Shri Krishna Puja

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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आज हम यहाँ अपने अन्दर स्थित श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए आये हैं।

जैसे कि आप जानते हैं कि सहज योग में आने से पूर्व आप सब परमात्मा को  खोज रहे  थे । आप अलग-अलग जगहों पर गए, बहुत सारी किताबें पढ़ीं और आप में से कुछ लोग भटक गए। और, उस  

खोज में, शायद आप नहीं जानते थे कि आप क्या तलाश रहे थे। जो आप तलाश रहे थे वह था स्वयं को जानना था। सभी धर्मों में यह कहा गया है कि ‘स्वयं को जानो ‘. यह एक सामान्य बात है जो सभी ने कही है। यह एक ऐसा तथ्य है जो हर धर्म में है , ‘स्वयं को जानो’, क्योंकि स्वयं को जाने बिना आप परमात्मा को नहीं जान सकते , आप आध्यात्मिकता को नहीं जान सकते. तो पहला कदम था स्वयं को जानना । 

और उसके लिए लोगों ने आपके साथ सभी प्रकार के छल किये, उन्होंने आपको विभिन्न तरीकों से सिखाया और वास्तव में आपको लूटने और आपको धोखा देने की कोशिश की। वो सभी चीजें जो हुई हैं, समाप्त हो गई हैं। 

तो फिर आप सहज योग में आते हैं और आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है । लेकिन  आत्मसाक्षात्कार का उद्देश्य क्या है? परमात्मा, या देवी को जानना , यही आत्मसाक्षात्कार का उद्देश्य है । 

लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको क्या होना चाहिए? आप में से कई लोगों ने निरर्थक वस्तुएं में रूचि छोड़ दी है जैसे नशा और वो सभी चीजें । 

निरर्थक किताबें पढ़ने में भी आपकी रुचि समाप्त हो गई है। आपने अन्य आदतों में भी रुचि खो दी है, जैसे शराब पीना और  वो सब। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, यह पर्याप्त नहीं है। 

यह तो किसी प्रकार भी होना ही था । परमात्मा को जान लेने से क्या होता है, परमात्मा क्यों आपको चाहते हैं  कि आप उन्हें जानें ? 

क्योंकि वो आप में अपना प्रतिबिंब देखना चाहते हैं. वो अपने प्रतिबिंब को देखना चाहते हैं , इसीलिए उन्होनें आपकी रचना की और वह आप में अपना प्रतिबिंब देखना चाहता हैं.

देवी के साथ भी यही है, उन्होनें आपको आत्मसाक्षात्कार दिया है क्योंकि वह आप में अपना प्रतिबिंब देखना चाहती हैं। तो आपको स्वयं को उस परावर्तन के लिए तैयार करना होगा, जो अत्यंत शुद्ध, सुंदर, प्रेममय, करुणामय हो और सर्वोपरि, विवेक से पूर्ण हो। 

तो यह ऐसी अवस्था है, जहां सभी को पहुंचना है – जहां आपको मालूम हो आपके पास विवेक होना ही है. यदि आपके पास  विवेक की कमी है तो आप एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति नहीं हैं।

श्री कृष्ण के स्तर पर, आप देखते हैं कि वह आपको विराट का अंगप्रत्यंग बनाना चाहते हैं, और विराटांगना भी यही चाहती हैं- कि आप विराट का अंगप्रत्यंग बनें । इसलिए नहीं कि अब आप आत्मसाक्षात्कारी हो गए हैं, इसलिए आप यह सोचते रहें कि आप बिलकुल ठीक हैं और आपको इसके बारे में कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। 

इससे आगे आप क्या करते हैं, यह मुख्य बात है, कि आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको उस प्रतिबिंब को देखना होगा जो श्री कृष्ण जैसे लोगों के जीवन से प्रेरित हो आपके भीतर आये।

सर्वप्रथम तो श्री कृष्ण का जन्म एक बहुत ही कठिन परिस्थिति में हुआ था जैसा कि आप जानते हैं और उन्हें वहां से गोकुल ले जाया गया था, जहाँ उन्हें यशोदा ने पाला था । 

अब, वहाँ उन्होंने अपनी चंचलता शुरू कर दी। इसलिए आपको जीवन में चंचल होना चाहिए- आपको आमोद और आनंद का सृजन करना होगा। उन्होंने यह नहीं कहा कि आप एक वृद्ध ऋषि की तरह हिमालय कहीं जा कर बैठ जाएं, लेकिन आपको बच्चों के साथ घुलना-मिलना है, आपको उनसे बात करनी है, आपको उनके साथ खेलना है, आनंद लेना है। 

उसी समय वह उन सभी नकारात्मक शक्तियों को नष्ट कर रहे थे जो उन पर कार्य कर रही थीं। अपनी चंचलता में ही उन्होनें ऐसा किया है, एक बालक के रूप में ही उन्होंने किया है। अपनी बाल्यावस्था में ही कितने परिपक्व थे वो, आप देख सकते हैं, कि उन्होनें पूतना का वध किया, और वहाँ दो भयानक राक्षस भी थे- उनका भी वध किया।

उसी समय वह गोपियों के साथ खेल रहे थे और उनके साथ छेड़खानी कर रहे थे, उन्हें परेशान कर रहे थे , उनका मज़ाक बना रहे थे। क्यों? क्योंकि वह चाहते थे कि वो भी चंचल हों। और उन्होनें सभी प्रकार के उत्सव का आयोजन किया। एक बार बड़ी बारिश हुई और उन्होंने अपनी उंगलियों पर पूरा बड़ा पहाड़ उठा लिया। इन लोगों को समझना चाहिए था कि यह संभव नहीं है, यह एक चमत्कार है। लेकिन वो तो पहाड़ को सिर्फ एक उंगली पर उठाकर वहां खड़े हुए थे । बहुत ही विनम्र प्रकार से वह उन सभी  बालको की रक्षा कर रहे थे , जो उनके साथ खेल रहे थे। 

तब उन्होंने कालिया को मारा, जो पानी में रहने वाला एक बड़ा सर्प था। ये भयानक प्राणी पानी में विष पैदा कर रहा था, और जिससे कई लोग मारे गए थे । वह तुरंत ही बिना समय नष्ट किये यमुना के उस भयानक पानी के अंदर कूद गए, जहां से एक प्रकार से, उन्होनें सभी लोगों को बचाया, कालिया को मारकर या पीटकर या आप कह सकते हैं कि इस कालिया पर जीत हासिल कर के।

