Shri Mahalakshmi Puja: We have to live like one family

Moscow (Russia)

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Shri Mahalakshmi Puja. Moscow (Russia), 16 July 1996.

आज रात, हम अपने अन्तनिर्हित लक्ष्मी तत्व की पूजा करने जा रहे हैं।लक्ष्मी धन, समृद्धि और स्वास्थ्य की देवी हैं। वास्तव में आपका देश पहले से ही धन्य है, क्योंकि आपके पास यहां बहुत सारी चीज़ें  हैं। सबसे पहले, इस देश में इतनी अधिक मात्रा में पेट्रोल है और अगर खोज की जाए तो यहाँ और बहुत अधिक है। फिर दूसरी बात, आपके यहाँ सुंदर लकड़ी है। फिर तीसरा, आपके यहाँ प्रचुर मात्रा में स्टील, बहुत अधिक मात्रा में स्टील, बहुत अच्छा स्टील है। इसके अलावा आपके पास हीरे हैं। इतनी सारी चीज़ें आपके पास हैं, इसके अलावा आपके पास इतना बड़ा हृदय है। आपके पास सोना भी है। अतः इस देश में ये सभी चीज़ें प्रचुर मात्रा में हैं। केवल एक बात है कि आपके पास अभी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो आप लोगों के लिए इसका संचालन करें। मुझे यकीन है कि सब कार्यान्वित हो जायेगा। लेकिन सहज योग में, हमें यह जानना होगा कि यह लक्ष्मी तत्व हमें संतुष्टि की श्रेष्ठ भावना देता है। यदि आपको संतोष नहीं है तो धन सम्पदा की कितनी भी प्रचुरता हो वह आपकी मदद नहीं कर सकती है। व्यक्ति बहुत लालची हो जाता है। आपके पास कुछ है लेकिन आप अधिक और अधिक और पाना चाहते हैं और इसके लिए व्यक्ति सभी प्रकार के तरीकों और उपायों को अपनाता है। इस प्रकार आपके यहाँ, एक बहुत बुरा माफिया प्रणाली है, जो बहुत लालची हैं।

सहजयोगियों के लिए यह समझना आवश्यक है कि उन्हें वह सब व प्राप्त नहीं करना है जिसे वह पहले से ही प्राप्त कर चुके हैं । प्रथमत: लोग भोजन की तलाश करने की कोशिश करते हैं, नाभि चक्र में, फिर वे खाना खाते हैं जो कि ‘स्वाहा’ है फिर इसे शरीर में बनाए रखा जाता है। अब मान लीजिए कोई व्यक्ति भोजन के लिए बहुत लालची हो जाता है वह बीमार हो जाता है, उसे समस्याएँ होती है। लेकिन वह दूसरे चरण में जाता है, जहां वह इसे सतत बनाए रखता है और ‘स्वधा’ कहलाता है, क्योंकि वह यह सोचकर खाता है कि ऐसा करना है,एक इंसान के रूप में, खाना उसका कर्तव्य है, बस इतना ही। स्वाद के लिए नहीं, लालच के लिए नहीं, दिखावा करने के लिए नहीं। बहुत ही साधारण तरीके से वह खाता है। जैसे पश्चिम में मैंने देखा है कि लोग इस बात को लेकर बहुत सावधानी बरतते हैं कि आप चम्मच कहाँ रखें और उसे कहाँ रखना है। वे हजारों रुपए खर्च करते हैं इन छुरी–काँटा आदि को खरीदने के लिए ।

