Birthday Puja

New Delhi (भारत)

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75th Birthday Puja Date 21st March 1998: Place Delhi: Type Puja

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

आज इसलिए अंग्रेज़ी में बात की क्योंकि हमेशा में रियलाइज़ेशन दे दो। आपके सारे प्रश्न इससे छुट जायेंगे और हिन्दी में ही बात करती हैँ। लेकिन जो इनसे बात की वो आप एक नए तरह का व्यक्तित्व आपके अंदर आ जायेगा। यह एक लोगों को समझ में आयी होगी। वो यह है कि जब आपके बहुत बड़ा मन्वंतर घटित हो रहा है। मैं कहूँगी कि एक आत्मा का प्रकाश आपके अन्दर फैलता है तो आपमें तीन युनरुत्थान की नई बेला आ गई। इसमें मनुष्य का परिवर्तन होना विशेषतायें आ जाती हैं : आप गुणातीत हो जाते हैं । आप जानते ही अत्यावश्यक है। नहीं तो मनुष्य की जो समस्या है वो ठीक हैं कि आपके अन्दर तमो गुण, रजो गुण और सत्व गुण – तीन नहीं हो सकती। उसका परिवर्तन होना चाहिए और जब वो गुण हैं। तमो गुण जिसमें होते हैं उनका एक स्टाइल (Style) होता है । रजो जिसमें होता है उनका एक स्टाइल होता है, और फिर जब दोनों चीजों से ऊबकर वे सत्व गुण में उतरते सारे प्रांगण में ही आके जैसे आनन्द नाचता है। ऐसे सौंदर्यमय हैं जहां पर आप सोचते हैं अब ये तो सब बेकार की चीजें हैं, और सुन्दर जीवन को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ करना अब हमें खोजना है । जब खोज शुरू हो जाती हैं तब आप सत्व गुणी हो जाते हैं। सत्व गुण में उतरने पर फिर आप खोजते हैं और खोजने पर जब आप पा लेते हैं तो आप इन गयी तो उसे जागृत रखें और उसमें उतरते रहें। इतने गहरे लोग तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं । इसीलिए कहते हैं कि ऐसा हैं सहज योग में कुछ कि मैं स्वयं देखकर हैरान होती हैँ कि इंसान गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत हो जाता है। उसका कोई विशेष धर्म नहीं होता। वो जो भी करता है धर्म ही करता है, अधर्म नहीं करता। कर ही नहीं सकता। उसके स्वभाव ही कली परिवर्तित हो जाता है तो इतना मंगलमय और इतना सुन्दर हो जाता है, उसके सारे ही अंग प्रत्यंग जो भी जीवन के हैं उसके गुण नहीं। उसके लिए आपको पेसे नहीं देना। कुछ नहीं करने का। सिर्फ आप अपने अन्दर बसी हुई शक्ति को, जब जागृत हो यह सारी गहराई इन्होंने एकदम से कैसे ले ली! उनके अंदर गहराई थी पर वो अंधकार में थे। अब वो जब प्रकाश में आ गये तो प्रकाशमय हो गये, सुंदर हो गये. मंगलमय हो गये। आप सबके लिए मैं क्या कहूँ? मेरे हृदय में बड़ा ही आंदोलन है। मैं चाहती हूँ सारे बरह्माण्ड में जो भी शक्तियां हैं उसे आप प्राप्त करें। जो कुछ भी महान ऋषियों, मुनियों ने प्राप्त किया था वो आप प्राप्त करें और संसार में – ‘स्व’ माने आत्मा-आत्मा का भाव स्व में ऐसा हो जाता है कि उसको एक विशेष प्रकार का आनन्द, एक विशेष प्रकार की शान्ति मिल जाती है और उसका एक विशेष व्यक्तित्व हो जाता है जिसके कारण वो सबको शान्ति, सुख एवं आनन्द देने वाला हो जाता है। हो सकता है अभी आपका प्यार लोग नहीं समझ पायें, से भाग कर नहीं। समाज में रह कर, संसार में रहकर इसे आप प्राप्त करें। आज का शुभ दिवस है और आप लोगों ने उसका गलत इस्तेमाल करें। हो सकता है । पर उसमें आपको इतनी खुशी से मनाया। छोटे बच्चों जैसे सबने कितना प्यार बुरा नहीं लगता। आप यही सोचते हैं कि ये अभी अंजान हैं। दिया! क्या कहूँ मैं, मेरी तो समझ में नहीं आता क्योंकि यह समझ नहीं पा रहे हैं। अभी इनकी समझ में कमी है। आप कुछ भी उसके प्रत्युत्तर में बोलते नहीं। आप देखते रहते हैं कि चलो ठीक है कल ठीक हो जाएगा। यह आशा आपके अन्दर बन जाती है कि जैसे हम थे, तो आज हम यहां आकर खड़े कुछ समझ नहीं पाती। मैंने कुछ किया ही नहीं आपके लिए। हो गये कल ये भी हमारे साथ आकर के खड़े होंगे। अब आप इतने लोग हैं। ईसा मसीह के सिर्फ बारह शिष्य थे और न जाने उन्होंने कितने ईसाई (Christians) बनाये। किसी को से आप आगे बढ़ते जाइये। औरों को भी अपने समावेश लेते आत्मसाक्षात्कार (Realisation) नहीं दिया और क्रिशचियन बना जाइये कि वो भी इस सुख की, इस आनन्द की ओर इस महान दिये । आप तो आत्मसाक्षात्कार (रियलाइज़ेशन) दे सकते हैं। व्यक्तित्व की जो घटना है उसे प्राप्त करें। तो बहुत ज्यादा है. बहुत ज्यादा है! और इसको समझने के लिए भी मैं तो सोचती हूँ कि बड़ा मुश्किल हो जायेगा कि इतना प्यार आपने मुझे क्यों दिया? मैंने आपके लिए क्या किया? यह आप ही करते आ रहे हैं, जो बढ़ता-बढ़ता यहां तक पहुँच जाता है। आप के लिए बाद में यही कहती हूँ कि इसी तरह आप सबको यही काम करना है कि अब जिसको देखो अनन्त आशीर्वाद।

[Translation from English to Hindi, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

