Guru Puja, How To Become A Guru

Campus, Cabella Ligure (Italy)

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(कबैला लीगर(इटली), 20 जुलाई 2008)

सभी सहजयोगियों के लिये आज का दिन बड़ा महान है क्योंकि आपका सहस्त्रार खोल दिया गया है, आप परमात्मा के अस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं। ये कह देना कि परमात्मा है …. ये काफी नहीं है … और ये कहना भी कि परमात्मा हैं ही नहीं …ये भी सरासर गलत है और जिन लोगों ने ऐसा कहा है उन्हें इसके कारण बहुत कष्ट उठाने पड़े हैं। केवल आत्मसाक्षात्कार पाने के बाद ही आपको मालूम होता है कि परमात्मा हैं और उनके चैतन्य का अस्तित्व भी है। पूरे विश्व में ये बहुत बड़ी घटना है कि विराट का सहस्त्रार खोला गया। इसीलिये आज मैं कह रही हूं कि आपके लिये ये बहुत महान दिन है। आपमें से अनेकों ने अपने हाथों और सहस्त्रार पर ठंडी हवा का अनुभव किया है। सहजयोग में कुछ लोगों ने काफी प्रगति की है और कुछ ने बिल्कुल भी नहीं की है। कुछ अभी तक अपने पुराने कैचेज के साथ ही जिये जा रहे हैं। लेकिन अब मुझे कहना है कि आपमें से अनेक स्वयं के गुरू बन सकते हैं अर्थात शिक्षक और आपको एक गुरू की तरह ही व्यवहार करना चाहिये। गुरू की तरह से व्यवहार करने के लिये आपको सहजयोग को जानना होगा … इसके सिद्धांत और आपको इसके तौर तरीकों को पूर्णतया जानना होगा … तभी आप गुरू बन सकते हैं। आपके ऊपर ये एक बहुत बड़ा दायित्व है …… गुरू बनने के लिये आपके अंदर बहुत बड़ी समझ का होना आवश्यक है। इसके लिये आपके अंदर अहंकार नहीं होना चाहिये …. आपके चक्र नहीं पकड़ने चाहिये… आपको हमेशा पूर्णतया स्वच्छ होना चाहिये और आपके दोनों हाथों से चैतन्य प्रवाहित होना चाहिये। यदि चैतन्य आपके एक हाथ से प्रवाहित हो रहा है … दोनों से नहीं तो तब भी आप अभी गुरू नहीं बन सकते हैं। अतः आपको एक परफैक्ट सहजयोगी होना चाहिये तभी आप गुरू बन सकते हैं। आपमें से बहुत से लोग गुरू बन सकते हैं लेकिन पहले आपको ये सुनिश्चित करना होगा कि क्या आप स्वयं के गुरू बनने के योग्य हैं भी या नहीं। नम्रतापूर्वक ऐसा पूछने पर आप समझ जायेंगे। जो लोग सोचते हैं कि वे गुरू बन सकते हैं तो उन्हें गुरू बन जाना चाहिये क्योंकि अब मैं अधिक यात्रा नहीं कर सकती और आप लोगों को ही मेरा कार्य करना है …. लोगों को साक्षात्कार देना है लेकिन आपको सामूहिक साक्षात्कार देने में सक्षम होना चाहिये तभी आप गुरू बन सकते हैं। यदि आप सामूहिक साक्षात्कार दे सकते हैं तभी आप गुरू बन सकते हैं। आप मेरे फोटो का इस्तेमाल कर सकते हैं परंतु साक्षात्कार मेरे फोटो द्वारा नहीं बल्कि आपके द्वारा दिया जाना चाहिये तभी आप गुरू बन सकते हैं। महिलायें और पुरूष दोनों ही गुरू बन सकते हैं और सहजयोग को फैला सकते हैं। अपने पूरे टूर में मैं कनाडा नहीं जा सकी और मैं आपसे कहूंगी कि आपमें से कोई कनाडा जा सकता है क्योंकि कनाडा काफी सुंदर स्थान है और वहां पर बहुत अच्छे सहजयोगी हैं। अब आपको मेरा कार्य करना है। मैं सभी