Shri Hanumana Puja

पुणे (भारत)

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Shri Hanuman Puja, Pune,  India

31 March 1999

[Hindi Transcript]

आज हम लोग श्री हनुमान जी की जयन्ती मना रहे हैं। हनुमान जी के बारे में क्या कहें कि वो जितने शक्तिमान थे, जितने गुणवान थे, उतने ही वो श्रद्धामय और भक्तिमय थे। अधिकतर मनुष्य, जो बहुत बलवान हो जाता है और जिसके पास शक्ति आ जाती है, जिसे हम लोग कहें कि वह राईट साईडेड (right sided) हो जाता है और वो अपने को इतना ऊँचा समझता है कि अपने आगे किसी को भी नहीं मानता। पर हनुमान जी एक विशेष देवता हैं, एक विशेष गुणधारी देवता। कि  जितने वो बलवान थे, जितने वो शक्तिशाली थे, उतनी ही उनकी भक्ति, शक्ति के संतुलन में; जितनी  शक्ति थी उतनी उनके अंदर भक्ति थी। ये संतुलन उन्होंने किस प्रकार पाला और उसमें रहे, ये एक बड़ी समझने की बात है। जब हम सहजयोग में पार हो जाते हैं ,और सहजयोग में हमारे पास अनेकविध शक्तियां आ जाती है, उसके साथ में हमें संतुलन भी आ जाता है।  हम प्यार करते हैं और प्यार के सहारे, प्यार की शक्ति के सहारे, हम अपने कार्य में रत रहतें हैं, वो कार्य करते रहते हैं। इसी प्रकार श्री हनुमान जी अत्यंत शक्तिशाली थे। और उनके अंदर दैवी शक्तियां थी। उनके अंदर नवधा शक्तियां थी। जैसे कहते है गरिमा, लघुमा… वो चाहे जितना बड़ा हो सकते थे, चाहे जितना छोटा हो सकते थे, अणिमा – छोटे, बिलकुल बारीक़ हो सकते थे। ये सारी शक्तियां उन्होंने अपने भक्ति से पायी है। इसका मतलब ये है की भक्ति और शक्ति, दोनों एक ही चीज़ है। जिसके अंदर शक्ति है और उसके अंदर भक्ति नहीं, तो वो तो राक्षस हो जाता है। और जिसके अंदर भक्ति है किन्तु शक्ति नहीं वो पागल हो जाता है। दोनों के बीच में जो मध्य मार्ग में इस चीज को पाता है, जिसे आप शक्ति कहिए,  चाहे भक्ति कहिए, उसके शरीर का अंग अंग उसी से भरा रहता है। इस उसकी विशेषता के कारण आज बजरंग बली को, हम देश-विदेश में भी उनकी बहुत अर्चना करते है। मुझे आश्चर्य लगता है की परदेस के जो छोटे लडके हैं, बच्चे हैं, जब वो कौई सा भी चित्र बनाते हैं, तो पहले हनुमान जी का ही चित्र बनाते हैं। 

फिर दूसरी उनकी विशेष बात, की वो अर्ध-मनुष्य थे अर्ध-वानर थे। माने पशु और मानव का बड़ा अच्छा मिश्रण था। तो हमारे अंदर जो कुछ भी हमने अपने उत्क्रांति में, अपने इवोलुशन (evolution) में पीछे छोड़ा है, उसमें की जो प्रेम, और उसमें की जो आसक्ति थी, वो उन्होंने अपने साथ ले ली थी। जैसे के आप देखते है की गुरुओं का जो मार्ग माना जाता है जिसमें के, गुरू के कौन से प्राणी उनके सेवक माने जाते है? सो कुत्ते को मानते है। कुत्ते में वो विशेषता है, कि गुरु के, जैसे एक साधक पूर्णतया समर्पित होता है और गुरु के सिवा उसका और कोई मालिक नहीं होता कोई और उसका विचार नहीं होता, हर समय वो अपनी जान लगा देता है अपने मालिक के लिए! इसी प्रकार एक समझना चाहिए कि एक प्राणी जो की उत्क्रांति में बढ़ा हुआ है, जब वो मनुष्य के सानिध्य में आता है, तो वो क्या सीखता  है? – परम भक्ति! इसका मतलब है, भक्ति हमारे अंदर जन्मत: बनी हुई है। पूर्णतया पहले ही से हमारे अंदर भक्ति का बीज बोया हुआ है। जब हम लोग इस दशा में नहीं थे, मानव दशा में नहीं थे, तब हमारे अंदर भक्ति का उद्भव बहुत हुआ था। भक्ति पूरी तरह से हमारे अंदर समां गई थी। आप किसी भी जानवर को ले लीजिये, उसे आप स्नेह लें, जरा सा स्नेह दें, जरा सा प्यार दें, वो इस तरह से आप से निकट हो जाता है, इस तरह आप को मानता है और इस तरह से आप से प्यार करता है! घोड़े की भी बात आप ने सुनी होगी, कि घोड़े जो है, वो अपना स्वार जब गिर जाता है या वो मरने को होता है तो उसके उपर छा जाते है। इसी प्रकार अनेक हाथियों के बारे में बताया जाता है की, हाथियों की निष्ठा भी कमाल की होती है। और वो अपने मालिक को कभी कोई तकलीफ़ नहीं देतें। और गर उन पे, उनके मालिक पे, अगर कोई शेर या कोई ऐसा जानवर आक्रमण करे, तो हाथी उससे लड़ते लड़ते मर जाएगा, पर अपने मालिक को हाथ नहीं लगाने देगा। ये जो रिश्ता, एक मालिक का और ऐसे ऊंचे पहुंचे हुए जानवरों का है, ये रिश्ता हमारे अंदर भी स्थित है, पहले ही से बंधा हो, और इस रिश्ते के साथ वो शक्ति भी हम को मिलती है। जैसे मैंने बताया की हाथी लड़ते लड़ते मर जाएगा, वो लड़ने की शक्ति भी हाथी के अंदर इस लिए आई की उसके अंदर वो प्यार और भक्ति है। 

हम लोग कहते है कि  सहजयोग ये प्यार का, परमेश्वरी प्रेम का कार्य है – बात सही है। पर इसी कार्य को करते वक्त उसकी शक्ति भी उसी में निहित है। हम लोग उसको शायद जाने या न जानें, उसके बारे में हमें उसकी प्रचीति हो या न हो, पर वो भी उसी के साथ निहित है और वो शक्ति दैवी शक्ति है। 

