Christmas Puja

Ganapatipule (भारत)

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Christmas Puja IS Date 25th December 2000: Ganapatipule Place: Type Puja

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

आज का शुभ दिवस है जो मनाया जाता है। कारण ईसामसीह का जन्म कहते हैं को जानो’। यह कहते हुए भी लोगों ने इस कि आज हुआ था। ईसामसीह के बारे में चीज़ का महत्व नहीं समझा और धर्म फैलाना लोग बहुत कम जानते हैं क्योंकि वो छोटी शुरू कर दिया। अपने को जाने बगैर ही उम्र में बाहर चले गए थे और उसके धर्म फैल नहीं सकता, धीरे-धीरे वो बाद वापिस आकर के उन्होंने जो महान अधर्म हो जाता है और यही बात ईसाई कार्य किए वो सिर्फ तैंतीस (33) वर्ष के उम्र धर्म की हो गई | जैसे कि ईसामसीह एक तक ही थे। उसके बाद उनके जो शिष्य विवाहोत्सव में गए थे, शादी में गए थे और थे, बारह उन्होंने धर्म का प्रचार किया लेकिन वहाँ पानी में हाथ डाल के उन्होंने उसकी जैसे आप लोगों को भी समस्याएं आती हैं शराब बना दी ऐसा लिखा हुआ है हिब्रु में उसी प्रकार उनको भी अनेक समस्याएं कहा जाता है जिसमें कि यह बात लिखी आईं। पर इन बारह आदमियों ने बहुत गई है शुरूआत में, कि वो पानी जो था कार्य किया और शुरूआत के जो लोग उसका परिवर्तन जो हुआ सो जैसे कि इनको मानते थे उनको (Gnostics) कहते थे। ग्नोस्टिक माने और अंगूर के रस को भी उसमें वाईन “जिन्होंने जाना है। ‘जन्म’ से आता है ग्नः, (wine) नहीं कहते। इसी बात को लेकर ग्नः माने जानना। और इन लोगों को भी के ईसाईयों ने कहा कि चलो यह तो बहुत सताया गया, इस वक्त के जो प्रीस्ट हमको मना नहीं है, शराब पीनी चाहिए (priest) वगैरह. लोग थे उन्होंने बहुत बार-बार कहा है कि ‘अपने को जानो अपने ग्नोस्टिक अंगूर का रस। इस तरह उसका स्वाद था और इस तरह से ईसाईयों में शराब बहुत चल पड़ी। शराब अधर्म लाती है, शराब से सताया । मनुष्य विचलित हो जाता है ऐसी बात कैसे इसलिए शुरूआत में बड़ी तकलीफ से ईसामसीह कहते? यह तो बहुत आसान ईसामसीह की बातें लोगों में भर दी गई। चीज़ है, हम भी कर सकते हैं, पानी में हाथ फिर जो उस वक्त सबको आत्मसाक्षात्कार डालकर के हो सकता है कि उसका स्वाद प्राप्त नहीं हुआ था और ईसामसीह ने बदल दें। लेकिन इतनी लोग शराब पीने ন

लग गए, हम तो हैरान हैं! इंग्लैंड में हम के नाम पर अधर्म करना मैं सोचती हूँं गए थे तो वहाँ तो कोई मरता था तो भी महापाप है और इस प्रकार सब गलत-गलत बातों को लोग अपना लेते हैं। उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि आपके अन्दर बैठ कर शराब, कोई पैदा होता था तो भी शराब, बात-बात में शराब और इतनी शराब चल पड़ी कि अब शराब के सिवा बात ही जो आज्ञा चक्र है उसका भेदन करें और नहीं करते। किसी के घर जाइए तो पहले इसलिए उन्होंने अपने को क्रॉस (cross) वो शराब देंगे, अगर आप शराब नहीं पीते