जिस प्रकार आपने मेरा स्वागत किया उसे दंख कर मैं हैं और देखते हैं कि इस प्रकार के प्रचण्ड आचरण में क्या गद् गद् हो गई हूँ। मैं कहूँगी कि आपका प्रेम ही सहजयोग गलती है और इस प्रकार के उग्र जीवन से घृणा करने लगते का आनन्द लेने की सभी प्रकार की अभिव्यक्तियां खोज हैं। इससे मुक्ति पा कर आप सल्य साधना की ओर चल निकालता है। वास्तव में में नहीं समझ सकती कि यह पड़ते हैं । यह स्थिति भी समाप्त हो जाती हैं और आप अद्वितीय विचार किस प्रकार आपके मस्तिष्क में आते हैं और गुणातीत हो जाते हैं । ऐसा तब घटित होता है जब आपका चित्त आत्मा पर जाता है, क्योंकि अब आपका चित्त आपके जन्मजात बन्धनों, गुणों तथा अहम् पर नहीं होता । तो आप इन सब से ऊपर उठ जाते हैं। सामान्य जीवन के लिए यह अत्यन्त असाधारण बात है परन्तु आपके लिए नहीं । यह स्वत: ही घटित हो जाता है और आप अपने अस्तित्व का आप अपने भिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं ! मैं कामना करती हूँ कि आप अपने ये राष्ट्रीय ध्वज अपने अपने देशों में लें जाएं और वहां सन्दंश दे कि पुनर्डत्थान का समय आ गया है, कि हमें उठना है; हमें मानव स्तर से अपने अस्तित्व के उच्च स्तर तक उन्नत होना है। यदि ऐसा घटित हो गया तो आप देखंग कि किस प्रकार यह आपके जीवन को परिवर्तित कर देता है, किस प्रकार यह आपको प्रसन्नता प्रदान करता है ! किस प्रकार घुणा और गुण जो किसी न किसी प्रकार से आप पर शासन करते थे दूसरों को चाट पहुंचाने. दूसरों का अहित करके अपने मूर्खता पुर्ण विचार आप त्याग दंते हैं। इस प्रकार के विचारों ने बहुत से लोगों को परपीड़ून द्वारा प्रसन्नता दी है और अन्य लोगों की खुशी एवम् आनन्द का नाश करके उन्होंने सुख उठाया हैं। अपनी प्रसन्नता को बनाये रखने के लिए मैं जानती हूँ कि परन्तु समय का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । मुझे देर सहजयोगी होने के नात, आपको बहुत कुछ सहन करना होगा, होने के बावजूद भी आप आनन्द ले रहे हैं, घर में बैठी हुई बहुत सी मुर्खता सहन करनी होगी । आप एसा कर चुके हैं और शनैः शनै: एक बार सहजयोग जव सुन्दरतापूर्वक पावनता के रूप में आपके दंशों में स्थापित हो जायेगा तो आपके देशों आनन्द लेते हैं। अब आपको अपनी सुख सुविधाओं एवं छोटी-छोटी चीजों की चिन्ता नहीं रहती । अभी तक ये तीन आप इनसे ऊपर उठ जाते हैं। अत: इस प्रकार आप मानवीय चेतना की सीमायें पार कर लेते हैं। तब दूसरी स्थिति में आप कालातीत’ हो जाते हैं, आप समय से ऊपर उठ जाते हैं। मैं जानती हूं कि आज मुझे आने में देर हुई, एसा हो जाता है। में देख रही थी कि आप सब अत्यन्त आतन्द की स्थिति में हैं। आप सभी बहुत आनन्द में हैं, मेरी अनुपस्थिति में भी आप आनन्द ले रहे हैं। यह समय से ऊपर होना है। समय के पाश में आप नहीं हैं। जो भी समय है आपका अपना है के अन्य लांग भी उस पथ पर चलने लगंगे जिस पर आप चल चुके हैं। केवल आपके जीवन ही आपके आन्तरिक क्याकि आप वर्तमान में स्थित हैं। यहां खड़े हो कर आप सीन्दर्य और सहजयोंग को प्रतिबिम्बित कर सकते हैं । भविष्य के बारे में नहीं सोच रहे; आप यह नहीं सोच रहे कि कल क्या होगा या किस प्रकार आप वायुयान पकड़ेंगे-या किस प्रकार कार्य करंगे । यहां पर अआप कंवल आनन्द ले रहे कल मैंने आपको बताया था कि मानवीय चेतना में किस चीज का अभाव है और यह भी कि चित्त आत्मा पर हैं, वर्तमान का आनन्द ले रहे हैं, और बतमान ही वास्तविकता है। यदि आप भूत या भविष्य के विषय में सोच रहे होते तो आप वास्तविकता में न होते । मेैंने बहुत बार बताया है कि नहीं है। जब चित्त आत्मा पर होगा तो सर्वप्रथम आप ‘गुणातीत’ हो जायेंगे-आप गुणों से ऊपर उठ जायेंगे । इसका अभिप्राय यह है कि अब आप ‘तमोगुणी’- इच्छाओं और लिप्साओं से लिप्त-व्यक्ति नहीं रहे । वहां से आपका चित्त दूसरी शैली पर चला जाता है जहां आप ‘रजोगुणी भूतकाल समाप्त हो गया है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। इस क्षण आप यहां हैं, हो सकता है मेरी प्रतीक्षा में | प आक्रामक बठ ही, ही सकता है यहां अपनी यात्रा के हर क्षण तथा मुझसे अपने योग का आनन्द ले रहे हों। इस आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता कि किस प्रकार आप यह आनन्द ले रहे हैं। ही जाते हैं। आप दूसरों से स्पर्धा करना चाहते हैं। यह संघर्ष अनुशासन है। अतीत’ का अर्थ है परे । तत्पश्चात आप ‘सत्वगुणी’ हो जाते हैं। इस स्थिति में आप सत्य साधना करते

अन्यथा लोग घडी देख रहे होते और हैरान हो रहे होते कि हैं और घबरा जाते हैं। परन्तु आपकं साथ यह बात नहीं है श्रीमाताजी क्यों नहीं आई ! क्या समस्या है, वे क्यों नहीं क्योंकि आप तो हमेशा ध्वान में होते हैं, सदैव ध्यान धारणा पहुंची? आदि आदि । यह स्थिति कालातीत होने में बहुत की स्थिति में होते हैं। कांई गड़बड़ी भी यदि हो जाए तो तुरन्त आप चंतना (निरविंचार समाधि) में चले जाते हैं जहां आपको सारे समाधान प्राप्त हो जाते हैं। आप परेशान नहीं होते. बिल्कुल परेशान नहीं होते कर्मकाण्डी स्वभाव व्यक्ति को अत्यन्त संकुचित तथा विनम्र बना देता है, और कभी-कभी बहुत आक्रामक भी बना देता है। अपने क्मकाण्डों से लाग अन्य लोगो की बहुत कष्ट देते हैं, जैसे मित्र कहलाने वाली एक महिला हमारे घर पर आई) कहने लगौ में शाकाहारी हूँ। मने सहायक है। मुझे बाद हैं कि नासिक में सहज कार्य करने के लिए कोई सहजयोगी आगं न आता था. इस लिए वहां मुझे बहुत परिश्रम करना पड़ा । वे लोग अत्यन्त संकोची और चिन्ताशील थे । भाग्य से या दुर्भाग्य से एक बार ऐसा हुआ कि रास्त पर मेरी कार खराब ही गई और । यदि कुछ गडबड़ हो जाए ता पहुंचने में मुझे लगभग एक घंटा दर हुई । उधर से कोई कार भी नहीं आई और हम रास्ते में ही अटक गये । जिस कार्यक्रम में हम जा रहे थे, जब हम वहां पहुँचे तो देखा कि सहजयोगियों ने बागडोर सम्भाल ली थी । जिम्मेदारी सम्भाल कर वे