Shri Krishna Puja: Ananya Bhakti

New York City (United States)

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श्री कृष्ण पूजा| निर्मल नगरी, कैनाजोहारी, न्यूयॉर्क (यूएसए), 29 जुलाई 2001।  

आज हम सब यहां श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं।

श्री कृष्ण, जो विराट थे, उन्होंने युद्ध भूमि में प्रवेश किए बिना ही हर तरह की बुराई से लड़ाई की। श्री कृष्ण का जीवन, अपने आप में बहुत ही सुंदर, रचनात्मक और प्रेमपूर्ण है, लेकिन उन्हें समझना आसान नहीं है।  

उदाहरण के लिए, कुरुक्षेत्र में, जब युद्ध चल रहा था और अर्जुन उदास हो गए थे, तब अर्जुन ने पूछा,

: “हम क्यों लड़ें, अपने परिजनों से, क्यों लड़ें अपने ही करीबी रिश्तों, दोस्तों और अपने गुरुओं से? क्या यह धर्म है ? क्या यह धर्म है?”

इससे पहले, गीता में, श्री कृष्ण ने एक व्यक्तित्व का वर्णन किया है जो एक ऋषि हैं। हम उन्हें संत कह सकते हैं। उन्होंने इसे स्तिथप्रज्ञ कहा । इसलिए, जब उनसे पूछा गया कि स्तिथप्रज्ञ की परिभाषा क्या है, तो उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का विवरण दिया, जो अपने आप में शांत है और अपने वातावरण के प्रति भी शांत है।  

यह आश्चर्यजनक है |  यह ज्ञान उन्होंने गीता में प्रथम स्थान पर दिया। यह सबसे उत्तम है, उन्होंने  इसे ज्ञान मार्ग कहा है । यह सहज योग है, जिससे आप सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करते हैं। लेकिन उसी समय, जब आप उन्हें अर्जुन को सलाह देते हुए देखते हैं, तो यह बहुत आश्चर्यजनक है कि यहाँ वे केवल आध्यात्मिकता की बात कर रहे है , पूर्ण अनासक्ति की | और वहाँ वे अर्जुन से कह रहे है कि: “तुम जाओ और लड़ो। वे पहले से ही मरे हुए लोग हैं। तुम किससे लड़ रहे हो? ” 

इस संघर्ष को समझना मुश्किल है  कि, श्री कृष्ण ,वही हैं , जो उपदेश दे रहे हैं कि “आप सभी को स्तिथप्रज्ञ  होना है”, अचानक अर्जुन से कहने लगते है कि “तुम जाओ और बल से लड़ो!” एक तरफ अनासक्ति है और दूसरी तरफ युद्ध। आप इसे कैसे समझाएंगे? यह श्री कृष्ण के अपने शब्द हैं, कह सकते हैं – कि एक बार जब आप आत्मसाक्षात्कारी हो जाते हैं और जागरूकता की उच्चतम स्थिति में पहुँच जाते हैं , तो आपके लिए सब कुछ व्यर्थ है।   

लेकिन अभी, आपको जो करना है वह है धर्म को बचाना – उस धर्म को नहीं, जिसके बारे में लोग बात करते हैं- लेकिन धर्म का अर्थ है मनुष्य की विकास प्रक्रिया, जो चल रही है। और अगर सभी अच्छे लोग, जो धर्म के लिए खड़े हैं, समाप्त हो गए, तो इस विकासवादी शक्ति को कैसे बचाया जाएगा? इसलिए आपको उन्हें बचाना होगा और उसके लिए, अगर आपको मारना पड़े, तो आप किसी को मार नहीं रहे, वे तो पहले से ही मर चुके हैं, क्योंकि वे विकसित आत्माएं नहीं हैं और अपने आत्मसाक्षात्कार की परवाह नहीं करते।  

इसलिए आपको उनसे लड़ना होगा। आपको नकारात्मक शक्तियों से लड़ना होगा। आपको गलत काम करने वालों से लड़ना होगा। यह सब वे बहुत ही सुंदर तरीके से समझाते हैं, कि हमारे पास तीन प्रकार की शक्तियां हैं – जिसे हम भी जानते हैं – और जो शक्ति हमारे मध्य में है, उस से हम इन सभी भौतिक, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक – सभी समस्याओं से ऊपर उठ जाते हैं, आध्यात्मिकता के एक नए दायरे में। यही, वे उन क्रूर लोगों से, आक्रामक लोगों से बचाना चाहते थे, जो दूसरों को भी गुमराह कर रहे थे।

यह बहुत अच्छी समझ है – अगर आपके पास है – कि “आपके रिश्तेदार कौन है? आपका भाई कौन है? आपकी बहन कौन है?” साक्षात्कारी आत्माएं ही आपके सम्बन्धी हैं। वे आपके अपने हैं और उनके लिए, यदि आपको आक्रामक लोगों से लड़ना पड़े, तो बेहतर है  कि आप करिये । आपको यह करना पड़ेगा। यही  धर्म है ।

हमारे पास तीन रास्ते हैं – जैसा कि आप जानते हैं – सहजयोग में ।

उन में से एक है भक्ति । भक्ति, जहां आप भगवान की स्तुति गाते हैं, भक्ति भाव रखते हैं, सभी प्रकार के अनुष्ठान करते हैं, सब कुछ और सोचते हैं कि आप भगवान के बहुत  करीब हैं। यह वह मार्ग है जिसे कई कई लोगों और यथाकथित  धर्मो  द्वारा स्वीकारा जा रहा है , कि “हमें ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिए।” लेकिन कैसे… आप अभी तक भगवान से एकाकार नहीं हैं। कैसे आप क्या  कर रहे हैं? आप परमेश्वर के प्रति कोई समर्पण कैसे कर सकते हैं, जिसके साथ आप बिल्कुल भी जुड़े नहीं हैं?