पर टाँग दिया और फिर उसके बाद फिर तो वो समझ नहीं सकते कि आपसे बात से जीवित हो गए। यह चमत्कार लगता है क्या करें। इस प्रकार इसका प्रचलन गलत लेकिन परमेश्वरी कार्य को चमत्कार कोई चल पड़ा और अगर कोई कहे कि ईसामसीह चीज़ नहीं। यह उन्होंने दिखाया कि इन्सान ने ऐसा किया तो इससे बढ़ के गलत बात इस आज्ञा चक्र से बाहर जा सकता है और और कोई हो नहीं सकती। कभी भी कोई आज्ञा चक्र पे इन्होंने दो मन्त्र बताएं हैं इसे भी अवतरण आते हैं वो कभी भी आपको हम बीज मन्त्र कहे हैं हूँ और क्षम्’ । क्षम् ऐसी बात नहीं सिखाएंगे कि जो आपके का मतलब है क्षमा करो। क्षमा करना, यह धर्म के विरोध में है। अब वो शराब का सबसे बड़ा मन्त्र है जो आदमी क्षमा करना | प्रचलन बढते-बढ़ते हिन्दुस्तान में भी आ जानता है उसका ईगो (Ego) जो है या गया। जब हम लोग छोटे थे तो यहाँ उसका जो अहंकार है वो नष्ट हो जाता अंग्रेज़ों का राज था, कोई हिन्दुस्तानी लोग है । छोटी-छोटी बात में आदमी में अहंकार शराब नहीं पीते थे, जहां तक हम जानते होता है जैसे किसी से कह दिया भाई तुम हैं। हाँ कोई कोई रईस लोग पीते होंगे, बैठ जाओ जमीन पर तो उनका अहंकार लेकिन कोई नहीं पीता था और अब जिसको हो गया, अगर कहा कुर्सी पर बैठो तो देखो वो ही शराब पी रहे हैं और शराब में कहेंगे कि यह छोटी कुर्सी है हमको क्यों कितनी दुर्दशा होती है वो कोई जानता ही दी? हर एक मामले में मनुष्य को अपने बारे नहीं है और सोचता नहीं है और गलत में बड़ी कल्पनाएं होती हैं और वो कोई ज़रा सा कल्पना से कम चीज किसी ने की कि उसका अहंकार एक दम खड़ा हो जाता काम करते हैं । तो पहली चीज़ भई बताना चाहती हूँ है। कभी-कभी अन्जाने में भी ऐसी बात हो कि जो यह ईसाई लोग शराब पीते हैं तो सकती है और अन्जाने में भी कोई आदमी बड़ा धार्मिक कार्य नहीं करते हैं। यहाँ तक कुछ ऐसी बात करे तो जो आदमी अहंकारी कि इनके रोम में जो चर्च है वहाँ एक होता है उसको हर एक चीज़ में लगता है शराब बनाते हैं। धर्म से अधर्म करना, धर्म कि उसका अपमान हो रहा है। इस तरह

से वो हर समय एक अजीब सी हालत में लिए दिया है। और दूसरा हँ-हूँ जो है यह रहता है कि कोई भी उसके लिए करो ‘क्षम्’ से बिल्कुल उलटा अर्थ रखता है। हं काम तो सोचता है कि उसका अपमान हो माने यह जान लो तुम क्या हो। यह जान रहा है. उसको नीचा दिखाया जा रहा है लो कि तुम आत्मा हो, तुम यह शरीर, बुद्धि, यह दिमाग में बात बैठी रहती है और फिर मन, अहंकार आदि उपाधियाँ नहीं पर तुम आप सीधी भी बात करो, चाहे नहीं भी करो आत्मा हो और इस ‘हूँ को जानकर के आप समझ लोगे कि मैं आत्मा हूँ सबका एक ही अर्थ निकलता है। इसलिए देखना चाहिए और सोचना यह चाहिए कि जो ईसामसीह ने कहा है कि गलत-सलत बातें हमारे दिमाग में घमंड आपको अगर किसी के लिए भी ऐसा लगा से, गर्व से, मूर्खता से, अज्ञान से आई हुई आत्मा का मतलब यह है कि कितनी भी कि उसने