Guru Puja: Introspection, Love & Purity

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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2001-07-08 गुरु पूजा टॉक: आत्मनिरीक्षण, प्रेम और पवित्रता, केबेला,इटली, डीपी 

आप नहीं जानते कि आपकी माँ को कैसा लगता है इतने सारे लोगों को देख कर जो वास्तव में स्वयं गुरु बन गए हैं वे सत्य को ख़ोज  रहे हैं एक बहुत ही कठिन समय में। वे जानना चाहते रहे हैं कि सत्य क्या है।

और यह मुश्किल समय, स्वयं, सहायक रहा है आपके दिमाग पर कार्रवाई करने के लिए कि इस विश्व में क्या हो रहा है, हम अपने आस-पास जो कुछ भी देख रहे हैं, पूरे विश्व में भी, निश्चित रूप से वहाँ कुछ बहुत अनुचित है और हमें उससे आगे जाना होगा। 

ढूँढ़ने में, एक बात बहुत महत्वपूर्ण है, कि व्यक्ति के पास इसके बारे में महान लगन होनी चाहिए । और अनकहे दुखों से भी आपको गुज़रना होगा। ढूँढ़ना है जब अपने भीतर भी आप संघर्ष कर रहे हैं और बाहर भी आपको कुछ भी संतोषजनक नहीं मिल रहा । इस तरह ढूँढ़ने में दोहरी तीव्रता है।

उस ढूँढ़ने में, जब आप प्रयास कर रहे हैं सत्य तक पहुँचने की, ऐसा लगता है कि यह एक बहुत ही कठिन बात है । लेकिन आप लाचार हैं, क्योंकि आप संतुष्ट नहीं हैं उस से जो आप के आसपास विद्यमान है ।

आज विश्व को देखिए, यह संघर्ष से भरा है । हर तरह के झगड़े हैं यहाँ। लोग तुच्छ चीज़ों के लिए लड़ रहे है-भूमि के लिए; मनुष्यों की हत्या कर रहे हैं । भूमि, क्या यह मनुष्य बना सकती है? वे बहुत ही सामूहिक तरीके से लड़ रहे हैं यह सोचकर कि वे मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं ।

मनुष्य की सोच आज बिल्कुल गहरी नहीं है, यह बहुत सतही है और इस तरह आप पाते हैं इस विश्व को उत्पात से भरा हुआ; हर दिन, हर क्षण आप पा सकते हैं … वे कितने मनुष्यों को मार रहे हैं। यह है, वे बहुत बड़े स्तर पर यातना दे रहे हैं:

औपचारिक रूप से, निस्सन्देह, सभी संतों को यातना दी गई – प्रताड़ित किया गया सभी प्रकार के भिन्न मूर्खतापूर्ण विचारों से, मुझे कहना चाहिए, कोई चीज़ ऊँची होना, कोई चीज़ नीची होना; कुछ अच्छा होना, कुछ बुरा होना । ऐसे विचारों के तहत उन्होंने एक साथ मिल कर और पूरे विश्व में हर प्रकार की आक्रामकता को कार्यान्वित किया । हर जगह, इतना ही नहीं, लेकिन परिवारों में भी, संस्थानों में, संगठन में, यह सोचकर कि वे बहुत सही थे, वे बहुत अच्छे थे, और उन्होंने अन्य व्यक्तियों परआक्रमण करने की कोशिश की।

तो, कई लोगों को लगा कि ‘इस से वापस लड़ना अच्छा है’ और उन्होंने इस से सामूहिक रूप से लड़ना शुरू कर दिया – यह कार्य नहीं करता। यह लड़ाई कार्य नहीं करती, क्योंकि लड़ाई उत्पन्न करती है हिंसा, हिंसा के अलावा कुछ नहीं ।

इस तरह कई लोग मारे गए। बुद्ध ने लोगों से बात की अप्रतिरोध के बारे में, और इसके बारे में इतिहास है कि बिहार के महान विश्वविद्यालयों में से एक में, जब आक्रामक लोग आए, उन्होंने सभी संतों को मार डाला आक्रामकता के नाम पर । और वे सब मर गए। हो सकता है कि वह प्राप्त हुआ होगा एक बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर किसी प्रकार के पुण्यों के कारण; लेकिन इस कल युग में, यह कार्य नहीं करेगा।

