श्रीगणेश अत्यंत शक्तिशाली देवता हैं

Campus, Cabella Ligure (Italy)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

श्रीगणेश अत्यंत शक्तिशाली देवता हैं श्रीगणेश पूजा, कबैला लीगर(इटली), 25 सितम्बर 1999

आज हम सब यहाँ पर श्रीगणेश की पूजा के लिये एकत्र हुये हैं। आप सभी जानते हैं कि वे कितने शक्तिशाली देवता हैं। उनकी ये शक्तियां उनकी अबोधिता से आती है। जब भी हम छोटे बच्चों को देखते हैं तो तुरंत ही हम उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं और उनको प्यार करना चाहते हैं … उन्हें चूमना चाहते हैं और उनके साथ रहना चाहते हैं वे इतने अबोध होते हैं … अत्यंत अबोध। यदि हम श्रीगणेश की पूजा करना चाहते हैं तो हमें सोचना चाहिये कि क्या हम सचमुच ही अबोध और निष्कलंक हैं। आजकल लोग अत्यंत चालाक और मक्कार हो गये हैं और मक्कारी के मामले में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे सरल और मासूम लोगों के साथ अनेकों मक्कारी भरे खेल खेलते हैं। वे सोचते हैं कि इस आधुनिक समय में हमेशा वे ही सही हैं और बाकी लोग अत्यंत शातिर और धूर्त हैं। ये धूर्तता उनको अत्यंत दांई नाड़ी प्रधान बना व्यक्ति बना देती है जो अत्यंत भयावह है …. क्योंकि कुछ लोगों में इसके कारण कुछ भयानक शारीरिक समस्यायें भी हो जाती हैं जैसे कि उनके हाथ कांपने लगते हैं या उनके पैरों में लकवा मार जाता है। उनको लिवर से संबंधित अनेकों समस्यायें भी हो जाती हैं। इससे भी बढ़कर उनको सजा देने के लिये उन्हें मनोदैहिक रोग भी जकड़ लेते हैं। जैसे ही आपको इस प्रकार की कोई दांई नाड़ी प्रधान बीमारी हो जाय तो आपको श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिये। उदा0 के लिये आजकल आप सभी का जीवन काफी व्यस्त हो गया है। आप सभी अपने कार्यों में अत्यंत व्यस्त हैं और मैं कहूंगी कि आप सभी सामान्य से अधिक कार्य करते हैं। लेकिन ये कार्य करते हुये आपको लगता है जैसे कि आप परमात्मा का ही कार्य कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप श्रीगणेश जी की अनदेखी होने लगती हैं और ऐसा व्यक्ति अत्यंत रूखे स्वभाव वाला और स्वयं मे लिप्त या इनमें से एक गुण वाला व्यक्ति बन जाता है। उसे पता ही नहीं चल पाता कि वह जा कहाँ रहा है। आपको सहजयोग में केवल एक ही चीज मध्य में रखती है और वह है श्रीगणेश जी की पूजा जिससे आप सदैव मध्य में बने रहते हैं। दांई नाड़ी प्रधान रोगों को भी श्रीगणेश जी की पूजा से ठीक किया जा सकता है।