दूसरा मार्ग  है कर्म, कि आप अपना कर्म करो। आप एक अनासक्त दिमाग के साथ अपना काम करते चले जाते हैं। मेरा मतलब है कि यह संभव नहीं है – लेकिन वे यही  कहते हैं कि हम अपने कर्म कर रहे  है, अच्छे कर्म। हम सभी प्रकार के अच्छे काम करते हैं, अपनी सफाई के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं,  कई महान, आध्यात्मिक लोगों से मिलते हैं, विभिन्न स्थानों पर जाते हैं और प्रार्थना करते हैं, उन सभी शुभ स्थानों पर जाते हैं जिनका वर्णन किया जा रहा है। सभी प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। यह कर्म योग है।  हमारे अनुसार कर्म योग दायीं तरफ की शक्ति है | 

बहुत से लोग, जैसा कि आप जानते हैं, दायीं ओर झुके हुए होते हैं। दायीं तरफ वे लोग हैं, जो कि -आप जानते हैं -अहंकार से भरे हुए हैं, हठी हैं और सोचते हैं कि उनसे ऊपर कोई नहीं  है| उन्हें ठीक करना बहुत मुश्किल है। उन्हें कभी अपने अंदर कुछ गलत दिखाई नहीं देता। वे जिस भी तरीके से काम करते हैं, उन्हें लगता है कि वे ठीक है। यह कर्म योग है।

लेकिन उन्होंने कहा है कि:”आप जो भी कर्म करते हैं, उसके फल जो भी हैं, वह आप कह नहीं सकते।” उन्होंने इसे बहुत अनिश्चित तरीके से कहा, क्योंकि, निश्चित रूप से, अगर उन्होंने कहा होता, तो लोग उन्हें कभी नहीं समझ पाते। इसलिए उन्होंने कहा: “यह मुमकिन नहीं है कि आप जो भी कर्म कर रहे हैं वह कर्म आपको परमात्मा का आशीर्वाद दिलाएगा।” उन्होंने कहा है, ” कर्मण्य वाधिकारस्ते फलेषु मा कदाचने “। 

तो फिर, हमें कौन से कर्म करने चाहिए? या हम सभी कर्मों को त्याग दें? सारे कार्य छोड़ दें ? लोग दो तरफा थे। यह श्री कृष्ण की शैली है , लोगों को दो विचारों में रखना, ताकि वे अपने विवेक का उपयोग करें । 

और तीसरा मार्ग है विवेक का, जिसे वे ज्ञान मार्ग कहते हैं, मध्यम मार्ग, जिसके द्वारा आप विकसित होते हैं।आप एक नई अवस्था में विकसित होते हैं, अपने मन की एक नई अवस्था में, अपने अस्तित्व की एक नई अवस्था, जिसके द्वारा आप हर अर्थहीन बात से बिल्कुल ऊपर हो जाते हैं। इसके साथ ही, आप जो कुछ भी बुरा है, जो भी भ्रष्ट है, जो भी इस को मार रहा है, उससे लड़ने की शक्ति से संपन्न हो जाते हैं। उस स्तर पर, आप एक ईश्वरीय शक्ति से चलित होते हैं जिससे आप अपने आस-पास की नकारात्मक चीजों को समाप्त कर सकते हैं।

यह समझना चाहिए कि यह एक अवस्था है। यह सिर्फ बातचीत नहीं है। यह सिर्फ विश्वास नहीं है कि “मैं वह हूँ”, लेकिन यह एक अवस्था है। यदि आप उस अवस्था में आते हैं जहां आप इन सभी चीजों से परे हैं और आपके पास सभी ज्ञान, शुद्ध ज्ञान, सूक्ष्म ज्ञान है, तो यह ज्ञान मार्ग है । 

बहुत से लोग कहते हैं कि हर कोई ज्ञान मार्ग पर नहीं जा सकता है, और इसके लिए, आपके पास एक विशेष प्रकार का व्यक्तित्व होना चाहिए, लेकिन यह बहुत ही भ्रामक है। हर कोई ज्ञान मार्ग में जा सकता है । यह बहुत ही सहज रूप से जन्मजात हमारे भीतर निर्मित है|  यह विकासवादी उपलब्धि है। यह हमारे भीतर है और हम सभी प्राप्त कर सकते हैं ।

केवल एक चीज है कि शायद हमें विश्वास नहीं है,  हम इसे टालते चले जाते हैं, तुच्छ कार्य करते हैं, जैसे किसी चीज के लिए समर्पित हो जाना, किसी तरह का अनुष्ठान करना, किसी प्रकार की पवित्र जगह पर जाना, सभी प्रकार की अर्थहीन, जो आपको विकासवादी उत्थान नहीं   देती- जिसके द्वारा आप ज्ञान, शुद्ध ज्ञान, वास्तविक ज्ञान को जान सकते हैं।

अब तक, आप जो कुछ भी जानते हैं वह पुस्तक में लिखा हुआ था, जो भी आपके माता-पिता ने आपको बताया या जो भी आप ने बाहर खोजा। लेकिन जो ज्ञान सबसे शुद्ध है, जो वास्तविक ज्ञान है, उसे आप केवल अपने उत्थान के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं और अपने आप को उस स्थिति में ठीक से स्थापित कर सकते हैं। यदि आप इसे अस्वीकार करते रहेंगे, तो आप इसे प्राप्त नहीं कर सकते। लेकिन सभी को इसे पाने का अधिकार है। आपको शिक्षित होने की आवश्यकता नहीं है, आपको एक बहुत ही सरल व्यक्ति होने की आवश्यकता नहीं है, आपको बहुत अमीर या गरीब होने की आवश्यकता नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता – जब तक आप एक इंसान और एक विनम्र इंसान हैं, और सोचते हैं कि आपको उस अवस्था को प्राप्त करना है ।