मनुष्य का किसी के प्रति नत-मस्तक होना, किसी को मान लेना, किसी को बड़ा समझ लेना, ये सब उसी के लक्षण है। किन्तु जब वो अपने गुरु को मानता है, तब उसके अंदर गुरु की महिमा तो होती है, पर उसके साथ साथ उसकी शक्ति भी होती है। तो भक्ति और शक्ति दो अलग चीजें नहीं है। एक ही है; हम ये कहेंगे कि अगर राइट हैंड (right hand) में गर शक्ति है, तो लेफ्ट हैंड (left hand) में भक्ति है। ये शक्ति-भक्ति का संगम श्री हनुमान जी में बहुत सुन्दरता से वर्णित है। कहीं तो वो रावण की लंका जलाने चले गए और वहीं सीता जी के सामने नत मस्तक भी हो गए। और जब सीता जी ने कहा कि, “नहीं, तुम तो मेरे बेटे हो, मैं बेटे के दम पर नहीं आऊंगी, मेरे पति को आना होगा और इस आदमी का संहार करना होगा। जब वो इसको नष्ट करेंगे, तब मै उनके साथ जाऊँगी।” तो, हनुमान जी इतने इससे वहां गए थे, उन्होंने कहा “ठीक है”। वो तो उनको ऐसे उठा के ले आते। उनकी शक्तियां ही ऐसी थी। लेकिन उन्होने ये कहा कि “अगर माँ ये बात कह रही है ,तो ठीक है”। और उसके बाद इतना बड़ा महायुद्ध हुआ, उसकी जरुरत थी। 

अब ये, वो श्री राम की भी विशेष रूप है, अत्यंत शक्तिशाली और उनका निशाना कभी चूकता  नहीं था। आप ने सुना होगा की सीता स्वयंवर में उन्होंने क्या किया। लेकिन वही श्री राम, जब रावण की बात आयी तो, उसको उन्होंने छोड़ा नहीं। उसका उन्होंने वध कर दिया। उसकी जो – माने उसका जो वर्णन तुलसीदास जी ने बहुत सुन्दर किया है; कि श्री राम बार-बार बाण मार रहे थे और रावण के दस सर में से एक एक गिरता जाए, फिर आ जाए; फिर गिरता जाए, फिर आ जाए। तो लक्ष्मण ने कहा कि, “कर क्या रहें आप? एक बाण उसके ह्रदय में मारो, जैसे ह्रदय में आप बाण मारोगे, वैसे ही वो मर जाएगा, नहीं तो वो मरेगा कैसे? वो नहीं मर सकता। उसका वो बाण जो है, वो उसके ह्रदय में लगना चाहिए।” अब श्री राम का बड़ा सुन्दर वर्णन है वहां। संकोची थे ना, बहुत संकोची थे, श्री राम होते हुए भी! इतने शक्ति के प्रचंड, महान पुरुष होते हुए भी, उन्होंने कहाँ, “देखो, बात ये है, कि इस रावण के ह्रदय में मेरी सीता का वास है। तो मैं ह्रदय में नहीं मारूंगा। लेकिन जब बार-बार इसका सर उतरेगा, तो इसका ध्यान जरूर सर की और जायेगा। उस वक्त मैं इसको बाण से मारूंगा”। नहीं तो उनके लिए कहा जाता था की एक बाण में वो वध करते थे। पर अब ये देखिये कि कितनी नजाकत की बात है, कितनी सरलता की बात है, एक पति का प्रेम अपने पत्नी के प्रति। सारे शक्ति के सागर होते हुए भी उनके अंदर किस कदर प्रेम था!

हनुमान जी के तो अनेक किस्से है; कि जिसमें हनुमान जी ने सिद्ध कर दिया कि वो प्रेम का सागर थे। और उसी वक्त जो दुष्ट हो, जो दुसरों को सताता है, जो दूसरों को नष्ट करता है उसका वध करने में उनको बिल्कुल किसी तरह का संकोच नहीं होता था। ये जो भक्ति की बात बजरंग बली की है वहीं उनकी शक्ति की भी बात देखने लायक है। वो जानते थे की रावण सिर्फ अग्नि से डरता है। इसलिए लंका में गए और लंका-दहन कर दिया। ये उनकी शक्ति की बात है कि उन्होंने लंका-दहन कर दिया और उस दहन में किसी को मारा नहीं, किसी को जलाया नहीं।  रावण भी जला नहीं, कोई नहीं जला! पर उससे दहशत हो गई लोगों को, लोग घबड़ा गए कि रावण ये क्या पाप कर रहा है। रावण, जो इस तरह के कार्य कर रहा था, पहले  लोगों में सम्मत था। वो कहते है, “भाई, ये रावण ही है, क्या है, इसकी इच्छा जो है, सो है। इसको जो करना है सो करने दो, हम उसको कहने वाले कौन होते है? रावण तो रावण ही हुआ।” लेकिन जब; (कितनी समझदारी की बात है); कि जब लंका जल उठी, जब लंका का दहन हो गया, तब लोग समझ गए कि ये तो बड़ी खतरनाक बात है, बड़ी घबड़ाने की बात है। क्यों के लंका का दहन हो गया और हम लोग अगर जला गए होते तो? अब आग की विशेषता ये है कि  ऊपर जाती है, नीचे नहीं आती। सब लोग नीचे से ऊपर को देख रहे थे कि जल रही है, जल रही है, जल रही है। पर पूरा लंका दहन हो गया लेकिन कोई जला नहीं। ये डराने के लिये, उनको समझाने के लिए कि रावण महा पाप कर रहा है उन्होंने ये काम किया। कितनी समझदारी और कितना संतुलन बजरंग बली में था, ये देखना चाहिए।