अब श्रीगणेशजी की पूजा भी लोग अनेकों प्रकार से करते हैं लेकिन उनकी पूजा करने का तरीका अत्यंत सरल है कि आप उनके चित्र के सामने बैठ जाइये और उनके चैतन्य या वाइब्रेशन्स को ग्रहण करने का प्रयास करिये। इसी तरीके से आप स्वयं को संतुलन में रख सकते हैं। आपके जीवन में अनेकों प्रकार के संघर्ष और चिंतायें भरी पड़ी हैं जिनको केवल श्रीगणेश ही दूर कर सकते हैं। वे अत्यंत सरल और अबोध हैं परंतु साथ ही वह काफी चतुर भी हैं और जब वे आपकी सहायता के लिये दौड़े चले आते हैं तो ये देख कर आप कितने हैरान हो जाते हैं? किस प्रकार से वे सभी चीजों को कार्यान्वित करते हैं और आपकी सभी चिंताओं को हर लेते हैं। अतः हमारे लिये वे एक अत्यंत महत्वपूर्ण देवता हैं। हांलांकि वे अत्यंत सरल देवता भी हैं। अब हमारा मूलाधार चक्र भी अत्यंत जटिल चक्र है ….. मेरे विचार से तो ये सारे चक्रों में से सबसे अधिक जटिल चक्र है क्योंकि इसकी कई लहरें है…. कई भाग हैं। हम कह सकते हैं कि ये सभी भाग हर समय कंपन और दोलन करते रहते हैं। इनका अध्ययन करने के लिये आपको श्रीगणेश के प्रति अत्यंत समर्पित होना चाहिये। जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया कि श्रीगणेश ने श्रीईसामसीह के रूप में अवतार लिया जो स्वयं भी अत्यंत अबोध और निष्कलंक व्यक्ति थे। यदि वे इतने अबोध नहीं होते तो उनको क्रूसारोपित नहीं किया जा सकता था। वे बिल्कुल भी धूर्त और चालाक नहीं थे …. इसीलिये वे लोगों की धूर्तता और चालाकी को समझ नहीं पाये। उनके अपने ही शिष्यों ने उन्हें धोखा दिया ….. वे यह भी जानते थे कि वे कौन थे लेकिन उन्होंने कभी भी नहीं बताया कि वे लोग कौन थे। यदि आप उनका जीवन देखें तो पायेंगे कि यह अबोधिता की कितनी सुंदरता लिये हुये है …. वे कितने सहृदय थे …. कितने सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी थे। जहां कहीं भी वे कोई गलत कार्य होता हुआ देखते तो इससे निपटने के लिये वहां पहुंच जाते। श्रीगणेश भी ऐसे ही हैं। उनका आशीर्वाद उन सभी लोगों के लिये आवश्यक है, जिन पर संकट आते रहते हैं। उनको संकटमोचक भी कहा जाता है जो हमारे सभी संकटों और कष्टों का हरण करते हैं। ये उनकी शैली है कि वे सभी चीजों का इतनी सुंदर तरीके से प्रबंधन करते हैं। वे गणपति या गणों से स्वामी हैं। मैंने आपको बताया कि गण हमारे अंदर छोटे छोटे निकायों या इकाइयों के रूप में विराजमान रहते हैं और जब भी किसी प्रकार की समस्यायें आती हैं तो वे हमें इनके बारे में बताते रहते हैं….. वे हमारे मस्तिष्क को बताते रहते हैं कि शरीर में समस्या कहां पर हैं। हमारी स्टर्नम अस्थि पर भगवती दुर्गा का निवास स्थान है। अतः जब कभी भी कहीं पर भी कोई समस्या होती है या हम परेशानी में होते हैं तो स्टर्नम अस्थि कंपन करने लगती है और गणों के रूप में इन छोटी-छोटी इकाइयों तक सूचना पहुंचती है। इनको मेडिकल की भाषा में एंटीबॉडीज कहा जाता है …. जैसे ही इन तक सूचना पंहुचती है ये गण उस स्थान तक पहुंच कर आक्रमण करने लगते हैं। वे परेशानी वाले स्थानों पर अपना लक्ष्य साध सकते हैं। उन्हें मालूम होता है कि किस तरह से इन समस्याओं पर लक्ष्य साधना है और आक्रमण करना है। हम सोच सकते हैं कि केवल शारीरिक रोगों वाले लोगों को ही ये गण सहायता पहुंचाते हैं पर ये सत्य नहीं है। ये उन लोगों की भी सहायता करते हैं जो मानसिक रूप से परेशान हैं।

ये गण समस्याओं को इतनी सुंदरता से दूर करते हैं कि कई बार हम हैरान हो जाते हैं कि किस प्रकार से चीजें कार्यान्वित होती हैं। उदा0 के लिये यदि कहीं किसी को …. किसी बच्चे को कुछ हो जाता है और उसके माता पिता रो-रोकर माँ को ….. माँ दुर्गा को पुकारने लगते है तब क्या होता है ….. यही गण उस स्थान तक जाते हैं और उस बच्चे को चमत्कारपूर्ण ढंग से ठीक करते हैं। आपके जीवन में भी कई ऐसे चमत्कार घटित हुये होंगे जिनकी आप व्याख्या ही नहीं कर सकते हैं लेकिन ये सभी श्रीगणेशजी के गणों की कृपा से ही घटते हैं जो उनकी ही भांति हैं तो अत्यंत छोटे लेकिन वे अत्यंत सक्रिय और चौकन्ने भी हैं। वे कभी भी सोते नहीं हैं। जब भी कहीं कोई समस्या होती है तो यो गण वहाँ पर जाकर आक्रमण करते हैं और समस्या का समाधान ढूंढ निकालते हैं। सचमुच इस पर विश्वास करना कठिन है कि ये किस प्रकार से सूचनायें पहुंचाते हैं और कैसे ये अपना कार्य करते हैं। 

मैं आपको ऐसे कई उदाहरण दे सकती हूँ। उदा0 के लिये एक लड़का था जो अमेरिका के हमारे किसी आश्रम में स्विमिंग पूल में डूब गया था। वे पूल में उछल कूद मचा रहे थे। वैसे मुझे बच्चों के कारण स्विमिंग पूल बहुत ज्याद पसंद भी नहीं हैं। तो वह बच्चा पूल में गिर गया और वह 15-20 मिनट तक पूल के अंदर ही रहा। किसी को पता ही नहीं चला कि बच्चा पूल में गिर गया है। बाद में जब उन्हें पता चला तो वे बच्चे की बॉडी ढूंढने लगे लेकिन उन्हें कहीं भी उसकी बॉडी नहीं मिली। तब वह कहाँ गया होगा? उन्होंने स्विमिंग पूल में बच्चे को ढूंढा तो वह उनको वहीं मिल गया। उन्होंने मुझे बताया कि माँ जब हम डर गये थे तो हमने आपसे प्रार्थना की माँ आप उस बच्चे को बचा लीजिये। मैं कभई भी आश्रमों में फोन नहीं किया करती हूं …. मुझे वहां का पता भी मालूम नहीं है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उस दिन मैंने अपने आप ही उस नंबर पर फोन करने को कहा। मैं तो किसी का नंबर भी नहीं जानती हूँ। जब मैंने वहां पर फोन किया तो एक लीडर ने मुझसे बात की मैंने उसे  बताया कि मुझे मालूम है एक लड़का यहां पूल में गिर गया है…. लेकिन वह बचा लिया जायेगा।