आपका अपमान किया या उसने हैं यह सब बेकार हैं, इनका कोई अर्थ नहीं आपको दिया, तकलीफ दी तो उसे बनता। तुम साक्षात जब स्वच्छ आत्मा हो दुख आप क्षमा कर दो। अब देखिए अगर आप तो इस आत्मा में यह सब चीज आती नहीं सबको क्षमा कर दें तो क्या हो जाएगा? और तुम अत्यन्त पवित्र हो। सो दो चीजे आपको कोई तकलीफ नहीं हो सकती, उन्होंने बताई एक तो यह कि आप आप परेशान नहीं हो सकते। जब आपने सबको क्षमा कर दो। कोई ज्ञान से, क्षमा ही कर दिया तो उस बारे में आप सोचेंगे ही नहीं और कोई ऐसी घटना हो दो जिससे आप को तकलीफ नहीं होगी ही नहीं सकती कि जो आपके विपरीत हो क्योंकि क्षमा करिये न करिये आप करते अज्ञान से कुछ भी कुछ कहे क्षमा कर क्योंकि आप सबको क्षमा करते रहते हैं। क्या हैं? कुछ भी नहीं। पर जब आप क्षमा यह शक्ति हमें आज्ञा चक्र से मिलती है। नहीं करते हैं तब आप अपने को सताते हैं जिसका आज्ञा चक्र अच्छा होता है वो सबको और तंग करते हैं और जिस आदमी ने क्षमा कर देता है और नहीं तो दूसरा मार्ग आपको दुख दिया, तकलीफ दी वो तो मजे क्या? अगर आप क्षमा नहीं करेंगे तो आप में बैठा है। तो इस तरह से आप देखें कि अपने ही को तकलीफ देंगे, अपने ही को कोई ऐसी बात हो उसे आप क्षमा करने की परेशान करेंगे और जो दूसरा आदमी है वो आदत डाल लें। हो सकता है उसने जान बूझ कर आपका दूसरी बात जो कही है उन्होंने कि तुम जाएगा इसलिए क्षमा करना उन्होंने बड़ा आत्मा हो, इस आत्मा को जानो। आत्मा भारी एक बड़ा भारी सन्देश मानव जाती के को तो कोई छू नहीं सकता, नष्ट नहीं कर अपमान किया है तो वो और बलवत्तर हो

सकता, उसको सता नहीं सकता। अगर भटकते रहते हैं, तो भी वो गहन नहीं आप वो आत्मा स्वरूप हैं तो उसमें पूर्णतया समविलीन होना चाहिए। लेकिन इस आत्मा है और उसके ओर लक्ष्य कर के अगर आप तत्व को प्राप्त करने के लिए आप देखें तो आप समझ जाएंगे कि यह आज्ञा जानते हैं कि कुण्डलिनी का जागरण होना जरूरी है और कुण्डलिनी के जागरण के बाद उसमें स्थित होना विचारों के चक्करों में पड़े हैं, नाना आते। तो केन्द्र बिन्दु अगर आपका आज्ञा चक्र आपको घुमा रहा है। इस आज्ञा चक्र की वजह से आप चक्करों में पड़े हुए हैं, हुए तरह की उपाधियाँ इससे लग रही हैं। पर पड़ता है, उसमें बैठना पड़ता है जब तक आप उसमें स्थित नहीं होंगे तब तक आप छोटी-छोटी बातों में उलझे इससे परे आप चले जाएंगे तब आप में यह रहेंगे । जब इस आज्ञा चक्र को आप लांघ जाएंगे, जो व्यथा है वो खत्म हो जाएगी। इसलिए आज्ञा चक्र का महात्मय माना जाता है। तो अपने में समाना आना चाहिए, अपने यहाँ तक कि बाईबल (Bible) में लिखा ही अन्दर समाना चाहिए। अपने अन्दर जब हुआ है कि जो आदमी माथे पर टीका आप समाने लग जाएंगे तो आपके अन्दर एक नितान्त शान्ति प्राप्त होगी और आप ऐसा। वो सहजयोगी होंगे और कौन होगा! विचलित नहीं होंगे। इस शान्ति के दायरे काम तो प्रचण्ड है। वो