Guru Puja: A Guru Should Be Humble And Wise

Campus, Cabella Ligure (Italy)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

1997-07-20 गुरु पूजा प्रवचन: एक गुरु विनम्र और बुद्धिमान होना चाहिए, Cabella, डीपी-रॉ

आज की पूजा बहुत महत्वपूर्ण है हमारे लिए । आप सभी को अपना आत्म साक्षात्कार मिल गया है, आपके पास सारा ज्ञान है जो आवश्यक है दूसरों को आत्म साक्षात्कार देने के लिए । आपको जानना चाहिए  क्या है आपके पास पहले से, यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि आप स्वयं प्रयत्‍न नहीं करते हैं और यदि आप प्रयत्‍न नहीं करते हैं दूसरों को आत्म साक्षात्कार देने का, तो सबसे पहले आपको स्वयं पर विश्वास नहीं होगा, आपके पास कोई आत्म सम्मान भी नहीं होगा। दूसरा भाग यह है कि आप प्रयत्‍न करें अन्य व्यक्तियों को चैतन्य देने का परन्तु उस व्यक्ति के साथ  लिप्त ना हों। मैंने देखा है कुछ लोग बहुत अधिक लिप्त हो जाते हैं। यदि वे एक व्यक्ति को साक्षात्कार देते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्होंने बहुत महान कार्य किया है और वे काम करना शुरू कर देते हैं उस व्यक्ति पर, उसके परिवार, उसके संबंधियों पर और ये सब । तो, अब तक जैसा कि आपने सीख लिया होगा, कि कोई  संबंधी हो सकता है, कोई एक व्यक्ति के अधिक समीप हो सकता है लेकिन आवश्यक  नहीं कि उसके पास अधिक मौका होगा आत्म साक्षात्कार का ।

एकमात्र तरीका उत्थान का सामूहिक होना है, कोई अन्य तरीका  नहीं है। अगर लोग सोचते हैं कि आश्रमों से दूर रहकर, अकेले, कहीं रहते हुए , वे कुछ अधिक प्राप्त  करेंगे, यह तरीका नहीं है सहज योग  का  । पहले लोग हिमालय जाते थे और उनमें से अधिकांश अलग हो जाते थे और केवल एक या दो व्यक्तियों को ही चुना जाता था आध्यात्मिक विकास के लिए । यहाँ यह आध्यात्मिक विकास का प्रश्न  नहीं है, यह प्रश्न है आपकी सामूहिकता के  बढ़ने का, आप में । इस प्रकार  आप एक ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो सामूहिक होता है, जो सामूहिकता का आनंद लेता है, जो सामूहिकता पर काम करता है और सामूहिकता के साथ  रहता है। ऐसा व्यक्ति नई तरह की शक्तियों का विकास करता है और ये शक्तियां ऐसी होती हैं कि वे बहुत सूक्ष्म होती हैं किन्तु  वे प्रवेश कर जाती हैं कहीं भी किसी भी अणु, परमाणु या मनुष्य में कहीं भी । और उनका प्रवेश तभी संभव है यदि आपके पास ऐसा स्वभाव हो जो सामूहिक है । पूरी तरह से सामूहिक हुए बिना आप नहीं प्राप्त कर सकते, उस ऊँचाई को , जो बहुत आवश्यक है आज सहज योग के लिए । जैसा कि आप जानते हैं समस्याएं ही समस्याएं हैं सब जगह, जैसे कि हमें लगता है कि दुनिया डूबने वाली है। 

खासकर जब मैं  अमरीका गई तो मुझे लगा कि “हे भगवान! यह तो एक नर्क  है जो  उन्होंने  यहाँ बनाया है, यह  केवल एक नर्क  है”। क्योंकि उनका कोई धर्म नहीं है, वे किसी धर्म में विश्वास नहीं करते। पूरी तरह से वे अधर्म की पूजा करते हैं और इस प्रकार  का वातावरण सब जगह फैल रहा है। पूरे विश्व  में आपको प्रतिक्रियाएं मिलती हैं अमरीका के  अधार्मिक जीवन की और लोगों को लगता है कि इसमें कुछ भी अनुचित  नहीं है। आप उन्हें जो भी बताएं  वे विश्वास नहीं करेंगे। न ही वे सोचेंगे कि इसका  कोई महत्व  है। परन्तु  वे विनाश को नहीं देखते अपने जीवन के मूल आधार से, अपने परिवार, अपने समाज  पूरा देश ही मुझे लगता है भरा हुआ है ऐसे घृणित प्रकार की अधर्मी प्रकृति से कि कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऐसे विचार उनके दिमाग में कैसे आए। और ये विचार , मुझे आपको बताने की आवश्यकता  नहीं है, आप उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं।

लेकिन अगर आपको अपने बच्चों को बचाना है तो आपको एक आदर्श गुरु बनना होगा स्वयं ही। अगर आप  केवल सहज योग की बात करते हैं और अगर आप, यह मानने का प्रयास करते हैं कि आप सहज योगी हैं, साथ ही  आप सहज योग का प्रचार करने का प्रयास करते हैं बिना  इन सभी शक्तियों को अपने भीतर जगाए , वह एक असफलता होगी। तो कैसे इन शक्तियों का विकास हो हमारे भीतर, हमें देखना चाहिए।

यह निश्चय ही मेरे लिए लज्जाजनक  है आपको बताना कि आपको अपने गुरु के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए । मुझे लगता है कि लोगों ने आपको बताया है। लेकिन स्वाभाविक रूप से, सहज तरीके से , जैसे ही आप अपना आत्म साक्षात्कार पाते हैं और उसमें बढ़ते हैं, स्वाभाविक रूप से आप विकसित करते हैं एक बहुत ही विनम्र प्रवृत्ति  । साथ ही एक प्रवृत्ति  जिसके माध्यम से आप प्राप्त करते हैं बहुत सारे गुण अपने गुरु के । अब मान लीजिए कि गुरु एक विशेष ऊँचाई पर है और यदि आप प्रयास करते हैं उसी  ऊँचाई पर जाने का, कुछ भी आपकी ओर नहीं बढ़ेगा। इसलिए आपको ऐसी जगह पर बैठना चाहिए जो गुरु से बहुत नीचे हो काफ़ी। कुछ लोग बहुत अधिक फ़ायदा उठाते हैं मेरे अच्छे स्वभाव का , मुझे कहना चाहिए। और इतने सारे लोगों ने मुझे बताया है कि आपको इन लोगों को सही करना चाहिए, वे आपसे समान स्तर पर बात करते हैं और यह सब। मैंने कहा “वे एक सबक सीखेंगे, वे एक सबक सीखेंगे” लेकिन कई बार यह काम नहीं करता है और वे बात करना शुरू कर देते हैं उसी तरीके से जैसे वे अपने दोस्त से बात कर रहे हों, या अपने बराबर वाले से। पहली  चीज़ है – पूर्ण विनम्रता। आपको एक विनम्र व्यक्ति होना होगा, अत्यंत विनम्र । अब आप उस पर जाँच जाँच करें, जब आप दूसरों से बात करते हैं, क्या आप विनम्र हैं? जब आप दूसरों के बारे में सोचते हैं, क्या आप विनम्र हैं? जब आप देखभाल करते हैं अपनी पत्नी और बच्चों की,, क्या आप विनम्र हैं? यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है हर व्यक्ति के लिए जो सोचता है कि वह एक गुरु है। विनम्रता पहली विशेषता है, या मुझे कहना चाहिए, वह सागर है जिसमें आपको कूदना चाहिए। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर आप विनम्र हैं,  माँ, तो लोग आपका अनुचित फ़ायदा  उठाएंगे। कोई भी आपका अनुचित फ़ायदा नहीं उठा सकता क्योंकि आपको एक और बात याद रखनी है, कि आप हर समय सुरक्षित हैं, संरक्षित हैं परमचैतन्य के द्वारा ।