जगह नहीं जा सकती हूं लेकिन आपको अन्य देशों में भी जाना है और नये सहजयोगियों को बनाना है … आप ये कार्य कर सकते हैं। प्रारंभ में आप साक्षात्कार के लिये मेरे फोटो का उपयोग कर सकते हैं परंतु बाद में आप मेरा चित्र वहां रख सकते हैं परंतु साक्षात्कार देने के लिये स्वयं की शक्तियों का उपयोग करिये। निश्चित रूप से आप ऐसा कर सकते हैं और इसी प्रकार से हम पूरे विश्व में सहजयोग को फैला सकते हैं। मैंने अपना कार्य बहुत अच्छी तरह से किया है परंतु मुझे लगता है कि अब मैं और अधिक यात्रायें नहीं कर पाऊंगी। अतः मैं आपसे कह रही हूं कि अब इस कार्य का दायित्व आपको ही लेना होगा और इसे कार्यान्वित करना होगा। इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि आप मुझे ही नकारने लगें ….. नहीं … बिल्कुल नहीं। मैं आपके साथ हर पल ….. हर समय हूं और जहां भी आप कार्य करें … मेरे चित्र को लगा लें … परंतु साक्षात्कार तो आपको ही देना होगा ……. आपको सामूहिक साक्षात्कार देने का प्रयास करना होगा। यदि आप ये नहीं कर पाते हैं तो आपको जान लेना चाहिये कि अभी आप गुरू नहीं हैं। यदि आप सामूहिक साक्षात्कार दे सकते हैं तभी आप गुरू बन सकते हैं अन्यथा नहीं। मैंने कहा है कि आप मेरा चित्र लगा लें और साक्षात्कार दें लेकिन साक्षात्कार आपको ही देना होगा। ये एक गुरू का लक्षण है। आप जानते ही हैं कि आपके चक्र कौन-कौन से हैं और लोगों में अभी कौन-कौन सी कमियां हैं। ये बातें मैं आपको पहले ही स्पष्ट रूप से बता चुकी हूं। इसी प्रकार से आप नये लोगों को उनके चक्रों के बारे में बतायेंगे जो साक्षात्कार के लिये आते हैं। अभी उनमें कुछ कमियां होंगी और आपको उन्हें ये बताना होगा कि उनके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। आप जानते ही हैं कि उन चक्रों को किस प्रकार से साफ करना है … तो आपको उन्हें यह भी बताना होगा कि इन चक्रों को किस प्रकार से साफ करना है। अब आपको सहजयोग में महारत हासिल हो चुकी है …… अतः आपको मालूम होना चाहिये कि क्या करना है। यदि आप सोचते हैं कि आपको इस पर महारत हासिल हो चुकी है तभी आप गुरू बन सकते हैं। लेकिन सबसे पहले आपको सुनिश्चित करना चाहिये कि क्या आप गुरू हैं या नहीं। अब ये आपका दायित्व है कि आप लोगों को साक्षात्कार दें और यदि आपके अंदर से एक गुरू की भांति चैतन्य प्रवाहित हो रहा है तो आप अवश्य लोगों को साक्षात्कार दे सकते हैं। महिलायें भी साक्षात्कार दे सकती हैं ……. उनको गुरूवी कहा जाता है गुरू नहीं …. परंतु उन्हें गुरू भी कहा जा सकता है। वे भी इस कार्य को भली-भांति कर सकती हैं। तब लोगों की समस्याओं का समाधान करना कठिन नहीं होगा। एक बार जब लोगों को साक्षात्कार प्राप्त हो जाय तो उनकी समस्याओं का समाधान भी होना चाहिये। ये आपको बहुत बड़ी शक्ति प्राप्त हुई है जिसका प्रयोग आप सबको करना चाहिये। यदि आप चाहें तो सबसे पहले एक समूह को ले लें लेकिन बाद में आप इसे व्यक्तिगत रूप से भी कर सकते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि आप सब गुरू बन जांय तो फिर विश्व में कितने सहजयोगी बन सकते हैं? जो कुछ भी आप उन्हें सिखायें आपको वह कार्य करना भी होगा। एक मदिरापान करना वाला व्यक्ति कभी भी गुरू नहीं बन सकता है। एक व्यक्ति जो उच्छृंखल जीवन जीता है … वह कभी भी गुरू नहीं बन सकता है। अतः पहले अपना आत्म परीक्षण कर लें कि क्या आप गुरू बनने के लिये स्वच्छ हैं भी या नहीं। यदि भूतबाधित व्यक्ति गुरू बनने का प्रयास करें तो वे नहीं बन सकते हैं। आपको मेरे फोटो पर देखना चाहिये कि क्या आप …. या वे भूतबाधित हैं … तो फिर आप गुरू नहीं बन सकते हैं। अतः गुरू बनने के लिये पहले आपको अपनी आलोचना करनी होगी कि क्या आप गुरू बन सकते हैं? मैं व्यक्तिगत रूप से किसी को नहीं कह रही हूं परंतु आप स्वयं ही पता कर सकते हैं। माना आपमें से तीन चार लोग साथ मिलकर एक दूसरे से जान सकते हैं कि क्या वे ठीक हैं या नहीं … यदि उनमें कोई कमी है या उनका कोई चक्र कैच कर रहा है। यदि वे सब कहें कि आप बिल्कुल ठीक हैं तो फिर आप गुरू बन सकते हैं और आप लोगों को सहजयोग के विषय में बता सकते हैं। ये आपका ही दायित्व है। इसी तरह से सहजयोग बढ़ेगा। अन्यथा यदि मैं रिटायर हो गई और यदि मैं कहीं न जांऊ तो सहजयोग व्यर्थ हो जायेगा। अतः अब आपको ही इस मशाल को आगे लेकर जाना है … ये आपका ही दायित्व है। आपको आपका आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। मेरा जन्म इसी दायित्व के साथ हुआ था …. मेरा जन्म इसी समझ के साथ हुआ था। अब आप भी इसको समझ रहे हैं। स्वयं का तिरस्कार न करें। लेकिन सावधान रहें …… अहंकारी न बनें ……. आपको अत्यंत नम्र बनना है …… सबके साथ नम्रता से पेश आयें और इस कार्य को क्रियान्वित करें। यदि वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो आपको उन्हें नम्रतापूर्वक और मधुरता से बताना है कि अभी आपकी अवस्था ठीक नहीं है। उन्हें ध्यान करना सिखाइये …. ये सिखाइये कि उन्हें स्वयं में किस प्रकार से सुधार लाना है। ये एक बड़ा दायित्व है। जिस प्रकार से मैंने इस कार्य को किया है आप भी उसी प्रकार से ये कार्य कर सकते हैं। अतः आप सबको गुरू बनना है। आज पूर्णिमा का दिन है और मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूं कि आप सब गुरू बन जांय। जो कुछ भी आपने अब तक प्राप्त किया है उसे व्यर्थ न जाने दीजिये। इसे व्यर्थ न होने दें बल्कि लोगों के कल्याण के लिये इसका उपयोग करें। प्रारंभ में चार या पांच लोगों को ही साथ लें। इसके बाद अलग हो जांय। इसके लिये समय निकालें। आपको तो साक्षात्कार प्राप्त हो चुका है परंतु आपको इसे लोगों को भी देना होगा अन्यथा आपकी स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं है …. सामान्य नहीं है। आज मैं आप सबको बताना चाहती थी कि एक गुरू के लिये किन गुणों का आवश्यकता हैं। सबसे पहले तो उसे एक अनासक्त व्यक्ति होना चाहिये। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि आप अपने परिवार को ही छोड़ दें। लेकिन आपके अंदर एक अनासक्ति का भाव होना चाहिये कि यदि आपके परिवार का कोई व्यक्ति यदि कुछ गलती करता है तो आपको उसे छोड़ने में … उससे दूर जाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये। दूसरे आपको अपने साक्षात्कार के माध्यम से उनकी समस्याओं को दूर करना चाहिये और उन्हें प्रसन्नता देने का प्रयास करना चाहिये। आपने देखा ही है कि जो कुछ भी मैं कर सकती हूं आप भी वही कर सकते हैं। आपके पास शक्तियां हैं परंतु इसके लिये किसी आडंबर या पाखंड की आवश्यकता नहीं है। मैंने देखा है कि जो कुछ भी मैं कर सकती हूं आप भी वहीं कर सकते हैं। आपके अंदर इन कार्यों को करने की शक्तियां हैं। इसके लिये किसी आडंबर की आवश्यकता नहीं है अन्यथा आप सहजयोग का नाम बदनाम करेंगे। अतः यदि आप अपने बारे में आश्वस्त हैं तो तभी आपको गुरू बनना चाहिये… सहजयोग के कार्य को आगे बढ़ाना चाहिये। मैं समझती हूं कि मैंने अपना आशीर्वाद और सहयोग आपको दे दिया है कि आप मुझसे ये कार्यभार ले लें और गुरू बन जांय। आप सभी पूजायें भी कर सकते हैं परंतु इसके लिये मेरे फोटोग्राफ को उपयोग करें। आप जानते ही हैं कि इसको किस प्रकार से क्रियान्वित किया जाना है। यदि किसी के अंदर कुछ दोष हैं तो या किसी का कोई चक्र पकड़ रहा है तो आपको उसे बताना चाहिये कि इसे किस प्रकार से ठीक करना चाहिये। सबसे अच्छा तो इसे फोटो पर करना होता है। आपको उन्हें बहुत नम्रतापूर्वक ये सब बताना है और फिर आप सबको बचा सकते हैं। अब इस कार्य के लिये मैं उपलब्ध नहीं रहूंगी … मेरा मतलब है मैं बहुत कार्य कर चुकी अब मैं ये कार्य नहीं कर पाऊंगी। ये मेरी बढ़ती उम्र के कारण नहीं बल्कि मैं आपको सहजयोग फैलाने की पूर्ण स्वतंत्रता देना चाहती हूं। आपको ये निःशुल्क मिला है और आपको भी इसे निःशुल्क ही लोगों को देना चाहिये … इसके लिये कोई पैसा वैसा नहीं लेना चाहिये। पूजाओं के लिये … सावधान रहें कि जब तक आपने सौ लोगों … अच्छे लोगों को साक्षात्कार नहीं दे दिया है तब तक पूजाओं में न जांय। इसके बाद वे आपकी भी पूजा कर सकते हैं। लेकिन सबसे अच्छा होगा कि आप इंतजार करें और देखें। तब तक पूजायें न करें जब तक कि आपमें से प्रत्येक ने कम से कम एक हजार लोगों को साक्षात्कार न दे दिया हो ….. तभी आपको पूजा का अधिकार प्राप्त होगा। लेकिन जब तक आप बिल्कुल ठीक न हो जांय तब तक मेरे फोटोग्राफ से ही पूजायें करवायें। इसके लिये आत्मविश्वास सबसे महत्वपूर्ण चीज है। स्वंय को धिक्कारे नहीं … अपना भर्त्सना न करें। आप सब साक्षात्कारी आत्मायें हैं। लेकिन जो सोचते हैं कि वे अब गुरू बन सकते हैं वे गुरू बन जाँय और इसके लिये प्रयास करें। साधकों के साथ आपको धैर्य रखना चाहिये। आपको क्रोधी और गरम स्वभाव का नहीं होना चाहिये। जब तक कोई आपको परेशान न करे तब तक आपको अपना आपा नहीं खोना चाहिये। आपको शांत रहना चाहिये। मैं सोचती हूं कि पूर्व में अधिकांश गुरू अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे …. वे क्रोध ही दिखाते रहे और कुछ विशेष कार्य नहीं कर सके। वे आत्मसाक्षात्कार भी नहीं दे सके। अतः मुझे आपको चेतावनी देनी है कि अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। यदि आपको क्रोध आता है तो स्वयं को देखें। गुरू को अत्यंत स्नेही व्यक्ति होना चाहिये …. अत्यंत समझदार होना चाहिये। आपको भी नम्र होना चाहिये ……. गाली-गलौज न करें …. लोगों पर चिल्लायें नहीं। यदि लोग आपके साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो आप उन्हें प्रेमपूर्वक बाहर जाने को कह सकते हैं परंतु उनके ऊपर चिल्लायें नहीं और न ही उनसे नाराज हों। अतः आपके ऊपर अब ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आपको अपना साक्षात्कार प्राप्त हो चुका है और आपमें से चार या पांच लोगों को सहजयोग का एक समूह बना लेना चाहिये जो लोगों को आत्म-साक्षात्कार दे सके। इसका प्रयास करें। मेरा फोटो तो है ही लेकिन आपको भी इसके लिये प्रयास करना चाहिये। ये समझने का प्रयास करें कि आपका दायित्व अब क्या है। यदि आपको कोई पद दिया गया है तो आपको हमेशा उस पद के दायित्व को निभाना चाहिये। इसी प्रकार से यदि आप गुरू बन जाते हैं तो आपका कुछ विशेष दायित्व है कि आपके व्यवहार को बहुत ही अच्छा होना चाहिये। प्रारंभ में ही आपको उन्हें ये नहीं कहना चाहिये कि आप चर्च न जांय …… या ये न करें ……. वो न करें। आप उनको साक्षात्कार दें और फिर आप उन्हें ये बातें बता सकते हैं। प्रारंभ में ही आपको उन्हें ये बातें नहीं बतानी चाहिये नहीं तो वे आपका बहिष्कार कर देंगे … आपकी बात ही नहीं सुनेंगे। यदि संभव हो तो शुरूआत में आपको लोगों का उपचार भी नहीं करना चाहिये। इसके लिये आप मेरा फोटोग्राफ उन्हें दे सकते हैं। लेकिन स्वयं उनका उपचार करने का प्रयास न करें। बाद में यदि आपके अंदर आत्मविश्वास आ जाय तो आपमें से चार या पांच लोग उस व्यक्ति का उपचार कर सकते हैं। लोगों का इलाज करना आसान नहीं है और आपको पकड़ भी आ सकती है। अतः किसी का इलाज करने से पहले आप बंधन ले लें। बंधन लेना बहुत अच्छा है। बाहर जाने से पहले भी आपको बंधन लेना आवश्यक है। यदि संभव हो सके तो आपको सुंदर भाषण भी देने चाहिये। आपको अब बहुत सारी चीजें मालूम हैं … इनके बारे में आप उन्हें बता सकते हैं। ये बहुत बड़ा दायित्व आप लोगों पर है। मैं 1970 से इस कार्य को कर रहीं हूं और इतने सालों से मैंने इसके लिये बहुत परिश्रम किया है ……. परंतु अब मैं आगे इस कार्य को नहीं कर सकती हूं। अब मुझे विश्राम करना चाहिये जैसा कि सभी लोग कहते हैं और आप भी इससे सहमत होंगे। लेकिन यदि आवश्यक हुआ तो आप मेरे बारे में उन्हें बता सकते हैं ….. लेकिन मेरे फोटो का प्रयोग करिये। जब भी आपकी बैठक हो ….. मेरे फोटोग्राफ का उपयोग कीजिये। जो लोग सोचते हैं कि वे नेता बन सकते हैं तो गुरू के रूप में उन्हें सबसे पहले अपने वाइब्रेशन्स देखने चाहिये …. मेरे फोटो के सामने बैठकर ध्यान करके पता करें। आपको एकदम ईमानदार होना चाहिये। आपको शत-प्रतिशत ठीक होना चाहिये और आपमें किसी प्रकार का कैच नहीं होना चाहिये तभी आप गुरू बन सकते हैं। आपको गुरू बनना होगा। पहले आपको केवल दो ही लोग मिलेंगे …… फिर तीन लोग। मैंने पांच लोगों के साथ कार्य प्रारंभ किया था। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि आप किस प्रकार से इस कार्य को कर सकते हैं। सबसे पहले दो ….. तीन या पांच लोगों के साथ कार्य प्रारंभ करिये। बाद में आप विज्ञापन भी दे सकते हैं। यदि आपने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है … माना आपने 10 लोगों को आत्मसाक्षात्कार लिया है तो आप अपना एक संगठन प्रारंभ कर सकते हैं या इसको आप जो कुछ भी कहना चाहें …… पर इसे कार्यान्वित करिये। आपके पास शक्ति है …. आपके पास अधिकार है …. परंतु आपका स्वभाव भी अच्छा होना चाहिये। प्रारंभ में आपको अत्यंत धैर्यवान और दयालु होना चाहिये। इसके बाद धीरे-धीरे आप देखेंगे कि आप लोगों का उपचार कर सकते हैं। पहले देखिये वाइब्रेशन्स पर देखिये कि आपके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। … कौन से चक्र खराब हैं और कौन से अच्छे। फिर आपको उनको ठीक करना चाहिये। इसके बाद आपको उनको ठीक करना चाहिये। यदि कोई चक्र खराब है तो आपको इसे ठीक करना चाहिये … तभी आप गुरू बन सकते हैं। ये स्वीकार करने से नहीं होगा कि मैं गुरू हूं …. या आप गुरू बन जांय। आपको स्वयं को ही जज करना होगा। इसके बाद आपको मुझे रिपोर्ट भेजनी होगी। मुझे जानकर प्रसन्नता होगी कि आपने कितने लोगों को अब तक साक्षात्कार दे दिया है। और इसी तरह से सहज फैलेगा …….. निःसंदेह। ये इस अवस्था पर नहीं रह सकता है क्योंकि अब मैं पीछे हट रही हूं। परंतु क्योंकि अब आप लोग इतने सारे सहजयोगी हैं ……. तो ये बढेगा और कार्यान्वित होगा। लेकिन मैं सोचती हूं कि अब मैं अधिक यात्रायें नहीं कर सकती हूं … और मैं वापस जा रही हूं। ये संभव नहीं है कि मैं फिर से वापस आ जाऊँ। अतः अच्छा होगा कि आप इसे स्वयं कार्यान्वित कर लें। यदि आपको कोई समस्यायें हैं तो आपको मुझे लिखना होगा। यदि किसी को पकड़ है या कुछ और बात है …. आपको कोई समस्या है। मैं नहीं समझती कि कोई समाचारपत्र आपकी आलोचना करेगा। उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया है … लेकिन उन्होंने आपके साथ ऐसा नहीं किया है। आप सभी मुझे वचन दें कि आप गुरू बनने का प्रयास करेंगे। मैंने इसके लिये आपसे कोई पैसा नहीं लिया है। मैं केवल ये चाहती हूं कि आप सहजयोग को फैलायें। प्रारंभ में पूजा आदि में उनसे पैसा न लें …. आप उनसे हॉल या किसी बड़ी जगह के लिये थोड़ा बहुत पैसा ले सकते हैं लेकिन ये बाद की बात है। सबसे पहले कम लोगों के साथ कार्य करें। ये बहुत अच्छी तरह से बढ़ेगा। अब एक और चीज है पूजा ….. पहले पहल आप उन्हें अपनी पूजा न करने दें। जब तक आपने 300 सहजयोगी न बना लिये हों तब तक आप उन्हें अपनी पूजा न करने दें। प्रारंभ में आप मेरे फोटोग्राफ का प्रयोग कर सकते हैं ……. लेकिन सावधान रहें क्योंकि आपके पास शक्तियां हैं और ये आपके अहंकार को बढ़ावा दे सकती हैं। हो सकता है कि आप स्वयं को काफी महान समझने लगें ….. नहीं। आपको विश्व को बचाना है। मेरा कार्य यही है। मैं आपको भारत में यही लिखकर बताने को कहूंगी कि कहीं आपको कोई परेशानी तो नहीं है। मुझे ये भी बताइयेगा कि आप सहजयोग को किस प्रकार से फैला रहे हैं। क्या हो रहा है …. ये मैं जानना चाहूंगी ….. लेकिन मैं सोचती हूं कि अब मुझे रिटायर हो जाना चाहिये। यदि आपके कोई प्रश्न हों तो मुझसे पूछें। जो भी सोचते हों कि वे गुरू बन सकते हैं तो वे अपने हाथ खड़े करें। ओह इतने सारे? …. केवल एक हाथ नहीं दो। यदि कोई पैसा बना रहा है तो आप उसको ये कहें कि वो ऐसा न करे … इसके बारे में मुझको लिखें। आप प्रारंभ में इससे पैसा नहीं बना सकते हैं। लेकिन जब आपके पास तीन हजार लोग हो जायेंगे तो आप सभी पूजाओं को मनाने लगेंगे। लेकिन आपमें से हरेक को तीन हजार शिष्य बनाने पड़ेंगे। तब आप उनसे अपनी पूजा करने को कह सकेंगे। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो गुरू नहीं बन सकते हैं। कुछ लोग ऐसे भी है जो गुरू नहीं बन सकते हैं। जो कैच कर रहे हैं और जिनको समस्यायें हैं। यदि आपको समस्यायें हैं तो गुरू मत बनिये अन्यथा ये आपको प्रभावित करेगा। लेकिन अगर आप समझते हैं कि आप स्वच्छ हैं और आपका सुषुम्ना मार्ग खुला हुआ है तो फिर आप गुरू बन सकते हैं। क्या आपके कोई प्रश्न हैं? मैं अतर्राष्ट्रीय सहजयोग के लिये एक केंद्र खोल रही हूं और जब आप तीन सौ सहजयोगी बना लेंगे तो उनसे कहें कि वे आपकी पूजा करें और इसके लिये पैसे भी लें। इसके पहले यदि आपको कुछ पैसा प्राप्त होता है तो आप इस पैसे को उस केंद्र में भेज सकते हैं। इस केंद्र में लगभग 11 सदस्य होंगे और उनकी घोषणा मैं करूंगी। यदि आपके कोई प्रश्न हों तो अभी मुझसे पूछ लें। पहले तीन सौ लोगों के लिये हॉल या अन्य खर्चों के लिये आप कोई पैसा न लें। लेकिन आप स्वयं के लिये कोई पैसा न लें। अब आप अपने हाथ खड़े कर सकते हैं कि आपमें से कितने लोग गुरू बन सकते है? परमात्मा आपको धन्य करें। क्या आपके कोई प्रश्न हैं? आप पैसे ले सकते हैं या नहीं ……एक संगठन के आधार पर कि आपको हॉल, लाउडस्पीकर और ऐसी ही कई चीजें किराये पर लेनी है। परंतु इन चीजों को आपको अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिये नहीं लेना है। इसके लिये आपको अत्यंत सावधान रहना है। जब तक आपके पास तीन सौ सहजयोगी न हो जांय …….. तब तक आप दो तीन लोगों का एक समूह बना सकते हैं और अपना कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। आपको इसमें अत्यंत आनंद आयेगा। यदि किसी को किसी प्रकार की समस्या है तो आप मुझसे कहें। मुझे कनाडा जाना है वहां मैं अभी तक नहीं गई हूं। पर मैं समय निकालकर वहां जाना चाहूंगी। अभी पहले मुझे रूस जाना है …. और फिर मुझे कनाडा जाना है। आपको बाहर कार्य करने से ज्यादा अपने देश में अधिक कार्य करना है तभी आप इसको अधिक फैला पायेंगे। एक बार फिर से देखें कि आपमें से कितने गुरू बनना चाहते हैं? अरे कितनी बड़ी संख्या में लोग हैं। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।

