ईस्टर पूजा। इस्तांबुल (तुर्की), 25 अप्रैल 1999.
आज, हम सभी एकत्रित हुए हैं यहाँ , तुर्की में, इस्तांबुल में, ईसा मसीह के पुनरुत्थान को मनाने के लिए, और उसी के साथ आपके संग आपके पुनर्जागरण को मनाने के लिए ।
ईसा मसीह का पुनरुत्थान हमारे लिए एक महान संदेश था। उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त किया ।और उस मृत शरीर से बाहर आ गए , एक दूसरे शरीर के साथ जो जीवित शरीर था। शरीर वही था।परन्तु एक मृत शरीर था ।और दूसरा शरीर एक जीवित शरीर था। यह केवल प्रतीकात्मक नहीं है ।यह सच में उनके साथ घटित हुआ था। आख़िरकार , वे एक दिव्य बालक थे ।वे एक दिव्य व्यक्ति थे । सच में यह उनके साथ घटित हुआ । यह मात्र एक प्रतीकात्मक बात नहीं है, कि उनकी मृत्यु हुई एवं उनका किसी एक अन्य व्यक्ति के रूप में पुनर्जन्म हो गया। या, आप कह सकते हैं, एक जीवित व्यक्ति के रूप में। उनके लिए, मृत्यु क्या चीज़ है? शाश्वत प्राणियों के लिए कोई मृत्यु नहीं होती है। उस व्यक्ति के लिए कोई मृत्यु नहीं है जो शाश्वत है। कुछ समय के लिए, वे ऐसे दिख सकतें हैं जैसे कि वे मृत हैं।परन्तु वे कभी मर नहीं सकते। ईसा मसीह उसी प्रकार के थे ।एक अत्यधिक विशेष अवतरण, जो मृत शरीर से पुनर्जन्म लेने के लिए इस धरती पर प्रकट हुए।
हम भी अब , जबकि हम अभी भी आत्म साक्षात्कारी नहीं हैं, जबकि हम अभी तक प्रबुद्ध नहीं हुए हैं। हम भी मृत हैं, इस आशय से कि हमारी जागरूकता अत्यधिक , मुझे कहना चाहिए ,अत्यंत ही नीरस एवं निर्जीव है।हम फूल देख सकते हैं।हम चेहरे देख सकते हैं।हम भवन देख सकते हैं। हम शहरों को देख सकते हैं। हम उन सभी चीज़ों को देख सकते हैं। ये सभी चीज़ें हम देखते हैं तथा हमें आभास होता है कि हम अत्यंत ही चेतनामय हैं, जो कि हम नहीं हैं।
हमें सच्ची चेतना प्राप्त होती है , जब हम अपने मन की सीमा के परे हो जातें हैं, मन से परे चले जाते हैं।और यह संभव हुआ केवल , ईसा मसीह के पुनरुत्थान के कारण ही। उन्होंने स्वयं का पुनरुत्थान किया क्योंकि वे एक दिव्य व्यक्ति थे । परन्तु हमारा भी पुनर्जागरण हुआ क्योंकि हमें दैवीय आशीर्वाद प्राप्त है। अब हमारा यह मस्तिष्क , जो मध्य में है, श्री ईसा मसीह द्वारा नियंत्रित है। वे आपकी आज्ञा के माध्यम से नियंत्रण करते हैं दोनों पक्षों को । वे आपके संस्कारों को नियंत्रित करते हैं एवं वे आपके अहंकार को नियंत्रित करते हैं। और आप में एक संतुलन लाते हैं ।
परन्तु जब यह आज्ञा चक्र बिखेरना शुरू कर देता है, सभी प्रकार के विचार, कभी प्रतिक्रिया, कभी संस्कारों के आधीन होना , यह एक दास होता है।यह एक स्वतंत्र चीज़ नहीं है, क्योंकि यह कार्यरत है आपके अहंकार के प्रभाव में , अथवा आपके प्रतिअहंकार के प्रभाव में। कारण कि यह हमारी चेतना का अंत है, कि हम नहीं कर सकते।हम इसके परे कुछ नहीं समझ सकते। कि हम स्वीकार नहीं कर सकते इसके परे भी एक जीवन अस्तित्व में है। यह हमने अब देखा है , कि हम सभी , हम सब ऐसी दशा में थे जैसे कि कोई मृतप्राय हो । हमें दुख लग रहा था।हम चिंतित थे ।हम लड़ रहे थे।एवं हम सोच रहे थे,कि हमारे वर्तमान जीवन में कुछ तो गड़बड़ है।
निश्चित रूप से कुछ ऐसा है जो हमें दास बनाता है, जिसके द्वारा हम दास तुल्य हो गऐं हैं। निःसंदेह हमें इसका अनुभव हुआ एवं हमने सत्य की खोज शुरू कर दी। हमने कई प्रकार से सत्य की खोज शुरू कर दी। मैं जानती हूँ कि बहुत से लोग भटक भी गए थे । और वे अपना संतुलन खो बैठे एवं पूरी तरह से गर्त में समा गये ।
परन्तु आप में से बहुतों को उबार लिया गया है, बचा लिया गया है ईसा मसीह के पुनरुत्थान के महान उदाहरण द्वारा । उन्हें साहसिक कार्य करना था। उन्हें यह करना था तथा उन्होंने इसे कार्यान्वित किया। उनके बिना, हमारी आज्ञा इतना लचीला नहीं होता ।जैसा कि है मनुष्य , पुराने समय में बहुत अधिक बंधन ग्रस्त था ।और जब वे आधुनिक हुए, वे पूरी तरह से अहंकार ग्रस्त हैं । बीच में कुछ भी नहीं । इन दो प्रभावकारी तत्वों ने हमें क़ैद कर लिया है ।हम पूरी तरह से मर चुके हैं। हमारे अंदर किसी के लिए कोई संवेदनशीलता नहीं है।
अभी भी मैंने देखा है । आज भी आप देख सकते हैं , किस तरह की घटनाएँ चारों ओर हो रही हैं। लोग एक-दूसरे को मारने के लिए बहुत व्यग्र हैं। मनुष्य बध करना चाहता है मनुष्य का, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? ऐसी मूर्खतापूर्ण बात कि हम अपने निकट सम्बन्धियों को मारें। फिर, ऐसे बच्चे हैं जो बध कर रहे हैं। माता-पिता जो बध कर रहे हैं । कोई भी सम्बन्ध मान्य नहीं है। यह एक ऐसे व्यक्ति की पहचान है जिसकी चेतना पूरी तरह से मर चुकी है। हमारी चेतना में कम से कम, हमारे अंदर करुणा तथा प्रेम की भावनाएं होनी चाहिए। परन्तु यह सब लुप्त हो गयी है। यह ग़ायब है ।यह हमारे अंदर है ही नहीं । सम्पूर्ण विश्व एक ज्वाला बना हुआ है, जब आप पढ़ते हैं , उन सभी चल रहे युद्धों के बारे में , जिस प्रकार से वे बच्चों का बध कर रहे हैं, जिस प्रकार वे मानव जाति का विनाश कर रहे हैं।