लोग जनता को आत्मसाक्षात्कार बर्तनां में बना हुआ खाना नहीं खा सकती जिनमें मासाहारी देने में व्यस्त थे । यदि मैं समय पर पहुँच गई होती तो वे ऐसा खाना बनाया गया हो।” तों हमें उसके लिए नए बर्तन खरीदने न करते । उन्हें विश्वास ही न हाता कि उनके पास होंगे । मैं जाकर उसकें लिए नए बर्तन लाई । कहने लगी पूछा तो? “मैं उन आत्मसाक्षात्कार देने की शक्ति है। मेरे कहने पर भी वे अपने हाथ न चलाते थे। परन्तु अचानक मेरे अनुपस्थित होने के कारण उन्होंने अपनी जिम्मेदारी संभाली । अत: जब आप समय से ऊपर होते हैं तो उस क्षण के लिए आप जिम्मेदार हा जाते हैं और यह जिम्मेदारी सामूहिक है अर्थात् आप सब जिम्मेदार वन जाते हैं। ध्यान रखना, एक पुराना चम्मचे भी उपयोग नहीं होना चाहिए। ता मुझे जाकर नए चम्मच खरोदने पड़े । फिर उसने नए लास मंगवाए । ता मुझे यह सारा कष्ट भुगतेना पड़ी । रसाई में वो खुद खड़ी हो जाती और रसाईये को हमारे लिए कुछ न बनाने दती । कहती पहले में अपना खाना बनाऊगी फिर तुम आना । उसने इतनी परेशानी खड़ी कर दी कि अतिथि हाने के स्थान पर वाह क्लंश बन गई । कर्मकाण्डौ लोगों कं साथ ऐसा ही होता है क्यांकि उनकी मांग बहुत बढ़ जाती है। धर्म के नाम पर वे कुछ न कुछ मांग करते ही रहते हैं। बम्बई में मुझे किसी ने एक और कहानी सुनाई थी । उसने कहा कि उच्च पदासीन व्यक्ति से सम्बन्धित जा महिला अतिथि बनकर मरे घर आईं थी बह ता मरी परदादी से भी गई गुजरी थी । कहने लगी मैं नहीं समझ सकती कि भारत में अभी तक भी ऐसे लीग रहते हैं ! वह यहां आई और कहने लगी कि मैं नल से पानी नहीं ले सकती । मेरे लिए । बम्बई में केवल दी बहुत हैरानी की बात है कि हम इतने सारे लोग यहां हैं परन्तु न कोई लड़ाई हैं न कोई झगड़ा । एक दूसरे पर हावी होने के मुर्खतापूर्ण विचारों से ऊपर उठकर हम बहुत अच्छी तरह से स्थापित हो गए हैं। समय में लिप्त न होने के कारण ऐसा घटित होता है। समय आपको झुका नहीं सकता। सम्भवत: आप महसूस करते हों कि यदि आप लोगों के स्थान पर कोई अन्य होता तो देर से आने के कारण वे मेरी कार पर पत्थर फेंकते, सोचते कि हम तो गर्मी में सड रहे हैं और अपना क्रोध व्यक्त करते । परन्तु जो लोग समय से ऊपर उठ चुके हैं वं ऐसा नहीं कर सकते, आराम से बैठकर वे आनन्द ले रहे हैं। आपको कुएं से जल लाना होगा कुएं है। लोगो की उनपर जाकर जल लाना पड़ा । उनके लिए खाना बनाने वाले रसाइये का कपड़ों समंत पानी में डुबकी लगाकर खाना बनाना पड़ता था । यदि रसोइया पानी में भोगा हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो भी कार्य आप करते हैं हुआ न होता तो वे उसके हाथ का बना हुआ खाना न खाती। बेचारे रसोइये को निमानिया हो गया दूसरा रसीइया आया और उसे फ्लू हो गया । परन्तु इस महिला ने चिन्ता न की। प्रयत्न करते हैं, क्योंकि आप धर्म से ऊपर उठ गए हैं । किसी कहने लगी मेरी यही शैली है। लोगों ने मुझसे पूछा कि श्रीमाताजी ऐसे लोगों का हम क्या करें? मैंने कहा आपका नहीं करते । आप इससे ऊपर हैं। उदाहरणार्थ धर्म में फंसे उससे कहना चाहिए था कि हमारे पास अमुक चीज है, आप तत्पश्चात् आप धर्मातीत हो जाते हैं। आप समय से ऊपर उठ जाते हैं, अपने मानवीय स्वभाव से ऊपर उठ जाते वह धार्मिक होता है, आपके सभी प्रयत्न धार्मिक होते हैं। यदि आप व्यापार करते हैं तो उसे भी धर्मानुकूल करने का धर्म विशेष का तरीका या कर्मकाण्ड अपनाने की चिन्ता आप लोग समझते हैं कि उन्हें प्रातः बहुत जल्दी उठना चाहिए वे कर्मकाण्डों के पाश में फंसे हैं, वे कर्मकाण्ड करते हैं और यदि कर्मकाण्ड में कोई कमी रह जाए तो वे दुःखी हों जाते खाना चाहें तो खा लें। ब्रत करना अच्छा है। आत्म केन्द्रित, दूसरों को तंग करने वाले लोगों का यही इलाज है। तो यह आत्मकंन्द्रिता हममें इसलिए आती है क्योंकि

अन्त भी नहीं है। किसी के घर जाकर लोग कहेंगें, नहीं-नहीं, हम सांचत हैं कि यह हमारा धर्म है, यह हमारा अधिकार है यह कालीन मुझे पसन्द नहीं। यह आपका कालीन नहीं है। हम लोगों को कितना कष्ट देते हैं. आपने इसे नहीं खरीदा। उस व्यक्ति ने उसे खरीदा है। इससे आपका क्या सरोकार है । मुझे पसन्द नहीं हैं। आप कौन हैं? प्रयत्न करते हैं । यह बात हम नहीं जानते और वस्तुओं की जिसने इसके लिए पैसे खर्चे हैं उसे यह पसन्द है । समाप्त। आप क्यों टिप्पणी करते हैं। क्या आप समीक्षक हैं? मान लो किसी ने एक विशेष प्रकार के बाल बनाए और सभी कुछ हमारा है। यह कार्य न करने की हिम्मत इन ्लागों की कंसे हुई? कितना दुःखी करते हैं । कितना हम उन्हें दयनीय बनाने का मांग किए चले जाते हैं। यह मेरा धर्म हे. में क्या करू ? मुझे परन्तु यह मस्तिष्क का बन्धन बन जाती बहुत से लागों को बन्धनग्रस्त देखा एसा ही करने दे । हुए हैं। मुझे इस तरह के बाल पसन्द नहीं हैं। क्यों? मुझे पसन्द नहीं है। बस और यह बात पूरे में फेल जाएगी यसन्द या नापसन्द करने वाले आप कौन होते हैं। क्या पदवी है आपकी? आप क्यों कहें कि मुझे पसन्द है या नहीं? परन्तु पश्चिम में इस प्रकार की टिप्पणी करना आम बात है। मुझे पुसन्द नहीं है, मुझे भारत पसन्द नहीं है । ठीक है तुम्हें भारत पसन्द नहीं है तो घर बैठी यहां क्यों आए हो? मुझे तु्की पुसन्द नहीं है। क्यों? क्योंकि मान लो किसी ने लम्बा स्कर्ट है। सहजयाग में भी मैने है। एक फ्रांसिसी महिला सहजयोंग में आई । आरम्भ में उसकी मां वहुत ही कमंकाण्डी थी । वह इतनी कष्टदायी थी कि हर रविवार चर्च जाना उसके लिए आवश्यक था । अच्छ-अच्छ वस्त्र पहनकर वह चर्च जाती और वापस आ जाता । एक दिन बह गायब हो गया । ये पुलिस के पास गए और उसे खोजने के लिए कहा । लेकिन पुलिस ने खोजने से पहना हुआ है तो वह कह उठेंगे कि मुझे यह पसन्द नहीं है तब उसने कहा उसे चर्च में खोजो । जब चर्च में जाकर देखा क्योंकि यह तुक्किस्तानीं है। तो अब आपके छोटे स्क्ट पहनने गया तो वह अभी तक वहां बैठी हुई थी । तीन-चार बार एंसा चाहिए। हमें छोटे स्कर्ट पसन्द नहीं हैं फिर भी यह नहीं कहना चाहिए कि, ‘मुझे पसन्द नहीं है। इससे दूसरां को चाट पहुंचती है। दूसरे व्यक्ति के गर्व को यह तोड़ देता है। अब जब आप सहजयोग में हैं तो सामान्य मानदण्डों यह है कि य लोग अत्यन्त मूर्ख किस्म के हैं, बैठकर पागलों के अनुसार आप सामान्य मानव नहीं हैं। आप उनसे ऊपर हैं। आपकी पसन्द, नापसन्द उनसे भिन्न हैं और आपका पूर्ण दृष्टिकोण परिवर्तित हो चुका है। कई बार तो मुझे लगता है कि आप बच्चे हैं। कभी तो आप नन्हें बच्चों की तरह से अत्यन्त अवोधितापूर्वक बातें करते हैं और कभी अत्यन्त गहन चीजों के बारे में बात करते हैं। सामान्य मानव यह सब इन्कार कर दिया । परमात्मा जाने वह कहा गायब हो गई । हुआ । तग आकर पुलिस ने कहा कि बार बार हम इसे नहीं खाज सकते । आप चाहें तो इसे वृद्ध-आश्रम भेज दें । इस सहजयोगिनी नं मुझे बताया कि श्रीमाता जी आश्चर्य की बात की तरह से बातें करते हैं. बुढ़ापा उनसे छलकता है परन्तु रविवार के दिन अच्छे-अच्छे परिधान पहनकर व चर्च जाते है। कंवल इसी मामल में वे समझदार हैं। उनके बन्धन किस प्रकार कार्य करते हैं यह हेरानी की बात है। एक व्यक्ति हमारे यास आकर रुका. कहने लगा. “में बहुत अच्छा ड्राइवर हूँ मैने कहा ठीक है। वह कंवल गारड़ी चलाना ही जानता था। लन्दन की सड़कों का उसे ज्ञान न था। मुझे यदि उत्तर को जाना होता ता वह दक्षिण की आर ले जाता और पूर्व का जाना होता ता पश्चिम को ले जाता । मैंने पृछा क्या बात है? आप नहीं जानता क्योंकि आम आदमी, आप जानते हैं, अत्यन्त आडम्बरपूर्ण होता है। हर समय वह में-में-मैं करता रहता है। कबीर साहब ने कहा है कि बकरी जब जीवित होती है तो मैं-में-मैं करती रहती है परन्तु मरने के उपरान्त उसको आंत का जब रुई पीजने वाली धुनकी पर लगाया जाता है तो वह जानता है परन्तु मुझे सड़कों का ज्ञान नहीं।” एक दिन मैं कहती है तूही-तूही-तूही’ अर्थात् आप ही हैं-आप ही हैं. गाड़ी में बंटी थी और वह चला रहा था । पुलिस ने गाडी आप ही सभी कुछ हैं। ज्यों ही आप ऐसा कहते हैं तुरन्त पका चित्त अन्य लोगों से, उनके दोप ढूंढने से, उनकी ता पुलिस वालं ने पूछा कि छः बार आप इसी स्थान पर क्यों आलोचना करने से. उनका मजाक करने से दूर चला जाता है। कभी-कभी तो लांग दूसरों की बुराई करने तथा झूठ-मूठ की गप्प हांकने का भी आनन्द लेते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति भी मेरी तरह से हो जाते हैं। इसे आप मानवीय दुर्बलताएं कह सकते हैं जिनमें है और उसके बारे में अनाप-शनाप बातें करना मेरा काम नहीं आप लिप्त हो जाते हैं या किसी भी चोज के प्रति आपमें है। तो सामान्य मनुष्य में यह सूझ-बूझ यह प्रेम-विवक नही चिपकन हा जाती है। इस प्रकार चीजों की मांग करना होता । जरा सा भड़काने पर वह क्रोधित हो जाता हैं और सांड की तरह तोड-फोड़ करने लगता है। वह जैसा चाह না गाडी चलाना जानत हैं। कहन लगा. ‘हा गाड़ी चलाना में रोकी और उससे पूछा कि कहां जा रहे हो । उसने बताया । आए और अव फिर तुम यहीं आ रहे हां ! मंरी समझ में आया कि बृद्धावस्था में बह चोज आदत सी बन जाती हैं। परन्तु युवाक्स्था में भी लाग अपनी शैली के बन्धन में फंस पागलपन है। यह मुझे अच्छा नहीं लगता और इसका कोई

व्यवहार कर सकता है। व्यवहार के अनुसार वह परिवर्तित गलत ढंग के लोगों की सहायता करने में लग रहते हैं, माना खुद मुखत्यारी प्राप्त हा गई हो । काई यदि गुलती करता है तो दो घटे के अन्दर हमें उस खुद मुख्यार होता चला जाता है। कारण यह है कि वह अभी तक सहजयाोगी नहीं है। उन्हें सहजयाग में सहजयागी हर चीज का आनन्द लंता है। मान लो कोई के टेलिफोन की आशा होती है। वह कहता है कि ा व्यक्ति बहुत नाराज एवं उग्र स्वभाव हो जाता है, वह भी देखता है कि क्या घटित हो रहा है. वह किस प्रकार बर्ताव है। ऐसा करना है, बैसा करना है। मुझे सूचित करना कि कर रहा है। किसी पर नाराज होना धर्म नहीं है, यह धर्म नहीं “नही, आप अवश्य सहायता कर, अवश्य कुछ करे”, उनकी है। दूसरों पर नाराज होना, हर समय उन पर चिल्लाते रहना, हर समय उनसे कुछ लेते रहना या स्वयं को अति महान् है कि अभी बह व्यक्ति आएगा और इस विषय पर एक बहुत समझकर उनकी आलोचना करते रहना तुच्छता है। इसका कोई लाभ नहीं होता । जीवन के अन्त तक पहुंचते -पहुंचते आपको लगता है कि आपका एक भी मित्र, एक भी पड़ोसी से ही उसमें कुछ ऐस गुण हाते हैं जिनके कारण बह मामान्य नहीं है। आप यदि अहंकारी हैं तो आप स्वयं को अनन्त समझते हैं और बोलते चले जाते हैं. बके चले जाते हैं। दूसरा व्यक्ति आपकी बातां से ऊब जाता है फिर भी आप बोले टॉलफोन करके मुझे किसी व्यक्ति के बार में कुछ कहन की चले जाते हैं- मैंने ऐसा किया, मैं वहां गया; मैं मैं मैं। किसी भी हद तक आपकी वात जा सकतो है