१९९८- ०६ -२१, आदिशक्ति पूजा, कबैला, इटली
आपको विनम्रता विकसित करनी होगी
कारण कुछ भी हो, रूस के लोग खुले विचारों वाले होते हैं। इतना ही नहीं, विशेष रूप से वैज्ञानिक बहुत ही खुले विचार वाले हैं। और पहले उन्हें बहुत दबाया जाता था, इसलिए उन्होंने सूक्ष्मतर चीज़ों को खोजने का प्रयत्न किया। वह न केवल रसायनों के विषय या प्रकाश के कुछ भौतिक गुणों के बारे में पता लगा रहे थे बल्कि वह सूक्ष्मतर की ओर जाना चाहते थे और उन्होंने पहले से ही भौतिक आभा के विषय में गहन ज्ञान प्राप्त किया था – हाथों के चारों ओर की आभा और शरीर के आस-पास की आभा।
उन्होंने बहुत शोध किया और उनकी खोज को विश्व भर में स्वीकार किया गया।
अब यह सज्जन एक विशेषज्ञ थे, मुझे लगता है, क्योंकि वह एक बहुत ही जाने-माने, अत्यंत प्रसिद्ध व्यक्ति हैं और वह बहुत ऊँचे पद पर हैं। वह कह रहे थे कि उन्हें 150 संस्थाएँ चलानी पड़ती हैं – अति विनम्र और बहुत अच्छे व्यक्ति।
और जब उन्होंने यह खोज की तो मैं एक प्रकार से प्रसन्न थी, क्योंकि वैज्ञानिक रूप से अगर यह प्रमाणित हो गया, तो कोई भी इसे चुनौती नहीं दे सकता।
उन्होंने पहले से ही एक पुस्तक लिखी है जिसमें सभी बीजगणितीय जटिलताओं के बारे में बताया गया है, जिसे वह प्रमाणित करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि वहाँ एक शून्य है, चेतना से परे एक शून्य क्षेत्र है। और केवल उस शून्य क्षेत्र में ही आप वास्तविकता को जान सकते हैं और एक बार जब यह सब वास्तविकता बनता है- यह विज्ञान है, और इसी प्रकार यह विज्ञान में परिवर्तित हो जाता है।
उन्होंने मेरी अनेक तस्वीरें दिखाईं, विशेष रूप से वह जिसमें मेरे सहस्रार से बहुत सी ऊर्जा निकल रही है, जब हम नाव पर थे। तो उन्होंने कहा, “यह समस्त ब्रह्मांड की ऊर्जा का स्रोत हैं। और यही आदि शक्ति हैं।” यह वही हैं जो सब का सृजन करती हैं।
वह सम्पूर्ण वातावरण जिसे हम जानते हैं, वह बहुत ही कृत्रिम है, पर जब आप जान जाते हैं कि उन्होंने क्या किया है, पहला कार्य जो उन्होंने किया।
मेरी पुस्तक में भी मैंने इसके विषय में लिखा है, लेकिन मैं आपको बताना चाहूँगी – कि सर्वप्रथम उनकी अभिव्यक्ति बाईं ओर होती है।
यही महाकाली का स्वरुप है।
तो वह महाकाली के रूप में आती हैं, बाएं हाथ की ओर, और यहीं उन्होंने गणेश का सृजन किया। श्री गणेश को उन्होंने इस कारण बनाया क्योंकि श्री गणेश की पवित्रता, उनकी अबोधिता और मांगल्य को सृष्टि के निर्माण से पूर्व बनाना था।
इसलिए सर्वप्रथम उन्होंने श्री गणेश को बनाया और वह स्थापित होती हैं। फिर वह ऊपर जाती हैं, निश्चित रूप से विराट में, फिर वह घूम कर और ऊपर जाती हैं, दाईं ओर, दूसरी ओर। वहाँ वह सभी ब्रह्मांडों की रचना करती हैं – जिन्हें आप भुवन कहते हैं।
चौदह भुवन हैं, अर्थात् कई, कई ब्रह्माण्ड से एक भुवन बनता है। और वह दाईं ओर इन सभी का निर्माण करती हैं। तब वह ऊपर जाती हैं, फिर वह नीचे उतरती हैं- सभी चक्रों और आदि चक्रों या पीठों का निर्माण करते हुए।