यह एक अनुचित प्रवृत्ति है ,कि मानव जाति के विनाश से चीज़ें सुधरेंगी । यह एक अत्यंत ही अनुचित अवधारणा है ,कि उन्हें नष्ट करके व्यक्ति कुछ प्राप्त कर सकता है। मुझे कहना होगा कि सहज योग में हमारा कार्य अच्छा चल रहा है ।परन्तु इसे रोकना होगा मनुष्यों के इस भयानक प्रवृत्ति को, जो विनाशकारी है । अतः आप पूछ सकते हैं, “ माँ, क्या किया जाए ? इस विनाश को रोकने के लिए क्या किया जाए ?” उत्तर ईसा मसीह के जीवन में है। आप लोगों का पुनर्जागरण करें ।आप उनका पुनरुत्थान करें , उन्हें प्रबुद्ध बनाएँ , उन्हें लाएं, एक ऐसी स्थिति में जहां वे समझें कि क्या उचित है एवं क्या अनुचित है। उन्हें अनुभव करने दें । वे अनुभव करें करुणा को , एवं आपके अंदर के प्रेम को ।
जब वह शुरू होता है, हमारे अंदर वह तीसरी शक्ति कार्य करना शुरू कर देती है। हमारा अहंकार भी नीचे आ जाता है। हमारे बंधन भी नीचे आ जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप सोचते हैं कि हम मुस्लिम हैं, हमें दूसरों को मारने का अधिकार है। यदि आप सोचते हैं कि हम यहूदी हैं, हमें दूसरों को मारने का अधिकार है। ये सभी अलगाव एवं इस प्रकार का भेदभाव जो हमारे अंदर हैं ,अत्यंत ही मूर्खतापूर्ण है ।कारण कि आप मनुष्य हैं, वे मनुष्य हैं। आप मानव बध कर रहे हैं । ऐसा नहीं कि उन्होंने कोई पाप किया है । या उन्होंने कुछ अनुचित किया है, सिवाय इसके कि अपनी मूर्खतापन में वे मानते हैं कि, वे यह हैं एवं वे वह हैं। आप नहीं हैं । आप मात्र मानव हैं।
जैसा कि आप भली भांति जानते हैं, प्रत्येक मनुष्य में कुंडलिनी होती है। किसी तरह का भेदभाव नहीं है।प्रत्येक व्यक्ति में ।चाहे आप मुस्लिम हों, यहूदी हों, हिंदू हों, ईसाई हों , सिख हों , पारसी हों ।कोई भी, आप कोई भी नाम दे सकते हैं। अब थोड़ा देखिये कि हम कैसे अपने लिए एक विशेष संप्रदाय को मान लेतें हैं। आपका जन्म हुआ है, कहिए कि , एक ईसाई परिवार में। अथवा आपका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ है ।तुरंत आप यह सोचना शुरू कर देते हैं कि आप थामने के लिए हैं, उस धर्म के सभी झंडों को जिसमें आपका जन्म हुआ है । उस धर्म में आपका जन्म हुआ है बिना आपकी जानकारी के, बिना आपकी अनुमति के , बिना किसी समझ के। अतः कैसे आप उस धर्म के अनुयायी हो सकते हैं? आपके अंदर कुंडलिनी है।सभी के अंदर कुंडलिनी है। अतः आप केवल मानव धर्म के अनुयायी हो सकते हैं, जहाँ प्रत्येक मनुष्य के अंदर कुंडलिनी है।
अतः , मनुष्य होने के अतिरिक्त आप कुछ नहीं हैं। ये सभी मिथ्या धारणा कि, हम हिंदू हैं, हम मुसलमान हैं, हम ईसाई हैं, सभी मानव रचित है। मेरे कहने का अर्थ है, मनुष्य किसी भी चीज़ की रचना कर सकता है। और मनुष्य के अंदर यह समझने के लिए कोई मस्तिष्क नहीं है , कि यह सब मनुष्य की देन है ।
उदाहरण के लिए, आप अमरीका में देखिए , वे संस्थानों एवं बड़े संगठनों इत्यादि की स्थापना करतें हैं। जिनका आधार होता है निहायत ही मिथ्याचार , नितांत अनुचित विचार, एवं समूल विनाश। परन्तु वे इसकी स्थापना करतें हैं । वे बनातें हैं । उनके समूह हैं । उनके पास यह सब है।और वे समृद्ध हो रहे हैं। परन्तु इसकी एक प्रतिक्रिया होती है। वे नहीं जानते। यदि आप ऐसी मिथ्या चीज़ें शुरू करते हैं मनुष्यों के विरुद्ध ,जिनका सृजन परमात्मा ने किया है । और कोई भी उनका संहार नहीं कर सकता है । तब प्रतिक्रियाएँ होती हैं।
बहुत से कई देश जो एक समय में शासक थे, बहुत महान समझे जाते थे, धराशायी हो चुकें हैं । और ऐसे सभी देश जो अभी समझतें हैं कि वे बहुत अमीर वग़ैरह हैं , उनका पतन होना ही होगा। उन सभी का पतन होगा। यह एक अटल परिणति है , इस मूर्खता का कि यह मानना कि आप दूसरों से श्रेष्ठ हैं, कि आप दूसरों का अंत कर सकते हैं।अतः एक अहिंसात्मक पद्धति शुरू हो गई ।जो मैं समझतीं हूँ कि एक अन्य मूर्खता है । कारण कि तब वे बचाना शुरू कर देते हैं मच्छरों को तथा खटमलों को भी । जबकि मच्छर एवं खटमल , आपको मालूम होना चाहिए कि सबसे बड़े रक्त चूसक होते हैं। वे केवल मानव रक्त पर पलते हैं। ऐसी चीज़ें। उन्हें बचाने का क्या प्रयोजन ?
