Adi Shakti Puja: Be One With Yourself First

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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[English to Hindi translation]

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

आदि शक्ति पूजा

कबेला, इटली

6 जून, 2004

आज की सभा बहुत विशेष है। आज का दिन भी बहुत बहुत विशेष है, अत्यधिक विशेष और अत्यंत परमानंद पूर्ण। इसका कारण है कि यह बात करता है और गाता है, और बताता है उत्पन्न करने की प्रणाली, उत्पन्न करने की शक्ति, मूलरूप, आदि और आदिकालीन के बारे में और यही एक इस महान ब्रह्मांड की रचना के लिए उत्तरदाई हैं। यह क्यों शुरू हुआ और यह किस तरह कार्य करता है यह आप पहले से ही जानते हैं। मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है।

परंतु आज हमें उस शक्ति के बारे में बात करनी है जो आपके हृदयों में छुपी है जिसके द्वारा आप जो कुछ चाहे कर सकते हैं एक नए संसार, नए परिवार और नए मापदंडों की रचना के लिए, वह सब जो अभी तक अज्ञात है। यह काफी संभव है, काफी संभव है और यह किया जा रहा है। पर जो कठिन है वह है लोगों को अधिक अनुकूल बनाना, एक दूसरे से अधिक सामंजस्य बिठाना पूर्णत:। एक मुश्किल चीज लगती है। वे आपस में ठीक रहते हैं अगर उनके अपने मित्र हों, अपनी शैली हो और अपना सामान हो। लेकिन उन्हें पूर्णत: एक रूप बनाना एक दूसरे से एकरूप बनाना एक धुन में, एक पंक्ति में, बहुत बहुत कठिन है और यह करना भी नहीं चाहिए। यह होना नहीं चाहिए, वह ऐसे होने नहीं चाहिए, परंतु यह कार्यान्वित होना चाहिए।

अब समस्या यह है कि हमारे पास सुंदर लोग हैं, सुंदर आत्माएं हैं परंतु एक दूसरे से इतनी एकरूप नहीं होते हैं जितना उन्हें होना चाहिए। तो इस समस्या का समाधान कैसे हो? कई लोगों ने मुझसे पूछा है, मां! इस समस्या का समाधान कैसे करें? मैं सिर्फ मुस्कुराई, क्योंकि अगर हम सिर्फ मौलिक अवधारणा को देखें, हमने ये ऐसे क्यों शुरू किया, क्यों हमने इस नई समझ की, नए प्रकार के भेदन की शुरुआत की, क्योंकि हम प्रत्येक व्यक्ति में एकरूपता, नवीनता को प्राप्त करना चाहते थे? अब आप सब को बहुत कृतज्ञ होना चाहिए कि आप सब एक रूप हैं, अंदर से एकरूप, कुछ भी दूसरा नहीं है। वह एक ही है और जब वह बोलता है, और जब वह कोई  प्रबंधन करना चाहता है, तो आपको आश्चर्य होगा कि यह एक ही तरीके से होता है। यह एक ही चीज है और एक ही तरह से कार्यान्वित होती है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं है और ना ही दोनों में कोई अंतर है।

इसके बावजूद, इसके बावजूद हमारे दिमाग घूम रहे हैं, किसी समस्या में घूम रहे हैं, जिनका सहज योग में कोई भी महत्व नहीं है। हमारी मुख्य समस्या यह है कि हम यह नहीं समझ पाते कि हमारी कोई समस्या नहीं है। हमारी कोई समस्याएं नहीं हैं। हम सोचते हैं कि समस्याएं हैं और हमें उनसे निपटना चाहिए। लेकिन है ही नहीं, इनमें से कोई भी समस्या नहीं हैं। मुझे कहीं कोई समस्या दिखाई नहीं देती। जो सोचते हैं कि उन्हें समस्याएं हैं, मैंने उन्हें लिख लेने के लिए कहा है और मैं उनका उत्तर देने का प्रयत्न करूंगी, उन्हें बताऊंगी कि यह किस प्रकार की समस्या है। इससे पहले कि मैं कुछ करूं मैं यह कहना चाहती हूं सहयोगी उस स्तर पर नहीं आए हैं, कि वह एकाकारिता को, उनके हृदयों में उस एकाकारिता की विशिष्ठता को समझ सकें। 