अब जो चीज़ लक्ष्मी तत्व के लिए सबसे बुरी है वह है शराब पीना। यह शराब है। वे भारत में कहते हैं, कि एक तरफ से मदिरा आती है तो लक्ष्मी दूसरे दरवाजे से भाग जाती है। इसलिए सहज योगियों को पीने की जरूरत नहीं है। वे शराब पीना छोड़ देते हैं, और इस तरह लक्ष्मी-तत्व और अधिक सरलता से स्थापित किया जा सकता है। अब हमारे पास लक्ष्मी क्यों होनी चाहिए? हमारे पास लक्ष्मी होनी चाहिए क्योंकि लक्ष्मी के प्रतीक में ही आप उसका कारण देख सकते हैं। सबसे पहले लक्ष्मी के हाथ में दो सुंदर गुलाबी रंग के कमल होते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि जिस व्यक्ति के पास धन है, उसके पास बहुत ही आरामदायक घर होना चाहिए, जो कि आतिथेय पूर्ण  हो, गुलाबी रंग प्रेम और निमंत्रण का प्रतिक हैं।अब भौंरा कमल के पास आता है। उसके शरीर में कई प्रकार के कांटे होते हैं।यह भौंरा कमल के पास थोड़ा शहद  इकट्ठा करने के लिए आता है परंतु उस के शरीर पर काँटे होते हैं लेकिन कमल उसे स्वीकार करता है। आप देखें, कमल भौंरें के अपने घर में आने पर बहुत खुश होता है। अब भौंरा शहद माँग रहा है और वह थक जाता है और कमल के अंदर सो जाता है इसलिए कमल उसे एक सुंदर पराग रूपी  बिस्तर सोने के लिए देता है और कमल अपनी सारी सुगंध, उस भंवरे के लिए, सुबह होने तक ।फिर जब भौंरा अच्छी तरह आराम पूरा कर लेता है, वह शहद लेता है और फिर उड़ जाता है। हम काव्यात्मक रूप से कह सकते हैं कि भौंरे का सम्मान कमल द्वारा किया जाता है क्योंकि वह शहद खोज रहा है। भले ही उसमे कांटे हों, कोई अंतर नहीं पड़ता।

इस प्रकार आप लोग जो सत्य की खोज कर रहे हैं, उसे आपने सहस्रार पर प्राप्त किया है, जो एक कमल के समान है।आपने जो कुछ भी किया है, जो कुछ भी अतीत था वह महत्वपूर्ण नहीं है, आप अपनी गरिमा को प्राप्त करते हैं क्योंकि आप सत्य को खोज रहे हैं। इसके अलावा जब लोग लक्ष्मी से संतृप्त हो जाते हैं, जैसा कि मैंने पश्चिम के देशों में देखा है, तो वे खोज करने लगते हैं वे ऊब जाते हैं क्योंकि भौतिक चीज़ें लक्ष्मी नहीं है, क्यूँकि ये उन्हें कोई संतुष्टि नहीं दे पातीं। तो दूसरी चीज़ जो लक्ष्मी के हाथ में है, कि वह अपना एक हाथ इस मुद्रा में रखती है, यह हाथ दर्शाता हैं कोई व्यक्ति जिसके पास धन है उसे एक हाथ से देना है और बाँटना है, केवल अपने लिए ही नहीं रखना

है।अगर वे धन साझा नहीं करते हैं,फिर वे लक्ष्मी तत्व का आनंद नहीं ले सकते हैं। क्यूँकि दूसरों को देना इतना आनंददायक है। देवी का दूसरा हाथ दर्शाता है कि जो लोग आपकी शरण में हैं, आपके रिश्तेदार, आपके मित्र, वे सभी लोग उन्हें आपके द्वारा पूर्ण संरक्षण दिया जाना चाहिए। आपके परिवार में कुछ भी घटित होता है, आपके रिश्तेदार या आपके मित्रों के साथ कुछ भी घटित होता है, आपको उस व्यक्ति के साथ खड़ा होना चाहिए।

कुछ लोग अपने संबंधियों की सहायता करने की कोशिश करते हैं जैसे कि कई राजनीतिज्ञ धोखा देकर ऐसा करते हैं। लेकिन धोखा देकर, आप जो कर रहे हैं, आप उस संबंधी के जीवन को विकृत कर रहे हैं, आप वास्तव में उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। इसलिए वह अपना नाम, अपनी गरिमा, सब कुछ विशेष रूप से अपना नैतिक चरित्र खो देगा। तो लक्ष्मी के साथ, आपको अपनी नैतिकता अवश्य सुरक्षित रखनी होगी। एक देश में जैसे कहिए अमेरिका और यह सभी लोग यहाँ भयानक फिल्में बन रही हैं और लोग विज्ञान को अपना रहे हैं, हम इसे कहते हैं,’अलक्ष्मी’ जिस व्यक्ति के पास लक्ष्मी है, उसे सभ्य ढंग से वस्त्र धारण करना चाहिए, महिलाओं और पुरुष । मैं सड़क पर महिलाओं को बहुत छोटे कपड़ों के साथ घूमता हुआ पाती हूँ। इस वजह से क्या होगा कि आपका नाभि चक्र बाधित हो जाएगा, और आपको धन की समस्याएँ होगी।

