Bordi Seminar Final Talk, Maya Is Important Bordi (भारत)

[English to Hindi translation] इस अवसर पर जब आप सभी मुझे छोड़ कर जा रहे हैं, इन्ह गुणों को सुनना कठिन है जो आपके सुंदर गीत में वर्णित है। मेरे शब्द एक घोर उदासी की भावना से इतने भरे हुए हैं, साथ ही नए कार्यों के विचारों का उत्साह, कुछ विचार कि मुझे और भी बहुत कुछ करना है आप जो भी वर्णन कर रहे हैं मुझे उसे स्थापित करने के लिए। कितने ही राक्षसों का वध होना है जैसा कि आप ने मेरा वर्णन किया है। सारी विषमताएं दूर करनी हैं इस दुनिया से। सारा अज्ञान, अंधकार, कल्पनाएँ जैसा आपने वर्णन किया है, उसे हटाना होगा मुझे। इस संसार को नष्ट करना बहुत आसान है और राक्षसों, शैतानों को नष्ट करना, आसान था पर आज समय इतना विकट है कि इन सभी ने प्रवेश कर लिया है दिमागों में, अनेक साधकों के सहस्रार। तो, यह एक बहुत ही नाजुक काम है उन भयानक प्रभावों को दूर करने के लिए साधकों को चंगुल से बचाने के लिए इन शैतानों के। आपने समझने की बहुत कृपा की है कि यह बहुत नाजुक चीज है और हम यह नहीं कर सकते कठोरता के साथ, कड़ाई के साथ, सीधे तरीके से हमें उन्हें घुमाना है क्योंकि वे कठोर चट्टानें हैं और उन्हें इसके माध्यम से समझाएं करुणा, प्रेम और पूरी चिंता। विवेक ही एकमात्र तरीका है जिससे हम संचालन कर सकते हैं और सभी प्रकार के विवेक के तरीकों का उपयोग करना पड़ता है इन लोगों को बचाने के लिए । अधिकतम संख्या Read More …

The Culture of Universal Religion Bordi (भारत)

“विश्व निर्मल धर्म की संस्कृति” बोर्डी (भारत), 7 फरवरी 1985। युद्ध के मैदान में हमारी नई यात्रा का आज दूसरा दिन है। हमें लोगों को प्यार, करुणा, स्नेह और आत्मसम्मान से जीतना है। जब हम कहते हैं कि यह एक विश्व धर्म है, यह एक सार्वभौमिक धर्म है जिससे हम संबंधित हैं, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, इसका सार शांति है। शांति भीतर होनी चाहिए, शुरुआत करने के लिए। आपको अपने भीतर शांत रहना होगा। यदि आप शांत नहीं हैं, यदि आप अहंकारयुक्त छल कर रहे हैं, यदि आप केवल यह कहकर स्वयं को संतुष्ट कर रहे हैं कि आप शांतिपूर्ण हैं, तो कहना दुखद है किआप गलत हैं। शांति स्वयं के अंदर आनंद प्राप्ति के लिये है। यह अपने भीतर महसूस करने के लिये है। इसलिए स्वयं को गलत सन्तुष्टि न दें, स्वयं को झूठी धारणाएं न दें। अपने आप को धोखा मत दो। शांति को अपने ही भीतर महसूस करना होगा, और यदि आप ऐसा महसूस नहीं कर रहे हैं, तो आपको आकर मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए, “माँ, मुझे यह महसुस क्यों नहीं हो रही है।” क्योंकि मैं आपको यह नहीं बताने वाली हूं कि आपके साथ कुछ गलत है। आपको इसे कार्यंवित करना होगा कि आप अपने भीतर शांति महसूस करें। ऐसा नहीं है कि बाहर बहुत अधिक सन्नाटा हो तब आप शांति का अनुभव करते हैं। शांति अपने भीतर होनी चाहिए। यह तुम्हारे ही पास है। आपकी आत्मा पुर्णत: शांत है – अव्यग्र, बिना बेचैनी के। आपकी आत्मा में कोई बेचैनी नहीं है। बिल्कुल Read More …