वह नीचे आती हैं, इन सभी पीठों का निर्माण करते हुए और फिर वह कुंडलिनी के रूप में स्थापित होती हैं। किंतु आदिशक्ति पूर्णतया कुंडलिनी नहीं, हम कह सकते हैं कि कुंडलिनी इनका एक भाग है। उनका बाकी कार्य इससे कहीं अधिक है।
हम इसे अवशिष्ट ऊर्जा कहते हैं – इस सारी प्रक्रिया के पश्चात् वह तब घूम के कुंडलिनी का रूप लेती हैं। इस कुंडलिनी और चक्रों के कारण, वह एक ऐसा क्षेत्र बनाती हैं जिसे हम शरीर के चक्र कहते हैं।
पहले वह इन चक्रों को सिर में बनाती हैं। हम उन चक्रों को पीठ कहते हैं। और फिर वह नीचे आती हैं और इन चक्रों को बनाती है, जो कि विराट के शरीर में होते हैं।
अब एक बार जब यह हो जाता है, तो वह मनुष्य की रचना करती हैं, पर यह अकस्मात् नहीं होता। उत्क्रांति की प्रक्रिया के माध्यम से वह आगे बढ़ती हैं, और यहीं से उत्क्रांति आरम्भ होती है।
और फिर यहीं से पानी में अति सूक्ष्म छोटे जीव विकसित होना शुरू होते हैं और फिर विकास आरम्भ होता है।
तो जब वह जल का निर्माण करती हैं और सभी ब्रह्मांडों का निर्माण करती हैं, तो वह इस धरती माता को अपनी विकास प्रक्रिया की लीला के लिए एक सर्वोत्तम स्थान के रूप में चुनती हैं। और वहाँ वह इस छोटी सी सूक्ष्म चीज़ को बनाती हैं।
मैंने निश्चित रूप से इसके बारे में सब कुछ लिखा है, और जब मेरी पुस्तक का विमोचन होगा तो आप देख सकते हैं कि कैसे पहले हाइड्रोजन, कार्बन और ऑक्सीजन और इन सभी चीजों का मिश्रण हुआ और कैसे नाइट्रोजन क्रिया में आया, और एक जीवंत प्रक्रिया कैसे आरम्भ होती है।
इन सब का उल्लेख मैंने अपनी एक अन्य पुस्तक में किया है जिसे मैं अब लिखने जा रही हूँ। मेरा तात्पर्य है कि इसका अधिकतर भाग मैं लिख चुकी हूँ।
लेकिन कुछ और चक्रों के विषय में लिखना शेष है। अब ऐसा होने से, आप देखिए कि जो कुछ भी मैंने लिखा है, अब लोग उस पर संदेह नहीं करेंगे।
वह जानेंगे कि यह एक वैज्ञानिक तथ्य है, और इसलिए जो भी कुछ मैं कहती हूँ वह एक वास्तविकता है।
अब एक माँ पर, आदि शक्ति पर, विश्वास करना असंभव था। आपको आश्चर्य होगा कि विशेषतः ईसाई धर्म किसी भी प्रकार से माँ का उल्लेख नहीं करता है।
फिर इस्लाम, वह भी माँ के उल्लेख से बचता है। यह माँ के प्रति पूर्णतः नकारना है।
लेकिन केवल भारतीय दर्शनशास्त्र में माँ का उल्लेख था, और भारतीय वास्तव में शक्ति-उपासक हैं।
तो इस प्रकार से यह संजोया गया और इस स्तर तक लाया गया। अब जब यह लोगों को प्राप्त हुआ है, उन्हें यह पूर्ण समझ मिली है कि यह मात्र-तत्व है जिससे यह सारे कार्य हुए हैं।
भारत में इस मात्र-तत्व पर लोगों को पूर्ण विश्वास है, कि यह माँ ही हैं जो सब कुछ करती हैं। और इस कारण हमारे यहाँ भारत में अनेक स्वयंभू हैं। अर्थात् वह जो पृथ्वी माता से निर्मित होता है।
उदाहरण के लिए, आप जानते हैं कि महाराष्ट्र में हमारे यहां महाकाली का स्थान है, महासरस्वती, महालक्ष्मी, और आदि शक्ति का स्थान भी हमारे यहाँ है।
कुछ लोग जो नासिक गए होंगे, उन्होंने चतुर्श्रृंगी को देखा होगा। आप में से कितने लोग चतुरश्रृंगी गए हैं? अच्छा है!