Hindi Transcription and Translation  

2008-0720 After Guru Puja , Cabella Italy

—————————————————————————————————————————माताजी :  आपको एक सेंट्रल कमिटी का गठन करना  होगा.

सहजी :  जी , जी .

माताजी :  एक सेंट्रल कमिटी.

सहजी : जी.

माताजी : या तो लंडन  मे या फिर यहाँ.

सहजी :  जी श्री माताजी .

माताजी :  जहां आपको सही लगे. एक सेंट्रल कमिटी.

सहजी : जी.   

माताजी :  और फिर आप उनको सूचित कर सकते  हैं यहां क्या हो रहा है या और कुछ ..

 सहजी : जी श्री माताजी 

और सहजी : जी श्री  माताजी. वर्ल्ड कौंसिल के तरह. अपनी  एक कौंसिल है श्री माताजी. .कौंसिल कि तरह. अपनी   

                   एक कौंसिल है .

माताजी :  आपको बताना  होगा क्या हो रहा है . कोई सेंट्रल कमिटी . जिसमे  तकरिबन पांच लोग हो सकते हैं|

सहजी :  जी . कम्युनिकेशन…कम्युनिकेशन  के लिये .

माताजी :  नही नही,  .कम्युनिकेशन  के लिये.

सहजी : जी श्री माताजी .

माताजी : यदी कोई समस्या या कुछ और हो .. ताकी  आप ध्यान दे सको, नही क्या ?  

सहजी :  जी श्री माताजी .

              ( सहजी आपस मे धीरे से बात कर रहे हैं )

माताजी : क्या s s ?

सहजी :  ये कह रहे हैं कि यहां पर बनायेंगे. यहाँ पे .   यहाँ पे -. कबेला मे  – कबेला मे बनाएंगे – कबेला मे.

माताजी :  क्या? 

सहजी :  कौंसिल बनाएंगे – कमिटी , कमिटी 

माताजी   नही . कहीं भी बनाओ.

सहजी :  जी, अच्छा  जी . 

माताजी :  जहाँ भी चाहो.

सहजी :  जी  

माताजी : चार पांच  देशों से ले लो. 

सहजी : जी .

माताजी :  एक यहां बनाओ एक इंडिया मे  बनाओ.

सहजी :  जी श्री माताजी .

माताजी :  है ना ?

 सहजी :  जी, जी माताजी .

माताजी :  जो कोई यहाँ प्रॉब्लेम हो तो आप बताईये अब  इंडिया में. 

  सहजी :  जी श्री माताजी.

माताजी :  हर डीटेल (विस्तार )   में .

सहजी :  जी श्री माताजी. बिलकुल ठीक है, बिलकुल ठीक है.

माताजी : अपनी  आखोंमें थोड़ा काजल लगाईये.

              ( सारे सहजी ज़ोर से हसते हैं )

माताजी :  अच्छा दिखेगा…आपको लगाना चाहिये …आप ज्यादा खाना खाते हैं क्या ?

सहजी :  खाना? इतना भी नही.. इतना भी नही..

माताजी : क्या? 

सहजी :   इतना भी नही…

माताजी :  आपकी आँखें थोडी बिगड़ रही हैं.

सहजी :  अच्छा? 

             (सारे सहजी हसते हैं)    

             (थोडी देर बाद )

माताजी : चलें

सहजी :  जी श्री माताजी, जी श्री माताजी .

माताजी :  कुर्सी ले आओ .

सहजी : जी श्री माताजी. बोलो श्री आदी शक्ती माताजी श्री निर्मला देवी की जय, देवी की जय, देवी की    

        जय.

        ( ३.०० से  ३.४८ ताक भजन )

माताजी :  कॅनडा से कोई आया है क्या ?

सहजी :  आये  हैं , आये  हैं.

माताजी : आये हैं? कहाँ?  

सहजी :  चार पांच लोग थे श्री माताजी. प्रेझेंट भी लाये थे, आये थे .

माताजी :  अच्छा ? 

सहजी :  जी.

माताजी :  मैने तो नही देखा .

सहजी :  जी .बहोत हैं लोग श्री माताजी ….आये थे … पांच लोग आये थे … पांच लोग आये थे .

माताजी :  मुझे बात करनी थी.

सहजी : जी 

सहजी महिला :  और कुछ चीजें हैं वो दे देती  हूँ .

माताजी :  जाईये, ले आइये.

सहजी :  जी जी . 

सहजी :  थँक यु श्री माताजी.  

माताजी :  आप एक  सेंट्रल कमिटी शुरु   कर शकते हो .

सहजी : जी .

माताजी : उन्होने स्वीकृती देनी  चाहिये .

सहजी :  जी 

माताजी : तकरीबन  दस लोगोंकी .

(थोडी देर बाद )

माताजी :  कॅनडा  से कौन है देखिये जरा.

सहजी : जी श्री माताजी . उन्हे बुलाता  हूँ.

माताजी :  उन्हे ले आइये .

सहजी : जी जी . बोलो श्री आदी गुरु माता श्री निर्मला देवी कि जय .

सहजी : जय श्री माताजी, जय श्री माताजी…..

—————-  End of Hindi transcription and translation   ……………………………………………………