बारह (12 ) आदमी में जब आप रहेंगे तो आपको आश्चर्य होगा थे, आप लोग हजारों हैं। लेकिन एक-एक कि आप जो छोटी-छोटी चीजों के लिए हर समय परेशान रहते थे वो नहीं रहेंगे, एक सहस्त्रांश भी आप लोगों ने नहीं की आत्मा के आनन्द में आप डूबे रहेंगे। इस है, अन्यथा न जाने कहाँ से कहाँ यह कार्य आत्मा को प्राप्त करने के लिए मैंने कहा फैल सकता! अब मेरे लिए तो यही एक लगा कर आएगा वो बचेगा, लिखा है आदमी ने वहाँ जो मेहनत की है उसके कि कुण्डलिनी का जागरण अत्यावश्यक है आधार है कि आप लोग सहजयोग को उसके लिए, उसके बगैर हो नहीं सकता। बढाएंगे और सारे विश्व में इसे फैलाएंगे। पर होने पर भी, जागरण होने पर भी लोग परमात्मा आपको धन्य करें।

[Hindi translation from English talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

मुझे खेद है कि मुझे हिन्दी भाषा में पड़ा और उस बलिदान में उन्होंने दर्शाया बोलना पड़ा क्योंकि यहाँ उपस्थित बहुत से कि मनुष्य को यदि सांसारिक बनावटी जीवन लोग सिर्फ हिन्दी भाषा समझते हैं। मैं जब से ऊपर उठना है तो उसे बलिदान करना बाहर होती हूँ तो केवल अंग्रेजी बोलती हूँ, पड़ेगा। क्या बलिदान करना पड़ेगा? आपको इसके अतिरिक्त कोई और भाषा नहीं । अपने षड्रिपु (काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर, इसलिए कभी-कभी मुझे परिवर्तन की भी लोभ) बलिदान करने पड़ेंगे। परन्तु कुण्डलिनी की जागृति के साथ ये षड्रिपु छुट जाते हैं। ऐसा होना इस बात पर निर्भर करता है ईसा-मसीह के महान अवतरण के बारे कि आपकी कुण्डलिनी कितनी जागृत हुई। में मैंने इन्हें बताया कि एक महान लक्ष्य कृण्डलिनी यदि पूर्ण रुपेण उठ जाए लेकर वे पृथ्वी पर अवतरित हुए। वे आज्ञा तो. मैंने देखा है पहली बार में ही चक्र को खोलना चाहते थे जो कि बहुत ही लोग पूर्ण साक्षात्कारी हो जाते हैं ऐसे संकीर्ण है और इससे पूर्व ये कभी न खोला लोग बहुत कम हैं, परन्तु ऐसे लोग हैं। इच्छा होती है। जा सका था। इस महान कार्य को करने के लिए उन्हें अपना जीवन बलिदान करना परन्तु मुझे लगता है कि आपमें से पड़ा। उनके इस बलिदान के कारण ही अधिकतर लोगों के साथ कुछ न कुछ यह संकीर्ण चक्र खुल पाया। उन्हें इस बात समस्याएं हैं और अधिकतर को आज्ञा चक्र का ज्ञान था। वो जानते थे कि घटनाक्रम की समस्या है। हमारा आज्ञा चक्र इसलिए 1 ऐसे ही घटित होगा और उन्हें अपना बलिदान बहुत अधिक चलता है क्योंकि हम सभी स्वीकार करना होगा वे दिव्य पुरुष थे। बाह्य वस्तुओं को देखकर प्रतिक्रिया के ऐसा करने में उन्हें कोई समस्या न थी रूप में सोचते हैं, हर चीज़ के प्रति हम परन्तु उन्होंने सोचा कि ऐसा किए बिना प्रतिक्रिया करते हैं। यहाँ मैं ये सारे लैम्प यदि ये कार्य हो सके तो अच्छा है। परन्तु देख रही हूँ। इनके बारे में मैं प्रतिक्रिया कर अन्ततः उन्हें अपना जीवन बलिदान करना सकती हूँ और पूछ सकती हूँ कि आप.

