Mahashivaratri Puja

Bundilla Scout Camp, Sydney (Australia)

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“अपने चित्त को प्रेरित करें “, महाशिवरात्रि पूजा। बुंडिला स्काउट कैंप, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 3 मार्च 1996.

आज हम शिव, श्री शिव की पूजा करने जा रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं, श्री शिव हमारे भीतर सदाशिव का प्रतिबिंब हैं।

मैंने पहले ही प्रतिबिंब के बारे में बताया है। सदाशिव , सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं, जो आदि शक्ति की लीला देखते हैं। लेकिन वह पिता हैं जो अपनी प्रत्येक रचना को या उनकी प्रत्येक रचना को देख रहे हैं।

उनका समर्थन आदि शक्ति को पूरी तरह से है, पूर्णतया सशक्त करने वाला है। उनके मन में आदि शक्ति की क्षमता के बारे में कोई सन्देह नहीं है। लेकिन जब वह पाते हैं कि आदि शक्ति की लीला में, लोग या दुनिया अपने आप में, उन्हें आकुल करने, या उनके काम को बिगाड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं, तो वह अपनी कुपित मन:स्थिति में आ जाते  हैं, और वह ऐसे सभी लोगों को नष्ट कर देते हैं, और हो सकता है, वह पूरी दुनिया को नष्ट कर दें ।

एक ओर वह क्रोधी हैं, कोई संदेह नहीं, दूसरी ओर, वे करुणा और आनंद का सागर हैं। इसीलिए, जब वह हमारे भीतर परिलक्षित होते  हैं , हमें अपना आत्मसाक्षात्कार  प्राप्त होता है, हमें अपनी आत्मा का प्रकाश मिलता है और हम आनंद के सागर में डूब जाते हैं।

इसके साथ ही, वे ज्ञान का महासागर हैं, इसलिए जो लोग आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है, जो बहुत ही सूक्ष्म है, प्रत्येक परमाणु और अणु में व्यापित, इस ज्ञान की शक्ति है।

उनकी शैली ऐसी है कि, यदि वे स्वयं को उनके लिए समर्पित करते हैं तो अपनी करुणा में, वह अत्यन्त क्रूर राक्षसों को भी क्षमा कर देते हैं। क्योंकि उनकी करुणा की कोई सीमा नहीं है और कभी-कभी वही लोग जो उनके द्वारा आशीर्वादित हैं, आदि शक्ति के भक्तों को कष्ट देने की चेष्टा करते हैं – लेकिन यह केवल एक नाटक रचने के लिए है, एक घटना । जब तक कुछ नाटक नहीं होगा, लोग नहीं समझेंगे। हमें रामायण रचनी पड़ी, हमें महाभारत करनी पड़ी, हमें ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाना पड़ा , हमें मोहम्मद को प्रताड़ित करना पड़ा । यह सब नाटक हुआ था क्योंकि घटनाओं के बिना, लोगों को याद नहीं रहता है।

इसलिए मनुष्यों के आध्यात्मिक जीवन में, उन्होंने शिव के आशीर्वाद और आदि शक्ति की शक्ति के बीच बहुत सारी लीलाएं देखी हैं। जैसे-जैसे समय बीता है, आज आध्यात्मिकता के इतिहास में एक महान खोज की गई है, कि लोग सामूहिकता  में अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं  ,एक साथ। । हज़ारों लोग अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं।

अब, हमें पता होना चाहिए कि हमें जो यह आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है वह क्या है, इसका अर्थ क्या है और पराकाष्ठा की अवस्था क्या है।

सबसे पहले, मुझे आपको बताना होगा, जिस मन के बारे में हम बात करते हैं और निर्भर करते हैं वह एक मिथ्या  है। मन जैसा कुछ नहीं है। मस्तिष्क वास्तविकता है, मन नहीं। मन का निर्माण हमारे द्वारा बाह्य के प्रति प्रतिक्रियाओं से होता है, या तो हम झूठी मर्यादाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं या अपने अहंकार के प्रति । इस प्रकार यह मन वास्तविकता के महासागर पर बुलबुले की तरह बनाया जाता है, लेकिन यह वास्तविकता नहीं है।