यही हम देखते है इतिहास में भी, जितने लोग शक्तिशाली बहुत थे, उनमें अत्यंत प्रेम था। अगर आप देख लीजिये तो शिवजी महाराज का एक उदाहरण है, कि वो इतने शक्तिशाली थे, पर उतने ही बहुत तमीज़दार, बहुत कायदे के और बहुत ही ज्यादा संयमित आदमी थे। ये संतुलन जब आप में आ गया, तब आप सहजयोगी है। अगर आपके अंदर शक्ति आ गयी, इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने प्रेम और व्यवहार, उसको किसी तरह से त्याग दे। किन्तु आप शक्तिशाली है, उसकी शोभा ही ये है कि आप – जो लोग दलित है, जो गरीब है, जो दुखी है, जो पीड़ित है, जिनपे आफत आई हुई है, उन को संरक्षण दें । और जो लोग उन को पीड़ा देते है, जो नाश करते है, जो सताते है और जिन्होने हर तरह की परेशानी लोगों के लिए खड़ी की है, ऐसे लोगों को आप, कुछ करने की जरुरत नहीं, सिर्फ बंधन से ही आप ठिकाने लगा सकते है। ये जो आपके अंदर शक्तियां आ गयी है, इसका इस्तमाल इसलिए करना चाहिए कि जिसे, जो दुष्ट है वो खत्म हो जाये। लेकिन आप की शक्ति में हाथ में तलवार या गदा नहीं है हनुमान जी जैसे। बाह्य में गदा नहीं है, पर अंतर में है! आपके अनुभव आप देख लीजिये कि जो आदमी परेशान करता है, तंग करता है, उसपे गदा प्रहार हो जाता है; चाहें आप हाथ में गदा उठाइये, या नहीं उठाइये! इस तरह से आप तो स्वयं सुरक्षित है ही – आपकी तो सुरक्षा है ही, लेकिन उसके साथ ही साथ आपके जो दूसरे सहजयोगी हैं उनकी भी सुरक्षा है। इस तरह से बचत हो जाती है। अब इसमें श्री बजरंग बली का हाथ बड़ा जबरदस्त है। 

आपको पता नहीं कि वो आपके आगे पीछे खड़े हुए हैं। है तो उनका स्वभाव बच्चों जैसा, बहुत निर्मल और बहुत सरल; लेकिन इतनी समझदारी और हर तरह की खूबियां वो जानते हैं। इसका मतलब है की उनकी शक्ति के साथ उनके अंदर नीर-क्षीर विवेक बहुत था। बड़े ही बुद्धिमान थे। आजकल की बुद्धि तो बिलकुल बेकार है। पर वो बुद्धि, कि जो प्रेम से हर एक चीज़ को जांचे और समझे, उस बुद्धि के एक विशेष स्वरुप श्री गणेश थे और श्री हनुमान है। दोनों में विशेषता ऐसी है कि हनुमान जी बहुत बलिष्ठ, बहुत तेज़ ऐसे देवता हैं और श्री गणेश ठन्डे हैं; लेकिन दोनों, जब वक्त पड़ता है तो बहुत बड़े संहारक है। सहजयोगियों को संहार करने की जरुरत नहीं; किसी का संहार करने की जरूरत नहीं। बस आप ये सोच लीजिये कि आपके साथ ये दोनों हर पल – हर क्षण है। जब भी आपको कोई परेशान करे, तंग करे तो साक्षात् आपके संरक्षक आपके साथ खड़े हैं। 

बहुत से बार आप सुनते होंगे की ये मिनिस्टर लोग जाते हैं, कोई जाता है, तो उनके साथ सिक्योरिटी (Security) चलती है; सहजयोगियों की सिक्योरिटी (security) उनके साथ ही चलती है। और दूसरी सिक्योरिटी (security) जो चलती है, वो है गणों की। अब इन का तो कार्य बहुत ज्यादा विविध है, तरह तरह के, छोटे छोटे काम भी करते हैं। और यही है के श्री गणेश को, वो गणपति है, उनको सब खबर देतें हैं आपके बारे में, कि क्या हो रहा है; कहाँ गड़बड़ हो रही है; कहाँ से आप पर आक्रमण हो रहा है; कहाँ से आपको तकलीफ हो रही है। आप जानते भी नहीं होंगे, कोई अज्ञात रूप से भी कुछ आपके उपर में हमला करना चाहें; तो भी ये दोनों देवता आपके साथ खड़े हुए हैं। और जब गणपति ये बात बता देते हैं, तो श्री हनुमान सज्ज हो जाते हैं। तो सहज योगियों को डरने की कोई जरूरत ही नहीं। किसी भी चीज़ से डरने की जरुरत नहीं।  

अभी एक किस्सा आपको सुनाऊ मैं , बडा आश्चर्य का है; के आपने सुना होगा के अमेरिका ने हर जगह बहुत सारे बॉम्ब गिराये – ये सोच के कि, इस जगह आक्रमक लोगों ने कुछ व्यवस्था की हुई है। तो ये किस्सा जो मैं सुना रहीं हूँ, ये अफ्रीका में एक जगह; जहाँ पर कुछ सहजयोगी थे और वहां बॉम्ब गिरा। वो बॉम्ब गिरने से वहां जितने भी लोग थे, वे सब मर गए और सहजयोगीयों को कुछ भी नहीं हुआ। वो बड़े हैरान, उनके ऊपर धूल भी नहीं आई। तो कभी वो कबेला नहीं आए थे। कभी उन्होंने सोचा नहीं था की कबेलाआएंगे। पर जब ये हुआ तो वे कबेला आए। और आके बताया “माँ, पता नहीं, किसने हमें बचा लिया, किसने हमारी रक्षा की। लेकिन हम सारे सहजयोगी बच गए और बाकी सब लोग मर गए।”, अब ये वाकयात सही बात है। और इसका कारण ये है कि आपने अब परमात्मा को स्वीकार्य कर लिया। आपने सहज मार्ग से अपना आत्मा चेतित कर लिया। इस आपके नए परिवर्तन से आप एक महान भक्त और शक्तिपूर्ण, ऐसे इंसान हो गए। अब किसी की मजाल नहीं कि आपको छुए। ऐसे हजारों उदाहरण आपको मैं दे सकती हूँ कि जब आप सहज में पार हो गए तो आपको कोई भी नहीं छू सकता। 