आप सभी उस अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं, जिसे आप अच्छी तरह से जानते हैं।

और उस अवस्था में पूर्ण जानकर हो जाते हैं ,आप अपने बारे में पूरी तरह से जान जाते हैं, दूसरों के बारे में जान जाते हैं, आसपास होने वाली हर चीज के बारे में जान जाते हैं। लेकिन इस अवस्था को बनाए रखा जाना चाहिए और उस स्थिति  से ऊपर जाने की कोशिश करनी चाहिए, जहाँ आप में कोई संदेह न बचे ।श्री कृष्ण ने यही सिखाया है और यही हासिल करना है, लेकिन उन्होंने एक राजनीतिज्ञ  होने के नाते, आपको अन्य कहानियां बताने की कोशिश की: “यह कोशिश करो, वह कोशिश करो,यह वह ।” लेकिन वास्तव में उन्होंने जिसकी प्रशंसा की है वह ज्ञान मार्ग है ।  

हमारा मार्ग, ज्ञान मार्ग है ।वह ज्ञान है, ज्ञान का मार्ग है जिसमें आपको सभी ज्ञान जानना है। जब तक आपको पूरा ज्ञान न हो, तब तक आप ज्ञानी नहीं हैं, वह व्यक्ति जो सब जानता है। इस तरह, उन्होंने यह स्थापित किया है कि हमारी विकास प्रक्रिया को अन्य सभी मानवीय जागरूकता से ऊपर आना होगा।

अन्य मानवीय जागरूकता का एक आध्यात्मिक दृष्टि से कोई मूल्य नहीं है, अब जैसे  उसे कुछ पता है, जैसे कि यहाँ से न्यूयॉर्क कितने मील की दूरी पर है या वहाँ से जाने के लिए कौन सी ट्रेन जाती है। यह सब ज्ञान वास्तविक नहीं है, इस कपड़े की कीमत कितनी होगी, इस कालीन की लागत कितनी होगी, आपको किस दुकान में मिल सकता है। यह सब ज्ञान सिर्फ बेकार है, वास्तविक ज्ञान नहीं है।

ऐसा व्यक्ति इस तरह के ज्ञान को नहीं जानता, वह जो जानता है वह है अपने अस्तित्व का ज्ञान, पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान, जो कि यह नहीं है कि कितने सितारे हैं या कितने ब्रह्मांड हैं। नहीं – वह हर चीज का सूक्ष्म, आंतरिक व्यक्तित्व,सब कुछ जानता है। उस सूक्ष्मता में, वह बहुत सी नई चीजों का पता लगाता है जिसके बारे में उसने शायद सुना भी नहीं है और इस प्रकार, आप महान ज्ञानी की स्थिति में पहुंच जाते हैं। यही हमें हासिल करना है।

हम इंसान के रूप में पैदा हुए हैं और हम बहुत सी चीजों को पहले से ही जानते हैं। लोग बहुत सी बातें जानते हैं, लेकिन वे वास्तविकता नहीं जानते हैं। यह ज्ञान आपके पढ़ने या आपकी बौद्धिक खोज या आपके भावनात्मक आंदोलन के माध्यम से नहीं आता है – नहीं! यह शाश्वत है,  यह हर समय है, यह है और हमेशा रहेगा। और इसे सिर्फ समझना है, बस अपने आप को पता होना चाहिए कि यह क्या है। यह बदल नहीं सकता। इसे नए साँचे में नहीं ढाला जा सकता। यह जो है वह है। और वही अब आप जानते हैं।

किसी को संदेह नहीं होगा,  क्योंकि जिन लोगों को यह अवस्था नहीं मिली है, सिर्फ उन्हें संदेह हो सकता है, वे आपको पागल कह सकते हैं, वे कुछ भी सोच सकते हैं – लेकिन खुली आँखों से, जो भी आप कहते हैं वह सत्य है। इसी तरह खुले दिल और खुले दिमाग से आप जानते हैं कि यही वास्तविक सत्य है और यही है जिसे जानना है । 

उसके लिए – श्री कृष्ण के अनुसार – आपको विभिन्न परीक्षाओं से गुजरना होगा। एक है कि “आप उनसे  प्रार्थना करते  रहिये।” वे कहते है: “तुम मुझसे प्रार्थना करते रहो और यदि तुम मुझे फूल दोगे, तो मैं स्वीकार कर लूँगा । अगर तुम मुझे पानी दोगे, तो मैं स्वीकार कर लूँगा। जो भी तुम मुझे दोगे, मैं स्वीकार करूँगा ।”  वे स्पष्ट रूप से कहते हैं “ लेकिन तुम इससे क्या हासिल करोगे, यह बहुत महत्वपूर्ण है।“  वे यह नहीं कहते “यदि आप मुझे कुछ देते हैं, तो मैं आपको कुछ दूँगा।” वे ऐसा नहीं कहते।

तो आप की अवस्था क्या होनी चाहिए? क्या स्तर होना  चाहिए? उन्होंने कहा: “यदि आप मेरी प्रशंसा करते हैं, यदि आपके पास मेरे लिए भक्ति है, आप मुझे उपहार दे रहे हैं, आप सभी प्रकार की चीजें कर रहे हैं, आप बहुत समर्पित हैं, लेकिन आपको अनन्य भक्ति करनी चाहिए।” शब्द है ‘अनन्य’। अनन्य का अर्थ है कि उसके जैसा कोई दूसरा नहीं है | जब हम एक हैं, जब हम एकाकार हैं, तो जो भक्ति आप उस समय करते हैं, जो भी भक्ति संगीत आपके पास है, जो भी फूल आप देते हैं, जो भी अभिव्यक्ति करते है, वह अनन्य होनी चाहिए।