लेकिन बड़े सर्प की पत्नियों ने उनसे कहा, “कृपया उसे माफ कर दें!” और उन्होने क्षमा कर दिया। यह सभी बातें दर्शाती हैं कि छह, सात साल का बालक इन सभी महान कार्यों को कर रहा था, महसूस किए बिना कि वह क्या कर रहा था और इसके बारे में सोचा तक नहीं । लेकिन उन्होंने यह सब किया क्योंकि वह जानते थे कि वह श्री कृष्ण हैं।

इसलिए सबसे पहले आपको यह ज्ञात होना चाहिये कि आप लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं। आप साधारण तरीके से व्यवहार करने वाले आम लोग नहीं हैं। आप विशेष लोग हैं, विशेष रूप से सर्वशक्तिमान परमात्मा के गुणों को दर्शाने के लिए। आपसे यह उम्मीद यह नहीं है कि आप जाएँ और कालिया को मारें। लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि, आप लोग हर समय संरक्षित हैं। आप हर समय संरक्षित हैं- कोई भी आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता है, कोई भी आपको मार नहीं सकता है और आपकी देखभाल की जा रही है क्योंकि आप सहज योगी हैं।

अब निर्णय लेने के प्रति सहज योगी की प्रवृत्ति कैसी होनी चाहिए, हमें यह समझना चाहिए। 

यह एक सहज निर्णय होना चाहिए। आपको इसे किसी के साथ मिलान करने की जरूरत नहीं है, वहां जाएं और पता करें, शीघ्र, तत्क्षण, जैसे श्री कृष्ण जो नदी के अंदर कूद गए। तो उसी तरह आपका निर्णय भी किसी भी चीज के लिए अत्यंत सहज होना चाहिए। अब आप मान लीजिये एक कालीन खरीदना चाहते हैं – ठीक है, आप दुकान में जाते हैं और आपको तुरंत पता हो जाना चाहिए कि कौन सा लेना है । 

जीवन के हर क्षेत्र में आपको एक बहुत ही सहज निर्णय, तत्क्षण निर्णय लेना चाहिए। लेकिन मैं क्या देखती हूँ, कि बहुत अलग शैली है – वो दुकान से दुकान पर जाएंगे, फिर उसकी एक सूची बनाएंगे, फिर सभी माप लेंगे, फिर घर जाकर कहेंगे, “हम इसके बारे में कल बतायेंगे।” 

एक सहज योगी इस प्रकार से व्यवहार नहीं करता है। एक सहज योगी को हर बात के लिए पूर्ण रूप से तत्क्षण निर्णय लेना होता है। आपको ऐसा होना चाहिए – अब कोई डूब रहा है; इसलिए पहली प्रेरणा यह होनी चाहिए कि आपको उसे बचाना है, और आप कैसे बचाते हैं?  आप पानी में कूद जाते हैं। क्योंकि आप सुरक्षित हैं, आपको कुछ नहीं हो सकता। तो आप बस पानी में कूद जाते हैं और आप उस व्यक्ति को बचा लेते हैं।

कम से कम यह तो आपका दृष्टिकोण होना ही चाहिए, यह आपका स्वभाव होना चाहिए, कि आप बहुत सहज निर्णय लेते हैं। 

यह सभी सोच और सभी प्रकार के निर्णय लेने और इसके के लिए एक बड़ी सभा और वो सब करने की जरूरत नहीं है। दैनिक जीवन में भी आपको वैसा ही बनना है। साथ ही हर राजनीतिक जीवन, आर्थिक जीवन या कैसा भी अन्य जीवन जो आपको निर्वाह करना है, उस में आपको अत्यंत सहज होना होगा।

आप सहज कैसे बन जाते हैं? आपको क्या विशेषता प्राप्त हुई है? आपका वो क्या साधन है जिस से पता है कि क्या निर्णय लेना है? क्या आप जानते हैं कि आपको चैतन्य प्राप्त हुआ है? आपको चैतन्य की अनुभूति हुई है और आप जानते हैं कि चैतन्य क्या है। आप जानते हैं कि चैतन्य आपको क्या बताता है, सूचित करता है, और आपसे संचार करता है। वह आपसे वार्तालाप करते हैं। तो आपके चैतन्य के माध्यम से आपको क्षण भर में पता होना चाहिए कि आपको क्या करना है।

उदाहरण के लिए अब किसी ने मुझसे कहा कि, “माँ जब मैं कबेला आती हूँ तो मुझे अत्यधिक चैतन्य महसूस होता है!” यह एक तथ्य है। लेकिन आपमें से कितने लोग ऐसा महसूस करते हैं? क्योंकि आपकी संवेदनशीलता अभी विकसित नहीं हुई है। आपको अपने चैतन्य के बारे में संवेदनशील होना होगा। आपको पता होना चाहिए , किसी को भी देख कर , किसी के साथ बैठ कर, यहां तक कि किसी से भी हाथ मिलाने पर, आपको पता होना चाहिए कि उस व्यक्ति का चैतन्य कैसा है। इस तरह की संवेदनशीलता यदि आप विकसित कर लेते हैं, तो आप निश्चित रूप से एक बहुत ही सहज निर्णय ले सकेंगे।

आप जानते हैं मैं इसमें बहुत अच्छी हूं। मैंने इस कबेला को पांच मिनट में खरीदा, वास्तव में पांच मिनट। जब मैं यहां आई , तो उन्होंने कहा कि आप ऊपर नहीं जा सकतीं क्योंकि आपके पास बड़ी कार है। तो मेयर ने कहा, “ठीक है। आप आईये, मैं  आपको अपनी कार में ले जाऊंगा।” तो मैं उसके साथ उस कार  में गई और मैंने वह देखा। यह सब जीर्ण-शीर्ण था, इसमें कोई शक नहीं। यह बिलकुल एक खँडहर की तरह था , ठीक है, और एक भूतबंगले सा दिखता था, इसमें कोई शक नहीं। और हर कोई जो मेरे साथ था, उन्होंने कहा, ” आह, क्या जगह है माँ! आप इसे खरीद नहीं सकते ! ” तो मैंने मेयर से कहा “मैं इसे खरीद रही हूँ!” “कब?” “आज अभी!” उसे आश्चर्य हुआ! मैंने कहा, “आप मुझे बताएं कि मैं इसे कैसे खरीदूं?” उन्होंने कहा, “इस इटली में बहुत आसान है- आपको इस तरह से खरीदना होगा, कि आपको कीमत का एक तिहाई चुकाना होगा।” “ठीक है,” और फिर आपइसे अपने अधिकार में ले सकते हैं। यदि आप उस जगह के साथ कुछ गलत पाते हैं जो आप उसे दे सकते हैं, लेकिन तब आपको अपने पैसे वापस नहीं मिलेंगे। लेकिन अगर दूसरा आदमी जो आपको बेच रहा है वह कहता है कि नहीं, तो उसे दोगुना भुगतान करना होगा। ” मैंने कहा, “बहुत अच्छा सौदा है! मैं खरीद रही हूँ । मैंने आपको बता दिया कि मैं खरीद रही हूं। मैं खरीद लूँगी ।” और हर कोई हैरान था कि माँ क्या कर रही हैं ? 

