Shri Krishna Puja पुणे (भारत)

Hindi Transcript of Shri Krishna Puja. Pune (India), 9 August 2003. हम लोगों को अब यह सोचना है कि सहजयोग तो बहुत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक अपने अन्दर सहजयोग वायवास्तीह रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक जैसा लोग सहजयोग को मानते हैं वो मानेगें नहीं। इसलिए ज़रूरत है कि हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही कृष्ण का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें जाने की कौन सी ऐसी चीजे हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता लगाना चाहिए। हमें अपने तरफ देखना चाहिए, अपने अन्दर देखना चाहिए और वो कोई कठिन बात नहीं है जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना चाहिए हमारे अन्दर ,वो कैसे देखा जाता है । बहुत से सहजयोगियों ने कहा माँ यह कैसे देखा कर जायेगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? उसके लिए ज़रूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं की और नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। कृष्ण के जीवन में पहले दिखाया गया कि एक छोटे लड़के के जैसे वो थे बिलकुल जैसा शिशु होता है बिलकुल ही अज्ञानी वो इसी तरह थे , वो अपने को कुछ समझते नहीं थे | उनकी माँ थी एक और वो अपनी माँ के सहारे वो बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार Read More …

Shri Krishna Puja: Ananya Bhakti New York City (United States)

श्री कृष्ण पूजा| निर्मल नगरी, कैनाजोहारी, न्यूयॉर्क (यूएसए), 29 जुलाई 2001।   आज हम सब यहां श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। श्री कृष्ण, जो विराट थे, उन्होंने युद्ध भूमि में प्रवेश किए बिना ही हर तरह की बुराई से लड़ाई की। श्री कृष्ण का जीवन, अपने आप में बहुत ही सुंदर, रचनात्मक और प्रेमपूर्ण है, लेकिन उन्हें समझना आसान नहीं है।   उदाहरण के लिए, कुरुक्षेत्र में, जब युद्ध चल रहा था और अर्जुन उदास हो गए थे, तब अर्जुन ने पूछा, : “हम क्यों लड़ें, अपने परिजनों से, क्यों लड़ें अपने ही करीबी रिश्तों, दोस्तों और अपने गुरुओं से? क्या यह धर्म है ? क्या यह धर्म है?” इससे पहले, गीता में, श्री कृष्ण ने एक व्यक्तित्व का वर्णन किया है जो एक ऋषि हैं। हम उन्हें संत कह सकते हैं। उन्होंने इसे स्तिथप्रज्ञ कहा । इसलिए, जब उनसे पूछा गया कि स्तिथप्रज्ञ की परिभाषा क्या है, तो उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का विवरण दिया, जो अपने आप में शांत है और अपने वातावरण के प्रति भी शांत है।   यह आश्चर्यजनक है |  यह ज्ञान उन्होंने गीता में प्रथम स्थान पर दिया। यह सबसे उत्तम है, उन्होंने  इसे ज्ञान मार्ग कहा है । यह सहज योग है, जिससे आप सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करते हैं। लेकिन उसी समय, जब आप उन्हें अर्जुन को सलाह देते हुए देखते हैं, तो यह बहुत आश्चर्यजनक है कि यहाँ वे केवल आध्यात्मिकता की बात कर रहे है , पूर्ण अनासक्ति की | और वहाँ वे अर्जुन से कह रहे है कि: “तुम जाओ Read More …

Shri Krishna Puja Campus, Cabella Ligure (Italy)

आज हम यहाँ अपने अन्दर स्थित श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए आये हैं। जैसे कि आप जानते हैं कि सहज योग में आने से पूर्व आप सब परमात्मा को  खोज रहे  थे । आप अलग-अलग जगहों पर गए, बहुत सारी किताबें पढ़ीं और आप में से कुछ लोग भटक गए। और, उस   खोज में, शायद आप नहीं जानते थे कि आप क्या तलाश रहे थे। जो आप तलाश रहे थे वह था स्वयं को जानना था। सभी धर्मों में यह कहा गया है कि ‘स्वयं को जानो ‘. यह एक सामान्य बात है जो सभी ने कही है। यह एक ऐसा तथ्य है जो हर धर्म में है , ‘स्वयं को जानो’, क्योंकि स्वयं को जाने बिना आप परमात्मा को नहीं जान सकते , आप आध्यात्मिकता को नहीं जान सकते. तो पहला कदम था स्वयं को जानना ।  और उसके लिए लोगों ने आपके साथ सभी प्रकार के छल किये, उन्होंने आपको विभिन्न तरीकों से सिखाया और वास्तव में आपको लूटने और आपको धोखा देने की कोशिश की। वो सभी चीजें जो हुई हैं, समाप्त हो गई हैं।  तो फिर आप सहज योग में आते हैं और आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है । लेकिन  आत्मसाक्षात्कार का उद्देश्य क्या है? परमात्मा, या देवी को जानना , यही आत्मसाक्षात्कार का उद्देश्य है ।  लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको क्या होना चाहिए? आप में से कई लोगों ने निरर्थक वस्तुएं में रूचि छोड़ दी है जैसे नशा और वो सभी चीजें ।  निरर्थक किताबें पढ़ने में भी आपकी रुचि समाप्त हो Read More …

Shri Krishna Puja – Witness State Campus, Cabella Ligure (Italy)

श्री कृष्ण पूजा। कबेला लिगर (इटली), 16 अगस्त 1998 आज हम श्री कृष्ण पूजा करने जा रहे हैं। श्री कृष्ण की शक्ति के बारे में यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि, यह आपको एक साक्षी भाव प्रदान करती है। यह बहुत महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि कलियुग और पूर्ण भ्रमित जीवन मूल्यों के इस समय में, सभी प्रकार की उथल-पुथल, इस से बाहर निकलने  के लिए एक बहुत ही जटिल स्थिति बनाती है। साक्षीभाव की अवस्था ध्यान के माध्यम से ही संभव है। आप निर्विचारिता में पहुँच जाते हैं। यह दोनों  संयुक्त है। अब साक्षी अवस्था एक ऐसी अवस्था है जहाँ आप कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। यदि आप प्रतिक्रिया करते हैं, तो समस्या शुरू होती है। यह समझना बहुत सरल है कि हम अपने अहंकार या अपने कंडीशनिंग के कारण प्रतिक्रिया करते हैं। अन्यथा प्रतिक्रिया करने का कोई और कारण नहीं है। कोई भी। अब, उदाहरण के लिए, यहां एक सुंदर कालीन है। जैसे ही मैं इसे देखती हूं – अगर मैं अपने अहंकार का उपयोग करुं तो मैं सोचना शुरू कर दूंगी , “अब, उन्हें यह कहाँ से मिला? उन्होंने इसका कितना भुगतान किया? ” यह पहली प्रतिक्रिया है। फिर आप इस से आगे भी जा सकते हैं। क्रोध आ सकता है। ”वो इतना अच्छा कालीन क्यों लाए? इसे यहां लगाने की क्या जरूरत थी? ” इस प्रकार एक के बाद एक विचार चलता रहता है। अब अगर मैं अपनी अनुकूलताओं से इन चीजों को देखूँ, तो मैं कहूंगी कि यह रंग कृष्ण पूजा के लिए उपयुक्त नहीं है। इस Read More …

Shri Krishna Puja: Primordial Taboos and Sahaj Dharma Campus, Cabella Ligure (Italy)

1997-08-23 श्री कृष्ण पूजा टॉक, कबैला, इटली आज हम यहाँ कृष्ण पूजा के लिए एकत्रित हुए हैं। मैं अमरीका गई थी और वे चाहते थे कि मैं एक महाकाली पूजा करूँ, लेकिन मैंने कहा नहीं, मुझे केवल कृष्ण के विषय में बात करने दीजिए, क्योंकि हमें पहले यह जानना होगा कि इस पूजा की क्या शक्ति है, कैसे हम श्री कृष्ण को अपने भीतर स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने स्वयं कहा है कि जब भी धर्म का पतन होता है- धर्म का अर्थ वह नहीं है जो हम समझते हैं हिंदू, ईसाई या इस्लामी निरर्थकता जैसे – यह नहीं है। धर्म का अर्थ हैं, हमारे बीजभूत प्रतिबंध, जो मानव में आंतरिक रूप से निर्मित हैं। इनके बारे में, मुझे लगता है कि आदिवासी हमसे बेहतर जानते थे। लेकिन फ़िर हमने क्या किया, हम उन पर हावी हो गए और उन्हें भी अपनी जीवन शैली बदलनी पड़ी। बीजभूत प्रतिबंधों को केवल तभी समझा जा सकता है जब लोग स्वयं को समझने की कोशिश कर रहे हों अथवा जो कुछ भी परंपरागत रूप से उनके पास आया हो।   अब, सहज धर्म थोड़ा अलग है इस अर्थ में कि यह उन सभी सहज विचारों से ऊँचा है, जिनकी हम बात करते हैं। लेकिन यह श्री कृष्ण द्वारा या श्रीराम द्वारा कही गई बातों से भी अधिक ऊँचा है। पहले श्री राम ने सोचा, सबसे अच्छा है उन्हें अनुशासन देना । लोगों को जीवन के बारे में गंभीर होना चाहिए, अपने स्वयं के अस्तित्व के बारे में पूर्ण समझ होनी चाहिए, उन्हें स्वयं का Read More …

Shri Krishna Puja: Freedom Without Wisdom Is Dangerous New York City (United States)

08.06.1997 न्यू जर्सी, यू.एस. ए  श्री कृष्ण पूजा – स्वतन्त्रता  बिना सद्बुद्धि स्वतन्त्रता भयंकर है आज हमने श्री कृष्ण पूजा करने का निर्णय लिया है श्री कृष्ण की भूमि में, यद्यपि यह श्री कृष्ण की भूमि है लोग मुझसे पूछते हैं कि लोग आध्यात्मिक क्यों नहीं हैं? ऐसा कैसे है कि वे विभिन्न प्रकार  के खोज-प्रयासों में उलझ जाते हैं जो सत्य की ओर नहीं ले जाते हैं।  ऐसा क्यों है कि अमेरिका में लोग इतने सतर्क नहीं हैं कि वे पहचान सकें कि सच्चाई क्या है और उन्हें क्या पाना है? श्री कृष्ण का समय, जैसा कि आप जानते हैं, श्री राम से कम से कम दो हजार (साल) बाद था। और श्री राम ने बहुत से अनुशासनों का सृजन किया मानवों के अनुसरण करने के लिए जिन्हें उन्हें उत्थान के मार्ग पर पालन करना था।  समय के अनुसार सब कार्य होते हैं। इसलिए लोग बेहद हठी और अनुशासित थे,  और ऐसा हुआ कि लोगों ने सत्य के साथ संपर्क खो दिया। वे अपनी पत्नियों को छोड़ देते, अपनी पत्नियों के साथ बुरा व्यवहार करते,  श्री राम के नाम पर सभी प्रकार की बातें करते क्योंकि हमेशा मनुष्य कुछ ऐसा करने लगते हैं जो सही नहीं है। दूसरा पक्ष उन्होंने कभी नहीं देखा कि  कैसे राम, सीताजी के पीछे चले गये उन्हें खोजने के लिए, और उन्होंने  भयानक राक्षस रावण के साथ युद्ध किया अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए।  तो दूसरा पक्ष लोग कभी नहीं देखते।केवल यह पक्ष उन्होंने देखा कि वह अपनी पत्नी के साथ बहुत Read More …