यह शब्द उन्होंने कहे कि “अनन्य भक्ति करो! पुष्पम फलम तोयम। आप मुझे जो भी देंगे, मैं लूंगा।” वे सब कुछ स्वीकार करेंगे। वे ही एकमात्र भोक्ता है , इसका मतलब है कि जो केवल आनंद लेता है। लेकिन आपको क्या मिलेगा, वे कहते हैं, “जब आप अनन्य भक्ति करते हैं ” मतलब, “जब आप मेरे साथ एक हैं ” इसका मतलब है कि आप उन से जुड़े हुए हैं।

इस प्रकार उन्होंने भक्ति की व्याख्या की है, भक्ति क्या है, यह बहुत स्पष्ट है। लेकिन लोग समझ नहीं पाते। उन्हें लगता है कि भक्ति का मतलब है कि आप सड़क पर गाते रहे : “हरे रामा, हरे कृष्णा”।यह  भक्ति नहीं है। अगर यह वास्तविक होता, तो वे कुछ हासिल कर लेते, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं पाया। अब, श्री कृष्ण को दोष मत दीजिये ! उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि भक्ति अनन्य होनी चाहिए।   

केवल अपनी पोशाक बदलना, अलग प्रकार के कपड़े  पहनना, ये भक्ति नहीं है। यह सब बाहरी है। बस दिखावा है। लेकिन वास्तव में अनन्य भक्ति आपके भीतर है, जब आप उस अवस्था में हो, जब आप परमात्मा के साथ एकाकार हो। जब तक आप उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेते, यही नहीं , उस में स्थापित नहीं होते, तब तक वे आपको कुछ नहीं देते।

कई लोगों ने मुझे बताया है “हम बहुत भक्ति योग कर रहे हैं, माँ । हमें कुछ नहीं मिला।” “अच्छा, किस प्रकार का भक्ति योग ?” “हम श्री कृष्ण की गीता पढ़ते हैं । हर सुबह चार बजे उठते हैं, नहाते हैं, श्री कृष्ण की गीता पढ़ते हैं, ऐसा करते हैं, वैसा करते हैं। फिर हम भजन गाते हैं। हमें कभी कुछ नहीं मिलता। तो कारण क्या है?” कारण यह है कि आप परमात्मा   के साथ एकाकार नहीं हैं।  

और जब आप परमात्मा के साथ एक हैं, तो वह आपको क्या देते है? वह आपको तुच्छ चीजें नहीं देगा, जो कुछ ही समय में गायब हो जाएगी, लेकिन अनन्त प्रकृति की चीजें । इसलिए वे आपको शांति, मन की शांति देते है। वे आपको संतुलन देते है। इसके अलावा वह आपको एक शांत स्वभाव, जीवन का आनंद देते है। ये सभी चीजें हमारे अंदर हैं, अगर हम में भक्ति है – जो कि योगेश्वर के साथ योग के बाद, एकाकार होने के बाद मिलती है। यह है जिसे हमें  समझना होगा।

अब, कई लोग कर्म योगी हैं, जो पागलों की तरह काम करते हैं। वे सोचते हैं आखिरकार हम निष्काम सेवा कर रहे हैं , बिना किसी इच्छा के हम लोगों की सेवा कर रहे हैं, हम राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं, हम यह सेवा कर रहे हैं।” अंतत: आपको क्या मिलता है? क्या मिला , आपको पैसा मिल सकता है। हो सकता है कि आपको एक अच्छा घर मिल जाए, हो सकता है कि ये सभी चीजें हों, लेकिन आपको हृदय की शांति नहीं मिलती। आपको मानसिक शांति नहीं मिलती। आपको वह आनंद नहीं मिलता, आनंद , जिसकी कोई सीमा नहीं है, जिसे समझाया नहीं जा सकता, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, वह असीम आनन्द, आपके पास नहीं है। और आपको वह शाश्वत शांति नहीं मिलती, जो युद्धों को रोक सकती है। वह मनुष्यों के इस क्रूर स्वभाव को, पूरी तरह से समाप्त कर सकती है। वह आपको नहीं मिलती।

लेकिन इन सब के अलावा, आपको शक्तियां मिलती हैं। आप को ज्ञान प्राप्त होता है। आप सब के बारे में ज्ञान,  सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करते हैं। आप सभी के बारे में जानते हैं, कि वे क्या पहचान नहीं पा रहे । आप अपने बारे में और दूसरों के बारे में जानते हैं। यह ज्ञान, कॉलेज या स्कूलों में नहीं, बल्कि आपके भीतर, जो ज्ञान का महासागर है, वहां मौजूद है। और जिस भी तरह से आप उसे देखना चाहते हैं,  प्राप्त करना चाहते हैं, वहाँ है ,वहाँ मौजूद है। 

यही वास्तविक ज्ञान है जिसे हम कहते हैं कि, आप सूक्ष्म ज्ञान के माध्यम से प्राप्त करते हैं , मतलब कि चक्रों का ज्ञान, ब्रह्मांड का ज्ञान। सब कुछ आप को इससे मिल सकता हैं। लेकिन फिर आप दूसरों को ज्ञान बाँटने में अधिक रुचि लेने लगते हैं। फिर आप बहुत सी बातें जानना नहीं चाहते।  बैंकिंग के बारे में जानने की क्या जरूरत है, जैसे कि दुनिया में सबसे अमीर आदमी कौन है। ये सभी बातें आप जानना नहीं चाहते। आपका पूरा रवैया बदल जाता है और आपको जो मिलता है, वह है एक शांत दिमाग, जो सब कुछ जानता है जो कि उस से जानना है। यही आपको प्राप्त करना है।

