सजना, धजना। सारा चित्त अगर उसी पे चला जाये, तो जैसे गुजराती औरतों का होता है, वैसे आपका होगा। गुजराती औरतें हमेशा कपड़ों की बात, इस की बात । ये मॅचिंग, ये, वो, सब। इसी में फँसी रहती है। उनकी ग्रोथ ही नहीं हो सकती। क्योंकि फालतू की चीजें हैं। इस की | क्या जरूरत! अपने आप, जब आप शांति में उतरेंगे और अगर अपने आप अपनी आत्मा के प्रकाश में आ जाएंगे, तो अपने आप वो तेज़ आपके अन्दर आ जाएगा। अपने आप वो सौंदर्य आपके अन्दर आ जाएगा। उसके लिये अगर आपको ये सब ऊपरी चीजें करनी है तो आप सहजयोगी नहीं । नॅचरली, जिसको कहते हैं नैसर्गिकता हैं एक सहजयोगी में। ऐसा चमकता हैं। एक बार हम आ रहे थे लंडन से। तो एक देवी जी आयीं हमारे पास आ के बैठ गयी। पैर वगैरा छूअे। मैंने कहा, ‘बात क्या है?’ कहने लगी कि, ‘मेरी शादी पंजाब में ह्यी। नानक साहब के खानदान में। लेकिन उन लोगों में मैंने वो तेज़ नहीं देखा जो आपके शिष्यों में हैं। सब लोगों में कितना तेज़ हैं। सब का मुख कितना चमक रहा था। मैं हैरान थी, कि परदेस के लोगों में इतना तेज़ कहाँ से आया? इनकी शक्ल पे इतनी रौनक कहाँ से आयी ?’ फिर उन्होंने बताया कि , ‘हमारे गुरू जो हैं वो ऐसे ऐसे हैं।’ ये सारे आपके लिये बैठे हये हैं। ये सब आपको मिल सकते हैं। पर अगर आप अपने को बाह्य की चीज़ों की तरफ़ इतना गिरायें और उसके पीछे दौड़ेंगे तो जो अन्दर की चीज़ हैं वो प्रस्फुटित नहीं होगी। वो निकलेगी नहीं । उसका जैसे कोई आपने उसे दबा.

लिया। उसको छिपा लिया। मैं हर बार कहती हूँ, महाराष्ट्र में जब भी आती हूँ। मुझे बड़ा दुःख होता है। क्योंकि मुझे बड़ी ज्यादा उम्मीद थी महाराष्ट्र के लोगों से। मैं सोचती थी, कि महाराष्ट्र में सब से ज्यादा धर्म हैं। सब से ज्यादा अच्छाईयाँ हैं और विशेष कर के सहजयोग के लिये| और जब मैं देखती हूँ महाराष्ट्र के लोगों को तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। खास कहने की बात नहीं, पर जैसी कोई बातें देखी गयी मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मुफतखोरी और जैसे कोई उनमें आत्माभिमान हो। जिससे उनके अन्दर कोई लगन नहीं। ये मुफतखोरी कहाँ से आयीं? आपको पता है, संत तुकाराम के पास शिवाजी महाराज बहुत सारे जेवर और सामान ले कर गये। तो संत ‘वापस करो। तुम मेरी तुकाराम को जब पता चला, कि उनकी पत्नी को ये सारी चीजें दे दी हैं। तो उन्होंने कहा, पत्नी हो। तुम कोई राजा की रानी थोड़ी हो, कोई देवी नहीं हो। तुम को इसकी क्या जरूरत है? तुम मेरी पत्नी हो और मेरी पत्नी के नाते तुम्हें रहना है। और उस नाते तुम रहोगी तो इन सब चीज़ों की जरूरत नहीं है।’ उसी प्रकार तुम सहजयोगी हो। सहजयोगियों को अॅक्ट्रेसेस होनी की क्या जरूरत हैं? उनको बनने-ठनने की क्या जरूरत हैं? और दूसरा इन लड़कियों ने मुझे परेशान कर दिया वो ये, कि सब के ऊपर हँसना। इतनी ज़्यादा हँसने की इनमें बीमारियाँ हैं, मेरी समझ में नहीं आता। हर एक का मज़ाक उड़ाना। फिर वो किसी की भी इज्जत नहीं करती। पढ़ी- लिखी नहीं तो भी । सब पे हँसना । सब परेशान है । सब लोग कहते हैं कि महाराष्ट्र की लड़़कियाँ (अस्पष्ट)। क्या बताईये अब! कितनी शर्म की बात हैं! संक्रांत में बैठ कर के मैं आपसे यही बताना चाहती हूँ कि आप अपने गौरव को पहचानिये। अपनी शक्ति को पहचानिये। आप क्या है? जब आप इस चीज़ को जान जाईयेगा, तब आप समझ जाईयेगा, कि ये सब चीजें करने से आपको क्या मिलेगा ? परदेस में जा कर के भी इन लड़कियों ने खिलायें। ऐसी ऐसी बातें की कि बड़ा आश्चर्य होता है। इनको किस तरह ये आ जाता है? कोई गांभीर्य नहीं । गूल गंभीरता से किसी बात पर सोचते नहीं। आज मेरा ये विचार नहीं था कि आप लोगों से बात कहूँ। पर बहुत सी बातें इस तरह से हो गयी हैं, कि मुझे आज कहना पड़ा | क्योंकि सूर्य की बात हैं, सूर्य के सामने सारी बातें आ जाती है। इस पुने शहर से पाँच व्यक्तियाँ वापिस आ गयी। उनके पतिओं ने छोड़ दिया। वो बहुत अच्छे लोग हैं। उनमें कोई खराबी नहीं। पाँच व्यक्तिओं को छोड़ दिया। उसका कारण क्या? उसका कारण ये, कि सबका मज़ाक करना। कल ही मैंने देखा लड़कियाँ यहाँ हँस रही थीं। जहाँ पे हँसना है हँसिये। पर हर बार, मराठी में कहते हैं खिदळणे, इसकी क्या जरूरत हैं? इसका लक्षण यही है, कि आपके अन्दर गांभीर्य नहीं। और गंभीरता नहीं है, तो आप सूर्य की रोशनी में खड़े नहीं थे, अंधेरे में खड़े हये थे । अपने बारे में गलतसलत चीजें देख रहे हैं। आज खास कर के मुझे बिनती की गयी कि, माँ, आप इन लड़कियों के बारे में कुछ कहिये। क्योंकि इस तरह की अगर बात होती रही, तो इस महाराष्ट्र का नाम पूरी तरह से डूब जाएगा। अजीब अजीब तरह की चीजें होती हैं। अपने को सम्भालिये। सम्भालना ऐसे, कि हम सहजयोगी हैं और सहजयोग के माध्यम से लोग कहाँ से कहाँ उठ गयें। कहाँ से कहाँ पार हो गयें। कितनों को इन्होंने पार किया। कैसे कैसे किया ? लेकिन अभी भी हम उसी चक्कर में बैठे हये हैं। कुछ तो अपने अहंकार में फँसे हये हैं और कोई अपने संस्कारों में फँसे हये हैं और कोई बाह्य की चीज़ों में अटके हये हैं। ये चीज़ सभी के लिये जानने वाली हैं। अपने देश का उद्धार तभी होगा, जब हम इस सूर्य की जैसी तेजस्विता अपने अन्दर लायें। इस महाराष्ट्र में एक से एक औरतें हयी हैं। जिजाई जैसी माँ हईं, अहिल्याबाई.

