The Right Side Caxton Hall, London (England)

                                                 “राइट साइड,”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 मई 1981। मैं आपसे राइट साइड, दायें तरफ की अनुकंपी प्रणाली Right Side sympathetic nervous system के बारे में बात करूंगी, जो हमारी महासरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा द्वारा व्यक्त की जाती है, जो हमें कार्य करने की शक्ति देती है। बाईं बाजु से हम कामना करते हैं और दाईं ओर, पिंगला नाड़ी की शक्ति का उपयोग करके, हम कार्य करते हैं। मैं उस दिन आपको राइट साइड के बारे में बता रही थी। आइए देखें कि हमारा राइट साइड कैसे बनता है। जो लोग पहली बार आए हैं उनके लिए मुझे खेद है लेकिन हर बार जब मैं विषय का परिचय शुरू करती हूं, तो फिर वही हो जाता है लेकिन बाद में मैं आपको सहज योग के बारे में समझाऊंगी। अब यह दाहिनी ओर, पिंगला नाडी, एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऊर्जा देने वाली शक्ति है जो हमें कार्य करने और सक्रिय करने के लिए प्रेरित करती है। अब यह सभी पांच तत्वों से बना है: आप उन सभी पांच तत्वों को जानते हैं जिन्होंने हमारे भौतिक अस्तित्व और हमारे मानसिक अस्तित्व को बनाया है। इस तरह यह हमारी सभी शारीरिक और मानसिक समस्याओं, मानसिक गतिविधियों और मानसिक और शारीरिक विकास को पूरा करने में हमारी मदद करता है। अब यह, उन पांच तत्वों द्वारा निर्मित होने के कारण, जब, पहली बार, मनुष्य किसी भी संदर्भ में कुछ कार्रवाई करने के बारे में सोचने लगे, जैसे कहो भारत में उन्होंने पहले विचार किया कि, “क्यों नहीं, किसी न किसी तरह, इन तत्वों के Read More …

Christ and Forgiveness Caxton Hall, London (England)

इसा मसीह और क्षमा कैक्सटन हाल, यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) 11 मई, 1981 …उस सत्य की खोजना जिस के बारे में सभी धर्मग्रंथों में वर्णन किया गया है। सभी ग्रंथों में कहा गया है कि, आप का पुनर्जन्म होना है। आप का जन्म होना है, उस  के बारे में पढ़ना नहीं है, सिर्फ यह कल्पना नहीं करनी कि आपका पुनर्जन्म हुआ है, सिर्फ यह विश्वास नहीं करना कि आप का पुनर्जन्म हुआ है या फिर कोई नकली कर्मकाण्ड जो यह प्रमाणित करता है आप दोबारा जन्मे है उस को स्वीकारना नहीं है अपितु निश्चित रूप से हमारे अंदर कुछ घटित होना चाहिए। सच्चाई का कुछ अनुभव तो हमारे अंदर होना ही चाहिए। यह सिर्फ कोई विचार नहीं है कि ये ऐसा है कि, हां! हां! हमारा पुनर्जन्म हुआ है! अब हम चुने हुए लोग हैं! हम सब से बढ़िया लोग हैं! परंतु निश्चित ही कुछ है कि हमारे अंदर कुछ क्रमागत उत्क्रांति है जो प्रकट होनी चाहिए, जिस की सभी धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है। बिल्कुल भी कोई अपवाद नहीं है! हिंदू धर्म से शुरू कर के आज के सब से अधिक आधुनिक व्यक्तित्व, जो हम कह सकते हैं कि नए गुरु नानक है, हम कह सकते हैं कि ये वो हैं जिन्होंने धर्मग्रंथ लिखा। कुरान में साफ़ कहा गया है कि, आप को पीर बनना है,  वह जिसके पास ज्ञान है। वेद स्वयं यही कहते हैं, वेद पढ़ने से, वेद का अर्थ है ‘विद’ माने जानना, अगर आप नहीं जानते तो यह बेकार है।’ पहले अध्याय में, पहले छंद Read More …

The Guru Principle Caxton Hall, London (England)

“द गुरु प्रिंसिपल”, कॉक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 28 जुलाई 1980 कल मैंने आपको भवसागर, धर्म के बारे में बताया था जिसे मनुष्य को स्थापित करना है। आधुनिक समय में लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग उस सीमा तक किया है, वो बहुत आगे चले गए हैं, इस अति तक या उस अति तक। उन्होंने अपने केंद्रीय मार्ग को त्याग दिया है और स्वयं को स्वीकार और पहचान लिया है इस प्रकार के, प्रत्येक चीज़ के बारे में अतिशय विचारों के साथ, कि लोगों को यह समझाना कठिन है कि उन्होंने अपना मार्ग खो दिया है। कोई भी अतिशयता अनुचित हैं। संतुलन वह मार्ग है जिससे हम वास्तव में समस्या का समाधान करते हैं। किन्तु मानव जाति इस प्रकार की है कि प्रत्येक बहुत तेज़ी से दौड़ना आरंभ कर देता है, आप देखें और इसमें एक प्रतियोगिता निर्धारित है: कौन पहले नरक में जाता है।  यह मात्र एक दिशा में नही है, आप किसी भी दिशा को ले सकते हैं, किन्तु ये सभी दिशाएं रैखिक हैं। वो सीधे जाते है और घूम जाते हैं और नीचे जाते हैं – उस प्रकार का कोई भी संचलन। उदाहरण के लिए मानो, हमारा औद्योगिक विकास। हमने अपने औद्योगिक विकास का आरंभ सम्पूर्ण को समझे बिना किया है, सम्पूर्ण संसार, कि सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा बनाया गया था, एक भाग नहीं, एक राष्ट्र। संपूर्ण के साथ संबंध को समझे बिना, जब हम औद्योगिक रूप से आगे बढ़ना आरंभ करते हैं, तब हमने उद्योगों का निर्माण किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हमें अन्य उद्योगों Read More …