अतः , मनुष्य कुछ ऐसा अपनाता है जो बेतुका, बेवक़ूफ़ी भरा एवं मूर्खता पूर्ण है। मुझे कारण नहीं पता है। जिस प्रकार से वे चीज़ों को अपनातें हैं वह निहायत ही अविश्वसनीय है। मेरी समझ से यह एक प्रकार की दासत्व मानसिकता है, जो उन्हें यह स्वतंत्रता नहीं देती है कि , सोचें कि क्या उचित है, क्या अनुचित है। इसके लिए, हमारे साथ ईसा मसीह है। हमारे पास ईसा मसीह है, एक ऐसे व्यक्ति, जो नितांत मुक्त थे , मुक्त सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों से ,सभी प्रकार के प्रलोभन से , सभी प्रकार की नासमझी से जिन्हें मनुष्य करते हैं ।
परन्तु कोई कह सकता है कि, “माँ, आख़िरकार वे एक दैवीय व्यक्तित्व थे ।” वे दिव्य थे तथा अब आप भी दिव्य बना दिए गए हैं । अतः , अब हम किस प्रकार आपस में मिलकर एक सम्पूर्ण प्रयास करें। लोगों को बताने के लिए एक सम्पूर्ण प्रयास कि, “आप क्या कर रहें हैं?आप ऐसा क्यों कर रहें हैं ? ऐसी चीज़ें करने की क्या आवश्यकता है? ” एक पक्ष है , हम कह सकते हैं, एक सामूहिक विनाश ,मूर्खता के माध्यम से ।दूसरा पक्ष है आपका का अपना आत्म-विनाश । शराब पीने लगिए। अन्य आत्म-विनाशकारी चीज़ों को अपनाइए, जो अनैतिक हैं। जो बहुत आसानी से उपलब्ध है। और लोग इसे बहुत पसंद करते हैं। और उन्हें पसंद नहीं है जब आप बतातें हैं कि यह विनाशकारी है।
अतः या तो हम दूसरों को नष्ट करते हैं या स्वयं को नष्ट करते हैं। दूसरों ने ईसा मसीह का अंत किया एवं वे स्वयं ही पुनर्जीवित हो गये । इसलिए हम भी अब उसी दशा में हैं। मैं जानती हूँ कि कई बार सहज योग को चुनौती दी गई थी। अब यह पहले से बहुत बेहतर है। इतना बुरा नहीं है । चुनौती दी गई थी एवं बहुत सारी समस्याएं थीं। पर अब इसमें सुगमता आ रही है। कारण कि यही सत्य है।यही सच है। दिव्यता यही है।
अत:, आपको डरना नहीं चाहिए। सहज योग के बारे में इन सभी हास्यास्पद विचारों का भी अंत हो जाएगा । यह पुनरुत्थान है, न केवल आप लोगों का । अपितु हमारी विचारधाराओं का भी। अब विचारधाराएँ बदल गई हैं, कि हमारी चेतना प्रकाशित होनी चाहिए। हमारी चेतना आलोकित होनी चाहिए। यह एकदम सहज योग के माध्यम से ही लोगों में आया है कि, यदि आपके अंदर प्रकाश नहीं है, आप कैसे सही मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं?
ईसा मसीह के जीवन का वर्णन करना आसान नहीं है, वे किस प्रकार उससे पार हुए । युवावस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई एवं क्रूरता से उनका बध किया गया । परन्तु उसके बावजूद भी , उन्होंने अपना पुनरुत्थान किया । वे उस सब से बाहर निकल आये । उस कठिन दौर से बाहर निकल आ गए । अतः हमारे लिए भी, जब हमें सहज योग में समस्याएँ होतीं हैं, हमें समझ होनी चाहिए कि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है । कोई हमें नष्ट नहीं कर सकता है ।कोई हमारा अंत नहीं कर सकता, क्योंकि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है। पुनरुत्थान की यह विशेष शक्ति जो हमारे अंदर है, आपको सदैव इसका भान रखना चाहिए एवं अनुभव करना चाहिए तथा उस पर ध्यान करना चाहिए।
मैं प्रत्येक देश के लोगों से सुनती रहतीं हूँ , सरकार इस प्रकार कर रही है। सरकार इस प्रकार कर रही है । या उन्हें कुछ कष्ट हो रहा है । वे आपको एक संप्रदाय पुकारतें हैं। वे आपको कई तरह से पुकारतें हैं । ठीक है! कोई बात नहीं । आपका कर्तव्य है यह मानना कि, आप ईसा मसीह के पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे हैं। और कोई इसे नष्ट नहीं कर सकता ।यह ईसा मसीह के जीवन का संदेश है, कि दिव्य जीवन का अंत नहीं किया जा सकता । जब उनका शरीर नष्ट नहीं किया जा सका , तब आप दिव्य प्रकाश को कैसे नष्ट कर सकते हैं?
बहुत से सहज योगी यहाँ हैं, जो बहुत समय से सहज योग में हैं, तथा उन्हें समस्यायें रही हैं, एवं वे बहुत सी परेशानियों से गुज़रे हैं । मैं मानतीं हूँ । परन्तु ये सारी चीज़ें शांत हो गई हैं। और अब आप ऐसी पुनरुत्थान की दशा में हैं, कि कुछ समय बाद, आप चकित हो जाएंगे , सहज योग पूरे विश्वभर में छा जाएगा।पूरे विश्व में लोग सहज योग को अपना लेंगे । और पूरे विश्व में हमारे साथ इतने अधिक सहज योगी होंगे , कि जो कुछ मूर्ख लोगों का अल्प संख्यक समूह हैं वह सब ओझल हो जायेगा ।
उसके लिए आपको क्या करना होगा ? कभी-कभी, लोग मुझसे पूछते हैं,”हमें क्या करना है?” आपने बाइबल में भी अवश्य पढ़ा होगा, कि ईसा मसीह ने प्रार्थना किया एवं वे प्रार्थना करते रहते थे। उसी भाँति हम कह सकते हैं कि हमें ध्यान करना होगा । ध्यान धारणा के माध्यम से ही हम प्रगति करेंगे अपनी चेतना में ,अपने नए व्यक्तित्व में, अपने सशक्त व्यक्तित्व में । ध्यान धारणा ही हमारे प्रगति का एकमात्र मार्ग है , और तब कोई भी आपका संहार नहीं कर सकता, क्योंकि आप सभी दिव्य प्रेम से संरक्षित हैं। आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है , कि कौन आपका अंत करेगा ? क्या होगा ?