इसलिए जो सम्पदा आपके पास है आपके स्वभाव में, आपकी प्रकृति में, आपके व्यवहार में, आपके रहन-सहन में दिखाई देना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति के पास लक्ष्मी है, उसे बहुत विनम्र व्यक्ति होना चाहिए। उदाहरण के लिए, श्री लक्ष्मी एक कमल के ऊपर खड़ी हुई हैं। कमल एक सबसे हल्का फूल है जो आप सोच सकते हैं क्योंकि यह पानी के ऊपर तैरता है। तो उनका स्वभाव बहुत गंभीर प्रकृति का नहीं होना चाहिए, लेकिन बहुत प्रफुल्ल ……….और वे झूठा प्रदर्शन नहीं करती क्योंकि यह एक बहुत साधारण चीज़ है, जैसे एक कमल, उसके ऊपर खड़े होना।

तो उन लोगों के लिए जिनके पास धन है, या जिनके पास सम्पति है, उन्हें बहुत बड़ी बड़ी कारों के द्वारा झूठा प्रदर्शन करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए एवं  इससे या उससे  । वास्तव में इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको संन्यासी बन जाना चाहिए। इसके विपरीत, आपको उत्तम श्रेणी के प्रतिष्ठित ‘व्यक्तित्व’ बनना चाहिए। परंतु निर्लिप्तता होनी चाहिए। जैसा कि आपने राजा जनक को देखा था, वह एक राजा थे और फिर भी वह इतने निर्लिप्त थे, कि सभी संत जाकर राजा जनक के पैर छूते थे। तो वहाँ यह नचिकेता नाम का एक व्यक्ति था, उसने अपने गुरु से पूछा “आप उनके पैर क्यों छूते हो? वह एक राजा है। तो गुरु ने कहा “ठीक है, तुम जाओ और अभी उनसे मिलो”। तो उसने जाकर क्या देखा कि जनक के पास जीवन के सारे वैभव थे। वह एक महल में रहते थे और उनकी शोभायात्रा में हजारों हज़ारों लोग थे जो उन पर मोती बरसा रहे थे। तो नचिकेता ने सोचा उसे भी कम से कम एक मोती मिलना चाहिए।