होळकर जैसी बड़ी भारी राज्यकर्ती हुईं, झाँसी की रानी हुईं और मुसलमानों में चाँद बिबी भी यहीं की थीं। इस तेजस्विता, अपने देश में कैसी कैसी औरतें हईं और जिन्होंने कैसे कैसे कार्य किये! अब वही देश में ये पता नहीं कहाँ से केसेस हये। और उनमें कोई किसी प्रकार की गंभीरता नहीं। कोई उनके अन्दर प्रगल्भता नहीं। कोई देख कर के नहीं कहता कि हाँ, एक महाराष्ट्रीयन लड़की आयी। पहले तो बहुत होता था, कि महाराष्ट्र की लड़की चाहिये, महाराष्ट्र की लड़की चाहिये । अब होता है कि , महाराष्ट्र की लड़की नहीं चाहिये । उसी प्रकार आज के दिन ये भी बताना है, कि हमें कार्यरत होना है। कार्यरत का मतलब नहीं, कि एकांगी कार्य। सूर्य चारों तरफ़ फैलता है। अब कोई है, कि उसको एक ही तरह का काम करना आता है। दूसरे तरह का काम आता ही नहीं। बहुत से लोग यहाँ पर ऐसे हैं, खास कर ये नॉर्थ इंडिया के आदमी लोग ऐसे हैं, कि उनको कोई फूल का नाम नहीं मालूम! पेड़ का नाम नहीं मालूम! उनको कुछ नहीं मालूम! उनको जा कर पूछिये , कि फूल कौन से हैं? वो कोई फूल नहीं जानते। कोई पेड़ नहीं जानते। उनको ये नहीं मालूम, कि ये सब्जी कौन सी हैं। उनको कोई कला के बारे में नहीं मालूम। ये कला कौन सी हैं। इस कला में क्या बताया हुआ हैं? इस कला में कौन सी शक्ति है? कितने सालों पहले ये कला आयी थी। महाराष्ट्र में तो कला है ही नहीं। इसका सवाल ही नहीं। जो कुछ कला है, वो सब प्लास्टिक की कला है। कम से कम नॉर्थ इंडिया में जायें, तो इतनी कलायें हैं। वहाँ लोग जानते नहीं, कि राजपूत शैली क्या है? इस्लाम शैली क्या है? फलानी शैली क्या है? संगीत में जरूर महाराष्ट्र ठीक है। अब वो संगीत भी ठिकाने लग जाएगा, जैसे सिनेमा के गाने शुरू हो जाएंगे। आज उस संगीत का उत्थान करना है, तो महाराष्ट्र में संगीत को जमाना पड़ेगा और इसको जमाने के लिये हम पूरी तरह प्रयत्नशील हैं, कि यहाँ पर संगीत की अकादमी बन जाएं। समझ लो संगीत आपको नहीं आता है, गाना भी नहीं गा सकते, पर कम से कम संगीत के प्रती रूची रखना बहुत जरूरी हैं। उसमें भी बेवकुफ़ होते हैं वो ऐसा करते हैं। इनको समझ में नहीं आता, बेवकुफ़ जो होते हैं, उनको लगता है, कि अपना अस्तित्व अब कैसे दिखायें? तो हँसों। ये महान बेवकूफ़ी की निशानी हैं। अगर आपको समझ में नहीं आता तो मैंने देखा लड़कियाँ हँस रही थीं । उनकी बेवकुफ़ी की निशानी हैं । शांतिपूर्वक बैठिये। सुने, देखे। धीरे धीरे आप को स्वयं रूची होगी। क्योंकि अपना जो संगीत है वो अपने संस्कृति का द्योतक हैं। अपनी कलायें, कला वो क्या है? क्या नहीं है ? वो समझने के लिये भी आपको जानना चाहिये, कि हमारी संस्कृति क्या है? अब इसी महाराष्ट्र में इतनी बड़ी चीज़ हैं अजंठा, एलोरा| कितने लोग हैं जिन्होंने जा के देखा होगा अजंठा, एलोरा? वो क्या चीज़ हैं? हजारों वर्षों से बनी हुयी हैं। देखने लायक हैं! अन्दर जहाँ सूर्य की रोशनी नहीं आती, वहाँ इतनी सुन्दर कलाकृति उन्होंने कैसे की! ये सब जब तक आप देखेंगे नहीं , आपको देश के प्रति प्रेम हो ही नहीं सकता। इतना छोटा सा देश इंग्लंड हैं। पर हर एक आदमी को मालूम हैं, कहाँ पर कौन सी चीज़ हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, एक बार एक फ्लास्क मैंने खरिदा तो कमाल है, ‘ये उस जगह होता है।’ मैंने कहा, ‘अच्छा!’ ‘कहाँ से कहाँ,’ उन्होंने बताया, ‘नॉर्थ में उस जगह बना है।’ वहाँ की विशेषता ये हैं। हमारे यहाँ इसकी अकल ही नहीं । ज्यादा से ज्यादा, साड़ियाँ कहाँ की हैं समझ में आयेगी। बाकि तो कुछ भी नहीं। और क्या क्या चीजें होती हैं। कहाँ कहाँ क्या होता है? कुछ मालूम नहीं। कौन से देश में, कौन सी कला कौन सी जगह होती है? इसके प्रति हमें कुछ

भी ज्ञान नहीं। जब हम अपने देश के बारे में जानेंगे नहीं । तो हमारे यहाँ देशभक्ति कहाँ से आयेगी ! जर्मनी के लोगों में मैंने देखा। छोटा सा देश हैं। लेकिन अपने देश के बारे में इतना बारीक बारीक जानते हैं, कि अगर आपको जाना है फलानी जगह, तो आप कौन सी ट्रेन से जाएंगे। नहीं तो आप कौन सी पोर्ट से जाएंगे| कौन सा पोर्ट होगा। उनको सब मालूम हैं। अपने देश का चप्पा चप्पा वो जानते हैं। जब आप अपनी माँ को जानते ही नहीं हो, तो आप उसको प्यार कैसे करें? तो हमें चाहिये, कि हम अपने बच्चों को अपने देश के बारे में बतायें । अपना देश कैसा है? इस देश में कौन कौन महान व्यक्ति हो गये। और वो भी अपने यहाँ अपने राजकारण ऐसे कि बस एक ही चीज़ को चलाया हुआ है । और बाकि किसी को मालूम नहीं , कि यहाँ बड़े बड़े लोग हो गये। उन्होंने अपने देश के लिये कितना त्याग किया। उन्होंने कितनी महान अपनी आहुति दी और उससे ये देश बना। उस तरफ़ भी हमारा ध्यान नहीं। इसलिये हम ये सोचें कि हमारा इतिहास कितना उज्ज्वल है। कितनी मुश्किल हैं, कि आज जो नयी चीज़ हैं, बस उसी को मान लिया । उसी के पीछे दौड़ पड़े। वो कितनी शास्त्रीय चीज़ हैं, आज भी मैंने आपसे बताया। ये जो मकर संक्रांत हैं, यही एक दिन हैं, जो १४ तारिख को पक्का होता है। क्योंकि यही एक चीज़ सूर्य पे निर्भर है। और बाकि तो हम लोग चंद्रमा को मानते हैं, हमारे ज्योतिषशास्त्र में और। यही एक चीज़ चौदह तारिख ऐसी होती है, जो हम लोग एक ही दिन मनाते हैं, जो सूर्य पे निर्भर है। तो इस प्रकार हम अपनी संस्कृति के बारे में, अपने इतिहास के बारे में, अपने शास्त्रों के बारे में कुछ भी नहीं जानते। कुछ भी अपने को पता नहीं। और हम अपने को सहजयोगी कहलाते हैं। इन सब का अध्ययन और जानना जरूरी है। जो अच्छी किताबें हैं, उनको पढ़ना जरूरी हैं। इसको पढ़ने के इसमें इनका मतलब नहीं, कोई आपको में हिंदू धर्म या मुसलमान धर्म इसकी शिक्षा दें। परंतू इसके प्रति लिये इतने कुरान हैं, इतने दर्शन हैं, इतनी चीज़ें हैं, उसको पढ़ना बहुत जरूरी हैं । । जागरूकता हमें होनी चाहिये। और हमें जानना चाहिये कि हम किस देश में बैठे हैं! ये सब से महान देश हैं। संसार में जितने देश हैं, उन सब में सब में महान ये है, पर इस देश की ये हालत हो गयी कि लोग कहते हैं, कि बाबा, कोई भी देश अच्छा पर ये नहीं । इसका कारण ये, कि हम अपनी संस्कृति भूल गये। अब ये देखना चाहिये, कि सूर्य ने हमें क्या चीज़ सीखायी । सूर्य ने कौन सी चीज़ें हमें सीखायी हैं। सूर्य के प्रति हमारी कौन सी श्रद्धा है। सबेरे उठते ही लोग सूर्य को नमस्कार करते हैं। सूर्य के नमस्कार से हमारी तंदुरुस्ती अच्छी रहती है। सूर्य को नमस्कार करने का