निश्चय ही , शुरुआत में थोड़ी उलझन होती है, लोग इस बारे में थोड़ी परेशानी का अनुभव करते हैं। ठीक है! परन्तु वास्तव में कोई भी आपको नष्ट नहीं कर सकता।आप स्वयं में यह विश्वास रखें ! ईसा मसीह के पास कोई संगठन नहीं था।उन्हें संबल देने उनके साथ आदि शक्ति नहीं थीं । किसी भी तरह नहीं । परन्तु केवल अपने दिव्य व्यक्तित्व के माध्यम से, वे उबरने में सफल रहे सभी समस्याओं से, सभी यातनाओं से , अपने ऊपर सभी अत्याचारों से । अतः अब, आप बेहतर अनुकूल दशा में है , क्योंकि आप आलोकित हैं। सर्वप्रथम वे एक दिव्य व्यक्ति थे एवं वे उन सबको सहन कर पाए ।आपको ऐसा नहीं करना । कोई आपको प्रताड़ित नहीं करेगा । कोई आपको कारावास में नहीं डालेगा ।कोई आपको सूली पर नहीं चढ़ाएगा। कोई भी नहीं करेगा। यह संभव नहीं है। परन्तु मानसिक रूप से यदि आप परेशान हैं ।कभी-कभी आप परेशान हो जाते हैं। मुझे पता है । कुछ देशों में लोग परेशान हो जाते हैं। कारण कि वे सोचते है कि वे उत्पीड़ित हैं,क्योंकि वे सहज योग में हैं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ, कोई ऐसा नहीं कर सकता। आपको पता होना चाहिए कि आप चिर संरक्षित हैं।
ईसा मसीह आपके सबसे बड़े भाई के रूप में हैं । मैंने हमेशा बताया है । परन्तु आपके साथ आपकी माँ भी है । और आपके चारों ओर सभी गण एवं सभी देवदूत हैं। जब मैं यह देखती हूँ । मैंने बस सोचा ।इसे देखिए । हर देश में उन्होंने दिखाया है कि सभी गण एवं सभी देवदूत वहाँ हैं । सुरक्षा के ऐसे शुद्ध रूप आपके साथ हैं । इसलिए चिन्ता करने की कोई बात नहीं है ।अपने विनाश या अपनी बाधाओं के बारे में । या जो भी आप इसे कहें। एक प्रकार की विनाशकारी शक्तियां जो कार्यरत हैं। ईसा मसीह के जीवन से, हमें यह जान लेना होगा कि कोई नष्ट नहीं कर सकता है , एक आत्म साक्षात्कारी को इन आधुनिक समय में । वैसे भी, उन्होंने कभी नष्ट नहीं किया ।
आप जानते हैं कि हमारे बहुत से संत थे जिनका बध किया गया , जिन्हें यातनाएं दी गईं ।परन्तु देखिए , वे अभी भी जीवित हैं, काव्य के रूप में , कविता के रूप में, उनके आशीर्वाद के रूप में भी हर जगह ।उनका अंत नहीं हुआ है। उनकी मृत्यु नहीं हुई है । यद्यपि कि ऐसा लगता है कि वे अब नहीं रहे । बल्कि यहां तक कि उनका नाम लेने से एवं यहां तक कि उनका आह्वाहन करने से , वे कार्यान्वित हो जातें हैं। वे अपनी आत्मा के रूप में रहतें हैं एवं वे सहायता करते हैं। ईसा मसीह के जीवन से आश्वस्त होकर , उनके पुनरुत्थान से , हम पुनर्जागरण प्राप्त लोग हैं।
निश्चित ही हमारा शरीर भी बदल गया है। पुनर्जागरण के बाद, आप जानते हैं कि आपके चक्र कार्यान्वित करते हैं , सभी उपचारों एवं सभी आशीर्वादों को । हमारी प्रवृत्ति , हमारी मानसिक प्रवृत्ति भी बदल जाती है। और साथ ही हमारा अहंकार शांत हो जाता है। यही नहीं, हम बंधनों से भी मुक्त हो जाते हैं। विशेष रूप से मैं बहुत प्रसन्न थी कि वे लोग ,कहें कि ,जो एक विशेष धर्म में पैदा हुए हैं, तुरंत जान लेतें हैं कि उसमें क्या दोष है। जैसे कि वे पीछे मुड़ते है एवं उस समाज की छवि देख लेतें हैं । और जान जाते हैं कि उनमें क्या कमी है। और जब वे उन सुधारों पर ध्यान करना शुरू करते हैं।यह फलीभूत होता है । समाज सुधर रहे हैं ।
आप देखिए , तथाकथित धार्मिक धारणाएँ अपने ही बिछाए जाल में गिर रहीं हैं । और इस मिथ्याचार के कारण ही उन सबका पतन होगा।यह सच्चा धर्म नहीं है। धर्म हमारे अपने अंदर निहित है एवं यह शुद्ध धर्म, वही है जो एक वैश्विक धर्म है। इसका समाधान इस प्रकार हो जाता है। मान लीजिए कि आपके यहाँ युद्ध हो रहे हैं। धर्म के नाम पर युद्ध, विशेषकर परमात्मा के नाम पर। और धर्म के नाम पर वे युद्ध करते हैं। अतः अब क्या होता है? ऐसे सभी युद्ध जो छिड़ जातें हैं , सच्चाई को नष्ट नहीं कर सकते, सत्य को नष्ट नहीं कर सकते।