मैं जानती हूँ कि आप जानते हैं, लेकिन कितने वास्तव में विश्वास करते हैं कि परमचैतन्य है हमारे साथ? यदि आप वास्तव में विश्वास करते हैं कि परमचैतन्य है, तो आप भयभीत नहीं होते हैं, आप चिंतित नहीं होते हैं। आप को सभी प्रकार के निरर्थक  विचारों का सामना भी नहीं करना पड़ता । लेकिन अगर आपको लगता है कि आप सुरक्षित नहीं हैं तो “क्या होगा?”, “चीज़ें कैसे होंगी?”, तब परमचैतन्य आपको अकेला छोड़ देता है। आपको पूरा नाटक  देखना है। कैसे परमचैतन्य काम करता है, यह कैसे काम करता है, आप कैसा व्यवहार कर रहे हैं। 

मान लीजिए आप उचित दशा  में नहीं हैं और आप प्रयास करते हैं बहुत अधिक दिखावा करने का ।  फ़िर क्या होता है? तब आपको इसका इनाम मिलता है , ऐसा नहीं है कि मैं कुछ करती हूँ, किन्तु  यह परमचैतन्य है जो आपको एक सबक सिखाएगा जो आपको याद रहेगा, कि आप को थोड़ा अलग होना चाहिए था , उससे, जो आप थे । आखिरकार हमें यह जानना चाहिए  कि हम सहज योग में क्यों आए हैं। शुरू करें इसकी जड़ से  हम सहज योग में आए हैं क्योंकि हम परम सत्य जानना चाहते थे। और यह  परम  सत्य अब आप को चैतन्य के माध्यम से पता चल गया है । आप जानते हैं इसे अपने चैतन्य के माध्यम से,  क्या है परम  सत्य । 

और आपको सभी कार्य उसी रूप-रेखा पर करने चाहिए, कि वह परम  सत्य, जो कुछ भी आपको अपने चैतन्य पर  अनुभव हो, आपको उसे मानना है। लेकिन दुर्भाग्य से मैंने कई लोगों को देखा है जो सोचते हैं कि उनके चैतन्य ठीक है, वे ठीक हैं, और जो कुछ भी वे प्राप्त कर रहे हैं अपने चैतन्य पर वह प्रथम श्रेणी का  (बिलकुल ठीक) है । अब उस बात को कैसे ठीक किया जाए बहुत मुश्किल है- यह अहंकार से आता है। जब आप में अहंकार होता है तो आपको कभी भी अपने  साथ कुछ अनुचित  नहीं दिखता  । और यहाँ तक कि अगर चैतन्य आपको कुछ बता रहा है  तो यह कोई और हो सकता है जो आपको कुछ कह रहा हो , क्योंकि आप  वहाँ नहीं हैं, आपका अहंकार वहाँ है, और आपका अहंकार केवल आपको बिगाड़  रहा है और आपको ऐसी चीज़ें सिखा रहा है जो सामान्यतः आप स्पष्ट रूप से देख सकते  कि “मैं कुछ अनुचित  कर रहा  हूँ, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था”। इस प्रक्रिया में, सुधार और उत्थान की, जब आप लिप्त होते हैं तब आपको देखना चाहिए, कि क्या आप सूक्ष्म हो रहे हैं या जड़ हो रहे हैं? यह सबसे अच्छा तरीका है परखने का ।

अब मैंने लोगों को देखा है जो आंकलन करते रहते हैं इन सभी छोटी-छोटी चीज़ों का  चैतन्य के आधार पर, जैसे कि चैतन्य ठीक है या नहीं इस पेड़ में, या इन फूलों पर या इस भूमि पर, इन सभी भौतिक चीज़ों में वे चैतन्य देखना चाहते हैं। लेकिन किस लिए आप चैतन्य देख रहे हैं? आप चैतन्य देख रहे हैं किसी प्रकार के भौतिक लाभ के लिए  । आपको लगता है कि अगर आप चैतन्य की  जाँच करते हैं और चैतन्य ठीक हैं, तो आप काफ़ी हद तक सुरक्षित हैं। हम  इसे नहीं खोएंगे, हम  उसे नहीं खोएंगे। यह सच नहीं है। क्योंकि चैतन्य, जाँचने के लिए नहीं है इन सभी सांसारिक  चीज़ों और सांसारिक मामलों को । यह पूर्णतया सस्ता करना है चैतन्य को । आपको उन्हें सस्ता नहीं करना चाहिए, क्योंकि चैतन्य ऐसी चीज़ों   का संकेत  दे सकते हैं जो हानिकारक हैं आपके विकास के लिए, बहुत अधिक ।

एक बार मैं चाहती थी कि कोई कहीं जाए और फ़िर  उसने कहा, “माँ मैं नहीं गया” मैंने कहा “क्यों?” “क्योंकि मैंने देखा कि चैतन्य बहुत खराब थे”। मैंने कहा “यही कारण था कि मैंने तुम्हें जाने को कहा। अगर चैतन्य अच्छे होते , तो क्या उपयोग होता तुम्हारे  वहाँ जाने का?” मैंने कहा “मेरा तुम्हे   वहाँ भेजने का यही कारण था ताकि तुम  सहायता कर सको, लेकिन इससे पहले ही तुमने अपने आप को परखा, अपने चैतन्य को परखा और  फ़िर तुम जाना नहीं चाहते थे”, तो क्या होता है, हम एक आसान, आरामदायक जीवन चाहते हैं और हमारी सभी समस्याएं हल होनी चाहिए सहज योग द्वारा अन्यथा हमें लगता है कि सहज योग का कोई उपयोग  नहीं है। हमारी जो भी इच्छा है उसे अवश्य पूरा होना चाहिए। तो, अब इच्छाएं अधिकतर व्यक्तिगत होती हैं, मेरा बच्चा ठीक नहीं है, इसलिए बच्चे को ठीक होना चाहिए। मेरे पति दुर्व्यवहार कर रहे हैं, इसलिए पति ठीक होना चाहिए, या मेरे पास कोई घर नहीं है, मुझे घर मिलना चाहिए। देखिए,  कैसे हम चलाते हैं अपने मन को । अभी भी एक बहुत ही उपभोक्ता समाज पर, जैसा वे इसे कहते हैं। 