Confusion, A Sign Of Modern Times Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘विक्षेप, आधुनिक काल का लक्षण’ सार्वजनिक कार्यक्रम,  कैक्सटन हॉल,लंदन 14 जुलाई, 1980 आधुनिक काल में आज के समय में हमारा सामना (कन्फ्यूजन) विक्षेपों से है। ये आधुनिक काल का लक्षण है। साथ ही, सत्य को खोजने की सामूहिक तीव्र जिज्ञासा प्रकट हो रही है। ये सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है जो ऐसा अनुभव करता है, ये सिर्फ आठ और दस लोग नहीं हैं जो ऐसा अनुभव करते हैं, परंतु जनसमूह के जनसमूह, बहुताय अनुभव कर रहे हैं, कि उनको एक उत्तर खोजना होगा। आप को पता करना होगा कि आप यहां क्यों हैं। आप को जानना होगा, आप कौन हैं। आपको अपनी हितकारिता का पता लगाना है। आपको संपूर्णता का पता लगाना है। ये एक बहुत बड़ी गतिविधि एक बहुत ही सूक्ष्म तरीके से होती है, यानी जन समूह को इस खोज की ओर ले जाना। परंतु शायद हमें इस बारे में कोई अंदाजा नहीं, कि क्या माहौल है जिस में हम जन्मे हैं, क्या परिस्थिति है, पूरा मंच कैसे बिछाया गया है! हमें कुछ नही पता! जैसा कि हमने खुद को इंसान के रूप में बिना उसके महत्व को समझे स्वीकार कर लिया है। हम हर चीज उपलब्ध होने के कारण उस का महत्व नहीं समझते। हम मनुष्य रूप में अपनी उत्क्रांति के द्वारा जन्मे हैं, परंतु हम विचार भी नहीं करना चाहते, कि हम अमीबा से इस उच्चतर अवस्था तक कैसे विकसित हुए! सारे  ‘क्यों’ हम बंद कर देते हैं! जो कुछ भी है हम इन आंखों के द्वारा, इन कानों के Read More …

What is Happening In Other Lokas? Caxton Hall, London (England)

                                 अन्य लोकों में क्या हो रहा है कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड, 30 जून 1980। आज, मुझे आपको यह बताने में कोई आपत्ति नहीं है कि अन्य लोकों में क्या हो रहा है, अन्य लोक जो हम नहीं देखते हैं, जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं है। यह आपको थोड़ा डरा सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम यह जानें कि संपूर्ण के संबंध में हमें कैसे रखा गया है, परमेश्वर की क्या योजनाएँ हैं, और हम उन्हें कैसे पूरा करने जा रहे हैं। अब यहाँ आप में से अधिकांश आत्मसाक्षात्कारी है। आप में से कुछ पहली बार आए हैं; आपको भी आपका आत्मसाक्षात्कार होगा। लेकिन सामान्य बात यह है कि आप सभी मुमुक्षु हैं, ईश्वर के साधक हैं, शांति के खोजी हैं, प्रेम पिपासु हैं, यह एक सामान्य बात है। लेकिन यह इच्छा आपके पास आपके लिए नहीं आई है, किसी व्यक्तिगत उत्थान के लिए या किन्ही ऐसी उपलब्धियों द्वारा हासिल स्थान के लिए जहां से कोई वापसी नहीं है, बल्कि यह अंतिम निर्णय है जिसका सभी मनुष्यों को सामना करना होगा। उन्हें इससे गुजरना होगा और अपने अंतिम स्थान को प्राप्त करने के लिए, ईश्वर के राज्य में अपना स्थान प्राप्त करना होगा। आज तुम मेरे सामने बैठे हो, तुम मेरे साथ पहले भी रहे हो और बहुत पहले भी। लेकिन आज विशेष रूप से जब आप मेरे साथ हैं, तो आप इसका सामना करने और स्वयं के लिए सुनिश्चित करने यहां आए हैं कि आप सत्य, प्रेम, ईश्वर का आशीर्वाद धारण करने में सक्षम हों। Read More …

Guru Tattwa Caxton Hall, London (England)

कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 23 जून 1980। सार्वजनिक कार्यक्रम (लघु) और सहज योगियों से बात यह एक तथ्य है। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप देख सकते हैं। यह एक वास्तविकीकरण है। और हम अपनी कल्पनाओं में, अपने मतिभ्रम और पथभ्रष्टता में इस कदर खोए हुए हैं कि हम विश्वास नहीं कर सकते कि ईश्वर के बारे में कुछ तथ्यात्मक हो सकता है। लेकिन अगर ईश्वर एक तथ्य है, तो यह घटना भी हमारे भीतर होनी ही है, अन्यथा उसका कोई अस्तित्व नहीं है। अगर कोई नास्तिक है तो एक तरह से बेहतर है। क्योंकि उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ भी स्वीकार नहीं किया है। लेकिन अगर किसी ने खुले दिमाग से ईश्वर को स्वीकार कर लिया है और किन्ही अटकलो का पालन नहीं किया है, तो यह और भी अच्छा है। लेकिन अगर आप इस तरह की किसी भी अट्कल का पालन करते हैं, कि भगवान होना चाहिए – कुछ लोगों ने मुझसे कहा, “हां मां। भगवान मेरी बहुत मदद करते हैं।” मैंने कहा, “सच में? वह आपकी कैसे मदद करता है?” तो वह महिला मुझसे कहती है “मैं सुबह उठी और मैंने भगवान से प्रार्थना की, ‘हे भगवान, मेरे बेटे की देखभाल करो!”, वह बस इतना ही सोच सकती थी! कि भगवान केवल उसके बेटे की देखभाल में व्यस्त हो, जैसे उनके पास और कोई काम नहीं है! “तो फिर क्या हुआ?” “तब मेरा बेटा हवाई जहाज से आ रहा था और विमान में कुछ परेशानी हुई, लेकिन वह बच गया। भगवान ने वहां मेरी मदद Read More …

The Subtlety Within Caxton Hall, London (England)