इस मन के साथ, जो भी हम निश्चित करते हैं, हम जानते हैं कि बहुत सीमित है , भ्रामक  और कभी-कभी चौंकाने वाला है। मन हमेशा एक रेखीय दिशा में आगे बढ़ता है, और क्योंकि इसमें कोई वास्तविकता नहीं है, यह प्रतिघात करता है, और उल्टा प्रभाव डालता है। इस प्रकार सारे उपक्रम, अब तक हमारे द्वारा किए गए सभी प्रक्षेपण, ऐसा लगता है, हमारे पास वापस आ जाते हैं। वह जो कुछ भी खोजते हैं, वह एक बड़ी विनाशकारी शक्ति या एक बहुत बड़े आघात के रूप में हमारे पास वापस आ जाता है।

तो आपको निर्णय लेना है कि क्या करना है, कैसे हमारे मन के इस जाल से निकलना है । कुंडलिनी समाधान है। जब वह जागृत होती  है, तो वह आपको ले जाती है, उस जागृति के साथ, वह आपको आपके मन से परे ले जाती है। सबसे पहली चीज़ है अपने मन से परे जाना।

मन के साथ, आप कई काम करेंगे, लेकिन यह संतोषजनक नहीं होगा, यह कोई समाधान नहीं होगा, यह आपकी सहायता नहीं करेगा। और जब हम अपने मन पर बहुत अधिक निर्भर करने लगते हैं तो हम सभी प्रकार की शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक समस्या को विकसित करते हैं। अब नवीनतम चीज़ है तनाव, तनाव , और इस तनाव का कोई समाधान नहीं है वह कहते हैं, लेकिन सहज योग में हम इस मन को पार करके समाधान पाते हैं। यह हमारे उत्थान के लिए एक तरह की बाधा है।

तो, जब आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि आपकी कुंडलिनी आपके चित्त को मन से परे ले गई है। अब, बाह्य के प्रति प्रतिक्रिया आई है क्योंकि हम मनुष्यों के पास वर्णक्रम ) प्रिज़्म ( जैसा मस्तिष्क है, या हम कह सकते हैं वर्णक्रम ) प्रिज़्म( जैसी खोपड़ी, और जब ऊर्जा इसमें प्रवेश करती है ,  मैंने इसे अपनी पुस्तकों में समझाया है, यह द्विभाजित हो जाती है, या आप कह सकते हैं, अपवर्तन, जिसके द्वारा हमारा चित्त बाहर जाता है, और हम प्रतिक्रिया करते हैं।

यदि हम बहुत अधिक प्रतिक्रिया करते हैं, तो ये बुलबुले बहुत भयानक मन बनाते हैं जो किसी भी तरह की चीज़ की अगुआई कर सकता है । यह स्वयं को उचित सिद्ध करता है, यह आपके अहंकार को संतुष्ट करता है। अहंकार और झूठी मर्यादाएँ  जो इस मन को बनाते हैं, इस मन का उपयोग अपनी पूर्ति के उद्देश्य के लिए करना शुरू कर देते हैं- सभी कल्पनाओं और विचारों का संचय, जिनका कोई आधार नहीं है, जिनकी  कोई वास्तविकता नहीं है।

यह ऐसा है जैसे, हम कंप्यूटर बनाते हैं। अंतत: हम कंप्यूटर के दास बन जाते हैं, हम घड़ियों को स्वयं  बनाते हैं और फिर हम घड़ियों के दास बन जाते हैं। इस तरह से यह मानव पर हावी होता है। और जब एक व्यक्ति जिसके पास बहुत प्रबल मन है विनाश करने का निर्णय करता है, जैसे कि हिटलर ने किया, किसी विचार के साथ, वह विनाश करता चला जा सकता है, जिसका बहुत क्लिष्ट प्रभाव पड़ता है हमारी संस्कृति पर, हमारी आध्यात्मिकता पर।

अब पहला कदम निर्विचारिता में होना  है, जहाँ आप अपने मन को पार करते हैं, आप अपने मन से ऊपर जाते हैं। मन आपको प्रभावित नहीं कर सकता है, यह पहला चरण है, जैसा कि हम कहते हैं, निर्विचार समाधि ।