क्या प्रतिरोध लगा सकते हैं आप ऐसे लोगों के विरुद्ध? आप उनसे कैसे लड़ सकते हैं? यह एक असंभव स्थिति है किसी को यह समझाना कि वे आक्रामक हैं और वे सत्य के आस-पास भी नहीं हैं। क्योंकि कोई भी ऐसी बात को स्वीकार नहीं करना चाहता। और इसलिए  वे जो कुछ भी कोशिश कर रहे हैं, पूरे विश्व में, दूसरों को उनकी अज्ञानता मनवाने की, वे पूरी तरह से असफल हो रहे हैं। और इस प्रकार  इस संघर्ष, इस युद्ध बेचने कि प्रक्रिया को ठीक नहीं किया जा सकता है ।

हमें यह स्वीकार करना होगा कि मनुष्य उस स्तर पर नहीं हैं यह समझने के लिए कि उनमें क्या अनुचित है। वे स्वीकार नहीं करना चाहते । उनके लिए, आक्रामकता ही एकमात्र तरीका है अपनी भलाई को प्रतिपादित करने का । तो समाधान क्या है? समाधान यह है कि हमें उन सभी को आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए । उन्हें अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहिए, तभी परिस्थिति सुधरेगी।

अब, आप कह सकते हैं कि “माँ उन विरोध और संघर्ष और लड़ाई के दिनों में”, यह काम करेगा। परिस्थितियाँ उन्हें बताएंगी। जीवन इतना कठिन हो जाएगा हर समय उनके सिर पर हथियारों के लटकने से, कि उन्हें भी सत्य की तलाश करनी होगी” । इसे बहुत ही सत्यता से किया जाना चाहिए ।

अगर वे सच की तलाश कर रहे हैं, वे आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि यह संसार एक है, सभी मनुष्य एक हैं, और यही मनुष्य का भाग्य है। लेकिन इसके लिए, इतने सारे मारे जाने हैं, इतने सारे नष्ट होने हैं, क्योंकि वे आसान तरीके से सीख नहीं सीखते हैं। अब आपका काम उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना है, और लोगों को बदलना है। यही वास्तविक चीज़ है जो आपको गुरु के रूप में करनी है । लेकिन हम क्या कर रहे हैं?

हम सहज योग में किस विचार के साथ आते हैं? आप केवल बाह्य सतह पर काम कर रहे हैं । सबसे पहले हम अपने बारे में चिंतित हैं: हम कैसे समृद्ध हो सकते हैं, हम कैसे अधिक उन्नत बन सकते हैं; इसके अलावा लालच भी है।  हम अपने आप को नहीं देखते हैं, अगर हम आक्रामक हैं, अगर हम दूसरों को कष्ट देने की कोशिश कर रहे हैं, अगर हमें अपने बारे में अनुचित विचार हैं, हम कैसे दूसरों को सताते हैं ।

तो सबसे पहले आपको स्वयं को शुद्ध करना होगा और स्वीकार करना होगा अपनी स्वयं की समस्याओं को, अपनी स्वयं की आशंकाओं को । इनका सामना कीजिए । और स्वयं को चुनौती दीजिए। आप क्या कर रहे हैं? आप एक सहज योगी हैं, आप किसी से घृणा कैसे कर सकते हैं? आप किसी को कष्ट कैसे दे सकते हैं? आप किसी को कैसे सता सकते हैं?

यह शुरुआत है आत्मनिरीक्षण की, यह बहुत महत्वपूर्ण है। मैं पहचान सकती हूँ व्यक्ति को जो शब्द के वास्तविक अर्थ में ध्यान करता है, और उसे जो सिर्फ ‘ध्यान’ करता है। आपको स्वयं को धोख़ा नहीं देना चाहिए। यदि आप अपने आप को धोख़ा दे रहे हैं, तो आप गुरु कैसे बन सकते हैं?

एक अच्छा गुरु बनने के लिए, आपको  सबसे पहले अपने भीतर बहुत ईमानदार होना होगा, और पता लगाना होगा कि आप क्या कर रहे हैं, आपकी मंशा क्या है, आपने क्या किया है। हमारे छः शत्रु हैं, जैसा कि मैंने आपको बताया है । और हम उचित सिद्ध करते हैं इन सभी दुश्मनों को । हम सोचते हैं, “यह ठीक है! आखिरकार मैंने इस कारण से ऐसा किया, मुझे ऐसा करना पड़ा।“ कोई कहेगा “मैं गरीब था, इसलिए मुझे बेईमान होना पड़ा” । कोई और कहेगा कि, “मुझे झूठ बोलना पड़ा “। कोई और कहेगा कि “मुझे अनैतिक होना पड़ा” । यह सबसे बड़ी चीज़ मनुष्य के पास है वह है प्रामाणिकता!