अब आपका यह देश, अमेरिका, बहुत ‘ कर्मकांडी ‘ है। यह काम, काम, काम करता रहता है। ये हमेशा काम में डूबे रहते हैं। ये इतनी मेहनत करते हैं और क्या मिलता है? आपको ऐसे बच्चे मिलते हैं जो नशा करते हैं। आपको पत्नियां मिलती हैं जो इधर-उधर भाग रही हैं। आपको टूटे हुए परिवार मिलते हैं,  और शांति नहीं। आप युद्ध का समर्थन करते हैं। केवल एक चीज है कि अब तक, इस देश को एक तरह से संरक्षित किया गया है, लेकिन आपने कई आदिवासियों को नष्ट कर दिया है, इतनी सारी मूलभूत चीजें जिन्हें आप को संरक्षित करना चाहिए था ।

एक दिन आएगा जब उन्हें एहसास होगा कि:”यह जो वे कर रहे थे, यह बहुत गलत था।” एक दिन आएगा, जब अमेरिका मे इतनी सारी आत्म साक्षात्कारी आत्माएं होंगी | लेकिन अभी स्थिति यह है कि लोग सिर्फ पैसा कमाने के लिए पागल हो गए हैं और उन्हें ज्ञात हुआ है कि बस अब और नहीं, सब ख़त्म। तो अब क्या किया जाए? क्या करें? सहज योग में आइये !

सहज योग करें, फिर आप अपने अस्तित्व के खजाने को प्राप्त करेंगे, जो आपके अंदर हैं, जो आपको सभी आराम, सभी खुशी और सभी वर्चस्व देगा, जो किसी भी धन, किसी भी शक्ति से नहीं मिल सकता। यही हमें करना है, सहज योग में उतरना है और दूसरों को भी सहजयोगी बनाना है, ताकि उन्हें भी शांति, आनंद और संतुष्टि मिले।और एक चीज से दूसरी चीज तक दौड़ने का यह पागलपन खत्म हो जाएगा, क्योंकि आप उससे कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। आज एक चीज खरीदना चाहते हैं, तो कल दूसरी चीज, फिर कोई और चीज करना चाहते हैं। आप कभी संतुष्ट नहीं होते। आपने जो भी चाहा, उससे आपको कोई खुशी नहीं मिली।

तो आपकी शुद्ध इच्छा, परमात्मा के साथ एकाकार होने की होनी चाहिए। इसी तरह से यह  काम करेगी।

श्री कृष्ण की विशेषता यह थी कि वे हमेशा उन लोगों का समर्थन करते थे जो कि आत्मसाक्षात्कारी थे, जो सही रास्ते पर थे, जो न्याय परायण थे। वे कभी भी किसी ऐसे आदमी का समर्थन नहीं करते जो संपन्न हो, जो कोई पहुंचा हुआ हो । जैसे दुर्योधन एक महान राजा था। उन्होंने श्री कृष्ण को अपने घर, अपने बड़े महल में अपने अतिथि के रूप में आमंत्रित किया । श्री कृष्ण ने कहा: “मुझे क्षमा करें।” वे विदुर के पास गए, जो कि एक दासीपुत्र थे, क्योंकि विदुर एक साक्षात्कारी आत्मा थे। क्योंकि विदुर एक साक्षात्कारी आत्मा थे, उनके लिए वे,  दुर्योधन से -जो कि एक शासक था – से बहुत ऊँचे, बहुत अधिक महान थे क्योंकि दुर्योधन एक धूर्त था, एक बुरा इंसान था।     

तो अच्छे और बुरे के बीच भेद करना, आपके दिमाग में आ जाता है, यह आपका स्वभाव बन जाता है। तो आप हमेशा बहुत संतुष्ट होते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि आप कुछ ऐसा नहीं कर रहे हैं,जो गलत है।

सही गलत की पहचान श्री कृष्ण की देन है। अन्य चीज़ों के अलावा, वे हमें विवेक का उपहार देते है। यही उनका तरीका है – मुझे कहना चाहिए – कि आप कैसे अच्छे बुरे के बीच  पहचान करना सीखते है और फिर आप ‘चैतन्य से पहचानने’  के विशेषज्ञ बन जाते है। चैतन्य पर, आप सब कुछ इतनी स्पष्ट रूप से, इतनी खूबसूरती से पहचान सकते हैं। हो  सकता है दूसरे आपसे सहमत नहीं हो – यह एक अलग बात है – लेकिन आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। और यही श्री कृष्ण का उपहार है।  

जैसा कि आप जानते हैं, वे हमारे भीतर सोलह उप-चक्रों को नियंत्रित करते हैं। वे सब कुछ नियंत्रित करते हैं। वे आपके गले, नाक, आंख, कान को नियंत्रित करते हैं। इन सभी चीजों को वे नियंत्रित करते हैं, लेकिन आखिरकार, वे क्या कहते हैं ? वे कहते हैं कि वे ही विराट हैं । विराट का अर्थ है महान, महान शासक, जिसे हम “अकबर” कहते हैं और इसीलिए, इस्लाम में “अल्लाह हो अकबर” को मानते हैं। मेरा मतलब है, क्योंकि यह एक कविता में है, यह आंशिक रूप से स्पष्ट है और आंशिक रूप से अस्पष्ट, लेकिन वे विराट हैं और उन्होंने अर्जुन को अपना रूप दिखाया| अर्जुन उन के रूप को देखकर चकित थे, कि वे विराट हैं। वे ही हैं जो महान हैं, सब कुछ अवशोषित कर रहे हैं और वे ही हैं जो सब कुछ निष्काषित कर रहे हैं । वे यम हैं। वे ही हैं जो मृत्यु के देवता हैं। वे बहुत कुछ हैं। आप जानते हैं कि उनके नाम वहां नीचे लिखे हुए हैं ।

ये सभी शक्तियाँ भीतर हैं, जिनका वे उपयोग करते हैं, जहाँ भी आवश्यकता होती है।

तो सहज योगियों के पास पहले संतोष की शक्ति है। यह जबरदस्त अभ्यास है, संतुष्टि। सोचिये कि इस जगह जहाँ आप रह रहे है, आप सभी बहुत आनंद ले रहे हैं, आप यहाँ बहुत खुश हैं। यह क्या दिखाता है? कि आप इतने संतुष्ट हैं। नहीं तो कोई भी पसंद  नहीं करेगा। वे कहेंगे: “नहीं, हमें  कोई  अच्छी जगह चाहिए | यह क्या है? हम यहां सब के साथ नहीं रहना चाहते।” लेकिन दूसरों के साथ रहने के लिए, यह सामूहिकता भी श्री कृष्ण का आशीर्वाद है। वे आपको सामूहिक होना सिखाते हैं, सामूहिकता का आनंद, सामूहिकता का मज़ा लेना सिखाते हैं। 

एक व्यक्ति जो अकेला है, जो खुद को शराबी की तरह अलग रखता है, वह श्री कृष्ण की पूजा करने वाला नहीं है। ऐसा व्यक्ति जो श्री कृष्ण के साथ एकाकार है, वो सब लोगों के साथ रह कर आनंदित होता है,जो वहाँ पर हैं , विशेषतः अगर वे लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं, तो वह उन लोगो की संगत में बहुत आनंदित होता है। यह आप को जीवन में आसानी से समझ में आता है, यदि आप देखते हैं कि आप कैसे खुशी से, नैतिक रूप से, एकदम सही तरीके से रहते हैं। किसी भी तरह से, आप कुछ भी अनैतिक नहीं करते हैं, कुछ भी चोरी नहीं करते हैं या अन्य लोगों के लिए बुरी भावनाएं नहीं रखते हैं। यह कुछ आश्चर्यजनक है जो आपके साथ हुआ है, कि आप सभी इतने आनंद के साथ, एक स्थान पर इतनी खुशी से रह रहे हैं।   

उनकी सामूहिकता को समझना चाहिए, क्योंकि मैं हमेशा कहती हूं कि श्री कृष्ण अमेरिका के देवता हैं। अमेरिका भी बहुत सामूहिक है। जैसे, अमेरिका को हर देश में दिलचस्पी होगी। यह सभी के बारे में परेशान होगा, लेकिन यह गलत तरीके से मदद करने की कोशिश करता है| हमेशा |  सही तरीके से कभी नहीं| अब सोचिये, एक ऐसा देश है, जहां वे बहुत सारे ड्रग्स बनाते हैं। दूसरे देशों के बजाय उस देश पर आक्रमण क्यों नहीं किया जाता? I इस तरह से। अच्छे और बुरे के बीच पहचान गायब है।  

जब तक यह आपके पास नहीं है, तब तक आप सामूहिकता की अपनी शक्ति का सही उपयोग नहीं कर सकते। हालांकि वे सामूहिक हैं, लेकिन उन्होंने कौन से सामूहिक काम किए हैं? अब भी, वे कहना चाहते हैं कि वे अलग हैं, वे भिन्न हैं: “हम जो भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे हमारी अपनी हैं।”

इस सामूहिकता को श्री कृष्ण के देश में ही बहुत कम कर दिया गया है। हालांकि उन में  आपस में यह है, उनके भीतर एक भावना है – कि उन्हें हर देश के बारे में बात करनी चाहिए , उन्हें हर देश को नेतृत्व देना चाहिए, उन्हें हर देश से परामर्श करना चाहिए, लेकिन वे  हमेशा उन देशों के बारे में गलत निर्णय लेते हैं । यह इसलिए आता है क्योंकि वे सही गलत में विभेद नहीं कर पाते हैं। उन में विवेक होना चाहिए।    

विशुद्धि चक्र के बारे में बहुत सी बातें कही जा सकती हैं, लेकिन विशेष रूप से मैं विशुद्धि के दोनों तरफ के दो चक्रों के बारे में अधिक चिंतित हूं। उनमें से एक है, जैसा कि आप जानते हैं, बाईं ओर में ललिता चक्र और दाईं ओर में श्री चक्र।

मैंने हमेशा महिलाओं से कहा है कि: “कृपया इन्हें ढक कर रखें!” यह बहुत सरल लगता है, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हें बिना ढके ना रखें, क्योंकि इनकी शक्ति संरक्षित होनी चाहिए- श्री चक्र और ललिता चक्र, ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये स्त्री शक्तियाँ हैं और वे श्री कृष्ण की नारी-शक्तियाँ हैं| यह समझना चाहिए कि जिस तरह आप अपने शरीर का सम्मान करेंगे, उसी तरह से आपके चक्र होंगे और उसी तरह से आप पीड़ित रहेंगे । 

उदाहरण के लिए, आप श्री गणेश का सम्मान नहीं करते हैं तो आप पीड़ित होंगे। और यदि आप श्री गणेश का सम्मान करते हैं पर उस तरह से व्यवहार नहीं करते, जैसा कि आपको करना चाहिए, तो भी आपको नुकसान होगा, आपको समस्या होगी। पूरा शरीर प्रतिक्रिया करता है। शरीर बाहर के प्रभावों के कारण इस तरह से प्रतिक्रिया करता है कि आप देखना शुरू कर देते हैं कि कहीं कुछ गड़बड़ है और कुछ है , इसीलिए आप इस तरह का व्यवहार करते हैं।

