Makar Sankranti Puja 14th January 2001 Date: Place India Type Puja
[Hindi translation from Marathi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]
अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें बहुत स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है । महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है? से आप सबकुछ दे सकते हैं। भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि. “मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ ।” न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना कार्य कर गए होनी चाहिए कि वह प्रसारित हो और लोगों फिर भी लोगों को सहजयोग में उतरना में प्रज्जवलित हो, फिर देखें कैसा आनन्द चाहिए और वह आनन्द दूसरों को देने की आता योग्यता भी होनी चाहिए। है सहज को यदि आपने अपने तक ही सीमित कर लिया तो आनन्द शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा। आनन्द को यदि बढ़ाना है तो दूसरे लोगों में इसे बाँटे। अपने तक सीमित रखने में मैं स्वयं सहाराष्ट्र से हूं। यहाँ बहुत से लोग भी जिन्होंने सब बर्ाद कर दुष्ट दिया। आप लोगों को विशेष वरदान प्राप्त हैं, आप युवा हैं और कोई विशेष बात नहीं है। है। हुए बहुत कुछ कर सकते आप सबको अनन्त आशीर्वाद ।