दूसरा है जहाँ आप इस परम चैतन्य की इस सर्वव्यापी शक्ति की प्रक्रिया को देखना आरम्भ करते हैं, और आप अवगत होना शुरु होते हैं  कि श्री माताजी जो कहती हैं उसमें बहुत सच्चाई है। कि यहाँ एक शक्ति है जो कई चीज़ों को कार्यान्वित करती है। यह चमत्कारी रूप से आपके लिए बहुत सारी चीज़ें कार्यान्वित करती है। यह आपको आशीर्वाद देती है, यह आपका मार्गदर्शन करती है, यह कई प्रकार से आपकी सहायता करती है। यह आपकी सहायता करती है। यह आपको अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी  संपत्ति  और सामूहिकता के रूप में बहुत सुंदर लोगों का एक अच्छा समाज देती है। यह सब आप स्पष्ट रूप से यहाँ होते हुए देख सकते हैं ।

अब निर्विचार समाधि को प्राप्त करने की यह घटना बहुत सरल और आसान है, लेकिन उस स्थिति पर बने रहना कठिन है, हम अभी भी प्रतिक्रिया करते हैं और हम सोचते हैं। आप जो कुछ भी देखते हैं, आप प्रतिक्रिया करते हैं। निर्विचार समाधि में उस अवस्था पर पहुँचने के लिए सबसे पहले आपको अपना चित्त परिवर्तित करना है।

अब, उदाहरण के लिए, एक बार हम पालिताना नामक एक मंदिर को देखने के लिए एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर चढ़ रहे थे – मैं, मेरा दामाद और मेरी बेटी। और हम वास्तव में थक गए थे क्योंकि हमें चढ़ना पड़ रहा था – मुझे नहीं पता कितनी सीढ़ियाँ – और जब हम ऊपर गए तो हम थक गए थे और वहाँ सुंदर संगमरमर की तक्षकला से बना एक छोटा सा मंडप था, तो हम बस  वहाँ लेट गए। वे बहुत थक गए थे और उन्होंने कहा: “यह किस तरह का मंदिर है?” वे इच्छुक नहीं  थे। तब तक मैंने ऊपर देखा और मैंने देखा कि बहुत सारे सुंदर हाथी खुदे हुए थे। तो मैंने अपने दामाद से कहा: “इन हाथियों को देखो, इन सभी की अलग-अलग प्रकार की पूँछ है।” उसने कहा “माँ, हम सब मर रहे हैं, आप हाथियों की पूंछ कैसे देख सकती हैं?” लेकिन बस उनका ध्यान उस थकावट से हटाने के लिए, मैंने उनसे यह कहा कि – हाथियों की पूंछ क्यों नहीं देखें, जो बहुत अलग हैं ।

तो क्या होता है कि, जब आप हर समय अपना चित्त इतना अधिक बाहर  लगा रहे होते हैं, तो आपको सबसे पहले अपना चित्त भी दूसरे काम में लगाना चाहिए। उदाहरण के लिए, आप यहाँ इन सुंदरतापूर्वक बनी चीज़ों को देखते हैं। आपका चित्त कुछ और है – बस उस की सुंदरता का आनंद लेने की चेष्टा करें। देखिए,

 यहाँ सुंदर क़ालीन हैं, बस उन्हें देखिए बिना सोचे, क्योंकि वे आपके नहीं हैं, इसलिए कोई सिरदर्द नहीं है, वे किसी और के हैं, बहुत अच्छा है! 

अन्यथा, अगर यह आपका होगा, तो आप सोचना शुरू कर देंगे ;  “हे भगवान, मैंने उन्हें यहाँ बिछा दिया है, क्या होगा, उनका बीमा कराना होगा!” या उस तरह की कोई चीज़ । यह सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है। लेकिन अगर यह आपका  नहीं है, तो आप इसे अच्छी तरह से देख सकते हैं। अब आप इसे देखिए और सोचिए मत। आप चकित हो जाएंगे, जब आप उस सौंदर्य को देखेंगे जो इस के भीतर डाला गया है, आप उस कलाकार को देखेंगे जिसने अपना आनंद डाला है, अपना  उल्लास उसमें  डाला है, और आप चकित हो जाएँगे, आत्मसाक्षात्कार के बाद, कि यह उल्लास आपके भीतर भर जाएगा और एक शीतल प्रकार की विश्रान्ति  आपके भीतर आएगी , और यह कुंडलिनी उठ जाएगी, और आप अपनी  निर्विचार समाधि में स्थिर हो जाएंगे।