लोग इन्हें कहाँ से लाए, इन पर कितना इस प्रकार होती है जैसे मैं ये लैम्प देखकर पैसा खर्च हुआ, वर्ष भर इनको कहाँ रखते कह सकती हूँ कि मैं क्यों नहीं इन्हें ले हैं आदि-आदि? मैं प्रतिक्रिया कर सकती सकती, या यदि ये मेरे पास हैं तो किसी हूँ। यह प्रतिक्रिया हमारे अहं एवं बन्धनों के और को मैं क्यों दूँ? या तो अहं की प्रतिक्रियाएं कारण होती है। अहंकारी लोग अत्यन्त होती है या प्रतिअहं की। इन दोनों का संवेदनशील होते हैं। आप उन्हें यदि ऐसी समाप्त होना आवश्यक था और ये कार्य चीज दें जो बहुत गरिमामय नहीं है तो ईसामसीह के जीवन बलिदान द्वारा किया उन्हें खेद होता है । किसी भी चीज़ के गया ईसा मसीह दिव्य पुरुष थे और दिव्य विषय में उनके हृदय को चोट पहुँचती है पुरुष सागर की तरह होते हैं और सागर क्योंकि अपनी चेतना के कारण वे स्वयं को शून्य बिन्दू (0°) पर होता है। निम्नतम स्तर कुछ विशेष, कुछ ऊँचा मानते हैं। उनसे पर रहते हुए यह सारे कार्य करता है, व्यवहार करते हुए हमें बहुत सावधान रहना बादलों का सृजन करता है, वर्षा बनाता है चाहिए क्योंकि यदि उन्हें ये महसूस हो और वर्षा के पानी से जब सभी नदियाँ भर जाए कि कोई उनका तनिक सा भी अपमान जाती हैं तो वे लौटकर समुद्र में आ जाती कर रहा है तो वे पूर्णतः क्षुब्ध हो जाते हैं। हैं क्योंकि समुद्र का स्तर निम्नतम होता यह अहं की देन है। अहं आज्ञा चक्र की है । गतिविधि का एक भाग है। बन्धन अतः विनम्रता सहजयोगी का एक (Conditioning) इसका दूसरा भाग है । मापदण्ड है। विनम्रता विहीन व्यक्ति अब आपके साथ एक बन्धन है, जैसे को सहजयोगी नहीं कहा जा सकता। आप भारतीय हैं तो आपका बन्धन ये है कि मैंने देखा है, सहजयोगी भी कभी-कभी बहुत क्रुद्ध हो जाते हैं, चिल्लाने लगते हैं, दुर्व्यवहार करने लगते हैं। ये व्यवहार दर्शाता है कि वे अभी तक सहजयोगी नहीं है और कोई यदि आपसे मिलने आए तो वह आपके चरण-स्पर्श करे। मान लो वो आपका सम्बन्धी है और आपके चरण नहीं छूता तो आप नाराज हो जाते हैं। इस प्रकार का अभी उन्हें परिपक्व होना है। ये विनम्रता कोई भी बन्धन आपके मन में ये विचार व्यक्ति को अधिक स्थायित्व देती है मैं पैदा करता है कि आपको अपमानित किया कहूँगी कि एक अधिक स्थायी अवस्था जा रहा है, आपका सम्मान नहीं किया जा जिसके कारण आप प्रतिक्रिया नहीं रहा और यह बात आपको बुरी लगती है। करेंगे, किसी भी चीज को देखकर आप अहं की अन्य प्रतिक्रियाएं जैसे मैंने बताया प्रतिक्रिया करते हैं, परन्तु तब आप प्रतिक्रिया

नहीं करेंगे। वस्तु को केवल देखेंगे और व्यक्ति को महान नहीं बनाती। महानता इस प्रकार आपमें एक नई अवस्था, साक्षी तो अन्त्निहित है और जब ये महानता अवस्था का उदय होगा जब आप साक्षी अन्दर होती है तो आप बाह्य वस्तुओं की बन जाएंगे तो केवल देखेंगे, प्रतिक्रिया चिन्ता नहीं करते। तब आप अपने अन्दर नहीं करेंगे, इसके विषय में सोचेंगे नहीं । इतने वैभवशाली हो चुके होते हैं कि आपको बाह्य चीज़ों की चिन्ता नहीं होती। बिना तब आप वर्तमान में होंगे। वर्तमान में आप देखते हैं और वास्तव में आनन्द लेते हैं। इन चीज़ों की चिन्ता किए आप गौरवमय सोचते हुए किसी भी कृति का आनन्द जीवन व्यतीत करते हैं। ईसा मसीह के आपके मस्तिष्क में नहीं होता परन्तु जीवन से भी