ईसा मसीह के पुनरुत्थान का यह एक अन्य संदेश है। आप नहीं कर सकते। आप सोच सकते हैं कि आज आपने इन लोगों को नष्ट कर दिया है। परन्तु वे वहीं हैं। सभी संत, सभी महान लोग, जो अपने जीवन में पुनर्जीवित हुए हैं, वे सदैव वहाँ रहतें हैं। उनके संरक्षण प्राप्त हैं , उनके मार्गदर्शन प्राप्त हैं ।आप उन्हें एक प्रकार से देख सकते हैं कि वे वहाँ हैं। इसलिए किसी को कोई डर नहीं होना चाहिए। मृत्यु के भय का अंत होना ही है । उनमें से कई लोगों ने एक ही बात कही है कि,आख़िरकार मृत्यु क्या है? मृत्यु का अंत स्वयं हो जाता है, जब एक बार आपका पुनर्जागरण हो जाता हैं ।इसलिए किसी को मृत्यु से नहीं डरना चाहिए।अब आप में से कितने लोग मृत्यु से डरते रहे हैं ,अपने पुनर्जागरण से पहले। परन्तु अब नहीं । आपको परवाह नहीं होती है कि मृत्यु कब आती है ? क्या होता है ? या किस प्रकार आपका तथाकथित रूप से विनाश होने जा रहा है। आप जानते हैं कि आपको नष्ट नहीं किया जा सकता । अपने अंतरतम हृदय में, आप सभी यह भली भाँति जानते हैं, कि आप को नष्ट नहीं किया जा सकता है। हमारे विनाश का भय उड़न छू हो जाता है ।निः संदेह।
परन्तु एक बात है, वह है करुणा । जब आप देखते हैं कि ये सभी अनुचित चीज़ें घटित हो रही हैं। और लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है, आपका मन, आप देखिए ,इसे बिल्कुल नहीं मान सकता है । यह उसकी प्रतिक्रिया शुरू कर देता है।और यह दूसरों की पीड़ा को अनुभव करता है। प्रबलता से। परन्तु इसके परिणामस्वरूप, आपकी इच्छा -शक्ति, उसके अनुकूल आपकी सोच, यहाँ तक कि आपके आँसू भी शक्तिशाली हो जातें हैं ।और वे धीरज दिला सकते हैं उन लोगों को, जो अनावश्यक रूप से पीड़ित हैं। आपको इसके साथ प्रयोग करना होगा।मात्र करुणा एवं प्रेम की संवेदना रखने से चीजों में सुधार होगा। अब, जैसे कि स्थिति है, हम ध्यान धारणा करते हैं। परन्तु काश हम ध्यान भी कर सकें इतनी करुणा,एवं इतने प्रेम के साथ कि आपके आँसू भी प्रभाव डाल सकें,इन लोगों पर जो इतने क्रूर, एवं मूर्ख एवं हिंसक हैं।
परन्तु आपके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि अब ,आप एकाकी व्यक्ति नहीं हैं। अपितु आप एक वैश्विक व्यक्तित्व बन गए हैं ।एक वैश्विक व्यक्तित्व। आप एकाकी व्यक्ति नहीं हैं।आप एक वैश्विक व्यक्तित्व हैं। और यहां बैठकर आप सभी वैश्विक समस्याओं के समाधान को कार्यान्वित कर रहे हैं। अब आप एक छोटे व्यक्ति नहीं रहे, जो चिंतित है केवल अपने बच्चों के बारे में, अपने परिवार इत्यादि के बारे में ।नहीं ।आपके इस मस्तिष्क का विस्तार हो गया है ।इस प्रकार का विस्तार हो गया है , कि यह स्वतः ही संसार की सभी समस्याओं के लिए कार्य करता है।
जब एक महिला के लिए मैं समाचार पत्र पढ़ती हूँ ।विशेषकर महिलाएं शायद ही कभी समाचार -पत्र पढ़ती हैं । वे समझतीं हैं कि समाचार पत्र को पढ़ना मूर्खता है। परन्तु मैं पढ़ती हूँ ।और मैं उन्हें पढ़ती हूँ जहां मेरा चित्त होता है। मैंने देखा है कि यह कार्यन्वित होता है । परन्तु आप सभी एक साथ मिलकर , अगर आप समझें, कि यह आपका उतरदायित्व है कि सुधारें ,सभी विनाशकारी शक्तियों को ताकि उन्हें ठीक किया जाए । हमें बस उन विषयों पर सामूहिक रूप से ध्यान करना होगा, जहां आप एक बड़ी समस्या देखतें हैं।
अब मुख्य रूप से समस्या धर्म के कारण है। मुख्यत:। अब, यदि वे सभी तत्परता से अपना लें नए धर्म को, वैश्विक धर्म को ।वे सभी एक हो जाएँगे ।वे तब लड़ नहीं सकते क्योंकि एक ही धर्म होगा ।परन्तु वे एक धर्म नहीं चाहते हैं , क्योंकि वे झगड़ना चाहते हैं। वे लड़ाकू मुर्गे हैं। परन्तु यदि वे सहज में आते हैं ।यदि वे प्रबुद्ध हो जाते हैं, तब वे आनंद लेंगे केवल एक-दूसरे के प्रेम का । और न कि एक-दूसरे के संहार का , दूसरों के विनाश का ।
और यही है जो हमें ईसा मसीह के जीवन से सीखना है। जो अकेले थे । जो एकाकी थे । उनका साथ ऐसी सामूहिकता नहीं थी । परन्तु वे कितने शक्तिशाली थे कि वे मौत से लड़े । और आज्ञा के स्तर पर इतने स्पष्ट रूप से, इससे बाहर निकल कर आ गए। उनके बिना, हम सहज योग को कार्यान्वित नहीं कर सकते थे। कुंडलिनी पार नहीं कर पाती , यदि उन्होंने अपना जीवन बलिदान नहीं दिया होता । और उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी बलिदान दिया। उन्होंने अपने जीवन त्यागने के कार्य को स्वीकार किया ।और तत्पश्चात् पुनर्जीवित हो गये । वे उससे पार हुए ,मुझे कहना चाहिए , आज्ञा के बहुत ही संकरे मार्ग से,आप लोगों को सुधारने हेतु , यह बताते हुए कि आप सभी को क्षमा कर दो। यदि क्षमा इतनी शक्तिशाली चीज़ थी , कि आप अपनी मृत्यु से लड़ भी सकते हैं, तो क्षमा क्यों नहीं करें ? बहुत से लोग कहते हैं, “माँ, हम क्षमा नहीं कर सकते ।” और मैंने सैकड़ों बार बताया है , “आप क्या कर रहे हैं यदि क्षमा नहीं कर रहे हैं ?”