तो जब भी आप किसी चीज़ को देखें, किसी भी सुंदर चीज़ को देखें, यहाँ तक कि कहें कि आज का चुनाव, केवल उस व्यक्ति को देखें जो निर्वाचित है। उसे देखना, अपने आप ही, उसे आशीर्वाद देता है, उसे अधिक अच्छे विचार प्रदान करता है । आपको भी विचार मिलते हैं, जो वास्तविकता से आ रहे हैं, जो वहाँ हैं :   इस व्यक्ति को एक सफल व्यक्ति कैसे बनाया जाए या इस देश को एक सफल लोकतंत्र।

ये सभी चीज़ें तब होती हैं जब आपका चित्त आलोचना करने से, प्रतिक्रिया करने से हट जाता है। बस आप  देखिए, साक्षी बनिए, सब कुछ देखने का प्रयत्न कीजिए । यह अभी तक बहुत प्रचलित नहीं है। अब तक, मैंने देखा है, कि जब भी, यहाँ तक कि जब हम अपना प्राप्य,  अपना आत्मसाक्षात्कार  प्राप्त कर लेते हैं, तब भी हमें यह अनुभव नहीं होता कि हमें सब कुछ साक्षीभाव से देखना है। जब आप अपनी आत्मा के माध्यम से साक्षीभाव में  देखना आरम्भ करते हैं, तब आप दूसरों के अवगुण नहीं देखते हैं, लेकिन आप अच्छे गुण देखते हैं। आप बस बहुत अच्छे गुणों वाले व्यक्ति को चुनते हैं।

तो एक बार जब आप देखते हैं कि साक्षी भाव की अवस्था बढ़ जाती है, और आप किसी अन्य व्यक्ति का आनंद लेना आरम्भ कर देते हैं, आप हर चीज़ का आनंद लेना आरम्भ कर देते हैं, यहाँ तक कि घास के एक छोटे से तिनके का भी आप आनंद ले सकते हैं, यदि आपके पास वह क्षमता है।

जापान में, ज़ेन प्रणाली इस विचारधारा पर शुरू हुई। और उन्होंने  बनाया, विदितमा वह व्यक्ति थे जिन्होंने इसे शुरू किया था, उन्होंने  काई से  एक बगीचा बनाया, अलग काई, और बहुत छोटी। फ़िर छोटे ,छोटे फूल भी थे। और कदाचित लगभग पांच फीट का बगीचा, जो आप कह सकते हैं एक प्रश्न चिन्ह के आकार जैसा दिखता है । 

आपको एक लिफ़्ट से  जाना होता है, और आप एक पहाड़, या एक पहाड़ी के ऊपर उस समतल धरा पर पहुँच जाते हैं, जहाँ आप इसे देखते हैं। सभी छोटी- छोटी काई वहाँ हैं, और आप देखते हैं, अलग तरह से व्यवस्थित, एक सुंदर बगीचा। जब आप इसे देखना शुरू करते हैं, तो आपके  विचार रुक जाते हैं, क्योंकि इस तरह की अद्भुत चीज़, जब आप अपना चित्त उस पर डालते हैं, उसके निर्माण पर, तो आपके विचार रुक जाते हैं।

तो आपको यह जानने के लिए अभ्यास करना चाहिए कि वह क्या है जो आपके विचारों को रोकता है, वह क्या है जो आपको साक्षी बनाता है।

एक बार जब आप इस आदत को विकसित कर लेंगे, तो आप स्वयं  को निर्विचार समाधि में अच्छी तरह से स्थापित कर लेंगे। फिर आप यह देखना प्रारम्भ करेंगे कि सहज योग ने कैसे सहायता की है, यह कैसे आनंदमय रहा है, आपने सहज योग के माध्यम से क्या प्राप्त किया है। आप आश्चर्यचकित होंगे, यदि आप बस इसे देखना आरम्भ करेंगे, हर जगह आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह परम चैतन्य कैसे कार्य करता है।

आजकल, यह परम चैतन्य कृत युग के कारण सक्रिय हो गया है। आप देख सकते हैं जिस तरह से यह खेल रहा है, चैतन्य  के साथ मेरे चारों ओर।  आपने मेरी कई तस्वीरें देखी हैं जहाँ यह चैतन्य है। इसके साथ ही, आपने मेरे सामने बैठे कई सहज योगियों की तस्वीरें देखी हैं, जिनमें उनके सिर पर अरबी भाषा में मेरा नाम लिखा है। आपने बहुत से ऐसे तरीक़े देखे हैं जिनके द्वारा आप पता लगा सकते हैं कि यह ईश्वरीय लीला है।