जानवरों के पास यह नहीं है। उनके पास अपने निश्चित विचार हैं, उनका निश्चित ‘स्वभाव’ है। लेकिन मनुष्य हर तरह की अनुचित चीजें कर सकता है और उन्हें उचित ठहरा सकता है। यह प्रामाणिकता आपको अपने उत्थान में सहायता नहीं करती है। मैंने ऐसा इस कारण से किया । यह आपकी सहायता कभी नहीं करता!

आपको आत्मनिरीक्षण करने का और स्वयं देखने का प्रयत्न करना चाहिए इसकी प्रामाणिकता क्या है। तो जब आप अपना समर्थन सभी प्रकार की विपरीत बातों को करने में शुरू करते हैं, आप कैसे उठ सकते हैं? आप कैसे उत्थान कर सकते हैं? हर समय आप नीचे उतरने की कोशिश कर रहे हैं!

तो भीतर शुद्धि तभी संभव है यदि आप अपने आप को स्पष्ट रूप से देख सकें, यदि आप नहीं देख सकते हैं तो आप कैसे शुद्ध करेंगे? अगर मैं दर्पण में नहीं देख सकती, मैं कैसे देखूंगी कि मेरे चेहरे में क्या अनुचित है?

तो जब आप सत्य को देखना शुरू करते हैं, और अपने आप कि तुलना उससे करते हैं, तभी आप स्वयं को स्वच्छ कर सकते हैं। लेकिन पहचान सत्य के साथ होनी चाहिए।

उदाहरण के लिए आप दर्पण में अपना चेहरा देखते हैं और आपको कुछ अनुचित लगता है, आपकी पहचान उस अनुचित के साथ  नहीं है, लेकिन आपकी पहचान आपके अपने चेहरे के साथ है, और इसलिए  आप इसे स्वच्छ करते हैं, निर्मल करते हैं । उसी तरह, यदि आपकी पहचान आपके स्वयं (आत्मा) के साथ है, आप इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब आप आगे चढ़ रहे हैं धार्मिकता के नए मार्ग में, अच्छाई के, करुणा और प्रेम के, आपको स्वयं को देखना चाहिए, ध्यान से देखिए अपने आप को ।

आप क्या कर रहे हैं? आप कहाँ जा रहे हैं? आप कितने मूर्ख हैं? आपको स्वयं को धोख़ा नहीं देना चाहिए। दूसरों को आपको धोख़ा देने दीजिए, दूसरों को जो भी पसंद है, उन्हें करने दीजिए । दूसरों को आपको मारने की कोशिश करने दीजिए, लेकिन आप स्वयं को मत मारिए!

आप अपने आप को धोख़ा मत दीजिए! तो आप के पास आपका अपना आत्मसम्मान है, और आप के पास अपनी प्रतिष्ठा है, जिसे आप किसी और से अधिक महत्व देते हैं। और आप हार नहीं मानते किसी भी चीज़ से जो कि खराब कर दे आपकी छवि दर्पण में ।

यह पहला कदम, आत्मनिरीक्षण का है । अब इस आत्मनिरीक्षण के लिए क्या सहायक होता है वो है आप के प्रेम की भावना। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम कर सकते हैं जो कष्टप्रद है? जो आक्रामक है? जो गर्म स्वभाव का है? जो आपको धोख़ा देता है? क्या आप ऐसे व्यक्ति से प्रेम कर सकते हैं? आप नहीं कर सकते, तो आप स्वयं से कैसे प्रेम कर सकते हैं जब आपके पास यही गुण हैं, जब आप अपने आप को ऐसा करते हैं?

तो पहली बात है शुद्ध प्रेम अपने लिए । शुद्ध प्रेम। शुद्ध प्रेम होना बहुत बड़ी बात है। जैसे, आप सोने के लिए एक बहुत अच्छा बिस्तर चाह सकते हैं; आप एक बहुत सुंदर घर चाह सकते हैं; आप विश्व की सारी धन-सम्पत्ती चाह सकते हैं । लेकिन, यह सब, क्या यह आपको स्वयं से प्रेम करा पाएगा? यदि आप स्वयं से प्रेम करते हैं, तो आप को कुछ भी नहीं चाहिए!