हर समय हम सोच रहे हैं अब, मेरे पास अब एक बेटा होना चाहिए एक लड़की के बजाय, और  फ़िर आपको  एक बेटा होता है और आप  उस के लिए सहज योग को दोष देंगे । जो कुछ भी कार्य  आपकी इच्छा के अनुसार नहीं होता है, तो आपको लगता है कि सहज योग के कारण यह हानि हुई है और आप पीड़ित हैं सहज योग की वजह से, या यह विश्वास, सहज योग में थोड़ा हिल  जाता है, या हम कह सकते हैं एक तरह से, यह इतना  गहरा नहीं है। लेकिन अगर आप सहज योग में गहराई से अंतर्निहित हैं तो क्या होता है? कुछ भी हो जाए, मैं सहज योगी ही रहूँगा।

मान लीजिए कि किसी की मृत्यु हो जाती है। सामान्य तौर पर सहज योग में मुश्किल होता है लोगों के लिए मरना भी, मुझे  आपको बताना होगा ।  यहाँ तक कि अगर वे मरना चाहते हैं तो भी वे मर नहीं सकते। यह परमचैतन्य है जो आपके लिए निर्णय लेता है। लेकिन मान लीजिए कि आप इस तरह ठान लेते हैं,  फ़िर भी आपको पता होना चाहिए कि हो सकता है वह इच्छा पूरी ना हो , और यदि वह पूरी नहीं होती है तो, आप व्याकुलता अनुभव करते हैं और आप सोचते हैं, “क्या हुआ?” लेकिन आपकी इच्छा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की इच्छा नहीं है। जबकि परमचैतन्य इच्छा है सर्वशक्तिमान ईश्वर की ।

अब उदाहरण के लिए, मैं  अमरीका गई, इसे इस तरह लें, और  अमरीका ने मुझ पर हमला किया, नकारात्मकता ने परेशान किया, इतने सारे दिनों से मैं पीड़ित  हूँ, कहने के लिए, और मुझे दर्द हुआ और सभी प्रकार की चीज़ें हुईं । लेकिन मुझे ऐसा करना ही था क्योंकि अब अमरीकी  सहज योगियों को एहसास होगा कि कितनी कीमत चुकानी पड़ती है अमरीकियों के इस मूर्ख  सिर को उठाने के लिए । वे कितने मूर्ख  हैं और वे कितने बुद्धिहीन  हैं, जो आसक्त हैं उन लोगों से जो पैसे ले रहे हैं। 

इतने सारे लोग मेरे पास आए और मुझसे कहा ” माँ अगर आप यह कहना शुरू कर दें  कि, ‘मैं यह 300 डॉलर में दे सकती हूँ। तो हमें  हजारों और हजारों शिष्य मिल जाएंगे आपके।’, ” मैंने कहा, “वे मेरे शिष्य नहीं होंगे। अगर वे पैसे के लिए आते हैं, यह सोचकर कि क्योंकि मैं पैसे ले रही  हूँ, इसलिए यह योग्य है या कुछ और , इसका मतलब है कि वे बिल्कुल मूर्ख हैं।”  सहज योग, आप इसे पैसे से नहीं पा सकते। यह पहला सिद्धांत है जिसे वे नहीं समझते हैं, उनमें से अधिकांश, उनमें से अधिकांश यह नहीं समझते हैं कि आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं बिना किसी पैसे का भुगतान किए ।

कुछ गुजरात के अमीर लोग थे न्यू जर्सी में और उन्होंने सवाल पूछे सहज योगियों से कि, “यह कैसे संभव है कि यह इतनी आसानी से मिल सकता  है? यह संभव नहीं है क्योंकि यह एक बहुत ही कठिन  बात है। सभी शास्त्रों ने कहा है, सभी ने कहा है, बहुत कठिन है अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना, ठीक है, यदि हाँ, तो आप इसे इतनी आसानी से कैसे दे रहे हैं, क्यों?”, किसी को नहीं पता था कि इन लोगों को कैसे जवाब देना है। आपको इस तरह से कहना चाहिए था, “ठीक है, यह कठिन  है, यह बहुत कठिन  है, और आप सब को एक साथ नहीं दे सकते, सच है। लेकिन अगर कोई ऐसा कर रहा है, तो आपको इसके बारे में सोचना चाहिए , कैसे कोई ऐसा कर रहा है?” तो  इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण  प्रश्न हैं और  फ़िर भी यदि वे पूछते  रहते हैं, आपको वास्तव में उन्हें बताना चाहिए एक अत्यन्त विनम्र तरीके से, “महोदय, आप  को योग्य भी होना चाहिए”।

तो वे उन लोगों के पीछे भागेंगे, जो  केवल उनसे पैसा बना रहे हैं, उनको मूर्ख बना रहे हैं और वे अहंकार के साथ कहते हैं,, “हमारे 3 गुरु हैं” कोई कहता है “हमारे 7 गुरु हैं” और मैं सोचती हूँ कि उनकी हालत क्या होगी। तो, जो लोग अत्यधिक मूर्ख हैं, संस्कृत में उन्हें “मूढ़” कहा जाता है, लोग जिनके पास  बुद्धि नहीं होती, उन्हें आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति नहीं हो सकती। तो उन्हें छोड़ दीजिए। यदि वे आपसे बहस कर रहे  हैं, तो आप बस उन्हें छोड़ दीजिए । उनका अधिकार नहीं है आपसे बहस करना का । उनका अधिकार आत्मसाक्षात्कार पाने का  है, लेकिन उनका अधिकार नहीं है आपसे बहस करने का, आपसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न और बुद्धिहीन प्रश्न पूछने का । लेकिन आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि उस विनम्रता के साथ आपको अपनी गरिमा अविकल रखनी चाहिए क्योंकि आप एक गुरु हैं। एक बार जब आप जानते हैं कि आप एक गुरु हैं तो एक चीज़ होनी चाहिए कि आप एक मसखरे  की तरह व्यवहार नहीं करेंगे हर समय । आपका व्यवहार गरिमामय  रहेगा। साथ ही यह बहुत ही हँसमुख  चेहरा या मधुर  व्यक्तित्व होगा। यह एक कष्टप्रद प्रकार का नहीं होगा। आपका व्यक्तित्व स्वयं ही यह लक्षित करेगा कि आपमें कुछ विशेष है।

