Shri Krishna Puja: The 16 000 Powers of Shri Krishna Saint-Quentin-en-Yvelines (France)

श्री कृष्ण पूजासेंट क्वेंटिन (फ्रांस), 16 अगस्त 1987। श्री माताजी: वह क्या है?सहज योगी: छोटे गणेश, एक उपहार।कृपया बैठ जाएँ।श्री माताजी : क्या हिल रहा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है।श्री माताजी: यहाँ क्या हिल रहा है? यह ऊर्जा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है। बच्चों का इस खूबसूरत तरीके से आना और मेरा स्वागत करना बहुत सुंदर था। यह आपको कृष्ण के दिनों में वापस ले जा सकता है, जब बचपन में, उनके दोस्तों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था, और उन्होंने हर संभव सम्मान करने की कोशिश की। उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। इसके अलावा, आप कहानी जानते हैं –श्री माताजी, [एक तरफ]: मुझे लगता है कि आपको पानी बंद कर देना चाहिए, अन्यथा मेरी वाणी थोड़ी-सी हो सकती है- उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। यहां हमारे पास दोनों तरफ पानी का बहाव है। जिस तरह से वह जमुना नदी के किनारे अपनी बांसुरी बजाते थे। पूरी ही बात कभी-कभी इतनी मानवीय प्रतित होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। सही समय पर, जब भी जरूरत पड़ी, बचपन में, उन्होंने अपनी शक्तियों को प्रकट किया, कि उन्होंने एक महिला को मार डाला जो एक शैतान [पुतना] थी। अंतत: उन्होने कंस का वध कर दिया।उसके बाद, आप जानते हैं कि उन्होंने गीता का उपदेश दिया, लेकिन यह इतना जल्दि नही हुआ। कंस को मारने के बाद, वह वहां शासन करने के लिए द्वारका चले गये। और वहां उन्हे पांच और पत्नियों से शादी करनी है। Read More …

Devi Puja: The sincerity is the most important Dourdan (France)

देवी पूजा, फ्रेंच सेमिनार। डोरडन (फ्रांस), 18 मई 1986। आज हम यहां इस खूबसूरत जगह पर कुछ बहुत गहन काम करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती है, जो इतिहास में हैं, और कुछ चीजें वातावरण में हैं, वे हमें बहुत प्रभावित करती हैं क्योंकि हम पांच तत्वों की उपज हैं, जिनमें से पृथ्वी मां हमारे भीतर बाईं ओर है। धरती माता अपने वातावरण को बदलती है, अपनी पहाड़ियाँ और डलियाँ, नदियाँ, उन्हें इस तरह बनाती हैं कि यह उनके स्वभाव को विविधता प्रदान करती है। अब ईश्वर ने एक ही दुनिया बनाई है, उसने कई दुनिया नहीं बनाई हैं, उसने एक ही दुनिया बनाई है, यह दुनिया बॅस अकेले यहां इंसानों की रचना की गई है। तो, यह सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है, आप एसा कह सकते हैं, जोपरमात्मा के ध्यान में रहा है। तो, संपूर्ण ब्रह्मांड इस ग्रह के कल्याण के लिए काम करता है, और उस ब्रह्मांड के कार्य ने इस पृथ्वी को बनाया है, और फिर मनुष्य को, और फिर सहजयोगियों को तो, सहजयोगी रचनात्मक शक्तियों का साकार स्वरुप हैं, वे ईश्वर की इच्छा की अभिव्यक्ति हैं, यही उन्होंने चाहा, इसलिए उन्होंने इस ब्रह्मांड, इस ब्रह्मांड और इस पृथ्वी की रचना की। तो अब उनकी इच्छा पूरी होती है जब वे सहजयोगियों के माध्यम से बीज प्रतिबिम्बित होते देखते हैं। लेकिन अभी भी कुछ चीजें हैं जो हमें अपने भीतर स्पष्ट करनी हैं।हमारे भीतर महाकाली शक्ति उनकी इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। अब हमें यह देखना Read More …

Sahasrara Puja: Consciousness and Evolution Alpe Motta (Italy)