क्योंकि आप अपने स्वयं का आनंद लेते हैं! अपने स्वयं का आनंद लेना सबसे बड़ा आनंद है। तो अब आपको आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। अर्थात आप जानते हैं कि आप क्या हैं, आप जानते हैं कि आप कितनी सुंदर चीज़ हैं। जब ऐसा है, तो आपको अपने आपसे प्रेम करने की कोशिश करनी चाहिए। और जब आप अपने आप से प्रेम करना शुरू करते हैं, आप सभी मूर्खतापूर्ण चीजों के बारे में चिंता नहीं करते हैं ।

अब यह शुद्ध प्रेम सबसे सुंदर चीजों में से एक है आपके पास जो आप अपने आप से कर सकते हैं। जब आप स्वार्थी हैं, तो आप अपने आप से प्यार नहीं कर रहे हैं। जब आप निर्दयी हैं, तो आप अपने आप से प्यार नहीं कर रहे हैं। जब आप आक्रामक हैं तो आप अपने आप से प्यार नहीं कर रहे हैं। क्योंकि आप इन सभी बुरी चीज़ों से प्रेम कर रहे होते हैं; लेकिन आप का स्वयं (आत्मा)  शुद्ध है। यह बिल्कुल शुद्ध और सुंदर है। और यह उन सभी चीज़ों से प्रेम करता है जो सुंदर और अच्छी हैं ।

तो यह आपके ‘आत्मसाक्षात्कार’ की शुरुआत है: जब आप अनुभव करते हैं कि आपका स्वयं (आत्मा)   कितना महत्वपूर्ण है। आप को अपने बारे में अनुचित विचार नहीं आते है, आप उन सभी अनुचित चीजों को न्यायोचित नहीं ठहराते हैं जो आप करते हैं, क्योंकि आप समझते हैं कि वह आपके स्वयं (आत्मा)  पर एक धब्बा है। अपने आप का सामना सबसे निष्कपट तरीके से कीजिए, और आप यह देखकर चकित हो जाएंगे कि यह कितना अच्छा है। बस अपने भीतर शुद्ध आत्मा को चमकते हुए देखना। 

जब वह आत्मा चमकने लगती है, तो आप कई अन्य चीजें देखना शुरू करते हैं जो आपने अब तक नहीं देखीं हैं। और उनमें से एक आप देखते हैं कि यह प्रेम केवल अपने लिए नहीं है, लेकिन हर किसी के लिए है ।

यह एक शुद्ध प्रेम है हर किसी के लिए। यह केवल अपने लिए नहीं है । यह बहुत आश्चर्य की बात है: जब आप वास्तव में अपने आप से प्रेम करते हैं तो आपका प्रेम आपके अपने लिए है, और आप उस प्रेम को फैलाना शुरू करते हैं इस तरह से कि आप सुंदर तरीके से दूसरों को प्रेम करने लगते हैं । आप पैसे के लिए प्रेम नहीं करते हैं, आप कुछ लाभ के लिए प्रेम नहीं करते हैं, कुछ शक्ति के लिए या किसी लाभ के लिए, लेकिन आप प्रेम के लिए प्रेम करते हैं। क्योंकि शुद्ध प्रेम कितना आनंद देने वाला है।

इतना आनंद देने वाला है कि अगर  वहाँ ऐसी कोई बात है कि ‘ मैं किसी से प्यार करता हूं क्योंकि मैं उस व्यक्ति पर नियन्त्रण रखना चाहता हूँ ‘, ‘ क्योंकि मैं कुछ महान हूँ ‘, और ‘अगर मैं किसी से प्यार करता हूँ तो उस व्यक्ति को पूरी तरह से आभारी अनुभव करना चाहिए ‘ इन सभी विचारों का बिल्कुल कोई लाभ नहीं है । वास्तव में अगर आप प्रेम करते हैं, तो आप केवल प्रेम करते हैं । आप सभी से प्रेम करते हैं।

आप कह सकते हैं, “माँ, आप एक बदमाश से कैसे प्रेम कर सकती हैं?” उसके रास्ते पर जाने की आवश्यकता नहीं है । उसके साथ होने की आवश्यकता नहीं है। उसके साथ कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर आप शुद्ध प्रेम हैं, तो वह बदल सकता है, वह बदल सकती है । यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो आप चिंता मत कीजिए। जो प्रेम के सागर में आते हैं, जो वास्तव में शुद्ध, प्रेममयी लोग हैं, वे आपके मित्र हैं। वही लोग हैं जिनकी इस पृथ्वी पर आवश्यकता है।