अतः , ईसा मसीह के जीवन का संदेश यह है कि उन्होंने भुला दिया । उन सभी लोगों को क्षमा कर दिया जिन्होंने उन्हें सताया था। उन्होंने यहाँ तक कहा कि, “हे परमात्मा , कृपया उन्हें क्षमा कर दीजिए , क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं!” उन्होंने सूली पर चढ़े हुए इन बातों को कहा , जब उन्हें यातना दी गई , अपमानित किया गया। । वे क्या कहते हैं ? “उन्हें क्षमा कर दें ।उनके प्रति दया करें , सहानुभूति रखें , क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं!” वे बध कर रहे हैं , परमेश्वर के पुत्र की।और उनका क्या होगा? वे कहाँ जाएंगे? उनकी क्या दशा होगी? यह हमारे लिए एक महान संदेश है, कि सूली पर भी उन्होंने कहा, “क्षमा कर दीजिए । हे परमात्मा ! हे पिता ! क्षमा कर दीजिए !” इसी प्रकार, हमें भी लोगों को क्षमा करना होगा। ईसा मसीह के जीवन का यह बहुत महत्वपूर्ण पक्ष है कि हमें क्षमा करना होगा। उनकी क्षमाशीलता अति महत्वपूर्ण थी । दुनिया को समझने के लिए कि आपको क्षमा करना चाहिए । यदि हम सीख जाएँ कि कैसे क्षमा करें, आप चकित हो जाएंगे, इस दुनिया के आधे युद्ध समाप्त हो जाएंगे!
अब, हजारों वर्ष पहले कुछ घटित हुआ था । अभी भी लोग झगड़ रहे हैं ।अभी भी वे लड़ रहे हैं। यह सोचकर कि ये चीज़ें इतने वर्षों पहले हुई थीं, इसलिए वे हमारे शत्रु हैं । यदि वे सच में क्षमा कर सकें , जो कुछ हमारे जन्म से भी पहले हुआ था । क्यों हमें ऐसे लोगों का एक समूह बनाएँ । क्यों? कारण कि मनुष्य में घृणा नाम की कोई चीज़ होती है। उनमें घृणा होती है।इस बात के लिए घृणा । उस बात के लिए घृणा । यहां तक कि छोटी-छोटी बातों में भी वे कहेंगे: “मुझे यह पसंद नहीं है, मुझे यह पसंद है!” बहुत आम बात है।आजकल विशेषकर ।
जब हम छोटे थे, हमें इजाज़त नहीं थी इस प्रकार की बातें करने की , “मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे यह पसंद है!” हम ऐसा क़तई नहीं कह सकते थे। परन्तु आजकल उनकी स्वतंत्रता ने उन्हें सिखा दिया है इस प्रकार से बातें करना, “मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे वह पसंद नहीं है। मुझे वह पसंद नहीं है।मुझे वह व्यक्ति पसंद नहीं है!” आप हैं कौन ? आप अपने आप को क्या समझते हैं कि दूसरों के बारे में राय दें ? आपको नहीं मालूम कि सराहना कैसे की जाती है।आप नहीं जानते कि आनंद कैसे लें। और बस आप यही कहते रहते हैं कि, “मुझे यह पसंद नहीं है।” और अगर मान लें किआप इसे पसंद करते हैं , आप क्या कर लेंगे ? चाहे आप इसे पसंद करें या पसंद न करें ,एक ही बात है। परन्तु केवल अपने अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए, हम कहते हैं: “मुझे यह तरीक़ा पसंद नहीं है । मैं पसंद नहीं करता!”
चूँकि प्रेम का अभाव है । यदि प्रेम होता, तब आप हर चीज़ का आनंद ले सकते हैं। हम कभी नहीं कहेंगे, “मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे यह पसंद है।” आप निश्चित रूप से आनंद लेंगे यदि आप वास्तव में कहते हैं, कि, “मैं आनंद लेता हूँ । मैं आनंद लेता हूँ !” आप अपने को एक सीमित दायरे में क़ैद कर ले रहे हैं यह कह कर , “मुझे यह पसंद नहीं है।मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे पसंद नहीं है!” जैसे कि आप एक महान पारखी हैं, या एक व्यक्ति, एक निर्णायक , यह बोलने के लिए । यह बहुत उल्लेखनीय है कि पश्चिम में यह और भी अधिक प्रमुखता से प्रचलन में है , कि वे कहेंगे: “मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे पसंद नहीं है!”
निश्चय ही , पूर्वी देशों में, मैं कहूँगी भारत में, यदि कोई ऐसा कहता है तो लोग कहेंगे कि, वह दिखावा करने की कोशिश कर रहा है। सामने सामने ।परन्तु दिखावा करना असभ्यता नहीं माना जाता है। पश्चिम देशों में इसे अशिष्टता नहीं माना जाता है। किसी भी चीज़़ का संकोच करना अशिष्टता के रूप में माना जाता है। पर किसी भी चीज़ की शेख़ी बघारना, किसी को भी नहीं लगता कि यह एक बुरी बात है।
क्या ईसा मसीह को किसी भी चीज़ का दंभ था ? कभी नहीं! उन्हें कभी किसी चीज़ का दंभ नहीं था ।परन्तु जब उन्होंने देखा कि लोग पवित्र स्थलों पर चीज़ें बेच रहे हैं, उन्होंने क्या किया? उन्होंने एक कोड़े से उन लोगों को मारना शुरू कर दिया, क्योंकि वह अनुचित था। एकदम अनुचित । उस स्थल की पवित्रता के विरुद्ध । पर उन्होंने यह नहीं कहा: “मुझे यह पसंद नहीं है!” नहीं! उन्होंने बस अपनी पूरी नापसंदगी दिखाई ,चीज़ों को बेचने की पूरी व्यवस्था के विरोध में , जो मंदिर में या पवित्र स्थल में व्याप्त थी ।
