Seminar for the new Sahaja yogis Day 3 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

1980-01-30, Seminar for the new Sahaja yogis Day 3, Bordi 1980 (Hindi) और जाते समय, आप सब लोगों को, यहाँ पर छोड़ के, इतनी प्यारी तरह से, इन्होंने, अपने हृदय से निकले हुये शब्द कहे, जिससे, चित्त बहुत खिच सा जाता है। आजकल के जमाने में, जब प्यार ही नहीं रह गया, तो प्रेम का खिंचाव और उससे होने वाली, एक आंतंरिक भावना भी संसार से मिट गयी है। मनुष्य हर एक चीज़ का हल बुद्धि के बूते पर करना चाहता है। बुद्धि को इस्तेमाल करने से मनुष्य एकदम शुष्क हो गया। जैसे उसके अन्दर का सारा रस ही खत्म हो गया और जब भी कभी, कोई भी आंतरिक, बात छिड़ जाती है तो उसके हृदय में कोई कंपन नहीं होता, क्योंकि हृदय भी काष्ठवत हो गया। न जाने आज कल की हवा में ऐसा कौनसा दोष है, कि मनुष्य सिर्फ बुद्धि के घोड़े पे ही चलना चाहता है, और जो प्रेम का आनन्द है उससे अपरिचित रहना चाहता है। लेकिन मैं तो, बहुत पुरानी हूँ, बहुत ही पुरानी हूँ और मैं मॉडर्न हो नहीं पाती हूँ। इसलिये ऐसे सुन्दर शब्द सुन के, मेरा हृदय बहुत ही आंदोलित हो जाता है । लेकिन आज कल की, बुद्धि भी, अब हार गयी। अपना सर टकरा टकरा के हार गयी है। और जान रही है कि उसने कोई सुख नहीं पाया, कुछ आनन्द नहीं पाया। उसने जो कुछ भी खोजा, जिसे भी अपनाया, वो सिर्फ उसका अहंकार था। उससे ज्यादा कोई उसके अन्दर अनुभूति नहीं आयी। धीरे धीरे मनुष्य, इससे परिचित हो Read More …

Do Sansthaye – Man Aur Buddhi , Seminar for the new Sahaja yogis Day 2 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

१९८०-०१-२९, नए सहज योगियों के लिए सेमिनार दिन २, कोवासजी जेहांगीर हॉल, मुंबई (भारत) १९८०-०१-२९, नए सहज योगियों के लिए सेमिनार दिन २, बोर्डी [हिंदी अनुलेख] कल आपको प्रस्तावना मैं मैंने बताया, कि जो आप हैं वो किसलिये संसार में आये हैं। परमात्मा ने आपको इतनी मेहनत से क्यों इन्सान बनाया? और इस इन्सान का क्या उपयोग है? इसके लिये परमात्मा ने हमारे अन्दर जो जो व्यवस्था की है वो अतीव सुन्दर है। और बड़ी मेहनत ले कर के बड़ी व्यवस्था की गयी। और सारी तैय्यारियाँ अन्दर जुट गयी। लेकिन जिस वक्त मनुष्य को स्वतंत्रता दी गयी, जब मनुष्य ने अपनी गर्दन ऊपर उठायी और जो पूर्ण मानव हो गया। तो उसने अपनी स्वतंत्रता को भी पा लिया था। उसके अन्दर दोनों शक्तियाँ जिसके बारे में मैने कल बताया था, इड़ा और पिंगला की शक्ति। इड़ा जिससे की हमारा अस्तित्व, एक्झिस्टन्स बनता है, और पिंगला की जिससे हम सृजन करते हैं, क्रियेटिव होते हैं, ये दोनों ही शक्तियाँ कार्यान्वित होने के कारण हमारे अन्दर मन और बुद्धि या मन और अहंकार नाम की दो संस्थायें तैय्यार हो गयी। ये संस्थायें आप अगर देखें तो सर में दो बलून की जैसे हैं। जो कि आपको यहाँ दिखायी देगी। ये सर में दो बलून के जैसे हमारे अन्दर बन गयीं इसे अंग्रेजी में इगो और सुपर इगो कहा जाता है । ये संस्थायें तो वहाँ पे घनीभूत होने के कारण वहाँ की जो तालु की जो …. कर लें, बिल्कुल बीचोबीच …. हड्डी हैं, जिसे फॉन्टनेल बोन कहते हैं, वो कॅल्शियम से Read More …

Seminar for the new Sahaja yogis Day 1 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