हमें यही बात देखने को जब आप निर्विचार होते हैं तो उस मिलती है। वे अत्यन्त गौरवशाली व्यक्ति कृति के सौन्दर्य का पूर्ण आनन्द आपमें थे अन्यथा कोई गरीब व्यक्ति तो, जिसने प्रतिबिम्बित होता है और आपको गरीबी का स्वाद चखा हो, भिखारियों की अगाध शान्ति एवं आनन्द प्रदान करता शैली में बात करेगा। यदि किसी धनवान है। अतः व्यक्ति को सीखना है कि परिवार में जन्में व्यक्ति से आप बात करेंगे उसे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए । तो वह अत्यन्त बाह्य दिखावे के स्वभाव से आज की मुख्य समस्या ये है कि सभी बातचीत करेगा परन्तु दिव्य पुरुषों को ये मनुष्य प्रतिक्रिया करने में अत्यन्त कुशल सब चीजें छूती तक नहीं। उनके लिए हैं। प्रतिक्रिया करना आज के समाज का अमीरी-गरीबी, उच्च पद या सत्ता का अभाव, सिद्धान्त है। किसी भी समाचार पत्र सभी स्थितियाँ एक सम हैं। ऐसी स्थिति प्रमुख या पुस्तक को आप उठाएं तो आपका सामना जब आपमें विकसित हो जाए तब आपको ऐसे लोगों से होगा जो प्रतिक्रिया करने में मानना चाहिए कि आप सहजयोगी बन गए कुशल हैं, वे प्रतिक्रिया करते हैं और उस हैं। मैंने देखा है कि गणपति पुले आने वाले प्रतिक्रिया के कारण विषय के सार तत्व लोग अब बहुत परिवर्तित हो गए हैं । आरम्भ तक नहीं जा पाते। सार तत्व को तो केवल में तो जब लोग वहाँ आते थे तो कहा करते साक्षी अवस्था द्वारा ही पाया जा सकता ये हमें पानी नहीं मिलता, यहाँ फलाँ है। ईसा-मसीह के बलिदान से हमें यही सुविधा नहीं मिलती, यहाँ गर्मी है या सर्दी सीखना है। उनका जन्म एक अत्यन्त गरीब है। हर समय वे ऐसे बात करते थे मानो एवं विनम्र परिवार में बहुत ही कठिन छुट्टी बिताने के लिए आए हों। सहजयोग परिस्थितियों में हुआ। लक्ष्य ये दर्शाना बिल्कुल भिन्न है । यहाँ पर आप अपनी था कि बाह्य पदार्थ, बाह्य शानो-शौकत साक्षी अवस्था विकसित करने के लिए हैं। ০

आपने आज आकाश को देखा यह कितना कि किस प्रकार ये आपको अपने जाल में सुन्दर था! किस तरह नारंगी और नीले फँसाने का प्रयत्न करता है। आज के युग रंग आकाश में बिखरे हुए थे! स्वतः ही की यही समस्या है और इसीलिए हमें आज इसमें रंग उठते हैं और इनका यह आनन्द ईसामसीह की अत्यन्त आवश्यकता है। लेता है। इस बात की भी चिन्ता नहीं करता ये रंग सदैव बने रहने चाहिए। इस बात की भी इसे चिन्ता नहीं होती कि बात को नहीं समझते कि अहंवादी बनकर अंधेरा होते ही ये सब रंग समाप्त हो जाएंगे! वे स्वयं को, अन्य लोगों को पूरे, विश्व को आज की समस्या ये है कि लोग इस ये मात्र देखता है। आकाश साक्षी रूप से कितनी हानि पहुँचा रहे हैं। यदि वो इस देखता है और जो भी कुछ उसे उपलब्ध बात को समझ लें तो, मैं आपको बताती हैं हो जाए उसे ले लेता है। यही कारण है कि, वो इसे त्याग देंगे। परन्तु समस्या ये है कि यह इतना सुन्दर है और इतना इसका आनन्द लेते हैं! इस प्रकार की तुच्छता या अधम जीवन का आनन्द लेते हैं! आप सब लोग सहजयोगी हैं, आपको तो एक अन्य बात ये है कि जब आप यो समझना चाहिए कि ये अहं मेरी खोपड़ी कि लोग आनन्ददायक। आध्यात्मिकता की उस अवस्था में होते हैं पर क्यों सवार हो रहा है? मैने ऐसा क्या तो आप अत्यन्त शान्त एवं सुहृद होते हैं किया है? मैं कौन हूँ? एक बार जब इस और परस्पर प्रेम करते हैं। अहं