लोग वहाँ पूजा करने जाते हैं। उन्हें एक ऐसा मन चाहिए , जिसमें धन के प्रति रुझान न हो। जब आप ध्यान कर रहे हों, धन के प्रति प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए ।यह आज की सबसे बड़ी समस्या है। सब कुछ धन उन्मुख है। आपको एक कार पसंद है जो बहुत महंगी है, आप लेना चाहते हैं। सही या ग़लत किसी तरह से , आप उस कार को प्राप्त करेंगे तथा उसमें बैठेंगे। आप एक चोर भी हो सकते हैं, परन्तु आप दिखावा करने के लिए एक महंगी कार ख़रीदते हैं। शायद हो सकता है चूँकि आप एक चोर हैं, इसलिए आप छिपाना चाहते हैं ,अपने व्यक्तित्व को ।अतः कोई सच्चा जीवन नहीं है, यह सब बस दिखावा है एवं अपने आपके बारे में असीम धारणा है ।
परन्तु जब मृत्यु आपके द्वार पर आएगी, आप क्या करेंगे ? उस समय आप भय से कांप रहें होंगे,अपनी सभी तथाकथित उपलब्धियों, एवं तथाकथित दिखावे के साथ । आप मृत्यु के सामने बस सिहर जाएंगे।
परन्तु एक सहज योगी नहीं कर सकता।वह मान लेगा । यदि मृत्यु को आना है, उसे आना है। वह भयभीत होकर कांपेगा नहीं कि मृत्यु कुछ ख़तरनाक चीज़ है। बल्कि एक ठिकाना है जहां वह जा सकता है तथा शांतिपूर्वक ठहर सकता है । वह बुरा नहीं मानेगा। उसे किसी भी बात का बुरा नहीं लगेगा, क्योंकि वह मृत्यु से परे है। वह विनाश से परे है। इसलिए, उसे किसी भी बात का बुरा नहीं लगेगा, जो कुछ भी उसके सामने आएगा। और वह उसके सम्मुख आसानी से समर्पण कर देगा।
हमारे यहाँ कबीर हैं। कबीर ने बहुत सी कविताएँ लिखी हैं, अधिकतर मृत्यु के बारे में । उन्होंने कहा,”जब मृत्यु आई, मैंने एक शब्द भी नहीं कहा। मैंने लड़ाई नहीं की।बल्कि मैंने क्या किया । मैंने अपने ऊपर एक चादर ओढ़ ली एवं सो गया ।” कभी कभी कितनी मधुरता से उन्होंने मृत्यु का वर्णन किया । और फिर कबीर मुझे ईसा मसीह की याद दिलाते हैं ।
कितनी सुगमता से ईसा मसीह ने भी इन सब चीज़ों को सहन किया ।और जब उनकी मृत्यु हुई ,सभी पंच तत्व हिल गए। वे पंच तत्वों के स्वामी थे । वे डांवाडोल हो गए। वहाँ भूकंप आ गया एवं सभी प्रकार की घटनाएँ हुईं। उन्होंने ! उन्होंने उनकी मृत्यु का अनुभव किया ।न कि वे । उन्हें लगा कि ऐसी महान दैवीय व्यक्तित्व का ,जो कि अस्तित्व का सार है, इस प्रकार से बध किया गया । उन्हें भी यह नहीं मालूम था कि वे स्वयं पुनर्जीवित होने वाले हैं। उन्हें भी इसकी जानकारी नहीं थी। परन्तु उन्होंने ( ईसा मसीह ने ) ऐसा किया। वे उस मृतप्राय दशा से बाहर निकल आये , जिससे हर कोई बहुत ही स्तब्ध था।
उनकी मृत्यु ही हमें सामर्थ्य प्रदान करती है, कि हमारी मृत्यु नहीं होती है । हमारा पुनर्जागरण हो गया है। और पुनरुत्थान हमारे अंदर है। परन्तु हमें प्रस्थापित होना है। हमें अपने सहज योग को, अपने ध्यान को स्थापित करना होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है।
एक दिन मैं एक महिला से मिली । उसने अपने जीवन में हुए कई चमत्कार के बारे में बताया कि , कैसे वह बच गयी । वह मरने वाली थी । उसके साथ एक दुर्घटना एवं इसी तरह की चीज़ें हुईं ।परन्तु वह कैसे बच गई,जबकि उसका पति, वह इन सब से नहीं बच पाया ।अतः मैंने कहा, “आपका क्या तात्पर्य है। यह कैसे हुआ?” उसने कहा: “माँ,यह श्रद्धा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। श्रद्धा निष्ठा है, समर्पण है। समर्पण।चूँकि मैंने समर्पण कर दिया है ।” परन्तु मैंने कहा, “कैसे?” “वह मैं नहीं जानती।मैं बस समर्पित हूँ । मैं इतना सुखद ,इतना जीवंत एवं इतना अधिक भयमुक्त अनुभव करती हूँ, जब मुझे समर्पण का भान होता है। अपनी आत्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित ।”
और यही वह है जो हमें सीखना है, जब हम ध्यान करते हैं कि हमें समर्पण करना है। मोहम्मद साहब ने “इस्लाम” कहा है। इस्लाम का अर्थ है समर्पण ।यद्यपि कि वे समर्पण नहीं करते हैं। वरना आप देखिए । परन्तु वह क्या है जिसे आप समर्पण करें ,अपने वैश्विक स्वभाव के प्रति , अपने श्रेष्ठ स्वभाव के प्रति । आपको मृतप्राय नहीं होना है । आपको मेहनत बर्बाद नहीं करनी है , इन सांसारिक उथल-पुथल एवं दुनियावी चीज़ों में । यह ईसा मसीह का बहुत सामर्थ्य प्रदान करने वाला उदाहरण है। और वे हमारे साथ हैं । वे सदैव हमारा मार्गदर्शन करेंगे । वे हमारी देखभाल करेंगे। इतना ही नहीं।अपितु वे हमें सामर्थ्य देंगे । वे शाश्वत जीवन के सभी शत्रुओं का संहार कर देंगे । वे निरर्थक चीज़ों को नष्ट कर देंगे।
और अब आप देख रहे हैं कि कैसे कलियुग में ये सभी संस्थान ,जो धर्म की और झगड़े की बात करते हैं, नष्ट हो रहे हैं। स्वतः ही ! हमने कुछ नहीं किया है। केवल अपने आप ही , अपने कर्मों के कारण ही , उनका विनाश हो रहा है। कारण कि उनमें कोई सत्यता नहीं है, कोई आत्मा नहीं है ।और आत्मा के बिना जो शेष रह जाता है वह एक मृत शरीर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। सहज योगियों को यह पूरी समझ होनी चाहिए, कि हमें आत्म स्वरूप होना है।न कि धन-उन्मुख, देह-उन्मुख, भावना -उन्मुख।अपितु आत्म स्वरूप , जो एक आनंददायक चीज़ है। और आप आश्चर्यचकित होंगे, कि उस रवैये से ,आप सर्वाधिक प्रसन्न , अत्यंत प्रेममय ,अति सुंदर व्यक्ति होंगे। तुरंत ही आस पास के लोगों को पता चल जाएगा , कि इस व्यक्ति के बारे में कुछ विशेष है।यह महिला कुछ आलोकमय है। वह महिला या पुरुष आभा युक्त है । हमसे बहुत ही भिन्न । इसे झट ही पहचाना जा सकता है।
