Mahashivaratri Puja

पुणे (भारत)

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Mahashivaratri Puja Date 5th March 2000: Place Pune: Type Puja

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

शिवजी को आप लोग मानते हैं और धीरे-2 वो नष्ट होते जाते हैं। धीरे धीरें वी उनकी बड़ी पूजा अर्चना होती है। लेकिन शिवजी के गुणधर्म आप जानते नहीं, इसलिए बहुत बार सांत्वना करने वाले हैं। हमको शांति देने वाले आपसे गलती हो हैं। और जब स्वरूप जो है वो आनंद स्वरूप है। सूक्ष्म सं शिवजी की शक्ति और विष्णु की शक्ति जैसे समाप्त होते जाते हैं। पर शिवजी जो हैं ये हमारी जाती है। शिवजी का विशेष और हमको आनंद देने वाले ये आनंद उनका सब तरफ छाया रहता है। कि कुण्डलिनी और नाड़ी, इन दोनों का मेल हो जाता है तब आपको केवल सत्य मिलता तेक आपमें नहीं आएगी आप उसे देख नहीं है। केवल सत्य। जैसे की उस सत्य को कोई सुषुम्ना सूक्ष्म लेकिन उसको आकलन करने की शक्ति जब पाएंगे और समझ नहीं पाएंगे। वो हर चीज़ में विराजमान है। हर चीज़ में एक तरह से आनंदमय, सकते क्योंकि वो पूर्णतया सत्य है। आप अपने कहना चाहिए कि एक आनंदमय सृष्टि तैयार अंगुलियां पर अपने हाथ पर भी उसे जान सकते करते हैं और उस सृष्टि में विचरण करते हुए आप किसी भी तरह से अस्वीकार्य नहीं कर हैं। अनेक तरह के अनुभव आपको आएंगे आप देखते हैं कि आप भी कुछ और ही हो जिससे आप समझ जाएंगे कि एकदम सत्य जो गए। दूसरे लोगों को जिस चौज़ में आनंद आता है उसमें असत्य की छटा भी नहीं है। वो आपके है, वहुत से लोगों को अपने को नष्ट करने में ही आनंद आता है। उसको तरह-2 से गलत रास्ते समझ सकते हैं। यही कुण्डलिनी की देन है । में ले जा कर लोग सोचते हैं कि गर हम आत्मा यानि कुण्डलिनी जो की शिव की शक्ति है वो के विरोध में चलें तो हमें बड़ा सुख मिल है। उसे आप जान सकते हैं। अदर ज्ञात होता जब आपके मध्य मार्ग से उठती है तो सारे ही जाएगा। लेकिन आत्मा जो स्वयं साक्षात् शिवजी चक्रों को आड़ोलित करती है, जागृत करती है हैं, उनका आनंद एक और तरह का है और समग्र करती है। उस शक्ति को संभालता ही हमारे हृदय को छु सकता है। जैसे बहुत से कौन है? तो कहें कि विष्णु ही संभालते हैं लोग है, दुनिया भर की चीज़ों में डूबे रहते हैं । कोई है शराब पियेंगे, कुछ और अनीति का कार्य करेंगे। गलत सलत काम करते रहेंगे। उसी में वो पहुँच कर के ज्ञात होता है कि हाँ, अब इसकी सोचते हैं कि बड़ा सुख है। किन्तु है नहीं। जो यात्रा थी वो खत्म हो गई। सो आपस में और वो क्योंकि वो विष्णु के मार्ग में चलती है और जा कर के ब्रह्मरंध्र में वो अपने दर्शन देती है वहाँ कितना सहयोग और कितनी समझदारी है। हम पतन की ओर नहीं जाएँगे, किसी भी गलत चीज में हम नहीं पड़ेंगे तो आपको सारी पूजाओं में लोगों में आजकल एक बीमारी हो गई कि सब