की सभी प्रकार के प्रश्न पूछने लगते हैं तो ये अहं समस्याएं लुप्त हो जाती हैं। मेरे विचार से लुप्त हो जाता है। अहंकारी लोगों से व्यवहार अहं ही आपके जीवन के सारे वैभव करना मेरे लिए भी बहुत बड़ी समस्या है एवं सौन्दर्य को बाधित करता है। आप क्योंकि मैं उन्हें बता नहीं पाती कि तुम्हारे यदि इस अहं को मात्र देख सकें कि अन्दर अहं है। ये बात यदि मैं उन्हें बता दूं तो वे दौड़ जाएंगे। यदि मैं उन्हें ये कहूँ कि यह किस प्रकार कार्य करता है तो तुम ठीक हो, बहुत अच्छे हो, भले हो. तो उनका अहं और अधिक बढ़ जाएगा और वे कहेंगे ओह! श्रीमाताजी ने मुझे कहा को देख सकते हैं। साक्षी रूप से देखने पर है मैं बड़ी समस्या बहुत आप आनन्द में आ जाएँगे। यह एक प्रकार का नाटक करता है। आप इस नाटक बहुत बहुत अच्छा हूँ ये लोग अचानक समझ जाते हैं कि आप इस है। मेरी समझ में नहीं आता कि मनुष्य के नहीं है, आप तो मात्र इसे अहं को किस प्रकार ठीक करुं! मैं जानती अहं में फंसे हुए देख रहे हैं। अपने अहं से जब आप निर्लिप्त हूँ उनमें अहं है परन्तु ये नहीं जानती किस होते हैं तो आप इस बात को देख पाते हैं प्रकार व्यवहार किया जाए। यदि आप ये

बात समझ लें कि आपमें क्या दोष है तो मैं होना चाहिए? मुझे ये क्यों सोचना चाहिए सोचती हूँ कि आप इस कार्य को कर कि मैं बहुत महान हूँ? अन्य लोग भी आपके सकते हैं। आपकी अपनी तथा मेरी समस्या अहं को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे आपसे को सुलझाने का यह अत्यन्त उत्तम् उपाय है । लाभ उठाना चाहते हैं। वो आपके अहं को बढ़ावा देंगे, कहेंगे कि ये बहुत महान बात है, आप बहुत महान है, और आप उन्मत हो मेरा स्वप्न इतना महान है कि इसे एक जाएंगे मानो आपको मूसलधार वर्षा में फैंक जीवन में पूरा नहीं किया जा सकता। मैं दिया गया हो, और अहंकारग्रस्त लोगों की चाहती हूँ कि विश्व के सभी लोग बाढ़ की तरह से आप पनप उठते हैं। आत्मसाक्षात्कार पा लें। जिस प्रकार सहज इर्द -गिर्द यदि आप देखें तो संस्कृति में हमने अहं से मुक्ति प्राप्त करने आधुनिक काल में सभी लोग अपने अहं अपने का प्रशिक्षण पाया है यह अत्यन्त प्रशसनीय प्रति अत्यन्त सजग हैं। जिस प्रकार उनके है। आप स्वयं अन्तर्अवलोकन कर सकते नाम समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में आते हैं, स्वयं। आप देख सकते हैं कि आपका हैं मुझे आश्चर्य होता है। वहाँ मेरा नाम आचरण ऐसा क्यों है। जिस प्रकार यदि छपता तो मुझे लज्जा आती क्योंकि सहजयोगी अन्तर्वलोकन कर सकते हैं वैसे यह मात्र आपके अहंकार की अभिव्यक्ति है अन्य नहीं कर सकते। क्योंकि सहजयोगी और भी नहीं । लोग भिन्न प्रकार के कुछ कार्य आरम्भ करते हैं, ये उनके अहं की अपनी गहनता में पेंठ सकता हैं, वे स्वयं, स्वयं को देख सकते हैं, वे अन्य लोगों को स्पर्धा है। बहुत प्रकार की स्पर्धाएं हैं जैसे देख सकते हैं और इस प्रकार वो ये देखने सौन्दर्य स्पर्धा, मिस्टर इंडिया स्पर्धा आदि। का प्रयत्न कर सकते है कि ये श्रीमान अहं ये सभी चीजें व्यक्ति के अहं को बढ़ावा आपकी खोपड़ी में क्या कर रहे हैं? निःसन्देह देती हैं और लोग इन स्पर्धाओं के पीछे हम ये भी जानते हैं कि ईसामसीह का मंत्र दौड़ते रहते हैं। वो सोचते हैं ‘क्यों न मैं भी अहंकार की बाधा