 तो जिसने निर्णय लिया वह था चैतन्य। जगह के चैतन्य ने बस तय कर दिया। मैंने कहा, “मैं खरीद रही हूँ!” और इस प्रकार मुझे लगता है वो मुझे सात भवन दिखाने ले गए! मैंने कहा नहीं। बाहर से ही मैंने मना कर दिया था। और वो हैरान थे, मैं अंदर भी नहीं गयी थी । मैंने कहा, “उनसे पूछो कि यहाँ क्या था।” उन्होंने कहा, “महिलाओं योगिनियों का आश्रम” मैंने कहा, “देखिए?”

अब आपको उस तरह के एक सहज निर्णय को विकसित करना चाहिए, फिर आप आश्चर्यचकित होंगे कि इतने कम समय में आप वास्तव में ऐसी महान चीजों को कैसे प्राप्त कर सकते हैं! लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप सभी को ऐसा करना चाहिए। पहले आपके पास चैतन्य की संवेदनशीलता होनी चाहिए। यदि आपके पास चैतन्य की संवेदनशीलता है, तो मैं कहूंगी कि अब आप सहज योग में परिपक्व हो गए हैं । 

इसलिए अन्दर परिपक्वता होनी चाहिए। आप बस यह नहीं कह सकते हैं, “अब यह ठीक है, मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। मैं यह कर सकता हूँ!” सबसे पहले आप अपनी संवेदनशीलता को समझें। तो अब, आप कैसे जानते हैं? उदाहरण के लिए, आप एक सहज निर्णय लेते हैं और आप पाते हैं कि आपको कुछ भी नहीं मिला है, यह सब  व्यर्थ है – यह संभव है। लेकिन आप अपने लिए देख सकते हैं कि आपके निर्णय, अगर वो सहज हैं, अगर वो असफल हो जाते हैं, अगर वो गलत हैं, अगर कुछ गलतियाँ हैं या जो आपको नुकसान पहुंचाएंगे – चाहे वह आर्थिक रूप से, राजनीतिक रूप से, हर तरह से – तो आपकी’ मान्यताओं की सम्पूर्ण प्रणाली का बहुत अच्छी तरह से आंकलन हो जाएगा- आप सहज योग में कितनी गहराई तक गए हैं, आपने अपना आत्म-साक्षात्कार कहाँ तक प्राप्त किया है और आपकी स्थिति क्या है।

अपने आप को परखने का यही उपाय है। आपको असफलताओं का डर नहीं होना चाहिए और सफलता से आसक्त नहीं होना है, क्योंकि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं । निस्संदेह, यदि आप संवेदनशील हैं, तो तुरंत आपको पता चल जाएगा कि यह क्या है। बेशक, मैं यह नहीं कहूंगी कि आपके पास मेरे जैसा ही होना चाहिए, लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए।

अब मैंने कुछ लोगों को देखा है जो किसी न किसी आदमी की प्रशंसा करेंगे, “ओह माँ वह बहुत अच्छा है, आप उससे अवश्य मिलें। वह इतना अच्छा इंसान है, और वह ऐसी मदद करता है। और ऐसा होगा और वैसा होगा।“ मैंने कहा, “ठीक है, तुम मुझे एक तस्वीर दिखाओ।” मैंने कहा, “मुझे खेद है कि मैं उनसे मिलना नहीं चाहती !” वो नहीं समझ सकते। “ऐसे महान व्यक्ति! वह कल मंत्री बन जायेंगे!” “मैं उससे मिलना नहीं चाहती ।” और आप पाते हैं, अगले दिन, अखबार में उसके बारे में एक बड़ी खबर है कि वह बहुत बुरा आदमी है।

इसलिए आपको अपने सहज निर्णय के लिए अपने अनुभव और अपनी समझ का स्पष्ट रूप से मिलान करना चाहिए। लेकिन फिर भी, मैं कहूंगी, सहज निर्णय पर रहिये – इसके बारे में न सोचें; यह कैसे कार्यान्वित होना चाहिए, हमें क्या करना चाहिए।

आपके दिमाग पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है, साथ ही, कि आप देखते हैं, कि आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। मैं नहीं जानती कि आप में से कितने लोगों ने वो घर देखा है जो मैंने बनाया है।

श्री कृष्ण का दूसरा पक्ष यह था कि वो अत्यंत सृजनात्मक थे। बचपन में उन्होंने ये सारी बातें , ये शरारतें कीं, और जब वो बड़े हो गए, तो वो द्वारका के, उस क्षेत्र के राजा बन गए। और वह केवल राजा की तरह कपड़े पहनते थे। आखिरकार वह एक राजा थे । जब वह एक बालक थे तो वह मोर पंख के छोटे से टुकड़े को पहनते थे । लेकिन जब वह राजा बन गये , तो उन्होनें सभी चीजें पहन रखी थीं और वह सिंहासन पर बैठे थे और उस तरीके से लोगों से बात कर रहे थे । वह सब महानता थी, और वह अत्यंत रचनात्मक था। उन्होंने एक सुंदर, बहुत, बहुत सुंदर भवन बनाया, या आप महल कह सकते हैं, द्वारिका में सोने से निर्मित । क्या आप विश्वास कर सकते हैं? श्री कृष्ण ने किया और यह सब पानी में डूब गया था।

अब भारत के बुद्धिजीवियों ने – सभी को पश्चिमी लोगों द्वारा प्रशिक्षित किया गया है, मुझे लगता है – ऐसा कहा, “यह संभव नहीं है। पानी में कुछ भी नहीं है और उन्होने कभी अपना महल नहीं बनाया। यह सब एक कहानी है। बस एक कल्पना की तरह।“ लेकिन कुछ लोगों ने इस पर विश्वास किया और उन्होंने खोद डाला। वो नीचे गए और उन्होंने पाया कि वहाँ एक बहुत बड़ा महल था, वहाँ सोना था, थोड़ा बहुत बचा था, लेकिन सारा वहाँ नहीं था। और वो चकित रह गए कि इतना बड़ा बड़ा महल उन्होंने बनाया था। पानी के नीचे वह चला गया था, लेकिन वह वहाँ था।