अब मन अभी भी कुछ कहने की चेष्टा करेगा :  मत सुनिए, बस देखिए । सहज योग का प्रभाव आपको अपने आप पर देखना चाहिए, अपने सम्पूर्ण शरीर पर । इसके बारे में सोचिए मत लेकिन इसे देखिए, और आप चकित हो जाएँगे कि आप कैसे बदल गए हैं ।

बहुत स्पष्टता के साथ कहूँ तो, जब मैं हर साल ऑस्ट्रेलिया आती हूँ, तो कभी-कभी मैं आपको पहचान भी नहीं पाती हूँ । आप पहले से बहुत युवा दिखते हैं, पहले से अधिक अच्छे, अधिक आनंदपूर्ण । और मैं नहीं पहचान पाती कि कौन हैं ये लोग । यही वह साक्षी अवस्था है जो आपको एक और आयाम में ले जाती है जिसे हम निर्विकल्प समाधि कहते हैं। उस अवस्था में, आप इतने सशक्त बन सकते हैं कि आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं । आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं, आप सहज योग के बारे में पूरी जानकारी दे सकते हैं, आप उनसे बात कर सकते हैं। इसके साथ ही आप फैलाते हैं।

मैं – आप देखिए, जब मैं देखती हूँ, मैं गर्मी को अवशोषित कर रही हूँ, यही मेरा कष्ट है। 

तो आपकी पूरी अवस्था, आध्यात्मिक अवस्था, इतनी आनंदमय हो जाती है, आप इतने शक्तिशाली हो जाते हैं, आप इतने करुणामय और इतने प्रेममय हो जाते हैं, इतने संतुलित, पूर्णतया मुक्त हो जाते हैं अपने सभी विनाशकारी विचारों से, अपने सभी अवसादग्रस्त विचारों से,  और फिर आप वास्तव में एक महान सहजी के रूप में खड़े होते हैं जो अति वृहत् कार्य कर सकते हैं।

जैसे हाल ही में मैंने सुना कि जर्मन और ऑस्ट्रियाई लोग अब इज़रायल जा रहे हैं, क्योंकि वह सोचते हैं कि यहूदियों को उनके पूर्वजों ने मारा था, और अब इज़रायल में एक बड़ा केंद्र आरम्भ हो गया है। ज़रा कल्पना कीजिए! कैसे ये लोग, एक बार वे उस अवस्था  में पहुँच जाते हैं, अकेले ही देशों में जाते हैं। उन्होंने बहुत कुछ किया है। तुर्की में भी वही, वही उन जगहों में भी जो दक्षिण अफ़्रीक़ा में अत्यन्त निर्जन हैं। क्योंकि, भीतर से वह पूरी तरह से आत्मविश्वासपूर्ण हो जाते हैं, निर्विचार समाधि में, साथ ही साथ निर्विकल्प समाधि में भी।

लेकिन अब, एक बार जब आप ध्येयपरक चित्त द्वारा विकसित होना आरम्भ हो जाते हैं, क्या होता है कि आपका चित्त प्रकाशित हो जाता है। अब आपका कार्य अपने चित्त को प्रेरित करने का है। यह केवल आनंद लेने के लिए नहीं है, बल्कि इसे प्रेरित करने के लिए है, इसे समस्याओं की ओर लगाने के लिए है। अब मान लीजिए कि आपको राष्ट्रीय स्तर पर कुछ समस्या है – आप सभी अपना चित्त उस ओर लगा सकते हैं और चीज़ें काम करने लगेंगी। क्योंकि आप इस सर्वव्यापी शक्ति का माध्यम हैं जो आपके लिए एक नई दुनिया बनाने का प्रयास कर रही है, नए मनुष्य। और यह उत्क्रांति बहुत शीघ्रता से हो सकती है यदि आप सभी यह निर्णय लेते हैं कि :  “अब जो कुछ भी हमारे पास अपने भीतर है, हमें इसे प्रेरित करना चाहिए, हमें इसका निर्देशन करना चाहिए और इस चित्त को किसी उपयोग में लाना चाहिए।” इसे व्यर्थ नहीं किया जाना चाहिए। हमारे पास जो संपत्ति है, वह व्यर्थ नहीं होनी चाहिए।