मतलब ये, कि उसके प्रति मान रखना । पहली चीज़ ये कि दूसरों के प्रति मान करना। यहाँ तक कि पृथ्वी को हम नमस्कार करते हैं, सबेरे उठ के। ‘हे पृथ्वी माँ, हमें क्षमा कर। तुझे हम पैर से छू रहे हैं। जिनमें किसी प्रकार का मान करने की प्रवृत्ति नहीं है, वो दुनिया में हमेशा अपमानित रहेंगे। उनका कोई मान क्यों करें? जब आप ही किसी का मान नहीं करते तो आपका मान कौन करेगा? उसी में लड़ाई होगी, झगड़ा होगा। माँ-बाप का मान रखना। बाल-बच्चों को यही सीखाया जाता है, कि अपने गुरू का मान रखो। अपने धर्म का मान रखो। अपने देश का मान रखो। सारे सृष्टि का मान रखो। अब सूर्य का इस प्रचंड, प्रखर जो हमारे यहाँ विशेष आशीर्वाद हैं, उसमें हम लोग भी ऐसे खत्म हो गये, कि हमने सब पेड़ काट दिये। हमें विचार ही नहीं, कि ये पेड़ सूर्य ने हमें किसलिये बिछाया हो। ये जो पूरा बनाया हुआ चक्र हैं, साइकल हैं, वो पूरा करने के लिये ही ये सूर्य ने दी हुई हमें विशेष रूप की जो एक आशीर्वादित भूमि हैं, उसको हम पूरा काटछाट कर के और खत्म कर दे।

तो सहजयोगी का कर्तव्य है, कि जितना हो सके उतने पेड़ लगायें । एक उसका परम कर्तव्य मैंने हजार बार कहा है, कि आपका ये परम कर्तव्य हैं, कि आप झाड़ू लगायें, पेड़ लगायें और हर तरह के बाग-बगिचे में आप लगायें । आपको हैरानी होगी कि इंग्लंड जैसे देश में, वहाँ पर अगर किसी के पास बाग नहीं होगा तो एक छोटी सी जमीन ले लेंगे सब लोग और एक एक जमीन पर काम करेंगे। हर एक सॅटरडे-संडे जाते हैं, जमीन पर काम करते हैं। उनको बड़ा मज़ा आता है । मैंने रशिया में भी देखा। वहाँ लोग जहाँ जहाँ अच्छे अच्छे पेड़ हैं वहाँ जाएंगे , पानी देंगे , उसको देखेंगे उतना ही नहीं अपनी एक छोटी जमीन, चाहे वो बिल्कुल ही छोटी जमीन हो १० फीट बाय १२ फीट भी हो तो जा कर के उसको संचित करने की कोशिश करेंगे । उसको अच्छे से देखेंगे , उसको पानी देंगे , उसको ठीक करेंगे। मैं हैरान हो गयी। अपने यहाँ तो तुलसी को भी पानी देने की लोगों को फुर्सत नहीं। उसको अब मैं डॉक्टर साहब के यहाँ गयी थी। उनके यहाँ एक पेड़ लगाया था। सूख रहा था। दो बार कहा, पानी दो, पानी दो, पानी दो। अगले महिने ही सोचा, मैं ही उसको पानी दें। फिर आपके हाथ में चैतन्य बहेगा । उस चैतन्य से आप अगर पानी दें तो शस्य शामलां ये भूमि हो जाएगी। इस भूमि में ऐसे ऐसे पेड़ निकलेंगे, ऐसे ऐसे सुगंधित फुल निकलेंगे, ऐसा इसको आप सुन्दर बना देंगे, कि जो आज ऐसा लग रहा है विरान वो सब ठीक हो जायेगा। १९३५ साल में हम लोग पहिली मर्तबा पूना आये थें। तो सारे जितने बड़े बड़े यहाँ पर पर्वत दिखायी दे रहे थे , एकदम सुन्दर, अच्छा था। अब देखो तो बिल्कुल बैरन, एक भी पेड़ नहीं। पता नहीं कैसे छाट लिये इन लोगों ने! इसलिये कि उनको लकड़ी जलाना है। इतनी लकड़ी क्यों जलानी ? क्योंकि खाने का शौक बहुत ! अब खाने के शौक में उनको लकड़ी चाहिए। ठीक है आपने लकड़ी काटी, पर उसकी जगह एक और पेड़ लगा दीजिये। तो आपने अपनी पृथ्वी का ऋण भी दे दिया। और सोच लिया कि, चलो और भी कुछ हो जाए। शिवाजी ने कितने पेड़ अपने देश में लगाएं। यहाँ पर, महाराष्ट्र में इतने पेड़ है, जो स्वयं अपने हाथ से लगाएं थे । यहाँ पुणे में भी