इस तरह, ये सभी अवतरण जो आए थे, वो बेहद सृजनात्मक थे। यदि आप सृजनात्मक नहीं हैं तो आत्मसाक्षात्कार का लाभ क्या है? अब, जो सबसे बड़ी सृजनात्मक चीज जो आप बहुत आसानी कर सकते हैं, वो है दूसरों को सहज योगी बनाना। यह सबसे आसान और सबसे ज्यादा आनंद देने वाली बात है- दूसरों को सहज योगी बनाना और उन्हें परमात्मा का आशीर्वाद देना है, जिसे वो युगों से खोज रहे हैं। 

उन्हें देने से आपको यह पता नहीं चलता है कि आप उन्हें क्या आशीर्वाद, क्या तसल्ली दे रहे हैं। इसलिए अब जब आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिल गया है- आपको यह बहुत आसानी से मिल गया है, मुझे कहना चाहिए। वो सभी कहते हैं कि यह एक तत्क्षण निर्वाण है। सहज योग तत्क्षण निर्वाण है, यह सत्य है। लेकिन जो कुछ भी आप आसानी से और तत्क्षण प्राप्त करते हैं, आप उस के मूल्य को नहीं समझते हैं। वो हमेशा भारत के लिए कहते हैं कि उन्हें इतनी आसानी से आज़ादी मिली – उन्हें यह इतनी आसानी से नहीं मिली – इसीलिए वो इसका मोल नहीं समझते हैं। लेकिन यह सच है – यदि आप कुछ भी बिना मोल प्राप्त करते हैं, तो सबसे पहले, और बिना किसी विशेष प्रयास के, तो आप इसे महत्व नहीं देते, आप समझ नहीं पाते हैं। आपको लगता है कि यह आपका अधिकार है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए लोगों को कितनी कठिनाई उठानी पड़ी है ? वो हिमालय पर जाते थे, एक पैर पर खड़े होते थे, कभी-कभी महीनों तक एक साथ उनके सिर पर। और उन्हें  साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ ।

मैंने कुछ लोगों के बारे में सुना है जो आत्मसाक्षात्कार के लिए अट्ठाईस साल से एक कमरे में रहते थे । और वो इस तरह क्यों रहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि दूसरे लोगों, दूसरे बुरे माहौल, हर चीज से दूर रहने से उन्हें साक्षात्कार हो सकता है । लेकिन उन्हें यह कभी नहीं मिला।

तो हमें को समझना चाहिए – हालाँकि हमें यह बहुत आसानी से मिल गया है, यह इतना कीमती है, इतना महान है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना बहुत आसान नहीं है । 

आप उन लोगों के बारे में पढ़ते हैं जो आत्मसाक्षात्कारी हैं । शायद उन्हें भी नहीं पता था कि उन्हें यह कैसे मिला। वो कुंडलिनी के बारे में भी नहीं जानते थे, लेकिन उन्हें मिल गया; शायद उनके गुरु के माध्यम से, शायद उनके प्रयासों से। बुद्ध को, उनके साक्षात्कार के पहले कितने कष्ट उठाने पड़े! उनके बारे में सोचें, कैसे उनको आत्मसाक्षात्कार मिला! मेरा मतलब है कि आप उनके जीवन को देखते हैं तो कांप जाते हैं, वो अंततः भूख और गरीबी से मृत्यु को प्राप्त हुए थे । 

लेकिन आपको कुछ नहीं हुआ। आपको ये बिना किसी परेशानी के प्राप्त हुआ है, बहुत ही मधुर तरीके से, आप सभी को। कुछ नहीं, आपको भुगतान नहीं करना है, आपको इसके बारे में कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको इसका मोल नहीं समझना चाहिये । जैसे एक बीज जो धरती माता में डाल दिया जाता है अनायास अंकुरित होता है और वो नन्हे पौधे को जीवन देता है जो बढ़ता है, एक झाड़ी की तरह और फिर एक पेड़ की तरह। लेकिन आपको पानी डालना होगा और आपको माली बनकर या किसी और तरह से देखभाल करनी होगी। आपके मामले में आप ही वो हैं जिसे ये सब करना है।

सबसे पहले आपको करुणा और प्रेम का पोषण करना होगा। क्या आपके पास वह करुणा और प्रेम है? क्या आप लोगों से प्रेम करते हैं? जैसे किसी ने आज मुझे बताया, मैं चौंक गयी ” मुझे बच्चे पसंद नहीं हैं!” मैंने कहा, “आपको बच्चे पसंद नहीं हैं?” “नहीं, मुझे अन्य बच्चे पसंद हैं, मेरे नहीं।” ज़रा कल्पना करें! आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? आप अपने बच्चों को पसंद नहीं करते। कुछ भी! सबसे पहले, आप सभी के लिए मैं कहूंगी कि आपको कभी भी यह नहीं कहना चाहिए, “मुझे पसंद है” या “मुझे पसंद नहीं है”- ये परस्पर विरोधी मंत्र हैं। “मुझे यह पसंद है” बहुत आम है। आप हैं कौन? “मुझे यह कालीन पसंद नहीं है!” “मुझे वह चाँदी की वस्तु पसंद नहीं है!” आप हैं कौन ? क्या आप ऐसा बना सकते हैं? 

उस प्रकार का निर्णय लेने के लिए ये दिखता है की वो सोचते हैं की वो सहज हैं. पर हैं नहीं। यह आपके  कंडीशनिंग से आया है जब आप सोचते हैं, “मुझे कहने का अधिकार है, ‘मुझे पसंद नहीं है,’ ‘मुझे नहीं चाहिए।” “लेकिन आप हैं कौन ? यदि आप आत्मा हैं तो आप इन शब्दों का उपयोग कभी नहीं करेंगे क्योंकि यह किसी को आहत कर सकते हैं। आप कभी ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे दूसरों को ठेस पहुँचे। आप कभी भी ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो दूसरों के लिए खतरनाक हो। लेकिन हमेशा, आप कुछ ऐसा कहेंगे, जो अत्यंत प्रेम, करुनामय और शांति प्रदान करने वाला हो। 

आप दूसरों के लिए आनंद फैलायेंगे । आत्मा की एक शक्ति है कि वह दूसरों को आनंद देती है। यदि आप एक उदास व्यक्ति हैं, तुनकमिजाज व्यक्ति हैं तो आप आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। आपको दूसरों को आनंद, प्रेम और करुणा देने में सक्षम होना चाहिए। और यह बिल्कुल सहज होना चाहिए।

