Gudi Padwa

(भारत)

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Gudi Padwa Puja Date 18th March 1999: Noida Place: Type Puja Speech-Language Hindi

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

में चले गए। उसके बाद वो मद्रास भी चले गए। इस तरह से ये चीज़ है कि इनका इतिहास ऐसा ये बड़ा शुभ दिन हैं इस दिन जी भी कार्य करो हैं। शालीवाहन का और उसी वंश के हम भी हैं। बहुत हजारों वर्ष पहले थे तो वो गए थे महाराष्ट्र सांसारिक दृष्टि से आात है और दूसरा ये कि में और फिर वहाँ से उसी शालीवाहन के हम शालीवाहन में जो एक बबू वाहन करके थे, लोग वंशज हैं। इसलिए हम लोगों का नाम साल्विया-साल्बे-ऐसा कर दिया गया। तो जो आज का दिन गुडी पड़वा का है और ये सहाराष्ट्र में मनाया जाता है ज्यादा। कहते हैं कि वो बहुत सफल हो जाता है। वो जो भी हो, उन्होंने विक्रमादित्य को हराया और उसके बाद उन्होंने ये नया पंचाग शुरू किया जिसे शालीवाहन कहते हैं। उसके वर्ष का आज का दिन प्रथम शाल्व थे जिन्होंने युद्ध किया था. भीष्म के साथ. आपने सुना होगा शाल्व, भीष्म के साथ शाल्व, उन्होंने मदद की थी पांडवों की बाद में भौष्म कि उन्होंने ये शालीवाहन का ये द्योतक दिखाने ने चारों तरफ उनके शर पंजर डाले और उस के लिए एक कुम्भ की लेते हैं और उसके शरपंजर की वजह से वे निकल नहीं पाए तो अन्दर एक शाल जो कि शालीवाहन थे, तो उन्होंने शाप दिया तुम्हारे भी ऐसे ही शरपंजर पड़ेंगे। वो आखिर में भीष्म के साथ हो गया। तो दिन है। तो इसका महात्मय ज्यादा महाराष्ट्र में हैं कुम्भ कुण्डलिनी का द्योतक है। तो एक शाल टॉग देते हैं ऊपर इस तरह से वो भी इसी वंश के हैं लेकिन हजारों वर्ष पहले के हैं। उसका (Revival) का भी द्योतक है, कि आध्यात्म अपने कुंभ में हुआ वो बहुत बाद में एक वहाँ पर मुनि थे है। और शालीवाहन इसलिए के वो लोग पहले उनको सपने में दर्शन हुए शिवजी के और अपने को सात वाहन कहते थे उनका कुण्डलिनी उन्होंने वताया कि बप्पारावल जो है उसको तुम पर बड़ा विश्वास था, बाद में उन्होंने देवी को यहाँ का राजा बना दो। तो फिर से Revival उसी शाल देना शुरू कर दिया। वड़े देवी के भक्त थे। शालीवाहन वंश का हुआ। पर पता नहीं उन्हांने कैसे शाल्व से शालीवाहन बना दिया? लेकिन से एक कुम्भ रख देते हैं। उसका मतलब ये है कि कुम्भ जो है आध्यात्म तो उन्होंने अपना नाम शालीवाहन कर लिया । इस तरह से वो नाम बदल गया और उन्होंने उन्हीं के बंश में पद्मिनी हो गई और मेरठ के शालीवाहन अब जो थे वो मेवाड़ के वंशज थे । मेवाड़ के राजा होते थे। एक सिसोदिया बंश है, हैं ऐसे तो बिल्कुल लोग थे, अपने प्रण के पूरे उस सिसोदिया वश के एक बेटे थे, पर किसी और ईमानदार और देवीभक्त और माने वो कहते लोगों से हमारे लोग पता करने गए तो वे कहते कारण से उनका कुछ अनबत हो गया उनके हैं ऐसे लोग ही नहीं थे। तो एक अजीब चाचा के साथ, इसलिए वो भाग करके महाराष्र अजीबोगरीब लोग थे। उनका सब नष्ट भ्रष्ट हो

गया क्योंकि उन्होंने Compromise नहीं किया। जमाने में सो अभी भी इसको महाराष्ट्र में लोग जयपुर वालों ने मुसलमानों से बाद में अंग्रेजों से बहुत मानते हैं और इधर विक्रमी संवत है. Compromise कर लिया तो वहाँ बाहुत समृद्धि महाराष्ट्र में शालीवाहन संवत है। हम लोग भी, थी। तो समृद्धि से किसी की Judgement नहीं क्योंकि में महाराष्ट्र की हूँ शायद इसलिए हम होनी चाहिए Character से होनी चाहिए। तो ये लोग भी शालीवाहन से ही चलते हैं। उसके आज का दिन जो है उन्हीं शालीवाहन लोगों ने हिसाब से आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है और बनाया, उसमें से जो बब्रुवाहन थे उन्हें क्राइस्ट जो कुछ आज आप इच्छा करेंगे वो पूर्ण हो से थोड़े पहले बनाया गया है विक्रमादित्य के जाएगौ। . सबको अनन्त आशीर्वाद। ै ६ डा 3 पा