Holi Puja (भारत)

Holi Puja, Palam Vihar, Gurgaon, Delhi, India, 29 March 2002. (translated from hindi) Holi was started during the time of Shri Krishna. Before Him in the time of Shri Rama …. He was very austere. Because of that the society became very peaceful but people were devoid of all joy. So He thought that there should be a way by which people should be able to laugh freely and be joyful. And like it happens to all such ventures it happened in the case of Holi also that it produced an opposite effect. They started playing Holi in a very wrong way. It brought a very bad name to this festival. And it deteriorated to such an extent that I said, I will never play Holi now. The story of how it started is like this. There was a demo ness called Holika. She was the sister of Prahlad and Prahlad’s father used to trouble him a lot. Holika had a boon that she would not be burnt by the fire. Prahlad’s father wanted to kill him and told Holika to take the child (Prahlad) and sit on the burning pyre thinking that she would not die. But it is surprising that she died and Prahlad was not hurt in the fire and came out of it unscathed. This is a very big happening which demonstrated that it is very wrong to be cruel and aggressive. She had the boon but still she got burnt. That’s why we have this Read More …

Makar Sankranti Puja पुणे (भारत)

Makar Sankranti Puja 14th January 2001 Date: Place India Type Puja [Hindi translation from Marathi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari] अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें बहुत स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है । महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है? से आप सबकुछ दे सकते हैं। भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि. “मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ ।” न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना Read More …

Advice on Gudi Padwa New Delhi (भारत)

परमपूज्य माता जी श्री निर्मला देवी द्वारा दी गयी शिक्षा गुडी पाडवा, दिल्ली २४-०३-९३ आज सत्य युग का पहला दिन हैं। प्रकृति आप को बताएगी कि सत्य युग आरम्भ हो गया है। सहजयोग सत्ययुग ले आया हैं। आप आत्म साक्षात्कारी हैं, आपको स्वयं में श्रद्धा तथा विश्वास होना चाहिये। सहजयोग की कार्य शैली में आपकी श्रद्धा होनी चाहिये । आपकी ज्योतिर्मय श्रद्धा में क्या कार्य करता है? पूर्ण विश्वास होना चाहिये । मेरी ओर देखिये । मैनें अकेले सहजयोग को फैला दिया हैं। बस परम चैतन्य में विश्वास रखें । यदि आपको कोई सन्देह हैं, तो मुझसे पूछ लें। परमात्मा तो नहीं है पर मै तो आप से बातचीत करने के लिये यहाँ हूँ। अत:अब सहजयोगियों को सन्देहमुक्त होना चाहिये । | १. अगुआगणों को बहुत सावधान रहना चाहिये । उन्हें अहंकार विहीन होना चाहिये । वे संदेश के माध्यम मात्र हैं जैसे पोस्ट करने के लिये मुझे पत्र को लिफाफे में ड्रालना पड़ता हैं। स्वामित्व भाव से वे सावधान रहे । २. किसी भी चीज की योजना बनाते समय हमारा चित्त सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चीज पर होना चाहिये। आपकी प्राथमिकताएं स्पष्ट होनी चाहियें । | ३. यदि कोई नकारात्मकता हो तो मुझे बतायें, मैं इसे ठीक करुंगी । ४. प्राय: आयोजक धन की चिन्त करने लगते हैं। सहजयोग में आपको सदा धन प्राप्त हो जायेगा । परन्तु यदि आप चिन्ता करेंगे तो धन नहीं मिलेगा। धन इतना अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हैं । ५. एक दूसरे के लिये हम में विवेक होना चाहिये । ६. आपको कोई भय नहीं होना Read More …

Mahashivaratri Puja मुंबई (भारत)

Shivaratri Puja, Bombay (India), 14 February 1988. This part was spoken in Hindi Today we are all come together to celebrate the Shiva Tattwa Puja.  Nowadays, in Sahaja Yoga, what we have achieved is by the Grace of the Shiva Tattwa.  Shiva Tattwa is the ultimate goal (establishment, completion) of pure desire. When the Kundalini gets awakened in us, pure desire takes us near and keeps us at the Shiva Tattwa. Beyond Shiva Tattwa is the safe refuge of the Atma.  The new dimensions of the Spirit are slowly seen and start working out.  And when a man is fully engrossed (absorbed?) in the Shiva Tattwa, he gets surrendered without doing anything.  Kundalini Shakti is the reflection of Adi Shakti within us and Shiva Tattwa is the light of the almighty (Paramatma).  Like as there is a small twinkling light in the gas lamp, and when the gas comes into it then you can see the light.  But before you cannot notice the gas passing through.  For this it is necessary that the Kundalini should be awakened.  When we have the sensation of (can feel the?) Kundalini then the light shines out. For this it is necessary that within you there is Kundalini awakening and then this light is there. Today I have given a new example so that we could understand.  In its own place Kundalini can do no work.  Just like a gas, it cannot do anything on its own.  In this way the twinkling also cannot do Read More …

