Easter Puja. Istanbul (Turkey), 19 April 1998
आज हम ईसा मसीह के पुनरुत्थान का उत्सव मना रहे है | यह ईसा मसीह के जीवन का सबसे बड़ा संदेश है, सूली पर चढ़ना नहीं है |
किसी भी व्यक्ति को सूली पर टांगा जा सकता है और मारा जा सकता है, किन्तु ईसा मसीह का ये मृत शरीर पुनर्जीवित हो उठा | म्रुत्यु का स्वयं अंत हो गया और उन्होंने इस पर विजय प्राप्त कर ली |
यह चमत्कार हो सकता है सामान्य मनुष्य के लिए निश्चय ही, किन्तु ईसा मसीह के लिए नहीं, क्योंकि वे दैवीय व्यक्तित्व थे, वे श्री गणेश थे, वे स्वयं ओंकार थे | इसलिए वे पानी पर चल सकते थे | गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव उन पर नहीं पड़ सकता था और इसलिए भी वे पुनर्जीवित हो उठे क्योकि मृत्यु उन पर प्रभावी नहीं हो सकी|
वे ऐसे महान दैवीय व्यक्तित्व थे विशेषतः मनुष्यों के लिए बनाये गए थे ताकी लोग उनको पहचान सकें | लेकिन लोगों ने उनको पहचाना नहीं, उनकी हत्या कर दी अत्यंत बर्बरतापूर्वक | वे आज भी सोचते हैं कि यह क्रॉस (सूली) एक महान वस्तु है क्योंकि ईसा मसीह की मृत्यु एक क्रॉस पर हुई थी | यह एक बहुत ही क्रूर विचार है मानव जाति का क्रॉस (सूली) को सम्मान देना | यह क्या दर्शाता है? यह ये दर्शाता है कि लोगों ने पसंद किया उनके प्रति की गई क्रूरता बर्बरता को | क्रॉस प्रतीक है उनकी मृत्यु का और उन पर अत्याचारों है, जिस तरह से उन्हें यातनाएं दी गई थी।
इसलिए वह बहुत दुःखद समय था जब उनको सूली पर टांगा गया | लेकिन जब वे पुनर्जीवित हो उठे तो यह सर्वाधिक आनंददायक अत्यंत मंगलदायक और अति सुन्दर समय हो गया | ईसा मसीह का पुनर्जीवित हो उठना अत्यंत प्रतीकात्मक है सहज योग के लिए | अगर ईसा मसीह पुनर्जीवित हो सकते हैं तो मानव जाति का भी पुनर्जन्म हो सकता है क्योंकि वे मनुष्य के रूप में सारी शक्तियों के साथ अवतरित हुए थे और उन्होंने मार्ग बनाया हमारे लिए पुनर्जीवित होने का |
पुनर्जन्म के इसी मार्ग का अनुसरण हमने सहजयोग में किया है | लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है आज्ञा चक्र का भेदन करना, जिसका वर्णन सभी आध्यात्मिक धर्मग्रंथों में किया गया है, या यह भी कहा जा सकता है कि धर्मग्रन्थ, वह द्वार जो स्वर्ण है और उस आवरण के सामान है जिसे कोई पार नहीं कर सकता है, अत्यंत संकुचित है आज्ञा चक्र का यह द्वार | किन्तु ईसा मसीह ने इसको पार किया था |
उनके पार करने ने आज हमारी सहायता की है आज्ञा को खोलने में | आज्ञा को खोले बिना आप सहस्त्रार पर नहीं जा सकते हैं | परन्तु यह आपके लिए इतनी सरलता से हो गया केवल इसलिए कि ईसा मसीह ने इन सभी यातनाओं और क्रूरताओं को सहा और इसे पार कर लिया | हम उनके कितने आभारी हैं, शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते| क्योकि ये वही हैं जिन्होंने लोगों का नेतृत्व किया यह बताने में “तुम ढूंढो, तुम खोजो और तुम पाओगे |” और तब वे कहते हैं कि तुमको आना है और द्वार खटखटाना है और ठीक यही आपके प्रकरण में भी हुआ है कि आप आज्ञा तक उठे हैं और तब आपने आज्ञा को पार किया है |
यह आज्ञा का पार करना आपके लिए बिलकुल कठिन नहीं था |यद्यपि आपकी अपनी सोच विचार और झूठी मर्यादाएं और भावी योजना और वो सब, यह एक बहुत बड़ा झुंड था अत्यंत काले बादलों का जो आज्ञा पर छाया हुआ था, विचार आप पर हावी हो रहे थे और आप इस आज्ञा को भेद कर पार नहीं जा सकते थे, जो कि पूरा ढका हुआ था |किन्तु आपने ऐसा किया और आपको यह अनुभव भी नहीं हुआ कि इतनी सरलता से आपने आज्ञा चक्र को पार कर लिया है |
इसलिए सर्वप्रथम हमें वास्तव में ईसा मसीह के अत्यंत आभारी होना चाहिए आज्ञा चक्र को खोलने के लिए| उनके लिए ये सारी यातनाएं और क्रूरताएं कुछ नहीं थीं, क्योंकि उनके जीवन का उद्देश्य, उनके आगमन, उनके अवतरण का उद्देश्य आज्ञा चक्र को भेदना था | आज आप पायेंगे कि यधपि आपका आज्ञा खुल गया है और आप इसे पार कर चुके है, फिर भी आप अचंभित होंगे क्योंकि लोग इसी आज्ञा चक्र में उलझ जाते हैं | सहज योग में भी लोग आज्ञा चक्र में उलझ जाते हैं |
अब हम कैसे देखें, आत्मनिरीक्षण द्वारा, कि हमारे भीतर क्या घटित होता है ? उदाहरण के लिए एक बार जब लोग सहज योग में आ जाते हैं उन्हें लगता है वे प्रभारी हैं, इसके प्रभारी हैं उसके प्रभारी हैं, सभी सहज योगियों के प्रभारी हैं | और वे इस प्रकार आचरण करने लगते हैं जो एक सहज योगी के लिए उचित नहीं है | बिलकुल भी नहीं| मैंने उन्हें देखा है और मुझे हंसी आती है यह देखकर जिस प्रकार वे अपने को दूसरों पर हावी करने लगते हैं और दिखावा करने का कि वे अत्यंत प्रभारी हैं | यह कोई नयी बात नहीं है यह मनुष्यों के साथ पहले भी था | किन्तु यदि ऐसा था तो यह सहज योग के पहले था | आज भी लोग मनोदशा बना लेते हैं दूसरों पर हावी होने की यह कह कर “हम प्रभारी हैं” |
सहज योग इतना सरल नहीं है जितना आप सोचते हैं क्योकि वहाँ बहुत सारे प्रलोभन हैं | मान लीजिये आपने किसी को लीडर बना दिया, अब लीडर को प्रभारी बनते ही उसे सत्ता का नशा हो जाता है | जब ऐसा होता है तो वह अन्य सभी लोगों पर हावी होना शुरू कर देता है और साथ ही वो दिखावा करने लगता है की वो कोई बहुत महान है और उसको अन्य सभी लोगों पर हावी होना है |
तब वह एक भय का वातावरण बनाता है | सर्वप्रथम, मैंने देखा है, उनके साथ क्या होता है कि वो झूठ में ही कहना शुरू कर देता है कि “श्री माताजी ने ऐसा बताया है , माँ ने ऐसा कहा | यह माँ का विचार है |” मुझे उस सज्जन से कोई लेना देना नहीं होता किन्तु वो इस तरह की बातें करता रहता है और लोग अत्यंत भयभीत हो जाते हैं | वो आपको यह कह कर भी डरा सकता है कि “मैं माँ को बताऊंगा, माँ मेरी बात सुनेंगी और वे आपको दण्डित करेंगी!” कई बार मैं बहुत आश्चर्यचकित हो जाती हूँ ऐसे लोगों पर क्योंकि मैंने कभी ऐसा नहीं कहा था कि मैं किसी को दंड दूँगी या उसे सहज योग से बाहर कर दूँगी, ऐसा कुछ भी नहीं |
तो यह व्यक्ति जिसका दिमाग़ सातवें आसमान पर हो, वह एक लीडर हो सकता है या नहीं भी हो सकता है, कदाचित वह सहज योग में भी कुछ ना हो और तब वह इस प्रकार से बातें शुरू करता है, इतने विचित्र ढंग से कि लगता ही नहीं कि वह व्यक्ति एक सहज योगी है | फिर वह और भी आगे बढ़ जाता है और स्वयं का महान बखान करने लगता है, जिसे खासतौर से चुना गया है उच्च से उच्चतर अवस्था में ले जाने के लिए | जब मैं इन चीजों के बारे में सुनती हूँ तो अचंभित हो जाती हूँ कि आखिर लोग कैसे हर समय स्वयं को इस प्रकार से मूर्ख बनने देते हैं और इस तरह व्यवहार करते हैं l
सहज योग में सर्वप्रथम विनम्रता है। यदि आप एक विनम्र व्यक्ति नहीं हैं, तो आप सहज योगी नहीं हो सकते। ऐसा व्यक्ति जो आदेश देता है, ऐसा व्यक्ति जो इस तरह से बात करता है जैसे कि वह हिटलर है, कोई भी व्यक्ति जो चीजों को प्रभारी के भांति नियंत्रण करने की चेष्टा करता है ,ये सभी क्षमताएं केवल यह दर्शाती हैं कि उस व्यक्ति ने सहज योग में कुछ भी उपलब्ध नहीं किया है।
पहली चीज़ है विनम्रता का आनंद लेना, मैंने ऐसे लोगों को देखा है। वे हमेशा पहली पंक्ति में बैठेंगे। वे हमेशा एक ऐसे स्थान पर बैठे रहेंगे जहाँ आप उन्हें हर समय देखते रहें । मैं बस मुस्कुराती हूँ | मुझे पता है कि ये केवल दिखावा है, वे स्वयं अपने को अंतहीन विशिष्ट समझते हैं और इसलिए वे वहां हैं। लेकिन उनकी स्वयं की हार हो रही है, वे स्वयं बहुत खुश नहीं हैं, यही कारण है कि वे प्रयत्न करते हैं इन सभी चालों और इस तरह के वर्चस्व का।
दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो विनम्र हैं, जो सरल हैं, जो ईमानदार हैं और जो वास्तव में सत्य की खोज कर रहे हैं, उत्पीड़ित किए जाते हैं इस सज्जन द्वारा । वह उन पर अत्याचार करता है, दिखावा करने का प्रयत्न करता है, प्रयत्न करता है दूसरों को दास बनाने की । और मैंने देखा है कि लोग इतने दूर तक चले जाते हैं, जहां लोगों का एक समूह बन गया जो अपने नेता की अनुमति के बिना एक इंच भी नहीं हिलता था। और फिर वे सभी अधीन हो जाते हैं इस प्रकार के विवेक-रहित व्यक्तित्व के ।
सबसे पहले आप जानते हैं कि यह माँ का प्रेम है। माँ कभी हावी नहीं होती। वह हावी नहीं हो सकती क्योंकि वह प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। जैसे ही उसे समस्या दिखाई देती है, तुरंत वह उसे अवशोषित कर लेती है। उसे विचार-विमर्श करना पड़ता है, कभी-कभी एक नाटक जैसा, यह दिखाने के लिए कि वह गुस्से में है। पर मूलतः वो किसी से नाराज़ नहीं हो सकती। यह वह प्रेम है जो हर समय, सदैव, बहता रहता है और यह प्रेम माँ को वैसे ही आवृत करता है जैसे आपको l इस प्रकार आप लोग सहज योग को समझते हैं।मानव को क्या चाहिए, प्रेम और करुणा के अतिरिक्त । प्रेम और करुणा, जो अत्यंत पवित्र है। ईसामसीह को देखिये। वे उन लोगों पर भी दयावान हो गए जिन्होंने उसे क्रूस (सूली) पर चढ़ाया था। उन्होंने अपने पिता, सर्वशक्तिमान ईश्वर से कहा कि, “कृपया उन्हें क्षमा करें, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।” वे देख सकते थे कि ये लोग अंधेपन में गलत काम कर रहे हैं जिससे परमपिता परमेश्वर बहुत रुष्ट होंगे, जिनका प्रकोप बहुत है और उन्हें नष्ट कर सकते हैं।
तो, यह बहुत ही करुणाभाव के साथ किया गया बिना कुछ उसके बारे में सोचे, बस स्वतः उन्हें आभास हुआ कि, “ये लोग मेरे साथ यह सब कर रहे हैं और मुझे नहीं पता कि उनके साथ क्या होगा।” इसलिए, उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की, पिता से कि “कृपया क्षमा करें, कृपया उन्हें क्षमा करें, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं, वे अंधे हैं, इसलिए कृपया उन्हें दंडित न करें।”
कैसी (अद्भुत) करुणा, कैसा प्रेम! मेरा मतलब है, इसके बारे में विचार करें क्या हम अपने जीवन में ऐसा करते हैं कि कोई हमें आहत करता है, हमें परेशान करता है? क्या हम परमपिता से उन लोगों को क्षमा करने के लिए कहते हैं, जो नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं? यही सहज योग का स्तर होना चाहिए। और यह बहुत अच्छी तरह से कार्य करेगा यदि आप क्षमा के लिए याचना करते हैं, तो ईश्वर उनकी देखभाल करेंगे, वह उन्हें परिवर्तित कर देंगे, वे उनकी अक्ल ठिकाने लाएंगे ।
ईसा मसीह के संदेश प्रेम, करुणा, शुद्ध करुणा से भरे हैं। कैसे उसने मैरी मैग्डलीन की रक्षा करने की चेष्टा की, यह उनका एक उदाहरण है: जो पापमय जीवन जी रही थी और एक संत का उससे कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन जब उन्होंने लोगों द्वारा उसे पत्थर मारे जाते देखा तो वह उसके आगे खड़े हो गए | उन्होंने अपने हाथ में एक पत्थर ले लिया और बोले, “ठीक है, जिन्होंने कोई गलत काम नहीं किया हो या कोई पाप नहीं किया है, इस पत्थर को ले जा सकते हैं और मुझे मारें! ” और कोई भी आगे नहीं आया, क्योंकि उन्हें स्वयं का सामना करना पड़ा।