पहले भी संत साधू थे, सबको सताया गया, छला गया, सब कुछ हुआ – पर कितना भी लोगों ने छला, या सताया, वो ड़िगे नहीं, और इतना ही नहीं उनका हमेशा संरक्षण हुआ। और ऐसी ऐसी बातें वो कहते थे कि जिससे लोग बहुत नाराज हो जाएं। सोचते थे कि ये क्या बातें कह रहे राजाओं के ख़िलाफ़, बादशाहों के ख़िलाफ़, सबके ख़िलाफ़! वो ऐसी बातें कहते थे जिससे लोग घबरा जाएं। पर हनुमान जी की शक्ति से उनको कोई नहीं छू सका। उनको किसी ने नहीं मारा। ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन साहब के बारे में एक बड़ा अच्छा किस्सा है के वो उनसे उनके बादशाह ने कहा कि, “तुम आ करके मेरे सामने झुको, कुर्नीसात करो।” उन्होंने कहा, “नहीं , मै आपके सामने नहीं झुकने वाला। आप कौन होते हैं?” वो (बादशाह) बहुत  नाराज हो गए। उसने कहा “अगर तीन दिन के अंदर आपने आ के सर नहीं झुकाया तो मैं आप की गर्दन कटवा दूँगा।” उन्होंने कहा “कटवा दो। मैं नहीं झुकूँगा, क्यों के आप कोई साधू संत नहीं जो आपके सामने, आगे मैं झुकूँ।” तो उन्होंने आ करके बड़ा हंगामा मचाया कि तीन दिन बाद जा कर के, इस आदमी की गर्दन काट देना। जिस दिन उनकी गर्दन काटने वाले थे, उसी रात इसी बादशाह की गर्दन कट गई , कैसे पता नहीं! 

अगर ऐसे इतिहास में न होता तो, जो बड़े बड़े साधु संत हो गए, जो बड़े बड़े धर्मवीर हो गए, वो ख़त्म हो जाते। क्योंकि राक्षसी प्रवृत्तियाँ इतनी ज्यादा बलवत्तीय हैं, इतनी हिंसक है और इतनी व्यापक हैं के वो इन लोगों को तो ख़त्म कर ही देती। किंतु उनके पीछे परमात्मा है और परमात्मा जो है वो एक तरफ हनुमान और दूसरी तरफ गणेश, ये दो शक्तियां मिल करके बना हुआ है। वो संरक्षक है, वो संभालता है।

राणा प्रताप का किस्सा है, मेवाड़ के, वो जब लड़ाई में गए तो उनके सैनिकों ने सोचा की भाई ये तो हारने वाले है। तो उनसे कहने लगे “आप वापस जाइये, क्यों के हम चाहते है की आप बच जाए मेवाड़ के लिए।” तो उन्होंने कहा, “नहीं। तुम लोग सब वापस जाओ। मै तो ऐसे ही डटा रहूँगा, क्यों की गण मेरे साथ खड़े हुए है।” सहजयोगी थे न वो ! “आप को जाना है तो आप लोग जाइये, मै तो ऐसे ही डट के खड़ा रहूँगा, क्यों की गण मेरे साथ है।” बस समझ लीजिए कि  आपके आगे पीछे, हर तरह के संरक्षण है। पर इस संरक्षण को मिलते ही मनुष्य में क्या होना चाहिए, सहयोगियों में क्या होना चाहिए? वो धीर गंभीर और किसी से डरने वाला इंसान नहीं होता। वो किसी से भागता नहीं। जम जाता है उस जगह, और जो कुछ दुष्ट आदमी है, उसके सामने डट जाता है। उसको कुछ करने की ज़रूरत नहीं। वो जमाना गया। अब तो आप सिर्फ खड़े हो जाये, वो दूसरा भाग जायेगा, उसको पता नहीं चलेगा – क्या हो गया । 

ऐसे अनेक अनेक अनुभव सहजयोगी मुझे लिख के भेजते हैं की “माँ ऐसा हुआ, वैसा हुआ, ये बात हुई।” नहीं तो इस परदेसी लोगों के सामने सहजयोग फैलाना कोई आसान चीज नहीं है। और मुसलमानों में भी जब अब सहजयोग फैलने लग गया, तो इससे आप समझ सकते है कि दैवी शक्ति – जो प्रेम की शक्ति है, उसके अंदर कितनी ताकत है। और उस से कितने कार्य हो सकते है।

पर इसका मतलब नही कि आप हनुमान जी के नाम पर कोई बडी उत्पीड़न तैयार करें। ये इसका बिलकुल मतलब नही। जैसे आजकल बने हुए है, हनुमान जी का नाम ले लो, गणेश जी का नाम ले लो और, नहीं तो महादेव जी का नाम ले लो और ऐसी ऐसी संस्थाएं बनाओ। कोई संस्था बनाने की जरुरत नहीं, आप स्वयं ही एक संस्था है। न तो आप को कोई छू सकता है और न तो कोई आप को नष्ट कर सकता है। एक अपने को समझने की बात है जो कि सब शास्त्रों में कहा है की आत्म साक्षात्कार का मतलब है अपने को जानना। अपने को जानना माने क्या? जानने का मतलब है, ये जानिए की आप के आगे पीछे कौन कौन खड़ा है! कौन कौन आपका रक्षक है! और जो आप को लोगों से प्यार है, और दुलार है और जो लोगों के प्रति, जो हर समय सोचते है की इनको मैं किस तरह से खुश करूँगा, जैसे कल चोखामेला ने कहा था कि सारे संसार को मैं सुखी करूँगा। सबको मै आनंद से भर दूंगा। ये जो भावनाएँ आप के अंदर आती है, उसमे सोचना चाहिए कि आपका कोई भी बिगाड़ने वाला नहीं बैठा हुआ! हिम्मत नहीं! कोई नहीं बिगाड़ेगा आपको। और उसके लिए आप को कुछ करना नहीं है। उसके लिए आपको कोई भी तलवार रखने की जरुरत नहीं, गदा रखने की जरुरत नहीं। वो तो सब है ही, वो तो पहले से ही बंध बूंध कर आए हुए है। और वो आप में समाए हुए है! आपको जरूरत ही नहीं है कि आप अपने को बलिष्ठ बनाए, आप हैं!