१९८६ -०५-०४ , सहस्त्रार पूजा, इटली, चैतन्य और उत्क्रांति  आज हम सब के लिए एक महान दिवस है, क्योंकि यह सोलवां सहस्त्रार दिवस है। जैसे कि सोलह ताल या सोलह हरकत में आप कविता के एक उच्च स्तर पर पहुँच जाते हैं। क्यों कि इस प्रकार से यह पूर्ण हो जाता है।  जैसे श्री कृष्ण को भी एक पूर्ण अवतरण कहा जाता है, क्योंकि उनकी सोलह पंखुड़ियां होती हैं। इस परिपूर्णता को “पूर्ण” कहते हैं।  तो अब हम एक और आयाम पर पहुंच गए। पहला वह था जहाँ आपने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया।   उत्क्रांति की प्रक्रिया में यदि आप देखें, पशु अनेक चीज़ों के प्रति सचेत नहीं हैं, जिन में मानव सचेत है। जैसे कि तत्त्वों का प्रयोग पशु अपने लिए नहीं कर सकते हैं। और वह अपने प्रति बिलकुल भी सचेत नहीं हैं। यदि आप उन्हें आईना दिखाएँ तो वह ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं करते जैसे वह स्वयं उसमें हों, मेरे विचार से, “चिम्पांज़ियों“ को छोड़कर। इसका अर्थ है कि हम कुछ हद तक उनके जैसे हैं ! तो जब हम मनुष्य बन गए, हमने अनेक विषयों के संदर्भ में चेतना प्राप्त की, जिनके प्रति पशु सचेत नहीं थे। तो उनके मस्तिष्क में यह समझ नहीं थी कि वह तत्त्वों का उपयोग अपने लिए कर सकते हैं।     मनुष्य होते हुए भी आपको अपने भीतर स्थित चक्रों के विषय में ज्ञान नहीं था। तो आपकी चेतना कार्यरत हो कर, चक्रों के अचेतन कार्य और मस्तिष्क के सचेतन कार्य के आधे रास्ते तक पहुँची। और आप ने  कभी भी अपनी “स्वायत्त Read More …

The Truth Has Two Sides Geneva (Switzerland)

‘सत्य के दो पहलू होते हैं’जिनेवा सार्वजनिक कार्यक्रम 11 जून 1985 मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। लेकिन सत्य के दो पहलू हैं: माया जो हमें दिखाई देती हैं वह सत्य की तरह लग सकती है, और भ्रम का सार भी सत्य प्रतीत हो सकता है। लेकिन दूसरा पहलू निरपेक्ष है और इसे महसूस करना होगा, अपने मध्य तंत्रिका तंत्र पर अनुभव करना होगा। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)नहीं है जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, न ही भावनात्मक कल्पना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसे बदला नहीं जा सकता है। यह समझौता नहीं कर सकता। सत्य जानने के लिए हमें खुद को नम्र करना होगा। अब इतनी सारी चीजें जो हमें अब तक ज्ञात नही थी हमने विनम्रता से विज्ञान में खोज ली हैं । लेकिन बाहरी रूप में जो कुछ भी जाना जाता है, जैसे पेड़, उसकी जड़ें होनी चाहिए, और अगर आप सिर्फ पेड़ को देख रहे हैं तो इन जड़ों का ज्ञान नहीं हो पायेगा। और जब कोई जड़ों की बात करता है, तो हम हिल जाते हैं, क्योंकि हमें इसका पहले से कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार हम केवल वृक्ष को देखने के लिए संस्कारित हैं, और हम अपने मन को यह नहीं समझा पाते हैं कि इसकी कुछ जड़ें होनी चाहिए। तो हम कह सकते हैं कि लोग विज्ञान में काफी आगे बढ़ चुके हैं, और तरक्की कर चुके हैं और विकसित देश बन गए हैं। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि, अगर वे अपनी जड़ों की तलाश नहीं Read More …

8th Day of Navaratri: What We Have To Do Within Ourselves, Talk After the Puja Complexe sportif René Leduc, Meudon (France)

1984-09-30 नवरात्रि पूजा वार्ता: हमे अपने भीतर क्या करना है,पेरिस, फ्रांस  आज नवरात्रि का आठवां दिन है, और यह सहज योगियों के लिए महान दिन है क्योंकि यह सबसे महत्वपूर्ण समय है। यानी हम सातवां चक्र पार कर चुके हैं, और हम आठवें चक्र पर हैं। हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि देवी ने आठवें दिन क्या किया, हमें आज यह सोचना होगा कि हमें अपने भीतर क्या करना है। सातवें दिन को पार करने के बाद, सातवें चक्र को पार करने के बाद-जो कि वास्तव में आप का  आध्यात्मिक उत्थान है, हमें आठवें पर क्या करना चाहिए? यह कितना सहज है कि आज अष्टमी का दिन है, क्योंकि इसी दिन देवी ने दुष्टों, शैतानों और राक्षसों का वध किया। उन्होंने यह अपने बल से स्वयं ही किया। अब यह शैतानी शक्तियां  मनुष्य में भी प्रकट हो रही हैं। वह फैल चुके हैं। यह शक्तियां हमारे भीतर हैं। इसलिए हम सभी को अपने भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा। युद्ध अपने भीतर है, बाहर नहीं। पहले जब आप सातवें चक्र को पार करते हैं और आप आठवें पर होते हैं, तो आप याद रखें कि पहले आपको स्वयं के भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा। आप सब बहुत बुद्धिमान लोग हैं, कभी-कभी कुछ अधिक ही बुद्धिमान। इसलिए मैं जो कुछ भी कहती हूं आप उसे उलट देते हैं, और इसे आप अपनी बुद्धि से उपयोग करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन इसमें आपकी भलाई नहीं है। यह आपके ‘हित’ के लिए नहीं, आपके भले के लिए नहीं है। आप Read More …