बदमाश लोग नहीं, जो आपको धोखा देते हैं, जो आप पर हावी होने की कोशिश करते हैं – उनकी आवश्यकता नहीं है। हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो पूरी तरह से भीगे हैं प्रेम की पवित्रता में। इसलिए प्रेम से हम दूसरे तथ्य पर जाते हैं जो है पवित्रता । और पवित्रता एक विषय है जिस पर कई लोगों ने बात की है। कि आपको शुद्ध होना चाहिए, आपको पूर्णतः उदार होना चाहिए और लोगों को आपके बारे में सब कुछ पता होना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह पवित्रता है।

पवित्रता वह है जो दूसरों को शुद्ध करती है! यदि आप एक शुद्ध व्यक्ति हैं, तो दूसरे लोग शुद्ध हो जाएंगे। उन्हें शुद्ध होना ही होगा। अब मान लीजिए कि आपको अपने बारे में कुछ विचार हैं, आपको लगता है कि आप एक बहुत उच्च स्तर के सहज योगी हैं और यह कि आप प्रेम से भरे हुए हैं। हो सकता है यह सब काल्पनिक हो । क्या यह दूसरों को शुद्ध करता है?

क्या आपकी पवित्रता दूसरों को शुद्ध करतीहै? क्या वह उन्हें जागृति दे सकती है? क्या वह आत्मसाक्षात्कारी हो सकते हैं? और फिर, आप पवित्रता को कितना महत्व देते हैं, पवित्रता की शक्ति को? और आप कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार देते हैं या आपने इसे अपने पास रख लिया है? आप इस पवित्रता को फैलाने के लिए कितने स्थानों पर गए हैं? पवित्रता फैलानी होगी। और आपकी अपनी पवित्रता में बिना कोई संदेह किए, आपको ऐसा करना चाहिए क्योंकि यह एक बहुत, बहुत शक्तिशाली चीज़ है। पवित्रता बहुत शक्तिशाली है।

हो सकता है यह एक या दो व्यक्तियों पर कार्य ना करे, कोई फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है वहाँ कुछ बहुत, बहुत घृणास्पद, भयानक लोग हों, कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन यह बहुत सारे संवेदनशील व्यक्तियों पर प्रभाव डालेगा जो सहज योगी बनना चाहते हैं। आपको बस इसका परीक्षण करना होगा। कैसे लोग आप को पसंद करते हैं और वे कैसे आपसे प्रभावित होते हैं।

परमचैतन्य, यह सारी व्याप्त  शक्ति दिव्य प्रेम की, आप में से बहती है क्योंकि आप पवित्र हैं । यदि आप अपवित्र हैं, तो यह रुक जाएगी अलग-अलग चक्रों पर, यह काम नहीं करेगी। तो  स्वभाव की शुद्धता, प्रेम की शुद्धता उसका क्या मतलब है?  कि आप किसी से प्रेम करते हैं क्योंकि उस व्यक्ति में आध्यात्मिकता है!

आप उस व्यक्ति से प्रेम करते हो क्योंकि वहाँ पवित्रता है, और आप स्थानों पर जाते हैं केवल लोगों के बीच पवित्रता फैलाने के लिए । शुद्ध व्यक्ति कभी समस्या पैदा नहीं करेगा। यह अपवित्र व्यक्ति है जो हर दिन कि शुरुआत इस समस्या या उस समस्या और वह के साथ करते हैं… तो एक योगी का चरित्र है अपनी पवित्रता और दूसरों की पवित्रता की पूजा करना।

यह सच है कि हमें प्रतिदिन स्वयं का सामना करना होगा । यह सच है कि हमें प्रतिदिन स्वयं को सही करना होगा। यह सच है कि हमें अपने आप को स्वयं से अलग करना होगा यह देखने के लिए कि हमने कहाँ तक काम किया है, हम कहाँ तक गए हैं, हम क्या कर रहे हैं, हमने क्या किया है ।

तो जो अंतर प्राचीन काल के गुरु और आधुनिक समय के गुरु के बीच है, कि प्राचीन काल के गुरु चिंता नहीं करते थे कि उन्होंने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, यह उनकी शैली नहीं थी उनमें से अधिकतर की । वे केवल स्वयं के लिए चिंता करते थे, अच्छी तरह से नीचे बैठ के, हिमालय में कहीं, सभी पागल कर देने वाली भीड़ से दूर, और स्वयं आनंद लेते हुए! लेकिन आपको इस आनंद को अवश्य बाँटना चाहिए।

मुझे लगता है कि यह एक अच्छे गुरु की निशानी है। जो साँझा नहीं कर सकता, केवल अपने सुखों की देखभाल करता है, या अपने आश्रम की देखभाल करता है, हम इसे कह सकते हैं, या अपने स्वयं के परिवार की देखभाल करता है, शायद अपने कुछ शिष्यों की देखभाल करता है। ध्यान पूरे विश्व के लिए होना चाहिए!