एक चाईनीज (Chinese) किस्सा है, बहुत  मजेदार, के उनके यहाँ मुर्गों की लड़ाई होती है। तो जब मुर्गों की लड़ाई होती है तो उसमे ये हो गया की किसी तरह से एक राजा को ऐसा लगा की कोई साधु के पास ले जाएं। तो ये मुर्गें जो है, ये साधू से सीख लें की दुनिया से कैसे लड़ना चाहिए। क्यों कि ये साधू किसी से लड़ता नहीं पर उस को कोई छूता भी नहीं। इससे लोग दूर ही भागते है और उसके तरफ नत-मस्तक रहते है। तो ऐसी कौन सी इसमें बात है के ये इस तरह से इस दुष्ट दुनिया में इस तरह रह रहे हैं। तो साधू ने कहा कि ‘अच्छा, तुम मुर्गों को छोड़ जाओ।’ तो एक मुर्गा वो उसके पास वो छोड़ के चले गए। एक महीने बाद वो मुर्गा, वो ले गए, और उसको, जहाँ लड़ाई हो रही थी, बहुत सारे मुर्गे जिस में थे, ऐसे प्रांगण में ले जा के छोड़ दिया। तो अब मुर्गे, जो ये महाराज थे, ये अपने खड़े रह गए। अब सब मुर्गे आपस में लड़ रहे, झगड़ रहे, ये कर रहे, वो कर रहे, एक के बाद एक, एक के बाद एक, सब निकल गए। बस, एक ये महाशय खड़े रहे। सब लोग इनसे डरने लग गए कि इनको तो कुछ  हो ही नहीं रहा, ये कोई विशेष है कि क्या? और आखिर में वही एक मुर्गा बचा रहा जो अपनी शान में खड़ा हुआ था। 

सो आज जब हम हनुमान जी की यहाँ पूजा कर रहे, तो सोचना चाहिए की हनुमान जी  साक्षात् हमारे अंदर बस गए है। वो हमारे राइट साइड (right side) में है। माने पिंगला नाड़ी पर काम करते है। पिंगला नाड़ी पर काम करते है; और हमारे अंदर जोश भरते है और उससे उष्णता भी आती है इन्सान में। पर उनका मार्ग ऐसा है कि आपके अंदर उष्णता भी आए और भक्ति भी साथ-साथ चलें। सो, जो वो उष्णता आती है, जो जोश आता है – वो हमारे अंदर राइट साइड (right side) में काम करता है। और जब हम हनुमान जी की संतुलन शक्ति को प्राप्त नहीं करते है तो हमारे यहाँ अनेक बीमारी आ जाती है। जैसे लीवर (liver) की बीमारी है, अस्थमा (asthma) की बीमारी है और यहां तक हार्ट अटॅक (heart attack) कहना चाहिए, आता है। और जब इनकी गर्मी नीचे की तरफ जाती है; हनुमान जी गर्मी को कंट्रोल (control) करते है। पर जब गर्मी कंट्रोल (control) नहीं होती है तो ऐसी ऐसी बीमारियां होती है कि जिनका कोई इलाज नहीं। ब्लड कैंसर (blood cancer) हो सकता है इससे, और इंटेस्टिनल ट्रबल (intestinal trouble) हो सकता है, माने – दुनिया भर की बीमारियां एक लीवर (liver) के ख़राबी से हो सकती है; लीवर (liver) की खराबी होती है क्यों के हम हनुमान जी की बात नहीं मानते।

माने कभी गर हमें गुस्सा आया, कोई जरूरत नहीं गुस्सा आने की; पर आया गुस्सा, तो लगे मारने – पीटने इस को, उसको, हंगामा करने! ये कोई हनुमान जी की शक्ति नहीं। कोई गुस्सा करने की बात ही नहीं है। किसी पे नाराज होने की बात ही नहीं है। क्या जरूरत ही नहीं है; अगर आप हनुमान जी को मानते है तो! वो किसी पे गुस्सा नहीं करते। लेकिन इंसान है, हर बात पे गुस्सा आ सकता है। अहंकार चढ़ता है उसके अंदर। हनुमान जी में जरा भी अहंकार नहीं था। राइट साइड (right side) आदमी में बहुत अहंकार होता है। मनुष्य में तो इतना अहंकार है; अरे बाप रे बाप रे!

मेरा तो जी घबराने लगता है जब देखती हूँ, कि इनको किस चीज का अहंकार था। उस अहंकारिता का कुछ अर्थ ही नहीं है। “हम” माने क्या? कोई एक सर्व साधारण मनुष्य भी अहंकार करता है; और बहुत से राजे महाराजे भी अहंकार नहीं करते। इसका कारण है उनके अंदर ही ऐसी कोई स्थिति बनी है के वो हनुमान जी को नहीं मानते। जैसे ही आप हनुमान जी  को मानते है , वैसे आप श्री राम को मानते है। अब बताइए कि गर आप राइट साइडेड (right sided) आदमी है तो आपको तो अस्थमा (asthma) होना नहीं चाहिए क्यों कि श्री राम का वास हमारे सहजयोग के हिसाब से राइट हार्ट (right heart) पे है। क्यों के आप हनुमान जी को नहीं मानते है, उनके तरह का आपका व्यवहार नहीं है , संतुलन नहीं है इसलिए आप को अस्थमा भी हो जाता है। ह्रदय में आपके शिवजी का स्थान है , वो भी वहीं गड़बड़ हो जाता है और आप को हार्ट अटॅक (heart attack) आ सकता है या आपको और बीमारियाँ हो सकती है। सहजयोग पे आने पर आपको समझना चाहिए कि हनुमान जी का आपके सामने एक आदर्श है। गणेश जी का है ही; वो तो अबोधिता के बिलकुल अवतार है। जैसे छोटे बच्चे होते है, वैसे ही भोले भाले! लेकिन बुद्धि के बहुत चाणाक्ष! और हनुमान जी के अंदर एक संतुलन, एक प्यार भरा आनंद और उसी के साथ साथ शक्ति दर्शन!

ये सब चीजों को समझते हुए एक सहजयोगी का चरित्र या उसका जीवन ऐसा होना चाहिए कि  संतुलित। आपको जब गुस्सा भी आता है, तो आप चुप होके देखिए।