                                          आतंरिक कुशाग्रता   कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 9 जून 1980 एक अन्य दिन आश्रम में, मैं आपको हमारी कुशग्राताओं के बारे में बता रही थी, जो कुशाग्रताएँ हमारे पास पहले से हैं, जिन्हें हम नहीं समझते हैं। हमारे अवचेतन मन से हो सकता है, हमारे अग्र चेतन मन से हो सकती है, कहीं से भी हो सकती है जो हमारे लिए अज्ञात है; लेकिन हमें उन कुशाग्रताओं की परवाह करना चाहिए जो हमें हमारे सार्वभौमिक अस्तित्व की ओर ले जाती हैं। हमने कभी-कभी ऐसे लोगों के बारे में सुना है जिन्हें संकेत मिलता है। जैसे कोई कहता है, “मुझे यह घर खरीदना चाहिए, मुझे एक सुझाव प्राप्त होता कि, मुझे यह खरीद लेना चाहिए।” या कभी-कभी लोग कहते हैं कि, “मैं हमेशा कुछ सुनता हूं, कोई मुझे बताता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए।” लेकिन इस तरह के सभी सुझावों के बारे में आकलन किया जाना चाहिए कि वे आपको कुछ परे के बारे में सुझाव देते हैं अथवा कुछ सांसारिक जीवन से सम्बंधित, जैसे की,घर खरीदना। परमात्मा की इस बात में कोई अधिक दिलचस्पी नहीं है कि, आप कौन सा  घर खरीदते हैं, या आप एक दौड़ में कितना पैसा कमाते हैं: उन्हें नहीं है ! क्योंकि यह परमात्मा के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। कोई व्यक्ति यह समझ सकता है, क्या ऐसा नहीं है।  यह भी कि ईश्वर आपको किसी के विरुद्ध कान में यह बताने में दिलचस्पी नहीं रखते है कि, “इस आदमी से सावधान रहें, वह एक खतरनाक आदमी है!” क्योकि, अगर कोई आपको शारीरिक रूप से नुकसान Read More …

The Egg and Rebirth Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ”अंडा पुनर्जन्म से कैसे संबंधित है?” कैक्सटन हॉल, यू.के. 04-10-1980 अभी हाल में ही मैंने आश्रम में आपको ईस्टर, ईसा मसीह के जन्म, उनके पुनरुत्थान और ईसाई धर्म का संदेश जो की पुनरुत्थान है, के बारे में बताया था।  एक अंडा बहुत ही महत्वपूर्ण है और भारत के एक प्राचीन ग्रंथ में लिखा है, कि अंडे के साथ ईस्टर क्यों मनाया जाना चाहिए। यह बहुत आश्चर्यजनक है। यह बहुत स्पष्ट है वहां अगर आप देख सके कि किस प्रकार ईसा मसीह को अंडे के रूप में ‌प्रतीकत्व किया गया है। अब, अंडा क्या है? संस्कृत भाषा में ब्राह्मण को  द्विज: कहते हैं। द्विज: जायते अर्थात जिसका जन्म दो बार हुआ हो। और पक्षी, कोई भी पक्षी द्विज: कहलाता है अर्थात दो बार जन्मा। क्योंकि पहले एक पक्षी एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर पक्षी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है। इसी प्रकार मनुष्य पहले एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर एक आत्मसाक्षात्कारी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है। अब आप देखें कि कितनी महत्वपूर्ण बात है कि दोनों एक ही नाम से जाने जाते हैं। कोई भी अन्य जानवर द्विज: नहीं कहलाता जब तक कि उसका पहला निर्माण अंडे के रूप में ना हो और बाद में फिर किसी और रूप में। उदाहरण के लिए कोई स्तनधारी, कोई भी स्तनधारी द्विज: नहीं कहलाता सिवाय मनुष्यों के। यह उल्लेखनीय है जीव विज्ञान में अगर आप पड़ें, कि स्तनधारी अंडे नहीं देते। वह सीधे अपने बच्चों Read More …

Christmas And Its Relationship To Lord Jesus Caxton Hall, London (England)

The Incarnation Of Christ, The Last Judgement Date : 10th December 1979 Place : London Туре Seminar & Meeting Speech [Translation from English to Hindi,Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? करने का कार्य था मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अथात् आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, उनके आत्मा हैं यह शरीर नहीं । अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर वे ‘प्रणव’ थे, वे ब्रह्मा थे – Read More …

How to get to the Spirit that lies within Caxton Hall, London (England)

                                          आत्मा को कैसे पायें  सार्वजनिक कार्यक्रम। कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 26 नवंबर 1979। …और किस प्रकार यह हमारे भीतर रहती है और कैसे हम माया के पर्दों में खोए रहते हैं। आज मैं आपको बताने जा रही हूँ कि हम उस आत्मा तक कैसे पहुँचते हैं। उस आत्मा का पता लगाने के लिए लोग दो प्रकार के तरीके अपनाते हैं। एक को अणुवोपाय कहा जाता है, और दूसरे को शाक्तोपाय कहा जाता है। ‘अणु’ का अर्थ है एक अणु। जब हम माया में खोए होते हैं, जैसा कि मैंने आपको पिछली बार बताया था, वास्तव में आत्मा शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है। यह कभी भी अपनी शक्ति नहीं खोता है चाहे हम बूढ़े हों, युवा हों, चाहे हम किसी भी स्थिति में हों, आत्मा की अपनी शक्ति है, हर समय। लेकिन, हम में आत्मा का प्रतिबिंब, हम में आत्मा का प्रकाश, हमारे परावर्तक की गुणवत्ता पर निर्भर करता है कि हम कैसे हैं। और गुणवत्ता अत्यधिक घटिया होने के कारण कभी-कभी हमारे भीतर अँधेरा पैदा हो जाता है और उस अँधेरे में कभी-कभी तो हमें पता ही नहीं चलता कि परे कुछ अन्य भी है। तो खोजने की पहली शैली अणुवोपाय है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, जो अणुओं के बाद अणुओं को पृथक करने पर निर्भर करती है। क्योंकि इन परिस्थितियों में, जब आप अंधेरे से घिरे होते हैं, तो आप आत्मा को एक अणु के रूप में देखते हैं या आप एक चिंगारी या झिलमिलाहट कह सकते हैं। कभी-कभी आपको बस इसकी एक झलक ही मिलती है। जैसा Read More …

How realisation should be allowed to develop Caxton Hall, London (England)