मुझको इस बारे में किसी ने भी नहीं बताया था। मैंने उससे कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है वह बच्चा बिल्कुल ठीक है। इसके बाद वे लोग बच्चे को पानी से निकाल कर ले आये और डॉक्टर ने उसका इलाज किया। उसको वाइब्रेशन्स भी दिये गये और आज वह बच्चा एकदम ठीक-ठाक और तंदुरूस्त है और डॉक्टरों ने तो कह दिया था कि वह अब बच नहीं सकता है और यदि बच भी गया तो वह मृतक के समान ही जीवित रह पायेगा …. वह हर समय कोमा में रहेगा। इस बार जब मैं अमेरिका गई तो इस लड़के से भी मिली। तो इस तरह से कई चीजें हो जाती हैं और लोग कहते हैं कि माँ ये आपकी ही कृपा से …. आपके आशीर्वाद से ही संभव हुआ है। वैसे मुझे कहना चाहिये कि ये श्रीगणेश जी की कृपा से होता है।

श्रीगणेश जी का एक अय गुण है कि वह अपनी माँ के बड़े आज्ञाकारी पुत्र हैं। वे न तो शिवजी को जानते हैं और न विष्णु जी को और न ही किसी अन्य को। उनके लिये तो उनकी माँ ही सब कुछ हैं। वह अपने पिता शिव से …. या किसी अन्य से भी लड़ सकते हैं क्योंकि अपनी माँ की आज्ञा पालन करने में वह हमेशा तत्पर रहते हैं। वह अपनी माँ की इच्छा को तुरंत जान जाते हैं और इसे तुरंत ही कार्यान्वित करते हैं। उनकी शैली किसी अबोध और छोटे बच्चे की तरह से है लेकिन जो कार्य वह करते हैं वह अत्यंत महत्वपूर्ण और जबरदस्त होता है।

ये गण भी अत्यंत अबोध और निष्कलंक होते हैं। जैसे ही इनको कहा जाता है कि इस समस्या का समाधान निकालो तो ये वे तुरंत ही उस कार्य को कर दिखाते हैं।

श्रीगणेश जी की एक और बात है कि वे उन लोगों का बहुत आदर और सम्मान करते हैं जो पावन और पवित्र होते हैं …… जिनके जीवन में पावनता और पवित्रता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वे पवित्रता का बहुत सम्मान करते हैं। वह पवित्रता का केवल महिलाओं में ही नहीं बल्कि पुरूषों में भी बहुत सम्मान करते हैं। वह सबमें पावनता चाहते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के बाद आपको एकदम पवित्र और पावन होना चाहिये। आपकी आंखे इधर-उधर नहीं घूमनी चाहिये या कहना चाहिये कि युवा लड़कियों या लड़कों को गंदी नजर से देख कर अपनी पवित्रता को नहीं खोना चाहिये। आपकी आँखों और आपके विचारों को भी स्वच्छ होना चाहिये। इसके लिये आपको अपना अंतरावलोकन करना चाहिये और देखना चाहिये कि आपने कौन-कौन सी गलतियाँ की हैं और कैसे और कब आपके चरित्र में पावनता की कमी रही है। आपको स्वयं को ठीक करना होगा और स्वयं को ठीक करना होगा और श्रीगणेश से इसके लिये क्षमा भी मांगनी होगी। यदि आप उनसे क्षमा मांगेंगे तो वे आपको क्षमा भी कर देंगे। वे इतने निर्दोष और सुंदर हैं कि आपको वे क्षमा कर देंगे लेकिन ये अत्यंत महत्वपूर्ण बात है। हमारी नैतिकता हमारी पावनता पर निर्भर करती है। अतः हमको अत्यंत पावन होना चाहिये। सभी धर्मों ने चारित्रिक पवित्रता के बारे में बात की है। लेकिन अब तो धर्म भी एकदम बेकार हो गये हैं। उनका पूरी तरह से पालन ही नहीं किया जाता है। वे सभी प्रकार के कुकृत्य करते हैं और स्वयं को हिंदू, मुस्लिम और इसाई कहते हैं। वास्तव में सभी धर्म बुरी तरह से असफल हो गये हैं और इसी लिये श्रीगणेश उनके पीछे पड़ गये हैं।