लोग जो हैं पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं। पैसे के जहाँ तक हो सके आना चाहिए। और आपको पीछे दौड़ने की बड़ी अजीव सी बीमारी हो गई हैं और उसके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं । ध्यान करना चाहिए। तब आप पूजा के अधिकारी हैं। सब लोग पूजा के अधिकारी नहीं होते। जो देखो पूजा करने निकल जाता है। गर आपका किसी भी चीज़ का अवलंबन करते हैं। सहज योग में भी कुछ लोग ऐसे हैं। इसका कारण ये संबंध ही नहीं हुआ है तो आप क्या पूजा के है कि हमारे अंदर विकृति आ गई है। हमारे अधिकारी बन सकते हैं? लेकिन वहुत से लोग अंदर बहुत सारी विकृतियाँ आ गई हैं और इस सोचते हैं इस मंदिर में दौड़, उस मन्दिर में दौड़ विकृति की सफाई सिर्फ कुण्डलिनी ही कर सकती है। पर अगर आप पूरी तरह से इस ह इस गुरु के पास जा. उस के पास…इससे कुछ नहीं होता। आप स्वयं ही अपने गुरु हैं और आप अपने को देखिए कि हमारे अंदर क्या कुण्डलिनी को आत्मसात नहीं करते हैं, ध्यान धारणा से उसका उत्थान पूरा नहीं करते तो आप उस दशा में पहुँच नहीं सकते जहाँ आपके अंदर से प्रकटित जो शक्ति है वो सत्य. आनंदमय, खराबी है। क्या हम अपने हृदय से पूरी तरह से सहजयोग को अपनाते हैं या नहीं। मैं है। देखती हूँ, बहुत से लोग सहजयोग में आते हैं शांतिमय हो। उसमें दोष रह जाता है। जब और एक स्थान पर जा कर गिर जाते हैं, और जितने ऊँचे उठते हैं उतने गहरे गिर जाते हैं । इसकी वजह ये है कि आपके अंदर जो छिपी कुंडलिनी उठती है तो वो सब सफाई करती है। शिवजी की शक्ति से पूरी चीज़ साफ होती जाती ंम प्रवृत्तियाँ हैं वो किसी तरह से कार्यान्वित हो गई और आपको अंदाज ही नहीं रहा। इसलिए अपनी ओर ध्यान रखना चाहिए कि हम कोई ऐसे गलत तो नहीं फैस रहे हैं, कहीं हम ऐसा है। तो भी कुछ लोग अपनी पुरानी आदतों से या अपनी गलत धारणाओं से पीड़ित होते हैं और वो लोग जो कुछ गलत, जो भी दुष्ट बुरी बातें हैं उसके थोड़े से ही प्रलोभन में पड़ के फिर से गिर जाते हैं। वो हमारे अंदर एक छोटी सी भी अणु रेणु मात्र भी गर खराबी अंदर बची हो तो उसमें गिर करके हम वास्तव झझट में काम तो नहीं कर रहे हैं कि जो असहज हो। या कोई हमारे अंदर एसी गंदी प्रवृत्तियाँ तो नहीं आ रहीं कि हम पैसा कमाने के लिए सहज में आएँ या कोई और गंदे काम करने के लिए सहज में आएँ। इसके ओर अपनी दृष्टि होनी चाहिए। सबसे अच्छा है कि सहज के जो कार्यक्रम हैं में नष्ट हो जाते हैं। जो पूजा में आए और ध्यान करें उन लोगों में हमेशा प्रगति होती है। गर शांति न हो तो कोई पेड़ भी नहीं बच सकता। कोई वो बढ़ नहीं सकता। कोई अंकुर भी नहीं चल सकता। इसीलिए अगर आपके अंदर ये पूरा और सहज में जिस तरह भी होता है ध्यान. धारणा आदि करके और आप अपने आपको पक्का एक व्यक्तित्व बनाएँ। आपके अंदर वो ध्येय न हो, ये आदर्श न हो कि हम कहीं भी