यह सब अंदर से आता है बाहर से नहीं, इसलिए बाहर से किए गए प्रयत्न किसी काम के नहीं। हमें निष्चेष्ट होना है और वह बनना है जो हम हैं। वहां पर हम पाएंगे कि, नहीं! कोई भी कमी नहीं है। कोई अन्य मुलाकात या कुछ भी संकेतिकरण करने की कोई जरूरत नहीं है, जरुरत नहीं है। वह सब वहां है। सिर्फ आप को वो होना है वो बनना है। बल्कि यह मुश्किल है उन लोगों के लिए समझना की समान बनना है, जिनकी अलग नाक हैं, जिनके अलग चेहरे हैं, सब कुछ अलग है। लेकिन आप हैं, आप हैं (समान) क्योंकि आप नहीं जानते कि आप हैं, इसीलिए आप अलग दिख रहे हैं।

तो मुझे आप सबको एक बात बतानी है, कि आप सब एक हैं। एक होने का अर्थ है कि आप का सब – आवेग, हर भावना, हर समझ एक है। सिर्फ बात इतनी है कि यह उठती है लंबे समय में, अलग समयों पर, और यह आप को एक गलत धारणा देती है कि यह अलग है, असल में नहीं है। यह एक, एक रिश्ता है, और रिश्ता आदिशक्ति से, की आप आदिशक्ति के अंग प्रत्यंग हैं कि कोई कितने भी प्रयत्न कर ले वह आदिशक्ति से अलग नहीं हो सकता। आप उन से ही जन्मे हैं और उन्हीं के द्वारा संचालित हैं और आप की देखभाल उन्हीं के द्वारा हो रही है।  मुझे तो सब कुछ एकरूप लगता है, जब की आप लोग सोचते हैं कि, कार्यशैली, कार्यप्रणाली अलग हैं, जो की गलत है।

मैं कुछ भी कहूं उसे साबित करना होगा, नहीं तो आप लोग इस भयावह वक्तव्य को क्यों स्वीकार करेंगे? मै स्वयं आप से एकरूप हूं और मैं सदैव ऐसे ही रहूंगी आप सब के साथ। मेरे लिए कोई असमानता नहीं है, मुझे ऐसी कोई चीज नजर नहीं आती। यह सब बाहर है  आपके कपड़े हैं, आप की शैली है, अंतर में शायद जो आपका स्वभाव है, उस स्वभाव पर निर्भर करता है। अगर वह स्वभाव थोड़ा सा भी बदल जाए तो आप सब में एकरूपता देखेंगे और सारे फर्क तुरंत समाप्त हो जाएंगे।

”आज मैंने एक खतरनाक आदमी देखा और मैंने सोचा कि अगर वह चाहे, वह मुझे मार सकता है, वह कुछ भी कर सकता है अगर वो चाहे, लेकिन नहीं! ऐसा कुछ हुआ नहीं। क्यों? क्योंकि मैं उसे कभी समझी नहीं। वो ऐसा नहीं था, वह सिर्फ मुझे सम्मान देना चाहता था, वो मुझे मारना नहीं चाहता था, वह कुछ भी गलत नहीं करना चाहता था।” यह बड़े आश्चर्य की बात कि आप एक दूसरे को कैसे समझते हैं! जब तक आप में एक दूसरे की सही समझ नहीं आएगी आप कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। वही बढ़िया है, आवश्यक है, उचित है और सत्य है। 

तो सत्य की शुरुआत बहुत समय पहले हो गई थी इससे पहले कि कोई यह सोचता कि यहां भी सत्य होना चाहिए। यह सब चला गया बहुत से कारणों से जो सत्य नहीं थे, और फिर सत्य चला गया। जैसे मैं कहूंगी कि सर्प, सर्प अज्ञान से उत्पन्न हुआ। और फिर बाकी सर्प उसे समर्थन देने लगे। सर्प के बाद और सर्प, वह बढ़ने लगे और सारे ब्रह्मांड को बेईमानी और बुरे अवधारणाओं से भरने लगे, जिन पर वो विश्वास करने लगे और आपस में लड़ने मरने लगे। लेकिन वे सब सर्प थे। तो उनकी बेहूदगी पर कोई कितना विश्वास करे? उनकी बेहूदगी का कोई कितना अनुसरण करे? उनकी बेहूदगी को कोई कितना स्वीकारे? यह बहुत कठिन है, पर यह सत्य से ज्यादा शिरोधार्य है।