अब आज का यह मुख्य प्रश्न, जिसके बारे में मैं आपको बताने जा रही  हूँ – वह है, परम साक्षात्कार क्या है? पहला आत्मसाक्षात्कार है, और ऐसे कई महत्वाकांक्षी लोग हैं जो परम साक्षात्कारी होना चाहते हैं।

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात, हमें यह पता होना चाहिए कि मनुष्य परमात्मा नहीं बन सकते। यह नहीं संभव है, वह बनना। आप अभी, एक तरह से,  आत्मा भी नहीं बने हैं, क्योंकि आत्मा आपके  माध्यम से प्रसारित कर रही है , आपका  उपयोग कर, आपको  दे रही है, आपकी  देखभाल कर रही है। यदि आप  आत्मा बन जाते हैं, तो कोई शरीर नहीं रह जाएगा, कुछ भी नहीं बचेगा। तो इस पूर्ण शरीर के साथ, आपकी आत्मा इस शरीर के माध्यम से कार्य कर रही है, आप को संपूर्ण प्रकाश दे रही है।

लेकिन कोई सर्वशक्तिमान परमात्मा नहीं बन सकता है, इसे आपको बहुत स्पष्ट रूप से समझना होगा। लेकिन परम साक्षात्कार का अर्थ है, परमात्मा के बारे में  जानना । आप देखिए, ईश्वर के बारे में जानने का अर्थ है यह जानना कि उनकी शक्तियाँ कैसे काम करती हैं, वह कैसे नियंत्रित करते हैं, सर्वशक्तिमान परमात्मा का अंग- प्रत्यंग बनकर। जैसे मेरी उंगली मेरे मस्तिष्क के बारे में नहीं जानती, लेकिन यह मेरे मस्तिष्क के अनुसार काम करती है। उंगली मस्तिष्क नहीं बन सकती है, लेकिन इसे पूर्णतया मेरे मस्तिष्क के अनुसार कार्य करना होगा, क्योंकि यह इतनी जुड़ी हुई  है, यह एक है ।

यहाँ, जब आपको परम साक्षात्कार प्राप्त होता है, तब आप मस्तिष्क के बारे में जानते हैं, आप परमेश्वर के बारे में जानते हैं, आप उनकी शक्तियों के बारे में जानते हैं, आप उनके बारे में सब कुछ जानते हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, यह आपके लिए एक कठिन कार्य है, क्योंकि मैं एक महामाया हूँ। आपके लिए बहुत कठिन है मेरे बारे में हर एक बात जानना । मैं काफ़ी भ्रामक व्यक्ति हूँ, जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं।

और मैं जो कुछ भी करती हूँ या जो कुछ भी प्राप्त करती हूँ, वह केवल आपके देखने और समझने के लिए है – आख़िरकार यह आदि शक्ति हैं, और वह यह सब कार्य कर सकती हैं। आप भी यह सब कार्य कर सकते हैं, लेकिन आप मैं नहीं बन सकते। लेकिन आपको जानना है, जानना है प्रेम के माध्यम से, भक्ति के माध्यम से, प्रार्थनाओं के माध्यम से, ईश्वर की शक्तियों को जान कर ही आप परम साक्षात्कारी बन सकते  हैं।

तब आप प्रकृति को नियंत्रित कर सकते हैं, आप सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं, यदि आपके भीतर ईश्वर के बारे में वह ज्ञान है। इसके लिए पूरी विनम्रता चाहिए, कि आप परमात्मा नहीं बन सकते, सर्वशक्तिमान परमात्मा नहीं बन सकते, आप देवता नहीं बन सकते। लेकिन निश्चित रूप से, आप परम साक्षात्कारी बन सकते हैं, अर्थात् ईश्वर आपके माध्यम से कार्य करते हैं, आपको अपनी शक्ति के रूप में उपयोग करते हैं, अपने माध्यम के रूप में, और आप जानते हैं कि,  आप जानते हैं कि, वह आपके लिए क्या कर रहे हैं, वह क्या बता रहे हैं, उनका दृष्टिकोण क्या है, और क्या जानकारी है। यह संबन्ध ऐसा है।