को दूर करने का सर्वोत्तम मृतपर्याय 1 ऐसा ही बनू? तो ये सभी चीजें उपाय है, ये हमारी बहुत सहायता करता करने वाली हैं और आपके मस्तिष्क को है। परन्तु ये मन्त्र लेते हुए आपको अत्यन्त विनम्र अवस्था में होना चाहिए। आखिरकार हैं कि सफलता प्राप्त करने का यही तरीका पूरी तरह से ढक लेती हैं और आप सोचते मैं हूँ कौन? इतने सारे सितारों और सुन्दर है। इस प्रकार की सफलता अधिक समय वस्तुओं को देखने वाला ‘मैं कौन हूँ? मैंने तक नहीं चलती। शीघ्र ही समाप्त हो जाती क्या किया है? क्यों मुझे इतना अहंकारी है । প

सहजयोग में प्राप्त की गई सफलता का अनुसरण करते हैं? क्या इस बात की कल्पना आप कर सकते हैं? ईसामसीह का का विनम्र स्वभाव है उसे पीढ़ियों तक याद अनुसरण करने का क्या यही तरीका है? किया जाएगा। किसी अहंकारी व्यक्ति का स्वयं को ईसाई कहलाने वाले और स्वयं पुतला मैंने कहीं लगा हुआ नहीं देखा। को ईसामसीह का अनुयायी बताने वाले इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अहंकारी लोगों को अपने जीवन में ईसामसीह की था तो लोगों ने उसे विशेष रूप से अहंकारी वह विनम्रता, करुणा व प्रेम दर्शानें चाहिए। शाश्वत होती है। जिस व्यक्ति में इस प्रकार कहा। अब भी ये बात असम्भव है कि परन्तु ऐसा नहीं है। किसी अहंकारी व्यक्ति की प्रशंसा में गीत अतः पश्चिमी देशों से आए हुए आप गाए जाएं या उसका पुतला लगाया जाए। सभी लोग सहजसंस्कृति को सीखने का तो अपने हृदय में हम विनम्र लोगों को प्रयत्न करें। सहज संस्कृति में हम किस पसन्द करते है और यदि हम चाहते है कि प्रकार बात करते हैं, किस प्रकार रहते हैं। अन्य लोग भी हमें पसन्द करें तो हमें भी किस प्रकार एक दूसरे से सम्पर्क करते है? यह एकदम भिन्न है। एक बार जब आप सहज संस्कृति को अपने जीवन में उतार लेंगे तो, आप हैरान होंगे कि आपके विनम्र होना चाहिए। दिखावे के तौर पर म नहीं, वास्तव में, ये समझकर की हम क्या हैं, हमें गर्व क्यों होना चाहिए. अन्य लोगों पर क्यों हमें प्रभुत्व जमाना चाहिए और पारस्परिक तालमेल को देखकर अन्य लोग उन्हें कष्ट देना चाहिए। आप यदि ये बात समझ लें तो आपने ईसामसीह के महान अवतरण के प्रति न्याय किया है उन्होंने अपने बहुत से गुणों की अभिव्यक्ति की परन्तु अपने जीवन का बलिदान करके अहं रहना सर्वोत्तम है। यहाँ न अहं है न भी दंग रह जाएंगे कि किस प्रकार आप हर चीज की कितनी अच्छी तरह से देखभाल करते हैं! सहजयोगियों के रूप में इस संसार में चक्र का भेदन ही उनका महानतम संदेश बन्धन। कुछ भी नहीं हैं। इन सभी है और ये बात हमें समझनी चाहिए। अपने दुर्गणों से आप पूर्णतः मुक्त हैं। तब आप आपको इसाई कहने वाले सबसे अधिक हैरान होंगे कि लोग किस प्रकार आप पर अहंकारी हैं। मैं हैरान थी कि इंग्लैण्ड में अंग्रेज लोग अत्यन्त अहंकारी हैं। पश्चिम हैं। आप सब लोगों को मैं ईसामसीह के के अन्य देशों में भी मैंने देखा है कि लोग जन्मदिवस पर शुभकामनाएं देती हूँ और अहंकारवादी हैं। भारतीयों के मुकाबले उनमें आशा करती हूँ कि आप ईसामसीह के सन्देश ऐसा विश्वास करते हैं. किस प्रकार आपको चाहते विनम्रता का पूर्ण अभाव है और वे अत्यन्त और उनके जीवन को सदैव याद रखेंगे। अहंकारी हैं क्यों? क्योंकि वे ईसा-मसीह परमात्मा आपको आशीर्वादित करें ।