भारत में, महाराष्ट्र में एक संत के बारे में एक कहानी है, वो एक पात्र में पानी ले जाते थे, जिसे ‘कावड़’ कहा जाता था और इसे गुजरात में श्री कृष्ण के मंदिर तक ले जाया जाता था । इसे श्री कृष्ण के लिए एक महान समर्पण माना जाता था । तो उस संत ने भी उस पात्र में पानी रखा। महाराष्ट्र के अपने गाँव से इसे लाते हुए जब वह मंदिर पहुँचे, तो उस मंदिर के पास, उन्होंने एक गधे को बहुत प्यासा देखा, प्यास से मरते हुए। तो उन्होनें उस गधे को पानी दे दिया। सब ने कहा, “ज़रा देखो , ये इस जल को मीलों तक साथ लेकर आए हैं, एक साथ कई दिनों तक चलकर ,यहां देवता को अर्पण करने के लिए और अब आपने इसे इस गधे को दे दिया है?” उन्होंने कहा, “आप नहीं जानते कि भगवान पानी लेने के लिए यहाँ नीचे आए हैं।” जो मनोदृष्टि थी, उसे देखें। 

तो एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति में करुणा भाव होना चाहिए – बहुत उदार प्रकृति का। यदि आप उदार नहीं हैं, यदि आप कंजूस हैं, हमेशा अपने पैसे और इसे बचाने के बारे में चिंतित हैं, तो सबसे पहले आप परिपक्व सहज योगी नहीं हैं, आप नहीं हैं। इसके अलावा, इस तरह का पैसा आपको कभी भी सुख नहीं देगा। 

कंजूसी आत्मा के विरुद्ध होती है। आत्मा अत्यंत उदार होती है, अत्यंत उदार। यह कभी कुछ बचाने या लोगों को धोखा देने या कुछ चोरी करने की कोशिश नहीं करती है – दायरे से ही बाहर है। क्योंकि उसमें कोई लालच नहीं बचा है, कोई लालच नहीं है। और यही कारण है इस तरह के एक व्यक्ति, जो आत्मसाक्षात्कारी है , लालची नहीं हो सकता है, अत्यंत उदार होता है। 

मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो अत्यंत उदार हैं और जो दूसरों की समस्याओं के बारे में बहुत समझ रखते हैं। जबकि एक सहज योगी जिसकी अपनी समस्याएं होंगी, वो सहज योगी नहीं हैं । वह दूसरों की समस्याओं को हल करने के लिए है और न कि अपनी समस्याओं को हल करने के लिए, या इस बारे में बात करने के लिए है, “यह वह समस्या है जो मेरे पास है।” अब यह नया शब्द है जो आधुनिक काल में विकसित हुआ है। वो पहले कभी इस शब्द ‘समस्या’ का प्रयोग नहीं करते थे मैं बताती हूँ। केवल रेखागणित के लिए हमने ‘समस्या’ शब्द का प्रयोग किया। लेकिन अब यह शुरू हो गया है। वो कहते हैं, “कोई समस्या नहीं है”। वो सभी एक समस्या में हैं। वास्तव में वो ही समस्या हैं।

तो आपको करना क्या है कि यह समझना है कि अपनी समस्याओं को दूसरों को नहीं देना चाहिए। आपको कुछ नहीं मांगना चाहिए। “कृपया मेरे लिए ऐसा करें।” “कृपया मेरे लिए ऐसा करें।” 

यह बहुत आश्चर्य की बात है कि लोग दूसरों का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। 

अब कुछ लोग कुछ देशों की यात्रा करना चाहते हैं, इसलिए वो मुझसे पूछेंगे, “कृपया मुझे बुलाएं । मैं आपके देश आना चाहता हूं।” और एक उदार सहज योगी कहेंगे, “ठीक है, साथ आओ!” अब जो यहां असफल हो रहा है वो यह व्यक्ति है जो इसके लिए पूछता है। आपको कुछ भी नहीं मांगना चाहिए, क्योंकि आप पूर्ण हैं। न केवल आप संतुष्ट हैं बल्कि आप पूर्ण हैं! कोई आपको क्या दे सकता है? जब आप पूर्ण आकार में होते हैं तो सभी इच्छाएँ विलीन हो जाती हैं। 

आज की तरह, जब मैं आ रहा थी तो मैंने देखा कि बहुत सारे तारे जगमगा रहे थे। मैंने कहा, “जैसे ही चाँद आएगा, वो सब लुप्त हो जाएंगे।” उसी तरह, जब आप पूर्ण होते हैं, तो आप किसी से भी आपके लिए कुछ भी करने की  अपेक्षा नहीं करते हैं। इसके विपरीत आप यह जानना चाहते हैं कि आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं। आप एक तरह से दूसरों के हो जाते हैं कि दूसरों की जो भी समस्या हो, आप अपने सिर पर ले लेते हैं, आप उसमें कूद जाते हैं।

यह एक बहुत, बहुत ही आनंददायक उत्पत्ति है जो आपके अन्दर होनी चाहिए। यह आप सभी के साथ होनी चाहिए क्योंकि आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है । आप एक ऐसे व्यक्तित्व का विकास करते हैं, जो केवल दूसरों के लिए जीता रहता है, स्वयं के लिए नहीं। 

आप चकित होंगे – आप कहीं भी रह सकते हैं, आप कहीं भी सो सकते हैं। आप भोजन कर सकते हैं। आपको भोजन की आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार का भी भोजन मिलता है, वह सब ठीक है। क्योंकि आप इतने संतुष्ट हैं। इसके विपरीत, यदि आप दूसरों के लिए खाना बनाना चाहते हैं, उन्हें भोजन देना चाहते हैं, जो कुछ भी आप कर सकते हैं वो देना चाहते हैं। जो भी संभव हो आप करने की कोशिश करें। जब तक आप इसको कार्यान्वित कर सकते हैं, तब तक आप इसे करते हैं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनकी केवल अपनी समस्याएं हैं- वो सहज योगी नहीं हैं । आत्मा को समस्याएँ कैसे हो सकती हैं? ऐसा कैसे हो सकता है? तो बस इतना समझ लें कि आप अब आत्मा हैं और हर चीज से परे हैं।