सहज योग में कई लोगों को लाभ हुआ है, मुझे पता है। लेकिन वे नहीं जानते कि उन्हें किस तरह से लाभान्वित किया गया है, किसने यह कार्य किया है, कैसे यह कार्य हुआ है, उनके किस संयोजन ने उनकी सहायता की है। एक बार जब आप ऐसा करते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से जानते हैं कि, कैसे सब कुछ कार्यान्वित हो रहा है, किस शक्ति के साथ आपने इसे प्राप्त किया है, उस दशा में यह परम साक्षात्कार  है। ऐसे लोग अत्यधिक शक्तिशाली हो जाते हैं, इस अर्थ में कि वह कई सारी चीज़ों को नियंत्रित कर सकते हैं।

उस तरह के कई संत हुए हैं, लेकिन कभी-कभी वे उस अवस्था से भी नीचे गिर गए और उन्होंने अपना अहंकार विकसित कर लिया। उनके पास उनकी अपनी विनम्रता नहीं थी जो उनके पास होनी चाहिए थी, वह भक्ति, वह निष्ठा, वह समर्पण। वे नीचे गिर गए। और आप उन्हें देखते हैं, मैंने उनमें से कुछ को देखा है, कि वह सब अपनी उपलब्धियों पर काफ़ी गर्व करते हैं और वे इसे किसी को भी नहीं देना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने इसे बड़ी कठिनाइयों के साथ प्राप्त किया है और उन्हें इसे दूसरों को क्यों देना चाहिए। ऐसे लोग बहुत ऊँचे उठने वाले नहीं हैं, लेकिन आप लोग जिन्हें अपना आत्म साक्षात्कार  प्राप्त हुआ है, और जो विनम्र हैं, जो जानते हैं कि विनम्रता के द्वारा ही आप अपने समर्पण को प्राप्त करने वाले हैं।

इस्लाम का अर्थ है,  समर्पण। मोहम्मद साहब ने ‘इस्लाम’ के बारे में बात की है, जिसका अर्थ है :  “आप समर्पण करिए”।

अगर आप  समर्पण नहीं कर सकते, तो आप परमात्मा को कभी नहीं जान सकते। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि : “जब तक आप अपने आप को नहीं जानते हैं, तब तक आप परमात्मा के बारे में नहीं जान पाएंगे”।

तो सहजी के रूप में, आपको सभी छोटी- छोटी चीज़ों को जानना होगा, सभी बड़ी चीज़ों को, और सभी महान दृष्टिकोणों को, कि आप इसे कर सकते हैं ईश्वर के अनुग्रह के कारण, क्योंकि उनका आशीर्वाद, आपके प्रति उनका प्रेम होने के कारण, आपने परमेश्वर के राज्य में प्रवेश किया है।

 मैं कह सकती हूँ कि आपने प्रवेश किया है, मैं कह सकती हूँ कि आपने वह अवस्था प्राप्त कर ली है, मैं यह कह सकती हूँ, लेकिन, फिर भी आप वहाँ नहीं हैं। यह ऐसा है जैसे मैं किसी को कहूँ : “अब आप ऑस्ट्रेलिया में हैं।” वह ऑस्ट्रेलिया में नहीं है, लेकिन मैं कह सकती हूँ :  “आप ऑस्ट्रेलिया में हैं” तो वह मानता है :  “मैं ऑस्ट्रेलिया में हूँ”। यह तरीक़ा नहीं है। आपको ऑस्ट्रेलिया में होना होगा, फिर आपको ऑस्ट्रेलिया के बारे में जानना होगा। आपको यह जानना होगा कि यह किस प्रकार की जलवायु है, यह किस प्रकार की चीज़ें हैं।

मुझे लगता हैं कि यहाँ के अभिभावकों को अपने बच्चों से बात करनी होगी। बच्चों के साथ माता-पिता का बहुत तालमेल नहीं है। स्कूल में उनकी उचित देखभाल की जा रही है, और वे बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन माता-पिता को भी भागीदार होना चाहिए, जब बच्चे यहाँ आते हैं, तो यह देखना कि वे उचित अनुशासन, उचित समझ विकसित करें। उनसे आसक्त हो कर उनका विनाश करने के लिए नहीं। यदि आप आसक्त होंगे, तो आप उनका विनाश कर देंगे।