अब, ईसा मसीह के समय में , बहुत कम लोग पहचान सकते थे।कारण कि वे प्रबुद्ध नहीं थे।कारण कि वे मानवीय स्तर से बहुत अधिक नीचे थे। मुझे कहना चाहिए ।परंतु आप नहीं हैं । आप अत्यंत चेतनामय हैं। आप आधुनिक समय में पैदा हुए हैं। और इस समय जब हम ईसा मसीह के बारे में सोचते हैं । हमें पता होना चाहिए कि क्या जीवन था वह। कितना भव्य व्यक्तित्व था उनका , कि इस प्रकार की प्रताड़ना को सहन किया ।
वे बिना पल गँवाए उन सभी का संहार कर सकते थे । वे इतने शक्तिशाली थे ।इतने शक्तिशाली व्यक्तित्व । परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया । उन्होंने उन सबको क्षमा कर दिया। उन्होंने आपको क्षमाशीलता का संदेश दिया, महानतम शक्ति जो कार्यान्वित कर सकती है। अब भी, आपको आत्मसमर्पण करना चाहिए ,क्षमा के इस अवधारणा के समक्ष । और वास्तव में क्षमा करने का प्रयास करना चाहिए। आप चकित होंगे, आप बहुत शांति का अनुभव करेंगे। बहुत प्रसन्नचित्त होंगे । और जिस व्यक्ति ने आपको प्रताड़ित किया है उसके होश ठिकाने आ जाएँगे ।
हमें जो करना है वह है अब लोगों को परिवर्तित करना। यही हमारा कार्य है। हमें उन्हें परिवर्तित करना होगा। हम परिवर्तित हो चुकें हैं। हम एक ऐसे मुक़ाम पर हैं, आप कह सकते हैं, हमारा पुनर्जागरण हुआ है। हमें पूरे विश्व का पुनर्जागरण करना है। यही हमारा कार्य है, ताकि ये सारी लड़ाइयाँ, ये सारे झगड़े, ये सारे मिथ्याचार बिल्कुल ही समाप्त हो जाए ।
हमारे लिए, ईसा मसीह हमारे अगुवा हैं , जिन्होंने हमारे लिए यह सब किया है। वे एक सर्वसाधारण मनुष्य के रूप में प्रकट हुए , एक सर्वसाधारण मनुष्य की तरह जीवन यापन किया , अपने अंदर निहित इन सभी शक्तियों के साथ । उन्होंने इन्हें कभी विनाश करने के लिए उपयोग नहीं किया। इसी प्रकार , हम भी प्रेम एवं स्नेह के साथ, हम भी वास्तव में अपनी मृत्यु से मुक्त हो सकते हैं ।अपने संदेह से बाहर निकल आ सकते हैं ।अपने विनाशकारी स्वभाव से बाहर निकल आ सकते हैं। यह विनाशकारी प्रवृति सहज योगियों के लिए सबसे ख़तरनाक चीज़ है।
हमें केवल यही आशा है, कि सहज योगियों का पुनरुत्थान हो चुका है ।केवल एक चीज़ जो मैं जानती हूँ कि, यदि हमारे साथ बहुत संख्या में सहज योगी हो , यह दुनिया बदल जाएगी। इस संसार को बदलना ही होगा। परन्तु आपकी प्रगति होती रहनी चाहिए। आपको अधिक से अधिक प्रगति करनी चाहिए ।आपको पीछे नहीं लौटना चाहिए । इधर-उधर की छोटी-छोटी चीज़ों के लिए, चिंता न करें ।आप पर महान उत्तरदायित्व है। और यह उत्तरदायित्व मानव को परिवर्तित करने का है। यह आप पर बकाया ऋण है। आपने कितने लोगों को परिवर्तित किया है ? आपने कितनों लोगों को बदला है ? यह पुरुष या महिलाओं सभी के लिए है । आपको लोगों को परिवर्तित करना होगा। यही आपका कार्य है। और यही वह शक्ति है जो आपको ईसा मसीह से मिली है, कि आपको उन्हें बदलना होगा, उन्हें परिवर्तित करना होगा ,प्रसन्नता एवं आनंद के एक नए विश्व में , जिसे हम सहज निर्मल धर्म कहते हैं।
यदि यह कार्यान्वित होता है। यदि यह वास्तव में कार्यान्वित होता है।इस संसार के बारे में सोचिए। यह हमारे लिए कितना सुंदर बन जायेगा। यह प्रत्येक सहज योगी का कर्तव्य है, इस प्रकार के नए उपक्रम में लगना एवं यह पता लगाने की कोशिश करना कि वह कितने लोगों का अंतरण कर सकता है, तथा कितने लोगों को वह परिवर्तन के लिए तैयार कर सकता है। मुझे आशा है कि अगली बार हमारे पास दो गुना संख्या हो जाएगी उन लोगों की ,जो अभी मेज़बानी कर रहे इन सभी आठ देशों से यहाँ आए हैं । आप सब को मेरा ढेर सारा प्यार ।
महान दिन हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें अब केवल अपने उत्तरदायित्व को समझना होगा । मुख्य बात यह है कि हमने कितने लोगों को परिवर्तित किया है, कितने लोगों का हमने पुनर्जागरण किया है। यही रिकॉर्ड होना है, न कि यह,आपने कितनी पूजा इत्यादि में भाग लिया है। यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है। पूजा केवल आपको सामर्थ्य प्रदान करने एवं आपको शक्ति प्रदान करने के लिए है। परन्तु वे आपके कार्य नहीं हैं। वह आपका कार्य नहीं है। अपने कार्य के लिए, आप विभिन्न पूजाओं से प्राप्त कर सकते हैं , सारी शक्ति जिसकी आपको आवश्यकता है। परन्तु यदि आप इस शक्ति का उपयोग नहीं करते हैं, तो इसका क्या प्रयोजन ? इसलिए अब, मैं आप पर छोड़ती हूँ यह याद रखने के लिए, कि आपका पुनर्जागरण हुआ है तथा आपको दूसरों का पुनर्जागरण करना है। यह एक बहुत ही अति महत्वपूर्ण कार्य है, अत्यंत ही उथल-पुथल तथा विनाश के इस काल में ।
परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें !