Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979. ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program (Hindi). Birla Krida Kendra, Mumbai (India). 14 January 1979. आशा है, आप लोग यहाँ सत्य की खोज में आए होंगे मैं आपसे हिंदी में बातचीत कर रही हूँ, कोई लोग ऐसे हों जो हिंदी बिलकुल ही नहीं समझते हैं तो फिर अंग्रेजी में बातचीत करुँगी| ठीक है| सत्य की खोज में मानव ही रह सकता है, जानवर, प्राणी नहीं रह सकते, उनको इसकी जरूरत नहीं होती मनुष्य ही को इसकी जरूरत होती है, कि वह सत्य को जाने| मनुष्य इस दशा में होता है, जहाँ वह जानता है कि कोई ना कोई चीज उससे छुपी हुई है और वह पूरी तरह से यह भी नहीं समझ पाता कि वह संसार में क्यों आया है? और वह इस उधेड़बुन में हर समय बना रहता है, की क्या मेरे जीवन का यही लक्ष्य है कि मैं खाऊ- पिऊ और जानवरों जैसे मर जाऊँ? की इसके अलावा भी कोई चीज सत्य है? सत्य का अन्वेषण मनुष्य के ही मस्तिष्क में जागरूक होता है| लेकिन सत्य के नाम पर जब हम खोजते हैं तो हम ना जाने किस चीज को सत्य समझ कर बैठते हैं, जैसे कि जब मानव सोचने- विचारने लग गया तो उसने संसार की जितनी जड़ चीजें थी उधर अपना ध्यान लगाया यानि यहाँ तक की वह चाँद पर पहुँच गया| कौन सा सत्य मिला उसे चाँद पर? साइंस की खोज की, तो उसमें उनको कौन सा सत्य मिला? जिन लोगों ने साइंस की खोज करके और अपने को बहुत प्रगल्भ समझा है एडवांस समझा है जिन्होंने सोचा है Read More …

Public Program Day 3, Vibrations that is Love Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Chaitanya Date 27th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi [Orginal transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari] कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is दे रहा है, ये viberations क्या है? एक हैं वो knowledge, that is joy । पहला शब्द है Viberation, जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autnmous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, Read More …

Public Program Day 1 Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 25th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi परम तत्त्व का अर्थ क्या है? वो किस तरह से सृजन करता है? ये चीज़ क्या है? इसके बारे में अनेक ग्रंथ, भाषणादि बहुत कुछ व्याख्यान संसार में हुये हैं। बहुत कुछ कहा गया है। परम शब्द परमात्मा का द्योतक है। ये परमेश्वरी शक्ति है, जो हर अणु-रेणु में वास कर के परमेश्वर का कार्य को संचलित करती है, चलाती है। अब ऐसे कहने से, बातचीत करने से इस जमाने में विश्वास नहीं करता। कोई इसको मान नहीं सकता। लेकिन जैसे मैंने आपसे पहले भी बरताया है, कि अभी लंडन में, हाल ही में मैंने एक चित्र देखा था, जिसमें उन्होंने सल्फर डाय ऑक्साईड के मॉलेक्यूल्स दिखाये थे । उसमें दिखाया कि सल्फर और ऑक्सिजन के बीच में, उसके अणुओं के बीच में जो बंध है, बाँड है, उनमें कोई परम जो है जिसे ये लोग भी , साइंटिस्ट भी वाइब्रेशन्स ही कहते है। आँखों देखी बात है। आँखो से आप भी देख सकते है। अणु और रेणुओं की स्थिति ये साइंटिस्ट बता सकते हैं कि ये अणु क्या हैं और रेणु क्या हैं? वो किस तरह से हैं? वो किस तरह से स्थित है ? जड़ त्त्व का पता साइंटिस्ट लगा सकते हैं। लेकिन उस में आंदोलित होने वाला चैतन्य जिसे वो वाइब्रेशन्स कहते है उसके बारे में वो बहुत ही अनजान है और उसके बारे में वो कुछ भी बता नहीं सकते। हर एक के लिये वो तत्त्व आंदोलित हो रहा है। वो Read More …

Public Program, Shri Dattatreya Jayanti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। ‘गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।’ आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में Read More …

Public Program Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Public Program, Sarvajanik Karyakram – Birla Kendra Date 8th December 1973 : Place Mumbai [5 first minutes of the talk is not transcribed] ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK .बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दुसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है, उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और Read More …

Public Program, Sahajyog ki Utapatti Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Sahajyog Ki Utapatti Date 7th December 1973 : Place Mumbai Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi [ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK] प्रेम की तो कोई भाषा नहीं होती है, जो प्रेम के बारे में कहा जाये। हमारी माँ हमसे जब प्यार करती है, वो क्या कह सकती है की उसका प्यार कैसा है? ऐसे ही परमेश्वर ने जब हमें प्यार किया, जब उसने सारी सृष्टि की रचना की, तब उनके पास भी कोई शब्द नहीं थे कहने के लिये। मनुष्य ही जब अपने निमित्त को, अपने इन्स्ट्रमेंट को पूरा कर लेता है, तभी भाषा का अवलंबन हो कर के हम लोग कुछ प्रभु की स्तुति कर सकते हैं। आज के लिये कोई विशेष विषय या सब्जेक्ट तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं। क्योंकि तीन दिनों में पूरी बात कहने की है। आज उत्पत्ति पे मैं कुछ कहूँगी। मेरा जो कुछ कहना है वो हायपोथिटिकल है। हर एक साइन्स में पहले हायपोथिसिस है। हायपोथिसिस का मतलब है अपनी जो कुछ खोज है उस खोज के बारे में उसकी विचारणा जनसाधारण के सामने रखी जायें । उसके बाद देखा जाता है कि जो कुछ कहा गया है उसमें सत्य कितना है। फॅक्ट कितना है, फॅक्च्युअल कितना है। जिस दिन वो चीज़ सिद्ध हो जाती है उसी दिन लोग उसे साइन्स के कायदे या लॉ समझते हैं। उसी तरह मेरा कहना ही आप लोगों के लिये, अधिकतर लोगों के लिये बिल्कुल हायपोथिटिकल है। लेकिन उसकी सिद्धता भी हो सकती है और दिखायी जा सकती है। इसके अलावा आदिकाल से अनेक द्ष्टाओं ने जिसको Read More …