तो आपकी सृजनशक्ति अन्य आयामों में भी जाती है।

बेशक आप दूसरे लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना शुरू करते हैं। आप कला रचते हैं। आप जानते हैं कि बाबामामा साहित्य में बहुत बुरे थे और उन्हें कोई भाषा नहीं आती थी। वह गणित में बहुत अच्छे थे, क्योंकि मेरी माँ गणितज्ञ थीं. लेकिन कोई भाषा वह नहीं जानते थे । मैं उनके निबंध लिखती थी, वह इतना बुरे थे । लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने ऐसी सुंदर कविताएँ लिखीं, जो अविश्वसनीय थीं। कोई भी विश्वास नहीं कर सकता था कि यह बाबा ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि वह किसी भी भाषा को अच्छी तरह से नहीं जानते थे। जैसा मैंने आपको बताया, मैं उनके निबंध लिखती थी । इतना आश्चर्यजनक, कि उन्होंने उर्दू कविता, मराठी कविता, हिंदी कविता कहाँ से लिखना शुरू किया? और मेरे एक भाई ने उनसे पूछा, “आपको यह उर्दू कविता कैसी लगी?” उन्होंने कहा, ” श्री माताजी के पास है, वह मुझसे कहती हैं। सब कुछ वो कहने के लिए कहती है, माताजी मुझसे कहती हैं। ”

तो आपके अंदर सृजनशक्ति खिल जाती है और आप स्वयं पर आश्चर्यचकित होते हैं कि यह रचनात्मकता कैसे आई है। अब एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें जो गणितज्ञ हो, अचानक कवि बन जाए- यह एक असंभव स्थिति है। और आपके पास ये क्षमताएं हैं। आप सभी में ये क्षमता है कि आप बहुत रचनात्मक बन सकते हैं और आपको हर तरह से रचनात्मक बनना होगा। 

मैं बहुत रचनात्मक हूं, आपको कहना चाहिए। मैं हर समय कुछ काम कर रही हूं, जो बहुत अच्छी तरह से सामने आता है। और यह भी कि मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है, जैसा कि आम तौर पर लोगों को होती है, कि इसकी प्रशंसा हर किसी को करनी चाहिए या इसे समाचार पत्रों में बहुत पसंद किया जाना चाहिए – कोई दिलचस्पी नहीं। आप सृष्टि के लिए सृजन करते हैं, सृष्टि के लिए ही आप सृजन करते हैं। और आप बस उस रचना का आनंद लें। 

और आप बहुत अनुकूल हो जाते हैं या लोग जो बातें करते हैं उनके प्रति आप इतने सौहार्दपूर्ण हो जाते हैं, कहते हैं, “सब ठीक है, उन्हें ऐसा करने दें!” वो आपत्तिजनक होंगे या वो आपकी और उस सभी की प्रशंसा भी कर सकते हैं। इसलिए, आप नहीं जानते, कि वो आपकी प्रशंसा कर रहे हैं। यहां तक कि कभी-कभी जब आप कहते हैं, ” श्री माताजी की जय,” तो मैं भी साथ में कहती हूं और फिर मैं भूल जाती हूं कि वो मेरे बारे में बात कर रहे हैं।

किसी तरह आप उस सब से ऊपर हैं और आप वहां हैं, और आप बस यह नहीं समझ पाते हैं कि इंसान ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं, उनका व्यवहार इतना हास्यप्रद क्यों है।

यहां तक कि जब वो सहज योग में आये थे, मैं देख रही हूँ कि उनमें नेता बनने की एक बड़ी इच्छा है, या उनकी सहजयोग में एक बड़े आयोजक होने की इच्छा है, तो सहज योग में बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है। वो एक महान सहज योगी के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करना चाहते हैं । लेकिन वो ये नहीं सोचते हैं, “मैंने क्या रचनात्मकता दिखाई है? मैंने क्या बनाया है?” बस, ये सभी चीजें इंसानों में इतनी आम हैं कि वो हमेशा चाहते हैं कि दूसरे उनकी प्रशंसा करें, बहुत बड़ा प्रदर्शन करें। किस लिए? यदि आप एक आत्मा हैं जो हर कोई जानता है, तो उजागर करने के लिए क्या है? इतराने के लिए क्या है? आगे आने के लिए क्या है? अगर आप पीछे हों तो भी प्रकाश है, आपको पता है कि प्रकाश है। इसलिए आपको अपने अंधेरों से बाहर निकलना होगा क्योंकि आप प्रकाश हैं और आप प्रकाश फैलाते हैं। इसके बजाय कि अगर आप अंधेरे में हैं तो आप क्या प्रकाश फैला सकते हैं? 

इसलिए आपकी आत्मा को समस्या नहीं हो सकती है। इसको कोई भय नहीं है। लेकिन इन सबसे ऊपर है विवेक, अद्भुत विवेक । और वह एक बहुत उच्च व्यक्तित्व होने का संकेत है। 

जैसा कि मैंने आपको बताया, यह विकास है और जब आप परिवर्तित होते हैं, तो आप विकसित होते हैं। एक बहुत ही अलग प्रकृति के आप बन जाते हैं और आप अलग खड़े होते हैं। यदि सहज योगी भी अन्य लोगों की तरह हों तो सहज योग को अपनाने का क्या लाभ है? इसा मसीह क्या थे? वह बढ़ई के पुत्र थे, उन्हें कभी शिक्षा नहीं मिली। लेकिन उन्होनें क्या किया? वह आत्मास्वरुप थे । उनके भीतर परमात्मा प्रतिबिंबित थे. और इसीलिए उन्होंने खुद को सूली पर भी चढ़ा लिया। लेकिन सहज योग में आपको सूली पर चढ़ने की आवश्यकता नहीं है। आपके लिए ऐसी सभी परीक्षाएं नहीं हैं। लेकिन आपकी अपनी मूल्य प्रणाली की जाँच होनी है।

आपको यह पता लगाना चाहिए कि आप अंतर्दर्शन द्वारा कैसे कार्यान्वित हैं। आपको स्वयं से पूछना चाहिए, “तो, ठीक है, अब, मिस्टर सहज योगी- आप कैसे हैं? क्या आप उन सभी चीजों में लिप्त हैं जो कि वो लोग कर रहे हैं जो की आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं?” बस यह पता लगाने की कोशिश करें। क्योंकि सहज योग का विकास आपके व्यवहार में, आपकी शैलियों में, आपके चेहरे पर दिखाई देता है। इस तरह के व्यक्ति के कोई झुर्रियां नहीं होती हैं। उसे कोई चिंता नहीं है। अगर आप चिंता नहीं करेंगे तो आपको झुर्रियां कैसे होंगी?