          बोध को कैसे विकसित होने दिया जाना चाहिए  कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 15 अक्टूबर 1979। आप में से अधिकांश यहाँ सहजयोगी हैं। अब जिन लोगों को साक्षात्कार मिल गया है, जिन्होंने स्पंदनों को महसूस किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अब दूसरे ही स्वरुप में विकसित हो रहे हैं । अंकुरण शुरू हो गया है, और आपको अंकुरण को अपने तरीके से काम करने देना चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर, जब हमें बोध भी हो जाता है, तो भी हमें यह एहसास भी नहीं होता है कि यह एक जबरदस्त चीज है जो हमारे भीतर घटित हुई है। कि यह प्रस्फुटन, जो एक असंभव कार्य है, हमारे भीतर घटित हो गया है, और इसे धीरे-धीरे कार्यान्वित होना है। इसे विकसित हो कर, और हमें उसमें उत्क्रांति प्रदान करना है, और चूँकि हम इसे महसूस नहीं करते हैं, हम इसे (आत्मसाक्षात्कार को )उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना हमें लेना चाहिए। इसके अलावा, वे ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्होंने वायब्रेशन महसूस नहीं किया है, वे इस क्षेत्र को नहीं जानते हैं; उन्होंने इसे कभी नहीं देखा है। जैसा कि गुरु नानक ने कहा है, यह ‘अलख’ है (अलक्ष्य :अदृश्‍य)। उन्होंने इसे नहीं देखा है, वे इसके बारे में नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि ईश्वर की एक शक्ति मौजूद है, जो आपको समझती है, समन्वय करती है, सहयोग करती है, जो सामूहिक अस्तित्व में काम कर रही है, जो आपको जागरूक करती है, आपको उस सामूहिक अस्तित्व के बारे में और दूसरों के बारे में Read More …

Maintaining purity of Sahaja Yoga Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी,  ‘सहज योग की शुचिता कायम रखना ‘ कैक्सटन हॉल, लंदन 10 अक्टूबर, 1979 …कुछ समय से अपने ही ढंग से चल रहा है (श्री माताजी किसी सहज योगी के विषय में कह रही हैं) मैंने कहा, ‘उसे प्रयास करने दो।’ डगलस फ्राई: मै लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। मै सिर्फ आप को रिकॉर्ड कर रहा हूं। यह सिर्फ रिकॉर्डिंग के लिए है। श्री माताजी: ओह, यह लाउडस्पीकर नही है! सहज योगी: ये सिर्फ टेप है। श्री माताजी: ओह, ये बात है! और उसने कई प्रकार की चालें चलना आरंभ कर दिया था। आप समझे, जो मैंने उसके बारे में अनुभव किया था, कि उसने अपने आत्म साक्षात्कार के बारे में कुछ चालबाजी करनी आरंभ कर दी। क्योंकि सिर्फ यही वो एक चीज है, जिस में आप पड़ सकते हैं, जिस में आप को बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए। और उसने प्रेतात्माएं एकत्रित कर लीं, क्योंकि उसको उपचार करने में बहुत अधिक रुचि हो गई। मैंने उसे और ज्यादा उपचार करने से मना किया था। मैंने कहा, ‘आप मेरा फोटो दे सकते हैं, पर उपचार कार्य में संलग्न मत हो, क्योंकि अगर आप प्रेतात्माएं से ग्रस्त हो गए, तो आप को पता भी नहीं चलेगा, आप उसके प्रति असंवेदनशील रहेंगे और फिर आप को समस्याएं हो जाएंगी।’ और फिर उस में ऐसी विचित्र प्रेतात्माएं थीं कि जो लोग उसके पास आए, वो प्रेतात्मयें उन लोगों को इसको धन देने के लिए प्रभावित कर रही थीं। और कुछ लोग बाध्य किए गए। मेरा मतलब Read More …

Self-realisation and fulfilment Caxton Hall, London (England)

‘आत्मसाक्षात्कार और तृप्ति’ , सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड,  6 अगस्त, 1979 ….क्या ये ठीक है? सहज योग के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है। जैसा कि पहले मैंने आपको बताया था, नये लोगों के लिए मैं कहना चाहूंगी, ‘सह’ माने साथ ‘ज’ माने जन्मा। यह आपके साथ ही जन्मा है। यह आपके साथ है। अंकुरित करने वाली शक्ति जो आपको परमात्मा से जोड़ेगी, वो आपके साथ ही पैदा हुई है। जैसे इस देह में आपकी नाक है, आँखें हैं, चेहरा है, इसी प्रकार ये अंकुरित करने की शक्ति भी आपके अंदर है, अनेक युगो से आपके अंदर है। आप की हर खोज में वो आप के साथ रही है। और अब समय आ गया है, बसंत का समय आ गया है आप कह सकते हैं, जब लोगों को परमात्मा से अपना संबंध प्राप्त करना है, अन्यथा ईश्वर अपना खुद का अर्थ खो देंगे। जब तक आपको अपना खुद का अर्थ ज्ञात नहीं होता, जब तक आपको अपना अंदर से तृप्ति नहीं आती, आप के रचयिता जिसने आपको बनाया है उसको भी अपना संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए यह अनुग्रह, यह विशेष उपहार है आधुनिक मनुष्य को की वह वास्तव में अपना आत्म साक्षात्कार पा सकें। पर जैसे ( रेजिस ?) ने ठीक ध्यान दिलाया कि हमारे सारे यंत्र अच्छे से हमारे अंदर स्थापित हैं।  पर जब से हम पैदा हुए हैं तब से हम हमेशा उन लोगों के प्रति आकर्षित हुए हैं, जो ऐसे सिद्धांतों को ले कर आगे आए हैं कि वह Read More …

We have to seek our wholesomeness Caxton Hall, London (England)

                                            सार्वजनिक कार्यक्रम  “हमें विराट से अपनी एकाकारिता की आकांक्षा करनी चाहिए”।  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 24 जुलाई 1979। कल, मैं एक महिला से मिली, और उसने मुझसे कहा कि वह ईश्वर को खोज रही है। मैंने कहा, “परमात्मा के बारे में आप की सोच क्या है, आप क्या खोज रही हैं?” जब हम कहते हैं कि हम खोज रहे हैं, तो क्या हम जानते हैं कि हमें क्या खोजना है, और क्या हम समझते हैं कि अपनी खोज़ की पूर्णता हम कैसे महसूस करने जा रहे हैं, कि हम मंजिल तक पहुंच गए हैं? पिछली बार की तरह, मैंने आपसे कहा था कि खोज वास्तविक, सच्चे दिल से होना चाहिए, और यह कि आप खरीद नहीं सकते, या आप इसके लिए प्रयास नहीं कर सकते। लेकिन आज मैं आपको बताना चाहती हूं कि हम क्या ढूंढ रहे हैं। आइए देखें कि खोज हमारे भीतर कैसे आती है, कहां से? जैसा कि यहां दिखाया गया है, नाभी चक्र नामक एक केंद्र है, जो यहां मध्य में है [अश्रव्य], नाभी चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी में स्थित है, और सौर जाल solar plexus को अभिव्यक्त करता है जो आपकी नाभी के बीच में स्थित है। यह वह केंद्र है जो हमारे भीतर खोज का निर्माण करता है। खोज तभी संभव है जब कुछ जीवंत हो। उदाहरण के लिए, इस कुर्सी की क्या इच्छा है? यह सोच नहीं सकती, यह हिल नहीं सकती, आप इसे यहां रख सकते हैं या आप इसे सड़क पर रख सकते हैं। आप इसे तोड़कर फेंक सकते Read More …