A New Era – Sacrifice, Freedom, Ascent Bordi (भारत)

                                एक नया युग – त्याग, स्वतंत्रता, उत्थान  बोरडी (भारत), 6 फरवरी 1985। आप सभी को यहां देखकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मुझे नहीं पता कि मेरी तरफ से क्या कहना है। शब्द खो जाते हैं, उनका कोई अर्थ नहीं है। आप में से बहुत से लोग उस अवस्था में जाने के इच्छुक हैं, जहाँ आपको पूर्ण आनंद, कल्याण और शांति मिलेगी। यही है जो मैं आपको दे सकती हूं। और एक माँ तभी खुश होती है जब वह अपने बच्चों को जो दे सकती है वह दे पाती है। उसकी नाखुशी, उसकी सारी बेचैनी, सब कुछ बस उस परिणाम को प्राप्त करने के लिए है – वह सब उपहार में देने के लिए जो उसके पास है। मैं नहीं जानती कि अपने ही अंदर स्थित उस खजाने को पाने हेतु इस सब से गुजरने के लिए आप लोगों को कितना धन्यवाद देना चाहिए। ‘सहज’ ही एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके बारे में मैं सोच सकी थी, जब मैंने सहस्रार उद्घाटन को प्रकट करना शुरू किया। जिसे अब तक सभी ने आसानी से समझा है। लेकिन आपने महसूस किया है कि यह आज योग की एक अलग शैली है जहां पहले आत्मसाक्षात्कार दिया जाता है और फिर आपको खुद की देखभाल करने की अनुमति दी जाती है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह आपकी माँ का सिर्फ एक उपक्रम है जिसने ऐसा कार्यान्वयन किया है। अन्यथा, पुराने समय में दैवीय के का सम्बन्ध लोगों को बोध देने से तो था और यह ज्ञान नहीं था कि इसे कैसे Read More …

Powers Bestowed upon Sahaja Yogis Bordi (भारत)

                        सहज योगीयों को प्रदत्त शक्तियां   बोर्डी (भारत)  27 जनवरी, 1980 मैंने कल आपसे कहा था, कि हमें अपनी पहले से उपलब्ध शक्ति, और वे शक्तियाँ जो हमें मिल सकती हैं उनके बारे में जानना होगा, । सबसे पहले हमें यह जानना चाहिए कि हमें कौन सी शक्तियां मिली हैं, और हमें यह भी पता होना चाहिए कि हम उन शक्तियों को कैसे संरक्षित करने जा रहे हैं और कौन सी शक्तियां हम बहुत आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।  पहली शक्ति जो आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको मिलती है, वह पृथ्वी की सबसे बड़ी शक्ति है। यह श्री गणेश की शक्ति है। केवल वह ही यह काम कर सकते है जो आप लोग आज कर रहे हैं, और वह शक्ति कुंडलिनी को उठाने की है। अध्यात्म के इतिहास में अब तक किसी ने भी कुंडलिनी को इतने कम समय में नहीं उठाया है जितना आप लोग कर रहे हैं। यह आपकी उंगलियों के अधीन चलती है; यह बिल्कुल श्री गणेश की शक्ति है जो आपको दी गई है। उस समय जब आप आत्मसाक्षात्कार दे रहे हों, भले ही आप अपने चक्र में से किसी एक में फंस गए हों, या आपको कोई समस्या हो, भले ही आप थोड़ा सा बाधित भी हो, भले ही आप इतने अच्छे सहज योगी न हों, भले ही आप माताजी के सामने इतने समर्पण नहीं कर रहे हैं, भले ही आपको सहज योग के बारे में अधिक समझदारी न हो, फिर भी कुंडलिनी आपकी उंगलियों के अधीन उठती है।  गणेश की यह विशेषता स्वयं श्री गणेश Read More …

Transformation, Morning Advice at Bordi seminar Bordi (भारत)