सहज योगियों के लिए सेमिनार  बोर्डी शिबिर, महाराष्ट्र, भारत, 28 जनवरी 1980, मुझे बताया गया था कि, मुझे संबोधित करना चाहिए, जनसमूह को, अंग्रेजी भाषा में। मैं आशा करती हूँ, यह संतोषजनक होगा, कुछ लोगों के लिए, यदि मै संबोधित करूँ, आपको अंग्रेज़ी में। मैं सोचती हूँ की, समय हो गया है, हमारे लिए, कि सोचें, क्यों परमात्मा ने सृजन किया है, इस सुंदर मानव का, मनुष्य का। क्यों उन्होंने इतना कष्ट उठाया, कि विकास करें हमारा, अमीबा से इस स्तर तक। हमने सब कुछ, महत्वहीन समझा है। यहाँ तक की, बात करना परमात्मा के बारे में, ऐसे आधुनिक समय में, यह असंभव है। क्योंकि बुद्धिजीवियों के अनुसार, वे अस्तित्व में नहीं हैं। वे कदाचित कुछ भी कह सकते हैं, जो चाहे, परन्तु वह हैं, और बिलकुल हैं। अब समय आ गया है, सर्वप्रथम, हमारा यह जानने के लिए, हम यहाँ क्यों है? हमारी सिद्धि किस में है? क्या हम आए हैं, इस संसार में, केवल पैदा होने के लिए, अपना भोजन करें, बच्चे पैदा करें, उनके लिए धन उपार्जित करें, और इसके बाद मर जाएँ? अथवा कोई विशेष कारण है, कि परमात्मा हमसे इतना प्रेम करते हैं, और उन्होंने सृजन किया, एक नवीन संसार, मनुष्य का?  साथ ही, समय आ गया है, हमारे जानने के लिए, कि परमात्मा विद्यमान हैं। और यह कि उनके प्रेम की शक्ति विद्यमान है। और केवल यह नहीं, परन्तु यह व्यवस्थित करती है, समायोजित करती है, यह गतिशील है। कि वे प्रेम करते हैं, और उनके प्रेम में, वे चाहते हैं, हमें प्रदान करना, Read More …

Seminar Day 1 (incomplete) Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                      संगोष्ठी दिवस 1  मार्च 19, 1976, कावासजी जहांगीर हॉल, मुंबई, भारत, सहज योगी : यह 19 से 21 मार्च 1976 तक कौवासजी जहांगीर हॉल [मुंबई] में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी के अवसर पर परम पावन श्री माताजी द्वारा दी गई सलाह की रिकॉर्डिंग है। यह पहले दिन की रिकॉर्डिंग है जो कि 19 मार्च 1976। श्री माताजी : बहुत दिनों के बाद हम फिर से इस हॉल में इकट्ठे हुए हैं। जब सहज योग अपनी शैशवावस्था में ही था, तब हमने इस हॉल में एक कार्यक्रम आयोजित किया था। तब से, परमात्मा की कृपा से, सहज योगियों के मन में सहज योग बस गया है। मानो बारिश को भूखी धरती ने सोख लिया हो। सहज योग उन लोगों के लिए नहीं है जो सतही हैं और अपने भीतर और सभी साधकों वाली पूरी लगन और लालसा के साथ खोज नहीं रहे हैं। यह उन लोगों के लिए नहीं है जो पुस्तकों में ईश्वर को खोज रहे हैं। क्योंकि ईश्वर वहां नहीं है। यह उन लोगों के लिए भी नहीं है जो सोचते हैं कि वे भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। कि वे अपने प्रयासों से, अपने चरम ‘हठ’ से, जैसा कि हम इसे ‘जिद\हठ’ कहते हैं, ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यह उन लोगों के लिए है, जो दिल से, हर समय उससे मांगते रहते हैं। और उसकी तलाश में है, सत्य और वास्तविकता के लिए। ‘सहज’ – मैंने आपको कई बार कहा है, ‘साह’ का अर्थ है ‘भीतर’ और ‘ज’ का अर्थ है ‘आपके साथ पैदा Read More …

On para-lok Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                                    सार्वजनिक कार्यक्रम तीसरा दिवस   जहाँगीर हॉल मुंबई 24-03-1973 हम जागरूकता पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया है – एक बिंदु पर इसकी खोज को यह कहकर रोक दिया कि हम आगे नहीं जा सकते। स्वयं हमारे अस्तित्व में, हमें नकारात्मकता और सकारात्मकता अनुकम्पी और परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र में प्राप्त है। यहां तक ​​कि धर्म की खोज में, जब हम इस ओर अपना चित्त ले जाना शुरू करते हैं, तो हम इस की खोज बाहर से शुरू करते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हमारे साथ कुछ गलत है, बल्कि यह हमारी विकसित होती आदतों से हम तक आया है। उदाहरण के लिए, एक मछली बाहर आई और सरीसृप बन गई और रेंगने लगी। इसने मिट्टी को महसूस किया, मिट्टी की कठोरता और चलना शुरू कर दिया। उसी तरह, हर विकासवादी छलांग बाहर जाने से हुई है। लेकिन अब आंतरिक विकास होना है, क्योंकि उस उपकरण के पूर्ण विकसित होने का अंतिम चरण प्रस्तुत है। वास्तव में, अब यह विकास नहीं है, बल्कि यौगिकता (जुड़ने कि क्षमता का विकास) है जिसे घटित होना है। उदाहरण के लिए, मैं एक टेप रिकॉर्डर लेती हूँ, भारत से सिंगापुर ले जाती हूं उस दौरान की रिकार्डिंग शुरू करती हूँ और फिर उसी उपकरण को उन्नत भी करना शुरू करती हूँ और फिर, मैं पुनरावृति करती हूँ (replay)। आपके भीतर जो कुछ भी आपके साथ हुआ है, उसे रिकॉर्ड कर (replay) पुनरावृति करना ही यौगिकता है। इसके साथ, हर अभिव्यक्ति के बारे में जागरूकता, जो शुरुआत में निर्जीव हो Read More …