मुझे मेरे ख्याल से, मुझे तो कभी गुस्सा नहीं आता; या आता भी होगा तो मुझे तो पता नहीं। और बगैर गुस्सा किये ही मामला ठीक हो जाता है। हाँ मैं कहूंगी जरूर कि “ये क्या कर रहें हो?” बस! ज्यादा, इससे आगे नहीं। और लोग तो गाली-गलोच , दुनियाभर की चीजें करते हैं। पर जब ये अति हो जाता है , जब ये गुस्सा करने का मात्रा अति हो जाता है और आदमी; – वो तो बड़े गुस्सैल बैठे हुए है – वो वहाँ बैठे है – ग़ुस्से करके बैठे है – वो ग़ुस्सा करे है, इस तरह के जब आदमी हो जाते है तो एक बड़ी गम्भीर बात होती है। एक बड़ी गम्भीर बीमारी उनको लगती है, उनको अल्झायमर (alzheimer) कहते है। अल्झायमर (alzheimer)  की बीमारी इस ग़ुस्से से होती है; वो ग़ुस्सा, जो हम बेकार में करते है। अब समझ लीजिए आपके लड़के को किसी ने थप्पड़ मार दिया, हो गए आप ग़ुस्से! ग़ुस्सा होने से क्या बात होगी? उल्टे सोचना चाहिए के हमारे लड़के की कोई गलती है या हम ज़बरदस्ती अपने प्यार में उस लड़के को ख़राब कर रहे है? इस तरह का संतुलन जीवन में नहीं आएगा, तो ये अल्झायमर (alzheimer) की बीमारी बहुत ही ख़राब होती है, इस में आदमी पगला सा जाता है, मरता भी नही है और किसी को मरने भी नही देता। गालियाँ देता है, चीखते रहता है, उसको इतनी पकड़ आ जाती है लेफ़्ट साइड (left side) में, ब्रेन (brain) में, कि उसका व्यक्तित्व ही एक अजीब सा हो जाता है। उसका इलाज है सहज योग में, पर बड़ा कठिन है, क्योंकि वो तो गालियाँ देते बैठते है। उसको जो ठीक करने  जाएगा उसको ही गालियाँ देंगे, तो कौन मानेगा? अगर कोई डाक्टर हो, उसको कोई गाली दे, तो कहे “जाए चूल्हे में! मुझे क्या करने का”? यही होता है उनके साथ की नहीं चाहिए हमें। हमको इनको ठीक करना ही नहीं है; जाए, जहाँ रहना है, जैसे रहे। 

अब दूसरे हनुमान जी के जो बड़े बड़े भारी दुश्मन है, वो है शराबी! जो लोग शराब पीते है उनका लंका-दहन करते है! अरे आप देखते है, जो आदमी शराब पीते है, ना कोई उनसे बात करेगा ना कुछ करेगा। अच्छा वो दस शराबी इकठ्ठे करके और शराब पिलाएगा। अब सब शराब पी रहे है; ना उनके घर में खाने को है – ना पीने को है; नहीं कुछ कहे शराब ही पी रहें है, पागल जैसे। जो लोग हनुमान जी को मानते है वो शराब नहीं पी सकते। नहीं पी सकते, क्योंकि  इधर से मानो तो उनको और करो उसके उलटा – तो हो नहीं सकता। और आजकल मै देखती हूँ तो शराब पीना बहुत बढ़ गया है। और मुझे आश्चर्य होता है, एक बड़े अफसर साहब थे; एक बार उनके घर मै गई, क्योंकि हमारे पति के वो दोस्त भी थे। और मियाँ बीवी दोनो शराब पीते थे। और बड़ी ठंड थी, तो मुझे कहने लगे, “आज रात यही ठहर जाओ।” मैंने कहा, “अच्छा, ठहर जाएँगे।” तो पूरे घर में एक कम्बल! मैंने कहा “हे भगवान”! इतने बड़े अफसर के घर में एक कम्बल! मैंने कहा, “मेरे को तो कोई बात नहीं, मैं तो सो लूँगी।” अब वो लोग परेशान, कि एक कम्बल में इनको कहां सुलाए? मैंने कहा, “मेरी चिंता मत करो, मैं ठीक कर लूँगी।” इतना उनका हाल ख़राब, उनकी लड़की ख़राब गई, लेकिन मानने को तैयार नहीं कि मेरी लड़की ख़राब गई। बस, जैसे ही शराब पी लेंगे तो यह कहना शुरू करेंगे कि “साहब, मेरी लड़की सबसे अच्छी है, अब कुछ मत कहिए।” वो लड़की का सत्यानाश हो गया क्योंकि चढ़ गई। शराब चढ़ गई तो होश ही नहीं उनको! उस का बिलकुल सत्यानाश हो गया उस लड़की का, अंत में अभी आई थी मेरे पास रोते हुए। बहुत उसका सर्वनाश कर दिया। तो ये बात है की शराब का एक नशा और नशा को भी बढ़ा देता है और उसमें सबसे बड़ा नशा ये हो जाता है कि मनुष्य को प्रेम नहीं रहता। वो किसी से प्यार नहीं करते।

इसीलिए सबने, सारे धर्मों ने शराब को मना किया है। लेकिन अब ईसाई धर्म जैसे है, सब लोग उसमें से कुछ ना कुछ हिसाब किताब बना लेते है; हिंदू धर्म में भी है; ईसाईयों में भी; मुसलमानो में। तो उन्होंने ये कहा की जब ईसा मसीह किसी शादी में गए थे, तो उस शादी में शराब बनाई गई। बिलकुल झूठ! इसलिए हम लोग शराब पीते है। माने इंग्लंड (England) में तो मैं हैरान ही हो गई, कोई मरा तो शराब – कोई मर गया तो भी शराब पीयेंगे, कोई पैदा हुआ तो भी शराब पीयेंगे! मतलब इसका क्या अर्थ है मुझे समझ में नहीं आया। तो वो, जो आदत हो गई उन लोगों को और शराब तो वहाँ बिलकुल बड़ा भारी एक संस्कृति सी बनी हुई है शराब की! किताबें लिखी हुई है। कौनसी शराब, कब पीना चाहिए, ऐसा नहीं, वैसा नहीं, कैसा ग्लास (glass) इस्तेमाल करना चाहिए। अब इन शराबी लोगों का जो हाल मैंने देखा, वो मैं सोचती हूँ की ये आधे इंसान है, आधे बिलकुल पगले है। पागल लोग हैं । पर वो वहाँ संस्कृति बन गई; सबसे ज़्यादा तो फ़्रान्स (France) में है। फ़्रान्स (France) की तो संस्कृति बन गई; उनसे अपने को सीखने का कुछ नहीं।