अगले दिन, वह राजा जनक के पास गया और उनसे माँगा, “मुझे आत्म-साक्षात्कार दे दीजिए।” तो राजा जनक ने कहा, “मैं तुम्हें अपना सारा राज्य दे सकता हूं, लेकिन आत्म-साक्षात्कार नहीं, बहुत मुश्किल है, क्योंकि तुम धन के विचार से ग्रसित हो, ऐसा व्यक्ति आत्मबोध नहीं पा सकता है। उस ने कहा, “ठीक है मैं यहीं रहूंगा जब तक मुझे आत्म- साक्षात्कार नहीं मिल जाता।” अगले दिन राजा जनक उन्हें नदी में स्नान करने के लिए ले गए और वे स्नान का आनंद ले रहे थे। और लोगों ने आकर उन्हें बताया कि उनके महल में आग लग गई है। लेकिन राजा जनक ध्यान कर रहे थे,वे विचलित नहीं हुए। फिर लोगों ने बताया कि “जो लोग महल में थे, वे सभी भाग गए हैं”। फिर वह कहते है कि, किसी ने कहा है कि “अब यह आग अब इस तरफ आ रही है।” राजा जनक फिर भी ध्यान करते रहे। लेकिन नचिकेता बाहर की ओर भागा क्योंकि उसके कपड़े बाहर रखे थे, इसलिए वह बाहर भागा अपने बचाने के लिए और राजा जनक अभी भी विचलित नहीं हुए। जब वे बाहर आए तो उन्होंने उसे बताया, “नचिकेता, यह सब महामाया है।” इसी तरह से आपकी परीक्षा ली जाती हैं ,अगर आप धन उन्मुख हैं तो आपको आत्म-साक्षात्कार नहीं मिल सकता, वही हैं जो आपकी परीक्षा ले रही हैं। वे सभी लालची लोग,पैसों के लिए सभी तरह के काम करते हैं, जैसा कि आपके यहाँ हैं, माफिया, सभी को सज़ा होगी। किसी भी स्थिति वे सुखी लोग नहीं हैं, संतुष्ट लोग नहीं हैं, वे हर समय चिंतित रहते हैं। तो सबसे पहले आपके पास संतोष होना चाहिए। यह आधुनिक समय में समझने वाली एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। क्योंकि अर्थशास्त्र में भी यह कहा गया है कि सामान्यत: आवश्यकता कभी ख़त्म नहीं होती । आप आज एक कालीन चाहते हैं, ठीक है प्राप्त करें। आप बहुत मेहनत करते हैं, एक कालीन खरीदने के लिए पैसे बचाते हैं, फिर आप उस क़ालीन को खरीदते हैं,फिर जब आप चाहते है कि एक घर हो, तो आप कालीन का आनंद नहीं ले पाते जिसके लिए आपने इतनी मेहनत की थी। फिर आप एक घर प्राप्त करते हैं, जब आपके पास एक घर है, आप एक कार रखना चाहते हैं फिर कार से, आप इच्छा करते हैं,मेरे विचार में, एक हेलीकाप्टर, या शायद एक हवाई जहाज। यह इसी तरह से हमेशा चलता रहता है और आप इतनी मेहनत करते हैं और आपको कोई संतुष्टि नहीं होती। इसी कारण, इन आधुनिक समय में, लोग बहुत अशांत हैं। आपके हृदय में कोई शांति नहीं है लेकिन अगर आपके भीतर यह लक्ष्मी-तत्व विधमान है, आप सभी भौतिक वस्तुओं से अत्यधिक संतुष्टि अनुभव करेंगे। अगर आपके पास है, बहुत अच्छा है।और यदि आपके पास नहीं है, बहुत अच्छा है।

लेकिन उसके बाद, यह महालक्ष्मी-तत्व आपके भीतर जागृत हो जाता है, कि आपकी ‘खोज’ शुरू हो जाती है और फिर वह भी बाद में जैसा आपने देखा है, क्योंकि आपने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया है। इसलिए इन भयानक भौतिकवादी लोगों की नक़ल करने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन उससे संतुष्ट होना होगा जो कुछ भी हमारे पास है और हमें अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कुछ दे कर, जो कुछ भी हो, अभावग्रस्त व्यक्ति को देकर करनी चाहिए। मैंने स्वयं अपने को देखा है, मुझे स्वयं अपने लिए कुछ भी खरीदना बहुत मुश्किल लगता है। यदि यह महंगा है, मैं सोचती हूँ कि मुझे इसे नहीं खरीदना चाहिए। एक बार मैं एक दुकान पर गयी, तो मैं एक विशेष प्रकार की साड़ी खरीदना चाहती थी, लेकिन मैंने सोचा कि यह बहुत महंगी है, मैंने इसे नहीं खरीदा। लेकिन एक सहज योगी मेरे साथ थे, वह गया और उसने इसे खरीदा और मुझे मेरे जन्मदिन पर भेंट कर दिया और बस मेरे आँसू बहने लगे, आप जानते हैं, यह बहुत अधिक था।