उनके लगाएं हये पेड़ हैं। इसी प्रकार आप भी लगा सकते हैं। आप भी इस भूमि को शस्य शामलां कर दें। ये आपकी | जिम्मेदारी हैं। खास कर के जब आप सहजयोग हैं। तो सहजयोगियों के प्रति इतना ही मुझे कहना हैं, कि चाहे वो महाराष्ट्र में रहें, चाहे वो उत्तर हिन्दुस्तान में रहें, जितने हिन्दुस्तानी लोग हैं उनको पहले ही ये जान लेना चाहिए, कि आप बड़े वैभवशाली देश में पैदा हुए हैं। इतना वैभव है इस देश का! आप जानते नहीं कि इस मिट्टी में क्या क्या भरा है! इसको पहले समझ लेना चाहिए। और उसको अगर आप समझ लेंगे तो आपको देश के प्रति बहुत प्रेम होगा। क्योंकि आपने इस देश को, जो स्वातंत्र्य से परिपूर्ण है। उस स्वातंत्र्य के लिए लोग कैसे लड़े, झगड़े। कैसे उन्होंने त्याग किया। कुछ आपको मालूम ही नहीं । मुफ्त में आ के बैठ गये। जैसे मराठी में कहते हैं, आयत्या बिळावर नागोबा! तो सब ले कर के बैठ गये आराम से। जैसे कि आप ही बड़े भारी देशभक्त थे , जो आपने पाया। इसके पीछे में इतनी बड़ी संघर्ष की शक्ति थी, इतने लोगों ने इतना त्याग किया, इतने लोगों ने जाने दीं, मर गये। सब कुछ किया। उसके ऊपर आप लोग अब वेस्टर्नर बन रहे हैं। सहजयोग में जो कल्चर हैं उसका वेस्टर्नर से कोई सबंध नहीं! गंदे गंदे कपडे पहनना। उनके उतारे हुए कपडे पहनना। उनके जैसे अपने को करना। ठीक है, आप परदेस में गये तो ठीक है, उनके जैसे कपड़े पहनिये। क्योंकि

उसकी वहाँ जरूरत है। पर अपने देश में भी देखते हैं हम इतने गंदे कपड़े पहन के लोग घूमते हैं, कि बाँस आती है । जो अपने संस्कृती में हैं, वो अनादि काल से चला आया, परंपरागत, उसकी वजह ये है, कि वही चीज हमारे देश के लिए उपयुक्त हैं। परंपरा से जो चीज़ चली वो बाद में धीरे धीरे ठीक होते होते में उसको बदलने की जरूरत थी। तो परंपरागत हमें जो प्राप्त हुआ है संस्कृति का दान ये बड़ा उच्च है। अब आपने देखा है, कि परदेस से जितने लोग आते हैं, वो सब अपने ही कपड़े पहनते हैं। अपने ही जैसे रहते हैं सब (अस्पष्ट) फिर उसके बाद सहजयोगी। कहते हैं, माँ, इसमें बड़ा आराम है। और वहाँ भी, परदेस में भी ढूँढने लग गये अभी| उनको लगता है कभी कभी ऐसे लोग देखते हैं, ‘हरे राम ‘ वाले लग रहे हैं। लेकिन उनको बड़ा अच्छा लगता है। हमें कुड़ते-पजामे मँगवा दीजिये। हम कुड़ते-पजामे पहनेंगे। क्योंकि उसमें जो एक सादगी, उसमें जो एक सरलता है, वो और किसी कपड़े में नहीं है। अब अगर आपको कहीं जॉब में जाना है, या कुछ करना है, ठीक है, उसके लिये आप ऐसे कपड़े पहनें। पर रोजमर्रा के लिये जो है, अपने देश के जो कपड़े हैं बहुत ही सरल, सीधे , बहुत ही आरामदेह। इसका कारण हमें अपने देश के प्रति देखना चाहिए, कि हम इस देश से क्या ले सकते हैं, और क्या दुनिया को दे सकते हैं। बहुत जरूरी हैं। लेकिन मैं देखती हैँ, कि हमारे यहाँ देशप्रेम है ही नहीं। देशप्रेम जिस आदमी में होता है वो कभी भी अपने देश की बुराई नहीं सोचता। कभी नहीं। हाँ देश के लोग खराब हये हैं, पर देश में खराबी, ये नहीं मान सकते। जो लोग खराब है वो इसलिये कि उनमें देशप्रेम नहीं। अगर उनमें देश का प्रेम होता तो वो उस तरह से देश को लूटते नहीं । उनकी हवस जो है वो जा के दिवारों में सारी जो