How truthful are we about seeking? Caxton Hall, London (England)

          हम सत्य की ख़ोज के बारे में कितने ईमानदार हैं?  सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 16 जुलाई 1979। एक दूसरे दिन मैंने आपको उस उपकरण के बारे में बताया जो पहले से ही हमारे अंदर है, अपने आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए, जो एक वास्तविक अनुभूति है, जो एक अनुभव है, जो एक घटना है जिसके द्वारा हम वह बन जाते हैं। यह हो जाना है, यह कोई वैचारिक मत परिवर्तन या उपदेश नहीं है बल्कि यह एक ऐसा बनना है जिसके बारे में मैं बात कर रही हूं। जब हम कहते हैं, हम सत्य के साधक हैं, तो इस खोज में कितने ईमानदार हैं? यह एक बिंदु है जिसे हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हम वास्तव में, सच्चाई से खोज रहे हैं? क्या हम इसके बारे में सच्चे हैं, या हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह कहना अच्छा है कि हम सत्य की तलाश कर रहे हैं? यदि आपको कुछ वास्तविक खोजना है, तो आपको स्वयं ईमानदार होना होगा। यह सहज योग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। सहज योग एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा आप स्वयं सत्य में कूद पड़ते हैं। तुम सत्य हो जाते हो, तुम सत्य को नहीं देखते हो, तुम सत्य को नहीं समझते हो, लेकिन तुम सत्य बन जाते हो। यह सबसे आश्चर्यजनक बात है कि मनुष्य यह नहीं समझते कि सत्य से क्या अपेक्षा की जाए। वे सत्य की खोज कर रहे हैं, लेकिन सत्य के पूर्ण मूल्य के बारे में उनकी कोई धारणा नहीं Read More …

The Three Paths Of Evolution Caxton Hall, London (England)

                                             विकास के तीन रास्ते सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 30 मई 1979। हम जो भी जानते हैं उससे अधिक ऊँचे जीवन के बारे में आपसे बात करने के लिए मैं यहां हूं, उस शक्ति के बारे में जो हर अन्य शक्ति को व्याप्त करती है, प्रविष्ट कर जाती है ; और उस दुनिया के बारे में जिसे शांति और आनंद की दुनिया कहा जाता है। इन सभी शब्दों के बारे में आपने पहले भी सुना होगा। लेकिन मैं यहां आपको उस यंत्र के बारे में बताने वाली हूं जो हमारे भीतर रहता है, सभी हमारे अस्तित्व में बहुत अच्छी तरह स्थापित किया गया हैं, जैसा कि आप यहां चित्र में देख रहे हैं, जो कि एक जीवंत उपकरण है, जिसे आप वास्तव में अपनी आंखों से धड़कता हुआ देख सकते हैं, जब कुंडलिनी अर्थात यह कुंडलित ऊर्जा चढ़ती है। हम पहले से ही अपने अस्तित्व में इस उत्थान का आशीर्वाद पा कर धन्य हो गए हैं, अचेतन में महत्वपूर्ण भेदन के द्वारा, हमारी पूर्ण जागरूकता में एक और नए आयाम में प्रवेश करने के लिए जिससे हम वास्तव में आपकी सभी परम तत्व जिज्ञासाओं के उत्तर पा सकते हैं। अब तक, प्राचीन भारत में, हमारे पास तीन प्रकार के आंदोलन थे। मैं नहीं जानती कि, आप उन सभी के बारे में जानते हैं या नहीं , लेकिन हमारे पास तीन प्रकार थे। और उस के प्रतिबिंब हमारे देश में प्रकट हो रहे थे, दूसरे देशों में भी। यहां तक ​​कि इंग्लैंड में भी हमारे पास ऐसे लोग हुए हैं Read More …

Agnya Chakra means ‘to order’ Caxton Hall, London (England)

                       “आज्ञा चक्र”  केक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 दिसंबर 1978। आज हम छठे चक्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। ‘ज्ञा’,  शब्द का अर्थ ‘जानना’ है, आज्ञा यानी जानना है। और ‘आ’ का अर्थ है ‘संपूर्ण’। आज्ञा चक्र का एक और अर्थ भी है। आज्ञा का अर्थ है ‘आज्ञाकारिता’ या ‘आदेश  करने के लिए’। इसका मतलब दोनों चीजों से हो सकता है। यदि आप किसी को आदेश देते हैं तो यह एक आज्ञा है और जो आदेश का पालन करता है वह आज्ञाकारी है। वह जो आज्ञा देता है। मानव में छठा चक्र तब बनाया गया जब उसने सोचना शुरू किया| विचार भाषा में व्यक्त होते हैं|  यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम विचार नहीं कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अंदर विचार नहीं आ रहे| यदि हम इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हमारे अंदर विचार प्रक्रिया नहीं चल रही| लेकिन उस सूक्ष्म अवस्था में जब हम तक विचार आ रहे हैं वे भाषा में नहीं हैं, इसलिए वे हम तक प्रसारित नहीं हैं, और इसलिए यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम नहीं समझ सकते कि हम क्या विचार कर रहे हैं|   आपने देखा होगा कि इसीलिए बच्चे जो चाहते हैं वो हमें नहीं बता पाते क्यों कि वे जो चाहते हैं उसे कह नहीं पाते| वे पेट में भूख महसूस करते हैं और माना कि पानी या अन्य कुछ माँगना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा Read More …

Knots On The Three Channels Caxton Hall, London (England)