एक विशेष रूप का जिसको कहते हैं कि एक दिल खोल करके और प्रेमपूर्वक सहजयोग का व्यष्टि होती है और एक समष्टि होती है। व्यष्टि वरण करता हैं, इतना ही नहीं और दूसरों में बनाएँ आप, तो आप समष्टि में भी एक हो जागृति करता है क्योंकि आपको सहजयोगी इसीलिए जाएँगे। जो समष्टि में नहीं आते वो व्यष्टि में ठीक नहीं हो सकते। ये मैंने देखा है। जो समष्टि लाएँ। सारे संसार में एक हलचल मचा करके में आते हैं वही ऊँचे उठते हैं। थोड़़े दिन के एक ऐसा सुन्दर संसार बनाएँ। ऐसा अभिनव लिए हो सकता है आपको कुछ फायदा हो जाए, और विशेष ऐसा संसार बनना चाहिए। ये एक कुछ पैसे मिल जाएँ, थोड़े आप ऊँचे उठ जाएँ, आपकी शुद्ध इच्छा होनी चाहिए। ये शुद्ध इच्छा बनाया गया है कि आप सारे संसार में परिवर्तन कुछ नाम हो जाए, सहज योग में खास करके होते ही आपकी कुण्डलिनी कार्य-प्रबल होने लोगों में ये बात होती है कि कितने लोगों को लगती है। बहुत सर्व साधारण लोग भी जब हम control करते हैं । वो भी लेकिन हो जाता है। आपका व्यक्तित्व नहीं बढ़ा। इसमें वो गहनता नही आई। आप वो ऊँचे दर्जे अपने अनुभव बताते हैं तो बहुत आश्चर्य लगता है कि ये इनके अंदर कैसे बात आ गई, ये त। इन्होंने कैसे जाना। सहजयोग में भी कुछ ऐसे लोग आ जाते हैं जो सत्ता के लिए आते हैं। कुछ आते हैं वो पैसे के लिए आते हैं। इन सब चौजों आप कंगार से गिर जाएं, न जाने कब आपका से मनुष्य का व्यक्तित्व वढ़ता नहीं। उसके सर्वनाश हो जाए। इसलिए बच के रहना चाहिए व्यक्तित्व में वो चमक नहीं आती क्योंकि जो और अपने को उस उच्चतर व्यक्तित्व में उसकी प्रकाश आपको मिला है बो जब तक लोगों में के सहज योगी अही है। जब तक आप वो नहीं हैं तब तक अपकी सब बातें बेकार हैं क्योंकि न जाने कब ओर एक चौज़ आपको करनी चाहिए। गर आज आप बाँटेगे नहीं और स्वयं अपने में भी आप प्रकाशित नहीं रहेंगे तब तक कोई सा भी कार्य आप यार हैं तो कल हजारों लोगों को पार कराईए तो आपकी शक्ति बढ़ेगी। नहीं तो जो थोड़ा सा पाया भी है वह भी खत्म हो संपन्न नहीं हो सकता। मतलब ये है कि कार्य यही है कि संसार को बदलना है, इस दुनिया को बदलना है, इसमें एक विशेष दुनिया बनानी है| और आप लोग एक विशेष लोग हैं। जब ये चीज़ आपके ध्यान में आएगी कि कितने आप महत्वपूर्ण हैं तो फिर आप बहुत समझ से अपने जीवन को बनाएंगे। जाएगा। ये बड़ा विचित्र सा एक नियम है। ऐसे किसी भी और चीज़ से इसकी तुलना नहीं हो सकती जैसे अगर एक दीप जलाइए ओर उससे दूसरे दीप जलाएँ तो भी यह नहीं कह सकते कि इस दीप की दीप्ति बढ़ जाएगी। नहीं कह सकते। पर सहज योग में मैंने देखा है जो जितने अनन्त आशीर्वाद “f# कठ