सहज योग में, अब, ऐसे पड़ाव पर पहुँच गया है कि आपको पूरी मानवता के बारे में चिंता करनी होगी। यह ऐसा नहीं कि केवल आप, या कुछ सहज योगी , या बहुत सारे सहज योगी, लेकिन पूरे विश्व में, जो भी समस्या है, आप लोगों को उसे हल करना होगा।

लेकिन पहले अपनी छोटी छोटी समस्याओं से बाहर निकलिए । मुझे लोगों के पत्र मिलते हैं, विशेष रूप से महिलाओं के, यह कहते हुए कि उनके पति ऐसे हैं, और पति ऐसा करता है कि और बच्चे पीड़ित हैं, और सभी प्रकार के …अब आप एक गुरु हैं! तात्पर्य है कि आप इतने ऊँचे हैं, आध्यात्मिकता से युक्त अत्यधिक ओजस्वी व्यक्ति। आपको इन सब बेतुकी बातों के बारे में चिंता क्यों करनी चाहिए?

और यह चेतना कि आप पवित्र हो चुके हैं और यह कि आप एक शुद्ध व्यक्ति हैं, आप को बहुत विनम्र बनाना चाहिए। इसके ठीक विपरीत – आम तौर पर लोग, अगर वे कुछ भी हैं, वे बहुत अहंकारी हो जाते हैं और स्वयं को बहुत कुछ समझते हैं।

यदि उनके पास, कहिए, एक शक्ति है, तो वे वैसे बन जाएंगे; यदि उनमें कुछ प्रतिभा है, तो वे ऐसे बन जाएंगे; यदि उनके पास कुछ प्रतिष्ठा है तो वे इस तरह बन जाते हैं, वे उसके द्वारा विनम्र नहीं बनते हैं। उस उपलब्धि से वे अत्यधिक, अत्यधिक अभिमानी, अहंकारी बन जाते हैं, पूर्णतः एक बहुत गलत आकार में!

लेकिन आप, आप एक सहज योगी हैं और आपको कुछ भी बुरा नहीं मानना चाहिए, वह आपकी शुद्धता को कम करेगा। तो आप चाहें तो स्वयं को गुरु कह सकते हैं। मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आप गुरु हैं। लेकिन आपको सबसे पहले अपने आप को अपना शिष्य बनाना होगा! अपने आप की देखभाल  सबसे पहले करनी होगी।

आपको स्वयं के लिए देखना होगा, ‘क्या मुझे में वह गुण हैं? क्या मैं वह हूँ जो वास्तव में यह सब कर सकता हूँ?’ आप के भीतर यह सब आत्मनिरीक्षण एक बहुत ही विशुद्ध हृदय और समझ के साथ होना चाहिए । क्योंकि आप अवतरण नहीं हैं, जो बिल्कुल शुद्ध पैदा होते हैं, लेकिन आप मनुष्य हैं और आप उन अवतरणों के स्तर तक उठ रहे हैं। तो आपको शुद्ध करना है, आपको अपने आप को देखना है, स्वयं के लिए देखें और फिर समझें यदि आप एक सहज योगी हैं – क्या आपको पवित्रता और प्रेम की सुंदरता मिली है?

अब यह प्रेम सापेक्षिक नहीं है, प्रतिबन्धित नहीं है, सीमित नहीं है, लेकिन यह पूर्णतः एक महासागर की तरह है। और आप को उस महासागर में तैरना अच्छा लगता है, अच्छा लगता है प्रेम के उस महासागर में भीग जाना । पूर्व काल मे गुरु का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति था जो बड़ी सी छड़ी लेकर खड़ा होता है। वह सभी को मारा करते थे। किसी ने कुछ भी अनुचित किया वे उन्हें मारने और पीटने लगते थे ।

हमारे पास संगीत में भी गुरु थे, और अलग, अलग प्रकार के गुरु थे हमारे देश में। और उनकी विशेषता थी कि वे शिष्यों को पूर्णतः दबाते थे, नियंत्रण करते थे, और फिर सिखाते थे संगीत का ज्ञान, हो सकता है; हो सकता है कुश्ती, हो सकता है कुछ भी ।