                    रूपांतरण   बोर्डी (भारत) सेमिनार में सुबह की सलाह   27 जनवरी, 1980 जब सभी यहां आये तब हर कोई बहुत अच्छा महसूस कर रहा था, खुश था और उन्हें लगा, उनके चैतन्य बिल्कुल ठीक थे। लेकिन ऐसा नहीं था। इसलिए सतर्क रहें, आप देखें – एक-दूसरे से इसे परखने को कहें कि कृपया आप जाँच करें, इसके बारे में विनम्र रहें। आपको परखते रहना चाहिए। जब तक आप खुद की जांच नहीं करते, तब तक आप कैसे जानेंगे कि आप क्या चीज पकड़ रहे हैं? दूसरों को आपकी जाँच करने के लिए निवेदन करें और विनम्र रहें, इसके बारे में बहुत विनम्र हों | चीजों को हल्केपन में न लें,  जब तक हम खुद को बदल नहीं देते,सहज योग का आपके लिए कोई मतलब नहीं है। आप देखें, इस रेडियो, ट्रांजिस्टर या, लाउडस्पीकर की ही तरह सहज योग की अभिव्यक्ति का भी बहुत भौतिक तरीका हो सकता है। हमें यह जानना होगा कि सहज योग हमारे माध्यम से ऊर्जा प्रवाहित करने मात्र के लिए नहीं है, जैसे कि अन्य सभी भौतिक चीजें ऊर्जा पारित कर रही हैं।यह माइक ऊर्जा को प्रसारित कर रहा है, यह ट्रांजिस्टर ऊर्जा को फैला रहा है और इस तरह की अन्य सभी चीजें ऊर्जा को प्रसारित कर रही हैं।उन के अंदर कुछ नहीं जाता।जैसे … एक कलाकार गा रहा है और, उसकी आवाज का रेडियो में से  गुजरना होता है। उसी तरह,चूँकि किसी तरह कुंडलिनी को शक्ति के स्त्रोत्र से जोड़ा गया है, यदि हमारी शक्ति बहने लगती है ; ना तो इसने अपना काम किया, Read More …

Advice at Bordi Shibir (English part) Bordi (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date : 22nd March 1979 Place : Mumbai Туре Public Program [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] आप एक बहुत सुन्दर प्रकृति की रचना हैं। बहुत मेहनत से, तो आखें हैं नहीं हम इसे कैसे जानेंगे और हमारे लिए भी यह नजाकत के साथ, बनाया है। आप एक बहुत विशेष अनन्त योनियों में से घटित होकर इस मानव रुप में स्थित हैं। आप इसलिए इसकी महानता जाएगी। इस प्रकार आपके अन्दर भी कोई चीज ऐसी ही बनी नहीं जान पाते क्योंकि, ये सब आपको सहज में ही प्राप्त हुआ हुई है। पूरी तरह से तैयारी कर परमात्मा ने रखी हुई है। उसको है। यदि इसके लिए मुश्किलें करनी पड़तो, आफते उठानी पड़ती जगाना मात्र है। जब आप आलौकित हो जाते हैं तो सारी की और आप इसको अपनी चेतना में जानते तो आप समझ पाते सारी चीज आपको आसानी से समझ आ जाती है। पर अगर कि आप कितनी महत्वपूर्ण चीज हैं। मनुष्य को जानना चाहिए कि परमात्मा ने हमें क्यों बनाया, इतनी मंहनत क्यों की? हम किस लिए संसार में आये और हमारा भविष्य क्या है ? हमारा कैसे बना, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन आधुनिक अर्थ क्या है? जैसा कि कल मैने कहा था कि अगर हम मशीन बनायें पर इसको इस्तेमाल नहीं करें तो कोई भी अर्थ नहीं फिर उसको हटाए। उनको कोई चीज आसानी से मिल जाए तो निलकता। लेकिन जब तक ये मेन स्रोत से नहीं लगाया जाता बड़े आश्चर्य से पूछता है हमने तो कुण्डलिनी के Read More …

Public Program, Chitta KI Gaharai Bordi (भारत)

Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979. [Hindi Transcript] आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में ‘अडगळ’ कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों Read More …

Seminar Day 2, Attention and Joy Bordi (भारत)