                                         “तीन नाड़ियों की ग्रंथियां”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 2 अक्टूबर 1978 यह जो ब्रह्म का तत्व है, यह सिद्धांत है उस स्पंदित भाग, हमारे ही अंदर निहित शक्ति का तत्व, जिसे हमें महसूस करना है, और जो हर चीज में स्पंदित होती है। यह सहज योग के साथ होता है, बेशक, कुंडलिनी चढ़ जाती है, लेकिन यह इसका अंत नहीं है,  क्योंकि, मानव वह साधन है जिसमें यह प्रकाश प्रकट होता है। लेकिन एक बार प्रकट होने के बाद यह जरूरी नहीं है कि यह हर समय ठीक से जलती रहे। एक संभावना है, ज्यादातर यह एक संभावना है, कि प्रकाश बुझ भी सकता है। अगर कोई हवा का रुख इसके खिलाफ है, तो यह बुझ भी सकता है। यह थोड़ा कम भी हो सकता है। यह बाहर आ सकता है यह झिलमिला सकता है, यह थोड़ा कम हो सकता है। क्योंकि मनुष्य, जैसे कि वे हैं, वे तीन जटिलताओं में पड़ गए हैं। जैसे ही वे मनुष्य बनते हैं, ये तीन जटिलताएं उनमें शुरू होती हैं। और तीन, इन तीन जटिलताओं के कारण, किसी व्यक्ति को यह जानना होगा कि यदि आपको उससे बाहर निकलना है, तो आपको कुछ निश्चित गांठों को तोड़ना होगा – उन्हें संस्कृत भाषा में ग्रन्थि कहा जाता है – जो आपको यह मिथ्या दे रही है – मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व यह की,  हम सोचते हैं कि, “इस दुनिया में, आखिर सब कुछ विज्ञान ही है, और जो कुछ भी हम देखते हैं और उससे परे सब कुछ विज्ञान है …” और वैसी सभी प्रकार Read More …

The Principle of Brahma Caxton Hall, London (England)

                                             ब्रह्म का तत्व  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 11 सितंबर 1978 आज मैं आपको कुछ ऐसा बताना चाहती हूं, शायद मैंने उस बिंदु को पहले कभी नहीं छुआ है। या मैंने इसके बारे में विस्तार से बात नहीं की है। यह ब्रह्म के तत्व के बारे में है: ब्रह्म का तत्व क्या है? कैसे इसका अस्तित्व है? यह कैसे पैदा होता है? यह कैसे अभिव्यक्त होता है? और कैसे, यह निर्लिप्त भी है और संलग्न भी है । विवरण में,  ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है। जैसे, मैं जिन सिद्धांतों का पालन करती हूं, वे मुझ से अलग हैं। यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और इसके लिए वास्तविक ध्यानस्थ चित्त  की आवश्यकता है। तो अपने मन की सारी समीक्षा, कृपया उन्हें बंद कर दें, जैसे आपने अपने जूते उतार दिए हैं। क्या आप सभी ने अपने जूते उतार दिए हैं? कृपया। और बस मेरी ओर थोड़ा, थोड़ा गहन ध्यान देकर सुनो। क्या आप आगे आ सकते हैं! आप सब आगे आ सकते हैं ताकि जो बाद में आने वाले हैं वो बाद में आ सकें। आगे आओ! मुझे लगता है कि आगे आना बेहतर है, क्योंकि हमारे यहां माइक नहीं है। यहां आगे आना बेहतर है। जिस प्रका,र आप जिन सिद्धांतों पर आधारित हैं, वे स्वयं आप से भिन्न हैं, उसी तरह, ब्रह्म का तत्व स्वयं ब्रह्म से भिन्न है, लेकिन एक ब्रह्म है और ब्रह्म में निहित है। लेकिन ब्रह्म स्वयं तत्व द्वारा कायम है। आयाम में, आप कह सकते हैं कि ब्रह्म व्यापक है, बड़ा Read More …

Ego, The West, Love & Money Caxton Hall, London (England)

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ‘अहंकार,पश्चिमी देश, प्रेम और धन’ कैक्स्टन हॉल, लंदन, इंग्लैंड 17 जुलाई, 1978 श्री माताजी: आप कैसे हैं? बेहतर? साधक: ज्यादा बुरा नहीं! श्री माताजी: ज्यादा बुरा नहीं! सब लोग धीरे धीरे बेहतर हो रहे हैं, है ना? डोमिनिक तुम कैसे हो? डोमिनिक: अच्छा हूं! श्री माताजी: तुम हमेशा ही अच्छे होते हो! इस उत्तर पर गौर करें ‘अच्छा हूं ‘। ये जब से पैदा हुए तब से अच्छे हैं, परंतु सारी दुनिया भयानक है। है ना? (हंसते हुए) एक आत्म साक्षात्कारी के लिए ये ऐसा है। वो बहुत आश्चर्यचकित होता है, बहुत ज्यादा सदमा ग्रस्त भी जिस तरह से दुनिया के तौर तरीके हैं। कितने लोग आज पहली बार आए हैं? कृपया अपने हाथ ऊपर उठाइए। हां! और कौन? तुम? आप तीन चार लोग? मैं सोचती हूं अगर वो अंदर आ जाएं। आप भी पहली बार आए हैं? साधक: नहीं! श्री माताजी: नहीं? आप को प्राप्त हो गया है! आप को प्राप्त हो गया है। आप का क्या? आप पहली बार आईं हैं? महिला साधक:  मैं पिछली बार आई थी। श्री माताजी: पिछली बार? क्या हुआ था? क्या आप को अच्छा अनुभव हुआ था? बढ़िया! आप को कैसा लगा? बढ़िया! और आप भी वहां थीं? महिला साधक: नहीं! श्री माताजी: तुम भी वहां थे। नहीं? पहली बार? अच्छा! हम ऐसा कर सकते हैं, जो लोग आज पहली बार आए हैं, वे इस तरफ बैठ जाएं, जिस से आप को देखना बहुत आसान हो। और मैं उनकी कुंडलिनी देखना चाहूंगी। अगर आप उस तरह बैठें, Read More …

What happens after Self-realisation? Caxton Hall, London (England)