दूसरी चीज जो श्रीगणेश के बारे में है वो ये कि उन्हें पूर्णतया पृथ्वी तत्व से बनाया गया है। वो कुछ देशों के उन लोगों को पसंद नहीं करते हैं जो काला जादू करते हैं …. या जो कट्टरवादी हैं या फिर जिनके अंदर नैतिकता का अभाव है। तब वे धरती माँ से कहते हैं कि भूचाल ले आइये। भूचाल उन्हीं स्थानों पर आते हैं जहाँ पर पावनता का कोई सम्मान नहीं किया जाता …. जहाँ पर कट्टरवाद फैला हुआ है या जहाँ के लोग काले जादू में विश्वास करते हैं। इस प्रकार के लोगों पर वे अपनी माँ के माध्यम से आक्रमण करते हैं। अतः धरती माँ भी समझती है। आजकल बहुत सारे भूकंप आ रहे हैं। एक तो टर्की में ही आया था, एक ताइवान में भी आया परंतु इनमें किसी भी सहजयोगी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा। वह उनकी रक्षा करते हैं। उनके अंदर विवेक बुद्धि है और वे उन्हीं लोगों का विनाश करते हैं जो इस प्रकार के कार्य करते हैं। उन्होंने पहले भी ऐसे कई लोगों का विनाश किया है। उनके अंदर धरती माँ की शक्तियां भी हैं …… उनके अंदर चुंबकीय शक्तियाँ भी हैं। वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। लोग उनकी ओर ऐसे ही खिंचे चले जाते हैं जैसे वे नन्हें बच्चों की ओर आकर्षित होते हैं। 

अतः उनके अंदर ये उनकी चुंबकीय शक्ति है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पक्षियों के अंदर भी चुंबकीय शक्ति होती है और कई जानवरों में भी ये शक्ति पाई जाती है लेकिन पक्षियों में खासकर से ये शक्ति होती है। इसी चुंबकीय शक्ति के कारण वे जिस दिशा में भी जाना चाहते हैं वहीं उड़ कर चले जाते हैं। वे साइबेरिया से ऑस्ट्रलिया तक किस प्रकार से उड़ कर चले जाते हैं? और फिर उसी स्थान पर वापस आ जाते हैं। मछलियों में भी यही गुण पाया जाता है। मछलियों को भी पहाड़ों से आने वाले पानी में देखा गया है। वे कुछ समय तक मैदानों तक बह कर चली आती हैं और भगवान जाने किस प्रकार से फिर अपने मूल स्थान पर वापस चली जाती हैं। अपने स्थान तक वापस जाना तभी संभव है जब उमें दिशाओं का ज्ञान हो। उनको दिशाओं का ज्ञान होता है। वे अपने गुणों से बंधे हुये होते हैं। उदा0 के लिये एक सांप, सांप ही रहेगा और एक कुत्ता कुत्ता ही रहेगा, शेर, शेर ही रहेगा। लेकिन संभवतया मनुष्य के अंदर ये सभी जानवर मौजूद रहते हैं अतः वे कुछ भी हो सकते हैं। उनके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे इतने धूर्त होते हैं कि आपको पता ही नहीं चलेगा कि वे क्या हैं। एक बार जब वे कुछ भी हो सकते हैं तो आपको जानकर हैरानी होगी कि मनुष्य होकर भी ये किस प्रकार से इतने निचले स्तर पर हैं? लेकिन ऐसा इसलिये है कि श्रीगणेश का उन्होंने पूरे जीवन में कोई सम्मान नहीं किया। अतः वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। मैं आपको एक दूसरा उदाहरण देना चाहूंगी। भारत में लाटूर में एक बहुत बड़ा भूकंप आया। वहां पर श्री गणेश उत्सव का चौदहवाँ दिन था और वे लोग श्रीगणेश को विसर्जित करने के लिये समुद्र में ले जा रहे थे। लाटूर में भी बहुत सुंदर श्रीगणेश की मूर्तियाँ बनाई गईं थीं। वे गणपति की मूर्ति के सामने फिल्मों के बहुत ही भद्दे गाने लगाकर नाच रहे थे। ये इतने भद्दे गाने थे कि आप इन्हें सहन भी नहीं कर पायेंगे। इस प्रकार के संगीत को श्रीगणेश भी पसंद नहीं करते हैं। वे लोग अपने गणपति की मूर्ति के आगे बहुत ही फूहड़ नृत्य कर रहे थे। गणपति विसर्जन के बाद जब वे घर लौट कर आये तो वे शराब पीकर जय श्रीगणेशा …. जय श्रीगणेशा गाकर नाचने लगे। उसी समय धरती हिली और उसने इन सभी को अपने अंदर समेट लिया। वे सब धरती के अंदर समा गये। इनके अलावा कई अन्य भी धरती माँ के अंदर समा गये। वहाँ पर हमारे सहजयोग का भी एक आश्रम था जो सेंटर था। उस सेंटर के चारों ओर बहुत सुंदर जमीन थी परंतु उन्होंने उस जमीन को छुआ तक नहीं। सेंटर से काफी दूरी पर सेंटर के चारों ओर की धरती में एक बड़ा सा गैप आ गया लेकिन किसी को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पंहुचा। वे सभी अपने-अपने घरों में सुरक्षित थे। हमारे आश्रम को किसी प्रकार की हानि नहीं पंहुची और आश्रम बच गया …. और कोई सहजयोगी इस भूकंप में मरा भी नहीं। ये देखने योग्य बात है 