वो भरते हैं, नोट्स, वो नहीं होती है। उनका अलंकार और ही होता है। और अब भी अपने देश में एक तरह की अन्दर से शक्ति के लिए बड़ी श्रद्धा है, जो आदमी देश में होता है, वास्तव में किसी देश के लोगों ने इतना त्याग नहीं किया। फॉसी पे लटक गये। क्या क्या चीज़ें करी। अब आप लोग आयें हैं, आपको सहज से सारी चीज़ें प्राप्त होनी चाहिए। हर एक चीज़। आपकी तंदुरुस्ती ठीक है। सब कुछ घर में ठीक है। बच्चों का ठीक है। शादियाँ भी मुफ्त में हो जाती हैं । सब ठीक ठाक है। हर तरह से आपको आशीर्वाद हैं। ये बहुत जरूरी बात है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं, कि अब भी मेरे पास चिठ्ठीयाँ आयीं, कि मेरे भाई के बीवि के फादर के मदर के फलाने के ठिकाने की ये नौकरी नहीं मिल रही है, उसको आप कर दीजिये। वो सहजयोगी है क्या? नहीं माँ, लेकिन हमारे नज़दीकी रिश्तेदार हैं। कोई कुछ, कोई कुछ। | ऐसी चीज़ों को मानते हैं, मुझे आश्चर्य होता है, कि इनको अब भी लालच और हर चीज़ की हवस क्यों? अब तो समाधान में आप बैठिये। क्योंकि एक तो आपके जो पूर्वज थें, उन्होंने लड़ाई, झगड़ा कर के देश को स्वतंत्र कर दिया। अंग्रेजों से लड़े। कितना उन्होंने त्याग किया ! और उसके बाद जो ये देश आपको मिल गया है, उसके बाद ये भी जानना चाहिये, कि सहजयोग मिल गया और सहजयोग से सब चीजें ठीक हो गयी। आपकी बीमारियाँ ठीक हो गयी। आपकी तकलीफ़ें ठीक हो गयी। सब चीज़ अच्छी हो गयी। ये तो मानना पड़ेगा। और ये होने पर भी आपका चित्त ही नहीं। मैं बहुत बार देखती हूँ, कि सहजयोग में भी लोगों का चित्त ही नहीं होता है। अब बोल रहे हैं, ध्यान इधर-उधर। कोई आया उधर ध्यान गया। इधर ध्यान गया। चित्त तो कम से कम सहज में रखो। चित्त से ही आपको सहज का लाभ होने वाला है। और इस चित्त को शुद्ध कर के अगर आप सूर्य के जैसे तेजस्वी बनें, तो जहाँ आपका चित्त जाएगा, वहाँ वो कार्यान्वित होगा। मैं तो सारे सहजयोगियों पे इसकी जिम्मेदारी रखती हूँ। अगर

आपका देश ठीक नहीं हुआ, तो ये भारतीय सहजयोगियों की जिम्मेदारी है। इसलिये हमें कितना संघटित होना चाहिए । कितने समझदार होना है। और कितना प्रेम हमारे अन्दर सब के प्रति होना चाहिए । श्रद्धा होनी चाहिए और नम्रता। अगर हम सूर्य के जैसे तेजस्वी हो जाये, तो न जानें ये देश फिर से एक शस्य शामलां सुन्दर देश हो सकता है। अपने देश के प्रति श्रद्धा, उसके प्रति प्रेम करना ही बड़ी भारी सुन्दर पूजा है। इससे बढ़ के कोई और चीज़ नहीं है। इसके जगह जगह में जब चैतन्य बह रहा है, ये महान अपनी योगभूमि हैं, उस भूमि के प्रति उसी तरह से हमें कार्यान्वित होना चाहिए, जैसे सूर्य अपने कार्य के प्रति । सूर्य कभी ये नहीं सोचता कि, मैं कुछ कार्य कर रहा हूँ। यहाँ पर इतने, दुनिया भर के इन्होंने सृष्टि रची हुई है और इतने ऋतुओं को बदलते हैं। ऋतंभरा प्रज्ञा उन्हीं से आती हैं। इसी प्रकार आप भी सब तेजस्वी हों। आज मैं किसी के प्रति ये नहीं कहना चाहती कि आप के अन्दर सिर्फ खराबी हैं। लेकिन ये कहना चाहती हैँ, कि आप ऊँचे उठ सकते हैं, अगर आप इस खराबियों को जान लें। और इससे ऊँचा उठ कर के अपने प्रति श्रद्धा रखें । अपने प्रति जागरूक हों, अपने वैभव को पहचानो ।