हमारी रामायण में भी इस तरह की कहानियाँ हैं, जहाँ श्री राम ने खट्टे बेर खाए थे। हम इसे “बेर” कहते हैं। मैं नहीं जानती कि आप भी इसे बेर कहते हैं? आ! यह इस प्रकार कहानी है। उसने श्री राम को बताया कि, वह एक दलित समाज की एक बूढ़ी औरत थी, “मैंने प्रत्येक बेर चखा है, मैंने अपने दांतों से हर एक बेर को चखा है, आप देखिए और मुझे पता है कि उनमें से कोई भी बेर खट्टा नहीं है।” भारत में, कोई भी मुंह से चखा हुआ भोजन कभी भी नहीं खाता, कोई भी भोजन उसे ‘उतिष्ठ’ , सही नहीं माना जाता है। लेकिन श्री राम ने तुरंत ही ले लिए। उन्होंने कहा, “ओह, आप कितनी अच्छी हो, आपने यह स्वाद चखने का कार्य मेरे लिए किया है।”लेकिन उनका भाई बहुत क्रोधित था, उन्हें यह पसंद नहीं आया, लक्ष्मण। श्री राम ने बेर खाये, उन्होंने कहा, “मैंने इस तरह के सुंदर बेर कभी नहीं खाए।” तो उनकी पत्नी सीता ने कहा, “मुझे भी दे दो, थोड़ा सा, मैं आपकी अर्धांगिनी हूं आपको मुझे भी देना चाहिए।” इसलिए जब श्री राम ने उन्हें दिया, तो उन्होंने खाया और उन्होंने कहा, “भला हो,यह कितना सुंदर फल है।” तो लक्ष्मण ने कहा, “मुझे भी क्यों नहीं देती?” उसने अपनी भाभी से कहा, “मुझे भी दे दो”, वह बोलीं “नहीं, क्योंकि आप बहुत गुस्से में थे।” लेकिन उन्होंने इसे लक्ष्मण को दे दिया, और लक्ष्मण ने कहा, “मैंने ऐसे सुंदर फल कभी नहीं खाए हैं ।” उस बेर में क्या था, कुछ नहीं, लेकिन उनमें उस बूढ़ी औरत की ‘देने की भावना’ थी। उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था,वह एक गरीब महिला थी, इसलिए उसने यह सब सिर्फ श्री राम को ‘देने’ के लिए किया।

इसलिए अपनी चीजों को साझा करना अत्यंत आनंद्दायक चीज़ है। उस दिन हम कुछ उपहार लाए थे, मेरा मतलब कि कुछ इतना बढ़िया नहीं था, लेकिन आप सभी ने इसका आनंद लिया और मैंने भी इसका आनंद लिया। इसी तरह ही हम सभी को जीना है, इसी तरह ही हम सभी को एक साथ चीजों को साझा करते हुए जीना है। अपने बारे में मत सोचो, दूसरों के बारे में सोचें । सोचें कि दूसरे क्या पसंद करते हैं। भारत में, गृहलक्ष्मियाँ इस विषय में बहुत अच्छी हैं। वे जानती हैं कि आपको क्या खाना पसंद है। इसलिए यदि आप उनके घर जाते हैं, तो वे तुरंत कहेंगी, “कृपया रात के भोजन के लिए यहाँ आइए।” और वे वही पकायेंगी जो मुझे पसंद है और मुझे खाने में अच्छा लगेगा। वे इसे बनाने के लिए सभी प्रयास करेंगी।परंतु  मेरे लिए ही नहीं, सभी के लिए। दूसरों के लिए खाना पकाना बहुत आनंददायक है।अतः लक्ष्मी तत्व का आप तभी आनंद लेते है जब आप इसे दूसरों के साथ साझा करते हैं। मेरे पिता एक महान आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति थे, और वे कभी भी रात में दरवाजे या खिड़कियां बंद नहीं करते थे। और एक दिन एक चोर आया और ग्रामोफोन उठा कर ले गया जो उनके पास था। तो उन्हें बहुत दुख हुआ कि उसने अब ग्रामोफोन तो ले लिया है, परन्तु रिकॉर्ड  का क्या होगा, वह ख़रीद नहीं सकता, और वह उसे कैसे बजाएगा? तो मेरी माँ ने मजाक में कहा कि, बेहतर यह है कि अखबार में खबर दो, “जो चोर हमारा ग्रामोफोन ले गया है, कृपया आकर रिकॉर्ड भी ले जाए।”