अतः हमको गणों का सम्मान करना चाहिये…. ये अत्यंत महत्वपूर्ण बात है कि वे हमारे चारों ओर और हमारे अंदर भी मौजूद हैं। वे हमको देखते रहते हैं कि हम किस प्रकार के व्यक्ति हैं और यदि आप अपने दुर्व्यवहार से अपने अंदर के श्रीगणेश को हानि पंहुचाने का प्रयास करते हैं तो वे आपको सामान्य अवस्था में लाने का प्रयास करते हैं। वे आपको कई बार अवसर देते हैं। इसके बाद भी यदि आप अपने अहं के कारण अपनी चालाकियाँ नहीं छोड़ते हैं तो फिर श्रीगणेश आप पर कड़ा प्रहार करते हैं जो प्राकृतिक आपदाओं के रूप में आप पर किया जाता है। 

अतः आपको श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिये लेकिन मैं आप लोगों से हमेशा कहा करती हूं कि किसी भी गणेश की पूजा मत करिये खास कर जिनका सृजन किसी भी शिल्पी द्वारा किया जा रहा हो क्योंकि परमात्मा जानता है कि ये किस प्रकार के शिल्पी हैं। वे मात्र पैसों के लिये इन श्रीगणेश मूर्तियों का सृजन करते हैं। हो सकता है उनमें पावनता का कोई भाव ही न हो। ऐसे लोग श्रीगणेश की मूर्तियाँ बनाते हैं और फिर आप उन मूर्तियों की पूजा करते हैं। इससे हमारी कोई सहायता नहीं होती है। इसीलिये मुहम्मद साहब ने कहा था कि मूर्ति पूजा मत करिये क्योंकि इन मूर्तियों को उन मनुष्यों ने ही बनाया है जो इनको बनाने के लिये अधिकृत ही नहीं हैं। ये मूर्तियाँ स्वयंभू नहीं हैं। उनका सृजन धरती माँ ने नहीं किया है। इनको पैसे के लालची लोगों द्वारा पैसा कमाने के उद्देश्य से बनाया गया है। दुकानों से खरीदकर लाई गई मूर्तियों को आपको नहीं पूजना चाहिये चोहे वो कैसी भी मूर्ति क्यों न हो। इन मूर्तियों को किसी अत्यंत खराब चैतन्य वाले …. धोखेबाज और धूर्त या शातिर व्यक्ति ने बनाया होगा जो अपने अहंकार में मदमत्त होगा। यदि आप ऐसे व्यक्ति से कोई मूर्ति खरीदेंगे तो वह मूर्ति आपको फायदे के स्थान पर नुकसान ही पंहुचायेगी। ऐसी मूर्तियों को आप घर की सजावट के लिये तो रख सकते हैं परंतु पूजा के लिये बिल्कुल न रखें। वास्तविक श्रीगणेश की कहीं भी कोई फोटो नहीं है … कोई भी नहीं है। धरती माँ के गर्भ से निकले हुये हमारे यहाँ आष्टविनायक हैं। मैंने उन सभी को देखा है परंतु इन स्थानों के पूजारी अत्यंत भयावह हैं। मैं इनमें से एक विनायक को देखने गई तो वहां के पुजारी ने बताया कि उसको खतरनाक दमा रोग था …. उसे लकवा भी था। उसने कहा कि वह श्रीगणेश की किस प्रकार से पूजा कर पायेगा। वह कहने लगा कि मेरे पुरखों ने हमेशा से ही श्रीगणेश की पूजा की है और श्रीगणेश हमारे साथ ये कर रहे हैं। मैंने उसको कहा कि आप अपना अंतरावलोकन करके देखिये कि आपने अपना जीवन किस प्रकार से व्यतीत किया है ….  आप करते क्या हैं ….. क्या आप श्रीगणेश की पूजा करने के अधिकारी हैं भी या नहीं। उसको तब अपने अंदर अहसास हुआ कि बात तो सच है। मैंने उस पुजारी से कहा कि अभी मैं आपका इलाज कर देती हूँ लेकिन बाद में आप देखियेगा कि आपको निष्कलंक जीवन व्यतीत करना होगा। आप निष्कलंक जीवन व्यतीत कीजिये और दूसरों को चतुराई में पछाड़ने वाला और चालाकी पूर्ण जीवन मत व्यतीत करिये। श्रीगणेश आपको अत्यंत परेशान करेंगे कि मैं गिन भी नहीं सकूंगी कि वे आपको कितनी परेशानियों में डाल देंगे … वे आपको मृत्यु के मुंह में भी घसीट सकते हैं।

वह इतने अधिक शक्तिशाली हैं क्योंकि उनकी समस्त ऊर्जा परमात्मा या अपनी माँ के कार्यों के लिये है। 