Guru Puja: The State of Guru Grand Hotel Leysin (Leysin American Schools), Leysin (Switzerland)

                          गुरु पूजा  लेसिन (स्विट्जरलैंड), 14 जुलाई 1984। मैं दुनिया के सभी सहज योगियों को नमन करती हूं। आप सब को बड़ी संख्या में यहां गुरु पूजा करने के लिए इकट्ठा होते देखना बहुत खुशी की बात है। व्यक्तिगत रूप से अपने गुरु की पूजा करना सर्वोच्च आशीर्वाद माना जाता है। लेकिन मेरे मामले में यह बहुत अलग संयोजन है कि मैं आपकी माता और आपका गुरु हूं। तो आप समझ सकते हैं कि कैसे श्री गणेश ने अपनी माता की आराधना की थी। आप सभी श्री गणेश जैसी ही छवि में बने हैं जिन्होंने अपनी माँ की पूजा की और फिर वे आदि गुरु, पहले गुरु बने। वह गुरुत्व का मौलिक सार है। मां ही बच्चे को गुरु बना सकती है। और किसी भी गुरु में केवल मातृत्व ही  – चाहे वह पुरुष हो या महिला – शिष्य को गुरु बना सकता है। तो पहले आपको पैगम्बर बनना होगा और उस मातृत्व को अपने अंदर विकसित करना होगा, फिर आप दूसरों को भी पैगम्बर बना सकते हैं। अब  बोध के बाद, गुरु बनने के लिए हमें क्या करना होगा? गुरु शब्द का अर्थ है गुरुत्वाकर्षण। गुरुत्वाकर्षण का अर्थ है एक व्यक्ति जो गंभीर है, जो गहरा है, जो चुंबकीय है। अब जैसा कि आपने सहज योग में सीखा है कि बोध पूर्ण अनायास में होता है। तो आमतौर पर एक गुरु अपने शिष्यों को प्रयासहीन बनाने की कोशिश करता है, जिसे प्रयत्न शैथिल्य  कहा जाता है – जिसका अर्थ है ‘अपने प्रयासों को आराम दें’। बिना कुछ किए आपको अपनी Read More …

Joy has no duality Société d’Encouragement pour l’Industrie Nationale, Paris (France)

सार्वजनिक कार्यक्रम, पेरिस (फ्रांस), 16 जून 1983।॥आनंद में कोई पाखंड नही होता ॥ मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। मनुष्य सत्य की खोज प्राचीन काल से करता रहा है। उन्होंने सत्य की खोज विभिन्न प्रकार की खुशीयो में करने की कोशिश की और कई बार उन्होंने इसका त्याग किया क्योंकि उन्होंने पाया कि खुशी स्थायी नहीं है। थोड़े समय के लिए उसे किसी चीज से खुशी प्राप्त हुई और फिर उसने पाया कि इससे उसे बड़ा दुख भी हुआ। जैसे,एकऔरत जिसकी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह रोती-बिलखती रहती थी; और उसको एक बच्चा हुआ था जिसने बाद में उसे ही अस्वीकार कर दिया। फिर, मनुष्य सुख की तलाश, सत्ता में, अन्य पुरुषों पर अधिकार में, अन्य देशों पर शक्ति में खुशी पा कर करने लगे, फिर भी बहुत अधिक संतुष्ट नहीं थे। उनके बच्चे पूर्वजों ने जो किया उसके लिए खुद को दोषी महसूस करने लगे। फिर गतिविधी कुछ और सूक्ष्म की तलाश में शुरू की – जो की कला और संगीत में थी। उसकी भी सीमाएँ थीं। यह लोगों को वह स्थायी आनंद नहीं दे सकी। यह वादा किया जाता है कि एक दिन आप सभी को यह स्थायी आनंद प्राप्त करना होगा। और फिर उन्होंने ऐसे सभी लोगों को चुनौती देना शुरू कर दिया, जिन्होंने उपदेश किया था और जो वादा करते रहे हैं कि ऐसा दिन आएगा। कई लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि आनंद जैसा कुछ नहीं है, जीवन हर समय लहरों के दो चेहरों हैं। एक सिक्के के दो पहलू की Read More …

