Birthday Puja, Mind is a Myth

New Delhi (भारत)

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जन्म दिवस पूजा मन मिथ्या है दिल्ली मार्च 21, 1996

मेरा जन्म दिन आप इतने प्रेम, आदर और श्रद्धा से मना रहे हैं। यह देख कर ऐसा लगता है कि हमने ऐसा किया ही क्या है जो आप लोग इस तरह अपना प्रेम दिखा रहे हैं। आज मैं आपको एक अनूठी बात बताने वाली हूँ कि हमारे अन्दर जो मन या mind नाम की संस्था है वो एक मिथ्या बात है। वो मिथ्या ऐसी है कि जब हम पैदा होते हैं तो हमारे अन्दर ये मन नाम की बात कोई नहीं होती। जब धीरे धीरे हम बाह्य में प्रतिक्रिया करते हैं, दोनों तरह की, या तो हमें कोई संस्कार बनाता है और कोई हमारे अन्दर अहंकार का भाव जागृत होता है तब उन प्रतिक्रियाओं से जो हमारे अन्दर चीज़ जागृत होती है वो बुलबुलों की तरह इक्टी हो जाती है और ये हमारे विचारों के बुलबुले, हमारे अन्दर मन नाम की एक कृत्रिम संस्था बना देते हैं। यह सारी चीजें हमारे अन्दर ऐसी घटित होती हैं कि जिसे हम खुद ही बना करके, उसी की गुलामी करते हैं। जैसे घड़ी इन्सान ने बनाई है और हम घड़ी की गुलामी करते हैं । सहज में फिर आप कालातीत हो जाते हैं, आप इससे परे उठ जाते हैं। समय आपके साथ चलने लगता है आप समय के पीछे नहीं दौड़ते। अब कम्पयूटर आजकल लोग बना रहे हैं, कम्पयूटर बनाने से उसी की गुलामी लोग करने लग गये। और उस गुलामी में वो इस कदर बहक गये हैं कि वो ये नहीं समझ पाते कि कम्पयूटर ही उनको पूरी तरह से में आ दबोचे हुए ह है। उनको कन्ट्रोल कर रहा है| उसके ताबे में आ गये, उसके काबू गये और उसके बगैर इनका कुछ काम नहीं चलता । अभी तक हिन्दुस्तान में इसकी प्रथा इतनी आई नहीं, नसीब समझ लीजिये, नहीं तो आप भी दो और दो को मिलाने के लिए कम्पयूटर आपको चाहिए। वो भी आप नहीं मिला पायें क्योंकि अपनी बुद्धि आप इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे। तो आपका जो मस्तिष्क में बुद्धि का वास्तवय है, वो तो सत्य

है। किन्तु ये जो मन है ये एक बनाई हुई एक कृत्रिम, हमारी अपनी तरफ की प्रतिक्रियायें हैं – अहंकार की और हमारे संस्कारों की – वो बनी हुई एक बहुत कृत्रिम सी क्षणिक सी चीज़ हैं। फिर हम हमेशा इसी से प्लावित रहते हैं, खास करके जो लोग अपने को बहुत ही सोचते हैं कि हम बहुत विद्वान, बड़े पढ़े लिखे हैं, उन्होंने इस मस्तिष्क को पूरे तरह से, इस मन से भर दिया। मन इनके ऊपर छाया हुआ है। और जहां चाहें मन वहीं बहकाते रहते है, उस बहाव में बहकते रहते हैं, उस ओर चलते रहते हैं। एक कृत्रिम सी चीज़ अपने अन्दर स्थापित हो गई है । जिसे हम मन कहते हैं। असल में मन नाम की कोई चीज़ न थी और न है।….इसीलिए मन से परे जाना ही सहज का कार्य है। जब आप मन से परे जायेंगे तभी आप उस शांति को प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि मन हमेशा विचारों से , जो कि अंहकार और हमारे संस्कार, प्रति अंहकार से आते रहता है, उससे आड़ोलित है, इसलिए कोई शांति आप महसूस नहीं कर सकते। अगर शांति को आपको प्राप्त करना है तो इस कृत्रिम मन से परे जाना चाहिए। और इसी लिए जो हमारे यहां प्रथम दशा सहज की मानी जाती है, जिसे कि हम निर्विचार समाधी कहते हैं, उसको प्राप्त करना चाहिए। उसके प्राप्त करते ही आप देखते हैं कि आप शान्त हो जाते हैं आपके अन्दर जमे हुए जो कुछ विचार हैं, जो कि एकत्रित हो गये हैं और जिनके कारण आप गलत-गलत चीजों में घुसे रहते हैं और परेशान रहते हैं, तकलीफ में रहते हैं, वो सभी एक तरह से चीज़ मिट जाती है। यह विषय मैंने आज नया शुरू किया है क्योंकि अब भी हमारा निर्विचार में समाधिस्थ होना कुछ कम है, और जब तक आप निर्विचार में उतरेंगे नहीं तब तक आप चारों तरफ फैली इस परमेश्वर की शक्ति को प्राप्त नहीं कर सकते, उससे सम्बन्धित नहीं हो सकते। यही तोड़ थी। यही जो बीच में मन की स्थापना हुई है, यही आपकी स्थिति जो कि योगमय होनी चाहिए उसे खत्म कर देती हे। आज मैंने सोचा है कि थोड़ा अंग्रेज़ी में भी बोलना चाहिए क्योंकि यहां बहुत से परदेसी लोग आये हैं। इसी विषय को मैं अंग्रेज़ी में बताना चाहूंगी।