परन्तु आपको अपने नहीं है। अनावश्यक रूप से किसी के मामला में दखलदाजों! कथनों पर लज्जा नहीं आती । सहजयाग में आनं से पूर्व मेंने जब आपकी कोई अधिकार नहीं, आपने उस व्यव्ति में कुछ लांगों को अन्य लांगों के विषय में मूर्खतापूर्ण हुए दखा है। कोई ब्यक्ति यदि किसी अन्य के बिपय में कोई गलत बात केहता है तो उसका अपना मस्तिष्क विकृत हो जाता है। मस्तिप्क ही जब सामान्य न होगा तो व्यक्ति रोगी हो जाएगा और सभी प्रकार के रोगों को स्वीकार करेंगा । यह अत्यन्त भवानक बातं हैं, दूसरे लागों के लिए नहीं, अपने लिए । इस तरह के रोगो व्यक्ति को कोई भी सहन नहीं कर सकता । मेने लोगों की कहते दखा है कि अब मैं धार्मिक व्यक्ति हूँ। तो क्या? हर समय वह यही कहते रहते हैं कि आप ऐसा नहीं कर सकते, वह नहों कर सकते, यहां नहीं अस्तित्च का आनन्द लेता है, जो अन्य लोगों को आनन्द बैठ सकते, यह नहीं खा सकते । एक सामान्य व्यक्ति होने के कारण क्योंकि आप स्वयं को नहीं देखते इसलिए स्वयं को अनुशासित करने के स्थान पर आप अन्य लोगों का अनुशासित होता है यद्यपि आपका पालन-पापण, शिक्षा-दीक्षा आदि उसी करने का प्रयत्न करते हैं। आप केवल अन्य लागों को दखते कृपा करके श्रीमाताजी से कहें कि अमुक व्यक्ति का ध्यान रखना ाम आदत है। अब तो यह एक आमे वात ही गई है। हम जानत बड़ा भाषण दगा । ता मानव का यह स्वभाव है कि वह जीवन की भिन्न प्रकार की जटिलताओआं से गुजरता है। जन्म व्यक्ति नहीं हो पाता । यद्यपि हम समझते हैं कि वह सामान्य है। उसकी प्रतिक्रियाएं और बातें अत्यन्त हास्यास्प्रद होती हैं। उसका ध्यान रखने के विपय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं लंना दंना तो यह व्यर्थ के नमूने बनाने की क्या दृष्टिकांण रखते आवश्यकता है? यह सब डिजाइन लुप्त हो जायेगे। मरी समझ में नहीं आता कि यह नमून उन्हें कहा में मिलत है? हा सकता है उनके दश से, परिवार से या वश से । आप जो भी कहें, यह सब समाप्त हो जाता है आपकी वंश परम्परा (Genes) समाप्त हो जाती है। यहीं सहजयोग है । यहां आप आत्मा बन जाते हैं, सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है; आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो जानता है आनन्द क्या है, जो आनन्द का आनन्द लेता है, जो प्रदान करता है और उन्हें पसन्द करता है। हर समय विचार करें कि किस प्रकार दूसरा का खुश किया जाए ऐसा प्रकार हुए हैं जस अन्य लांगा की । परन्तु आपक वे सव सस्कार लुप्त हो जाते हैं आनन्दमय व्यक्ति बन जाते हैं। और आप विवकशील, सुन्दर एवम् हैं। आत्मसाक्षात्कार होते ही आप स्वयं को देखने लगते हैं कि आपमें क्या दोप है। आत्मा बनने के पश्चात् आत्मा के प्रकाश में आप स्वयं को देखते हैं, कंवल स्वयं को । जब है। आपने यह उपलब्धि प्राप्त की है, संभवत: आप इसके विपय में न जानते हो। जिस प्रकार इस स्काऊट मैदान में आप आनन्द ले रह है काई अन्य समूह एमा आनन्द न ले सकता । मैं देख सकती हूँ कि आप लाग यहां क्या कर रहे आप स्वयं को ठीक करना जान जाते हैं तव आप किस प्रकार व्यवहार करते हैं और किस प्रकार अपना आनन्द लते हैं! हैं, किस प्रकार एक-दूसरे की संगति का आनन्द ले रहे हैं। यह अत्यन्त प्रशंसनीय है क्योंकि आपका हृदय आत्मानन्द से छोटे-छोटे कार्य जो आप करते हैं, सुन्दर सुन्दर बातें जो आप कहते हैं वह बहुत मधुर होती है। नि:सन्दह कुछ लोगो का नहीं जा सकता । वे अशोध्य हाते हैं। तो आपको परिपूर्ण है, यही आत्मा आपके अन्दर प्रकाशमान है। अपने सुधारा देखना चाहिए कि अमुक व्यक्ति अशोध्य है, आप उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। सहजयोग में भी कुछ लाग हैं जो अन्दर देखकर आप निर्णय कर सकत हैं कि जो मैं कह रही हूँ वह ठीक है या नहीं। निसन्देहः कुछ लांग एंसे भी हैं जो

आप नहीं जानते कि आपने यह उपलब्धि पा ली है। अब आपको चाहिए कि सावधानी से स्वयं को देखें । आप हैरान स्वयं को बहुत उच्च मानते हैं, वे किसी होटल या आवासगृह में ठहरे हुए हैं। उन्हें यह आनन्द प्राप्त नहीं हा रहा । अब भी वह सोचते हैं कि वे कुछ महान चीज हैं। अत: उन्हें कहीं होंगे कि आप कितने परिवर्तित हो गए हैं, कितने सहज, वाहर ठहरना चाहिए । बहुत सी है, विशेषतः भारतीय लोग जब कबैला आते हैं तो होटल में ठहरना चाहत हैं। अपने जीवन में यद्यपि उनके घर में एक ही हूँ. वे अत्यन्त मूर्ख लोग हैं, 80 वर्ष का वृद्ध पुरुष 20 वर्ष स्नानागार हो, परन्तु कवेला आकर वे होटल में रुकना चाहते हैं जहां, सभी सुविधाओं से पूर्ण जुड़ा हुआ स्नानागार हो । कितनी हैरानी की बात है। मैंने देखा विवेकशील एवम् बुद्धिमान हो गए हैं, पश्चिम में समस्याएं इसलिए आती हैं क्योंकि वे लोग मुर्ख हैं। मैं सोचती की लड़की से विवाह करना चाहता है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। वह अपनी आयु को स्वीकार नहीं कर पात.. बह स्वीकार नहीं कर पाता कि मैं युवा लोग, अत्यन्त हैरानी की बात है। हो सकता है कि उन्होंने कभी अच्छा होटल न देखा हो या वे बहुत खराब स्थितियों में रहते हों! वृद्ध हूं और वृद्ध पुरुष की तरह से मुझे आचरण करना चाहिए। वह ऐसी युवती से विवाह करना चाहता है जो उसकी पाती की आयु की है। पश्चिम में यह आम बात है। वे कब्र में जाने वाले होंगे परन्तु कोई बात नहीं. इस प्रकार की पत्नी वे चाहते हैं। यह समस्या पश्चिम में