Conversation with Dr. Talwar मुंबई (भारत)

26, 27 फरवरी 1987, शिव पूजा के सुअवसर पर मुंबई में माताजी श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत। सहयोग का ज्ञान मुझे सदा से था। इस अद्वितीय ज्ञान के साथ ही मेरा जन्म हुआ। परंतु इसे प्रकट करना आसान कार्य न था। अतः इसे प्रकट करने की विधि मैं खोजना चाहती थी।सर्वप्रथम मैंने सोचा कि सातवें चक्र (सहस्त्रार) का खोला जाना आवश्यक है और 5 मई 1970 को मैंने यह चक्र खोल दिया। एक प्रकार से यह रहस्य है। पहले ब्रह्म चैतन्य अव्यक्त था, इसकी अभिव्यक्ति न हुई थी। यह स्वतः स्पष्ट न था। जो लोग किसी प्रकार आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके ब्रह्म चैतन्य के समीप पहुंच जाते तो वे कहते कि “यह निराकार का गुण है। व्यक्ति एक बूंद की तरह से है जो सागर में विलीन हो जाती है।”इससे अधिक कोई भी न तो वर्णन कर पाता और न ही लोगों को बता पाता। ब्रह्म चैतन्य के सागर में अवतरित महान अवतरणो ने भी अपने गिने चुने शिष्यों को यह रहस्य समझाना चाहा, उनका परिचय ब्रह्म चैतन्य से करवाने का प्रयत्न किया। परंतु ब्रह्म चैतन्य के अव्यक्त रूप में में होने के कारण यह अवतरण स्वयं “इसी में लुप्त हो गए।” ज्ञानेश्वर जी ने समाधि ले ली। कुछ लोगों ने कहा कि वे उसकी बात नहीं कर सकते। यह तो अनुभव की चीज है। अतः बहुत कम लोग इसे प्राप्त कर सके। कोई भी अपनी उंगलियों के सिरों पर, अपनी नाड़ियों पर, अपने मस्तिष्क में इसका अनुभव करके या अपनी बुद्धि से समझ कर आत्मसाक्षात्कार के Read More …

Parent’s day celebrations New Delhi (भारत)

माता-पिता का बच्चों के साथ सहज मन्दिर, दिल्ली, १५ दिसम्बर १९८३ स आज मैं आपको एक छोटी-सी हजयोग क्या है और उसमें मनुष्य क्या-क्या पाता है, आप जान सकते हैं। लेकिन बात बताने वाली हूँ कि माता-पिता का सम्बन्ध बच्चों के साथ कैसा होना चाहिए। सबसे पहले बच्चों के साथ हमारे दो सम्बन्ध बन ही जाते हैं, जिसमें एक तो भावना होती है, और एक में कर्तव्य होता है। भावना और कर्तव्य दो अलग-अलग चीज़ बनी रहती हैं। जैसे कि कोई माँ है, बच्चा अगर कोई गलत काम करता है, गलत बातें सीखता है, तो भी अपनी भावना के कारण कहती है, “ठीक है, चलने दो। आजकल बच्चे ऐसे ही हैं, बच्चों से क्या कहना । जैसा भी है ठीक है।” दूसरी माँ होती है कि वो सोचती है कि वो बच्चों को कर्तव्य परायण बनाए। कर्तव्य परायण बनाने के लिए वो फिर बच्चों से कहती है कि “सवेरे जल्दी उठना चाहिए आपको। पढ़ने बैठना चाहिए। फिर आप जल्दी से स्कूल जाइए। ये समय से करना चाहिए। वहाँ बैठना चाहिए। यहाँ उठना चाहिए, ऐसे कपड़े पहनना चाहिए।” इन सब चीज़ों के पीछे में लगी रहती है। अब इसे कहना चाहिए कि ये सम्यक नहीं है, integrated (सम्यक) बात नहीं है। इसमें integration (समग्रता) नहीं है और आज का सहजयोग जो है वह integration (समग्रता) है । दोनों चीज़ों का integration (विलय, एकीकरण, समग्रीकरण) होना चाहिए न कि combination (एकत्रीकरण) होना चाहिए। समग्रता और एकत्रीकरण में ये फर्क हो जाता है कि हमारी जो भावना है वो कर्तव्य होनी चाहिए और Read More …