इसके अलावा, इस चक्र द्वारा आंखों को भी शक्ति मिलती है। इसलिए, जब आप किसी चीज को देखते हैं, तो आपकी नज़र बहुत शुद्ध होनी चाहिए। यह जितनी शुद्ध होगी, उतना ही आपको आनंद मिलेगा। लेकिन अगर नज़र शुद्ध नहीं है, घूम रही है, यहाँ से वहाँ जा रही है, वहाँ से वहाँ, तो आप वास्तव में अपने धर्म के खिलाफ जा रहे हैं, अपनी विकासवादी प्रक्रिया के खिलाफ। और एक दिन आएगा, जब आप अंधे हो जायेंगे। आपको मोतियाबिंद हो सकता  है , आप को आंखों के सभी प्रकार के रोग हो सकते हैं, जो महत्वपूर्ण हैं ,जिन पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है।

फिर यह संबंध जीभ में भी आता है। इस चक्र से जीभ की देखभाल की जाती है। लेकिन उन लोगों को अचानक से बहुत बुरी बातें कहने, बहुत बुरे शब्द कहने या कभी-कभी बहुत ही गंभीर टिप्पणियों के साथ किसी के पीछे पड़ने की बहुत बुरी आदत होती है। ऐसी सभी बातें जीभ के लिए बहुत बुरी हैं और श्री कृष्ण को यह सब पसंद नहीं है। यदि आप दूसरों को कठोर बातें कहने के लिए अपनी जीभ का उपयोग करते हैं, व्यंग्यात्मक होते हैं, दूसरों पर कठोर होते हैं , अपमानजनक शब्दों का उपयोग करते हैं, आपकी जीभ, एक दिन, मुझे नहीं पता कि कैसे प्रतिक्रिया करेगी । यह विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया करेगी । भगवान जाने , यह मोटी हो सकती है। यह काम नहीं करेगी | भगवान जाने, यह अंदर जा सकती है।  

यह इसका भौतिक पक्ष है, लेकिन इसका मानसिक पक्ष भी है, कि आप यह नहीं जान पाएंगे कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं। यदि आप कुछ कहना चाहते हैं, तो आप कुछ और कहेंगे। यह आपकी जीभ से संभव है। यह भी संभव है कि आप बात करने में सक्षम न रहे , कुछ कहने में सक्षम न रहे । कुछ भी संभव है, यदि आप अपनी जीभ को इस तरह से परेशान करने की कोशिश करते हैं, इसका उपयोग गलत उद्देश्यों के लिए करते है। जीभ का उपयोग अपमानजनक चीजों के लिए नहीं किया जाना चाहिए | साथ ही साथ ..कुछ लोग ज्यादा अच्छे और सौम्य होने की कोशिश करते हैं, कुछ चीज़ों को प्राप्त करने के लिए। इस तरह की चीज़ भी बहुत, बहुत ज्यादा खतरनाक है – जीभ के लिए और आप की जीभ पर छाले हो सकते हैं, इस हद तक कि जो लोग दूसरों को कठोर बातें कहते हैं, उनको एक तरह का कैंसर पैदा हो सकता है ।  

कुछ लोग सोचते हैं कि, यदि आप सहन करते हैं, तो सब कुछ अच्छा है ,ऐसा नहीं है। अगर कोई आपको प्रताड़ित करने की कोशिश कर रहा है, तो उसे सहन करने की कोशिश न करें। इसे छोड़ दें, क्योंकि, यदि आप सहन करते हैं, तो आप बाईं ओर जा सकते हैं और आप को कैंसर जैसी भयानक बीमारी हो सकती हैं। आपको कैंसर हो सकता है। जो लोग आक्रामक होते हैं, उन्हें भी बीमारियां हो सकती हैं और जो बहुत अधिक सहते हैं , वे भी मुसीबत में पड़ जाते है।

इसलिए आपको एक संतुलित स्थिति में होना चाहिए, सब कुछ स्वीकार नहीं करना चाहिए। मान लीजिए कोई भी आपको कुछ गलत कहता है, तो बस चुप रहिए, उस व्यक्ति को देखिए – बस इतना ही। आप को पता है कि वह मूर्ख है। लेकिन उस बात को स्वीकार न करें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं और इसके बारे में रोते रहते हैं, तो आप को कैंसर हो सकता है । लेकिन अगर आप से कोई कुछ कहे, तो आपको पता होना चाहिए कि वह एक मूर्ख है, बस इससे बाहर रहें, तो कुछ भी नहीं होगा। इसलिए, दोनों तरीकों से, आप को सावधान रहना होगा, क्योंकि श्रीकृष्ण की माया चारों ओर है और वे देखते हैं कि आप कितनी दूर जा सकते हैं।  

अब गला, गला बहुत महत्वपूर्ण है। हमें इसकी देखभाल करनी चाहिए। वे लोग जो चीखते चिल्लाते हैं, अंततः अपनी बोलने की शक्ति खो सकते हैं, गले की समस्याओं से परेशान हो सकते हैं। विशेष रूप से गले में भयानक बीमारी हो सकती है जिसके द्वारा आपकी  गर्दन सूज सकती है। हम इसे स्नेक डिजीज (सांप की बीमारी) कहते हैं और आपको घुटन महसूस होती है | 