Shri Krishna Puja: Sahaja Culture Campus, Cabella Ligure (Italy)

श्री कृष्ण पूजा : सहज संस्कृति 01.09.1996 कबेला, इटली आज हम श्री कृष्ण की पूजा करने वाले हैं। देखिये 3 बजे के आसपास कितनी ठंडक थी l अब इसका कारण यह है कि श्री कृष्ण ने इंद्र के साथ थोड़ी शरारत की। इंद्र, जो ईश्वर हैं, या आप कह लीजिये अर्ध-परमेश्वर, उन पर वर्षा  का दायित्व है l इसलिए इंद्र अत्यंत क्रोधित हो गए।  अब आप देखिये कि ऐसे सभी देवता बेहद संवेदनशील होते हैं और छोटी सी बात पर भी क्रोधित या व्यथित हो जाते हैं और इस क्रोध का प्रदर्शन करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने लगते हैं। इसलिए उन्होंने सभी गोप तथा श्री कृष्ण पर, जो  गायों की  देखभाल कर रहे थे, वर्षा की बौछार कर दी।   और ये वर्षा  इतनी भीषण थी कि सबने सोचा कि सम्पूर्ण धरती ही जलमग्न हो जाएगी। तो इंद्र, श्री कृष्ण की लीला में विघ्न डाल कर अत्यंत प्रसन्न हो रहे थे और उन्हें लगा कि वह अपने उद्देश्य में अत्यंत सफल हो गए हैं ।   तब श्री कृष्ण ने अपनी ऊँगली पर एक पहाड़ को उठा लिया, और वो सभी लोग जो डूब रहे थे, उस पहाड़ के नीचे आ गए।  यह श्री कृष्ण का अंदाज़ है।  मेरा अंदाज़ भिन्न है।  मैंने इंद्र से कहा कि तुम मेरे साथ कोई अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते। अभी तक मैंने तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाई है, और न तुम्हें परेशान किया है।   वास्तव में श्री कृष्ण पूजा होने जा रही है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि तुम मेरे Read More …

Shri Krishna Puja: Shri Krishna and the Paradoxes of Modern Times & short talk in Marathi Campus, Cabella Ligure (Italy)

  श्री कृष्ण पूजा। कैबेला (इटली), 28 अगस्त 1994 आज हम यहां हैं, श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए। जैसा कि आप जानते हैं कि श्री कृष्ण अवतार हैं, श्री विष्णु के। और श्री विष्णु वह है, जो इस ब्रह्मांड के संरक्षक है। जब इस पूरी दुनिया  को बनाया गया था, तब यह आवश्यक था, एक संरक्षक बनाना भी।  नहीं तो यह दुनिया  नष्ट हो गई होती और पूरी तरह से अगर इस दुनि को,बिना किसी संरक्षक के, अकेला छोड़ दिया जाता तो, जिस प्रकार इंसान की प्रवर्ति हैं, तो शायद वह इस दुनिया को कुछ  भी कर  सकते थे ।   परंतु , इसलिए, विष्णु संरक्षक हैं । वह संरक्षक हैं और केवल वह ही एक अवतार हैं। बेशक, कभी-कभी ब्रह्म देव ने भी अवतार लिया, लेकिन फिर भी उन्होंने केवल रूप धारण किया, हमारी विकास प्रक्रिया में, वो अलग-अलग रूप ले चुके है। वह  (श्री विष्णु ) इस धरती पर आए,अलग-अलग तरीकों से.  लेकिन फिर भी वह जैसा कि आप कहते हैं, बारह – बारह तक श्री राम थे और दस के माध्यम से वह वहाँ थे। इसलिए, उन्होंने खुद के आसपास कई महान पैगम्बरों का एक वातावरण भी बनाया ताकि वे इस ब्रह्माण्ड में धर्म की रक्षा कर सके।  तो, संरक्षण का आधार धर्म था, जो, जैसा कि आप जानते हैं, आध्यात्मिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण, मुलभूत नींव है। और इस धर्म में, जो भी महत्वपूर्ण चीज स्थापित की जानी थी, वह था संतुलन क्योंकि लोगों को किसी भी चीज के चरम में जाने की आदत थी ।  इसलिए, Read More …

Shri Krishna Puja: Ascending beyond the Vishuddhi, The Viraata State Campus, Cabella Ligure (Italy)