तो यह चतुर्श्रृंगी आदिशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो इस शक्ति का चौथा आयाम है। यही वह शक्ति है जो आपका उत्थान करती है।
और अंततः महालक्ष्मी मध्य नाड़ी से ही आपको आत्म–साक्षात्कार प्राप्त होता है।
यह सब एक प्रक्रिया है, जो आदि शक्ति की शक्तियों द्वारा बनाई गई थी।
यह एक असाधारण कार्य है। पहले के कार्य कठिन नहीं थे, क्योंकि यहाँ प्रकृति का निर्माण करना बहुत सरल था।
धरती माँ की आदि शक्ति के साथ एकाकारिता है। पूरा वातावरण आदिशक्ति के साथ एकाकार है। सभी तत्व आदिशक्ति के साथ एकाकार हैं, इस कारण किन्हीं कठिनाइयों के बिना वह यह सब बना सकीं।
पर जब मनुष्य आए, तो उन्हें अपनी स्वतंत्रता मिल गई। मुझे कहना चाहिए कि केवल यही प्रजाति है, जो विचारों और अहंकार की माया में फंस गई। इस अहंकार के साथ माया ने उन पर कार्य किया, मुझे कहना चाहिए, और वह इस ब्रह्मांड-को बनाने वाले तत्व के विषय में भूल गए। उन्होंने इसको सही मान लिया। उन्हें लगा कि यह उनका अपना अधिकार है कि वह वहाँ हैं। यह उनकी अपनी उपलब्धि है और वह हर चीज़ के स्वामी हैं।
इसने उनकी बुद्धि पर इतना असर करना शुरू कर दिया कि उन्होंने अन्य देशों पर आक्रमण किया। उन्होंने इतने लोगों को नष्ट कर दिया और उन्हें कभी भी इसके बारे में बुरा नहीं लगा।
अपना सारा जीवन वह दूसरों पर आक्रमण करने, दूसरों को नियंत्रित करने के विषय में सोचते रहे। और सभी प्रकार के हानिकारक कार्य करते रहे।
पर उन्होंने कभी सोचा भी नहीं या कभी कोई आत्मनिरीक्षण नहीं किया, यह देखने के लिए कि हम जो कर रहे हैं वह बहुत ही ग़लत है और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।
उनकी अपनी स्वतंत्रता के कारण विश्व में ऐसी उथल-पुथल है। और जो लोग सभी कार्यों के प्रभारी थे, वह अत्यधिक क्रूर थे, अत्यंत ही! उनके भीतर अन्य लोगों के लिए कोई भावना नहीं थी। और ऐसा धरती पर अनेक बार हुआ।
अब सहज योग आरम्भ हो गया है। सहज योग के प्रारम्भ के बाद, सहज योगी हो गए हैं जो अब आदिशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं, प्रत्यक्ष रूप से!
पर फिर भी मुझे कहना होगा कि सहज योगियों में भी ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें मैं बहुत ही परिपक्व समझती हूं।
उनमें से कुछ केवल इसलिए सहज योगी हैं, क्योंकि यह एक फैशन है।
हो सकता है कि यह उनके दृष्टिकोण से और अच्छा होना चाहिए या उनके स्वार्थी दृष्टिकोण से या जो कुछ भी हो। यह बहुत अनुचित है।
यदि आप सहज योग में हैं तो आपको पता होना चाहिए कि अब आप पूरे विश्व के लिए उत्तरदायी हैं।
केवल आप ही वह लोग हैं जो ऊपर उठे हैं। केवल आप ही वह लोग हैं जिन्होंने कुछ प्राप्त किया है। और फिर ऐसे समय पर आपको ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसे कि एक बड़े संत या एक आत्म–साक्षात्कारी करते हैं।
परन्तु कभी-कभी आप उन्हें ऐसा व्यवहार करते हुए पाते हैं जो कभी-कभी अचंभित करता है।
उनको अपने या दूसरों के लिए कोई सम्मान नहीं है। और उनका पूरा व्यवहार बहुत हास्यास्पद होता है।
उनमें से कुछ धन-उन्मुख हैं। उनमें से कुछ शक्ति-उन्मुख हैं। और मुझे लगता है, जो शक्ति-उन्मुख हैं वह धन-उन्मुख से अधिक हानिकारक हैं। क्योंकि जो लोग सत्ता-उन्मुख हैं, वह सहज योग को बदनाम करने का प्रयत्न करते हैं। वह बहुत अपमानजनक, प्रभुत्व रखने वाले और भयानक लोग हैं।
उनका पूरा व्यवहार सहज योग में सत्ता प्राप्त करना है और वह उस सत्ता को प्राप्त करने हेतु सभी प्रयास करते हैं। लेकिन कुछ समय तक वह सब ठीक दिखते हैं ।
कुछ समय बाद आप पाएंगे कि वह सभी सहज योग के क्षेत्र से ओझल हो गए।
यह एक बहुत बड़ी सफ़ाई प्रक्रिया चल रही है। आपको समझना चाहिए कि आप चेतना के बहुत उच्च स्तर में आ गए हैं, जहां आप ईश्वरीय शक्ति के संपर्क में हैं। अब यहाँ यदि आप सामान्य लोगों जैसे व्यवहार करते हैं, जिनके अंदर कोई दिव्यता नहीं है। तो कब तक आप ऐसे ही रहेंगे?
इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपको ध्यान का प्रयास और स्वयं का उत्थान करना चाहिए और आप वास्तव में बहुत अच्छे सहज योगी बनें।
कुछ जगहों पर हम बहुत भाग्यशाली हैं- कुछ देशों में हम बहुत ही भाग्यशाली हैं। लेकिन कुछ देशों में मुझे लगता है कि लोग केवल बहरे और गूंगे हैं। वह सहज योग को नहीं समझ सकते। मेरे कार्यक्रम के लिए वह आते हैं, और बाद में बस ग़ायब हो जाते हैं। मुझे लगता है कि सहज योगी इसके लिए उत्तरदायी हैं, जैसे कि वह कार्य करते हैं। जिस प्रकार से वह सहज का कार्य करना चाहते हैं, वह सहज नहीं होता।
निश्चित रूप से इस पूरे कार्य में कुछ ग़लत है और यही कारण है कि यह उस प्रकार से कार्य नहीं कर रहा है जैसे कि यह अनेक स्थानों पर कार्यान्वित हो रहा है।
तो मुझे आपको यह बताना होगा कि ऐसा वहाँ होता है क्योंकि वहां आदिशक्ति हैं, और यह सब आदिशक्ति के माध्यम से हुआ है।
लेकिन अब आगे का कार्य आप लोगों के द्वारा होना है क्योंकि आप माध्यम हैं, आप ही वह हैं जो लोगों में परिवर्तन लाएंगे।
अब सभी को यह समझना और जानना चाहिए कि कितने लोगों को आत्म–साक्षात्कार दिया है। हमें इस विषय में सोचना चाहिए कि हमने सहज योग के लिए क्या किया है?
एक बार जब मैं विमान से यात्रा कर रही थी, मैं एक महिला से मिली जो मेरे पास बैठी थी और उसमें इतनी ऊष्मता थी। मैं समझ नहीं पाई। तब उसने मुझे बताया कि वह एक गुरु की शिष्या है और उस पर बहुत गर्व करती है। और उसने मुझसे अपने गुरु के बारे में सब कुछ व अन्य बातें बताना आरंभ किया।
मैं अचंभित थी कि इस महिला को देखो, उससे तो कुछ नहीं मिला और वह केवल यह कह रही है, “मैंने उसे बहुत पैसा दिया है। उसका मैंने यह कार्य किया है,” और ऐसी बातें। परन्तु उसके पास कुछ भी नहीं था, फिर भी मुझ अनजान से अपने गुरु के सम्बन्ध में बात कर रही थी।
पर सहज योग में मैंने देखा है कि लोग संकोच करते हैं। वह सहज योग के विषय में दूसरों से खुलकर बात नहीं करना चाहते। आपका ऐसा करना बहुत ग़लत है, क्योंकि आप इस कार्य के लिए उत्तरदायी हैं।
आपको आत्म–साक्षात्कार दिया गया है, निश्चित ही आप इसे खोज रहे थे। यह सब ठीक है। पर आप सभी दूसरों को आत्म साक्षात्कार देने का प्रयत्न करें।
मुझे कहना होगा कि किसी भी तरह से पुरुष अधिक सक्रिय रूप से इसे कार्यान्वित कर रहे हैं। सहज योग में महिलाएं अभी तक उस स्तर पर नहीं आ सकीं जितना उन्हें आना चाहिए था। उन्हें इसके बारे में अधिक समझदार होना होगा, और इसे कार्यान्वित करना होगा।
वह ऐसा कर सकतीं हैं, परन्तु मुझे लगता है कि इसमें केवल यह बाधा है, कि वह अपनी कुछ छोटी समस्याएं को लेकर चिंतित रहती हैं।
मुझे सर्वदा ही पत्र मिलते हैं जिसमें महिलाएँ यह कहती हैं कि यह ठीक नहीं, वह ठीक नहीं है, हर समय असंतुष्ट रहना!