जब हम दूसरों पर हावी होते हैं, तो एक प्रकार का क्रूर आनंद मिलता है, ऐसा आनंद जिसे मैं स्वयं तो नहीं समझती, पर लोग पाते हैं। वे दिखावा करते हैं कि, “हमने यह आनंद प्राप्त किया है, हमने यह महान शक्ति प्राप्त की है।” यह सदियों से होता आया है सभी महान सम्राटों और निरंकुश शासकों के साथ । लेकिन सहज योगियों के साथ अलग रास्ता होना चाहिए। उन्हें विश्व पर राज करना है शांति और प्रेम के साथ । उन्हें कदापि दिखावा नहीं करना चाहिए । इस तरह सहज योग फैलेगा, बहुत बहुत तेजी से ।
संसार को क्या चाहिए? आप ज़रा इसके बारे में सोचिये ! इसे केवल प्रेम और स्नेह की आवश्यकता है। वे लोग जो अभी तक अज्ञानता में खो चुके हैं जीवन के प्रति और अभी भी दूसरों को परेशान करने में व्यस्त हैं, दूसरों पर अत्याचार कर रहे हैं, सामूहिकता के विरुद्ध जा रहे हैं उन्हें सहज स्थिति में लौटना होगा। यह कभी-कभी बहुत ही असामान्य व्यवहार होता है और आप समझ नहीं पाते कि वे क्यों व्यवहार करते हैं पागलों की भांति । यह बताना भी बहुत मुश्किल है ऐसे लोगों को कि, “आप पागल हैं!” और यह कठिन है ऐसे व्यक्ति के साथ होना जो इतना पागल है किसी प्रकार की प्रभुत्व के कारण ।
ऐसा ही बहुत सारे सहज योगियों के साथ भी चलता है, मैंने देखा है वे सोचने लगते हैं कि उनके पास बहुत सारी शक्तियां हैं, उन्हें लगता है कि वे जो चाहें कर सकते हैं, वे किसी से भी बात कर सकते हैं और वे हर किसी को भ्रमित कर सकते हैं।
लेकिन सहज योग में आपको भ्रमित नहीं करना है, आपको स्पष्ट रूप से व्यक्त करना होगा अपना प्रेम । लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह किसी विशेष प्रकार का भाव है किसी विशेष अवसर के लिए, अपितु यह एक दूसरे के साथ एक आंतरिक एकता है।
कभी-कभी मैं पाती हूँ सहज योगी एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझते हैं, एक-दूसरे से अत्यंत प्रेम करते हैं, बड़ी सुंदरता से दूसरे लोगों के प्रेम का आनंद लेते हैं । जब मैं यह देखती हूँ , मुझे बहुत-बहुत प्रसन्नता होती है, पूर्णतया आनंदित । वैसा ही मैं चाहती थी | इन लोगों को आनंद लेना चाहिए । और आप चकित होंगे : सबसे आनंददायक बात प्रेम है जो आप दूसरों को देते हैं | हो सकता है आपको प्राप्त नहीं हो, परन्तु जब आप दूसरों को प्रेम देते हैं, तो यह सबसे आनंददायक बात होती है |
लेकिन जिस तरह से आप स्वयं को व्यक्त करते हैं मैं समझती हूँ यह भी एक कला है यह समझना कि कैसे दूसरों को प्रसन्न किया जाए, कैसे उन्हें आनंदित किया जाये l
मैंने यह कहानी पहले भी सुनाई थी -एक संत के बारे में जो गगनबावडा में रहते थे: यह एक पहाड़ी या एक पहाड़ है। वह वहां रहते थे और देखो वह चल नहीं सकते थे | कंपन के कारण, उन्होंने अपने पैर या कुछ खो दिए थे, उनके भीतर की शक्ति , और फिर वह सभी स्थानों पर एक बाघ पर जाया करते थे, क्योंकि बाघ उनसे प्रेम करता था और वह बाघ से प्यार करते थे।
तो, यह सज्जन हर समय बॉम्बे के लोगों से कहते रहते थे, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? माँ आई है, जाओ और उसके पैर छुओ! ” मुझे नहीं पता था कि वह इतना चिंतित क्यों थे। इसलिए, मैंने सहज योगियों से कहा, “मुझे उनसे मिलने जाना चाहिए।”
इसलिए, देखिये इन सभी गुरुओं का कहना है कि, “हम अपने तकिए (आसन) को नहीं छोड़ते हैं। हमें अपने स्वयं के तकिए पर रहना होगा।”
मतलब जहां भी रहते हैं, वहीँ विराजमान रहते हैं, वे बाहर नहीं जाते हैं। मैं इसके विपरीत हूँ, मैं कभी एक जगह पर स्थित नहीं रहती! तो, उन्होंने पूछा कि क्या मैं जा सकती हूँ ? तो मैंने कहा, “क्यों नहीं?” तो, मैं वहां गयी और सहज योगियों ने कहा कि, “माँ, आप कभी भी किसी के यहाँ नहीं जाती हो, तो आप यहां क्यों जाना चाहती हो?” मैंने कहा: “ठीक है, चैतन्य देखो !” और चैतन्य अतिबृहत था!