अब, वो जो शराब की बात करते है, तो ईसा मसीह जब वहाँ गए, तो उस वक़्त में वो जगह हीब्रू में मैंने पढा हुआ, के लोग जो है, द्राक्ष का रस पीते थे, माने अंगूर का रस पीते थे। तो उन्होंने पानी में हाथ डाल के उसके अंगूर का रस बना दिया पानी का! शराब कभी सड़ाए, गलाए बगैर बनती है क्या? दो मिनट में सहज में शराब बन सकती है क्या? जब तक आप शराब को खूब सड़ाइए नहीं; और जितनी सड़ेगी, उतनी महँगी! पचास साल सड़ी हुई हो तो और भी अच्छी; और सौ साल हो तों तो बस; दुर्लभ! ये शराब की आयडियाज (ideas) बना ली शराबियों ने और शराबी लिखने वाले और शराबी ही कहने वाले! उनके शराबियों के लेक्चरों से न जाने कितने लोग बेवक़ूफ़ बनते है, पर किसी शराबी का मैंने किसी भी देश में पुतला खड़ा हुआ नहीं देखा। सो ये सब लोग, श्री हनुमान के विरोध में नहीं है पर उनको अटॅक (attack) करते है; उनको आक्रमण करते है। फिर वो भी दिखा देते है! ऐसी गर्मी अंदर कर देते है पेट में कि फिर कैन्सर (cancer), फ़लाना, ठिकाना सब बीमारियाँ! जब पियो, और पियो, पियो। ये शराब पीने – पिलाने की और पीने की जो ये रसम चल पड़ी है, इसका मुझे तो डर लगता है कि हनुमान जी को सम्भाले रहो! न जाने क्या कर दें! कहाँ से क्या आफ़त कर दें! इनका क्या ठिकाना? सारे शराबियों को एक दिन पकड़ के समुंदर में न डाल दें! मुझे तो यही डर लगता है इनका; क्योंकि  इनमें दया है, भक्ति है, सब है, पर जो इनके विरोध में खड़े है, उनके लिए नहीं।

जैसे श्री गणेश, दुश्चरित्र आदमी अगर कोई हो, कोई अगर बुरे वर्तन का आदमी हो, तो उसके विरोध मूलाधार चक्र पकड़ता है; जिसका चरित्र ठीक नहीं। पर इनकी बात और है। ये जब किसी आदमी को देखते है, कि वो अपनी चेतना से ही खेल रहा है; शराब पीने से चेतना ही नष्ट होती है! तो फिर उसके पीछे पड़ जाते है। घर में कलह होगा, झगड़े होंगे, मारामारी होगी। आप देखिए कि रास्ते पर मारामारी हो रही है, अगर आप रस्ता रोक भी लिया, तो क्या? दो शराबी आपस में मार रहे है। फिर उसकी हवा और फैलती है। तो किसी शराबी के घर, किसी सहजयोगीयों को जाना नहीं चाहिए क्योंकि वो अपवित्र जगह है। और नहीं किसी भी शराबी के साथ कोई सम्बंध रखना है। सहजयोगीयों के लिए भी बड़ा घातक है क्योंकि इधर तो आप हनुमान जी को मानते है, और उधर आप शराबियों के यहाँ जाते है।

ख़ासकर पूना  में, न जाने कितने तरह के हनुमान जी यहाँ हैं। मारुति, कोई डुल्या मारुति, तो कोई वो मारुति, तो कोई वो मारुति। तो पूने वालों के लिए तो बहुत बचके रहना चाहिए। वो एक आए थे हनुमान जी वाले मेरे पास; कि, “माँ, एक आ के लेक्चर दो।” मैंने कहा, “मैं नहीं आऊँगी।” कहने लगे, “क्यों?” मैंने कहा, “आप शराब पी करके वहाँ गंदे गंदे सिनमा के गाने गाते हो और आपको मालूम है ये मारुति क्या है? ऐसे गले घोटेंगे सबके, के फिर पता चल जाएगा।” तो उस गणपति के यहाँ आज कल, मैंने यह सुना है शराब वराब पीने नहीं देते। कोई शराबी पीकर आता है तो उसको भगा देते है। अब आप सोचो कि हिम्मत देखिए की, हनुमान जी सामने ही जा करके, और ये धन्धे करना! हनुमान जी के सामने! क्या हिम्मत है! और ये सब कुछ करने से लोग सोचते है कि पैसा आता है। इसका जो धंधा करते है, और जो पीते है, इसके जो गिऱ्हाइक है, सब इसी तरह से बिलकुल बेकार! बँक्रप्ट (bankrupt )! एक पैसा नहीं! अब लोग कहेंगे की शराब में ऐसा क्या है? जो की हनुमान जी का मामला है भई! इसका क्या कारण है? हनुमान जी के विरोध तुम जा रहे हो। उनकी शक्ति आपके अंदर राइट साइड (right side) से बह रही है। उसको इस्तेमाल करो, संतुलन के साथ। बजाए इसके, आप शराब पीते हो, अपना लिवर (liver) ख़राब करो, फिर ये ख़राब करो, फिर वो ख़राब करो, तो वो तो उखड़ेंगे ही! माने सूक्ष्म में ये हनुमान जी का काम है। बाह्यत: लोग नहीं समझते; बाह्यत: तो ये हालत है कि कहीं अगर शराब के विरोध में कुछ कहो तो लोग मारने को दौड़ेंगे आपको। अगर आप नहीं पीते, तो कहेंगे के “क्या बेवक़ूफ़, आप शराब नहीं पीते हो?” अरे बाबा, उसके पीछे में इतने बड़े हनुमान जी खड़े हुए हैं और अगर एक बार भी इसका प्रहार किया तो गए आप, ज़िंदगी से गए! मेरे ख़याल से पहले ही प्रहार करते, नहीं तो लोग ऐसे पागल जैसे कैसी बातें करते? वही वही बात करेंगे, वही वही बात! एकदम और सब पागल और सब साथ पार्टी हो रही है, यह हो रहा है और सब पागल लोग वहाँ! फिर शादियों में, बरातियों में, सब में चलता है।