अब कैसे उस तरह के व्यक्तित्व को विकसित किया जाए? सबसे बड़ी समस्या पश्चिम में अहंकार है और सबसे बड़ी समस्या पूर्व में प्रति अहंकार है। अब यह अहंकार का मामला  मुझे नहीं पता कि यह कहाँ से आया है। जीवन के सभी क्षेत्रों में वे दिखाते हैं कि वे कितने अहंकारी हैं। उदाहरण के लिए, मैं  अमरीका गई थी और मैं आश्चर्यचकित थी कि  वहाँ एक वंशीय भेदभाव की समस्या है और अश्वेत  लोगों के साथ एक अलग तरीके से व्यवहार किया जाता है और श्वेत लोगों के साथ एक अलग तरीके से । मेरा मतलब है, रंग ईश्वर  द्वारा दिया जाता है, और किसी को काला और गोरा होना ही होता है। अगर हर कोई एक जैसा दिखे तो यह एक सैन्य दल  की तरह दिखेगा। कुछ विविधता  होनी चाहिए। चेहरे में कुछ बदलाव होना चाहिए और अभिव्यक्ति में भी। प्रत्येक व्यक्ति को अधिक अच्छे  या अलग भाव रखने वाला होना चाहिए अन्यथा आप ऊब जाएंगे ऐसी दुनिया से जहाँ हर कोई एक सा दिखता है, बस एक जैसा । लेकिन  वहाँ इतना वंशीय भेदभाव है कि मैं अचंभित  थी कि कैसे इसने मनुष्य के मन  में कार्य किया है।

तो  एक गुरु के रूप में आपको पूर्ण घृणा विकसित करनी चाहिए वंशीय भेदभाव से, पूर्ण घृणा । बहुत आसान है यह समझना कि कोई भी व्यक्ति जिसका गोरा रंग होता है, वह क्रूरतम आदमी या क्रूरतम औरत हो सकती है, या क्रूरतम  माँ भी हो सकती है और  वो जो अश्वेत है बहुत दयालु और उदार हो सकता है। यह रंग के हिसाब से नहीं होता है। स्वभाव रंग के हिसाब से नहीं होता है। लेकिन क्योंकि अश्वेत  लोगों के साथ इतना बुरा बर्ताव किया गया है कि वे प्रतिक्रिया करते हैं और वे प्रतिक्रिया करते हैं, स्वाभाविक रूप से, कभी-कभी इस तरह से, जो कि बहुत असंस्कृत  और बहुत क्रूर होती है। लेकिन इस प्रकार का ध्यान, इस प्रकार का एक, हम कह सकते हैं, अनुचित प्रकार कि प्रवृत्ति मनुष्यों के प्रति,  यहाँ तक कि पशुओं के प्रति भी वे इसे सहन नहीं करेंगे। तो मनुष्य के प्रति, ऐसी प्रवृत्ति रखना स्वयं यह दर्शाता है कि आप सहज योग के योग्य बिल्कुल नहीं हैं। तो आप में से कोई भी , जिसकी ऐसी भावना है कि कोई अश्वेत और कोई श्वेत है, गुरु नहीं हो सकता सहज योग में ।

फ़िर  भारत में जातिप्रथा है। समान रूप से बुरी और भयानक। इस में  कोई अर्थ नहीं है, कुछ  भी आधार नहीं है। लेकिन भारत में हमारे पास ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि कुछ जातियाँ  उच्च हैं और कुछ जातियाँ  निम्न हैं। हर जाति के लोग हर संभव बुरा कार्य कर सकते हैं, कोई सीमा नहीं है उनके लिए और हर निम्न  जाति बहुत अच्छी हो सकती है। हमारे यहाँ कई महान कवि और सूफी हुए हैं सबसे निम्न जाति में भारत में । ये जातियाँ  मानव  निर्मित हैं, आप जानते हैं कि मानव निर्मित कपड़ा हमारे लिए योग्य नहीं है, और ये सभी मानव  निर्मित विचार हमारे योग्य  नहीं होंगे, और यह हमें ले जाएंगे एक महान, मुझे नहीं पता यदि यह विचारशीलता है, परन्तु मैं कहूँगी एक पूर्ण विनाश की ओर। क्योंकि द्वेष, द्वेष को जन्म देता है, और यह बढ़ता और बढ़ता रहता है।  यदि आप छुटकारा नहीं पा सकते अपनी घृणा से तो मैं कहूँगी कि आप सहज योगी नहीं हैं। ये सभी झूठी मर्यादाएं  हैं, आप एक श्वेत  परिवार में पैदा हुए थे, इसलिए आप गोरे हैं। आप एक ईसाई परिवार में पैदा हुए थे इसलिए आप एक ईसाई हैं। आप एक यहूदी परिवार में पैदा हुए थे इसी  कारण आप एक यहूदी हैं। यह सब  केवल इसलिए है क्योंकि  आप उस  में पैदा हुए थे। लेकिन क्या इसका मतलब है कि आप उच्च या निम्न हैं ? सभी समस्याएं विश्व की आज, यदि आप देखें श्रेष्ठता के निरर्थक  विचारों के प्रति मानवीय लगाव के कारण हैं। केवल सामूहिक जीवन के माध्यम से ही यह बदलेगा। उदाहरण के लिए, मैं कहूँगी कि एक आश्रम में हमारे पास सभी रंग के लोगों को एक साथ रहना चाहिए , समान अधिकारों के साथ, समान समझ और प्रेम और स्नेह के साथ । अगर ऐसा नहीं है तो कोई लाभ नहीं है इसे आश्रम कहने का ।

एक बार उन्होंने मुझसे पूछा, माँ, क्या आप हार्लेम में आकर प्रवचन देंगी? मैंने कहा “क्यों नहीं?” तो कुछ सहज योगियों ने कहा “हार्लेम? माँ क्या आप जानती  हैं कि हार्लेम क्या है? मैंने कहा “मुझे पता है,  वहाँ कोई बुराई  नहीं है।” उन्होंने कहा, “आप जानती हैं  वहाँ अश्वेत  लोग हैं और” मैंने कहा, “मैं भी अश्वेत   हूँ।”, आप मुझे अश्वेत  कह सकते हैं या आप मुझे श्वेत  कह सकते हैं। लेकिन प्रेम  ऐसी चीज़ है, प्रेम  ऐसी चीज़ है, जो स्वच्छ कर देता है इन सभी मूर्खतापूर्ण  विचारों को, जो हमें दूसरे लोगों के प्रति होते हैं, । किसी कि पहचान अश्वेत और श्वेत  रूप में करना ये दर्शाता है कि आपके पास आँखें नहीं है देखने के लिए । कोई भी व्यक्ति जिसमें गहनता है, प्रेमपूर्ण हृदय वाला कोई भी व्यक्ति इन बाह्य  चीज़ों को नहीं देख सकता, नहीं देख सकता।