मैं अब उनके पत्रों से इतना तंग आ गई हूँ कि मुझे लगता है अब उन्हें पढ़ना ही व्यर्थ है। इसलिए मुझे आप सभी को बताना होगा- यह महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को पुरुषों से बहुत अधिक सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि वह शक्ति हैं और मैं भी एक महिला हूँ।
मैंने देखा है कि पुरुष सहज योग के विषय में अधिक सक्रियता से सभी कार्य करते हैं, और मुझे नहीं पता कि किस कारण से महिलाएं ऐसी नहीं है? वह इतने सारे लोगों को परिवर्तित कर सकती हैं।
वह दूसरों का इतना भला कर सकती हैं। वह इतना प्रेम और करुणा दे सकती हैं, क्योंकि यह प्रेम और करुणा माँ के गुण हैं, एक स्त्री के। और अगर महिलाओं में यह गुण नहीं है, तो एक महिला होना व्यर्थ है।
हर समय यदि आप निरर्थक चीजों में व्यस्त रहें, जैसे फैशन या चेहरे आदि में, तो सारा समय व्यर्थ हो जाता है।
अब आपके पास समय कम है। आपको आत्म– साक्षात्कार मिल गया है और आपको यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि आपने अब तक क्या किया? अब तक आपने क्या प्राप्त किया है?
किन्तु मैं कहूंगी कि सहज योग में भी मैंने पाया है यहाँ हर प्रकार की विचित्र धारणाएं पनप रही हैं। जैसे कुछ कर्मकाण्डों को वह आरंभ करेंगे।
फिर वह कुछ कर्मकाण्डों का प्रचार करते हैं, वह इस विषय पर बातें करते हैं।
और यहाँ एक प्रकार की सत्ता-उन्मुखता है। वह दूसरों का शोषण करना चाहते हैं। वह दूसरे लोगों को नियंत्रित करके उन्हें भयभीत करना चाहते हैं। और ऐसा व्यवहार करेंगे जैसे वह बहुत अच्छे हैं।
उनमें से कुछ कहना आरम्भ कर देते हैं कि “माताजी ने ऐसा कहा। यह माताजी के विचार हैं।” वह स्वयं शक्ति-उन्मुख होने के कारण बातें बनाते हैं और इस तरह बात करते हैं। पर उनसे पूछें, “आपने कितने लोगों को आत्म-साक्षात्कार दिया है?”
पहली बात यह है कि, आपको सकारात्मकता निर्धारित करनी चाहिए। आपने कितने लोगों को आत्म–साक्षात्कार दिया है?
क्या सिर्फ़ दूसरों के बारे में बात करना, दूसरों की आलोचना करना, सहज योग के दोषों के बारे में बात करना, सहज योग में कमियों को देखना, मैं कहूंगी कि अभी भी बहुत प्रारंभिक बातें हैं जो पहले ही हो चुकी हैं, और यह अब समाप्त होना चाहिए।
अब जैसा कि, एक बार जब यह पुस्तक छप जाए तो पूरे विश्व में हमारे कार्यों को जाना जाएगा। हमें इसके पश्चात चुनौती नहीं दी जाएगी।
पर फिर भी हमें यह देखना होगा कि यदि हमने इस तरह की पहचान पा ली है तो हम उस स्तर पर बने रहें। हमारी क्षमताएँ उस स्तर की होनी चाहिए। हमें पीछे नहीं रहना है।
उदाहरण के लिए, यदि आप कुछ सहज योगियों से पूछते हैं, विशेष रूप से सहज योगिनियों से, तो वह सहज योग के विषय में कुछ अधिक नहीं जानती हैं। वह चक्रों के सम्बन्ध में नहीं जानती, वह देवी- देवताओं के विषय में कुछ भी नहीं जानती हैं। कुछ भी नहीं जानती हैं! वह सहजयोगी कैसे हो सकते हैं?