                       श्री कृष्ण पूजा                                                                                                      विशुद्धि से आगे उत्थान,  विराट अवस्था   कबैला लिगरे (इटली), 16 अगस्त 1992। आज हमने श्री कृष्ण की पूजा करने का फैसला किया है। हमने कई बार इस पूजा को किया है और श्री कृष्ण के अवतरण का सार समझा है, जो छह हजार साल पहले था। और अब, उनकी जो अभिव्यक्ति थी, जिसे वह स्थापित करना चाहते थे उसे इस कलियुग में किया जाना था। वैसे भी, यह कलियुग सतयुग के एक नए दायरे में जा रहा है, लेकिन बीच में कृत युग है जहाँ यह ब्रह्मचैतन्य , या हम कह सकते हैं कि ईश्वर के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति, कार्य करने जा रही है। इस समय, श्री कृष्ण की शक्तियों के साथ क्या होने वाला है – यह हमें देखना है। श्री कृष्ण, जैसा कि मैंने आपको बताया, वह कूटनीति के भी अवतार थे। इसलिए वह चारों ओर बहुत सारी भूमिकाएँ निभाते है, और अंततः वह असत्य और झूठ को सामने लाते है; लेकिन ऐसा करने में वह लोगों का आंकलन भी करते है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि श्रीकृष्ण की कूटनीति की शक्तियां इस समय प्रकट होनी थीं, जब यह अंतिम निर्णय है। इसलिए अब हमने पहले जो कुछ भी गलत किया है, जो भी कर्म अज्ञान में किए गए हैं, या शायद जानबूझकर, उन सभी को वापस भुगतान किया जाएगा। उन पुण्यों को जो आपने पिछले जन्मों में या इस जीवन में किया है,  को भी पुरस्कृत किया जाएगा। यह सब श्री कृष्ण के सामूहिकता के सिद्धांतों के माध्यम से किया जाता है, Read More …

Shri Krishna Puja: They have to come back again and again Saffron Walden (England)

श्री कृष्ण पूजा   सेफ्फ़रॉन वाल्डेन (इंग्लैंड), 14 अगस्त 1989 (श्री कृष्ण अवतार, दाईं विशुद्धि)  आज हम यहां श्री कृष्ण अवतार की पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि श्री कृष्ण नारायण के अवतार हैं, श्री विष्णु के। प्रत्येक अवतार में, वे अपने सभी गुणों, अपनी सारी शक्तियों और अपनी प्रकृति को अपने साथ ले कर आते हैं। इसलिए जब उन्होंने अवतार लिया तो उनके पास नारायण के सभी गुण थे, और फिर श्री राम के, लेकिन हर अवतरण अपने पूर्व जीवन को संशोधन करने की चेष्टा करता है, जो भी उनके पूर्व जीवन में गलत समझ लिया गया और उन्हें अतिशयता में ले जाया गया । इसलिए उन्हें बार-बार वापस आना पड़ता है। सही है इसलिए श्री विष्णु ने, जब उन्होंने अपना अवतार लेने के बारे में सोचा, क्योंकि वे ही हैं जो संरक्षक हैं। वे ही इस सृष्टि के संरक्षक और धर्म के भी संरक्षक हैं। इसलिए जब उन्होंने अवतरण लिया तो उन्हें यह देखना पड़ा कि लोग अपने धर्म पर कायम रहें। केवल धर्म को ठीक रखने से ही आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। तो यह कार्य अत्यंत कठिन था, मुझे कहना चाहिए, लोगों को महालक्ष्मी के मध्य मार्ग में बनाए रखने के लिए। अतः पहले अवतरण द्वारा, आप कह सकते हैं कि उन्होंने एक हितकारी राजा की संरचना करने की कोशिश की, श्री राम के रूप में। सुकरात ने एक हितकारी राजा का वर्णन किया है। लेकिन इसके परिणामस्वरूप, लोगों ने सोचना शुरू कर दिया कि अगर वे राजा या Read More …

Shri Radha Krishna Puja: The importance of friendship La Belle Étoile, La Rochette (France)

             श्री राधा कृष्ण पूजा, “दोस्ती का महत्व”  मेलून (फ्रांस), 9 जुलाई 1989। मैं वास्तव में अत्यंत प्रसन्न हूं कि इस पूजा के लिए फ्रांस में हमारे पास इतने सारे आगंतुक और फ्रेंच सहज योगी हैं। यह सामूहिकता को दर्शाता है, ऐसी सामूहिकता जो आप सभी को हर जगह से आकर्षित करती है, और यह कि आप उस सामूहिकता का आनंद लेने की कोशिश करते हैं। लेकिन सामूहिकता की नींव, सामूहिकता का आधार बहुत गहरा है; और गहरी समझ ही आपको बता सकती है कि सामूहिकता का आधार निर्लिप्त प्रेम है। प्यार ही एक रास्ता है। सामूहिकता का होना तब तक संभव नहीं है जब तक कि आपने प्रेम को निर्लिप्त \ अनासक्त न बना लिया हो। फ्रेंच लोग, प्रेम के इतने प्रकार में अच्छे रहे हैं जिनके बारे में वे बात करते रहे हैं; और उन्होंने किताबों के बाद किताबें, उपन्यासों के बाद उपन्यास लिखे हैं और प्यार की बात करने के लिए बहुत सारे रोमांटिक और गैर रोमांटिक और हर तरह का माहौल बनाया है। लेकिन शुद्ध प्रेम, जैसा कि हम सहज योग में समझते हैं, अब सहज योगियों द्वारा आपस में व्यक्त किया जाना है। आखिर हम सब एक ईश्वर द्वारा बनाए गए इंसान हैं। और हम सब एक माँ द्वारा बनाए गए सहज योगी हैं। इसलिए हमारे बीच किसी भी तरह की कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। लेकिन हमें पता होना चाहिए कि क्या है जो कभी-कभी हमें थोड़ा अलग बनाता है। यदि हम उन समस्याओं को समझ सकें जिनका हम सामना कर रहे हैं, तो हमारे Read More …