है। इसका कारण क्या जो व्यक्ति सहजयोगी है वह कहीं भी रह सकता है, कही भी सो सकता है। उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी आत्मा है किसी और चीज की आवश्यकता नहीं । केवल आत्मा ही आपको प्रसन्नता प्रदान करती है बाकी सब चीजें है? क्योकि वे नहीं समझते कि वे वृद्ध हैं और होना गर्व समस्याओं की सृष्टि करती हैं। भिन्न धर्मानुयायी होने के कारण आप एक-दूसरे को बुरा मानते हैं। ईसाइयों के बारे में यदि आप जानना चाहते हैं तो यहूदियों के पास चले जाएं और यहूदियों के बारे. में जानना चाहते हैं तो मुसलमानों के पास चले जाएं और मुसलमानों के बारे में जानना चाहते हैं तो देखिए, कितने लोग जन्मदिवस के इस अवसर पर शुभकामनाएं हिन्दुओं के पास चले जाएं । आप हैरान होंगे की लोग किस प्रकार दूसरों को बुरा बताते हैं और स्वयं को सर्वोत्तम मानते हैं। तो यह जा दृष्टिकोण है. यह पूर्णतः परिवर्तित हो जाता है। आप भूल जाते हैं कि कौन क्या है? किसका क्या धर्म है और किस धरातल से वो आया है। सभी एक हो जाते हैं और को तलाक देकर दूसरी पत्नी लेते चले जाएं । भारत में सहजयोगियों की संगति का आनन्द लेते हैं। यहां पर केवल विल्कुल विपरीत है। यहां महिलाओं का अधिक सम्मान नहीं सहजयोगी हैं वस। जहां इतने सहजयोगी होंगे वहीं मक्का है. है। उनसे आशा की जाती थी कि महिलाओं का सम्मान करें. वहीं कुम्भ मेला है। इसे आप कुछ भी नाम दे सकते हैं । यह सामूहिक आनन्द आपको इंसलिए, प्राप्त हुआ है क्योंकि सत्य को देखने में रुकावट डालने वाले बन्धन आप पार कर चुके हैं। वृद्ध की बात है। जब में पांच साल की थी, में कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि तब इतने लोग मेरे जन्मदिवस पर मुझे बधाई दने के लिए आए होंगे । जब में 50 साल की थी तब भी इतने लोग न थे. आज जब मैं 75 वर्ष की हूँ, आप ड्रेने के लिए यहां आए हैं! यदि आप विवेकपूर्ण रहे हैं ता आपको अपनी आयु का गर्व होना चाहिए। परन्तु यदि आप मुर्ख हैं तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता । ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसेंगे। पश्चिम में यह प्रथा है कि एक पत्नी उन्हें सती के पद पर बिठाएं। परन्तु महिलाएं चाहे जितना भी बलिदान करें पुरुष उनका सम्मान नहीं करते । अब यह दोष कहां से आया । कहती हैं कि किसी कवि ने लिखा है कि महिलाओं को पीटना चाहिए। यह कौन-सा कवि है? मैं सोचती हूं कि इसकी पिटाई होनी चाहिए । महिला की कोख जैसा मैंने कल कहा था, सत्य यह है कि आप आत्मा से उत्पन्न होकर उसने यह लिखा! तो हम गलत चीजें अपनाते चले जाते हैं। यह इसलिए होता है कि आपमें विवेक का अभाव है। बुद्धिमान व्यक्ति केवल विवेक शीलता को ही अपनाएगा। किसी मूर्खतापूर्ण चीज को वह स्वीकार न करेगा। एक के बाद एक पुस्तकें आप पढ़ते चले जाते हैं। यह आपको कहां पहुंचाती है आपको लगता है कि यह पुस्तकें आपका है। एक बार जब आत्मा बन जाते हैं तो आप गुणातीत. कालातीत और धर्मातीत हो जाते हैं। इन सीमाओं को पार करते ही आप समुद्र में एक बूंद सम हो जाते हैं। बूंद यदि समुद्र से बाहर है तो सदैव यह सूर्य से डरती रहती है कि कहीं धूप इसे सुखा न दे । यह नहीं जानती कि क्या किया जाए और किधर जाया जाए । परन्तु एक वार इसकी एकाकारिता जब समुद्र से हो जाती है तो यह चलती है और कोई हित नहीं कर रहीं । फिर भी यदि आपको पढ़ने का शौक आनन्द लेती है क्योंकि अब यह अकेली नहीं है, यह अकेली है तो आप पढ़ते ही चले जाते हैं। तो विवेकहीनता के कारण नहीं है। आनन्द के सुन्दर सागर की लहरों के साथ यह चल रही है। आपने भी यही स्थिति प्राप्त की है। इसका ज्ञान आपको है। आप जानते हैं । परन्तु क्योंकि आप आत्मा हैं आप भले-बुरे में भेद नहीं कर पाते । आप अपने कार्यों को उचित ठहराने लगते हैं और कहते हैं कि जो मैं कर रहा हूँ सर्वोत्तम है। यह अहम् नहीं है, मैं कहूंगी यह मानवीय मूर्ख

समझ है। जो मैं कर रहा हूँ वह ठीक है। मेरा दृष्टिकोण ठीक है। किसी को यह बताने की हिम्मत कैसे हुई कि यह गलत परन्तु उन दिनों के सन्त निश्चित रूप से बहुत अच्छे लोग थे । परन्तु वे अपने शिष्यों के प्रति बहुत कठोर थे और है? ऐसे व्यक्ति पर सभी लोग हंसेंगे, उसका मजाक उड़ाएंगे उनसे बहुत ज्यादा अनुशासन की आशा करते थे इसका कारण यह था कि उनके शिष्य आत्मसाक्षात्कारी न थे । य और वह बहुत कष्ट उठाएगा। परन्तु कभी स्वीकार नहीं करेगा कि उसने कोई गलत कार्य किया है। गुरु सोचते थे कि अनुशासित किए बिना उनके शिष्य कभी उन्नत न होंगे और महान न बन पाएंगे । अत: उन्हें अनुशासित किया जाता था । स्वीकार करते थे और गुरु की आज्ञानुसार कार्य करते थे । व व्रत करते. सिर के भार खड़े रहते । परन्तु सहजयोग में इस प्रकार का कोई अनुशासन नहीं सिखाया जाता । इसका कारण यह है कि आत्मा जागृत है और प्रकाश देती है। इस प्रकाश में आप स्वयं को स्पष्ट देखते हैं और अनुशासित करते हैं । जब आप धर्मातीत हो जाते हैं, धर्म से ऊपर उठ जाते ये जिज्ञासु भी इस अनुशासन का हैं तब धर्म आपका एक अग बन जाता है। तब आप गलत कार्य नहीं करते । आप गलत कार्य नहीं करते । ऐसा नहीं है कि कोई आपसे कहता है या आप किसी का अनुसरण करते हैं। क्या ऐसा करने के लिए कोई विवशता या अनुशासन होता है? परन्तु आप गलत कार्य करना ही नहीं चाहते । कोई भी असम्माननीय, अप्रिय