                                            [Hindi translation from Enlgish]     चित्त और आनंद                                      3 ​​दिन के शिबिर का दूसरा दिन  बोरडी (भारत), 27 जनवरी 1977। …  बहुत ज्यादा भटकाव और चित्त को स्थिर कैसे करें| अब चित्त की गुणवत्ता आपके विकास की स्थिति के अनुसार बदल जाती है। उदाहरण के लिए, एक जानवर में … तो इंसान में चित्त कहाँ रखा जाता है? यह एक निश्चित बिंदु नहीं है। आप कह सकते हैं, चित्त जागरूकता की सतह या किनारा है। जहां भी हमें जागरूक किया जाता है, चित्त उस बिंदु की तरफ मुड़ जाता है। यदि आप कोई मिलता-जुलता उदाहरण चाहते हैं, तो जैसे लोहे की सभी छीलन को चुंबक की ओर आकर्षित होने की शक्ति मिली है। , आप यह पता नहीं लगा सकते हैं कि, वह शक्ति कहां है – यह सब हो चूका है। जहां भी चुंबक रखा जाता है वहां लोह-छीलन आकर्षित होती हैं। हमारा चित्त भी ऐसा ही है कि,  जहां कहीं भी हम आकर्षित होते हैं, हमारा चित्त वहीं जाता है।  इस मायने में कि इसका रुख शरीर के बाहर या अंदर कहीं भी किया जा सकता है, यह पूरे शरीर में विद्यमान है। शरीर के अंदर भी, अगर कोई दर्द हो या कोई परेशानी हो। यह नसों पर बहता है, यह पूरे तंत्रिका तंत्र पर बहता है, लेकिन मस्तिष्क में एक नियंत्रण केंद्र है। अगर इस पर प्रहार हो तब, हम बिना चित्त के सचेत रह सकते हैं| इसके अलावा, अगर किसी के विशुद्धि चक्र पर प्रहार करें, तो भी ऐसा हो सकता है। यदि किसी पर प्रहार Read More …

Seminar Day 1, Questions and Answers, Advice to Realised Souls Bordi (भारत)

[Hindi translation from English]                     1977-01-26 1 Seminar Day 1, Questions Answers, Bordi, India आपने जो पूछे हैं, मैं अधिकतर बिंदुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास करूँगी। परन्तु मैं यह अवश्य ही कहूँगी कि आप के अधिकतर प्रश्न सुनकर मैं बहुत प्रसन्न हुई क्योंकि यह दिखाता है कि आपकी जिज्ञासा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो रही है, क्योंकि आप पहले से ही चक्रों के स्थूल स्वरूप जानते हैं और अब आप सूक्ष्मतर स्वरूप को जानना चाहते हैं। अब पहला प्रश्न जो सबसे पहले लेना चाहिए, वह है, “मानव के अंदर चक्र कैसे आते हैं? किस समय? जीवन के किस चरण में?” क्योंकि यही पहला प्रश्न होना चाहिए। यह प्रश्न कुछ इस प्रकार है कि यदि हम पूछें, “बीज के अस्तित्व में, बीजक किस समय आता है?” यह कुछ इस प्रकार है।  जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, जैसा मैंने आपको पहले बताया है, उसकी पूर्ण मृत्यु नहीं होती, उसका कुछ ही अंश मरता है, जो अधिकांश भूमि तत्व होता है। और शेष तत्व वहीं रह जाते हैं। बाकी शरीर विलुप्त हो जाता है। और हम उसे देख नहीं सकते क्योंकि यह पूर्ण मानव रूप नहीं है। यह अंदर से कम होता जाता है, और कुण्डलिनी शरीर छोड़ देती है और बाहर रहती है, शरीर के बाहर।   और आत्मा जिसे हम प्राण कहते हैं, यह भी शरीर को छोड़ देती है, और शरीर के बाहर रहती है- जो बचा हुआ शरीर है। इस नवीन शरीर की संरचना हमारे शरीर से भिन्न है। आप कह सकते हैं कि एक दीप जो बुझ हुआ Read More …

Talk on Attention Bordi (भारत)