Shri Krishna Puja: The State of Witnessing Como (Italy)

श्री कृष्ण पूजा (साक्षी भाव की स्तिथि ) इटली , 6 अगस्त 1988. आज हम यहाँ एकत्रित हुए हैं, श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए। हमें, विशुद्धि चक्र पर श्री कृष्ण के अवतरन के महत्व को समझना चाहिए। जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, सिवाय एक या दो बार,श्री ब्रह्मदेव ने अपना अवतार लिया है। और एक बार श्री गणेश ने जन्म लिया, भगवान येशु मसीह के रूप में । लेकिन विष्णु तत्व, विष्णु के तत्व ने इस धरती पर कई बार जन्म लिया है, जैसे कि देवी को कई बार अपना जन्म लेना पड़ा। उन्हें कई बार एक साथ काम करना पड़ा और विष्णु तत्व के साथ महालक्ष्मी तत्व ने कार्यान्वित होकर लोगों के उत्थान में मदद की है । तो विष्णु का तत्व आपके उत्थान के लिए है, मनुष्य के उतक्रान्ति की प्रक्रिया के लिए है। इस अवतार के माध्यम से और महालक्ष्मी की शक्ति के माध्यम से, हम अमीबा के स्तर से मनुष्य बन गए हैं। ये हमारे लिए एक स्वाभाविक क्रिया है। लेकिन विष्णु के तत्व के लिए उन्हें, विभिन्न अवतारों से गुजरना पड़ा, उत्थान के लिए।  जैसा कि आप जानते हैं कि श्री विष्णु के कई अवतार हुए, शुरुआत में मछली के रूप में और ऐसा चलता रहा श्री कृष्ण की स्थिति तक, जहाँ कहा जाता हैं कि वे सम्पूर्ण बन गए । लेकिन हमे समझना होगा कि वे हमारे मध्य नाड़ी तंत्र पर काम करते है, वे हमारे मध्य नाड़ी तंत्र का निर्माण करते है। हमारी उत्क्रांति की प्रक्रिया के माध्यम Read More …

Shri Krishna Puja: The 16 000 Powers of Shri Krishna Saint-Quentin-en-Yvelines (France)

श्री कृष्ण पूजासेंट क्वेंटिन (फ्रांस), 16 अगस्त 1987। श्री माताजी: वह क्या है?सहज योगी: छोटे गणेश, एक उपहार।कृपया बैठ जाएँ।श्री माताजी : क्या हिल रहा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है।श्री माताजी: यहाँ क्या हिल रहा है? यह ऊर्जा है?सहज योगी: ऐसा लगता है कि यह मंच है। बच्चों का इस खूबसूरत तरीके से आना और मेरा स्वागत करना बहुत सुंदर था। यह आपको कृष्ण के दिनों में वापस ले जा सकता है, जब बचपन में, उनके दोस्तों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था, और उन्होंने हर संभव सम्मान करने की कोशिश की। उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। इसके अलावा, आप कहानी जानते हैं –श्री माताजी, [एक तरफ]: मुझे लगता है कि आपको पानी बंद कर देना चाहिए, अन्यथा मेरी वाणी थोड़ी-सी हो सकती है- उनके जन्म की कहानी तो आप जानते ही हैं। यहां हमारे पास दोनों तरफ पानी का बहाव है। जिस तरह से वह जमुना नदी के किनारे अपनी बांसुरी बजाते थे। पूरी ही बात कभी-कभी इतनी मानवीय प्रतित होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। सही समय पर, जब भी जरूरत पड़ी, बचपन में, उन्होंने अपनी शक्तियों को प्रकट किया, कि उन्होंने एक महिला को मार डाला जो एक शैतान [पुतना] थी। अंतत: उन्होने कंस का वध कर दिया।उसके बाद, आप जानते हैं कि उन्होंने गीता का उपदेश दिया, लेकिन यह इतना जल्दि नही हुआ। कंस को मारने के बाद, वह वहां शासन करने के लिए द्वारका चले गये। और वहां उन्हे पांच और पत्नियों से शादी करनी है। Read More …

Shri Krishna Puja: The Six Enemies And False Enemies Hostellerie am Schwarzsee, Plaffeien (Switzerland)

