Swadishthan, Thinking, Illness Part 1 Hilton Hotel Sydney, Sydney (Australia)

“स्वाधिष्ठान, सोच, बीमारी”  हिल्टन होटल, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 16 मार्च 1990। मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं। आपको यह जानना होगा कि सत्य वही है जो है। हम अपनी मानवीय चेतना के साथ इसकी अवधारणा नहीं कर सकते। हम इसे आदेश नहीं दे सकते, हम इसमें हेरफेर नहीं कर सकते, हम इसे व्यवस्थित नहीं कर सकते। जो था, है और रहेगा। और सच क्या है? सत्य यह है कि हम घिरे हुए हैं या हममें समायी हुई है अथवा एक बहुत ही सूक्ष्म ऊर्जा द्वारा हमारा पोषण, देखभाल और प्रेम किया जाता है ऐसी उर्जा जो दिव्य प्रेम की है। दूसरा सत्य यह है कि हम यह शरीर, यह मन, ये संस्कार, यह अहंकार नहीं हैं, बल्कि हम आत्मा हैं। जो मैं कह रही हूं उसे आंख मूंदकर स्वीकार करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अंधविश्वास कट्टरता की ओर ले जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों के रूप में आपको अपने दिमाग को खुला रखना चाहिए और जो मैं कह रही हूँ उसे खुद पड़ताल करना चाहिए: यदि ऐसा जान पड़े, तो ईमानदारी से आपको इसे स्वीकार करना चाहिए। हम अपनी सभ्यता, अपनी उन्नति के बारे में विज्ञान के माध्यम से बहुत कुछ जानते हैं। यह एक वृक्ष की उन्नति के सामान है जो बाहर बहुत अधिक बढ़ गया है; लेकिन अगर हम अपनी जड़ों को नहीं जानते हैं, तो हम नष्ट हो जाएँगे। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी जड़ों के बारे में जानें। और मैं कहूँगी की यही है हमारी जड़ें हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, Read More …