आपको इस विषय में सब पता होना चाहिए। आप यह नहीं समझते हैं कि आप बाहर से सहज योगी नहीं हो सकते हैं, अपितु ऐसा अंदर से ही होता है।
आप में अंदर से चक्रों और सहजयोग की समझ होनी चाहिए – यह कैसे कार्य करता है और कैसे आपकी सहायता करता है।
अब मान लीजिये कि यदि मैं उस शक्ति का स्रोत हूँ जैसा आप भली भांति जानते हैं, तो आप भी वह शक्ति प्राप्त करते हैं। आप भी लोगों से संपर्क करने और उन्हें सहज योग में लाने में पारंगत हो जाते हैं।
एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है जो आपको करना है, सहज योगियों को सहज योग में लाना है। मुझे लगता है कि कुछ लोग अभी भी बहुत पीछे हैं, और यह बहुत आश्चर्य की बात है कि वह उस देश में रहते हैं, उस देश का भाग हैं और फिर भी वह चिंतित नहीं हैं।
इन परिस्थितियों में सहज योगियों को ही दोषी ठहराया जाएगा कि, “आपने ऐसा क्यों नहीं किया? आपने कम से कम अपने देशवासियों का मार्गदर्शन क्यों नहीं किया और उसके लिए उपाय क्यों नहीं खोजे?”
इसलिए सहज योग विकास के मार्ग पर केवल एक या दो देशों के साथ नहीं बढ़ सकता है।
सभी देशों को सहज योग में लाना होगा। सभी लोगों को सहज योग में लाना एक बहुत अच्छा विचार होगा। और फिर हमारे पास लोगों को समझाने के लिए पुस्तकें हैं। हमें उनसे इस बारे में बात करनी चाहिए।
लेकिन मुझे लगता है कि सहज योगी एक बार जब सहज योग का प्रचार करना प्रारंभ करते हैं तो उनका अहंकार भी बढ़ जाता है, और वह सोचते हैं कि वह बहुत महान सहज योगी हैं। वह महान नेता हैं। इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार उनके मस्तिष्क में चलते हैं जो कि अनुचित है।
आपको बस अत्यंत विनम्रता से सोचना चाहिए। आपके पास जितना अधिक होता है, आप उतने ही विनम्र होते हैं। जैसे एक पेड़ जब फलों से लदा होता है, नीचे झुक जाता है।
उसी प्रकार से आपको बहुत विनम्र होना चाहिए। यह विनम्रता कभी-कभी बहुत कठिन होती है, क्योंकि पश्चिम की संस्कृति विनम्र संस्कृति नहीं है- यह आक्रामकता की संस्कृति है। अब तक वह सोचते रहे हैं, कि वह पूरे विश्व में जा पाए, वह बहुत कुछ प्राप्त कर पाए। उन्होंने क्या पा लिया? कुछ भी तो नहीं!
उनके अपने देशों में अगर आप देखें, तो वहाँ नशे की लत है। लोगों को इतना नशा क्यों करना पड़ता है?
फिर वह सभी प्रकार के पाप करते हैं, जिनका मैं उल्लेख नहीं करना चाहती, पर आप जानते हैं कि वह क्या करते हैं। भारत में, जो एक निर्धन देश है, कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता।
ऐसी चीज़ें आपके आसपास हो रही हैं। इसलिए पता करें कि कहाँ क्या ग़लत है और आप इनको कैसे ठीक कर सकते हैं। देखें यदि आप उनकी सहायता कर सकते हैं।
जैसा कि मैंने आपको बताया था, अब मैं एक संगठन आरम्भ करने जा रही हूँ जिससे मानव का भला होगा। आप सब भी इसमें जुड़ सकते हैं। आप अपने देशों में भी ऐसा ही कुछ आरंभ कर सकते हैं।
पर पहले आपको अपने अहंकार से छुटकारा पाना चाहिए। केवल ऐसा होने पर ही आपका ध्यान स्थिर होगा। और इस अहंकार से मुक्त होना आपके लिए बहुत सरल है क्योंकि आप ईसा मसीह को पूजते हैं। और ईसा मसीह स्वयं आज्ञा चक्र पर स्थित हैं।
आप सभी ईसा मसीह की पूजा करते हैं, फिर भी आप में मसीह जैसी विनम्रता नहीं है अपितु इसके ठीक विपरीत है। ऐसा हर जगह हुआ है। धर्म के लिए जो भी प्रचार हुआ, लोगों ने उसके ठीक विपरीत किया।
उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म, मैं कहूंगी कि हिंदू दर्शनशास्त्र के अनुसार हर एक में आत्मा का निवास है। अब यदि हर किसी में आत्मा है, तो अलग-अलग जाति प्रथा कैसे हो सकती है, और आप किसी को उच्च या निम्न जाति में कैसे विभाजित कर सकते हैं?