वह स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं। उन्हें कुछ भी नहीं चाहिये। उनकी सारी ऊर्जा परमात्मा के कार्यों के लिये है। उनको मात्र मोदक ही प्रिय हैं जो नारियल से बनाये जाते हैं। वे केवल मोदक ही खाते हैं। उनका शरीर इतना सूक्ष्म है और फिर भी वे अनेकों पर्वतों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक हिला सकते हैं। अपनी सरलता…. माधुर्य और अपनी निष्कपटता से वह लोगों को पूर्णतया बदल देते हैं। जो लोग अत्यंत शुष्क हैं उनको बदला जा सकता है। उनका प्रतीक चिन्ह घड़ी की सुई की दिशा में घूमने वाला स्वास्तिक है। अगर इसे उलटा बनाया गया तो ये सब कुछ उलट फेर कर देता है। प्रारंभ में जब हिटलर ने इसका प्रयोग किया था तो इसको एकदम सही रूप में बनाया गया था और वह सफल भी रहा। इसके बाद उन्होंने इसके स्टेंसिल को उलटा प्रयोग करना प्रारंभ किया। वे इसे घड़ी की सुई की उलटी दिशा में प्रयोग करने लगे और फिर सब कुछ तहस नहस हो गया। आप देख सकते हैं कि श्रीगणेश का स्वास्तिक कितना शक्तिशाली है। हमने तो अब ये भी सिद्ध कर दिया है कि यदि आप स्वास्तिक को बांई से दांई ओर को देखेंगे तो ये वास्तव में कार्बन के अणु की तरह से दिखाई पड़ता है। कार्बन के अणु में स्वास्तिक होता है और यह चक्र कार्बन के अणुओं की श्रृंखला से बना होता है। अब यदि अब आप इसको बांई ओर से देखें तो पायेंगे कि ये ऊँकार की भांति दिखाई देता है और हमने ये सिद्ध भी कर दिया है। यदि आप इसे दांई ओर से बांई ओर को देखेंगे तो आपको स्वास्तिक नजर आयेगा। यदि आप इसे नीचे से ऊपर की ओर देखेंगे तो तो ये क्रॉस की तरह से दिखाई देगा। इससे ये सिद्ध होता है कि श्रीगणेश ईसा के रूप में अवतरित हुये थे और वही पूरे विश्व में पूजे जाते हैं। अगर आप देवी महातम्य में पढ़ें तो ये देवी महातम्य में भी लिखा गया है। उनके बारे में देवी महातम्य में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि किस प्रकार से वे एक अंडा बने और उस अंडे के आधे भाग से ईसा और बाकी के आधे भाग से श्रीगणेश बने। ये सब चीजें पहले ही बता दी गईं हैं लेकिन हम इन को समझ नहीं पाते हैं क्योंकि हम भ्रमित हैं। हम इसको सही ढंग से नहीं देख पाते हैं जबकि ये सब पहले से ही लिख दिया गया है। अतः जो भी लोग ईसा की पूजा करते हैं वे श्रीगणेश की भी पूजा करते हैं और जो कुछ भी आप ईसा को कहते हैं वही आप श्रीगणेश को भी कहते हैं। वे दोनों अलग नहीं हैं एक ही हैं और पूर्णतया दोनों एक ही हैं। जो कुछ भी मैंने आपको ईसा के बारे में बताया है आप उसके बारे में जानने का प्रयास करें और आप स्वयं ही इसे सिद्ध कर देंगे। जैसे कि ईसा ने इन दो अंगुलियों को दिखाते हुये देखे जा सकते हैं इसका अर्थ है कि ये पहली अंगुली विशुद्धि की है अर्थात श्रीकृष्ण की है और दूसरी अंगुली श्रीविष्णुजी की है जो उनके पिता हैं। इसका अर्थ है कि उनके पिता श्रीविष्णु या श्रीकृष्ण थे। उन्होंने ये बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया है। उन्होंने क्यों नहीं किसी और अंगुली का प्रयोग किया क्यों उन्होंने अपने पिता श्रीविष्णु और श्रीकृष्ण की ओर इशारा करते हुये इन्हीं दो अंगुलियों का उपयोग किया। यदि आप श्री गणेश के वाइब्रेशन्स को देखेंगे तो ये समझना बहुत ही सरल है कि मैं आप लोगों को क्या बता रही हूँ। यदि आप उनके वाइब्रेशन्स को देखें और उनके बारे में सोचें तो आप हैरान हो जायेंगे और आपका आज्ञा खुल जायेगा….. आप निर्विचार हो जायेंगे क्योंकि वही श्रीईसा हैं जो आज्ञा पर विराजमान हैं। अतः आपका आज्ञा खुलने लगता है और आज्ञा के बारे में आपके मूर्खतापूर्ण विचार आदि सब दूर हो जाते हैं क्योंकि आप इसे स्वयं ही देख सकते हैं कि श्रीगणेश का नाम लेने मात्र से आपका आज्ञा खुल सकता है। आज्ञा से आने वाली सारी चालाकियां या धूर्तता तुरंत समाप्त हो जाती हैं। आप फिर वो चालाक व्यक्ति भी नहीं रह जाते हैं। जब आप इस अबोधिता को अपने ही माथे पर देखने लगते हैं तो आप हैरान रह जाते हैं और आपके व्यर्थ के विचार भी गायब हो जाते हैं। फिर किसी के बारे में आप चालाकियों से भरपूर बातें सोच ही नहीं पाते हैं और किसी को हानि पंहुचाने की बात भई नहीं सोच पाते हैं। जब आपका आज्ञा पूरी तरह से खुल जाता है तो आप पूर्णतया बदल जाते हैं।

ये हमारे लिये एक बहुत बड़ा आशीर्वाद है कि हमारा मूलाधार एकदम उचित स्थान पर स्थित है। जब आप धरती माँ पर बैठते हैं तो हमें बहुत अधिक सहायता मिलती है क्योंकि श्रीगणेश की माँ पृथ्वी हैं …. ये धरती माँ हैं और इसीलिये हमें भी धरती माँ का सम्मान और देखभाल करनी चाहिये। हम धरती की देखभाल उस तरह से नहीं करते हैं जिस प्रकार से हमें करनी चाहिये। हम धरती माँ का मूल्य ही नहीं जानते हैं। भारतीय संस्कृति में सुबह-सुबह जब हम अपने पैरों से धरती को छूते हैं तो हम धरती माँ को प्रणाम करते हैं कि हे धरती माँ हम आपको अपने पैरों से छूने जा रहे हैं अतः हम आपको प्रणाम करते हैं। आपके अंदर भी धरती माँ के लिये ऐसा ही सम्मान होना चाहिये। तब आप उसका दोहन नहीं करेंगे और न ही आज के जैसी प्रदूषण की समस्यायें उत्पन्न होंगी। ये सब आपकी अज्ञानता के कारण होता है कि आप जानते ही नहीं कि धरती माँ श्रीगणेश की भी माँ हैं और जिनका चक्र मूलाधार के रूप में हमारे अंदर विराजमान हैं। यदि आप ये समझ जायेंगे तो आपको समझ आ जायेगा कि आपको क्या करना है। हमें धरती माँ की भी देखभाल करनी है…… उनको सुंदर बनाना है ….. उनका महिमामंडन करना है। हम सभी कुछ कर सकते हैं परंतु जिस प्रकार से हम धरती का दोहन कर रहे हैं वह बहुत गलत है क्योंकि ये प्रदूषण हमें काफी नुकसान पहंचा रहा है। पेड़ों को काटना और धरती माँ ने जो कुछ भी उत्पन्न किया है उसको नुकसान पहुंचाना और उसका पैसे के लिये उपयोग करना ….. ये बहुत गलत है। हमको इसके बारे में सोचना चाहिये और यदि हम एक पेड़ काटें तो हमें तुरंत दूसरा पेड़ वहाँ पर लगा देना चाहिये। यही धरती माँ की सुंदरता है …. इसकी हरीतिमा …. यही इसकी सुंदरता है। 

धरती माँ श्रीगणेश की भी माँ है जो हमें कहना चाहिये कि वही हमारे सबसे बड़े सहजयोगी हैं। उन्होंने कभी योग धारण नहीं किया परंतु वे सदैव योग में रहते हैं। वही हमारे सबसे बड़े योगी हैं जो पूरे समय सही चीजें करते हैं। वे कोई भी कार्य गलत नहीं करते हैं और वे किसी भी देवी देवता के पद पर पहंच सकते हैं। वही हमारे सबसे बड़े देव हैं और हमें उनकी पूजा करनी चाहिये। उनके माध्यम से सभी देवी देवताओं की पूजा हो जाती है और वे प्रसन्न होते हैं। मैं सोच रही थी कि आज लोग किस प्रकार से इतने बेशर्म हो चुके हैं… किस प्रकार से हमने झूठे सम्मान के लिये अपनी पवित्रता को खतरे में डाल दिया है। यदि हमारे मन में अपने लिये कुछ सम्मान है तो आपके अंदर पवित्रता भी होगी लेकिन आप स्वयं का ही सम्मान नहीं कर पा रहे हैं और आप सोचते हैं कि इन पापमय कार्यों से आप अत्यंत स्मार्ट और मॉडर्न बन चुके हैं। इस मॉडर्न समय में जो कुछ भी पाप किये जा रहे हैं वे एकदम गलत हैं और हमें इनका बहिष्कार करना चाहिये। आपको इनके पास भी नहीं जाना चाहिये क्योंकि ये सरासर गलत है और इससे श्रीगणेश क्रोधित हो जायेंगे। पवित्रता हमारा सबसे बड़ा आधार है। आपको मालूम है कि भारत में 32 हजार महिलाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिये चिता में कूद कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। मैं भी उसी परिवार से संबंध रखती हूं। जरा आप सोचिये कि उनके अंदर कितना साहस होगा …. अपनी पवित्रता के प्रति कितनी आस्था रही होगी कि पवित्रता के बिना जीवन का क्या मूल्य है। वे अपनी पवित्रता के प्रति कितनी आस्थावान थीं कि उन्होंने अपनी पावनता की रक्षा के लिये इतना बड़ा बलिदान दे दिया। परंतु पावनता न केवल महिलाओं के लिये बल्कि पुरूषों के लिये भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यदि पुरूष श्रीगणेश का सम्मान नहीं करते हैं तो उनको अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। हमारा स्वास्थ्य तभी ठीक रह सकता है जब हम अपने श्रीगणेश तत्व की अच्छी तरह से देखभाल करेंगे क्योंकि वह हर समय हमारे शरीर की मरम्मत करते रहते हैं …. इसकी देखभाल करते रहते हैं …… वही हमारी कुंडलिनी की भी देखभाल करते रहते हैं…. इसकी रक्षा करते रहते हैं। यदि हमको कुछ हो जाता है तो हमारी तुरंत कुंडलिनी ऊपर आ जाती है लेकिन जो कुंडलिनी को जागृत रखते हैं और उसे ऊर्ध्वावस्था में रखते हैं वे श्रीगणेश हैं। वही इसे कार्यान्वित करते हैं। वही हमारी कुंडलिनी की रक्षा करते हैं जो हमारे आत्मसाक्षात्कार का आधार भी है। अतः श्रीगणेश हमारे लिये कितने महत्वपूर्ण हैं आपके लिये ये जानना आवश्यक है। आपको अपने बारे में जानने का प्रयास करना चाहिये और अपना अंतरावलोकन करना चाहिये कि क्या सचमुच हम श्रीगणेश के प्रति समर्पित हैं? यदि हम उनके प्रति समर्पित हैं तो हम इसके लिये कर क्या रहे हैं? जब आप ये जान जायेंगे तभी आप व्यर्थ की चीजों के लिये अपने मन में घृणा उत्पन्न कर पायेंगे। आपको वे चीजें पसंद ही नहीं आयेंगी और न ही ऐसे लोग पसंद आयेंगे। सहजयोगियों को इसे इसी प्रकार से कार्यान्वित करना चाहिये। हम सभी जानते हैं कि इस मामले में बच्चे सबसे अच्छे होते हैं। वे अत्यंत सुंदर, दयालु, प्रेममय और मधुर होते हैं। इसी प्रकार से हमें श्रीगणेश को भी समझना चाहिये कि वे कितने अबोध और पावन हैं और अपनी अबोधिता से ही वे हमारी रक्षा करते हैं।

हमें अपनी अबोधिता को पोषित करना चाहिये और इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिये कि कभी किसी ने हमारा अपमान किया था और हम पर हावी होने का प्रयास किया था। इस प्रकार की बातें होती रहती हैं … कोई बात नहीं। अबोध लोगों को जो भी परेशान करेगा उनको दंडित किया जायेगा। आप जानते ही हैं कि पूरे विश्व में इस बात की चर्चा हो रही है कि अबोध ओर सरल लोगों पर अत्याचार नहीं किये जाने चाहिये। ऐसा हो चुका है परंतु इसको बदला जाना चाहिये। इसका अंत होना चाहिये अन्यथा लोगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। दबंगों ने कई लोगों का दमन किया। अमेरिका में मैंने देख कर हैरान हो गई कि वहां पर कई रेड इंडियन्स थे जिनको इंडियन अमेरिकन कहा जाता है। उनको इतना सताया गया कि वे वहां से भाग कर अन्य स्थानों पर चले गये। इसके बाद मैं कैनाजोहारी गई जहां के वाइब्रेशन्स बहुत सुंदर थे। इसका अर्थ था कि वहाँ के लोग बहुत ही निष्कलंक, निष्कपट और सरल थे। उस समय अमेरिकी लोगों ने उनका सफाया करने का प्रयास किया। इसीलिये वे कैनाजोहारी जैसे स्थानों में जाकर छिप गये। कैनाजोहारी के वाइब्रेशन्स इतने सुंदर थे कि मैंने लोगों से कहा कि देखिये कि इतने वर्षों के बाद भी यहाँ के लोग जिन्हें रेड इंडियन कहा जाता है वे यहाँ आनंदपूर्वक रह रहे हैं …. ये इंडियन थे और इन्हें अमेरिकन इंडियन कहा जाता है। वे लोग इतने सरल और निष्कपट हैं कि मैं सोचती हूं कि ये लोग आध्यात्मिक भी हैं क्योकि वे माँ की पूजा करते हैं। वे हर समय माँ की पूजा करते हैं। मैंने अन्य देशों में भी देखा कि वहां भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन मुझे खुशी है कि ऑस्ट्रेलिया के लोग धर्मनिरपेक्ष हैं। वहां पर माओरी या अन्य लोग हैं लेकिन वहां के लोग उनको काफी प्रोत्साहित करते हैं। इन लोगों के अंदर इतनी प्रतिभा है कि ऑस्ट्रेलिया में उनको समान राजनैतिक अधिकार दिये गये हैं। उनके ही कारण वहां पर सहजयोग इतनी सरलता और अच्छी तरह से कार्यान्वित हुआ है। वहां की सरकार ने भी हमें कभी परेशान नहीं किया। हमें वहां पर कभी भी कोई समस्या नहीं हुई। मुझे मालूम नहीं कि किस प्रकार से ये हुआ या हो रहा है परंतु शायद ये उलुरू के श्रीगणेश के कारण हो पाया जो वहां पर सहजयोग की रक्षा कर रहे हैं तभी वहां पर सहजयोग इतनी सुंदरता से फल फूल रहा है। इसी प्रकार से आप जहां भी रहें आपको श्रीगणेश का पूजन करना चाहिये और वे सदैव बड़े चमत्कारपूर्ण ढंग से आपकी सहायता करेंगे। आपकी हरदम बड़ी ही सुंदरता से सहायता की जायेगी। लेकिन पहले आप अपनी पावनता के लिये कार्य करें जो साक्षात श्रीगणेश ही हैं। परमात्मा आपको धन्य करे।

।। परमपूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवीजी।।