इसलिए, जब मैं ऊपर गयी, तो यह महाशय बहुत क्रोधित थे बारिश के ऊपर क्योंकि वे बारिश को नियंत्रित कर सकते थे| वे बारिश को नियंत्रित करते थे, यह बहुत आश्चर्यजनक है कि जब मैं ऊपर गयी, तो वे नियंत्रित नहीं कर सके और मैं पूरी तरह से भीग गयी। तो, वे बहुत क्रोधित हो गए । वे एक पत्थर पर बैठे थे और क्रोध के साथ इस तरह कर रहे थे …। मैंने उससे कुछ नहीं कहा मैं भीतर गयी और उस गुफा में बैठ गई जहां उन्होंने मेरे बैठने के लिए कुछ व्यवस्था की थी।
फिर वे आए, मेरे पैर छुए और बैठ गए । और मैं आश्चर्यचकित थी कि वे अभी भी क्रोधित थे और वे समझ नहीं पा रहे थे कि बारिश क्यों नहीं रुकी। तो, उन्होंने मुझसे पूछा,
“आपने मुझे बारिश रोकने की अनुमति क्यों नहीं दी? क्योंकि, आखिरकार, आप इतनी दूर मुझसे मिलने आ रही थी और बारिश का व्यवहार ठीक होना चाहिए था ! और मैं भी, किसी प्रकार से भी, बारिश को नियंत्रित नहीं कर सका। तो क्या बात थी, क्या सबक था? ” मैं बस मुस्कुरा दी । मैंने कहा “देखिये आप एक तपस्वी हैं, एक संन्यासी हैं, और मैं आपकी माता हूँ। मैं आपसे एक साड़ी नहीं ले सकती, क्योंकि आखिरकार, आप एक संन्यासी हैं और किसी संन्यासी से कुछ नहीं लेना चाहिए।” यहाँ तक कि माँ भी उससे कुछ नहीं ले सकती। “लेकिन आपने मेरे लिए एक अच्छी साड़ी खरीदी है और मुझे भीगना पड़ा ताकि मैं आपसे साड़ी ले सकूं।” आप मिठास देखिए मेरे कहने की, जिसने उन्हें पिघला दिया और वे रोने लगे ।
उन्होंने कहा, “हमें इस विश्व के लिए एक माँ की आवशकता है। एक माँ होनी ही चाहिए। हम समस्या का समाधान नहीं कर सकते क्योंकि जो भी हो, हमें गुस्सा आ जाता है। या हम लुप्त हो जाना चाहते हैं। हम इन भयानक लोगों के साथ नहीं रहना चाहते जो इतने पापी हैं उनकी सहायता करने के लिए। यह समस्या आज पूरे विश्व के साथ है और यही कारण है कि आप पूरे विश्व में बहुत कम आध्यात्मिक लोग पाते हैं। क्योंकि वे वही हैं जो बहुत प्रताड़ित, परेशान, अपमानित हो रहे हैं, सभी प्रकार की चीजें घटित हुई हैं। इसलिए वे संघर्ष पर संघर्ष किये जा रहे हैं, इसलिए वे बहुत तीव्रता से मरना चाहते हैं।
ज्ञानेश्वर: इतने महान व्यक्तित्व, इतने बड़े लेखक, कवि। मेरा तात्पर्य है, वे सब कुछ थे। इतना सुंदर उन्होंने लिखा है। लेकिन 23 साल की आयु में, उन्होंने अपनी समाधि ले ली, मतलब कि वह एक गुफा में चले गए और गुफा को बंद कर दिया और वहीं मर गए। वे निश्चित रूप से थक गए होंगे और हताश हो चुके होंगे अपने चारो तरफ अज्ञानी लोगों से और इसलिए उन्होंने ऐसा किया |
तो, हम कल्पना कर सकते हैं कि ज्ञानेश्वर जैसे व्यक्ति, जो कार्तिकेय के अवतार थे, को मृतकों के संसार में वापस आना पड़ा क्योंकि वह इसे और अधिक सहन नहीं कर सकते थे जिस तरह से वे उन्हें यातनाएं दे रहे थे। इन लोगों ने उन्हें इतनी यातनाएं दीं, यह कहते हुए कि वह संन्यासी का बेटा है। मेरा मतलब कि यह इस तरह है: एक संन्यासी के बेटा होना मतलब वह अच्छा नहीं है। वह बिल्कुल एक अवैध बच्चे की तरह है उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया इस हद तक ।
उनके पास यहाँ तक कि जूते भी नहीं थे पहनने के लिए: भारत की उस गर्मी में, वह नंगे पैर चलते थे । और उनकी बहन, भाई जो महान विद्वान थे, जो महान संत, महान अवतार थे, उन सभी को भुगतना पड़ा। इस सब के कारण, उन्होंने लुप्त हो जाना चाहा, और उन्होंने ऐसा करने की एक सुंदर विधि अपनाई, उन्होंने उनसे कहा कि, “मुझे जाना है।” और वह उनसे विदा लेकर, अपनी गुफा के अंदर चले गए, और अपनी समाधि ले ली ।
यहाँ तक कि ईसा भी बहुत युवा थे जब उनको क्रूस पर चढ़ाया गया। उनकी आयु 33 साल थी। यह सब ईश्वरीय योजना थी उनको सूली पर चढ़ना हमारे सहज योग के लिए रास्ता बनाने के लिए, आज्ञा को खोलने के लिए, उनके जीवन का बलिदान, और उसके लिए सूली पर चढ़ाया जाना ऐसे भयावह, क्रूर तरीके से; जो आमतौर पर आप लोगों को ऐसा व्यवहार करते हुए नहीं देखेंगे उस व्यक्ति के प्रति जो मरने वाला हो।
तो क्या हुआ, कि जो लोग इंचार्ज थे उनके सूली पर चढ़ाने के, ज़रूर कोई शैतान होंगे, जिस तरह से वे व्यवहार करते थे। उन्हें क्षमा करना संभव नहीं है, यद्द्पि ईसा मसीह ऐसा कहते हैं। ऐसे लोगों को क्षमा करना कठिन है जो ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाना देख रहे थे।
तो, यह ऐसी स्थिति है कि उनके जैसा कोई व्यक्ति सोचता है कि, “मुझे अपना काम करने दो: जो कि सहस्रार को भेदना है।” और फिर वह रहना नहीं चाहते, इन यातना देने वाले मूर्ख लोगों के साथ रहना , और वह कश्मीर में लुप्त हो जाते हैं, जहां वह अपने पुनर्जन्म के बाद रहे ।
बहुत सारी कहानियां हैं उनके आरोहण और उनके पुनर्जीवित होने के बारे में। और, उन सारी कहानियों को यदि आप पढ़ते हैं, तो आप आश्चर्यचकित होंगे, कि कितने चमत्कारिक ढंग से उन्होंने अपना दूसरा जन्म आप कह सकते हैं या दूसरा जीवन पाया कश्मीर में । वह कश्मीर में रहे आनंदपूर्वक कुछ समय के लिए अपनी माँ के साथ और वहाँ उनकी मृत्यु हो गई। वे कहते हैं कि मज़ार है हमारे प्रभु ईसा मसीह की और वहाँ उनकी माता की भी थी।
लेकिन किसने लाभ उठाया उनके जीवन का, उनके जीवन से? वे कौन लोग हैं जो वास्तव में चाहते थे कि वे मर जाएँ?
आप बहुत अच्छे से जानते हैं! आप बहुत अच्छे से जानते हैं। ईसा मसीह की मृत्यु कैसे हुई, और लोग अचानक सामने आए, पॉल और पीटर की तरह, जिन्होंने इससे एक बड़ा व्यवसाय बनाने की कोशिश की। यह देखकर बहुत दुख होता है कि ये दोनों व्यक्ति किस प्रकार शर्मिंदगी लाये।
यह पॉल एक आयोजक के अलावा और कुछ नहीं था, मुझे लगता है। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो सत्तावाद था, बल्कि मुझे कहना चाहिए वह न केवल सत्तावाद ही नहीं था, वह एक ऐसा व्यक्ति भी था जो एक बड़ा पद चाहता था। तो उसने एक झूठ कहा कि: वह दमिश्क गया, और अपने रास्ते पर, अपने मार्ग में उसने एक बड़ा क्रॉस (सूली) को देखा। सहज योग के अनुसार, इस तरह के सभी लक्षण उपचेतन के संकेत हैं, यह आत्मा के नहीं| और फिर वह वापस आ गया और उसने अपनी शोध और उस तरह की चीजें शुरू कर दीं।
और उसने बहुत सी बातें लिखी हैं। लेकिन अगर आप पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि वह सहज योगी नहीं था । वह केवल एक आयोजक था।
वह एक नौकरशाह व्यक्तित्व था जो लिख रहा था: “हमें कैसे प्रशासन करना चाहिए, हमारे पास कैसे लोग होने चाहिए | विभिन्न प्रकार के लोगों को हमें कैसे प्रबंधित करना चाहिए।” एक प्रकार से प्रबंध विभाग, वह ईसाइयों के लिए प्रबंध विभाग था।
तो ईसाई भी अत्यंत साचिविक प्रकार जैसे हो गए : जैसे, हर चीज़ का एक समय है, आपको इस तरह आना चाहिए, आपको इस तरह बैठना चाहिए, आपको इस तरह से बात करनी चाहिए। और यह भी कि जिन राष्ट्रों को ईसाई माना जाता है, वे सब भी आधिकारिक रूप से इस पालन कर रहे थे । यह समझ में नहीं आता है कि वे हर चीज में इतने आधिकारिक क्यों हैं। ईसा मसीह के ठीक विपरीत, जो कि आज्ञा चक्र को भेदना था, उन्होंने इसका निर्माण किया।
और ईसाई राष्ट्र पुरे विश्व में सबसे अहंकारी, सबसे आक्रामक राष्ट्र बन गए। उनके लिए यह उनका अधिकार था कि वे किसी भी राष्ट्र पर क़ब्ज़ा करें। यह उनका अधिकार था कि वे अपने स्वयं के नियम स्थापित करें, अपनी विधानसभाएं स्थापित करें | यह सब कुछ भारत में किया जाता है, मुझे पता है। आज भी, यदि आप पंजाब जैसे स्थानों पर जाएँ, आप को पता चलेगा कि लोग केवल देहाती लोगों की तरह रह रहे हैं, बहुत परिश्रम कर रहे हैं, और वे हर समय उन लोगों के आक्रमण के अधीन हैं, जो उन पर हावी रहते हैं, और जो इन लोगों का पूरा फ़ायदा उठाना चाहते हैं |यह एक हास्यास्पद बात थी ईसाईयों का इस प्रकार व्यवहार करना ।
फिर, उन्होंने उनका धर्मान्तरण भी शुरू कर दिया। यह एक और निरर्थक बात है – धर्मान्तरण करना। उन्हें परिवर्तित करना। और दक्षिण में, उन्होंने जो किया वह…… हम, भारतीय कभी ब्रेड नहीं बनाते | दक्षिण में वे नहीं जानते कि ओवन का उपयोग कैसे किया जाता है।
इसलिए उन्होंने बहुत बड़े केक बनाए – आप इसे केक कह सकते हैं, या आप इसे ब्रेड कह सकते हैं – और इसे पानी में, या एक कुएं में रख देते हैं, और वे कहेंगे कि , “हमने हिस्सा डाल दिया है बछड़े का, या वो एक भैंस, या एक गाय भी हो सकती है, और वे केवल उनका विश्वास करते थे। और इसलिए, उन्होंने कहा, “अब, आप समाप्त हो गए हैं, क्योंकि आप हिंदू धर्म या किसी अन्य धर्म से संबंधित नहीं हैं। तो, अब, आप ईसाई बन गए हैं।
“इस प्रकार कैसे उन्होंने हजारों और हजारों लोगों को ईसाई बनाया, जो वास्तव में लोग निम्न वर्ग के लोग थे, मुझे कहना चाहिए। कम से कम वे स्वयं को दलित कहेंगे। अब, ये सभी दलित लोग, वे ईसाई धर्म में परिवर्तित होना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि वे सभी ऐसे सभी लोगों को चाहते हैं जो केवल मिशनरियों का अनुसरण करेंगे और जो प्रशन नहीं करेंगे। क्योंकि वे शिक्षित लोग नहीं थे, वे किसी भी समझ या बुद्धि के लोग नहीं थे यह समझने के लिए कि ये लोग क्या हैं। इसलिए, जब उन्होंने इसे आरम्भ किया, विष-वमन दलित लोगों के विरुद्ध , तो उनमें से कई उनके साथ जुड़ गए। इस प्रकार उन्हें अपनी जाति मिली और उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।