              आत्म-साक्षात्कार के बाद क्या होता है?   कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 26 जून 1978 प्रश्न यह है कि आत्म-साक्षात्कार के बाद वास्तव में हमारे साथ क्या होता है? बेशक, मेरा मतलब है, आप निर्विचार जागरूक महसूस करते हैं, आप सामूहिक चेतना महसूस करते हैं, आप दूसरों की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं, आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं, आप चक्रों को महसूस कर सकते हैं। यह सब आप जानते हैं। लेकिन असल में, इंसान के साथ गहरे तरीके से क्या होता है, यह देखना होगा। तो, सबसे पहले, आइए जानें कि हम कैसे हैं, आत्मसाक्षात्कार होने से पहले हम क्या हैं, ताकि हमें पता चलेगा कि बोध के बाद हमारे साथ क्या होता है। अब यह विषय बहुत सूक्ष्म है और मैं चाहूंगी कि आप इसे बहुत, बहुत बड़ी एकाग्रता से सुनें। आज मैं अमूर्त चीजों के बारे में बात नहीं करने जा रही हूं, लेकिन बिल्कुल ऐसी चीज के बारे में जो वास्तव में बहुत तथ्य पूर्ण है। एक इंसान क्रमागत उत्क्रांति से बना है – आप यह अच्छी तरह से जानते हैं – कि वह उत्क्रांति से बना है। और एक बड़ा वाद-विवाद चल रहा है। ये इन बातों को नहीं समझते, इसलिए विवाद है। लेकिन वह सात चरणों में विकसित होता है और इसलिए कहा जाता है कि: इस दुनिया को बनाने में उसे सात दिन लगे। हम कह सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड ने लगभग सात चरण लिए। लेकिन, जैसा कि आप समझते हैं, एक बीज में सभी सूक्ष्म बीज होते हैं, एक पेड़ के Read More …

The Difference Between East & West Caxton Hall, London (England)

                                 पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 19 जून 1978 हमारे पाश्चात्य समाज की समस्या यह है… आप देखिए, पूर्वी समाज की अपनी समस्याएं हैं और पश्चिमी समाज की अपनी समस्याएं हैं। मूल रूप से वे दो अलग-अलग समस्याएं हैं, बिल्कुल दो अलग-अलग समस्याएं हैं, और पूर्व की समस्याओं के बारे में चर्चा करना आपके लिए किसी काम का नहीं होगा। उदाहरण के लिए, भगवद गीता में, श्री कृष्ण ने कहा है कि, “योग क्षेम वहाम्यहम।” “मैं आपके योग की देखभाल करता हूं,” का अर्थ है भगवान के साथ मिलन। ‘वहाम्यहम’ का अर्थ है: मैं उसका वहन करता हूं, उस प्रक्रिया को करता हूं या मैं वह व्यक्ति हूं जिसे वह प्रक्रिया करनी है। और ‘क्षेम’, क्षेम का अर्थ है भलाई, “मैं भलाई की देखभाल करता हूं”। लेकिन भारत में, लोग पूरी तरह से मानते हैं कि भगवान हमारे उद्धार की देखभाल करते हैं। मेरा मतलब है कि वे विश्वास करते हैं, मेरा मतलब है कि उनके पास ऐसी श्रद्धा है। जो एक बहुत बड़ा फायदा है, उन्हें ऐसा विश्वास नहीं होता कि वे स्वयं इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश, मेरा मतलब है कि बहुत थोड़े पश्चिमीकृत लोगों को छोड़कर, अन्यथा वे आमतौर पर सोचते हैं कि केवल ईश्वर ही उनके लिए यह करने जा रहे हैं। जैसे भी संभव हो। वह एक अवतार, या एक अवतरण, या कोई ऐसा व्यक्ति भेज सकता है जो हमें मुक्ति दिलाएगा। उन्हें विश्वास नहीं है कि वे इसके बारे में कुछ भी कर सकते हैं, Read More …

Rationalism, Emotionalism And Wisdom Caxton Hall, London (England)

                            “तर्कबुद्धि, भावनात्मकता और विवेक”  कैक्सटन हॉल, लंदन, 12 जून 1978। … तो तर्कसंगतता क्या कर सकती है? हमारे अंदर तर्कसंगतता होने के कुछ कारण होने चाहिए [और] भगवान ने हमें तर्कसंगतता क्यों दी है। वह अपने हीरे को इस तरह बर्बाद नहीं करता है! तर्कसंगतता हमें यह समझने की समझ देती है कि हम तर्कसंगतता के माध्यम से वहां नहीं पहुंच सकते। क्योंकि जहाँ तक और जब तक यह घटना आपके साथ घटित नहीं होती, तब तक आप उस पर विश्वास नहीं करेंगे। आप इस पर विश्वास नहीं करने जा रहे हैं कि, यह तर्कसंगतता, जिस पर हम निर्भर हैं, जो हमारा सहारा है, जो ; हम हर समय सोचते हैं कि तर्कसंगतता के साथ ही हमारी पहचान पूर्ण होती है। और हम बहुत तर्कसंगत हैं और हमें अपनी तर्कसंगतता पर भी गर्व है। तो, आप तर्कसंगतता के माध्यम से एक बिंदु पर पहुंचते हैं, जहां आप को समझ आता है कि, यह घोड़ा अब आगे किसी भी उपयोग का नहीं होगा। यह तर्कसंगतता का उपयोग है! एक तरह से यह आपको उस समापन बिंदु पर ले जाता है जहाँ आपको लगता है कि इसे छोड़ दिया जाना चाहिए या इस पर निर्भर नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ तर्कसंगतता आपको एक दृष्टिकोण देती है जिसका आप को अनुभव प्राप्त होने के बाद में संबंध समझ आ सकता है। आप समझने लगते हैं कि तर्कसंगतता आपको क्यों निराश कर रही थी। तो यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। लेकिन Read More …

Satya Yuga: The Unconscious Caxton Hall, London (England)

   [Hindi translation from English]    हृदय चक्र और ओमकारा फरवरी 1978. यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1978) के दौरान दी गई थी।  ऑडियो से प्रतिलिपि अब हृदय के इस बायीं ओर का संबंध आपकी माता और शिव अर्थात अस्तित्व से है। आप अपना अस्तित्व अपनी माँ के माध्यम से प्राप्त करते हैं।  जहाँ तक आपका अस्तित्व का प्रश्न है, शिव और पार्वती, वे आपके माता-पिता हैं,  दोनों ही आपके माता-पिता हैं  और यह इतना सुंदर केंद्र है आपका, हृदय चक्र है। आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति आपकी कोशिशों पर अनुकूल प्रतिक्रिया करे, आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति कुछ फल प्रदान करे या ऐसा ही कुछ और, आप किसी को बहुत ही अड़ियल पाते हैं,  मैंने आपको बताया है कि आप अच्छी तरह से उनकी जूता पट्टी कर सकते हैं, यह सभी चीज़े करें। लेकिन एक बहुत ही सरल तरीका है, यदि आप जानते हैं कि इसे कैसे करना है। आप देखिये, आप सिर्फ उनके ह्रदय [मध्य हृदय] के बारे में सोचें, उनके हृदय में एक बंधन लगा देते हैं। और आप इसे इतनी खूबसूरती से कर सकते हैं, आप किसी भी कठिनाइयों के बिना किसी व्यक्ति को पिघला सकते हैं यदि आप जानते हैं कि उनके दिल को कैसे संभालना है। आपको उनके दिल से अपील करनी होगी और वह सबसे अच्छा आकर्षण है, जो मैं आपको बताती हूं और सबसे अच्छी गुप्त विधि है जिसके द्वारा आप किसी के साथ बात करते समय उनमें अच्छाई ला सकते हैं। मान लीजिए कि मैं Read More …