ऐसा व्यक्ति किसी भी बात से परेशान नहीं होता। मेरा मतलब है, इसके विपरीत वह चीजों पर हंसता है। 

एक बार एक चर्च में, जब मैं स्विटज़रलैंड में थी, एक महिला मुझे बाइबल से मारने के लिए आई और मैं हँसने लगी, मैंने कहा, “क्या गज़ब की बात है मुझे बाइबल से चोट पहुंचानी है!” और उसे ऐसी घबराहट हुई कि मैं हँस रहीं थी और मैं कह रही थी कि, “इस महिला की मूर्खता को देखो, जो मुझे बाइबल से मारने आ रही है!” मेरा मतलब है, मैं पत्थर या किसी और चीज़ को समझ सकती हूँ लेकिन बाइबल मुझे कभी चोट नहीं देगी! ये सारी बातें आपकी उपस्थिति में हुई हैं, और आप इसके बारे में जानते हैं। 

नकारात्मक शक्तियां हैं, वो आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती हैं- वो आपको बुरी तरह से नुकसान पहुंचाएंगी, वो आपको मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाएंगी , वो आपको भावनात्मक रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं। लेकिन जब आप इससे ऊपर होते हैं तो कोई आपको परेशान नहीं कर सकता है। कम से कम आपको कभी नुकसान महसूस नहीं होता। आप नुकसान के बारे में परेशान नहीं हैं। 

लेकिन आपने बनाया क्या है? 

आज मेरे पास कुछ महिलाएं और कुछ पुरुष आये और सभी तलाक के लिए थे। सहज योग में शादी करने के बाद वो तलाक लेना चाहते हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? मैं चौंक गयी! और उनके हास्यप्रद विचार थे कि, “मेरा पति मेरे भाई जैसा है”। मैंने कहा, ” सच में?” उनके सिर में आने वाले सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार का अर्थ है कि उनमें आत्मा का कोई प्रकाश नहीं है। 

यदि आपके पास आत्मा का प्रकाश है तो आपकी समझ बहुत अलग है- आप अपने बारे में चिंता न करें, आप केवल दूसरों के बारे में चिंतित हों और आप उनके लिए समाधान खोजने की कोशिश करें। आप उनकी मदद करने की कोशिश करें। यह आपके लिए बहुत आसान है। आग को जलने के लिए इतना आसान क्या है? एक बार प्रबुद्ध होने के बाद यह जल रहा है। इसके लिए प्रकाश से बाहर जाना मुश्किल है।

लेकिन मनुष्य के लिए मुझे समझ में नहीं आ सकता, आत्मसाक्षात्कार के बाद भी, कई वर्षों तक साथ साथ बढ़ने के बाद भी वो इतना मूर्ख है कि वो उनके आत्मसाक्षात्कार का मूल्य नहीं समझ रहे हैं ।

यह कुछ है, आत्मा, आप इसे मार नहीं सकते, यह उड़ नहीं सकती। यह रोशनी बंद हो जायेगी । लेकिन आत्मा का प्रकाश समाप्त नहीं होगा। लेकिन ये तेल क्या है जो इसे वहां रखता है? आपकी करुणा है, प्रेम है, दूसरों के प्रति दायित्व है।

मुझे पता है कि ऐसे लोग हैं जो बहुत हावी होना चाहते हैं, शायद कष्टप्रद हैं, और क्या, लेकिन उनकी देखभाल करें। जान लें कि वो आपके जैसे नहीं हैं, वो पूर्ण नहीं हैं, उन्हें समस्याएं हैं, इसलिए उनकी देखभाल करें। लेकिन इसके विपरीत यदि आप यह सोचने लगें कि, “मुझे उसकी देखभाल क्यों करनी चाहिए? वह मेरी देखभाल कैसे करता है ?” या फिर कुछ ऐसा, तो आप समाप्त हो रहे हैं। तो इस प्रकार का प्रतिबिंब, या प्रतिक्रिया आत्मा की नहीं है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति की प्रतिक्रियाएँ अलग, बहुत अलग हैं। 

श्री कृष्ण के जीवन में आप देख सकते हैं कि उनका एक मित्र था जो बहुत गरीब था और वह श्री कृष्ण से मिलना चाहता था । और  मित्र की पत्नी ने उसे कुछ चावल, मुरमुरे जैसा कि आप उन्हें (फूले हुए चावल) कहते हैं और कहा कि, “अपने  मित्र के लिए ले जाएँ, आपको अपने  मित्र के लिए कुछ ले जाना चाहिए।” वह थोड़ा  संकोची थे, और जब वह श्री कृष्ण के पास गए, तो श्री कृष्ण अपने महल में थे और द्वार पर मौजूद लोगों ने कहा, “नहीं, तुम उनसे नहीं मिल सकते!” उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम बस जाओ और उन्हें बताओ कि सुदामा आया है।” वह सिंहासन पर बैठे थे, कुछ चर्चा कर रहे थे और उन्होनें कहा, “सुदामा आ गया है?” वह भाग कर द्वार पर गये और उसे गले से लगा लिया, उसे बार-बार गले लगाया और उन्होने कहा, “तुम यहाँ क्यों खड़े हो?” वह उसे ले गये और उसे सिंहासन पर बैठा दिया और स्वयं वह बैठने वाले थे और उन्होने अपनी पत्नी से कहा, ” कृप्या आओ और इनके चरण धो।” और फिर वो उसके लिए कपड़े और वह सब लाए, जिससे उसने स्नान किया था। उन्होने उसे अपने बिस्तर पर सुला दिया। श्री कृष्ण का प्रेम देखिये. उसके बहुत गंदे पैर थे, सभी फटे थे। उन्होंने उस पर औषधि लगाने की कोशिश की जिससे वो सब ठीक हो जाएँ । उन्होने उन बिवाईयों को ठीक करने के लिए जो संभव था करने की कोशिश की और उन्होने उसे अपने बिस्तर पर सोने के लिए कहा। और महिलाओं से कहा कि वह पंखा झलती रहें जिस से उसे गर्मी ना लगे। 

देखिये श्री कृष्ण की करुणा को कितनी खूबसूरती से दिखाया गया है। क्या हम करुनामय हैं? उनके लिए ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, यह कोई नाटक नहीं था, कुछ भी नहीं, लेकिन उनके हृदय ने एक सहज निर्णय लिया। जब उन्होनें सुना, कि सुदामा वहां है, वह बस वहां दौड़ गए। वह बस इतना प्रसन्न लग रहे थे कि, “मेरा पुराना मित्र आ गया है”। 