[Hindi translation from English] ध्यान पर बात बोर्डी, भारत, 1977-0126   वे इसे कैसे कार्यान्वित करते हैं। यही कारण है कि जब मोहम्मद साहब आए, तो उन्होंने उपदेश दिया कि आपको किसी के सामने नहीं झुकना चाहिए। जो भी हो, क्योंकि झुकने के बारे में, वह जानते थे कि जब वास्तविक व्यक्तित्व आएँगे, तो कुछ भी हो आप उन्हें  पहचान ही लेंगे। लेकिन एक सामान्य दृष्टिकोण था, जिसे की यहाँ तक ​​कि नानक साहिब भी नहीं बदल सके थे। और नानक साहिब ने कई महान आत्माओं के द्वारा कही ज्ञान की बातों का संग्रह “गुरु ग्रन्थ साहिब” में किया, जिससे सभी इस ग्रन्थ के आगे सजदा करे किसी अन्य के नहीं। मुहम्मद साहिब ने भी अपने उपदेशो में यही कहा था, परन्तु  अनुयायियों ने हमेशा की तरह, इस तरह की मुर्खतापूर्ण भूल की है कि, ऐसा प्रतीत होता है कि वे अनुयायी नहीं हैं, बल्कि वे इन महान अवतारों के शत्रु हैं। यह अच्छा है कि सहजयोग में, जब आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तो आरम्भ में नहीं, लेकिन कुछ समय बाद, आप स्वयं अनुभव करने लगते है पाप के कष्ट और पापियों को। इसलिए आप पापियों की संगति से बचते हैं। आपको करना होगा। यदि आप पापियों  की संगति में रहते हैं, तो आप जानते हैं कि आपको सिर दर्द और, आपको आज्ञा चक्र की समस्या हो सकती है, आपको सभी प्रकार की जटिलताएँ हो जाती हैं और आप ऐसी जगह से भागना चाहते हैं। और कोई भी आपको भागने को नहीं कहता है, पर आप स्वयं भागना चाहते हैं, Read More …

Public Program Bordi (भारत)

1973-0125 Public Program, Bordi (Hindi) सो आपके स्वाधिष्ठान चक्र पे कोई सी भी गड़बड़ हो तो ये अंगूठे आप ठीक कर सकते हैं।  अंगूठे से। अब आपको अपना महत्व देखना है कि आप क्या हैं?  आप शीशे के सामने खड़े हो जाएं ऐसे पोज़ करके, आप के अंदर चेंज (बदलाव) आने लगना शुरु हो जायेगा। आपका जो रिफ्लेक्शन (प्रतिबिंब) शीशे में पड़ रहा है उसी से आप समझ सकते हैं कि आप क्या चीज हैं? अपना खुद ही प्रतिबिंब आप देखें शीशे में, उसकी ओर देखते रहें। अब आप अपने स्वाधिष्ठान को रगड़े, ऐसे दबाएं [श्री माताजी किसी से बात करते हुए] आपको हाथ पे यहाँ पे उसका थ्रोबिंग आ जायेगा।  इसको दबाते जाइए।  या उसको sooth करें।  स्वाधिष्ठान चक्र की सब तकलीफे आपकी जो भी हैं वो दूर हो जाएँगी।  तो अंगूठे पर स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान है।   उससे ऊपर मणिपुर चक्र का स्थान, बीच वाली ऊँगली पर है। ऐसे लाइन से नहीं है।  जैसा है वैसा है।  बीचवाली ऊँगली पर है।  आपकी अगर बीचवाली ऊँगली जलती है तो जरूर आप देख लेना वो जो आदमी सामने बैठा है उसके नाभि चक्र की पकड़ है। अपने यहाँ कुमकुम लगाना आदि वगैरह जो कुछ भी है [श्री माताजी साइड में किसी से बात करते हुए –ये सेंटर, this is मणिपुर] इसलिए खाना खाते वक्त कभी भी ये ऊँगली हम लोग ऊपर नहीं रखते हैं।  हमेशा ये साथ में आनी पड़ती है। ये ऊँगली भी ऊपर करके बहुत लोग खाना खाते है वो बहुत गलत बात है। चारों पांचों उंगलियों से Read More …