बात आप नहीं कहना चाहते । आत्मरूप सहजयोगी का यही गुण है। आत्मा बनने के पश्चात् मुझे कुछ बताना नहीं पड़ता । आपको कुछ बताना नहीं पड़ता । ये इतना स्पष्ट, इतना प्रत्यक्ष होता है कि जितनी गहराई में व्यक्ति अपने अन्दर उसे लगता है कि उसके अन्दर अत्यन्त महानता और में मैंने उनसे कभी बात नहीं की है। आप जानते हैं कि बहुत से लोगों ने रातों-रात नशें त्याग दिए । मैंने उनसे कुछ नहीं कहा । नशे आदि के बार उन्होंने ऐसा किस प्रकार किया? क्योंकि उनमें प्रकाश था । आज आपको भी आत्मा जाता है । सुन्दर भावनाएं निहित हैं। अपने सगुणों से आप दूसरों के अहम् पर विजय पा लेते हैं। मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ। एक वार में एक हैं। पूर्णत: स्वतन्त्र क्योंकि आपमें प्रकाश है। आप गलत कार्य सन्त से मिलने गई । सहजयोगी कहने लगे कि श्रीमाताजी आप तो कभी इन गुरुओं से मिलने नहीं जातीं ! मैंने कहा तुम क्यों चिन्ता करते हो? मेरे साथ आओ । हमें पहाड़ी पर चढ़ना था । मैंने कहा यहां से उसकी चैतन्य लहरियां देखो । कितनी और उसका प्रकाश पथ प्रदर्शक तत्व है जिनके द्वारा चैतन्य लहरियां आ रही हैं! हम पहाड़ी पर पहुँचे । यह सन्त वर्षा पर प्रभुत्व के कारण प्रसिद्ध थे । जोर से बारिश आने लगी और मैं पूरी तरह भीग गई । जब मैं ऊपर पहुँची तो उसे का यही प्रकाश प्राप्त हो गया है। आप पूर्णत: स्वतन्त्र हो गए नहीं कर सकते । मान लो यहां रोशनी है और यहीं यदि काई धमाका होता है तो मैं धमाके की ओर नहीं दौड़ूंगी और न ही आप उधर दौडेंगे । क्योंकि आपके पास आँखे हैं । तो आत्मा आप गुणातीत, कालातीत और धर्मातीत बन जाते हैं। आप किसी चीज के दास नहीं हैं। आप घड़ी के, समय के दास नहीं हैं। अपने गुणों के भी आप दास नहीं हैं । आप यह भी नहीं देखना चाहते कि आप आक्रामक हैं, तामसिक प्रवृत्ति के या सन्तुलित (Right Sided, Left बैठा एक पत्थर पर हुआ पाया । क्रोध से वह कांप रहा था। उसकी गुफा में जाकर में बैठ गई । अन्दर आकर उसने Sided or in the Centre)। आप सहजयांगी हैं और सहजयांगी इन सब चीजों से ऊपर होता है। आप गुणातीत हैं, धर्मातीत “नहीं नहीं, मुझे तो तुम्हारे अन्दर कहीं अहम् नहीं दिखाई हैं क्योंकि धर्म आपका अंग प्रत्यंग वन गया है। आपको कांई धर्मानुशासन नहीं मानना पड़ता । सहजयांग के कुछ आश्रमां में मैंने देखा है कि लोग अत्यन्त नियमनिष्ठ हैं । उन्हें इतना कठोर नहीं होना चाहिए । मुझे उनसे कहना पड़ा कि इतने नियमनिष्ठ न हों। कोई व्यक्ति यदि प्रातः चार बजे नहीं उठ पाता तो कोई बात नहीं । उसे दस बजे उठने दो । कुछ समय पश्चात्ं वह स्वयं चार बजे उठेगा उन्हें बहुत ज्यादा अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। बच्चों को भी बहुत ज्यादा कहा ,”मां, आपने मुझे बारिश क्यों नहीं बन्द करने दी? क्या आपने मंरा घमण्ड तोड़ने के लिए ऐसा किया? ” मैंने कहा, दिया ।” परन्तु समस्या तो कुछ और है; तुम सन्यासी हो, त्यागी हो । तुम मेरे लिए एक साड़ी लाए थे, क्योंकि तुम एक सन्यासी हो मैं तुमसे साड़ी नहीं ले सकती । अत: मुझे भीगना पड़ा ताकि मैं तुमसे साड़ी ले सकू और वह द्रवीभूत हो गया। वह बिल्कुल भिन्न व्यक्ति बन गया । विवेक द्वारा आप भिन्न प्रकार के लोगों को संभाल सकते हैं। आप ऐसी बातें कहते हैं जिनसे उनका अहम् पिंघल जाता है। उनके बन्धन भी वश में किए जा सकते हैं और एक नई प्रकार की जागृति उनमें अनुशासित करने का प्रयत्न न करें। निसन्देह: यदि व आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे स्वयं बहुत अच्छ है, बहुत सुन्दर की अभिव्यक्ति को देख पाते हैं। इसी प्रकार लोगों ने सन्तों हैं। यदि वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो उन्हें आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न करें । एक बार जब आप यह महसूस कर लंगे कि जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं वह अंधेरे में हैं, इसी लाई जा सकती है। वे आपके अन्दर विवेक, प्रेम और आत्मा का बहुत दु:ख देने तथा सताने के बाद भी उनका सम्मान किया. उन्हें प्रेम किया।

कारण वे गलतियां करते हैं. तब आपका दृष्टिकोण उनके कि प्रायः कहीं भी इस प्रकार नहीं किया जाता । इस सुन्दर प्रति बदल जाएगा । तब आप उनके प्रति अत्यन्त धेर्यवान, प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए शिशु सम बनने का प्रयत्न करुणामय, स्नेहमय, प्रेममय होने का प्रयत्न करेंगे; क्योंकि कोई अन्य नहीं करता । यह एक अत्यन्त नई चीज देखी जा आप जान जाएंगे कि वह व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, सकती है। चहुँ ओर इतनी शान्ति, इतना प्रेम, इतना आनन्द! इतने दूर स्थित इस स्थान पर आप यह किस प्रकार कर उसके पास चक्षु नहीं हैं, वह देख नहीं सकता । वह चक्षुविहीन है, सुन नहीं सकता और वास्तविकता को महसूस सकते हैं, किस प्रकार यह सब कर सकते हैं ! यह समझ पाचा सुगम नहीं है। यह मानव की समझ से परे है। उनकी भी नहीं कर सकता । सबसे पहले उसे सत्य महसूस करवाएं, उसे भाषण देने या अनुशासित करने का क्या लाभ है? ऐसी समझ में नहीं आ सकता कि किस प्रकार ये लोग ऐसे-हैं ओर कैसे इतनी प्रसन्नता पूर्वक ये रह रहे हैं।। आपके घरों में इतनी सुख-सुविधा है, वहां आप आराम से रहते हैं, सभी स्थिति में तो वह गलतियां करता चला जाएगा और स्वयं तथा