श्री कृष्णा पुजा श्वार्जसी (स्विट्जरलैंड), 23 अगस्त 1986। श्री कृष्ण हमारे विशुद्धि चक्र में निवास करते हैं। इस चक्र में वे श्रीकृष्ण के रूप में विराजमान हैं। बाईं ओर, उनकी शक्ति, विष्णुमाया, उनकी बहन, निवास करती हैं। वहाँ वे गोपाल के रूप में निवास करते हैं, जैसे वे गोकुल में रहने वाले बालक के रूप में खेलते थे। दाहिनी ओर वे द्वारिका में शासन करने वाले राजा श्री कृष्ण के रूप में निवास करते हैं। ये हमारे विशुद्धि चक्र के तीन पहलू हैं। जो लोग अपने दाहिने पक्ष का इस्तेमाल दूसरों पर हावी होने के लिए करते हैं, अपनी आवाज का इस्तेमाल लोगों को नीचा दिखाने के लिए करते हैं, अपना अधिकार दिखाने के लिए, लोगों पर चिल्लाते हैं, ये वही लोग हैं जो दाहिने पक्ष से प्रभावित होते हैं। जब दाहिना भाग पकड़ा जाता है, भौतिक पक्ष पर, आपको एक बहुत बड़ी समस्या होती है क्योंकि दायां हृदय अपने प्रवाह को ठीक से नहीं कर पाता है। परिणाम में आपको दमा और ऐसी ही सभी बीमारी कहते हैं, लेकिन विशेष रूप से जब दाहिना ह्रदय पिता की समस्या से प्रभावित होता है। बाईं ओर विष्णुमाया है, बहन का रिश्ता है। जब बहन, जो आपका शुद्ध संबंध है, उसे बहन के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, जब किसी व्यक्ति का महिलाओं के प्रति रवैया भोग और वासना का होता है, तो वह बायीं विशुद्धि विकसित करता है। जब वह बायीं विशुद्धि की समस्या को बहुत दृढ़ता से विकसित करता है, और यदि उसके पास खराब आज्ञा है, या Read More …

Shri Krishna Puja: Play the melody of God Englewood Ashram, New Jersey (United States)

श्री कृष्ण पूजाएंजलवुड (यूएसए), 2 जून 1985। आज हम श्री कृष्ण की पूजा करने जा रहे हैं। श्री कृष्ण इस धरती पर ऐसे समय आए थे जब भारत में लोग बहुत कर्मकांडी थे। वे तथाकथित ब्राह्मणों के दास बन गए थे, जिन्हें परमात्मा के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था क्योंकि उन्होंने एक ऐसी कहानी शुरू की थी कि एक ब्राह्मण का पुत्र ही ब्राह्मण हो सकता है। तो, जन्म ने व्यक्ति की जाति निर्धारित की। उसके पहले ऐसा नहीं था कि ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण होगा। यह भी सच है कि यदि आप एक साक्षात्कारीआत्मा हैं, वास्तविक अर्थों में, यदि आप वास्तव में साक्षात्कारीआत्मा हैं, तो आपको अवश्य ही ऐसा एक बच्चा प्राप्त होना चाहिए जो एक साक्षात्कारी आत्मा हो। और ऐसे ही यदि यह कहा जाए कि यदि पिता ब्राह्मण है, साक्षात्कारी आत्मा है, तो उसका पुत्र भी ब्राह्मण हो जाता है। चुंकि आप एक सहज योगी हैं, अब आप समझ सकते हैं कि एक सहज योगी का पुत्र सामान्य रूप से सहज योगी बन जाता है। तो यह तय हुआ कि ब्राह्मण के बच्चों को ब्राह्मण कहा जाएगा। धीरे-धीरे, इसका मतलब यह हुआ कि ब्राह्मण से पैदा हुए किसी भी बच्चे को ब्राह्मण कहा जाता था। अब, हमने देखा है कि कई सहजयोगियों के पास भी अपने बच्चों के रूप में साक्षात्कारी आत्मा नहीं है। हो सकता है उनके अपने कर्म, शायद बच्चे के, कुछ भी हो, लेकिन मैंने भी कुछ सहजयोगियों को भयानक शैतानी बच्चे होते देखा है। तो, यह दर्शाता है कि यह आपके Read More …

Shri Krishna Puja: Announcement of Vishwa Nirmala Dharma Nashik (भारत)

श्री कृष्ण पूजा नासिक – 19.01.1985 Announcement of Vishwa Nirmal Dharma कल, भाषण में, मैंने सहज योग के बारे में एक नई घोषणा की थी। लेकिन पूरा भाषण मराठी भाषा में था और इससे पहले कि इसका अनुवाद हो, मैं आपको बताना चाहूंगी कि मेरी घोषणा क्या थी। यह एक प्रश्न था कि, अमेरिका और इंग्लैंड में कोई भी ट्रस्ट, जो एक धर्म नहीं है, उसे पंजीकृत नहीं किया जा सकता। वास्तव में सहज योग एक धर्म है। निस्संदेह, विश्वव्यापी धर्म है, एक ऐसा धर्म, जो सभी धर्मों को एकीकृत करता है, सभी धर्मों के सिद्धांतों को एक साथ लाता है और दर्शाता है – एकाकारिता दर्शाता है। यह सभी अवतरणों को एकीकृत करता है। सभी शास्त्रों को एकीकृत करता है। यह एक बहुत ही समन्वित महान धर्म है, जिसे हम विश्वव्यापी धर्म कह सकते हैं और हिंदी भाषा में इसे ‘विश्व धर्म’ कहा जाता है। अब इसे और अधिक विशेष बनाने के लिए, मैंने सोचा कि, यदि आप विश्वव्यापी धर्म कहते हैं, तो यह उस विशेष रूप में नहीं हो सकता है, जैसे बोद्ध लोग ऐसे लोग हैं, जिन्हें ईसा मसीह के बाद में ईसाई और अन्य लोगों के बाद, अवतरण के अनुसार I ​अब इस बार का अवतरण ‘निर्मला’ होने के नाते, मैंने सोचा कि हम इसे कह सकते हैं “धर्म, जो विश्वव्यापी है निर्मला के नाम पर”, इसलिए इसे छोटा करने के लिए, मुझे लगा कि हम इसे “यूनिवर्सल निर्मला धर्म” (विश्व निर्मल धर्म) कह सकते हैं। इस बारे में आप क्या कहते हैं? अब निर्मला, आप Read More …