फिर जब वह हस्तिनापुर गए, वहाँ दुर्योधन, कौरवों के ज्येष्ठ पुत्र, ने उनसे पूछा, “आप क्यों नहीं मेरे महल में आ कर ठहरते हैं?” उन्होंने कहा, “ठीक है, मैं आ सकता हूं, लेकिन मैं जाऊंगा और विदुर के साथ भोजन करूंगा ।” विदुर दासी के पुत्र थे। वह गये और विदुर के साथ अपना भोजन किया । अब विदुर, एक गरीब होने के नाते, मुझे नहीं पता कि उन्होंने उनको क्या भोजन दिया होगा, जबकि दुर्योधन ने उन्हें बहुत बढ़िया भोजन दिया होता। 

तो ऐसे लोगों के लिए स्वाद और भोजन का स्तर और ये सब मायने नहीं रखते । यह प्रेम है। 

विदुर का सम्मान, जो एक आत्मसाक्षात्कारी थे; अन्य सहज योगियों का सम्मान करना । यदि सहज योगी किसी ऐसे व्यक्ति का सम्मान करता है जो राज्यपाल है – मुझे समझ में नहीं आता है। आत्मा किसी भी चीज से सर्वोपरि है – और जो सहज योगी का सम्मान नहीं करता है उसके साथ कुछ गलत है। उसे समझना चाहिए कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति इन सभी लोगों की तुलना में  श्रेष्ठ है, जिनके पीछे इतने प्रकार के बड़े बड़े ओहदे हैं। 

और वह प्रेम हर किसी के जीवन में दिखाया गया है- सभी संत, सभी अवतरण, हर किसी के पास वह प्रेम था, जो बिना किसी अपेक्षा के, हर चीज से ऊपर था, और यह किसी से भी बिना किसी अपेक्षा के था. यह एक प्रकार का व्यक्तित्व है, जो वास्तव में परमात्मा के प्रेम को दर्शाता है। वह प्रतिबिंब आपसे झलकना चाहिए। 

आप सहज योगी हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरों की तुलना में ऊंचे हैं, लेकिन आप अलग हैं, आप उनसे परे हैं। आपकी कोई श्रेष्ठता नहीं है, इसीलिए आप अलग हैं। आप इतने विनम्र हैं, इसीलिए आप अलग हैं। आप इतने आनंदित हैं, आप इतने शांत हैं इसलिए आप विनम्र हैं।

श्री कृष्ण के जीवन से बहुत सी बातें मैं आपको बता सकती हूँ, वह दिखाते हैं – उन्हें योगेश्वर कहा गया – वो योग के ईश्वर थे। यह इसलिए की वो विराट थे। लेकिन उन्होंने अपना रूप, केवल अर्जुन को दिखाया और किसी को नहीं, क्योंकि कोई भी अर्जुन जैसा नहीं था। अर्जुन भी भयभीत हो गए थे जब उन्होनें देखा था।

इसलिए वह श्री कृष्ण की तरह रहते थे, एक ग्वाले की तरह गोकुल में रहते थे और उन्होनें कभी अपनी शक्तियों को प्रदर्शित नहीं किया। उनकी शक्तियाँ उनके भीतर समाहित थीं, जो सहज रूप से व्यक्त हो रही थीं। इस शक्ति में विवेक और बुद्धिमता है, पूर्ण बुद्धिमता। यदि यह नहीं है, तो यह ईश्वरीय शक्ति नहीं है, यह कुछ शैतानी शक्ति है। 

क्योंकि कोई व्यक्ति आपके लिए अच्छा है, और यदि आप उस व्यक्ति के लिए अच्छे हैं तो इसमें कुछ भी खास बात नहीं है।

अधिकतर भारत में ऐसे लोग थे जिन्हें अवधूत कहा जाता है । वो आत्मसाक्षात्कारी थे,जो समाज से दूर चले गए थे, जनसाधारण से दूर चले गए थे और किसी छोटी सी जगह, या किसी छोटी जगह में या गुफा या किसी जगह में रहते थे, दूसरों से छिपे हुए थे। क्योंकि उन्हें लगता था कि कोई उन्हें समझेगा नहीं, इसलिए उनसे बात करने का क्या  लाभ? वो सब अकेले हो गए थे, एक व्यक्ति यहाँ, और एक व्यक्ति वहाँ. वो क्या कर सकते थे? वो आप जैसे नहीं थे, जैसे एक साथ कई सहज योगी। आपके बहुत सारे  मित्र हैं और आपके साथ इतने सारे लोग हैं। वो अकेले लोग थे और उन्होंने खुद को समाज से छिपा लिया था। वो लोगों से नहीं मिलते थे क्योंकि अगर उन्होंने कुछ भी करने की कोशिश की तो उन्हें सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। लेकिन आप लोग नहीं क्योंकि आपके एक समाज में हैं, आपके पास एक सुंदर प्रबुद्ध समाज है, बहुत अच्छे  मित्रों का, बहुत अच्छे आध्यात्मिक लोगों का। अब इन सब के साथ, यदि आप सृजन नहीं कर सकते हैं, तो मैं क्या कहूं? 

आपको कुछ सृजन करना होगा, शायद कला, शायद संगीत, शायद कविता, शायद साहित्य, लेखन हो सकता है, जो कुछ भी है, आपको सृजन करना ही होगा। और इन सबसे ऊपर आपको सहज योगी बनाने होंगे, यही मुख्य सृजन है आपको प्राप्त करना है। और आपके साथ मुख्य बात यही है की आप सहजयोगी बना रहे हैं। 

मैं हूं यहाँ, मैं सब स्थानों पर जा सकती हूं, कार्यक्रम कर सकती हूं, सब कुछ कर सकती हूं, लेकिन आपको अपने स्वयं के उदाहरण से दिखाना होगा कि यह कुछ महान वस्तु है- “उन्होंने इस अवस्था को कैसे प्राप्त किया है? हमें भी उस अवस्था को प्राप्त करना चाहिए!”

तो आप ही वो होंगे जो वास्तव में उन्हें प्रेरित करेंगे, जो वास्तव में उनको अपने पीछे लायेंगे और एक सहज योगी के जीवन में ढाल लेंगे। 

वास्तव में आप महायोगी हैं यदि आप पूर्ण हो जाते हैं, और आपको पूर्ण होना है। महायोगी बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है, जिसके द्वारा आपकी आत्मा सभी को आनंद, शांति एवं आशीर्वाद देती है।

परमात्मा आपको आशीर्वादित करें.