तो जब आप बात करते हैं किसी से, स्पष्ट रूप से बात करिये, एक मीठे ढंग से, पर उस व्यक्ति पर चिल्लाइये मत, कभी नहीं! ना ही आप अपने भाषण में चिड़चिड़ापन दिखाईये | यदि आप चिड़चिड़े हैं, तो कैंसर हो सकता है। इसलिए, दोनों तरीकों से, आपको सावधान रहना होगा। क्योंकि आप सहज योगी हैं, आपके पास यह ज्ञान होना चाहिए, कि अगर कोई कुछ बेकार की बात कहता है तो आप वैसा नहीं करेंगे, कोई भी गलत बात नहीं सहेंगे – मतलब, आपको इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। आपसे कोई कुछ कह सकता है। कोई बात नहीं । और कभी-कभी आपको उसे यह बताना चाहिए कि: “आप जैसा कह रहे थे, ऐसा नहीं है।” बेहतर है इसे सहन न करना और न भुगतना। आप क्राइस्ट नहीं हो। आपके पास उनकी  शक्तियाँ नहीं हैं। क्योंकि अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप को कैंसर हो सकता है ।    

इसलिए कोशिश करें कि – एक तरह से – आप सिर्फ मध्य में रहे , सब कुछ देखते रहे, चाहे वहाँ आक्रामकता है या उदासीनता – दोनों में से एक- आपको इनमें से किसी भी दृष्टिकोण को मानना नहीं चाहिए, पर बहुत दृढ़ता से अपनी जगह खड़े रहना चाहिए ।

उदाहरण के लिए, एक चीनी कहानी थी जिसे मैंने पढ़ा, कि एक बार एक राजा था, चाहता था कि उस के दो मुर्गे एक मुकाबले में जीत जाए, इसलिए लोगों ने कहा: “आप उन्हें एक ऋषि के पास भेज दें और उन्हें प्रशिक्षित करें।” इसलिए उसने उन्हें एक ऋषि के पास भेज दिया । उन्हें बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया गया। और जब उन्हें लाया गया, तो वे अखाड़े में खड़े थे और कई मुर्गे वहाँ थे, जिन्होंने उन पर हमला करना शुरू कर दिया, लेकिन ये दोनों बस खड़े रहे , बिना किसी परवाह के। बाकी मुर्गों ने बहुत कोशिश की, लेकिन ये दोनों इसी तरह खड़े रहे। अंत में , वे सभी भाग गए।

तो यही चरित्र आपके पास होना चाहिए। किसी चीज के लिए झुकना नहीं है क्योंकि कोई आक्रामक है, और आपको दूसरों पर आक्रमण भी नहीं करना, दूसरों को यातना नहीं देना, किसी के सिर पर नहीं बैठना। यह आपके गले के लिए बहुत, बहुत खतरनाक है और ऐसे गले को हमेशा हमेशा भयानक बीमारियों के होने का खतरा बना रहेगा।

यह सब मैंने आपको बताया है क्योंकि, इतनी सारी बातें, विशुद्धि चक्र के  बारे में हम जानते हैं, हमें उन तक पहुंचना चाहिए। हमारे पास है – लेकिन हमें विशुद्धि चक्र के बारे में बहुत सूक्ष्म ज्ञान है । हमें थोड़ा स्थूल (ग्रॉस) ज्ञान भी होना चाहिए, कि क्या हो सकता है अगर हम विशुद्धि चक्र की देखभाल न करें।

तो यह श्री कृष्ण का काम है। इसके अलावा वे दाँत की देखभाल भी करते हैं। कान की  देखभाल करते हैं। आपको पता है कि दांत और कान के लिए आप को क्या करना है। ये उन के सोलह – हम कह सकते हैं, कार्य हैं। हम उन्हें सोलह कार्य कह सकते हैं , जिन पर वे  अलग-अलग स्तरों पर काम करते हैं। और आपको अपने विशुद्धि चक्र की शक्तियों को  भिन्न-भिन्न तरीकों और अभ्यासों द्वारा विकसित करने की कोशिश करनी चाहिए | हमें  समझना चाहिए कि हमारे साथ क्या गलत हो सकता है, जब हम विशुद्धि चक्र को समझते और महत्व नहीं देते हैं । 

अब अमेरिका पूरी दुनिया का विशुद्धी है, इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जो लोग यहां के प्रभारी हैं, उन्हें विशुद्धी की सभी शक्तियों का पता होना चाहिए, साथ ही इसे कैसे संरक्षित किया जाए और इसे पूरी दुनिया में कैसे बढ़ाया जाए।

इस के साथ ही दोनों हाथ भी विशुद्धि चक्र के हैं और इनसे आपको सहज योग का प्रसार करना है। आपको अलग-अलग दुनिया, अलग-अलग देशों में जाना है, यहाँ तक कि छोटे गाँवों में भी, आपको सहज योग का प्रसार करना है। पहले केवल हाथों में, आप ठंडी हवा देखते हैं। इसका मतलब है कि आप अपने जीवन में परमात्मा की विश्वव्यापी शक्ति को महसूस कर सकते हैं।

तो यह सामूहिक, विश्वव्यापी प्रेम है, जो आपके हाथों में आता है और आपको सिखाता है।

तो यह इतना महत्वपूर्ण चक्र है। उसी तरह से, अमेरिका भी बहुत महत्वपूर्ण है और  अमेरिका के नागरिकों के रूप में, आपको यहां धर्म को बनाए रखने और दुनिया की समस्याओं को समझने के लिए एक महान सोच बनाने और सभी लोगों को प्यार देने की कोशिश करनी चाहिए, चाहे वे किसी भी देश से आएं हों ।

भगवान आप सबको अनंत आशीर्वाद दें!

परम पूजनीय श्री माताजी निर्मला देवी