[Hindi translation from English talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

पहले मैं अंग्रेजी में बोलूगी क्योंकि यहाँ और माँ (आदिशक्ति) बच्चे का वध नहीं कर विदेशों से और विशेष रूप से मद्रास, हैदराबाद, सकती। देवी ने सीचा कि यदि शिव ने इस केरल और बैंगलोर से लोग आए हुए हैं। ये सभी लोग तो यहाँ आए हुए हैं ही, इनके अतिरिक्त मैं देख लिया, तो वे भी उनके क्रोध से न बच नहीं जानती कि दक्षिण भारत से कौन से लोग सकेंगी। अत: देवी ने राक्षस रूपी उस बालक राक्षस को देख लिया, पूरा विश्व नष्ट करते हुए आए हैं जो अभी तक हिन्दी भाषा नहीं समझते। मेरे विचार से इस शिबरात्रि का विशेष महत्व हैं का वध करने के उस कार्य से स्वयं को हटा लिया और श्री शिव ने यह कार्य अपने हाथ में क्योंकि प्रात: उठकर कोई भी समाचार पत्र यदि ले लिया। बालक रूपी उस राक्षस की पीठ पर आप पढ़े तो सभी प्रकार के हिंसात्मक भ्रष्ट वे सवार हो गए और उसका वध कर दिया। वह कार्य करने वाले तथा चरित्रहीन लोगों के विषय शिशु क्योंकि राक्षस था इसलिए श्री शिव ने में भयानक खबरें भरी होती हैं। आपको हैरानी उसका वध करके विश्व को विनाश से बचा होतो है कि किस प्रकार आज हमारे चहुँ ओर लिया और खुशी से नाचने लगे। इसी का नाम अपराध वृत्ति फैली हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्री शिव के ताण्डव नृत्य का यही समय है। जानते कि श्री शिव उस शिशु की पीठ पर इसके बिना कोई सुधार होता हुआ नहीं प्रतीत चढ़कर क्यों खड़े हो गए? इसका वास्तविक होता। उनके क्रोध का प्रकोप यदि इस प्रकार के दिव्यानंद है। बहुत से लोग इस बात को नहीं कारण उसका राक्षस होना था। अते: आजकल चरित्र के लोगों पर होने लगा तो मेरी समझ में लोग चाहे शिशु रूप में अबोध व्यक्ति था पावन गुरुओं का छलावरण धारण कर लें श्री शिव उन्हें समाप्त कर सकते हैं। बहुत सी घटनाओं के माध्यम से सर्वत्र यह विनाश शुरू हो चुका है। भयंकर तूफान, भूचाल और दुर्घटनाएं तथा प्राकृतिक प्रकोप इस कार्य को कर रहे हैं और नहीं आता कि उससे कोई कैसे बच सकेगा। वे ऐसे देवता हैं जो प्रेम एवं गहन करुणा से परिपूर्ण हैं। परन्तु उनकी दूसरी विशेषता उनकी विनाश शक्ति है। वे पूरे विश्व को नष्ट कर सकते हैं। उन्हें बदि क्रोध आ जाए तो जीव जंगम सभी को समाप्त कर सकते हैं। आप सबने वह कहानी सुनी होगी कि किस प्रकार वे क्रोधातिरेक में बह गए। एक राक्षस ने शिशु रूप धारण कर लिया यह सब कलकी अवतार के परिणाम स्वरूप है। तर परन्तु यह अवतार एक अन्य कार्य भी कर रहा है, वह है, लोगों को आत्मसाक्षात्कार (पुर्नजन्म)

देना। आत्मसाक्षात्कारी लोगों को कभी यह घटनाएं और इसके लिए कोई विशेष परिश्रम आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती। इन लोगों को कुछ नहीं करना पड़ता। अपने रोजमर्रा के जीवन में नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा होगी और हैं। लोगों का आप यह कार्य कर सकते अन्तर्परिवर्तन करने के लिए केवल इसी चीज उनकी हर चीज की रक्षा होगी क्योंकि ये अपनी माँ की सुरक्षा में हैं। की आवश्यकता है और आप सब इसको कर का अब समस्या यह है कि इन लोगों से सकते हैं। आप सब। ये उपलब्धि आप प्राप्त हैं। निष्ठा से भली-भांति करना चाहिए। क्रोध में सहजयोगी कैसे व्यवहार करें ताकि ये लोग कर सकते हैं। आप सबको यह कार्य अत्यन्त विकास प्रक्रिया के मार्ग में बाधाएं न उत्पन्न कर सके। इसका एक मात्र समाधान कुण्डलिनी की आकर लोगों पर उदछलने की या अभद्र जागृति है। यदि किसी बुरे से बुरे व्यक्ति की कुण्डलिनी भी आप उठा देंगे तो या तो वह नष्ट हो जाएगा या भला व्यक्ति बन जाएगा। कुण्डलिनी जागृति के पश्चात् सभी दुष्कर्मों की योजना जो उनके मस्तिष्क में है वे त्याग देंगे व्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। शान्त रहते हुए इस उपलब्धि को प्राप्त करना चाहिए। ताकि श्री शिव का क्रोध न भड़क उठे और जैसे कहते हैं, उनकी तीसरी आँख न खुल जाए। ऐसा होना बहुत भयानक है। और वास्तव में बहुत अच्छे लोग बन जाएंगे। हो हम सब इस कार्य को अत्यन्त रचनात्मक तरीके सकता है कि कुछ मामलों में ऐसा न हो। मैं नहीं कहती कि हर व्यक्ति के साथ सहजयोग सफल से कर सकते हैं । अतः सर्वप्रथम हमें अपने शिव तत्व को हो जाएगा। परन्तु सहजयोगी यदि ध्यान करें, स्थापित करना चाहिए-आनन्द, प्रेम एवं सत्य पूर्ण शान्ति की अवस्था में पूरी तरह से के तत्व को इसमें बहुत सी समस्याएं भी हैं समर्पित होकर बने रहें तो उन्हें कुछ नहीं हो क्योंकि लोग श्री शिव के ब्रह्माण्डीय स्वभाव को सकता। सदैव उनकी रक्षा की जाती है और नहीं समझते। उदाहरण के रूप में, मैंने है आप सब लोगों ने इस सुरक्षा को अनुभव कि लोग शिव तत्व और विष्णु तत्व पर झगड़ते किया है। परन्तु सर्वप्रथम आपको स्वयं पर हैं। शिव तत्व तक उठने के लिए आपके पास विश्वास करना होगा ओर सहजयोग के प्रति श्री विष्णु भी हैं और उनकी शक्ति भी है। दोनों पूर्णतः समर्पित होना होगा। यहाँ पर उत्तर भिन्न नहीं हैं, एक दूसरे के संपूरक हैं। फिर भी दक्षिण, पूर्व और पश्चिमी भारत तथा भिन्न देशों यदि आप इसी बात पर झगड़ते रहते हैं तो मैं से आए बहुत से सहजयोगी बैठे हुए हम कह सकते हैं आज इन आसुरी शक्तियों के शिव तक नहीं पहुँच सकते और बिना विष्णु चंगुल में है। हमें कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इन लोगों को श्रेष्ठ बनाना है। यह कार्य आप सुना जी हैं। हर देश, नहीं समझ सकती। श्री विष्णु के बिना आप श्री तत्व को समझे आप शिव तत्व पर नहीं बने रह सकते। कुण्डलिनी भी सुषुम्ना मार्ग से उठती है। वह (कुण्डलिनी) शिव का तत्व है और विकास कर सकते हैं। आप इस कार्य को कर सकते हैं.