लेकिन सहज योग में यह बहुत अलग है । यहाँ तक कि जो वास्तविक आध्यात्मिक गुरु थे, वे भी ऐसे ही थे। बहुत कठोर। वे ऐसे लोगों पर पत्थर फेंकते थे। सभी प्रकार की चीजें वे करते थे, उनका कोई बुरा मतलब नहीं था, लेकिन वह विधि मुझे पसंद नहीं आई।

एक व्यक्ति के बारे में एक कहानी थी, जो कथित रूप से एक महान गुरु थे, और मैं उनसे मिलने गई थी। मुझे काफी चढ़ना पड़ा क्योंकि वह एक छोटी सी गुफा में रहते थे । और जब मैं वहाँ पहुँची, आप देखिए, वह भीतर से बहुत क्रोधित थे और वह ऐसे ऐसे करते जा रहे थे। और बारिश हो रही थी तो मैं पूरी तरह से भीग गई थी!

और मैं जा कर उसकी छोटी सी गुफा में बैठ गई। इसके बाद वह वापस आया और उसने मुझसे एक प्रश्न पूछा । उसने कहा: “माँ, बारिश हो रही थी। आम तौर पर मैं बारिश को रोक सकता हूँ, लेकिन आपने मुझे बारिश को रोकने की अनुमति नहीं दी । क्यों?” मैं उससे कह सकती थी, “तुम्हारे अहंकार की वजह से” । मैंने नहीं कहा । मैंने उससे बहुत ही प्रेम से कहा, “तुम देखो, तुम एक संन्यासी हो और तुम मेरे लिए एक साड़ी ले कर आए हो। अगर मैं नहीं भीगती, मैं तुम्हारी साड़ी नहीं ले सकती थी एक संन्यासी से।“ वह पूरी तरह से पिघल गया! उसकी आँखों में आँसू थे और वह मेरे पैरों पर गिर गया ।

इसलिए सहज योग की तकनीक इस तरह है। यह क्रोध नहीं है । यह अपकर्षण नहीं है । यह घृणा नहीं है । लेकिन तकनीक ऐसी है जिसके द्वारा आप अपने प्रेम को जताते हैं। इस तरह से आप को समझना होगा एक सहज योगी गुरु और अन्य गुरुओं में अंतर। अपने शिष्य को पीटने का सवाल ही नहीं उठता, डाँटने का सवाल नहीं उठता, उन पर चिल्लाने का सवाल नहीं उठता। प्रेम सबसे शक्तिशाली चीज़ है!

निस्संदेह यह कुछ लोगों पर काम नहीं करता है, मैं मानती हूँ, उन्हें भूल जाइए। लेकिन यह अधिकतर लोगों में काम करता है क्योंकि परमेश्वर ने हमें अपने प्रेम से बनाया है और हमारे पास क्षमता है उस प्रेम को प्राप्त करने की और उस प्रेम का आनंद लेने की। तो एक सहज योगी के लिए, उसे जो करना है वह यह है कि उसे प्रेम की शक्तियों को समझना है । प्रेम की शक्तियाँ, यदि आप समझ सकते हैं, तो यह आपके भीतर बढ़ेंगी।

कुछ लोगों के पास है, कुछ लोगों के पास यह नहीं है । समझने की कोशिश कीजिए, यह परमचैतन्य  और कुछ नहीं लेकिन यह ईश्वर के प्रेम की शक्ति है या आप कह सकते हैं  ‘माँ का प्रेम ‘! यह शक्ति इतनी सुंदरता से काम करती है, ऐसे अप्रकट तरीके से, कि आप इसे ‘चमत्कार’ कहते हैं। क्योंकि आप नहीं देख सकते कि इसने कैसे काम किया है ।

तो पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, अपने भीतर प्रेम कि अनुभूति को विकसित करने की कोशिश करें। समझिए। एक समस्या है जिसे हमेशा गलत समझा जाता है । शुद्ध प्रेम को बहुत आसानी से समझा जा सकता है, कि यह आपको आनन्द देता है, कि यह दूसरों को और अच्छा बनने में सहायता करता है, यह बहुत सूक्ष्म तरीके से काम करता है। अब याद करने की कोशिश करिए जब आप सहज योग में आए थे, याद रखने की कोशिश करिए कि कैसे आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिला, याद करने की कोशिश करिए कि आप कैसे बढ़ने लगे। ये हमारे भीतर प्रेम के बीज की तरह हैं, जो अंकुरित हो गए हैं । धीरे-धीरे और थोड़ा-थोड़ा हमने शुरुआत की प्रेम के आशीर्वाद कि बौछार की। इसके बाद हमने इसका आनन्द उठाना शुरू किया और इसे समझना शुरू कर दिया ।