इसके विपरीत, ईसा मसीह ने कहा था कि आपको क्षमा करना होगा। सभी को क्षमा करें, और आपको विनम्र होना होगा। पर देखा गया है, कि ईसाइयों में विनम्रता नहीं है। उनमें विनम्रता का कोई ज्ञान नहीं है। पुरुष ऐसे हैं, महिलाएं ऐसी हैं, और पुरुष और महिलाएं लड़ते रहते हैं। किसी के विनम्र, शांतिपूर्ण, आदि होने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
तो बहुत ही कृत्रिम रूप से वह दिखावा कर रहे हैं कि वह बहुत परोपकारी इत्यादि हैं। परन्तु उनके हृदय के अंदर मुझे वास्तविक अर्थ में कोई प्रेम, कोई करुणा नहीं दिखती।
इसलिए जब हम वास्तविकता का सामना कर रहे होते हैं, तो हमें यह जानना होगा कि हम कृत्रिम बनकर या दूसरों को मूर्ख बना कर नहीं चल सकते हैं।
लेकिन हमें वास्तव में ऐसा बनना है। एक बार जब आप वह बन जाते हैं, जब आप वास्तव में उस तरह के हो जाते हैं, तब ही आपने वह कार्य पूर्ण किया, जिसके लिए आप इस बेला में पैदा हुए जो कि बहार का समय है। अन्यथा आप पहले पैदा हो सकते थे या कुछ भिन्न हो सकते थे।
पर आपका विशेष जन्म हुआ है, इसलिए आप अपना महत्व समझिए। आप स्वयं को समझें कि आप क्या हैं, इसे जानने का प्रयास करें। आत्म-सम्मान करें, और वह सब करने का प्रयत्न करें जो सहजयोगी होने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
निश्चित रूप से आप कहीं कार्यरत हैं, आप अन्य कार्य कर रहे हैं। लेकिन आप आश्चर्यचकित होंगे, यदि आप सहज योग का कार्य करते हैं तो आपको हर चीज़ के लिए अधिक समय मिलेगा। एक बार जब आप परमात्मा का कार्य करना आरंभ कर देते हैं, तो परमात्मा आपका कार्य करते हैं। और इस तरह से आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपको उचित कार्य करने के लिए इतना समय कैसे मिलता है।
अब यह आप पर है कि आप वापस जाकर आत्मनिरीक्षण करें, आत्म-अवलोकन करें।
अब आदि शक्ति स्वयं आ गई हैं। परन्तु, मैं बहुत सरल हूँ। मैं दिखने में बहुत सरल हूँ। मेरा आचरण बहुत ही विनम्र है, और लोग मुझे हल्के में ले लेते हैं। मैं कुछ नहीं करती। मैं आपको दंडित नहीं करना चाहती। मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती। लेकिन आप स्वयं ही दंड पाते हैं। आप स्वयं ही किसी कार्य के योग्य नहीं रहते- यदि आप स्वयं की देखभाल और स्वयं का विकास नहीं करते हैं।
यह खोज इतनी महान है, और यह व्यक्ति मुझे पहले कभी नहीं जानते थे। वह बहुत विद्वान, परन्तु अति विनम्र हैं। और उन्होंने मुझे क्या कहा, “बस कल्पना करें, मैं इस विश्व की रचयिता के सामने बैठा हूँ, और अभी भी मैं बहुत सामान्य हूँ।”
तो मैंने कहा, “आप के अनुसार आप में क्या होना चाहिए?”