आज एक ऐसा दिन है  जहाँ हम उत्सव मना रहे हैं गुरुओं की महानता का । अब सभी गुरुओं को देखिए, वे कैसे थे, कैसे वे व्यवहार करते थे। हमारे पास कई हैं भारत में  और कई अन्य हैं, कई सूफ़ी हैं दूसरे देशों में । इन सूफियों या इन संतों ने, जो हमारे पास हैं, कभी विश्वास नहीं किया किसी जाति प्रथा में । कभी विश्वास नहीं किया काले और गोरे में । ईसा मसीह, उन्होंने कभी काले और गोरे में विश्वास नहीं किया। बुद्ध ने कभी विश्वास नहीं किया काले और गोरे में । किसी ने भी विश्वास नहीं किया किसी तरह के मानव निर्मित विचारों पर । ये सभी मनुष्य द्वारा बनाए गए विचार हैं जिन्हें हमने स्वीकार कर लिया है और  यहाँ तक कि आत्मसाक्षात्कार के बाद भी हम प्रयास करते हैं उनके साथ आगे बढ़ने का । अब बात कर के हमें इससे छुटकारा नहीं मिलता, लेकिन, कार्य कर के  हम कर सकते हैं। बस देखिए, कैसे हम ये मूर्खतापूर्ण विचार अपने अंदर कार्यान्वित करते हैं, और कैसे हम उनसे छुटकारा पा सकते हैं। बहुत सरल है, ध्यान में आप बैठ जाइए और देखिए कितने लोगों को आप प्रेम  करते हैं, और क्यों आप उन्हें प्रेम  करते हैं। दया से नहीं, लेकिन केवल प्रेम के साथ, कितनी  परवाह करते हैं आप दूसरों की । मैंने कुछ बहुत सुंदर उदाहरण देखे हैं इसके लेकिन फ़िर भी मैं यह अवश्य कहूँगी कि कुछ निश्चित विचार हैं जिन्हें पूरी तरह से निकाल देना है, बहुत महत्वपूर्ण है प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो गुरु है सहजयोग में । अर्थात  उसे साफ दिल वाला, खुले दिल वाला, प्यार करने वाले दिल वाला होना होगा। उसके हृदय को  परमचैतन्य की धुन बजानी चाहिए। अगर उसका ह्रदय इन सभी मानव निर्मित विचारों से भरा है, तो मैं नहीं जानती कि क्या होगा।  यहाँ तक कि जब वे एक ह्रदय  का प्रतिरोपण (transplant)  करते हैं, वे, मनुष्य द्वारा निर्मित से नहीं कर सकते, उन्हें एक असली, प्राकृतिक (ह्रदय ) का उपयोग करना पड़ता है। तो आप कल्पना कर सकते हैं जब आप इन सभी अजीब विचारों, को लेने का प्रयास करते हैं, ये बस विभाजनकारी हैं ये आपको कभी सामूहिकता नहीं देंगे। इसलिए आत्मनिरीक्षण करना होगा। क्या हम एक हैं या हम एक दूसरे का आंकलन कर रहे हैं? अब आंकलन भी  काफ़ी अधिक है। अब यह सब तभी देखा जा सकता है जब आप साथ रहते हैं। अन्यथा आपको कैसे पता चलेगा? जब आप एक साथ रहना शुरु करते हैं तो आप को पता लगना शुरु होता है आप में क्या कमी है। वहाँ क्या नहीं है। वहाँ क्या होना चाहिए। इतना शांतिपूर्ण होता है प्रेम से भरे ह्रदय  का होना, क्योंकि हर हरकत उस हृदय की इतना अधिक आनंद देती है, इतना अधिक आनंद देती है।

श्री राम की एक कथा है कि उन्होंने बेर खाये, एक तरह का फल,  जिन्हें पहले एक बूढ़ी औरत ने चखा था, ऐसे प्यार से, । क्या दर्शाता है? यह दिखाता है  कि श्री राम जैसा व्यक्ति, जो राजा थे सर्वोच्च वंशागति  के, और यह बूढ़ी औरत जो  केवल  एक सबसे निम्न  जाति की थी, उन्हें फल देती है ऐसे प्यार से और जब वे उन्हें खाते हैं वे उनकी प्रशंसा  करने लगते हैं। तो उनकी पत्नी कहती है “कुछ मुझे भी दीजिए ” ,वह कहते हैं, “ठीक है।” लेकिन उनके भाई जो अभी भी, मुझे लगता है, सहज योग में आधे उतरे हैं, तो वह पसंद नहीं करते। वह पसंद नहीं करते हैं और वह क्रोधित  हो जाते हैं।  फ़िर वह खाती हैं  और वह कहती है “देवर जी, यह अद्भुत फल हैं , मुझे कहना होगा”, वह कहते हैं “ठीक है मुझे कुछ दीजिए “। लेकिन वह कहते हैं “अब मैं तुम्हें कुछ क्यों दूं? पहले तुम बहुत क्रोधित  हो जाते हो, तो मैं तुम्हें ये फल खाने के लिए क्यों दूं?” कहानी दर्शाती है कि आपके व्यक्तित्व के स्तर को एक गुरु के रूप में परखा जाता है , आपके स्वच्छ हृदय से, आपके प्यार भरे हृदय से, आपके उच्चतम उल्लेखनीय व्यक्तित्व से । व्यक्तित्व में ऐसा कुछ नहीं है जिसे कृत्रिम रूप से निर्मित किया  जाए। यह कृत्रिम नहीं है। यह स्वाभाविक है, पूर्णतः स्वाभाविक है। जो भी आप करें , वह स्वाभाविक होना चाहिए। तो यह कृत्रिमता, कुछ विशेष तरीके से बात करने की  या एक साथ रहने की, समस्याएं पैदा करती है। उदाहरण के लिए, अमरीका में हमारा एक आश्रम था, न्यूयॉर्क में और वहाँ एक महिला थीं जो बहुत सख्त थीं , सब कुछ उत्तम  होना चाहिए, यह  यहाँ होना चाहिए, चम्मच वहाँ होने चाहिएं , कांटे यहाँ होने चाहिएं और हर तरह की  चीज़ें । और उसने कई लोगों को दुखी किया। महत्वपूर्ण नहीं है, ये सांस्कृतिक , हम कह सकते हैं वर्जनाएं, महत्वपूर्ण नहीं हैं सहज योग में । क्योंकि अब आप गुरु बन गए हैं । एक गुरु, वह कहीं भी ठहर सकता है, कहीं भी रह सकता है, कुछ भी खा सकता है कभी भी । ऐसी स्थिति होनी चाहिए। लेकिन मैंने देखा है सहज योग में भी कई ऐसे हैं जो काफ़ी उत्सुक रहते हैं खाना खाने के लिए जैसे ही उसे परोसा जाता है । एक बार ऐसा हुआ, मैं  वहाँ थी, उन्होंने खाना परोसा था, और बस  उन्होंने प्लेटें हटाना शुरू कर दिया। मैंने कहा “क्या बात है? मुझे खाना है।” “ओह,  आपने नहीं खाया है माँ?” “नहीं, मैंने अभी तक इसे छुआ भी नहीं है।” तो यह एक तरह की, पहली सबसे निम्न प्रकार की इच्छा, हमें कहना चाहिए, भूख है। अब एक गुरु परेशान नहीं होता, जो कुछ भी आप देते हैं ठीक है। आप जो कुछ भी नहीं देना चाहते हैं, ठीक है।  यहाँ तक कि अगर आप नहीं देते  हैं, ठीक है। लेकिन आप  को उसका विकास करना होगा अपने अहंकार को मारकर । लोग बहुत अपमानित अनुभव करते हैं अगर आप, उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के थोड़ी बाद परोसते हैं । यह सभी प्रकार  की अजीब  बातें मैंने सहज योग में देखी हैं। इसके विपरीत यह एक प्रकार की सबसे निम्न, मुझे कहना चाहिए, इच्छा है, आपकी आवश्यकताओं का बहुत अधिक ध्यान  नहीं रखना चाहिए यदि आप एक असली गुरु बनना चाहते हैं ।

निश्चित रूप से कई समस्याएं हल हो जाती हैं जैसे मैंने देखा है अब तक कि वे मादक पदार्थ (ड्रग्स) नहीं लेते हैं, और मदिरापान नहीं करते हैं  और ऐसी सभी  चीज़ें । यह एक ऐसा आशीर्वाद है क्योंकि अगर मुझे उस स्तर से शुरू करना पड़ता  तो मुझे नहीं पता कि मुझे कितना गहरा जाना होता,  जहाँ से मैं आपको बाहर निकालती । लेकिन यह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी बात है, यह  काफ़ी अच्छी बात है लेकिन फ़िर भी, इससे एक सुंदर जीवन बनाने के लिए, जो हर किसी का ध्यान आकर्षित करेगा। आप कैसे बात करते हैं, आप कैसे व्यवहार करते हैं, आप कैसे प्रेम  करते हैं। तो  फ़िर से, प्रत्येक को कहना है कि गुरु पद केवल प्रेम  से आता है जो आप के पास है। जैसे वे लेंगे, कहिए दस लोगों को, किसी काम के लिए, मान लीजिए  एक नाटक के लिए । और वे इसे केवल किसी एक विशेष देश या किसी एक विशेष समूह से लेते हैं। तो फ़िर कोई आनन्द  नहीं है, कोई आनन्द  नहीं है। उदाहरण के लिए, उनके पास एक संगीत समूह होगा, जो एक विशेष जाति से हो सकता है या एक धर्म से हो सकता है, हो सकता है, आप कह सकते हैं एक स्कूल से या किसी से भी । तो इससे पता चलता है कि आप अभी भी  वहाँ नहीं हैं, एक गुरु के रूप में आपको अच्छी लगनी चाहिए, हर तरह की संस्कृति, हर तरह की सुंदरता और उसे हमारे दैनिक जीवन में लाना चाहिए । आपको किसी को भी नीची नज़र से नहीं देखना चाहिए उनके रंग के लिए, उनकी जाति के लिए, उनकी सामाजिक स्थिति के लिए, वर्ग चेतना । यह सब दिखाया गया है, इन सभी गुरुओं,  संतों के जीवन में जो हुए थे । तुकाराम ने कहा, “हे परमात्मा, धन्यवाद प्रभु आपने मुझे अनुसूचित जाति का बनाया “। वह नहीं थे, लेकिन उन्होंने  केवल ऐसा कहा। हम सभी को हर समय इस बात के प्रति सचेत नहीं रहना चाहिए कि हमारा जन्म क्या रहा है, हमारा व्यक्तित्व कैसा रहा है या हमारी शुरुआत क्या रही है। किसी को पता भी नहीं लगना चाहिए यहाँ तक कि, कि कौन संत है और कौन नहीं।  यहाँ तक कि लोगों को गर्व होता है कि वे संत हैं।

मैं आश्चर्यचकित थी अमरीका में भी, बहुत अधिक, कि रूसी जो  वहाँ गए हैं, वे बहुत अलग किस्म के लोग हैं। वे मेरी ओर अपनी आंखें नहीं उठाते थे, अपनी आंखें नहीं उठाते थे, और बहुत गहरे, बहुत, बहुत गहरे। चैतन्य बहुत गहरे थे। इसका कारण है मुझे लगता है, कि वे साम्यवाद के दौरान दबाए गए हैं शायद, हो सकता है । और अब वे  अमरीका आए हैं जहाँ उन्होंने देखा तथाकथित स्वतंत्रता को और यह क्या निरर्थक चीज़ें कर रही है। इसलिए, इन दो चरम सीमाओं को जानते हुए, मुझे लगता है कि वे बहुत गहरे चले गए हैं अपने ही अस्तित्व में । और उनके पास ऐसी ताकत है और ऐसी एकता है उनके बीच । मैं आश्चर्यचकित थी कि मैं उनसे पहले कभी नहीं मिली । वे रूस से नहीं आए थे, केवल वे वहाँ थे। तो ऐसा क्या है जिसने उन्हें इस तरह रखा है, कि कोई धर्म नहीं था उनके दिमाग में । उनका कोई धर्म नहीं था। उनके लिए हर धर्म एक जैसा  है और उनके पास कोई धर्म नहीं था पालन करने के लिए । इसलिए एक गुरु किसी धर्म से संबंधित नहीं हो सकता क्योंकि ये धर्म भी मानव  निर्मित हैं। उन्होंने इस तरह की समस्या पैदा की है सब ओर और वे सभी आपस में लड़ रहे हैं। वे दिव्य कैसे हो सकते हैं? तो आपको अन्तर्ग्रस्त नहीं होना है किसी प्रकार के धार्मिक झुकाव में । मैंने देखा है, मैंने इसे देखा है, कि एक सहज योगी कहिए, अगर वह एक ईसाई है तो झुकाव ऐसा होगा कि वह एक ईसाई है, आप इसे देख सकते हैं। यदि वह एक यहूदी है, तो आप इसे पहचान सकते हैं। तो सहज योग में आने का क्या लाभ ? उनका ध्यान, अगर यह अंदर जाता है, उन्हें पता चल जाएगा। आपको स्वयं का विश्लेषण करना होगा, यह देखने के लिए कि आपके साथ क्या अनुचित है और ऐसा क्यों है कि आप बहुत सफल नहीं हैं एक गुरु के रूप में ।

गुरु की सफलता है, वह समय की परवाह नहीं करता है। हर समय पवित्र समय है। क्योंकि वह परेशान नहीं होता अगर कोई  देर से आता है, या जल्दी आता है। वह दास नहीं होता घड़ियों और समय का । यह भी मनुष्य द्वारा बनाये गए हैं।  वहाँ कोई घड़ियाँ थी मुझे लगता है, 300 साल पहले । और कोई भी इतना अतिसावधान नहीं था समय के बारे में । तो पहली बात, वह समय से परे है, “कालातीत”। इसके बाद वह “गुणातीत” भी है। “गुणातीत” का अर्थ है कि वह बाईं ओर से संबंधित नहीं है या दाईं ओर से या मध्य से । वह इन तीनों से परे है, इन गुणों से परे,  जहाँ वह खड़े होकर सब कुछ देखता है दिव्य प्रकाश में, सब कुछ। अगर उसके साथ कुछ अच्छा होता है तो वह कहता है कि दिव्य प्रकाश ने ऐसा किया है, अगर उसके  साथ कुछ बुरा होता है तो वह कहता है  कि दिव्य प्रकाश इस तरह से चाहता था। सब कुछ वह छोड़ देता है दिव्य प्रकाश पर । वह गुणों से परे हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति है जो दाईं ओर है, अहंकारी । तो वह कहना शुरू कर देगा “आह यह कैसे है? मैं यह चाहता था, यह काम नहीं हुआ और कैसे?” वह चुनौती देगा। दूसरा रोना शुरू कर देगा बाईं तरफ वाला,  कि “मुझे बहुत दुख  है कि मेरे साथ ऐसा हुआ यह नहीं होना चाहिए था, और सब” या मध्य में भी, वह सोच सकता है कि “ओह, मेरे चैतन्य कितने दूर हैं, मैं कैसे नहीं जान सका और यह सब?” लेकिन जो व्यक्ति असली गुरु है, वह इसे देखता है नाटक की तरह,  केवल साक्षी कि तरह एक नाटक के  । ऐसा हुआ है, ऐसा होना था इसलिए ऐसा हुआ है। अब हम इससे क्या पाते हैं? हमें कुछ मिलता है, एक सबक, कि यह ठीक नहीं था या यह अनुचित  था। बस इतना ही। उस पल के लिए ही, अपने सिर में मंथन करते रहने के लिए नहीं। बस यह ही है जो प्राप्त होता  है और वह किसी और चीज़ के बारे में चिंतित नहीं होता। तो वह अपने गुणों से आगे चला जाता है, गुणों से परे, वह रहता है। वह कहीं भी खाता है, कहीं भी सोता है, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह कहाँ  रहता है, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह कार से जाता है या वह बैलगाड़ी से जाता है। उसे अनुभव  नहीं होता कि उसे सम्मानित नहीं किया जा रहा है अगर वे उसे कुछ ही फूलों की माला देते हैं, वह परेशान नहीं होता। क्योंकि कुछ भी बढ़ा नहीं सकता उसके व्यक्तित्व को । कुछ नहीं। आप उन्हें कुछ साधारण सा देते हैं, यह ठीक है। या  उसी प्रकार अगर आप नहीं देते हैं यह ठीक है। ऐसा नहीं है कि वह स्वयं को आपकी आंखों से परखता है, परन्तु  वह स्वयं को अपनी आंखों से परखता है। और वह स्वयं देखता है स्वयं का आनंद लेने की खुशी ।  क्या है किसी भी चीज़ के बारे में इतना  अतिसावधान होने के लिए? इतना महान क्या है किसी चीज़ के पीछे पड़ने में । अपने समय से हर काम होता है, और अगर यह नहीं होता है तो नहीं होता। इससे क्या फर्क पड़ता है? बस इसके बारे में सोचिए ।

सहज योग में भी एक गुरु को बन्धनकारी शक्ति वाला होना  चाहिए। दो प्रकार के लोगों को मैंने देखा है, जो संबंधों को तोड़ते रहते हैं। यह उनके लिए बहुत आसान है, वे शिकायत करते रहते हैं। लेकिन कुछ और लोग भी हैं, जिनके पास लोगों को एक साथ जोड़ने की शक्ति  होती है, इस तरह से, इतने प्यारे तरीके से कि लोगों को एक साथ करीब लाया जाता है। ऐसा नहीं है कि उन्हें क्षमा  करना है । यह अपने आप कार्य करता है। बस ऐसे ही कार्य करता है, और लोग ऐसे आदमी से जुड़ते जाते हैं।

मैं आश्चर्यचकित  थी कि  अमरीका में बहुत कम सहज योगी थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने पचास हज़ार डॉलर खर्च किए, और उन्हें 50 सहज योगी मिले।  एक हज़ार एक सहज योगी के लिए अमरीका में  तो एक बहुत बुरी हालत । लेकिन  फ़िर भी, आप देखिए , कि हमें उनके लिए आशा करनी होगी क्योंकि बहुत सारे साधक हैं, और खोज के जंगल में खो गए हैं। लेकिन, मैंने सोचा कि हो सकता है यह एक चक्र है। उन्हें इस मूर्खता के दायरे से गुज़रना होगा और  फ़िर निश्चित रूप से वे इस  तथ्य को देखेंगे। और ऐसा हुआ। लगभग 4,000 लोग थे मेरे भाषण के लिए, जो वहाँ कभी नहीं हुआ उस देश में । किसी को भी इतने सारे श्रोता नहीं मिले हैं उन्होंने कहा । लेकिन  फ़िर भी ज़्यादा नहीं आए, लेकिन उन्हें उनका आत्मसाक्षात्कार मिल गया। तो मुझे लगता है कि धीरे-धीरे, यहाँ तक कि  अमरीका में भी यह बढ़ना शुरू हो सकता है। और सहज योगियों को न केवल उनके घरों के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए, और  जहाँ वे रहते हैं और यह सब, परन्तु  पूरा ज़ोर लगाकर जाना चाहिए, उन तक। मैं कहूँगी कि कुछ सहज योगी जो वहाँ जाने का खर्च उठा सकते हैं, उन्हें  अमरीका जाना चाहिए और इस बाहर के काम को कार्यान्वित करना चाहिए। हो सकता है कि यदि बाहर से लोग आते हैं और सहज योग के बारे में बात करते हैं तो वे प्रभावित हो सकते हैं।

वहाँ इतने सारे झूठे गुरु हैं कि आप उन्हें गिन नहीं सकते। और उन्होंने उन्हें स्वीकार कर लिया है। यह बहुत आश्चर्य की बात है। हालांकि उन्होंने कष्ट झेला है, उन्होंने धन और सब कुछ खो दिया है,  फ़िर भी उन्होंने स्वीकार किया है, “आखिरकार वह हमारे गुरु हैं”। तो वहाँ मूल रूप से कुछ अनुचित  है उनके दिमाग के साथ, जो वे समझ नहीं पाते कि क्या अपेक्षा की जानी चाहिए। मैंने एक किताब लिखी है, हो सकता है  यह उन तक पहुँचे , लेकिन हर हालत में आप सभी लिख सकते हैं अपने अनुभवों और चीज़ों को लिख सकते हैं और इसे प्रकाशित कर सकते हैं। हो सकता है  यह उन्हें उनकी आँखें खोलने में सहायता कर सके । कुछ भी लिखते समय आपको याद रखना होगा कि यह आपके  सहज योग के, गुण को दर्शाए । आप कैसे हैं। उसमें, किसी को यह अनुभव नहीं होना चाहिए कि आप उन्हें नीचा दिखा रहे हैं या कुछ ऐसी बातें कहने का प्रयास कर रहे हैं जो उन्हें चोट  पहुंचाएंगी, बल्कि इसे इस तरह से कहें कि वह उन्हें सुधारे, और उनकी सहायता करे । एक गुरु के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उसे अपने बारे में कोई झूठे विचार नहीं होने चाहिए। वह एक गरीब परिवार से हो सकता है, वह एक अमीर परिवार से हो सकता है, जो कुछ भी है उसे उस के प्रति सचेत नहीं होना चाहिए क्योंकि एक बार आप ऐसे बन जाते हैं। आप देखिए , कबीर को देखिए , वह  केवल बुनकर थे। त्रैदास को देखिए। वह  केवल एक, उसे क्या कहते हैं, मोची  थे। आप देखिए , भारत में यह  बहुत निम्न जाति हैं कहने के लिए । उन्होंने सुंदर कविता लिखी है । फ़िर  नामदेव, वह दर्जी थे , बस ज़रा सोचिए । इन सभी लोगों ने एक ही बात लिखी है कविता कि  इतनी बड़ी सुन्दरता के साथ  । उन्होंने इसे कैसे प्राप्त  किया है? क्योंकि अब वे प्रवेश कर चुके हैं आध्यात्मिकता के उस महान दायरे में ।

आप लोग भी कुछ बहुत अच्छी कविता लिखते हैं, मुझे पता है। लेकिन कुछ लोग जिन्होंने अच्छी कविता लिखी बहुत ही हठी, बहुत अहंकारी निकले। यह कुछ ऐसा है जिसे मैं समझ नहीं पायी । आप  यहाँ सुंदर कविता लिख रहे हैं और यहाँ आप अहंकार से भरे हुए हैं, तो कविता  कहाँ से आ रही है, भगवान जानें। तो सबसे पहले आप स्वयं हैं , आप का  व्यक्तित्व ऐसा  कुछ होना चाहिए कि लोग कहें “यह एक असली गुरु है जिसे हम मिले हैं।” इसके लिए, आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, आपको अपने परिवार को छोड़ने की आवश्यकता  नहीं है, कुछ भी छोड़ने की आवश्यकता  नहीं है। लेकिन अहंकार अगर यह अभी भी  वहाँ है, मैं नहीं जानती कि क्या कहना है, लेकिन आपको इससे छुटकारा पाना चाहिए, पूरी तरह से । और सामूहिक रूप से भी अहंकार को खदेड़ा जाना चाहिए, सामूहिक रूप से। यह एक बात है कि लोग  गुप्त रूप से अहंकारी होते हैं, मन ही मन अपने आप में लेकिन कभी-कभी यह दिखता है। यह एक बहुत ही सूक्ष्म निरर्थक रोग है जो लोगों को होती है, और वे केवल इस में लिप्त रहते हैं।

गुरु पूजा के इस दिन मुझे कहना है कि अब प्रत्येक को कड़ी मेहनत करनी है, कड़ी मेहनत करनी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कितना समर्पित किया है आपने अपना जीवन, अपना समय सहज योग को । तभी आप गुरु की उस अवस्था को प्राप्त पायेंगे । मुझे देखिए मैं एक गृहिणी हूँ और मेरी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ हैं, समस्याएं हैं, लेकिन इसके बावजूद मैं हर समय सहज योगियों, सहज योग के बारे में सोचती रहती हूँ, और सब अर्थात, यह मुक्ति मनुष्यों की पूरे विश्व में । सिर्फ़ यहाँ या वहाँ ही नहीं। पूरे विश्व में । तो वह आपकी व्यापक दृष्टि होनी चाहिए। न केवल अपने स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय, या इस या उस के लिए। लेकिन आप  की अत्यन्त  व्यापक दृष्टि होनी चाहिए। और यह आपको विकसित करना होगा अपने कार्यचालन के माध्यम से हर प्रकार की परिस्थितियों में, हर प्रकार की समस्याओं में जो आपके पास हैं । एक बार जब आप उस तरह के व्यक्तित्व का विकास कर लेते हैं, तब आप आश्चर्यचकित  हो जाएंगे कि कैसे आप इतने सारे लोगों की सहायता कर सकते हैं। मैं जानती हूँ कि यहाँ इतने सारे सहज योगी हैं जो प्रशंसा के योग्य हैं और वास्तव में मैं उनसे बहुत प्रेम  करती  हूँ और वे भी मुझे बहुत प्रेम  करते हैं। लेकिन, आप  को हमेशा यह देखना चाहिए कि जैसा कि आप अब गुरु बनने जा रहे हैं, आपको सावधान रहना होगा कि आप यह न सोचें कि आप गुरु हैं। आपको कभी नहीं सोचना चाहिए कि आप पहले से ही गुरु हैं। एक बार जब आप सोचने लगते हैं फ़िर से श्रीमान अहंकार गुरू ऊपर आ जाते हैं । तो एक बार जब आप निर्णय  कर लेते हैं कि, “मैं कुछ भी नहीं हूँ, मैं कुछ भी नहीं हूँ, मैं  केवल अपनी  माँ के ह्रदय  में एक छोटी, छोटी सी लहर हूँ”। अगर इस तरह का  विनम्र भाव आप में आता है , तो आपकी सभी समस्याएं हल हो सकती हैं , और चीज़ें कार्यान्वित हो सकती हैं । क्योंकि आपका ध्यान और आपका व्यवहार दूसरे लोगों को प्रभावित करने वाला है। और कुछ नहीं। आप जो भी प्रयास करें,  एक आप ही हैं जो सहज योग को आगे ले जाने वाले हैं।

बहुत कुछ है जो कहा जा सकता है इस बारे में कि, कैसे एक अच्छा गुरु बनना है और सब कुछ, लेकिन मुझे लगता है कि मैं इसे अगली गुरु पूजा के लिए रखूंगी।

बहुत-बहुत धन्यवाद।