सत्य बहुत आसानी से स्वीकृत नहीं होता जितना कि असत्य होता है। क्यों? क्योंकि हम असत्य में खड़े हैं। हमारी स्वयं की समझ असत्य है, और हम को अपनी समझ को सत्य में करना होगा जो की कठिन नहीं है क्योंकि हम सत्य हैं, हम सत्य हैं। सत्य बनना, जो कि हम हैं, क्यों मुश्किल होना चाहिए? नहीं होना चाहिए, पर होता है। इसका अर्थ है कि हमारे अंदर कहीं कुछ   गलत है, जो हमे ढूंढ़ना चाहिए। और जो चीज हम में गलत है, अंतर में, वह यह है कि हम खुद का सामना नहीं कर सकते। हम खुद का सामना नहीं कर सकते। हम दूसरों का सामना करते हैं खुद का नहीं। हम कभी खुद को देखते ही नहीं है। हमें इस बात की कल्पना ही नहीं है इस बारे में कि हमारी क्या स्थिति है। और उसके लिए आपको मां की आवश्यकता थी, जो आपको यह दिखाए। और इस तरह से मां धरती पर आई, दिखाने के लिए की आपके अंदर क्या समस्या है अंतर में। यह स्वीकार्य होना चाहिए, यह सिद्धांत स्वीकार होना चाहिए। आप को अपने बारे में आश्चर्य होगा कि आपको पहले से ही अपने बारे में कितनी जानकारी है और अपने आसपास के बारे में भी। ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है, ऐसा कुछ भी असाधारण नहीं है, सिर्फ एक बात है कि, आप स्वीकार होने चाहिए स्वयं को।

मैं सोचती हूं कि बहुत से लोग सहयोगी बन रहे हैं लेकिन वह सहज योगी है नहीं। वो सहज योगी है नहीं, लेकिन बनने की कोशिश कर रहे हैं। इसके विपरीत उन्हें जानना चाहिए कि वह सहज योगी हैं और उन्हें कुछ बनना नहीं है। फिर कोई समस्या नहीं है। पर जब आप ने स्वीकार कर लिया है कि सहज योग अलग है, सहज योगी अलग है और आप अलग हैं, तो आप 

सहज योगी कैसे बन सकते हैं? बात यह है कि यह अज्ञान है, अज्ञान है जो हमें है, कि हम एक दूसरे से अजनबी जैसा व्यवहार कर रहे हैं, यह पूर्णता अज्ञान है, हमें यह जानना है कि हम सब एक हैं। किसी भी प्रकार के किसी अज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है। और जब यह होगा तो विश्व की सारी समस्याएं बिना किसी कठिनाई के हल हो जाएंगी।

आज की पूजा विशेष है, क्योंकि आप ऐसी चीज की पूजा कर रहे हैं जो कभी परिवर्तित नहीं हुई, जो कभी भी बिल्कुल नहीं बदली। वह हमेशा वैसे ही थी हमेशा वैसे ही बनी रही, उसी के साथ पैदा हुई और उसी के साथ है आज भी। ऐसी पूजा में मुझे क्या कहना है? क्यों किसी को कहना है? कुछ नहीं। सब से पहले स्वयं  से एक रूप हो जाइए, हम उस बिंदु पर आते हैं, कि हमें स्वयं से एक रूप होना है और शब्दों, वातावरण, मस्तिष्क की हलचल में और अन्य चीज़ों में नहीं खोना है क्योंकि यही वह समय है जब मस्तिष्क में हलचल शुरू होती है, और जब उस में हलचल शुरू होती है तो वह स्वयं पर काबू खो देता है। वैसे एक सर्प, जब तक वह अपने स्थान पर है कोई खतरा नहीं है। पर अगर वह चलने लगे तो उसके लिए खतरा है। उसी प्रकार हमें जानना चाहिए कि हमारा मस्तिष्क बहुत बहुत कठिन है और उसे गलत दिशा में नहीं जाना चाहिए। उसके लिए हमें आदिशक्ति की पूजा करनी होगी, क्योंकि हमें आदिशक्ति के मार्ग पर रहने की कोशिश करनी चाहिए। हमें खुद को आदि रखना है। हमें खुद का आदि कार्यान्वित करना है और किसी भी कारणवश बदलना नहीं है। अगर हम प्राप्त कर सके तो यह सबसे उत्तम वस्तु होगी। मुझे विश्वास है हम कर सकते हैं इतना मुश्किल नहीं है। एक बात है कि हम भारतीय, अंग्रेज़, युरोपीयन इत्यादि होने को लेकर बहुत सचेत हैं, पर हम हैं नहीं।

हम सब सिर्फ हम स्वयं हैं, यही हमको प्राप्त करना है- स्वयं से एकाकारिता।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।