सच्चाई को परख लें। सहजयोग को अत्यन्त प्रक्रिया में श्री विष्णु द्वारा बनाए गए मार्ग से वह सुगमता से सत्यापित किया जा सकता है और आप केवल सत्य को जानते हैं, वह सत्य जो उठती है। तो किस प्रकार आप दोनों में से एक के बिना चल सकते हैं? एक मार्ग है तो दूसरा लक्ष्य। अत: मैं आशा करती हैँ कि आप लोग पूर्ण है। यह ऐसा तत्व है जो इन दोनों शक्तियों इस बात को समझते हैं कि आपके चक्रों का की एकाकारिता के पश्चात् प्राप्त होता है। अत्यन्त शुद्ध होना और उत्थान मार्ग का ठीक होना हैरानी की बात है कि जब ये दोनों शक्तियाँ कित्तना महत्वपूर्ण है, तथा आपकी सुषुम्ना नाड़ी मिलती हैं या जब आप विष्णु तत्व के माध्यम का स्वच्छ होना कितना आवश्यक है? क्योंकि से शिव तत्व में पहुँचते हैं तब आप समझ पाते हम मध्यमार्गी हैं हमें मध्य में, मध्य मार्ग से हैं कि ये दोनों शक्तियाँ एक दूसरे के संपूरक े चलना होगा तथा बाएं-दाएं न लुढ़ककर एक प्रकार से इन सन्तुलन में रहना होगा। ये सन्तुलन बनाए दोनों शक्तियों में कोई अन्तर नहीं है। अतः रखते हुए तब तक हमें कार्य करते रहना होगा, जब तक अपने तालू भाग में नहीं कुण्डलिनी को इस मार्ग से गुजरने दें। इस मार्ग पहुँच जाते जहाँ सदाशिव विराजमान हैं। जो से जब कुण्डलिनी गुजरेगी तो आप आश्चर्यचकित कुछ मैं आपको बता रही हूँ आप इसे स्वयं देख हो जाएंगे कि एक ही कुण्डलिनी विष्णु मार्ग से सकते हैं। इसे भली-भांति जान लें। जब मैं हैं और परस्पर सम्बन्धित हैं। अपनी सड़क-मंध्य मार्ग को स्वच्छ रखें और गुजरती हुई श्री शिव के चरण कमलों में पहुँच आपको ये चीज़ बता रही हूँ तो आप इसकी रही है। परमात्मा आपको धन्य करें।