Mental Projection, Guru Puja Evening Talk Nirmala Palace – Nightingale Lane Ashram, London (England)

[Translation English to Hindi]                   मानसिक कल्पना सहज योगियों से बातचीत   निर्मला पैलेस आश्रम, नाईट एंगल लेन 1982-04-07 नोट [कृपया ध्यान दें श्री माताजी उस समय उपस्थित भारतीय नर्तकियों के लिए अनुवाद करती हैं और मैंने इसे कोष्ठक में (भारतीय भाषा में बोलती है) के रूप में चिह्नित किया है।] श्री माताजी: क्या आप कल सुबह आ सकते हैं, उन्होंने कहा कि शायद यह कल के बाद से बेहतर होगा, ….कुछ न कुछ तर्क संगत, मैंने कहा। ????कृपया बैठ जाइये। अभी वीडियो रिकार्डिंग क्यों कर रहे है आप इसे क्यों रखना चाहते हैं? कुछ अनौपचारिक ढंग खोजें। योगी: नहीं, हम वीडियो नहीं चाहते हैं योगी: इन से लोगों को बहुत मदद मिलती हैं माँ। श्री माताजी: क्या आप ऐसा सोचते हैं? योगी: हाँ माँ ये अनौपचारिक वार्ताएं हैं जो वास्तव में दुनिया भर के लोगों की मदद करती हैं।  योगी: लोगों के लिए योगी: आप इसे रात में देख सकते हैं श्री माताजी: आप इसे रात में देख सकते हैं योगी: क्षमा करें? श्री माताजी: हम्पस्टेड ?? योगी: हां हम इसे रात में देख सकते हैं योगी: मेरा अनुरोध था कि इन अनौपचारिक बातचीत को फिल्माना संभव होगा क्योंकि ये हैं…। श्री माताजी: कौन सी? योगी: अनौपचारिक माँ श्री माताजी: कब योगी: अभी एस एम: यह बहुत ही अनौपचारिक है, मुझे लगता है कि ठीक नहीं है? श्री माताजी: अब, मुझे आशा है कि आप सब समझ गए होंगे कि मैंने आज सुबह क्या कहा था। मुझे लगता है कि फिर से देखा जाना चाहिए,  योगी: हाँ श्री माताजी: आपकी Read More …

The manifestation of the Spirit Aston La Scala Nice, Nice (France)

सार्वजनिक कार्यक्रम दिवस 2, 22 फरवरी 1980, नाइस, फ्रांस कल मैंने आपको हमारे भीतर की अवशिष्ट शक्ति के बारे में बताया जो कि “सैक्रम बोन” (त्रिकोणाकार अस्थि) में रहती है। इस शक्ति को कुंडलिनी कहा जाता है। यह वही शक्ति है जो ऊपर को चढ़ती है इन उर्जा केंद्रों में से होती हुई और हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार दिलाती है, हमारा पुनर्जन्म। मैंने आपको यह भी बताया है कि कई लोगों में आप देख सकते हैं इस कुंडलिनी के स्पंदन को स्पष्ट रूप से अपनी खुली आँखों द्वारा।  आप देख भी सकते हैं इसका ऊपर की ओर चढ़ना विभिन्न चक्रों में, इस चक्र तक। आप अपने सिर पर भी स्पंदन को अनुभव कर सकते हैं। और आप – बाद में भी, जब यह इस क्षेत्र का भेदन करती है – आप अनुभव कर सकते हैं ठंडी हवा का बहना अपने हाथ से । यह आपकी आत्मा की ऊर्जा है। हम कह सकते हैं कि यह अभिव्यक्ति है आत्मा की । इस प्रकार आप एक नए आयाम में प्रवेश करते हैं सामूहिक चेतना के । आप सामूहिक रूप से जाग्रत हो जाते हैं। आप दूसरों को अनुभव करना शुरू कर देते हैं अपनी उंगलियों पर । वास्तव में, ये सभी पाँच उंगलियाँ – साथही, छह और सात, बिंदु – हमारे भीतर के चक्र हैं। आप प्रबुद्ध हो जाते हैं – क्योंकि आप उन्हें यहाँ अनुभव कर सकते हैं और कभी-कभी भीतर भी। कुछ लोग हाथों पर इसे अनुभव नहीं कर पाते हैं, और कुछ लोगों ने कल कुछ समय तक इसे अनुभव Read More …