We are all seeking Caxton Hall, London (England)

                    हम सभी इच्छुक हैं  सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन, 20 मार्च 1978 ग्रेगोइरे ने इतनी सारी बातें कह दी हैं कि मैं वास्तव में नहीं जानती कि उसके बाद क्या कहना है। सच में अवाक। मुझे पता है कि यह एक सच्चाई है और आपको इसका सामना करना होगा, हालांकि मैं इसके बारे में संकोचशील हूं। तुम सब खोज रहे थे, और मुझे लगता है कि जब से मुझे याद पड़ता है, तब से मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जो खोज नहीं रहा था। वे पैसे में, सत्ता में ख़ोज कर रहे होंगे। लेकिन उनमें से बहुत से लोग वास्तव में कुछ इससे भी परे की तलाश कर रहे थे। पश्चिम में, मैंने हमेशा महसूस किया कि पुराने और प्राचीन काल के सभी महान संत जो परमात्मा की तलाश कर रहे थे, पैदा हुए हैं। मैं देख सकती थी , जिस तरह से आपने भौतिकवाद को नापसंद किया है; जिस तरह से आपने जीवन के बारे में एक तरह की समझ हासिल की है… नई बात है। ईसा-मसीह के समय में कुछ कोढ़ी और कुछ बीमार लोगों को छोड़कर ऐसे लोगों को देखना संभव नहीं था। अन्य कोई नहीं था जो उसे देखने को तैयार हो। निःसंदेह समय बदल गया है। लेकिन, इस तलाश में कई लोगों ने बहुत सारी गलतियां की हैं। गलतियों को हमेशा माफ किया जा सकता है। उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। मैं इसके साथ पैदा हो हूं। मुझे पता था कि मुझे यह करना है और मुझे पता था कि मुझे एक दिन Read More …

God and Creation Caxton Hall, London (England)

                                         परमात्मा और रचना   कैक्सटन हॉल, लंदन 1977-11-28 जैसा कि गेविन ने आपको पहले ही विस्तार से बताया है कि आज का विषय वास्तव में एक बहुत विस्तृत विषय है और इस विषय को समझने के लिए एकाग्र चित्त होना होगा। और जैसा कि उन्होंने आपको पहले ही बताया है कि यह मेरा व्यक्तिपरक ज्ञान है जो आपका भी हो सकता है। और आपको इसे अपनी चैतन्यमयी जागरूकता से ही सत्यापित करना होगा। क्योंकि यही एकमात्र ऐसी जागरूकता है जो आपको पूर्ण परिणाम दे सकती है। जैसा कि मैंने आपको बताया है, मानव जागरूकता अभी भी अधूरी है, जब तक आप आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से चैतन्यमयी जागरूकता प्राप्त नहीं करते, जिसमें आत्मा आपसे बात करना शुरू कर देती है, आप सत्य को सत्यापित नहीं कर सकते। तो यह व्यक्तिपरक ज्ञान के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक है। कोई भी कुछ भी कहता है, उस पर बिल्कुल भी विश्वास करने की जरूरत नहीं है। और जैसा कि मैंने आपको बताया है कि आपको मेरी बातों पर भी विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसे नकारा भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया कि यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है और व्यक्ति को इसमें थोड़ा समझने वाला होना चाहिए ना की बस स्वीकार कर लेने वाला शायद कुछ लोगों के साथ। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता। भले ही आप इसे थोड़े समय के लिए स्वीकार कर लें, अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप इसे बाद में छोड़ सकते हैं। लेकिन इसके खिलाफ किसी तरह का Read More …

The history of Tantrism Caxton Hall, London (England)

                          तंत्रवाद सार्वजनिक कार्यक्रम  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 21 नवंबर 1977 मेरे प्रिय साधकों, मैं गेविन ब्राउन की शुक्रगुजार हूं कि वह मेरे द्वारा पहले कही गई कुछ बातों को समेटने में सक्षम हैं और मुझे पिछली बार जो मैंने आपको बताया था, उसके सभी विवरणों में जाने की जरूरत नहीं है। आप में से कुछ लोग यहां पहली बार आए हैं। [टेप बाधित]। जैसा कि उन्होंने कहा, तंत्र का अर्थ है तकनीक, यह एक तकनीक है। और संस्कृत भाषा में यंत्र का अर्थ है तंत्र\यंत्र रचना। तो, तंत्र की तकनीक। अब हम किस तंत्र की बात कर रहे हैं? क्या हमारे बाहर या अंदर कोई तंत्र है? या यह किसी सूक्ष्म विधि से काम किया गया है? यदि आप खोज रहे हैं और यदि आप साधक हैं तो ये सभी प्रश्न हमारे मन में आने चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि पश्चिम में हालांकि भौतिक रूप से लोग बहुत विकसित हैं, उन्होंने कई भौतिक प्रश्नों और समस्याओं को सुलझा लिया है, वे बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित हैं, लेकिन जहां तक ​​​​आध्यात्मिक जीवन का संबंध है, फिर भी, वे बहुत ही अनाड़ी हैं। यद्यपि अनुसरण करने के लिए उनके पास मसीह जैसा महान व्यक्तित्व था, और कितना बढ़िया यह आदर्श था! लेकिन शायद एक संगठित धर्म के कारण, शायद उन लोगों के लिए जो वास्तविक साधक थे और जो वास्तव में ध्यान विधियों के माध्यम से इसमें प्रवेश करना चाहते थे यह यह संभव नहीं था| तो, यह तंत्र या तकनीक जो हमारे आत्म-साक्षात्कार को कार्यान्वित करती है, उसे जानना Read More …