अब जो इंसान कार्य करता है, बहुत आगे की सोचता है, और बहुत विचारक है, सब है; पर प्रेम नहीं है। सब के प्रति प्रेम की भावना नहीं है, उसको भी इसकी तकलीफ़ होती है, क्योंकि; राम की भक्ति करने वाले इस हनुमान जी का कोई ठिकाना नहीं। अगर आप बड़े कार्यकर्ता है, बहुत बढ़िया आदमी है, सब कुछ है, लेकिन आपको सबके प्रति प्रेम नहीं है; चलने नहीं वाला! सबके प्रति प्रेम रखना और इसीलिए ईसा मसीह ने कहा है कि “सबको माफ़ करिए।” आप कौन होते है माफ़ न करने वाले? आप स्वयं हनुमान जी नहीं है। हाँ, आपके साथ हनुमान जी है और आपके लिए वो आदर्श है कि वो अपने भक्ति के शक्ति पर इस ऊँचे पद पर पहुँचे। जहां गर्मी हुई, लोगों की खोपड़ी ख़राब हो जाती है और प्यार का मज़ा टूट जाता है। ऐसे हनुमान, भक्त, श्री बजरंग बली को, सब को नमस्कार करना चाहिए और समझना चाहिए की हमारे अंदर जो भी सहजयोग से शक्तियाँ आईं हैं; उसको संतुलन में रखें। प्यार ऐसी चीज़ है, कि आप बड़े बड़े लोगों को प्यार के बंधन में फँसा दें। हम तो यही करते रहते है; क्योंकि अजीब अजीब लोगों से पाला पड़ता है। अब उन पे ऐसी प्यार का चक्कर चलाओ कि वो ठिकाने आ जाएं। 

एक बार हम गए थे कहीं, तो वहाँ एक साधु बाबा बड़े मशहूर! लेकिन ग़ुस्से के तेज, ये लोग सब ग़ुस्से के तेज़ बहुत होते है। तो हम चढ़के ऊपर गए तो वो ग़ुस्से में यूँ-यूँ-यूँ-यूँ गर्दन करने लगे। क्योंकि उनको यह अहंकार था कि वो बरसात को रोक सकते है। और मैं जो ऊपर गई, चढ़ते चढ़ते ऊपर पहुँची, तो बिलकुल भीग गई बरसात में। अब यह बहुत ग़ुस्से होके बैठे थे। तो मैं जा के उनके गुफ़ा में बैठी। वो आ के बैठ गए, बहुत ग़ुस्से में। तो मैंने कहा “ऐसा क्या हो गया? अब भीग गए तो क्या हो गया?” “नहीं”, कहने लगे “(तुमने) आपने मेरा अहंकार निकालने के लिए ही, पानी बरस रहा था; उसको रोका नहीं। क्योंकि मैं तो रोक सकता हूँ। माने ये अहंकार हो गया।” “ऐसी कोई बात नहीं” मैंने कहा; “देखो, तुम सन्यासी हो, और तुमने मेरे लिए एक साडी ख़रीदी है। मैं सन्यासी से तो कुछ ले नहीं सकता, ले नहीं सकती, और तुम मुझे कुछ दे नहीं सकते; तब मैंने सोचा कि भीग जाओ, तो लेना ही पड़ेगा!” उस चीज़ से उनके आँख से आंसू बहने लग गए, मेरे पैर पे गिर पड़े। मैंने कहा “मुझको क्या करना था, मुझको तो सिर्फ़ थोड़ा सा भीगना ही था! नहीं तो मैं भी नहीं लेने वाली थी! पर मैंने कहा थोड़ा भीग जाओ तो फिर लेना पड़ेगा साडी!” तो कहने लगे की “अच्छा?” मैंने कहा “तुमने मेरे लिए भगवे रंग की साडी ली है और नौवार; ये अच्छा किया क्योंकि इसमें तो पेटिकोट भी भीग गया, तो नौवार मैं पहन सकती हूँ।” बहुत ख़ुश हुए! एकदम उनकी तबीयत ख़ुश हो गई।

तो ये प्यार ऐसी चीज़ है कि बड़े बड़े ग़ुस्से वालों को ज़मीन पर उतार लाती है और पहले के अनेक ऐसे उदाहरण हैं; वो जब बताते (बसु) बैठूँ तो रात पूरी ऐसे बीत ज़ाएग़ी। और अब भी हर दिन हो रहा है। प्यार से बात करो। उसमें क्या जाता है? अगर आप प्यार करोगे तो दूसरों के सद्गुण आपके अंदर आएंगे और अगर आप किसी से नफ़रत करोगे, उसी से, उसके जो दुर्गुण है वो आपके अंदर आ जाएँगे। लेन देन का मामला है। आपने किसी से – ये ऐसा, वो वैसा, जो देखो कोई ठीक ही नहीं! ऐसे बहुत लोगों के यहाँ रिवाज है; संस्कृति है, कि कोई घर में आया, बैठा, खाया, पिया, ठीक है, ‘हाँ – हाँ – हाँ – सब हुआ’; जैसे ही गया – “ये ऐसा ख़राब आदमी है!” फिर दूसरा आया, वो बैठा, ख़ासकर औरतों में बहुत होता है ये; तो आके बैठा – “हाँ, हाँ, बड़े अच्छे! बड़े अच्छे! हाँ, जाओ, जाओ!” “हाँ, ये ऐसा आदमी!” अरे भाई! ऐसे ऊपरी प्यार से तो नहीं हो सकता ना? अगर तुम इस तरह से ऊपरी प्यार किसी से करोगे, तो वो क्या समझता नहीं है क्या? प्यार अंदर से करने की शक्ति आप को प्राप्त है, क्योंकि आप सहजयोगी है। और जब ये चीज़ को आप आत्मसात करोगे, अपने आप जब प्यार का पेड़ खिलेगा, तो आप दूसरों को आनंद दोगे और उसकी खुशबु आपको भी आएगी! प्यार के सागर के सिवा और कोई चीज़ आपको अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए बजरंग बली से जो चीज़ सीखने की है, वो है उनकी भक्ति, और वो शक्ति – जो आपको उन्होंने दी है, कि आपको कोई हाथ नहीं लगा सकता – अगर आपकी भक्ति सच्ची है! कोई हाथ नहीं लगा सकता। ऐसे हज़ारों उदाहरण सहजयोग में है – जो “चमत्कार” उसको लोग कहते है; मैं कहती हूँ, “नहीं, ये तो श्री हनुमान जी  की कृपा है!”

तो आप सबको मैं अब अनंत आशीर्वाद और प्यार कहती हूँ। पहले अपने को भी प्यार करो, और दूसरों को भी प्यार करो। इसका मतलब नहीं – “मेरा बेटा, मेरी ये”; ये नहीं, नहीं! इसका मतलब है, निर्वाज्य प्यार! प्यार, जिसका कोई बदला नहीं। जिसका कोई रिश्ता नहीं। जो अगाध है। ऐसी प्यार की शक्ति आपके अंदर आई है, तो उसको आप इस्तेमाल करें। 

अनंत आशीर्वाद!!