तब उन्होंने कहा, “माँ, इसका अनुभव करना ही एक बड़ी बात है कि मैं आपके सामने बैठा हूँ और आप यहाँ हैं।”
मैंने कहा, “यह अच्छा है कि आपको मेरी उपस्थिति इतनी दबाने वाली या इतनी हावी होने वाली नहीं लगती। मैं बहुत प्रसन्न हूँ।”
“नहीं,” वह बोले, “मैं केवल प्रेम का अनुभव करता हूँ, बस करुणा अनुभव करता हूँ”। बस यही होता है। हमें जानना होगा कि हमारे अंदर केवल प्रेम और करुणा होनी चाहिए।
स्वयं के लिए प्यार और करुणा उसी प्रकार से होना चाहिए जिससे हम किसी के हृदय को दुखी न करें। किसी को कुछ कह कर चोट पहुंचाना बहुत बड़ा पाप है। पर कुछ लोग इसमें बहुत अधिक आनंद लेते हैं, उन्हें लगता है कि वह बहुत चतुर हैं। ऐसा नहीं है।
जब आप किसी से बात करते हैं तब आपको अवश्य ही वही कहना चाहिए जो बहुत सुखदायक और अच्छा हो।
एक अन्य चीज़ है किसी व्यक्ति में क्रोध होना, क्रोध। कोई भी साधारण सी बात पर वह क्रोधित हो जाते हैं।
अब हमें इस क्रोध को कहना होगा कि “तुम चुप रहो! मुझे तुमसे कुछ भी लेना-देना नहीं है।” यह एक बात है।
फिर कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं कहूँगी बहुत चतुरता और सत्ता–उन्मुख हैं, बहुत ही चतुर हैं! दूसरों को नियंत्रित कैसे कर सकते हैं, वह ऐसी चालें और उपाय जानते हैं।
इन सब से आपको क्या लाभ होगा? आपको क्या लाभ होगा? यह सब करने से क्या होगा? इन सांसारिक चीज़ों से आप थोड़े लोकप्रिय हो सकते हैं, या थोड़ा बहुत कोई पद प्राप्त कर सकते हैं या ऐसा कुछ। पर अंततः इन सब से क्या होता है?
इससे आपको कोई सहायता नहीं मिलेगी। आपकी सबसे अधिक सहायता तब होगी जब आप अपने आप को सहज योग का एक उत्तम माध्यम बना लेंगे। एक उत्तम माध्यम बनने पर आपको आश्चर्य होगा कि आपकी किस प्रकार सहायता होती है।
इसलिए पश्चिम के लोगों के लिए मैं कहूंगी कि आपको विनम्रता को विकसित करना पड़ेगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है।
मुझे आश्चर्य हुआ कि रूस में लोग न केवल विनम्र हैं, अपितु इतने समर्पित हैं। इस तरह का समर्पण- अविश्वसनीय है! वह मेरी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते।
मुझे नहीं पता, उन्हें यह विचार कैसे आया? ऐसा इस खोज के बाद नहीं हुआ, बल्कि इसके भी पहले से है।
वह बहुत अच्छे, अत्यंत विनम्र, प्रेम से भरे हैं और यहाँ तक कि बच्चे भी मुझे देने के लिए छोटे, छोटे उपहार लाए। आप जानते हैं, केवल मुझे देने के लिए, इतने प्रेम से!
यह आश्चर्यजनक है कि कैसे रूस में लोगों ने ऐसा बनने की क्षमता प्राप्त की है। और मुझे लगता है कि पश्चिम में, रूस वह देश है जो आध्यात्मिकता में बहुत महान ऊंचाई पाएगा। और इसका अर्थ यह है कि वह सबसे शक्तिशाली लोग होंगे।
आइए, हम देखें कि आप अपने देश में क्या कर रहे हैं? और आप कैसे इसे कार्यान्वित करेंगे?
देखिए, ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आप बहुत सरलता से कर सकते हैं, यदि आप स्वयं को एक ईश्वरीय यंत्र के रूप में देखते हैं। तब आपका आचरण बदल जाएगा, आपका स्वभाव बदल जाएगा। आप एक बहुत ही मधुर व्यक्ति, सबके प्रिय व्यक्ति बन जाएंगे। और हर कोई सोचेगा कि यह एक संत जा रहा है।
तो इस विषय में मुझे बस इतना ही कहना है कि यह जो कुछ भी खोज है, वह मेरे लिए नहीं है, बल्कि पूरे संसार के लिए है।
और मुझे विश्वास है कि एक बार यह स्थापित हो जाए और पूरे विश्व के समक्ष आ जाए, तो आपके लिए चीज़ें बदल जाएंगी, और मेरे लिए भी।
परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें।