Public Program New Delhi (भारत)

नैतिकता और देशभक्ति दिल्ली, १८/१२/१९९८ सत्य को शोधने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! हम सत्य को खोज रहे हैं किंतु कौन सी जगह खोजना चाहिए? कहाँ खोजना चाहिए? कहाँ ये सत्य छुपा हुआ है? ये पहले समझ लेना चाहिए। आप देखते हैं कि परदेस से हजारों लोग हर एक देश से यहाँ आते हैं और उनसे पूछा जाये कि, ‘तुम यहाँ क्यों आयें?’ तो कहते हैं कि, ‘हम यहाँ सत्य खोजने आयें हैं, हमारे देश में तो सत्य नहीं लेकिन भारत वर्ष में तो सत्य है। ये समझ कर के हम यहाँ आयें हैं। और इस सत्य की खोज में हम हर साल हजारों लोग इस देश में आते हैं और हजारों वर्षों से इस देश में आते हैं। आपने सुना ही होगा कि इतिहास में चायना से और भी कई देशों से लोग यहाँ आते थे। और उनको पता नहीं कैसे मालूम था कि इस देश में ही सत्य नेक है, छुपा हुआ है। और उसकी खोज में वो गिरीकंदरों में घूमते थे । हिमालय पर जाते थे। हर तरह का प्रयत्न करते थे कि किसी तरह से हम सत्य को खोज लें क्योंकि वो किसी भी धर्म का पालन करते हैं। लेकिन वो जानते थे कि इस धर्म पालन से हमें सत्य नहीं मिलने वाला है। ये एक तो मार्गदर्शक है। जैसे रास्ते पर इशारे पर लिखा जाता है कि ये रास्ता है। किंतु इससे हम पाते हैं इसलिए इस अधूरेपन से परेशान होकर के वो इस भारतवर्ष में आते थे। अब ये सत्य हमारे देश Read More …

Shri Mahalakshmi Puja, The Universal Love (भारत)

30 /12/ 1992  महालक्मी पूजा, सर्वव्यापी प्रेम, कल्वे, भारत  सहज योगियों को ऐसे साधारण सांसारिक लोगों के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। अंत में आपके साथ क्या होगा? जो लोग इस प्रकार की चिंता कर रहे हैं, मैं उन्हें कहूँगी कि वह गहन ध्यान में जाएं, यह समझने के लिए कि आप स्वयं का अपमान कर रहे हैं। आप संत हैं। आप इस बात की चिंता क्यों करें कि आपको कौन सा विमान मिलने वाला है, कौन सा नहीं? यह दर्शाता है कि आपका स्तर बहुत नीचा है – निश्चित रूप से। आप सभी जो चिंतित हैं, आप मेरे संरक्षण में यहां आए हैं, और मेरी सुरक्षा में ही वापस जाएंगे।  आज सुबह मैं ईतनी बीमार हो गई कि मुझे यह विचार आया, आज हम कोई पूजा का आयोजन नहीं करेंगे। आपको यह पता होना चाहिए कि आप सब मेरे अंग प्रत्यंग है। आपको अपने शरीर में स्थान दिया है, और आप आपना आचरण सुधारें !  ऐसे शुभ दिन में हम सभी यहां आए हैं, यह विशेष पूजा करने के लिए। मैं कहूँगी की इसे महालक्ष्मी पूजा कहना चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध हमारे देश के और सारे संसार के उद्योग से है।  जब तक मनुष्य के सभी प्रयासों को परमात्मा के साथ जोड़ा न जाए, वह अपने उत्तम स्थिति और पद को प्राप्त नहीं कर सकते। इस कारण पश्चिम के देशों में अब हमें समस्याएं आती हैं। तथाकथित अत्यंत समझदार, अति चुस्त, संपन्न और शिक्षित लोग – अब यहाँ हमें आर्थिक मंदी जैसी स्थिति दिखती हैं, क्योंकि उनमें कोई संतुलन Read More …

Shri Mahalakshmi Puja: Keep your Mahalakshmi principle intact Barcelona, Can Mas-casa de colónies (Spain)

श्री महालक्ष्मी पूजा – अपना महालक्ष्मी तत्व बनाए रखें  बार्सेलोना, कैन मास-कैंप हाउस (स्पेन), सितंबर १२, १९९२  आज हम यहाँ महालक्ष्मी पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। महालक्ष्मी तत्व हमारे अंदर एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। जब देशों में, परिवारों में, या व्यक्तिगत जीवन में, हम देखते हैं – (श्री माताजी ने स्पॅनिश में अनुवाद करने के लिए कहा)… ये महालक्ष्मी तत्व हमारे उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। ये तत्व हमारे अंदर है, पर ये तब तक जागृत नही होता जब तक हम एक परिस्थिती को प्राप्त ना कर लें (और) जहाँ हमें लगता है कि हम अब तक अपने जीवन से संतुष्ट नही हैं। जैसे अब  पश्चिमी देशों में अब आप पर लक्ष्मी तत्व की कृपा रही, इस अर्थ में कि समृद्धि है, लोग ठीक हैं, सबके के पास भोजन है, और दैनंदिनी जीवन में सब पर्याप्त है। पर वो देश जो गरीबी से त्रस्त हैं या जिनकी स्थिति बहुत खराब है, जैसे आप कह सकते हैं कि यूगोस्लाविया इन दिनों बहुत बुरी स्थिति में है, या सोमालिया, जो बहुत ही गरीब है, और इनकी कोई आध्यात्मिक पृष्ठभूमि भी नही है – तो उनके लिए इस जीवन का अर्थ केवल किसी तरह से जीवित बचे रहने में ही है। जीवन उनके लिए संकट से भरा हुआ है, और जीवन का अस्तित्व बनाए रखने में भी उन्हें संकट है। पर संपन्न देशों में ऐसा होता है, कि लोगों को यह लगने लगता है कि अब हमारे पास धन है, जीवन की सारी सुविधा है, पर तो भी ये Read More …

The International Situation (Location Unknown)

                                        अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति  1989-0901 [एक सहज योगी के अनुरोध के जवाब में दी गई वार्ता। स्थान अज्ञात। संभवतः यूके] हमारे ग्रह, या धरती माता की स्थिति बहुत ही नाज़ुक है। एक तरफ हम इंसानों के हाथों महान विनाश के संकेत देखते हैं और इसलिए ये हमारा खुद का कृत्य हैं। विनाश का प्रबल प्रभावशील विचार मनुष्य के अंदर काम कर रहा है, लेकिन यह विनाश बाहर पैदा करता है। जरूरी नहीं की यह विनाशशीलता जानबूझकर है, लेकिन अंधी और बेकाबू है। इसी अंधेपन और अज्ञानता को ज्ञान प्रकाशित कर दूर करना है। भारत के प्राचीन पुराणों के अनुसार यह आधुनिक समय निश्चित रूप से कलियुग के काले दिन हैं जो बड़े पैमाने पर आत्म-साक्षात्कार या आत्मज्ञान का युग भी हैं। लेकिन, हमारे पास अभी भी हमारे अतीत या हमारे इतिहास की कई समस्याएं हैं जिन्हें पहले ही सुलझाना होगा। इनका अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, तो पहले देखते हैं कि किस समस्या या किन समस्याओं का समाधान करना है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में, हाल के वर्षों में कई मूलभूत समस्याएं रही हैं। विश्व युद्ध के बाद का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक विकास साम्यवाद और लोकतांत्रिक विचार के बीच संघर्ष रहा है। इन राजनीतिक विचारों के स्वरुप और सरकार के बीच एक मौलिक दरार थी, और इसके परिणामस्वरूप पूर्व और पश्चिम के बीच लगातार तनाव बना रहा। यह मानवता के भविष्य के लिए हमारे समय के बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक बन गया। हाल के वर्षों में, हालांकि, एक बड़ा बदलाव शुरू हुआ, सबसे पहले चीन में श्री डेंग (देंग जियानपिंग) Read More …

Conversation with Dr. Talwar मुंबई (भारत)

26, 27 फरवरी 1987, शिव पूजा के सुअवसर पर मुंबई में माताजी श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत। सहयोग का ज्ञान मुझे सदा से था। इस अद्वितीय ज्ञान के साथ ही मेरा जन्म हुआ। परंतु इसे प्रकट करना आसान कार्य न था। अतः इसे प्रकट करने की विधि मैं खोजना चाहती थी।सर्वप्रथम मैंने सोचा कि सातवें चक्र (सहस्त्रार) का खोला जाना आवश्यक है और 5 मई 1970 को मैंने यह चक्र खोल दिया। एक प्रकार से यह रहस्य है। पहले ब्रह्म चैतन्य अव्यक्त था, इसकी अभिव्यक्ति न हुई थी। यह स्वतः स्पष्ट न था। जो लोग किसी प्रकार आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके ब्रह्म चैतन्य के समीप पहुंच जाते तो वे कहते कि “यह निराकार का गुण है। व्यक्ति एक बूंद की तरह से है जो सागर में विलीन हो जाती है।”इससे अधिक कोई भी न तो वर्णन कर पाता और न ही लोगों को बता पाता। ब्रह्म चैतन्य के सागर में अवतरित महान अवतरणो ने भी अपने गिने चुने शिष्यों को यह रहस्य समझाना चाहा, उनका परिचय ब्रह्म चैतन्य से करवाने का प्रयत्न किया। परंतु ब्रह्म चैतन्य के अव्यक्त रूप में में होने के कारण यह अवतरण स्वयं “इसी में लुप्त हो गए।” ज्ञानेश्वर जी ने समाधि ले ली। कुछ लोगों ने कहा कि वे उसकी बात नहीं कर सकते। यह तो अनुभव की चीज है। अतः बहुत कम लोग इसे प्राप्त कर सके। कोई भी अपनी उंगलियों के सिरों पर, अपनी नाड़ियों पर, अपने मस्तिष्क में इसका अनुभव करके या अपनी बुद्धि से समझ कर आत्मसाक्षात्कार के Read More …

Public Program मुंबई (भारत)

सार्वजनिक भाषण मुंबई, ४ मई १९८३ परमात्मा को खोजने वाले सभी साधकों को मेरा प्रणाम ! मनुष्य यह नहीं जानता है कि वह अपनी सारी इच्छाओं में सिर्फ परमात्मा को ही खोजता है। अगर वह किसी संसार की वस्तु मात्र के पीछे दौड़ता है, वह भी उस परमात्मा ही को खोजता है, हालांकि रास्ता गलत है। अगर वह बड़ी कीर्ति और मान-सम्पदा पाने के लिए संसार में कार्य करता है, तो भी वह परमात्मा को ही खोजता है। और जब वह कोई शक्तिशाली व्यक्ति बनकर संसार में विचरण करता है, तब भी वह परमात्मा को ही खोजता है। लेकिन परमात्मा को खोजने का रास्ता ज़रा उल्टा बन पड़ा। जैसे कि वस्तुमात्र जो है, उसको जब हम खोजते हैं-पैसा और सम्पत्ति, सम्पदा-इसकी ओर जब हम दौड़ते हैं तो व्यवहार में देखा जाता है कि ऐसे मनुष्य सुखी नहीं होते। उन पैसों की विवंचनायें, अधिक पैसा होने के कारण बुरी आदतें लग जाना, बच्चों का व्यर्थ जाना आदि ‘अनेक’ अनर्थ हो जाते हैं। जिससे मनुष्य सोचता है कि ‘ये पैसा मैंने किसलिये कमाया? यह मैंने वस्तुमात्र किसलिये ली?’ जिस वक्त यहाँ से जाना होता है तो मनुष्य हाथ फैलाकर चला जाता है। लेकिन यही वस्तु, जब आप परमात्मा को पा लेते हैं, जब आप आत्मा पा लेते हैं और जब आप का चित्त आत्मा पर स्थिर हो जाता है, तब यही खोज एक बड़ा सुन्दर स्वरूप धारण कर लेती है। परमात्मा के प्रकाश में वस्तुमात्र की एक नयी दिशा दिखाई देने लग जाती है। मनुष्य की सोौंदर्य दृष्टि एक गहनता से हर Read More …