यह एक ऐसी बात है जिसे समझना चाहिए: कि हावी होने की प्रवृत्ति के लोगों ने एक विशेष धर्म को कैसे स्वीकार किया क्योंकि वह धर्म विनम्रता के अलावा और कुछ नहीं है। और फिर कैसे ईसाई धर्म के प्रभारी माने जाने वाले इन लोगों ने उन लोगों को कुछ बेतुका बना दिया। आप देखिये यह एक मानव स्वभाव है: यह आनंद ले सकता है किसी भी बकवास का, किसी भी प्रकार की क्रूरता, किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का । वे उस दायरे, उस क्षेत्र को कभी नहीं छोड़ सकते, जहां पर वे हावी होते हैं |
आज जैसा कि है, ईसाई राष्ट्र इससे भी आगे निकल गए हैं क्योंकि ईसाईयों में यह सब उन्हें दी गयी स्वतंत्रता है, क्योंकि वे मुक्त हैं – “तुम्हे जो भी पसंद हो करो, अगर तुम ईसाई बन गए हो! तुम बिलकुल सही हो | ऐसा ही है ना ? यह वही लोग हैं जिनका वर्चस्व रहा है, और जिन्हें इन्होंने दबाया वो लोग भी हर जगह हैं।ये सामान्य लोगों के पास जाते हैं ,जिन्हें आप मूल निवासी भी कह सकते हैं, और उनका धर्म परिवर्तन करते थे।धर्मांतरण इनका प्रमुख तरीका था ।क्या आवश्यकता थी इतनी अधिक संख्या में धर्मांतरण की? ऐसा इसलिए, क्योंकि जनतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण है आपका संख्या में अधिक होना। अतः अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उन्होंने धर्मांतरण का सहारा लिया और इसने बहुत सारी चीजों को नष्ट कर दिया l
देखिए, मसीह की पूरी स्थिति वास्तव में मुझे बहुत बेचैन करती है।
आज आप सभी सहज योगी हैं। आप सभी दूसरों की तुलना में उच्चतर हैं, आपके पास सभी शक्तियां हैं। अब अगर यह माना जाए कि यदि आप ईसाइयों की तरह व्यवहार करना चाहते हैं, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे।
तो अब आप उस कगार पर हैं जहाँ सहज योग को विभिन्न देशों में स्वीकार किया गया है। और लोग ऐसे लोगों का सम्मान करते हैं जो सहज योगी हैं, उन्हें गौरवपूर्ण स्थितियां प्रदान की हैं । फिर अचानक आपके सर में प्रभुता का धंधा प्रवेश कर जाये, और आप प्रयत्न कर सकते हैं, आप एक तानाशाह बनने की प्रयत्न कर सकते हैं, क्योंकि यह मानव स्वभाव है: यह ईश्वरीय नहीं है, लेकिन यह एक मानव स्वभाव है। उदाहरण के तौर पर जब जानवरों के राज्य में, वे एक-दूसरे पर आक्रामक होते हैं – यह सब ठीक है, इसकी अनुमति है, यह होता है। लेकिन वहाँ एक प्रणाली है, एक तरीका है, एक तरीका है कि वे कैसे हावी होते हैं। ऐसा नहीं है कि वे सभी पर कूदते हैं। लेकिन मैंने सहज योग में देखा है, बहुत से लोग, आप उन्हें एक लीडर बनाइए और सब समाप्त! फिर, वह हर किसी के सिर पर बैठता है। यदि आप उन्हें लीडर नहीं बनाते हैं, तो वे मुझे पत्र लिखते हैं, एक के बाद एक कि , “माँ, हम लीडर बनना चाहते हैं।” मैं एक लीडर बनना चाहता हूं। ” इस प्रकार वे हठ करते हैं। आप एक लीडर किस लिए बनना चाहते हैं? बस दूसरों पर हावी होने के लिए। और यह वर्चस्व का धंधा सहज योगी के लिए नहीं है।
मैं आज यहाँ आपको ईसा मसीह की उस सुंदर छवि के बारे में बताने के लिए हूँ जो मृत्यु से ऊपर उठ गया। ठीक इसी प्रकार मृत्यु हो सभी निरर्थक विचारों, सभी नकारात्मक विचारों की : अब उन सब पर जीत प्राप्त हो । आपको स्वयं के स्वामी बनना है, और इस रूप में आपको अनुभूति हो अत्यंत सुखद, आनंद की । दूसरों को देने में, आप पाएंगे बहुत अधिक सहज, दूसरों से लेने की तुलना में । यह बहुत आश्चर्य की बात है कि सहज योग ने आपको यह सब चीजें सिखाई हैं। सहजयोग में लोगों को कहना होगा कि – “वे बहुत अद्भुत हैं, वे लोग बहुत सुन्दर हैं, वे बहुत प्रेममय हैं, वे बहुत दयालु हैं।” मैं आप सभी के बारे में हर समय ऐसा ही सुनना चाहती हूँ कि आप सभी व्यक्तिगत या सामूहिक, आप कुछ महान कुछ शानदार हैं। लेकिन यह महानता दूसरों पर हावी होने या दिखावा करने से नहीं आयी है बल्कि यह भीतर से आ रही है। लोग आपको देखते हैं और जानते हैं कि यह कुछ है, और इस प्रकार से सहज योग फैलेगा। यह आपके भीतर के ईसा मसीह हैं जिनको जागना होगा, आपके भीतर ईसा मसीह जिन्हें मार्गदर्शन करना है। यह आपके भीतर ईसा मसीह हैं जो सिखायेगें कि दूसरों के प्रति कैसे व्यवहार करना है और कैसे उनका आत्मविश्वास हासिल करना है, और उन्हें वह प्रेम और शांति प्रदान करनी है, जो अभी आपके भीतर बह रही है, उन्हें बहुत, बहुत, खुश और आनंदित व्यक्ति बनाने के लिए। यह पुनरुत्थान का संदेश है। यही सहस्रार के भेदन का संदेश है।
तो यह अंडा जिसका वर्णन किया गया था – बहुत आश्चर्य की बात है – बहुत स्पष्ट रूप से देवी माहात्म्य में वर्णित है: कैसे इस अंडे का निर्माण हुआ और दो हिस्से में टूट गया, और अंडे के एक हिस्से से ईसा मसीह निकले, दूसरा भाग से श्री गणेश। यह सब लिखा हुआ है, लेकिन इसमें ईसा मसीह को महाविष्णु के रूप में वर्णित किया गया है, ना कि ईसा मसीह के रूप में। तो यह महाविष्णु फिर उठे, और उन्होंने ये सब, सभी अद्भुत चीजें कीं । यह एक वास्तविक संदेश है, सुन्दर वर्णित जो मसीह के जीवन पर लिखा गया है कि अब, जैसे कि हम निर्विचारिता में जानते हैं, अब , हमें अपने जीवन के माध्यम से उस प्रकाश को व्यक्त करना होगा। और हमें विश्व को दिखाना होगा कि हम पूर्णतया सक्षम हैं, और केवल हम अपने भीतर हैं, पूर्णतया सम्पूर्ण । हम दूसरों से कुछ नहीं चाहते हैं। अब हम चाहते हैं, कि दूसरों को दें, जो कुछ भी हमने प्राप्त किया है। इसी अपेक्षा से देख रहे हैं लोग आपको और सभी सहज योगियों को ।
परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें!
यीशु के विषय में सोचते हुए मैं जागृत रहना भी असम्भव पाती हूँ क्योंकि इस आधुनिक समय में बहुत कठिन है जब आप यीशु के विषय में सोच रहे हों और उसके विषय में बात कर रहे हों। यह केवल यह दर्शाता है कि लोग कभी नहीं समझे इस तरह के एक महान व्यक्ति, एक महान व्यक्तित्व को । जब कि वह दिव्य थे, पूर्ण रूप से दैवीय। और इसके बावजूद , उन्होंने एक नाटक किया सभी कष्टों से गुजरने का । यह अत्यंत पीड़ाजनक है केवल स्मरण करना इस सब का, कि स्वयं को उन्होंने कैसे सूली पर चढ़ाया, और वह कैसे मर गये।
लेकिन मुख्य बात यह है: उन्होंने इसे आप के लिए किया है, आप सभी के लिए। और आप उनके ऋणी हैं।
यह उनका ही कार्य है जिसने सहायता की है कुंडलिनी को जागृत करने में ताकि वह तालु भाग का भेदन कर सके| यह सब असंभव था ईसा मसीह के बलिदान के बिना । इसी प्रकार आप सभी लायक होना चाहिए कुछ बलिदान करने के ।
यह बहुत प्रतीकात्मक बात है जो घटित हुई है। और आप सभी को हर समय तैयार रहना चाहिए बलिदान करने के लिए जो भी संभव हो, मानवता के उद्धार के लिए । यह बहुत, बहुत सूक्ष्म है इस समय अब : अपनी खोज को भूल जाएँ, सब कुछ भूल जाएँ! आवश्यकता है इस बात की कि आपको स्मरण रहे हर समय कि आप बच गए हैं, आप आशीर्वादित हैं ईसा मसीह के बलिदानों के द्वारा । यह बहुत आवश्यक है।
सबको अनंत आशीर्वाद!