Shri Krishna Puja Los Angeles (United States)

श्री कृष्णा पूजा, लॉस एंजल्स (संयुक्त राज्य अमरीका ) १८ सितम्बर , १९८३  पहली बार जब मैं संयुक्त राज्य अमरीका में आई, तो सबसे पहले लॉस एंजिल्स आई थी । क्योंकि, ये देवदूतों का स्थान है। वास्तव में, मैंने सोचा था कि बिलकुल  ये बहुत पवित्र स्थान होगा आने के लिए, सर्वप्रथम, इस महान संयुक्त राज्य अमरीका की भूमि में।  अब जैसा कि आप जानते हैं कि संयुक्त राज्य अमरीका या सम्पूर्ण अमरीका विशुद्धि चक्र है। जिसमें से  इस विशुद्धि चक्र के, तीन पक्ष हैं। तो विशुद्ध चक्र का मध्य भाग संयुक्त राज्य है। विशुद्धि चक्र का मध्य भाग श्री कृष्ण द्वारा शासित है। और उनकी शक्ति राधा है। “रा – धा”। “रा”का अर्थ है शक्ति, “धा” वह जिसने शक्ति को धारण किया है। “रा – धा”। ” धा – रे – ती – सा”। तो वही हैं जिन्होंने शक्ति को धारण किया है, और इसलिए, उन्हें राधा कहा जाता है। वो श्री कृष्ण की शक्ति हैं। कृष्ण शब्द आया है कृषि शब्द से – अर्थात – हल चलाना। या आप कह सकते हैं, खेती को “कृषि” कहते है। जो हल चलाता है और बीज को मिट्टी में रोपित करता है, वह कृषि करता है। और इसी लिए उन्हें कृष्ण कहा जाता है। अब उन्होंने जो बीज बोया है , वो आध्यात्मिकता का बीज है  वो श्री कृष्ण हैं जिन्होंने संस्कृत में कहा था- “नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः, न चैनम् क्लेदयन्तियापो न शोशयति मारुतः। अर्थात – ऐसा नहीं हो सकता, अर्थात, आध्यात्मिक जीवन, या आप कह सकते है, Read More …

Shri Krishna Puja: Vishuddhi Chakra Vienna (Austria)

                        “विशुद्धि चक्र”  वियना (ऑस्ट्रिया), 4 सितंबर 1983। अमेरिका जाने से पहले मैं विशुद्धि चक्र और हमारे भीतर स्थित श्रीकृष्ण के पहलू के बारे में और बात करना चाहती थी। जिनेवा में पहली पूजा में मैंने इसके बारे में काफी कुछ बोला। इसका कोई अंत नहीं है, निश्चित रूप से क्योंकि यह विराट का केंद्र है। लेकिन समझना यह होगा कि श्रीकृष्ण का संदेश ‘समर्पण’ करना था। अब,  हम स्थूल रूप से जिसे समर्पण सोचते हैं, वह एक शत्रु का दूसरे शत्रु के प्रति समर्पण जैसा है। तो जब ‘समर्पण’ शब्द बोला जाता है, तो ऐसा सोचकर हम अपनी रुकावटें बना लेते हैं कि अब हमें आत्मसमर्पण करना है – दूसरे पक्ष पर कुछ छोड़ दो। लेकिन जब श्री कृष्ण ने समर्पण की बात की तो वे कह रहे थे कि, “अपने शत्रुओं को मुझ पर छोड़ दो ताकि मैं उनसे छुटकारा करवा दूंगा।” अब हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हमारा अहंकार है। और अहंकार के साथ ही अन्य सभी प्रकार की समस्याएं शुरू हो जाती हैं, क्योंकि यह हमारे विकास में सबसे बड़ी रुकावट है। और अहंकार शुरू होता है, जैसा कि आप जानते हैं, विशुद्धि चक्र से और विशुद्धि चक्र में शोषित भी हो सकता है। अब देखते हैं कि यह विशुद्धि चक्र कैसा बना है। हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले सभी स्वर विशुद्धि चक्र से आते हैं। और देवनागरी भाषा की तरह यह है [अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ रु ऋ ळ ण ॐ अः?] – सोलह। तो जैसा कि आप जानते हैं Read More …

Shri Yogeshwara Puja Chelsham Road Ashram, London (England)