Advice for Effortless Meditation London (England)

         निष्क्रिय ध्यान के लिए सलाह लंदन (यूके), 1 जनवरी 1980। जीवन में उसी तरह से चैतन्य, वायब्रेशन आ रहे हैं, वे प्रसारित हैं। आपको जो करना है, वह खुद को उसके सामने खुला छोड़ देना है। सबसे अच्छा तरीका है की कोई प्रयास नहीं करें। आपको क्या समस्या है इस पर चिंता न करें। जैसे, ध्यान के दौरान कई लोग, मैंने देखा है कि अगर उन्हें कहीं रुकावट हैं तो वे उसकी देखभाल करते रहते हैं। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। आप बस इसे होने दें और यह अपने आप काम करेगा। यह बहुत आसान है।इसलिए आपको कोई भी प्रयास नहीं लगाना पड़ेगा। यही ध्यान है। ध्यान का अर्थ है स्वयं को ईश्वर की कृपा के सामने उघाड़ देना । अब कृपा ही जानती है कि तुम्हें कैसे ठीक करना है। यह जानता है कि आपको किस तरह से सुधारना है, कैसे स्वयं को तुम्हारे अस्तित्व में बसाना है, आपकी आत्मा को चमकाना है। यह सब कुछ जानता है। इसलिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि आपको क्या करना है या आपको क्या नाम लेना है, आपको कौन से मंत्र करने हैं। ध्यान में आपको बिल्कुल प्रयास रहित होना है, खुद को पूरी तरह से उजागर करना है और आपको उस समय बिल्कुल निर्विचार होना है। माना की कोई संभावना है, आप शायद निर्विचार नहीं भी हो पायें। उस समय आपको केवल अपने विचारों को देखना है, लेकिन उनमें शामिल न हों। आप पाएंगे की जैसे क्रमशः सूर्य उदय होता है, अंधेरा दूर हो जाता है Read More …

Spirit, Attention, Mind Finchley Ashram, London (England)

                                                                “आत्मा, चित्त, मन”  फिंचली आश्रम, लंदन (यूके), 20 फरवरी 1978 … और वह हमें एक साधन के रूप में उपयोग कर रहा है। साथ चलो! जैसा की मैंने कहा। अब क्रिस्टीन ने मुझसे पूछा था, “हमारा समर्पण क्या है?” और उसने मुझसे पूछा है कि क्या हमारे पास एक स्वतंत्र इच्छा है या नहीं। ठीक है? आपके पास अपनी एक स्वतंत्र इच्छा है। खासतौर पर इंसानों के पास है, जानवरों के पास नहीं। हम कह सकते हैं, आपके पास चुनने की स्वतंत्र इच्छा है, अच्छा और बुरा, सत्यवादिता और असत्यवादिता। अब, आप उसकी मर्जी के सामने समर्पण करने या ना करने के बीच चुन सकते हैं,;अथवा अपनी ही इच्छाओं के दबाव में आने के लिए। अब, उसने मुझसे पूछा, “समर्पण क्या है?” समर्पण, जैसा कि मैं कह रही हूं, यह तीन चरणों में किया जाना है। विशेष रूप से यहाँ इस देश में जहाँ लोग सोचते हैं, युक्तिसंगत बनाते हैं, विश्लेषण करते हैं; चूँकि यह आसान नहीं है। अन्यथा यदि आप इसे कर पाते, तो आप इसे स्वचालित रूप से कर सकते हैं  ईश्वर को मानना, स्वयं, एक प्रकार से आपकी निश्चित धारणाओं पर आधारित है। मुझे नहीं पता कि भगवान के बारे में आपके पास किस तरह की धारणाएं हैं, लेकिन माना कि कुछ निश्चित अवधारणाएं हैं, व्यक्तिगत। सभी के पास ईश्वर के लिए अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। और हो सकता है कि आप देखें कि वह इतना सर्वशक्तिमान है और वह इतना महान है और आप बिना सोचे समझे उस के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं Read More …

Nabhi Chakra London (England)

                                                      नाभी चक्र  लंदन 1978-02-20 जिस तरह से इसे हमारे भीतर रखा गया है. नाभी चक्र के भी दो पहलू हैं- बायां और दायां। नाभी चक्र के बायीं ओर एक केंद्र के रूप में स्थित है या आप इसे चक्र या उप-चक्र कहते हैं जिसे चंद्र का अर्थात चंद्रमा कहा जाता है। बायीं ओर चंद्र केंद्र और दाहिनी ओर सूर्य केंद्र है और वे बिल्कुल चंद्र रेखा और सूर्य रेखा यानी पहले इड़ा और पिंगला पर स्थित हैं। ये दो केंद्र वे दो बिंदु हैं जिन तक हम जा सकते हैं और बाएं से दाएं जा सकते हैं। उससे आगे जब हम जाने लगते हैं तो आप हदें पार कर जाते हैं. अब ये दोनों केंद्र जब स्थानीयकृत होते हैं, तो देखिए कि उनमें ऊर्ध्वाधर स्पंदन प्रवाहित होते हैं, लेकिन जब वे उस बिंदु पर स्थानीयकृत होते हैं तो हम उन्हें कैसे बिगाड़ देते हैं। हमें समझना होगा. बायीं नाभी और दाहिनी नाभी एक दूसरे पर निर्भर हैं। यदि आप बायीं नाभी से बहुत अधिक खींचते हैं या बायीं नाभी पर बहुत अधिक काम करते हैं तो दाहिनी नाभी भी पकड़ सकती है। लेकिन कहते हैं हम एक-एक करके लेंगे. अब बाईं नाभी पकड़ी गई है, आम तौर पर यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के घर पर खाना खाते हैं जो किसी एक प्रकार का अध्यात्मवादी है या जो सत्य साईं बाबा की तरह  प्रसाद दे रहा है, यह भयानक व्यक्ति है, उसकी वे विभूतियाँ हैं जैसा कि वे इसे कहते हैं क्योंकि यह श्मशान से आती है देखिये, उस राख Read More …

Deeper Meditation London (England)

                                               “गहन ध्यान”  लंदन, 20 फरवरी 1978 कुली (टोनी पानियोटौ) क्या आपने इसे लिखा है? श्री माताजी: नमस्ते, आप कैसे हैं? योगी: बहुत अच्छा, धन्यवाद। श्री माताजी: परमात्मा आप को आशिर्वादित करें ! आप कुर्सी पर बैठ सकते हैं। आराम से रहो। योगी: ओह, यह आप की बहुत कृपा है! श्री माताजी: कुली से कहो कि वह स्वयं के लिए लिख ले। योगी: वह कर रहा है। नमस्कार! डगलस आप कैसे हैं? क्या हाल है? डगलस फ्राई: बहुत अच्छा! श्री माताजी: बहुत बढ़िया लग रही है! एक फूल की तरह सुंदर! देखो, मेरे पास कितने सुंदर बच्चे हैं, बिलकुल यहाँ फूलों की इन पंखुड़ियों की तरह। क्या आप थोड़ी देर के लिए एक खिड़की खोल सकते हैं। बस पांच मिनट के लिए खिड़की खोलें। आराम से बैठो। इस तरह सहज रहें। मेरा मतलब। हां, बहुत सहज रहें। एक को बहुत, बहुत सहज, बहुत सहज होना पड़ता है। मुझे मिलने से पहले ही उसे यह प्राप्त हो गया था ! क्योंकि इससे पता चलता है कि यह हवा में लहरा रहा है। आज मैं आपको आगे के ध्यान के बारे में बताना चाहती हूं कि: हमें कैसे बढना है और कैसे खुद को समझना है। आप देखिए अभी तक चीज़ों से व्यवहार करने की आप की आदतें अथवा तौर-तरीके रहे हैं : जिस भी तरह से आपने अपनी सांसारिक,व्यक्तिगत, भौतिक और, शरीर की समस्याओं निपटा है, लेकिन अब जैसे ही आपने परमात्मा के राज्य में प्रवेश किया है और ईश्वर की शक्ति आपके माध्यम से बह रही है, आपको पता होना चाहिए Read More …

Nabhi Chakra London (England)

[Hindi translation from English]                                                                                   नाभी चक्र  फरवरी 1977.  यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1977) के दौरान दी गई थी। सटीक स्थान अज्ञात। नाभी चक्र, हर इंसान के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में रखा जाता है। यदि यह वहां नहीं है, तो इसका मतलब है कि आप के लिए इसे इसके सही स्थान पर पहुंचाना थोडा मुश्किल होने वाला है। एक तरह की परेशानी है जो आप में से अधिकांश को होती है, शायद ड्रग्स या शायद नर्वस समस्या, युद्ध के कारण, या शायद आपके अस्तित्व के लिए किसी तरह का झटके के कारण सकती है। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान, लोगों ने अपने मूल्यों को खो दिया, क्योंकि, उन्होंने ईश्वर में विश्वास खो दिया। शुद्धता पर विश्वास करने वाली पवित्र महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया गया। बहुत धार्मिक लोगों को सताया गया, परिवारों को तोड़ा गया। कई लोग मारे गए, और बच्चे, महिलाएं और बूढ़े लोग बिखर गए। असुरक्षा का एक बहुत भयानक वातावरण, इन सभी राष्ट्रों पर हावी हो गया। फिर देखिये,यातना शिविर भी आए,  जिसने मानव को चकनाचूर कर दिया, क्योंकि मनुष्य बहुत नाजुक यंत्र हैं। वे उत्कृष्ट रचना हैं, वे सर्वोच्च हैं और उन पर बम जैसी चीज़ों का दबाव था, जो मायने रखते हैं। इस प्रकार, मनुष्य में भावना, मर गई। लोगों ने प्यार में, सच्चाई में विश्वास खो दिया। फिर सुरक्षा का नया ढांचा बनाया गया। औद्योगिक क्रांति ने इसका अनुसरण किया, परिणामस्वरूप, प्रेम की, सुरक्षा की, आनंद की कृत्रिम भावना को समाज ने स्वीकार किया।  मनुष्य ने Read More …

Birthday Puja (year unknown) मुंबई (भारत)

        प.पू. श्री माताजी, जन्मदिन पूजा सार्वजनिक कार्यक्रम मुंबई, भारत [योगिनियों का स्वागत गीत गाते हुए शाम ६’५५” समाप्त होता है] मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आप सभी की बहुत मेहरबानी है कि, आप मेरा जन्मदिन मनाने आए हैं। यह सब आप लोगों की सज्जनता का काम है। आधुनिक समय में मां की देखभाल कौन करता है? आधुनिक समय की निशानी में से एक यह है कि बच्चों द्वारा माता-पिता की उपेक्षा की जाएगी। उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रहना पड़ सकता है। लेकिन मैं यहां आप सभी को इतने प्यार से, इतने स्नेह के साथ, दूर-दूर से पाती हूं, आप अपनी मां को बधाई देने आए हैं। इस बिंदु पर शब्द रुक जाते हैं। मैं उस प्रेम को नहीं समझ सकती जो मुझ पर समुद्र की तरह इतना बरस रहा है। मैं बस एक माँ की खूबसूरत भावना में खो जाती हूँ, जिसके हजारों बच्चे हैं, जो बहुत दयालु हैं और एक अच्छे बेटे या एक अच्छी बेटी की मेरी छवि के बाद भी। हमारे यहाँ एक और महान माँ थी, इस महाराष्ट्र में जीजाबाई, जीजा माता थी। और वह वही है जिसने अपने बेटे को इस तरह बनाना सुनिश्चित किया है, कि एक दिन उसका बेटा ईश्वर का, ईमानदारी का, स्वतंत्रता का, चरित्र के राज्य को स्थापित करने में सक्षम होगा। ऐसे “युग पुरुष ” कई वर्षों में पैदा होते हैं।  यहां तक ​​कि उनका बेटा [संभाजी] भी उनके स्तर पर, उनके चरित्र पर नहीं आ सका। जिस तरह से उन्होंने कल्याण के सूबेदार की बहू Read More …