अन्य लोगों का कष्ट देता रहेगा । तो अपने आत्मसाक्षात्कार से आपने यही उपलब्धियां कुछ है। परन्तु यह स्काऊट मेदान रहने के लिए इतना पाई हैं कि आप इन सब चीजों से ऊपर उठ गए हैं और सुविधा- जनक स्थान नहीं । पर, मैं जानती हूँ. आप कहीं भी रह सकते हैं। आप जहां भी हों, यदि वहां सहज योगी हैं तो आप किसी चीज की चिन्ता नहीं करते । बिना किसी आशा और स्नेह का सौन्दर्य देखा है, न कंवल अपने प्रति वल्कि के. विना किसी आलाचना के, बिना किसी बकवास या अन्य लोगों के लिए भी । यदि यह प्रेम केवल मेरे लिए ही मूर्खतापूर्ण बात के यह सामूहिक आनन्द अति सुन्दर है, यद्यपि आप एक दूसरे की टांग भी खींचते हैं और मजाक भी करते हैं। आप चाहे भारत, इंग्लैंड, अमेरिका या किसी अन्य प्रेममय, आनन्दप्रदायक स्वभाव के व्यक्ति बन गए हैं। सहजयोग में में इसके बहुत से उदाहरण दे सकती हूँ। मैंने उनके प्रेम हांता तो मैं इसका वर्णन कर सकती । कल ही मैंने बताया कि ये लोग इजराइल गए थे अब ये मिस्र और रूस गए । उनसे किसने कहा? मैं किसी को कहीं जाने के लिए नहीं कहती । अपने आप ही उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें जाना चाहिए और यह कार्य करना चाहिए, और लोगों को अज्ञान से मुक्ति दिलानी चाहिए । आज जब आप लोग मेरा 75वां है। स्थान से हों, आपकी मित्रता अत्यन्त सुन्दर आपकी सूझबूझ और गतिविधियों में इतना तदातम्य प्राप्त हो जाता है मानों समुद्र में एक के बाद एक लहर उठती हो । यह प्रक्रिया निरन्तर है. शाश्वत है और हमें अन्य लोगों जन्मदिवस मना रहे हैं, इतने सारे गुब्बारे लगाए गए हैं। वे के लिए भी यही स्थिति प्राप्त करनी है। अतः आपका याद रखना है कि आप प्रकाशमान हैं, अन्य लोग नहीं । आपको आपके प्रम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यहां जो कुछ भी उनकी समस्याओं के विषय में अत्यन्त सचेत. सहनशील एवं सुघड़ होना चाहिए । उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनें । सर्वप्रथम वे आपको बताएंगे कि मेरा व्यापार डूब रहा है. वाले हैं । मैंने आपके लिए कुछ नहीं किया । मेरी समझ में मेरी पत्नी बेकार है या मेरे बेटे के पास नौकरी नहीं है, वह अत्यन्त सुन्दर एवम् मनोहर हैं। उनके भिन्न रंग मेरे प्रति आपने किया, सारी सजावट में, हर चीज में मुझे आपका प्रेम दिखाई दे रहा है। मुझे लगता है कि मेरे बच्चे इतना प्रेम करने या नहीं आता कि कौन-सी चीज आपको इतना कृतज्ञ बना रही धनार्जन नहीं करता । सभी प्रकार की चीजें वे आपसे कहेंगे। है! अभी तक भी मैं यह जानना चाह रही हूँ कि मैंने किया उन्हें सुनें, उनके लिए यह सब महत्वपूर्ण हैं। इसक बाद आप पायेंगे कि शनै:शनै: वे शान्त हो रहे हैं क्योंकि अपनी आध्यात्मिक जागृति के माध्यम से आप प्रेम, आनन्द एवं आत्मविश्वास प्रसारित कर रहे हैं। आपमें वो शक्तियां हैं कि जहां भी आप खड़े हो जाएंगे वहीं सुख-शान्ति का सृजन कर मुझमें कोई विशंष चीज देख रहे हों परन्तु जिस प्रकार से दंगे । अत: आत्मविश्वस्त हों। आत्मविश्वास न खोए । दूसरों आप अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं वह मेरी समझ से परे को समझने लिए आपका विवेक अन्य लांगों को विश्वस्त करेंगा कि ये कुछ विशेष लोग हैं। ये क्रोध नहीं करते. ये पागल नहीं है। ये सनक के पीछे नहीं दौडते अत्यन्त का धन्यवाद न करें, उन्हें अपना समझे! यह सत्य है. मुझे सन्तुलित लोग हैं। इसका आप को अभ्यास नहीं करना पड़ता। धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं. आप मुझे अपने संग ये गुण आपमें अन्तर्निहित हैं । इसका आपको गर्व होना चाहिए। आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि आपको यह प्राप्त करना धन्यवाद देना चाहते हैं, आप शिशु ही बन जाते हैं। इसके है या बनना है। यह आपके पास है- ह । क्या है! मैंन कुछ नहीं किया । परन्तु जिस प्रकार से आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करना चाह रहे हैं यह आश्चर्यजनक है! मैं कंवल इतना कहूँगी कि आपको अपनी आत्मा का प्रकाश प्राप्त हो गया है। उस प्रकाश में हो सकता है आप है! उस दिन जेस एक वक्ता ने कहा था, आप अपनी मां समझे। परन्तु नन्हें वच्चों की तरह जिस प्रकार आप मुझे आपक अन्तर्निहित आपको आत्मा के प्रकाश में केवल इसे देखना भर है। यह लिए आप में इतना उत्साह है कि आप यह भी नहीं समझते

एक सर्वसाधारण चीज है जो कार्य करती है। आपको समझना अन्य लोगों के लिए सुगम नहीं है। परन्तु आपके लिए उनको समझना अति सुगम होना चाहिए क्योंकि सहज में आने से दी हैं, आपको अपने अस्तित्व का, अपनी आत्मा का पूर्व आप उन्हीं जैसे थे और अब वे आपकी ओर देख रहे हैं ज्ञान होना चाहिए, आपको पता होना चाहिए कि आप कृतज्ञता अभिव्यक्त कर रहे हैं, इतनी प्रसन्नता एवम् इतना आनन्द प्रापत कर रहे हैं। तो ये सब बातें मैंने आपको बता तथा आप ही जैसे बन जाएंगे । यह अत्यन्त सहज है। आत्मा हैं। आत्मा के रूप में आप इन सब चीजों से ऊपर उठ जाते हैं और एक बार जब ऐसा हो जाता है तो आप हैरान होंगे कि आपका व्यक्तित्व कितना महान् हो गया आप दंख सकते हैं कि मैंने एक महिला से सहजयोग आरम्भ किया था और अब कितनी महिलाएं हैं। मैंने क्या है! किया, वास्तव में मैं नहीं जानती कि मैंने क्या किया? मुझे वास्तव में इसका कोई विचार नहीं है। परन्तु आप लोग इतनी आप सबको अनन्त आशीर्वाद। ा