(परम पूज्य श्रीमाताजी, श्रीकृष्ण पूजा, चेल्शम रोड, लंदन, 15 अगस्त, 1982) एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि वह योगेश्वर हैं और जो बात हमें समझनी है वह यह है कि जब तक आप योगेश्वर के मार्ग का अनुसरण नहीं करते तब तक स्वयं को पूर्णतया स्थापित नहीं कर सकते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा सर्वधर्माणां परितज्य मामेकम् शरणम् व्रज। अपने सभी संबंधियों व संबंधों जैसे अपने भाई, पत्नी, बहनों …. को छोड़कर केवल मुझ एक कृष्ण को भज … देखिये ये सब धर्म हैं जैसे स्त्रीधर्म …. अर्थात एक स्त्री का धर्म क्या है। इसी प्रकार से हम कह सकते हैं राष्ट्रधर्म। आज भारत की स्वतंत्रता का भी दिन है। तो हमारा राष्ट्रधर्म भी है …. हम देशभक्त लोग हैं। अपने देश के लिये प्रेम होना ही राष्ट्रधर्म है। इसके बाद समाजधर्म आता है … अर्थात समाज के प्रति आपका कर्तव्य। इसके बाद पति धर्म इसका अर्थ है पति का पत्नी के प्रति कर्तव्य, पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य। सभी के कर्तव्य धर्म कहलाते हैं। लेकिन उन्होंने कहा इन सभी धर्मों को छोड़कर … अपने कर्तव्यों को छोड़कर पूर्णतया मुझको समर्पित हो जाओ … सर्वधर्माणां परितज्य मामेकम् शरणम् व्रज। चूंकि अब आप सामूहिक व्यक्तित्व बन गये हैं … आपका उनके साथ ऐक्य हो गया है … और वही आपके धर्मों की …. कर्तव्यों की रक्षा कर रहे हैं। वहीं उनकी ओर दृष्टि किये हुये हैं … वही उनको शुद्ध कर रहे हैं अतः आपको स्वयं को उनको पूर्णतया समर्पित कर देना चाहिये। उन्होंने उस समय ये बात केवल अर्जुन को Read More …

Shri Krishna Puja, There is a war going on Birmingham (England)

Shri Krishna’s Birthday Puja, Bala’s home, Tamworth, Birmingham (UK), 15 August 1981 वे इस तरह हमला कर रहे हैं की वे सूचनाओ को आप के मस्त्रिष्क में डाल रहे है . अब, हमें यह जानना होगा कि शैतानी बलों और दिव्य शक्तियों के बीच एक युद्ध जारी है अब आप ऐसे लोग हैं, जिन्होंने दिव्य होना चुना है। लेकिन, भले ही आपने इसे चुना है, और इश्वर ने तुम्हें स्वीकार कर लिया है, और आपको अपनी शक्तियां भी दी हैं, फिर भी आपको पता होना चाहिए कि आप अभी भी बहुत नाज़ुक हैं, बहुत, नकारात्मकता की चपेट मे आने के लिए। अब हमेशा, किसी को भी यह याद रखना होगा कि दिव्यता किसी भी मामले में जीत ही जाएगी: इसके बारे में कोई संदेह नहीं है। मान कि, आप दिव्यता को असफल होने देते हैं, तो यह आप की ही हार होगी,दिव्यता की नहीं। यदि आप सभी दैवीय शक्तियों को असफल होने देते हैं, तो आप को नकारात्मकता के रूप में नष्ट कर दिया जाएगा, अंतिम विनाश में,दिव्य शक्तियों उन सभी को खत्म करेगी जो शैतानी है, इस बारे में कोई संदेह नहीं है। लेकिन यह भी एक मुद्दा है कि कितने लोगों को नष्ट किया जा रहा है, आपको सभी को बहुत जागरूक होना पड़ेगा कि आप बचाए जावें ,और आप उन लोगों में से ना होंगे जोसमाप्त हो जाएँ . जितने भी हम बचाएंगे, उतना ही हमारा आनंद होगा; हम जितने अधिक लोग बचाएंगे अधिक बड़ी शक्ति बह रही होगी और उस प्रभाव का असर इस तरह होगा Read More …

Shri Krishna Puja: Most Dynamic Power of Love Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

श्री माताजी निर्मला देवी 28 अगस्त, 1973 श्री कृष्ण पूजा  ‘प्रेम की अधिकतम गतिशील शक्ति’ मुंबई, भारत …ईश्वर द्वारा। उदहारण के लिए, अगर मैं सिर्फ अपने सिर को जानती हूं तो काफी नहीं है। अगर मैं सिर्फ अपनी गर्दन को जानती हूं तो काफी नहीं है। अगर मैं सिर्फ अपने पैरों को जानती हूं तो काफी नहीं है। लेकिन जितना अधिक मैं स्वयं के विषय में जानूंगी उतनी ही मैं गतिशील बन जाऊंगी, उतनी ही मै विस्तृत हो जाऊंगी। और जो कुछ महान था, या वो सारे लोग जिन्हें महान कहा गया, वह इसलिए महान हैं क्योंकि वे बहुत लोगों में रहते हैं। मुझे वातावरण में वो गर्मजोशी महसूस होती है, जैसे आप अनुभव कर रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं वो (सहज योगी) विदेशी नहीं हैं, वो आप के भाई बहन हैं। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं की, मैं उसका नाम नहीं लूंगी, लेकिन एक बार दो भाई जंगल में मिले। पर वह सोचते थे कि वो दुश्मन हैं और वो आपस में लड़ना चाहते थे। जब वो एक दूसरे को मारने के लिए आए वो एक दूसरे पर प्रहार नहीं कर पाए। फिर उन्होंने अपने तीर निकाल लिए पर तीर चले ही नहीं। इस बात से वे बहुत आश्चर्यचकित हुए, और जब उन्होंने एक दूसरे से पूंछा, ‘तुम्हारी मां कौन है’? उन्हें पता चला कि उनकी मां एक ही हैं। और तब उन्हें पता चला कि ना तो वो विदेशी हैं, ना शत्रु हैं पर वे एक ही मां का अंश हैं। इस ज्ञान ने उन्हें कितनी Read More …