अब इस पड़ाव पर जब हम गुरु बनने वाले हैं या हम पहले से ही गुरु हैं, हमें प्रेम के अवतरण के अलावा कुछ भी नहीं होना चाहिए। यह एक बहुत अलग सिद्धांत मैं आपको बता रही हूँ । कोई गुरु इसे स्वीकार नहीं करेगा वो जो पहले से ही हर जगह गुरु के रूप में स्वीकार किए गए हैं। और ज्ञान, ज्ञान जो वे आपको देते हैं, बहुत सूक्ष्म चीजों का ज्ञान है। और सहज योग में आपको जो भी ज्ञान मिला है, वह उन गुरुओं द्वारा बहुत पहले ही बता दिया गया है।

किसी ने यह बताया है, किसी ने वह बताया है, किसी ने वह बताया है कि लेकिन सारा ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान आपके अस्तित्व के बारे में, आपके चक्रों के बारे में, सब कुछ , जो अब आप को पता है, आपके साथ है। यही सत्य है । आपके पास पूर्ण सूक्ष्म ज्ञान है जो पहले किसी के पास नहीं था।

क्योंकि शायद ये गुरु देना नहीं चाहते थे, या शायद इन गुरुओं को स्वयं पता नहीं था। सहज योग का सारा ज्ञान सरल है, बहुत सूक्ष्म और वास्तविक है। अब, आप के भीतर यह होने के बाद, केवल मानसिक नहीं होना चाहिए यह आध्यात्मिक होना चाहिए। और इसे आध्यात्मिक बनाने के लिए, आपको जो करना है वह है प्रेम! जब आप दूसरों से प्रेम करेंगे तो आप उन पर काम करना शुरू कर देंगे।

तब आपको पता चलेगा, अपने ज्ञान के द्वारा, कि इस व्यक्ति के साथ कुछ अनुचित है: क्या अनुचित है? उसके इस चक्र, उसके उस चक्र, यह संबंध है, यही है । लेकिन एक सहज योगी उस बात पर क्रोधित नहीं होता। वह उस व्यक्ति का इलाज करने की कोशिश करता है । वह उस व्यक्ति को सुधारने की कोशिश करता है। वह नहीं कहता  “तुम बहुत बुरे हो, तुम भयानक हो” । नहीं, नहीं। वह एक चुनौती लेता है कि ‘ मेरे शुद्ध प्रेम से मैं उपचार कर सकता हूँ ‘।

यह उसके लिए बहुत सरल है; किसी डॉक्टर या किसीऔर की तरह नहीं जिसके पास कुछ महान योग्यताएँ हैं कि वह आ कर फीस माँगेगा और वह आप से पैसे माँगेगा ऐसा कुछ नहीं! वह जानता है कि आपके साथ क्या अनुचित है और वह जानता है कि इसका उपचार कैसे करना है। और वह ऐसा करता है ।

इसलिए आप डरते नहीं हैं। इसके अलावा कि आप नहीं डरते हैं, वह व्यक्ति जो आपके साथ है, वह भी नहीं डरता है आपके मनोदशा के कारण, आपके स्वभाव के कारण: जिस तरह से आप रोगी को संभाल रहे हैं,  जिस तरह से आप एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं जिसे सत्य के बारे में पता चल गया है। और इस प्रकार आप उसे भी सत्य देते हैं। इसके अलावा आप उसे सिखाते हैं कि सत्य क्या है। और सत्य बहुत सरल है कि आप आत्मा हैं! 

यह सत्य है, और एक व्यक्ति पर ज़ोर से प्रकट होता है। इस प्रकार आप स्वयं अनुभव करते हैं कि किसी अन्य व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार देकर, आप ने जो किया है वह है उसे सत्य ही दिया है, पूर्ण सत्य। मुझे मालूम है… इन दिनों लोगों को सहज योग के लिए समय ढूंढना बहुत कठिन लगता है, सहज  योग के प्रसार के लिए, वे  छुट्टियों की तलाश में हैं।

जो कुछ भी है, जो कुछ भी हो रहा है, मैं आश्वस्त हूँ कि आप अपनी महान शक्तियों के साथ जो आप में है, आप वास्तव में महान, महान सफलता दिखा सकते हैं, बहुत बड़ी सफलता। और यह सफलता आगे ले जा सकती है मेरा स्वप्न जो है विश्व भर में मानवता को बचाने का । 

आप सबको परमात्मा का अनंत आशीर्वाद ।