शिव के गुणों में से एक पूर्ण निर्लिप्तता है, और यही है जो आपको विकसित करनी है, पूर्ण रूप से निर्लिप्त हो जाना है।

निर्लिप्तता का अर्थ यह नहीं है कि आप किसी भी चीज़ की उपेक्षा करें।

मैंने आपको कई बार समझाया है कि जैसे पेड़ में रस उठता है, अलग-अलग, विभिन्न जगहों पर जाता है और फिर वाष्पित हो जाता है – या यह वापस धरती में चला जाता है – उसी तरह से आपकी निर्लिप्तता होनी चाहिए। यदि आप आसक्त हैं क्योंकि यह आपका बेटा है, या यदि आप आसक्त हैं क्योंकि वह ऑस्ट्रेलियाई है, या हो सकता है कि वह किसी निश्चित परिवार या निश्चित वर्ग से संबंधित हो, तो आप अभी भी सीमित हैं।

यदि आपको पार होना है तो इन सभी सीमाओं को छोड़ना होगा। और ये सीमाएँ इतना बड़ा भार उत्पन्न करती हैं कि, मैं जो भी प्रयास करूँ, आप जो  भी प्रयास करें, आप निर्विचार  समाधि  में नहीं रह पाते हैं। यह एक बहुत ही सुंदर स्थिति है जिसमें आप सभी को होना चाहिए। इसमें आप हावी नहीं हो रहे हैं और न ही आप समझौता कर रहे हैं :  आप अपने पैरों पर खड़े हैं और आप निश्चित रूप से जानते हैं कि आप हिलने वाले नहीं हैं किसी भी विचार या किसी भी प्रभुत्व या किसी के द्वारा आपकी अधीनता से ।

तो आप पूरी तरह से एक स्वतंत्र पक्षी बन जाते हैं, पूर्णतया स्वतंत्र पक्षी और फिर आपकी उड़ान को प्राप्त करना आपका कार्य बन जाता है।

एक उड़ान निर्विचार  समाधि तक है, दूसरी उड़ान निर्विकल्प समाधि तक है, और तीसरी उड़ान परम साक्षात्कार की ओर है।

मैंने लोगों को देखा है, जो मेरे बहुत निकट भी हैं, नहीं समझ पाते हैं । वह इस तरह से व्यवहार करते हैं जैसे कि अब वे परमात्मा बन गए हैं। वह इतने अहंकारपूर्ण हैं कि मैं उन पर चकित हूँ – फिर उन्हें सहज योग छोड़ना होगा।

तो, देखिए, भले ही मैं आपकी बहुत अधिक प्रशंसा करूँ, अगर मैं कुछ भी बहुत अधिक कहूँ, तो आपको सिरचढ़ा नहीं होना चाहिए। यह एक परीक्षण का मैदान है। या अन्यथा भी, यदि मैं आपसे कहती हूँ कि  :   “यह अच्छा नहीं है, आपको इस पर सुधार करना चाहिए”, तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि मुझे यह करना है, यह मेरा काम है, और आपका काम मुझे सुनना है। क्योंकि मुझे आपसे कुछ प्राप्त नहीं करना है, मैं कुछ नहीं माँगती। मैं चाहती हूँ कि आप सभी को मेरी शक्तियाँ मिलें। आप वह नहीं बन सकते जो मैं हूँ, मैं सहमत हूँ, लेकिन कृपया प्रयास कीजिए मेरे पास विद्यमान सभी शक्तियाँ प्राप्त करने की, जो कोई कठिन बात नहीं है।

यही परम साक्षात्कार  है,  यही शिव और सदाशिव को जानना है। शिव के माध्यम से, आप सदाशिव को जानते हैं। आप प्रतिबिंब देखते हैं, और प्रतिबिंब से, आप जानते हैं कि मूलरूप कौन है। प्रतिबिंब से आप सीखते हैं। इस प्रकार आप उस अवस्था में पहुँच जाते हैं जहाँ आप सोचते हैं कि आप अब निश्चित रूप से ईश्वर के राज्य में बस गए हैं, और आप ईश्वर को देख सकते हैं, आप ईश्वर का अनुभव कर सकते हैं, आप ईश्वर को समझ सकते हैं, और आप ईश्वर से प्रेम कर सकते हैं।

आप सब को  परमात्मा का अनंत आशीर्वाद ।