Public Program Day 2 Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

                     सार्वजनिक कार्यक्रम   कावसजी जहांगीर हॉल मुंबई |   24-03-1973 श्री माताजी: जब हम कहते हैं कि यह जेट युग है, तो हमारा क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हम इंसानों ने जेट के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण बल पर विजय पाने का एक तरीका खोजा है। गुरुत्वाकर्षण बल की एक चुनौती को स्वीकार कर अब विजय कर लिया गया है। हमने, इस आधुनिक युग में न केवल एक जेट बनाया है जिसमें एक प्रोपेलर है; यदि प्रोपेलर नहीं, तो सुपरसोनिक व्यवस्था की है – बल्कि हमें अंतरिक्ष यान भी प्राप्त है जो हमें चंद्रमा तक ले जा सकता है। यह हमारी कल्पना से परे एक बहुत ही शानदार अनोखी खोज है। जब मैं एक छोटी लड़की थी, एक स्कूल में जब सभी लडकियां बैठ कर गणना करती थी की; इंसान को सबसे तेज़ ट्रेन से चाँद पर जाने में कितने साल लगेंगे। या अधिक से अधिक हवाई जहाज में – जो कि हमारे बचपन में था। और अपने जीवनकाल में, मैं देख पाती हूं कि लोग वहां पहले ही उतर चुके हैं। हम विज्ञान की मदद से बहुत आगे बढ़ चुके हैं। बाहर की अभिव्यक्ति शानदार, बल्कि हमारी समझ से परे रही है। लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब पेड़ अपने स्रोतों से परे बढ़ता है;  विशाल और बड़ा, इसके स्रोत की तलाश करनी चाहिए। अन्यथा, यह समाप्त  होने जा रहा है। यह हमारे जेट युग की समस्या है कि हम अपने स्रोतों से बहुत दूर चले गए हैं। और अब हमें उस स्रोत को देखना होगा, जिस पर हम Read More …

How the Divine is working within us? Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)

सार्वजनिक कार्यक्रम, पहला दिन   जहांगीर हॉल, मुंबई 23-03-1973 श्री माताजी: उदाहरण के लिए, यदि आप किसी मेडिकल डॉक्टर से चर्चा करेंगे, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि कामेच्छा क्या है, जो कई मनोवैज्ञानिक निष्कर्षों का आधार है। यदि आप मनोवैज्ञानिक से पूछें, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि सिम्पैथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के लक्षण क्या हैं। फिर, “योग शास्त्री” (योग विशेषज्ञ) का तो कोई स्थान ही नहीं है। शायद हमने कभी यह महसूस नहीं किया कि ये सभी ज्ञान एक ही स्रोत से आते हैं, वह है जागरूकता। एक ही स्रोत ये सब फूल दे रहा है और फिर भी हम अलग हो गए हैं। और हम एक दूसरे से लड़ रहे हैं, बिना यह जाने कि यह एक ही स्रोत है जिसने इतने सारे फूल खिलाए हैं। यह विघटन हमें भ्रम की ओर ले जाता है। और कलियुग, यह आधुनिक युग अपनी भ्रामकता के लिए जाना जाता है।  धर्म और अधर्म, दोनों भ्रमित हैं। सही और गलत एक उलझा हुआ विषय है. दैवीय और शैतानी भ्रमित हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें एक वैज्ञानिक की तरह बहुत खुले विचारों वाला बनना होगा। और पता लगाएं कि परमात्मा हमारे भीतर कैसे काम कर रहा है। जीवन के विषय पर काम कर रहे कुछ जीव विज्ञानियों ने इतने कम समय में पैदा हुए जीवन के बारे में एक बहुत अच्छी थीसिस पेश की है। उन जीवविज्ञानियों के अनुसार, जब पृथ्वी सूर्य से अलग हुई तब से मानव जीवन के विकास में लगा समय, Read More …