यह लक्ष्मी-तत्व का लक्षण है कि जब वह व्यक्ति कुछ दे सकता है तो वह संतुष्ट और अति प्रसन्न होता है।यदि आप एक हाथ से देते हैं तो आप दस हाथों से प्राप्त करेंगे। इसलिए हमें बाँटना सीखना होगा, जैसा है,आप दूसरों को सबसे उत्कृष्ठ वस्तु दे रहे हैं और वह है आत्मसाक्षत्कार। आप और अधिक क्या दे सकते हैं? आपने देखा होगा जब आप आत्म-साक्षात्कार देते हैं, तो आप कितनी खुशी महसूस करते हैं। सबसे महान प्रसन्नता और सबसे महान आनंद दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देने में है। मैंने लोगों को देखा है, उनके चेहरे बदल जाते हैं और जो लोग आत्मसाक्षात्कार देते हैं, उनके चेहरे भी प्रकाश से भर जाते है। हम एक नया समाज हैं, हम नए युग के लोग हैं, जहाँ हमें उच्चतर कार्यों में अपनी संतुष्टि मिलती है। कई सहज योगी हैं जो काम कर रहे हैं, आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं, लेकिन कई ऐसे भी हैं जो ऐसा नहीं करते। जब तक आप अपना आनंद दूसरों के साथ साझा नहीं करेंगे, तब तक आप प्रसन्न नहीं होंगे। मैंने उस दिन सुना, एक महिला ने मुझे बताया कि उसके पिता, माता सहज योग के विरोध में हैं। मैंने कहा, “तुम्हारा रिश्ता कैसा है?” उसने कहा, “मैं उनसे बात नहीं करती, मैं उन्हें पसंद नहीं करती, जिस तरह से वे सहज योग के विरोध में हैं”। मैंने उसे बताया, “तुम अपना मनोभाव बदलो, उनके लिए कुछ फूल ले जायो, उनके लिए कोई उपहार ले जाओ, उनसे बहुत मधुर ढंग से बात करो। क्योंकि तुम इतनी शुष्क व्यक्ति बन गयी हो, इसी कारण वे सहज योग पसंद नहीं करते है।” और यह काम कर गया, यह कार्यान्वित हो गया, वे माता-पिता अब सहज योग में हैं।

तो एक गैर-सहज योगी के प्रति एक सहज योगी की मनोवृति सहायता करने, और सहयोग करने, और सहभाजन करने की होनी चाहिए। लेकिन मुझे आपको चेतावनी देनी चाहिए कि कुछ ऐसे सहज योगी हैं जो अपनी अलग पार्टी बनाने की कोशिश करेंगे।वे बहुत सत्ता उन्मुख हैं।वे एक अलग समूह बनायेगें। यह एक खतरनाक संकेत है, यह एक कैंसर है। सब कुछ सामूहिक होना चाहिए। जो कोई भी ऐसा काम करता है,आपको ज्ञात  होना चाहिए कि वह एक भूत-बाधित  व्यक्ति है, और आपको भी नुक़सान होगा अगर आप ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करते हैं। हम सभी सामूहिक हैं, हमें एक दूसरे के बारे में सब कुछ ज्ञात होना चाहिए और हमें एक परिवार की भाँति रहना होगा, केवल रूस में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में। एक बार जब आप सभी के लिए उस तरह का प्रेम विकसित कर लेते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि आप एक महान व्यक्तित्व बन गए हैं। इसका अर्थ है एक बूंद ‘सागर’ बन जाती है। मैं एक साथ कई घंटों तक लक्ष्मी-तत्व के बारे में बता सकती हूं। नौ प्रकार की लक्ष्मी हैं, लेकिन अगली बार मैं आपको बताऊंगी। उनमें से एक गृहलक्ष्मी है, गृहिणी है, और दूसरी राजलक्ष्मी है, जो एक राजा या किसी ऐसे व्यक्ति की शक्ति है जो प्रशासक है या जो अधिकारी है। लेकिन मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप समझें कि आपने एक महानतम खजाना प्राप्त किया है जो इस विश्व में बहुत कम लोगों को प्राप्त हुआ है।अपने प्रेम से इसका पोषण करें। इसे अपनी करुणा और शांतिपूर्ण अस्तित्व के साथ पोषित करें। यदि कोई समस्या आती है, अचानक कुछ भी, तो आपको अपने भीतर शांत हो जाना चाहिए। फिर तुरंत आप पाएंगे कि समाधान आपके सामने उपस्थित  हो जाएगा। यह लक्ष्मी तत्त्व की सूक्ष्म बात है। मुझे आशा है कि आप सभी इसका विकास करेंगे और इसका आनंद लेंगे। अगले साल मेरे आने से पहले, मैं देखूंगी कि आप सभी ने, प्रत्येक व्यक्ति ने, कम से कम सौ लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है। आप के पास शक्तियां हैं, आपको शक्तियां मिली हैं, आपके पास ज्ञान है, इसे व्यर्थ न गवाएँ, हमें विश्व की रक्षा करनी है।

परमात्मा आप सभी को आशीर्वादित करें ।